SHIVNA SAHITYIKI JANUARY - MARCH 2025.pdf

shivnaprakashan 403 views 76 slides Jan 27, 2025
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About This Presentation

SHIVNA SAHITYIKI JANUARY MARCH 2025


Slide Content

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 20251 72 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2025
शोध, समीा तथा आलोचना क अंतरा ीय पिका
वष : 9, अंक : 36, ैमािसक : जनवरी-माच 2025
RNI NUMBER :- MPHIN/2016/67929
ISSN : 2455-9717
संरक एवं सलाहकार संपादक
सुधा ओम ढगरा
संपादक
पंकज सुबीर
कायकारी संपादक एवं क़ानूनी सलाहकार
शहरयार (एडवोकट)
सह संपादक
शैले शरण, आकाश माथुर
िडज़ायिनंग
सनी गोवामी, सुनील पेरवाल, िशवम गोवामी
संपादकय एवं काशकय कायालय
पी. सी. लैब, शॉप नं. 3-4-5-6, साट कॉ लैस बेसमट
बस टड क सामने, सीहोर, मय देश 466001
दूरभाष : +91-7562405545
मोबाइल : +91-9806162184 (शहरयार)
ईमेल- [email protected]
ऑनलाइन 'िशवना सािह यक'
http://www.vibhom.com/shivnasahityiki.html
फसबुक पर 'िशवना सािह यक’
https://www.facebook.com/shivnasahityiki
एक ित : 50 पये, (िवदेश हतु 5 डॉलर $5)
सदयता शुक
3000 पये (पाँच वष), 6000 पये (दस वष)
11000 पये (आजीवन सदयता)
बक खाते का िववरण-
Name: Shivna Sahityiki
Bank Name: Bank Of Baroda,
Branch: Sehore (M.P.)
Account Number: 30010200000313
IFSC Code: BARB0SEHORE
संपादन, काशन एवं संचालन पूणतः अवैतिनक, अयावसाियक।
पिका म कािशत सामी लेखक क िनजी िवचार ह। संपादक
तथा काशक का उनसे सहमत होना आवयक नह ह। पिका म
कािशत रचना म य िवचार का पूण उरदाियव लेखक पर
होगा। पिका जनवरी, अैल, जुलाई तथा अटबर माह म कािशत
होगी। समत िववाद का याय े सीहोर (मय देश) रहगा।
आवरण किवता
रामदरश िम
वविधकारी एवं काशक पंकज कमार पुरोिहत क िलए पी. सी. लैब, शॉप नं. 3-4-5-6, साट कॉ लैस बेसमट, बस टड क सामने, सीहोर, मय देश 466001 से कािशत
तथा मुक बैर शेख़ ारा शाइन िंटस, लॉट नं. 7, बी-2, ?ािलटी परमा, इिदरा ेस कॉ लैस, ज़ोन 1, एम पी नगर, भोपाल, मय देश 462011 से मुित।
आवरण िच
पंकज सुबीर

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 20253 2 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2025
आवरण किवता
नव वष / रामदरश िम
संपादकय / शहरयार / 3
यंय िच / काजल कमार / 4
शोध आलोचना
संिदध
समीक : दीपक िगरकर
लेखक : तेजे शमा / 6
क़मर मेवाड़ी क किवताएँ
समीक : ो. मलय पानेरी
लेखक : क़मर मेवाड़ी / 9
साज-बाज़
समीक : डॉ. िदलबागिसंह िवक
लेखक : ियंका ओम / 12
अंजिल भर उजास
समीक : पिसंह चदेल
लेखक : माधव नागदा / 15
िहिडबा
समीक : डॉ. हनी दशन
लेखक : सुमन कशरी / 18
क म पुतक
ज़ोया देसाई कॉटज
समीक : वंदना गुा, दीपक िगरकर,
नीरज नीर
लेखक : पंकज सुबीर / 21
पुतक समीा
िपकासो क उदास लड़िकयाँ
समीक : सुधीर देशपांड
लेखक : शैले शरण / 28
अमा
समीक : सतीश राठी
लेखक : दीपक िगरकर / 30
चहट चंपा
समीक : रमेश शमा
लेखक : उिमला आचाय / 32
लमही जुलाई-िदसबर 2024 िवशेषांक
समीक : डॉ. दया दीित
संपादक : िवजय राय / 34
इकसव सदी क कहािनयाँ समीा क
आईने म
समीक : डॉ. रजना गुा
लेखक : सुधा जुगरान / 36
डोर अंजानी सी
समीक : डॉ. िदनेश पाठक 'शिश'
लेखक : ममता यागी / 38
राता इधर से भी ह
समीक : अंतरा करवड़
लेखक : अ नीकमार दुबे / 40
ग़ज़लकार अशोक 'अंजुम'
समीक : डॉ. िवनोद काश गुा 'शलभ'
लेखक : अशोक अंजुम / 42
िबखर ए लहात
समीक : क. पी. अनमोल
लेखक : िशू शकर / 44
अंजामे-गुिलताँ या होगा
समीक : दीपक िगरकर
लेखक : पवी िवेदी / 46
सरई क फल
समीक : अनुराग अवेषी
लेखक : अनीता र म / 48
खाक म थत
समीक : सरोिजनी नौिटयाल
लेखक : अिनल रतूड़ी / 50
वे लोग
समीक : मंजुी
लेखक : सुमित ससेना लाल / 52
कहानी का राता
समीक : राजे नागदेव
लेखक : संतोष चौबे / 54
राल सांक यायन अनाम बेचैनी का
यायावर
समीक : ियंवदा पाडय
लेखक : अशोक कमार पांडय / 56
मुझे सूरज चािहए
समीक : दीपक िगरकर
लेखक : आकाश माथुर / 57
िजस लाहौर वेख लेया
समीक : दीपक िगरकर
लेखक : ितपाल कौर / 58
िवदुर कटी का संत
समीक : डॉ. वेदकाश अिमताभ
लेखक : योगे शमा / 59
शोध आलेख
नाटककार
रमेश उपायाय
ो. ा / 60
शहरयार
िशवना काशन, पी. सी. लैब,
साट कॉ लैस बेसमट
बस टड क सामने, सीहोर, म..
466001,
मोबाइल- 9806162184
ईमेल- [email protected]
संपादकय
साल भर बीतते ही एक नये उसाह का संचार होने लगता ह। यह उसाह होता ह नई िदी
म लगने वाले िव पुतक मेले का उसाह। इस वष भी यह पुतक का महाक भ उह तारीख़
म ह जब यागराज म क भ चल रहा ह तथा दूसरी तरफ़ िदी, जहाँ यह पुतक मेला
आयोिजत होना ह, वहाँ भी लोकतं का क भ अथा चुनाव चल रह हगे। नई िदी िव
पुतक मेले का अपना एक आकषण होता ह, पाठक, लेखक और काशक तीन को इसका
इतज़ार रहता ह। इस बार ज़ािहर सी बात ह िक िदी िवधानसभा क चुनाव तथा क भ क
कारण बाहर से आने वाल को कछ समया का सामने करना पड़ सकता ह, मगर उसक बाद
भी प चने वाले तो प चगे ही। मेल का इसानी जीवन म हमेशा से एक अलग महव रहा ह।
भारत जैसे देश म मेले असल म एक सांकितक पव क तरह जीवन म आते ह। इन मेल का
इतज़ार बना रहता ह। मेले म जाकर लोग अपने आप को खो देना चाहते ह, खो देना चाहते ह
इसान क िवशाल समु म। भीड़ क साथ चलना चाहते ह। उस खो देने का अपना ही सुख होता
ह, आप िकसी को नह जानते, आपको कोई नह जानता। मेले म जाने से पहले अपने आप से
मु पानी बत ज़री होती ह। यिद आप अपने आप को लाद कर ले जा रह ह, तो यक़न
मािनए आप मेले म आनंद नह उठा सकते। जैसे पुतक मेले क ही बात कर, यिद आप लेखक
ह और वहाँ अपने लेखक को ही ओढ़ कर वहाँ जा रह ह, तो आप मेले से िनराश ही लौटगे।
अपने लेखक को घर पर छोड़ कर मेले म जाइए। उस भीड़ म खो जाने क िलए ऐसा करना बत
आवयक होता ह। असर होता यह ह िक हम अपने लेखक को सामने रख कर चलते ह और
चाहते ह िक उस लेखक को भीड़ म शािमल लोग पहचान ल। ऐसा नह होने पर हमार अंदर
िनराशा उप होती ह। असल म मेल का आयोजन यह िदखाने क िलए होता ह िक हमारी
थित वातव म या ह। जैसे आकाशगंगा म हमारी पृवी एक कण क समान िदखा देती ह,
वैसे ही हम भी िकसी मेले म जाकर कण भर ही हो जाते ह। वही जो हमारी असिलयत ह। याद
रिखए यह पुतक मेला ह, लेखक मेला नह ह। असल म लेखक कछ नह होता, पुतक ही
सब कछ होती ह। लेखक एक शरीर ह, जो एक िदन िमट जाएगा यह तय ह, मगर उसक
पुतक कभी िमट नह सकती ह, रहती दुिनया तक पुतक को िज़ंदा रहना ह। होश नोमानी का
शेर ह- िजम तो ख़ाक ह और ख़ाक म िमल जाएगा, म बहर-हाल िकताब म िमलूँगा तुमको।
आप यिद लेखक ह तो दूर खड़ होकर देिखए िक िकसी टाल पर कोई पाठक आपक िकताब
को हाथ म ले रहा ह, उसक प?े पलट रहा ह, और उस िकताब को ख़रीदने का मन बना रहा
ह। इस देखने क सुख से बड़ा कोई सुख नह ह। हो सकता ह वह पाठक आपको जानता हो,
िफर भी उसक पास जाकर उसका रसभंग नह किजए। वह आपको नह आपक िकताब को
पसंद करता ह। आपक रचना को पसंद करता ह। लेखक को नह पसंद िकया जाता ह,
उसक लेखन को पसंद िकया जाता ह। लेखक क आगे उसका लेखन रहना चािहए। यिद
आपक लेखन से आगे आपका लेखक चल रहा ह तो समिझए िक कह न कह कछ न कछ
गड़बड़ ह। मगर इन िदन हो यही रहा ह िक लेखक ही आगे चल रहा ह, उसका लेखन कह
पीछ चल रहा ह। पुतक मेले जैसे आयोजन असल म तो उस आनंद क आयोजन होते ह, जो
आनंद िकसी अनजान से पाठक को िकसी टाल पर आपक िकताब से -ब- होते देख कर
िमलता ह। वह आपको नह जानता लेिकन आपक लेखन को जानता ह। इससे बड़ा आनंद कछ
और नह हो सकता। इस आनंद को ा करना ह तो आइए नई िदी िव पुतक मेले म 1
फरवरी से 9 फरवरी तक। िशवना काशन का टाल भी वह ह हॉल नंबर 2 म टाल नंबर ओ-
13। यह जो पता ह यह आपका ही पता ह, आपका मतलब आप सभी लेखक का अपना पता,
अपना िठकाना... आइएगा ज़र आपका इतज़ार रहगा...।
इस आनंद को ा
करना ह तो आइए
नई िदी िव
पुतक मेले म
आपका ही
शहरयार
शोध, समीा तथा आलोचना
क अंतरा ीय पिका
वष : 9, अंक : 36,
ैमािसक : जनवरी-माच 2025
इस अंक म

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 20253 2 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2025
आवरण किवता
नव वष / रामदरश िम
संपादकय / शहरयार / 3
यंय िच / काजल कमार / 4
शोध आलोचना
संिदध
समीक : दीपक िगरकर
लेखक : तेजे शमा / 6
क़मर मेवाड़ी क किवताएँ
समीक : ो. मलय पानेरी
लेखक : क़मर मेवाड़ी / 9
साज-बाज़
समीक : डॉ. िदलबागिसंह िवक
लेखक : ियंका ओम / 12
अंजिल भर उजास
समीक : पिसंह चदेल
लेखक : माधव नागदा / 15
िहिडबा
समीक : डॉ. हनी दशन
लेखक : सुमन कशरी / 18
क म पुतक
ज़ोया देसाई कॉटज
समीक : वंदना गुा, दीपक िगरकर,
नीरज नीर
लेखक : पंकज सुबीर / 21
पुतक समीा
िपकासो क उदास लड़िकयाँ
समीक : सुधीर देशपांड
लेखक : शैले शरण / 28
अमा
समीक : सतीश राठी
लेखक : दीपक िगरकर / 30
चहट चंपा
समीक : रमेश शमा
लेखक : उिमला आचाय / 32
लमही जुलाई-िदसबर 2024 िवशेषांक
समीक : डॉ. दया दीित
संपादक : िवजय राय / 34
इकसव सदी क कहािनयाँ समीा क
आईने म
समीक : डॉ. रजना गुा
लेखक : सुधा जुगरान / 36
डोर अंजानी सी
समीक : डॉ. िदनेश पाठक 'शिश'
लेखक : ममता यागी / 38
राता इधर से भी ह
समीक : अंतरा करवड़
लेखक : अ नीकमार दुबे / 40
ग़ज़लकार अशोक 'अंजुम'
समीक : डॉ. िवनोद काश गुा 'शलभ'
लेखक : अशोक अंजुम / 42
िबखर ए लहात
समीक : क. पी. अनमोल
लेखक : िशू शकर / 44
अंजामे-गुिलताँ या होगा
समीक : दीपक िगरकर
लेखक : पवी िवेदी / 46
सरई क फल
समीक : अनुराग अवेषी
लेखक : अनीता र म / 48
खाक म थत
समीक : सरोिजनी नौिटयाल
लेखक : अिनल रतूड़ी / 50
वे लोग
समीक : मंजुी
लेखक : सुमित ससेना लाल / 52
कहानी का राता
समीक : राजे नागदेव
लेखक : संतोष चौबे / 54
राल सांक यायन अनाम बेचैनी का
यायावर
समीक : ियंवदा पाडय
लेखक : अशोक कमार पांडय / 56
मुझे सूरज चािहए
समीक : दीपक िगरकर
लेखक : आकाश माथुर / 57
िजस लाहौर वेख लेया
समीक : दीपक िगरकर
लेखक : ितपाल कौर / 58
िवदुर कटी का संत
समीक : डॉ. वेदकाश अिमताभ
लेखक : योगे शमा / 59
शोध आलेख
नाटककार
रमेश उपायाय
ो. ा / 60
शहरयार
िशवना काशन, पी. सी. लैब,
साट कॉ लैस बेसमट
बस टड क सामने, सीहोर, म..
466001,
मोबाइल- 9806162184
ईमेल- [email protected]
संपादकय
साल भर बीतते ही एक नये उसाह का संचार होने लगता ह। यह उसाह होता ह नई िदी
म लगने वाले िव पुतक मेले का उसाह। इस वष भी यह पुतक का महाक भ उह तारीख़
म ह जब यागराज म क भ चल रहा ह तथा दूसरी तरफ़ िदी, जहाँ यह पुतक मेला
आयोिजत होना ह, वहाँ भी लोकतं का क भ अथा चुनाव चल रह हगे। नई िदी िव
पुतक मेले का अपना एक आकषण होता ह, पाठक, लेखक और काशक तीन को इसका
इतज़ार रहता ह। इस बार ज़ािहर सी बात ह िक िदी िवधानसभा क चुनाव तथा क भ क
कारण बाहर से आने वाल को कछ समया का सामने करना पड़ सकता ह, मगर उसक बाद
भी प चने वाले तो प चगे ही। मेल का इसानी जीवन म हमेशा से एक अलग महव रहा ह।
भारत जैसे देश म मेले असल म एक सांकितक पव क तरह जीवन म आते ह। इन मेल का
इतज़ार बना रहता ह। मेले म जाकर लोग अपने आप को खो देना चाहते ह, खो देना चाहते ह
इसान क िवशाल समु म। भीड़ क साथ चलना चाहते ह। उस खो देने का अपना ही सुख होता
ह, आप िकसी को नह जानते, आपको कोई नह जानता। मेले म जाने से पहले अपने आप से
मु पानी बत ज़री होती ह। यिद आप अपने आप को लाद कर ले जा रह ह, तो यक़न
मािनए आप मेले म आनंद नह उठा सकते। जैसे पुतक मेले क ही बात कर, यिद आप लेखक
ह और वहाँ अपने लेखक को ही ओढ़ कर वहाँ जा रह ह, तो आप मेले से िनराश ही लौटगे।
अपने लेखक को घर पर छोड़ कर मेले म जाइए। उस भीड़ म खो जाने क िलए ऐसा करना बत
आवयक होता ह। असर होता यह ह िक हम अपने लेखक को सामने रख कर चलते ह और
चाहते ह िक उस लेखक को भीड़ म शािमल लोग पहचान ल। ऐसा नह होने पर हमार अंदर
िनराशा उप होती ह। असल म मेल का आयोजन यह िदखाने क िलए होता ह िक हमारी
थित वातव म या ह। जैसे आकाशगंगा म हमारी पृवी एक कण क समान िदखा देती ह,
वैसे ही हम भी िकसी मेले म जाकर कण भर ही हो जाते ह। वही जो हमारी असिलयत ह। याद
रिखए यह पुतक मेला ह, लेखक मेला नह ह। असल म लेखक कछ नह होता, पुतक ही
सब कछ होती ह। लेखक एक शरीर ह, जो एक िदन िमट जाएगा यह तय ह, मगर उसक
पुतक कभी िमट नह सकती ह, रहती दुिनया तक पुतक को िज़ंदा रहना ह। होश नोमानी का
शेर ह- िजम तो ख़ाक ह और ख़ाक म िमल जाएगा, म बहर-हाल िकताब म िमलूँगा तुमको।
आप यिद लेखक ह तो दूर खड़ होकर देिखए िक िकसी टाल पर कोई पाठक आपक िकताब
को हाथ म ले रहा ह, उसक प?े पलट रहा ह, और उस िकताब को ख़रीदने का मन बना रहा
ह। इस देखने क सुख से बड़ा कोई सुख नह ह। हो सकता ह वह पाठक आपको जानता हो,
िफर भी उसक पास जाकर उसका रसभंग नह किजए। वह आपको नह आपक िकताब को
पसंद करता ह। आपक रचना को पसंद करता ह। लेखक को नह पसंद िकया जाता ह,
उसक लेखन को पसंद िकया जाता ह। लेखक क आगे उसका लेखन रहना चािहए। यिद
आपक लेखन से आगे आपका लेखक चल रहा ह तो समिझए िक कह न कह कछ न कछ
गड़बड़ ह। मगर इन िदन हो यही रहा ह िक लेखक ही आगे चल रहा ह, उसका लेखन कह
पीछ चल रहा ह। पुतक मेले जैसे आयोजन असल म तो उस आनंद क आयोजन होते ह, जो
आनंद िकसी अनजान से पाठक को िकसी टाल पर आपक िकताब से -ब- होते देख कर
िमलता ह। वह आपको नह जानता लेिकन आपक लेखन को जानता ह। इससे बड़ा आनंद कछ
और नह हो सकता। इस आनंद को ा करना ह तो आइए नई िदी िव पुतक मेले म 1
फरवरी से 9 फरवरी तक। िशवना काशन का टाल भी वह ह हॉल नंबर 2 म टाल नंबर ओ-
13। यह जो पता ह यह आपका ही पता ह, आपका मतलब आप सभी लेखक का अपना पता,
अपना िठकाना... आइएगा ज़र आपका इतज़ार रहगा...।
इस आनंद को ा
करना ह तो आइए
नई िदी िव
पुतक मेले म
आपका ही
शहरयार
शोध, समीा तथा आलोचना
क अंतरा ीय पिका
वष : 9, अंक : 36,
ैमािसक : जनवरी-माच 2025
इस अंक म

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 20255 4 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2025
यंय िच-
काजल कमार
[email protected]
'अंतरा ीय िशवना समान'- राजपाल एंड संस से कािशत उपयास- 'िक़सााम' क िलए भात रजन तथा
सेतु काशन से कािशत कहानी संह- 'वांग छी' क िलए मनीष वै को संयु प से दान िकया जायेगा।
'िशवना कित समान'- िशवना काशन से
कािशत अकादिमक पुतक 'दड से याय
तक' क िलए लेखक वीण ककड़ को
दान िकया जायेगा।
‘िशवना नवलेखन पुरकार’
पुरकत पुतक
र म कले
उपयास - 'शेष रहगा ेम'
पुरकत पुतक
शुा ओझा
कहानी संह - 'आ िख़री चाय'
अनुशंिसत पुतक
डॉ. परिध शमा
कहानी संह - 'ेम क देश म'
अनुशंिसत पुतक
डॉ. अनया िम
संमरण - 'कही अनकही'
‘अंतरा ीय िशवना समान’ तथा ‘िशवना कित समान’

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 20255 4 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2025
यंय िच-
काजल कमार
[email protected]
'अंतरा ीय िशवना समान'- राजपाल एंड संस से कािशत उपयास- 'िक़सााम' क िलए भात रजन तथा
सेतु काशन से कािशत कहानी संह- 'वांग छी' क िलए मनीष वै को संयु प से दान िकया जायेगा।
'िशवना कित समान'- िशवना काशन से
कािशत अकादिमक पुतक 'दड से याय
तक' क िलए लेखक वीण ककड़ को
दान िकया जायेगा।
‘िशवना नवलेखन पुरकार’
पुरकत पुतक
र म कले
उपयास - 'शेष रहगा ेम'
पुरकत पुतक
शुा ओझा
कहानी संह - 'आ िख़री चाय'
अनुशंिसत पुतक
डॉ. परिध शमा
कहानी संह - 'ेम क देश म'
अनुशंिसत पुतक
डॉ. अनया िम
संमरण - 'कही अनकही'
‘अंतरा ीय िशवना समान’ तथा ‘िशवना कित समान’

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 20257 6 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2025
क िविभ? पहलु को भी उजागर करते ह।
उनक लेखनी म संकित और जीवनशैली क
अंतर को सहजता से दशाया गया ह, जो
वासी अनुभव को जीवंत बनाती ह। तेज जी
क कथा िशप म नवीनता और गहराई दोन
ह, िजससे पाठक न कवल मनोरजन पाते ह,
ब क अपने कोण म भी िवतार करते
ह। उनक कहािनयाँ वै क संदभ म भारत
और वािसय क संघष को समझने म मदद
करती ह और यही उनक िवशेषता ह। इस
कार तेज शमा का लेखन न कवल
सािह यक मूय रखता ह ब क समाज को
एक नई िदशा भी दान करता ह। तेजे शमा
क रचनाएँ वासी जीवन क गहराई और
िविवधता को समझने का एक सश मायम
ह, जो पाठक को एक नई सोच और
संवेदनशीलता से अवगत कराती ह। इस कित
म जीवन क िनत नवीन प को उजागर
करती कहािनयाँ ह। मुझे इस संह क
अिधकाँश कहािनयाँ सश लगी। इस
कहानी संह म अिधकाँश कहािनयाँ कोरोना
काल क ह। कहानी संह म कल 15
कहािनयाँ ह। इस कहानी संह क कहािनय
म यथाथवादी जीवन, मानवीय संवेदनाएँ,
वाथ, पारवारक रत क बीच का ताना-
बाना, दोगलापन, संवादहीनता, बेबसी,
शोषण, उपीड़न, ी संघष और ीमन क
पीड़ा, अकलेपन का दंश, कोिवड जैसी
महामारी का भय आिद का िचण िमलता ह।
"संिदध" कहानी पाठक को उि न कर
जाती ह। इस कहानी म तेजे शमा ने पा
क मनो थित का गहरा िचण िकया ह और
साथ ही वाथ और भौितकता क मु को भी
बड़ी िनपुणता से तुत िकया ह। इस कहानी
म शािहद क कारतािनय और शािहदा क
उपीड़न क सू?मता से पड़ताल क गई ह।
कथाकार ने इस कहानी म शािहद क
भावना क अिनयंित वाह को बयाँ िकया
ह। "वस ए सोजर" कथाकार ने क टन
िबली मेहता क मृयु क प?ात भी एक
फ़ौजी क भावना को बयाँ िकया ह।
"अंितम संकार का खेल" नरन का दुःख
कवल य गत नह ह, यह उसक
सामािजक संबंध और अपने पहचान क भी
बात करता ह। उसक मन म यह याल आना
िक रॉजर क मृयु क सूचना देकर वह अपने
रलवे क टाफ पर एक अलग रौब जमा
सकता ह। वह शोिकत भी ह और साथ ही
अपने फ़ायदे क बार म भी सोच रहा ह। यह
मानव वभाव क जिटलता को उजागर करता
ह, जहाँ दुःख और वाथ एक साथ िवमान
ह। "बेपरदा िखड़क" िसफ एक कहानी नह
ह, यह जीवन क जिटलता, मनोिवान
और मानवीय संवेदना का एक दपण ह।
तेजे शमा ने इसे इस कार िलखा ह िक
पाठक को अंत म जाकर एक नई िमलती
ह जो उसे अपने आसपास क संसार को नए
नजरए से देखने क िलए मजबूर करती ह।
कहानी म पा क मनोवैािनक गहराई का
भावशाली िचण िकया गया ह। हर पा क
अपनी संघष और इछाएँ ह, जो उह एक-
दूसर से जोड़ती ह। उनक संवाद और
अंतिवरोध यह दशाते ह िक हम अपने
अनुभव क आधार पर एक-दूसर क ित कसे
धारणाएँ बनाते ह। यह आपसी समझ और
असमंजस क बीच का ं कहानी को और
भी िदलचप बनाता ह।
"म भी तो वैसा ही " कहानी अपने कय
और कथानक से काफ रोचक बन पड़ी ह।
यह कहानी कथाकार क पैनी लेखकय s??
तथा सामािजक सरोकार से जुड़ाव का जीवंत
सबूत ह। इस कहानी म पा क िवचार क
गहराई और उनक मनोवैािनक कोण
का िचण ह। मुय पा क िशकायत और
उसक चार ओर क माहौल क ित असंतोष
उसक मानिसकता को प करता ह। लंदन
का यत जीवन और िसिवक सस क कमी
उसे परशान करती ह, िजससे वह अपने
आस-पास क लोग क ित िनराश हो जाता
ह। वह कई बार सड़क पर कड़ा-कचरा और
अय सामान फकने वाल क िख़लाफ़ हरो
काउिसल को िशकायत दज करवाता ह।
लेिकन एक िदन जब उसक यहाँ काम करने
वाली माया उसक रग को लीिचंग पावडर से
साफ़ करती ह तो उसका रग उड़ जाता ह और
वह भी अपने रग को सड़क पर ही िठकाने
लगाने क िलए मानिसक प से तैयार हो
जाता ह। "रिजरटर म डाका" लंदन म
रलवे टशन पर काम करने वाले कमचारी
अपने घर से भोजन लाकर रलवे टशन क
र िजरटर म रख देते थे लेिकन इधर कछ
िदन से र िजरटर म से भोजन ग़ायब होने
लग गया था। कछ कमचारी चाय या काफ
क िलए दूध रखते थे। दूध भी ग़ायब हो जाता
था। अिधकाँश कमचारी परशान थे। लेिकन
जब कोिवड महामारी फलती ह तब
र िजरटर म कोई भी कमचारी कछ भी नह
रखता ह। तब र िजरटर म स?ाटा छाया
रहता ह। जब महामारी फलती ह और
कमचारी रििजरटर म कछ नह रखते, तो
यह कवल खा सामी क कमी का नह,
ब क एक गहर मानिसक तनाव और
असुरा का संकत ह। महामारी ने लोग को
अलग-थलग कर िदया और इस थित म
रििजरटर का साटा उस अजनबीपन और
असुरा को दशाता ह। यह सामािजक दूरी
और य गत सुरा क आवयकता को भी
उजागर करता ह। कहानी म रलवे कमचारय
क िनराशा और िचंता को ब?बी िदखाया
गया ह।
"सहयाी" भा जी क पनी नीलम को
पैरािलिसस हो गया था। नीलम का सारा काम
भा जी ही करते थे। इस दौरान कोिवड क
बीमारी पूर िव म फ़ल गई। कोिवड क
दुसरी लहर ने भा जी को अपनी चपेट म ले
िलया। इस दूसरी लहर म भा जी क मृयु
हो जाती ह। नीलम अपने पलंग पर भा जी
का इतज़ार ही करती रहती ह। इनक पु-पुी
िवदेश म रहते ह। वे कोिवड क समय अपने
माता-िपता क सेवा करने नह आ सक
यिक कोिवड क समय लॉक डाउन लगा
आ था और सारी लाइस बंद थी। "िदल
बहलता य नह" कोरोना काल से संबंिधत
ह। कोरोना काल का समय सभी क िलए
मु कल था, लेिकन नरन और िशवानी ने इसे
अपने तरीक़ से जीने का फ़सला िकया। इस
कहानी म नरन को ना तक और उसक पनी
िशवानी को आ तक बताया गया ह। नरन,
जो एक ना तक था, हमेशा िवान और तक
िहदी क सुपरिचत वासी कथाकार और िस कहानी संह "काला सागर" और
"िढबरी टाईट" क लेखक ? तेज शमा एक संवेदनशील लेखक होने क साथ एक संपादक भी
ह। हाल ही म इनका नया कहानी संह "संिदध" िशवना काशन से कािशत होकर आया ह।
? तेज शमा क लेखन का सफ़र बत लंबा ह। तेज जी क मुख रचना म "काला
सागर", "िढबरी टाईट", "देह क कमत", "यह या हो गया!", "बेघर आँख", "सीधी रखा
क परत", "क़ का मुनाफ़ा", "दीवार म राता", "ितिनिध कहािनयाँ", "मेरी िय कथाएँ",
"े कहािनयाँ", "सपने मरते नह", "ग़ौरतलब कहािनयाँ", "मौत... एक मयाँतर",
"मृितय क घेर" (सम कहािनयाँ भाग-1), "नई ज़मीन नया आकाश" (सम कहािनयाँ
भाग-2), "मृयु क इ धनुष", "तू चलता चल", "संिदध" (कहानी संह), "म किव इस
देश का" (िभािषक किवता संह), "ये घर तुहारा ह..." (किवता एवं ग़ज़ल संह), "ट स
नदी क तट से" (किवता संह), पाँच अंेजी पुतक का लेखन, पुरवाई पिका का संपादन
शािमल ह। कई िवदेशी और देशी महवपूण पुरकार और समान से समािनत ? तेजे
शमा क कहािनयाँ मुख सािह यक प-पिका म कािशत होती रही ह।
तेज शमा का लेखन वासी सािहय म अपनी िविश?ता क िलए जाना जाता ह। उनक
कहािनयाँ भारतीय वािसय क संघषपूण जीवन याा को िचित करती ह, जबिक प मी
समाज क जिटलता और संबंध क गहराइय को भी बखूबी उजागर करती ह। तेज शमा
का कोण यथाथवादी ह। उनक यथाथवादी कोण से पा क आंतरक ं सजीव हो
उठते ह। तेज जी क लेखनी मानवीय संवेदना से लबरज ह, िजससे पाठक पा क साथ
गहरा जुड़ाव महसूस करते ह। इनक कथा सािहय म ये पा क संवाद ारा गहरी भावना
और िवचार को सरलता से य करते ह। तेज शमा क कथा सािहय म भारतीय संकित क
सधी महक ह तथा लेखनी म ताज़गी और नवीनता ह। उनक लेखनी पाठक को सोचने क िलए
ेरत करती ह और मानवीय रत क जिटलता को उजागर करती ह। उनक कहािनय म न
कवल सामािजक मु का गहरा िव?ेषण होता ह, ब क वे अपने पा क मायम से जीवन
शोध-आलोचना
(कहानी संह)
संिदध
समीक : दीपक िगरकर
लेखक : तेजे शमा
काशक : िशवना काशन, साट
कॉ लैस बेसमट, सीहोर, म
466001, फ़ोन-07562405545
मोबाइल- +91-9806162184
ईमेल- [email protected]
दीपक िगरकर
28-सी, वैभव नगर, कनािडया रोड,
इदौर- 452016 म
मोबाइल- 9425067036
ईमेल- [email protected]

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 20257 6 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2025
क िविभ? पहलु को भी उजागर करते ह।
उनक लेखनी म संकित और जीवनशैली क
अंतर को सहजता से दशाया गया ह, जो
वासी अनुभव को जीवंत बनाती ह। तेज जी
क कथा िशप म नवीनता और गहराई दोन
ह, िजससे पाठक न कवल मनोरजन पाते ह,
ब क अपने कोण म भी िवतार करते
ह। उनक कहािनयाँ वै क संदभ म भारत
और वािसय क संघष को समझने म मदद
करती ह और यही उनक िवशेषता ह। इस
कार तेज शमा का लेखन न कवल
सािह यक मूय रखता ह ब क समाज को
एक नई िदशा भी दान करता ह। तेजे शमा
क रचनाएँ वासी जीवन क गहराई और
िविवधता को समझने का एक सश मायम
ह, जो पाठक को एक नई सोच और
संवेदनशीलता से अवगत कराती ह। इस कित
म जीवन क िनत नवीन प को उजागर
करती कहािनयाँ ह। मुझे इस संह क
अिधकाँश कहािनयाँ सश लगी। इस
कहानी संह म अिधकाँश कहािनयाँ कोरोना
काल क ह। कहानी संह म कल 15
कहािनयाँ ह। इस कहानी संह क कहािनय
म यथाथवादी जीवन, मानवीय संवेदनाएँ,
वाथ, पारवारक रत क बीच का ताना-
बाना, दोगलापन, संवादहीनता, बेबसी,
शोषण, उपीड़न, ी संघष और ीमन क
पीड़ा, अकलेपन का दंश, कोिवड जैसी
महामारी का भय आिद का िचण िमलता ह।
"संिदध" कहानी पाठक को उि न कर
जाती ह। इस कहानी म तेजे शमा ने पा
क मनो थित का गहरा िचण िकया ह और
साथ ही वाथ और भौितकता क मु को भी
बड़ी िनपुणता से तुत िकया ह। इस कहानी
म शािहद क कारतािनय और शािहदा क
उपीड़न क सू?मता से पड़ताल क गई ह।
कथाकार ने इस कहानी म शािहद क
भावना क अिनयंित वाह को बयाँ िकया
ह। "वस ए सोजर" कथाकार ने क टन
िबली मेहता क मृयु क प?ात भी एक
फ़ौजी क भावना को बयाँ िकया ह।
"अंितम संकार का खेल" नरन का दुःख
कवल य गत नह ह, यह उसक
सामािजक संबंध और अपने पहचान क भी
बात करता ह। उसक मन म यह याल आना
िक रॉजर क मृयु क सूचना देकर वह अपने
रलवे क टाफ पर एक अलग रौब जमा
सकता ह। वह शोिकत भी ह और साथ ही
अपने फ़ायदे क बार म भी सोच रहा ह। यह
मानव वभाव क जिटलता को उजागर करता
ह, जहाँ दुःख और वाथ एक साथ िवमान
ह। "बेपरदा िखड़क" िसफ एक कहानी नह
ह, यह जीवन क जिटलता, मनोिवान
और मानवीय संवेदना का एक दपण ह।
तेजे शमा ने इसे इस कार िलखा ह िक
पाठक को अंत म जाकर एक नई िमलती
ह जो उसे अपने आसपास क संसार को नए
नजरए से देखने क िलए मजबूर करती ह।
कहानी म पा क मनोवैािनक गहराई का
भावशाली िचण िकया गया ह। हर पा क
अपनी संघष और इछाएँ ह, जो उह एक-
दूसर से जोड़ती ह। उनक संवाद और
अंतिवरोध यह दशाते ह िक हम अपने
अनुभव क आधार पर एक-दूसर क ित कसे
धारणाएँ बनाते ह। यह आपसी समझ और
असमंजस क बीच का ं कहानी को और
भी िदलचप बनाता ह।
"म भी तो वैसा ही " कहानी अपने कय
और कथानक से काफ रोचक बन पड़ी ह।
यह कहानी कथाकार क पैनी लेखकय s??
तथा सामािजक सरोकार से जुड़ाव का जीवंत
सबूत ह। इस कहानी म पा क िवचार क
गहराई और उनक मनोवैािनक कोण
का िचण ह। मुय पा क िशकायत और
उसक चार ओर क माहौल क ित असंतोष
उसक मानिसकता को प करता ह। लंदन
का यत जीवन और िसिवक सस क कमी
उसे परशान करती ह, िजससे वह अपने
आस-पास क लोग क ित िनराश हो जाता
ह। वह कई बार सड़क पर कड़ा-कचरा और
अय सामान फकने वाल क िख़लाफ़ हरो
काउिसल को िशकायत दज करवाता ह।
लेिकन एक िदन जब उसक यहाँ काम करने
वाली माया उसक रग को लीिचंग पावडर से
साफ़ करती ह तो उसका रग उड़ जाता ह और
वह भी अपने रग को सड़क पर ही िठकाने
लगाने क िलए मानिसक प से तैयार हो
जाता ह। "रिजरटर म डाका" लंदन म
रलवे टशन पर काम करने वाले कमचारी
अपने घर से भोजन लाकर रलवे टशन क
र िजरटर म रख देते थे लेिकन इधर कछ
िदन से र िजरटर म से भोजन ग़ायब होने
लग गया था। कछ कमचारी चाय या काफ
क िलए दूध रखते थे। दूध भी ग़ायब हो जाता
था। अिधकाँश कमचारी परशान थे। लेिकन
जब कोिवड महामारी फलती ह तब
र िजरटर म कोई भी कमचारी कछ भी नह
रखता ह। तब र िजरटर म स?ाटा छाया
रहता ह। जब महामारी फलती ह और
कमचारी रििजरटर म कछ नह रखते, तो
यह कवल खा सामी क कमी का नह,
ब क एक गहर मानिसक तनाव और
असुरा का संकत ह। महामारी ने लोग को
अलग-थलग कर िदया और इस थित म
रििजरटर का साटा उस अजनबीपन और
असुरा को दशाता ह। यह सामािजक दूरी
और य गत सुरा क आवयकता को भी
उजागर करता ह। कहानी म रलवे कमचारय
क िनराशा और िचंता को ब?बी िदखाया
गया ह।
"सहयाी" भा जी क पनी नीलम को
पैरािलिसस हो गया था। नीलम का सारा काम
भा जी ही करते थे। इस दौरान कोिवड क
बीमारी पूर िव म फ़ल गई। कोिवड क
दुसरी लहर ने भा जी को अपनी चपेट म ले
िलया। इस दूसरी लहर म भा जी क मृयु
हो जाती ह। नीलम अपने पलंग पर भा जी
का इतज़ार ही करती रहती ह। इनक पु-पुी
िवदेश म रहते ह। वे कोिवड क समय अपने
माता-िपता क सेवा करने नह आ सक
यिक कोिवड क समय लॉक डाउन लगा
आ था और सारी लाइस बंद थी। "िदल
बहलता य नह" कोरोना काल से संबंिधत
ह। कोरोना काल का समय सभी क िलए
मु कल था, लेिकन नरन और िशवानी ने इसे
अपने तरीक़ से जीने का फ़सला िकया। इस
कहानी म नरन को ना तक और उसक पनी
िशवानी को आ तक बताया गया ह। नरन,
जो एक ना तक था, हमेशा िवान और तक
िहदी क सुपरिचत वासी कथाकार और िस कहानी संह "काला सागर" और
"िढबरी टाईट" क लेखक ? तेज शमा एक संवेदनशील लेखक होने क साथ एक संपादक भी
ह। हाल ही म इनका नया कहानी संह "संिदध" िशवना काशन से कािशत होकर आया ह।
? तेज शमा क लेखन का सफ़र बत लंबा ह। तेज जी क मुख रचना म "काला
सागर", "िढबरी टाईट", "देह क कमत", "यह या हो गया!", "बेघर आँख", "सीधी रखा
क परत", "क़ का मुनाफ़ा", "दीवार म राता", "ितिनिध कहािनयाँ", "मेरी िय कथाएँ",
"े कहािनयाँ", "सपने मरते नह", "ग़ौरतलब कहािनयाँ", "मौत... एक मयाँतर",
"मृितय क घेर" (सम कहािनयाँ भाग-1), "नई ज़मीन नया आकाश" (सम कहािनयाँ
भाग-2), "मृयु क इ धनुष", "तू चलता चल", "संिदध" (कहानी संह), "म किव इस
देश का" (िभािषक किवता संह), "ये घर तुहारा ह..." (किवता एवं ग़ज़ल संह), "ट स
नदी क तट से" (किवता संह), पाँच अंेजी पुतक का लेखन, पुरवाई पिका का संपादन
शािमल ह। कई िवदेशी और देशी महवपूण पुरकार और समान से समािनत ? तेजे
शमा क कहािनयाँ मुख सािह यक प-पिका म कािशत होती रही ह।
तेज शमा का लेखन वासी सािहय म अपनी िविश?ता क िलए जाना जाता ह। उनक
कहािनयाँ भारतीय वािसय क संघषपूण जीवन याा को िचित करती ह, जबिक प मी
समाज क जिटलता और संबंध क गहराइय को भी बखूबी उजागर करती ह। तेज शमा
का कोण यथाथवादी ह। उनक यथाथवादी कोण से पा क आंतरक ं सजीव हो
उठते ह। तेज जी क लेखनी मानवीय संवेदना से लबरज ह, िजससे पाठक पा क साथ
गहरा जुड़ाव महसूस करते ह। इनक कथा सािहय म ये पा क संवाद ारा गहरी भावना
और िवचार को सरलता से य करते ह। तेज शमा क कथा सािहय म भारतीय संकित क
सधी महक ह तथा लेखनी म ताज़गी और नवीनता ह। उनक लेखनी पाठक को सोचने क िलए
ेरत करती ह और मानवीय रत क जिटलता को उजागर करती ह। उनक कहािनय म न
कवल सामािजक मु का गहरा िव?ेषण होता ह, ब क वे अपने पा क मायम से जीवन
शोध-आलोचना
(कहानी संह)
संिदध
समीक : दीपक िगरकर
लेखक : तेजे शमा
काशक : िशवना काशन, साट
कॉ लैस बेसमट, सीहोर, म
466001, फ़ोन-07562405545
मोबाइल- +91-9806162184
ईमेल- [email protected]
दीपक िगरकर
28-सी, वैभव नगर, कनािडया रोड,
इदौर- 452016 म
मोबाइल- 9425067036
ईमेल- [email protected]

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शोध-आलोचना
(किवता संह)
क़मर मेवाड़ी क
किवताएँ
समीक : ो. मलय पानेरी
लेखक : क़मर मेवाड़ी
काशक : ीसािहय काशन, नई
?·??
राजथान म िहदी किवता क थि अय ांत म किवता-रचना क तुलना म कह भी
कमतर नह रही ह। िकसी भी देश परवेश क किव क िलए काय-रचना उसक रचनामक
िन?ा से अिधक मानिसक आवयकता ही होती ह। सािहय-रचना क यही बुिनयादी
आवयकता रही ह। िवधा कोई भी हो, रचनामकता इसी से जीिवत रहती ह। यह रचनाकार पर
ही िनभर करता ह िक अपनी बात को पूर असर क साथ अिभय करने क िलए िवधा कौनसी
हो! अपने िवचार क सश अिभय क िलए चयन भी उतना ही महवपूण ह िजतना िवषय
अथवा कय चयन। सािहय क परपरागत और चिलत िवधा म राजथान का िहदी
सािहय अपनी गुणवा क साथ िनरतर गितशील रहा ह। राजथान म िहदी किवता का इितहास
बत गौरवशाली रहा ह। यहाँ थािपत और पहचान बना चुक किवय क साथ नवोिदत किवय
का पवन और पोषण होता रहा ह। इसी परपरा से िहदी-काय समृ होता रहा ह। यहाँ क
गीत, लोकगीत और अय कार क गायन-शैिलयाँ भी राीय तर पर ?ब सराही जाती रही ह।
यहाँ क रचनाकार ने अपने कला कौशल से थानीयता क महव क मूयवा िस क ह।
ेीय भाषा बोली का संरण भी यहाँ क काय-परपरा का एक अिनवाय तव रहा ह। परवेश
एवं े-िवशेष क किवय का इस से महवपूण अवदान रहा ह। चार-सार क दुिनया
म कई बार छोट क़बे और शहर क रचनाकार को बमु कल ही पहचान िमल पाती ह, िकतु वे
अपनी रचनामक ितभा से उस ंखला म स मिलत हो जाते ह, िजसका महव वीकाय होता
ह।
ी कमर मेवाड़ी राजथान क राजसमंद िजले क एक छोट-से कॉकरोली क़बे क िनवासी
ह। कभी-कभी छोट-मोट आयोजन क अितर सािह यक गितिविधय क िनरतरता क िलए
यासरत रचनाकार म ी कमर मेवाड़ी क सियता िदखाई देती रही ह। पुरकत होकर भी वे
पुरकार से अपनी पहचान बनाने क प म कभी नह रह। उनक िलए सबसे महवपूण अपनी
रचना क संेषण-मता ह। उनक किवताएँ इसक साी ह। बत सरल भाषा क ारा वे
अपने कय को पाठक तक प चाते ह। किठन िबंब और तीक से वे अपनी किवता को दूर ही
रखते ह। किवता उनक िलए िवषय का आवाद देने वाली िवधा रही ह, इसीिलए वे बपिठत
किवय क जमात म शािमल ह।
अभी हाल ही म उनका नया काय-संह "कमर मेवाड़ी क किवताएँ शीषक से आया ह।
इस संह म किव ने सभी किवता क रचना-समय का तारीख़ सिहत उेख िकया ह और
साथ ही यह भी प िकया ह िक कौनसी किवता िकस अवसर पर कहाँ-कहाँ कािशत ई ह।
इससे पाठक को किवता क कछ-कछ पृ?भूिम भी मालूम हो जाती ह और वह उस रचना क
सच को पहचानने म सफल होता ह। कमर मेवाड़ी क किवताएँ मनुय क सामािजक जीवन क
ो. मलय पानेरी
अिध?ाता (कला संकाय)
जनादन राय नागर राजथान िवापीठ
(मा. िव. िव.) उदयपुर, 313001
मोबाइल- 94132-63428
क प म था। वह, उसक पनी िशवानी,
आ तक होने क नाते िवास करती थी िक
भगवा उनक मदद करगा। नरन ने देखा िक
उनक पड़ोस क सोसायटी म कई लोग
संिमत हो गए ह। उनक सोच म एक
बदलाव आया। नरन ने महसूस िकया िक इस
संकट म लोग क मदद करना ज़री ह और
िशवानी ने अपने िवास को आधार बनाकर
इस काम म जुटने का फ़सला िकया। लेिकन
इस कोरोना काल म दोन िमलकर एक
सोसायटी म िजसम सभी कोरोना पॉिज़िटव
पाए जाते ह, दोन समय का भोजन प चाते
ह। नरन ने इस काय म अपने दोत क मदद
ली। नरन ने इसे एक चुनौती क प म िलया
और िशवानी ने इसे एक सेवा काय माना। यह
समय नरन और िशवानी क िलए न कवल
एक चुनौती थी, दोन ने िमलकर न कवल
दूसर क मदद क, ब क अपने िवचार और
िवास म एक सामंजय थािपत िकया।
इस अनुभव ने उह िसखाया िक मु कल
समय म मानवता क सेवा सबसे बड़ा धम ह,
चाह कोई भी िवास हो।
"टट गया नाता" एक बेहद संवेदनशील
और मानवीय कहानी ह, जो िमता, संकोच
और किठनाई क समय म सहारा देने क
भावना को छ?ती ह। नायक और नाई क दोती
इस किठन समय म और भी गहरी होती ह, जो
हम यह िसखाती ह िक भले ही हालात िकतने
भी किठन य न ह, सी िमता हर बाधा
को पार कर सकती ह। कहानी म शायरी का
महव भी दशाया गया ह। नायक क शायरी
नाई क िलए एक सहारा बनती ह और उनक
िमता को और मज़बूत करती ह। नाई का
नायक क िलए िबना पैसे क बाल काटना
उसक गहरी िमता को दशाता ह। जब
नायक दूसर लॉकडाउन म बाल कटवाने
जाता ह और उस लड़क से िमलने क इछा
रखता ह, तो यह दशाता ह िक कसे छोटी-
छोटी चीज़, जैसे िक परयूम क महक,
इसान क िदल म गहरी छाप छोड़ देती ह। अंत
म नायक का ं यह बताता ह िक जीवन म
कभी-कभी हम किठन िनणय लेने पड़ते ह
और हमार अनुभव हम नए रात क ओर भी
ले जा सकते ह। यह कहानी िमता, ेम और
संघष क बीच क जिटल रत को बत
?बसूरती से तुत करती ह। "सवाल क
जवाब" कोरोना काल क एक ासंिगक और
संवेदनशील कहानी ह, जो इस किठन समय
म लोग क मन म उठने वाले सवाल और
िचंता को उजागर करती ह। कथाकार ने
कहानी म कोरोना काल क चुनौितय को
अछी तरह से दशाया गया ह - लॉकडाउन,
वा य संकट और सामािजक दूरी। यह उन
भावना को उजागर करती ह, जो लोग ने
इस समय अनुभव क ह। पा क मानिसक
थित को भावी तरीक से िचित िकया गया
ह। "वािहश क पैबद" यह कहानी न
कवल नाियका क अनुभव को उजागर करती
ह, ब क सभी पा क भीतर क टटन और
उनक संघष को भी ब?बी दशाती ह।
माइकल का पा नाियका क जीवन म एक
मौिलक परवतन लाता ह। नाियका क
माइकल क साथ जुड़ाव और उसक
परणामवप उसक िज़ंदगी म आई ट?टन,
उसे आमावलोकन क िलए मजबूर करती ह।
"रत क गरमाहट", "शोक संदेश",
"बदलेगी रग िज़ंदगी" इयािद कट? यथाथ से
सााकार कराती कहािनयाँ ह जो मन को
छ?कर उसक मम से पहचान करा जाती ह।
"शुभांगी सुनना चाहती ह" 1984 भोपाल गैस
ासदी क कहानी ह। िजसने हज़ार लोग क
चेहर को लकवा त या अपंग कर िदया था।
इस कहानी म कथाकार ने लकवा त चेहर
वाली युवती शुभांगी क मन: थित और
उसक मनोिवान का िचण सफलतापूवक
िकया ह।
इस संह क कहािनयाँ िज़ंदगी क
हककत से ब करवाती ह। तेजे शमा
क कहािनय म िसफ पा ही नह समूचा
परवेश पाठक से मुखरत होता ह। तेजे
शमा क इस संह क कहािनयाँ वाकई एक
अनोखा अनुभव तुत करती ह। उनक शैली
म जो सूमता और गहराई ह, वह पाठक को
िसफ कथानक म नह, ब क उसक पीछ क
भावना और मनोिवान म भी खच ले
जाती ह। वे कहानी क वाह को तोड़कर
पाठक क मन म एक अिन तता का
माहौल पैदा करते ह, जो अंततः एक नई
अंत क साथ समा होता ह। तेजे शमा
का यह तरीक़ा न कवल कहािनय को रोचक
बनाता ह, ब क यह पाठक को सोचने और
महसूस करने पर मजबूर भी करता ह। वे
जीवन क जिटल पहलु को सहजता से
उजागर करते ह, िजससे पाठक न कवल
कहानी को ब क अपनी िज़ंदगी को भी एक
नए नजरये से देखने लगता ह। इनक रचनाएँ
संवेदना क एक नए आयाम को छ?ती ह।
कथाकार तेजे शमा क कहािनय म नारी
पा क िविवध प िचित ए ह। तेजे
शमा क नारी पा पुष से अिधक ईमानदार,
यवहारक, साहसी और कमठ िदखाई देती
ह। कहािनयाँ नारी मन का मनोवैािनक तरीक
से िव?ेषण करती ह। संकलन क अिधकाँश
कहािनय क ी पा िवपरीत समय आने पर
चुनौितय का सामना करनेवाली सश नारी
क प म िदखाई देते ह। तेजे शमा क
कहािनय क ी चर वयं िनणय लेने क
मता रखते ह।
तेजे शमा क लेखनी म िविशता और
गहराई ह। वे संवाद और िववरण का
कशलता से इतेमाल करते ह, िजससे पाठक
कहानी क माहौल म ?द को ड?बा आ
महसूस करते ह। उनक इन कहािनय क
शैली म सूमता और िवचारशीलता दोन ह जो
कहानी को और भी भावी बनाते ह।
कहािनय क कय म िविवधता ह। सहज
और प संवाद, घटना, पा और
परवेश का सजीव िचण इस संह क
कहािनय म िदखाई देता ह। भाषा म
िचामकता ह। इस संह क कहािनयाँ
पाठक क जेहन म अिवमरणीय छाप छोड़
जाती ह। लेखक ने परवेश क अनुप भाषा
और य क साथ कथा को कछ इस तरह
बुना ह िक कथा ?द आँख क आगे साकार
होते चली जाती ह। इनक कहािनय क पा
जेहन म हमेशा क िलए बस जाते ह। बेशक
"संिदध" (कहानी संह) एक पठनीय और
संहणीय कित ह।
000

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 20259 8 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2025
शोध-आलोचना
(किवता संह)
क़मर मेवाड़ी क
किवताएँ
समीक : ो. मलय पानेरी
लेखक : क़मर मेवाड़ी
काशक : ीसािहय काशन, नई
?·??
राजथान म िहदी किवता क थि अय ांत म किवता-रचना क तुलना म कह भी
कमतर नह रही ह। िकसी भी देश परवेश क किव क िलए काय-रचना उसक रचनामक
िन?ा से अिधक मानिसक आवयकता ही होती ह। सािहय-रचना क यही बुिनयादी
आवयकता रही ह। िवधा कोई भी हो, रचनामकता इसी से जीिवत रहती ह। यह रचनाकार पर
ही िनभर करता ह िक अपनी बात को पूर असर क साथ अिभय करने क िलए िवधा कौनसी
हो! अपने िवचार क सश अिभय क िलए चयन भी उतना ही महवपूण ह िजतना िवषय
अथवा कय चयन। सािहय क परपरागत और चिलत िवधा म राजथान का िहदी
सािहय अपनी गुणवा क साथ िनरतर गितशील रहा ह। राजथान म िहदी किवता का इितहास
बत गौरवशाली रहा ह। यहाँ थािपत और पहचान बना चुक किवय क साथ नवोिदत किवय
का पवन और पोषण होता रहा ह। इसी परपरा से िहदी-काय समृ होता रहा ह। यहाँ क
गीत, लोकगीत और अय कार क गायन-शैिलयाँ भी राीय तर पर ?ब सराही जाती रही ह।
यहाँ क रचनाकार ने अपने कला कौशल से थानीयता क महव क मूयवा िस क ह।
ेीय भाषा बोली का संरण भी यहाँ क काय-परपरा का एक अिनवाय तव रहा ह। परवेश
एवं े-िवशेष क किवय का इस से महवपूण अवदान रहा ह। चार-सार क दुिनया
म कई बार छोट क़बे और शहर क रचनाकार को बमु कल ही पहचान िमल पाती ह, िकतु वे
अपनी रचनामक ितभा से उस ंखला म स मिलत हो जाते ह, िजसका महव वीकाय होता
ह।
ी कमर मेवाड़ी राजथान क राजसमंद िजले क एक छोट-से कॉकरोली क़बे क िनवासी
ह। कभी-कभी छोट-मोट आयोजन क अितर सािह यक गितिविधय क िनरतरता क िलए
यासरत रचनाकार म ी कमर मेवाड़ी क सियता िदखाई देती रही ह। पुरकत होकर भी वे
पुरकार से अपनी पहचान बनाने क प म कभी नह रह। उनक िलए सबसे महवपूण अपनी
रचना क संेषण-मता ह। उनक किवताएँ इसक साी ह। बत सरल भाषा क ारा वे
अपने कय को पाठक तक प चाते ह। किठन िबंब और तीक से वे अपनी किवता को दूर ही
रखते ह। किवता उनक िलए िवषय का आवाद देने वाली िवधा रही ह, इसीिलए वे बपिठत
किवय क जमात म शािमल ह।
अभी हाल ही म उनका नया काय-संह "कमर मेवाड़ी क किवताएँ शीषक से आया ह।
इस संह म किव ने सभी किवता क रचना-समय का तारीख़ सिहत उेख िकया ह और
साथ ही यह भी प िकया ह िक कौनसी किवता िकस अवसर पर कहाँ-कहाँ कािशत ई ह।
इससे पाठक को किवता क कछ-कछ पृ?भूिम भी मालूम हो जाती ह और वह उस रचना क
सच को पहचानने म सफल होता ह। कमर मेवाड़ी क किवताएँ मनुय क सामािजक जीवन क
ो. मलय पानेरी
अिध?ाता (कला संकाय)
जनादन राय नागर राजथान िवापीठ
(मा. िव. िव.) उदयपुर, 313001
मोबाइल- 94132-63428
क प म था। वह, उसक पनी िशवानी,
आ तक होने क नाते िवास करती थी िक
भगवा उनक मदद करगा। नरन ने देखा िक
उनक पड़ोस क सोसायटी म कई लोग
संिमत हो गए ह। उनक सोच म एक
बदलाव आया। नरन ने महसूस िकया िक इस
संकट म लोग क मदद करना ज़री ह और
िशवानी ने अपने िवास को आधार बनाकर
इस काम म जुटने का फ़सला िकया। लेिकन
इस कोरोना काल म दोन िमलकर एक
सोसायटी म िजसम सभी कोरोना पॉिज़िटव
पाए जाते ह, दोन समय का भोजन प चाते
ह। नरन ने इस काय म अपने दोत क मदद
ली। नरन ने इसे एक चुनौती क प म िलया
और िशवानी ने इसे एक सेवा काय माना। यह
समय नरन और िशवानी क िलए न कवल
एक चुनौती थी, दोन ने िमलकर न कवल
दूसर क मदद क, ब क अपने िवचार और
िवास म एक सामंजय थािपत िकया।
इस अनुभव ने उह िसखाया िक मु कल
समय म मानवता क सेवा सबसे बड़ा धम ह,
चाह कोई भी िवास हो।
"टट गया नाता" एक बेहद संवेदनशील
और मानवीय कहानी ह, जो िमता, संकोच
और किठनाई क समय म सहारा देने क
भावना को छ?ती ह। नायक और नाई क दोती
इस किठन समय म और भी गहरी होती ह, जो
हम यह िसखाती ह िक भले ही हालात िकतने
भी किठन य न ह, सी िमता हर बाधा
को पार कर सकती ह। कहानी म शायरी का
महव भी दशाया गया ह। नायक क शायरी
नाई क िलए एक सहारा बनती ह और उनक
िमता को और मज़बूत करती ह। नाई का
नायक क िलए िबना पैसे क बाल काटना
उसक गहरी िमता को दशाता ह। जब
नायक दूसर लॉकडाउन म बाल कटवाने
जाता ह और उस लड़क से िमलने क इछा
रखता ह, तो यह दशाता ह िक कसे छोटी-
छोटी चीज़, जैसे िक परयूम क महक,
इसान क िदल म गहरी छाप छोड़ देती ह। अंत
म नायक का ं यह बताता ह िक जीवन म
कभी-कभी हम किठन िनणय लेने पड़ते ह
और हमार अनुभव हम नए रात क ओर भी
ले जा सकते ह। यह कहानी िमता, ेम और
संघष क बीच क जिटल रत को बत
?बसूरती से तुत करती ह। "सवाल क
जवाब" कोरोना काल क एक ासंिगक और
संवेदनशील कहानी ह, जो इस किठन समय
म लोग क मन म उठने वाले सवाल और
िचंता को उजागर करती ह। कथाकार ने
कहानी म कोरोना काल क चुनौितय को
अछी तरह से दशाया गया ह - लॉकडाउन,
वा य संकट और सामािजक दूरी। यह उन
भावना को उजागर करती ह, जो लोग ने
इस समय अनुभव क ह। पा क मानिसक
थित को भावी तरीक से िचित िकया गया
ह। "वािहश क पैबद" यह कहानी न
कवल नाियका क अनुभव को उजागर करती
ह, ब क सभी पा क भीतर क टटन और
उनक संघष को भी ब?बी दशाती ह।
माइकल का पा नाियका क जीवन म एक
मौिलक परवतन लाता ह। नाियका क
माइकल क साथ जुड़ाव और उसक
परणामवप उसक िज़ंदगी म आई ट?टन,
उसे आमावलोकन क िलए मजबूर करती ह।
"रत क गरमाहट", "शोक संदेश",
"बदलेगी रग िज़ंदगी" इयािद कट? यथाथ से
सााकार कराती कहािनयाँ ह जो मन को
छ?कर उसक मम से पहचान करा जाती ह।
"शुभांगी सुनना चाहती ह" 1984 भोपाल गैस
ासदी क कहानी ह। िजसने हज़ार लोग क
चेहर को लकवा त या अपंग कर िदया था।
इस कहानी म कथाकार ने लकवा त चेहर
वाली युवती शुभांगी क मन: थित और
उसक मनोिवान का िचण सफलतापूवक
िकया ह।
इस संह क कहािनयाँ िज़ंदगी क
हककत से ब करवाती ह। तेजे शमा
क कहािनय म िसफ पा ही नह समूचा
परवेश पाठक से मुखरत होता ह। तेजे
शमा क इस संह क कहािनयाँ वाकई एक
अनोखा अनुभव तुत करती ह। उनक शैली
म जो सूमता और गहराई ह, वह पाठक को
िसफ कथानक म नह, ब क उसक पीछ क
भावना और मनोिवान म भी खच ले
जाती ह। वे कहानी क वाह को तोड़कर
पाठक क मन म एक अिन तता का
माहौल पैदा करते ह, जो अंततः एक नई
अंत क साथ समा होता ह। तेजे शमा
का यह तरीक़ा न कवल कहािनय को रोचक
बनाता ह, ब क यह पाठक को सोचने और
महसूस करने पर मजबूर भी करता ह। वे
जीवन क जिटल पहलु को सहजता से
उजागर करते ह, िजससे पाठक न कवल
कहानी को ब क अपनी िज़ंदगी को भी एक
नए नजरये से देखने लगता ह। इनक रचनाएँ
संवेदना क एक नए आयाम को छ?ती ह।
कथाकार तेजे शमा क कहािनय म नारी
पा क िविवध प िचित ए ह। तेजे
शमा क नारी पा पुष से अिधक ईमानदार,
यवहारक, साहसी और कमठ िदखाई देती
ह। कहािनयाँ नारी मन का मनोवैािनक तरीक
से िव?ेषण करती ह। संकलन क अिधकाँश
कहािनय क ी पा िवपरीत समय आने पर
चुनौितय का सामना करनेवाली सश नारी
क प म िदखाई देते ह। तेजे शमा क
कहािनय क ी चर वयं िनणय लेने क
मता रखते ह।
तेजे शमा क लेखनी म िविशता और
गहराई ह। वे संवाद और िववरण का
कशलता से इतेमाल करते ह, िजससे पाठक
कहानी क माहौल म ?द को ड?बा आ
महसूस करते ह। उनक इन कहािनय क
शैली म सूमता और िवचारशीलता दोन ह जो
कहानी को और भी भावी बनाते ह।
कहािनय क कय म िविवधता ह। सहज
और प संवाद, घटना, पा और
परवेश का सजीव िचण इस संह क
कहािनय म िदखाई देता ह। भाषा म
िचामकता ह। इस संह क कहािनयाँ
पाठक क जेहन म अिवमरणीय छाप छोड़
जाती ह। लेखक ने परवेश क अनुप भाषा
और य क साथ कथा को कछ इस तरह
बुना ह िक कथा ?द आँख क आगे साकार
होते चली जाती ह। इनक कहािनय क पा
जेहन म हमेशा क िलए बस जाते ह। बेशक
"संिदध" (कहानी संह) एक पठनीय और
संहणीय कित ह।
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çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 202511 10 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2025
वे इस िवपरीत समय म भी दुिनया को कसे
देखते ह या िकस नई दुिनया क कपना करते
ह। यहाँ किव क अपनी उमीद ह- "कहने
को सब कछ ह / रहने को दड़बा / खाने को
रोटी / सहलाने को ज़म / बात करने को
दोत / और वत काटने क िलए / िकताब।
एक संतु? आदमी क जीवन क ये यूनतम
ज़रत ह िजससे वह अपनी जीवन याा
सुगम करता ह। किव को यहाँ उस बात का भी
लगातार अफसोस ह िक साधारण मनुय का
जीवन िनरतर किठन होता जा रहा ह।
कमर मेवाड़ी अपनी किवता क भाषा
को बत सरल रखते ह, इससे उनक काय
का कय पाठक क िलए ा रहता ह।
तीक और िबंब क मायम से नह ब क
सीधे-सीधे कहने म वे अिधक िवास रखते
ह। उनका यह मानना ह िक समाज क िजस
य क िलए वे िलख रह ह उसको समझने
म पाठक को किठनाई नह हो। िनन और
हािशये क लोग क िलए उथान-चेतना इसी
रचनामकता से संभव हो सकगी। आिख़र
दिलत और िकनार क समुदाय क नैितक-
िन?ा तथा ईमानदारी पर सय लोग को
िवास म लेना भी रचनाकार का दाियव ह,
इसे किव ने "एक किव क याा" किवता म
अिभय िकया ह- "जो बत यादा
िववादापद था / अपनी किवता क कारण
/ आज नह रहा / चला गया वह / लोग क
कध पर सवार होकर।" यिद जीवन क
अंितम परणित तक िकसी अम पर िवास
नह कर पाये यह समाज तो हम अपने आप
को सुखी नह समझना चािहए। आगे इसी
किवता म यह भी उेख िकया गया ह- "पर
वह अहकारी तो कतई नह था / उसने िलखी
थ अनेक किवताएँ / िपछड़-कचले लोग क
समथन म/ हाँ, वही किव / जो आते-जाते /
कभी-कभी णाम भी करता था आपको।"
यहाँ किव ने बतौर किव एक साधारण य
क अवदान योयता को रखांिकत िकया ह।
सामाय मनुय जीवन क इस आपा-धापी
म अपनी नई पहचान बनाने क सपने बुनता ह
लेिकन उसक वातिवक चुनौितयाँ वयं का
मौिलक अ तव बचा लेने क भी हो जाती
ह। संघष म उसक थकान का मूय उसे
िमलेगा और वह अपनी लड़ाई क जीत का
वाद भी अनुभव करगा, यह किव क
आ त भी ह और उसक रचना का अंितम
लय भी। िस दिण अ क अेत
किव बजािमन मोलाइसे को फाँसी देने पर
किव क िवचार पाठक को उेिलत नह करते
ब क अिभय क आज़ादी एवं भाईचार
क संदेश देते ह। उनका यह कहना बत
साथक ह िक "पर बजािमन / तुह फाँसी पर
लटका देने क बावजूद / तुम िज़ंदा हो /
तुहारी किवता अजर-अमर ह।" कोई
रचनाकार कायर सा क कारण चाह समा
कर िदया जाए िकतु पाठक और जन-समुदाय
म उसक रचनाएँ अपनी वाणी को कभी मूक
नह होने देती ह।
अब समाज का पुराना वगकरण यिप
नह िदखता हो िकतु इस तकनीक क दुिनया
म रहने वाले य का समाज बत बदल
चुका ह। मनुयता क क़मत पर ही सभी
कार क पा िदखाई दे रही ह, इसिलए
यहाँ किव उस मनुय को बचा लेने का
आ?ान करता ह िजससे यह दुिनया िनरतर
नई होती जा रही ह। किव यहाँ प करता ह
िक चाह िकतने ही बजािमन मार िदये जाएँ
अथवा िकतने ही एकलय को तािड़त होना
पड़ अब याय उनक प म आने वाला ह।
किव का यह आशावाद िनसंदेह पाठक को
चेतन करता ह।
पुतक क आरभ म ? िलोक मोहन
पुरोिहत ने साथक ाकथन िलखकर
किवता पर अपनी मूयांकनपरक िटपणी
से किव ी कमर मेवाड़ी क रचनामकता से
पाठक को परिचत कराया ह। डॉ. मनोहर
भाकर ने कमर मेवाड़ी जी क किवता क
ासंिगकता को रखांिकत करते ए उनक
सािह यक अवदान क चचा क ह तथा
समय-समय पर िमलती रहने वाली उनक
सािह यक-सियता का महव भी दशाया
गया ह। अतु किव ी कमर मेवाड़ी का यह
काय-संह िहदी पाठक-जग म पया
समान ?? करगा।
000
फाम IV
समाचार प क अिधिनयम 1956 क धारा
19-डी क अंतगत वािमव व अय िववरण
(देख िनयम 8)।
पिका का नाम : िशवना सािह यक
1. काशन का थान : पी. सी. लैब, शॉप नं.
3-4-5-6, साट कॉ लैस बेसमट, बस
टड क सामने, सीहोर, म, 466001
2. काशन क अविध : ैमािसक
3. मुक का नाम : बैर शेख़।
पता : शाइन िंटस, लॉट नं. 7, बी-2,
?ािलटी परमा, इिदरा ेस कॉ लैस,
ज़ोन 1, एमपी नगर, भोपाल, म 462011
या भारत क नागरक ह : हाँ।
(यिद िवदेशी नागरक ह तो अपने देश का
नाम िलख) : लागू नह।
4. काशक का नाम : पंकज कमार पुरोिहत।
पता : पी. सी. लैब, शॉप नं. 3-4-5-6, साट
कॉ लैस बेसमट, बस टड क सामने,
सीहोर, म, 466001
या भारत क नागरक ह : हाँ।
(यिद िवदेशी नागरक ह तो अपने देश का
नाम िलख) : लागू नह।
5. संपादक का नाम : पंकज सुबीर।
पता : रघुवर िवला, सट एस कल क
सामने, चाणयपुरी, सीहोर, म 466001
या भारत क नागरक ह : हाँ।
(यिद िवदेशी नागरक ह तो अपने देश का
नाम िलख) : लागू नह।
4. उन य य क नाम / पते जो समाचार
प / पिका क वािमव म ह। वामी का
नाम : पंकज कमार पुरोिहत। पता : रघुवर
िवला, सट एस कल क सामने,
चाणयपुरी, सीहोर, म 466001
या भारत क नागरक ह : हाँ।
(यिद िवदेशी नागरक ह तो अपने देश का
नाम िलख) : लागू नह।
म, पंकज कमार पुरोिहत, घोषणा करता िक
यहाँ िदए गए तय मेरी संपूण जानकारी और
िवास क मुतािबक सय ह।
िदनांक 11 माच 2024
हतार पंकज कमार पुरोिहत
(काशक क हतार)
िवषमता को रखांिकत करती ह एवं समाज
और य क अतसंबंध का महव-
ितपादन भी करती ह। इसानी जीवन क
हक़क़त कमर मेवाड़ी क किवता का
क ीय िवषय रहा ह। इस संह क पहली ही
किवता म क दुिनया म मज़दूर क जीवन म
?िशयाँ ढ ढ़ती ह। यहाँ किव हमार जीवन म
िमक क अतुलनीय भूिमका को रखांिकत
करता ह इसका आशय यह भी ह िक समाज म
मयम और उ वग का अ तव सवहारा
और िमक वग क िबना संभव नह ह।
असल म "मज़दूर किवता म क महा क
अिभय ह। इसम किव ने िमक वग क
ित सय समाज क उपेा पर िचंता भी
जताई ह िक यिद िकसी िदन इस वग ने अपना
मूल काम छोड़ िदया तो यह सुंदर िदखती
दुिनया मटमैली हो जाएगी। अपने जीवन म
"नए भोर क तीा" िकसे नह होती ह। हर
य मेहनत क परणाम म सुख और
सुिवधा ही चाहता ह। लेिकन चंद समृ वग
क ही भाय म ये सुख य िलखा रहता ह?
यह न किव का ह और इसका उर वह
आज क समाज से चाहता ह। यह भी सच ह
िक अनु रत न अनपेित जोिखम से भी
भर होते ह। जब िनन वग या हािशये क लोग
अपने अिधकार क िलए एक हो जाएँग तो यह
िकसी ांित से कम नह होगा। अभी जो शांित
िदख रही ह वह शायद िकसी नई शुआत का
थान िबंदु हो, इससे हम बेख़बर नह रहना
चािहए। " म का बादशाह" किवता आज क
तथाकिथत संात समाज को सजग करती ह
िक समाज क अँधेर कोने क पड़ लोग को
शोषण और दमन से मु का राता अब
िदखाई देने लगा ह। जीवन म अभाव और
संघष क उनक कहानी को ख़म करना
उनक ही बूते क बात ह। इसक िलए उह
अब िकसी क आा या आदेश क ज़रत
नह ह। अब उह यह भी समझ म आने लगा
ह िक अपने अिधकार को िकस िविध से ??
िकया जा सकता ह। सबसे मुय बात यह ह
िक एक साधारण य अपने समाज म बत
यूनतम आवयकता से गुज़र-बसर करता
ह, लेिकन उसे यह भी आसानी से नह िमलता
ह। "सुना तुमने" किवता का तुलछा भील,
पेमा क हार और नूरा हमाल उस मेहनतकश
वग का ितिनिधव करते ह जो वातव म
पानी से यादा अपने पसीने से जीवन क
फ़सल पकाते ह।
कमर मेवाड़ी अपनी किवता म आज
क दुिनया क एक ऐसी तवीर िदखाते ह जो
बत खरी और सी होकर िवसनीय भी
होती ह। उनक िलए आम आदमी िवशेष िचंता
का िवषय रहता ह, इसीिलए वे बत क़रीब से
उसक जीवन क को देखने और समझने
क िया से गुज़रते ह। साधारण मनुय क
जीवन और संांत य क जीवन का जो
िदखता िदखाता अंतर ह उसे वे पूरी ईमानदारी
एवं मानवीय नैितकता से अिभय करते ह।
समाज का कमज़ोर वग उनक किवता क
ताक़त बनता ह, इसीिलए उह इस वग पर पूरा
भरोसा ह िक अपने हक क िलए उह िकसी
और क आसर क ज़रत नह ह। वे वत क
बादशाह ह किवता आज क य क दप-
कथा क दाण अंत क ओर संकत करती ह,
िजसम किव ने काल गित क महव क दशाया
ह। दरअसल कमर मेवाड़ी राजथान क एक
छोट क़बे क रचनाकार ह जहाँ उह छोट-
से-छोट वग का य भी िदखता ह और
यकायक पनपा नव धना वग भी िदखता ह।
रचनाकार (कथाकार, किव) इन थितय म
मूक ा नह हो सकता ह इसिलए वह
अपनी शद-सामय क उपयोिगता िस
करता ह। कमर मेवाड़ी अपनी किवता म
जीवन क महज उवल प क बात नह
करना चाहते ह, यिक उह आम आदमी क
िज़ंदगी का याह प यादा अपील करता ह।
चाह वह समाज क अंितम पं का य
हो अथवा जेठ क दुपहरी म तपता इसान हो
या अपने वत सपने को याद करती कोई
सयानी लड़क हो किव क संवेदना पाठक
को भी भाव-िवभोर कर देती ह। किव क
संवेदना िजतनी सम गत ह, उतनी ही
य गत भी ह। एक साधारण य क
सामािजक हिसयत क िवशेष िचंता यहाँ किव
क ह इसीिलए वे अकलेपन क दद क
अनुभूित का संवेदनशील वणन करते ह,
यथा-"पर दोत/यह मेरी पराजय नह / वत
क गहरी सािज़श ह जो मुझे, अपने अकलेपन
क दद का/अहसास कराने म कछ भी
बचाकर नह रखना चाहती।" यह किव क
कवल भावुकता नह ह ब क एक ऐसा सच
ह िजसका सामना उ क ढलती साँझ म सभी
को करना पड़ता ह। यह हमार जीवन का ऐसा
मोड़ होता ह जहाँ थोड़ा ठहराव होता ह एवं
उसी म हम अपने बीते समय को ढ ढ़ना चाहते
ह। यह नॉट जया कभी-कभी य क
जीवन म उजा का संचार भी करता ह,
इसीिलए किव इन ण क साथकता कछ यूँ
िलखता ह- "तब हम / िकसी गुलमोहर क
नीचे / एक बार िफर िमलगे / और एक-दूसर
क घाव को सहलाते ए / अतीत क मुदा
याद को/ िफर से िज़ंदा कर दग।"
आधुिनकता और भौितकवाद क
अितशयता से आज य इतना घबरा चुका
ह िक उसे मानिसक सुकन शायद अछ बीते
जीवन क संिचत यादे ही दे सक। इसका
अनुमान इसी से लगा सकते ह िक यहाँ किव
कमर मेवाड़ी ऐसे ण क िलए यव थत
कमर से अिधक गुलमोहर क छाँव का
आसरा लेते ह। उह आज क य क
चालािकयाँ बत यिथत करती ह लेिकन
उनक किवता म सदैव साधारण सन
य क तलाश िदखाई देती ह। यह किव
क आथा और आशा ह "आमीयता,
अपनव और यार जैसे शद / वाथ का
लबादा ओढ़कर / इितहास क अँधेर म खो
गए ह। पर मेरी नज़र म/ आज भी इन शद
का वजन ह।" यहाँ िजतनी तलाश संबंध को
बचाने क ह उतनी ही िचंता उनक पावनता
क खो जाने क भी ह। किव अपने जीवन म
कई पड़ाव को पार करता आ आगे बढ़ता ह
तथा हर कदम एक नया अनुभव साथ जुड़ता
चलता ह। रचनाकार का यायावर होना वयं
को िभ?-िभ? अनुभव से पु? करना होता ह
म िनसंदेह कमर मेवाड़ी क सप किव
होने क पृ?भूिम यही रही ह। वे अपने जीवन
म िकिचत सुख और अकत यातना क दौर
से िनरतर गुज़रते रह ह। उनक रचनामकता
म चर-अचर का सौदय इसका माण ह िक

