रहीम मध्यकालीन सामंतवादी संस्कृति के कवि थे। रहीम का व्यक्तित्व बहुमुखी प्रतिभा-संपन्न था। वे एक ही साथ सेनापति, प्रशासक, आश्रयदाता, दानवीर, कूटनीतिज्ञ, बहुभाषाविद, कलाप्रेमी, कवि एवं विद्वान थे। रहीम
जन्म : 17 दिसंबर 1556, लाहौर , पाकिस्तान मृत्यु : 1626, आगरा अभिभावक : बैरम खां जीवनसाथी : माह बनू बेगम बच्चे : जाना बेगम बैरम खाँ के घर पुत्र की उत्पति की खबर सुनकर वे स्वयं वहाँ गये और उस बच्चे का नाम “रहीम’ रखा। जन्म और मृत्य
काफी मिन्नतों तथा आशीर्वाद के बाद अकबर को शेख सलीम चिश्ती के आशीर्वाद से एक लड़का प्राप्त हो सका, जिसका नाम उन्होंने सलीम रखा। शहजादा सलीम माँ- बाप और दूसरे लोगों के अधिक दुलार के कारण शिक्षा के प्रति उदासीन हो गया था। कई महान लोगों को सलीम की शिक्षा के लिए अकबर ने लगवाया। रहीम शहजादा सलीम
रहीम ने अवधी और ब्रजभाषा दोनों में ही कविता की है जो सरल, स्वाभाविक और प्रवाहपूर्ण है। उनके काव्य में श्रृंगार, शांत तथा हास्य रस मिलते हैं I तथा दोहा , सोरठा , बरवै , कवित्त और सवैया उनके प्रिय छंद हैं। भाषा शैली
रहीम दोहावली, बरवै, नायिका भेद, मदनाष्टक, रास पंचाध्यायी, नगर शोभा आदि। प्रमुख रचनाएं
छिमा बड़न को चाहिये , छोटन को उतपात।कह रहीम हरि का घट्यौ , जो भृगु मारी लात॥1॥ अर्थ : बड़ों को क्षमा शोभा देती है और छोटों को उत्पात ( बदमाशी )। अर्थात अगर छोटे बदमाशी करें कोई बड़ी बात नहीं और बड़ों को इस बात पर क्षमा कर देना चाहिए । छोटे अगर उत्पात मचाएं तो उनका उत्पात भी छोटा ही होता है । जैसे यदि कोई कीड़ा ( भृगु ) अगर लात मारे भी तो उससे कोई हानि नहीं होती । रहीम के दोहे
तरुवर फल नहिं खात है , सरवर पियहि न पान । कहि रहीम पर काज हित , संपति सँचहि सुजान॥2॥ अर्थ : वृक्ष अपने फल स्वयं नहीं खाते हैं और सरोवर भी अपना पानी स्वयं नहीं पीती है । इसी तरह अच्छे और सज्जन व्यक्ति वो हैं जो दूसरों के कार्य के लिए संपत्ति को संचित करते हैं । रहीम के दोहे
दुख में सुमिरन सब करे , सुख में करे न कोय । जो सुख में सुमिरन करे , तो दुख काहे होय॥3॥ अर्थ : दुख में सभी लोग याद करते हैं , सुख में कोई नहीं । यदि सुख में भी याद करते तो दुख होता ही नहीं । रहीम के दोहे
खैर , खून , खाँसी , खुसी , बैर , प्रीति , मदपान । रहिमन दाबे न दबै , जानत सकल जहान॥4॥ अर्थ : दुनिया जानती है कि खैरियत , खून , खांसी , खुशी , दुश्मनी , प्रेम और मदिरा का नशा छुपाए नहीं छुपता है । रहीम के दोहे
जो रहीम ओछो बढ़ै , तौ अति ही इतराय । प्यादे सों फरजी भयो , टेढ़ो टेढ़ो जाय॥5॥ अर्थ : ओछे लोग जब प्रगति करते हैं तो बहुत ही इतराते हैं । वैसे ही जैसे शतरंज के खेल में जब प्यादा फरजी बन जाता है तो वह टेढ़ी चाल चलने लगता है । रहीम के दोहे
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