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Size: 1.48 MB
Language: none
Added: Jul 09, 2014
Slides: 27 pages
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Class – IX
अकबर के नवरत्न अबुल फजल फैजी तानसेन राजा बीरबल राजा टोडरमल राजा मान सिंह अब्दुल रहीम खानखाना फकीर अजिओं-दिन मुल्लाह दो पिअज़ा
अब्दुर्रहीम ख़ानख़ाना अब्दुर्रहीम ख़ानख़ाना ( रहीम ) अकबर के नवरत्नों में एक थे। इनके पिता बैरम खाँ मुगल सम्राट अकबर के संरक्षक थे । रहीम बहुत दयालु स्वभाव के थे तथा हिन्दू-मुसलमान दोनों धर्मों को समान आदर की दृष्टि से देखते थे। इन्होंने अपनी रचनाओं द्वारा नीति, भक्ति,ज्ञान तथा जीवन के व्यावहारिक पक्षों का उद्घाटन किया । रहीम को अरबी, फ़ारसी, तुर्की और हिन्दी का अच्छा ज्ञान था। इन्होंने ब्रज और अवधी दोनों भाषाओं में लिखा । प्रमुख रचनाएँ – श्रृंगार सोरठा, मदनाष्टक, रहीम सतसई
दोहा – 1 रहिमन धागा प्रेम का , मत तोडो चटकाय । टूटे से फिर न मिले , मिले गाँठ परि जाय ॥
रहीम कहते हैं कि प्रेम का नाता नाज़ुक होता है । इसे झटका देकर तोड़ना उचित नहीं होता । प्रेम से भरा रिश्ता कभी किसी छोटी सी बात पर बिना सोचे समझे नही तोड ़ देना चाहिए । यदि यह प्रेम का धागा एक बार टूट जाता है तो फिर इसे मिलाना कठिन होता है और यदि मिल भी जाए तो टूटे हुए धागों के बीच में गाँठ पड ़ जाती है . व्याख्या
दोहा – 2 रहिमन निज मन की बिथा , मन ही राखो गोय । सुनी अठिलैहैं लोग सब , बांटी न लेंहैं कोय ॥ शब्दार्थ
व्याख्या रहीम कहते है कि अपने मन के दुःख को मन के भीतर छिपा कर ही रखना चाहिए । अपने दुख को अपने मन में ही रखनी चाहिए। दूसरों को सुनाने से लोग सिर्फ उसका मजाक उड़ाते हैं , उसे बाँटकर कम करने वाला कोई नहीं होता .
व्याख्या रहीम के अनुसार एक समय पर एक कार्य करना उचित होगा । मतलब , जो कार्य हम करते हैं उसी में मन लगाकर ( एकाग्र-चित्त होकर ) ही उसे अच्छी तरह पूरा कर पाते हैं । एक ही समय अनेक कार्य करने की कोशिश करेंगे तो सारे-के-सारे काम विफल पड जाएंगे । यह सब उसी प्रकार है जैसे कोई माली पेड़ की जड़ को सींचता है तो वह पेड़ फलता - फूलता है । यदि माली पेड़ की जड़ के स्थान पर उसकी पत्तियों , डालियों , फूलों की पंखुड़ियों आदि को अलग-अलग सींचता रहेगा तो एक दिन वह पेड़ सूख जाएगा , नष्ट हो जाएगा ।
दोहा – 4 चित्रकूट में रमि रहे, रहिमन अवध-नरेस । जा पर बिपदा पड़त है, सो आवत यह देस ॥ शब्दार्थ
व्याख्या प्रस्तुत दोहे में कहा गया है कि विपत्ति आने पर मनुष्य शांति प्रदान करने वाले स्थान में चला जाता है । वनवास की आज्ञा पाने पर अवध नरेश श्रीराम को चित्रकूट जाना पड़ा । विपत्तियों के समय अत्यंत कठिन परिस्थितियों से संघर्ष करना होगा तथा बहुत सारे क्लेश को भी सहनी पड़ती हैं ।