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 202511 10 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2025
वे इस िवपरीत समय म भी दुिनया को कसे
देखते ह या िकस नई दुिनया क कपना करते
ह। यहाँ किव क अपनी उमीद ह- "कहने
को सब कछ ह / रहने को दड़बा / खाने को
रोटी / सहलाने को ज़म / बात करने को
दोत / और वत काटने क िलए / िकताब।
एक संतु? आदमी क जीवन क ये यूनतम
ज़रत ह िजससे वह अपनी जीवन याा
सुगम करता ह। किव को यहाँ उस बात का भी
लगातार अफसोस ह िक साधारण मनुय का
जीवन िनरतर किठन होता जा रहा ह।
कमर मेवाड़ी अपनी किवता क भाषा
को बत सरल रखते ह, इससे उनक काय
का कय पाठक क िलए ा रहता ह।
तीक और िबंब क मायम से नह ब क
सीधे-सीधे कहने म वे अिधक िवास रखते
ह। उनका यह मानना ह िक समाज क िजस
य क िलए वे िलख रह ह उसको समझने
म पाठक को किठनाई नह हो। िनन और
हािशये क लोग क िलए उथान-चेतना इसी
रचनामकता से संभव हो सकगी। आिख़र
दिलत और िकनार क समुदाय क नैितक-
िन?ा तथा ईमानदारी पर सय लोग को
िवास म लेना भी रचनाकार का दाियव ह,
इसे किव ने "एक किव क याा" किवता म
अिभय िकया ह- "जो बत यादा
िववादापद था / अपनी किवता क कारण
/ आज नह रहा / चला गया वह / लोग क
कध पर सवार होकर।" यिद जीवन क
अंितम परणित तक िकसी अम पर िवास
नह कर पाये यह समाज तो हम अपने आप
को सुखी नह समझना चािहए। आगे इसी
किवता म यह भी उेख िकया गया ह- "पर
वह अहकारी तो कतई नह था / उसने िलखी
थ अनेक किवताएँ / िपछड़-कचले लोग क
समथन म/ हाँ, वही किव / जो आते-जाते /
कभी-कभी णाम भी करता था आपको।"
यहाँ किव ने बतौर किव एक साधारण य
क अवदान योयता को रखांिकत िकया ह।
सामाय मनुय जीवन क इस आपा-धापी
म अपनी नई पहचान बनाने क सपने बुनता ह
लेिकन उसक वातिवक चुनौितयाँ वयं का
मौिलक अ तव बचा लेने क भी हो जाती
ह। संघष म उसक थकान का मूय उसे
िमलेगा और वह अपनी लड़ाई क जीत का
वाद भी अनुभव करगा, यह किव क
आ त भी ह और उसक रचना का अंितम
लय भी। िस दिण अ क अेत
किव बजािमन मोलाइसे को फाँसी देने पर
किव क िवचार पाठक को उेिलत नह करते
ब क अिभय क आज़ादी एवं भाईचार
क संदेश देते ह। उनका यह कहना बत
साथक ह िक "पर बजािमन / तुह फाँसी पर
लटका देने क बावजूद / तुम िज़ंदा हो /
तुहारी किवता अजर-अमर ह।" कोई
रचनाकार कायर सा क कारण चाह समा
कर िदया जाए िकतु पाठक और जन-समुदाय
म उसक रचनाएँ अपनी वाणी को कभी मूक
नह होने देती ह।
अब समाज का पुराना वगकरण यिप
नह िदखता हो िकतु इस तकनीक क दुिनया
म रहने वाले य का समाज बत बदल
चुका ह। मनुयता क क़मत पर ही सभी
कार क पा िदखाई दे रही ह, इसिलए
यहाँ किव उस मनुय को बचा लेने का
आ?ान करता ह िजससे यह दुिनया िनरतर
नई होती जा रही ह। किव यहाँ प करता ह
िक चाह िकतने ही बजािमन मार िदये जाएँ
अथवा िकतने ही एकलय को तािड़त होना
पड़ अब याय उनक प म आने वाला ह।
किव का यह आशावाद िनसंदेह पाठक को
चेतन करता ह।
पुतक क आरभ म ? िलोक मोहन
पुरोिहत ने साथक ाकथन िलखकर
किवता पर अपनी मूयांकनपरक िटपणी
से किव ी कमर मेवाड़ी क रचनामकता से
पाठक को परिचत कराया ह। डॉ. मनोहर
भाकर ने कमर मेवाड़ी जी क किवता क
ासंिगकता को रखांिकत करते ए उनक
सािह यक अवदान क चचा क ह तथा
समय-समय पर िमलती रहने वाली उनक
सािह यक-सियता का महव भी दशाया
गया ह। अतु किव ी कमर मेवाड़ी का यह
काय-संह िहदी पाठक-जग म पया
समान ?? करगा।
000
फाम IV
समाचार प क अिधिनयम 1956 क धारा
19-डी क अंतगत वािमव व अय िववरण
(देख िनयम 8)।
पिका का नाम : िशवना सािह यक
1. काशन का थान : पी. सी. लैब, शॉप नं.
3-4-5-6, साट कॉ लैस बेसमट, बस
टड क सामने, सीहोर, म, 466001
2. काशन क अविध : ैमािसक
3. मुक का नाम : बैर शेख़।
पता : शाइन िंटस, लॉट नं. 7, बी-2,
?ािलटी परमा, इिदरा ेस कॉ लैस,
ज़ोन 1, एमपी नगर, भोपाल, म 462011
या भारत क नागरक ह : हाँ।
(यिद िवदेशी नागरक ह तो अपने देश का
नाम िलख) : लागू नह।
4. काशक का नाम : पंकज कमार पुरोिहत।
पता : पी. सी. लैब, शॉप नं. 3-4-5-6, साट
कॉ लैस बेसमट, बस टड क सामने,
सीहोर, म, 466001
या भारत क नागरक ह : हाँ।
(यिद िवदेशी नागरक ह तो अपने देश का
नाम िलख) : लागू नह।
5. संपादक का नाम : पंकज सुबीर।
पता : रघुवर िवला, सट एस कल क
सामने, चाणयपुरी, सीहोर, म 466001
या भारत क नागरक ह : हाँ।
(यिद िवदेशी नागरक ह तो अपने देश का
नाम िलख) : लागू नह।
4. उन य य क नाम / पते जो समाचार
प / पिका क वािमव म ह। वामी का
नाम : पंकज कमार पुरोिहत। पता : रघुवर
िवला, सट एस कल क सामने,
चाणयपुरी, सीहोर, म 466001
या भारत क नागरक ह : हाँ।
(यिद िवदेशी नागरक ह तो अपने देश का
नाम िलख) : लागू नह।
म, पंकज कमार पुरोिहत, घोषणा करता िक
यहाँ िदए गए तय मेरी संपूण जानकारी और
िवास क मुतािबक सय ह।
िदनांक 11 माच 2024
हतार पंकज कमार पुरोिहत
(काशक क हतार)
िवषमता को रखांिकत करती ह एवं समाज
और य क अतसंबंध का महव-
ितपादन भी करती ह। इसानी जीवन क
हक़क़त कमर मेवाड़ी क किवता का
क ीय िवषय रहा ह। इस संह क पहली ही
किवता म क दुिनया म मज़दूर क जीवन म
?िशयाँ ढ ढ़ती ह। यहाँ किव हमार जीवन म
िमक क अतुलनीय भूिमका को रखांिकत
करता ह इसका आशय यह भी ह िक समाज म
मयम और उ वग का अ तव सवहारा
और िमक वग क िबना संभव नह ह।
असल म "मज़दूर किवता म क महा क
अिभय ह। इसम किव ने िमक वग क
ित सय समाज क उपेा पर िचंता भी
जताई ह िक यिद िकसी िदन इस वग ने अपना
मूल काम छोड़ िदया तो यह सुंदर िदखती
दुिनया मटमैली हो जाएगी। अपने जीवन म
"नए भोर क तीा" िकसे नह होती ह। हर
य मेहनत क परणाम म सुख और
सुिवधा ही चाहता ह। लेिकन चंद समृ वग
क ही भाय म ये सुख य िलखा रहता ह?
यह न किव का ह और इसका उर वह
आज क समाज से चाहता ह। यह भी सच ह
िक अनु रत न अनपेित जोिखम से भी
भर होते ह। जब िनन वग या हािशये क लोग
अपने अिधकार क िलए एक हो जाएँग तो यह
िकसी ांित से कम नह होगा। अभी जो शांित
िदख रही ह वह शायद िकसी नई शुआत का
थान िबंदु हो, इससे हम बेख़बर नह रहना
चािहए। " म का बादशाह" किवता आज क
तथाकिथत संात समाज को सजग करती ह
िक समाज क अँधेर कोने क पड़ लोग को
शोषण और दमन से मु का राता अब
िदखाई देने लगा ह। जीवन म अभाव और
संघष क उनक कहानी को ख़म करना
उनक ही बूते क बात ह। इसक िलए उह
अब िकसी क आा या आदेश क ज़रत
नह ह। अब उह यह भी समझ म आने लगा
ह िक अपने अिधकार को िकस िविध से ??
िकया जा सकता ह। सबसे मुय बात यह ह
िक एक साधारण य अपने समाज म बत
यूनतम आवयकता से गुज़र-बसर करता
ह, लेिकन उसे यह भी आसानी से नह िमलता
ह। "सुना तुमने" किवता का तुलछा भील,
पेमा क हार और नूरा हमाल उस मेहनतकश
वग का ितिनिधव करते ह जो वातव म
पानी से यादा अपने पसीने से जीवन क
फ़सल पकाते ह।
कमर मेवाड़ी अपनी किवता म आज
क दुिनया क एक ऐसी तवीर िदखाते ह जो
बत खरी और सी होकर िवसनीय भी
होती ह। उनक िलए आम आदमी िवशेष िचंता
का िवषय रहता ह, इसीिलए वे बत क़रीब से
उसक जीवन क को देखने और समझने
क िया से गुज़रते ह। साधारण मनुय क
जीवन और संांत य क जीवन का जो
िदखता िदखाता अंतर ह उसे वे पूरी ईमानदारी
एवं मानवीय नैितकता से अिभय करते ह।
समाज का कमज़ोर वग उनक किवता क
ताक़त बनता ह, इसीिलए उह इस वग पर पूरा
भरोसा ह िक अपने हक क िलए उह िकसी
और क आसर क ज़रत नह ह। वे वत क
बादशाह ह किवता आज क य क दप-
कथा क दाण अंत क ओर संकत करती ह,
िजसम किव ने काल गित क महव क दशाया
ह। दरअसल कमर मेवाड़ी राजथान क एक
छोट क़बे क रचनाकार ह जहाँ उह छोट-
से-छोट वग का य भी िदखता ह और
यकायक पनपा नव धना वग भी िदखता ह।
रचनाकार (कथाकार, किव) इन थितय म
मूक ा नह हो सकता ह इसिलए वह
अपनी शद-सामय क उपयोिगता िस
करता ह। कमर मेवाड़ी अपनी किवता म
जीवन क महज उवल प क बात नह
करना चाहते ह, यिक उह आम आदमी क
िज़ंदगी का याह प यादा अपील करता ह।
चाह वह समाज क अंितम पं का य
हो अथवा जेठ क दुपहरी म तपता इसान हो
या अपने वत सपने को याद करती कोई
सयानी लड़क हो किव क संवेदना पाठक
को भी भाव-िवभोर कर देती ह। किव क
संवेदना िजतनी सम गत ह, उतनी ही
य गत भी ह। एक साधारण य क
सामािजक हिसयत क िवशेष िचंता यहाँ किव
क ह इसीिलए वे अकलेपन क दद क
अनुभूित का संवेदनशील वणन करते ह,
यथा-"पर दोत/यह मेरी पराजय नह / वत
क गहरी सािज़श ह जो मुझे, अपने अकलेपन
क दद का/अहसास कराने म कछ भी
बचाकर नह रखना चाहती।" यह किव क
कवल भावुकता नह ह ब क एक ऐसा सच
ह िजसका सामना उ क ढलती साँझ म सभी
को करना पड़ता ह। यह हमार जीवन का ऐसा
मोड़ होता ह जहाँ थोड़ा ठहराव होता ह एवं
उसी म हम अपने बीते समय को ढ ढ़ना चाहते
ह। यह नॉट जया कभी-कभी य क
जीवन म उजा का संचार भी करता ह,
इसीिलए किव इन ण क साथकता कछ यूँ
िलखता ह- "तब हम / िकसी गुलमोहर क
नीचे / एक बार िफर िमलगे / और एक-दूसर
क घाव को सहलाते ए / अतीत क मुदा
याद को/ िफर से िज़ंदा कर दग।"
आधुिनकता और भौितकवाद क
अितशयता से आज य इतना घबरा चुका
ह िक उसे मानिसक सुकन शायद अछ बीते
जीवन क संिचत यादे ही दे सक। इसका
अनुमान इसी से लगा सकते ह िक यहाँ किव
कमर मेवाड़ी ऐसे ण क िलए यव थत
कमर से अिधक गुलमोहर क छाँव का
आसरा लेते ह। उह आज क य क
चालािकयाँ बत यिथत करती ह लेिकन
उनक किवता म सदैव साधारण सन
य क तलाश िदखाई देती ह। यह किव
क आथा और आशा ह "आमीयता,
अपनव और यार जैसे शद / वाथ का
लबादा ओढ़कर / इितहास क अँधेर म खो
गए ह। पर मेरी नज़र म/ आज भी इन शद
का वजन ह।" यहाँ िजतनी तलाश संबंध को
बचाने क ह उतनी ही िचंता उनक पावनता
क खो जाने क भी ह। किव अपने जीवन म
कई पड़ाव को पार करता आ आगे बढ़ता ह
तथा हर कदम एक नया अनुभव साथ जुड़ता
चलता ह। रचनाकार का यायावर होना वयं
को िभ?-िभ? अनुभव से पु? करना होता ह
म िनसंदेह कमर मेवाड़ी क सप किव
होने क पृ?भूिम यही रही ह। वे अपने जीवन
म िकिचत सुख और अकत यातना क दौर
से िनरतर गुज़रते रह ह। उनक रचनामकता
म चर-अचर का सौदय इसका माण ह िक

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 202513 12 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2025
िमलने क संग क मायम से प िकया
गया ह िक वह देिवका को भारत भेजने क
िलए य तैयार हो गया था। देिवका िशवेन पर
माँ क भाव से य दुखी ह, इसे इस अयाय
म प िकया गया ह। िववाह संबंधी ी-
पुष क सोच को िदखाया ह - "शादी क
सबसे बड़ी िवडबना यह ह िक लड़िकयाँ
हनीमून को लेकर उसािहत रहती ह और
लड़क सुहागरात को लेकर।"
यही िशवेन और देिवका क बीच मुय
समया ह।
छठ अयाय 'तुम िबन दूजा ठौर नह' म
देिवका क जाने क बाद िशवेन देिवका क
बात और आदत को याद करता ह, सुदीप
और योित क मायम से दार-ए-सलाम क
लोग और भाषा को िदखाया गया ह। िशवेन
पर उसक माँ क भाव और माँ क यवहार
को प िकया गया ह। सुदीप क मायम से
िशवेन ेम को समझता ह।
सातव अयाय 'ेम रोग हो गया' म
देिवका मृदुला क साथ उसक घर आती ह
और सुनीता से िमलती ह और तीन क कहानी
बताती ह िक समाज बेिटय क ित र ह।
िशवेन और देिवका अतीत को जीते ह और
यह अयाय देिवका और िशवेन क बीच घट
ेम भर लह को िदखाता ह। बात-बात पर
चूमने क संग बताते ह िक िशवेन यवहार से
उतना बोरग नह, िजतना िक अब तक िदख
रहा था।
आठवाँ अयाय 'तेर िबना िजया लागे न'
सातव अयाय का िवतार ह। देिवका अतीत
को याद करती ह और उसे एहसास होता ह िक
िशवेन क याद को लश करना संभव नह।
ेम म िजए गए लह का िचण इस अयाय
म भी ह, साथ ही िशवेन का काम क ित
लगाव भी िदखाया गया ह, जो उन दोन क
बीच कलह का कारण ह, िशवेन का संतान
चाहना भी देिवका को उससे दूर ले जाने का
कारण बताया गया ह। इस अयाय म िपता का
प भी रखा गया ह। मृदुला क घर पर रहते
ए देिवका समाचार क मायम से देश म
होते बलाकार पर चचा करती ह। मनुय क
मनुय होने पर संदेह य िकया गया ह -
"कभी-कभी लगता ह, हम मनुय नह, हम
मा देह ह।"
देिवका बचपन से ही लड़क क
वतंता और लड़िकय पर लगी पाबंिदय
को लेकर िवरोध करती आई ह। पुष क ित
उसक सोच का आधार िपता और भाइय का
यवहार बताया गया ह। 'द सेकड सेस'
पुतक क लेिखका और नारी वतंता क
पधर 'िसमोन द बोउआर' का िज़ ह।
'काका' क ेम क परभाषा दी गई और
इनक साथ आजी का ेम को लेकर
यावहारक ान ह। दूसरी तरफ़ िशवेन क
कॉल िलट म माँ क िमड काल का बढ़ना,
िशवेन का परशान होना, िशवेन क थित को
बताता ह, तो िशवेन क भाभी का तंज भारतीय
समाज म ेम िवरोिधय क चर को िदखाता
ह। इस अयाय म तंज़ािनया और अ क
लोग क बार म भी बताया गया ह।
नौव अयाय 'िवूप िक़सागोई' म ब
क साथ होने वाले यौन शोषण को िवषय
बनाया गया ह। लड़िकय क नौकरी को लेकर
भारतीय और पााय समाज का तुलनामक
वणन ह। देिवका क लेखक प को उभारा
गया ह। िशवेन अधीर ह, लेिकन मृदुला थोड़ा
वत और दूर रहने को कहती ह। दसव
अयाय 'न भेजी गई िच याँ' िशवेन क
थित का िचण ह। सुदीप और योित क
महवपूण भूिमका को िदखाया गया ह। िशवेन
देिवका को िच याँ भेजता ह, लेिकन
देिवका उर नह देती - "देिवका का मन न
भेजी गई िच य का िलफ़ाफ़ा ह।"
देिवका जो िशवेन क याद से परशान
रहती ह, एक वन क बाद िशवेन क ित
लगाव को महसूस करती ह - "वन का या
अथ हो सकता ह ?
उसक भीतर तड़प उठी ह, िशवेन क।
एच बी ओ पर 'ओरिजनल िसन' आ रहा ह,
उसक हाथ वतः ही देह क कोने तहखाने
टटोलने लगे, आँख बंद हो ग, वह िशवेन को
महसूस कर रही थी, अपने ऊपर।"
यारहव अयाय 'िसतार का िमलन' म
ेम और िववाह पर चचा ह और ी-पुष
दोन क नज़रये को िदखाया गया ह। गुताव
यंग क िववाह को लेकर कह गए वतय को
भी िदया गया ह। ेम िववाह और सांथािनक
िववाह क तुलना भी इस अयाय म ह। इस
अयाय म मृदुला अपना रहय देिवका क
सामने खोलती ह।
अंितम अयाय 'तेरह वष बाद' म िशवेन
और देिवका मृदुला जी घर आए ए ह और वे
बताते ह िक नक-झक जारी ह, लेिकन ये
नक-झक ेम का वाद बढ़ाए ए ह।
यह उपयास देिवका और िशवेन क
वैवािहक संबंध पर आधारत ह, इसिलए यही
दो पा धान ह, लेिकन मृदुला नामक औरत
इनक िबखरते दांपय को सँभालने म
महवपूण भूिमका िनभाती ह। सुदीप और
योित क भूिमका भी सकारामक ह, जबिक
िशवेन क माँ और भाभी नकारामक भूिमका
म ह। िशवेन क माँ का चर अय पा क
बात क जरए प होता ह। देिवका क ताऊ
जी क समझदारी देिवका-अदीब क ेम
संग क समय िदखाई गई ह। देिवका क मृत
माँ कथावाचक क प म मौजूद ह तो आजी
और बाबा क बार म भी वणन ह। देिवका क
िवोही चर को िदखाते ए लेिखका पुष
क मानिसकता को िदखाती ह। लेिखका ने
देिवका क चर का हर पहलू इस उपयास म
िदखाया ह। लेिखका ने उसक िजदीपन और
गुसैल वभाव को िदखाया ह। देिवका िसफ़
सैल और िज़द ही नह नासमझ भी ह।
उपयास क शुआत म ही लेिखका देिवका
क शौक क बार म बताती ह। उसे लॉजरी का
शौक ह और उसक मॉडल बनने क तम?ा
को िदखाया गया ह। साथ ही यह भी प
िकया गया ह िक उसक पास अपने चुनाव क
िलए कोई तक नह। लेिखका बताती ह िक
देिवका को ऑनलाइन चैिटग क लत ह और
इसी लत क चलते वह िशवेन से िमलती ह।
कथावाचक अपनी बेटी क साथ-साथ
िशवेन क चर को उ?ािटत करती ह। शरीर
सौव और गुण क वणन क ारा भी चर
का वणन िकया गया ह। उपयास का मुय
िवषय दो ेिमय क वैवािहक बंधन म बँधने
क बाद आनेवाली समय को लेकर ह,
इसिलए ेम और िववाह को लेकर लेिखका
शोध-आलोचना
(उपयास)
साज-बाज़
समीक : डॉ. िदलबागिसंह िवक
लेखक : ियंका ओम
काशक : भात काशन, नई
?·??
भात काशन से कािशत 'साज-बाज़' ियंका ओम का पहला उपयास ह, लेिकन
अनुम को देखकर यह कहानी-संह लगता ह, यिक अयाय क नाम कहािनय क नाम
लगते ह। इतना ही नह, उपयास क आरिभक पृ पर इसे उपयास नह कहा गया। हाँ,
भूिमका म लेिखका इसे उपयास कहते ए इसक पा देिवका और िशवेन म द और अपने
पित ओम को देखते ए इसे उन लोग क कहानी कहती ह िजहने अह से ऊपर ेम को चुना।
लेिखका ने इसे ीवादी रचना न मानते ए ेमवाद क कहानी कहा ह। उपयास क टग लाइन
'एक ेम ही तमाम दोष का िनवारण ह' भी इसको ेम पर आधारत उपयास ठहराती ह।
लेिखका देिवका क मृत माँ क प म कहानी कहती ह।
उपयास क शुआत 'आमहया क हया' अयाय से होती ह। देिवका आमहया करना
चाह रही ह, यिक उसक िशवेन से अनबन हो गई ह, हालाँिक अनबन का कारण बड़ा मामूली
ह। लेिखका ने इस अयाय म देिवका और िशवेन क चर-िचण ारा प िकया ह िक यह
उपयास एक दंपित क संबंध पर आधारत ह। ेम को परभािषत करते ए िज़ंदगी क संदभ म
ेम को देखा गया ह। लेिखका कथावाचक क ज़रए कहती ह िक िफमी गीत म भले ही
िज़ंदगी ेम से चलती ह, लेिकन वातव म एडजटमट से चलती ह। ेम िववाह और
संथािनक िववाह यानी अरज मैरज पर चचा क ह और देिवका िववाह को सात जम का
बंधन नह मानती।
दूसरा अयाय 'ग़ैर-ज़री कहानी' अपने नाम क अनुसार उपयास म ग़ैर ज़री तो नह
लेिकन इसका महव परो ह। लेिखका संथागत िववाह क परपाटी क मायम से देिवका क
नारीवादी सोच को प िकया ह, साथ ही िशवेन क ित ेम को भी िदखाया गया ह। लेिखका
ने इस अयाय म पुष- ी क समानता क बात रखी ह।
तीसरा अयाय 'यार, बेकार बेकाम क चीज़ ह' म देिवका और िशवेन क थम िमलन को
िदखाते ए देिवका क पहले ेम का वणन ह, िजसम वह िवधम अदीब से यार कर बैठती ह।
इस अयाय म सखा सम भाई सा वक और बहन सारका क संग तक-िवतक क मायम से
िहदू और इलाम धम क बुराइयाँ पर गहन चचा ई ह, अंेज़ी सािहयकार क कहन और
कबीर को उृत िकया ह। देिवका-अदीब क संबंध िवछद का कारण भी इलाम क करीित
को ठहराया गया ह, िजसे देिवका जैसा य व वीकार नह कर सका!
चौथा अयाय 'शादी बरबादी' सारका ारा कह वाय "ेिमका क माँग म िसंदूर भरते ही
पुष ेमी से पित म ांफॉम हो जाते ह, यादा उमीद मत पालना।" का िवतार ह। यह
अयाय शादी क तुरत बाद संबंध म पैदा ई कड़वाहट को िदखाता ह, िजसका कोई बड़ा
कारण नह। हाँ, देिवका िशवेन से ेिमल यवहार क माँग करती ह, िजसे िशवेन कही-कह
मानता भी ह, लेिकन वह हर पल रोमांिटक नह रह पाता। देिवका को िशवेन क माँ क तरफ़
झुकाव से दुखी िदखाना भी लेिखका का मक़सद ह, हालाँिक लेिखका ने इस अयाय म इसे पूरी
तरह से खोला नह। इस अयाय क शु म लेिखका ने िशवेन और देिवका क ेम को िववाह
तक प चाया ह और नाराज़गी क बाद िशवेन उसे भारत जाने क िलए एयरपोट पर छोड़ने जा
रहा ह, इस अलगाव से दोन ही दुखी ह, ना देिवका जाना चाहती ह और न िशवेन भेजना चाहता
ह लेिकन देिवका जा रही ह, यह अलगाव िनयित ह!
पाँचव अयाय 'बैक फॉरवड' म देिवका भारत वापस आ रही ह। िशवेन चाहता ह िक
देिवका क लेिकन वह रोकता नह। देिवका अतीत म गोते लगाते ए उन संग को याद करती
ह, जो उनक िववाद का कारण हो सकते ह, लेिकन उसे जो कारण िदखता ह, वह इतना बड़ा
नह िक संबंध िवछद हो जाए। देिवका घर लौटने क बजाए मृदुला नामक औरत क साथ हो
लेती ह, यिक िपता ने उसे अपनाने से इकार कर िदया ह। िपता देिवका क ेम िववाह से
ना?श थे, यिक वे समाज से नाश थे और इसे आजी एक पुराने संग क मायम से प
करती ह। इस अयाय म दो िदन पूव क कहानी उपशीषक क ारा िशवेन क मृदुला िसहा से
डॉ. िदलबागिसंह िवक
मोबाइल- 87085-46183
ईमेल- [email protected]

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 202513 12 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2025
िमलने क संग क मायम से प िकया
गया ह िक वह देिवका को भारत भेजने क
िलए य तैयार हो गया था। देिवका िशवेन पर
माँ क भाव से य दुखी ह, इसे इस अयाय
म प िकया गया ह। िववाह संबंधी ी-
पुष क सोच को िदखाया ह - "शादी क
सबसे बड़ी िवडबना यह ह िक लड़िकयाँ
हनीमून को लेकर उसािहत रहती ह और
लड़क सुहागरात को लेकर।"
यही िशवेन और देिवका क बीच मुय
समया ह।
छठ अयाय 'तुम िबन दूजा ठौर नह' म
देिवका क जाने क बाद िशवेन देिवका क
बात और आदत को याद करता ह, सुदीप
और योित क मायम से दार-ए-सलाम क
लोग और भाषा को िदखाया गया ह। िशवेन
पर उसक माँ क भाव और माँ क यवहार
को प िकया गया ह। सुदीप क मायम से
िशवेन ेम को समझता ह।
सातव अयाय 'ेम रोग हो गया' म
देिवका मृदुला क साथ उसक घर आती ह
और सुनीता से िमलती ह और तीन क कहानी
बताती ह िक समाज बेिटय क ित र ह।
िशवेन और देिवका अतीत को जीते ह और
यह अयाय देिवका और िशवेन क बीच घट
ेम भर लह को िदखाता ह। बात-बात पर
चूमने क संग बताते ह िक िशवेन यवहार से
उतना बोरग नह, िजतना िक अब तक िदख
रहा था।
आठवाँ अयाय 'तेर िबना िजया लागे न'
सातव अयाय का िवतार ह। देिवका अतीत
को याद करती ह और उसे एहसास होता ह िक
िशवेन क याद को लश करना संभव नह।
ेम म िजए गए लह का िचण इस अयाय
म भी ह, साथ ही िशवेन का काम क ित
लगाव भी िदखाया गया ह, जो उन दोन क
बीच कलह का कारण ह, िशवेन का संतान
चाहना भी देिवका को उससे दूर ले जाने का
कारण बताया गया ह। इस अयाय म िपता का
प भी रखा गया ह। मृदुला क घर पर रहते
ए देिवका समाचार क मायम से देश म
होते बलाकार पर चचा करती ह। मनुय क
मनुय होने पर संदेह य िकया गया ह -
"कभी-कभी लगता ह, हम मनुय नह, हम
मा देह ह।"
देिवका बचपन से ही लड़क क
वतंता और लड़िकय पर लगी पाबंिदय
को लेकर िवरोध करती आई ह। पुष क ित
उसक सोच का आधार िपता और भाइय का
यवहार बताया गया ह। 'द सेकड सेस'
पुतक क लेिखका और नारी वतंता क
पधर 'िसमोन द बोउआर' का िज़ ह।
'काका' क ेम क परभाषा दी गई और
इनक साथ आजी का ेम को लेकर
यावहारक ान ह। दूसरी तरफ़ िशवेन क
कॉल िलट म माँ क िमड काल का बढ़ना,
िशवेन का परशान होना, िशवेन क थित को
बताता ह, तो िशवेन क भाभी का तंज भारतीय
समाज म ेम िवरोिधय क चर को िदखाता
ह। इस अयाय म तंज़ािनया और अ क
लोग क बार म भी बताया गया ह।
नौव अयाय 'िवूप िक़सागोई' म ब
क साथ होने वाले यौन शोषण को िवषय
बनाया गया ह। लड़िकय क नौकरी को लेकर
भारतीय और पााय समाज का तुलनामक
वणन ह। देिवका क लेखक प को उभारा
गया ह। िशवेन अधीर ह, लेिकन मृदुला थोड़ा
वत और दूर रहने को कहती ह। दसव
अयाय 'न भेजी गई िच याँ' िशवेन क
थित का िचण ह। सुदीप और योित क
महवपूण भूिमका को िदखाया गया ह। िशवेन
देिवका को िच याँ भेजता ह, लेिकन
देिवका उर नह देती - "देिवका का मन न
भेजी गई िच य का िलफ़ाफ़ा ह।"
देिवका जो िशवेन क याद से परशान
रहती ह, एक वन क बाद िशवेन क ित
लगाव को महसूस करती ह - "वन का या
अथ हो सकता ह ?
उसक भीतर तड़प उठी ह, िशवेन क।
एच बी ओ पर 'ओरिजनल िसन' आ रहा ह,
उसक हाथ वतः ही देह क कोने तहखाने
टटोलने लगे, आँख बंद हो ग, वह िशवेन को
महसूस कर रही थी, अपने ऊपर।"
यारहव अयाय 'िसतार का िमलन' म
ेम और िववाह पर चचा ह और ी-पुष
दोन क नज़रये को िदखाया गया ह। गुताव
यंग क िववाह को लेकर कह गए वतय को
भी िदया गया ह। ेम िववाह और सांथािनक
िववाह क तुलना भी इस अयाय म ह। इस
अयाय म मृदुला अपना रहय देिवका क
सामने खोलती ह।
अंितम अयाय 'तेरह वष बाद' म िशवेन
और देिवका मृदुला जी घर आए ए ह और वे
बताते ह िक नक-झक जारी ह, लेिकन ये
नक-झक ेम का वाद बढ़ाए ए ह।
यह उपयास देिवका और िशवेन क
वैवािहक संबंध पर आधारत ह, इसिलए यही
दो पा धान ह, लेिकन मृदुला नामक औरत
इनक िबखरते दांपय को सँभालने म
महवपूण भूिमका िनभाती ह। सुदीप और
योित क भूिमका भी सकारामक ह, जबिक
िशवेन क माँ और भाभी नकारामक भूिमका
म ह। िशवेन क माँ का चर अय पा क
बात क जरए प होता ह। देिवका क ताऊ
जी क समझदारी देिवका-अदीब क ेम
संग क समय िदखाई गई ह। देिवका क मृत
माँ कथावाचक क प म मौजूद ह तो आजी
और बाबा क बार म भी वणन ह। देिवका क
िवोही चर को िदखाते ए लेिखका पुष
क मानिसकता को िदखाती ह। लेिखका ने
देिवका क चर का हर पहलू इस उपयास म
िदखाया ह। लेिखका ने उसक िजदीपन और
गुसैल वभाव को िदखाया ह। देिवका िसफ़
सैल और िज़द ही नह नासमझ भी ह।
उपयास क शुआत म ही लेिखका देिवका
क शौक क बार म बताती ह। उसे लॉजरी का
शौक ह और उसक मॉडल बनने क तम?ा
को िदखाया गया ह। साथ ही यह भी प
िकया गया ह िक उसक पास अपने चुनाव क
िलए कोई तक नह। लेिखका बताती ह िक
देिवका को ऑनलाइन चैिटग क लत ह और
इसी लत क चलते वह िशवेन से िमलती ह।
कथावाचक अपनी बेटी क साथ-साथ
िशवेन क चर को उ?ािटत करती ह। शरीर
सौव और गुण क वणन क ारा भी चर
का वणन िकया गया ह। उपयास का मुय
िवषय दो ेिमय क वैवािहक बंधन म बँधने
क बाद आनेवाली समय को लेकर ह,
इसिलए ेम और िववाह को लेकर लेिखका
शोध-आलोचना
(उपयास)
साज-बाज़
समीक : डॉ. िदलबागिसंह िवक
लेखक : ियंका ओम
काशक : भात काशन, नई
?·??
भात काशन से कािशत 'साज-बाज़' ियंका ओम का पहला उपयास ह, लेिकन
अनुम को देखकर यह कहानी-संह लगता ह, यिक अयाय क नाम कहािनय क नाम
लगते ह। इतना ही नह, उपयास क आरिभक पृ पर इसे उपयास नह कहा गया। हाँ,
भूिमका म लेिखका इसे उपयास कहते ए इसक पा देिवका और िशवेन म द और अपने
पित ओम को देखते ए इसे उन लोग क कहानी कहती ह िजहने अह से ऊपर ेम को चुना।
लेिखका ने इसे ीवादी रचना न मानते ए ेमवाद क कहानी कहा ह। उपयास क टग लाइन
'एक ेम ही तमाम दोष का िनवारण ह' भी इसको ेम पर आधारत उपयास ठहराती ह।
लेिखका देिवका क मृत माँ क प म कहानी कहती ह।
उपयास क शुआत 'आमहया क हया' अयाय से होती ह। देिवका आमहया करना
चाह रही ह, यिक उसक िशवेन से अनबन हो गई ह, हालाँिक अनबन का कारण बड़ा मामूली
ह। लेिखका ने इस अयाय म देिवका और िशवेन क चर-िचण ारा प िकया ह िक यह
उपयास एक दंपित क संबंध पर आधारत ह। ेम को परभािषत करते ए िज़ंदगी क संदभ म
ेम को देखा गया ह। लेिखका कथावाचक क ज़रए कहती ह िक िफमी गीत म भले ही
िज़ंदगी ेम से चलती ह, लेिकन वातव म एडजटमट से चलती ह। ेम िववाह और
संथािनक िववाह यानी अरज मैरज पर चचा क ह और देिवका िववाह को सात जम का
बंधन नह मानती।
दूसरा अयाय 'ग़ैर-ज़री कहानी' अपने नाम क अनुसार उपयास म ग़ैर ज़री तो नह
लेिकन इसका महव परो ह। लेिखका संथागत िववाह क परपाटी क मायम से देिवका क
नारीवादी सोच को प िकया ह, साथ ही िशवेन क ित ेम को भी िदखाया गया ह। लेिखका
ने इस अयाय म पुष- ी क समानता क बात रखी ह।
तीसरा अयाय 'यार, बेकार बेकाम क चीज़ ह' म देिवका और िशवेन क थम िमलन को
िदखाते ए देिवका क पहले ेम का वणन ह, िजसम वह िवधम अदीब से यार कर बैठती ह।
इस अयाय म सखा सम भाई सा वक और बहन सारका क संग तक-िवतक क मायम से
िहदू और इलाम धम क बुराइयाँ पर गहन चचा ई ह, अंेज़ी सािहयकार क कहन और
कबीर को उृत िकया ह। देिवका-अदीब क संबंध िवछद का कारण भी इलाम क करीित
को ठहराया गया ह, िजसे देिवका जैसा य व वीकार नह कर सका!
चौथा अयाय 'शादी बरबादी' सारका ारा कह वाय "ेिमका क माँग म िसंदूर भरते ही
पुष ेमी से पित म ांफॉम हो जाते ह, यादा उमीद मत पालना।" का िवतार ह। यह
अयाय शादी क तुरत बाद संबंध म पैदा ई कड़वाहट को िदखाता ह, िजसका कोई बड़ा
कारण नह। हाँ, देिवका िशवेन से ेिमल यवहार क माँग करती ह, िजसे िशवेन कही-कह
मानता भी ह, लेिकन वह हर पल रोमांिटक नह रह पाता। देिवका को िशवेन क माँ क तरफ़
झुकाव से दुखी िदखाना भी लेिखका का मक़सद ह, हालाँिक लेिखका ने इस अयाय म इसे पूरी
तरह से खोला नह। इस अयाय क शु म लेिखका ने िशवेन और देिवका क ेम को िववाह
तक प चाया ह और नाराज़गी क बाद िशवेन उसे भारत जाने क िलए एयरपोट पर छोड़ने जा
रहा ह, इस अलगाव से दोन ही दुखी ह, ना देिवका जाना चाहती ह और न िशवेन भेजना चाहता
ह लेिकन देिवका जा रही ह, यह अलगाव िनयित ह!
पाँचव अयाय 'बैक फॉरवड' म देिवका भारत वापस आ रही ह। िशवेन चाहता ह िक
देिवका क लेिकन वह रोकता नह। देिवका अतीत म गोते लगाते ए उन संग को याद करती
ह, जो उनक िववाद का कारण हो सकते ह, लेिकन उसे जो कारण िदखता ह, वह इतना बड़ा
नह िक संबंध िवछद हो जाए। देिवका घर लौटने क बजाए मृदुला नामक औरत क साथ हो
लेती ह, यिक िपता ने उसे अपनाने से इकार कर िदया ह। िपता देिवका क ेम िववाह से
ना?श थे, यिक वे समाज से नाश थे और इसे आजी एक पुराने संग क मायम से प
करती ह। इस अयाय म दो िदन पूव क कहानी उपशीषक क ारा िशवेन क मृदुला िसहा से
डॉ. िदलबागिसंह िवक
मोबाइल- 87085-46183
ईमेल- [email protected]

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शोध-आलोचना
(कहानी संह)
अंजिल भर उजास
समीक : पिसंह चदेल
लेखक : माधव नागदा
काशक : क.एल.पचौरी काशन,
गािजयाबाद
लेव तोलतोय ने मै सम गोक से उनक कहािनय क िवषय म बात करते ए कहा, "तुम
िजनक िलए िलखते हो उनक भाषा म य नह िलखते।" गोक क पा सामाय, ब क हािशए
पर पड़ लोग होते, लेिकन भाषा किठन होती। तोलतोय ने अपना अिधकांश जीवन अपने गाँव
या?ाया पोयाना म यतीत िकया। गाँव उह इतना िय था िक माको म आलीशान मकान
खरीदा, उसम पनी सोिफया अ ेएना क अनुकल परवतन करवाया, सजाया, पनी और
बे उसम रहने गए, लेिकन तोलतोय भागकर गाँव आ गए। उनका कहना था, "हर लेखक
को खेत म एक बार अवय काम करना चािहए।" वह कवल कलम क ही धनी नह ब क
खेत क काम म भी उह महारत हािसल थी। वह हल जोतने से लेकर घास काटने और खेत क
िनराई करने तक का काम करते थे। िकसान जीवन से लेकर महानगरीय जीवन का उह गहन
अनुभव था और यही कारण ह िक उहने दोन ही तरह क पा का सफल िचण िकया ह। यह
मेरा िनजी मत ह िक गाँव से शहर आ बसे सािहयकार का जीवन-अनुभव यापक होता ह।
ेमचद ऐसे ही सािहयकार थे। बाद क पीढ़ी म िशवसाद िसंह, काशीनाथ िसंह, दूधनाथ
िसंह, माक डय सिहत िकतने ही सािहयकार ह िजनक पास गाँव का गहन अनुभव था। इस
पीढी क बाद जो सािहयकार गाँव से आए, उनम माधव नागदा जी भी ह। गाँव नागदा जी क
जीवन म इतना रचा-बसा िक अयापन क दौरान कांकरोली म रहकर भी वह गाँव क बने रह।
बने ही नह रह अवकाश ा करने क बाद वह गाँव आ बसे। उहने ाय जीवन पर अनेक
कहािनयाँ िलख, िजनम से उनक चौदह कहािनय का संह 'अंजिल भर उजास' हाल म
क.एल. पचौरी काशन,गािजयाबाद से कािशत आ ह।
माधव नागदा का सािह यक अवदान ब-आयामी ह। उहने कहानी, लघुकथाएँ, डायरी,
किवता, आलोचना आिद िवधा म उेखनीय काय िकया ह। उनक पास सहज-सरल
लेिकन समृ भाषा ह। उनक कहािनय क सबसे बड़ी िवशेषता बीच-बीच म योग होने वाले
मुहावर और लोको याँ ह जो रचना को आकषक और पठनीय बनाते ह। समीय संह क
येक कहानी इस बात को मािणत करती ह िक गाँव नागदा जी क साँस म बसता ह। यिप
गाँव अब वह गाँव नह रहा। इस बात का उेख भूिमका म डॉ. सूरज पालीवाल जी ने िकया ह,
"कहना न होगा िक एक समय तक गाँव का जीवन सामूिहक था लेिकन धीर-धीर वह
सामूिहकता ख़म होती जा रही ह। सामूिहकता क अतीत और य वाद क वतमान म ं नह
ह ब क चुपा समझौता ह, िजससे ामीण जीवन म िवकितयाँ पैदा हो रही ह।" (पृ.8) नागदा
जी ने इन िवकितय को बत गंभीरता क साथ उ?ािटत िकया ह।
ायः ऐसा सोचा जाता ह िक ाचार सरकारी िवभाग म होता ह। आज़ादी से पूव यह
काफ हद तक सही था, लेिकन िवकास क गित क साथ ाचार नगर से चलकर गाँव तक
प च गया ह। आज़ादी से पूव जमदार अपने गौरांग भु क कपा से िकसान का शोषण
करता था, लेिकन आज़ादी क बाद िकसान क शोषण क तरीक़ बदले। पहले एक य था
अब ाम धान-सरपंच से लेकर, अिधकारी वग तक उनका शोषण करता ह। यही नह कभी
गाँव का भोला-भाला िदखने वाला िकसान भी अब उतना सरल नह रहा। 'बाबूलाल सरपंच का
वछता अिभयान' म इस िवषय को अयंत सघनता और िवसनीयता क साथ िचित िकया
गया ह। गाँव का जग?ाथ उफ जगू लंबे समय तक अपनी बेिटय क भावना और
पिसंह चदेल
लैट नं.705, टॉवर-8, िवपुल गाड स,
धाहड़ा-123106,हरयाणा
मोबाइल- 8059948233
क वतय महवपूण ह। िववाह को दासता
का तीक कहा गया ह - "िववाह एक
िबनबोला समझौता ह, िजसम पुष ी क
माथे पर िसंदूर से वािमव िलखता ह और
ी िसर झुका दासता वीकारती ह।"
परवार नामक संथा पुष को महव देते
ए ी को दोयम िस करती ह। ेम म
अिधकार जमाने क वृित ह। उपयास म
पुष क अह को िदखाया गया ह, देिवका
आज क ी का ितिनिधव करती ह। ी
पर लगे बंधन पर देिवका िवचार करती ए
िलंग को योिन से अिधक महव िदए जाने पर
सवाल खड़ा करती ह। देिवका क यही सोच
उपयास म नारीवाद को तुत करती ह।
कित क ी शरीर को कोमल बनाने या
तन-योिन देने से भी ी पुष ारा तािड़त
ई ह, इस यथा को भी िदखाया गया ह। कोई
भी धम या समाज ी िहतैषी नह। लेिखका
शादी क समय लड़कवाल ारा लड़क
देखने क परपरा को भी एक बुराई क प म
िदखाया ह। पुष और िववाह को बुरा कहते
ए भी उपयास क टग लाइन क आधार पर
लेिखका ेम क महव को थािपत करना
चाहती ह, इसिलए वह आदश यार क बार म
राय तुत करती ह - "दोती और ेम दो
अलग शय ह, दोन क अलग-अलग परिध
ह; दोत होने क परिध क पार ेम क परिध
म वेश करते ही दोत होना िवलीन हो जाते ह
और जब दोती और ेम एक-दूसर म िवलय
हो जाता ह तब ेम कालजयी हो जाता ह, सुधा
और चंदन क जैसे।" िशवेन को भी ेम क
सही अथ का पता चलता ह। शादी और ेम
को लेकर िशवेन और देिवका क संवाद म
िशवेन अपने ेम क अिभय करते ए
ेम क रहय को गट करता ह - "और मने
सुना ह, यार उससे होता ह, िजसक साथ
वत िबताते ह और बीते कछ माह से मेर वत
पर तुहारा एकािधकार रहा ह।"
िववाह और ेम क अितर अय िवषय
भी इस उपयास म उठाए गए ह। सुंदरता क
िचण क साथ-साथ भारतीय क 'फयर होना
ही लवली ह' क मानिसकता को भी
उ?ािटत िकया गया ह। िहदू-मु लम धम म
चिलत बुराइय को भी िदखाया गया ह और
सिहणुता को िदखाया गया ह। समाज म
चिलत भेदभाव का िचण ह - लेिकन बात
आनेवाले मेहमान क नह, ब क उनक
वगकरण क ह। मेहमान को तीन वग म
बाँटा गया, इसिलए तीन तरह क बैठक क
यवथा क गई। िजनका घर क भीतरी िहसे
से कोई सरोकार न हो, उनक िलए बाबा क
साथवाले बैठक म चाय-नाते क यवथा
क जाती थी और तुलनामक कम िविश?
यानी घरलू संबंध रखनेवाले आमीय मेहमान
क आवभगत बड़ी बैठक म होती ह।" लोक
चिलत बात कही गई ह - "िपता पर गई
बेिटय क भाय बड़ होते ह।"
अपशगुन को मानते ए इसक िनवारण क
िलए अपनाए जाने वाले तरीक को िदखाया
गया ह। लेिखका यह भी िदखाती ह िक छोट
शहर क लोग क सोच भी अलग होती ह -
"हम उस छोट शहर से ह, जहाँ लड़क लड़क
क दोती को ेम माना जाता ह।"
संवाद कथानक को गित दान करने म
सहायक ह। संवाद क साथ-साथ लेिखका ने
ज़रत अनुसार अनेक जगह पर
िवतारपूवक वणन िकया ह। सजने-सँवरने
को िदखाया ह। तंजािनया का वणन ह। योित
क मायम से थानीय लोग क बार म बताया
गया ह - "यहाँ क लोग रीित पसंद ह, राह
चलते अनजान भी अिभवादन करने से नह
चूकते। आप जवाब न द तो अिश? मान लेते
ह।" कथा क काल को िदखाने क िलए
लेखकय िटपणी का योग िकया गया ह -
(यह िकसा बाज़ार क उदारीकरण से पहले
का ह, तब घर म एक कार होना बड़ी बात
होती थी और जस पहनना तो उससे भी बड़ी
बात!)
भाषा िकसी भी सािह यक रचना का
महवपूण प होती ह। िनसंदेह उपयास
'साज़-बाज़' क भाषा सािह यक ह, लेिकन
इसे दुह कहा जा सकता ह, जो लेिखका ने
सायास िकया ह। 'िवंभ' शद सामाय
पाठक क िलए उतना ही गूढ़ ह, िजतना िक
मुहािबसा, तवील आिद। पाठक को संभवतः
कछ शद क िलए शदकोश क शरण लेनी
पड़ सकती ह। ?टनोट क प म अथ इसका
हल हो सकता था। लेिखका दार-सलाम रहती
ह, उपयास का नायक दार-सलाम रहता ह
और दार-सलाम क भाषा अरबी ह, िजसका
प भाव उपयास पर पड़ना वाभािवक
ह, लेिकन भाषा कह-कह पाानुसार न
होकर लेखकानुसार लगती ह।
पुतक का शीषक 'साजबाज़' अरबी
भाषा का ह, िजसका अथ ह - गठजोड़।
लेिखका ने सकारामक प म लेते ए
वैवािहक संबंध क िलए इसका योग िकया
ह। उपयास म देिवका ीवादी नज़र आती ह
और ग़लत का िवरोध ग़लत नह होता,
इसिलए देिवका का पुषवादी सोच से टकरा
जाना वाभािवक ह, लेिकन इसी कारण वह
पित को समझने क भूल भी करती ह। पित क
भी ग़लितयाँ ह, लेिकन वैवािहक संबंध िनभाने
क िलए िजस परपता का होना ज़री ह,
वह देिवका म नह, लेिकन वह ेम म ह और
सौभाय से िशवेन मृदुला क राय मानता ह,
िजससे ेम क अह पर जीत होती ह। लेिखका
ने मृदुला और सुदीप-योित क पा क ज़रए
दो भटक ेिमय को सही राह िदखाई ह। सीधे
तौर पर सारा घटनाम कछ िदन को िदखाता
ह, लेिकन लेिखका लैश बैक क जरए
कहानी को उपयास का प देती ह।
इस उपयास म सबसे बड़ी कमी ूफ
रीिडग क ह। भात काशन ने बेहद िनराश
िकया ह। िसर को ठीक करने क िलए ऑल
रलेसमट िकया होगा परणामवप -
िसरकारी, अकिसर, िस वािधक, िसरल,
िस वे, दूिसर, पिसरी, पिसरती,
परिसर, किसर, तीिसरी आिद अशुियाँ पैदा
हो गई। िशवजी इसी कारण िशवेनजी हो गए।
अगर काशक का ूफ रीडर इसे नह देखेगा
तो काशक का काम या ह " काशक क
ग़लती क क़मत लेिखका को िकतनी चुकानी
पड़गी यह तो पाठक ही तय करगे, लेिकन
लेिखका महवपूण िवषय को उठाने, ेम क
महव को ितपािदत करने और सफल
दांपय क गुर िसखाने क िलए बधाई क पा
तो ह ही।
000

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 202515 14 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2025
शोध-आलोचना
(कहानी संह)
अंजिल भर उजास
समीक : पिसंह चदेल
लेखक : माधव नागदा
काशक : क.एल.पचौरी काशन,
गािजयाबाद
लेव तोलतोय ने मै सम गोक से उनक कहािनय क िवषय म बात करते ए कहा, "तुम
िजनक िलए िलखते हो उनक भाषा म य नह िलखते।" गोक क पा सामाय, ब क हािशए
पर पड़ लोग होते, लेिकन भाषा किठन होती। तोलतोय ने अपना अिधकांश जीवन अपने गाँव
या?ाया पोयाना म यतीत िकया। गाँव उह इतना िय था िक माको म आलीशान मकान
खरीदा, उसम पनी सोिफया अ ेएना क अनुकल परवतन करवाया, सजाया, पनी और
बे उसम रहने गए, लेिकन तोलतोय भागकर गाँव आ गए। उनका कहना था, "हर लेखक
को खेत म एक बार अवय काम करना चािहए।" वह कवल कलम क ही धनी नह ब क
खेत क काम म भी उह महारत हािसल थी। वह हल जोतने से लेकर घास काटने और खेत क
िनराई करने तक का काम करते थे। िकसान जीवन से लेकर महानगरीय जीवन का उह गहन
अनुभव था और यही कारण ह िक उहने दोन ही तरह क पा का सफल िचण िकया ह। यह
मेरा िनजी मत ह िक गाँव से शहर आ बसे सािहयकार का जीवन-अनुभव यापक होता ह।
ेमचद ऐसे ही सािहयकार थे। बाद क पीढ़ी म िशवसाद िसंह, काशीनाथ िसंह, दूधनाथ
िसंह, माक डय सिहत िकतने ही सािहयकार ह िजनक पास गाँव का गहन अनुभव था। इस
पीढी क बाद जो सािहयकार गाँव से आए, उनम माधव नागदा जी भी ह। गाँव नागदा जी क
जीवन म इतना रचा-बसा िक अयापन क दौरान कांकरोली म रहकर भी वह गाँव क बने रह।
बने ही नह रह अवकाश ा करने क बाद वह गाँव आ बसे। उहने ाय जीवन पर अनेक
कहािनयाँ िलख, िजनम से उनक चौदह कहािनय का संह 'अंजिल भर उजास' हाल म
क.एल. पचौरी काशन,गािजयाबाद से कािशत आ ह।
माधव नागदा का सािह यक अवदान ब-आयामी ह। उहने कहानी, लघुकथाएँ, डायरी,
किवता, आलोचना आिद िवधा म उेखनीय काय िकया ह। उनक पास सहज-सरल
लेिकन समृ भाषा ह। उनक कहािनय क सबसे बड़ी िवशेषता बीच-बीच म योग होने वाले
मुहावर और लोको याँ ह जो रचना को आकषक और पठनीय बनाते ह। समीय संह क
येक कहानी इस बात को मािणत करती ह िक गाँव नागदा जी क साँस म बसता ह। यिप
गाँव अब वह गाँव नह रहा। इस बात का उेख भूिमका म डॉ. सूरज पालीवाल जी ने िकया ह,
"कहना न होगा िक एक समय तक गाँव का जीवन सामूिहक था लेिकन धीर-धीर वह
सामूिहकता ख़म होती जा रही ह। सामूिहकता क अतीत और य वाद क वतमान म ं नह
ह ब क चुपा समझौता ह, िजससे ामीण जीवन म िवकितयाँ पैदा हो रही ह।" (पृ.8) नागदा
जी ने इन िवकितय को बत गंभीरता क साथ उ?ािटत िकया ह।
ायः ऐसा सोचा जाता ह िक ाचार सरकारी िवभाग म होता ह। आज़ादी से पूव यह
काफ हद तक सही था, लेिकन िवकास क गित क साथ ाचार नगर से चलकर गाँव तक
प च गया ह। आज़ादी से पूव जमदार अपने गौरांग भु क कपा से िकसान का शोषण
करता था, लेिकन आज़ादी क बाद िकसान क शोषण क तरीक़ बदले। पहले एक य था
अब ाम धान-सरपंच से लेकर, अिधकारी वग तक उनका शोषण करता ह। यही नह कभी
गाँव का भोला-भाला िदखने वाला िकसान भी अब उतना सरल नह रहा। 'बाबूलाल सरपंच का
वछता अिभयान' म इस िवषय को अयंत सघनता और िवसनीयता क साथ िचित िकया
गया ह। गाँव का जग?ाथ उफ जगू लंबे समय तक अपनी बेिटय क भावना और
पिसंह चदेल
लैट नं.705, टॉवर-8, िवपुल गाड स,
धाहड़ा-123106,हरयाणा
मोबाइल- 8059948233
क वतय महवपूण ह। िववाह को दासता
का तीक कहा गया ह - "िववाह एक
िबनबोला समझौता ह, िजसम पुष ी क
माथे पर िसंदूर से वािमव िलखता ह और
ी िसर झुका दासता वीकारती ह।"
परवार नामक संथा पुष को महव देते
ए ी को दोयम िस करती ह। ेम म
अिधकार जमाने क वृित ह। उपयास म
पुष क अह को िदखाया गया ह, देिवका
आज क ी का ितिनिधव करती ह। ी
पर लगे बंधन पर देिवका िवचार करती ए
िलंग को योिन से अिधक महव िदए जाने पर
सवाल खड़ा करती ह। देिवका क यही सोच
उपयास म नारीवाद को तुत करती ह।
कित क ी शरीर को कोमल बनाने या
तन-योिन देने से भी ी पुष ारा तािड़त
ई ह, इस यथा को भी िदखाया गया ह। कोई
भी धम या समाज ी िहतैषी नह। लेिखका
शादी क समय लड़कवाल ारा लड़क
देखने क परपरा को भी एक बुराई क प म
िदखाया ह। पुष और िववाह को बुरा कहते
ए भी उपयास क टग लाइन क आधार पर
लेिखका ेम क महव को थािपत करना
चाहती ह, इसिलए वह आदश यार क बार म
राय तुत करती ह - "दोती और ेम दो
अलग शय ह, दोन क अलग-अलग परिध
ह; दोत होने क परिध क पार ेम क परिध
म वेश करते ही दोत होना िवलीन हो जाते ह
और जब दोती और ेम एक-दूसर म िवलय
हो जाता ह तब ेम कालजयी हो जाता ह, सुधा
और चंदन क जैसे।" िशवेन को भी ेम क
सही अथ का पता चलता ह। शादी और ेम
को लेकर िशवेन और देिवका क संवाद म
िशवेन अपने ेम क अिभय करते ए
ेम क रहय को गट करता ह - "और मने
सुना ह, यार उससे होता ह, िजसक साथ
वत िबताते ह और बीते कछ माह से मेर वत
पर तुहारा एकािधकार रहा ह।"
िववाह और ेम क अितर अय िवषय
भी इस उपयास म उठाए गए ह। सुंदरता क
िचण क साथ-साथ भारतीय क 'फयर होना
ही लवली ह' क मानिसकता को भी
उ?ािटत िकया गया ह। िहदू-मु लम धम म
चिलत बुराइय को भी िदखाया गया ह और
सिहणुता को िदखाया गया ह। समाज म
चिलत भेदभाव का िचण ह - लेिकन बात
आनेवाले मेहमान क नह, ब क उनक
वगकरण क ह। मेहमान को तीन वग म
बाँटा गया, इसिलए तीन तरह क बैठक क
यवथा क गई। िजनका घर क भीतरी िहसे
से कोई सरोकार न हो, उनक िलए बाबा क
साथवाले बैठक म चाय-नाते क यवथा
क जाती थी और तुलनामक कम िविश?
यानी घरलू संबंध रखनेवाले आमीय मेहमान
क आवभगत बड़ी बैठक म होती ह।" लोक
चिलत बात कही गई ह - "िपता पर गई
बेिटय क भाय बड़ होते ह।"
अपशगुन को मानते ए इसक िनवारण क
िलए अपनाए जाने वाले तरीक को िदखाया
गया ह। लेिखका यह भी िदखाती ह िक छोट
शहर क लोग क सोच भी अलग होती ह -
"हम उस छोट शहर से ह, जहाँ लड़क लड़क
क दोती को ेम माना जाता ह।"
संवाद कथानक को गित दान करने म
सहायक ह। संवाद क साथ-साथ लेिखका ने
ज़रत अनुसार अनेक जगह पर
िवतारपूवक वणन िकया ह। सजने-सँवरने
को िदखाया ह। तंजािनया का वणन ह। योित
क मायम से थानीय लोग क बार म बताया
गया ह - "यहाँ क लोग रीित पसंद ह, राह
चलते अनजान भी अिभवादन करने से नह
चूकते। आप जवाब न द तो अिश? मान लेते
ह।" कथा क काल को िदखाने क िलए
लेखकय िटपणी का योग िकया गया ह -
(यह िकसा बाज़ार क उदारीकरण से पहले
का ह, तब घर म एक कार होना बड़ी बात
होती थी और जस पहनना तो उससे भी बड़ी
बात!)
भाषा िकसी भी सािह यक रचना का
महवपूण प होती ह। िनसंदेह उपयास
'साज़-बाज़' क भाषा सािह यक ह, लेिकन
इसे दुह कहा जा सकता ह, जो लेिखका ने
सायास िकया ह। 'िवंभ' शद सामाय
पाठक क िलए उतना ही गूढ़ ह, िजतना िक
मुहािबसा, तवील आिद। पाठक को संभवतः
कछ शद क िलए शदकोश क शरण लेनी
पड़ सकती ह। ?टनोट क प म अथ इसका
हल हो सकता था। लेिखका दार-सलाम रहती
ह, उपयास का नायक दार-सलाम रहता ह
और दार-सलाम क भाषा अरबी ह, िजसका
प भाव उपयास पर पड़ना वाभािवक
ह, लेिकन भाषा कह-कह पाानुसार न
होकर लेखकानुसार लगती ह।
पुतक का शीषक 'साजबाज़' अरबी
भाषा का ह, िजसका अथ ह - गठजोड़।
लेिखका ने सकारामक प म लेते ए
वैवािहक संबंध क िलए इसका योग िकया
ह। उपयास म देिवका ीवादी नज़र आती ह
और ग़लत का िवरोध ग़लत नह होता,
इसिलए देिवका का पुषवादी सोच से टकरा
जाना वाभािवक ह, लेिकन इसी कारण वह
पित को समझने क भूल भी करती ह। पित क
भी ग़लितयाँ ह, लेिकन वैवािहक संबंध िनभाने
क िलए िजस परपता का होना ज़री ह,
वह देिवका म नह, लेिकन वह ेम म ह और
सौभाय से िशवेन मृदुला क राय मानता ह,
िजससे ेम क अह पर जीत होती ह। लेिखका
ने मृदुला और सुदीप-योित क पा क ज़रए
दो भटक ेिमय को सही राह िदखाई ह। सीधे
तौर पर सारा घटनाम कछ िदन को िदखाता
ह, लेिकन लेिखका लैश बैक क जरए
कहानी को उपयास का प देती ह।
इस उपयास म सबसे बड़ी कमी ूफ
रीिडग क ह। भात काशन ने बेहद िनराश
िकया ह। िसर को ठीक करने क िलए ऑल
रलेसमट िकया होगा परणामवप -
िसरकारी, अकिसर, िस वािधक, िसरल,
िस वे, दूिसर, पिसरी, पिसरती,
परिसर, किसर, तीिसरी आिद अशुियाँ पैदा
हो गई। िशवजी इसी कारण िशवेनजी हो गए।
अगर काशक का ूफ रीडर इसे नह देखेगा
तो काशक का काम या ह " काशक क
ग़लती क क़मत लेिखका को िकतनी चुकानी
पड़गी यह तो पाठक ही तय करगे, लेिकन
लेिखका महवपूण िवषय को उठाने, ेम क
महव को ितपािदत करने और सफल
दांपय क गुर िसखाने क िलए बधाई क पा
तो ह ही।
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çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 202517 16 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2025
मायम से माधव नागदा ने गाँव क िजस
यथाथ को उभारा ह उसक अनुसार वहाँ आज
भी पहले क ही भाँित समथ कमज़ोर वग क
य को अपने भोग क वतु मानते ह।
ठाकर देवीलाल क शद म, "कई िक़से ह र
अछ?तोlार क। तेरा बाप सब जानता था। मेरा
ख़ास लंगोिटया था। रावले म एक बार जो आ
गई िफर वो सही सलामत नह गई। नीच जात,
कमीण-का। इनक या कोई इज़त होती
ह "- "इसक उर म छगन अपने मन क
उफान को रोक नह पाता और पूछता ह,"
ठाकर साब एक बात पूछ । जब आपको
कमीण क औरत इतनी यारी लगती ह तो
िफर इनक आदिमय से नफ़रत य करते हो?
उह अपने बराबर य नह समझते?"
(पृ.32) अनेक पा क मायम से बुनी गई
यह एक अिवमरणीय कहानी ह। 'धोलो भाटो
लीलो ख' म भी गाँव क राजनीित को
उ?ािटत िकया गया ह। मगना से ितशोध
लेने क िलए भूरा अपनी पनी नाथी से कोट म
यह कहलवाना चाहता ह िक मगना ने उसक
साथ बलाकार िकया था। िकसी भी कार
भूरा मगना को जेल भेजवाना चाहता ह, नाथी
क इकार करने पर वह उसे बेरहमी से पीटता
ह। लगभग हर गाँव म मुंशी जैसे लोग होते ह
जो लोग को एक-दूसर से लड़वाकर कोट-
कचहरी प चाकर उनक पैरवी करक कमाई
करते ह। पा का चर िचण करते ए
उसक य व क िवशेषता पर काश
डालना लेखकय कौशल क िवशेषता होती ह
जो पा को पाठक क s?? म िवसनीय
बनाता ह। नागदा जी इस मामले म िसहत
ह। "मुंशी क कान सूप जैसे, नाक तोते जैसी
और यवहार नारद जैसा ह।"(पृ.48) नाथी
का चर हम रांगेय राघव क कहानी 'गदल'
क याद िदलाता ह। जब मगना का वकल
नाथी से पूछता ह, "उसक बाद मगना ने या
िकया?" उसका उर ह, "तेर बाप ने तेरी माँ
क साथ िकया वो।" नाथी एक सश चर
क प म पाठक क मन-म तक म छा
जाती ह।
'बूढ़ी आँख क सपने' म नागदा जी ने
पीिढ़य क को िचित िकया ह। बेटा
टी.वी. ले आता ह, िपता को जो वीकार नह।
रामलाल पटल उफ राबा िवकास क हर
बात का पहले िवरोध करता ह, बाद म
वीकार कर हिषत होता ह। बेटा मोटर
सायिकल लाया तो िवरोध िकया लेिकन बाद
म उसक उपयोिगता को वीकार कर उसक
शंसा करता ह। नागदा क यह कहानी मुझे
तोलतोय क याद िदला गई। वह भी पहले
िवकास का िवरोध करते थे। उहने पहले न
का िवरोध िकया लेिकन बाद म उसक मुरीद
हो गए। अय चीज़ क साथ भी ारभ म
उनका यही ढग होता िजसे बाद म वह न
कवल वीकार करते ब क उसक शंसा
भी करते और उसका आनद भी उठाते।
'शवयाा' म एक बार िफर नागदा जी ने गाँव
क षंकारय और क सत राजनीित को
िचित िकया ह।
िहदी म मानवेतर जीव पर कम ही िलखा
गया ह। 'मु पथ' म एक बछड़ का
मनमोहक वणन िकया गया ह। तेली क को
म जुते बैल को देखकर वह अपनी वतंता
पर मुध होता ह, लेिकन उस बैल क अश
होने क बाद जब उसे उसक थान पर जोता
जाता ह तब उसक गितिविध और तेली क
रता को िजस कार नागदा जी ने शदाियत
िकया ह वह अ?ुत ह। यह कहानी अमेरक
लेखक जैक लडन क उपयास 'कॉल ऑफ
िद वाइड' (जंगल क पुकार) क ान क
याद िदला जाती ह। ेमचद क 'दो बैल क
कथा' क साथ मुझे मादा ान पर िलखी
अपनी कहानी 'पाँच ब वाली माँ' भी याद
आती रही। 'अंजिल भर उजास' मणी क
दाण कथा ह। अफ़सर बनने से पहले तक
भगवती क िलए मणी ही सब कछ थी,
लेिकन अफ़सर बनते ही उसका अपढ़ होना
भगवती को खटकने लगा। उसने मणी से
एक कागज पर अँगूठा िनशान लगवाकर उसे
अपने दूसर िववाह क िलए तैयार कर िलया,
लेिकन पित ारा उपेा का दंश मणी सह
नह पाती और अपनी सहली क सलाह
मानकर वह उसक िव मुकदमे का मन
बना लेती ह। िदी क िविवालय और
िहदी सािहय म कई ऐसे लोग ह या रह ह
िजहने पहली पनी, िजसने उनक पढ़ने-
आगे बढ़ने क िलए अपनी ज़ेवर तक बेच दी,
लेिकन पढ़कर कािबल बनने क बाद उन
लोग ने उह गाँव क धूल फाँकने क िलए
छोड़ शहर म दूसरा िववाह िकया। उनसे पैदा
ब क साथ वे सीधी, भोली-भाली प नयाँ
अिभश जीवन जीने क िलए िववश रह।
'िज़दगी क मोच पर' एक ऐसे युवा क
कहानी ह जो उ िशा पाने और अनेक
किपिटशन म बैठने क बाद नौकरी पाने क
दौड़ म िपछड़ गया ह। िपता क मृयु क बाद
माँ ने उसे हाड़-तोड़ मेहनत करक पढाया।
छोट भाई का फटी पट पहनकर पढ़ने जाना
उसे येक ण खटकता रहता ह तो माँ का
खटना भी। अंततः हारकर वह सेना म भत
होने क िलए चला जाता ह, लेिकन वहाँ भत
होने आए युवक क अिनयंित भीड़ पर
पुिलस क लाठी हार से वह घायल हो जाता
ह। कहानी का अंत सकारामक ह। जब
अपताल म उसे होश आया उसका िम
उसक हाथ म उसक सब-इ पेटर क पद पर
चुने जाने का प देकर सुखद सूचना देता ह।
'साफ़ पानी क तलाश म' यवथा म या
ाचार को बेनकाब करती ह। "चौहान
साहब हमार ? क एक िस हती ह। वे
िपछले कई वष से एक तर सरकारी महकमे
म बड़ ओहदे पर काम कर रह ह। ाचार
िमटाने वाले िवभाग म। - उहने इस नौकरी म
?ब पैसा भी बनाया ह। यह बात गौण ह िक
यह पैसा उहने कसे कमाया। लोग तरीक़
नह देखते, नतीजा देखते ह।" (पृ.131)
'खोयी ई हसी', 'अकाल और ?शबू', 'शाप
मु ' और 'साँझ क धूप' भी उेखनीय
और यादगार कहािनयाँ ह।
मुहावर, लोको य, लोक गीत,
सहज-सरल भाषा, िजसम य-त यंय का
पश उसे और भावकारी बनाता ह तथा
आकषक िशप म नागदा जी क ाय जीवन
पर आधारत कहािनय का यह संह िन त
ही आज क इस दौर म अिधक ही उपादेय और
महवपूण ह जब गाँव पर कम िलखा जा रहा
ह।
000
आवयकता क उपेा करता आ अपने घर
म कवल इसिलए शौचालय बनाने से बचता ह
यिक उसक घर म उसक आराय भैबाबा
थािपत ह। "अगर घर म गंदीवाड़ा कर िदया
तो भैनाथ हमम से िकसी क हाथ का भोग
नह आरोगगे। पूर परवार को कोप का भाजन
बनना पड़गा समझी।" जगू पनी से कहता
ह। बड़ी बेटी लगातार शौच क िलए जंगल
जाने क ख़तर और समया बताती ह। नागदा
जी िलखते ह, "िनपटान क िलए गाँव से पूव
क ओर छोटी-सी पहाड़ी पर जाना होता था।
यहाँ बत सार थूहर क झुंड और झािड़याँ थे।
जब लड़िकयाँ बैठने लगत तो िकसी झाड़ी क
पीछ बैठा कोई बुग खाँस देता और वे आगे
बढ़ जात।- "(पृ.14) परणावप बेिटयाँ
बीमार हो जात। जग?ाथ बेिटय क समया
जानता ह िफर भी भैनाथ क ित अपनी
आथा क कारण शौचालय बनाने से बचता
ह। गाँव क धािमक अंधिवास और भीता
को नागदा जी ने अयंत सहज और
नाटाकयता क साथ अिभय िकया ह।
पंिडत क टोकने पर िक िबना मुत शौचालय
क िलए जग?ाथ को ज़मीन नह खोदना
चािहए, जगू काम रोक देता ह।
जगू क शौचालय क बहाने माधव नागदा
ने गाँव क राजनीित, सरपंच क ाचार,
दबंगई, बदले समय म लोग क आचार-
िवचार, यवहार, परवतन और वातावरण को
जीवंतता क साथ यायाियत िकया ह।
"अपताल म तो लूट-िवा ह। जेब भरी हो
तो ठीक वरना लगो भोिमया जी क पगे। बेचार
ग़रीब-गुरब क िलए तो भोिमया-भै का ही
आसरा ह। अपताल भी कहाँ ह! दस-दस
कोस तक कोई दवाखाना नह। लोग जाएँ तो
जाएँ कहाँ!" (पृ.16) हम हर िदन अख़बार म
और टीवी पर िवकास क तेज़ गित क
समाचार पढ़ते-सुनते ह। नागदा जी क यह
कहानी जून 2023 क हस म कािशत ई थी।
प ह िक एक-आध वष पहले िलखी गई
होगी। यह आज क ामीण जीवन क कहानी
ह। आजादी क इतने वष बाद भी गाँव क लोग
सही उपचार क िलए तरसते ह। दिसय मील
क दूरी तक अपताल नह और यिद ह तो
वहाँ डाटर नह। सुिवधा क िलए सरकार
क ओर से यिद धन उपलध करवाया गया तो
उसका लाभ सभी को नह िमलता। जग?ाथ
को भी शौचालय बनाने क िलए पैसे नह
िमलते और िजहने सरकारी धन से अपने घर
म शौचालय बना भी िलए वे उसका इतेमाल
नह करते। उसम जानवर बाँधते ह या ब
क िलए टडी बना देते ह। यह एक अलग
कार का ाचार ह। "—देखते या ह िक
पला ने बकरयाँ बाँध रखी ह। माँया क
लुगाई ने उपले भर ए ह। आगे एक लेटरन म
बैठ कर दो बे पढ रह थे- कालू ने तो
शौचालय म देवता बैठा िदए ह- ।" (पृ.18)
इस कहानी क मायम से नागदा जी ने
यवथा म या ाचार को कई थल म
उ?ािटत िकया ह। कहानी का अंत
उेखनीय ह। गाँव क आठ नौ घर म
शौचालय नह बने और न ही उह उसक िलए
सरपंच से धन िदया गया, लेिकन कलटर
सरपंच क दरवाज़े बैठकर गाँव को 'खुले म
शौच मु' घोिषत करक सरपंच को नौ लाख
पय का चेक दे जाता ह। 'बाबूलाल सरपंच
का वछता अिभयान' म हम आज क गाँव
क अिवकल छिव ा होती ह।
यहाँ एक बात का उेख करना अनुिचत
नह समझता। िजस िदन सुबह मने नागदा जी
क यह कहानी पढ़ी उसक कछ समय बाद ही
फस बुक म एक सामािजक कायकता ारा
िलखी एक पोट पढ़ी, िजसम लखनऊ क
पास क एक गाँव म एक दुखद घटना क
चचा थी। गाँव क एक अवयक लड़क एक
िदन मुँह अंधेर शौच क िलए जंगल गई थी,
जहाँ कछ अपरािधय ने उसक साथ
बलाकार िकया। नागदा जी ने राजथान क
एक गाँव को लेकर कहानी िलखी जबिक
फस बुक म पोट घटना नागदा जी क कहानी
क काशन क ड ? वष बाद घिटत ई और
वह भी उर देश क राजधानी क पास एक
गाँव म। इससे गाँव म शौचालय क
हक़क़त समझी जा सकती ह।
समाज तेजी से बदल रहा ह। संबंध
अथवादी होते जा रह ह, ये संबंध चाह िमता
क ह या पारवारक। आज क युवा पीढी म
ए परवतन का कारण वैीकरण को माना
जा सकता ह। सबध क छीजन
नगर/महानगर म ही पहले देखने को िमलती
थी, लेिकन उ िशा और नौकरी क िलए
गाँव क युवा को नगर/महागर म ही
जाना पड़ता ह, जहाँ संबंध पूरी तरह से
अथवादी हो चुक ह। ऐसी थित म गाँव
उससे कसे अछ?ते रह सकते ह। 'कपाल
िया' का सयनारायण भी उनम से एक ह
िजसने िपता क उपेा क और उस रामसाद
क बेट से िमता क िजसने उसक िपता क
उस खेत को िजसक बार म लेखक क शद
म, "यह खेत कएँ क गले पर थत था िजससे
िकशना एक साल म तीन-तीन फ़सल लेता
था।" रामसाद ने यह कहकर, "िकशना, यह
खेत और कआँ तेरा बाप मेर िपताजी को बेच
कर मरा ह। टाप पर िलखत िमली ह मुझे।-
अब भूल जा इधर आना।" (पृ.25) रामसाद
बलात िकशना क खेत पर अिधकार कर लेता
ह। िकशना जीवनपय त रामसाद को अपना
शु मानता ह, लेिकन सयनारायण िपता क
भावना और उसक कथन क उपेा कर
रामसाद क बेट से िमता करता ह। िपता
िकशना इस बात को बदा त नह कर पाता।
उसक मृयु क प?ात 'कपाल िया' क
समय सयनारायण को िपता क हर बात याद
आती ह। गाँव म दबंग कमज़ोर क ज़मीन पर
बला अिधकार कर लेते थे और आज भी यह
सब होता ह। कहानी यह बताती ह िक गाँव
बदलकर भी नह बदले। बदलाव भौितक
तर पर आ ह िजसका दु भाव सामािजक
तर पर प िदखाई देता ह।
आज़ादी क प?ात दिलत और कमज़ोर
वग को शोषण से बचाने क िलए िकतने ही
क़ानून य न बने ह लेिकन आज़ादी क पहले
क भाँित आज भी गाँव म दिलत और
कमज़ोर वग का शोषण और जाित-पाँित म
कमी नह आई। नागदा जी ने बत िवतार से
सवण ारा दिलत क ित दुयहार और
शोषण को 'िछलक' कहानी म िजस गंभीरता
और सजीवता क साथ िचित िकया ह वह
पाठक को ेमचद क कहािनय क याद
िदलाता ह। सामतवादी सोच क पा क

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 202517 16 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2025
मायम से माधव नागदा ने गाँव क िजस
यथाथ को उभारा ह उसक अनुसार वहाँ आज
भी पहले क ही भाँित समथ कमज़ोर वग क
य को अपने भोग क वतु मानते ह।
ठाकर देवीलाल क शद म, "कई िक़से ह र
अछ?तोlार क। तेरा बाप सब जानता था। मेरा
ख़ास लंगोिटया था। रावले म एक बार जो आ
गई िफर वो सही सलामत नह गई। नीच जात,
कमीण-का। इनक या कोई इज़त होती
ह "- "इसक उर म छगन अपने मन क
उफान को रोक नह पाता और पूछता ह,"
ठाकर साब एक बात पूछ । जब आपको
कमीण क औरत इतनी यारी लगती ह तो
िफर इनक आदिमय से नफ़रत य करते हो?
उह अपने बराबर य नह समझते?"
(पृ.32) अनेक पा क मायम से बुनी गई
यह एक अिवमरणीय कहानी ह। 'धोलो भाटो
लीलो ख' म भी गाँव क राजनीित को
उ?ािटत िकया गया ह। मगना से ितशोध
लेने क िलए भूरा अपनी पनी नाथी से कोट म
यह कहलवाना चाहता ह िक मगना ने उसक
साथ बलाकार िकया था। िकसी भी कार
भूरा मगना को जेल भेजवाना चाहता ह, नाथी
क इकार करने पर वह उसे बेरहमी से पीटता
ह। लगभग हर गाँव म मुंशी जैसे लोग होते ह
जो लोग को एक-दूसर से लड़वाकर कोट-
कचहरी प चाकर उनक पैरवी करक कमाई
करते ह। पा का चर िचण करते ए
उसक य व क िवशेषता पर काश
डालना लेखकय कौशल क िवशेषता होती ह
जो पा को पाठक क s?? म िवसनीय
बनाता ह। नागदा जी इस मामले म िसहत
ह। "मुंशी क कान सूप जैसे, नाक तोते जैसी
और यवहार नारद जैसा ह।"(पृ.48) नाथी
का चर हम रांगेय राघव क कहानी 'गदल'
क याद िदलाता ह। जब मगना का वकल
नाथी से पूछता ह, "उसक बाद मगना ने या
िकया?" उसका उर ह, "तेर बाप ने तेरी माँ
क साथ िकया वो।" नाथी एक सश चर
क प म पाठक क मन-म तक म छा
जाती ह।
'बूढ़ी आँख क सपने' म नागदा जी ने
पीिढ़य क को िचित िकया ह। बेटा
टी.वी. ले आता ह, िपता को जो वीकार नह।
रामलाल पटल उफ राबा िवकास क हर
बात का पहले िवरोध करता ह, बाद म
वीकार कर हिषत होता ह। बेटा मोटर
सायिकल लाया तो िवरोध िकया लेिकन बाद
म उसक उपयोिगता को वीकार कर उसक
शंसा करता ह। नागदा क यह कहानी मुझे
तोलतोय क याद िदला गई। वह भी पहले
िवकास का िवरोध करते थे। उहने पहले न
का िवरोध िकया लेिकन बाद म उसक मुरीद
हो गए। अय चीज़ क साथ भी ारभ म
उनका यही ढग होता िजसे बाद म वह न
कवल वीकार करते ब क उसक शंसा
भी करते और उसका आनद भी उठाते।
'शवयाा' म एक बार िफर नागदा जी ने गाँव
क षंकारय और क सत राजनीित को
िचित िकया ह।
िहदी म मानवेतर जीव पर कम ही िलखा
गया ह। 'मु पथ' म एक बछड़ का
मनमोहक वणन िकया गया ह। तेली क को
म जुते बैल को देखकर वह अपनी वतंता
पर मुध होता ह, लेिकन उस बैल क अश
होने क बाद जब उसे उसक थान पर जोता
जाता ह तब उसक गितिविध और तेली क
रता को िजस कार नागदा जी ने शदाियत
िकया ह वह अ?ुत ह। यह कहानी अमेरक
लेखक जैक लडन क उपयास 'कॉल ऑफ
िद वाइड' (जंगल क पुकार) क ान क
याद िदला जाती ह। ेमचद क 'दो बैल क
कथा' क साथ मुझे मादा ान पर िलखी
अपनी कहानी 'पाँच ब वाली माँ' भी याद
आती रही। 'अंजिल भर उजास' मणी क
दाण कथा ह। अफ़सर बनने से पहले तक
भगवती क िलए मणी ही सब कछ थी,
लेिकन अफ़सर बनते ही उसका अपढ़ होना
भगवती को खटकने लगा। उसने मणी से
एक कागज पर अँगूठा िनशान लगवाकर उसे
अपने दूसर िववाह क िलए तैयार कर िलया,
लेिकन पित ारा उपेा का दंश मणी सह
नह पाती और अपनी सहली क सलाह
मानकर वह उसक िव मुकदमे का मन
बना लेती ह। िदी क िविवालय और
िहदी सािहय म कई ऐसे लोग ह या रह ह
िजहने पहली पनी, िजसने उनक पढ़ने-
आगे बढ़ने क िलए अपनी ज़ेवर तक बेच दी,
लेिकन पढ़कर कािबल बनने क बाद उन
लोग ने उह गाँव क धूल फाँकने क िलए
छोड़ शहर म दूसरा िववाह िकया। उनसे पैदा
ब क साथ वे सीधी, भोली-भाली प नयाँ
अिभश जीवन जीने क िलए िववश रह।
'िज़दगी क मोच पर' एक ऐसे युवा क
कहानी ह जो उ िशा पाने और अनेक
किपिटशन म बैठने क बाद नौकरी पाने क
दौड़ म िपछड़ गया ह। िपता क मृयु क बाद
माँ ने उसे हाड़-तोड़ मेहनत करक पढाया।
छोट भाई का फटी पट पहनकर पढ़ने जाना
उसे येक ण खटकता रहता ह तो माँ का
खटना भी। अंततः हारकर वह सेना म भत
होने क िलए चला जाता ह, लेिकन वहाँ भत
होने आए युवक क अिनयंित भीड़ पर
पुिलस क लाठी हार से वह घायल हो जाता
ह। कहानी का अंत सकारामक ह। जब
अपताल म उसे होश आया उसका िम
उसक हाथ म उसक सब-इ पेटर क पद पर
चुने जाने का प देकर सुखद सूचना देता ह।
'साफ़ पानी क तलाश म' यवथा म या
ाचार को बेनकाब करती ह। "चौहान
साहब हमार ? क एक िस हती ह। वे
िपछले कई वष से एक तर सरकारी महकमे
म बड़ ओहदे पर काम कर रह ह। ाचार
िमटाने वाले िवभाग म। - उहने इस नौकरी म
?ब पैसा भी बनाया ह। यह बात गौण ह िक
यह पैसा उहने कसे कमाया। लोग तरीक़
नह देखते, नतीजा देखते ह।" (पृ.131)
'खोयी ई हसी', 'अकाल और ?शबू', 'शाप
मु ' और 'साँझ क धूप' भी उेखनीय
और यादगार कहािनयाँ ह।
मुहावर, लोको य, लोक गीत,
सहज-सरल भाषा, िजसम य-त यंय का
पश उसे और भावकारी बनाता ह तथा
आकषक िशप म नागदा जी क ाय जीवन
पर आधारत कहािनय का यह संह िन त
ही आज क इस दौर म अिधक ही उपादेय और
महवपूण ह जब गाँव पर कम िलखा जा रहा
ह।
000
आवयकता क उपेा करता आ अपने घर
म कवल इसिलए शौचालय बनाने से बचता ह
यिक उसक घर म उसक आराय भैबाबा
थािपत ह। "अगर घर म गंदीवाड़ा कर िदया
तो भैनाथ हमम से िकसी क हाथ का भोग
नह आरोगगे। पूर परवार को कोप का भाजन
बनना पड़गा समझी।" जगू पनी से कहता
ह। बड़ी बेटी लगातार शौच क िलए जंगल
जाने क ख़तर और समया बताती ह। नागदा
जी िलखते ह, "िनपटान क िलए गाँव से पूव
क ओर छोटी-सी पहाड़ी पर जाना होता था।
यहाँ बत सार थूहर क झुंड और झािड़याँ थे।
जब लड़िकयाँ बैठने लगत तो िकसी झाड़ी क
पीछ बैठा कोई बुग खाँस देता और वे आगे
बढ़ जात।- "(पृ.14) परणावप बेिटयाँ
बीमार हो जात। जग?ाथ बेिटय क समया
जानता ह िफर भी भैनाथ क ित अपनी
आथा क कारण शौचालय बनाने से बचता
ह। गाँव क धािमक अंधिवास और भीता
को नागदा जी ने अयंत सहज और
नाटाकयता क साथ अिभय िकया ह।
पंिडत क टोकने पर िक िबना मुत शौचालय
क िलए जग?ाथ को ज़मीन नह खोदना
चािहए, जगू काम रोक देता ह।
जगू क शौचालय क बहाने माधव नागदा
ने गाँव क राजनीित, सरपंच क ाचार,
दबंगई, बदले समय म लोग क आचार-
िवचार, यवहार, परवतन और वातावरण को
जीवंतता क साथ यायाियत िकया ह।
"अपताल म तो लूट-िवा ह। जेब भरी हो
तो ठीक वरना लगो भोिमया जी क पगे। बेचार
ग़रीब-गुरब क िलए तो भोिमया-भै का ही
आसरा ह। अपताल भी कहाँ ह! दस-दस
कोस तक कोई दवाखाना नह। लोग जाएँ तो
जाएँ कहाँ!" (पृ.16) हम हर िदन अख़बार म
और टीवी पर िवकास क तेज़ गित क
समाचार पढ़ते-सुनते ह। नागदा जी क यह
कहानी जून 2023 क हस म कािशत ई थी।
प ह िक एक-आध वष पहले िलखी गई
होगी। यह आज क ामीण जीवन क कहानी
ह। आजादी क इतने वष बाद भी गाँव क लोग
सही उपचार क िलए तरसते ह। दिसय मील
क दूरी तक अपताल नह और यिद ह तो
वहाँ डाटर नह। सुिवधा क िलए सरकार
क ओर से यिद धन उपलध करवाया गया तो
उसका लाभ सभी को नह िमलता। जग?ाथ
को भी शौचालय बनाने क िलए पैसे नह
िमलते और िजहने सरकारी धन से अपने घर
म शौचालय बना भी िलए वे उसका इतेमाल
नह करते। उसम जानवर बाँधते ह या ब
क िलए टडी बना देते ह। यह एक अलग
कार का ाचार ह। "—देखते या ह िक
पला ने बकरयाँ बाँध रखी ह। माँया क
लुगाई ने उपले भर ए ह। आगे एक लेटरन म
बैठ कर दो बे पढ रह थे- कालू ने तो
शौचालय म देवता बैठा िदए ह- ।" (पृ.18)
इस कहानी क मायम से नागदा जी ने
यवथा म या ाचार को कई थल म
उ?ािटत िकया ह। कहानी का अंत
उेखनीय ह। गाँव क आठ नौ घर म
शौचालय नह बने और न ही उह उसक िलए
सरपंच से धन िदया गया, लेिकन कलटर
सरपंच क दरवाज़े बैठकर गाँव को 'खुले म
शौच मु' घोिषत करक सरपंच को नौ लाख
पय का चेक दे जाता ह। 'बाबूलाल सरपंच
का वछता अिभयान' म हम आज क गाँव
क अिवकल छिव ा होती ह।
यहाँ एक बात का उेख करना अनुिचत
नह समझता। िजस िदन सुबह मने नागदा जी
क यह कहानी पढ़ी उसक कछ समय बाद ही
फस बुक म एक सामािजक कायकता ारा
िलखी एक पोट पढ़ी, िजसम लखनऊ क
पास क एक गाँव म एक दुखद घटना क
चचा थी। गाँव क एक अवयक लड़क एक
िदन मुँह अंधेर शौच क िलए जंगल गई थी,
जहाँ कछ अपरािधय ने उसक साथ
बलाकार िकया। नागदा जी ने राजथान क
एक गाँव को लेकर कहानी िलखी जबिक
फस बुक म पोट घटना नागदा जी क कहानी
क काशन क ड ? वष बाद घिटत ई और
वह भी उर देश क राजधानी क पास एक
गाँव म। इससे गाँव म शौचालय क
हक़क़त समझी जा सकती ह।
समाज तेजी से बदल रहा ह। संबंध
अथवादी होते जा रह ह, ये संबंध चाह िमता
क ह या पारवारक। आज क युवा पीढी म
ए परवतन का कारण वैीकरण को माना
जा सकता ह। सबध क छीजन
नगर/महानगर म ही पहले देखने को िमलती
थी, लेिकन उ िशा और नौकरी क िलए
गाँव क युवा को नगर/महागर म ही
जाना पड़ता ह, जहाँ संबंध पूरी तरह से
अथवादी हो चुक ह। ऐसी थित म गाँव
उससे कसे अछ?ते रह सकते ह। 'कपाल
िया' का सयनारायण भी उनम से एक ह
िजसने िपता क उपेा क और उस रामसाद
क बेट से िमता क िजसने उसक िपता क
उस खेत को िजसक बार म लेखक क शद
म, "यह खेत कएँ क गले पर थत था िजससे
िकशना एक साल म तीन-तीन फ़सल लेता
था।" रामसाद ने यह कहकर, "िकशना, यह
खेत और कआँ तेरा बाप मेर िपताजी को बेच
कर मरा ह। टाप पर िलखत िमली ह मुझे।-
अब भूल जा इधर आना।" (पृ.25) रामसाद
बलात िकशना क खेत पर अिधकार कर लेता
ह। िकशना जीवनपय त रामसाद को अपना
शु मानता ह, लेिकन सयनारायण िपता क
भावना और उसक कथन क उपेा कर
रामसाद क बेट से िमता करता ह। िपता
िकशना इस बात को बदा त नह कर पाता।
उसक मृयु क प?ात 'कपाल िया' क
समय सयनारायण को िपता क हर बात याद
आती ह। गाँव म दबंग कमज़ोर क ज़मीन पर
बला अिधकार कर लेते थे और आज भी यह
सब होता ह। कहानी यह बताती ह िक गाँव
बदलकर भी नह बदले। बदलाव भौितक
तर पर आ ह िजसका दु भाव सामािजक
तर पर प िदखाई देता ह।
आज़ादी क प?ात दिलत और कमज़ोर
वग को शोषण से बचाने क िलए िकतने ही
क़ानून य न बने ह लेिकन आज़ादी क पहले
क भाँित आज भी गाँव म दिलत और
कमज़ोर वग का शोषण और जाित-पाँित म
कमी नह आई। नागदा जी ने बत िवतार से
सवण ारा दिलत क ित दुयहार और
शोषण को 'िछलक' कहानी म िजस गंभीरता
और सजीवता क साथ िचित िकया ह वह
पाठक को ेमचद क कहािनय क याद
िदलाता ह। सामतवादी सोच क पा क

