çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अैल-जून 202551 50 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अैल-जून 2025
ह, असंभव कछ भी नह-िठठको न रखो
पहला पाँव/अब अंतर भी दूर कहाँ दूर
िकतना पास ह अब। उनक िशकायत म भी
साई ह-'कछ भी नह िकया मेर िलए'/यह
वाय ेम का तो नह लगता। उह कित
और मौसम म सौदय िदखाई देता ह, जीवन
का सुख और आनद भी, अनेक पं याँ
इसका आभास देती ह और चमकत करती
ह- हर जीिवत इकाई साँस लेती ह िक जीवन
बना रह।
उह मनुय क भावना क गहरी समझ
ह, उसका उपदेश-संदेश चार ओर पसरा
आ ह इन पं य म और वे वा यं ,
नृय-संगीत का आय लेते ह अपनी
भावना को य करने क िलए। ेम और
ेिमका क िलए वह सार िबंब कित से चुनते
ह, अपनी कायामकता िनिपत करते ह
और दोन क उप थित वीकारते ह।
इस तरह लीलाधर मंडलोई ने अपनी
किवता डायरी क इन पं य म जीवन क
नाना अनुभव को, नाना भाव-संवेदना क
साथ परोस िदया ह और ेम क गहराई को
समझाया ह। उनक भाषा, भाव, शैली
भावशाली ह, उनक शद िमित ह, उनम
िवशेष तरह का वाह ह और उह जो कहना
ह, कह ही देते ह-
पानीदार , ऐसा पानी नह िक हर रग म
बस जाऊ, लेिकन पानी मानकर जो सज़ा
सुनाई गई, वह म न था।
उह अपनी उपल धय क साथ-साथ
नाकािमय क भी समझ ह, सबक पीड़ा और
दुख समझते ह और यह भी िक आज आदमी
जुगाड़ म लगा ह। मोहबत को वह साँप-
सीढ़ी का खेल समझते ह, उह ईरीय
यवथा पर िवास ह और वयं को सही
इसान मानते ह, चाह जो भी हो- अदबनवाज़
बे?दगी कर नह सकता, पीठ पर तेरा ख़ंजर
ह िफर भी चुप म।
लीलाधर मंडलोई ने दूसर खड का
शीषक िदया ह-"गुज़रते साल क चंद
पं याँ" और इसक अतगत कल 131
भाव-कथन ह। वैसे ही पहले खड म 134
और अंितम खड म 121 वैचारक कथन ह।
ये सभी कथन जीवन क नाना प को उजागर
करते ह, परभािषत और मनुय को सावधान
करते ह। िज़ंदगी, अँधेरा, बदलाव, इतज़ार,
चीखना, कहानी जैसे शद जीवत होते ह
और कोई भयानक सच उभरता ह। अब
य और समाज क साई िछपती नह ह,
ब क उसका यथाथ डराता ह। किव अपनी
सोच म प ह-कामयाबी क कोई सूरत नह
ह, म लड़ता , लड़ने से कभी डरता नह।
वह मन क गहराई िलखते ह और कहते ह-
कछ बोलचाल भी रख, दुमन नह ह यार
और िनराश होने, अपूण होने, अपने-पराये को
समझने, दोत क पहचान करने, उमीद
रखने, पर थितय को समझने तथा धैय रखने
क सलाह देते ह। देश क आज़ादी को लेकर
उनक पं देिखए-कहने को यह आज़ादी
ह, ?लामी इसक ?लाम से पूछs पाबंिदयाँ
इस क़दर ह, म इसको आज़ादी कसे क ।
उनक कछ महवपूण िवचार देिखए-लोग
दूसर क किमयाँ देखते ह, अपनी कमी कोई
नह देखता, िज़द और ोध ेम क लाजवाब
दुमन ह, िज़ंदगी को ?ब जीना चािहए, दौर
बुरा ह, इसे बदलने क िलए बुर लोग भी खड़
होते ह, रोमांस को पकड़ रहो, रोमांस म ही
िज़ंदगी क पते, िठकाने होते ह। उनका कहना
ह-भय, चुपी और हताश होने से अछा ह मर
जाना, बूढ़ा होने से पहले ब क साथ रहना
शु कर देना चािहए और वह इकलाब क
बात करते ह-िकतने-िकतने िवलाप ह
चौतरफ़, िकतन-िकतन का साथ छ?ट गया,