व्याख्या प्रस्तुत दोहे में ' दोहा ' छन्द की विशेषता का वर्णन हुआ है । गागर में सागर भरने की अद्भुत क्षमता दोहा छन्द की ख़ासियत है । प्रस्तुत बात को ' नट ' के उदाहरण देकर रहीम और स्पष्ट कर देते हैं ।
दोहा – 6 धनि रहीम जल पंक को लघु जिय पिअत आघाय । उदधि बड़ाई कौन है , जगत पिआसो जाय ॥ शब्दार्थ
व्याख्या रहीम बताते हैं कि कीचड़ का पानी भी धन्य है क्योंकि उससे न जाने कितने छोटे-छोटे प्राणी अपनी प्यास बुझाते हैं । इसके विपरीत विशाल जल का भंडार होकर भी सागर किसी की प्यास नहीं बुझा सकता ।
दोहा – 7 नाद रीझि तन देत मृग, नर धन हेत समेत । ते रहीम पशु से अधिक, रीझेगु कछु न देत ॥ शब्दार्थ
व्याख्या कवि ने कहा है कि संगीत की सुर-लहरी पर आकर्षित होकर मृग अपने प्राण तक न्योछावर कर देता है किंतु मनुष्य यदि किसी की कला पर मोहित होकर कुछ दान नहीं करता है तो वह पशु से भी अधम है । ( मनुष्य धन के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर देता है )
दोहा – 8 बिगरी बात बने नहीं , लाख करो किन कोय । रहिमन फाटे दूध को , मथे न माखन होय ॥ शब्दार्थ
व्याख्या मनुष्य को सोचसमझ कर व्यवहार करना चाहिए,क्योंकि किसी कारणवश यदि बात बिगड ़ जाती है तो फिर उसे बनाना कठिन होता है , जैसे यदि एकबार दूध फट गया तो लाख कोशिश करने पर भी उसे मथ कर मक्खन नहीं निकाला जा सकेगा ।
दोहा – 9 रहिमन देखि बड़ेन को , लघु न दीजिए डारि । ज आवे सुई , कहा करे तरवारि ॥ शब्दार्थ
व्याख्या रहीम कहते हैं कि बड़ी वस्तु को देख कर छोटी वस्तु को फेंक नहीं देना चाहिए . जहां छोटी सी सुई काम आती है , वहाँ तलवार बेचारी क्या कर सकती है ?
दोहा – 10 रहिमन निज संपति बिना, कोउ न बिपति सहाय । बिनु पानी ज्यों जलज को, नहीं रवि सके बचाय ॥ शब्दार्थ
व्याख्या जब किसी व्यक्ति आपत्ति या विपदा में पड़ती है तो उसकी रक्षा के लिए और कोई नहीं आएगा अपना सामर्थ्य,ज्ञान,विवेक एवं सोच-समझ ही उसका रक्षक बनेगा.. प्रस्तुत आशय को 'कमल' और 'सूरज' के उदाहरण के माध्यम से प्रकट किया है ।
दोहा – 11 रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून। पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून॥ शब्दार्थ
व्याख्या इस दोहे में रहीम ने पानी को तीन अर्थों में प्रयोग किया है। पानी का पहला अर्थ मनुष्य के संदर्भ में है जब इसका मतलब विनम्रता से है। रहीम कह रहे हैं कि मनुष्य में हमेशा विनम्रता (पानी) होना चाहिए। पानी का दूसरा अर्थ आभा, तेज या चमक से है जिसके बिना मोती का कोई मूल्य नहीं। पानी का तीसरा अर्थ जल से है जिसे आटे (चून) से जोड़कर दर्शाया गया है। रहीम का कहना है कि जिस तरह आटे का अस्तित्व पानी के बिना नम्र नहीं हो सकता और मोती का मूल्य उसकी आभा के बिना नहीं हो सकता है, उसी तरह मनुष्य को भी अपने व्यवहार में हमेशा पानी (विनम्रता) रखना चाहिए जिसके बिना उसका मूल्यह्रास होता है।
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