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 202519 18 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2025
नाटक महाभारत क यु परांत क पृ?भूिम
पर रचा गया ह। इसका आरभ ही होता ह यु
भूिम से कछ दूर चल रह क ण-अजुन क
वातालाप से। उनक यह बातचीत वन-ांतर
क िनवािसय क िवशेषता को दशाती ह, जो
सय समाज म दुलभ ह। यु क बाद क
पृ?भूिम बत भयानक होती ह नाटक क पृ?
जैसे-जैसे पलटते जाते ह, यु का अमानुिषक
और वीभस चेहरा उजागर होता जाता ह।
क ण का यह कथन ीण होते मानवीय मूय
क प म ह- "देखो वहाँ मृतक क परजन
क शव क पहचान म कोई असुिवधा न हो
...जाओ उनक मदद करो ! यु िवजेता का
एक धम मृतक का समान करना भी होता
ह।" (पृ? 11) रता से बंजर हो चुक इस
आामक समय म जब जीिवत जन लगातार
अपमान का घूँट पीने और मरनातक पीड़ा
झेलने को अिभश ह, यु म खेत रह जन
क समान को िवजेता का धम बताना, धम को
मनुयता का पयाय बनाना ह, उसे यापकता
दान करना ह। नाटक क थम य म ही
िहिडबा का वेश होता ह। नाटक म िहिडबा
वैय क वातंय क तेज़ से यु,
आमिनणय क आभा से दी, ेम-याग
और बिलदान से परपूण सश चर ह, जो
तथाकिथत सय समाज क उपयोिगतावादी
कोण का िशकार होने क बावजूद अपना
सहज वभाव नह छोड़ती, लेिकन नांिकत
करती ह इस पूरी यवथा को। उसक संवाद
म युग से मौन वनवािसय को वाणी िमली ह।
क े भले ही वन े से दूर रहा हो पर यु
क िवनाशकारी ितविनय से बच नह पाया
वन-ांतर भी। िहिडबा क शद म - "वहाँ से
होकर आती हवा म र और मांस क गंध
ह धरती काँपती ह रथ क पिहए क नीचे
...यह कपना नह सय ह क ण ! कभी
धरती पर कान रखकर सोए ह आप ? आप तो
यु भूिम म भी पलंग पर लगे ग पर सोते
हगे। आपक रथ भी गदेले होते ह।"(पृ
संया 12) हवा म र-मांस क गंध घुलना
यु क िविभिषका क बानगी ह, इसे वही
महसूस कर सकता ह िजसने पेड़- फल और
ओस क गंध से भीगी सुवािसत वायु का सेवन
िकया हो। िहिडबा आगे कहती ह-"यु हर
सुंदर चीज़ को न? कर देता ह।" (पृ? संया
13) िहिडबा वन और नगर क सयता क
बीच का सेतु ह। नाटक म क ण और िहिडबा
का संवाद सयता क िभ?ता को दशाता
आ भूिम पु क यथा को उजागर करता
ह। नगरीय जीवन का वाथ, लोभ, अहकार,
युयुसा म तदील होकर िकस तरह वन-ांतर
को स लेता ह यह इस कित से ितिबंिबत
होता ह- "हर बार राजा और मंीगण ही बचते
ह अपने चंद सैिनक व िहतैिषय क साथ
...बाक तो यु क ?ाला म आित ही बनते
ह।" (पृ? संया 23) र हत और वंिचत
रह जाने को युग से अिभश हािशए पर
खड़ा समाज इस एक वाय म समा जाता ह।
इस नाटक क कथा-भूिम क े नह
उससे कछ दूर पर थत एक ऐसा थान ह जो
यु-भूिम और वन क बीच का भाग ह।
महाभारत क युोपरांत पांडव घायल और
शव को उनक परजन तक प चाने का
उपम कर रह ह, यह किथत प म नाटक
म आया ह य प म कथा यह ह िक वहाँ
अपने पु-पौ और वनवािसय क खोज-
ख़बर लेने िहिडबा आती ह। क ण उसे अपनी
चतुराई से वह रोक लेते ह, र-रिजत यु-
भूिम म जाने नह देते। वह अपने पु क
बिलदान और पौ क थित से अनिभ ह।
उसे वह रोक कर क ण क े जाकर भीम
को िहिडबा क पास भेजते ह। लैशबैक म
भीम क मृितय म भीम-िहिडबा क संग-संग
िबहार का संग आता ह और क ती क शद
भीम क मृित म कधते ह- "कर लेने दो भीम
को िववाह यह ी इससे बत ेम करती ह।
वह आजीवन इतनी कत रहगी िक हमार
िलए अपन क बली सहष चढ़ा देगी।"(पृ
संया 30) नाटक म क ती कोई पा नह,
िफर भी मृित म आया उसका यह कथन पूर
नाटक का क िबंदु ह साथ ही तथाकिथत
सय कह जाने वाले समाज क वंिचत-
उपेित तबक क इतेमाल क मानिसकता
को दशाता ह। छठ य म भीम-िहिडबा क
पुनिमलन तथा िहिडबा को घटोकच क वध
क सूचना िमलना यंिजत ह। सुख-दुख क
परपर िवरोधी भाव को अ?ुत कौशल से
इसम नाटककार ने समेटा ह और उभरा ह
िहिडबा का िनछल ेम- "िय आप पर
सैकड़ो घटोकच वार दूँगी"। (पृ? संया-
36) माता ी का सबसे सश और
भावशाली प ह, लेिकन िहिडबा का संवाद
यहाँ घटोकच को वार देने का ह,इस तरह
ेयसी पनी क यागमयी चर को माता से
यादा वरीयता दी ह लेिखका ने। ेम म ड?बी
ी याग क सव िशखर को भी छोटा कर
सकती ह। यातय हो िक िहिडबा इसी ेम
पर अपने भाई क बिल दे चुक ह। नाटक म
भीम का चर धोखेबाज़ ेमी का नह, एक
िजमेदार पित और िपता का ह जो अपनी
माता क आा का बंदी होने क कारण वयं
भले ही अपनी पनी-ब से िमल नह पाता
िकतु उनक खोज-ख़बर रखता ह। पु क
िशा का बंध भी करता ह। सातव य म
यु क भयानकता क कारण सूनी कोख और
चीकार क ितविन ह जो भीम क एकलाप
से आती ह। भीम क अंतःकरण म धँसा गांधारी
का यह वाय भेदता ह दय को- " या हम
याँ यु म काट िदए जाने क िलए संतान
उप करती ह।" (पृ? संया 44) इस
संवाद म आया या संपूण मानव-सयता पर
चपा ह ? यह ऐसा अनु रत न ह जो हर
िवनाशकारी यु क बाद कधता ह। आठवाँ
य यु क मूल कारण क पड़ताल करता
आ यु-भूिम क भयानक य को सूय
प म दशाता ह। यह य िवभस और रगट
खड़ा करने वाला ह। नवाँ य िहिडबा क
एकलाप पर समा हो जाता ह। अपने
िवयास म यह नाटक बत छोटा ह- महज
नौ य म और सात प म गुथा ह इसका
कथानक और कवल साठ पृ पर अंिकत ह
इसक कथा। आकार म छोटी सी यह रचना,
िजसम शद बत कम ह, संवाद बत थोड़
ह; पर एक लंबी बहस छड़ती ह शांित क प
म, मनुयता क प म, ी क प म।
कथानटी क रचनामक और वैचारक
पृ?भूिम क िनमाण म वतमान भारतीय
समय-समाज और वै क पर य क
महती भूिमका ह। वह मानवीय मूय क
शोध-आलोचना
(नाटक)
िहिडबा
समीक : डॉ. हनी दशन
लेखक : सुमन कशरी
काशक : भावना काशन, नई
?·??
िहिडबा वनवािसय क यथा, ी क वेदना और मानवीय मूय क ट?टन क पीड़ा क
िवेणी ह। सुमन कशरी का यह नाटक कई अथ म नवीन और मौिलक उावना तथा
रचनामकता क नई संभावना को समेटता ह। महाभारत म भीम-िहिडबा का संग सव
िविदत ह, लेिकन कथानटी ने अ?ुत ना? कौशल से उसे वै क परेय म पुनसृिजत िकया
ह। महाभारत युग से सािहय क क म रहा ह। हर युग म रचनाकार अपने युग-जीवन क सयो
क आधार पर उसे गढ़ते रह ह। यह ना? कित िहिडबा पर कित ज़र ह पर कवल ी-
जीवन क िवडबना का अंतनाद नह, गहर तक सामािजक सरोकार से जुड़ी ह। यह रचना
समिपत ह हसदेव और दुिनया भर म न? हो रह वन ांतर को। िवकास क नाम पर वय भूिम को
िनग़लती सयता इस कित म अनावृत ई ह। इसिलए इसम िहिडबा तीक ह- राजनीित क
िबसात पर इतेमाल होते रहने को अिभश हािसए पर खड़ समाज का, वह यु क िव
ेम-याग का ितिनिध चर ह। नाटक को सािहय क सवािधक जीवंत िवधा होने का गौरव
?? ह, इसिलए ?लंत न को उठाने का सबसे उपयु मंच नाटक ही ह। यु मानव
सयता का ऐसा र, काला और कड़वा सच ह, जो िवगत कभी आ ही नह, मानव समाज क
िवकास क साथ यु क लंबी ंखला रही ह। समाज िजतना सय होता गया, यु उतने ही
िवनाशकारी होते गए। यु शांित क महा को िजतनी तीता से रखांिकत करते ह उतनी ही
तीणता से नांिकत करते ह मनुयता को, यिक चाह िजस काल म ए ह यु, परणाम
चाह िजसक भी प म रहा हो, मनुयता क पराजय का दूसरा नाम ह यु। इसक नव म हमेशा
वच व क थापना और भूिम िलस ही होती ह, आवरण चाह जो भी डाल िदए जाएँ, लेिकन
इससे होने वाली ित से इनकार नह िकया जा सकता ह। महाभारत से लेकर आज तक िव
यु क अगला से मु न हो सका ह। कथानटी सुमन कशरी का यह नाटक यु क िवभीिषका
को दशा कर उसक संभावना को कचलने क यापक कामना को समेटता ह।
संवेदनशीलता और मनुयता क पधर यह रचना वै क पटल पर कई प म चल रह तमाम
यु क पृ?भूिम पर िलखी गई ह। इसम यू न क आवाम क चीख भी ह, इराक और
तािलबान क ख़ाक भी ह, िहरोिशमा तथा नगाशाक क चीकार भी ह। हसदेव और वन ांतर
को समिपत होने क बावजूद यह कित कवल िसकड़ते वन ांतर तक ही सीिमत नह, युग से
चले आते वनवासी समाज क यथा ही उजागर नह करती, ी क वेदना ही नह दशाती
ब क यह वै क िचंता को क म रखते ए ढहते मानवीय मूय को िमथकय कथा क
मायम से उ?ािटत करती ह।
बत गहराई, बड़ी बारीक और कौशल से बुनी गई ह यह नाटक कित। ऐसे तो महाभारत क
हर पा अनूठ ह, अितीय ह, अनय ह लेिकन संपूण महाभारत म िहिडबा ही वह पा ह जो
ेम, याग, समपण, बिलदान और दुख क िवभीिषका को पूरी िन?ा क साथ ितिबंिबत करती
ह, यिक उसक हाथ सदैव र ही रह, वो सदैव वंिचत ही रही। वंिचत, उपेित पा क
दय म वेश कर उसक यथा एवं वेदना को नाटककार ने सहजता से अिभय दी ह।
डॉ. हनी दशन,
सहायक ाचाय, िहदी-िवभाग,
रामक ण महािवालय,
मधुबनी, िबहार

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 202519 18 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2025
नाटक महाभारत क यु परांत क पृ?भूिम
पर रचा गया ह। इसका आरभ ही होता ह यु
भूिम से कछ दूर चल रह क ण-अजुन क
वातालाप से। उनक यह बातचीत वन-ांतर
क िनवािसय क िवशेषता को दशाती ह, जो
सय समाज म दुलभ ह। यु क बाद क
पृ?भूिम बत भयानक होती ह नाटक क पृ?
जैसे-जैसे पलटते जाते ह, यु का अमानुिषक
और वीभस चेहरा उजागर होता जाता ह।
क ण का यह कथन ीण होते मानवीय मूय
क प म ह- "देखो वहाँ मृतक क परजन
क शव क पहचान म कोई असुिवधा न हो
...जाओ उनक मदद करो ! यु िवजेता का
एक धम मृतक का समान करना भी होता
ह।" (पृ? 11) रता से बंजर हो चुक इस
आामक समय म जब जीिवत जन लगातार
अपमान का घूँट पीने और मरनातक पीड़ा
झेलने को अिभश ह, यु म खेत रह जन
क समान को िवजेता का धम बताना, धम को
मनुयता का पयाय बनाना ह, उसे यापकता
दान करना ह। नाटक क थम य म ही
िहिडबा का वेश होता ह। नाटक म िहिडबा
वैय क वातंय क तेज़ से यु,
आमिनणय क आभा से दी, ेम-याग
और बिलदान से परपूण सश चर ह, जो
तथाकिथत सय समाज क उपयोिगतावादी
कोण का िशकार होने क बावजूद अपना
सहज वभाव नह छोड़ती, लेिकन नांिकत
करती ह इस पूरी यवथा को। उसक संवाद
म युग से मौन वनवािसय को वाणी िमली ह।
क े भले ही वन े से दूर रहा हो पर यु
क िवनाशकारी ितविनय से बच नह पाया
वन-ांतर भी। िहिडबा क शद म - "वहाँ से
होकर आती हवा म र और मांस क गंध
ह धरती काँपती ह रथ क पिहए क नीचे
...यह कपना नह सय ह क ण ! कभी
धरती पर कान रखकर सोए ह आप ? आप तो
यु भूिम म भी पलंग पर लगे ग पर सोते
हगे। आपक रथ भी गदेले होते ह।"(पृ
संया 12) हवा म र-मांस क गंध घुलना
यु क िविभिषका क बानगी ह, इसे वही
महसूस कर सकता ह िजसने पेड़- फल और
ओस क गंध से भीगी सुवािसत वायु का सेवन
िकया हो। िहिडबा आगे कहती ह-"यु हर
सुंदर चीज़ को न? कर देता ह।" (पृ? संया
13) िहिडबा वन और नगर क सयता क
बीच का सेतु ह। नाटक म क ण और िहिडबा
का संवाद सयता क िभ?ता को दशाता
आ भूिम पु क यथा को उजागर करता
ह। नगरीय जीवन का वाथ, लोभ, अहकार,
युयुसा म तदील होकर िकस तरह वन-ांतर
को स लेता ह यह इस कित से ितिबंिबत
होता ह- "हर बार राजा और मंीगण ही बचते
ह अपने चंद सैिनक व िहतैिषय क साथ
...बाक तो यु क ?ाला म आित ही बनते
ह।" (पृ? संया 23) र हत और वंिचत
रह जाने को युग से अिभश हािशए पर
खड़ा समाज इस एक वाय म समा जाता ह।
इस नाटक क कथा-भूिम क े नह
उससे कछ दूर पर थत एक ऐसा थान ह जो
यु-भूिम और वन क बीच का भाग ह।
महाभारत क युोपरांत पांडव घायल और
शव को उनक परजन तक प चाने का
उपम कर रह ह, यह किथत प म नाटक
म आया ह य प म कथा यह ह िक वहाँ
अपने पु-पौ और वनवािसय क खोज-
ख़बर लेने िहिडबा आती ह। क ण उसे अपनी
चतुराई से वह रोक लेते ह, र-रिजत यु-
भूिम म जाने नह देते। वह अपने पु क
बिलदान और पौ क थित से अनिभ ह।
उसे वह रोक कर क ण क े जाकर भीम
को िहिडबा क पास भेजते ह। लैशबैक म
भीम क मृितय म भीम-िहिडबा क संग-संग
िबहार का संग आता ह और क ती क शद
भीम क मृित म कधते ह- "कर लेने दो भीम
को िववाह यह ी इससे बत ेम करती ह।
वह आजीवन इतनी कत रहगी िक हमार
िलए अपन क बली सहष चढ़ा देगी।"(पृ
संया 30) नाटक म क ती कोई पा नह,
िफर भी मृित म आया उसका यह कथन पूर
नाटक का क िबंदु ह साथ ही तथाकिथत
सय कह जाने वाले समाज क वंिचत-
उपेित तबक क इतेमाल क मानिसकता
को दशाता ह। छठ य म भीम-िहिडबा क
पुनिमलन तथा िहिडबा को घटोकच क वध
क सूचना िमलना यंिजत ह। सुख-दुख क
परपर िवरोधी भाव को अ?ुत कौशल से
इसम नाटककार ने समेटा ह और उभरा ह
िहिडबा का िनछल ेम- "िय आप पर
सैकड़ो घटोकच वार दूँगी"। (पृ? संया-
36) माता ी का सबसे सश और
भावशाली प ह, लेिकन िहिडबा का संवाद
यहाँ घटोकच को वार देने का ह,इस तरह
ेयसी पनी क यागमयी चर को माता से
यादा वरीयता दी ह लेिखका ने। ेम म ड?बी
ी याग क सव िशखर को भी छोटा कर
सकती ह। यातय हो िक िहिडबा इसी ेम
पर अपने भाई क बिल दे चुक ह। नाटक म
भीम का चर धोखेबाज़ ेमी का नह, एक
िजमेदार पित और िपता का ह जो अपनी
माता क आा का बंदी होने क कारण वयं
भले ही अपनी पनी-ब से िमल नह पाता
िकतु उनक खोज-ख़बर रखता ह। पु क
िशा का बंध भी करता ह। सातव य म
यु क भयानकता क कारण सूनी कोख और
चीकार क ितविन ह जो भीम क एकलाप
से आती ह। भीम क अंतःकरण म धँसा गांधारी
का यह वाय भेदता ह दय को- " या हम
याँ यु म काट िदए जाने क िलए संतान
उप करती ह।" (पृ? संया 44) इस
संवाद म आया या संपूण मानव-सयता पर
चपा ह ? यह ऐसा अनु रत न ह जो हर
िवनाशकारी यु क बाद कधता ह। आठवाँ
य यु क मूल कारण क पड़ताल करता
आ यु-भूिम क भयानक य को सूय
प म दशाता ह। यह य िवभस और रगट
खड़ा करने वाला ह। नवाँ य िहिडबा क
एकलाप पर समा हो जाता ह। अपने
िवयास म यह नाटक बत छोटा ह- महज
नौ य म और सात प म गुथा ह इसका
कथानक और कवल साठ पृ पर अंिकत ह
इसक कथा। आकार म छोटी सी यह रचना,
िजसम शद बत कम ह, संवाद बत थोड़
ह; पर एक लंबी बहस छड़ती ह शांित क प
म, मनुयता क प म, ी क प म।
कथानटी क रचनामक और वैचारक
पृ?भूिम क िनमाण म वतमान भारतीय
समय-समाज और वै क पर य क
महती भूिमका ह। वह मानवीय मूय क
शोध-आलोचना
(नाटक)
िहिडबा
समीक : डॉ. हनी दशन
लेखक : सुमन कशरी
काशक : भावना काशन, नई
?·??
िहिडबा वनवािसय क यथा, ी क वेदना और मानवीय मूय क ट?टन क पीड़ा क
िवेणी ह। सुमन कशरी का यह नाटक कई अथ म नवीन और मौिलक उावना तथा
रचनामकता क नई संभावना को समेटता ह। महाभारत म भीम-िहिडबा का संग सव
िविदत ह, लेिकन कथानटी ने अ?ुत ना? कौशल से उसे वै क परेय म पुनसृिजत िकया
ह। महाभारत युग से सािहय क क म रहा ह। हर युग म रचनाकार अपने युग-जीवन क सयो
क आधार पर उसे गढ़ते रह ह। यह ना? कित िहिडबा पर कित ज़र ह पर कवल ी-
जीवन क िवडबना का अंतनाद नह, गहर तक सामािजक सरोकार से जुड़ी ह। यह रचना
समिपत ह हसदेव और दुिनया भर म न? हो रह वन ांतर को। िवकास क नाम पर वय भूिम को
िनग़लती सयता इस कित म अनावृत ई ह। इसिलए इसम िहिडबा तीक ह- राजनीित क
िबसात पर इतेमाल होते रहने को अिभश हािसए पर खड़ समाज का, वह यु क िव
ेम-याग का ितिनिध चर ह। नाटक को सािहय क सवािधक जीवंत िवधा होने का गौरव
?? ह, इसिलए ?लंत न को उठाने का सबसे उपयु मंच नाटक ही ह। यु मानव
सयता का ऐसा र, काला और कड़वा सच ह, जो िवगत कभी आ ही नह, मानव समाज क
िवकास क साथ यु क लंबी ंखला रही ह। समाज िजतना सय होता गया, यु उतने ही
िवनाशकारी होते गए। यु शांित क महा को िजतनी तीता से रखांिकत करते ह उतनी ही
तीणता से नांिकत करते ह मनुयता को, यिक चाह िजस काल म ए ह यु, परणाम
चाह िजसक भी प म रहा हो, मनुयता क पराजय का दूसरा नाम ह यु। इसक नव म हमेशा
वच व क थापना और भूिम िलस ही होती ह, आवरण चाह जो भी डाल िदए जाएँ, लेिकन
इससे होने वाली ित से इनकार नह िकया जा सकता ह। महाभारत से लेकर आज तक िव
यु क अगला से मु न हो सका ह। कथानटी सुमन कशरी का यह नाटक यु क िवभीिषका
को दशा कर उसक संभावना को कचलने क यापक कामना को समेटता ह।
संवेदनशीलता और मनुयता क पधर यह रचना वै क पटल पर कई प म चल रह तमाम
यु क पृ?भूिम पर िलखी गई ह। इसम यू न क आवाम क चीख भी ह, इराक और
तािलबान क ख़ाक भी ह, िहरोिशमा तथा नगाशाक क चीकार भी ह। हसदेव और वन ांतर
को समिपत होने क बावजूद यह कित कवल िसकड़ते वन ांतर तक ही सीिमत नह, युग से
चले आते वनवासी समाज क यथा ही उजागर नह करती, ी क वेदना ही नह दशाती
ब क यह वै क िचंता को क म रखते ए ढहते मानवीय मूय को िमथकय कथा क
मायम से उ?ािटत करती ह।
बत गहराई, बड़ी बारीक और कौशल से बुनी गई ह यह नाटक कित। ऐसे तो महाभारत क
हर पा अनूठ ह, अितीय ह, अनय ह लेिकन संपूण महाभारत म िहिडबा ही वह पा ह जो
ेम, याग, समपण, बिलदान और दुख क िवभीिषका को पूरी िन?ा क साथ ितिबंिबत करती
ह, यिक उसक हाथ सदैव र ही रह, वो सदैव वंिचत ही रही। वंिचत, उपेित पा क
दय म वेश कर उसक यथा एवं वेदना को नाटककार ने सहजता से अिभय दी ह।
डॉ. हनी दशन,
सहायक ाचाय, िहदी-िवभाग,
रामक ण महािवालय,
मधुबनी, िबहार

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 202521 20 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2025
पठनीयता इन कहािनय का बड़ा गुण ह
वंदना गुा
िक़सागोई का जीवन म हमेशा महवपूण थान रहा। पूव म िक़सागोई क मायम से ही
कहािनयाँ एक थान से दूसर थान पर मण करती थ। जो अनपढ़ थे वे भी इसी मायम से
कहािनय क दुिनया म वेश करते थे। आज क दौर म जब अिधकतर पढ़-िलखे ह, संचार क
अनेक मायम ह, ऐसे म इस िवधा को बचाए रखना और बनाए रखना सहज नह, लेिकन
सािह यक जग म एक िक़सागो ह िजहने अपना लेखन अिधकतर िक़सागो क प म ही
िकया। उनक कहािनय क यही िवशेषता रही िजसम आपको एक ऐसा िक़सागो देखने को
िमलेगा जो कहािनय म कई बार पा क नाम भी नह देता। नाम न देकर वे जैसे िस करना
चाहते ह, ये घटना अथवा ये कहानी िकसी एक को लित करक नह कही गई ह। ऐसा िकसी
क भी साथ घिटत हो सकता ह। इस कार कथा को वे एक बड़ा परवेश देते ह। उसका आकार
वृह हो जाता ह।
िक़सागोई अंदाज़ म िलिखत संह ह- 'जोया देसाई कॉटज' िजसक लेखक ह पंकज
सुबीर। इस संह म कहािनय क अनेक रग देखने को िमलते ह। जैसे जीवन िविवध रगी ह, वैसे
ही कहािनयाँ भी िविवध रगी ह। अभी हम सभी महामारी क दौर से गुज़र ह और उसी को क म
रखते ए मनुय क संवेदना और असंवेदना का िददशन कहानी कराती ह। एक महामारी ने
जैसे रत पर पड़ समत परदे उठा िदए। हम जो कहते ह- 'तेर िबना हम रह नह सकते, तुहार
िलए अपनी जान दे दगे', ये कोर शद मुँह िचढ़ाते तीत होते ह। मनुय िकतना असंवेदनशील
ाणी ह उसका दशन कहानी कराती ह। अपन से ही अपने डरने लगे लेिकन दूसरी ओर, कछ
संवेदनशील लोग ने िमसाल क़ायम क, अपनी जान क परवाह न करते ए उन शव को
िठकाने लगाया, उह उनक अंितम मंिज़ल पर प चाया। मनुय क असंवेदनशीलता वहाँ
सबसे अिधक गोचर होती ह, जब िपता को हाथ न लगाने वाली बेटी उसक िचता क साथ
खड़ी होकर मीिडया क मायम से जनता क संवेदना हण करती ह। िजसे ये ात न हो, िपता
िकतने िदन पहले मृयु को ा हो गया, वो ही बेटी अपने टीवी चैनल क पकार पित क िलए
इस कार क बाइट देती ह। इस कहानी क मायम से लेखक यही कहना चाहते ह िक िकतने
असंवेदनशील होते ह मनुय, जो लाश को भी भुनाने से नह चूकते। या वातव म हम मनुय ह
का न 'थिगत समय गुफ़ा क वे फलाने आदमी' कहानी छोड़ती ह।
'डायरी म नीलकसुम' कहानी जाित-भेद का उदाहरण ह, िजसम शुा देखती ह िकतना
अंतर ह हक़क़त म। एक तरफ वे अछ?त ह, दूसरी तरफ़ उह भोगने म अछ?तपन कहाँ चला
जाता ह।
'ढड़ चले जै ह का क संगे' कहानी बाल मनोिवान क साथ बड़ होते मनुय क
मनोिवान को परलित करती ह जहाँ बायकाल का परवेश जब मज़ क िबना ज़बरदती
छ?ड़वाया जाता ह उसका िवपरीत भाव िकस उ म आकर परलित हो सकता ह, उसका
यथाथ समुख उप थत करती ह। साथ ही सोशल मीिडया ने कसे मनुय को मनुय का दुमन
बना िदया ह, िजसका दु भाव एक मनुय को कसे िवि कर सकता ह, उसक जीवन क
आित ले सकता ह, येक पहलू को रखांिकत करती ह।
'हराम का अंडा' कहानी इनफिटलाइज़ेशन क समया पर आधारत ह जहाँ एक धम िवशेष
म कसे इस ? ?? ारा ा एग को हराम का अंडा सािबत कर िदया जाता ह। कसे धम क
अफम म जकड़ा मनुय पढ़-िलख कर भी अनपढ़ िस होता ह उसे कहानी परभािषत करती
ह।
'नोटा जान' कहानी एक िक?र ारा गु प से अपने परवार क पालन पोषण करने क
प म उभरती ह, जहाँ वह नगर पािलका का चुनाव भी जीतती ह लेिकन पुनः अपने पेशे म
वापस आना पड़ता ह। कसे उसका पेशा ही न कवल उसका अिपतु उसक परवार क पालन-
वंदना गुा
मोबाइल 9868077896
ईमेल- rosered8fl[email protected]
दीपक िगरकर
28-सी, वैभव नगर, कनािडया रोड,
इदौर- 452016 म
मोबाइल- 9425067036
ईमेल- [email protected]
नीरज नीर
आशीवाद, बु िवहार, OPP – रोड नंबर
4, अशोक नगर, Po – डोरडा, राँची-
834002
मोबाइल- 8789263238
ईमेल- [email protected]
क म पुतक
(कहानी संह)
ज़ोया देसाई कॉटज
समीक : वंदना गुा, दीपक
िगरकर, नीरज नीर
लेखक : पंकज सुबीर
काशक : िशवना काशन, साट
कॉ लैस बेसमट, सीहोर, म
466001, फ़ोन-07562405545
मोबाइल- +91-9806162184
ईमेल- [email protected]
रण, वाथ और अहकार क चोट से
मनुयता क टटन और यु से िवषा हो रह
वातावरण क घुटन को देख अनदेखा नह
करत, अपनी क़लम और आँख बंद नह
करती, अपने अनुभव को संवेदना क
चाक पर ढालती ह। इसिलए उनक रचना
क पृ?भूिम चाह जो हो वतमान यथाथ प
म ितिबंिबत होता ह।
इस नाटक को पढ़ते ए कह-कह ऐसा
लगता ह िक वै क िचंता त रचनाकार
का मानस महाभारत क कथा संग को उठाने
म यादा सजग हो गया ह, िजसक कारण
वैचारक क धार म कथावतु का वाह
कह-कह अव -सा ह। कथा म ड?बने-
उतारने क चाह नाटक क संि होने क
कारण बाक़ रह जाती ह। नाटक का पाँचवा,
सातवाँ और नौवाँ य वागत कथन क प
म महज एक-दो पृ म ही आया ह। नव
य म िहिडबा क वगत कथन क बाद
य य क वर क साथ एक यापक न
छोड़ता आ नाटक समा हो गया ह। न
क कई रशे, िज़ंदगी क कई रग इसम साफ
नज़र आते ह। इसक पृ से गहराई से जुड़ने
पर पता चलता ह िक यहाँ वैचारक क तीन
धरातल ह- ी मन क यथा-वेदना,
वनवािसय क पीड़ा और मनुयता का दंश।
हसदेव क जंगल को बचाने क िलए चल रह
आिदवािसय क संघष क ित संवेदनशीलता
इसक पृ?भूिम ह। यु क बाद क कथा होने
क कारण एक गहरी िनराशा, िवषाद, यथा क
परेय से िहिडबा क कथा ऐसी ही हो
सकती थी। यथा अपन से िबछोह क, पीड़ा
और आँसू तथा चीकार क त पृ?भूिम पर
अंिकत िहिडबा और भीम क िमलन क रसमय
संग छट क तरह ही हो सकते थे, सुमन
कशरी ने िमलन और िबछोह क, ेम क
कथा कही ही नह ह। यह वातव म कवल
ी क कथा नह, िहिडबा क मायम से
मनुयता क कथा ह।
िहिडबा तीक ह एक तरफ तो ऐसी ी
का िजसका पयाय ेम ह, बिलदान ह; दूसरी
तरफ िहिडबा तीक ह बु वनवािसय का
भी, जो सय समाज क उपयोिगतावादी
नीितयाँ जान चुक ह। लेिखका ने अ?ुत
ना? कौशल से िहिडब क आमा क संग
क नवीन उ?ावना कर वनवासी समाज क
ोभ, ोध को अिभय दी ह- " या कभी
राजा मरा ह " नह... मरती तो कवल जा ह
और िफर हम तो वनवासी ह पशु से भी गए
बीते !... हम सब पीढ़ी दर पीढ़ी उनक सेवक
रहगे और जब कभी हम उनका िवरोध करगे
तब हम पशु क तरह िबंध िदए जाएँगे। सुन
लो मेरी भिवयवाणी।"(पृ संया 17)
िहिडबा क यह भिवयवाणी युग से चरताथ
हो रही ह।
नगरीय सयता अपनी पूरी चकाचध क
साथ पाँव पसार रही ह और वन ांतर
िसकड़ते जा रह ह। िहिडबा नागर जन क
क सत मानिसकता पर कठाराघात करती ह।
उसका ोध, उसका ोभ सब उसक
अुण ेम क तरह ही नैसिगक ह- " हम
वनवासी ह... अगर वीर ए तो रास और
दुरामा ही तो कहलाएँगे...हम मनुय थोड़ ही
ह... मनुय तो कवल नगर व पुर म रहने वाले
लोग ह ..."। (पृ? संया-36) सय संप?
समाज वंिचत वनवासी समाज क याग क
देन ह। वह दूसर क इछा क अ न क ड
म अपनी आित देते आए ह, अपने अिधकार
छोड़ने आए ह, बस क य िनभाते आए ह।
उनक मौन को लेिखका ने िहिडबा क मायम
से मुखरत िकया ह- "आित ...आित...पर
आित हरदम हम जैस क ही य ? हर यु
म हम ही? हम ही मार जाएँ... या हम मनुय
नह ? या हममे भावनाएँ नह ... या हम
लोग जीने क इछा और अिधकार नह रख
सकते ? य ...य.." (पृ? संया 41)
िहिडबा क न क कठघर म पूरा सय
समाज खड़ा नज़र आता ह। संपूण नाटक म
िहिडबा कह भी लाचार नज़र नह आती,
थितयाँ उसे यिथत ज़र करती ह लेिकन
वह कह घुटने नह टकती।
बबरीक महाभारत का िवलण चर ह
वह नाटक म अंधी युाकांा का ितप
रचता ह। यु क भयानक य और
यु परांत क े म शव क ढर, कट अंग
क ढर और उनसे उठाती सडाँध को दशाते
कण तथा वीभस रस क सृ करते उसक
संवाद यु क िव ह। वह यु का साी ह
इसिलए उसक अनुभव िव को युोमाद
से बचने का सबक ह- "यु क मूल म भूिम
व सा का लोभ तो ह ही िकतु उससे यादा
वह अहकार का िवषय ह ...अपने को ?
िदखाने क बात... िवनाश व मृयु म ेता
खोजने वाले जीव ह हम! कौन रोकगा
यह...आह!"(पृ संया 54) इस संवाद म
आया 'कौन' आ?ान ह नवयुवक क िलए
िव को शांित क राते पर ले जाकर िववंस
से बचने का साहस युवा म ही हो सकता
ह। यु से तबाह होते हर े को, उसक
?ाला म जलते परवेश को और दद मनुयता
को संबल देता ह यह नाटक। इस नाटक का
अंत इस संवाद से होता ह- " या सचमुच
यु क अलावा कोई दूसरा उपाय नह... या
यु ही एकमा उपाय ह... नह...
नह...।"(पृ संया-60)
वातव म यह मनुयता क चीकार ह
िजसे मानव न जाने कब से अनसुनी करता आ
रहा ह। अंधी साकांा और हर तरह क
शोषण क िव इस रचना क क म
मनुयता क िचंता ह और परिध म समा गई ह
समत सामािजक, राजनीितक िवडबनाएँ।
यह छल, शोषण और उसक िशनात क
कथा ह।
सुमन कशरी ने इस नाटक म कपना
और िमथक का ऐसा अ?ुत मेल िकया ह
िजसक काश म हम देखते ह आज क समाज
क यथाथ को। वै क िचंता पर कित
इसका कथानक मानवीय मूय को उ?ािटत
करता ह। यह रचना अपने छोट से कलेवर म
बआयामी ह। एक तरफ यह वाथ कित
सयता क नीितय क िव रचनामक
हतेप ह, दूसरी तरफ यु क िव ह।
एक तरफ शोषण क मानिसकता क
िशनात कर उसका ितप रचती ह, तो
दूसरी तरफ ी क ेम-याग को उािटत
भी करती ह। नाटककार क जनपधरता,
मानवीय मूय क ित िचंता सब इसक पृ
से लित होती ह।
000

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 202521 20 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2025
पठनीयता इन कहािनय का बड़ा गुण ह
वंदना गुा
िक़सागोई का जीवन म हमेशा महवपूण थान रहा। पूव म िक़सागोई क मायम से ही
कहािनयाँ एक थान से दूसर थान पर मण करती थ। जो अनपढ़ थे वे भी इसी मायम से
कहािनय क दुिनया म वेश करते थे। आज क दौर म जब अिधकतर पढ़-िलखे ह, संचार क
अनेक मायम ह, ऐसे म इस िवधा को बचाए रखना और बनाए रखना सहज नह, लेिकन
सािह यक जग म एक िक़सागो ह िजहने अपना लेखन अिधकतर िक़सागो क प म ही
िकया। उनक कहािनय क यही िवशेषता रही िजसम आपको एक ऐसा िक़सागो देखने को
िमलेगा जो कहािनय म कई बार पा क नाम भी नह देता। नाम न देकर वे जैसे िस करना
चाहते ह, ये घटना अथवा ये कहानी िकसी एक को लित करक नह कही गई ह। ऐसा िकसी
क भी साथ घिटत हो सकता ह। इस कार कथा को वे एक बड़ा परवेश देते ह। उसका आकार
वृह हो जाता ह।
िक़सागोई अंदाज़ म िलिखत संह ह- 'जोया देसाई कॉटज' िजसक लेखक ह पंकज
सुबीर। इस संह म कहािनय क अनेक रग देखने को िमलते ह। जैसे जीवन िविवध रगी ह, वैसे
ही कहािनयाँ भी िविवध रगी ह। अभी हम सभी महामारी क दौर से गुज़र ह और उसी को क म
रखते ए मनुय क संवेदना और असंवेदना का िददशन कहानी कराती ह। एक महामारी ने
जैसे रत पर पड़ समत परदे उठा िदए। हम जो कहते ह- 'तेर िबना हम रह नह सकते, तुहार
िलए अपनी जान दे दगे', ये कोर शद मुँह िचढ़ाते तीत होते ह। मनुय िकतना असंवेदनशील
ाणी ह उसका दशन कहानी कराती ह। अपन से ही अपने डरने लगे लेिकन दूसरी ओर, कछ
संवेदनशील लोग ने िमसाल क़ायम क, अपनी जान क परवाह न करते ए उन शव को
िठकाने लगाया, उह उनक अंितम मंिज़ल पर प चाया। मनुय क असंवेदनशीलता वहाँ
सबसे अिधक गोचर होती ह, जब िपता को हाथ न लगाने वाली बेटी उसक िचता क साथ
खड़ी होकर मीिडया क मायम से जनता क संवेदना हण करती ह। िजसे ये ात न हो, िपता
िकतने िदन पहले मृयु को ा हो गया, वो ही बेटी अपने टीवी चैनल क पकार पित क िलए
इस कार क बाइट देती ह। इस कहानी क मायम से लेखक यही कहना चाहते ह िक िकतने
असंवेदनशील होते ह मनुय, जो लाश को भी भुनाने से नह चूकते। या वातव म हम मनुय ह
का न 'थिगत समय गुफ़ा क वे फलाने आदमी' कहानी छोड़ती ह।
'डायरी म नीलकसुम' कहानी जाित-भेद का उदाहरण ह, िजसम शुा देखती ह िकतना
अंतर ह हक़क़त म। एक तरफ वे अछ?त ह, दूसरी तरफ़ उह भोगने म अछ?तपन कहाँ चला
जाता ह।
'ढड़ चले जै ह का क संगे' कहानी बाल मनोिवान क साथ बड़ होते मनुय क
मनोिवान को परलित करती ह जहाँ बायकाल का परवेश जब मज़ क िबना ज़बरदती
छ?ड़वाया जाता ह उसका िवपरीत भाव िकस उ म आकर परलित हो सकता ह, उसका
यथाथ समुख उप थत करती ह। साथ ही सोशल मीिडया ने कसे मनुय को मनुय का दुमन
बना िदया ह, िजसका दु भाव एक मनुय को कसे िवि कर सकता ह, उसक जीवन क
आित ले सकता ह, येक पहलू को रखांिकत करती ह।
'हराम का अंडा' कहानी इनफिटलाइज़ेशन क समया पर आधारत ह जहाँ एक धम िवशेष
म कसे इस ? ?? ारा ा एग को हराम का अंडा सािबत कर िदया जाता ह। कसे धम क
अफम म जकड़ा मनुय पढ़-िलख कर भी अनपढ़ िस होता ह उसे कहानी परभािषत करती
ह।
'नोटा जान' कहानी एक िक?र ारा गु प से अपने परवार क पालन पोषण करने क
प म उभरती ह, जहाँ वह नगर पािलका का चुनाव भी जीतती ह लेिकन पुनः अपने पेशे म
वापस आना पड़ता ह। कसे उसका पेशा ही न कवल उसका अिपतु उसक परवार क पालन-
वंदना गुा
मोबाइल 9868077896
ईमेल- rosered8fl[email protected]
दीपक िगरकर
28-सी, वैभव नगर, कनािडया रोड,
इदौर- 452016 म
मोबाइल- 9425067036
ईमेल- [email protected]
नीरज नीर
आशीवाद, बु िवहार, OPP – रोड नंबर
4, अशोक नगर, Po – डोरडा, राँची-
834002
मोबाइल- 8789263238
ईमेल- [email protected]
क म पुतक
(कहानी संह)
ज़ोया देसाई कॉटज
समीक : वंदना गुा, दीपक
िगरकर, नीरज नीर
लेखक : पंकज सुबीर
काशक : िशवना काशन, साट
कॉ लैस बेसमट, सीहोर, म
466001, फ़ोन-07562405545
मोबाइल- +91-9806162184
ईमेल- [email protected]
रण, वाथ और अहकार क चोट से
मनुयता क टटन और यु से िवषा हो रह
वातावरण क घुटन को देख अनदेखा नह
करत, अपनी क़लम और आँख बंद नह
करती, अपने अनुभव को संवेदना क
चाक पर ढालती ह। इसिलए उनक रचना
क पृ?भूिम चाह जो हो वतमान यथाथ प
म ितिबंिबत होता ह।
इस नाटक को पढ़ते ए कह-कह ऐसा
लगता ह िक वै क िचंता त रचनाकार
का मानस महाभारत क कथा संग को उठाने
म यादा सजग हो गया ह, िजसक कारण
वैचारक क धार म कथावतु का वाह
कह-कह अव -सा ह। कथा म ड?बने-
उतारने क चाह नाटक क संि होने क
कारण बाक़ रह जाती ह। नाटक का पाँचवा,
सातवाँ और नौवाँ य वागत कथन क प
म महज एक-दो पृ म ही आया ह। नव
य म िहिडबा क वगत कथन क बाद
य य क वर क साथ एक यापक न
छोड़ता आ नाटक समा हो गया ह। न
क कई रशे, िज़ंदगी क कई रग इसम साफ
नज़र आते ह। इसक पृ से गहराई से जुड़ने
पर पता चलता ह िक यहाँ वैचारक क तीन
धरातल ह- ी मन क यथा-वेदना,
वनवािसय क पीड़ा और मनुयता का दंश।
हसदेव क जंगल को बचाने क िलए चल रह
आिदवािसय क संघष क ित संवेदनशीलता
इसक पृ?भूिम ह। यु क बाद क कथा होने
क कारण एक गहरी िनराशा, िवषाद, यथा क
परेय से िहिडबा क कथा ऐसी ही हो
सकती थी। यथा अपन से िबछोह क, पीड़ा
और आँसू तथा चीकार क त पृ?भूिम पर
अंिकत िहिडबा और भीम क िमलन क रसमय
संग छट क तरह ही हो सकते थे, सुमन
कशरी ने िमलन और िबछोह क, ेम क
कथा कही ही नह ह। यह वातव म कवल
ी क कथा नह, िहिडबा क मायम से
मनुयता क कथा ह।
िहिडबा तीक ह एक तरफ तो ऐसी ी
का िजसका पयाय ेम ह, बिलदान ह; दूसरी
तरफ िहिडबा तीक ह बु वनवािसय का
भी, जो सय समाज क उपयोिगतावादी
नीितयाँ जान चुक ह। लेिखका ने अ?ुत
ना? कौशल से िहिडब क आमा क संग
क नवीन उ?ावना कर वनवासी समाज क
ोभ, ोध को अिभय दी ह- " या कभी
राजा मरा ह " नह... मरती तो कवल जा ह
और िफर हम तो वनवासी ह पशु से भी गए
बीते !... हम सब पीढ़ी दर पीढ़ी उनक सेवक
रहगे और जब कभी हम उनका िवरोध करगे
तब हम पशु क तरह िबंध िदए जाएँगे। सुन
लो मेरी भिवयवाणी।"(पृ संया 17)
िहिडबा क यह भिवयवाणी युग से चरताथ
हो रही ह।
नगरीय सयता अपनी पूरी चकाचध क
साथ पाँव पसार रही ह और वन ांतर
िसकड़ते जा रह ह। िहिडबा नागर जन क
क सत मानिसकता पर कठाराघात करती ह।
उसका ोध, उसका ोभ सब उसक
अुण ेम क तरह ही नैसिगक ह- " हम
वनवासी ह... अगर वीर ए तो रास और
दुरामा ही तो कहलाएँगे...हम मनुय थोड़ ही
ह... मनुय तो कवल नगर व पुर म रहने वाले
लोग ह ..."। (पृ? संया-36) सय संप?
समाज वंिचत वनवासी समाज क याग क
देन ह। वह दूसर क इछा क अ न क ड
म अपनी आित देते आए ह, अपने अिधकार
छोड़ने आए ह, बस क य िनभाते आए ह।
उनक मौन को लेिखका ने िहिडबा क मायम
से मुखरत िकया ह- "आित ...आित...पर
आित हरदम हम जैस क ही य ? हर यु
म हम ही? हम ही मार जाएँ... या हम मनुय
नह ? या हममे भावनाएँ नह ... या हम
लोग जीने क इछा और अिधकार नह रख
सकते ? य ...य.." (पृ? संया 41)
िहिडबा क न क कठघर म पूरा सय
समाज खड़ा नज़र आता ह। संपूण नाटक म
िहिडबा कह भी लाचार नज़र नह आती,
थितयाँ उसे यिथत ज़र करती ह लेिकन
वह कह घुटने नह टकती।
बबरीक महाभारत का िवलण चर ह
वह नाटक म अंधी युाकांा का ितप
रचता ह। यु क भयानक य और
यु परांत क े म शव क ढर, कट अंग
क ढर और उनसे उठाती सडाँध को दशाते
कण तथा वीभस रस क सृ करते उसक
संवाद यु क िव ह। वह यु का साी ह
इसिलए उसक अनुभव िव को युोमाद
से बचने का सबक ह- "यु क मूल म भूिम
व सा का लोभ तो ह ही िकतु उससे यादा
वह अहकार का िवषय ह ...अपने को ?
िदखाने क बात... िवनाश व मृयु म ेता
खोजने वाले जीव ह हम! कौन रोकगा
यह...आह!"(पृ संया 54) इस संवाद म
आया 'कौन' आ?ान ह नवयुवक क िलए
िव को शांित क राते पर ले जाकर िववंस
से बचने का साहस युवा म ही हो सकता
ह। यु से तबाह होते हर े को, उसक
?ाला म जलते परवेश को और दद मनुयता
को संबल देता ह यह नाटक। इस नाटक का
अंत इस संवाद से होता ह- " या सचमुच
यु क अलावा कोई दूसरा उपाय नह... या
यु ही एकमा उपाय ह... नह...
नह...।"(पृ संया-60)
वातव म यह मनुयता क चीकार ह
िजसे मानव न जाने कब से अनसुनी करता आ
रहा ह। अंधी साकांा और हर तरह क
शोषण क िव इस रचना क क म
मनुयता क िचंता ह और परिध म समा गई ह
समत सामािजक, राजनीितक िवडबनाएँ।
यह छल, शोषण और उसक िशनात क
कथा ह।
सुमन कशरी ने इस नाटक म कपना
और िमथक का ऐसा अ?ुत मेल िकया ह
िजसक काश म हम देखते ह आज क समाज
क यथाथ को। वै क िचंता पर कित
इसका कथानक मानवीय मूय को उ?ािटत
करता ह। यह रचना अपने छोट से कलेवर म
बआयामी ह। एक तरफ यह वाथ कित
सयता क नीितय क िव रचनामक
हतेप ह, दूसरी तरफ यु क िव ह।
एक तरफ शोषण क मानिसकता क
िशनात कर उसका ितप रचती ह, तो
दूसरी तरफ ी क ेम-याग को उािटत
भी करती ह। नाटककार क जनपधरता,
मानवीय मूय क ित िचंता सब इसक पृ
से लित होती ह।
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çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 202523 22 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2025
पर आगे बढ़।
एक थान पर सुजाता कहती ह 'शु क
एक दो साल दोन को सब िमलता ह बाद म
एक शरीर म एक दो साल से यादा कछ
खोजने लायक नह होता' तो यह न उठता
ह एकरसता य आने दी जाए। इसका उपाय
तो दोन को करना होता ह। िकसी एक पर
सारा दारोमदार नह डाला जा सकता। लेिकन
इस कहानी म जैसे पूणतः पुष को ी
असंतु का दोषी िदखाया गया ह। ये कहकर
छ?ट नह ली जा सकती िक पुष बाहर खोज
लेता ह लेिकन ी कहाँ जाए। यह आकर
दोन को स मिलत यास करने होते ह तािक
संबंध म जीवतता नयापन बना रह। सबसे
बड़ी समया ओग म पर प चना ही नह
होती यिक अिधकतर य को तो ओग म
क िवषय म ही ात नह होता लेिकन इस
तय को कहानी म पूरी तरह छोड़ िदया गया
ह। यिद इस तय का भी कहानी म समावेश
िकया गया होता तो कहानी का फ़लक और
यापक हो जाता।
कहानी िसपल ह। नेहा अपनी कपनी क
ओर से हवेली होटल का सव करने आई ह
और बराबर क म म रहने वाली सुजाता से
संवाद हो रहा ह। नेहा क म म एक डायरी
रखी ह िजसे नेहा पढ़ती ह और सुजाता उसक
िवषय म बात करती ह। जब नेहा डायरी पढ़
रही ह पाठक को तभी इम होने लगता ह
कहानी कह न कह इसी मु?े पर आधारत ह
जब पिवता का संबंध आरभ होता ह।
रखािच और शायरी क मायम से ात हो
जाता ह डायरी िलखने वाली कौन होगी यािन
कोई ी ह, उसका भी अंदाज़ा पाठक को
होने लगता ह। साथ ही िमयाँ क िवषय म भी
सुजाता ारा बताये जाने पर आईिडया हो
जाता ह उसका यहाँ या रोल होगा।
'हर मनोरोगी ी क मन क रोग का
कारण देह होती ह' पं को सावभौिमक
सय क भाँित तुत िकया गया ह जो
वीकार नह िकया जा सकता। सब य क
जीवन म कवल देह क कारण मनोरोगी बन
जाना कारण नह हो सकता। हाँ, इसे यिद
अिधकतर या कछ य तक सीिमत िकया
जाता, तब वीकाय होता।
कल िमलाकर कहानी एक ऐसे मु?े पर
बात कर रही ह िजस पर समाज बात नह
करना चाहता। सबसे मुय बात ये ह ी क
यौिनकता पर बात कसे हो सकती ह जबिक
उसे मनुय का दजा भी समाज नह देता। ऐसे
म इस मु?े को उठाया जाना साहस का काम
ह।
कल िमलाकर सपूण संह म मानव
जीवन क हलंत िवसग उप थत ह। पंकज
सुबीर क लेखन क ये िवशेषता ह वे अपनी
कहािनय म अछ?ते िवषय लेकर अवय
उप थत होते ह। छ?आछ?त, मानवीय
मनोिवान, िवकास, लालच, ेम, धम आिद
सभी संवेदनशील मु का कहािनय म
समावेश ह। लेखक क अपने िवषय पर पूण
पकड़ ह। कहािनयाँ पाठक को अपने साथ
बहा ले जाने म सम ह। एक बैठक म पाठक
कहािनयाँ पढ़ जाता ह। पठनीयता इन
कहािनय का बड़ा गुण ह। भाषा और शैली
लेखक क अपनी गढ़ी ई ह िजससे पाठक
परिचत ह ही। एक पठनीय कहानी संह क
िलए पंकज सुबीर बधाई क पा ह।
000
अिवमरणीय कहािनयाँ
दीपक िगरकर
िहदी क सुपरिचत कथाकार और िस
उपयास 'अकाल म उसव' और 'िजह
जुम-ए-इक़ पे नाज़ था' क लेखक पंकज
सुबीर एक संवेदनशील लेखक होने क साथ
एक संपादक भी ह। हाल ही म इनका नया
कहानी संह ज़ोया देसाई कॉटज कािशत
होकर आया ह। पंकज सुबीर क लेखन का
सफ़र बत लंबा ह। पंकज सुबीर क मुख
रचना म 'ये वो सहर तो नह', 'अकाल म
उसव', 'िजह जुम-ए-इक़ पे नाज़ था',
'दादे-सफ़र' (उपयास), 'ईट इिडया
कपनी', 'कसाब.गांधी एट यरवदा.इन',
'मआ घटवारन और अय कहािनयाँ',
'चौपड़ क चुड़ल', 'होली', 'ेम', 'रते',
'ज़ोया देसाई कॉटज' (कहानी संह), 'अभी
तुम इक़ म हो' (ग़ज़ल संह), 'बुिजीवी
समलेन' (यंय संह), यायावर ह, आवारा
ह, बंजार ह (याा संमरण) 'बारह चिचत
कहािनयाँ','िवमश ', 'िवमश-
नकाशीदार किबनेट', 'िवभोम – वर',
'िशवना सािह यक' ैमािसक सािह यक
पिकाएँ (संपादन) शािमल ह। कई पुरकार
और समान से समािनत पंकज सुबीर क
कहािनयाँ मुख सािह यक प-पिका म
कािशत होती रही ह। इस कित म जीवन क
िनत नवीन प को उजागर करती कहािनयाँ
ह। मुझे इस संह क अिधकांश कहािनयाँ
सश लगी। इस कहानी संह ज़ोया देसाई
कॉटज म कई िवषय को समेट ए 11
कहािनयाँ ह।
पंकज सुबीर म िकसागोई क अ?ुत
मता ह। इन कहािनय म लेखक क ख़ास
कहानी शैली और सू?म संवेदना को पेश
करने क उनक अ?ुत कला परलित
होती ह। उनक लेखन म ऐसी बारीक ह जो
िकरदार को सजीवता दान करती ह।
'थिगत गुफ़ा क वे फलाने आदमी' कहानी
कोरोना काल पर िलखी एक यथाथवादी,
रत क बदल जाने वाली कहानी ह। िनजी
और सामािजक रते यावसाियक रत म
बदल चुक ह। कोरोना काल म संिमत होने
क डर से लोग अपने परवार क लोग क
लाश का अंितम संकार नह कर पाते थे।
ऐसे समय म चार लोग रात-िदन लाश क
अंितम संकार म जुट रहते ह। लोग रते
भूलकर आमकित हो गए ह। कहानी म
कोरोनाकाल क दहशत प झलक रही ह।
इस लबी कहानी म कोरोना शद का योग
नह आ ह। यह कहानी पारवारक और
सामािजक रत पर सोचने क िलए मजबूर
कर देती ह। यह कहानी पाठक क रगट खड़
कर देती ह। कोरोना काल क घटना पर
िजतनी भी कहािनयाँ िलखी गई ह उनम यह
एक उक कहानी ह। 'ढड़ चले जै ह का
क संगे' कहानी आज क पर थितय को
सच क साथ अिभय करती ह। यह कहानी
य क ं तथा आमसंघष को सामने
लाती ह और साथ ही राजनैितक, सामािजक
और मनोवैािनक मु क पड़ताल करती
ह। सोशल मीिडया का घातक भाव कहानी
पोषण म सहायक िस होता ह, उसका दशन
कहानी कराती ह। लेखक ने यहाँ एक नवीन
धारणा तुत क ह और कहानी का अंत
कहता ह जैसे लेखक वयं इस कहानी म एक
पा क प म उतर ह और एक तकसंगत
कोण समाज क समुख रखा ह।
'रामवप अकला नह जाएगा' कहानी
आज िवकास क दौड़ म भागती दुिनया क
हक़क़त तुत करती ह। कसे पहले मशीन
ने मनुय को ितथािपत िकया और उसक
बाद आज ट ोलॉजी मनुय को ितथािपत
कर रही ह, उसका कट? वप सामने रखती
ह। ये मनुय को सोचना होगा वो कसे भिवय
का िनमाण कर रहा ह जहाँ कल संभव ह
िजसका वो अिवकार कर रहा ह वही
ट ोलॉजी उससे उसक रोज़ी ही न छीन ले,
का सदेश कहानी देती ह। भिवय क दुिनया
का भयावह दशन कहानी कराती ह।
शीषक कहानी 'जोया देसाई कॉटज' एक
ी क चाहत क कहानी बनकर उभरती ह।
'जूली और कालू क ेम कथा म गोबर' आज
भी गोदान से आगे क यथाथ को तुत करती
ह िजसम लेखक कहना चाहते ह होरी क
िक़मत कभी नह बदलती िफर वो बीसव
सदी हो या इकसव।
'जाल फक र मछर' कहानी एक ऐसी ी
क कहानी ह िजसका भरा-पूरा परवार ह।
ेम ह लेिकन अपनी अदय इछा,
लालसा क चलते कसे वयं ही अपने पु
क जीवन म आग लगा देती ह। अपनी जेठानी
फरीदा क रहन सहन से इया करती ी ह
सकना। उसक एक ही लालसा ह िकसी भी
कार अपना तर उ करना। अपने बेट
तािहर को एक पैसे वाली आसामी क लड़क
से िववाह क िलए ज़बरदती राज़ी करती ह।
सपस अंत म खुलता ह जब सब कछ हाथ से
िनकल जाता ह, जब तािहर बताता ह वो
लड़क से नह उसक माँ से िववाह करना
चाहता ह यिक माँ भी अयिधक सुदर थी
और उ भी उसक यादा न थी। सकना
चाहती थी लड़क से िववाह क बहाने उसक
तमाम जायदाद इह िमल जाएगी इसिलए
बार-बार वहाँ भेजती ह। इस कहानी को पढ़ते
ए एक तो बीच म ही अंदेशा हो जाता ह, जब
तािहर बार-बार वहाँ जाता ह िक कह ऐसा न
हो बेटी क थान पर माँ को न पसंद कर ले।
दूसरी बात, इस कहानी को पढ़ते ए तेज
शमा क कहानी 'मलबे क मालिकन' यान
म आती ह उसम भी लड़का बेटी क थान पर
माँ को पसंद करता ह और उससे िववाह
करना चाहता ह। एक ही लाट पर दो
कहािनयाँ सामने आती ह लेिकन दोन का
ीटमट एक दूसर से जुदा ह। तेज शमा क
कहानी म माँ अपनी बेटी क िलए उस लड़क
को चुनती ह, िकतु लड़क ारा जब कहा
जाता ह वो लड़क से नह माँ से िववाह करना
चाहता ह यिक उसक िनगाह म लड़क
अभी बी ह जबिक माँ मैयोर। पंकज सुबीर
क कहानी म एक माँ वयं अपने पु को उस
घर म भेजती ह यिक लालच म अंधी हो
जाती ह। सबक ारा समझाने पर भी िकसी
क नह सुनती। लड़क क माँ बत तेज़ ह।
िकसी से संबंध नह, ऐसी वाताएँ भी उसे
अपने पथ से नह िडगाती जो यही िस करता
ह लालच क प?ी ने सकना क सोचने
समझने क श ही समा कर दी। इस
कहानी म लड़क और उसक माँ, कवल पा
प म ह लेिकन उनक कह उप थित दज
नह होती। कह पता नह चलता उहने कसे
तािहर को फसाया या वो ?द फसा। कवल
उनक अ य उप थित ह। इस लाट पर
पहले भी कई कहािनयाँ िलखी जा चुक ह
लेिकन सबका ीटमट अलग ही रहा ह।
यिद एक पं म कहा जाए तो पंकज
सुबीर क कहानी 'खजुराहो' मिहला ओग म
पर बात करती ह। मुख बात ये ह सांकितक
प से कहानी बुनी गई ह। जो कहा गया ह
संकत म कहा गया ह। ये पंकज सुबीर क
लेखन क ?बी ह, जब भी वो िकसी ऐसे
िवषय पर कहानी िलखते ह तो संकत क
मायम से अपनी बात कहते ह और वह
पाठक तक ेिषत भी होती ह।
पंकज सुबीर ने इस कहानी को
सावभौिमक सय क भाँित तुत िकया ह
जहाँ एक ी सुजाता ारा यही िस िकया
जा रहा ह। इस िवषय पर असर फसबुक पर
?ब चचा ई ह। ी पुष क बुनावट ऐसी
ह जहाँ पुष क धैय क परीा होती ह। ी
या चाहती ह, कसे ओग म तक प चती ह,
इसे समझना िकसी कल म नह िसखाया
जाता न ही िकसी पा म म पढाया जाता।
यही कारण ह याँ अिधकतर असंतु? रहती
ह लेिकन इस कारण दस म से नौ याँ या
अिधकतर याँ मनोरोगी हो जाती ह, ऐसा
कहना भी उिचत नह यिक कहानी म वयं
सुजाता मान रही ह उस तर तक हर पुष नह
प च सकता। 'दस हज़ार म कोई एक इस
खेल का एसपट होता ह और एक हज़ार म
कोई एक इस खेल को ठीक ठाक खेलना
जानता ह' - जब सुजाता वयं मानती ह तो
इसका अथ यही िनकलता ह। ी फोर ले भी
चाहती ह लेिकन पुष कवल ले, यही अंतर
ह और उसी को कहानी म ढाला ह जहाँ मुय
न ये उठाया गया ह यिक य को
पिवता और अपिवता क खाँचे म बाँटा
गया ह। पुष तो ऐसा नह मानता और जब जो
चाहता ह ा कर लेता ह लेिकन ी क
िलए अनेक ल?मण रखाएँ ह। अतः य
को वयं ये ल?मण रखाएँ तोड़नी हगी। न
उठता ह यिद सभी याँ ऐसा करने लग तो
समाज िकस ओर जाएगा यिक कहानी म
कवल और कवल ी क दैिहक संतु को
ही टारगेट िकया गया ह।
पंकज सुबीर क ये कहानी कवल यही
कहना चाहती िदख रही ह यिद अपने खजुराहो
को याँ ा करना चाहती ह तो नैितकता
का लबादा उतार और दरया म कद जाएँ,
अवय कह न कह िकनारा िमल जाएगा
लेिकन इसे सावभौिमक सय क प म भी
नह वीकारा जा सकता यिक इसका उर
भी कहानी वयं दे रही ह। संभव नह िजससे
संबंध बनाए जाएँ वो ी को उसक िवफोट
तक प चा सक। ऐसे म ाय ाय एंड ाय
अगेन का फामूला ही चलता रहगा जब तक
वो थित नह आती यिक कहानी क
अनुसार ऐसे चांस हज़ार म एक ह। अतः एक
िनकष देते ए सावधान न करते ए भी कर
रही ह कहानी, जैसे कह रही हो - याी अपने
माल क वयं रा कर अथात अपने रक

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 202523 22 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2025
पर आगे बढ़।
एक थान पर सुजाता कहती ह 'शु क
एक दो साल दोन को सब िमलता ह बाद म
एक शरीर म एक दो साल से यादा कछ
खोजने लायक नह होता' तो यह न उठता
ह एकरसता य आने दी जाए। इसका उपाय
तो दोन को करना होता ह। िकसी एक पर
सारा दारोमदार नह डाला जा सकता। लेिकन
इस कहानी म जैसे पूणतः पुष को ी
असंतु का दोषी िदखाया गया ह। ये कहकर
छ?ट नह ली जा सकती िक पुष बाहर खोज
लेता ह लेिकन ी कहाँ जाए। यह आकर
दोन को स मिलत यास करने होते ह तािक
संबंध म जीवतता नयापन बना रह। सबसे
बड़ी समया ओग म पर प चना ही नह
होती यिक अिधकतर य को तो ओग म
क िवषय म ही ात नह होता लेिकन इस
तय को कहानी म पूरी तरह छोड़ िदया गया
ह। यिद इस तय का भी कहानी म समावेश
िकया गया होता तो कहानी का फ़लक और
यापक हो जाता।
कहानी िसपल ह। नेहा अपनी कपनी क
ओर से हवेली होटल का सव करने आई ह
और बराबर क म म रहने वाली सुजाता से
संवाद हो रहा ह। नेहा क म म एक डायरी
रखी ह िजसे नेहा पढ़ती ह और सुजाता उसक
िवषय म बात करती ह। जब नेहा डायरी पढ़
रही ह पाठक को तभी इम होने लगता ह
कहानी कह न कह इसी मु?े पर आधारत ह
जब पिवता का संबंध आरभ होता ह।
रखािच और शायरी क मायम से ात हो
जाता ह डायरी िलखने वाली कौन होगी यािन
कोई ी ह, उसका भी अंदाज़ा पाठक को
होने लगता ह। साथ ही िमयाँ क िवषय म भी
सुजाता ारा बताये जाने पर आईिडया हो
जाता ह उसका यहाँ या रोल होगा।
'हर मनोरोगी ी क मन क रोग का
कारण देह होती ह' पं को सावभौिमक
सय क भाँित तुत िकया गया ह जो
वीकार नह िकया जा सकता। सब य क
जीवन म कवल देह क कारण मनोरोगी बन
जाना कारण नह हो सकता। हाँ, इसे यिद
अिधकतर या कछ य तक सीिमत िकया
जाता, तब वीकाय होता।
कल िमलाकर कहानी एक ऐसे मु?े पर
बात कर रही ह िजस पर समाज बात नह
करना चाहता। सबसे मुय बात ये ह ी क
यौिनकता पर बात कसे हो सकती ह जबिक
उसे मनुय का दजा भी समाज नह देता। ऐसे
म इस मु?े को उठाया जाना साहस का काम
ह।
कल िमलाकर सपूण संह म मानव
जीवन क हलंत िवसग उप थत ह। पंकज
सुबीर क लेखन क ये िवशेषता ह वे अपनी
कहािनय म अछ?ते िवषय लेकर अवय
उप थत होते ह। छ?आछ?त, मानवीय
मनोिवान, िवकास, लालच, ेम, धम आिद
सभी संवेदनशील मु का कहािनय म
समावेश ह। लेखक क अपने िवषय पर पूण
पकड़ ह। कहािनयाँ पाठक को अपने साथ
बहा ले जाने म सम ह। एक बैठक म पाठक
कहािनयाँ पढ़ जाता ह। पठनीयता इन
कहािनय का बड़ा गुण ह। भाषा और शैली
लेखक क अपनी गढ़ी ई ह िजससे पाठक
परिचत ह ही। एक पठनीय कहानी संह क
िलए पंकज सुबीर बधाई क पा ह।
000
अिवमरणीय कहािनयाँ
दीपक िगरकर
िहदी क सुपरिचत कथाकार और िस
उपयास 'अकाल म उसव' और 'िजह
जुम-ए-इक़ पे नाज़ था' क लेखक पंकज
सुबीर एक संवेदनशील लेखक होने क साथ
एक संपादक भी ह। हाल ही म इनका नया
कहानी संह ज़ोया देसाई कॉटज कािशत
होकर आया ह। पंकज सुबीर क लेखन का
सफ़र बत लंबा ह। पंकज सुबीर क मुख
रचना म 'ये वो सहर तो नह', 'अकाल म
उसव', 'िजह जुम-ए-इक़ पे नाज़ था',
'दादे-सफ़र' (उपयास), 'ईट इिडया
कपनी', 'कसाब.गांधी एट यरवदा.इन',
'मआ घटवारन और अय कहािनयाँ',
'चौपड़ क चुड़ल', 'होली', 'ेम', 'रते',
'ज़ोया देसाई कॉटज' (कहानी संह), 'अभी
तुम इक़ म हो' (ग़ज़ल संह), 'बुिजीवी
समलेन' (यंय संह), यायावर ह, आवारा
ह, बंजार ह (याा संमरण) 'बारह चिचत
कहािनयाँ','िवमश ', 'िवमश-
नकाशीदार किबनेट', 'िवभोम – वर',
'िशवना सािह यक' ैमािसक सािह यक
पिकाएँ (संपादन) शािमल ह। कई पुरकार
और समान से समािनत पंकज सुबीर क
कहािनयाँ मुख सािह यक प-पिका म
कािशत होती रही ह। इस कित म जीवन क
िनत नवीन प को उजागर करती कहािनयाँ
ह। मुझे इस संह क अिधकांश कहािनयाँ
सश लगी। इस कहानी संह ज़ोया देसाई
कॉटज म कई िवषय को समेट ए 11
कहािनयाँ ह।
पंकज सुबीर म िकसागोई क अ?ुत
मता ह। इन कहािनय म लेखक क ख़ास
कहानी शैली और सू?म संवेदना को पेश
करने क उनक अ?ुत कला परलित
होती ह। उनक लेखन म ऐसी बारीक ह जो
िकरदार को सजीवता दान करती ह।
'थिगत गुफ़ा क वे फलाने आदमी' कहानी
कोरोना काल पर िलखी एक यथाथवादी,
रत क बदल जाने वाली कहानी ह। िनजी
और सामािजक रते यावसाियक रत म
बदल चुक ह। कोरोना काल म संिमत होने
क डर से लोग अपने परवार क लोग क
लाश का अंितम संकार नह कर पाते थे।
ऐसे समय म चार लोग रात-िदन लाश क
अंितम संकार म जुट रहते ह। लोग रते
भूलकर आमकित हो गए ह। कहानी म
कोरोनाकाल क दहशत प झलक रही ह।
इस लबी कहानी म कोरोना शद का योग
नह आ ह। यह कहानी पारवारक और
सामािजक रत पर सोचने क िलए मजबूर
कर देती ह। यह कहानी पाठक क रगट खड़
कर देती ह। कोरोना काल क घटना पर
िजतनी भी कहािनयाँ िलखी गई ह उनम यह
एक उक कहानी ह। 'ढड़ चले जै ह का
क संगे' कहानी आज क पर थितय को
सच क साथ अिभय करती ह। यह कहानी
य क ं तथा आमसंघष को सामने
लाती ह और साथ ही राजनैितक, सामािजक
और मनोवैािनक मु क पड़ताल करती
ह। सोशल मीिडया का घातक भाव कहानी
पोषण म सहायक िस होता ह, उसका दशन
कहानी कराती ह। लेखक ने यहाँ एक नवीन
धारणा तुत क ह और कहानी का अंत
कहता ह जैसे लेखक वयं इस कहानी म एक
पा क प म उतर ह और एक तकसंगत
कोण समाज क समुख रखा ह।
'रामवप अकला नह जाएगा' कहानी
आज िवकास क दौड़ म भागती दुिनया क
हक़क़त तुत करती ह। कसे पहले मशीन
ने मनुय को ितथािपत िकया और उसक
बाद आज ट ोलॉजी मनुय को ितथािपत
कर रही ह, उसका कट? वप सामने रखती
ह। ये मनुय को सोचना होगा वो कसे भिवय
का िनमाण कर रहा ह जहाँ कल संभव ह
िजसका वो अिवकार कर रहा ह वही
ट ोलॉजी उससे उसक रोज़ी ही न छीन ले,
का सदेश कहानी देती ह। भिवय क दुिनया
का भयावह दशन कहानी कराती ह।
शीषक कहानी 'जोया देसाई कॉटज' एक
ी क चाहत क कहानी बनकर उभरती ह।
'जूली और कालू क ेम कथा म गोबर' आज
भी गोदान से आगे क यथाथ को तुत करती
ह िजसम लेखक कहना चाहते ह होरी क
िक़मत कभी नह बदलती िफर वो बीसव
सदी हो या इकसव।
'जाल फक र मछर' कहानी एक ऐसी ी
क कहानी ह िजसका भरा-पूरा परवार ह।
ेम ह लेिकन अपनी अदय इछा,
लालसा क चलते कसे वयं ही अपने पु
क जीवन म आग लगा देती ह। अपनी जेठानी
फरीदा क रहन सहन से इया करती ी ह
सकना। उसक एक ही लालसा ह िकसी भी
कार अपना तर उ करना। अपने बेट
तािहर को एक पैसे वाली आसामी क लड़क
से िववाह क िलए ज़बरदती राज़ी करती ह।
सपस अंत म खुलता ह जब सब कछ हाथ से
िनकल जाता ह, जब तािहर बताता ह वो
लड़क से नह उसक माँ से िववाह करना
चाहता ह यिक माँ भी अयिधक सुदर थी
और उ भी उसक यादा न थी। सकना
चाहती थी लड़क से िववाह क बहाने उसक
तमाम जायदाद इह िमल जाएगी इसिलए
बार-बार वहाँ भेजती ह। इस कहानी को पढ़ते
ए एक तो बीच म ही अंदेशा हो जाता ह, जब
तािहर बार-बार वहाँ जाता ह िक कह ऐसा न
हो बेटी क थान पर माँ को न पसंद कर ले।
दूसरी बात, इस कहानी को पढ़ते ए तेज
शमा क कहानी 'मलबे क मालिकन' यान
म आती ह उसम भी लड़का बेटी क थान पर
माँ को पसंद करता ह और उससे िववाह
करना चाहता ह। एक ही लाट पर दो
कहािनयाँ सामने आती ह लेिकन दोन का
ीटमट एक दूसर से जुदा ह। तेज शमा क
कहानी म माँ अपनी बेटी क िलए उस लड़क
को चुनती ह, िकतु लड़क ारा जब कहा
जाता ह वो लड़क से नह माँ से िववाह करना
चाहता ह यिक उसक िनगाह म लड़क
अभी बी ह जबिक माँ मैयोर। पंकज सुबीर
क कहानी म एक माँ वयं अपने पु को उस
घर म भेजती ह यिक लालच म अंधी हो
जाती ह। सबक ारा समझाने पर भी िकसी
क नह सुनती। लड़क क माँ बत तेज़ ह।
िकसी से संबंध नह, ऐसी वाताएँ भी उसे
अपने पथ से नह िडगाती जो यही िस करता
ह लालच क प?ी ने सकना क सोचने
समझने क श ही समा कर दी। इस
कहानी म लड़क और उसक माँ, कवल पा
प म ह लेिकन उनक कह उप थित दज
नह होती। कह पता नह चलता उहने कसे
तािहर को फसाया या वो ?द फसा। कवल
उनक अ य उप थित ह। इस लाट पर
पहले भी कई कहािनयाँ िलखी जा चुक ह
लेिकन सबका ीटमट अलग ही रहा ह।
यिद एक पं म कहा जाए तो पंकज
सुबीर क कहानी 'खजुराहो' मिहला ओग म
पर बात करती ह। मुख बात ये ह सांकितक
प से कहानी बुनी गई ह। जो कहा गया ह
संकत म कहा गया ह। ये पंकज सुबीर क
लेखन क ?बी ह, जब भी वो िकसी ऐसे
िवषय पर कहानी िलखते ह तो संकत क
मायम से अपनी बात कहते ह और वह
पाठक तक ेिषत भी होती ह।
पंकज सुबीर ने इस कहानी को
सावभौिमक सय क भाँित तुत िकया ह
जहाँ एक ी सुजाता ारा यही िस िकया
जा रहा ह। इस िवषय पर असर फसबुक पर
?ब चचा ई ह। ी पुष क बुनावट ऐसी
ह जहाँ पुष क धैय क परीा होती ह। ी
या चाहती ह, कसे ओग म तक प चती ह,
इसे समझना िकसी कल म नह िसखाया
जाता न ही िकसी पा म म पढाया जाता।
यही कारण ह याँ अिधकतर असंतु? रहती
ह लेिकन इस कारण दस म से नौ याँ या
अिधकतर याँ मनोरोगी हो जाती ह, ऐसा
कहना भी उिचत नह यिक कहानी म वयं
सुजाता मान रही ह उस तर तक हर पुष नह
प च सकता। 'दस हज़ार म कोई एक इस
खेल का एसपट होता ह और एक हज़ार म
कोई एक इस खेल को ठीक ठाक खेलना
जानता ह' - जब सुजाता वयं मानती ह तो
इसका अथ यही िनकलता ह। ी फोर ले भी
चाहती ह लेिकन पुष कवल ले, यही अंतर
ह और उसी को कहानी म ढाला ह जहाँ मुय
न ये उठाया गया ह यिक य को
पिवता और अपिवता क खाँचे म बाँटा
गया ह। पुष तो ऐसा नह मानता और जब जो
चाहता ह ा कर लेता ह लेिकन ी क
िलए अनेक ल?मण रखाएँ ह। अतः य
को वयं ये ल?मण रखाएँ तोड़नी हगी। न
उठता ह यिद सभी याँ ऐसा करने लग तो
समाज िकस ओर जाएगा यिक कहानी म
कवल और कवल ी क दैिहक संतु को
ही टारगेट िकया गया ह।
पंकज सुबीर क ये कहानी कवल यही
कहना चाहती िदख रही ह यिद अपने खजुराहो
को याँ ा करना चाहती ह तो नैितकता
का लबादा उतार और दरया म कद जाएँ,
अवय कह न कह िकनारा िमल जाएगा
लेिकन इसे सावभौिमक सय क प म भी
नह वीकारा जा सकता यिक इसका उर
भी कहानी वयं दे रही ह। संभव नह िजससे
संबंध बनाए जाएँ वो ी को उसक िवफोट
तक प चा सक। ऐसे म ाय ाय एंड ाय
अगेन का फामूला ही चलता रहगा जब तक
वो थित नह आती यिक कहानी क
अनुसार ऐसे चांस हज़ार म एक ह। अतः एक
िनकष देते ए सावधान न करते ए भी कर
रही ह कहानी, जैसे कह रही हो - याी अपने
माल क वयं रा कर अथात अपने रक

