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तब िलए गए िनणय को बदला नही जा
सकता। इसक िलए मयम माग यह माना
जाता ह िक जो पहले से अनुभवी ह, उनक
मागदशन को मुखता से अपनाया जाए। इस
एक सरल बात को यह उपयास उतने ही
सरल तरीक़ से सामने रखता ह।
हरशंकर क िपता का जो सीदा-सरल
वप बीच-बीच म से उपयास म िदखाया
गया ह, वह कसे मज़बूत होकर न कवल
अपने बेट क िलए, ब क िलए, पोते को
सहारा देने क िलए उप थत होता ह। यहाँ तक
िक अपनी नाितन क वैवािहक जीवन म
आनेवाली कड़वाहट को भी मा अपनी
उप थित से ही, िबना िकसी उपदेश से,
जीवन को जीकर िदखाते ए सुलझा देता ह।
अंितम िसर म िपता क य व का िवतार
अ?ुत ह। वह पा म रहकर भी नायक ह,
वह सब कछ योछावर करने क बाद भी
सवािधक धनी ह और वह िपता क एक
वातिवक परभाषा को जीनेवाला िपता ह
और इस कार क िपता हमार भी हो, यह दबी
छ?पी आकांा इस चर को जानने क बाद
मन म पलती रहती ह।
कल िमलाकर इस उपयास को चार
अलग अलग कोण से अपनी गाथा कहते ए
आप अनुभूत कर सकते ह। ाय परवेश का
सीदा सरल घर, ऊचे िवचार लेिकन सादा
रहन सहन, मेहनत और अनुशासन से पोिषत
एक वातिवक प से उ?त जीवनs इस
जीवन म नायक क माता िपता समेत कछ
िवशेष चर आते ह जो पारदश और संतोषी
जीवन म एक तपवी क समान उभरकर
सामने आते ह।
दूसरा एक सरकारी कायालय का जीवन।
यिद म क िक उपयास का लगभग पतीस से
चालीस ितशत िहसा एक कायालय क
िविवध कमचारय, उनक टबल, चेबर और
किबन म याा करती फाइल, आपसी
राजनीित और सफलता से असफलता क
मय झूलती आकांा क बीच आपको
लेकर जाता ह तो यह अितशयो नही होगी।
लेिकन इस कायालय म भी मानवीय
सरोकार ह, घाघ और वाथ क रग म रगे,
सीिमत परधी म घूमते सपने ह, ईमानदारी का
संघष ह और ाचार का िचरपरिचत तं
ह। आप हरशंकर और उसक साथी
कमचारी, उनक बॉस समेत कायालय क पूर
भूगोल से परिचत रहते ह। िजस बारीक से
नाियका क सौदय का या नायक क शौय का
वणन िकया जाता ह, वही बारीक यहाँ
कायालय क कस से लेकर कमचारय क
भाव भंिगमा और नाते क लेट से लगाकर
मनोभाव तक क वणन म िदखाई देती ह।
तीसरा और महवपूण भाग िजसे यह
उपयास तुत करता ह, वह ह जीवन मूय
क ित आपका समपण, झान और सही
िनणय क आधार पर आपको िमलने वाला
परणाम। उपयास क नायक हरशंकर को
लेकर पहले पहल सहानुभूित जागृत होती ह,
लेिकन अपने िववाह मंडप म जाकर वह
पाठक को आय म डाल देता ह। इसक
आगे इस िफसलन भरी राह पर येन कन
कारण वह पाँव जमाने क पूरी कोिशश
करता िदखाई देता ह। लगता ह जैसे कभी
कभी हम सभी हरशंकर क सोच क आस
पास ही जी रह ह। जो चुनाव नायक अपने
जीवन म करता ह, उसका वैसा ही परणाम
उसे िमलता ह। यहाँ पर लेखक कछ भी
अ?ुत नह बताते लेिकन िजस तरीक़ से
बताते ह, उसक चलते हम वही भूला-िबसरा
राता एक बार िफर िवकप क प म
िदखाई देता ह िजसका अ तव हम भूल चले
थे।
चौथा भाग उपयास म पूरी मज़बूती से