न जुटा पाये तब ऑसीजन, अब तो भर लो
फफड़ म इतनी उसे िक जब इकलाब बोलो
तो डोल उठ िसंहासन।
जीवन म सब कछ याद रखना महवपूण
ह परतु भूलना अवयंभावी ह। हम असर
भूल जाते ह, हसी का पा बनते ह, हािन
उठाते ह और समया से िघर जाते ह।
मोबाइल, चमा, बटआ भूल जाते ह और
पनी को भी। यहाँ इस खड म मंडलोई जी ने
भूलने को लेकर यापक तौर पर वतुपरक
पर थितय को िवतार से िलखा ह और
जीवत बना िदया ह। भूलने क ये सार
उदाहरण उ क पड़ाव पर असर घिटत होते
ह और पर थितयाँ जिटल हो जाती ह। एक
दुःसह पर थित यह भी होती ह, िजसे भूल
जाना चािहए वह याद रहता ह और िजसे याद
रखना ह, वही भूल जाते ह। उहने गहरी बात
िलखी ह-मेर या कह हमार पास एक भाषा थी
और मौिलक भािषक मुहावरा-यार का। उस
मुहावर को भूल गए हम, या आ िक वो
भाषा भी आते-आते कह िबलम गई। उहने
आगे िलखा ह-चुटकला, हसना, उजाला,
अंधकार आिद सब भूल गया। उनक पीड़ा
देिखए-देह कामना को भूल जाने क बाद ेम
म बने रहने का सती से िनवाह िकया।
कामना बनी रही, देह भूलकर अदेह होने क
मृितयाँ भूलता नह। इस तरह उहने जीवन
क अनेक मािमक संग को िचित िकया ह
िजसका सीधा संबंध भूलने या याद रखने से
ह। उनका कथन देिखए-'िजस सौदय को
हम चेतना म बसा लेते ह, वह भीतर से
रहयमय होता ह और दहशत पैदा करता ह।
एक ी मेरी आँख क पािनय म अ थर ह।'
एक उदाहरण और-"देहराग जो नृय म था
याद रहा, नतक का नाम याद नह।" उनक
िववशता देिखए-
'याददात का मारा , तुझे चेहर से याद
करता , तेरा नाम भूल जाता ।'
एक और संग देिखए-'धूप क इस
चुहलभरी इकिमज़ाजी म, म तुहार शबाब
को याद करता, सूरज क को भूल जाता
।'
इस तरह देखा जाए तो लीलाधर मंडलोई
जी ने एक अनूठा सािह यक योग िकया ह
और िहदी-उदू क शदावली से सुस त
अपने वैचारक भाव-कथन को सपूण
कायामकता क साथ तुत िकया ह। लोग
सहमत-असहमत हो सकते ह परतु इन
कथन का अपना महव ह। ये य गत
अनुभूितयाँ िवतार पाते ए सपूण मानव-
जाित को जोड़ने वाली ह और इनका संदेश
सबको भािवत करने वाला ह। ये उनक
य गत जीवन क साथक िनकष ह और
अपने तरीक से िहदी सािहय को समृ करने
वाले ह।
000
लीलाधर मंडलोई जी क यह किवता डायरी "याद बसंत क शबुएँ ह" मेर सामने ह।
किवता डायरी क प म यह सािहय का कोई अिभनव योग ह, िजसे पाठक पढ़ने-समझने
वाले और अपने तरीक़ से भािवत होने वाले ह। उहने यथाथतः वयं ही िलखा ह-"यह डायरी
क िशप म कायामक सामी ह।" मुझे किवता डायरी क प म िलखी इन पं य ने अपने
तरीक से आकिषत िकया ह और इनक पीछ क कायामक भावनाएँ कोई आलोक फलाती
िदखाई दे रही ह। इह पढ़ते ए, इनका आनद लेते ए और कायामकता भावना को
समझते ए अनुभूत भाव-संवेदना को य करने से वयं को रोक नह पा रहा ।
आलोचना, समीा या िववेचनामक िचंतन आिद का इससे कोई लेना-देना नह ह। यह एक
तरह का आनदाितरक ह और उनक ित हािदक आभार भी।
अपनी किवता डायरी "याद बसंत क शबुएँ ह" संह को उहने तीन महवपूण िहस
म िवतार िदया ह-1-पं -पं यार, 2-गुज़रते साल क चंद पं याँ और 3-भूलना। इतना