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 202525 24 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2025
जीवंत िचण ह। उिजयारी काक का चर
और मानिसक ं कहानी म पूरी संवेदना
और सू?मता क साथ उभर कर आया ह।
'नोटा जान' कहानी क नाियका एक
िक?र ह जो जेश से िबंिदया बन जाती ह।
िबंिदया अपना घर छोड़कर िक?र समाज म
आ जाती ह। वह अपने जीवन म घर परवार
क लोग क आिथक सहायता करती रही
लेिकन परवार क लोग ने कभी भी उसे
अपना नह माना। उनक िलए िबंिदया िसफ
नोटा का एक बटन बन कर रह गई। कथाकार
ने िबंिदया िक?र क मायम से उन समत
िकर क दुखती नज़ को पकड़ने क
कोिशश क ह जो अंतत: ममातक होती ह।
लेखक ने एक िक?र क जीवन क ासदी
को बत ही सहजता क साथ पाठक क सम
तुत िकया ह। 'हराम का अडा' कहानी म
जावेद और उसक पनी नूरी बे क चाहत
म डॉटर ?? क िनक पर अपनी
मेिडकल रपोस लेकर जाते ह। डॉटर
रपोस देखकर कहती ह िक नूरी क शरीर म
अंड नह बन रह ह इस कारण आपको बा
नह हो रहा ह। यिद आपको अपना बा
चािहए तो आईवीएफ तकनीक से आपको
बा हो सकता ह। इसम लाख सवा लाख
पये ख़चा आएगा। तब जावेद कहता ह िक
पचास-साठ हज़ार म तो म दूसरा िनकाह
करक दूसरी बीवी ले आऊगा।
'सवा लाख म हराम का अंडा लेने से
अछा उसक आधे पैसे म हलाल का अंडा ही
न ले आऊ।'
कथाकार ने 'थिगत गुफ़ा क वे फलाने
आदमी', 'डायरी म नीलकसुम', 'जूली और
कालू क ेमकथा म गोबर', 'उिजयारी काक
हस रही ह', 'नोटा जान' इयािद कहािनय म
समाज म बढ़ती संवेदनहीनता को रखांिकत
िकया ह। 'जाल फक र मछर', 'जूली और
कालू क ेमकथा म गोबर', 'हराम का
अडा' कहािनय म यंय ह। 'डायरी म
नीलकसुम', 'जूली और कालू क ेमकथा म
गोबर' कहािनयाँ सवण ारा दिलत पर
अयाचार और शोषण का पदाफ़ाश करती ह।
मिहला क अनछ?ई समया 'खजुराहो'
और 'ज़ोया देसाई कॉटज' जैसी कहािनय का
मुय वर ह, िजनम मिहला क बेबसी,
उनका अकलापन, उनक यौन क ठाएँ,
उनक दैिहक संतु , उनक भावनाएँ बत
कछ सोचने को बाय करती ह। कहानीकार ने
नारी अंतमन को झाँककर उसक अछ?ते
रहय को उ?ािटत िकया ह।
पंकज सुबीर क िक़सागोई लाजवाब ह।
पंकज सुबीर क इस कहानी संह क हर
कहानी अपने आप म बेजोड़ ह। पंकज सुबीर
क कहािनय क िवषय हमेशा गंभीर
सामािजक मु पर आधारत होते ह, जो हर
वग को सोचने क िलए बाय कर देते ह।
संह क सभी कहािनयाँ रोचक ह। इन
कहािनय का दायरा िवतृत ह। जीवन क
अनेक रग क िचण क साथ इन कहािनय म
नई भंिगमा एवं नई ताज़गी का समावेश
िदखाई देता ह। पंकज सुबीर अपने कथा
सािहय ारा समाज ारा थािपत परपरागत
िपतृसामक यवथा क दरवाज़ पर अपने
ितरोध क दतक देते िदखते ह। इस कहानी
संह क कहािनय म कथाकार ने
मनोिवान, नारी क सुकोमल भावना,
छ?आछ?त, लालच, िवकास, ेम, यौन-क ठा,
देह क संतु , धम, रतेदार क
संवेदनहीनता, पारवारक रत का िवूप
चेहरा, िकर क अँधेर से भरी दुिनया,
घरलू य क बदहाल िज़ंदगी, दिलत पर
अयाचार और शोषण इन सब आयाम को
िव?ेिषत िकया ह। पंकज सुबीर क कथा
सािहय म परवेश अिधक सशता से तुत
होता ह। पंकज सुबीर क कहािनय क ी
चर वयं िनणय लेने क मता रखते ह।
इन कहािनय म पंकज सुबीर क ितबता
और उनक गहन सूझबूझ का भी परचय
िमलता ह। लेखक इन कहािनय म मृित क
प म प चकर वहाँ क य साकार कर देते
ह। ये कहािनयाँ मानवीय संवेदना और जीवन
संघष क िच उकरती ह। पंकज सुबीर क
कथा सािहय म सामािजक सरोकार क साथ
मािमकता भावी प से अिभय ई ह।
इन 11 कहािनय से गुज़रकर पाठक को एक
अलग ही अनुभव होता ह। कहानी क शीषक
पाठक क मन म कतूहल जगाते ह। इस संह
क हर कहानी अपने अनूठपन से पाठक क
मन को छ? लेती ह।
संवेदनशील व उदा कथाकार पंकज
सुबीर का कथा सािहय आम य क दुःख
दद को अिभय करता ह। लेखक ारा
समाज क िविवध प को लेकर िचंताएँ
य क गई ह। कथाकार अपने उपयास
और कहािनय म इसािनयत को बचा लेते ह।
पंकज सुबीर िहदी सािहय क ऐसे कथा-
िशपी ह िजहने अपने कथा सािहय म
सामािजक यथाथ क कई पहलु को उजागर
िकया ह। पंकज सुबीर क कहािनय को
समझने क िलए मनोिवान क साथ मानव
वभाव क सृजनामक प क समझ होना भी
ज़री ह। इनका कथा सािहय देश क िविवध
पर य, दुिनया और समाज को समझने क
अंत देता ह। पठनीयता से भरपूर इन
कहािनय का अंत पाठक को चिकत करता
ह। पंकज सुबीर क कहािनयाँ समाज क
िविवध प क याह-सफ़द सभी रग को
बेबाक से उघाड़कर सामने लाती ह। पंकज
सुबीर क कहािनयाँ िहदी कथा सािहय क
भिवय को आ त करती ह।
000
कलामक अिभय
नीरज नीर
पंकज सुबीर क कहािनय क संबंध म
सैांितक, िशप, भाषा से इतर अगर िसफ
एक सीधी-सरल बात कहनी हो तो कहना
होगा िक पंकज सुबीर क पास कहानी कहने
क कला ह और उनक पास कहने क िलए
कहािनयाँ भी ह। पंकज सुबीर साधारण बात
को भी अपनी कहािनय म असाधारण तरीक
से कहते ह। पंकज सुबीर क कहािनयाँ नई
युग संवेदना, नए न, नए मूय बोध और
सौदय चेतना क साथ समाज क संदभ म
अपनी ासंिगकता िस करती ह। पंकज
सुबीर अपनी कहािनय म जीवन क वाह,
दुिवधा, नैितक संघष, खुिशय और दुःख
का ऐसा अंतरलोक रचते ह, जो बा?लोक क
यथाथ से सामंजय िबठाता आ पाठक क
संवेदना क साथ कदमताल करता ह। वे
म परलित होता ह। राकश कमार क
आभासी िम राकश कमार क य व को
िखंिडत करक उसे मनोिचिकसक क पास
प चा देते ह। सोशल मीिडया िकसी भी
संवेदनशील य क मानिसक थित को
कहाँ से कहाँ तक प चा सकती ह, इसका
िव?ेषण इस कहानी म आ ह। 'डायरी म
नीलकसुम' शुा क िकशोर अवथा क
थम िनछल ेम क मृितय क दाताँ ह
िजसम य क जाित और उसक रग का
कोई अथ नह होता ह। कथाकार शुा क
मायम से समाज का यथाथ अपनी
िक़सागोई से उभार देते ह। दिलत बेटा हरया
अपनी माँ सुिखया क यौन शोषण को देखकर
भी चुप रहता ह और वह ?न क घूँट पीने को
िववश ह। यह एक दिलत िवमश क कहानी
ह।
'खजुराहो' नारी संवेदना को अयत
आमीयता एवं कलामक ढग से िचित
करती रोचक कहानी ह जो पाठक को काफ
भािवत करती ह। कहानी का कनवास
बेहतरीन ह। 'खजुराहो' कहानी का िवषय और
वैिश इस कहानी को उक बनाता ह।
कहानी का शीषक 'खजुराहो' पूरी तरह
कहानी को अपने आप म समेट ए ह। इस
कहानी म उपयास क तव मौजूद ह। यह
कहानी पंकज सुबीर क सामय से परिचत
कराती ह। कहानीकार ने इस कहानी म एक
नारी क संवेदना क पराका , ी क
अंदर क फटसी और उसक िवचलन को
सहजता और साहस क साथ ब?बी िचित
िकया ह। जब एक पुष अपनी देह क संतु
क िलए अय ी देह का उपभोग कर सकता
ह तो ी य नह " इस विजत िवषय पर
कथाकार ने इस कहानी क पा क मायम से
एक नई बहस को जम िदया ह। पंकज सुबीर
एक योगशील कथाकार ह। इस कहानी म
एक डायरी क मायम से भी ी अपने मन
क भावना, अपनी कछ आकांा और
यौन क ठा को उजागर करती ह। पंकज
सुबीर का कहानी बयाँ करने का अंदाज़ बत
अ?ुत ह। 'यास बढ़ती जा रही ह बहता
दरया देखकर, भागती जाती ह लहर यह
तमाशा देखकर, या अजब खेल ह िक हमार
आसपास िकतने ही दरया बह रह ह, मगर
हमसे कहा गया ह िक यह िनयम ह िक
तुमको बस एक ही दरया से पानी पीना ह,
एक ही दरया म बहना ह। या िसतम ह िक
हमारा ही दरया सूखा पड़ा ह। हमारी यास
बढ़ती ही जा रही ह।' कहानी म ी क
आकांा िबना िकसी िझझक क सहज और
भावी ढग से उ?ािटत क गई ह। 'खजुराहो'
पंकज सुबीर क एक शानदार कहानी ह। इस
कहानी को िहदी सािहय क नामवर
कहािनय क समक रखा जा सकता ह।
'जाल फक र मछर' कहानी म सकना अपने
बेट तािहर को इदौर म रहने वाली अमीर बाप
क इकलौती बेटी सबा से शादी करने क िलए
तैयार करती ह। सकना जबरदती अपने बेट
तािहर को इदौर म सबा क घर भेजती ह।
तािहर सबा क यहाँ रात म भी कने लगा था।
तािहर अपने िपताजी क यवसाय क िलए
अब देवास क जगह इदौर से ही सामान लेने
लगा था। इस कारण उसक इदौर म सबा क
यहाँ बत चकर लगते थे। तािहर क माँ
सकना अब बत ?श रहने लगी थी यिक
उसने अपने बेट को मछर क तरह जाल
फकने म िनपुण कर िदया था। लेिकन सकना
अपना िसर उस समय पीटने लगती ह जब उसे
मालूम होता ह िक उसका बेटा तािहर सबा से
नह उसक अमी से िनकाह कर रहा ह।
'भाभी सोनमछरी लेने गया मछरा ?द ही जाल
म फस गया ह। तािहर िनकाह क बात कर
रहा ह पर सबा से नह सबा क अमी से
िनकाह क बात कर रहा ह।'
'ज़ोया देसाई कॉटज' एक िवदेशी मिहला
जोया देसाई और राल क ऐितहािसक रग से
भीगी ेम कहानी ह। जोया देसाई क पित क
पास अपनी पनी क िलए समय नह ह। जोया
देसाई क पास पैस क कोई कमी नह ह पर
उसक भावना को और उसक ेम को
समझने वाला कोई नह ह। जोया देसाई अपने
कॉपरट यवसायी पित क साथ िवदेश से
भारत आती ह। जोया देसाई क पित अपनी
िबज़नेस मीिट स म यत हो जाते ह और
जोया देसाई माँडवगढ़ आ जाती ह। वह
माँडवगढ़ म राल क कॉटज म कती ह।
राल वयं जोया देसाई को अटड करता ह
और उसक साथ समय िबताता ह। जोया
देसाई अपने आप को रानी पमती और राल
को बाज़ बहादुर समझती ह। जोया देसाई
राल क प म अपने ेमी को पाकर चार
िदन म ही सुखी और संतु? हो जाती ह।
राल का यवसाय ठीक नह चल रहा था।
उसक िसर पर बत क़ज़ हो जाता ह लेिकन
जोया देसाई िवदेश जाने क पहले राल को
इतना अिधक पैसा देकर जाती ह िक वह
अपना क़ज़ चुका देता ह और दूसरी तरफ वह
और कॉटज बना लेता ह।
'जूली और कालू क ेमकथा म गोबर'
एक मािमक कहानी ह। यह शहर म नए आए
िज़ला कलेटर क कितया जूली और छोट
िकसान होरी क बेट गोबर क पालतू क े
कालू क ेम कहानी ह। ेम म दोन ेमी
अपनी हिसयत भूल जाते ह िजसका परणाम
गोबर को भुगतना पड़ता ह। उपयास साट
ेमचंद क समय का सामंतीय शोषण का
आज प बदल गया। सामंत क जगह
सरकारी अफ़सर ने ले ली ह। आजकल
सरकारी अफ़सर ारा ग़रीब लोग का जो
शोषण िकया जा रहा ह वह हर सीमा पार कर
चुका ह। सामंतीय यवथा म सामंत ारा
िसफ आिथक शोषण िकया जाता था जबिक
सा क नशे म चूर अफ़सर ारा गरीब का
हर तरह से शोषण िकया जाता ह। यह कथा
बत ही मािमक और िदल को िहला देने वाली
ह। 'रामसप अकला नह जाएगा' हर ? म
मशीनीकरण और क यूटरीकरण क कारण
लोग क बेरोज़गार होने क कहानी ह।
आिटिफशल इटिलजस क आ जाने से आज
से कछ साल बाद मनुय जीवन का भिवय
कसा होगा उसक कपना लेखक ने इस
कहानी म क ह। 'उिजयारी काक हस रही ह'
िपतृसामक समाज म मिहला उपीड़न क
कहानी ह। कथाकार ने समाज म घरलू य
क बदहाल िज़ंदगी को उिजयारी काक क
मायम से उजागर िकया ह। यह कहानी
उिजयारी काक क जीवन क परशािनय का
जीवंत िचण ह। यह एक उपेित औरत का

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 202525 24 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2025
जीवंत िचण ह। उिजयारी काक का चर
और मानिसक ं कहानी म पूरी संवेदना
और सू?मता क साथ उभर कर आया ह।
'नोटा जान' कहानी क नाियका एक
िक?र ह जो जेश से िबंिदया बन जाती ह।
िबंिदया अपना घर छोड़कर िक?र समाज म
आ जाती ह। वह अपने जीवन म घर परवार
क लोग क आिथक सहायता करती रही
लेिकन परवार क लोग ने कभी भी उसे
अपना नह माना। उनक िलए िबंिदया िसफ
नोटा का एक बटन बन कर रह गई। कथाकार
ने िबंिदया िक?र क मायम से उन समत
िकर क दुखती नज़ को पकड़ने क
कोिशश क ह जो अंतत: ममातक होती ह।
लेखक ने एक िक?र क जीवन क ासदी
को बत ही सहजता क साथ पाठक क सम
तुत िकया ह। 'हराम का अडा' कहानी म
जावेद और उसक पनी नूरी बे क चाहत
म डॉटर ?? क िनक पर अपनी
मेिडकल रपोस लेकर जाते ह। डॉटर
रपोस देखकर कहती ह िक नूरी क शरीर म
अंड नह बन रह ह इस कारण आपको बा
नह हो रहा ह। यिद आपको अपना बा
चािहए तो आईवीएफ तकनीक से आपको
बा हो सकता ह। इसम लाख सवा लाख
पये ख़चा आएगा। तब जावेद कहता ह िक
पचास-साठ हज़ार म तो म दूसरा िनकाह
करक दूसरी बीवी ले आऊगा।
'सवा लाख म हराम का अंडा लेने से
अछा उसक आधे पैसे म हलाल का अंडा ही
न ले आऊ।'
कथाकार ने 'थिगत गुफ़ा क वे फलाने
आदमी', 'डायरी म नीलकसुम', 'जूली और
कालू क ेमकथा म गोबर', 'उिजयारी काक
हस रही ह', 'नोटा जान' इयािद कहािनय म
समाज म बढ़ती संवेदनहीनता को रखांिकत
िकया ह। 'जाल फक र मछर', 'जूली और
कालू क ेमकथा म गोबर', 'हराम का
अडा' कहािनय म यंय ह। 'डायरी म
नीलकसुम', 'जूली और कालू क ेमकथा म
गोबर' कहािनयाँ सवण ारा दिलत पर
अयाचार और शोषण का पदाफ़ाश करती ह।
मिहला क अनछ?ई समया 'खजुराहो'
और 'ज़ोया देसाई कॉटज' जैसी कहािनय का
मुय वर ह, िजनम मिहला क बेबसी,
उनका अकलापन, उनक यौन क ठाएँ,
उनक दैिहक संतु , उनक भावनाएँ बत
कछ सोचने को बाय करती ह। कहानीकार ने
नारी अंतमन को झाँककर उसक अछ?ते
रहय को उ?ािटत िकया ह।
पंकज सुबीर क िक़सागोई लाजवाब ह।
पंकज सुबीर क इस कहानी संह क हर
कहानी अपने आप म बेजोड़ ह। पंकज सुबीर
क कहािनय क िवषय हमेशा गंभीर
सामािजक मु पर आधारत होते ह, जो हर
वग को सोचने क िलए बाय कर देते ह।
संह क सभी कहािनयाँ रोचक ह। इन
कहािनय का दायरा िवतृत ह। जीवन क
अनेक रग क िचण क साथ इन कहािनय म
नई भंिगमा एवं नई ताज़गी का समावेश
िदखाई देता ह। पंकज सुबीर अपने कथा
सािहय ारा समाज ारा थािपत परपरागत
िपतृसामक यवथा क दरवाज़ पर अपने
ितरोध क दतक देते िदखते ह। इस कहानी
संह क कहािनय म कथाकार ने
मनोिवान, नारी क सुकोमल भावना,
छ?आछ?त, लालच, िवकास, ेम, यौन-क ठा,
देह क संतु , धम, रतेदार क
संवेदनहीनता, पारवारक रत का िवूप
चेहरा, िकर क अँधेर से भरी दुिनया,
घरलू य क बदहाल िज़ंदगी, दिलत पर
अयाचार और शोषण इन सब आयाम को
िव?ेिषत िकया ह। पंकज सुबीर क कथा
सािहय म परवेश अिधक सशता से तुत
होता ह। पंकज सुबीर क कहािनय क ी
चर वयं िनणय लेने क मता रखते ह।
इन कहािनय म पंकज सुबीर क ितबता
और उनक गहन सूझबूझ का भी परचय
िमलता ह। लेखक इन कहािनय म मृित क
प म प चकर वहाँ क य साकार कर देते
ह। ये कहािनयाँ मानवीय संवेदना और जीवन
संघष क िच उकरती ह। पंकज सुबीर क
कथा सािहय म सामािजक सरोकार क साथ
मािमकता भावी प से अिभय ई ह।
इन 11 कहािनय से गुज़रकर पाठक को एक
अलग ही अनुभव होता ह। कहानी क शीषक
पाठक क मन म कतूहल जगाते ह। इस संह
क हर कहानी अपने अनूठपन से पाठक क
मन को छ? लेती ह।
संवेदनशील व उदा कथाकार पंकज
सुबीर का कथा सािहय आम य क दुःख
दद को अिभय करता ह। लेखक ारा
समाज क िविवध प को लेकर िचंताएँ
य क गई ह। कथाकार अपने उपयास
और कहािनय म इसािनयत को बचा लेते ह।
पंकज सुबीर िहदी सािहय क ऐसे कथा-
िशपी ह िजहने अपने कथा सािहय म
सामािजक यथाथ क कई पहलु को उजागर
िकया ह। पंकज सुबीर क कहािनय को
समझने क िलए मनोिवान क साथ मानव
वभाव क सृजनामक प क समझ होना भी
ज़री ह। इनका कथा सािहय देश क िविवध
पर य, दुिनया और समाज को समझने क
अंत देता ह। पठनीयता से भरपूर इन
कहािनय का अंत पाठक को चिकत करता
ह। पंकज सुबीर क कहािनयाँ समाज क
िविवध प क याह-सफ़द सभी रग को
बेबाक से उघाड़कर सामने लाती ह। पंकज
सुबीर क कहािनयाँ िहदी कथा सािहय क
भिवय को आ त करती ह।
000
कलामक अिभय
नीरज नीर
पंकज सुबीर क कहािनय क संबंध म
सैांितक, िशप, भाषा से इतर अगर िसफ
एक सीधी-सरल बात कहनी हो तो कहना
होगा िक पंकज सुबीर क पास कहानी कहने
क कला ह और उनक पास कहने क िलए
कहािनयाँ भी ह। पंकज सुबीर साधारण बात
को भी अपनी कहािनय म असाधारण तरीक
से कहते ह। पंकज सुबीर क कहािनयाँ नई
युग संवेदना, नए न, नए मूय बोध और
सौदय चेतना क साथ समाज क संदभ म
अपनी ासंिगकता िस करती ह। पंकज
सुबीर अपनी कहािनय म जीवन क वाह,
दुिवधा, नैितक संघष, खुिशय और दुःख
का ऐसा अंतरलोक रचते ह, जो बा?लोक क
यथाथ से सामंजय िबठाता आ पाठक क
संवेदना क साथ कदमताल करता ह। वे
म परलित होता ह। राकश कमार क
आभासी िम राकश कमार क य व को
िखंिडत करक उसे मनोिचिकसक क पास
प चा देते ह। सोशल मीिडया िकसी भी
संवेदनशील य क मानिसक थित को
कहाँ से कहाँ तक प चा सकती ह, इसका
िव?ेषण इस कहानी म आ ह। 'डायरी म
नीलकसुम' शुा क िकशोर अवथा क
थम िनछल ेम क मृितय क दाताँ ह
िजसम य क जाित और उसक रग का
कोई अथ नह होता ह। कथाकार शुा क
मायम से समाज का यथाथ अपनी
िक़सागोई से उभार देते ह। दिलत बेटा हरया
अपनी माँ सुिखया क यौन शोषण को देखकर
भी चुप रहता ह और वह ?न क घूँट पीने को
िववश ह। यह एक दिलत िवमश क कहानी
ह।
'खजुराहो' नारी संवेदना को अयत
आमीयता एवं कलामक ढग से िचित
करती रोचक कहानी ह जो पाठक को काफ
भािवत करती ह। कहानी का कनवास
बेहतरीन ह। 'खजुराहो' कहानी का िवषय और
वैिश इस कहानी को उक बनाता ह।
कहानी का शीषक 'खजुराहो' पूरी तरह
कहानी को अपने आप म समेट ए ह। इस
कहानी म उपयास क तव मौजूद ह। यह
कहानी पंकज सुबीर क सामय से परिचत
कराती ह। कहानीकार ने इस कहानी म एक
नारी क संवेदना क पराका , ी क
अंदर क फटसी और उसक िवचलन को
सहजता और साहस क साथ ब?बी िचित
िकया ह। जब एक पुष अपनी देह क संतु
क िलए अय ी देह का उपभोग कर सकता
ह तो ी य नह " इस विजत िवषय पर
कथाकार ने इस कहानी क पा क मायम से
एक नई बहस को जम िदया ह। पंकज सुबीर
एक योगशील कथाकार ह। इस कहानी म
एक डायरी क मायम से भी ी अपने मन
क भावना, अपनी कछ आकांा और
यौन क ठा को उजागर करती ह। पंकज
सुबीर का कहानी बयाँ करने का अंदाज़ बत
अ?ुत ह। 'यास बढ़ती जा रही ह बहता
दरया देखकर, भागती जाती ह लहर यह
तमाशा देखकर, या अजब खेल ह िक हमार
आसपास िकतने ही दरया बह रह ह, मगर
हमसे कहा गया ह िक यह िनयम ह िक
तुमको बस एक ही दरया से पानी पीना ह,
एक ही दरया म बहना ह। या िसतम ह िक
हमारा ही दरया सूखा पड़ा ह। हमारी यास
बढ़ती ही जा रही ह।' कहानी म ी क
आकांा िबना िकसी िझझक क सहज और
भावी ढग से उ?ािटत क गई ह। 'खजुराहो'
पंकज सुबीर क एक शानदार कहानी ह। इस
कहानी को िहदी सािहय क नामवर
कहािनय क समक रखा जा सकता ह।
'जाल फक र मछर' कहानी म सकना अपने
बेट तािहर को इदौर म रहने वाली अमीर बाप
क इकलौती बेटी सबा से शादी करने क िलए
तैयार करती ह। सकना जबरदती अपने बेट
तािहर को इदौर म सबा क घर भेजती ह।
तािहर सबा क यहाँ रात म भी कने लगा था।
तािहर अपने िपताजी क यवसाय क िलए
अब देवास क जगह इदौर से ही सामान लेने
लगा था। इस कारण उसक इदौर म सबा क
यहाँ बत चकर लगते थे। तािहर क माँ
सकना अब बत ?श रहने लगी थी यिक
उसने अपने बेट को मछर क तरह जाल
फकने म िनपुण कर िदया था। लेिकन सकना
अपना िसर उस समय पीटने लगती ह जब उसे
मालूम होता ह िक उसका बेटा तािहर सबा से
नह उसक अमी से िनकाह कर रहा ह।
'भाभी सोनमछरी लेने गया मछरा ?द ही जाल
म फस गया ह। तािहर िनकाह क बात कर
रहा ह पर सबा से नह सबा क अमी से
िनकाह क बात कर रहा ह।'
'ज़ोया देसाई कॉटज' एक िवदेशी मिहला
जोया देसाई और राल क ऐितहािसक रग से
भीगी ेम कहानी ह। जोया देसाई क पित क
पास अपनी पनी क िलए समय नह ह। जोया
देसाई क पास पैस क कोई कमी नह ह पर
उसक भावना को और उसक ेम को
समझने वाला कोई नह ह। जोया देसाई अपने
कॉपरट यवसायी पित क साथ िवदेश से
भारत आती ह। जोया देसाई क पित अपनी
िबज़नेस मीिट स म यत हो जाते ह और
जोया देसाई माँडवगढ़ आ जाती ह। वह
माँडवगढ़ म राल क कॉटज म कती ह।
राल वयं जोया देसाई को अटड करता ह
और उसक साथ समय िबताता ह। जोया
देसाई अपने आप को रानी पमती और राल
को बाज़ बहादुर समझती ह। जोया देसाई
राल क प म अपने ेमी को पाकर चार
िदन म ही सुखी और संतु? हो जाती ह।
राल का यवसाय ठीक नह चल रहा था।
उसक िसर पर बत क़ज़ हो जाता ह लेिकन
जोया देसाई िवदेश जाने क पहले राल को
इतना अिधक पैसा देकर जाती ह िक वह
अपना क़ज़ चुका देता ह और दूसरी तरफ वह
और कॉटज बना लेता ह।
'जूली और कालू क ेमकथा म गोबर'
एक मािमक कहानी ह। यह शहर म नए आए
िज़ला कलेटर क कितया जूली और छोट
िकसान होरी क बेट गोबर क पालतू क े
कालू क ेम कहानी ह। ेम म दोन ेमी
अपनी हिसयत भूल जाते ह िजसका परणाम
गोबर को भुगतना पड़ता ह। उपयास साट
ेमचंद क समय का सामंतीय शोषण का
आज प बदल गया। सामंत क जगह
सरकारी अफ़सर ने ले ली ह। आजकल
सरकारी अफ़सर ारा ग़रीब लोग का जो
शोषण िकया जा रहा ह वह हर सीमा पार कर
चुका ह। सामंतीय यवथा म सामंत ारा
िसफ आिथक शोषण िकया जाता था जबिक
सा क नशे म चूर अफ़सर ारा गरीब का
हर तरह से शोषण िकया जाता ह। यह कथा
बत ही मािमक और िदल को िहला देने वाली
ह। 'रामसप अकला नह जाएगा' हर ? म
मशीनीकरण और क यूटरीकरण क कारण
लोग क बेरोज़गार होने क कहानी ह।
आिटिफशल इटिलजस क आ जाने से आज
से कछ साल बाद मनुय जीवन का भिवय
कसा होगा उसक कपना लेखक ने इस
कहानी म क ह। 'उिजयारी काक हस रही ह'
िपतृसामक समाज म मिहला उपीड़न क
कहानी ह। कथाकार ने समाज म घरलू य
क बदहाल िज़ंदगी को उिजयारी काक क
मायम से उजागर िकया ह। यह कहानी
उिजयारी काक क जीवन क परशािनय का
जीवंत िचण ह। यह एक उपेित औरत का

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बा बड़ होकर भोपाल म रहकर नौकरी
करता ह, सफलतापूवक अपने जीवन क
पारी खेलता ह, लेिकन रटायरमट क बाद
मानिसक प से बीमार हो जाता ह और बार-
बार कवल एक ही वाय बोलता ह- 'ढड़
चले जै ह का क संगे'। ढड़ जो दरअसल
बुंदेलखंड म उसका गाँव ह, वहाँ अपने जीवन
क उरा म य जाना चाहता ह " इसक
जवाब क तलाश कहानी करती ह और,
इसक पीछ क कारण से पाठक सहमत ए
िबना नह रह सकता ह। पंकज सुबीर क एक
और िवशेषता ह िक वे अपनी वैचारक को
बत ही सहज और वाहमान तरीक से अपनी
कहािनय क मायम से पाठक तक प चा
देते ह। इस कहानी म भी वातव म वे अपनी
वैचारक को राकश कमार क मायम से
कथा क चाशनी म लपेटकर पाठक क
सामने रख देते ह। वतमान समय म आम
आदमी पर सोशल मीिडया का भाव, और
समाज म धािमक आधार पर बढ़ते वैमनयता
को िजतनी सुंदरता से कथाकार ने िचित
िकया ह, वह शंसनीय ह।
'थिगत गुफ़ा समय क फलाने आदमी'
एक लंबी कहानी ह, िजसका िवतार 33
पृ म ह। यह कोरोना काल क कािणक
कहानी ह, जब इसािनयत कराह रही थी और
रते शमसार हो रह थे। बे अपने ही माता-
िपता क लाश को पश करने से डर रह थे।
ऐसे म वे कौन लोग थे, जो इन लाश को
उनक अंितम मुकाम तक प चा रह थे? ये
दरअसल समाज क वैसे य थे िजनक
िलए समाज कभी अनुिहत अनुभव नह
करता ह। िजनक नाम अख़बार म मोट अर
म दज नह होते और िजसे लेखक ने ठीक ही
फलाने आदमी कहा ह। यह कहानी वातव म
कोरोना काल का एक जीवंत दतावेज़ ह,
िजसे जब भी बाद क समय म पढ़ा जाएगा
ताकािलक सामािजक पर थित और
मनुयता पर छाए संकट से उपजी पीड़ा और
संघष को समझा जा सकगा।
बाज़ार इसानी संवेदना से शूय होता ह,
बाज़ार कवल लाभ देखता ह। उसको इस बात
से कोई फ़क़ नह पड़ता िक उसक लाभकारी
नीितय से कोई ग़रीब मज़दूर मरता ह या कोई
पढ़ा-िलखा इजीिनयर। वह अपनी ज़रत क
अनुसार इसान का उपयोग करता ह और जब
ज़रत नह हो तो उसे िनकाल फकता ह। जो
इजीिनयर आज एक मज़दूर को लागत कम
करने क िलए बाहर का राता िदखाता ह,
कल होकर उस इजीिनयर इसी थित का
सामना करना पड़ सकता ह। 'रामसप
अकले नह जाएगा' ट ॉलाजी क बढ़ते
योग क कारण एक मज़दूर क बेकार होने
क बत ही रोचक कहानी ह। लेिकन कहानी
म ट यह ह िक जो मािलक उसे अपने
यहाँ से िनकाल देता ह, वही कल होकर
अपनी नौकरी से िनकाल िदया जाता ह यिक
उसक कपनी अब उसका काम एआई से
करवाना चाहती ह।
'उिजयारी काक हस रही ह'
िपतृसामक प क उस पहलू को उजागर
करती ह, िजसम याँ ही य क शोषक
बन कर उभरती ह। िपतृसामकता क
असली पोषक और िसपहसालार याँ ही
होती ह, जो िपतृ सा क अयाय को उिचत
ठहराती ह। कम उ म याह कर आई
उिजयारी काक पहले ?ब हसती थी। लेिकन
बाद म हसना तो या मुकराना भी बंद कर
िदया। और जब मुकराई तो ाण पखे उड़
चुक थे। इस कहानी का कथानक थोड़ा पुराना
ह। लगभग आज़ादी क समय का। ेमचंद क
टाइल क कहानी। उिजयारी काक कम उ
म याह कर आई थी। वह बचपने से भरपूर
और ब िखलंदड़ थी। लेिकन उसका यूँ
हसना-खेलना उसक पित को नह सुहाता ह।
उसक पित क मन म शंका का सप फन
उठाता ह। लेिकन कछ समय क उपरांत वही
पित वयं पड़ोस क एक गाँव म एक लड़क
से ेम संबंध बनाकर उसे याह कर ले आता
ह। दुखद यह िक इस बात का कह कोई
िवरोध नह होता ह। परवार, गाँव-टोले क
मिहलाएँ इसम ज़रा भी आय नह करती
िक एक पनी क घर म रहते वह दूसरी य ले
आया। वे नई ब का ब वागत करते ह।
लेिकन नई ब क आने से उिजयारी काक को
गहरा आघात लगता ह, उसका हसना-
मुसकाना बंद हो जाता ह।
संह क एक अय कहानी 'हराम का
अंडा' एक मु लम जोड़ क कहानी ह, िजसे
बा नह हो रहा ह और वे एक आई वी एफ
सटर म जाते ह। औरत क साथ परशानी ह िक
उसक भीतर गभ ठहरने क िलए ज़री अंडा
नह बनता ह। ऐसे म ज़री ह िक अंडा बाहर
से लेकर उसे िनषेिचत िकया जाए। लेिकन
उसका पित कहता ह िक वह हराम क अंड से
बाप नह बनना चाहता ह। वातव म बचपन
म एक ऐसे समाज म रहते ए जहाँ िहदू और
मुसलमान साथ साथ रहते ह, हम मुसलमान
क मुँह से यह बत सामाय प से सुनते आए
ह िक हमार म फलाने चीज़ क मनाही ह या
हमार म यह काम नह होता। और हम बत
सहजता से इस बात को वीकार भी करते रह
ह िक उनक यहाँ यह नह होता, उनक धम म
ऐसा करने क मनाही ह तो वे भला कसे कर
सकते ह। कभी इस पर ठहर कर कछ सोचने
या इस पर िलखने क कोई ज़रत शायद ही
िकसी ने समझी हो। लेिकन यह 'हमार म
मनाही' वाली बात कब हठधिमता, दुराह,
अनीित म बदल जाती ह, िकसी का यान नह
जाता। इस कहानी क मायम से इस ओर
यान खचने और एक ी क पीड़ा को दज
करने क िलए पंकज सुबीर बधाई क पा ह।
पंकज सुबीर क कहािनयाँ बवण और
और अंतिवरोधी अनुभूितय क सश चेतना
से संपृ जीवन को म देखती ह। संह
क अय कहािनयाँ नोटा जान, खजुराहो,
जाल फक र मछर, डायरी म नीलकसुम भी
जीवन क अंतिवरोध, संकारगत अंत ,
सामािजक आिथक िवूपता को बेहद
कलामक ढग से अिभय करती ह। कछ
कहािनयाँ यिप क आकार म बड़ी ह लेिकन
कय क सघनता और िशप क सुघड़ता क
कारण कह भी पाठक को बोिझल नह लगती
ह। अपने आशय और सरोकार म पूरी तरह
समाज क नवोमेष क िलए समिपत इन
कहािनय को अवय पढ़ा जाना चािहए।
पुतक गुणवायु काग़ज़ पर साफ और
सुंदर फॉट क साथ कािशत ह।
000
अपनी कहािनय म कहानीपन को कभी मरने
नह देते।
इसक साथ ही एक अय बात जो उनक
कहािनय को पढ़ते ए सबसे पहले यान म
आती ह वह यह िक उनक कहािनय क
शीषक बड़ ही रोचक और यानाकषक होते
ह। उदाहरण देिखए : जूली और कालू क ेम
कथा म गोबर, डायरी म नीलकसुम, जाल
फक र मछर, जोया देसाई कॉटज, ढड़ चले
जै ह का क संगे, नोटा जान, हराम का अंडा,
उिजयारी काक हस रही ह आिद। वातव म
लेखक िदलचप और यान खचने वाले
शीषक क साथ ही पाठक क साथ पहला
कनेट थािपत कर लेता ह। म समझता िक
कहानी का शीषक और कथावतु क अनुप
पा क नाम रखना, ये दो चीज़ कहानी
िलखने जैसी ही एक कला ह और कहानी का
आधा काम अछा कथाकार यह कर लेता ह।
ऊपर िजन कहािनय क शीषक क चचा
मने क उन सभी कहािनय समेत कल यारह
कहािनयाँ पंकज सुबीर क नए-नवेले
कािशत कहानी संह 'जोया देसाई कॉटज'
म संकिलत ह। यूँ तो पंकज सुबीर क
कहािनयाँ िकसी भी पुतक म आने से पहले
प-पिका म ही छपकर चिचत हो जाती
ह, और इन कहािनय क साथ भी ऐसा ही ह।
लेिकन इन सभी चिचत कहािनय को इक?ा
एक साथ संह क प म देखना और पढ़ना
एक बेहतरीन अनुभव कहा जा सकता ह।
समकालीन कहानीकार म पंकज सुबीर
क अपनी एक अलग पहचान ह। अपने
परवेश क जीवन से लेकर समकालीन समाज
क समया और िवडबना को उनक
कहािनयाँ बत ही यथाथपरक परतु रोचक
ढग से अिभय करती ह। कहािनय म
सामािजक, राजनैितक यथाथ क िचण म
एक बड़ी समया यह होती ह िक यथाथ क
साथ कपना और िशप क मसाल क
कमी-बेशी से कहािनय म रोचकता समा
हो जाती ह और कई बार तो कहािनयाँ
रपोताज क श? ले लेती ह। लेिकन पंकज
सुबीर अपनी कहािनय म पठनीयता और
रोचकता को बराबर बनाए रखते ह।
सबसे पहले बात शीषक कहानी 'जोया
देसाई कॉटज' क। यह कहानी शु होती ह
माँड? क िक़ले क परवेश से। रानी पमती क
महल म छाई उदासी बराता पमती और
जोया देसाई कब पाठक को घेर लेती ह पता ही
नह चलता। माँड? क िक़ले क साथ हमने बाज़
बहादुर और पमती क ेम क कहािनयाँ ही
सुन लेिकन जब बाज़ बहादुर यु म हारकर
पमती को छोड़कर चला जाता ह तो
पमती पर या गुज़री नह सुनी ह। पमती
क छटपटाहट वातव म पीिढ़य से ेम करने
वाली य क छटपटाहट ह। याँ ेम म
खोना जानती ह, पाना नह। इसीिलए लेखक
कहानी क पा िशरीष क मायम से कहता ह
'पुष कभी ेम करना नह सीख पाएगा,
पुष बस उपभोा हो सकता ह ेमी नह।'
जोया देसाई ने भी कछ पाने क उमीद से ेम
नह िकया। वह ेम म सब कछ खोकर ही ेम
को पाना चाहती थी। पंकज सुबीर क
कहािनय का सबसे सबल प उनका
मानवीय संवेदना क साथ खड़ा होना ह।
इस कहानी म भी यह प सबलता से
उप थत होता ह। इसी कहानी म एक वतय
आता िक 'पैसे को पानी क तरह होना चािहए,
जहाँ अनावयक ह, यादा ह, वहाँ से उसे
उस तरफ बह जाना चािहए, जहाँ उसक
आवयकता ह।' हम देखते ह िक कहानी
कहते ए कहानीकार कथा क संग और
वाह म यह बात कह देता ह। लेिकन सय तो
यह ह िक मासवाद क जो मूल सोच ह, वह
बत ही सू?मता से इस कहानी म इस वतय
क मायम से दज होती ह, लेिकन कह भी
कथारस म इस बात से कोई बाधा नह पड़ती
ह। मुझे इस कहानी को पढ़ते ए जो एक बात
और लगी वह यह िक अगर इस कहानी म
पा का नाम ज़ोया देसाई क जगह कछ और
होता तो शायद कहानी वही भाव नह छोड़
पाती। इसिलए इस पा का उपयु नाम
रखना भी कथाकार क सफलता ह।
िजस दूसरी कहानी क बात उपरो
कहानी क बाद करना चाहता , वह कहानी ह
'जूली और कालू क ेम कथा म गोबर'।
कहानी क शीषक म दो नाम ह, जूली और
कालू, अगर देख दोन नाम दो सामािजक तर
क ितिनिध नाम ह। ख़ासकर कहानी िजस
वत क ह, जैसा िक कहानीकार ने इसी
कहानी म बताया ह िक तीस वष पुरानी कहानी
ह, तो तीस वष पहले क समय म ये दोन नाम
िन त तौर पर दो िविभ? सामािजक
धरातल का ितिनिधव करते ह। िजस तरह
कहानी क शीषक म दो पा ह, उसी तरह से
कहानी म भी दो पा ह एक ह हरदास माथुर
और दूसरा ह गोबर। गोबर नाम से चिकए
नह। जैसा नाम से ही अिभयंिजत होता ह िक
हरदास समाज क ऊपरी मी तबक का
ितिनिधव करता ह और गोबर समाज क
उस सीमांत दबे कचले वग से आता ह,
िजसका काम तो नह ही ह, नाम भी महवपूण
नह ह और इसिलए वह गोबर ह। यह कथा ह
हरदास क िवदेशी कितया जूली और गोबर
क देशी क े कालू क। लेिकन असली
कहानी ह िज़ले क हािकम हरदास क
अहकार, उसक श और सामय क
अिववेक योग और गोबर क रीढ़ को सीधा
करने क कोिशश, लेिकन अंततः उसक
लाचारी, उसक हार क। देश को वतंता
??? क इतने वष क बाद भी एक िलंग
?ास मौजूद ह, िजसे लगता ह कालू का
जूली क संपक म आना, जूली क ारा उसक
औक़ात का, उसक सामािजक सीमा का
अितमण ह। यह कहानी देश म या
ग़ैरबराबरी को अयंत िवडबनामक बोध क
साथ उजागर करती ह।
संह क एक अय कहानी 'ढड़ चले जै
ह का क संगे' एक मनोवैािनक िव?ेषण
क कहानी ह, िजसम कहानीकार ने कई
िवषय को बत ही कशलता और सुंदरता से
एक साथ समेटा ह। पंकज सुबीर
मनोवैािनक िव?ेषण क कहािनयाँ िलखने
क उताद ह। उह मनोिवान और उससे
जुड़ संदभ क अछी समझ ह, िजनका
योग वे अपनी कथा कहते ए करते ह। साथ
ही भोपाल और वहाँ क बड़ तालाब से लेखक
का ेम भी जगजािहर ही ह, िजसक
अिभय वे बधा अपनी रचना म करते
िदखते ह। एक ठठ बुदेली गाँव से आया आ

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 202527 26 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2025
बा बड़ होकर भोपाल म रहकर नौकरी
करता ह, सफलतापूवक अपने जीवन क
पारी खेलता ह, लेिकन रटायरमट क बाद
मानिसक प से बीमार हो जाता ह और बार-
बार कवल एक ही वाय बोलता ह- 'ढड़
चले जै ह का क संगे'। ढड़ जो दरअसल
बुंदेलखंड म उसका गाँव ह, वहाँ अपने जीवन
क उरा म य जाना चाहता ह " इसक
जवाब क तलाश कहानी करती ह और,
इसक पीछ क कारण से पाठक सहमत ए
िबना नह रह सकता ह। पंकज सुबीर क एक
और िवशेषता ह िक वे अपनी वैचारक को
बत ही सहज और वाहमान तरीक से अपनी
कहािनय क मायम से पाठक तक प चा
देते ह। इस कहानी म भी वातव म वे अपनी
वैचारक को राकश कमार क मायम से
कथा क चाशनी म लपेटकर पाठक क
सामने रख देते ह। वतमान समय म आम
आदमी पर सोशल मीिडया का भाव, और
समाज म धािमक आधार पर बढ़ते वैमनयता
को िजतनी सुंदरता से कथाकार ने िचित
िकया ह, वह शंसनीय ह।
'थिगत गुफ़ा समय क फलाने आदमी'
एक लंबी कहानी ह, िजसका िवतार 33
पृ म ह। यह कोरोना काल क कािणक
कहानी ह, जब इसािनयत कराह रही थी और
रते शमसार हो रह थे। बे अपने ही माता-
िपता क लाश को पश करने से डर रह थे।
ऐसे म वे कौन लोग थे, जो इन लाश को
उनक अंितम मुकाम तक प चा रह थे? ये
दरअसल समाज क वैसे य थे िजनक
िलए समाज कभी अनुिहत अनुभव नह
करता ह। िजनक नाम अख़बार म मोट अर
म दज नह होते और िजसे लेखक ने ठीक ही
फलाने आदमी कहा ह। यह कहानी वातव म
कोरोना काल का एक जीवंत दतावेज़ ह,
िजसे जब भी बाद क समय म पढ़ा जाएगा
ताकािलक सामािजक पर थित और
मनुयता पर छाए संकट से उपजी पीड़ा और
संघष को समझा जा सकगा।
बाज़ार इसानी संवेदना से शूय होता ह,
बाज़ार कवल लाभ देखता ह। उसको इस बात
से कोई फ़क़ नह पड़ता िक उसक लाभकारी
नीितय से कोई ग़रीब मज़दूर मरता ह या कोई
पढ़ा-िलखा इजीिनयर। वह अपनी ज़रत क
अनुसार इसान का उपयोग करता ह और जब
ज़रत नह हो तो उसे िनकाल फकता ह। जो
इजीिनयर आज एक मज़दूर को लागत कम
करने क िलए बाहर का राता िदखाता ह,
कल होकर उस इजीिनयर इसी थित का
सामना करना पड़ सकता ह। 'रामसप
अकले नह जाएगा' ट ॉलाजी क बढ़ते
योग क कारण एक मज़दूर क बेकार होने
क बत ही रोचक कहानी ह। लेिकन कहानी
म ट यह ह िक जो मािलक उसे अपने
यहाँ से िनकाल देता ह, वही कल होकर
अपनी नौकरी से िनकाल िदया जाता ह यिक
उसक कपनी अब उसका काम एआई से
करवाना चाहती ह।
'उिजयारी काक हस रही ह'
िपतृसामक प क उस पहलू को उजागर
करती ह, िजसम याँ ही य क शोषक
बन कर उभरती ह। िपतृसामकता क
असली पोषक और िसपहसालार याँ ही
होती ह, जो िपतृ सा क अयाय को उिचत
ठहराती ह। कम उ म याह कर आई
उिजयारी काक पहले ?ब हसती थी। लेिकन
बाद म हसना तो या मुकराना भी बंद कर
िदया। और जब मुकराई तो ाण पखे उड़
चुक थे। इस कहानी का कथानक थोड़ा पुराना
ह। लगभग आज़ादी क समय का। ेमचंद क
टाइल क कहानी। उिजयारी काक कम उ
म याह कर आई थी। वह बचपने से भरपूर
और ब िखलंदड़ थी। लेिकन उसका यूँ
हसना-खेलना उसक पित को नह सुहाता ह।
उसक पित क मन म शंका का सप फन
उठाता ह। लेिकन कछ समय क उपरांत वही
पित वयं पड़ोस क एक गाँव म एक लड़क
से ेम संबंध बनाकर उसे याह कर ले आता
ह। दुखद यह िक इस बात का कह कोई
िवरोध नह होता ह। परवार, गाँव-टोले क
मिहलाएँ इसम ज़रा भी आय नह करती
िक एक पनी क घर म रहते वह दूसरी य ले
आया। वे नई ब का ब वागत करते ह।
लेिकन नई ब क आने से उिजयारी काक को
गहरा आघात लगता ह, उसका हसना-
मुसकाना बंद हो जाता ह।
संह क एक अय कहानी 'हराम का
अंडा' एक मु लम जोड़ क कहानी ह, िजसे
बा नह हो रहा ह और वे एक आई वी एफ
सटर म जाते ह। औरत क साथ परशानी ह िक
उसक भीतर गभ ठहरने क िलए ज़री अंडा
नह बनता ह। ऐसे म ज़री ह िक अंडा बाहर
से लेकर उसे िनषेिचत िकया जाए। लेिकन
उसका पित कहता ह िक वह हराम क अंड से
बाप नह बनना चाहता ह। वातव म बचपन
म एक ऐसे समाज म रहते ए जहाँ िहदू और
मुसलमान साथ साथ रहते ह, हम मुसलमान
क मुँह से यह बत सामाय प से सुनते आए
ह िक हमार म फलाने चीज़ क मनाही ह या
हमार म यह काम नह होता। और हम बत
सहजता से इस बात को वीकार भी करते रह
ह िक उनक यहाँ यह नह होता, उनक धम म
ऐसा करने क मनाही ह तो वे भला कसे कर
सकते ह। कभी इस पर ठहर कर कछ सोचने
या इस पर िलखने क कोई ज़रत शायद ही
िकसी ने समझी हो। लेिकन यह 'हमार म
मनाही' वाली बात कब हठधिमता, दुराह,
अनीित म बदल जाती ह, िकसी का यान नह
जाता। इस कहानी क मायम से इस ओर
यान खचने और एक ी क पीड़ा को दज
करने क िलए पंकज सुबीर बधाई क पा ह।
पंकज सुबीर क कहािनयाँ बवण और
और अंतिवरोधी अनुभूितय क सश चेतना
से संपृ जीवन को म देखती ह। संह
क अय कहािनयाँ नोटा जान, खजुराहो,
जाल फक र मछर, डायरी म नीलकसुम भी
जीवन क अंतिवरोध, संकारगत अंत ,
सामािजक आिथक िवूपता को बेहद
कलामक ढग से अिभय करती ह। कछ
कहािनयाँ यिप क आकार म बड़ी ह लेिकन
कय क सघनता और िशप क सुघड़ता क
कारण कह भी पाठक को बोिझल नह लगती
ह। अपने आशय और सरोकार म पूरी तरह
समाज क नवोमेष क िलए समिपत इन
कहािनय को अवय पढ़ा जाना चािहए।
पुतक गुणवायु काग़ज़ पर साफ और
सुंदर फॉट क साथ कािशत ह।
000
अपनी कहािनय म कहानीपन को कभी मरने
नह देते।
इसक साथ ही एक अय बात जो उनक
कहािनय को पढ़ते ए सबसे पहले यान म
आती ह वह यह िक उनक कहािनय क
शीषक बड़ ही रोचक और यानाकषक होते
ह। उदाहरण देिखए : जूली और कालू क ेम
कथा म गोबर, डायरी म नीलकसुम, जाल
फक र मछर, जोया देसाई कॉटज, ढड़ चले
जै ह का क संगे, नोटा जान, हराम का अंडा,
उिजयारी काक हस रही ह आिद। वातव म
लेखक िदलचप और यान खचने वाले
शीषक क साथ ही पाठक क साथ पहला
कनेट थािपत कर लेता ह। म समझता िक
कहानी का शीषक और कथावतु क अनुप
पा क नाम रखना, ये दो चीज़ कहानी
िलखने जैसी ही एक कला ह और कहानी का
आधा काम अछा कथाकार यह कर लेता ह।
ऊपर िजन कहािनय क शीषक क चचा
मने क उन सभी कहािनय समेत कल यारह
कहािनयाँ पंकज सुबीर क नए-नवेले
कािशत कहानी संह 'जोया देसाई कॉटज'
म संकिलत ह। यूँ तो पंकज सुबीर क
कहािनयाँ िकसी भी पुतक म आने से पहले
प-पिका म ही छपकर चिचत हो जाती
ह, और इन कहािनय क साथ भी ऐसा ही ह।
लेिकन इन सभी चिचत कहािनय को इक?ा
एक साथ संह क प म देखना और पढ़ना
एक बेहतरीन अनुभव कहा जा सकता ह।
समकालीन कहानीकार म पंकज सुबीर
क अपनी एक अलग पहचान ह। अपने
परवेश क जीवन से लेकर समकालीन समाज
क समया और िवडबना को उनक
कहािनयाँ बत ही यथाथपरक परतु रोचक
ढग से अिभय करती ह। कहािनय म
सामािजक, राजनैितक यथाथ क िचण म
एक बड़ी समया यह होती ह िक यथाथ क
साथ कपना और िशप क मसाल क
कमी-बेशी से कहािनय म रोचकता समा
हो जाती ह और कई बार तो कहािनयाँ
रपोताज क श? ले लेती ह। लेिकन पंकज
सुबीर अपनी कहािनय म पठनीयता और
रोचकता को बराबर बनाए रखते ह।
सबसे पहले बात शीषक कहानी 'जोया
देसाई कॉटज' क। यह कहानी शु होती ह
माँड? क िक़ले क परवेश से। रानी पमती क
महल म छाई उदासी बराता पमती और
जोया देसाई कब पाठक को घेर लेती ह पता ही
नह चलता। माँड? क िक़ले क साथ हमने बाज़
बहादुर और पमती क ेम क कहािनयाँ ही
सुन लेिकन जब बाज़ बहादुर यु म हारकर
पमती को छोड़कर चला जाता ह तो
पमती पर या गुज़री नह सुनी ह। पमती
क छटपटाहट वातव म पीिढ़य से ेम करने
वाली य क छटपटाहट ह। याँ ेम म
खोना जानती ह, पाना नह। इसीिलए लेखक
कहानी क पा िशरीष क मायम से कहता ह
'पुष कभी ेम करना नह सीख पाएगा,
पुष बस उपभोा हो सकता ह ेमी नह।'
जोया देसाई ने भी कछ पाने क उमीद से ेम
नह िकया। वह ेम म सब कछ खोकर ही ेम
को पाना चाहती थी। पंकज सुबीर क
कहािनय का सबसे सबल प उनका
मानवीय संवेदना क साथ खड़ा होना ह।
इस कहानी म भी यह प सबलता से
उप थत होता ह। इसी कहानी म एक वतय
आता िक 'पैसे को पानी क तरह होना चािहए,
जहाँ अनावयक ह, यादा ह, वहाँ से उसे
उस तरफ बह जाना चािहए, जहाँ उसक
आवयकता ह।' हम देखते ह िक कहानी
कहते ए कहानीकार कथा क संग और
वाह म यह बात कह देता ह। लेिकन सय तो
यह ह िक मासवाद क जो मूल सोच ह, वह
बत ही सू?मता से इस कहानी म इस वतय
क मायम से दज होती ह, लेिकन कह भी
कथारस म इस बात से कोई बाधा नह पड़ती
ह। मुझे इस कहानी को पढ़ते ए जो एक बात
और लगी वह यह िक अगर इस कहानी म
पा का नाम ज़ोया देसाई क जगह कछ और
होता तो शायद कहानी वही भाव नह छोड़
पाती। इसिलए इस पा का उपयु नाम
रखना भी कथाकार क सफलता ह।
िजस दूसरी कहानी क बात उपरो
कहानी क बाद करना चाहता , वह कहानी ह
'जूली और कालू क ेम कथा म गोबर'।
कहानी क शीषक म दो नाम ह, जूली और
कालू, अगर देख दोन नाम दो सामािजक तर
क ितिनिध नाम ह। ख़ासकर कहानी िजस
वत क ह, जैसा िक कहानीकार ने इसी
कहानी म बताया ह िक तीस वष पुरानी कहानी
ह, तो तीस वष पहले क समय म ये दोन नाम
िन त तौर पर दो िविभ? सामािजक
धरातल का ितिनिधव करते ह। िजस तरह
कहानी क शीषक म दो पा ह, उसी तरह से
कहानी म भी दो पा ह एक ह हरदास माथुर
और दूसरा ह गोबर। गोबर नाम से चिकए
नह। जैसा नाम से ही अिभयंिजत होता ह िक
हरदास समाज क ऊपरी मी तबक का
ितिनिधव करता ह और गोबर समाज क
उस सीमांत दबे कचले वग से आता ह,
िजसका काम तो नह ही ह, नाम भी महवपूण
नह ह और इसिलए वह गोबर ह। यह कथा ह
हरदास क िवदेशी कितया जूली और गोबर
क देशी क े कालू क। लेिकन असली
कहानी ह िज़ले क हािकम हरदास क
अहकार, उसक श और सामय क
अिववेक योग और गोबर क रीढ़ को सीधा
करने क कोिशश, लेिकन अंततः उसक
लाचारी, उसक हार क। देश को वतंता
??? क इतने वष क बाद भी एक िलंग
?ास मौजूद ह, िजसे लगता ह कालू का
जूली क संपक म आना, जूली क ारा उसक
औक़ात का, उसक सामािजक सीमा का
अितमण ह। यह कहानी देश म या
ग़ैरबराबरी को अयंत िवडबनामक बोध क
साथ उजागर करती ह।
संह क एक अय कहानी 'ढड़ चले जै
ह का क संगे' एक मनोवैािनक िव?ेषण
क कहानी ह, िजसम कहानीकार ने कई
िवषय को बत ही कशलता और सुंदरता से
एक साथ समेटा ह। पंकज सुबीर
मनोवैािनक िव?ेषण क कहािनयाँ िलखने
क उताद ह। उह मनोिवान और उससे
जुड़ संदभ क अछी समझ ह, िजनका
योग वे अपनी कथा कहते ए करते ह। साथ
ही भोपाल और वहाँ क बड़ तालाब से लेखक
का ेम भी जगजािहर ही ह, िजसक
अिभय वे बधा अपनी रचना म करते
िदखते ह। एक ठठ बुदेली गाँव से आया आ

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 202529 28 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2025
शैले क किव को णाम करता ह। िफर वह
किवता औरत जात हो, ओ िवदुषी हो, तीित
हो, एक अनचाही याा या टिमनेशन।
टिमनेशन शैले क वभाव क िवपरत एक
लंबी किवता ह। जो यह बताती ह िक शरण
क लेखनी लंबे माग पर भी अपना संतुलन
खोती नह ह। न पथ से भटकती ही ह।
शैले क ेम का कनवास बड़ा और
बरगी ह। िजसम एक तरफा ेम ह तो उनक
ेम क अनेक आयाम भी इनम खोज सकते
ह। ेम क उनक दायर म भाई, बहन, ियकर
और िम तो ह ही। उनका अपना शहर भी ह।
अपने शहर अपनी ज़मीन क ित अनुराग भी
कम नह होता। वे अपने समय से, अपनी
ज़मीन से जुड़ रचनाकार ह, िजनक अपनी
s?? ह, िबंब ह, तीक ह और सबसे हटकर
अपनी किवता का एक अलग मुहावरा ह।
शरण क इस काय संह म एक ही
शीषक क अंतगत कई कई शद िच आप
देख पाते ह। िजनम ेम ह। धोखा ह। अथ ह।
समय ह। समय का संास ह। इस संास क
िव ितरोध ह। ितरोध भी ऐसा िक वह
लगभग एक ही ण म आपको तार तार कर
देता ह या मु याँ भच लेने को तपर कर
देता ह। मं का शयशोधन म वे मं क
सामियकता पर न िच? भी खड़ करते ह।
ये शद िच जहाँ वयं एक वतं किवता ह
तो वह पहली किवता से दूसरी किवता का
तादा य थािपत हो जाता ह। इह म एक
किवता कल क िदन, कछ िच शािमल ह,
जहाँ क याद बरबस हम भी उस दालान म ले
जाती ह, िफर वह उस िम क बात हो िजसे
िपता घर से भगाते रह, पर बीमारी क दशा म
वे उसे ही याद करते ह। तीसरा िच मािमक
बन गया ह िजसम वे िचिड़या क घसले से
अंड उठाते ह, जो उनक ग़लती से फट जाते
ह, आिख़र म वे िम से पूछते ह- पूछती ह
मुझसे ! कहाँ ह मेर बे? / मेर कान म शोक
गीत गाती ह, / सच बता यार, / या तेर घर भी
आती ह ?
किवता म िवषय क िविवधता भी
शैले शरण क इस संह म हम िदखाई देती
ह, आप ेम क कई िभ? छटाएँ छटाएँ देखते
ह।
ेम क कछ िच अिवमरणीय बन जाते
ह। ेम ह ही ऐसा िक उसम आशंकाएँ पहले
घर करती ह। एक किवता आशंकाएँ म वे
कहते ह।
उसे मर रात भर / जागने का पता नह
होता / ऐसे ही सुबह / उसक जाग जाने का /
मुझे पता नह होता
िकसी िदन उसक जाने का / शोर मचेगा,
तब / शायद चुपचाप चला जाऊ।
वह ेम म उपजे संताप को भी वे वर देते
ह-
अपने किठन समय म / हम याद रहा /
अपना अिवभािजत ेम / अमूत अिवास /
जब-जब मूत आ / हथेिलयाँ भीगी ई
िमल।
"एक अनचाही याा" म अनचाही संतान
क जम का संास किवता म गहर उतर आया
ह। एक बािलका क जम क यथा किव जब
शद म उतारता ह तो बरबस आँख क सामने
एक िच खड़ा हो जाता ह। जो एक अजमे
अपंग बे क ूण क समा क य को
परत दर परत खोलता ह। िजसम माँ क वेदना
और कणा दोन ही पाठक को देर तक
असहज कर देती ह। यह किवता अनपेित
हया का गहन दतावेज़ बन जाती ह।
वैसे ही टिमनेशन किवता म डीएनसी
शय-िया को किव ने िजस सवेदना क
साथ गढ़ा ह वह कम दय िवदारक नह ह।
आप तध होकर अपनी धड़कन क गित
को तेज़ होते और िफर धस... होते अनुभव
कर सकते ह। हाँ िकताब का शीषक वाली
किवता तब िमलेगी, जब आप उसे गंभीरता से
पढ़ नह लेते या एक िणक चमक सी वह
पं अचानक आपक आँख म कध न
जाए। किव शैले गंभीरता से अपने किव
कम को जी रह ह। उनक हाथ म समय क
नज़ ह और वे उसक हर धड़कन को
बारीक से पकड़ कर बीमारी का पता देते ह।
सार छल कपट क होने क बावजूद वे ेम को
समाधान भी मानते ह। यह कम सकारामक
नह ह।
000
लेखक से अनुरोध
‘िशवना सािह यक' म सभी लेखक का
वागत ह। अपनी मौिलक, अकािशत
रचनाएँ ही भेज। पिका म राजनैितक तथा
िववादापद िवषय पर रचनाएँ कािशत नह
क जाएँगी। रचना को वीकार या अवीकार
करने का पूण अिधकार संपादक मंडल का
होगा। कािशत रचना पर कोई पारिमक
नह िदया जाएगा। बत अिधक लबे प
तथा लबे आलेख न भेज। अपनी सामी
यूिनकोड अथवा चाणय फॉट म वडपेड
क ट ट फ़ाइल अथवा वड क फ़ाइल क
ारा ही भेज। पीडीऍफ़ या कन क ई
जेपीजी फ़ाइल म नह भेज, इस कार क
रचनाएँ िवचार म नह ली जाएँगी। रचना
क साट कॉपी ही ईमेल क ारा भेज, डाक
ारा हाड कॉपी नह भेज, उसे कािशत
करना अथवा आपको वापस कर पाना हमार
िलए संभव नह होगा। रचना क साथ पूरा नाम
व पता, ईमेल आिद िलखा होना ज़री ह।
आलेख, कहानी क साथ अपना िच तथा
संि सा परचय भी भेज। पुतक
समीा का वागत ह, समीाएँ अिधक
लबी नह ह, सारगिभत ह। समीा क
साथ पुतक क कवर का िच, लेखक का
िच तथा काशन संबंधी आवयक
जानकारयाँ भी अवय भेज। एक अंक म
आपक िकसी भी िवधा क रचना (समीा क
अलावा) यिद कािशत हो चुक ह तो अगली
रचना क िलए तीन अंक क तीा कर। एक
बार म अपनी एक ही िवधा क रचना भेज,
एक साथ कई िवधा म अपनी रचनाएँ न
भेज। रचनाएँ भेजने से पूव एक बार पिका म
कािशत हो रही रचना को अवय देख।
रचना भेजने क बाद वीकित हतु तीा कर,
बार-बार ईमेल नह कर, चूँिक पिका
ैमािसक ह अतः कई बार िकसी रचना को
वीकत करने तथा उसे िकसी अंक म
कािशत करने क बीच कछ अंतराल हो
सकता ह।
धयवाद
संपादक
[email protected]
अभी कबीर पर मेनेजर पांडय का एक आलेख पढ़ रहा था। और उसम कबीर क िविभ?
प पर उनका िववेचन पढ़ रहा था। यहाँ यह देख रहा िक शैले शरण को हम कबीर क
परपरा का संवाहक कह सकते ह जो एक ही समय ढाई आखर क भी बात करते ह, वह
सामािजक तर पर फले िविभ? िवसंगितय पर ितरोध को दज करते चलते ह।
शैले शरण समकालीन किवता क सबसे अिधक योगशील किव ह। नई किवता क हर
फॉमट म उहने अपनी पहचान बना ली ह। अभी तो सबसे यादा पढ़ जाने वाले किवय म
शैले शरण शुमार ह। भले ही उनका नाम अभी हाल म जारी चिचत सौ रचनाकार क सूची म
न हो। उनका िपछला संह सूखे प पर चलते ए का दूसरा संकरण भी पहले संकरण क
कछ ही िदन म कािशत होना उनक लोकियता क िनशानी ह। उनक अब तक छह संकलन
कािशत हो चुक ह। िजनम एक ग़ज़ल संह भी ह।
उह ेम किवता का िवलण किव कहा जाता रहा ह। पर अब देख तो इस संह म वे
ितरोध क किव बनकर भी सामने आते ह, वह भी यथा थित क। वर यंयकार एवं
आलोचक कलाश मंडलेकर अपनी िटपणी म इसे सहज ही रखांिकत करते ह। शैले क
किवताएँ जहाँ सहज संेषणीय ह, वह गहन अथवा क किवताएँ भी ह। उनक िबब अपने
व को रखांिकत करते ह। शैले क किवताएँ आपको जहाँ चमकत करती ह, वह वे
भावामक अिभय का सहज पांतरण भी ह। पर यह पांतरण महज पांतरण नह ब क
किवता क संपूण भाव-भंिगमा उसम समािहत ह। समीित संह िपकासो क उदास लड़िकयाँ
इनक एक बानगी ह। संह क कई किवताएँ उनक मंशानुप देर तक साथ रहती ह। पहली
किवता ही देिखए-
फल नह बचे / पे नह बचे / पेड़ नह बचे / जाना ही होगा / बीज क पास / िम?ी क
पास / पानी क पास / और कहाँ जाऊ ?
उनक यह किवता छोटी होने क बाद भी अपनी अथवा म िवशाल ह। पयावरण क ित
उदासीनता ही नह ब क मनुय क अपनी जड़ क ओर लौटने क िववशता को यह किवता
गहर तक अनुभव कराती ह। कल क िदन कछ याद ऐसी ही कछ किवता म से एक ह। एक
किव क संवेदनशीलता का एक उदाहरण ह यह। शैले का यह किवता संह एक पुष क
ेम ममव और ी क ित उसक भावामक लगाव का अनूठा संह ह। एकािधक किवता
म शैले ी और उसक वभाव िवभाव और अनुभाव को कट करते ह, एक सदय पाठक
पुतक समीा
(किवता संह)
िपकासो क उदास
लड़िकयाँ
समीक : सुधीर देशपांड
लेखक : शैले शरण
काशक : यू वड प लकशन
सुधीर देशपांड
जोशी नगर, खंडवा, म
मोबाइल- 9893643380

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 202529 28 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2025
शैले क किव को णाम करता ह। िफर वह
किवता औरत जात हो, ओ िवदुषी हो, तीित
हो, एक अनचाही याा या टिमनेशन।
टिमनेशन शैले क वभाव क िवपरत एक
लंबी किवता ह। जो यह बताती ह िक शरण
क लेखनी लंबे माग पर भी अपना संतुलन
खोती नह ह। न पथ से भटकती ही ह।
शैले क ेम का कनवास बड़ा और
बरगी ह। िजसम एक तरफा ेम ह तो उनक
ेम क अनेक आयाम भी इनम खोज सकते
ह। ेम क उनक दायर म भाई, बहन, ियकर
और िम तो ह ही। उनका अपना शहर भी ह।
अपने शहर अपनी ज़मीन क ित अनुराग भी
कम नह होता। वे अपने समय से, अपनी
ज़मीन से जुड़ रचनाकार ह, िजनक अपनी
s?? ह, िबंब ह, तीक ह और सबसे हटकर
अपनी किवता का एक अलग मुहावरा ह।
शरण क इस काय संह म एक ही
शीषक क अंतगत कई कई शद िच आप
देख पाते ह। िजनम ेम ह। धोखा ह। अथ ह।
समय ह। समय का संास ह। इस संास क
िव ितरोध ह। ितरोध भी ऐसा िक वह
लगभग एक ही ण म आपको तार तार कर
देता ह या मु याँ भच लेने को तपर कर
देता ह। मं का शयशोधन म वे मं क
सामियकता पर न िच? भी खड़ करते ह।
ये शद िच जहाँ वयं एक वतं किवता ह
तो वह पहली किवता से दूसरी किवता का
तादा य थािपत हो जाता ह। इह म एक
किवता कल क िदन, कछ िच शािमल ह,
जहाँ क याद बरबस हम भी उस दालान म ले
जाती ह, िफर वह उस िम क बात हो िजसे
िपता घर से भगाते रह, पर बीमारी क दशा म
वे उसे ही याद करते ह। तीसरा िच मािमक
बन गया ह िजसम वे िचिड़या क घसले से
अंड उठाते ह, जो उनक ग़लती से फट जाते
ह, आिख़र म वे िम से पूछते ह- पूछती ह
मुझसे ! कहाँ ह मेर बे? / मेर कान म शोक
गीत गाती ह, / सच बता यार, / या तेर घर भी
आती ह ?
किवता म िवषय क िविवधता भी
शैले शरण क इस संह म हम िदखाई देती
ह, आप ेम क कई िभ? छटाएँ छटाएँ देखते
ह।
ेम क कछ िच अिवमरणीय बन जाते
ह। ेम ह ही ऐसा िक उसम आशंकाएँ पहले
घर करती ह। एक किवता आशंकाएँ म वे
कहते ह।
उसे मर रात भर / जागने का पता नह
होता / ऐसे ही सुबह / उसक जाग जाने का /
मुझे पता नह होता
िकसी िदन उसक जाने का / शोर मचेगा,
तब / शायद चुपचाप चला जाऊ।
वह ेम म उपजे संताप को भी वे वर देते
ह-
अपने किठन समय म / हम याद रहा /
अपना अिवभािजत ेम / अमूत अिवास /
जब-जब मूत आ / हथेिलयाँ भीगी ई
िमल।
"एक अनचाही याा" म अनचाही संतान
क जम का संास किवता म गहर उतर आया
ह। एक बािलका क जम क यथा किव जब
शद म उतारता ह तो बरबस आँख क सामने
एक िच खड़ा हो जाता ह। जो एक अजमे
अपंग बे क ूण क समा क य को
परत दर परत खोलता ह। िजसम माँ क वेदना
और कणा दोन ही पाठक को देर तक
असहज कर देती ह। यह किवता अनपेित
हया का गहन दतावेज़ बन जाती ह।
वैसे ही टिमनेशन किवता म डीएनसी
शय-िया को किव ने िजस सवेदना क
साथ गढ़ा ह वह कम दय िवदारक नह ह।
आप तध होकर अपनी धड़कन क गित
को तेज़ होते और िफर धस... होते अनुभव
कर सकते ह। हाँ िकताब का शीषक वाली
किवता तब िमलेगी, जब आप उसे गंभीरता से
पढ़ नह लेते या एक िणक चमक सी वह
पं अचानक आपक आँख म कध न
जाए। किव शैले गंभीरता से अपने किव
कम को जी रह ह। उनक हाथ म समय क
नज़ ह और वे उसक हर धड़कन को
बारीक से पकड़ कर बीमारी का पता देते ह।
सार छल कपट क होने क बावजूद वे ेम को
समाधान भी मानते ह। यह कम सकारामक
नह ह।
000
लेखक से अनुरोध
‘िशवना सािह यक' म सभी लेखक का
वागत ह। अपनी मौिलक, अकािशत
रचनाएँ ही भेज। पिका म राजनैितक तथा
िववादापद िवषय पर रचनाएँ कािशत नह
क जाएँगी। रचना को वीकार या अवीकार
करने का पूण अिधकार संपादक मंडल का
होगा। कािशत रचना पर कोई पारिमक
नह िदया जाएगा। बत अिधक लबे प
तथा लबे आलेख न भेज। अपनी सामी
यूिनकोड अथवा चाणय फॉट म वडपेड
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जेपीजी फ़ाइल म नह भेज, इस कार क
रचनाएँ िवचार म नह ली जाएँगी। रचना
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समीा का वागत ह, समीाएँ अिधक
लबी नह ह, सारगिभत ह। समीा क
साथ पुतक क कवर का िच, लेखक का
िच तथा काशन संबंधी आवयक
जानकारयाँ भी अवय भेज। एक अंक म
आपक िकसी भी िवधा क रचना (समीा क
अलावा) यिद कािशत हो चुक ह तो अगली
रचना क िलए तीन अंक क तीा कर। एक
बार म अपनी एक ही िवधा क रचना भेज,
एक साथ कई िवधा म अपनी रचनाएँ न
भेज। रचनाएँ भेजने से पूव एक बार पिका म
कािशत हो रही रचना को अवय देख।
रचना भेजने क बाद वीकित हतु तीा कर,
बार-बार ईमेल नह कर, चूँिक पिका
ैमािसक ह अतः कई बार िकसी रचना को
वीकत करने तथा उसे िकसी अंक म
कािशत करने क बीच कछ अंतराल हो
सकता ह।
धयवाद
संपादक
[email protected]
अभी कबीर पर मेनेजर पांडय का एक आलेख पढ़ रहा था। और उसम कबीर क िविभ?
प पर उनका िववेचन पढ़ रहा था। यहाँ यह देख रहा िक शैले शरण को हम कबीर क
परपरा का संवाहक कह सकते ह जो एक ही समय ढाई आखर क भी बात करते ह, वह
सामािजक तर पर फले िविभ? िवसंगितय पर ितरोध को दज करते चलते ह।
शैले शरण समकालीन किवता क सबसे अिधक योगशील किव ह। नई किवता क हर
फॉमट म उहने अपनी पहचान बना ली ह। अभी तो सबसे यादा पढ़ जाने वाले किवय म
शैले शरण शुमार ह। भले ही उनका नाम अभी हाल म जारी चिचत सौ रचनाकार क सूची म
न हो। उनका िपछला संह सूखे प पर चलते ए का दूसरा संकरण भी पहले संकरण क
कछ ही िदन म कािशत होना उनक लोकियता क िनशानी ह। उनक अब तक छह संकलन
कािशत हो चुक ह। िजनम एक ग़ज़ल संह भी ह।
उह ेम किवता का िवलण किव कहा जाता रहा ह। पर अब देख तो इस संह म वे
ितरोध क किव बनकर भी सामने आते ह, वह भी यथा थित क। वर यंयकार एवं
आलोचक कलाश मंडलेकर अपनी िटपणी म इसे सहज ही रखांिकत करते ह। शैले क
किवताएँ जहाँ सहज संेषणीय ह, वह गहन अथवा क किवताएँ भी ह। उनक िबब अपने
व को रखांिकत करते ह। शैले क किवताएँ आपको जहाँ चमकत करती ह, वह वे
भावामक अिभय का सहज पांतरण भी ह। पर यह पांतरण महज पांतरण नह ब क
किवता क संपूण भाव-भंिगमा उसम समािहत ह। समीित संह िपकासो क उदास लड़िकयाँ
इनक एक बानगी ह। संह क कई किवताएँ उनक मंशानुप देर तक साथ रहती ह। पहली
किवता ही देिखए-
फल नह बचे / पे नह बचे / पेड़ नह बचे / जाना ही होगा / बीज क पास / िम?ी क
पास / पानी क पास / और कहाँ जाऊ ?
उनक यह किवता छोटी होने क बाद भी अपनी अथवा म िवशाल ह। पयावरण क ित
उदासीनता ही नह ब क मनुय क अपनी जड़ क ओर लौटने क िववशता को यह किवता
गहर तक अनुभव कराती ह। कल क िदन कछ याद ऐसी ही कछ किवता म से एक ह। एक
किव क संवेदनशीलता का एक उदाहरण ह यह। शैले का यह किवता संह एक पुष क
ेम ममव और ी क ित उसक भावामक लगाव का अनूठा संह ह। एकािधक किवता
म शैले ी और उसक वभाव िवभाव और अनुभाव को कट करते ह, एक सदय पाठक
पुतक समीा
(किवता संह)
िपकासो क उदास
लड़िकयाँ
समीक : सुधीर देशपांड
लेखक : शैले शरण
काशक : यू वड प लकशन
सुधीर देशपांड
जोशी नगर, खंडवा, म
मोबाइल- 9893643380

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 202531 30 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2025
उनक सार ब को पढ़ने क िलए ेरत
करती ह। इसका भाव भी अंत म िदखाया
गया ह िक बे पढ़ कर ऊची-ऊची पोट पर
चले जाते ह। पूर उपयास म लेखक कई बार
अपने परवार क साथ बाहर क यााएँ भी
करते ह और उन याा क संमरण बड़ रोचक
तरीक से तुत करते ह, वहाँ पर भी अमा
क भूिमका को रखांिकत करता आ
उपयास आगे बढ़ता ह।
इसक बाद अमा एक वृाम से जुड़ती
ह और वहाँ पर उनका यान रखने क साथ-
साथ उनक वा य क परीण क िलए,
उनक मनोरजन क िलए, उनक पुनवास क
िलए, उनक भरण पोषण क िलए सरकार से
सहायता उपलध करवाने का काम करती ह।
बक क समाज सेवा को से वह उस
वृाम म कबल दान करती ह, पंखे
लगवाने का काम करती ह और भी बत सार
काम िविभ? संथा क मायम से करवाने
का काम अमा क ारा सतत िकया जाता ह।
अमा अपने अगले क़दम क प म ीट
िच न क िलए काम करती ह और िविभ?
चैरटबल ट क ारा अनाथाम को
यव थत करवाती ह। ब क डॉटरी
जाँच करवाती ह। उह पौ क आहार दान
करवाती ह और उनक अययन क यवथा
करवाती ह। अमा का मागदशन सभी लोग
मानने लगते ह और अमा ब क मय बाल
सभा करवाने क साथ-साथ उह दशनीय
थल क याा भी करवाने लगती ह। इस
तरह जो सड़क क बे रहते ह, उह भी एक
घर ा हो जाता ह।
इसक बाद अमा एक अपताल से
जुड़ती ह और वहाँ क यवथा म सुधार
करवाने का काम करती ह। इसक साथ म ही
वह यास कर उस हदराबाद शहर म एक
कसर अपताल क भी थापना करवाती ह।
अमा को सार रोगी पसंद करते और यह
मानते िक अमा का उनक सर पर यिद हाथ
आ जाएगा तो वे वथ हो जाएँगे। अमा भी
सबक िसर पर अपना हाथ बड़ ेम क साथ
रखती थ।
अमा क सामािजक काय कभी कते
नह ह। वह आम का िनरीण करती रहती
ह। िविभ? थान क आम उनक िनगाह म
रहते ह और जब कह पर कोई अयवथा
देखी ह तो उसका िनराकरण तुरत करती ह।
वषा क मौसम म अमा सबको ेरत करती ह
िक वे वृ लगाए, वृ क सेवा कर और नए
पौध क पूरी देखभाल कर। इस काय म वह
शासन को भी शािमल कर लेती ह। अमा
एक पुतकालय क थापना कर ब को
पुतक पढ़ने क िलए ेरत करती ह और इसी
कार समय आने पर वह िविभ? संथा
का िनरीण भी करती रहती ह। एक बार जब
वह फ ी का िनरीण करने जाती ह तो वहाँ
बोड तो लगा रहता ह िक यहाँ पर बाल िमक
ितबंिधत ह, लेिकन जब वह फ ी क भीतर
जाती ह तो वहाँ पर बाल िमक काय करते
रहते ह। इस बात पर अमा फ ी मािलक से
बात करती ह और जब मािलक अपनी ग़लती
मान लेते ह, तो वह उह कहती ह िक
प?ाताप क प म अब आप इन ब क
िशा क यवथा कर और इस कार उन
ब क जीवन को सुधारने का काम करती
ह। आय क नाम से वह एक एनजीओ
थािपत करती ह और िविभ? कार क
सामािजक काय उसक मायम से करती रहती
ह। मज़दूर को संगिठत कर उनक माँग
मनवाने क िलए जी तोड़ कोिशश करती ह।
अमा क सामािजक काय को देखते ए उह
सामािजक े म सव म योगदान क िलए
मानव सेवा पुरकार से मुयमंी क ारा
समािनत िकया जाता ह, िजसम 5 लाख का
नगद पुरकार उह ा होता ह। अमा उस
रािश को भी सेवा काय म लगा देती ह। अमा
िवकलांग क िलए भी काम करती ह और
उह ाई साइिकल िदलवाने का काम करती
ह। कल िमलाकर इस पूरी पुतक म अमा क
िविभ? े म िकए गए ब आयामी काय
का िवतार से िज़ िकया गया ह और उसक
मायम से अमा क उक चर को तुत
करने का काम िकया गया ह। लेखक
उपयास म अपने ब क जीवन क िनमाण
का भी िज़ करते रहते ह और अपनी पनी
जानक क जीवन क िनमाण का भी िज़
उनक बात म रहता ह। समय क साथ-साथ
बे बड़ होते ह। उनका जीवन अछा होता
ह। सब अपने-अपने काम म लग जाते ह और
सूधार क लड़क अमा क काम म उनका
हाथ बंटाने लगती ह। उपयास क अंत म यही
लड़क अमा क िनधन क बाद उस काय को
अपने हाथ म ले लेती ह और इस तरह लेखक
ने समाज सेवा का काय िपछली पीढ़ी से नई
पीढ़ी तक प चा देने का िदशा िनदश पुतक
क मायम से िकया ह।
अमा ना िसफ अपनी देह का दान करने
का फॉम भर देती ह, अिपतु पूर परवारजन
को एवं समाज क िविभ? वग को इस िदशा
म ेरत करती ह और उनसे भी फॉम भरवाती
ह। अमा क िनधन क मािमक य से यह
पुतक ारभ होती ह और अंत म यह उनक
अंितम याा पर समा होती ह जहाँ शपथ क
अनुसार उनक देह मेिडकल कॉलेज को दान
कर दी जाती ह। यह सारा िचण बत ही
भावना पूण तरीक से मािमक प से तुत
िकया गया ह जो पाठक को अमा से बत
गहर तक जोड़ देता ह। यही इस उपयास क
सफलता भी ह। अमा क य व क
ेता को दशाने क िलए अंत म यह भी
बताया गया ह िक मरणोपरांत भारत सरकार
अमा को प? िवभूषण से समािनत करती ह
तथा यह समान िबिटया अनु रापित क
हाथ से ा करती ह। अमा क बाद अनु
क टीम इस समाज सेवा क काय को अपने
हाथ म ले लेती ह। अमा का िच गाँधी
अपताल म गणेश जी और सा बाबा क
मूित क पास रख िदया जाता ह। इस कार
उहने समाज को जो िदया ह उसको
समािनत िकया जाता ह।
इस उपयास म अनुभूितय क साई ह।
इसका सधा आ कथानक, सरल-प
भाषा, चर िचण व पा क आपस क
बारीिकयाँ, पा का रहन-सहन, यवहार,
उनक वाभािवकता, सामािजक, आिथक
थित आिद िबंदु, हदराबाद क पृ?भूिम
इसे बेहद उदा उपयास बनाती ह। उपयास
क कथा बत ही रोचक व संवेदनशील ह।
000
"अमा" उपयास क िवषयवतु नवीन धरातल का अहसास कराती ह। उपयास का मुय
िकरदार अमा ह, जो िक कथा क सूधार को िदी क रलवे टशन पर िमलती ह। उपयास
का ताना-बाना अमा क इद-िगद बुना गया ह। इस कित म उपयास और संमरण का िमण
ह। इस कथा याा का मूल पा अमा ह। यह अमा नई िदी रलवे टशन पर रोती ई कथा
क सूधार को िमलती ह और वह उस रोती ई अमा को अपनी अमा बनाकर अपने घर ले
आता ह। यहाँ से यह कथा अमा क उकष को तुत करते ए आगे बढ़ती ह। जीवन म
अछाइयाँ िकस तरह से अछा फल देता ह इस बात को कथा क ारभ म ही तुत िकया गया
ह िक अमा क दुख को देखते ए कथा का सूधार अपनी रल क िटकट को र करवा लेता
ह और अमा क साथ लाइट क िटकट बुक कर लेता ह। जब वह लाइट से अपने घर
प चता ह तो उसे पता चलता ह िक िजस न से वह आने वाला था उस न का एसीडट हो
गया ह और उस हादसे म कई लोग मर गए ह। यहाँ पर लेखक यह संदेश देना चाहता ह िक जब
आप जीवन म कछ अछा करते ह तो उसक ितफल क प म आपक जीवन म भी कछ
अछा ही होता ह।
अमा का पा ज़मीन से उठकर अपने जीवन क शीष पर प चता ह। इस याा म अमा क
जीवन क सार संघष इस पुतक क भीतर िवमान ह और संघष क भीतर से जीवन कसे
सकारामक भाव से सँवरकर आगे बढ़ता ह, इसक बड़ी रोचक और मािमक गाथा इस पुतक
म कही गई ह। पूरी कथा लैशबैक म कही गई ह। अमा क देहावसान क ख़बर से उपयास
का ारभ होता ह और िफर िकसी िफम क तरह अमा क जीवन क याा का वणन लेखक
क ारा िकया जाता ह। अमा क य व का िचण भावशाली ह। लेखक िलखते ह िक,
अमा का चौड़ा चमकला माथा, उनक चेहर का तेज़ और अयंत गरमामय य व उनक
दय को भािवत करता ह और वे उनसे टटी-फटी िहदी म बात कर लेते ह। यह पर पता
चलता ह िक अमा क मूल भाषा तेलुगु ह और कछ-कछ िहदी म वह बात कर लेती ह। अमा
से बात करने पर लेखक को यह समझ म आता ह िक उह उनक जेठ जेठानी ने घर से बाहर
िनकाल िदया ह। पित क मृयु 2 वष पूव हो चुक ह और सार रते पित क मृयु क साथ बदल
गए ह। उह एक फालतू सामान क तरह घर से बाहर फक िदया गया ह। इस बात को सुनकर ही
लेखक उह अपने घर पर ले आते ह और वहाँ पर उसक पनी जानक भी अपने पूर दय से
अमा का वागत करती ह, उह पहले िदन से ही अपने परवार का सदय बना लेती ह। अमा
भी परवार क इस आमीयता को दय से वीकार करती ह। परवार क सार सुख-दुख उसक
अपने सुख-दुख हो जाते ह और वह िजमेदारी क साथ न िसफ परवार को सँभालती ह, अिपतु
समाज क िलए कछ करने का उसका हौसला भी यह पर सामने आता ह। अपनी इस समाज
सेवा का ारभ अमा एक वयं सहायता समूह बनाकर ारभ करती ह। अमा का दयालु
वभाव उसे अपने काय म सफलता दान करता ह। िजस मटी म वह रहती ह वहाँ क भी सार
लोग उनक आकिषत करने वाले वभाव से बड़ी सहजता क साथ उनसे जुड़ जाते ह और वह
सबक सुख-दुख क साथी हो जाती ह। अमा छोट ब क माता-िपता को काउसिलंग करती ह
और ब क पूण िवकास क िलए उनका मागदशन करती ह। कथा का कनवास बत बड़ा ह।
कथा क वाह म ही लेखक का बा अिमत जम लेता ह। जब वह 3 साल से अिधक हो जाता
ह तो िफर एक और लड़क का जम होता ह और जब वह बा थोड़ा बड़ा होता ह तो एक
लड़क का जम होता ह। यह पारवारक िवकास भी कथा को जोड़ रखता ह। अमा क
सामािजक याा जो वयं सहायता समूह से ारभ ई वह बाद म कई सार समूह तक िवतारत
होती ह और अमा क इस लोकियता से भािवत होकर बक क अिधकारी भी उनका समान
करते ह। संथाएँ समान करती ह तथा हर बात म उसका मागदशन िलया जाता ह। अमा
सोसायटी क लोग से बात कर घर म काम करने वाली बाइय क पगार हर साल बढ़वाने का
काम भी करती ह। वयं सहायता समूह क लोग को वह िशा का महव समझाती ह और
पुतक समीा
(उपयास)
अमा
समीक : सतीश राठी
लेखक : दीपक िगरकर
काशक : यू वड प लकशन
सतीश राठी
आर 451, महाल?मी नगर,
इदौर 452010, म
मोबाइल- 94250 67204