सामने आता ह और वह ह ी चर का
बारीक से िचण। हरशंकर क माताजी हो
या कायालय म वेटर बुनने वाली उपासना
िसंह, पनी रजना का वाथ रवैया हो या
मैडम िपई क क यदता, लेखक ने
येक य व को पूर उपयास म अपनी
परभाषा क अनुप संवाद, ितिया और
हाव भाव िदए ह। मुझे लगता ह िक इस कार
क बारीिकय क ही खोज मुय प से क
जाती ह जब िकसी उपयास को पटकथा क
प म बदलने क ? ?? क जाती ह। अपनी
रोचक वणन शैली क िलए लेखक बधाई क
पा ह।
एक कार से देखा जाए तो 'राता इधर से
भी ह' यह आधुिनक िवचार का ज़मीन से
जुड़ा उपयास ह। इसम दहज क िलए रम म
अडने वाला दामाद भी ह, तो वैचारक मतभेद
क चलते अपने ही ससुराल क पास एक
िकराये का घर लेकर रहने वाली हरशंकर क
बेटी संया भी ह। िजसक सहज और सुलझे
ससुराल प ारा उसक िजी वभाव को
अनदेखा कर न कवल अ य प से
उसक सहायता क जाती ह, आगे जब वह
सहज होकर अपने ससुराल वापस जाना
चाहती ह, तब उसे िकसी भी कार क अपराध
बोध क िबना परवार म सहष शािमल कर
िलया जाता ह।
िजन लड़िकय से नायक संभािवत वधू क
प म िमल चुका होता ह, उनम प, गुण,
िशा या पारवारक पृ?भूिम क चलते कोई
कमी देखने क कारण उनका चयन नही
करता। परतु अपने जीवन म मेहनत और
ितभा क बल पर जब संयोग से वे ही उसक
िलए मददगार क प म सामने आती ह, तब
उदार दय से वह उनक बडपन का समान
ही करता ह।
उपयास अपने अंत म थोड़ा आदश
अवय हो जाता ह यिक परवार क एकाध
सदय का दय परवतन संभव ह, संपूण
परवार ही एक वैचारक धारा को पकड़कर
थलांतर कर ले, इसक िलए कथावतु म
थोड़ा और िवतार िदया जाता तो सहजता आ
पाती।
यह उपयास एक ओर तो ाय सरल
जीवन और सरकारी दतर क माहौल क साथ
सामंजय बैठाते परवार और जीवन शैली क
आस पास घूमता ह, इसी क चलते नवीन
पीढ़ी को इससे जोड़ पाना थोड़ी मेहनत माँगता
ह। वातिवकता तो यह ह िक इस उपयास
को नवीन पीढ़ी ारा ही पढ़ा जाना चािहए और
मेरा तो यह मानना ह िक ाय जीवन और
सरकारी दतर का इतना सािधकार वणन कर
पाना लेखक जैसे अनुभवी य क िलए ही
संभव ह।
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अ नी कमार दुबे जी एक चिचत, सिय, अिखल भारतीय तर पर पुरकत और िबना
िकसी शोर-शराबे क अपनी लेखन साधना म लगे रहने वाले सािहयकार ह। पिका म
आपक िनरतर उप थित आपको लेकर एक िविश? छिव का िनमाण करती ह। उपयास
'राता इधर से भी ह' हाथ म आता ह, तब आप इस छिव को साथ म लेकर, कछ िविश
अपेा क साथ इसक पाठक मंडली म शािमल होते ह। और शुआती प से गुज़रते ए ही
आप यह जान चुक होते ह, िक यह उपयास अब समा होने तक आपको छोड़ने वाला नही ह।
आज जब रचना क नाम पर हम आधुिनक संकित क आधी अधूरी जानकारी परोसती
रचना को देखते ह, िजनम वै क पर य क नाम पर चकाने क कोिशशे यादा होती ह,
ऐसे म यह सीधा सरल सा उपयास कभी आपको बैलगाड़ी क मीठ िहचकोले भी देता ह, तो
गोबर से िलपे पुते आँगन म नंगे पाँव चलने का जुड़ाव दान करता ह।