तो सािधकार कह सकता िक उनक ये अनुभूितयाँ पाठक को सराबोर करने वाली ह,
सािह यक िच जगाने वाली, परकत करने वाली और सबक मन म गहनतम सुखद भाव
भरने वाली ह। काय वैसे ही सभी क िलए, सपूण मानव-जाित क िलए सुखद िवधा ह और
आिदम काल से य , समाज इसक आनद म ड?बा रहता ह। शायद यही कारण ह, सािहय म
काय सवािधक महवपूण ह और हमार िवकास ? क साथ-साथ काय क अनेक धाराएँ,
उप-िवधाएँ िवकिसत ई ह। कमोबेश यह थित पूरी दुिनया म ह, हर देश म, हर समाज म, हर
भाषा और बोली म ह, यिक इसक पीछ मनुय ह।
किव क पास गहरी भाव-संवेदनाएँ ह और कायामकता को पहचानती ई भी, तभी
तो वह आँख क नमी को याद करने क सलाह देते ह, माँ होना चाहते ह, बुर अनुभव से मधुर
सच हण करते ह, बाँझ होते मन म च मा क िकलकारी सुनते ह, उनक कमाल क नज़र ह
अ य देख लेते ह और नाना य-अ य िबंब क सहार भीतरी अनुभूितय को कट कर देते
ह। उनक s?? म िवरोध-अतिवरोध उजागर होते ह-मुझे छोड़कर तुह चािहए/दुिनया का हर
सुख, हर शी या एक होने का यही एक पल ह/बाद म िसफ अंधकार ह। उनक िचंतन म नाना
न उभरते ह- न ये मुदाघर ह, न कि तान, इस साट का िफर सबब या ह "
उनक पास वै?ािनक शदावली से जुड़ भाव ह-तुहार कह म िसफ और िसफ/काबन डाई
आसाइड ह या कोई ज़बरदत मनोवै?ािनक अनुभूित भी- हर चीज़ से पर होना एक ख़याल ह,
गितशील मन थर नह रहता।
उनक पास चान म पौधा उगाने क संभावना िदखाई देती ह और ेम का सच भी-जो कछ
आक मक ह/वह ेम क तरह सच ह। उनक उमीद समझने लायक ह-एक ह तो दूसरा होगा
अकले रहने का कौल एक म ह।
उह रत और पुषाथ क ?ब पहचान ह-जो िसफ तारीफ़ करता हो/ उससे बड़ा दुमन
कोई और नह या जो पसीने म नहाता ह/वह हर बाधा को पार करने का इम जानता ह। उनक
िचंतन म यावहारकता ह, संदेश ह और चुनौती भी- ईर का जीवन भी आदश नह, िफर
आपने पा िलया यह कहना िनरी मूखता ह।
उनक िवचार जीवन क परभाषाएँ गढ़ते ह-जीने क आदत को जीना/जीवन नह ह। उनक
िचंतन का दायरा सपूण कित से जुड़ता ह और िबंब, तीक म संवेदना क साई उभरती
ह- जब-जब िगरता ह िकसी आँख से आँसू, आसमान म एक तारा कम हो जाता ह।
वह रचनाकार को समेटते ए वयं पर यंय करने से नह चूकते-एक सरल सा वाय
न िलख पाने क बावजूद/म लेखक । उह जीवन म संभावनाएँ िदखाई देती ह-जो दूर ह उसक
पास प चो/वो आएगा िलखे म और कमाल होगा। संदेह करने वाल क िलए सीख देिखए-
संदेह म ड?बता ह ेम/कालांतर म िजसे ढ ढ़ता रह जाता ह वतमान। संवेदना क पराकाा
देिखए-िबछौने म तुहारी एक िससक ने/मुझे कभी जीने न िदया। उनक िलए सब कछ सुलभ
पुतक समीा
(किवता डायरी)
याद बसंत क
शबुएँ ह
समीक : िवजय कमार ितवारी
लेखक : लीलाधर मंडलोई
काशक : िशवना काशन, साट
कॉ लैस बेसमट, सीहोर, म
466001, फ़ोन-07562405545
मोबाइल- +91-9806162184
ईमेल-
[email protected]
िवजय कमार ितवारी
टाटा अरयाना हाऊिसंग,टावर-2, लैट-
201, पोट-घटिकया, भुवनेर-751029
ऑिडशा
मोबाइल- 9102939190
ईमेल-
[email protected]