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 202531 30 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2025
उनक सार ब को पढ़ने क िलए ेरत
करती ह। इसका भाव भी अंत म िदखाया
गया ह िक बे पढ़ कर ऊची-ऊची पोट पर
चले जाते ह। पूर उपयास म लेखक कई बार
अपने परवार क साथ बाहर क यााएँ भी
करते ह और उन याा क संमरण बड़ रोचक
तरीक से तुत करते ह, वहाँ पर भी अमा
क भूिमका को रखांिकत करता आ
उपयास आगे बढ़ता ह।
इसक बाद अमा एक वृाम से जुड़ती
ह और वहाँ पर उनका यान रखने क साथ-
साथ उनक वा य क परीण क िलए,
उनक मनोरजन क िलए, उनक पुनवास क
िलए, उनक भरण पोषण क िलए सरकार से
सहायता उपलध करवाने का काम करती ह।
बक क समाज सेवा को से वह उस
वृाम म कबल दान करती ह, पंखे
लगवाने का काम करती ह और भी बत सार
काम िविभ? संथा क मायम से करवाने
का काम अमा क ारा सतत िकया जाता ह।
अमा अपने अगले क़दम क प म ीट
िच न क िलए काम करती ह और िविभ?
चैरटबल ट क ारा अनाथाम को
यव थत करवाती ह। ब क डॉटरी
जाँच करवाती ह। उह पौ क आहार दान
करवाती ह और उनक अययन क यवथा
करवाती ह। अमा का मागदशन सभी लोग
मानने लगते ह और अमा ब क मय बाल
सभा करवाने क साथ-साथ उह दशनीय
थल क याा भी करवाने लगती ह। इस
तरह जो सड़क क बे रहते ह, उह भी एक
घर ा हो जाता ह।
इसक बाद अमा एक अपताल से
जुड़ती ह और वहाँ क यवथा म सुधार
करवाने का काम करती ह। इसक साथ म ही
वह यास कर उस हदराबाद शहर म एक
कसर अपताल क भी थापना करवाती ह।
अमा को सार रोगी पसंद करते और यह
मानते िक अमा का उनक सर पर यिद हाथ
आ जाएगा तो वे वथ हो जाएँगे। अमा भी
सबक िसर पर अपना हाथ बड़ ेम क साथ
रखती थ।
अमा क सामािजक काय कभी कते
नह ह। वह आम का िनरीण करती रहती
ह। िविभ? थान क आम उनक िनगाह म
रहते ह और जब कह पर कोई अयवथा
देखी ह तो उसका िनराकरण तुरत करती ह।
वषा क मौसम म अमा सबको ेरत करती ह
िक वे वृ लगाए, वृ क सेवा कर और नए
पौध क पूरी देखभाल कर। इस काय म वह
शासन को भी शािमल कर लेती ह। अमा
एक पुतकालय क थापना कर ब को
पुतक पढ़ने क िलए ेरत करती ह और इसी
कार समय आने पर वह िविभ? संथा
का िनरीण भी करती रहती ह। एक बार जब
वह फ ी का िनरीण करने जाती ह तो वहाँ
बोड तो लगा रहता ह िक यहाँ पर बाल िमक
ितबंिधत ह, लेिकन जब वह फ ी क भीतर
जाती ह तो वहाँ पर बाल िमक काय करते
रहते ह। इस बात पर अमा फ ी मािलक से
बात करती ह और जब मािलक अपनी ग़लती
मान लेते ह, तो वह उह कहती ह िक
प?ाताप क प म अब आप इन ब क
िशा क यवथा कर और इस कार उन
ब क जीवन को सुधारने का काम करती
ह। आय क नाम से वह एक एनजीओ
थािपत करती ह और िविभ? कार क
सामािजक काय उसक मायम से करती रहती
ह। मज़दूर को संगिठत कर उनक माँग
मनवाने क िलए जी तोड़ कोिशश करती ह।
अमा क सामािजक काय को देखते ए उह
सामािजक े म सव म योगदान क िलए
मानव सेवा पुरकार से मुयमंी क ारा
समािनत िकया जाता ह, िजसम 5 लाख का
नगद पुरकार उह ा होता ह। अमा उस
रािश को भी सेवा काय म लगा देती ह। अमा
िवकलांग क िलए भी काम करती ह और
उह ाई साइिकल िदलवाने का काम करती
ह। कल िमलाकर इस पूरी पुतक म अमा क
िविभ? े म िकए गए ब आयामी काय
का िवतार से िज़ िकया गया ह और उसक
मायम से अमा क उक चर को तुत
करने का काम िकया गया ह। लेखक
उपयास म अपने ब क जीवन क िनमाण
का भी िज़ करते रहते ह और अपनी पनी
जानक क जीवन क िनमाण का भी िज़
उनक बात म रहता ह। समय क साथ-साथ
बे बड़ होते ह। उनका जीवन अछा होता
ह। सब अपने-अपने काम म लग जाते ह और
सूधार क लड़क अमा क काम म उनका
हाथ बंटाने लगती ह। उपयास क अंत म यही
लड़क अमा क िनधन क बाद उस काय को
अपने हाथ म ले लेती ह और इस तरह लेखक
ने समाज सेवा का काय िपछली पीढ़ी से नई
पीढ़ी तक प चा देने का िदशा िनदश पुतक
क मायम से िकया ह।
अमा ना िसफ अपनी देह का दान करने
का फॉम भर देती ह, अिपतु पूर परवारजन
को एवं समाज क िविभ? वग को इस िदशा
म ेरत करती ह और उनसे भी फॉम भरवाती
ह। अमा क िनधन क मािमक य से यह
पुतक ारभ होती ह और अंत म यह उनक
अंितम याा पर समा होती ह जहाँ शपथ क
अनुसार उनक देह मेिडकल कॉलेज को दान
कर दी जाती ह। यह सारा िचण बत ही
भावना पूण तरीक से मािमक प से तुत
िकया गया ह जो पाठक को अमा से बत
गहर तक जोड़ देता ह। यही इस उपयास क
सफलता भी ह। अमा क य व क
ेता को दशाने क िलए अंत म यह भी
बताया गया ह िक मरणोपरांत भारत सरकार
अमा को प? िवभूषण से समािनत करती ह
तथा यह समान िबिटया अनु रापित क
हाथ से ा करती ह। अमा क बाद अनु
क टीम इस समाज सेवा क काय को अपने
हाथ म ले लेती ह। अमा का िच गाँधी
अपताल म गणेश जी और सा बाबा क
मूित क पास रख िदया जाता ह। इस कार
उहने समाज को जो िदया ह उसको
समािनत िकया जाता ह।
इस उपयास म अनुभूितय क साई ह।
इसका सधा आ कथानक, सरल-प
भाषा, चर िचण व पा क आपस क
बारीिकयाँ, पा का रहन-सहन, यवहार,
उनक वाभािवकता, सामािजक, आिथक
थित आिद िबंदु, हदराबाद क पृ?भूिम
इसे बेहद उदा उपयास बनाती ह। उपयास
क कथा बत ही रोचक व संवेदनशील ह।
000
"अमा" उपयास क िवषयवतु नवीन धरातल का अहसास कराती ह। उपयास का मुय
िकरदार अमा ह, जो िक कथा क सूधार को िदी क रलवे टशन पर िमलती ह। उपयास
का ताना-बाना अमा क इद-िगद बुना गया ह। इस कित म उपयास और संमरण का िमण
ह। इस कथा याा का मूल पा अमा ह। यह अमा नई िदी रलवे टशन पर रोती ई कथा
क सूधार को िमलती ह और वह उस रोती ई अमा को अपनी अमा बनाकर अपने घर ले
आता ह। यहाँ से यह कथा अमा क उकष को तुत करते ए आगे बढ़ती ह। जीवन म
अछाइयाँ िकस तरह से अछा फल देता ह इस बात को कथा क ारभ म ही तुत िकया गया
ह िक अमा क दुख को देखते ए कथा का सूधार अपनी रल क िटकट को र करवा लेता
ह और अमा क साथ लाइट क िटकट बुक कर लेता ह। जब वह लाइट से अपने घर
प चता ह तो उसे पता चलता ह िक िजस न से वह आने वाला था उस न का एसीडट हो
गया ह और उस हादसे म कई लोग मर गए ह। यहाँ पर लेखक यह संदेश देना चाहता ह िक जब
आप जीवन म कछ अछा करते ह तो उसक ितफल क प म आपक जीवन म भी कछ
अछा ही होता ह।
अमा का पा ज़मीन से उठकर अपने जीवन क शीष पर प चता ह। इस याा म अमा क
जीवन क सार संघष इस पुतक क भीतर िवमान ह और संघष क भीतर से जीवन कसे
सकारामक भाव से सँवरकर आगे बढ़ता ह, इसक बड़ी रोचक और मािमक गाथा इस पुतक
म कही गई ह। पूरी कथा लैशबैक म कही गई ह। अमा क देहावसान क ख़बर से उपयास
का ारभ होता ह और िफर िकसी िफम क तरह अमा क जीवन क याा का वणन लेखक
क ारा िकया जाता ह। अमा क य व का िचण भावशाली ह। लेखक िलखते ह िक,
अमा का चौड़ा चमकला माथा, उनक चेहर का तेज़ और अयंत गरमामय य व उनक
दय को भािवत करता ह और वे उनसे टटी-फटी िहदी म बात कर लेते ह। यह पर पता
चलता ह िक अमा क मूल भाषा तेलुगु ह और कछ-कछ िहदी म वह बात कर लेती ह। अमा
से बात करने पर लेखक को यह समझ म आता ह िक उह उनक जेठ जेठानी ने घर से बाहर
िनकाल िदया ह। पित क मृयु 2 वष पूव हो चुक ह और सार रते पित क मृयु क साथ बदल
गए ह। उह एक फालतू सामान क तरह घर से बाहर फक िदया गया ह। इस बात को सुनकर ही
लेखक उह अपने घर पर ले आते ह और वहाँ पर उसक पनी जानक भी अपने पूर दय से
अमा का वागत करती ह, उह पहले िदन से ही अपने परवार का सदय बना लेती ह। अमा
भी परवार क इस आमीयता को दय से वीकार करती ह। परवार क सार सुख-दुख उसक
अपने सुख-दुख हो जाते ह और वह िजमेदारी क साथ न िसफ परवार को सँभालती ह, अिपतु
समाज क िलए कछ करने का उसका हौसला भी यह पर सामने आता ह। अपनी इस समाज
सेवा का ारभ अमा एक वयं सहायता समूह बनाकर ारभ करती ह। अमा का दयालु
वभाव उसे अपने काय म सफलता दान करता ह। िजस मटी म वह रहती ह वहाँ क भी सार
लोग उनक आकिषत करने वाले वभाव से बड़ी सहजता क साथ उनसे जुड़ जाते ह और वह
सबक सुख-दुख क साथी हो जाती ह। अमा छोट ब क माता-िपता को काउसिलंग करती ह
और ब क पूण िवकास क िलए उनका मागदशन करती ह। कथा का कनवास बत बड़ा ह।
कथा क वाह म ही लेखक का बा अिमत जम लेता ह। जब वह 3 साल से अिधक हो जाता
ह तो िफर एक और लड़क का जम होता ह और जब वह बा थोड़ा बड़ा होता ह तो एक
लड़क का जम होता ह। यह पारवारक िवकास भी कथा को जोड़ रखता ह। अमा क
सामािजक याा जो वयं सहायता समूह से ारभ ई वह बाद म कई सार समूह तक िवतारत
होती ह और अमा क इस लोकियता से भािवत होकर बक क अिधकारी भी उनका समान
करते ह। संथाएँ समान करती ह तथा हर बात म उसका मागदशन िलया जाता ह। अमा
सोसायटी क लोग से बात कर घर म काम करने वाली बाइय क पगार हर साल बढ़वाने का
काम भी करती ह। वयं सहायता समूह क लोग को वह िशा का महव समझाती ह और
पुतक समीा
(उपयास)
अमा
समीक : सतीश राठी
लेखक : दीपक िगरकर
काशक : यू वड प लकशन
सतीश राठी
आर 451, महाल?मी नगर,
इदौर 452010, म
मोबाइल- 94250 67204

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 202533 32 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2025
मंगलू क नज़र क सामने एक सुंदर य
रचता ह, मेले क समा उपरांत लोग क
चले जाने क बाद भी वैसे ही टगा रहता ह िजसे
एक पगलेट ने टाँग िदया था। मंगलू क आँख
म उसक ?बसूरती बची रह जाती ह। यह
दुिनया भी एक मेले क तरह ह जहाँ कछ
तीकामक चीज क बहाने उसक ?बसूरती
को हम देख पाते ह। जैसे िक ी पुष क
बीच ेम। कहानी अपनी भाषा और बुनावट
क साथ अपनी थानीयता, मौिलकता और
भौगोिलक परवेश को िजस तरह साथ लेकर
चलती ह वह अछा लगता ह।
संह क शीषक कहानी चहट चंपा म भी
बतर का वही लोक जीवन समाया आ
िदखता ह। इस कहानी म चंपा और असतू क
बीच जम लेते ेम क महक ह। सूदखोर
साकर क कमीनगी ह। एक तरफ एक
पुिलस दरोगा क भूखे भेिड़ए जैसे आचरण से
डरी सहमी चंपा ह, तो उसक चीख पुकार
सुन कर असतू का दरोगा पर टाँगी से वार
करने जैसा य भी इस कहानी म ह। असतू
क गाँव छोड़ कर शहर जाने और िफर से लौट
आने का संग कहानी क क म ह। गाँव से
जुड़ रहने का आह यहाँ वाभािवक तौर पर
घटना क मायम से िनकलकर आता ह।
यह आह वाभािवक तौर पर अपनी जड़ से
और अपनी अ मता से जुड़ रहने का भाव
उप करता ह। िवकिसत होते समाज म जहाँ
ट ोलॉजी कहाँ से कहाँ प च चुक ह, वहाँ
आज भी एक वग ऐसा ह जो बत पीछ रह
गया ह। उसक सयता,उसक संकित आज
भी उसी प म मौजूद ह। उसम कोई बत
बदलाव नह ह। उिमला आचाय क
कहािनयाँ इसी वग का ितिनिधव करती
पाठक से संवाद करती ह।
उनक यह शीषक कहानी ेम, शोषण,
ितशोध और लोक जीवन क छोट छोट
संग क मायम से आकार लेती ई चंपा
और असतू क बीच ेम क सघनता क साथ
पूणता को ा करती ह। कहानी म देशज
भाषा क शद, बतर क लोक संकित और
वहाँ क परपरा (कांडाबारा इयािद) का
जीवंत िचण ह जो अछा लगता ह।
"छाड़ प" शीषक म देशज शद क
गूँज अिधक सुनाई पड़ती ह। मन म एक
थानीयता बोध का भाव उप होने लगता
ह। छाड़ प का मूल अथ तलाकनामा ह। यह
कहानी एक सीधी सरल परय ी क
कथा ह िजसे ठीक से यह भी पता नह िक
तलाक आिख़र होता या ह। ी अपने जीवन
म बने रत को लेकर सदा ेमकांी होती ह,
पर अगर उसक नाम छाड़ प िलख िदया
जाए तो...? उसे अपनी कोख से जमी छः
माह क बी से अलग कर िदया जाए तो ..?
तब भी वह अपना जीवन जीती ह। वह
अपने से अलग ए पित क िलए वट सािवी
त रखती ह, सास क मृयु पर ा पर
शािमल होने अपने ससुराल जाती ह।
परपराएँ बत िवकट होती ह, उह िवकट
परपरा से िघरी एक ी क भीतर क ं
को यह कहानी मािमक तरीक़ से अिभय
करती ह। छाड़ प िलख िदए जाने क वष
उपरांत अधेड़ावथा म जवान बेटी सुकया से
भट क यह कथा अपने पीछ पाठक क िलए
कई सवाल छोड़ जाती ह। कहानी ारा छोड़
गए सवाल ही दरअसल पाठक से संवाद का
एक मायम बनता ह। उिमला आचाय अपनी
कहािनय म पाठक क िलए बत सुलभ तौर
पर इस मायम को उपलध कराती ह।
"बस टॉप पर गाड़ी जैसे ही ठहरी लोग
मय सामान क उसम समा गए। बस म समान
अिधक ह या याी ! कहना मु कल था।।
उस पर गम ...ऊफ! एक क कधे से दूसर क
जेब म टप टप..! पसीने क गंध से कछ लोग
उबकाई लेने लगे थे।" (कहानी : पहली)
इन पं य को पढ़कर ही कहा जा
सकता ह िक कहानी आम लोक जीवन क
यथा कथा क संवाहक बन सकती ह। पहली
कहानी क इन पं य म लोक जीवन क
संघष क मूत तवीर साफ़ तौर पर उभरकर
आती ह। बस लोकल यािय क िलए एक
घर क तरह होता ह िजसक भीतर कई
कहािनयाँ जमती ह। एक तरफ अपनी टोकरी
म सज़ी और ककड़ा (मुगा) भरकर िनय
हाट बाज़ार को जाती सलोनी ह और दूसरी
तरफ मुछड़ बस ाइवर। उनक बीच गाली
गलौज क भाषा म िनय क जो नक-झक ह
वही इस कहानी को जीवंत बनाती ह।
लोकजीवन क जो भाषा ह, उस भाषा म कई
बार गाली गलौज क भीतर भी ेम छ?पा होता
ह। अगर उसम ेम न छ?पा होता तो ाइवर क
एक िदन बाहर चले जाने से सलोनी बस क
भीतर अकलापन महसूस न करती। िफर
सलोनी क कछ िदन बस म ना आने से वह
ाइवर याकल न होता। दोन ही अपनी
दुिनया म मत थे, अपने अपने परवार म
श! पर बस क भीतर एक क अनुप थित
दूसर क िलए इतनी याकलता य उप
करती थी? या यह याकलता िकसी ेम का
अमूत प ह " ेम क इस पहली को इन
न क मायम से ही बूझने का आह यहाँ
िदखाई पड़ता ह।
उिमला आचाय अपनी कहािनय म िजस
िकम का देशज वातावरण और परवेश
िनिमत करती ह, वही उनक कहािनय क
िवशेषता ह और उनका सामय भी। उनक
पा वाभािवक तौर पर सामने आकर िजस
तरह संवाद करते ह उससे एक जीवंत य
िनिमत होने लगता ह। सलोनी और ाइवर क
बीच ए संवाद म भी उस य को हम देख
पाते ह। उनक संवाद बत छोट-छोट टकड़
म अिभय होकर अपना भाव छोड़ते ह।
लोक जीवन म जाित और वण यवथा
आज भी मौजूद ह। संह क कहानी
"शुिकरण" एक ऐसी कहानी ह जहाँ इन
मसल से बाहर िनकलने का एक प संदेश
पाठक को िमलता ह। ये तमाम कहािनयाँ
अपने समय म जरी हतेप करती
नज़र आती ह। संह क अय कहािनयाँ
सरगतारा, बाँधो न बाजूबंद, लैला, तीसरी
काउिसिलंग इयािद भी अपने तेवर अपनी
बुनावट और देशज बोली बानी म भरपूर
आवाद देती ह।
बतर क लोक जीवन से जुड़ी कहािनय
म वेश करने और उह जानने समझने क
िलए उिमला आचाय क इस संह क सभी
कहािनय को एक बार पढ़ा जाना बत ज़री
ह।
000
उिमला आचाय वर कथा लेिखका ह। उनक रचनामक और सामािजक गितिविधय
का भूगोल बतर े से इतना अतरसब धत ह िक समूचा बतर ? उनक िलए एक घर क
तरह ह। इस ? क बोली-बानी, रहन-सहन, सयता और संकित से जुड़ होने का एक
यापक अनुभव संसार उनक पास ह। उसी संसार को हम उनक कहािनय म िवतार पाता आ
देखते ह।
उनक इस नए कहानी संह "चहट चंपा" म यारह कहािनयाँ संिहत ह। इन कहािनय को
पढ़ते ए बतर क आिदवासी बा य लोकजीवन क सयता,संकित एवं उनक मूय से
गुज़रने का एक अवसर पाठक को िमलता ह। मेर जैसे पाठक क िलए यह अवसर,बतर क
उन सभी जगह तक,वहाँ क लोक जीवन से जुड़ उन सभी पा तक प चने का एक मायम ह
जहाँ तक सशरीर प चना मेर िलए शायद कभी संभव नह। यह मेर िलए एक ऐसा अवसर भी ह
िक िजसक ज़रए कथा लेिखका क नज़र से उस दुिनया को मूत प म देखना सभव आ ह।
उिमला आचाय क कथा याा को थानीयता क बुिनयादी संदभ म देख तो लगता ह िक
उनक कहािनय म शािमल कथानक क भीतर बीहड़ जंगल और गाँव-गुरबे क लोक जीवन म
रचे बसे जीवन यािय को एक बड़ा पेस िमला आ ह। ये याी आधुिनक सयता क दौड़ म
बत पीछ छ?ट गए जान पड़ते ह। इन जीवन यािय क जरये िजन जनपदीय परवेश क
कहािनय को वे िलखती ह, उनक कय जनपद से िनकलकर आिख़र म लोबल संदभ को
िवमश क दायर म खच लाते ह।
अब सवाल यह ह िक बीहड़ जंगल, गाँव गुरब क लोक जीवन से शु ई उनक
कहािनयाँ वतमान समय क भीतर िकस तरह और िकतना हतेप कर पा रही ह?
इस संह क एक कहानी ह "मेले का चमा"। बतर क बीहड़ े म अनेक तरह क मेले
लगते ह। इस तरह क मेले वष म एक बार लगकर जब ख़म होते ह तो उसी दरिमयान अनेक
कहािनय का जम भी होने लगता ह। इस मेले म नवयुवक नवयुवितय क अहड़ता और
उनक आपस म बातचीत, मेले म उनक घुमकड़ी, दुकान क सजावट और बितयाते
दुकानदार एवं ाहक का अपना एक अलहदापन िदखाई पड़ता ह। इस कहानी म धान सूखाने
और बकरी चराने वाली ामीण ी सुकली ह िजसका याह माधव क साथ तय होकर भी
िवदाई इसिलए नह हो पा रही यिक माधव ने िबयाह क नाम पर 5000 पये तो दे िदए ह पर
अब तक समय पर भोज भात नह िदया ह। इस बीच सुकली जीप चलाने वाले कमलू क ओर
आकिषत होने लगी ह। कमलू भी सुकली क ेम म ह और उसक ओर आकिषत होने लगा ह।
सुकली न ठीक से याहता बन पा रही ना ठीक से ेिमका। उसका जीवन एक तरह से अधर म
फसा आ लगता ह। कमलू क भी इतनी हिसयत नह िक पाँच हज़ार पये माधव को हजाने म
दे दे और सुकली को मु करा ले। अभाव, ेम और तमाम पारपरक रवाज,िढ़य म उलझी
यह कहानी एक ऐसे मोड़ पर जाकर ख़म होती ह िक जीप क िकत भरने क िलए रखी गई
रकम से मंगलू हजाने क रकम अदा करक सुकली को मु करता ह। मेले म टगा चमा जो
पुतक समीा
(कहानी संह)
चहट चंपा
समीक : रमेश शमा
लेखक : उिमला आचाय
काशक : इक ू प लकशन
नवरगपुर ओिड़सा
रमेश शमा
92, ीक ज, बोईरदादर, रायगढ़
(छीसगढ़)
मोबाइल- 7722975017
ईमेल- [email protected]

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 202533 32 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2025
मंगलू क नज़र क सामने एक सुंदर य
रचता ह, मेले क समा उपरांत लोग क
चले जाने क बाद भी वैसे ही टगा रहता ह िजसे
एक पगलेट ने टाँग िदया था। मंगलू क आँख
म उसक ?बसूरती बची रह जाती ह। यह
दुिनया भी एक मेले क तरह ह जहाँ कछ
तीकामक चीज क बहाने उसक ?बसूरती
को हम देख पाते ह। जैसे िक ी पुष क
बीच ेम। कहानी अपनी भाषा और बुनावट
क साथ अपनी थानीयता, मौिलकता और
भौगोिलक परवेश को िजस तरह साथ लेकर
चलती ह वह अछा लगता ह।
संह क शीषक कहानी चहट चंपा म भी
बतर का वही लोक जीवन समाया आ
िदखता ह। इस कहानी म चंपा और असतू क
बीच जम लेते ेम क महक ह। सूदखोर
साकर क कमीनगी ह। एक तरफ एक
पुिलस दरोगा क भूखे भेिड़ए जैसे आचरण से
डरी सहमी चंपा ह, तो उसक चीख पुकार
सुन कर असतू का दरोगा पर टाँगी से वार
करने जैसा य भी इस कहानी म ह। असतू
क गाँव छोड़ कर शहर जाने और िफर से लौट
आने का संग कहानी क क म ह। गाँव से
जुड़ रहने का आह यहाँ वाभािवक तौर पर
घटना क मायम से िनकलकर आता ह।
यह आह वाभािवक तौर पर अपनी जड़ से
और अपनी अ मता से जुड़ रहने का भाव
उप करता ह। िवकिसत होते समाज म जहाँ
ट ोलॉजी कहाँ से कहाँ प च चुक ह, वहाँ
आज भी एक वग ऐसा ह जो बत पीछ रह
गया ह। उसक सयता,उसक संकित आज
भी उसी प म मौजूद ह। उसम कोई बत
बदलाव नह ह। उिमला आचाय क
कहािनयाँ इसी वग का ितिनिधव करती
पाठक से संवाद करती ह।
उनक यह शीषक कहानी ेम, शोषण,
ितशोध और लोक जीवन क छोट छोट
संग क मायम से आकार लेती ई चंपा
और असतू क बीच ेम क सघनता क साथ
पूणता को ा करती ह। कहानी म देशज
भाषा क शद, बतर क लोक संकित और
वहाँ क परपरा (कांडाबारा इयािद) का
जीवंत िचण ह जो अछा लगता ह।
"छाड़ प" शीषक म देशज शद क
गूँज अिधक सुनाई पड़ती ह। मन म एक
थानीयता बोध का भाव उप होने लगता
ह। छाड़ प का मूल अथ तलाकनामा ह। यह
कहानी एक सीधी सरल परय ी क
कथा ह िजसे ठीक से यह भी पता नह िक
तलाक आिख़र होता या ह। ी अपने जीवन
म बने रत को लेकर सदा ेमकांी होती ह,
पर अगर उसक नाम छाड़ प िलख िदया
जाए तो...? उसे अपनी कोख से जमी छः
माह क बी से अलग कर िदया जाए तो ..?
तब भी वह अपना जीवन जीती ह। वह
अपने से अलग ए पित क िलए वट सािवी
त रखती ह, सास क मृयु पर ा पर
शािमल होने अपने ससुराल जाती ह।
परपराएँ बत िवकट होती ह, उह िवकट
परपरा से िघरी एक ी क भीतर क ं
को यह कहानी मािमक तरीक़ से अिभय
करती ह। छाड़ प िलख िदए जाने क वष
उपरांत अधेड़ावथा म जवान बेटी सुकया से
भट क यह कथा अपने पीछ पाठक क िलए
कई सवाल छोड़ जाती ह। कहानी ारा छोड़
गए सवाल ही दरअसल पाठक से संवाद का
एक मायम बनता ह। उिमला आचाय अपनी
कहािनय म पाठक क िलए बत सुलभ तौर
पर इस मायम को उपलध कराती ह।
"बस टॉप पर गाड़ी जैसे ही ठहरी लोग
मय सामान क उसम समा गए। बस म समान
अिधक ह या याी ! कहना मु कल था।।
उस पर गम ...ऊफ! एक क कधे से दूसर क
जेब म टप टप..! पसीने क गंध से कछ लोग
उबकाई लेने लगे थे।" (कहानी : पहली)
इन पं य को पढ़कर ही कहा जा
सकता ह िक कहानी आम लोक जीवन क
यथा कथा क संवाहक बन सकती ह। पहली
कहानी क इन पं य म लोक जीवन क
संघष क मूत तवीर साफ़ तौर पर उभरकर
आती ह। बस लोकल यािय क िलए एक
घर क तरह होता ह िजसक भीतर कई
कहािनयाँ जमती ह। एक तरफ अपनी टोकरी
म सज़ी और ककड़ा (मुगा) भरकर िनय
हाट बाज़ार को जाती सलोनी ह और दूसरी
तरफ मुछड़ बस ाइवर। उनक बीच गाली
गलौज क भाषा म िनय क जो नक-झक ह
वही इस कहानी को जीवंत बनाती ह।
लोकजीवन क जो भाषा ह, उस भाषा म कई
बार गाली गलौज क भीतर भी ेम छ?पा होता
ह। अगर उसम ेम न छ?पा होता तो ाइवर क
एक िदन बाहर चले जाने से सलोनी बस क
भीतर अकलापन महसूस न करती। िफर
सलोनी क कछ िदन बस म ना आने से वह
ाइवर याकल न होता। दोन ही अपनी
दुिनया म मत थे, अपने अपने परवार म
श! पर बस क भीतर एक क अनुप थित
दूसर क िलए इतनी याकलता य उप
करती थी? या यह याकलता िकसी ेम का
अमूत प ह " ेम क इस पहली को इन
न क मायम से ही बूझने का आह यहाँ
िदखाई पड़ता ह।
उिमला आचाय अपनी कहािनय म िजस
िकम का देशज वातावरण और परवेश
िनिमत करती ह, वही उनक कहािनय क
िवशेषता ह और उनका सामय भी। उनक
पा वाभािवक तौर पर सामने आकर िजस
तरह संवाद करते ह उससे एक जीवंत य
िनिमत होने लगता ह। सलोनी और ाइवर क
बीच ए संवाद म भी उस य को हम देख
पाते ह। उनक संवाद बत छोट-छोट टकड़
म अिभय होकर अपना भाव छोड़ते ह।
लोक जीवन म जाित और वण यवथा
आज भी मौजूद ह। संह क कहानी
"शुिकरण" एक ऐसी कहानी ह जहाँ इन
मसल से बाहर िनकलने का एक प संदेश
पाठक को िमलता ह। ये तमाम कहािनयाँ
अपने समय म जरी हतेप करती
नज़र आती ह। संह क अय कहािनयाँ
सरगतारा, बाँधो न बाजूबंद, लैला, तीसरी
काउिसिलंग इयािद भी अपने तेवर अपनी
बुनावट और देशज बोली बानी म भरपूर
आवाद देती ह।
बतर क लोक जीवन से जुड़ी कहािनय
म वेश करने और उह जानने समझने क
िलए उिमला आचाय क इस संह क सभी
कहािनय को एक बार पढ़ा जाना बत ज़री
ह।
000
उिमला आचाय वर कथा लेिखका ह। उनक रचनामक और सामािजक गितिविधय
का भूगोल बतर े से इतना अतरसब धत ह िक समूचा बतर ? उनक िलए एक घर क
तरह ह। इस ? क बोली-बानी, रहन-सहन, सयता और संकित से जुड़ होने का एक
यापक अनुभव संसार उनक पास ह। उसी संसार को हम उनक कहािनय म िवतार पाता आ
देखते ह।
उनक इस नए कहानी संह "चहट चंपा" म यारह कहािनयाँ संिहत ह। इन कहािनय को
पढ़ते ए बतर क आिदवासी बा य लोकजीवन क सयता,संकित एवं उनक मूय से
गुज़रने का एक अवसर पाठक को िमलता ह। मेर जैसे पाठक क िलए यह अवसर,बतर क
उन सभी जगह तक,वहाँ क लोक जीवन से जुड़ उन सभी पा तक प चने का एक मायम ह
जहाँ तक सशरीर प चना मेर िलए शायद कभी संभव नह। यह मेर िलए एक ऐसा अवसर भी ह
िक िजसक ज़रए कथा लेिखका क नज़र से उस दुिनया को मूत प म देखना सभव आ ह।
उिमला आचाय क कथा याा को थानीयता क बुिनयादी संदभ म देख तो लगता ह िक
उनक कहािनय म शािमल कथानक क भीतर बीहड़ जंगल और गाँव-गुरबे क लोक जीवन म
रचे बसे जीवन यािय को एक बड़ा पेस िमला आ ह। ये याी आधुिनक सयता क दौड़ म
बत पीछ छ?ट गए जान पड़ते ह। इन जीवन यािय क जरये िजन जनपदीय परवेश क
कहािनय को वे िलखती ह, उनक कय जनपद से िनकलकर आिख़र म लोबल संदभ को
िवमश क दायर म खच लाते ह।
अब सवाल यह ह िक बीहड़ जंगल, गाँव गुरब क लोक जीवन से शु ई उनक
कहािनयाँ वतमान समय क भीतर िकस तरह और िकतना हतेप कर पा रही ह?
इस संह क एक कहानी ह "मेले का चमा"। बतर क बीहड़ े म अनेक तरह क मेले
लगते ह। इस तरह क मेले वष म एक बार लगकर जब ख़म होते ह तो उसी दरिमयान अनेक
कहािनय का जम भी होने लगता ह। इस मेले म नवयुवक नवयुवितय क अहड़ता और
उनक आपस म बातचीत, मेले म उनक घुमकड़ी, दुकान क सजावट और बितयाते
दुकानदार एवं ाहक का अपना एक अलहदापन िदखाई पड़ता ह। इस कहानी म धान सूखाने
और बकरी चराने वाली ामीण ी सुकली ह िजसका याह माधव क साथ तय होकर भी
िवदाई इसिलए नह हो पा रही यिक माधव ने िबयाह क नाम पर 5000 पये तो दे िदए ह पर
अब तक समय पर भोज भात नह िदया ह। इस बीच सुकली जीप चलाने वाले कमलू क ओर
आकिषत होने लगी ह। कमलू भी सुकली क ेम म ह और उसक ओर आकिषत होने लगा ह।
सुकली न ठीक से याहता बन पा रही ना ठीक से ेिमका। उसका जीवन एक तरह से अधर म
फसा आ लगता ह। कमलू क भी इतनी हिसयत नह िक पाँच हज़ार पये माधव को हजाने म
दे दे और सुकली को मु करा ले। अभाव, ेम और तमाम पारपरक रवाज,िढ़य म उलझी
यह कहानी एक ऐसे मोड़ पर जाकर ख़म होती ह िक जीप क िकत भरने क िलए रखी गई
रकम से मंगलू हजाने क रकम अदा करक सुकली को मु करता ह। मेले म टगा चमा जो
पुतक समीा
(कहानी संह)
चहट चंपा
समीक : रमेश शमा
लेखक : उिमला आचाय
काशक : इक ू प लकशन
नवरगपुर ओिड़सा
रमेश शमा
92, ीक ज, बोईरदादर, रायगढ़
(छीसगढ़)
मोबाइल- 7722975017
ईमेल- [email protected]

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 202535 34 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2025
याय नह करगा। वे थमतः और अ तमत
एक पराधीन देश क ऐसे लेखक ह िजनक
अपने यायवंिचत जनबंधु क साथ गहरी
सहानुभूित ह। उनक यह सहज मानवीयता ही
उह गाँधी क भाव म लाई और समाजवाद
क ओर ले गई।'' नवल िकशोर क इन कथन
क परेय म डॉ. यास ने जो कहा ह, वह
ेमचंद को समतः समझने जानने वाल क
भी मन क बात ह- ''हर मनुयता िवरोधी
िवचार अिनवायतः ेमचंद िवरोधी भी ह।
सािहय को मनुय क से देखने क
पपाती ेमचंद को मानववाद क भावभूिम
से देखते नवल िकशोर िहदी सािहय क
मानव ेमपंथी परपरा को मज़बूत बनाते ह।
िवदुषी व िनभक समीक रणु यास ने
ोफसर नवल िकशोर क भाषा पर अपने
िवचार य करने क साथ ही उस नामचीन
समीक क भाषा पर तंज भी कसा ह, िजनक
'औरा' क वटवृ तले बड़-बड़ आलोचक
िचमाई (चुपी) साध जाते ह। वैसे िदनेश
कमार क सधी और सुिवचारत समीा s??
कवल हसवृि को ही पहचानती, जानती और
मानती ह। िफर कोई िकतना भी 'बड़ा' या
महा या ा तकारी य न हो, उनक नीर-
ीर समीा दूध का दूध और पानी का
पानी कर देती ह। िदनेश कमार िलखते ह- राम
िवलास शमा क ेमचंद संबंधी मूयांकन म
कई दरार ह, जो सहज ही िदख जाती ह। ये
दरार ेमचंद को गांधीवादी जीवनमूय से
पूरी तरह अलगाकर मासवादी बनाने क
कारण पैदा ई ह... वो इस बात को लेकर
बत सचेत ह िक ेमचद और उनक युग पर
गाँधी का भाव दूर-दूर तक न िदखे। रगभूिम
का िव?ेषण करते ए वे अंत म कहते ह-
ेमचंद क पैनी िनगाह देख रही थी िक
िहदुतान क जनता लड़ रही ह, िबना िकसी
पाट क मदद क िबना िकसी राजनीितक नेता
क सलाह का फ़ायदा उठाए''। िदनेश कमार
िलखते ह िक िहदुतान क जनता क लड़ाई
म न तो िकसी कांेस जैसी राजनीितक पाट
क कोई भूिमका ह और न ही गांधी जैसे िकसी
नेता क। बस ेरणा ह तो स क ा त क।
ऐसा अनैितहािसक िव?ेषण राम िवलास जी
क ही ितभा से संभव ह। ेमचंद क
रचना म कह गांधीवादी िसात क
िवरोध म कोई बात िमलती ह तो उसे वे ज़र
रखांिकत करते ह।... हम देखते ह िक तय
अनुकल न होने क बावजूद अपनी खर
बौिकता और िव?ेषण मता क बल पर
रामिवलास शमा ने ेमचंद को मासवादी
गितशीलता क खाँचे म िफट करने का
अथक उम िकया ह...।'' िदनेश कमार क
सुद समीा परत दर परत बआयामी
परेय म ेमचंद क मूयांकनकता
गितवादी िवभूित शमा जी क सायास चूक
को अनावृत करती ह। आय होता ह िक
िहदी देश का बखडीय िवेषणकता
य और िकन पर थितय म ऐसी सायास
चूक करने को बाय/िववश आ... इस
सबक इतर यह भी अयंत आ तकर तय
ह िक िदनेश कमार जैसे 'समीा िदनेश' क
खर काश म, खर ऊजा म ऐसी 'सायास
चूक' न कवल अँधेर से िनकलकर
सावजिनक भसना का भाजन बनग, वरन
ेमचंद जैसे िदगज क मूयांकन म ई
अँधेरगद/धाँधली को भी न? करग।
ो. सगीर अफराहीम व डॉ. अहमद रज़ा
ने ेमचंद और उदू अदब पर िवतार क साथ
काश डाला ह। ेमचंद का वैचारक
य व संपूणता क साथ लेखकय क
आलेख म उप थत ह- ''ेमचंद जैसे
गरमामय य व ने देश क ?लाम जनता
को आज़ाद कराने, िशा क महव को
उजागर करने, उदू िहदी को क़रीब लाने, भाई
चार को बढ़ावा देने, सामंती यवथा और
उसम पलने वाली मानिसकता को बेनकाब
करने शोषण करने वाल को बेनकाब करने,
ाचीन अचिलत रीित-रवाज को िमटाने
और मिहला को उनका सामािजक दजा
िदलाने म अपना पूरा जीवन अपण कर िदया।
इसिलए उनक वीरतापूण य व, उनक
यापक भावना और धरती क ित अट?ट
लगाव को जानने ब क उनक युग को पूरी
तरह से समझने क िलए उनक समत
कथासािहय और कथेतर सािहय का
यापक संदभ म एक साथ अययन करना
आवयक ह। ?शी क बात यह ह िक इस
यापक संदभ म ेमचंद क लेखन पर काय हो
रहा ह।'' िवशेषांक म डॉ. दीप जैन का
आलेख उपल ध क भाँित तीत होता ह।
मधुर नागवान ने डॉ. दीप जैन क
अिवमरणीय व कालजयी शोध पर संि
आलेख म मानो गागर म सागर क अनुभूित
कराई ह। सयसाची भाचाय ने ेमचंद क
िफमी दुिनया क अनुभव क कट? साई से
न कवल परिचत कराया ह, वर यह भी
प िकया ह िक िकसिलए वे िफमी दुिनया
म आए, और य कर इस ितलमी दुिनया से
उनका मोहभंग आ। जानक साद शमा ने
पूण ितबता क साथ 'ेमचंद तकद़ उदू
म' आलेख म उदू म ेमचंद लेखन क
पड़ताल करने वाल क हवाले से जो कहा,
उसका आशय यह ह िक िहदी व उदू म
ेमचंद का सयक मूयांकन तथा
पुनमू यांकन होना बाक ह। हरीश िवेदी ने
बत िवतार क साथ वै क पर य म
थम वै क भाषा (अंेजी) म ेमचंद
सािहय क अनुवाद काय पर जो काश
डाला ह वह ोितत करता ह िक िकन-िकन
वजह से ेमचंद कथासािहय का अंेजी
अनुवाद वह मुकाम पाने म बत सफल नह
हो पा रहा ह जैसा िक िहदी या अय भारतीय
भाषा म ह। हालाँिक अकादिमक काय भी हो
रह ह। यू.जी.सी. ारा िवपोिषत परयोजना
क अंतगत जािमया िमिलया इलािमया
िविवालय िदी क अंेजी
िवभागाय ोफसर एम. असदु?ीन ने
ेमचंद क 301 कहािनय का अंेजी
अनुवाद अपनी टीम क साथ िकया था।
वय हरीश िवेदी जी ने बपृीय
तावना िलखी थी। यह वृह काय चार
खड म कािशत ह। गरमा ीवातव,
िनशांत, शिशभूषण िम, डॉ. शुभम मगा, ?
नारायण पाडय, योितष जोशी, कवल
भारती, गरमा ीवातव, शिशभूषण िम,
अण होता, गोपाल धान, मंगलमूित,
िवकास वमा, अण होता, भृित िव जन
क आलेख िवचारणीय ह।
000
लमही जुलाई-िदसबर 2024 क िवशेषांक का संपादकय पढ़ते ए याद क परत से
उचक कर झाँकने लगा वह िदन! 30 जुलाई 2024 का! ेमचंद जयंती क पूवसंया का! यह
पूवसंया अपने िहदी िवभाग क सदय क साथ अपने डी.ए-वी. महािवालय क ''नागे
वप माट लै?र िथएटर'' म समारोहपूवक मनाई, हम सबने! उन शोधािथय व परा?ातक
छा-छाा को माण प, मृित िच? िदये िजहने 'ेमचद सािहय' पर लेखन
ितयोिगता म उक लेखन मता का दशन करक थम, ितीय, तृतीय व चतुथ थान
ा िकया था। थानीय पी.पी.एन. कॉलेज क पूव िवभागाय ो. लमीकात पाडय का
बीज वतय आ था। उसी वतय का एक अंश था- सौ-सवा सौ वष बाद भी हम ेमचद,
ेमचद क समय और उनक रचना को याद कर रह ह, तो यह जान लेना चािहए िक
िवषमता क से आज भी उतनी ही ब क उनसे यादा िवषमताएँ और जिटलताएँ ह!
िजतनी ेमचद क समय म थ तब भी ेमचद ासंिगक थे और आज तो और भी अिधक ह,
अब तो ेमचद क रचना का मूयांकन नह वर ेमचद क मूयांकन का भी मूयांकन
करने वाला पर य उप थत ह!
कई बार एक रचनाकार बत अछा आलोचक या समीक हो सकता ह - पंत, साद,
िनराला, िदनकर रचनाकार भी थे और े आलोचक भी! िकतु बत बार अिते
रचनाकार भी े समालोचक हो, यह सभव नह! िजन िव भरनाथ शमा कौिशक ने
'सेवासदन' क समालोचना क ह, ये कानपुर क वही िव भनाथ शमा कौिशक ह िजह
ेमचंद को िहदी म लाने का ेय ?? ह, इह क कहने पर ेमचद िहदी म आए। कौिशक
जी क यह कहने पर िक आप िहदी म य नह िलखते? ेमचद ने उर िदया था िक मेरी िहदी
बत अछी नह थी, इस पर कौिशक जी ने कहा था आप कोिशश किजए आपक िहदी म
ठीक क गा... और इस तरह 1913 म कौिशक जी ने वसंपािदत पिका 'िहदी मनोरजन' म
ेमचद क कहानी 'पंचपरमेर' छापी थी। 'ताई' जैसी कालजई कथा क लेखक कौिशक जी
ने सेवासदन क जो समालोचना क, उससे उनका कथाकार प ही सामने आता ह, न िक एक
पारगत समालोचक का।
लमही क इस िवशेषांक को देखते ए यह भी बत साफ तौर पर गत होता ह िक
यतीत होते समय क साथ समीा कम म भी नए तय, नई बात, तकसंगत s?? क साथ आई
ह, न िक रचना या रचनाकार क उखाड़-पछाड़ क िलए! वैसे अपवाद तो होते ही ह! शायद ही
कोई समय हो जो अपवादहीन हो! उखाड़ पछाड़ अभी भी होती ह िकतु अयप!!
आलोचना क आलोक म ेमचद-इस िवशेषांक क ?बसूरती यही ह िक सभी वर,
किन लेखक ने गंभीर िचंतन क साथ ेमचंद क अब तक क मूयांकन पर अपनी
सुिचंितत व सुिवचारत समालोचना तुत क ह, एतदथ सभी को अनेकशः साधुवाद! संपादक
िवजय जी तो थमतः साधुवाद क पा ह ही! एक बार िफर सश समृ पुनमू यांकन
िवशेषांक क िलए उह हािदक बधाई! अनंत शुभकामनाएँ!
डॉ. रणु यास ने िजस तरह से अपने आलेख 'नवल िकशोर का ेमचंद िवमश' म सू?म
और गहरी से तय व तक का उखनन िकया ह, वह ?ाघनीय ह। उहने ो.
नवलिकशोर क उन थापना क उरण िदये ह, जो ेमचंद को मानववाद, समाजवाद व
गांधीवाद से गहराई से जोड़ते ह- ''यह तय ह िक ेमचद जैसे िमशनरी लेखक का उनक रचना
उेय को क म रखे िबना कोई भी पाठ अथवा कोई भी िवखडन उनक रचनाकार क ित
पुतक समीा
(पिका िवशेषांक)
लमही जुलाई-
िदसबर 2024
िवशेषांक
समीक : डॉ. दया दीित
संपादक : िवजय राय
डॉ. दया दीित
ोफसर एवं िवभागाय िहदी डी.ए-वी.
पी.जी. कॉलेज
कानपुर, उ..
मोबाइल- 9415537644

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 202535 34 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2025
याय नह करगा। वे थमतः और अ तमत
एक पराधीन देश क ऐसे लेखक ह िजनक
अपने यायवंिचत जनबंधु क साथ गहरी
सहानुभूित ह। उनक यह सहज मानवीयता ही
उह गाँधी क भाव म लाई और समाजवाद
क ओर ले गई।'' नवल िकशोर क इन कथन
क परेय म डॉ. यास ने जो कहा ह, वह
ेमचंद को समतः समझने जानने वाल क
भी मन क बात ह- ''हर मनुयता िवरोधी
िवचार अिनवायतः ेमचंद िवरोधी भी ह।
सािहय को मनुय क से देखने क
पपाती ेमचंद को मानववाद क भावभूिम
से देखते नवल िकशोर िहदी सािहय क
मानव ेमपंथी परपरा को मज़बूत बनाते ह।
िवदुषी व िनभक समीक रणु यास ने
ोफसर नवल िकशोर क भाषा पर अपने
िवचार य करने क साथ ही उस नामचीन
समीक क भाषा पर तंज भी कसा ह, िजनक
'औरा' क वटवृ तले बड़-बड़ आलोचक
िचमाई (चुपी) साध जाते ह। वैसे िदनेश
कमार क सधी और सुिवचारत समीा s??
कवल हसवृि को ही पहचानती, जानती और
मानती ह। िफर कोई िकतना भी 'बड़ा' या
महा या ा तकारी य न हो, उनक नीर-
ीर समीा दूध का दूध और पानी का
पानी कर देती ह। िदनेश कमार िलखते ह- राम
िवलास शमा क ेमचंद संबंधी मूयांकन म
कई दरार ह, जो सहज ही िदख जाती ह। ये
दरार ेमचंद को गांधीवादी जीवनमूय से
पूरी तरह अलगाकर मासवादी बनाने क
कारण पैदा ई ह... वो इस बात को लेकर
बत सचेत ह िक ेमचद और उनक युग पर
गाँधी का भाव दूर-दूर तक न िदखे। रगभूिम
का िव?ेषण करते ए वे अंत म कहते ह-
ेमचंद क पैनी िनगाह देख रही थी िक
िहदुतान क जनता लड़ रही ह, िबना िकसी
पाट क मदद क िबना िकसी राजनीितक नेता
क सलाह का फ़ायदा उठाए''। िदनेश कमार
िलखते ह िक िहदुतान क जनता क लड़ाई
म न तो िकसी कांेस जैसी राजनीितक पाट
क कोई भूिमका ह और न ही गांधी जैसे िकसी
नेता क। बस ेरणा ह तो स क ा त क।
ऐसा अनैितहािसक िव?ेषण राम िवलास जी
क ही ितभा से संभव ह। ेमचंद क
रचना म कह गांधीवादी िसात क
िवरोध म कोई बात िमलती ह तो उसे वे ज़र
रखांिकत करते ह।... हम देखते ह िक तय
अनुकल न होने क बावजूद अपनी खर
बौिकता और िव?ेषण मता क बल पर
रामिवलास शमा ने ेमचंद को मासवादी
गितशीलता क खाँचे म िफट करने का
अथक उम िकया ह...।'' िदनेश कमार क
सुद समीा परत दर परत बआयामी
परेय म ेमचंद क मूयांकनकता
गितवादी िवभूित शमा जी क सायास चूक
को अनावृत करती ह। आय होता ह िक
िहदी देश का बखडीय िवेषणकता
य और िकन पर थितय म ऐसी सायास
चूक करने को बाय/िववश आ... इस
सबक इतर यह भी अयंत आ तकर तय
ह िक िदनेश कमार जैसे 'समीा िदनेश' क
खर काश म, खर ऊजा म ऐसी 'सायास
चूक' न कवल अँधेर से िनकलकर
सावजिनक भसना का भाजन बनग, वरन
ेमचंद जैसे िदगज क मूयांकन म ई
अँधेरगद/धाँधली को भी न? करग।
ो. सगीर अफराहीम व डॉ. अहमद रज़ा
ने ेमचंद और उदू अदब पर िवतार क साथ
काश डाला ह। ेमचंद का वैचारक
य व संपूणता क साथ लेखकय क
आलेख म उप थत ह- ''ेमचंद जैसे
गरमामय य व ने देश क ?लाम जनता
को आज़ाद कराने, िशा क महव को
उजागर करने, उदू िहदी को क़रीब लाने, भाई
चार को बढ़ावा देने, सामंती यवथा और
उसम पलने वाली मानिसकता को बेनकाब
करने शोषण करने वाल को बेनकाब करने,
ाचीन अचिलत रीित-रवाज को िमटाने
और मिहला को उनका सामािजक दजा
िदलाने म अपना पूरा जीवन अपण कर िदया।
इसिलए उनक वीरतापूण य व, उनक
यापक भावना और धरती क ित अट?ट
लगाव को जानने ब क उनक युग को पूरी
तरह से समझने क िलए उनक समत
कथासािहय और कथेतर सािहय का
यापक संदभ म एक साथ अययन करना
आवयक ह। ?शी क बात यह ह िक इस
यापक संदभ म ेमचंद क लेखन पर काय हो
रहा ह।'' िवशेषांक म डॉ. दीप जैन का
आलेख उपल ध क भाँित तीत होता ह।
मधुर नागवान ने डॉ. दीप जैन क
अिवमरणीय व कालजयी शोध पर संि
आलेख म मानो गागर म सागर क अनुभूित
कराई ह। सयसाची भाचाय ने ेमचंद क
िफमी दुिनया क अनुभव क कट? साई से
न कवल परिचत कराया ह, वर यह भी
प िकया ह िक िकसिलए वे िफमी दुिनया
म आए, और य कर इस ितलमी दुिनया से
उनका मोहभंग आ। जानक साद शमा ने
पूण ितबता क साथ 'ेमचंद तकद़ उदू
म' आलेख म उदू म ेमचंद लेखन क
पड़ताल करने वाल क हवाले से जो कहा,
उसका आशय यह ह िक िहदी व उदू म
ेमचंद का सयक मूयांकन तथा
पुनमू यांकन होना बाक ह। हरीश िवेदी ने
बत िवतार क साथ वै क पर य म
थम वै क भाषा (अंेजी) म ेमचंद
सािहय क अनुवाद काय पर जो काश
डाला ह वह ोितत करता ह िक िकन-िकन
वजह से ेमचंद कथासािहय का अंेजी
अनुवाद वह मुकाम पाने म बत सफल नह
हो पा रहा ह जैसा िक िहदी या अय भारतीय
भाषा म ह। हालाँिक अकादिमक काय भी हो
रह ह। यू.जी.सी. ारा िवपोिषत परयोजना
क अंतगत जािमया िमिलया इलािमया
िविवालय िदी क अंेजी
िवभागाय ोफसर एम. असदु?ीन ने
ेमचंद क 301 कहािनय का अंेजी
अनुवाद अपनी टीम क साथ िकया था।
वय हरीश िवेदी जी ने बपृीय
तावना िलखी थी। यह वृह काय चार
खड म कािशत ह। गरमा ीवातव,
िनशांत, शिशभूषण िम, डॉ. शुभम मगा, ?
नारायण पाडय, योितष जोशी, कवल
भारती, गरमा ीवातव, शिशभूषण िम,
अण होता, गोपाल धान, मंगलमूित,
िवकास वमा, अण होता, भृित िव जन
क आलेख िवचारणीय ह।
000
लमही जुलाई-िदसबर 2024 क िवशेषांक का संपादकय पढ़ते ए याद क परत से
उचक कर झाँकने लगा वह िदन! 30 जुलाई 2024 का! ेमचंद जयंती क पूवसंया का! यह
पूवसंया अपने िहदी िवभाग क सदय क साथ अपने डी.ए-वी. महािवालय क ''नागे
वप माट लै?र िथएटर'' म समारोहपूवक मनाई, हम सबने! उन शोधािथय व परा?ातक
छा-छाा को माण प, मृित िच? िदये िजहने 'ेमचद सािहय' पर लेखन
ितयोिगता म उक लेखन मता का दशन करक थम, ितीय, तृतीय व चतुथ थान
ा िकया था। थानीय पी.पी.एन. कॉलेज क पूव िवभागाय ो. लमीकात पाडय का
बीज वतय आ था। उसी वतय का एक अंश था- सौ-सवा सौ वष बाद भी हम ेमचद,
ेमचद क समय और उनक रचना को याद कर रह ह, तो यह जान लेना चािहए िक
िवषमता क से आज भी उतनी ही ब क उनसे यादा िवषमताएँ और जिटलताएँ ह!
िजतनी ेमचद क समय म थ तब भी ेमचद ासंिगक थे और आज तो और भी अिधक ह,
अब तो ेमचद क रचना का मूयांकन नह वर ेमचद क मूयांकन का भी मूयांकन
करने वाला पर य उप थत ह!
कई बार एक रचनाकार बत अछा आलोचक या समीक हो सकता ह - पंत, साद,
िनराला, िदनकर रचनाकार भी थे और े आलोचक भी! िकतु बत बार अिते
रचनाकार भी े समालोचक हो, यह सभव नह! िजन िव भरनाथ शमा कौिशक ने
'सेवासदन' क समालोचना क ह, ये कानपुर क वही िव भनाथ शमा कौिशक ह िजह
ेमचंद को िहदी म लाने का ेय ?? ह, इह क कहने पर ेमचद िहदी म आए। कौिशक
जी क यह कहने पर िक आप िहदी म य नह िलखते? ेमचद ने उर िदया था िक मेरी िहदी
बत अछी नह थी, इस पर कौिशक जी ने कहा था आप कोिशश किजए आपक िहदी म
ठीक क गा... और इस तरह 1913 म कौिशक जी ने वसंपािदत पिका 'िहदी मनोरजन' म
ेमचद क कहानी 'पंचपरमेर' छापी थी। 'ताई' जैसी कालजई कथा क लेखक कौिशक जी
ने सेवासदन क जो समालोचना क, उससे उनका कथाकार प ही सामने आता ह, न िक एक
पारगत समालोचक का।
लमही क इस िवशेषांक को देखते ए यह भी बत साफ तौर पर गत होता ह िक
यतीत होते समय क साथ समीा कम म भी नए तय, नई बात, तकसंगत s?? क साथ आई
ह, न िक रचना या रचनाकार क उखाड़-पछाड़ क िलए! वैसे अपवाद तो होते ही ह! शायद ही
कोई समय हो जो अपवादहीन हो! उखाड़ पछाड़ अभी भी होती ह िकतु अयप!!
आलोचना क आलोक म ेमचद-इस िवशेषांक क ?बसूरती यही ह िक सभी वर,
किन लेखक ने गंभीर िचंतन क साथ ेमचंद क अब तक क मूयांकन पर अपनी
सुिचंितत व सुिवचारत समालोचना तुत क ह, एतदथ सभी को अनेकशः साधुवाद! संपादक
िवजय जी तो थमतः साधुवाद क पा ह ही! एक बार िफर सश समृ पुनमू यांकन
िवशेषांक क िलए उह हािदक बधाई! अनंत शुभकामनाएँ!
डॉ. रणु यास ने िजस तरह से अपने आलेख 'नवल िकशोर का ेमचंद िवमश' म सू?म
और गहरी से तय व तक का उखनन िकया ह, वह ?ाघनीय ह। उहने ो.
नवलिकशोर क उन थापना क उरण िदये ह, जो ेमचंद को मानववाद, समाजवाद व
गांधीवाद से गहराई से जोड़ते ह- ''यह तय ह िक ेमचद जैसे िमशनरी लेखक का उनक रचना
उेय को क म रखे िबना कोई भी पाठ अथवा कोई भी िवखडन उनक रचनाकार क ित
पुतक समीा
(पिका िवशेषांक)
लमही जुलाई-
िदसबर 2024
िवशेषांक
समीक : डॉ. दया दीित
संपादक : िवजय राय
डॉ. दया दीित
ोफसर एवं िवभागाय िहदी डी.ए-वी.
पी.जी. कॉलेज
कानपुर, उ..
मोबाइल- 9415537644

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 202537 36 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2025
वरन ब क ित भी दशाती ह -'फिसंग क
बाहर अकला बुढ़ापा यार लुटाने क िलए
खड़ा ह और अंदर अकला बचपन यार पाने
क िलए तरस रहा ह'। िन?य ही इस
िवशेषांक क सभी कहािनयाँ युवा क वृ
क ित नज़रये म बदलाव लाने म सहायक
होगी।
नफस आफ़रीदी क ितिनिध कहािनय
म मा िक़सागोई नह ह, अिपतु जीवन दशन
िदखाई देता ह। उनक तमाम कहािनय म
तमाम रत क िगरह धीर-धीर खुलती सी
तीत होती ह। उनक कहािनयाँ समाज क
उस उपेित वग क कहािनयाँ ह जो िहदी
सािहय से शनै-शनै बेदख़ल होता जा रहा ह।
'िचा मुदगल एक िशनात' शोधािथय,
सािहयेिमय व िशाजग क बत
उपयोगी पुतक बन पड़ी ह िजसम िचा जी
क य व और कितव का कोई कोना
छ?टने नह पाया ह।
पंकज सुबीर जी का उपयास 'दादे-
सफ़र' कई ख?ी-मीठी कहािनय क साथ
मेिडकल कॉलेज, एनाटोमी क बार म अपने
पाठक को -ब- कराते ए देहदान क
ित भी लोग को जागक करता ह।
वष पाठक क िदल पर राज करने वाली
प ी मालती जोशी का कहानी संह 'ये तो
होना ही था' क कहािनयाँ पारवारक
पृ?भूिम पर आधारत तो ह ही, पाठक क
अंतमन को छने क साथ उनक संवेदना को
भी झंकत कर जाती ह।
सेवािनवृित क प?ात रची गई,
आई.ए.एस. ऑिफ़सर अिनल रतूड़ी जी क
पहली कित, उनका उपयास 'भँवर- एक ेम
कहानी' सरकारी तं क यवथा पर उगली
उठाते ए, उसम फले ाचार तथा
ईमानदार अिधकारय क मज़बूरी को पाठक
क सामने अनावृत करता ह।
गित गुा क कहानी संह 'टपड
पिचय' क बार म सुधा जी िलखती ह िक
लेिखका ने मन क इतने सू?म भाव को पकड़
कर कहािनयाँ रची ह िक येक कहानी अपने
आप म कलामक और बेजोड़ ह।
िवकश िनझावन क कहानी संह
'िसलवट' क समीा करते ए लेिखका
कहती ह िक उनक कहािनयाँ पढ़ते ए
िनझावन जी क क़लम क ताक़त व उनक
सुढ़ वैचारक परपता का अनुमान सहज
ही हो जाता ह।
अपनी पुतक 'कालड़ी से कदार' क बार
म लेखक मुकश नौिटयाल िलखते ह -इन
याा म म ?ब पैदल चला, गाँव-गाँव
घूमा। ये यााएँ आनंद बटोरने का यास
कम, जानकारयाँ जुटाने क कवायद यादा
थी। इस याा-वृतांत म याा 'कालड़ी' करल
क एक गाँव जो आिद गु शंकराचाय क
जमथली से ारभ होकर कदारनाथ जहाँ
आिद गु क समािध ह पर समा होती ह।
तिमलनाड? म नृय और कला क ित गहरा
आकषण देखकर लेखक िलखते ह -राजनीित
जब हम जाित, भाषा, संदाय क खांच म
बाँट रही होती ह तब सािहय, संगीत और
कला म ही वह सामय ह िक संकणता क
जहर को बुझाया जा सक।
िजतेन ठाकर क कहानी संह 'गुमशुदा'
क कहािनय समीा मन को आंदोिलत कर
जाती ह। हर कहानी बेहद मािमक एवं
दयपश ह। कहानी 'ोटोकॉल बनाम
िबरजू चपरासी'। अपनी िडयूटी िनभाते ए
भग जाने पर िबरजू क मृयु पर कहानी म
कहा वाय -ोटोकॉल म आदमी, आदमी
नह रह जाता, कचुआ बन जाता ह और
कचुए जंग नह लड़ा करते, मन को िवगिलत
कर जाता ह।
'लदंन से रोम' िकसागोई शैली म िलखा
डॉ. िवमला भंडारी का याा वृांत 12
यूरोपीय देश क सैर तो करवाता ही ह, साथ
ही उन जगह क इितहास और भूगोल को भी
सहज, सरल शद म ऐसे बयान करता ह िक
पाठक भी उनका सहयाी बन याा का लुत
उठाने लगता ह।
सुधा कसेरा जी क कित 'सािहयवीर'
सहज, सरल भाषा म सािहय जग क िस
वर हतार क य व व कितव से
पाठक का परचय करवाती ह िजनको
सािहय म िच रखने वाले हर य ने पढ़ा
होगा। अपनी क़लम से समाज म जाित लाने
वाले ये सभी वर सािहयकार, सािहय
जग क अमूय धरोहर ह। उनक लेखनी
को सुधा कसेरा जी ने अपनी इस पुतक ारा
ा सुमन अिपत िकये ह।
रनू मडल का 15 कहािनय का कहानी
संह 'कनवास' एक ही बैठक म पढ़वा लेने
क मता रखता ह। उनक कहािनयाँ समाज
क िवसंगितय को सहज़, सरल भाषा, अपनी
िविश? कथोपकथन शैली म उकर कर न
कवल उनका समाधान खोजती ह वरन
सकारामक संदेश भी देती ह।
संजीव जायसवाल 'संजय' जी का कहानी
संह 'रॉक अहमद िसंह' क समीा करते
ए लेिखका कहती ह िक संजीव जी क
कहािनयाँ एक बड़ा कनवास िलए ए होती ह
िजसम कई पा व घटना को उभरने का
पूरा मौका िमलता ह। यूँ तो इस संह क सभी
कहािनयाँ िदल को छ? लेने वाली ह िकतु कछ
कहािनयाँ जैसे आिख़री सलाम, उसक रोटी,
ितशोध बेहद मािमक एवं दय को िवगिलत
करने वाली ह।
उनक एक अय कहानी संह ' म चुप
नह र गी' क समीा भी इस संह म ह। ी
िवमश पर आधारत संजीव जी का यह कहानी
संह बेहद चिचत आ ह। संह क सभी 13
कहािनयाँ ?लंत मु पर कित ह। इस
संह क सभी कहािनयाँ य क ित पुष
क सोच बदलने क िलए ेरत करती ह।
शीषक कहानी 'म चुप नह र गी' क ारा
लेखक बलाकार पीिड़ता क ित समाज क
परपरागत सोच बदलने क साथ पीिड़ता को
भी यह एहसास िदलाती ह िक वह दोषी नह
ह। इिडया नेटबुक से कािशत सुधा जुगरान
जी क पुतक 'इकसव सदी क कहािनयाँ
समीा क आईने म' म 20 पुतक क
समीाएँ ह। सभी समीाएँ न कवल पुतक
का पाठक से परचय कराती ह वरन उह
पढ़ने क िलए भी उकसाती ह। मेरी पुतक
'याद कर बानी' िजसम सन 1858 से सन
1947 तक वतंता संाम म भाग लेने वाले
अनाम व सनाम अमर वीर क गाथा क
समीा भी इस संह का िहसा ह।
000
सुधा जुगरान जी िकसी परचय क मोहताज नह ह। वह एक अछी लेिखका तो ह ही,
अछी पाठक और समीक भी ह, इसक पु उनक पुतक 'इकसव सदी क कहािनयाँ
समीा क आईने म' करती ह। इस पुतक म उनक ारा िलखी ग 20 पुतक क समीाएँ ह
िजनक बार म वह कहती ह िक सभी पुतक ने मेर िदलोिदमाग़ को कछ कम या यादा, िकतु
आंदोिलत अवय िकया ह। कछ पुतक ने ?द पर िलखने क िलए मजबूर भी कर िदया।
बुकर समान से समािनत गीतांजली ? क उपयास 'रत समािध' क बार म वह िलखती ह
िक 'रत समािध िकसी क भी मन क उहापोह हो सकता ह। ऐसा लगता ह िक लेिखका ने सोच,
िवचार, कपना, अगढ़ घटना को चौतरफ़ा बह जाने िदया और एक बेहतरीन व िनराले
िशप शैली क रचना क जो आरभ म पढ़ने म थोड़ी अजनबी लगती ह लेिकन जैसे-जैसे
पाठक क िमता उपयास क िशप-शैली क सदय से होने लगती ह, पाठक पुतक म ड?ब
जाता ह और पुतक का अंत पुतक-पाठक क गाढ़ िमता क साथ होता ह'।
िचा मुदगल जी क बुजुग क समया पर आधारत उपयास 'िगिलग ' क बार म वे
कहती ह िक उनका यह उपयास ऊपर से िसवर वक क तरह चमकते आधुिनक जीवन शैली
क नीचे क साई क पोल खोलता ह। जहाँ चमक िजतनी यादा ह, वह अँधेरा अिधक घना
ह। युवा पीढ़ी क जीवन म उनक बुग मखमल म टाट क पैबंद ह। जसवंत िसंह और कनल
वामी क ारा वह युवा पीढ़ी का सच से सााकार कराते ए बु?गK का समान करने क
िशा देने क साथ, बुग पीढ़ी को भी आमिनभरता का पाठ पढ़ाती ह।
अणाचल देश क जनजाित गालो (आिदवासी) पर िलखा लेिखका मोजुम लोयी का
उपयास 'िमनाम' एक आिदवासी ी क संघष क गाथा ह। इस उपयास म 'लेपा िलंडनाम'
था क बार म बताती ई वह कहती ह िक इसम ी से पशुवत यवहार िकया जाता ह। यह
अवय ह िक समय क साथ ी क थित म थोड़ा परवतन आया ह िकतु आज भी परवार क
ित पूण समिपत होने क बावजूद ी, िसफ पुष क िलए भोया ही ह। ी क दद को बयान
करती उपयास क नाियका कहती ह - 'म िमनाम। िमनाम यािन सोच, िवचार या िचंतन, िनन-
मयमवगय परवार म जमी एक अभागन बेटी'।
िकसान क परशािनय, सरकारी यवथा, िबचौिलय पर कित ह हरयश राय का
उपयास 'माटी राग'। उपयास का नायक जो बक म काम करता ह, िकसान से लोन उगहाने
क िलए गाँव जाता ह। वहाँ वह उनक दुारय से -ब- होता ह। गाँव म पक मकान ह,
िपजा बगर क दुकान भी ह लेिकन िकसान अभी मौसम और िबचौिलय क बीच फसा आ
ह। िकसान क क़ज़ न लौटा पाने क बात करते ए उपयास का एक अय पा आिदय कमार
सुमेर िसंह से कहता ह, "सर, िकसान चाह तो अपने खेत बेचकर बक का लोन वापस कर
सकते ह। इनका 'माटी राग' ह जो इह खेत से जोड़ रखता ह। खेत म काम करते-करते ये खेत
हो जाएँगे लेिकन खेत को छोडगे नह। इसी 'माटी राग' क वजह से किष यवथा तमाम
िवसंगितय क बावजूद चल रही ह और हम लोग क िलए अ? पैदा कर रही ह।" सचमुच यह
उपयास अपनी 'माटी राग' क मोहजाल म फसे िकसान का एक मािमक दतावेज़ ह।
'वांमय पिका क वृ िवमश पर कित कहानी िवशेषांक' म वृ क थित क बार म
लेिखका कहती ह, 'समाज म नैितक मूय का ास तथा भावनामकता क ऊपर हावी हो रही
भौितकता क कारण वृ क िवचारधारा युवा को सामियक न लगकर बोझ तीत हो रही ह
िजससे अपने वैभवशाली अतीत को समेट वृ अपनी ट?टती भावना क याह जंगल म गुम हो
रह ह। िचा मुदगल जी क कहानी 'गद' क ज़रए वह युवा का नज़रया वृ क ित ही नह
पुतक समीा
(समीा संह)
इकसव सदी क
कहािनयाँ समीा क
आईने म
समीक : डॉ. रजना गुा
लेखक : सुधा जुगरान
काशक : इिडया नेट बुस
सुधा आदेश
306, वाइसराय लडर अपाटमट, 1 st
ॉस रोड, कासावानाही, बंगलु-
560035 (कनाटक)
मोबाइल- 9415665941
ईमेल- [email protected]

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वरन ब क ित भी दशाती ह -'फिसंग क
बाहर अकला बुढ़ापा यार लुटाने क िलए
खड़ा ह और अंदर अकला बचपन यार पाने
क िलए तरस रहा ह'। िन?य ही इस
िवशेषांक क सभी कहािनयाँ युवा क वृ
क ित नज़रये म बदलाव लाने म सहायक
होगी।
नफस आफ़रीदी क ितिनिध कहािनय
म मा िक़सागोई नह ह, अिपतु जीवन दशन
िदखाई देता ह। उनक तमाम कहािनय म
तमाम रत क िगरह धीर-धीर खुलती सी
तीत होती ह। उनक कहािनयाँ समाज क
उस उपेित वग क कहािनयाँ ह जो िहदी
सािहय से शनै-शनै बेदख़ल होता जा रहा ह।
'िचा मुदगल एक िशनात' शोधािथय,
सािहयेिमय व िशाजग क बत
उपयोगी पुतक बन पड़ी ह िजसम िचा जी
क य व और कितव का कोई कोना
छ?टने नह पाया ह।
पंकज सुबीर जी का उपयास 'दादे-
सफ़र' कई ख?ी-मीठी कहािनय क साथ
मेिडकल कॉलेज, एनाटोमी क बार म अपने
पाठक को -ब- कराते ए देहदान क
ित भी लोग को जागक करता ह।
वष पाठक क िदल पर राज करने वाली
प ी मालती जोशी का कहानी संह 'ये तो
होना ही था' क कहािनयाँ पारवारक
पृ?भूिम पर आधारत तो ह ही, पाठक क
अंतमन को छने क साथ उनक संवेदना को
भी झंकत कर जाती ह।
सेवािनवृित क प?ात रची गई,
आई.ए.एस. ऑिफ़सर अिनल रतूड़ी जी क
पहली कित, उनका उपयास 'भँवर- एक ेम
कहानी' सरकारी तं क यवथा पर उगली
उठाते ए, उसम फले ाचार तथा
ईमानदार अिधकारय क मज़बूरी को पाठक
क सामने अनावृत करता ह।
गित गुा क कहानी संह 'टपड
पिचय' क बार म सुधा जी िलखती ह िक
लेिखका ने मन क इतने सू?म भाव को पकड़
कर कहािनयाँ रची ह िक येक कहानी अपने
आप म कलामक और बेजोड़ ह।
िवकश िनझावन क कहानी संह
'िसलवट' क समीा करते ए लेिखका
कहती ह िक उनक कहािनयाँ पढ़ते ए
िनझावन जी क क़लम क ताक़त व उनक
सुढ़ वैचारक परपता का अनुमान सहज
ही हो जाता ह।
अपनी पुतक 'कालड़ी से कदार' क बार
म लेखक मुकश नौिटयाल िलखते ह -इन
याा म म ?ब पैदल चला, गाँव-गाँव
घूमा। ये यााएँ आनंद बटोरने का यास
कम, जानकारयाँ जुटाने क कवायद यादा
थी। इस याा-वृतांत म याा 'कालड़ी' करल
क एक गाँव जो आिद गु शंकराचाय क
जमथली से ारभ होकर कदारनाथ जहाँ
आिद गु क समािध ह पर समा होती ह।
तिमलनाड? म नृय और कला क ित गहरा
आकषण देखकर लेखक िलखते ह -राजनीित
जब हम जाित, भाषा, संदाय क खांच म
बाँट रही होती ह तब सािहय, संगीत और
कला म ही वह सामय ह िक संकणता क
जहर को बुझाया जा सक।
िजतेन ठाकर क कहानी संह 'गुमशुदा'
क कहािनय समीा मन को आंदोिलत कर
जाती ह। हर कहानी बेहद मािमक एवं
दयपश ह। कहानी 'ोटोकॉल बनाम
िबरजू चपरासी'। अपनी िडयूटी िनभाते ए
भग जाने पर िबरजू क मृयु पर कहानी म
कहा वाय -ोटोकॉल म आदमी, आदमी
नह रह जाता, कचुआ बन जाता ह और
कचुए जंग नह लड़ा करते, मन को िवगिलत
कर जाता ह।
'लदंन से रोम' िकसागोई शैली म िलखा
डॉ. िवमला भंडारी का याा वृांत 12
यूरोपीय देश क सैर तो करवाता ही ह, साथ
ही उन जगह क इितहास और भूगोल को भी
सहज, सरल शद म ऐसे बयान करता ह िक
पाठक भी उनका सहयाी बन याा का लुत
उठाने लगता ह।
सुधा कसेरा जी क कित 'सािहयवीर'
सहज, सरल भाषा म सािहय जग क िस
वर हतार क य व व कितव से
पाठक का परचय करवाती ह िजनको
सािहय म िच रखने वाले हर य ने पढ़ा
होगा। अपनी क़लम से समाज म जाित लाने
वाले ये सभी वर सािहयकार, सािहय
जग क अमूय धरोहर ह। उनक लेखनी
को सुधा कसेरा जी ने अपनी इस पुतक ारा
ा सुमन अिपत िकये ह।
रनू मडल का 15 कहािनय का कहानी
संह 'कनवास' एक ही बैठक म पढ़वा लेने
क मता रखता ह। उनक कहािनयाँ समाज
क िवसंगितय को सहज़, सरल भाषा, अपनी
िविश? कथोपकथन शैली म उकर कर न
कवल उनका समाधान खोजती ह वरन
सकारामक संदेश भी देती ह।
संजीव जायसवाल 'संजय' जी का कहानी
संह 'रॉक अहमद िसंह' क समीा करते
ए लेिखका कहती ह िक संजीव जी क
कहािनयाँ एक बड़ा कनवास िलए ए होती ह
िजसम कई पा व घटना को उभरने का
पूरा मौका िमलता ह। यूँ तो इस संह क सभी
कहािनयाँ िदल को छ? लेने वाली ह िकतु कछ
कहािनयाँ जैसे आिख़री सलाम, उसक रोटी,
ितशोध बेहद मािमक एवं दय को िवगिलत
करने वाली ह।
उनक एक अय कहानी संह ' म चुप
नह र गी' क समीा भी इस संह म ह। ी
िवमश पर आधारत संजीव जी का यह कहानी
संह बेहद चिचत आ ह। संह क सभी 13
कहािनयाँ ?लंत मु पर कित ह। इस
संह क सभी कहािनयाँ य क ित पुष
क सोच बदलने क िलए ेरत करती ह।
शीषक कहानी 'म चुप नह र गी' क ारा
लेखक बलाकार पीिड़ता क ित समाज क
परपरागत सोच बदलने क साथ पीिड़ता को
भी यह एहसास िदलाती ह िक वह दोषी नह
ह। इिडया नेटबुक से कािशत सुधा जुगरान
जी क पुतक 'इकसव सदी क कहािनयाँ
समीा क आईने म' म 20 पुतक क
समीाएँ ह। सभी समीाएँ न कवल पुतक
का पाठक से परचय कराती ह वरन उह
पढ़ने क िलए भी उकसाती ह। मेरी पुतक
'याद कर बानी' िजसम सन 1858 से सन
1947 तक वतंता संाम म भाग लेने वाले
अनाम व सनाम अमर वीर क गाथा क
समीा भी इस संह का िहसा ह।
000
सुधा जुगरान जी िकसी परचय क मोहताज नह ह। वह एक अछी लेिखका तो ह ही,
अछी पाठक और समीक भी ह, इसक पु उनक पुतक 'इकसव सदी क कहािनयाँ
समीा क आईने म' करती ह। इस पुतक म उनक ारा िलखी ग 20 पुतक क समीाएँ ह
िजनक बार म वह कहती ह िक सभी पुतक ने मेर िदलोिदमाग़ को कछ कम या यादा, िकतु
आंदोिलत अवय िकया ह। कछ पुतक ने ?द पर िलखने क िलए मजबूर भी कर िदया।
बुकर समान से समािनत गीतांजली ? क उपयास 'रत समािध' क बार म वह िलखती ह
िक 'रत समािध िकसी क भी मन क उहापोह हो सकता ह। ऐसा लगता ह िक लेिखका ने सोच,
िवचार, कपना, अगढ़ घटना को चौतरफ़ा बह जाने िदया और एक बेहतरीन व िनराले
िशप शैली क रचना क जो आरभ म पढ़ने म थोड़ी अजनबी लगती ह लेिकन जैसे-जैसे
पाठक क िमता उपयास क िशप-शैली क सदय से होने लगती ह, पाठक पुतक म ड?ब
जाता ह और पुतक का अंत पुतक-पाठक क गाढ़ िमता क साथ होता ह'।
िचा मुदगल जी क बुजुग क समया पर आधारत उपयास 'िगिलग ' क बार म वे
कहती ह िक उनका यह उपयास ऊपर से िसवर वक क तरह चमकते आधुिनक जीवन शैली
क नीचे क साई क पोल खोलता ह। जहाँ चमक िजतनी यादा ह, वह अँधेरा अिधक घना
ह। युवा पीढ़ी क जीवन म उनक बुग मखमल म टाट क पैबंद ह। जसवंत िसंह और कनल
वामी क ारा वह युवा पीढ़ी का सच से सााकार कराते ए बु?गK का समान करने क
िशा देने क साथ, बुग पीढ़ी को भी आमिनभरता का पाठ पढ़ाती ह।
अणाचल देश क जनजाित गालो (आिदवासी) पर िलखा लेिखका मोजुम लोयी का
उपयास 'िमनाम' एक आिदवासी ी क संघष क गाथा ह। इस उपयास म 'लेपा िलंडनाम'
था क बार म बताती ई वह कहती ह िक इसम ी से पशुवत यवहार िकया जाता ह। यह
अवय ह िक समय क साथ ी क थित म थोड़ा परवतन आया ह िकतु आज भी परवार क
ित पूण समिपत होने क बावजूद ी, िसफ पुष क िलए भोया ही ह। ी क दद को बयान
करती उपयास क नाियका कहती ह - 'म िमनाम। िमनाम यािन सोच, िवचार या िचंतन, िनन-
मयमवगय परवार म जमी एक अभागन बेटी'।
िकसान क परशािनय, सरकारी यवथा, िबचौिलय पर कित ह हरयश राय का
उपयास 'माटी राग'। उपयास का नायक जो बक म काम करता ह, िकसान से लोन उगहाने
क िलए गाँव जाता ह। वहाँ वह उनक दुारय से -ब- होता ह। गाँव म पक मकान ह,
िपजा बगर क दुकान भी ह लेिकन िकसान अभी मौसम और िबचौिलय क बीच फसा आ
ह। िकसान क क़ज़ न लौटा पाने क बात करते ए उपयास का एक अय पा आिदय कमार
सुमेर िसंह से कहता ह, "सर, िकसान चाह तो अपने खेत बेचकर बक का लोन वापस कर
सकते ह। इनका 'माटी राग' ह जो इह खेत से जोड़ रखता ह। खेत म काम करते-करते ये खेत
हो जाएँगे लेिकन खेत को छोडगे नह। इसी 'माटी राग' क वजह से किष यवथा तमाम
िवसंगितय क बावजूद चल रही ह और हम लोग क िलए अ? पैदा कर रही ह।" सचमुच यह
उपयास अपनी 'माटी राग' क मोहजाल म फसे िकसान का एक मािमक दतावेज़ ह।
'वांमय पिका क वृ िवमश पर कित कहानी िवशेषांक' म वृ क थित क बार म
लेिखका कहती ह, 'समाज म नैितक मूय का ास तथा भावनामकता क ऊपर हावी हो रही
भौितकता क कारण वृ क िवचारधारा युवा को सामियक न लगकर बोझ तीत हो रही ह
िजससे अपने वैभवशाली अतीत को समेट वृ अपनी ट?टती भावना क याह जंगल म गुम हो
रह ह। िचा मुदगल जी क कहानी 'गद' क ज़रए वह युवा का नज़रया वृ क ित ही नह
पुतक समीा
(समीा संह)
इकसव सदी क
कहािनयाँ समीा क
आईने म
समीक : डॉ. रजना गुा
लेखक : सुधा जुगरान
काशक : इिडया नेट बुस
सुधा आदेश
306, वाइसराय लडर अपाटमट, 1 st
ॉस रोड, कासावानाही, बंगलु-
560035 (कनाटक)
मोबाइल- 9415665941
ईमेल- [email protected]