कई बार यह भी लगता ह िक एक सरल सा हरशंकर, उसक सीदे-सादे माता-िपता, मयादा
म बँधे उसक मामाजी और ाय सरल जीवन क रीित-रवाज़ िनभाते ये िम?ी से जुड़ लोग इस
उपयास पी संहालय म से हम ताक रह ह। इनक अ तव क जो सामािजक दीप ह, उनम
मानवीयता का तेल चुकने लगा ह और वे बड़ी आस लगाए ह हम पाठक से, िक उनक जीवन
को, जो िक भारत का असली चेहरा ह, हम अपने साथ जीते ए हाथ थामकर चलते रह।
हरशंकर क िपता का सादा सरल य व, बेट क सरकारी नौकरी लगने से पहले आए
ए रते क ित आह, जीवन का अनुभव और बेट क ?शी को लेकर सरल मन से िकया
गया याग। कई बार उनक कही ई बात सू य जैसी लगती ह। इस उपयास क एक
ख़ािसयत और भी ह िक, जीने क िलए जो आवयक तव हमने इन िदन उपेा क टोकरी म
डाल रखे ह, वे भरपूर माा म और बार बार सामने आते ह। िन?ा, समपण, मयादा, सादी सरल
अपेाएँ और छोटी-छोटी ?िशयाँs
सरल से संग िजनक िलए आज का पाठक वातव म तरस जाता ह, उपयास म यहाँ-वहाँ
िबखर िमलते ह। उदाहरण क िलए, बेटा हरशंकर िववाह क िलए तैयार हो गया ह और उसक
मामाजी आगे का काम देखने क िलए घर आ गए ह। माँ ने आज खीर पूड़ी बनाई ह। बेट क
िटिफन म भी खीर पूड़ी से शबू और खुिशयाँ िबखर रही ह और घर म जीजा और साले ने भी
छककर खाया ह। कल िमलाकर आज माँ ?ब ?श ह।
अब यह संग या कछ नही कहता! यह माँ कोई हीर जड़ा आभूषण पाकर, िवदेश म
छ याँ मनाने क िटिकट पाकर या अपनी भौितक संप?ता का दशन कर ?श होने वाली माँ
नही ह। बेट का िववाह क िलए तैयार होना तो उसक अपने जीवन क ?शी ह, घरवाल का
वािद भोजन से तृ होना भी उनक अपनी भौितक ?शी ह। लेिकन माँ यहाँ दूसर को ?श
करते ए अपने यन से ?श ह और इसे पढ़ते ए पाठक तक भी खीर और माँ क क य क
अ य िमठास अवय प चती ह।
यह उपयास एक सधा और मीठा अनुभव देते ए, षडरस अ? नेवै म से दूसर रस क
ओर काफ समय बाद मुड़ता ह। आय होता ह िक एक सरकारी नौकरी म लगा आ य
यिद िववाह करना चाहता ह और चार पाँच थान पर उसे लड़क देखने का काय म करना ह,
तब इसे इतना िवतार देने क या आवयकता ह। पाठक भी असमंजस म होते ह िक जब
िववाह एक से ही होना ह, तब घर बार, नाते रतेदार, घर का पूरा भूगोल इयािद और लड़क
का सौदय समेत उसक िशा इयािद का िवतारत वप सम य रखा जा रहा ह।
लेिकन उपयास का अंितम िसरा एक बार िफर से हम वह सब कछ याद िदला देता ह और
ामीण पृभूिम और मानिसकता का ितिनिधव करता आ यह उपयास वैचारक ऊचाई पर
प चकर हम हमारी ही सोच को चुनौती देता आ तीत होता ह।
हम सभी जीवन म अपनी ाथिमकता क आधार पर िनणय लेते ह। िवडबना यह होती ह
िक जब िनणय क अवथा होती ह, तब परपता नह होती और जब परपता आ जाती ह
पुतक समीा
(उपयास)
राता इधर से भी ह
समीक : अंतरा करवड़
लेखक : अ नीकमार दुबे
काशक : इक काशन, यागराज
अंतरा करवड़,
अनुविन 117, ीनगर ए टशन, इदौर
452018 म..
मोबाइल- 919752540202
ईमेल-
[email protected]