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बीमार िपता भी कमर से बाहर िनकल कर आ
जाते ह। िकतु चकर आ जाने क कारण िगर
पडते ह। र ाव को देख कर शािलनी घबरा
जाती ह िकतु एक िक?र िजसका नाम
पारजात ह तुरत शािलनी क िपताजी को
सहारा देकर बाहर खड़ी अपनी कार म बैठा
देती ह और वयं ाइव करते ए एक अछ
अपताल म प चा देती ह। इस तरह तुरत
उपचार िमल जाने क कारण शािलनी क
िपताजी का जीवन बच जाता ह।
ये सब देखकर शािलनी क िकर क
ित बनी धारणा एकदम बदल जाती ह। वह
पारजात से कछ न करती ह तो पारजात
अपने बार म बताती ह - "उस रात काक क
िससिकय से मेरी नद खुल गई। काक
भगवा क फोटो क सामने बैठी िससक रही
थ- 'आज िफर िशकायत करने बैठी तुमसे,
य भेजा हम इस दुिनया म, अगर यही
िज़ंदगी देनी थी? या जबाव दूँ अब इस
अभागी को, िजसक जम दाता उसेअपनी
औलाद तक न कह सक। करमजली, अभागी
को मेरी गोद म डाल िदया। कसे बताऊ उसे
िक हमार जैस क कोई माँ-बाप, कोई परवार
नह होता। "
पारजात क दुख से िवत शािलनी सोचने
लगी -"िकतना दद समेट ए ह यह अपने
भीतर? कभी समाज इसािनयत क से
इह य नह देखता? इनक जम म इनका
या दोष जो समाज क बेधती का
सामना हरदम करते ए इह जीना पड़ता ह?"
संह क पाँचवी कहानी- "डोर अंजानी
सी" जो शीषक कहानी भी ह म कहानीकार
ममता यागी ने पााय िवचार का
ितपादन करते ए एक ऐसी लड़क क
जीवन िच को उकरा ह जो तलाक़ क बाद,
मातृव सुख महसूसने क िलए आई वी एफ
क मायम से माँ बनने का िनणय लेती ह।
आज क युग म लड़िकयाँ, लड़क से
िकसी भी ? म पीछ नह ह ब क कहना
उपयु होगा िक अपने वृ माता-िपता क
सेवा म भी वह आज क पु क अपेा
अिधक संवेदनशील ह िफर भी लड़क क
जम पर आज भी अिधकांश घर म सता
महसूस नह क जाती। और लड़क क जम
क आशा म कयाूण क हयाएँ करते चले
जाने म भी संकोच नह होता। सास पी नारी
क ारा पु जम को लेकर ब पी नारी क
ताड़ना िकतनी ककारी और िवचिलत
करने वाली होती ह यह संह क कहानी
"अजमी बी कर पुकार" म बत ही
मािमक ढग से उ?ािटत िकया गया ह-
"अगले वष िफर बानी गभवती ई
लेिकन उसका ज़बरदती गभपात करवा
िदया गया यिक अजमी संतान लड़क थी।
दूसरी बार तो ममा जी ने िकसी हकम से दवा
भी लाकर दी िक शितया लड़का ही होगा, पर
ट ट का परणाम आते ही बानी को िफर से
उसी यातना से गुज़रना पड़ा।"
"खूँटी पर टगा ओवरकोट " कहानी म
कहानीकार ममता यागी ने कमीर क
आतंकवाद का लोमहषक िच उप थत
िकया ह वह हवान क बीच इसािनयत क
फरते इमाइल बेग क नेकनीयती को भी
सदयता क साथ उकरा ह।
"उजाले क ओर बढ़ता क़दम" कहानी
वृावथा म एकाकपन क पीड़ा और िफर
उस एकाकपन से एक पथ दशक क भाँित
मु का माग िदखाती एक ऐसी कहानी ह
िजसका तानाबाना िवदुषी कहानीकार ममता
यागी ने बड़ी ही सूझबूझ से बुना ह।
"वह िफर चूक गया?" कहानी इस संह
क सबसे लबी यािन 21 पृ? म समािहत
कहानी ह जो जीवन क अ?ुत संयोग का
ितपादन करती ह। कहानीकार ने इसक रशे
रशे को बत ही बारीक से बुना ह।
कहानी का नायक 'संयम' ह िजसक
पनी उसक मनोभाव को न समझ सक और
तलाक ले िलया। संयम अपने मन को रमाने
क िलए समय-समय पर िचकारी क बहाने
पहाड़ पर जाकर एक कॉटज म रहता ह।
दूसरी ओर कहानी क नाियका ह रना, िजसे
उसक पित ने बचपन म आग से जल गए रना
क शरीर क कारण उसे याग िदया-
"जैसे ही आमीय ण म मोिहत ने मेर
शरीर का जला आ िहसा देखा, एक चीख
मारकर पीछ हट गए। मेर ऊपर तो जैसे
अचानक वपात ही हो गया। इतना ितरकार
और अपमान मेरा कभी नह आ था। मुझे
लगा था ेम एक िवशु भावना ह िजसम
िदल िमलते ह, शरीर महव नह रखता।"
रना भी अपने मन को रमाने क िलए
ितवष गिमय म पहाड़ पर जाकर एक अय
कॉटज म ठहरकर अपना कहानी और किवता
लेखन का काय करती ह।
ममता यागी ने घटना को इस
?बसूरती से जोड़ा ह िक पहाड़ पर रना और
संयम क मुलाकात का संयोग बनता ह।
िकतु रना अपने शरीर क कारण पित क साथ
घिटत घटना का मरण कर संयम क नाम
एक प अपने कॉटज क कयर टकर को
देकर शहर चली आती ह। कहानी म कई मोड़
देते ए लेिखका ने रना - संयम को िफर से
उस अपताल म िमलवा िदया िजसम संयम
िचकार क अलावा एक डॉटर भी था।
इस तरह लेिखका ने इसे सुखात कहानी
बना िदया - "तुमने कसे सोच िलया िक तुम
कभी मेरी दया या सहानुभूित क पा बन
सकती हो? देह से पर भी ेम होता ह
अलौिकक ेम, मने तुहार अदर एक
अलौिकक छिव देखी थी। मेर िलए तुम मायने
रखती हो, तुहारा ेम मायने रखता ह रना,
तुहारी देह नह।" (पृ? - 110)
संह क अंितम कहानी- "मन पाखी न
काह धीर धर" एक सामािजक पारवारक
कहानी ह िजसका िपता सुयश अपने पु से
इसिलए नाराज़ ह िक पु ने िबना िकसी
सूचना क अपना िववाह करक पनी को साथ
लेकर माता-िपता क सामने उप थत हो गया।
ोध म िपता ने अपने पु क िकसी मजबूरी
को भी नह सुना परणामवप पु अपनी
पनी को लेकर हमेशा क िलए अमेरका चला
गया जहाँ एक जहाज़ दुघटना म उसक मृयु
हो गई। उसक बाद माता-िपता ने पुवधू को
खोजकर उससे माफ़ ही नह माँगी अिपतु
उसका दूसरा िववाह भी करा िदया।
इस कार कहानी संह- 'डोर अंजानी
सी' क येक कहानी अपनेआप म बेजोड़
ह। भाषा सहज, सरल एवं शैली वाहमयी ह।
000
अयापन क ? म तीस वष गुज़ारने क बाद कहानी कला म िसहत कहानीकार सुी
ममता यागी अमेरका म िहदी क चार, सार म अपने आप को संलन िकए ए ह। डोर
अनजानी सी, ममता यागी का दूसरा कहानी संह ह िजसम उनक 10 उक कहािनय का
समावेश िकया गया ह।
संह- "डोर अनजानी सी" क पहली कहानी - "लव यू दादा" उहने एक ऐसे बे रितक
को क म रखकर बुनी ह जो ऑिटम का रोगी ह।
रितक का छोटा भाई सा वक अपनी िम नेहा को अपने घर पर यह सोचकर नह बुलाता
िक रितक क वातिवकता का पता चलने पर सा वक क ित नेहा क िवचार म परवतन आ
सकता ह। एक िदन जब नेहा, सा वक को सराइज़ देने क िलए अचानक उसक घर आ जाती
ह तो सा वक को झटका लगता ह िकतु जब नेहा उससे कहती ह िक -
"म तुहारी मनो थित समझ सकती । तुह कसा लगता होगा यह म समझ सकती पर
मेर िलए यह नया नह ह, देख चुक यह सब अपने घर म। हाँ सा वक! मने बचपन से अपने
घर म अपने चाचा को ऐसी थित म देखा ह। "
संह क दूसरी कहानी- "टील का कप" का ताना-बाना ऐसे लोग क मानिसक थित
को उजागर करते ए बुना गया ह जो इस युग म भी पुराने िवचार क लबादे कोअपने ऊपर ओढ़
रहते ह साथ ही िजनका अह दूसर को तुछ िस करक ही तु? होता ह। अपनी पुी र म क
सहपाठी िदया क घर पर आने पर र म क ममी ने िनन जाित क होने क कारण िदया को चाय
टील क कप म दी तो संकारवान िदया ने कछ नह कहा िकतु र म क ममी क यह बात
िदया क दय म चुभ गई। उसने महसूस िकया िक - "कछ लोग कछ न कह कर भी जैसे सब
कछ कह देते ह। ऐसी लगती ह मानो भीतर झाँक कर एसर उतार रह ह।"
िदया अपनी मेहनत क बल पर जब कलेटर बन कर सहारनपुर म पोटड होती ह तब र म
क ममी एक िदन अपने िकसी काम क िलए कलेटर क पास आती ह और कलेटर क प
म िदया को देखती ह तो चक उठती ह।
िदया ारा र म क हालचाल पूछने पर उहने ने ऐसा जबाव िदया िक िदया एक बार िफर
से सोचने पर िववश हो गई िक - "वातव म कछ लोग क िफतरत कभी नह बदलती चाह जो
भी हो जाए। अहकार दी उनका चेहरा समाज क उस वग का ितिनिधव सा कर रहा था, जहाँ
िसफ पैसे का बोलबाला ह। गुण क, भावना क शायद कोई महा ही नह होती ऐसे लोग
क नजर म।"
"एक मु?ी िज़ंदगी क" संह क तीसरी कहानी ह जो उन लोग क जीवन का िच
उप थत कर रही ह जो िफमी दुिनया क चकाचध म अपना जीवन बबाद कर लेते ह। इस
कहानी क 'वह' भी िफ़मी दुिनया क चकाचध से आकिषत होकर भटकन क अँधेर गत म
िगर जाने क बाद पाँच साल म पहली बार िकसी ऐसे पुष से िमली िजसे उसक देह क भूख
नह थी। उसने पुष ारा िदए गए पय क िलफ़ाफ़ को वापस कर िदया - "नह, आज नह
रख सकती, आज तुहार साथ गुज़ारी इस शाम म मने एक मु?ी िज़ंदगी को जी िलयाs एहसास
आ िक म भी एक इसान मशीन नह।"
ममता यागी ने संह क चौथी कहानी- "पारजात क महक" म िक?र जाित क जीवन पर
अपनी लेखनी चलाई ह। खुसरो, ियकिलंगी या िक?र नाम से जानी जाने वाली यह जाित बे
क जम पर, िववाह अवसर पर या ऐसे ही ?शी क अवसर पर अपने आप आकर उप थत हो
जाती ह जो दोन हाथ से ताली बजाते ए अपना नेग माँगती ह। कछ लोग उनको कछ दे देते ह
तो अिधकांश लोग दुकारते ए थोड़ा बत देकर उनपर एहसान सा करते ह। इह िकर पर
कलम चलाई ह िवदुषी ममता यागी ने।
शािलनी िवदेश से अपने भाई क शादी म भारत आई ह। िकर क आ जाने पर शािलनी क
पुतक समीा
(कहानी संह)
डोर अंजानी सी
समीक : डॉ. िदनेश पाठक 'शिश'
लेखक : ममता यागी
काशक : िशवना काशन, साट
कॉ लैस बेसमट, सीहोर, म
466001, फ़ोन-07562405545
मोबाइल- +91-9806162184
ईमेल- [email protected]
डॉ. िदनेश पाठक शिश

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बीमार िपता भी कमर से बाहर िनकल कर आ
जाते ह। िकतु चकर आ जाने क कारण िगर
पडते ह। र ाव को देख कर शािलनी घबरा
जाती ह िकतु एक िक?र िजसका नाम
पारजात ह तुरत शािलनी क िपताजी को
सहारा देकर बाहर खड़ी अपनी कार म बैठा
देती ह और वयं ाइव करते ए एक अछ
अपताल म प चा देती ह। इस तरह तुरत
उपचार िमल जाने क कारण शािलनी क
िपताजी का जीवन बच जाता ह।
ये सब देखकर शािलनी क िकर क
ित बनी धारणा एकदम बदल जाती ह। वह
पारजात से कछ न करती ह तो पारजात
अपने बार म बताती ह - "उस रात काक क
िससिकय से मेरी नद खुल गई। काक
भगवा क फोटो क सामने बैठी िससक रही
थ- 'आज िफर िशकायत करने बैठी तुमसे,
य भेजा हम इस दुिनया म, अगर यही
िज़ंदगी देनी थी? या जबाव दूँ अब इस
अभागी को, िजसक जम दाता उसेअपनी
औलाद तक न कह सक। करमजली, अभागी
को मेरी गोद म डाल िदया। कसे बताऊ उसे
िक हमार जैस क कोई माँ-बाप, कोई परवार
नह होता। "
पारजात क दुख से िवत शािलनी सोचने
लगी -"िकतना दद समेट ए ह यह अपने
भीतर? कभी समाज इसािनयत क से
इह य नह देखता? इनक जम म इनका
या दोष जो समाज क बेधती का
सामना हरदम करते ए इह जीना पड़ता ह?"
संह क पाँचवी कहानी- "डोर अंजानी
सी" जो शीषक कहानी भी ह म कहानीकार
ममता यागी ने पााय िवचार का
ितपादन करते ए एक ऐसी लड़क क
जीवन िच को उकरा ह जो तलाक़ क बाद,
मातृव सुख महसूसने क िलए आई वी एफ
क मायम से माँ बनने का िनणय लेती ह।
आज क युग म लड़िकयाँ, लड़क से
िकसी भी ? म पीछ नह ह ब क कहना
उपयु होगा िक अपने वृ माता-िपता क
सेवा म भी वह आज क पु क अपेा
अिधक संवेदनशील ह िफर भी लड़क क
जम पर आज भी अिधकांश घर म सता
महसूस नह क जाती। और लड़क क जम
क आशा म कयाूण क हयाएँ करते चले
जाने म भी संकोच नह होता। सास पी नारी
क ारा पु जम को लेकर ब पी नारी क
ताड़ना िकतनी ककारी और िवचिलत
करने वाली होती ह यह संह क कहानी
"अजमी बी कर पुकार" म बत ही
मािमक ढग से उ?ािटत िकया गया ह-
"अगले वष िफर बानी गभवती ई
लेिकन उसका ज़बरदती गभपात करवा
िदया गया यिक अजमी संतान लड़क थी।
दूसरी बार तो ममा जी ने िकसी हकम से दवा
भी लाकर दी िक शितया लड़का ही होगा, पर
ट ट का परणाम आते ही बानी को िफर से
उसी यातना से गुज़रना पड़ा।"
"खूँटी पर टगा ओवरकोट " कहानी म
कहानीकार ममता यागी ने कमीर क
आतंकवाद का लोमहषक िच उप थत
िकया ह वह हवान क बीच इसािनयत क
फरते इमाइल बेग क नेकनीयती को भी
सदयता क साथ उकरा ह।
"उजाले क ओर बढ़ता क़दम" कहानी
वृावथा म एकाकपन क पीड़ा और िफर
उस एकाकपन से एक पथ दशक क भाँित
मु का माग िदखाती एक ऐसी कहानी ह
िजसका तानाबाना िवदुषी कहानीकार ममता
यागी ने बड़ी ही सूझबूझ से बुना ह।
"वह िफर चूक गया?" कहानी इस संह
क सबसे लबी यािन 21 पृ? म समािहत
कहानी ह जो जीवन क अ?ुत संयोग का
ितपादन करती ह। कहानीकार ने इसक रशे
रशे को बत ही बारीक से बुना ह।
कहानी का नायक 'संयम' ह िजसक
पनी उसक मनोभाव को न समझ सक और
तलाक ले िलया। संयम अपने मन को रमाने
क िलए समय-समय पर िचकारी क बहाने
पहाड़ पर जाकर एक कॉटज म रहता ह।
दूसरी ओर कहानी क नाियका ह रना, िजसे
उसक पित ने बचपन म आग से जल गए रना
क शरीर क कारण उसे याग िदया-
"जैसे ही आमीय ण म मोिहत ने मेर
शरीर का जला आ िहसा देखा, एक चीख
मारकर पीछ हट गए। मेर ऊपर तो जैसे
अचानक वपात ही हो गया। इतना ितरकार
और अपमान मेरा कभी नह आ था। मुझे
लगा था ेम एक िवशु भावना ह िजसम
िदल िमलते ह, शरीर महव नह रखता।"
रना भी अपने मन को रमाने क िलए
ितवष गिमय म पहाड़ पर जाकर एक अय
कॉटज म ठहरकर अपना कहानी और किवता
लेखन का काय करती ह।
ममता यागी ने घटना को इस
?बसूरती से जोड़ा ह िक पहाड़ पर रना और
संयम क मुलाकात का संयोग बनता ह।
िकतु रना अपने शरीर क कारण पित क साथ
घिटत घटना का मरण कर संयम क नाम
एक प अपने कॉटज क कयर टकर को
देकर शहर चली आती ह। कहानी म कई मोड़
देते ए लेिखका ने रना - संयम को िफर से
उस अपताल म िमलवा िदया िजसम संयम
िचकार क अलावा एक डॉटर भी था।
इस तरह लेिखका ने इसे सुखात कहानी
बना िदया - "तुमने कसे सोच िलया िक तुम
कभी मेरी दया या सहानुभूित क पा बन
सकती हो? देह से पर भी ेम होता ह
अलौिकक ेम, मने तुहार अदर एक
अलौिकक छिव देखी थी। मेर िलए तुम मायने
रखती हो, तुहारा ेम मायने रखता ह रना,
तुहारी देह नह।" (पृ? - 110)
संह क अंितम कहानी- "मन पाखी न
काह धीर धर" एक सामािजक पारवारक
कहानी ह िजसका िपता सुयश अपने पु से
इसिलए नाराज़ ह िक पु ने िबना िकसी
सूचना क अपना िववाह करक पनी को साथ
लेकर माता-िपता क सामने उप थत हो गया।
ोध म िपता ने अपने पु क िकसी मजबूरी
को भी नह सुना परणामवप पु अपनी
पनी को लेकर हमेशा क िलए अमेरका चला
गया जहाँ एक जहाज़ दुघटना म उसक मृयु
हो गई। उसक बाद माता-िपता ने पुवधू को
खोजकर उससे माफ़ ही नह माँगी अिपतु
उसका दूसरा िववाह भी करा िदया।
इस कार कहानी संह- 'डोर अंजानी
सी' क येक कहानी अपनेआप म बेजोड़
ह। भाषा सहज, सरल एवं शैली वाहमयी ह।
000
अयापन क ? म तीस वष गुज़ारने क बाद कहानी कला म िसहत कहानीकार सुी
ममता यागी अमेरका म िहदी क चार, सार म अपने आप को संलन िकए ए ह। डोर
अनजानी सी, ममता यागी का दूसरा कहानी संह ह िजसम उनक 10 उक कहािनय का
समावेश िकया गया ह।
संह- "डोर अनजानी सी" क पहली कहानी - "लव यू दादा" उहने एक ऐसे बे रितक
को क म रखकर बुनी ह जो ऑिटम का रोगी ह।
रितक का छोटा भाई सा वक अपनी िम नेहा को अपने घर पर यह सोचकर नह बुलाता
िक रितक क वातिवकता का पता चलने पर सा वक क ित नेहा क िवचार म परवतन आ
सकता ह। एक िदन जब नेहा, सा वक को सराइज़ देने क िलए अचानक उसक घर आ जाती
ह तो सा वक को झटका लगता ह िकतु जब नेहा उससे कहती ह िक -
"म तुहारी मनो थित समझ सकती । तुह कसा लगता होगा यह म समझ सकती पर
मेर िलए यह नया नह ह, देख चुक यह सब अपने घर म। हाँ सा वक! मने बचपन से अपने
घर म अपने चाचा को ऐसी थित म देखा ह। "
संह क दूसरी कहानी- "टील का कप" का ताना-बाना ऐसे लोग क मानिसक थित
को उजागर करते ए बुना गया ह जो इस युग म भी पुराने िवचार क लबादे कोअपने ऊपर ओढ़
रहते ह साथ ही िजनका अह दूसर को तुछ िस करक ही तु? होता ह। अपनी पुी र म क
सहपाठी िदया क घर पर आने पर र म क ममी ने िनन जाित क होने क कारण िदया को चाय
टील क कप म दी तो संकारवान िदया ने कछ नह कहा िकतु र म क ममी क यह बात
िदया क दय म चुभ गई। उसने महसूस िकया िक - "कछ लोग कछ न कह कर भी जैसे सब
कछ कह देते ह। ऐसी लगती ह मानो भीतर झाँक कर एसर उतार रह ह।"
िदया अपनी मेहनत क बल पर जब कलेटर बन कर सहारनपुर म पोटड होती ह तब र म
क ममी एक िदन अपने िकसी काम क िलए कलेटर क पास आती ह और कलेटर क प
म िदया को देखती ह तो चक उठती ह।
िदया ारा र म क हालचाल पूछने पर उहने ने ऐसा जबाव िदया िक िदया एक बार िफर
से सोचने पर िववश हो गई िक - "वातव म कछ लोग क िफतरत कभी नह बदलती चाह जो
भी हो जाए। अहकार दी उनका चेहरा समाज क उस वग का ितिनिधव सा कर रहा था, जहाँ
िसफ पैसे का बोलबाला ह। गुण क, भावना क शायद कोई महा ही नह होती ऐसे लोग
क नजर म।"
"एक मु?ी िज़ंदगी क" संह क तीसरी कहानी ह जो उन लोग क जीवन का िच
उप थत कर रही ह जो िफमी दुिनया क चकाचध म अपना जीवन बबाद कर लेते ह। इस
कहानी क 'वह' भी िफ़मी दुिनया क चकाचध से आकिषत होकर भटकन क अँधेर गत म
िगर जाने क बाद पाँच साल म पहली बार िकसी ऐसे पुष से िमली िजसे उसक देह क भूख
नह थी। उसने पुष ारा िदए गए पय क िलफ़ाफ़ को वापस कर िदया - "नह, आज नह
रख सकती, आज तुहार साथ गुज़ारी इस शाम म मने एक मु?ी िज़ंदगी को जी िलयाs एहसास
आ िक म भी एक इसान मशीन नह।"
ममता यागी ने संह क चौथी कहानी- "पारजात क महक" म िक?र जाित क जीवन पर
अपनी लेखनी चलाई ह। खुसरो, ियकिलंगी या िक?र नाम से जानी जाने वाली यह जाित बे
क जम पर, िववाह अवसर पर या ऐसे ही ?शी क अवसर पर अपने आप आकर उप थत हो
जाती ह जो दोन हाथ से ताली बजाते ए अपना नेग माँगती ह। कछ लोग उनको कछ दे देते ह
तो अिधकांश लोग दुकारते ए थोड़ा बत देकर उनपर एहसान सा करते ह। इह िकर पर
कलम चलाई ह िवदुषी ममता यागी ने।
शािलनी िवदेश से अपने भाई क शादी म भारत आई ह। िकर क आ जाने पर शािलनी क
पुतक समीा
(कहानी संह)
डोर अंजानी सी
समीक : डॉ. िदनेश पाठक 'शिश'
लेखक : ममता यागी
काशक : िशवना काशन, साट
कॉ लैस बेसमट, सीहोर, म
466001, फ़ोन-07562405545
मोबाइल- +91-9806162184
ईमेल- [email protected]
डॉ. िदनेश पाठक शिश

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 202541 40 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2025
तब िलए गए िनणय को बदला नही जा
सकता। इसक िलए मयम माग यह माना
जाता ह िक जो पहले से अनुभवी ह, उनक
मागदशन को मुखता से अपनाया जाए। इस
एक सरल बात को यह उपयास उतने ही
सरल तरीक़ से सामने रखता ह।
हरशंकर क िपता का जो सीदा-सरल
वप बीच-बीच म से उपयास म िदखाया
गया ह, वह कसे मज़बूत होकर न कवल
अपने बेट क िलए, ब क िलए, पोते को
सहारा देने क िलए उप थत होता ह। यहाँ तक
िक अपनी नाितन क वैवािहक जीवन म
आनेवाली कड़वाहट को भी मा अपनी
उप थित से ही, िबना िकसी उपदेश से,
जीवन को जीकर िदखाते ए सुलझा देता ह।
अंितम िसर म िपता क य व का िवतार
अ?ुत ह। वह पा म रहकर भी नायक ह,
वह सब कछ योछावर करने क बाद भी
सवािधक धनी ह और वह िपता क एक
वातिवक परभाषा को जीनेवाला िपता ह
और इस कार क िपता हमार भी हो, यह दबी
छ?पी आकांा इस चर को जानने क बाद
मन म पलती रहती ह।
कल िमलाकर इस उपयास को चार
अलग अलग कोण से अपनी गाथा कहते ए
आप अनुभूत कर सकते ह। ाय परवेश का
सीदा सरल घर, ऊचे िवचार लेिकन सादा
रहन सहन, मेहनत और अनुशासन से पोिषत
एक वातिवक प से उ?त जीवनs इस
जीवन म नायक क माता िपता समेत कछ
िवशेष चर आते ह जो पारदश और संतोषी
जीवन म एक तपवी क समान उभरकर
सामने आते ह।
दूसरा एक सरकारी कायालय का जीवन।
यिद म क िक उपयास का लगभग पतीस से
चालीस ितशत िहसा एक कायालय क
िविवध कमचारय, उनक टबल, चेबर और
किबन म याा करती फाइल, आपसी
राजनीित और सफलता से असफलता क
मय झूलती आकांा क बीच आपको
लेकर जाता ह तो यह अितशयो नही होगी।
लेिकन इस कायालय म भी मानवीय
सरोकार ह, घाघ और वाथ क रग म रगे,
सीिमत परधी म घूमते सपने ह, ईमानदारी का
संघष ह और ाचार का िचरपरिचत तं
ह। आप हरशंकर और उसक साथी
कमचारी, उनक बॉस समेत कायालय क पूर
भूगोल से परिचत रहते ह। िजस बारीक से
नाियका क सौदय का या नायक क शौय का
वणन िकया जाता ह, वही बारीक यहाँ
कायालय क कस से लेकर कमचारय क
भाव भंिगमा और नाते क लेट से लगाकर
मनोभाव तक क वणन म िदखाई देती ह।
तीसरा और महवपूण भाग िजसे यह
उपयास तुत करता ह, वह ह जीवन मूय
क ित आपका समपण, झान और सही
िनणय क आधार पर आपको िमलने वाला
परणाम। उपयास क नायक हरशंकर को
लेकर पहले पहल सहानुभूित जागृत होती ह,
लेिकन अपने िववाह मंडप म जाकर वह
पाठक को आय म डाल देता ह। इसक
आगे इस िफसलन भरी राह पर येन कन
कारण वह पाँव जमाने क पूरी कोिशश
करता िदखाई देता ह। लगता ह जैसे कभी
कभी हम सभी हरशंकर क सोच क आस
पास ही जी रह ह। जो चुनाव नायक अपने
जीवन म करता ह, उसका वैसा ही परणाम
उसे िमलता ह। यहाँ पर लेखक कछ भी
अ?ुत नह बताते लेिकन िजस तरीक़ से
बताते ह, उसक चलते हम वही भूला-िबसरा
राता एक बार िफर िवकप क प म
िदखाई देता ह िजसका अ तव हम भूल चले
थे।
चौथा भाग उपयास म पूरी मज़बूती से
सामने आता ह और वह ह ी चर का
बारीक से िचण। हरशंकर क माताजी हो
या कायालय म वेटर बुनने वाली उपासना
िसंह, पनी रजना का वाथ रवैया हो या
मैडम िपई क क यदता, लेखक ने
येक य व को पूर उपयास म अपनी
परभाषा क अनुप संवाद, ितिया और
हाव भाव िदए ह। मुझे लगता ह िक इस कार
क बारीिकय क ही खोज मुय प से क
जाती ह जब िकसी उपयास को पटकथा क
प म बदलने क ? ?? क जाती ह। अपनी
रोचक वणन शैली क िलए लेखक बधाई क
पा ह।
एक कार से देखा जाए तो 'राता इधर से
भी ह' यह आधुिनक िवचार का ज़मीन से
जुड़ा उपयास ह। इसम दहज क िलए रम म
अडने वाला दामाद भी ह, तो वैचारक मतभेद
क चलते अपने ही ससुराल क पास एक
िकराये का घर लेकर रहने वाली हरशंकर क
बेटी संया भी ह। िजसक सहज और सुलझे
ससुराल प ारा उसक िजी वभाव को
अनदेखा कर न कवल अ य प से
उसक सहायता क जाती ह, आगे जब वह
सहज होकर अपने ससुराल वापस जाना
चाहती ह, तब उसे िकसी भी कार क अपराध
बोध क िबना परवार म सहष शािमल कर
िलया जाता ह।
िजन लड़िकय से नायक संभािवत वधू क
प म िमल चुका होता ह, उनम प, गुण,
िशा या पारवारक पृ?भूिम क चलते कोई
कमी देखने क कारण उनका चयन नही
करता। परतु अपने जीवन म मेहनत और
ितभा क बल पर जब संयोग से वे ही उसक
िलए मददगार क प म सामने आती ह, तब
उदार दय से वह उनक बडपन का समान
ही करता ह।
उपयास अपने अंत म थोड़ा आदश
अवय हो जाता ह यिक परवार क एकाध
सदय का दय परवतन संभव ह, संपूण
परवार ही एक वैचारक धारा को पकड़कर
थलांतर कर ले, इसक िलए कथावतु म
थोड़ा और िवतार िदया जाता तो सहजता आ
पाती।
यह उपयास एक ओर तो ाय सरल
जीवन और सरकारी दतर क माहौल क साथ
सामंजय बैठाते परवार और जीवन शैली क
आस पास घूमता ह, इसी क चलते नवीन
पीढ़ी को इससे जोड़ पाना थोड़ी मेहनत माँगता
ह। वातिवकता तो यह ह िक इस उपयास
को नवीन पीढ़ी ारा ही पढ़ा जाना चािहए और
मेरा तो यह मानना ह िक ाय जीवन और
सरकारी दतर का इतना सािधकार वणन कर
पाना लेखक जैसे अनुभवी य क िलए ही
संभव ह।
000
अ नी कमार दुबे जी एक चिचत, सिय, अिखल भारतीय तर पर पुरकत और िबना
िकसी शोर-शराबे क अपनी लेखन साधना म लगे रहने वाले सािहयकार ह। पिका म
आपक िनरतर उप थित आपको लेकर एक िविश? छिव का िनमाण करती ह। उपयास
'राता इधर से भी ह' हाथ म आता ह, तब आप इस छिव को साथ म लेकर, कछ िविश
अपेा क साथ इसक पाठक मंडली म शािमल होते ह। और शुआती प से गुज़रते ए ही
आप यह जान चुक होते ह, िक यह उपयास अब समा होने तक आपको छोड़ने वाला नही ह।
आज जब रचना क नाम पर हम आधुिनक संकित क आधी अधूरी जानकारी परोसती
रचना को देखते ह, िजनम वै क पर य क नाम पर चकाने क कोिशशे यादा होती ह,
ऐसे म यह सीधा सरल सा उपयास कभी आपको बैलगाड़ी क मीठ िहचकोले भी देता ह, तो
गोबर से िलपे पुते आँगन म नंगे पाँव चलने का जुड़ाव दान करता ह।
कई बार यह भी लगता ह िक एक सरल सा हरशंकर, उसक सीदे-सादे माता-िपता, मयादा
म बँधे उसक मामाजी और ाय सरल जीवन क रीित-रवाज़ िनभाते ये िम?ी से जुड़ लोग इस
उपयास पी संहालय म से हम ताक रह ह। इनक अ तव क जो सामािजक दीप ह, उनम
मानवीयता का तेल चुकने लगा ह और वे बड़ी आस लगाए ह हम पाठक से, िक उनक जीवन
को, जो िक भारत का असली चेहरा ह, हम अपने साथ जीते ए हाथ थामकर चलते रह।
हरशंकर क िपता का सादा सरल य व, बेट क सरकारी नौकरी लगने से पहले आए
ए रते क ित आह, जीवन का अनुभव और बेट क ?शी को लेकर सरल मन से िकया
गया याग। कई बार उनक कही ई बात सू य जैसी लगती ह। इस उपयास क एक
ख़ािसयत और भी ह िक, जीने क िलए जो आवयक तव हमने इन िदन उपेा क टोकरी म
डाल रखे ह, वे भरपूर माा म और बार बार सामने आते ह। िन?ा, समपण, मयादा, सादी सरल
अपेाएँ और छोटी-छोटी ?िशयाँs
सरल से संग िजनक िलए आज का पाठक वातव म तरस जाता ह, उपयास म यहाँ-वहाँ
िबखर िमलते ह। उदाहरण क िलए, बेटा हरशंकर िववाह क िलए तैयार हो गया ह और उसक
मामाजी आगे का काम देखने क िलए घर आ गए ह। माँ ने आज खीर पूड़ी बनाई ह। बेट क
िटिफन म भी खीर पूड़ी से शबू और खुिशयाँ िबखर रही ह और घर म जीजा और साले ने भी
छककर खाया ह। कल िमलाकर आज माँ ?ब ?श ह।
अब यह संग या कछ नही कहता! यह माँ कोई हीर जड़ा आभूषण पाकर, िवदेश म
छ याँ मनाने क िटिकट पाकर या अपनी भौितक संप?ता का दशन कर ?श होने वाली माँ
नही ह। बेट का िववाह क िलए तैयार होना तो उसक अपने जीवन क ?शी ह, घरवाल का
वािद भोजन से तृ होना भी उनक अपनी भौितक ?शी ह। लेिकन माँ यहाँ दूसर को ?श
करते ए अपने यन से ?श ह और इसे पढ़ते ए पाठक तक भी खीर और माँ क क य क
अ य िमठास अवय प चती ह।
यह उपयास एक सधा और मीठा अनुभव देते ए, षडरस अ? नेवै म से दूसर रस क
ओर काफ समय बाद मुड़ता ह। आय होता ह िक एक सरकारी नौकरी म लगा आ य
यिद िववाह करना चाहता ह और चार पाँच थान पर उसे लड़क देखने का काय म करना ह,
तब इसे इतना िवतार देने क या आवयकता ह। पाठक भी असमंजस म होते ह िक जब
िववाह एक से ही होना ह, तब घर बार, नाते रतेदार, घर का पूरा भूगोल इयािद और लड़क
का सौदय समेत उसक िशा इयािद का िवतारत वप सम य रखा जा रहा ह।
लेिकन उपयास का अंितम िसरा एक बार िफर से हम वह सब कछ याद िदला देता ह और
ामीण पृभूिम और मानिसकता का ितिनिधव करता आ यह उपयास वैचारक ऊचाई पर
प चकर हम हमारी ही सोच को चुनौती देता आ तीत होता ह।
हम सभी जीवन म अपनी ाथिमकता क आधार पर िनणय लेते ह। िवडबना यह होती ह
िक जब िनणय क अवथा होती ह, तब परपता नह होती और जब परपता आ जाती ह
पुतक समीा
(उपयास)
राता इधर से भी ह
समीक : अंतरा करवड़
लेखक : अ नीकमार दुबे
काशक : इक काशन, यागराज
अंतरा करवड़,
अनुविन 117, ीनगर ए टशन, इदौर
452018 म..
मोबाइल- 919752540202
ईमेल- [email protected]

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तब िलए गए िनणय को बदला नही जा
सकता। इसक िलए मयम माग यह माना
जाता ह िक जो पहले से अनुभवी ह, उनक
मागदशन को मुखता से अपनाया जाए। इस
एक सरल बात को यह उपयास उतने ही
सरल तरीक़ से सामने रखता ह।
हरशंकर क िपता का जो सीदा-सरल
वप बीच-बीच म से उपयास म िदखाया
गया ह, वह कसे मज़बूत होकर न कवल
अपने बेट क िलए, ब क िलए, पोते को
सहारा देने क िलए उप थत होता ह। यहाँ तक
िक अपनी नाितन क वैवािहक जीवन म
आनेवाली कड़वाहट को भी मा अपनी
उप थित से ही, िबना िकसी उपदेश से,
जीवन को जीकर िदखाते ए सुलझा देता ह।
अंितम िसर म िपता क य व का िवतार
अ?ुत ह। वह पा म रहकर भी नायक ह,
वह सब कछ योछावर करने क बाद भी
सवािधक धनी ह और वह िपता क एक
वातिवक परभाषा को जीनेवाला िपता ह
और इस कार क िपता हमार भी हो, यह दबी
छ?पी आकांा इस चर को जानने क बाद
मन म पलती रहती ह।
कल िमलाकर इस उपयास को चार
अलग अलग कोण से अपनी गाथा कहते ए
आप अनुभूत कर सकते ह। ाय परवेश का
सीदा सरल घर, ऊचे िवचार लेिकन सादा
रहन सहन, मेहनत और अनुशासन से पोिषत
एक वातिवक प से उ?त जीवनs इस
जीवन म नायक क माता िपता समेत कछ
िवशेष चर आते ह जो पारदश और संतोषी
जीवन म एक तपवी क समान उभरकर
सामने आते ह।
दूसरा एक सरकारी कायालय का जीवन।
यिद म क िक उपयास का लगभग पतीस से
चालीस ितशत िहसा एक कायालय क
िविवध कमचारय, उनक टबल, चेबर और
किबन म याा करती फाइल, आपसी
राजनीित और सफलता से असफलता क
मय झूलती आकांा क बीच आपको
लेकर जाता ह तो यह अितशयो नही होगी।
लेिकन इस कायालय म भी मानवीय
सरोकार ह, घाघ और वाथ क रग म रगे,
सीिमत परधी म घूमते सपने ह, ईमानदारी का
संघष ह और ाचार का िचरपरिचत तं
ह। आप हरशंकर और उसक साथी
कमचारी, उनक बॉस समेत कायालय क पूर
भूगोल से परिचत रहते ह। िजस बारीक से
नाियका क सौदय का या नायक क शौय का
वणन िकया जाता ह, वही बारीक यहाँ
कायालय क कस से लेकर कमचारय क
भाव भंिगमा और नाते क लेट से लगाकर
मनोभाव तक क वणन म िदखाई देती ह।
तीसरा और महवपूण भाग िजसे यह
उपयास तुत करता ह, वह ह जीवन मूय
क ित आपका समपण, झान और सही
िनणय क आधार पर आपको िमलने वाला
परणाम। उपयास क नायक हरशंकर को
लेकर पहले पहल सहानुभूित जागृत होती ह,
लेिकन अपने िववाह मंडप म जाकर वह
पाठक को आय म डाल देता ह। इसक
आगे इस िफसलन भरी राह पर येन कन
कारण वह पाँव जमाने क पूरी कोिशश
करता िदखाई देता ह। लगता ह जैसे कभी
कभी हम सभी हरशंकर क सोच क आस
पास ही जी रह ह। जो चुनाव नायक अपने
जीवन म करता ह, उसका वैसा ही परणाम
उसे िमलता ह। यहाँ पर लेखक कछ भी
अ?ुत नह बताते लेिकन िजस तरीक़ से
बताते ह, उसक चलते हम वही भूला-िबसरा
राता एक बार िफर िवकप क प म
िदखाई देता ह िजसका अ तव हम भूल चले
थे।
चौथा भाग उपयास म पूरी मज़बूती से
सामने आता ह और वह ह ी चर का
बारीक से िचण। हरशंकर क माताजी हो
या कायालय म वेटर बुनने वाली उपासना
िसंह, पनी रजना का वाथ रवैया हो या
मैडम िपई क क यदता, लेखक ने
येक य व को पूर उपयास म अपनी
परभाषा क अनुप संवाद, ितिया और
हाव भाव िदए ह। मुझे लगता ह िक इस कार
क बारीिकय क ही खोज मुय प से क
जाती ह जब िकसी उपयास को पटकथा क
प म बदलने क ? ?? क जाती ह। अपनी
रोचक वणन शैली क िलए लेखक बधाई क
पा ह।
एक कार से देखा जाए तो 'राता इधर से
भी ह' यह आधुिनक िवचार का ज़मीन से
जुड़ा उपयास ह। इसम दहज क िलए रम म
अडने वाला दामाद भी ह, तो वैचारक मतभेद
क चलते अपने ही ससुराल क पास एक
िकराये का घर लेकर रहने वाली हरशंकर क
बेटी संया भी ह। िजसक सहज और सुलझे
ससुराल प ारा उसक िजी वभाव को
अनदेखा कर न कवल अ य प से
उसक सहायता क जाती ह, आगे जब वह
सहज होकर अपने ससुराल वापस जाना
चाहती ह, तब उसे िकसी भी कार क अपराध
बोध क िबना परवार म सहष शािमल कर
िलया जाता ह।
िजन लड़िकय से नायक संभािवत वधू क
प म िमल चुका होता ह, उनम प, गुण,
िशा या पारवारक पृ?भूिम क चलते कोई
कमी देखने क कारण उनका चयन नही
करता। परतु अपने जीवन म मेहनत और
ितभा क बल पर जब संयोग से वे ही उसक
िलए मददगार क प म सामने आती ह, तब
उदार दय से वह उनक बडपन का समान
ही करता ह।
उपयास अपने अंत म थोड़ा आदश
अवय हो जाता ह यिक परवार क एकाध
सदय का दय परवतन संभव ह, संपूण
परवार ही एक वैचारक धारा को पकड़कर
थलांतर कर ले, इसक िलए कथावतु म
थोड़ा और िवतार िदया जाता तो सहजता आ
पाती।
यह उपयास एक ओर तो ाय सरल
जीवन और सरकारी दतर क माहौल क साथ
सामंजय बैठाते परवार और जीवन शैली क
आस पास घूमता ह, इसी क चलते नवीन
पीढ़ी को इससे जोड़ पाना थोड़ी मेहनत माँगता
ह। वातिवकता तो यह ह िक इस उपयास
को नवीन पीढ़ी ारा ही पढ़ा जाना चािहए और
मेरा तो यह मानना ह िक ाय जीवन और
सरकारी दतर का इतना सािधकार वणन कर
पाना लेखक जैसे अनुभवी य क िलए ही
संभव ह।
000
अ नी कमार दुबे जी एक चिचत, सिय, अिखल भारतीय तर पर पुरकत और िबना
िकसी शोर-शराबे क अपनी लेखन साधना म लगे रहने वाले सािहयकार ह। पिका म
आपक िनरतर उप थित आपको लेकर एक िविश? छिव का िनमाण करती ह। उपयास
'राता इधर से भी ह' हाथ म आता ह, तब आप इस छिव को साथ म लेकर, कछ िविश
अपेा क साथ इसक पाठक मंडली म शािमल होते ह। और शुआती प से गुज़रते ए ही
आप यह जान चुक होते ह, िक यह उपयास अब समा होने तक आपको छोड़ने वाला नही ह।
आज जब रचना क नाम पर हम आधुिनक संकित क आधी अधूरी जानकारी परोसती
रचना को देखते ह, िजनम वै क पर य क नाम पर चकाने क कोिशशे यादा होती ह,
ऐसे म यह सीधा सरल सा उपयास कभी आपको बैलगाड़ी क मीठ िहचकोले भी देता ह, तो
गोबर से िलपे पुते आँगन म नंगे पाँव चलने का जुड़ाव दान करता ह।
कई बार यह भी लगता ह िक एक सरल सा हरशंकर, उसक सीदे-सादे माता-िपता, मयादा
म बँधे उसक मामाजी और ाय सरल जीवन क रीित-रवाज़ िनभाते ये िम?ी से जुड़ लोग इस
उपयास पी संहालय म से हम ताक रह ह। इनक अ तव क जो सामािजक दीप ह, उनम
मानवीयता का तेल चुकने लगा ह और वे बड़ी आस लगाए ह हम पाठक से, िक उनक जीवन
को, जो िक भारत का असली चेहरा ह, हम अपने साथ जीते ए हाथ थामकर चलते रह।
हरशंकर क िपता का सादा सरल य व, बेट क सरकारी नौकरी लगने से पहले आए
ए रते क ित आह, जीवन का अनुभव और बेट क ?शी को लेकर सरल मन से िकया
गया याग। कई बार उनक कही ई बात सू य जैसी लगती ह। इस उपयास क एक
ख़ािसयत और भी ह िक, जीने क िलए जो आवयक तव हमने इन िदन उपेा क टोकरी म
डाल रखे ह, वे भरपूर माा म और बार बार सामने आते ह। िन?ा, समपण, मयादा, सादी सरल
अपेाएँ और छोटी-छोटी ?िशयाँs
सरल से संग िजनक िलए आज का पाठक वातव म तरस जाता ह, उपयास म यहाँ-वहाँ
िबखर िमलते ह। उदाहरण क िलए, बेटा हरशंकर िववाह क िलए तैयार हो गया ह और उसक
मामाजी आगे का काम देखने क िलए घर आ गए ह। माँ ने आज खीर पूड़ी बनाई ह। बेट क
िटिफन म भी खीर पूड़ी से शबू और खुिशयाँ िबखर रही ह और घर म जीजा और साले ने भी
छककर खाया ह। कल िमलाकर आज माँ ?ब ?श ह।
अब यह संग या कछ नही कहता! यह माँ कोई हीर जड़ा आभूषण पाकर, िवदेश म
छ याँ मनाने क िटिकट पाकर या अपनी भौितक संप?ता का दशन कर ?श होने वाली माँ
नही ह। बेट का िववाह क िलए तैयार होना तो उसक अपने जीवन क ?शी ह, घरवाल का
वािद भोजन से तृ होना भी उनक अपनी भौितक ?शी ह। लेिकन माँ यहाँ दूसर को ?श
करते ए अपने यन से ?श ह और इसे पढ़ते ए पाठक तक भी खीर और माँ क क य क
अ य िमठास अवय प चती ह।
यह उपयास एक सधा और मीठा अनुभव देते ए, षडरस अ? नेवै म से दूसर रस क
ओर काफ समय बाद मुड़ता ह। आय होता ह िक एक सरकारी नौकरी म लगा आ य
यिद िववाह करना चाहता ह और चार पाँच थान पर उसे लड़क देखने का काय म करना ह,
तब इसे इतना िवतार देने क या आवयकता ह। पाठक भी असमंजस म होते ह िक जब
िववाह एक से ही होना ह, तब घर बार, नाते रतेदार, घर का पूरा भूगोल इयािद और लड़क
का सौदय समेत उसक िशा इयािद का िवतारत वप सम य रखा जा रहा ह।
लेिकन उपयास का अंितम िसरा एक बार िफर से हम वह सब कछ याद िदला देता ह और
ामीण पृभूिम और मानिसकता का ितिनिधव करता आ यह उपयास वैचारक ऊचाई पर
प चकर हम हमारी ही सोच को चुनौती देता आ तीत होता ह।
हम सभी जीवन म अपनी ाथिमकता क आधार पर िनणय लेते ह। िवडबना यह होती ह
िक जब िनणय क अवथा होती ह, तब परपता नह होती और जब परपता आ जाती ह
पुतक समीा
(उपयास)
राता इधर से भी ह
समीक : अंतरा करवड़
लेखक : अ नीकमार दुबे
काशक : इक काशन, यागराज
अंतरा करवड़,
अनुविन 117, ीनगर ए टशन, इदौर
452018 म..
मोबाइल- 919752540202
ईमेल- [email protected]

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 202543 42 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2025
कल पड़ोसी लुट गया अख़बार से मालूम

शहरीकरण से गाँव वािसय क िवथापन
व रोज़गार क समया जुड़ी ई ह। गाँव क
ज़मीन पर दवाब कम करने क िलए शहर म
रोज़गार क समुिचत यवथा क जानी
चािहए वरना अफ़रातफ़री मच जाएगी। अगर
िवथािपत को रोज़गार नह िमलेगा तो वो
और उनक परवार दरबदर हो जाएँगे;
भुखमरी, बेरोज़गारी व कपोषण क िशकार हो
जाएँगे। देिखए ये शेर-
शहर क भीड़ म न कह खो गए ह वे
जो गाँव से गए थे कमाने क वाते
इसी का दूसरा प ह गाँव से, अपनी
िम?ी से रता ट?ट जानाs अपने लोग भी
िवथािपत को वापस क़बूल करने म
िहचिकचाते ह- यही िज़ंदा रहने क
ज?ोजहद ह, िवथापन क समया- घटते
गाँव, बढ़ते शहर और गाँव से ट?टते संबंध- ये
शेर देिखए-
आिधयाँ पुरज़ोर अपनी कोिशश म
मुतला ह
रब ज़मीन से जड़ का राता न ट?ट जाए
िपछले कछ साल से लोकतं क कछ
मूल धारणा पर िसयासी हार तेज़ हो गए
ह। लोकतं म भी सरकार आम जन क
मानवािधकार और दूसरी वतंता पर कई
कार क अंकश लगाना चाह रही ह तथा
अिभय क वतंता से तो हमारी सरकार
भी दुखी ह- ये सब लोकतं क िलए लोकतं
क नाम पर हो रहा ह - ये अशआर देिखए -
ऐ लोकतं ! तेर चमकार को नमन
जनता ही िमले तुझको िनशाने क वाते
राहत क नाम पर कछ बाँट कर हमदिदयाँ
तं इतराया आ ह और हम ख़ामोश ह
लोकतं ने लोक िकनार लगा िदया
तं सदा करता मनमानी, हय रबा !
बड़ी िवडबना ये ह िक िजस जनता क
मतािधकार से नेता सा ा करते ह उसी
अवाम को कचल देना चाहते ह। वो हर क़ानून
बदल देना चाहते ह जो जनता को श याँ
दान करता ह- बस जनता मूक झुड म
बदल जाए और सोचने-समझने क कोिशश
भी ना कर। पर शायर याद िदलाता ह िक यही
अवाम अथाह हौसल से भरा होता ह बस
संकप और इरादा मज़बूत होना चािहए।
िजनका इरादा पका होगा उनक अपने गंतय
पर प चने से कोई बाधा नह रोक सकती और
जो य ज़रा सी किठनाइय से घबरा जाते
ह वो कभी अपनी मंिज़ल या ल?य पा ही नह
सकते - देिखए ये शेर -
परदे वे कभी ऊची उड़ाने भर नह सकते
ज़रा सी धूप से िजनका इरादा ट?ट जाता ह
अशोक 'अंजुम' 'ईजी चेयर आइडिलम'
क सत िख़लाफ़ ह। वो चाह य हो या
देश, जहाँ कोई 'सस ऑफ अज सी' नह ह,
अपने क य क ित जागकता नह, अपने
दाियव को करने क यता नह वहाँ कोई
ल?य ?? नह िकए जा सकते। य हो या
अवाम, बस समय यथ न कर और काम क
ित सजगता िदखाएँ तो य तरक़ करते
ह और जब य उ?ित करते ह तो सपूण
देश उ?ित क िशखर पर प चता ह। समय
क बबादी कदािप न कर - देिखए ये शेर-
ये करना ह, वो करना ह सोचा करते ह
यूँ ही साँस-साँस हम अपनी जाया करते ह
हमार देश म बूढ़ भी ह और बूढ़ होते लोग
क संया उरोर बढ़ रही ह। उनक
देखभाल करना हमारा और सरकार का
दाियव ह। अंजुम जी क एक ?बसूरत
मुसलसल ग़ज़ल से बस एक शेर िलया ह जो
बु?गK क ित हम अपनी संवेदनशीलता क
ित सदा सचेत करता रहगा -
एक बूढ़ िजम से लाख दुआएँ झर रही ह
एक नहा हाथ मुसकाकर दवाई दे रहा ह
पहले हम अपनी ज़रत क अनुसार
बाज़ार से ख़रीदारी करते थे, अब बाज़ार
(यािन कपिनय) ने ऐसे-ऐसे उपाद बनाए ह
िजहने वािहश क अबार लगा िदये ह। ये
भी एक कार का बाज़ारी जाल ह िजसम पूरी
दुिनया फस चुक ह - देिखए ये दो शेर -
ये भी लूँ, हाँ ये भी लूँ, हाँ ये भी लूँ
बस यही तकरार ह बाज़ार म
िचिड़याँ ह बाज़ार म
जाल क नीचे दाने ह
दूसरी िवडबना ह िक ज़रत ने बड़ से
बड़ व योय य य को भी 'कॉ ोमाइज़'
यािन कई कार क समझौते करने पर बाय
कर िदया ह। यहाँ तक िक जो महवपूण
संवैधािनक पद पर आसीन ह, वो अपनी
आँख मूँद कर, और कड़ी प लक
आलोचना को दरिकनार करते ए बड़ी
बेशम से समझौते कर लेते ह - ये शेर देिखए
नज़र नीची न कर 'अंजुम' ज़रा भी
कभी सब क ज़रत बोलती ह
एक और सामािजक िवूपता देिखए-
जब कोई शोहरत क बुलंदी पर प चता ह तो
वयं अपन से फ़ासले बढ़ते ह तथा दुिनया भी
चढ़ते सूरज को सलाम करने लग जाता ह। ये
सामािजक यवहार सावभौिमक ह - ये शेर
देिखए -
उठा लेती ह हाथ हाथ दुिनया
बुलंदी से यूँ शोहरत बोलती ह
राजनेता और राजनीित पर अंजुम क ये
तीन शेर चुने ह मने जो यंयामक शैली म
आज क नेता क नैितकता पर तीखा हार
करते ह। आजकल दलबदलू नेता क
चाँदी ह और िपछले 10 साल म तो दलबदलू
नेता क बाढ़-सी आ गई ह। वतमान
सरकार अपनी वॉिशंग मशीन म ाचार
व यिभचारय को धो-धो कर अपनी पाट म
महवपूण पद पर िनयु कर रही ह- देिखए
शाइर क यथा और यंय-
तुम दलबदलू यार, तुहार जलवे ह
सा म हर बार, तुहार जलवे ह
मरिघे थे, अब तुम सेहत मंद ए
लोकतं बीमार, तुहार जलवे ह
सचमुच म ही घाघ राजनेता हो तुम
कोई हो सरकार तुहार जलवे ह
बालवप राही ने अशोक 'अंजुम' क
बेहतरीन ग़ज़ल को इस संकलन म समािहत
िकया ह। इन ग़ज़ल म, ग़ज़ल क िशप का
बत यान रखा गया ह और गेयता व
शेरयत कय क साथ-साथ चलते ह। कह-
कह यथाथ क बायता शेर म सपाटबयानी
व िचामकता ले आती ह, िजसे अंजुम
अपनी कलामक लेखन शैली से िनभाते ह। ये
संह पठनीय व संहणीय ह।
000
इस संकलन ''ग़ज़लकार अंशोक 'अंजुम' - संपादन/संचयन बालवप राही, म
सपादक राही जी ने अशोक अंजुम क 101 ग़ज़ल चुनी- 94 ग़ज़ल उनक संकलन से, व 6
उनक कोरोना काल क ग़ज़ल से। बालवप राही वतमान युग क (िलिवंग लेजड) जीवंत
िदगज ग़ज़लकार ह िजनक चुनाव को उक मानना ही होगा। इसम मुझे तो कोई संशय नह
ह। मने इन 101 ग़ज़ल से कछ अशआर चुने ह। वैसे तो चुनाव करना दुह था।
आज क परवेश म सबसे महवपूण व समसामियक िवषय धमिनरपेता ह। भारत एक
बसांकितक, बधािमक और अनेकानेक िविवधता का देश ह जहाँ धमिनरपेता हमार
संिवधान का मूलमं िजसे हर हाल म क़ायम रखना सरकार समाज व वतं संथा का
दाियव ह - ये ?बसूरत शेर देिखए - 'म मंिदर भी नह जाता, म म जद भी नह जाता
मगर िजस दर पे झुक जाऊ, वो तेरा दर िनकलता ह '।
दूसरी महवपूण बात ह ईर क तटथता पर, धम क वचन पर िजनम नेिकयाँ ही
नेिकयाँ भरी ह और वचन क प म िसखाई जाती ह। संसार क यह िवडबना ह िक हर धम
नेिकयाँ िसखाता ह पर मौला/ ईर/अाह क नाम पर ही इसान एक दूसर का ल बहाने से
चूकता नही, आज भी यह शात सय ह। सार संसार क ये कड़वी साई ह। ये शेर देिखए-
तू िसखाता ह नेिकय का सबक़ दुिनया को
तेर ही नाम से बहता ह य ल मौला
ईर-ईर म लड़ाई को दोन ईर तटथ भाव से देखते ह।
यथाथ म अशोक ज़मीन से जुड़, एक अित संवेदनशील सािहयकार ह और उनक किवव
क प च और स ेषणीयता मानव मन क गहराइय तक जाती ह। अशोक 'अंजुम' क रत
पर कह दो शेर अ?ुत ह - देिखए
'तेर मेर बीच म ऐसी दूरी ह
म तेरा रोज़ बताना पड़ता ह '
रत म कछ जान बचाए रखने को
सा होकर भी झुक जाना पड़ता ह
कहने का तापय ह िक ख़ामोशी नह, रत म गमाहट क िलए अपनी भावना को
िनरतर य करना पड़ता ह। रत म कोई भी य जजमटल नह हो सकता ना ही िकसी
भी रते या रलेशनिशप को कोई भी 'टकन फार ांटड' ले सकता ह। रत को अनवरत
िनभाना पड़ता ह, परपर संवाद अनवरत चलता रहना चािहए। यह एक सावभौिमक सय ह।
रत पर एक और शेर देिखए जो घर-घर क कहानी ह और ह से महसूस किजए-
खाना-पीना, हसी-िठठोली, सारा कारोबार अलग
जाने या-या कर देती ह आँगन क दीवार अलग
ये शेर सामािजक यवथा का तीक तो ह पर परवार क अलग होने क हक़क़त भी बयाँ
करता ह- परवार अलग होते ह तो िवतार भी पाते ह।
सार संसार म ग़रीब वग क हालात िकसी से छ?पे नह और हमार देश म तो सरकार क दाव
क िवपरीत 84 करोड़ लोग सरकार क 5 िकलो राशन क भीख पर बमु कल तमाम गुज़ारा कर
रह ह। सरकार उनका हक़ ख़ैरात बाँटकर अदा करती लगती ह और आने वाले साल म भी ये
हालात सुधरने वाले नह। शाइर अपनी पीड़ा को इस ?बसूरत शेर म िपरोता ह -
ये जो ख़ैरात ह इसको रहने ही दो
हमको हक़ चािहए मेहरबानी नह
आजकल शहरीकरण क ओर बत ज़ोर िदया जा रहा ह। शाइर प लक पॉिलसी पर
कटा नह करता पर शहर म जो हमारी मानिसकता हो जाती ह, िजतने हम असंवेदनशील हो
जाते ह, वो बु शाइर क नज़र से नह बचता- पड़ौिसय को पड़ौसी का पता नह होता-
देिखए ये शेर- रात आधी देखते टी.वी. रह, िफर सो गए
पुतक समीा
(ग़ज़ल संह)
ग़ज़लकार अशोक
'अंजुम'
समीक : डॉ. िवनोद काश गुा
'शलभ'
लेखक : अशोक अंजुम
काशक : सागर काशन, िदी
डॉ. िवनोद काश गुा 'शलभ'
गु ाम- 122101
हरयाणा
मोबाइल- 9811169069
ईमेल- [email protected]

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 202543 42 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2025
कल पड़ोसी लुट गया अख़बार से मालूम

शहरीकरण से गाँव वािसय क िवथापन
व रोज़गार क समया जुड़ी ई ह। गाँव क
ज़मीन पर दवाब कम करने क िलए शहर म
रोज़गार क समुिचत यवथा क जानी
चािहए वरना अफ़रातफ़री मच जाएगी। अगर
िवथािपत को रोज़गार नह िमलेगा तो वो
और उनक परवार दरबदर हो जाएँगे;
भुखमरी, बेरोज़गारी व कपोषण क िशकार हो
जाएँगे। देिखए ये शेर-
शहर क भीड़ म न कह खो गए ह वे
जो गाँव से गए थे कमाने क वाते
इसी का दूसरा प ह गाँव से, अपनी
िम?ी से रता ट?ट जानाs अपने लोग भी
िवथािपत को वापस क़बूल करने म
िहचिकचाते ह- यही िज़ंदा रहने क
ज?ोजहद ह, िवथापन क समया- घटते
गाँव, बढ़ते शहर और गाँव से ट?टते संबंध- ये
शेर देिखए-
आिधयाँ पुरज़ोर अपनी कोिशश म
मुतला ह
रब ज़मीन से जड़ का राता न ट?ट जाए
िपछले कछ साल से लोकतं क कछ
मूल धारणा पर िसयासी हार तेज़ हो गए
ह। लोकतं म भी सरकार आम जन क
मानवािधकार और दूसरी वतंता पर कई
कार क अंकश लगाना चाह रही ह तथा
अिभय क वतंता से तो हमारी सरकार
भी दुखी ह- ये सब लोकतं क िलए लोकतं
क नाम पर हो रहा ह - ये अशआर देिखए -
ऐ लोकतं ! तेर चमकार को नमन
जनता ही िमले तुझको िनशाने क वाते
राहत क नाम पर कछ बाँट कर हमदिदयाँ
तं इतराया आ ह और हम ख़ामोश ह
लोकतं ने लोक िकनार लगा िदया
तं सदा करता मनमानी, हय रबा !
बड़ी िवडबना ये ह िक िजस जनता क
मतािधकार से नेता सा ा करते ह उसी
अवाम को कचल देना चाहते ह। वो हर क़ानून
बदल देना चाहते ह जो जनता को श याँ
दान करता ह- बस जनता मूक झुड म
बदल जाए और सोचने-समझने क कोिशश
भी ना कर। पर शायर याद िदलाता ह िक यही
अवाम अथाह हौसल से भरा होता ह बस
संकप और इरादा मज़बूत होना चािहए।
िजनका इरादा पका होगा उनक अपने गंतय
पर प चने से कोई बाधा नह रोक सकती और
जो य ज़रा सी किठनाइय से घबरा जाते
ह वो कभी अपनी मंिज़ल या ल?य पा ही नह
सकते - देिखए ये शेर -
परदे वे कभी ऊची उड़ाने भर नह सकते
ज़रा सी धूप से िजनका इरादा ट?ट जाता ह
अशोक 'अंजुम' 'ईजी चेयर आइडिलम'
क सत िख़लाफ़ ह। वो चाह य हो या
देश, जहाँ कोई 'सस ऑफ अज सी' नह ह,
अपने क य क ित जागकता नह, अपने
दाियव को करने क यता नह वहाँ कोई
ल?य ?? नह िकए जा सकते। य हो या
अवाम, बस समय यथ न कर और काम क
ित सजगता िदखाएँ तो य तरक़ करते
ह और जब य उ?ित करते ह तो सपूण
देश उ?ित क िशखर पर प चता ह। समय
क बबादी कदािप न कर - देिखए ये शेर-
ये करना ह, वो करना ह सोचा करते ह
यूँ ही साँस-साँस हम अपनी जाया करते ह
हमार देश म बूढ़ भी ह और बूढ़ होते लोग
क संया उरोर बढ़ रही ह। उनक
देखभाल करना हमारा और सरकार का
दाियव ह। अंजुम जी क एक ?बसूरत
मुसलसल ग़ज़ल से बस एक शेर िलया ह जो
बु?गK क ित हम अपनी संवेदनशीलता क
ित सदा सचेत करता रहगा -
एक बूढ़ िजम से लाख दुआएँ झर रही ह
एक नहा हाथ मुसकाकर दवाई दे रहा ह
पहले हम अपनी ज़रत क अनुसार
बाज़ार से ख़रीदारी करते थे, अब बाज़ार
(यािन कपिनय) ने ऐसे-ऐसे उपाद बनाए ह
िजहने वािहश क अबार लगा िदये ह। ये
भी एक कार का बाज़ारी जाल ह िजसम पूरी
दुिनया फस चुक ह - देिखए ये दो शेर -
ये भी लूँ, हाँ ये भी लूँ, हाँ ये भी लूँ
बस यही तकरार ह बाज़ार म
िचिड़याँ ह बाज़ार म
जाल क नीचे दाने ह
दूसरी िवडबना ह िक ज़रत ने बड़ से
बड़ व योय य य को भी 'कॉ ोमाइज़'
यािन कई कार क समझौते करने पर बाय
कर िदया ह। यहाँ तक िक जो महवपूण
संवैधािनक पद पर आसीन ह, वो अपनी
आँख मूँद कर, और कड़ी प लक
आलोचना को दरिकनार करते ए बड़ी
बेशम से समझौते कर लेते ह - ये शेर देिखए
नज़र नीची न कर 'अंजुम' ज़रा भी
कभी सब क ज़रत बोलती ह
एक और सामािजक िवूपता देिखए-
जब कोई शोहरत क बुलंदी पर प चता ह तो
वयं अपन से फ़ासले बढ़ते ह तथा दुिनया भी
चढ़ते सूरज को सलाम करने लग जाता ह। ये
सामािजक यवहार सावभौिमक ह - ये शेर
देिखए -
उठा लेती ह हाथ हाथ दुिनया
बुलंदी से यूँ शोहरत बोलती ह
राजनेता और राजनीित पर अंजुम क ये
तीन शेर चुने ह मने जो यंयामक शैली म
आज क नेता क नैितकता पर तीखा हार
करते ह। आजकल दलबदलू नेता क
चाँदी ह और िपछले 10 साल म तो दलबदलू
नेता क बाढ़-सी आ गई ह। वतमान
सरकार अपनी वॉिशंग मशीन म ाचार
व यिभचारय को धो-धो कर अपनी पाट म
महवपूण पद पर िनयु कर रही ह- देिखए
शाइर क यथा और यंय-
तुम दलबदलू यार, तुहार जलवे ह
सा म हर बार, तुहार जलवे ह
मरिघे थे, अब तुम सेहत मंद ए
लोकतं बीमार, तुहार जलवे ह
सचमुच म ही घाघ राजनेता हो तुम
कोई हो सरकार तुहार जलवे ह
बालवप राही ने अशोक 'अंजुम' क
बेहतरीन ग़ज़ल को इस संकलन म समािहत
िकया ह। इन ग़ज़ल म, ग़ज़ल क िशप का
बत यान रखा गया ह और गेयता व
शेरयत कय क साथ-साथ चलते ह। कह-
कह यथाथ क बायता शेर म सपाटबयानी
व िचामकता ले आती ह, िजसे अंजुम
अपनी कलामक लेखन शैली से िनभाते ह। ये
संह पठनीय व संहणीय ह।
000
इस संकलन ''ग़ज़लकार अंशोक 'अंजुम' - संपादन/संचयन बालवप राही, म
सपादक राही जी ने अशोक अंजुम क 101 ग़ज़ल चुनी- 94 ग़ज़ल उनक संकलन से, व 6
उनक कोरोना काल क ग़ज़ल से। बालवप राही वतमान युग क (िलिवंग लेजड) जीवंत
िदगज ग़ज़लकार ह िजनक चुनाव को उक मानना ही होगा। इसम मुझे तो कोई संशय नह
ह। मने इन 101 ग़ज़ल से कछ अशआर चुने ह। वैसे तो चुनाव करना दुह था।
आज क परवेश म सबसे महवपूण व समसामियक िवषय धमिनरपेता ह। भारत एक
बसांकितक, बधािमक और अनेकानेक िविवधता का देश ह जहाँ धमिनरपेता हमार
संिवधान का मूलमं िजसे हर हाल म क़ायम रखना सरकार समाज व वतं संथा का
दाियव ह - ये ?बसूरत शेर देिखए - 'म मंिदर भी नह जाता, म म जद भी नह जाता
मगर िजस दर पे झुक जाऊ, वो तेरा दर िनकलता ह '।
दूसरी महवपूण बात ह ईर क तटथता पर, धम क वचन पर िजनम नेिकयाँ ही
नेिकयाँ भरी ह और वचन क प म िसखाई जाती ह। संसार क यह िवडबना ह िक हर धम
नेिकयाँ िसखाता ह पर मौला/ ईर/अाह क नाम पर ही इसान एक दूसर का ल बहाने से
चूकता नही, आज भी यह शात सय ह। सार संसार क ये कड़वी साई ह। ये शेर देिखए-
तू िसखाता ह नेिकय का सबक़ दुिनया को
तेर ही नाम से बहता ह य ल मौला
ईर-ईर म लड़ाई को दोन ईर तटथ भाव से देखते ह।
यथाथ म अशोक ज़मीन से जुड़, एक अित संवेदनशील सािहयकार ह और उनक किवव
क प च और स ेषणीयता मानव मन क गहराइय तक जाती ह। अशोक 'अंजुम' क रत
पर कह दो शेर अ?ुत ह - देिखए
'तेर मेर बीच म ऐसी दूरी ह
म तेरा रोज़ बताना पड़ता ह '
रत म कछ जान बचाए रखने को
सा होकर भी झुक जाना पड़ता ह
कहने का तापय ह िक ख़ामोशी नह, रत म गमाहट क िलए अपनी भावना को
िनरतर य करना पड़ता ह। रत म कोई भी य जजमटल नह हो सकता ना ही िकसी
भी रते या रलेशनिशप को कोई भी 'टकन फार ांटड' ले सकता ह। रत को अनवरत
िनभाना पड़ता ह, परपर संवाद अनवरत चलता रहना चािहए। यह एक सावभौिमक सय ह।
रत पर एक और शेर देिखए जो घर-घर क कहानी ह और ह से महसूस किजए-
खाना-पीना, हसी-िठठोली, सारा कारोबार अलग
जाने या-या कर देती ह आँगन क दीवार अलग
ये शेर सामािजक यवथा का तीक तो ह पर परवार क अलग होने क हक़क़त भी बयाँ
करता ह- परवार अलग होते ह तो िवतार भी पाते ह।
सार संसार म ग़रीब वग क हालात िकसी से छ?पे नह और हमार देश म तो सरकार क दाव
क िवपरीत 84 करोड़ लोग सरकार क 5 िकलो राशन क भीख पर बमु कल तमाम गुज़ारा कर
रह ह। सरकार उनका हक़ ख़ैरात बाँटकर अदा करती लगती ह और आने वाले साल म भी ये
हालात सुधरने वाले नह। शाइर अपनी पीड़ा को इस ?बसूरत शेर म िपरोता ह -
ये जो ख़ैरात ह इसको रहने ही दो
हमको हक़ चािहए मेहरबानी नह
आजकल शहरीकरण क ओर बत ज़ोर िदया जा रहा ह। शाइर प लक पॉिलसी पर
कटा नह करता पर शहर म जो हमारी मानिसकता हो जाती ह, िजतने हम असंवेदनशील हो
जाते ह, वो बु शाइर क नज़र से नह बचता- पड़ौिसय को पड़ौसी का पता नह होता-
देिखए ये शेर- रात आधी देखते टी.वी. रह, िफर सो गए
पुतक समीा
(ग़ज़ल संह)
ग़ज़लकार अशोक
'अंजुम'
समीक : डॉ. िवनोद काश गुा
'शलभ'
लेखक : अशोक अंजुम
काशक : सागर काशन, िदी
डॉ. िवनोद काश गुा 'शलभ'
गु ाम- 122101
हरयाणा
मोबाइल- 9811169069
ईमेल- [email protected]

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 202545 44 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2025
जो उगलते ह यहाँ आग उगलने दे उह
तू समझदार ह हाथ क ये पथर रख दे
आग से आग कभी बुझती नह ह यार
उठती लपट पे ज़रा स का सागर रख दे
िकतनी बसूरत और ज़री नसीहत ह
इन दो शेर म! हमार घर क झगड़ से लेकर
सांदाियक टकराव तक म यही नसीहत
अगर िज़मेदार लोग नौजवान अथवा भड़क
ए लोग क सामने रख द तो शायद मंज़र
कछ अलग ह।
वतमान पर य क ित एक रचनाकार
का परशान होना लाज़मी ह। यही हाल िशू
शकर का भी ह। उह दुख ह िक हमार
शांितिय समाज म ऐसी पर थितयाँ बन गई
ह िक लोग बेमतलब एक-दूसर क दुमन बने
बैठ ह। हमारा काम हमेशा से आपसी
सामंजय तथा सहयोग से चलता आया ह
लेिकन आज क पर थितय ने आदमी क
मन म आदमी क ित अिवास पैदा कर
िदया ह। हर तरफ एक खौफ़ छा गया ह िक
कब कोई िकसी क साथ अनहोनी कर दे। यह
असुरा क बढ़ती ई भावना हमार आपसी
रत को िनगलने क िलए आतुर ह।
रचनाकार क परशानी का इज़हार देिखए-
कोई सूरत नह िक साँस िमले
गंध नफ़रत क ऐसी छाई ह
आग लगी ह इक बती म,
इक बती म वीराना
चाल मुहबत क धीमी ह,
नफ़रत क रतार बत
वो कौन लोग ह जो बे-वजूद कल क िलए
तमाम श जलाते, तबाह करते ह
हमार भारतीय समाज क लोग म फ़साद
चाह जो करवाता हो लेिकन यह भी सच ह िक
इसे अंजाम तो हम ही यानी एक सामाय
आदमी ही देता ह। इसी सामाय आदमी क
अिववेक भर रवैये से िनराश शायर जनता क
बेव?फ़ाना काम पर उसक भी आलोचना से
संकोच नह करता। हमारी जनता क सोच
और नादािनय पर चोट करता रचनाकार
कहता ह िक
चंद गारतगर क कहने पर
फ कती ह ?द अपना घर जनता
खेल उनका िबसात उनक मगर
जाँ लगाती ह दाँव पर जनता
सच तो ये भी ह सािहबान िक अब
अपने हक़ से ह बेख़बर जनता
शम क बात पर कर ह नाज़
?ब इसाँ क बेहयाई ह
नई नल क नादानी को या किहए
मुहबत कह क कछ भी कर गुज़रते ह
धन, ऐय और प च हमार दौर क िसर
पर चढ़कर ऐसे बोल रह ह िक ग़रीब-वंिचत
और उनक मु?े िकसी क िलए भी मायने नह
रखते। सा उलजुलूल राजनीितक हरकत
और शोशेबाज़ी म यत ह, मीिडया भाँडपने
म और पढ़ा-िलखा, संप? वग खाने-कमाने-
उड़ाने म। ऐसे म ग़रीबी और ग़रीब से जुड़
ज़री सवाल क ओर िकसका ही यान
जाएगा! ऐसे म ज़रतमंद यही सोचता रह
जाता ह िक
आसमाँ तक तो प चते नह म सोचता
हम ग़रीब क सवालात कहाँ जाते ह
अमीर को तो ह हक़ लूटने का और हम
वो इ तयार नह ह िक द दुहाई भी
सवाल पूछना इस दौर म गुनाह आ
लगाव िज़ंदगी से ह तो िबन सवाल क
चल
िशू शकर साहब क आलोचना का
दायरा थोड़ा िवतृत ह। एक तरफ जहाँ वे
सा-यवथा क ग़ैर ज़री काम पर सवाल
उठाते ह, वह सामाय जनता को अपना
िववेक इतेमाल न करने क िलए लताड़ते ह।
इधर इशार-इशार म वे संकिचत मानिसकता
क िलए एक साथ कई तरह क लोग को
िनशाने पर लेते ह। अछा यह देखकर लगता
ह िक वे दोन तरफ क लोग क 'छोटी सोच'
पर हार करते ह। एक अछा रचनाकार वही
होता ह, जो गितशील िवचारधारा क साथ
संतुलन को भी बनाए रखे तथा ?द िकसी
तरफ झुक िबना तटथता क साथ अपने
सािह यक दाियव का िनवहन करता रह।
ज़माना चाँद को छ? आया ह लेिकन
तू अब भी जुगनु क दाताँ तक ह
वत सिदय का सफ़र तय कर चुका
हम रवायत पर ही लड़ते रह गए
पयावरण हमार समय का
अितसंवेदनशील िवषय ह। आज का हर
सजग रचनाकार पयावरण क िवनाश क ित
पाठक का यान आक करता ही ह। यह
ज़री भी ह। ग़ज़ल को कछ ही िवषय तक
सीिमत रखने क पधर उदू ग़ज़ल क
पैरोकार म भी अब यह चेतना देखी जा रही
ह। बत अछी बात ह यूँिक पयावरण हमार
जीवन का एक बत ज़री घटक ह और
इसक ित सचेत होना हम सबक िलए
िहतकर ह। िशू शकर क ग़ज़ल म
पयावरण िवमश क कछ अछ शेर िमलते ह-
आबो-हवा वो सूरज अब त ? हो चले ह
कदरत से हमने देखो रते िबगाड़ डाले
आरी बत ही तेज़ थी लालच क इसिलए
आया जो दरिमयान वही पेड़ कट गया
कदरत कहाँ बनाए जगह अपने वाते
जंगल तमाम काट क इसान डट गया
इसी तरह ग़ज़ल क परपरा से इतर इस
संह म बत-सी उमीद जगात ई कछ
अलग चीज़ देखने को िमलती ह। एक जगह
कोरोना काल क भयावहता को म?ेनज़र
रख, रचनाकार इसानी िफ़तरत पर कटा
करते ए एक बड़ा सा शेर कहता ह-
बेचारगी, वो ट?टती साँस, तड़पती जान
गुज़रगा जब ये दौर सभी भूल जाएँगे
एक और उेखनीय शेर इस संह म
िमलता ह, जो ज़रतमंद क सहायता से
लेकर नेदान जैसे ासंिगक िवषय तक अपने
भाव का िवतार रखता ह-
बाद तेर कोई और देखे जहाँ
एक माजूर को कर अता रोशनी
इस कार कहा जा सकता ह िक 'िबखर
ए लहात' संह उदू क ग़ज़लगोई म एक
नई करवट क िलए बेताब जान पड़ता ह।
इसक रचनाकार िशू शकर साहब
पारपरकता एवं आधुिनकता का बड़ा अछा
सामंजय कर एक नई तरह क परपरा को
आयाम देने म अपनी भूिमका अदा करते
िदखते ह। अपनी िवषयवतु, लेखन शैली,
भाषा आिद सभी पहलु म यह संह अपने
आपको खरा सािबत करता ह।
000
िशू शकर उदू क नई पीढ़ी क उदा शायर म ह। िपछले दस वष से म इह देखता-पढ़ता
आ रहा । इस बीच इनक तीन ग़ज़ल संह कािशत ए ह- 'िज़ंदगी क साथ चलकर देिखए',
'उभर का जागना' और 'िबखर ए लहात'। 'िबखर ए लहात' इनका हािलया कािशत
संह ह, जो इक प लकशन, यागराज से 2024 म आया ह। िशू शकर क ग़ज़ल का रग
पारपरक वभाव का ह और िफ़ ताज़ा व अपने समय क। उदू ग़ज़ल क मूल वभाव यानी
ंगार तथा दशन क साथ ही इनक ग़ज़ल म अपने दौर क पर थितय क झलक भी देखी जा
सकती ह। इनक यहाँ भाईचार क भावना क ास तथा नफ़रत क भावना क बढ़ते पर य क
ित िचंताएँ साफ़ िदखती ह। ख़राब होती पार थितक पर भी इनक ग़ज़ल म पया िचंतन
िदखाई देता ह। अपने देखे-िजए जीवन क ित मंथन वप जो िनकष िनकलता ह, वह दशन
बनकर हमारी सोच म झलकता ह। जब यह दशन काश पाता ह तो यह न कवल हमारी अपनी
दुिनया को रोशन करता ह ब क उसे पढ़ने वाले अनेक लोग को भी लाभ प चाता ह। दुिनया
क असिलयत का इनक पास गाढ़ा अनुभव ह, जो इनक शेर म अिभय होकर आता ह।
बोलचाल क भाषा क साथ ही िशू शकर उदू क गाढ़ी शदावली का भी योग करते ह।
भाषा का एक अछा-ख़ासा िडशन ह इनक पास। ग़ज़ल कहने का लहजा इनका बड़ा साफ़-
सुथरा ह। ये पाठक को शद क जगलरी म उलझाने, कपना क हवा-हवाई बनाने या
चमकत करने क बजाय सीधे-सादे तरीक़ से पूरी ग़ज़लगोई क साथ गंभीरतापूवक शेर म
अपनी बात रखते ह।
जीवन को देखने का इनका नज़रया नपा-तुला ह। िकसी तरह क अितशयता इह पसंद नह
िफर चाह वह धािमक भावना क हो अथवा आपसी बताव क। िशू शकर साहब सांदाियक
स?ाव क समथक ह। वे नह चाहते क िकसी तरह हमार भारतीय समाज म िवेष बढ़। आज
क माहौल म बढ़ती नफ़रत क ित भी ये िचंितत िदखाई पड़ते ह। आपसी मेलजोल और
स?ाव बनाए रखने क िलए ये संयम तथा स से काम लेने क सलाह देते ह।
पुतक समीा
(ग़ज़ल संह)
िबखर ए लहात
समीक : क. पी. अनमोल
लेखक : िशू शकर
काशक : इक प लकशन,
यागराज
क. पी. अनमोल
ारा- ीमती अनािमका, राजकय कया
इटर कॉलेज, थयूड़, लॉक- जौनपुर
(िटहरी गढ़वाल) उराखड- 249180
मोबाइल- 8006623499
ईमेल- [email protected]

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 202545 44 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2025
जो उगलते ह यहाँ आग उगलने दे उह
तू समझदार ह हाथ क ये पथर रख दे
आग से आग कभी बुझती नह ह यार
उठती लपट पे ज़रा स का सागर रख दे
िकतनी बसूरत और ज़री नसीहत ह
इन दो शेर म! हमार घर क झगड़ से लेकर
सांदाियक टकराव तक म यही नसीहत
अगर िज़मेदार लोग नौजवान अथवा भड़क
ए लोग क सामने रख द तो शायद मंज़र
कछ अलग ह।
वतमान पर य क ित एक रचनाकार
का परशान होना लाज़मी ह। यही हाल िशू
शकर का भी ह। उह दुख ह िक हमार
शांितिय समाज म ऐसी पर थितयाँ बन गई
ह िक लोग बेमतलब एक-दूसर क दुमन बने
बैठ ह। हमारा काम हमेशा से आपसी
सामंजय तथा सहयोग से चलता आया ह
लेिकन आज क पर थितय ने आदमी क
मन म आदमी क ित अिवास पैदा कर
िदया ह। हर तरफ एक खौफ़ छा गया ह िक
कब कोई िकसी क साथ अनहोनी कर दे। यह
असुरा क बढ़ती ई भावना हमार आपसी
रत को िनगलने क िलए आतुर ह।
रचनाकार क परशानी का इज़हार देिखए-
कोई सूरत नह िक साँस िमले
गंध नफ़रत क ऐसी छाई ह
आग लगी ह इक बती म,
इक बती म वीराना
चाल मुहबत क धीमी ह,
नफ़रत क रतार बत
वो कौन लोग ह जो बे-वजूद कल क िलए
तमाम श जलाते, तबाह करते ह
हमार भारतीय समाज क लोग म फ़साद
चाह जो करवाता हो लेिकन यह भी सच ह िक
इसे अंजाम तो हम ही यानी एक सामाय
आदमी ही देता ह। इसी सामाय आदमी क
अिववेक भर रवैये से िनराश शायर जनता क
बेव?फ़ाना काम पर उसक भी आलोचना से
संकोच नह करता। हमारी जनता क सोच
और नादािनय पर चोट करता रचनाकार
कहता ह िक
चंद गारतगर क कहने पर
फ कती ह ?द अपना घर जनता
खेल उनका िबसात उनक मगर
जाँ लगाती ह दाँव पर जनता
सच तो ये भी ह सािहबान िक अब
अपने हक़ से ह बेख़बर जनता
शम क बात पर कर ह नाज़
?ब इसाँ क बेहयाई ह
नई नल क नादानी को या किहए
मुहबत कह क कछ भी कर गुज़रते ह
धन, ऐय और प च हमार दौर क िसर
पर चढ़कर ऐसे बोल रह ह िक ग़रीब-वंिचत
और उनक मु?े िकसी क िलए भी मायने नह
रखते। सा उलजुलूल राजनीितक हरकत
और शोशेबाज़ी म यत ह, मीिडया भाँडपने
म और पढ़ा-िलखा, संप? वग खाने-कमाने-
उड़ाने म। ऐसे म ग़रीबी और ग़रीब से जुड़
ज़री सवाल क ओर िकसका ही यान
जाएगा! ऐसे म ज़रतमंद यही सोचता रह
जाता ह िक
आसमाँ तक तो प चते नह म सोचता
हम ग़रीब क सवालात कहाँ जाते ह
अमीर को तो ह हक़ लूटने का और हम
वो इ तयार नह ह िक द दुहाई भी
सवाल पूछना इस दौर म गुनाह आ
लगाव िज़ंदगी से ह तो िबन सवाल क
चल
िशू शकर साहब क आलोचना का
दायरा थोड़ा िवतृत ह। एक तरफ जहाँ वे
सा-यवथा क ग़ैर ज़री काम पर सवाल
उठाते ह, वह सामाय जनता को अपना
िववेक इतेमाल न करने क िलए लताड़ते ह।
इधर इशार-इशार म वे संकिचत मानिसकता
क िलए एक साथ कई तरह क लोग को
िनशाने पर लेते ह। अछा यह देखकर लगता
ह िक वे दोन तरफ क लोग क 'छोटी सोच'
पर हार करते ह। एक अछा रचनाकार वही
होता ह, जो गितशील िवचारधारा क साथ
संतुलन को भी बनाए रखे तथा ?द िकसी
तरफ झुक िबना तटथता क साथ अपने
सािह यक दाियव का िनवहन करता रह।
ज़माना चाँद को छ? आया ह लेिकन
तू अब भी जुगनु क दाताँ तक ह
वत सिदय का सफ़र तय कर चुका
हम रवायत पर ही लड़ते रह गए
पयावरण हमार समय का
अितसंवेदनशील िवषय ह। आज का हर
सजग रचनाकार पयावरण क िवनाश क ित
पाठक का यान आक करता ही ह। यह
ज़री भी ह। ग़ज़ल को कछ ही िवषय तक
सीिमत रखने क पधर उदू ग़ज़ल क
पैरोकार म भी अब यह चेतना देखी जा रही
ह। बत अछी बात ह यूँिक पयावरण हमार
जीवन का एक बत ज़री घटक ह और
इसक ित सचेत होना हम सबक िलए
िहतकर ह। िशू शकर क ग़ज़ल म
पयावरण िवमश क कछ अछ शेर िमलते ह-
आबो-हवा वो सूरज अब त ? हो चले ह
कदरत से हमने देखो रते िबगाड़ डाले
आरी बत ही तेज़ थी लालच क इसिलए
आया जो दरिमयान वही पेड़ कट गया
कदरत कहाँ बनाए जगह अपने वाते
जंगल तमाम काट क इसान डट गया
इसी तरह ग़ज़ल क परपरा से इतर इस
संह म बत-सी उमीद जगात ई कछ
अलग चीज़ देखने को िमलती ह। एक जगह
कोरोना काल क भयावहता को म?ेनज़र
रख, रचनाकार इसानी िफ़तरत पर कटा
करते ए एक बड़ा सा शेर कहता ह-
बेचारगी, वो ट?टती साँस, तड़पती जान
गुज़रगा जब ये दौर सभी भूल जाएँगे
एक और उेखनीय शेर इस संह म
िमलता ह, जो ज़रतमंद क सहायता से
लेकर नेदान जैसे ासंिगक िवषय तक अपने
भाव का िवतार रखता ह-
बाद तेर कोई और देखे जहाँ
एक माजूर को कर अता रोशनी
इस कार कहा जा सकता ह िक 'िबखर
ए लहात' संह उदू क ग़ज़लगोई म एक
नई करवट क िलए बेताब जान पड़ता ह।
इसक रचनाकार िशू शकर साहब
पारपरकता एवं आधुिनकता का बड़ा अछा
सामंजय कर एक नई तरह क परपरा को
आयाम देने म अपनी भूिमका अदा करते
िदखते ह। अपनी िवषयवतु, लेखन शैली,
भाषा आिद सभी पहलु म यह संह अपने
आपको खरा सािबत करता ह।
000
िशू शकर उदू क नई पीढ़ी क उदा शायर म ह। िपछले दस वष से म इह देखता-पढ़ता
आ रहा । इस बीच इनक तीन ग़ज़ल संह कािशत ए ह- 'िज़ंदगी क साथ चलकर देिखए',
'उभर का जागना' और 'िबखर ए लहात'। 'िबखर ए लहात' इनका हािलया कािशत
संह ह, जो इक प लकशन, यागराज से 2024 म आया ह। िशू शकर क ग़ज़ल का रग
पारपरक वभाव का ह और िफ़ ताज़ा व अपने समय क। उदू ग़ज़ल क मूल वभाव यानी
ंगार तथा दशन क साथ ही इनक ग़ज़ल म अपने दौर क पर थितय क झलक भी देखी जा
सकती ह। इनक यहाँ भाईचार क भावना क ास तथा नफ़रत क भावना क बढ़ते पर य क
ित िचंताएँ साफ़ िदखती ह। ख़राब होती पार थितक पर भी इनक ग़ज़ल म पया िचंतन
िदखाई देता ह। अपने देखे-िजए जीवन क ित मंथन वप जो िनकष िनकलता ह, वह दशन
बनकर हमारी सोच म झलकता ह। जब यह दशन काश पाता ह तो यह न कवल हमारी अपनी
दुिनया को रोशन करता ह ब क उसे पढ़ने वाले अनेक लोग को भी लाभ प चाता ह। दुिनया
क असिलयत का इनक पास गाढ़ा अनुभव ह, जो इनक शेर म अिभय होकर आता ह।
बोलचाल क भाषा क साथ ही िशू शकर उदू क गाढ़ी शदावली का भी योग करते ह।
भाषा का एक अछा-ख़ासा िडशन ह इनक पास। ग़ज़ल कहने का लहजा इनका बड़ा साफ़-
सुथरा ह। ये पाठक को शद क जगलरी म उलझाने, कपना क हवा-हवाई बनाने या
चमकत करने क बजाय सीधे-सादे तरीक़ से पूरी ग़ज़लगोई क साथ गंभीरतापूवक शेर म
अपनी बात रखते ह।
जीवन को देखने का इनका नज़रया नपा-तुला ह। िकसी तरह क अितशयता इह पसंद नह
िफर चाह वह धािमक भावना क हो अथवा आपसी बताव क। िशू शकर साहब सांदाियक
स?ाव क समथक ह। वे नह चाहते क िकसी तरह हमार भारतीय समाज म िवेष बढ़। आज
क माहौल म बढ़ती नफ़रत क ित भी ये िचंितत िदखाई पड़ते ह। आपसी मेलजोल और
स?ाव बनाए रखने क िलए ये संयम तथा स से काम लेने क सलाह देते ह।
पुतक समीा
(ग़ज़ल संह)
िबखर ए लहात
समीक : क. पी. अनमोल
लेखक : िशू शकर
काशक : इक प लकशन,
यागराज
क. पी. अनमोल
ारा- ीमती अनािमका, राजकय कया
इटर कॉलेज, थयूड़, लॉक- जौनपुर
(िटहरी गढ़वाल) उराखड- 249180
मोबाइल- 8006623499
ईमेल- [email protected]

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 202547 46 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2025
का चुटीले अंदाज़ म िचण िकया गया ह,
िजससे पाठक हसते-हसते लोट पोट हो जाता
ह। यंयकार ने झूठमूठ क आँसू बहाने वाल
क बिखया उधेड़कर उनका यथाथ प हमार
सामने रखा ह। "वी. आई. पी. अंडरिवयर
बिनयान" एक अयंत रोचक और ासंिगक
हाय यंय रचना ह। यह न कवल
उपभोावाद और बाज़ार क संकित पर
काश डालती ह, ब क सामािजक मानदंड
और मानवीय वभाव क जिटलता को भी
चुटीले तरीक़ से उजागर करती ह। "नक़ल का
विणम इितहास" रचना परीा म नक़ल
करने वाल और नक़ल करवाने वाल क
पोल खोलती ह। "लेने देने क सािड़याँ" एक
रोचक हाय यंय रचना ह, जो रत क
जिटलता को साड़ी जैसे तीक क मायम
से तुत करती ह। यह न कवल मनोरजन
करती ह, ब क समाज म या वाथ और
िदखावे को भी उजागर करती ह। यह
सामािजक मु पर गहराई से सोचने क िलए
भी ेरत करती ह। "काये सुनीता" एक
भावी यंय रचना ह, जो पाठक को हसाने
क साथ-साथ गंभीरता से सोचने पर भी मजबूर
करती ह। यह न कवल मिहला क थित
पर काश डालती ह, ब क समाज क सोच
म बदलाव क आवयकता का भी संकत
देती ह। यह रचना परवार िनयोजन क
ध याँ उड़ाती ह। इस यंय रचना म
लेिखका िलखती ह -
बीस वष क उ म सुनीता को दूसरी बार
चंू से मुहबत ई। चंू हर िलहाज से अछा
था और ठीक-ठाक कमाता भी था। सुनीता
उसक साथ शादी कर घर बसाने क सपने
देखने लगी थी पर वह िनपट मूख, अानी,
अबोध नह जानता था िक सुनीता क घर
बसाने क सपने म बाल-गोपाल शािमल नह
थे। एक िदन समय ने पलटा खाया और वह
भावावेश म सुनीता से कह बैठा, "सुनीता !
अपने ढर सार नह-नह बे हगे और
उनक िकलकारय से हमारा आँगन गूँज
उठगा।"
एक तो बे, ऊपर से ढर सार ! सुनते ही
सुनीता का िदमाग़ सटक गया। उसक िदमाग़
म िपछले बीस साल क लँगोिटयाँ, दूध क
बोतल, िदन-रात क काँय-काँय और ब
क मुतारांध से सनी अपनी ॉक ताज़ा हो
ग। वह िबना कछ कह चंू का हाथ छ?ड़ाकर
जो सरपट भागी तो चंू आज तक नह समझ
पाया िक आिख़र उससे या भूल ई?
"वछ भारत अिभयान" रचना शहर क
वछता ेिमय पर मज़ेदार तंज़ ह।
"आमा क तेरहव", "गुी द
फिमिनट", "ऐसे पड़ोसी हाय-हाय",
"आंलभाषा क जय", "हम बने बुिजीवी",
"पुप-चोर गग", "मेर ाता ाचार",
"िमिडल ास", "एक ह फसबुिकया",
"कॉकरोच और कॉकरोचनी क कथा",
"मनसुख किव कसे बना", "भोलावामी",
"भाग गई कलमुँही", "दद बाँटना किव िवरही
और बनमाला का", "बनमाला का घर",
"आसा और मुकस", "िबहारीलाल का
वरदान", "देवर आधे पित परमेर" जैसे
रोचक यंय अपनी िविवधता का एहसास
कराते ह और पढ़ने क िजासा को भी बढ़ाते
ह।
संह का हर यंय अपने आप म एक
गहरी सोच को समेट ए ह। यह न कवल
पाठक को हसाता ह, ब क समाज म या
बुराइय और िवसंगितय क ओर भी इशारा
करता ह। लेिखका ने समाज क िविभ?
जिटलता और िवडबना को बड़ ही
यंयामक और कािबल-ए-ग़ौर तरीक़ से
तुत िकया ह।
पवी िवेदी क लेखन शैली म तीखा
यंय और हका-फ का हाय एक अ?ुत
संतुलन बनता ह, जो रचना को और भी
भावशाली बनाता ह। यह न कवल मनोरजन
का साधन ह, ब क इनक रचनाएँ समाज क
िवसंगितय पर यान आकिषत करने का भी
काय करती ह।
इस पुतक क हाय यंय रचनाएँ
समाज क समया और मानवीय
कमजोरय पर चुटीला यंय करती ह, जो
पाठक को हसाने क साथ-साथ सोचने पर
मजबूर भी करती ह। इन रचना म सटीक
शद का चयन और चुटीले तरीक से बुनी
गई रचनाएँ ह, िजसम साधारण घटना को
भी हाय क मायम से दशाया ह।
पवी िवेदी इस यंय संह क
रचना से पाठक से -ब- होते ए उह
अपने साथ लेकर चलती ह, यही उनक
सफलता ह। अगर आप एक रोचक, चुटीला
यंय संह पढ़ना चाहते ह तो "अंजाम-ए-
गुिलताँ या होगा" को अवय पढ़। पवी
िवेदी एक सश और रोचक यंय कित
रचने क िलए बधाई क पा ह।
000
(यंय संह)
अंजाम-ए-गुिलताँ
या होगा
समीक : दीपक िगरकर
लेखक : पवी िवेदी
काशक : िशवना काशन, साट
कॉ लैस बेसमट, सीहोर, म
466001, फ़ोन-07562405545
मोबाइल- +91-9806162184
ईमेल- [email protected]
दीपक िगरकर
28-सी, वैभव नगर, कनािडया रोड,
इदौर- 452016 म
मोबाइल- 9425067036
ईमेल- [email protected]
"अंजाम-ए-गुिलताँ या होगा" यंयकार पवी िवेदी का पहला यंय संह ह।
इनका एक किवता संह "तुम जहाँ भी हो" और एक याा वृांत "शदेश का सफ़र"
कािशत हो चुक ह। आलोय कित "अंजाम-ए-गुिलताँ या होगा" म कल 30 यंय रचनाएँ
ह। वतमान समाज क उपभोावादी संकित म कामचोरी, बेशम, आममुधता, मोलभाव
क संकित, अंधिवास, उपभोावाद, बाज़ार क संकित, छल, िदखावा, परीा म
नक़ल, दगाबाज़ी, दोमुँहापन इयािद आचरण को सावजिनक प से वीकित ा हो चुक
ह, यंयकार ने इस संह क रचना म इन मानदंड और आचरण पर चुटीले हार िकए ह।
लेिखका पवी िवेदी ारा "घासीराम मासाब क िज़ंदगी का एक िदन" यंय रचना म
घासीराम मासाब क िदनचया और नल आने क िदन क हलचल, कल म ाथना का य,
का म घासीराम मासाब ारा पढ़ाने क जगह नद पूरी करने और घासीराम मासाब क पनी
माटरनी को हाय यंय क साथ बत जीवंतता से िचित िकया गया ह। घासीराम मासाब
क िदनचया का एक िदन देिखए -
"आज नल आने का िदन ह।
मोहे म एक िदन छोड़कर नल आता ह। नल आने का िदन घासीराम मासाब क कसरत
का िदन भी होता ह। पूरी टक भरने क िलए ड ? सौ बाटी भरकर ऊपर दूसरी मंिज़ल पर लाना
कोई िजम जाने से कम ह या? हाँ.. ये अलग बात ह िक इस कसरत से मासाब क दािहने हाथ
क मसल तो सॉिलड बन गई पर बायाँ हाथ बेचारा मरिघा सा ही ह सो अब मासाब फल
बाँह क बुशट ही पहनते ह।"
"आममुधता उफ बकरा यािध" एक भावी यंय ह जो आममुधता और सामािजक
वृिय पर तीखा कटा करता ह। इस रचना म हाय और तंज़ ने इसे रोचक बना िदया ह।
"बेशरम सदा सुखी" एक रोचक यंय ह जो बेशम और आम-तृ पर चुटक लेता ह।
"िवास क वसीयत" एक रोचक हाय यंय ह जो समाज म चिलत िवास,
अंधिवास और उनक भाव पर तीखा कटा करता ह। "एक थी बागनर" वातव म एक
िदलचप और हायद यंय ह, जो मोलभाव क संकित को एक नया कोण दान
करता ह। इसम मुय पा क मोलभाव करने क कला और उसक कारनाम को बत चतुराई
से िचित िकया गया ह। "कल ड?ड वसस कल डड" यंय वातव म एक मज़ेदार कोण
से युवा पीढ़ी और उनक माता-िपता क बीच क जेनरशन गैप को उजागर करता ह। इसम
िविभ? पहलु को छ?आ गया ह, जैसे िक युवा पीढ़ी क पहनने क कपड़, उनक बाल क
टाइल, िगटार को मौक, बेमौक टनटनाना, उनक कमर म लगी देशी-िवदेशी हीरो-हीरोइन क
तवीर, िवदेशी टाइल म घर म बातचीत करना। संवाद म चुटीला टोन इस रचना को आकषक
बनाता ह। लेिखका ने हाय यंय क मायम से गंभीर सामािजक मु?े को उजागर िकया ह।
"दाली" एक भावशाली हाय यंय रचना ह, जो न कवल मनोरजन करती ह, ब क
समाज क जिटल मु को भी उजागर करती ह। इसम सामािजक और राजनीितक पर थितय
पुतक समीा

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 202547 46 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2025
का चुटीले अंदाज़ म िचण िकया गया ह,
िजससे पाठक हसते-हसते लोट पोट हो जाता
ह। यंयकार ने झूठमूठ क आँसू बहाने वाल
क बिखया उधेड़कर उनका यथाथ प हमार
सामने रखा ह। "वी. आई. पी. अंडरिवयर
बिनयान" एक अयंत रोचक और ासंिगक
हाय यंय रचना ह। यह न कवल
उपभोावाद और बाज़ार क संकित पर
काश डालती ह, ब क सामािजक मानदंड
और मानवीय वभाव क जिटलता को भी
चुटीले तरीक़ से उजागर करती ह। "नक़ल का
विणम इितहास" रचना परीा म नक़ल
करने वाल और नक़ल करवाने वाल क
पोल खोलती ह। "लेने देने क सािड़याँ" एक
रोचक हाय यंय रचना ह, जो रत क
जिटलता को साड़ी जैसे तीक क मायम
से तुत करती ह। यह न कवल मनोरजन
करती ह, ब क समाज म या वाथ और
िदखावे को भी उजागर करती ह। यह
सामािजक मु पर गहराई से सोचने क िलए
भी ेरत करती ह। "काये सुनीता" एक
भावी यंय रचना ह, जो पाठक को हसाने
क साथ-साथ गंभीरता से सोचने पर भी मजबूर
करती ह। यह न कवल मिहला क थित
पर काश डालती ह, ब क समाज क सोच
म बदलाव क आवयकता का भी संकत
देती ह। यह रचना परवार िनयोजन क
ध याँ उड़ाती ह। इस यंय रचना म
लेिखका िलखती ह -
बीस वष क उ म सुनीता को दूसरी बार
चंू से मुहबत ई। चंू हर िलहाज से अछा
था और ठीक-ठाक कमाता भी था। सुनीता
उसक साथ शादी कर घर बसाने क सपने
देखने लगी थी पर वह िनपट मूख, अानी,
अबोध नह जानता था िक सुनीता क घर
बसाने क सपने म बाल-गोपाल शािमल नह
थे। एक िदन समय ने पलटा खाया और वह
भावावेश म सुनीता से कह बैठा, "सुनीता !
अपने ढर सार नह-नह बे हगे और
उनक िकलकारय से हमारा आँगन गूँज
उठगा।"
एक तो बे, ऊपर से ढर सार ! सुनते ही
सुनीता का िदमाग़ सटक गया। उसक िदमाग़
म िपछले बीस साल क लँगोिटयाँ, दूध क
बोतल, िदन-रात क काँय-काँय और ब
क मुतारांध से सनी अपनी ॉक ताज़ा हो
ग। वह िबना कछ कह चंू का हाथ छ?ड़ाकर
जो सरपट भागी तो चंू आज तक नह समझ
पाया िक आिख़र उससे या भूल ई?
"वछ भारत अिभयान" रचना शहर क
वछता ेिमय पर मज़ेदार तंज़ ह।
"आमा क तेरहव", "गुी द
फिमिनट", "ऐसे पड़ोसी हाय-हाय",
"आंलभाषा क जय", "हम बने बुिजीवी",
"पुप-चोर गग", "मेर ाता ाचार",
"िमिडल ास", "एक ह फसबुिकया",
"कॉकरोच और कॉकरोचनी क कथा",
"मनसुख किव कसे बना", "भोलावामी",
"भाग गई कलमुँही", "दद बाँटना किव िवरही
और बनमाला का", "बनमाला का घर",
"आसा और मुकस", "िबहारीलाल का
वरदान", "देवर आधे पित परमेर" जैसे
रोचक यंय अपनी िविवधता का एहसास
कराते ह और पढ़ने क िजासा को भी बढ़ाते
ह।
संह का हर यंय अपने आप म एक
गहरी सोच को समेट ए ह। यह न कवल
पाठक को हसाता ह, ब क समाज म या
बुराइय और िवसंगितय क ओर भी इशारा
करता ह। लेिखका ने समाज क िविभ?
जिटलता और िवडबना को बड़ ही
यंयामक और कािबल-ए-ग़ौर तरीक़ से
तुत िकया ह।
पवी िवेदी क लेखन शैली म तीखा
यंय और हका-फ का हाय एक अ?ुत
संतुलन बनता ह, जो रचना को और भी
भावशाली बनाता ह। यह न कवल मनोरजन
का साधन ह, ब क इनक रचनाएँ समाज क
िवसंगितय पर यान आकिषत करने का भी
काय करती ह।
इस पुतक क हाय यंय रचनाएँ
समाज क समया और मानवीय
कमजोरय पर चुटीला यंय करती ह, जो
पाठक को हसाने क साथ-साथ सोचने पर
मजबूर भी करती ह। इन रचना म सटीक
शद का चयन और चुटीले तरीक से बुनी
गई रचनाएँ ह, िजसम साधारण घटना को
भी हाय क मायम से दशाया ह।
पवी िवेदी इस यंय संह क
रचना से पाठक से -ब- होते ए उह
अपने साथ लेकर चलती ह, यही उनक
सफलता ह। अगर आप एक रोचक, चुटीला
यंय संह पढ़ना चाहते ह तो "अंजाम-ए-
गुिलताँ या होगा" को अवय पढ़। पवी
िवेदी एक सश और रोचक यंय कित
रचने क िलए बधाई क पा ह।
000
(यंय संह)
अंजाम-ए-गुिलताँ
या होगा
समीक : दीपक िगरकर
लेखक : पवी िवेदी
काशक : िशवना काशन, साट
कॉ लैस बेसमट, सीहोर, म
466001, फ़ोन-07562405545
मोबाइल- +91-9806162184
ईमेल- [email protected]
दीपक िगरकर
28-सी, वैभव नगर, कनािडया रोड,
इदौर- 452016 म
मोबाइल- 9425067036
ईमेल- [email protected]
"अंजाम-ए-गुिलताँ या होगा" यंयकार पवी िवेदी का पहला यंय संह ह।
इनका एक किवता संह "तुम जहाँ भी हो" और एक याा वृांत "शदेश का सफ़र"
कािशत हो चुक ह। आलोय कित "अंजाम-ए-गुिलताँ या होगा" म कल 30 यंय रचनाएँ
ह। वतमान समाज क उपभोावादी संकित म कामचोरी, बेशम, आममुधता, मोलभाव
क संकित, अंधिवास, उपभोावाद, बाज़ार क संकित, छल, िदखावा, परीा म
नक़ल, दगाबाज़ी, दोमुँहापन इयािद आचरण को सावजिनक प से वीकित ा हो चुक
ह, यंयकार ने इस संह क रचना म इन मानदंड और आचरण पर चुटीले हार िकए ह।
लेिखका पवी िवेदी ारा "घासीराम मासाब क िज़ंदगी का एक िदन" यंय रचना म
घासीराम मासाब क िदनचया और नल आने क िदन क हलचल, कल म ाथना का य,
का म घासीराम मासाब ारा पढ़ाने क जगह नद पूरी करने और घासीराम मासाब क पनी
माटरनी को हाय यंय क साथ बत जीवंतता से िचित िकया गया ह। घासीराम मासाब
क िदनचया का एक िदन देिखए -
"आज नल आने का िदन ह।
मोहे म एक िदन छोड़कर नल आता ह। नल आने का िदन घासीराम मासाब क कसरत
का िदन भी होता ह। पूरी टक भरने क िलए ड ? सौ बाटी भरकर ऊपर दूसरी मंिज़ल पर लाना
कोई िजम जाने से कम ह या? हाँ.. ये अलग बात ह िक इस कसरत से मासाब क दािहने हाथ
क मसल तो सॉिलड बन गई पर बायाँ हाथ बेचारा मरिघा सा ही ह सो अब मासाब फल
बाँह क बुशट ही पहनते ह।"
"आममुधता उफ बकरा यािध" एक भावी यंय ह जो आममुधता और सामािजक
वृिय पर तीखा कटा करता ह। इस रचना म हाय और तंज़ ने इसे रोचक बना िदया ह।
"बेशरम सदा सुखी" एक रोचक यंय ह जो बेशम और आम-तृ पर चुटक लेता ह।
"िवास क वसीयत" एक रोचक हाय यंय ह जो समाज म चिलत िवास,
अंधिवास और उनक भाव पर तीखा कटा करता ह। "एक थी बागनर" वातव म एक
िदलचप और हायद यंय ह, जो मोलभाव क संकित को एक नया कोण दान
करता ह। इसम मुय पा क मोलभाव करने क कला और उसक कारनाम को बत चतुराई
से िचित िकया गया ह। "कल ड?ड वसस कल डड" यंय वातव म एक मज़ेदार कोण
से युवा पीढ़ी और उनक माता-िपता क बीच क जेनरशन गैप को उजागर करता ह। इसम
िविभ? पहलु को छ?आ गया ह, जैसे िक युवा पीढ़ी क पहनने क कपड़, उनक बाल क
टाइल, िगटार को मौक, बेमौक टनटनाना, उनक कमर म लगी देशी-िवदेशी हीरो-हीरोइन क
तवीर, िवदेशी टाइल म घर म बातचीत करना। संवाद म चुटीला टोन इस रचना को आकषक
बनाता ह। लेिखका ने हाय यंय क मायम से गंभीर सामािजक मु?े को उजागर िकया ह।
"दाली" एक भावशाली हाय यंय रचना ह, जो न कवल मनोरजन करती ह, ब क
समाज क जिटल मु को भी उजागर करती ह। इसम सामािजक और राजनीितक पर थितय
पुतक समीा

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 202549 48 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2025
कसती ह। अपने को पारपरक पेशे म झकने
क बजाए वह नए राते तलाशते िदख रही ह।
उसक जेहन म बेहतर जीवन क िलए 'लोन'
जैसे राते कलबुलाने लगे ह।
इस कहानी क नायक छला और उसक
िपता क संवाद म पीिढ़य क यह खाई िदखने
लगती ह। इस कहानी म छला और उपाल का
िनछल ेम भी ह, जो मुकाम पाने से पहले ही
बदले ए छली समाज क बीच िबखर जाता
ह। अपने गाँव लौटकर भी छला गुमनाम
रहकर जीवन िबताता ह। कहानी नाकाम ेम
का दुखद वृांत ह।
'कहानी यह ख़म नह होती' आिदवासी
समाज म य क परपराभंजक तेवर क
कहानी ह। कहा जाता ह िक आिदवासी
समाज म ी-पुष कधे से कधा िमलाकर
चलते ह। ब क सच यह भी ह िक संपि को
छोड़कर बाक मामल म आिदवासी समाज
म मिहला को पुष क बराबर अिधकार
िदए गए ह। लेिकन यही आिदवासी समाज
अपनी परपरा और मायता क नाम पर
अंधिवासी भी ह और इसिलए कई बार
बेहद र भी। यहाँ अिशा क काली छाया
िदखती ह। यह समाज परपरा क दुराह
क वजह से पंच परमेर क अतािकक
फसले से सहमत होता ह और ओझा गुनी क
नाम पर पुष को और डायन िबसाही क
आरोप म य पर म करता िदखता ह।
इस कहानी म भी परपरा को बदलने क
कोिशश करत याँ समाज क अंधिवास
क कारण ताड़ना झेलती ई िदखती ह।
झारखंड क ?बसूरती, ी क
कोमलता और िनभकता क साथ-साथ
नसली समया क दातान ह कहानी 'सरई
क फल'। संह का नाम भी इसी कहानी क
नाम पर रखा गया ह, तो ज़ािहर ह यह इस
संह क ितिनिध कहानी ह। अनकह ेम क
बत बारीक रशे से बुनी गई यह कहानी
झारखंड म नसल समया क आहट क िदन
क ह। उस दौर क य क संघष क भी ह
और साथ ही एक कित ेमी क भी कहानी
ह।
इस कहानी म जब आप लेिखका क संग
आिदवािसय क जीवन म झाँकने लगते ह तो
आपक कान म माँदर क थाप पर कोई
लोकधुन लगातार बजती रहती ह। कहानी क
बाद क िहसे म झारखंड म पैदा ई नसली
समया से आपका पाला पड़ता ह तो लोकधुन
क उदासी आपको परशान करती ह और
माँदर क जो थाप कभी ेम क िसहरन पैदा
करती थी, वही अब यु क दुदुंभी क तरह
सुनाई पड़ने लगती ह।
'एक और भीम िता' और 'िब?ो क
बड़ी माँ' जैसी कहानी बदले ए झारखंड म
देशेम और अतीत से जुड़ाव क दतावेज़
ह। 'एक और भीम िता' जहाँ माँ-बाप का
मोह और बेट क आकांा क टकराव क
बुनावट से िनकली कहानी ह, तो वह यह
शहीद परवार क दयनीय हालत का भी
बयान ह। सरकारी उदासीनता और शहीद क
उपेा क अपेित चचा कहानी को साथक
बनाती ह।
'िब?ो क बड़ी माँ' कहानी आज़ादी क
संघष क गुमनाम योा क ित आदर और
ा जताती ह।
'डोमेसाइल' और 'सुगा-सुगी का
जोड़ा' अलग झारखंड राय बनने क बाद
िबखर सपन क कहानी ह। झारखंड राय क
गठन का संघष करते ए यहाँ क लोग ने
िजस रामराय का सपना देखा था, झारखंड
बनने क बाद वह सपना उतनी ही तेजी से
ट?टाs िवकास क नाम पर िवथापन का दद,
रोज़गार क िलए भटकते लोग, वा य,
िशा, सुशासन क तर पर यहाँ क लोग ने
नाकामी देखी। झारखंड गठन क बाद
आिदवासी और सदान म टकराव आ।
'कसा झारखंड' और 'िकसका झारखंड' जैसे
सवाल असर बवाल का प धरने लगे। ये
दोन कहािनयाँ ऐसे ही मोहभंग क पीड़ा से
उपजी ह।
लेिकन इस पूर संह म जो कहानी
बुनावट क तर पर सबसे यादा बाँधे रखती
ह, वह ह 'दो चुटक िनमक'। यह अलग बात
ह िक 'दो चुटक िनमक' ूण हया क िजस
क था को क म रखकर िलखी गई ह, वह
आिदवासी जीवन का वर नह ह। ब क
आिदवासी समाज क याँ पारवारक
संरचना म मज़बूत उप थित रखती ह।
बीस साल क लंबे अंतराल को घेरती इस
कहानी म गौना, मालती और मालती क माँ
ही मुख चर क तौर पर उभर कर सामने
आती ह। इस कहानी म ी महव को
रखांिकत करती मालती का आमालाप पढ़ -
'मालती अंदर क अंधेर म आँख पर हाथ
रखे लेटी थी। तभी उसक अंदर एक बेचैन
आमा घर कर गई थी। उसे अँधेर साये डराने
लगे थे। वह असर सोचती, या हवेली क
इतने बड़-बड़ कमर मे उसक िलए तिनक भी
जगह नह ह " नह थी?
जनजाित और कोह, कम, तेली लोग तो
अपनी बेिटय को नही फकते ह। ये लोग तो
कोई फरक नह करते ह। िकसी कमी क
कारण ही फकते-मारते ह ग़रीब लोग। पर ई
बड़का लोग?'
'चुटक भर िनमक' कहानी का यह िहसा
याद िदलाता ह िक आिदवासी परपरा म
लड़िकय क िलए दहज क ज़रत नह
पड़ती, ब क लड़का प क लोग अपने
सामय क अनुसार लड़क प को उपहार
िदया करते ह।
अिनता र म क इस संह को पढ़ते ए
आप झारखंड क लोकबोली क शद क उस
प से भी परिचत होते चलते ह िजनका िहदी
म प कछ दूसरा ह। 'नमक' क िलए
'िनमक' या 'खरीदना' क िलए 'िकनना' जैसे
शद क उप थित कहानी को झारखंडी टोन
देती ह। इन सारी कहािनय म आपको
लोककथाएँ भी संदभ क मुतािबक िमलगी,
समय-समय पर गीत क बोल भी िमलगे।
कल िमलाकर यह संह झारखंड का परवेश
बुनता ह और ये कहािनयाँ यह थािपत करती
िदखती ह िक बात-यवहार, रहन-सहन,
बोल-िवचार जैसे हर तर पर आिदवािसय
का जीवन असर लैक एंड वाइट होता ह,
आिदवािसय क य व म े शेड क
उप थित कभी-कभार िदख जाती ह, लेिकन
वह कभी भी आिदवािसय क य व का
ितिनिध रग नह रहा।
000
यह संह झारखंड का परवेश बुनता ह और ये कहािनयाँ यह थािपत करती िदखती ह िक
बात-यवहार, रहन-सहन, बोल-िवचार जैसे हर तर पर आिदवािसय का जीवन असर लैक
एंड वाइट होता ह, आिदवािसय क य व म े शेड क उप थित कभी-कभार िदख जाती
ह, लेिकन वह कभी भी आिदवािसय क य व का ितिनिध रग नह रहा।
आिदवासी वभावतः सरल और भोले होते ह। शहर क ऐब से दूर कित क ेम म ड?बे होते
ह। कहना चािहए िक उनक जीवन का मूल तव ही ह ेम। यह ेम चाह जानवर से हो या
कित से, इनसान से हो या िफर देश से। इनक खून म ेम उबाल मारता ह। ये बात अिनता र म
क 12 कहािनय से गुज़रते ए महसूस क जा सकती ह, जो हाल म कािशत ए उनक
कहानी संह 'सरई क फल' म संकिलत ह।
झारखंड क आिदवािसय क िलए उनक लोककथाएँ आ मक श ह। वे उसे भरसक
जीते ह। इन लोककथा से उह ेरणा भी िमलती ह और सीख भी। इसिलए उनक बीच
लोककथा क नदी कभी सूखी नह, ब क कलकल कर बहती रही। अिनता र म क कई
कहािनय म संदभ क मुतािबक ये लोककथाएँ घुली ई िमलगी।
आिदवािसय क बीच से उठाई गई लोककथाएँ कई बार अिनता जी क कहािनय को गित
देती ह और नया अथ भी। ब क कई बार तो इन लोककथा का इतेमाल कहािनय म कछ
इस तरह आ ह िक वह से कहानी एक नई ज़मीन रचने लगती ह। कहानी को गित देने क िलए
लोककथा पगडडी-सी बनकर आती ह।
अपनी कहािनय क ज़रए अिनता र म आिदवासी समाज म शद रचना क कित
पकड़ती नज़र आती ह। मसलन अपनी पहली कहानी 'रघुआ टाना भगत' म उहने िलखा ह -
'भूत टानते-टानते जतरा उराँव टाना भगत कहलाने लगा'। एक तरह से यह संग उरांव क टाना
भगत क इितहास म जाने जैसा ह। काम से िकसी को पहचानने क आिदवािसय क यह जो
सादगी ह, इसी सादगी और इसी s?? क साथ रह ह डॉ. भीम राव आंबेडकर।
महामा गांधी चाहते थे िक समाज म जाित यवथा हो, यानी जो िजस जाित का ह समान
क साथ अपना काम कर, जबिक आंबेडकर का मानना था िक िकसी क जाित क पहचान
उसक काम से हो, इसे उहने वण यवथा कहा। जतरा उरांव जैसे लोग को टाना भगत क
उपािध उसक काम क वजह से ही िमली।
कहा जा सकता ह िक आंबेडकर क िवचारधारा से अनजान होते ए भी तकालीन
आिदवासी समाज क कित आंबेडकर क िवचारधारा क यादा करीब िदखती ह, जहाँ िकसी
को उसक काम क आधार पर िकसी ख़ास जमात म डाला जाता ह। एक और रोचक बात यह
िक आंबेडकर और गांधी िवचार क तर पर बत जगह पर एक-दूसर से असहमत िदखते ह।
पर आिदवासी समाज म उस असहमित का कह कोई थान नह। वह तो अपने समाज और देश
ेम म ड?बा इसािनयत क िहतकारी आदश का िहमायती ह।
अिनता र म क इसी कहानी म आपको गांधी जी आिदवािसय क बीच ेरक क प म
िदख जाएँगे और िचंता म डालते अब क नसली भी। ऐसे ही मौक पर आिदवासी समाज क
इन कहािनय से गुज़रते ए कई बार िबरसा मुंडा क अनुयाियय क िबरसाइत धम क याद
आई।
कह पढ़ी ई एक धुँधली सी याद ह िक िबरसा क अनुयाियय ने उनक धम सुधार और
समाज सुधार क बात क आधार पर िबरसाइत धम क शुआत क थी। इस धम म दूसर धम
क तमाम वे बात शािमल क गई थ जो मनुय और मनुयता क िहत म थ। वैसे 'रघुआ टाना
भगत' कहानी आिदवािसय क शोषण का पूरा वृतांत रचती ह और पुिलिसया दमन क कहानी
भी कहती ह।
'ितिकन उपाल का छला' बदलते ए आिदवासी समाज क कहानी ह। जहाँ युवा पीढ़ी ?द
को लोककथा से काटती जा रही ह। लोककथा को वे अपनी तािककता क कसौटी पर
पुतक समीा
(कहानी संह)
सरई क फल
समीक : अनुराग अवेषी
लेखक : अनीता र म
काशक : िहद युम, िदी
अनुराग अवेषी
ए - 802 जनसा सोसायटी,
से. - 9, वसुंधरा, गािजयाबाद
(उ. .) िपन - 201012
मोबाइल- 9999572266

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कसती ह। अपने को पारपरक पेशे म झकने
क बजाए वह नए राते तलाशते िदख रही ह।
उसक जेहन म बेहतर जीवन क िलए 'लोन'
जैसे राते कलबुलाने लगे ह।
इस कहानी क नायक छला और उसक
िपता क संवाद म पीिढ़य क यह खाई िदखने
लगती ह। इस कहानी म छला और उपाल का
िनछल ेम भी ह, जो मुकाम पाने से पहले ही
बदले ए छली समाज क बीच िबखर जाता
ह। अपने गाँव लौटकर भी छला गुमनाम
रहकर जीवन िबताता ह। कहानी नाकाम ेम
का दुखद वृांत ह।
'कहानी यह ख़म नह होती' आिदवासी
समाज म य क परपराभंजक तेवर क
कहानी ह। कहा जाता ह िक आिदवासी
समाज म ी-पुष कधे से कधा िमलाकर
चलते ह। ब क सच यह भी ह िक संपि को
छोड़कर बाक मामल म आिदवासी समाज
म मिहला को पुष क बराबर अिधकार
िदए गए ह। लेिकन यही आिदवासी समाज
अपनी परपरा और मायता क नाम पर
अंधिवासी भी ह और इसिलए कई बार
बेहद र भी। यहाँ अिशा क काली छाया
िदखती ह। यह समाज परपरा क दुराह
क वजह से पंच परमेर क अतािकक
फसले से सहमत होता ह और ओझा गुनी क
नाम पर पुष को और डायन िबसाही क
आरोप म य पर म करता िदखता ह।
इस कहानी म भी परपरा को बदलने क
कोिशश करत याँ समाज क अंधिवास
क कारण ताड़ना झेलती ई िदखती ह।
झारखंड क ?बसूरती, ी क
कोमलता और िनभकता क साथ-साथ
नसली समया क दातान ह कहानी 'सरई
क फल'। संह का नाम भी इसी कहानी क
नाम पर रखा गया ह, तो ज़ािहर ह यह इस
संह क ितिनिध कहानी ह। अनकह ेम क
बत बारीक रशे से बुनी गई यह कहानी
झारखंड म नसल समया क आहट क िदन
क ह। उस दौर क य क संघष क भी ह
और साथ ही एक कित ेमी क भी कहानी
ह।
इस कहानी म जब आप लेिखका क संग
आिदवािसय क जीवन म झाँकने लगते ह तो
आपक कान म माँदर क थाप पर कोई
लोकधुन लगातार बजती रहती ह। कहानी क
बाद क िहसे म झारखंड म पैदा ई नसली
समया से आपका पाला पड़ता ह तो लोकधुन
क उदासी आपको परशान करती ह और
माँदर क जो थाप कभी ेम क िसहरन पैदा
करती थी, वही अब यु क दुदुंभी क तरह
सुनाई पड़ने लगती ह।
'एक और भीम िता' और 'िब?ो क
बड़ी माँ' जैसी कहानी बदले ए झारखंड म
देशेम और अतीत से जुड़ाव क दतावेज़
ह। 'एक और भीम िता' जहाँ माँ-बाप का
मोह और बेट क आकांा क टकराव क
बुनावट से िनकली कहानी ह, तो वह यह
शहीद परवार क दयनीय हालत का भी
बयान ह। सरकारी उदासीनता और शहीद क
उपेा क अपेित चचा कहानी को साथक
बनाती ह।
'िब?ो क बड़ी माँ' कहानी आज़ादी क
संघष क गुमनाम योा क ित आदर और
ा जताती ह।
'डोमेसाइल' और 'सुगा-सुगी का
जोड़ा' अलग झारखंड राय बनने क बाद
िबखर सपन क कहानी ह। झारखंड राय क
गठन का संघष करते ए यहाँ क लोग ने
िजस रामराय का सपना देखा था, झारखंड
बनने क बाद वह सपना उतनी ही तेजी से
ट?टाs िवकास क नाम पर िवथापन का दद,
रोज़गार क िलए भटकते लोग, वा य,
िशा, सुशासन क तर पर यहाँ क लोग ने
नाकामी देखी। झारखंड गठन क बाद
आिदवासी और सदान म टकराव आ।
'कसा झारखंड' और 'िकसका झारखंड' जैसे
सवाल असर बवाल का प धरने लगे। ये
दोन कहािनयाँ ऐसे ही मोहभंग क पीड़ा से
उपजी ह।
लेिकन इस पूर संह म जो कहानी
बुनावट क तर पर सबसे यादा बाँधे रखती
ह, वह ह 'दो चुटक िनमक'। यह अलग बात
ह िक 'दो चुटक िनमक' ूण हया क िजस
क था को क म रखकर िलखी गई ह, वह
आिदवासी जीवन का वर नह ह। ब क
आिदवासी समाज क याँ पारवारक
संरचना म मज़बूत उप थित रखती ह।
बीस साल क लंबे अंतराल को घेरती इस
कहानी म गौना, मालती और मालती क माँ
ही मुख चर क तौर पर उभर कर सामने
आती ह। इस कहानी म ी महव को
रखांिकत करती मालती का आमालाप पढ़ -
'मालती अंदर क अंधेर म आँख पर हाथ
रखे लेटी थी। तभी उसक अंदर एक बेचैन
आमा घर कर गई थी। उसे अँधेर साये डराने
लगे थे। वह असर सोचती, या हवेली क
इतने बड़-बड़ कमर मे उसक िलए तिनक भी
जगह नह ह " नह थी?
जनजाित और कोह, कम, तेली लोग तो
अपनी बेिटय को नही फकते ह। ये लोग तो
कोई फरक नह करते ह। िकसी कमी क
कारण ही फकते-मारते ह ग़रीब लोग। पर ई
बड़का लोग?'
'चुटक भर िनमक' कहानी का यह िहसा
याद िदलाता ह िक आिदवासी परपरा म
लड़िकय क िलए दहज क ज़रत नह
पड़ती, ब क लड़का प क लोग अपने
सामय क अनुसार लड़क प को उपहार
िदया करते ह।
अिनता र म क इस संह को पढ़ते ए
आप झारखंड क लोकबोली क शद क उस
प से भी परिचत होते चलते ह िजनका िहदी
म प कछ दूसरा ह। 'नमक' क िलए
'िनमक' या 'खरीदना' क िलए 'िकनना' जैसे
शद क उप थित कहानी को झारखंडी टोन
देती ह। इन सारी कहािनय म आपको
लोककथाएँ भी संदभ क मुतािबक िमलगी,
समय-समय पर गीत क बोल भी िमलगे।
कल िमलाकर यह संह झारखंड का परवेश
बुनता ह और ये कहािनयाँ यह थािपत करती
िदखती ह िक बात-यवहार, रहन-सहन,
बोल-िवचार जैसे हर तर पर आिदवािसय
का जीवन असर लैक एंड वाइट होता ह,
आिदवािसय क य व म े शेड क
उप थित कभी-कभार िदख जाती ह, लेिकन
वह कभी भी आिदवािसय क य व का
ितिनिध रग नह रहा।
000
यह संह झारखंड का परवेश बुनता ह और ये कहािनयाँ यह थािपत करती िदखती ह िक
बात-यवहार, रहन-सहन, बोल-िवचार जैसे हर तर पर आिदवािसय का जीवन असर लैक
एंड वाइट होता ह, आिदवािसय क य व म े शेड क उप थित कभी-कभार िदख जाती
ह, लेिकन वह कभी भी आिदवािसय क य व का ितिनिध रग नह रहा।
आिदवासी वभावतः सरल और भोले होते ह। शहर क ऐब से दूर कित क ेम म ड?बे होते
ह। कहना चािहए िक उनक जीवन का मूल तव ही ह ेम। यह ेम चाह जानवर से हो या
कित से, इनसान से हो या िफर देश से। इनक खून म ेम उबाल मारता ह। ये बात अिनता र म
क 12 कहािनय से गुज़रते ए महसूस क जा सकती ह, जो हाल म कािशत ए उनक
कहानी संह 'सरई क फल' म संकिलत ह।
झारखंड क आिदवािसय क िलए उनक लोककथाएँ आ मक श ह। वे उसे भरसक
जीते ह। इन लोककथा से उह ेरणा भी िमलती ह और सीख भी। इसिलए उनक बीच
लोककथा क नदी कभी सूखी नह, ब क कलकल कर बहती रही। अिनता र म क कई
कहािनय म संदभ क मुतािबक ये लोककथाएँ घुली ई िमलगी।
आिदवािसय क बीच से उठाई गई लोककथाएँ कई बार अिनता जी क कहािनय को गित
देती ह और नया अथ भी। ब क कई बार तो इन लोककथा का इतेमाल कहािनय म कछ
इस तरह आ ह िक वह से कहानी एक नई ज़मीन रचने लगती ह। कहानी को गित देने क िलए
लोककथा पगडडी-सी बनकर आती ह।
अपनी कहािनय क ज़रए अिनता र म आिदवासी समाज म शद रचना क कित
पकड़ती नज़र आती ह। मसलन अपनी पहली कहानी 'रघुआ टाना भगत' म उहने िलखा ह -
'भूत टानते-टानते जतरा उराँव टाना भगत कहलाने लगा'। एक तरह से यह संग उरांव क टाना
भगत क इितहास म जाने जैसा ह। काम से िकसी को पहचानने क आिदवािसय क यह जो
सादगी ह, इसी सादगी और इसी s?? क साथ रह ह डॉ. भीम राव आंबेडकर।
महामा गांधी चाहते थे िक समाज म जाित यवथा हो, यानी जो िजस जाित का ह समान
क साथ अपना काम कर, जबिक आंबेडकर का मानना था िक िकसी क जाित क पहचान
उसक काम से हो, इसे उहने वण यवथा कहा। जतरा उरांव जैसे लोग को टाना भगत क
उपािध उसक काम क वजह से ही िमली।
कहा जा सकता ह िक आंबेडकर क िवचारधारा से अनजान होते ए भी तकालीन
आिदवासी समाज क कित आंबेडकर क िवचारधारा क यादा करीब िदखती ह, जहाँ िकसी
को उसक काम क आधार पर िकसी ख़ास जमात म डाला जाता ह। एक और रोचक बात यह
िक आंबेडकर और गांधी िवचार क तर पर बत जगह पर एक-दूसर से असहमत िदखते ह।
पर आिदवासी समाज म उस असहमित का कह कोई थान नह। वह तो अपने समाज और देश
ेम म ड?बा इसािनयत क िहतकारी आदश का िहमायती ह।
अिनता र म क इसी कहानी म आपको गांधी जी आिदवािसय क बीच ेरक क प म
िदख जाएँगे और िचंता म डालते अब क नसली भी। ऐसे ही मौक पर आिदवासी समाज क
इन कहािनय से गुज़रते ए कई बार िबरसा मुंडा क अनुयाियय क िबरसाइत धम क याद
आई।
कह पढ़ी ई एक धुँधली सी याद ह िक िबरसा क अनुयाियय ने उनक धम सुधार और
समाज सुधार क बात क आधार पर िबरसाइत धम क शुआत क थी। इस धम म दूसर धम
क तमाम वे बात शािमल क गई थ जो मनुय और मनुयता क िहत म थ। वैसे 'रघुआ टाना
भगत' कहानी आिदवािसय क शोषण का पूरा वृतांत रचती ह और पुिलिसया दमन क कहानी
भी कहती ह।
'ितिकन उपाल का छला' बदलते ए आिदवासी समाज क कहानी ह। जहाँ युवा पीढ़ी ?द
को लोककथा से काटती जा रही ह। लोककथा को वे अपनी तािककता क कसौटी पर
पुतक समीा
(कहानी संह)
सरई क फल
समीक : अनुराग अवेषी
लेखक : अनीता र म
काशक : िहद युम, िदी
अनुराग अवेषी
ए - 802 जनसा सोसायटी,
से. - 9, वसुंधरा, गािजयाबाद
(उ. .) िपन - 201012
मोबाइल- 9999572266

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 202551 50 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2025
क संकार।
पहले चार भले ही य क वश म ह
लेिकन पाँचवाँ जो अ य और सबसे
महवपूण ह, वह ह दैव िजसे सामाय जन
भाय कहते ह। िन त ही अिनल रतूड़ी जी
का दैव बलशाली ह जो भीषण दंग क मय वे
बाल-बाल बचे, एक बार नह, कई बार।
नौकरी क शुआती दौर म ही बदायूँ दंगे,
मंडल आंदोलन, िकसान आंदोलन, तराई का
आतंकवाद, राम जम भूिम आंदोलन, मेरठ
क जातीय िहसा, गगा गग से मुठभेड़, मुरहम
जुलूस जैसी िवकट िहसक वारदात म मैदान
म खड़ होकर उ भीड़ को िनयंित करना
और अपने साहस, बुि-िववेक से संभािवत
न-ख़राबे को घिटत होने से रोकने क दौरान
ऐसा बत कछ होता रहा िजसम उनक ?द
क जान पर बन आती थी। सीवर क मैनहोल
म िगरना, िवफोट से कार क िपछले िहसे से
लोह क टकड़ का ट?ट कर िसर म पहने
हलमेट पर जा टकराना, देसी क से िनकले
छर का बॉडी ोट टर म धँस जाना। गगा गग
क सनसनाती गोली का िसर क ऊपर से
िनकल जाना और एक अनुभवी हड
कॉसटबल ारा हज़ार उपिवय क भीड़ म
घुसते ए युवा एस.पी.का हाथ पकड़ लेना...
ऐसे कई ण आते ह जब लेखक क शुभ
संकार का ितफल उनक साथ मज़बूती से
खड़ा था।
आका क पतरबाजी पुिलस क किठन
काय को िकस कार जिटल बना देती ह,
य क पीछ क यह वातिवकता पुतक म
विणत घटनाम क रोमांच को ोभ म
बदलने म देर नह लगाती। पाठक ुध होता
ह। साथ ही इस हक़क़त से भी -ब- होता
ह िक कोई भी मुिखया अपने ईमानदार और
नैितक बल वाले अिधकारी को गँवाने का
जोिखम नह उठा सकता। लािज़म ह िक कोई
भी सरकार रही हो, सबको अिनल रतूड़ी जैसे
िनावान और ऊजावान पुिलस अिधकारी
क ज़रत बनी रही। काम से काम रखने
वाले अिधकारी ने पद क अनुप सबका
समान करते ए उनसे मेलजोल का कभी न
औसुय िदखाया और न ही उसक पास कभी
ऐसा कोई िनजी कारण रहा िक वे महवपूण
पद पर िवराजमान क ओर दौड़ लगाए।
संान तो बत ने िलया अिधकारी क
योयता और मौक पर कारगर एशन का
लेिकन वीरता मेडल इतज़ार ही करते रह।
आमसंतु क खुराक से अिधकारी क य
पथ पर असर रहा। न कवल मैदान म ब क
िशण-िशण क ? म भी लेखक ने
अपना सव म िदया। अंेज़ी सािहय क
िवाथ रह लेखक को हदराबाद पुिलस
अकादमी म युवा पुिलस अिधकारय को
िशित करने का काय बत भाया। शायद
यहाँ सब कछ सकारामक था, इसिलए। यही
नह, नव राय क प म उरांचल का गठन
क चुनौितय से लेकर 2013 क कदारनाथ
आपदा और 2020 क करोना काल क
िवभीिषका का सामना करने तक वे क य
माग पर डट कर खड़ रह।
समाज क जिटल संरचना, पर थित
िवशेष और वाथ तव क करतूत से
अिधक िसटम क लाचारी पुिलस क
आमबल को कमज़ोर करती ह, जैसे-जैसे
पाठक इससे -ब- होता ह, उसका मन
िख? होता ह। कई यािशत-अ यािशत
थानातरण क मय परवार और परजन
िवशेषकर अधािगनी क संबल और
सहनशीलता का अवलंब एक पुिलस
अिधकारी क िलए या मायने रखता ह,
इसका जो िच उभर कर आता ह, वह दय
को छ? जाता ह। दरअसल पूर परवार का
अवदान होता ह अपने पुिलस वाले क नौकरी
म। िजतना ऊचा पद, उतना बड़ा अवदान।
सािह यक अिभिच क अिनल जी को
रटायरमट क बाद समय िमला अपनी पुिलस
सेवा क चुिनंदा वृांत को काग़ज़ म उतारने
का। उनम कछ जैसे मंडल आंदोलन,
अयोया म िववािदत ढाँचे का वत होना तो
इतने भीषण और यापक रह िक लोग क
मृित से ओझल भी नही ए ह। जनसाधारण
ने आगजनी, आमदाह, सा दाियक दंगे,
जानमाल क हािन, कयू, बाज़ार बंद, कल
बंद – सब देखा, सब सुना लेिकन पुिलस क
या भूिमका रही, इस पर यान ही नह िदया।
दरअसल पुिलस और जनता म कवल
टकराहट होती ह, संवाद नह होता।
'खाक...' ने इस असंवाद क दीवार को तोड़ा
ह। लेखक अिनल जी का हािदक आभार िक
उहने इस पुतक क ज़रए पुिलस क उस
प को s?? म लाने का काय िकया ह जो
अमूमन आमजन क नज़र से कभी आता ही
नह। वैसे भी उसे पुिलस क ख़ािमयाँ िगनाने
क आदत पड़ी ई ह।
दंगे रात-िदन नह देखते, खाक क िलए
भी रात-िदन नह होता। राि म बारह बजे
अधीनथ क बैठक लेना, रात भर पैदल चल
कर थित पर नज़र रखना, िकसी भी आशंका
क थित म वयं सीधे प चने क कवायद
करना, हालात का सामना करना... पुतक म
आए ऐसे य यवथा म पुिलस क भूिमका
को लेकर हमारी जानकारी को दु त करते
ह। िन त ही यह पुतक पुिलस सेवाकिमय
और िशु क िलए तो मागदशक का
काय करगी ही, आमजन म पुिलस बल क
ित सकारामक कोण ओर सहयोग
भावना िवकिसत करने म भी मददगार िस
होगी।
खाक म थत ... शीषक भी िवशेष
ह, गहर भावबोध वाला, सुसंगत। हर
अपेित-अनपेित पो टग-िजमेदारी को
िजस समभाव और वरता से िलया, िजस
दिचता से उनका िनवहन िकया, िजस
आमानुशासन, यायामािद से वयं को
ऊजावान बनाए रखा, वह संपूण विनत होता
ह इस शीषक म। और, जहाँ तक 'खाक' क
रचना िशप का न ह तो वह िवषय क
अनुप ह। संमरण, डायरी, कमटरी और
रपोताज का िमला-जुला प। दरअसल जब
सब कछ िवषय ही हो तब उसम सािहय क
िकसी िवधा को ढ ढ़ना भी बेमानी ह। कोई
अगर-मगर नह, कोई आरोप- यारोप नह,
कोई िगला-िशकवा नह...। सीधा-सटीक
वणन, आँख देखा हाल जैसा। और, वाह
इतना िक पाठक वयं घटनाम का
चमदीद गवाह बन जाता ह। िन त ही उसे
इस संवाद क और किड़य का इतज़ार रहगा।
000
'खाक म थत ' म पुिलस क वद क बौखलाती चुनौितयाँ, मूक िवडबनाएँ और
कण अनुभूितयाँ ह। अपने सेवाकाल क दौरान घटी महवपूण घटना क परेय म इनको
साझा करक पुतक क रचनाकार डीजीपी, उराखंड (अवकाश ा) अिनल रतूड़ी ने िजस
कार पुिलस और सामाय जन क बीच असंवाद क दीवार िगराई ह, वह सामािजक
क ठाजिनत आपदा क आमहता वृि को लेकर जन मानस को सावधान करती ह।
साथ ही, पुतक पुिलस क वद धारण िकए पेशेवर सेवक क क़ानून तोड़ने वाल क बीच
क़ानून का कम से कम योग कर यवथा को बनाए रखने क ज?ोजहद को बड़ भावी
तरीक से बयाँ करती ह। वह नह चाहता िक उसक लाठी मानव देह पर पड़। वह हिगज़ नह
चाहता िक उसक िपतौल क गोली से िकसी क ाणपखे उड़ जाएँ। वह नह चाहता िक
उसक कायवाही िकसी नासमझ क भिवय को बदरग कर दे। उसक भरसक कोिशश रहती ह
िक कवल ज़मीन पर लाठी फटकार कर और हवा म रवावर लहरा कर हालात क़ाबू म आ
जाएँ। वतुतः वद क भीतर सब आम इसान ह, वद ने बस उसे कछ श याँ कहो, या िफर
अिधकार दे िदए ह, क़ानून यवथा बनाए रखने क िलए।
हिथयार का योग िकया तो पीकरण दो, नह िकया तो पेशेवर योयता क कमी ह।
क़ानून का डडा चलाया तो िबना आवाज़ क डड क िलए पीठ तैयार रखो यिक जाँच होने पर
बल योग करने वाल क बचने क संभावना बल योग न करने वाल क बिनपत कम रहती
ह। अभी जयजयकार, अभी थू-थू, मैदान म जीत तो अदालत म हार, आरोपी मु, आरोपक से
पूछताछ ...या िफर लेखक क शद म - करो तो मरो, न करो तो भी मरो - ऐसे कई िवरोधाभासी
रग िछपे ह पुिलस क खाक म। िनयु प क साथ नथी रहता ह िनलंबन प। िकसान नेता
मह िसंह िटकत को िगरतार कर उसक अजेयता का िमथक तोड़ा। अुत कामयाबी।
बधाइयाँ, पुरकार क हलचल...! िफर, हो हा, दबाव, सरकारी समझौते, िटकत क
रहाई...। इतना काफ नह, संलन पुिलस अिधकारय, एस पी बरली क िनलंबन पर
सहमित...!
िवसर प लकशन, देहरादून से कािशत 'खाक म थत ' क लेखक 1987 क बैच क
आईपीएस अिनल रतूड़ी ने देश क ख़बर म बने रहने वाले राय उर देश म अपनी नौकरी
क दौरान कई संवेदनशील वारदात का िजस कार सामना िकया और िजस कार अपनी
िनभकता और क यपरायणता क शीगामी व दूरगामी परणाम क झलक िदखाई, वह
च यूह म फसे अिभमयु क थित को िब बत करता ह।
योयता, िशण, अनुशासन, क य भावना, मानवता और नैितकता क अ से िकसी
भी किठन पर थित का सामना िकया जा सकता ह, यवथा क दलदल म अपंक खड़ रहा जा
सकता ह, िवपरीत बयार म भी सरकारी सेवा क मयादा को अुण रखा जा सकता ह,
िनकाम कम भावना से अपने क य पथ पर अिडग खड़ा रहा जा सकता ह, इसका ांत बन
गई ह उनक पुिलस क सेवा। घंट िबना खाए-िपए दंगा त इलाक़ म पैदल चल कर हालात
का जायज़ा लेना, रात क तीसर पहर पुिलस चौक क एक मा करसी पर अपने साथ ूटी पर
चल रह िपता क उ क एसडीएम साहब को िबठा कर ?द ट?टी खाट पर टक लगाना... पढ़ते-
पढ़ते पाठक को महसूस होने लगता ह - वद का बोझ...।
जय-पराजय, लाभ-हािन, मान-अपमान से िनिवकार पुिलस अिधकारी अिनल रतूड़ी अपनी
हर पो टग, अपने हर थानातरण को िजस समभाव से लेते रह, वह कोई थत ही कर
सकता ह। थत होना योग क अवथा ह। अिनल जी कमयोगी ह। लेिकन मैदान म जब
चुनौितय से िघर ह और िकसी भी पल कछ भी हो सकता ह, क हालात उप हो गए ह, तब
पेशेवर योयता क अलावा कशव का अवलंब चािहए। अयथा य से फाइल बनने म देर
नह लगती। भगव गीता म िकसी भी कम क पाँच कारक बताए गए ह – आधार यािन कारण,
कता यािन करने वाला, इियाँ यािन िफटनेस, चे?ा यािन एशन, और दैव यािन शुभाशुभ कम
पुतक समीा
(संमरण)
खाक म थत
समीक : सरोिजनी नौिटयाल
लेखक : अिनल रतूड़ी
काशक : िवसर प लिशंग क.,
देहरादून (उराखंड)
सरोिजनी नौिटयाल
176, आराघर, देहरादून,
उराखंड
मोबाइल- 9410983596

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क संकार।
पहले चार भले ही य क वश म ह
लेिकन पाँचवाँ जो अ य और सबसे
महवपूण ह, वह ह दैव िजसे सामाय जन
भाय कहते ह। िन त ही अिनल रतूड़ी जी
का दैव बलशाली ह जो भीषण दंग क मय वे
बाल-बाल बचे, एक बार नह, कई बार।
नौकरी क शुआती दौर म ही बदायूँ दंगे,
मंडल आंदोलन, िकसान आंदोलन, तराई का
आतंकवाद, राम जम भूिम आंदोलन, मेरठ
क जातीय िहसा, गगा गग से मुठभेड़, मुरहम
जुलूस जैसी िवकट िहसक वारदात म मैदान
म खड़ होकर उ भीड़ को िनयंित करना
और अपने साहस, बुि-िववेक से संभािवत
न-ख़राबे को घिटत होने से रोकने क दौरान
ऐसा बत कछ होता रहा िजसम उनक ?द
क जान पर बन आती थी। सीवर क मैनहोल
म िगरना, िवफोट से कार क िपछले िहसे से
लोह क टकड़ का ट?ट कर िसर म पहने
हलमेट पर जा टकराना, देसी क से िनकले
छर का बॉडी ोट टर म धँस जाना। गगा गग
क सनसनाती गोली का िसर क ऊपर से
िनकल जाना और एक अनुभवी हड
कॉसटबल ारा हज़ार उपिवय क भीड़ म
घुसते ए युवा एस.पी.का हाथ पकड़ लेना...
ऐसे कई ण आते ह जब लेखक क शुभ
संकार का ितफल उनक साथ मज़बूती से
खड़ा था।
आका क पतरबाजी पुिलस क किठन
काय को िकस कार जिटल बना देती ह,
य क पीछ क यह वातिवकता पुतक म
विणत घटनाम क रोमांच को ोभ म
बदलने म देर नह लगाती। पाठक ुध होता
ह। साथ ही इस हक़क़त से भी -ब- होता
ह िक कोई भी मुिखया अपने ईमानदार और
नैितक बल वाले अिधकारी को गँवाने का
जोिखम नह उठा सकता। लािज़म ह िक कोई
भी सरकार रही हो, सबको अिनल रतूड़ी जैसे
िनावान और ऊजावान पुिलस अिधकारी
क ज़रत बनी रही। काम से काम रखने
वाले अिधकारी ने पद क अनुप सबका
समान करते ए उनसे मेलजोल का कभी न
औसुय िदखाया और न ही उसक पास कभी
ऐसा कोई िनजी कारण रहा िक वे महवपूण
पद पर िवराजमान क ओर दौड़ लगाए।
संान तो बत ने िलया अिधकारी क
योयता और मौक पर कारगर एशन का
लेिकन वीरता मेडल इतज़ार ही करते रह।
आमसंतु क खुराक से अिधकारी क य
पथ पर असर रहा। न कवल मैदान म ब क
िशण-िशण क ? म भी लेखक ने
अपना सव म िदया। अंेज़ी सािहय क
िवाथ रह लेखक को हदराबाद पुिलस
अकादमी म युवा पुिलस अिधकारय को
िशित करने का काय बत भाया। शायद
यहाँ सब कछ सकारामक था, इसिलए। यही
नह, नव राय क प म उरांचल का गठन
क चुनौितय से लेकर 2013 क कदारनाथ
आपदा और 2020 क करोना काल क
िवभीिषका का सामना करने तक वे क य
माग पर डट कर खड़ रह।
समाज क जिटल संरचना, पर थित
िवशेष और वाथ तव क करतूत से
अिधक िसटम क लाचारी पुिलस क
आमबल को कमज़ोर करती ह, जैसे-जैसे
पाठक इससे -ब- होता ह, उसका मन
िख? होता ह। कई यािशत-अ यािशत
थानातरण क मय परवार और परजन
िवशेषकर अधािगनी क संबल और
सहनशीलता का अवलंब एक पुिलस
अिधकारी क िलए या मायने रखता ह,
इसका जो िच उभर कर आता ह, वह दय
को छ? जाता ह। दरअसल पूर परवार का
अवदान होता ह अपने पुिलस वाले क नौकरी
म। िजतना ऊचा पद, उतना बड़ा अवदान।
सािह यक अिभिच क अिनल जी को
रटायरमट क बाद समय िमला अपनी पुिलस
सेवा क चुिनंदा वृांत को काग़ज़ म उतारने
का। उनम कछ जैसे मंडल आंदोलन,
अयोया म िववािदत ढाँचे का वत होना तो
इतने भीषण और यापक रह िक लोग क
मृित से ओझल भी नही ए ह। जनसाधारण
ने आगजनी, आमदाह, सा दाियक दंगे,
जानमाल क हािन, कयू, बाज़ार बंद, कल
बंद – सब देखा, सब सुना लेिकन पुिलस क
या भूिमका रही, इस पर यान ही नह िदया।
दरअसल पुिलस और जनता म कवल
टकराहट होती ह, संवाद नह होता।
'खाक...' ने इस असंवाद क दीवार को तोड़ा
ह। लेखक अिनल जी का हािदक आभार िक
उहने इस पुतक क ज़रए पुिलस क उस
प को s?? म लाने का काय िकया ह जो
अमूमन आमजन क नज़र से कभी आता ही
नह। वैसे भी उसे पुिलस क ख़ािमयाँ िगनाने
क आदत पड़ी ई ह।
दंगे रात-िदन नह देखते, खाक क िलए
भी रात-िदन नह होता। राि म बारह बजे
अधीनथ क बैठक लेना, रात भर पैदल चल
कर थित पर नज़र रखना, िकसी भी आशंका
क थित म वयं सीधे प चने क कवायद
करना, हालात का सामना करना... पुतक म
आए ऐसे य यवथा म पुिलस क भूिमका
को लेकर हमारी जानकारी को दु त करते
ह। िन त ही यह पुतक पुिलस सेवाकिमय
और िशु क िलए तो मागदशक का
काय करगी ही, आमजन म पुिलस बल क
ित सकारामक कोण ओर सहयोग
भावना िवकिसत करने म भी मददगार िस
होगी।
खाक म थत ... शीषक भी िवशेष
ह, गहर भावबोध वाला, सुसंगत। हर
अपेित-अनपेित पो टग-िजमेदारी को
िजस समभाव और वरता से िलया, िजस
दिचता से उनका िनवहन िकया, िजस
आमानुशासन, यायामािद से वयं को
ऊजावान बनाए रखा, वह संपूण विनत होता
ह इस शीषक म। और, जहाँ तक 'खाक' क
रचना िशप का न ह तो वह िवषय क
अनुप ह। संमरण, डायरी, कमटरी और
रपोताज का िमला-जुला प। दरअसल जब
सब कछ िवषय ही हो तब उसम सािहय क
िकसी िवधा को ढ ढ़ना भी बेमानी ह। कोई
अगर-मगर नह, कोई आरोप- यारोप नह,
कोई िगला-िशकवा नह...। सीधा-सटीक
वणन, आँख देखा हाल जैसा। और, वाह
इतना िक पाठक वयं घटनाम का
चमदीद गवाह बन जाता ह। िन त ही उसे
इस संवाद क और किड़य का इतज़ार रहगा।
000
'खाक म थत ' म पुिलस क वद क बौखलाती चुनौितयाँ, मूक िवडबनाएँ और
कण अनुभूितयाँ ह। अपने सेवाकाल क दौरान घटी महवपूण घटना क परेय म इनको
साझा करक पुतक क रचनाकार डीजीपी, उराखंड (अवकाश ा) अिनल रतूड़ी ने िजस
कार पुिलस और सामाय जन क बीच असंवाद क दीवार िगराई ह, वह सामािजक
क ठाजिनत आपदा क आमहता वृि को लेकर जन मानस को सावधान करती ह।
साथ ही, पुतक पुिलस क वद धारण िकए पेशेवर सेवक क क़ानून तोड़ने वाल क बीच
क़ानून का कम से कम योग कर यवथा को बनाए रखने क ज?ोजहद को बड़ भावी
तरीक से बयाँ करती ह। वह नह चाहता िक उसक लाठी मानव देह पर पड़। वह हिगज़ नह
चाहता िक उसक िपतौल क गोली से िकसी क ाणपखे उड़ जाएँ। वह नह चाहता िक
उसक कायवाही िकसी नासमझ क भिवय को बदरग कर दे। उसक भरसक कोिशश रहती ह
िक कवल ज़मीन पर लाठी फटकार कर और हवा म रवावर लहरा कर हालात क़ाबू म आ
जाएँ। वतुतः वद क भीतर सब आम इसान ह, वद ने बस उसे कछ श याँ कहो, या िफर
अिधकार दे िदए ह, क़ानून यवथा बनाए रखने क िलए।
हिथयार का योग िकया तो पीकरण दो, नह िकया तो पेशेवर योयता क कमी ह।
क़ानून का डडा चलाया तो िबना आवाज़ क डड क िलए पीठ तैयार रखो यिक जाँच होने पर
बल योग करने वाल क बचने क संभावना बल योग न करने वाल क बिनपत कम रहती
ह। अभी जयजयकार, अभी थू-थू, मैदान म जीत तो अदालत म हार, आरोपी मु, आरोपक से
पूछताछ ...या िफर लेखक क शद म - करो तो मरो, न करो तो भी मरो - ऐसे कई िवरोधाभासी
रग िछपे ह पुिलस क खाक म। िनयु प क साथ नथी रहता ह िनलंबन प। िकसान नेता
मह िसंह िटकत को िगरतार कर उसक अजेयता का िमथक तोड़ा। अुत कामयाबी।
बधाइयाँ, पुरकार क हलचल...! िफर, हो हा, दबाव, सरकारी समझौते, िटकत क
रहाई...। इतना काफ नह, संलन पुिलस अिधकारय, एस पी बरली क िनलंबन पर
सहमित...!
िवसर प लकशन, देहरादून से कािशत 'खाक म थत ' क लेखक 1987 क बैच क
आईपीएस अिनल रतूड़ी ने देश क ख़बर म बने रहने वाले राय उर देश म अपनी नौकरी
क दौरान कई संवेदनशील वारदात का िजस कार सामना िकया और िजस कार अपनी
िनभकता और क यपरायणता क शीगामी व दूरगामी परणाम क झलक िदखाई, वह
च यूह म फसे अिभमयु क थित को िब बत करता ह।
योयता, िशण, अनुशासन, क य भावना, मानवता और नैितकता क अ से िकसी
भी किठन पर थित का सामना िकया जा सकता ह, यवथा क दलदल म अपंक खड़ रहा जा
सकता ह, िवपरीत बयार म भी सरकारी सेवा क मयादा को अुण रखा जा सकता ह,
िनकाम कम भावना से अपने क य पथ पर अिडग खड़ा रहा जा सकता ह, इसका ांत बन
गई ह उनक पुिलस क सेवा। घंट िबना खाए-िपए दंगा त इलाक़ म पैदल चल कर हालात
का जायज़ा लेना, रात क तीसर पहर पुिलस चौक क एक मा करसी पर अपने साथ ूटी पर
चल रह िपता क उ क एसडीएम साहब को िबठा कर ?द ट?टी खाट पर टक लगाना... पढ़ते-
पढ़ते पाठक को महसूस होने लगता ह - वद का बोझ...।
जय-पराजय, लाभ-हािन, मान-अपमान से िनिवकार पुिलस अिधकारी अिनल रतूड़ी अपनी
हर पो टग, अपने हर थानातरण को िजस समभाव से लेते रह, वह कोई थत ही कर
सकता ह। थत होना योग क अवथा ह। अिनल जी कमयोगी ह। लेिकन मैदान म जब
चुनौितय से िघर ह और िकसी भी पल कछ भी हो सकता ह, क हालात उप हो गए ह, तब
पेशेवर योयता क अलावा कशव का अवलंब चािहए। अयथा य से फाइल बनने म देर
नह लगती। भगव गीता म िकसी भी कम क पाँच कारक बताए गए ह – आधार यािन कारण,
कता यािन करने वाला, इियाँ यािन िफटनेस, चे?ा यािन एशन, और दैव यािन शुभाशुभ कम
पुतक समीा
(संमरण)
खाक म थत
समीक : सरोिजनी नौिटयाल
लेखक : अिनल रतूड़ी
काशक : िवसर प लिशंग क.,
देहरादून (उराखंड)
सरोिजनी नौिटयाल
176, आराघर, देहरादून,
उराखंड
मोबाइल- 9410983596

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 202553 52 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2025
औरत बस मरद क शारीरक ज़रत को पूरा
करने भर को ही ह उसका अपना कोई वजूद
नह ह उसक इछाएँ, सपने कोई मायने नह
रखते। मरणास? पनी क बार म सोचना तो
दूर अपनी सोलह साल क बेटी िब?ो को
गाँव म रहने वाले तीस साल क दोहाजू रन,
िजसक बीबी एक साल पहले ही बा पैदा
होने क समय मरी ह, से याहने म भी मोहन
को कोई गुरज़ नह ह उह तो बस अपने राते
का काँटा िनकालना ह।
रन क बीबी भी बेचारी..."दादी कहती
ह कमरयन क भाग से सुहािगन मरत ह"...
जैसे शादी होना और सुहागन मरना ही ी का
सौभाय ह। एक क मरते ही मरद दूसरी शादी
क िलये तैयार िब?ो क उ को देखती ई
अमा भी यंय करती ई कहती ह...
"औरत िजतनी जवान हो मरद उतना ही
जवान हो जाता ह िब?ो क बाद िफर सोलह
साल क ले आएँगे"।
"इस देश म मशान म ही लड़िकय क
बाप पैगाम लेकर प च जाते ह आिख़र उह
भी तो अपना बोझ उतारना ह।" िकतना बड़ा
यंय ह। लड़िकयाँ बोझ ही तो ह जहाँ चाह
जैसे चाह िकसी भी खूँट से बाँध िदया। सबक
मन म सा ह कछ न कर पाने क छटपटाहट
ह। वसुधा भी गाँव क इह सब बात को
देखती आ रही ह हालाँिक मामा ने शहर म उसे
पढ़ाया ह िफर भी मुँह नह खोल पाती। संजय
से अपनी ?द क शादी को लेकर उसक मन
म कह न कह एक अपराघ बोध सा रहता ह
जबिक संजय क माता-िपता ने उसे वीकार
िलया ह। संकोच से दबी रहती ह। शायद इसी
वजह से कभी अपने भाई चंदर को शहर लाने
का याल ही नह आया। िब?ो क शादी को
लेकर काफ परशान ह पर कछ कर नह
पाती।
मामा का िबो से कहना, "औरत को
पानी क तरह होना चािहए िजस बतन म डाल
दो उसी क श ले ले।" वसुधा को से से
भर देता ह मामा से ही नह पूर पुष समाज से
पूछना चाहती ह और मरद क िलये या कहा
जाता ह पनी मरी भी नह और दूसरी शादी क
तैयारी...
से से मन सुलग रहा ह पर कहाँ कछ
कह पाती ह। िपतृसामक सा ने ी से
न करने का हक़ छीन िलया ह या शायद
बरस से ठक-ठककर भर िदये गए
संकार... िफर भी माँ क मरने पर िपता क घर
न जाने का िनणय लेकर िब?ो ने ितरोध
करने क िहमत क।
रत क इह उलझे-सुलझे सवाल क
बीच वसुधा क भाई चंदर को संजय क िपता
जी शहर लाकर पढ़ाते-िलखाते ह और वह
एक अछा वकल बन जाता ह पर अब वह
भी गाँव जाने से कतराने लगा ह। सारी िज़ंदगी
अमा गाँव क उस घर म ऐसी िज़ंदगी जीती
रह जहाँ कछ भी अपना नह था बपा से कभी
मन िमला ही नह तो घर कसा पता नह कसे
इतने साल उन रत को िनबाहा, िफर भी
कछ तो था, शायद अपने ब म अपना
अस देख कर जीती रही ह।
बाबा को छोड़कर मोहन मामा, बपा,
रन, चंदर और िफर िब?ो का बेटा रघु
सभी का नजरया औरत क ित सही नह
रहा। कम से कम बाबा ने बेट से छ?पाकर ही
सही बेटी क िलए सोचा तो सही वरना एक
बार बेटी िवदा ई तो मायक क दरवाज़े उसक
िलये हमेशा क िलए बंद। चंदर जो अमा क
आगे-पीछ लगा रहता था शहर आते ही गाँव
को लेकर उसे न जाने या हो गया िक अब
वह न तो गाँव आना चाहता ह न अमा को
शहर लाना चाहता ह। चंदर रत से िनबध
और आज़ाद हो गया लगता ह। बपा क जाने
क बाद तो वह िनममता क हद तक अमा को
बत कछ कह जाता ह िक अब वह उह यार
नह करता, चुप भी तो रह सकता था पर कह
गया सब कछ,रत क बीच कसे इतनी
दूरयाँ बढ़ ग। सोचो तो ज़रा कसे अमा
अपने अंितम िदन म उस अंधेर गाँव म
अकली और परय हो ग। ऐसे ट?टन भर
पल म या चलता होगा अमा क मन
म...इतनी लंबी िज़ंदगी... वे गाँव म रह कर
भी गाँव म अपने होने को नकारती रह और
जब उनक दोन बे शहर म सफल जीवन
िबता रह थे तो उनक हालात ने उह गाँव म ही
प चा िदया। उनक अ तव को चंदर ारा
नकारने पर,सारी संभावना क ख़म होने
पर, जब कोई सपना न बचा हो तो मन क
काठ होने क अलावा कछ भी तो शेष नह
रहता। अमा धीर-धीर काठ बन ग थी घर
क मेज-कस, िखड़क दरवाज़ क
तरह...िकतना सच।
अमा और िब?ो क ज़रए य क
दशा और िदशा पर काश डालता यह
उपयास बड़ सहज सरल भाषा म पाठक को
लगातार बाँधे रहता ह वह अपने आस-पास
रत क इह गाँठ को बनते-िबगड़ते देखता
चलता ह। मम और संवेदना का अनूठा संगम
मन को झकझोर देता ह। संवादपरक मीण
भाषा आँख क सामने य सा उप थत कर
देती ह संपूण परवेश जीिवत हो उठता ह।
शहर और गाँव क बीच आते जाते रहने क
कारण आपसी रत म ं, यवहार म
टकराहट और दोहरापन भी िदखाई पड़ता ह।
गाँव क भाषा, मुहावर और उ य ने
उपयास म रोचकता और वाह बनाये रखा
ह।
सामािजक यवथा पर चोट करता यह
उपयास पाठक को सचेत करते ये बेचैन
करता ह, ग़लत क िखलाफ़ आवाज़ उठाने
को ेरत करते इस उपयास म सुमित जी क
सोच और नज़रया भी प ह। उपयास म
एक ओर गहरी उथल-पुथल ह, िनराशा ह तो
दूसरी ओर उमीद क उजास भी ह।
ितरोध क आवाज़ को हवा देता सिदय
से थािपत सामािजक मानदंड पर सवाल
उठाता यह उपयास बत कछ सोचने को
िववश करता ह। य क ित होते अयाय
और उसक दुख पाठक को अपने ित होते से
लगते ह। ी भी तो इसी समाज का िहसा ह
उसक भी आकांाएँ, सपने ह लेिकन
िपतृसामक परवार म उस पर इस कदर
िनयंण रखा जाता ह िक वह इससे बाहर
आने को छटपटाने लगती ह। पारवारक
रत का गंभीर िवेषण करते और मानव
मन क अंधेर और उजाल क बीच क याा
करते इस ?बसूरत उपयास क िलये सुमित
जी को बत-बत बधाई।
000
सुमित ससेना लाल का उपयास "वे लोग" पढ़ने का मौका िमला। ामीण जीवन का
वातिवक अनुभव न होने क बावजूद उपयास म उनक कपना क गाँव क य, रहन-सहन
और समया का जीवंत वणन ह उनक पा क सोच पर शहर और गाँव दोन जगह का
असर िदखाई देता ह। पा कापिनक नह हमार और आपक घर क लोग ही लगते ह। ज़मीनी
साई को बयान करते उनक पा एकदम सच ह। उनका कहना सही ह िक उपयास लोग क
नह ब क रत क दातान ह, रते जो कोमल होते ए भी जिटल ह िजनक बीच सब कछ
कवल काला और सफ़द नह ह, इस काले सफ़द क बीच बत से हक-गाढ़ रग का इ धनुष
ह। उपयास म समय और पर थितय से जूझती य का मािमक िचण ह िजनक अपने
सपने ह, संघष ह, पीड़ा ह, दुख ह तो कह कछ सुख भी ह। सब कछ वाभािवक सा सिदय से
चलता चला आता आ।
पूर उपयास म ी क ितरोध क आहट सुनाई पड़ती ह भले ही वह मुखर न हो। बरस
पहले गाँव म याह दी गई अमा ह या िब?ो या िफर शहर म पढ़ी वसुधा हर ी पा समाज म
या य क ित दोगलेपन, यादितय और भेदभाव को महसूस करता ह भीतर ही भीतर
िवोह करता ह और पैर म पड़ी ज़ंजीर को तोड़ कर बाहर आने को आतुर ह पर िहमत ही नह
जुटा पाता। वसुधा भी नह जो देखती सुनती ह पढ़ी-िलखी ह पर चुप रह जाती ह। अमा का
भावहीन चेहरा, गाँव क फक िज़ंदगी, चेहर पर जमा अपनी िज़ंदगी क ित गहरा अवसाद
और नकार ितरोध का प ही तो ह सारी िज़ंदगी गाँव म बीत जाने क बाद भी वे न घर को
अपना पाय न बपा को। वे ऐसी िज़ंदगी वसुधा क िलए नह चाहत तभी िहमत जुटा कर अपने
बड़ भाई से कहती ह "दा इह अपने पास रख लो, अपने ब क तरह पढ़ा-िलखा कर
इसान बना दो, िज़ंदगी तो सुधर जाएगी। वह िबगड़ गई तो या क गी। अपनी तो बदा त कर
ली इनक नह झेल पाऊगी। गाँव म पली-बढ़ी लड़क गाँव क होकर रह जाएगी।" ऐसे
वातावरण म जहाँ अमा अपने आप को पूरी तरह से जोड़ न सक अपने ब क िज़ंदगी
संवारने क िलए िकतने धैय से संघष करती रह।
वसुधा म अमा अपने आप को देख रही ह। बरस पहले उनक सपने न? हो गए पर अब
नह। घर क वातावरण म दादी क कहावत म भी तो ी क दशा का प िचण ह। वसुधा
क छोटी मामी संतो गंभीर प से बीमार ह पर मामा उनक मरने क पहले ही दूसरी शादी को
तैय़ार बैठ ह। बपा का यह वाय िक "संतो क आजकल तो अब शु ई ह बीमार तो वह चार
साल से ह। मोहन बेचारा तो तब से रडए क िज़ंदगी जी रहा ह।" िकतना कछ कह गया जैसे
पुतक समीा
(उपयास)
वे लोग
समीक : मंजुी
लेखक : सुमित ससेना लाल
काशक : वाणी काशन, नई
?·??
मंजुी
ए-10 बसेरा, िदन ॉरी रोड,
देवनार, मुंबई- 400088
मोबाइल- 9819162949

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औरत बस मरद क शारीरक ज़रत को पूरा
करने भर को ही ह उसका अपना कोई वजूद
नह ह उसक इछाएँ, सपने कोई मायने नह
रखते। मरणास? पनी क बार म सोचना तो
दूर अपनी सोलह साल क बेटी िब?ो को
गाँव म रहने वाले तीस साल क दोहाजू रन,
िजसक बीबी एक साल पहले ही बा पैदा
होने क समय मरी ह, से याहने म भी मोहन
को कोई गुरज़ नह ह उह तो बस अपने राते
का काँटा िनकालना ह।
रन क बीबी भी बेचारी..."दादी कहती
ह कमरयन क भाग से सुहािगन मरत ह"...
जैसे शादी होना और सुहागन मरना ही ी का
सौभाय ह। एक क मरते ही मरद दूसरी शादी
क िलये तैयार िब?ो क उ को देखती ई
अमा भी यंय करती ई कहती ह...
"औरत िजतनी जवान हो मरद उतना ही
जवान हो जाता ह िब?ो क बाद िफर सोलह
साल क ले आएँगे"।
"इस देश म मशान म ही लड़िकय क
बाप पैगाम लेकर प च जाते ह आिख़र उह
भी तो अपना बोझ उतारना ह।" िकतना बड़ा
यंय ह। लड़िकयाँ बोझ ही तो ह जहाँ चाह
जैसे चाह िकसी भी खूँट से बाँध िदया। सबक
मन म सा ह कछ न कर पाने क छटपटाहट
ह। वसुधा भी गाँव क इह सब बात को
देखती आ रही ह हालाँिक मामा ने शहर म उसे
पढ़ाया ह िफर भी मुँह नह खोल पाती। संजय
से अपनी ?द क शादी को लेकर उसक मन
म कह न कह एक अपराघ बोध सा रहता ह
जबिक संजय क माता-िपता ने उसे वीकार
िलया ह। संकोच से दबी रहती ह। शायद इसी
वजह से कभी अपने भाई चंदर को शहर लाने
का याल ही नह आया। िब?ो क शादी को
लेकर काफ परशान ह पर कछ कर नह
पाती।
मामा का िबो से कहना, "औरत को
पानी क तरह होना चािहए िजस बतन म डाल
दो उसी क श ले ले।" वसुधा को से से
भर देता ह मामा से ही नह पूर पुष समाज से
पूछना चाहती ह और मरद क िलये या कहा
जाता ह पनी मरी भी नह और दूसरी शादी क
तैयारी...
से से मन सुलग रहा ह पर कहाँ कछ
कह पाती ह। िपतृसामक सा ने ी से
न करने का हक़ छीन िलया ह या शायद
बरस से ठक-ठककर भर िदये गए
संकार... िफर भी माँ क मरने पर िपता क घर
न जाने का िनणय लेकर िब?ो ने ितरोध
करने क िहमत क।
रत क इह उलझे-सुलझे सवाल क
बीच वसुधा क भाई चंदर को संजय क िपता
जी शहर लाकर पढ़ाते-िलखाते ह और वह
एक अछा वकल बन जाता ह पर अब वह
भी गाँव जाने से कतराने लगा ह। सारी िज़ंदगी
अमा गाँव क उस घर म ऐसी िज़ंदगी जीती
रह जहाँ कछ भी अपना नह था बपा से कभी
मन िमला ही नह तो घर कसा पता नह कसे
इतने साल उन रत को िनबाहा, िफर भी
कछ तो था, शायद अपने ब म अपना
अस देख कर जीती रही ह।
बाबा को छोड़कर मोहन मामा, बपा,
रन, चंदर और िफर िब?ो का बेटा रघु
सभी का नजरया औरत क ित सही नह
रहा। कम से कम बाबा ने बेट से छ?पाकर ही
सही बेटी क िलए सोचा तो सही वरना एक
बार बेटी िवदा ई तो मायक क दरवाज़े उसक
िलये हमेशा क िलए बंद। चंदर जो अमा क
आगे-पीछ लगा रहता था शहर आते ही गाँव
को लेकर उसे न जाने या हो गया िक अब
वह न तो गाँव आना चाहता ह न अमा को
शहर लाना चाहता ह। चंदर रत से िनबध
और आज़ाद हो गया लगता ह। बपा क जाने
क बाद तो वह िनममता क हद तक अमा को
बत कछ कह जाता ह िक अब वह उह यार
नह करता, चुप भी तो रह सकता था पर कह
गया सब कछ,रत क बीच कसे इतनी
दूरयाँ बढ़ ग। सोचो तो ज़रा कसे अमा
अपने अंितम िदन म उस अंधेर गाँव म
अकली और परय हो ग। ऐसे ट?टन भर
पल म या चलता होगा अमा क मन
म...इतनी लंबी िज़ंदगी... वे गाँव म रह कर
भी गाँव म अपने होने को नकारती रह और
जब उनक दोन बे शहर म सफल जीवन
िबता रह थे तो उनक हालात ने उह गाँव म ही
प चा िदया। उनक अ तव को चंदर ारा
नकारने पर,सारी संभावना क ख़म होने
पर, जब कोई सपना न बचा हो तो मन क
काठ होने क अलावा कछ भी तो शेष नह
रहता। अमा धीर-धीर काठ बन ग थी घर
क मेज-कस, िखड़क दरवाज़ क
तरह...िकतना सच।
अमा और िब?ो क ज़रए य क
दशा और िदशा पर काश डालता यह
उपयास बड़ सहज सरल भाषा म पाठक को
लगातार बाँधे रहता ह वह अपने आस-पास
रत क इह गाँठ को बनते-िबगड़ते देखता
चलता ह। मम और संवेदना का अनूठा संगम
मन को झकझोर देता ह। संवादपरक मीण
भाषा आँख क सामने य सा उप थत कर
देती ह संपूण परवेश जीिवत हो उठता ह।
शहर और गाँव क बीच आते जाते रहने क
कारण आपसी रत म ं, यवहार म
टकराहट और दोहरापन भी िदखाई पड़ता ह।
गाँव क भाषा, मुहावर और उ य ने
उपयास म रोचकता और वाह बनाये रखा
ह।
सामािजक यवथा पर चोट करता यह
उपयास पाठक को सचेत करते ये बेचैन
करता ह, ग़लत क िखलाफ़ आवाज़ उठाने
को ेरत करते इस उपयास म सुमित जी क
सोच और नज़रया भी प ह। उपयास म
एक ओर गहरी उथल-पुथल ह, िनराशा ह तो
दूसरी ओर उमीद क उजास भी ह।
ितरोध क आवाज़ को हवा देता सिदय
से थािपत सामािजक मानदंड पर सवाल
उठाता यह उपयास बत कछ सोचने को
िववश करता ह। य क ित होते अयाय
और उसक दुख पाठक को अपने ित होते से
लगते ह। ी भी तो इसी समाज का िहसा ह
उसक भी आकांाएँ, सपने ह लेिकन
िपतृसामक परवार म उस पर इस कदर
िनयंण रखा जाता ह िक वह इससे बाहर
आने को छटपटाने लगती ह। पारवारक
रत का गंभीर िवेषण करते और मानव
मन क अंधेर और उजाल क बीच क याा
करते इस ?बसूरत उपयास क िलये सुमित
जी को बत-बत बधाई।
000
सुमित ससेना लाल का उपयास "वे लोग" पढ़ने का मौका िमला। ामीण जीवन का
वातिवक अनुभव न होने क बावजूद उपयास म उनक कपना क गाँव क य, रहन-सहन
और समया का जीवंत वणन ह उनक पा क सोच पर शहर और गाँव दोन जगह का
असर िदखाई देता ह। पा कापिनक नह हमार और आपक घर क लोग ही लगते ह। ज़मीनी
साई को बयान करते उनक पा एकदम सच ह। उनका कहना सही ह िक उपयास लोग क
नह ब क रत क दातान ह, रते जो कोमल होते ए भी जिटल ह िजनक बीच सब कछ
कवल काला और सफ़द नह ह, इस काले सफ़द क बीच बत से हक-गाढ़ रग का इ धनुष
ह। उपयास म समय और पर थितय से जूझती य का मािमक िचण ह िजनक अपने
सपने ह, संघष ह, पीड़ा ह, दुख ह तो कह कछ सुख भी ह। सब कछ वाभािवक सा सिदय से
चलता चला आता आ।
पूर उपयास म ी क ितरोध क आहट सुनाई पड़ती ह भले ही वह मुखर न हो। बरस
पहले गाँव म याह दी गई अमा ह या िब?ो या िफर शहर म पढ़ी वसुधा हर ी पा समाज म
या य क ित दोगलेपन, यादितय और भेदभाव को महसूस करता ह भीतर ही भीतर
िवोह करता ह और पैर म पड़ी ज़ंजीर को तोड़ कर बाहर आने को आतुर ह पर िहमत ही नह
जुटा पाता। वसुधा भी नह जो देखती सुनती ह पढ़ी-िलखी ह पर चुप रह जाती ह। अमा का
भावहीन चेहरा, गाँव क फक िज़ंदगी, चेहर पर जमा अपनी िज़ंदगी क ित गहरा अवसाद
और नकार ितरोध का प ही तो ह सारी िज़ंदगी गाँव म बीत जाने क बाद भी वे न घर को
अपना पाय न बपा को। वे ऐसी िज़ंदगी वसुधा क िलए नह चाहत तभी िहमत जुटा कर अपने
बड़ भाई से कहती ह "दा इह अपने पास रख लो, अपने ब क तरह पढ़ा-िलखा कर
इसान बना दो, िज़ंदगी तो सुधर जाएगी। वह िबगड़ गई तो या क गी। अपनी तो बदा त कर
ली इनक नह झेल पाऊगी। गाँव म पली-बढ़ी लड़क गाँव क होकर रह जाएगी।" ऐसे
वातावरण म जहाँ अमा अपने आप को पूरी तरह से जोड़ न सक अपने ब क िज़ंदगी
संवारने क िलए िकतने धैय से संघष करती रह।
वसुधा म अमा अपने आप को देख रही ह। बरस पहले उनक सपने न? हो गए पर अब
नह। घर क वातावरण म दादी क कहावत म भी तो ी क दशा का प िचण ह। वसुधा
क छोटी मामी संतो गंभीर प से बीमार ह पर मामा उनक मरने क पहले ही दूसरी शादी को
तैय़ार बैठ ह। बपा का यह वाय िक "संतो क आजकल तो अब शु ई ह बीमार तो वह चार
साल से ह। मोहन बेचारा तो तब से रडए क िज़ंदगी जी रहा ह।" िकतना कछ कह गया जैसे
पुतक समीा
(उपयास)
वे लोग
समीक : मंजुी
लेखक : सुमित ससेना लाल
काशक : वाणी काशन, नई
?·??
मंजुी
ए-10 बसेरा, िदन ॉरी रोड,
देवनार, मुंबई- 400088
मोबाइल- 9819162949

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 202555 54 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2025
नह"। पुतक म पूव कािशत 'कहानी का
राता', 'आज क कहानी', 'कहानी म य
िवधान', 'कथा भोपाल', 'िहदी कहानी क दो
सौ बरस' आिद दस आलेख संकिलत ह।
कछ आलेख म पुतक क मूल उेय
कहानी क राते क तलाश से िवचलन भी
िदखाई देता ह। ऐसी पुतक जो पूणत: िवषय
कित न हो उसमे ऐसा होना कछ हद तक
वाभािवक ह।
पुतक का थम अयाय लेखक क िपता
कथाकार वनमालीजी क सािहय याा पर
ह। लेखक संेप म उनक जीवनवृ क साथ
उनक रचना ? ?? क बार म िवतार से
बताते ह। उनक अनुसार उनक लेखन पर
िपताजी क लेखन का गहरा भाव ह। सािहय
जग म वनमालीजी िजस राते से चले
लेखक का राता उसी से िनकला ह।
अयाय 2 'आज क कहानी' म लेखक
व मान काल क गितशीलता और तिनत
धुंध म प सोचने समझने म आ रही
किठनाई पर चचा करते ह। यह आज क समय
का कठोर सय ह। वे भारतीय समाज को
समता म देखे जाने का आह करते ह – "
भारतीय सामािजक-आिथक- राजनैितक
यथाथ, इन अलग-अलग गितशील समाज से
िमल कर बना ह। उसे िसफ महानगरीय
उरआधुिनक से देखना और िसफ उसी
क आधार पर रचना करना या रचना
आलोचना िवकिसत करना बड़ी ग़लती
होगी"। इस अयाय म व मान काल क
कहािनय म कय, िशप, अिभय शैली
आिद क पड़ताल ह। 'पुरानी' कहािनय म
उप थत भावोमेष क 'नई' कहािनय म ास
पर चचा ह। लेखक यहाँ आज क कहानीकार
ारा अपनाए जा रह अनेकानेक रात यथा;
नई छिबयाँ और गहराई, फतासी, सनसनी
आिद का उेख करते ह।
पुतक िभ?-िभ? समय म िलखे गए
आलेख का संकलन ह। ऐसे संकलन म
पुनरावृि क संभावना होती ह। यहाँ भी ह
और इसे लेखक ने भूिमका म वीकार भी
िकया ह। िकतु, सात-आठ पं य से अिधक
का दुहराव निच? खड़ा करता ह। पुतक
क अलग-अलग अयाय म मश: पृ? 15
से 21 तथा 83 से 89 तक सात पृ क
अरश: पुनरावृि ह। इसे पुतक सपादन
क समय ठीक करना उिचत होता।
अयाय 7 – 'कथा भोपाल' चालीस पृ
म फला िवतृत आलेख ह। झील, खडहर
और गंगा-जमुनी संकित वाले शहर भोपाल
पर लेखक ने गहन अययन क बाद िलखा ह।
यह वतुत: इस शहर क अतीत और व मान
पर िवतृत शोधालेख ह। इसमे भोपाल तथा
उसक आसपास क ऐितहािसक धरोहर-
साँची, िविदशा, भोजपुर आिद से संबंिधत
महवपूण जानकारयाँ ह। लेखक यहाँ अतीत
से चल कर िबकल अभी-अभी तक क
समय म आते ह। यहाँ भोपाल का आधुिनक
शहर म पांतरण, 1992 क िहदू- मु लम
दंगे, यूिनयन काबाईड क गैस ासदी आिद
घटना का वानुभूत मािमक िचण ह। यह
आलेख भोपाल क इितहास क अयेता क
िलए महवपूण संदभ दतावेज़ होगा। इस
अयाय म पुतक क मुय थीम कहानी का
राता से संगित िदखाई नह देती।
अयाय 9 – 'िहदी कहानी क सौ बरस'
म िवगत दो सौ वष क िहदी कहानी क
पड गताल ह। आरभ म िहदी कहानी क
संि याा िफर िहदी क अनेक नामचीन
समीक क लेख से िवतृत उरण ह। इनम
धनंजय वमा, गोपाल राय, देवीशंकर
अवथी, डॉ. नामवरिसंह, सुर चौधरी,
िवजयमोहनिसंह, शभु गु, खग ठाकर,
राजकमार, नीरज खर, िवनोद ितवारी, संजीव
चंदन, डॉ. ियदिशनी, रालिसंह आिद ह।
इन उरण क आधार पर लेखक अंत म
अपना मंतय देते ह।
दिलत कहानी मुय धारा क कहानी से
िनतांत िभ? अयंत ऊबड़-खाबड़ राते से
चल कर मुय धारा क परिध तक प ची ह ।
पृ 149 पर डॉ. ियदिशनी क इस िवषय
पर कछ पं याँ ह। पुतक म दिलत कहानी
क इतनी ही उप थित िदखाई देती ह जबिक,
उसक रात पर बत कछ िलखा जा सकता
ह।
अयाय 10 – 'िवान कथा का
अ?ुत संसार' म भारतीय ान-िवान परपरा
पर संि पात और पााय िवान
कथा लेखन क िवतृत चचा ह। लेखक
भारतीय भाषा म िवान कथा क संदभ
म बंगला, असमी, मराठी, तिमल, क?ड़,
पंजाबी आिद भाषा म िलखे / िलखे जा रह
कथा सािहय क िवषय म िवतार से बताते ह।
वे उीसव शतादी क उराध से व मान
समय तक िलखी गई िवान कथा का
िववरण देते ह।
अयाय 8 – 'कहानी म नएपन क
तलाश' – यह अयाय भी पूव म नामोेख
िकये जा चुक लेखक, समीक क उरण
से आरभ होता ह। उराध म मयदेश क
पुराने और नए युवा कथाकार का परचय
उनक कथा लेखन शैिलय का िव?ेषण ह,
उनक लेखन म नएपन क तलाश क गई ह।
िहदी कहानी और भोपाल क इितहास म
िच रखने वाले सामाय पाठक और
अयेता क िलए 'कहानी का राता'
पुतक एक महवपूण दतावेज़ िस होगी।
पठनीय संहणीय पुतक।
000
लेखक से अनुरोध
सभी समाननीय लेखक से संपादक मंडल
का िवन अनुरोध ह िक पिका म काशन
हतु कवल अपनी मौिलक एवं अकािशत
रचनाएँ ही भेज। वह रचनाएँ जो सोशल
मीिडया क िकसी मंच जैसे फ़सबुक,
हासएप आिद पर कािशत हो चुक ह,
उह पिका म काशन हतु नह भेज। इस
कार क रचना को हम कािशत नह
करगे। साथ ही यह भी देखा गया ह िक कछ
रचनाकार अपनी पूव म अय िकसी पिका म
कािशत रचनाएँ भी िवभोम-वर म काशन
क िलए भेज रह ह, इस कार क रचनाएँ न
भेज। अपनी मौिलक तथा अकािशत रचनाएँ
ही पिका म काशन क िलए भेज। आपका
सहयोग हम पिका को और बेहतर बनाने म
मदद करगा, धयवाद।
-सादर संपादक मंडल
िवगत कछ दशक म िव म िवान और तकनीक क िवकास से इतने सार परवतन ए ह
िजतने मानव इितहास म पहले कभी नह ए। ये इतनी ती गित से ए िक, उनक अंधड़ म
मनुय हतभ सा हो गया ह। िवान क शदावली म कहा जाए तो ये परवतन पीड नह
वेलॉिसटी या उससे भी अिधक ती गित से ए ह। सामािजक जीवन और मधुर पारवारक
संबंध िजनमे वह सुकन क साथ अब तक जीता था, दुदात गितय क क णिववर म जैसे खच
िलए गए ह। जीवन क हर ? म पूँजी का वच व थािपत हो गया। िवचार बुि, पयावरण,
जल, जंगल, ज़मीन, राजनीित, शासनतं सब पूँजी क रमोट क ोल से संचािलत हो रह ह।
िजस वातावरण म हम जीते आए थे उसका तानाबाना िछ?िभ? हो गया ह। िवचारणीय ह िक,
आज क इस माहौल म कहानी कहाँ ह " या कहानी ने इन परव न को आमसात िकया ह "
यिद हाँ, तो िकतना और िकस प म " इस अनजाने धरातल पर चलने क िलए उसने कौनसे
राते अ त यार िकये ह? 'कहानी का राता' पुतक म इह न क उर ढ ढ़ने क कोिशश
ह।
पुतक क लेखक संतोष चौबे का य व बआयामी ह। मूलत: वे तकनीक े से
आते ह। कथाकार, उपयासकार, किव, नाटककार संतोष चौबे का उपयास 'जलतरग' और
अय पुतक माण ह िक वे बत अययन, अनुसंधान और िचंतन-मनन क बाद कलम उठाते
ह। उनक लेखन म सागर सी गहराई क साथ सागर सा िवतार भी ह। वे अपनी थापना क
समथन म लेखक, समीक क िवतृत उरण देते ह या उनम से अपने िनकष िनकालते ह।
यह उनक िविश? लेखन शैली तीत होती ह।
'कहानी का राता' म लेखक कहानी क िविभ? तव यथा; ेम, य िवधान, अथ,
नयापन, आिद क तलाश करते ह। पुतक से गुज़रते ए एक बात क ओर बरबस यान जाता
ह। इसमे कहानी का राता िनधा रत करने वाला एक महवपूण कारक सामािजक सरोकार
अनुप थत ह।
पुतक का िवषय किठन नह िकतु, िवतृत और उलझा आ ह। वह गहन और मसाय
शोध क अपेा करता ह। लेखक ने वह अपेा पूरी क ह। भूिमका म वे कहते ह – "आलेख
म दुहराव भी ह यिक वे वतं आलेख क तरह िलखे गए और मेरी मूल थापनाएँ बदल
पुतक समीा
(आलोचना)
कहानी का राता
समीक : राजे नागदेव
लेखक : संतोष चौब े
काशक : आईसेट प लकशन
राज नागदेव
डी क 2- 166/18, दािनशक ज, कोलार
रोड, भोपाल – 462042
मोबाइल- 8989569036
ईमेल- [email protected]

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नह"। पुतक म पूव कािशत 'कहानी का
राता', 'आज क कहानी', 'कहानी म य
िवधान', 'कथा भोपाल', 'िहदी कहानी क दो
सौ बरस' आिद दस आलेख संकिलत ह।
कछ आलेख म पुतक क मूल उेय
कहानी क राते क तलाश से िवचलन भी
िदखाई देता ह। ऐसी पुतक जो पूणत: िवषय
कित न हो उसमे ऐसा होना कछ हद तक
वाभािवक ह।
पुतक का थम अयाय लेखक क िपता
कथाकार वनमालीजी क सािहय याा पर
ह। लेखक संेप म उनक जीवनवृ क साथ
उनक रचना ? ?? क बार म िवतार से
बताते ह। उनक अनुसार उनक लेखन पर
िपताजी क लेखन का गहरा भाव ह। सािहय
जग म वनमालीजी िजस राते से चले
लेखक का राता उसी से िनकला ह।
अयाय 2 'आज क कहानी' म लेखक
व मान काल क गितशीलता और तिनत
धुंध म प सोचने समझने म आ रही
किठनाई पर चचा करते ह। यह आज क समय
का कठोर सय ह। वे भारतीय समाज को
समता म देखे जाने का आह करते ह – "
भारतीय सामािजक-आिथक- राजनैितक
यथाथ, इन अलग-अलग गितशील समाज से
िमल कर बना ह। उसे िसफ महानगरीय
उरआधुिनक से देखना और िसफ उसी
क आधार पर रचना करना या रचना
आलोचना िवकिसत करना बड़ी ग़लती
होगी"। इस अयाय म व मान काल क
कहािनय म कय, िशप, अिभय शैली
आिद क पड़ताल ह। 'पुरानी' कहािनय म
उप थत भावोमेष क 'नई' कहािनय म ास
पर चचा ह। लेखक यहाँ आज क कहानीकार
ारा अपनाए जा रह अनेकानेक रात यथा;
नई छिबयाँ और गहराई, फतासी, सनसनी
आिद का उेख करते ह।
पुतक िभ?-िभ? समय म िलखे गए
आलेख का संकलन ह। ऐसे संकलन म
पुनरावृि क संभावना होती ह। यहाँ भी ह
और इसे लेखक ने भूिमका म वीकार भी
िकया ह। िकतु, सात-आठ पं य से अिधक
का दुहराव निच? खड़ा करता ह। पुतक
क अलग-अलग अयाय म मश: पृ? 15
से 21 तथा 83 से 89 तक सात पृ क
अरश: पुनरावृि ह। इसे पुतक सपादन
क समय ठीक करना उिचत होता।
अयाय 7 – 'कथा भोपाल' चालीस पृ
म फला िवतृत आलेख ह। झील, खडहर
और गंगा-जमुनी संकित वाले शहर भोपाल
पर लेखक ने गहन अययन क बाद िलखा ह।
यह वतुत: इस शहर क अतीत और व मान
पर िवतृत शोधालेख ह। इसमे भोपाल तथा
उसक आसपास क ऐितहािसक धरोहर-
साँची, िविदशा, भोजपुर आिद से संबंिधत
महवपूण जानकारयाँ ह। लेखक यहाँ अतीत
से चल कर िबकल अभी-अभी तक क
समय म आते ह। यहाँ भोपाल का आधुिनक
शहर म पांतरण, 1992 क िहदू- मु लम
दंगे, यूिनयन काबाईड क गैस ासदी आिद
घटना का वानुभूत मािमक िचण ह। यह
आलेख भोपाल क इितहास क अयेता क
िलए महवपूण संदभ दतावेज़ होगा। इस
अयाय म पुतक क मुय थीम कहानी का
राता से संगित िदखाई नह देती।
अयाय 9 – 'िहदी कहानी क सौ बरस'
म िवगत दो सौ वष क िहदी कहानी क
पड गताल ह। आरभ म िहदी कहानी क
संि याा िफर िहदी क अनेक नामचीन
समीक क लेख से िवतृत उरण ह। इनम
धनंजय वमा, गोपाल राय, देवीशंकर
अवथी, डॉ. नामवरिसंह, सुर चौधरी,
िवजयमोहनिसंह, शभु गु, खग ठाकर,
राजकमार, नीरज खर, िवनोद ितवारी, संजीव
चंदन, डॉ. ियदिशनी, रालिसंह आिद ह।
इन उरण क आधार पर लेखक अंत म
अपना मंतय देते ह।
दिलत कहानी मुय धारा क कहानी से
िनतांत िभ? अयंत ऊबड़-खाबड़ राते से
चल कर मुय धारा क परिध तक प ची ह ।
पृ 149 पर डॉ. ियदिशनी क इस िवषय
पर कछ पं याँ ह। पुतक म दिलत कहानी
क इतनी ही उप थित िदखाई देती ह जबिक,
उसक रात पर बत कछ िलखा जा सकता
ह।
अयाय 10 – 'िवान कथा का
अ?ुत संसार' म भारतीय ान-िवान परपरा
पर संि पात और पााय िवान
कथा लेखन क िवतृत चचा ह। लेखक
भारतीय भाषा म िवान कथा क संदभ
म बंगला, असमी, मराठी, तिमल, क?ड़,
पंजाबी आिद भाषा म िलखे / िलखे जा रह
कथा सािहय क िवषय म िवतार से बताते ह।
वे उीसव शतादी क उराध से व मान
समय तक िलखी गई िवान कथा का
िववरण देते ह।
अयाय 8 – 'कहानी म नएपन क
तलाश' – यह अयाय भी पूव म नामोेख
िकये जा चुक लेखक, समीक क उरण
से आरभ होता ह। उराध म मयदेश क
पुराने और नए युवा कथाकार का परचय
उनक कथा लेखन शैिलय का िव?ेषण ह,
उनक लेखन म नएपन क तलाश क गई ह।
िहदी कहानी और भोपाल क इितहास म
िच रखने वाले सामाय पाठक और
अयेता क िलए 'कहानी का राता'
पुतक एक महवपूण दतावेज़ िस होगी।
पठनीय संहणीय पुतक।
000
लेखक से अनुरोध
सभी समाननीय लेखक से संपादक मंडल
का िवन अनुरोध ह िक पिका म काशन
हतु कवल अपनी मौिलक एवं अकािशत
रचनाएँ ही भेज। वह रचनाएँ जो सोशल
मीिडया क िकसी मंच जैसे फ़सबुक,
हासएप आिद पर कािशत हो चुक ह,
उह पिका म काशन हतु नह भेज। इस
कार क रचना को हम कािशत नह
करगे। साथ ही यह भी देखा गया ह िक कछ
रचनाकार अपनी पूव म अय िकसी पिका म
कािशत रचनाएँ भी िवभोम-वर म काशन
क िलए भेज रह ह, इस कार क रचनाएँ न
भेज। अपनी मौिलक तथा अकािशत रचनाएँ
ही पिका म काशन क िलए भेज। आपका
सहयोग हम पिका को और बेहतर बनाने म
मदद करगा, धयवाद।
-सादर संपादक मंडल
िवगत कछ दशक म िव म िवान और तकनीक क िवकास से इतने सार परवतन ए ह
िजतने मानव इितहास म पहले कभी नह ए। ये इतनी ती गित से ए िक, उनक अंधड़ म
मनुय हतभ सा हो गया ह। िवान क शदावली म कहा जाए तो ये परवतन पीड नह
वेलॉिसटी या उससे भी अिधक ती गित से ए ह। सामािजक जीवन और मधुर पारवारक
संबंध िजनमे वह सुकन क साथ अब तक जीता था, दुदात गितय क क णिववर म जैसे खच
िलए गए ह। जीवन क हर ? म पूँजी का वच व थािपत हो गया। िवचार बुि, पयावरण,
जल, जंगल, ज़मीन, राजनीित, शासनतं सब पूँजी क रमोट क ोल से संचािलत हो रह ह।
िजस वातावरण म हम जीते आए थे उसका तानाबाना िछ?िभ? हो गया ह। िवचारणीय ह िक,
आज क इस माहौल म कहानी कहाँ ह " या कहानी ने इन परव न को आमसात िकया ह "
यिद हाँ, तो िकतना और िकस प म " इस अनजाने धरातल पर चलने क िलए उसने कौनसे
राते अ त यार िकये ह? 'कहानी का राता' पुतक म इह न क उर ढ ढ़ने क कोिशश
ह।
पुतक क लेखक संतोष चौबे का य व बआयामी ह। मूलत: वे तकनीक े से
आते ह। कथाकार, उपयासकार, किव, नाटककार संतोष चौबे का उपयास 'जलतरग' और
अय पुतक माण ह िक वे बत अययन, अनुसंधान और िचंतन-मनन क बाद कलम उठाते
ह। उनक लेखन म सागर सी गहराई क साथ सागर सा िवतार भी ह। वे अपनी थापना क
समथन म लेखक, समीक क िवतृत उरण देते ह या उनम से अपने िनकष िनकालते ह।
यह उनक िविश? लेखन शैली तीत होती ह।
'कहानी का राता' म लेखक कहानी क िविभ? तव यथा; ेम, य िवधान, अथ,
नयापन, आिद क तलाश करते ह। पुतक से गुज़रते ए एक बात क ओर बरबस यान जाता
ह। इसमे कहानी का राता िनधा रत करने वाला एक महवपूण कारक सामािजक सरोकार
अनुप थत ह।
पुतक का िवषय किठन नह िकतु, िवतृत और उलझा आ ह। वह गहन और मसाय
शोध क अपेा करता ह। लेखक ने वह अपेा पूरी क ह। भूिमका म वे कहते ह – "आलेख
म दुहराव भी ह यिक वे वतं आलेख क तरह िलखे गए और मेरी मूल थापनाएँ बदल
पुतक समीा
(आलोचना)
कहानी का राता
समीक : राजे नागदेव
लेखक : संतोष चौब े
काशक : आईसेट प लकशन
राज नागदेव
डी क 2- 166/18, दािनशक ज, कोलार
रोड, भोपाल – 462042
मोबाइल- 8989569036
ईमेल- [email protected]

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 202557 56 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2025
इस उपयास क कहानी सामािजक मु , पारवारक संघष और ी क थित पर
कित ह और इसे लेखक आकाश माथुर ने संवेदनशीलता और गहरी समझ क साथ िलखा ह।
उपयास म एक िवधवा मिहला रमा, उसक परवार, और य क संघष का िचण िकया
गया ह िजनम उनक िज़ंदिगय म आ रही सामािजक करीितय और भेदभाव का सामना करना
पड़ता ह। लेखक ने मयदेश क ामीण समाज क करीितय को उजागर करते ए आटा-
साटा और नातरा जैसी था को तुत िकया ह जो ी क जीवन को दबाने क िलए
सामािजक प से चिलत ह। आटा-साटा क था, िजसम एक परवार क सदय क शादी
दूसर परवार क िकसी सदय से कर दी जाती ह, और नातरा, िजसम दूसरी शादी क बदले पैसा
कमाया जाता ह, दोन ी क जीवन को नारकय बना देती ह। रमा क कहानी, जो इस था क
कारण अपने ही भाई क िवधवा सास बन बैठी, एक संवेदनशील िवषय को छ?ती ह। एक पढ़ी-
िलखी लड़क क अरमान चूर हो जाते ह जब उसक शादी उदराज और पागल आदमी से होती
ह। आकाश माथुर ने इस िवषय को बड़ ही िवचारशील तरीक़ से िचित िकया ह, जो पाठक को
भावनामक प से जोड़ता ह।
उपयास म कित, जंगल और पयावरण क ित समान और पूजा क बात क गई ह, साथ
ही यह भी िदखाया गया ह िक कसे धािमक करीितयाँ और कमकांड इस समान को न? कर
देते ह। लेखक ने धमाधता और पयावरणीय संकट क ित अपने िवचार तुत िकए ह और
साथ म आिदवासी समाज क शोषण को भी उठाया ह। य क संदभ म आकाश माथुर ने एक
महवपूण बात कही ह - "मिहला का मूल ही ेम ह," और यह भी िक उनका "मन और तन
पर उनका अपना अिधकार नह ह"। इस उपयास क मायम से लेखक ी क अिधकार और
उसक थित पर पुनः िवचार करने क आवयकता क ओर इशारा करते ह। इस उपयास म
कथाकार ने यह भी िदखाया ह िक मिहलाएँ पर थितय क िशकार होते ए भी कमज़ोर नह
होत और वे अंततः अपनी वतंता और अिधकार क िलए खड़ी होती ह। वे एक-दूसर क
दुमन नह होत ब क एकजुट होकर िपतृसा और िढ़य क िख़लाफ़ खड़ी होती ह। यह
उपयास न कवल य क संघष को दशाता ह ब क यह समाज क सम सुधार क ओर भी
इशारा करता ह।
उपयास क भाषा सरल और सहज ह जो पाठक को आसानी से समझ म आती ह। लेखक
ने इसे अयिधक लंबा िकए िबना अपने िवचार प प से तुत िकए ह। यह उपयास
सामािजक सरोकार से भरा आ ह। सम प से, आकाश माथुर का यह उपयास पठनीय
और िवचारणीय ह, जो न कवल ी क अिधकार पर ब क समाज और संकित क गहर
सवाल पर भी काश डालता ह।
उपयास क सभी पा सहज और वाभािवक ह। शुआत से ही उपयास पाठक को अपनी
िगरत म लेने लगता ह। कथाकार ने एक ी क ेम और उसक देह क माँग को इस उपयास
म वाभािवक प से िनिपत िकया ह। इस उपयास म रमा का भावशाली िकरदार भािवत
करता ह। कथाकार ने उपयास क नाियका रमा क भावना और उसक जीवन संघष को
बड़ी सू?मता से िचित िकया ह। कथाकार ने इस उपयास को इतने बेहतरीन तरीक से िलखा ह
िक रमा क यथा, पीड़ा, िववशता और उसका जीवन संघष का जीवत चल िच पाठक क
सामने चलता ह। इस उपयास को पढ़ने वाले क उसुकता बराबर बनी रहती ह वह चाहकर भी
उपयास को बीच म नह छोड़ सकता। उपयास क कहानी म वाह ह, अंत तक रोचकता बनी
रहती ह। "मुझे सूरज चािहए" मानवीय संवेदना को िचित करता एक मम पश, भावुक
उपयास ह। उपयास का कथानक यथाथ परक ह और कथाकार ने समकालीन साइय को
िनपता से तुत िकया ह। उपयास रोचक ह और अपने परवेश से पाठक को अंत तक बाँधे
रखने म सम ह। उपयास "मुझे सूरज चािहए" का सािहय जग म वागत ह।
000
पुतक समीा
(उपयास)
मुझे सूरज चािहए
समीक : दीपक िगरकर
लेखक : आकाश माथुर
काशक : िशवना काशन, साट
कॉ लैस बेसमट, सीहोर, म
466001, फ़ोन-07562405545
मोबाइल- +91-9806162184
ईमेल- [email protected]
दीपक िगरकर
28-सी, वैभव नगर, कनािडया रोड,
इदौर- 452016 म
मोबाइल- 9425067036
ईमेल- [email protected]
लेखक और इितहासकार अशोक कमार पांडय ने िनरपे भाव से महापंिडत सांक यायन क
जीवन क दोन प का प और ामािणक िचण िकया ह इसम कोई संदेह नह िक इसे
पढ़कर पाठक ने राल क वातिवक जीवन,चर और य व को जाना ह युवा को
घुमकड़ी और याग का मूल मं देने वाले राल जीवन क उराध म कसे शयासीन और
मोहास रह। एक तरफ जहाँ उहने पैतृक संपि और िपैक का याग कर िदया वह एक
समय क बाद वह धनाजन क िलए आकल िदखाई दे रह ह। एक तरफ वह सी पनी से ??
थम पु ईगोर क उपेा करते ह तो दूसरी तरफ कमला क पु-पुी क भिवय क िचता म
अपना वाध य ख़राब कर लेते ह। एक बात जो महापंिडत क उपािध धारण करने वाले पंिडत
जी क मन को पीड़ा और ोभ से भर देती ह वह यह िक िकस तरह उहने सी मिहला को
नारकय जीवन जीने क िलए छोड़ िदया और बेमेल िववाह कर दुखद दांपय को भोगते ए अंत
को ?? ए। इस जीवनी म सी मिहला लोला सांक यायन का चर जो पााय को
अपकािलक िववाह क परपरा का जनक और पोषक मानते ह उनक िलए उदाहरण ह िक
लोला ने दर-दर क ठोकर खाई पैसे-पैसे क मोहताज रह नौकरी गँवाई लेिकन सांक यायन का
नाम अपने जीवन से अलग नह िकया, उस पित का िजसने उह नक भोगने को छोड़ िदया था।
एक से यह लोला क मूखता तीत होती ह तो दूसरी से उनका दैवीय गुण। पृ?
संया 148 पर अशोक पांडय ईगोर का संदभ तुत करते ह- 1949 क बाद मेरी माँ का
जीवन तेजी से बदल गया पित यानी मेर िपता से तलाक़ लेने से इनकार करने पर उह अयापन
क काय से हटा िदया गया और ाय संथान क पुतकालय क पद से मु कर िदया गया।
संदभ ये.िन. सांक यायन क बेरोज़गारी का माण ह। यहाँ पर पंिडत जी इस बात को
मािणत कर देते ह िक मनुय अपने अछ िदन म िनमम और र ह। अछ समय म उसे
उिचत और अनुिचत का यान नह रहता। तो वह कमला सांक यायन का चर भी िनखर कर
आता ह िजहने अपनी ग़रीबी दूर करने क िलए राल से िववाह कर िलया और उन पर
प नयोिचत आिधपय भी जमाया अपने अछ िदन म उहने ईगोर को िच?ी िलखने से राल
को बार-बार मना िकया वही राल जब अश होते ह वह कहती ह िक "काश! इस समय वह
दोन बूढ़ी बीिवयाँ उनक सेवा करने आ जाती तो मुझे मु िमलती।"
पृ? संया 191 पर अशोक पांडय िलखते ह िक इस दौर म राल पैस को लेकर यादा ही
िचंितत थे ऐसा लगता ह वह आस? मृयु को देख पा रह थे और िकसी तरह इतना पैसा जमा कर
लेना चाहते थे क ब क सामने कोई आिथक संकट न आए। जीवन भर िनभाये संकप
उहने तोड़ भी 25000 म दािजिलंग म आठ कमर का बड़ा मकान ीन रजेस ख़रीदने क बाद
दूसरा मकान इसिलए ख़रीदना चाहते थे िक उसक िकराए से िन त आए हो जाए। जीवन भर
अंेज़ीदाँ लोग क आलोचना करते राल ने ब क िशा क िलए भी अंेज़ी मायम का
महगा कॉवट चुना व कमला क नौकरी क िलए रापित से लेकर हर उस आदमी से
िसफ़ारश क जो मदद कर सकता था। कल िमलाकर इस जीवनी को पढ़कर महापंिडत क
जीवन म या िवरोधाभास और उनक वातिवक चर का संपूण ान होता ह साथ ही यह
िमथक भी चूर-चूर हो जाता ह िक कोई महा कहा जाने वाला जाना जाने वाला या अनेक संदभ
म महा होने वाला य व अछा य भी हो। छः मुय खंड और अनेक उपखड म
िवभ इस शोधपूण और ामािणक जीवनी क िलये अशोक पाडय बधाई क पा ह। िजहने
महापंिडत का पूरा जीवनवृ एक रोचक िकसे क भाँित पाठक क सम रखा ह। आपक
वाहमयी भाषा क तो कहने ही या इसम कोई संदेह नह िक िकसी उपयास से भी रोचक और
भावशाली यह जीवनी ह। यह अशोक पाडय क शोध-बोध और नवाचक तेवर क साथ
एक सयक और संपूण आयान ह। िजसे पढ़ना ारभ करने क बाद इित करक ही मन को
शा त िमलती ह।
000
पुतक समीा
(जीवनी)
राल सांक यायन
अनाम बेचैनी का
यायावर
समीक : ियंवदा पाडय
लेखक : अशोक कमार पांडय
काशक : राजकमल काशन
ियंवदा पाडय
देवरया उर देश
मोबाइल- 7068595353

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 202557 56 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2025
इस उपयास क कहानी सामािजक मु , पारवारक संघष और ी क थित पर
कित ह और इसे लेखक आकाश माथुर ने संवेदनशीलता और गहरी समझ क साथ िलखा ह।
उपयास म एक िवधवा मिहला रमा, उसक परवार, और य क संघष का िचण िकया
गया ह िजनम उनक िज़ंदिगय म आ रही सामािजक करीितय और भेदभाव का सामना करना
पड़ता ह। लेखक ने मयदेश क ामीण समाज क करीितय को उजागर करते ए आटा-
साटा और नातरा जैसी था को तुत िकया ह जो ी क जीवन को दबाने क िलए
सामािजक प से चिलत ह। आटा-साटा क था, िजसम एक परवार क सदय क शादी
दूसर परवार क िकसी सदय से कर दी जाती ह, और नातरा, िजसम दूसरी शादी क बदले पैसा
कमाया जाता ह, दोन ी क जीवन को नारकय बना देती ह। रमा क कहानी, जो इस था क
कारण अपने ही भाई क िवधवा सास बन बैठी, एक संवेदनशील िवषय को छ?ती ह। एक पढ़ी-
िलखी लड़क क अरमान चूर हो जाते ह जब उसक शादी उदराज और पागल आदमी से होती
ह। आकाश माथुर ने इस िवषय को बड़ ही िवचारशील तरीक़ से िचित िकया ह, जो पाठक को
भावनामक प से जोड़ता ह।
उपयास म कित, जंगल और पयावरण क ित समान और पूजा क बात क गई ह, साथ
ही यह भी िदखाया गया ह िक कसे धािमक करीितयाँ और कमकांड इस समान को न? कर
देते ह। लेखक ने धमाधता और पयावरणीय संकट क ित अपने िवचार तुत िकए ह और
साथ म आिदवासी समाज क शोषण को भी उठाया ह। य क संदभ म आकाश माथुर ने एक
महवपूण बात कही ह - "मिहला का मूल ही ेम ह," और यह भी िक उनका "मन और तन
पर उनका अपना अिधकार नह ह"। इस उपयास क मायम से लेखक ी क अिधकार और
उसक थित पर पुनः िवचार करने क आवयकता क ओर इशारा करते ह। इस उपयास म
कथाकार ने यह भी िदखाया ह िक मिहलाएँ पर थितय क िशकार होते ए भी कमज़ोर नह
होत और वे अंततः अपनी वतंता और अिधकार क िलए खड़ी होती ह। वे एक-दूसर क
दुमन नह होत ब क एकजुट होकर िपतृसा और िढ़य क िख़लाफ़ खड़ी होती ह। यह
उपयास न कवल य क संघष को दशाता ह ब क यह समाज क सम सुधार क ओर भी
इशारा करता ह।
उपयास क भाषा सरल और सहज ह जो पाठक को आसानी से समझ म आती ह। लेखक
ने इसे अयिधक लंबा िकए िबना अपने िवचार प प से तुत िकए ह। यह उपयास
सामािजक सरोकार से भरा आ ह। सम प से, आकाश माथुर का यह उपयास पठनीय
और िवचारणीय ह, जो न कवल ी क अिधकार पर ब क समाज और संकित क गहर
सवाल पर भी काश डालता ह।
उपयास क सभी पा सहज और वाभािवक ह। शुआत से ही उपयास पाठक को अपनी
िगरत म लेने लगता ह। कथाकार ने एक ी क ेम और उसक देह क माँग को इस उपयास
म वाभािवक प से िनिपत िकया ह। इस उपयास म रमा का भावशाली िकरदार भािवत
करता ह। कथाकार ने उपयास क नाियका रमा क भावना और उसक जीवन संघष को
बड़ी सू?मता से िचित िकया ह। कथाकार ने इस उपयास को इतने बेहतरीन तरीक से िलखा ह
िक रमा क यथा, पीड़ा, िववशता और उसका जीवन संघष का जीवत चल िच पाठक क
सामने चलता ह। इस उपयास को पढ़ने वाले क उसुकता बराबर बनी रहती ह वह चाहकर भी
उपयास को बीच म नह छोड़ सकता। उपयास क कहानी म वाह ह, अंत तक रोचकता बनी
रहती ह। "मुझे सूरज चािहए" मानवीय संवेदना को िचित करता एक मम पश, भावुक
उपयास ह। उपयास का कथानक यथाथ परक ह और कथाकार ने समकालीन साइय को
िनपता से तुत िकया ह। उपयास रोचक ह और अपने परवेश से पाठक को अंत तक बाँधे
रखने म सम ह। उपयास "मुझे सूरज चािहए" का सािहय जग म वागत ह।
000
पुतक समीा
(उपयास)
मुझे सूरज चािहए
समीक : दीपक िगरकर
लेखक : आकाश माथुर
काशक : िशवना काशन, साट
कॉ लैस बेसमट, सीहोर, म
466001, फ़ोन-07562405545
मोबाइल- +91-9806162184
ईमेल- [email protected]
दीपक िगरकर
28-सी, वैभव नगर, कनािडया रोड,
इदौर- 452016 म
मोबाइल- 9425067036
ईमेल- [email protected]
लेखक और इितहासकार अशोक कमार पांडय ने िनरपे भाव से महापंिडत सांक यायन क
जीवन क दोन प का प और ामािणक िचण िकया ह इसम कोई संदेह नह िक इसे
पढ़कर पाठक ने राल क वातिवक जीवन,चर और य व को जाना ह युवा को
घुमकड़ी और याग का मूल मं देने वाले राल जीवन क उराध म कसे शयासीन और
मोहास रह। एक तरफ जहाँ उहने पैतृक संपि और िपैक का याग कर िदया वह एक
समय क बाद वह धनाजन क िलए आकल िदखाई दे रह ह। एक तरफ वह सी पनी से ??
थम पु ईगोर क उपेा करते ह तो दूसरी तरफ कमला क पु-पुी क भिवय क िचता म
अपना वाध य ख़राब कर लेते ह। एक बात जो महापंिडत क उपािध धारण करने वाले पंिडत
जी क मन को पीड़ा और ोभ से भर देती ह वह यह िक िकस तरह उहने सी मिहला को
नारकय जीवन जीने क िलए छोड़ िदया और बेमेल िववाह कर दुखद दांपय को भोगते ए अंत
को ?? ए। इस जीवनी म सी मिहला लोला सांक यायन का चर जो पााय को
अपकािलक िववाह क परपरा का जनक और पोषक मानते ह उनक िलए उदाहरण ह िक
लोला ने दर-दर क ठोकर खाई पैसे-पैसे क मोहताज रह नौकरी गँवाई लेिकन सांक यायन का
नाम अपने जीवन से अलग नह िकया, उस पित का िजसने उह नक भोगने को छोड़ िदया था।
एक से यह लोला क मूखता तीत होती ह तो दूसरी से उनका दैवीय गुण। पृ?
संया 148 पर अशोक पांडय ईगोर का संदभ तुत करते ह- 1949 क बाद मेरी माँ का
जीवन तेजी से बदल गया पित यानी मेर िपता से तलाक़ लेने से इनकार करने पर उह अयापन
क काय से हटा िदया गया और ाय संथान क पुतकालय क पद से मु कर िदया गया।
संदभ ये.िन. सांक यायन क बेरोज़गारी का माण ह। यहाँ पर पंिडत जी इस बात को
मािणत कर देते ह िक मनुय अपने अछ िदन म िनमम और र ह। अछ समय म उसे
उिचत और अनुिचत का यान नह रहता। तो वह कमला सांक यायन का चर भी िनखर कर
आता ह िजहने अपनी ग़रीबी दूर करने क िलए राल से िववाह कर िलया और उन पर
प नयोिचत आिधपय भी जमाया अपने अछ िदन म उहने ईगोर को िच?ी िलखने से राल
को बार-बार मना िकया वही राल जब अश होते ह वह कहती ह िक "काश! इस समय वह
दोन बूढ़ी बीिवयाँ उनक सेवा करने आ जाती तो मुझे मु िमलती।"
पृ? संया 191 पर अशोक पांडय िलखते ह िक इस दौर म राल पैस को लेकर यादा ही
िचंितत थे ऐसा लगता ह वह आस? मृयु को देख पा रह थे और िकसी तरह इतना पैसा जमा कर
लेना चाहते थे क ब क सामने कोई आिथक संकट न आए। जीवन भर िनभाये संकप
उहने तोड़ भी 25000 म दािजिलंग म आठ कमर का बड़ा मकान ीन रजेस ख़रीदने क बाद
दूसरा मकान इसिलए ख़रीदना चाहते थे िक उसक िकराए से िन त आए हो जाए। जीवन भर
अंेज़ीदाँ लोग क आलोचना करते राल ने ब क िशा क िलए भी अंेज़ी मायम का
महगा कॉवट चुना व कमला क नौकरी क िलए रापित से लेकर हर उस आदमी से
िसफ़ारश क जो मदद कर सकता था। कल िमलाकर इस जीवनी को पढ़कर महापंिडत क
जीवन म या िवरोधाभास और उनक वातिवक चर का संपूण ान होता ह साथ ही यह
िमथक भी चूर-चूर हो जाता ह िक कोई महा कहा जाने वाला जाना जाने वाला या अनेक संदभ
म महा होने वाला य व अछा य भी हो। छः मुय खंड और अनेक उपखड म
िवभ इस शोधपूण और ामािणक जीवनी क िलये अशोक पाडय बधाई क पा ह। िजहने
महापंिडत का पूरा जीवनवृ एक रोचक िकसे क भाँित पाठक क सम रखा ह। आपक
वाहमयी भाषा क तो कहने ही या इसम कोई संदेह नह िक िकसी उपयास से भी रोचक और
भावशाली यह जीवनी ह। यह अशोक पाडय क शोध-बोध और नवाचक तेवर क साथ
एक सयक और संपूण आयान ह। िजसे पढ़ना ारभ करने क बाद इित करक ही मन को
शा त िमलती ह।
000
पुतक समीा
(जीवनी)
राल सांक यायन
अनाम बेचैनी का
यायावर
समीक : ियंवदा पाडय
लेखक : अशोक कमार पांडय
काशक : राजकमल काशन
ियंवदा पाडय
देवरया उर देश
मोबाइल- 7068595353

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 202559 58 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2025
योगे शमा क उपयास-कहािनय म घिटत यथाथ को यथाव तुत करने का आह
दबा-ढका नह ह। इस उपयास म भी वातिवक चर और सय घटना पर वे पूरी तरह
िनभर ह। इसिलए पा क भीड़ ह, सूचना क भरमार ह। क थ चर अी भगत अपना
अी महाराज क ित नैरटर क अगाध ा ह, अतः उनक िवलण संत य व क
अितर न तो कोई अय औपचारक चर मरणीय बन पाया ह और न उनसे पृथक िकसी
मािमक संग को पाठक क सराहना िमली ह। अी महाराज बचपन से ही िविश? ह, भिवय
जान लेने वाले ह। सहपािठय से लेकर स बाज़ तक उनको भिवयवाणी से लाभ उठाते ह।
क डािलनी जात होने क बाद वे िकाल-दश हो जाते ह। आस? संकट को सहज ही जान लेते
ह। और आपदा का िनराकरण करने म भी समथ ह। उनक चमकार से उपयास भरा पड़ा ह
और उनक कोई तािकक याया न करक उह िसपुष क प म थािपत करने म
उपयासकार को सफलता िमली ह। िशरडी क साई और नीम करौली बाबा का िवतृत उेख
वाभािवक ह यिक उनक िसि क पीछ उनक अनेक चमकार ही ह। उपयासकार का
कथन ह, िवडबना ह िक समाज चमकार को ही नमकार करता ह, मानते ए चमकार को
ासंिगक माना ह। इस से उपयास म िववेकानंद का समावेश बत साथक नही लगता, वे
इस तरह से चमकार-दशन से मु थे। चमकार क आशा म कसा अनथ हो जाता ह, इसका
माण अी महाराज ने सोमनाथ-वंस क संदभ म वयं दे िदया ह।
अजय िकशोर शमा से अी महाराज बनने क अतयाा और साधना उपयास क मुय
कथावतु ह। ''अपनी बात'' म उपयासकार ने संतो को समाज क िलए अनुपयोगी मानने वाली
सोच म असहमित य क ह और उह मानिसक वा य क िचंता क चलते ासंिगक पाया
ह। जनसाधारण म किथत संत क आचरण को लेकर जो संदेह ह उसे अी महाराज जैसे
तपोिन? संतो क मायम से िनरत करना भी उपयास का उेय ह। हालाँिक अपनी बात म
कई कापिनक संग को जोड़ने क वीकारो ह लेिकन अिधकतर अी महाराज क
आसपास क वातिवक संग ह। उपयास का सवािधक मािमक संग उनक युवावथा से
जुड़ा ह। 'जोगी हम तो लुट गए तेर यार म,' गाती ई सुमन क णयाकांा और उसका ासद
वैवािहक जीवन-पूरा संग मािमक ह।
उपयास वैचारकता क से अिधक समृ ह। अी महाराज ने बत कछ पढ़ा ह,
उसे पचाया भी ह। इितहास, धम, स दाय, संकित आिद पर उनक िवचार सुिचितंत ह। उनक
िवचार म वेद-उपिनषद िहदू धम क आधार ह, लेिकन उनका अययन किठन ह। गीता और
तुलसीकत रामायण को पढ़कर आम िहदू अपने धम से परिचत हो सकता ह। इनक संग से
जीवन क राह िमलती ह। उह खेद ह िक आांता क आगमन क बाद िहदू समाज
मूितपूजा, वणा म धम, छ?आछ?त म िसमट कर रह गया। उनका मानना ह िक िहदुव ऐसे
मकान क तरह आ, िजसक दरवाज़े बाहर को खुलते थे अंदर आने क मनाही थी। महाराज
जी घर वापसी क प म ह। धमिनरपेता, किथत बाबरी म जद, िहदू आतंकवाद को लेकर
भी िवचार य िकए गए ह। बहरहाल, मोदी-योगी को बार-बार सराहा गया ह। िन?य ही
पाठक का एक बड़ा वग इन िवचार से सहमत होगा।
उपयास जहाँ वैचारक से उेखनीय ह, वही िशप क से ढीला ढाला ह।
उपयास क उराध म कथा-वाह िशिथल ह, कछ सूचनाएँ जोड़ दी गई ह। अछा-ख़ासा
िववाह संग चल रहा होता ह िक एक पैरााफ मणीराम बाबा का अचानक सामने आता ह।
महाराज जी क गंभीर वतय क बाद उनक पास खाने क यसन का उेख भी िनरथक ह।
वेद का वचन ह िक मूितपूजा तो आराधना क कवल पहली सीढ़ी ह जैसे मंतव ामक ह। वेद
म मूित पूजा का उेख नह ह। िफर भी उपयास अपने उेय म सफल ह। िहदू समाज को
लेकर िकया गया आमालोचन इसका एक सकारामक प ह।
000
पुतक समीा
(उपयास)
िवदुर कटी का संत
समीक : डॉ. वेदकाश अिमताभ
लेखक : योगे शमा
काशक : नमन काशन, नई
?·??
डॉ. वेदकाश अिमताभ
डी 131, रमेश िवहार,
अलीगढ़-202001 उ
मोबाइल 9837004113
कछ वष पूव लेिखका ितपाल कौर को अपने पूवज क धरती पर जाने का अवसर िमला।
इस याा ने उह उनक भीतर भी एक नई याा से -ब- करवाया। दो समानातर याा क
अनुभव को क़लमब करने क ? ?? ह यह पुतक। लाहौर क याा क मु कल, वहाँ क
लोग क ईमानदारी और िनछल ेम, वहाँ क लोग क मेहमाननवाज़ी सबक बार म यह
िकताब बताती चलती ह। ितपाल कौर अपनी याा म कवल दशनीय थल को ही नह देखत
ब क उस देश, उस शहर क सामािजक, सांकितक, ऐितहािसक और आिथक थित क भी
चचा करती ह। इस पुतक को पढ़कर लगता ह िक पाठक याा म शािमल ह। याा संमरण
रोचक और जानकारी से परपूण ह। लेिखका रोमांच क साथ अयाम भावना से भी जुडी ई ह।
वे इस पुतक क पहले अयाय "पहर म गु ारा" म िलखती ह - मेर कछ कहने से पहले ही
उहने पासपोट मुझे लौटाया और बोले, "पहले अगर म आपका पूरा पासपोट देख लेता तो
आपको अंदर नह जाने देता। िसफ िसख ही गु ार म जा सकते ह।"
मने कहा, "हम िसख इस बात को नह मानते। हमार गु ार म कोई भी जा सकता ह।"
"ये पािकतान ह बीबी। और आप तो िसख भी ना ई।" इस पर मेरा चकना वािजब था।
मेरा नाम ही काफ ह सािबत करने को िक म जमजात िसख । "जनाब, म िसख ही ।"
"नह बीबी। आपक शौहर मुसलमान ह। िफर आप िसख कसे ई?"
"दोत म यु नह होते" अयाय म लेिखका ने िलखा ह - लाहौर जाते ए म एक भारी-
भरकम बैगेज अपने मन-म तक और कध पर लादे ए थी। ये मेर पूवज का अपनी िम?ी से
िबछड़ने से पैदा ई ख़ला का था।
हर अयाय म लेिखका ितपाल कौर ने अपनी लाहौर याा का रोचक वणन िकया ह।
लेिखका एक साह क िलए ही लाहौर गई थी। लाहौर म लेिखका ने लाहौर क बाज़ार,
हवेिलयाँ, गु ारा, रग िबरगी लारयाँ, शाही म जद, फॉमन ि चयन कॉलेज, नया लाहौर,
िलबट माकट, शालीमार बाग़ देख। अपने नाना-नानी िवभाजन क पहले िजस जगह रहते थे,
लेिखका वहाँ जाना चाहती थी, लेिकन वे चाहकर भी वहाँ नह जा सक। लाहौर म लेिखका को
पासपोट लाहौर म घूमते समय साथ म रखना पड़ा और हर जगह उनका पासपोट बारीक से
चेक आ। जबिक अमेरका और यूरोप क देश म ऐसा नह ह। लाहौर शहर म कड़ी सुरा
यवथा ह। लाहौर क पंजाबी बोली, लेिखका को ठीक उसी तरह लगी िजस तरह उनक नाना-
नानी और उनक बीजी बोलती थ। लाहौर एक फ़शनेबल शहर ह। यहाँ क फ़शन िदी जाती
ह। लेिखका को लाहौर क चाय बत पसंद आई। लाहौर म चाय ीलंका से जाती ह।
लेिखका को लाहौर याा क दौरान बचपन क एक-एक मृित जीवंत होती ह। इस पुतक
म लेिखका क लाहौर याा क अनुभव, भावनाएँ और िवचार ह। ितपाल कौर क लाहौर याा
संमरण क महवपूण िवशेषता ने मुझे भािवत िकया ह, वह ह उनक चीज़ को देखने,
समझने और ऑज़व करने क उनक मता। ितपाल कौर भारत और पािकतान क इितहास
और यहाँ क सामािजक जीवन से संबंिधत महवपूण पहलु पर अपनी बारीक नज़र ले जाती
ह। लेिखका ने इस पुतक क मायम से लाहौर और िदी क बीच समानता और असमानता
क महवपूण संदभ से हम परिचत कराया ह। लेिखका ने कित का सू?मता से िचण िकया
ह। लेिखका क इस पुतक से उनक मनोवैािनक सोच तथा संवेदनशीलता भी परलित
होती ह। लेिखका को लाहौर याा म िवभाजन क पहले क और 1971 क यु क पुरानी
मृितयाँ झकझोरती रही ह।
यह एक पठनीय याा संमरण ह। लेिखका इस पुतक म िसफ सूचनाएँ या जानकारयाँ
नह देती। ितपाल कौर क यह िकताब लाहौर शहर का जीवन और वहाँ क संकित को
समझने क िलए एक अनूठी कित ह। याा संमरण पढ़ने क शौक रखने वाल क िलए एक
अछी और यारी िकताब ह। "िजस लाहौर वेख िलया" याा-संमरण क अनूठी कित ह।
000
पुतक समीा
(याा संमरण)
िजस लाहौर वेख लेया
समीक : दीपक िगरकर
लेखक : ितपाल कौर
काशक : िशवना काशन, साट
कॉ लैस बेसमट, सीहोर, म
466001, फ़ोन-07562405545
मोबाइल- +91-9806162184
ईमेल- [email protected]
दीपक िगरकर
28-सी, वैभव नगर, कनािडया रोड,
इदौर- 452016 म
मोबाइल- 9425067036
ईमेल- [email protected]

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 202559 58 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2025
योगे शमा क उपयास-कहािनय म घिटत यथाथ को यथाव तुत करने का आह
दबा-ढका नह ह। इस उपयास म भी वातिवक चर और सय घटना पर वे पूरी तरह
िनभर ह। इसिलए पा क भीड़ ह, सूचना क भरमार ह। क थ चर अी भगत अपना
अी महाराज क ित नैरटर क अगाध ा ह, अतः उनक िवलण संत य व क
अितर न तो कोई अय औपचारक चर मरणीय बन पाया ह और न उनसे पृथक िकसी
मािमक संग को पाठक क सराहना िमली ह। अी महाराज बचपन से ही िविश? ह, भिवय
जान लेने वाले ह। सहपािठय से लेकर स बाज़ तक उनको भिवयवाणी से लाभ उठाते ह।
क डािलनी जात होने क बाद वे िकाल-दश हो जाते ह। आस? संकट को सहज ही जान लेते
ह। और आपदा का िनराकरण करने म भी समथ ह। उनक चमकार से उपयास भरा पड़ा ह
और उनक कोई तािकक याया न करक उह िसपुष क प म थािपत करने म
उपयासकार को सफलता िमली ह। िशरडी क साई और नीम करौली बाबा का िवतृत उेख
वाभािवक ह यिक उनक िसि क पीछ उनक अनेक चमकार ही ह। उपयासकार का
कथन ह, िवडबना ह िक समाज चमकार को ही नमकार करता ह, मानते ए चमकार को
ासंिगक माना ह। इस से उपयास म िववेकानंद का समावेश बत साथक नही लगता, वे
इस तरह से चमकार-दशन से मु थे। चमकार क आशा म कसा अनथ हो जाता ह, इसका
माण अी महाराज ने सोमनाथ-वंस क संदभ म वयं दे िदया ह।
अजय िकशोर शमा से अी महाराज बनने क अतयाा और साधना उपयास क मुय
कथावतु ह। ''अपनी बात'' म उपयासकार ने संतो को समाज क िलए अनुपयोगी मानने वाली
सोच म असहमित य क ह और उह मानिसक वा य क िचंता क चलते ासंिगक पाया
ह। जनसाधारण म किथत संत क आचरण को लेकर जो संदेह ह उसे अी महाराज जैसे
तपोिन? संतो क मायम से िनरत करना भी उपयास का उेय ह। हालाँिक अपनी बात म
कई कापिनक संग को जोड़ने क वीकारो ह लेिकन अिधकतर अी महाराज क
आसपास क वातिवक संग ह। उपयास का सवािधक मािमक संग उनक युवावथा से
जुड़ा ह। 'जोगी हम तो लुट गए तेर यार म,' गाती ई सुमन क णयाकांा और उसका ासद
वैवािहक जीवन-पूरा संग मािमक ह।
उपयास वैचारकता क से अिधक समृ ह। अी महाराज ने बत कछ पढ़ा ह,
उसे पचाया भी ह। इितहास, धम, स दाय, संकित आिद पर उनक िवचार सुिचितंत ह। उनक
िवचार म वेद-उपिनषद िहदू धम क आधार ह, लेिकन उनका अययन किठन ह। गीता और
तुलसीकत रामायण को पढ़कर आम िहदू अपने धम से परिचत हो सकता ह। इनक संग से
जीवन क राह िमलती ह। उह खेद ह िक आांता क आगमन क बाद िहदू समाज
मूितपूजा, वणा म धम, छ?आछ?त म िसमट कर रह गया। उनका मानना ह िक िहदुव ऐसे
मकान क तरह आ, िजसक दरवाज़े बाहर को खुलते थे अंदर आने क मनाही थी। महाराज
जी घर वापसी क प म ह। धमिनरपेता, किथत बाबरी म जद, िहदू आतंकवाद को लेकर
भी िवचार य िकए गए ह। बहरहाल, मोदी-योगी को बार-बार सराहा गया ह। िन?य ही
पाठक का एक बड़ा वग इन िवचार से सहमत होगा।
उपयास जहाँ वैचारक से उेखनीय ह, वही िशप क से ढीला ढाला ह।
उपयास क उराध म कथा-वाह िशिथल ह, कछ सूचनाएँ जोड़ दी गई ह। अछा-ख़ासा
िववाह संग चल रहा होता ह िक एक पैरााफ मणीराम बाबा का अचानक सामने आता ह।
महाराज जी क गंभीर वतय क बाद उनक पास खाने क यसन का उेख भी िनरथक ह।
वेद का वचन ह िक मूितपूजा तो आराधना क कवल पहली सीढ़ी ह जैसे मंतव ामक ह। वेद
म मूित पूजा का उेख नह ह। िफर भी उपयास अपने उेय म सफल ह। िहदू समाज को
लेकर िकया गया आमालोचन इसका एक सकारामक प ह।
000
पुतक समीा
(उपयास)
िवदुर कटी का संत
समीक : डॉ. वेदकाश अिमताभ
लेखक : योगे शमा
काशक : नमन काशन, नई
?·??
डॉ. वेदकाश अिमताभ
डी 131, रमेश िवहार,
अलीगढ़-202001 उ
मोबाइल 9837004113
कछ वष पूव लेिखका ितपाल कौर को अपने पूवज क धरती पर जाने का अवसर िमला।
इस याा ने उह उनक भीतर भी एक नई याा से -ब- करवाया। दो समानातर याा क
अनुभव को क़लमब करने क ? ?? ह यह पुतक। लाहौर क याा क मु कल, वहाँ क
लोग क ईमानदारी और िनछल ेम, वहाँ क लोग क मेहमाननवाज़ी सबक बार म यह
िकताब बताती चलती ह। ितपाल कौर अपनी याा म कवल दशनीय थल को ही नह देखत
ब क उस देश, उस शहर क सामािजक, सांकितक, ऐितहािसक और आिथक थित क भी
चचा करती ह। इस पुतक को पढ़कर लगता ह िक पाठक याा म शािमल ह। याा संमरण
रोचक और जानकारी से परपूण ह। लेिखका रोमांच क साथ अयाम भावना से भी जुडी ई ह।
वे इस पुतक क पहले अयाय "पहर म गु ारा" म िलखती ह - मेर कछ कहने से पहले ही
उहने पासपोट मुझे लौटाया और बोले, "पहले अगर म आपका पूरा पासपोट देख लेता तो
आपको अंदर नह जाने देता। िसफ िसख ही गु ार म जा सकते ह।"
मने कहा, "हम िसख इस बात को नह मानते। हमार गु ार म कोई भी जा सकता ह।"
"ये पािकतान ह बीबी। और आप तो िसख भी ना ई।" इस पर मेरा चकना वािजब था।
मेरा नाम ही काफ ह सािबत करने को िक म जमजात िसख । "जनाब, म िसख ही ।"
"नह बीबी। आपक शौहर मुसलमान ह। िफर आप िसख कसे ई?"
"दोत म यु नह होते" अयाय म लेिखका ने िलखा ह - लाहौर जाते ए म एक भारी-
भरकम बैगेज अपने मन-म तक और कध पर लादे ए थी। ये मेर पूवज का अपनी िम?ी से
िबछड़ने से पैदा ई ख़ला का था।
हर अयाय म लेिखका ितपाल कौर ने अपनी लाहौर याा का रोचक वणन िकया ह।
लेिखका एक साह क िलए ही लाहौर गई थी। लाहौर म लेिखका ने लाहौर क बाज़ार,
हवेिलयाँ, गु ारा, रग िबरगी लारयाँ, शाही म जद, फॉमन ि चयन कॉलेज, नया लाहौर,
िलबट माकट, शालीमार बाग़ देख। अपने नाना-नानी िवभाजन क पहले िजस जगह रहते थे,
लेिखका वहाँ जाना चाहती थी, लेिकन वे चाहकर भी वहाँ नह जा सक। लाहौर म लेिखका को
पासपोट लाहौर म घूमते समय साथ म रखना पड़ा और हर जगह उनका पासपोट बारीक से
चेक आ। जबिक अमेरका और यूरोप क देश म ऐसा नह ह। लाहौर शहर म कड़ी सुरा
यवथा ह। लाहौर क पंजाबी बोली, लेिखका को ठीक उसी तरह लगी िजस तरह उनक नाना-
नानी और उनक बीजी बोलती थ। लाहौर एक फ़शनेबल शहर ह। यहाँ क फ़शन िदी जाती
ह। लेिखका को लाहौर क चाय बत पसंद आई। लाहौर म चाय ीलंका से जाती ह।
लेिखका को लाहौर याा क दौरान बचपन क एक-एक मृित जीवंत होती ह। इस पुतक
म लेिखका क लाहौर याा क अनुभव, भावनाएँ और िवचार ह। ितपाल कौर क लाहौर याा
संमरण क महवपूण िवशेषता ने मुझे भािवत िकया ह, वह ह उनक चीज़ को देखने,
समझने और ऑज़व करने क उनक मता। ितपाल कौर भारत और पािकतान क इितहास
और यहाँ क सामािजक जीवन से संबंिधत महवपूण पहलु पर अपनी बारीक नज़र ले जाती
ह। लेिखका ने इस पुतक क मायम से लाहौर और िदी क बीच समानता और असमानता
क महवपूण संदभ से हम परिचत कराया ह। लेिखका ने कित का सू?मता से िचण िकया
ह। लेिखका क इस पुतक से उनक मनोवैािनक सोच तथा संवेदनशीलता भी परलित
होती ह। लेिखका को लाहौर याा म िवभाजन क पहले क और 1971 क यु क पुरानी
मृितयाँ झकझोरती रही ह।
यह एक पठनीय याा संमरण ह। लेिखका इस पुतक म िसफ सूचनाएँ या जानकारयाँ
नह देती। ितपाल कौर क यह िकताब लाहौर शहर का जीवन और वहाँ क संकित को
समझने क िलए एक अनूठी कित ह। याा संमरण पढ़ने क शौक रखने वाल क िलए एक
अछी और यारी िकताब ह। "िजस लाहौर वेख िलया" याा-संमरण क अनूठी कित ह।
000
पुतक समीा
(याा संमरण)
िजस लाहौर वेख लेया
समीक : दीपक िगरकर
लेखक : ितपाल कौर
काशक : िशवना काशन, साट
कॉ लैस बेसमट, सीहोर, म
466001, फ़ोन-07562405545
मोबाइल- +91-9806162184
ईमेल- [email protected]
दीपक िगरकर
28-सी, वैभव नगर, कनािडया रोड,
इदौर- 452016 म
मोबाइल- 9425067036
ईमेल- [email protected]

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 202561 60 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2025
ितब सािहयकार रमेश उपायाय क रचना-याा क बात क जाए तो कहानी उनक
िय िवधा रही। परतु कथाकार रमेश उपायाय का लेखन कभी भी एक िवधा तक सीिमत नह
रहा। ग क िविवध िवधा म उनक उमु आवाजाही जीवनपयत बनी रही। यही कारण ह
िक उहने कहानी क साथ, कथा-आलोचना म भी गंभीर थापनाएँ देते ए कई आलोचनामक
िकताब िलख। जनवादी कहानी और कहानी म भूमंडलीय यथाथ क अवधारणा पर उनका
काम उेखनीय ह। कथेतर सािहय म डायरी, संमरण,सााकार, िनबंध आिद पर भी
समान अिधकार से िलखा। िहदी म ऐसे सािहयकार कम ही ह जो समान अिधकार से न िसफ़
िविवध िवधा म िलख सक ब क िनयिमत तौर पर गंभीर हतेप कर सक। ग क िविवध
िवधा म िलखने वाले वर सािहयकार रमेश उपायाय ने नाटक भी िलखे ह। िहदी म कई
कथाकार ऐसे ह िजहने कथा क साथ नाटक िलखे और वे दोन ही िवधा म अपनी सश
पहचान बना सक। रमेश उपायाय संयोग से अपनी रचना-याा क आरभ म ही नाटक िवधा से
जुड़ गए थे पर इस संयोग क बाद सचेतनता क साथ इस िवधा म अपनी पूरी ऊजा क साथ
संलन रह। स 1965 म जब उह कथा क दुिनया म आए बमु कल पाँच वष ही ए थे वे
नाटक क दुिनया से लेखक क तौर पर जुड़ गए। बाद म सैमुअल बैकट क चिचत नाटक 'वेिटग
फॉर गोदो' का भारतीय पांतरण 'तीा और तीा' िकया। उसे िनदिशत भी िकया और
उसम अिभनय भी िकया। कथाकार वयं काश उस दौर म इस पूरी ? ?? म रमेश उपायाय
क सहयोगी रह। इस तरह ना? लेखन क साथ उसक यावहारक प से भी रमेश जी का नाता
रहा। यही नह बाद म अनेक संथा क बुलावे पर नाटक क वतमान थित, उसम नई
संभावना क तलाश आिद पर रमेश जी िविवध मंच से अपनी बात कहते रह।
अपने य व म पूरी तौर पर जनवादी रचनाकार रमेश उपायाय क रचनाएँ भी उनक
य व का आईना रह। चाह कहानी हो या नाटक। रमेश उपायाय ने मंच नाटक भी िलखे
और समय क माँग क अनुप नुकड़ नाटक भी रचे। िदी क दो बड़ी नुकड़ नाटक
मंडिलय क पहले और बचिचत नाटक उह क िलखे थे। जहाँ जन ना? मंच, िदी ने
उनका िलखा नाटक 'भारत भाय िवधाता' पहली बार मंिचत िकया वह िनशांत ना मंच,
िदी ने उनक ारा एंटन चेखव क कहानी का 'िगरिगट' नाम से नुकड़ नाटक पांतरण देश
भर म खेला। 'िगरिगट' नाटक न िसफ देश भर म अनेक बार नुकड़ और मंच पर खेला गया
ब क इसी पांतरण को अनेक बोिलय म भी खेला गया। मंच और नुकड़ नाटक क साथ
रमेश उपायाय ने ना? पांतरण का काम ब?बी िकयाs आकाशवाणी क बेहद लोकिय
काय म 'हवामहल' क िलए देशी-िवदेशी अनेक िस कहािनय क ना-पांतर उहने
िकए िजनका सारण आज तक भी लगातार हो रहा ह। 'हवामहल' क िलए अनेक मौिलक और
पांतरत नाटक म उेखनीय ह- अपने-अपने दायर, लोकलाज, िगट ऑफ मैगी आिद ह।
शोध-आलेख
ो. ा
िकरोड़ीमल कॉलेज,
िदी िविवालय
मोबाइल- 9811585399
ईमेल- [email protected]
(शोध-आलेख)
नाटककार रमेश
उपायाय
ो. ा
रमेश उपायाय क नाटककार का जम
एक संयोग से आ। अपनी िकताब 'मेरा
मुझम कछ नह' क 'मेरी ना? याा' शीषक
क अंतगत उहने िलखा ह िक स 1965 म
िदी क एक सािह यक संथा म वे
कहानी-पाठ कर रह थे। गो?ी म मौजूद अय
लोग क साथ आकाशवाणी से जुड़ सय
शरत जी भी थे। कहानी सुनने क बाद उहने
रमेश जी से नाटक िलखने का आह िकया
और रमेश जी ने भी पूर उसाह से उस ताव
को वीकारा। जदी ही वे नाटक िलखकर
सय जी क पास ले गए िजसे उहने पसंद
करते ए िविवध भारती क 'हवामहल'
काय म क िलए पंह िमिनट क अविध क
नाटक िलखने क िलए कहा। तब रमेश
उपायाय ने संयोग को सचेत यास म
परवितत करने और एक नई िवधा म पहल
करने का बीड़ा उठाया। मौिलक नाटक भी
?ब िलखे जो हाथ से िलखकर सप िदए गए
और उनक ितिलिप भी लेखक क पास नह
रही। बाद म आकाशवाणी से जब लगातार
नाटक क माँग आई और हर बार मौिलक
नाटक िलखना संभव नह आ तो ओ. हनरी,
चेखव, मोपासाँ, तोलतॉय, माक ?ेन,
ेमचंद, साद, पसराई, भीम साहनी आिद
क कहािनय क ना पांतर भी िकए जो
आकाशवाणी और दूरदशन पर सारत ए।
नाटक ग िवधा होते ए भी य मायम
से जुड़ी होने क कारण अय िवधा से
िविश? ह। रमेश उपायाय का नाटककार
इस कला क अनुशासन क साथ इसक
या को भी परख रहा था। आकाशवाणी म
जहाँ य-प क धानता रही वह आगे
चलकर जब मंच नाटक से जुड़ने का समय
आया तो य- य दोन क आधार पर
नाटक को आकार देने क चुनौती का वहन
पूरी दाियव क साथ नाटककार रमेश
उपायाय ने िकया। उनका मंच नाटक
'पेपरवेट' अपने मंचन क साथ ही रगकिमय
क नज़र म आया। उसक मंचन ने नाटककार
रमेश उपायाय को ना? जग म याित
िदलाई और रग समीक ने 'पेपरवेट' क
खुलकर सराहना क। 'पेपरवेट' क साथ
उहने 'सफाई चालू ह' और 'भारत भाय
िवधाता' जैसे मंच नाटक भी रचे। इनम 'सफाई
चालू ह' आनंद काश क साथ िमलकर
िलखा गया जबिक 'भारत भाय िवधाता'
तेलगु भाषा क सािहयकार ईर क
'आदमी' कहानी पर आधारत था। बाद म
आठव दशक क दौरान जनांदोलन क
सियता और समय क ज़रत क अनुसार
कला क जनतांिक भूिमका और भागीदारी
क म?ेनज़र उपजे नुकड़ नाटक आंदोलन
म रमेश उपायाय ने अपने नाटककार को
पुनसृिजत िकया। उहने 'राजा क रसोई',
'हरजन दहन', 'िहसा परमोधमः' जैसे
मौिलक नुकड़ नाटक रचे तो 'िगरिगट',
' का वांग' और 'समर याा' जैसे
बमंिचत ना? पांतर भी िकए। रमेश
उपायाय ने ब क िलए 'तमाशा', 'ब
क अदालत' और 'हाथी डोले गाँव-गाँव' जैसे
नाटक भी िलखे। स 2009 म िलखा गया
'हाथी डोले गाँव-गाँव' रमेश उपायाय का
अंितम कािशत नाटक ह जो बाल-िवान
पिका 'चकमक' म कािशत आ था।
इस लेख म रमेश जी क सभी नाटक पर
िवचार करना तो संभव नह होगा। इसिलए
लेख 'पेपरवेट', 'भारत-भाय-िवधाता' और
'सफाई चालू ह' जैसे उनक मंचीय नाटक पर
कित रहगा।
पेपरवेट
'पेपरवेट' अपनी संरचना म अनेक
तीकाथ िलए ए अपने समय म एक साथक
हतेप करता ह। इस नाटक क मुंबई और
िदी क अनेक मंचन, दशक क उसाह,
ना ेिमय-रगसमीक से िमली
सकारामक ितिया ने न कवल ना?
जग म 'पेपरवेट' क िलए एक जगह बनाई
ब क नाटककार क प म रमेश जी को एक
नई ऊचाई भी दी। दो य म िवभ यह
नाटक स 1971 म िलखा गया। अैल,
1972 म ितिबंब ना? संथा ने िवेणी क
मुाकाशी मंच पर इसका मंचन िकया।
नाटक मंचीय तामझाम क अिनवायता न
रखते ए रचा गया था इसीिलए यह मंचीय
नाटक खुले मैदान म तत डालकर बनाए गए
मंच पर मंिचत आ। इसक मंचन क साथ
अनेक प-पिका म इसक चचा ई।
किव-नाटककार सव र दयाल ससेना ने
इसक िवषय म िलखा-''यह नाटक िनदशक
का नह,लेखक का था...पेपरवेट उस खुरदरी
पगडडी का नाटक ह जहाँ से एक नया राता
खुलता ह, एक बने-बनाए राजमाग से हटकर
वह एक नई लीक बनाता ह।'' (भूिमका,पृ 8-
9 पेपरवेट) ितिबंब ने इसक अनेक सफल
मंचन िकए और बाद म मुंबई इटा ने
आर.एम.िसंह क कशल िनदशन और
एम.एस.सयू, शमा जैदी जैसे रगकिमय क
सहयोग सिहत सुलभा आय, रमन कमार,
ए.क.हगल, िनितन सेठी, आिद क जीवंत
अिभनय ने इस नाटक अनेक लोग तक
प चाया। इटा ारा इस नाटक क मंचन का
दशक, रगेिमय ने बत वागत िकया।
पहले नाटक क अनेक मंचन और उसे िमला
दशक-समीक का यार िकसी भी नए
नाटककार का वन होता ह। इस से
देख तो कथाकार रमेश उपायाय क
नाटककार प को भी ना? जग म िविश?
थान िमला। नाटककार क प म उन पर
भरोसा बना जो उनक आगे क ना याा
का सबल रहा।
'पेपरवेट' एक तीकामक नाटक ह।
'पेपरवेट' क म ह पर उसका एक ही अथ
नाटककार ने नह रखा ह। अथ पा क
वैचारक समझ क आधार पर अनेक होते गए
ह। बत ठोस वैचारकता क साथ नाटककार
ने पेपरवेट को मािलक क िलए अलग अथ म
तािवत िकया ह, िशित बेरोज़गार
नौजवान बू क िलए अलग अथ म और
मृतक पागल किव ानचंद क िलए अलग
अथ म। दूसर, नाटक म यह 'पेपरवेट' कवल
एक वतु नह ह। सा क प से देखा जाए
तो यह वो वृि और नीित ह िजसका
इतेमाल साएँ आम जन क िवरोध म करती
ह। ान चाचा क मौत और पोटमाटम म
उनक िदमाग़ से िनकला पेपरवेट उस
य व का तीक ह जो ांित क इछा
करता ह पर सकमक नह ह। पर सा का
चर खुलने पर ान क बेकाबू होने पर सा

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 202561 60 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2025
ितब सािहयकार रमेश उपायाय क रचना-याा क बात क जाए तो कहानी उनक
िय िवधा रही। परतु कथाकार रमेश उपायाय का लेखन कभी भी एक िवधा तक सीिमत नह
रहा। ग क िविवध िवधा म उनक उमु आवाजाही जीवनपयत बनी रही। यही कारण ह
िक उहने कहानी क साथ, कथा-आलोचना म भी गंभीर थापनाएँ देते ए कई आलोचनामक
िकताब िलख। जनवादी कहानी और कहानी म भूमंडलीय यथाथ क अवधारणा पर उनका
काम उेखनीय ह। कथेतर सािहय म डायरी, संमरण,सााकार, िनबंध आिद पर भी
समान अिधकार से िलखा। िहदी म ऐसे सािहयकार कम ही ह जो समान अिधकार से न िसफ़
िविवध िवधा म िलख सक ब क िनयिमत तौर पर गंभीर हतेप कर सक। ग क िविवध
िवधा म िलखने वाले वर सािहयकार रमेश उपायाय ने नाटक भी िलखे ह। िहदी म कई
कथाकार ऐसे ह िजहने कथा क साथ नाटक िलखे और वे दोन ही िवधा म अपनी सश
पहचान बना सक। रमेश उपायाय संयोग से अपनी रचना-याा क आरभ म ही नाटक िवधा से
जुड़ गए थे पर इस संयोग क बाद सचेतनता क साथ इस िवधा म अपनी पूरी ऊजा क साथ
संलन रह। स 1965 म जब उह कथा क दुिनया म आए बमु कल पाँच वष ही ए थे वे
नाटक क दुिनया से लेखक क तौर पर जुड़ गए। बाद म सैमुअल बैकट क चिचत नाटक 'वेिटग
फॉर गोदो' का भारतीय पांतरण 'तीा और तीा' िकया। उसे िनदिशत भी िकया और
उसम अिभनय भी िकया। कथाकार वयं काश उस दौर म इस पूरी ? ?? म रमेश उपायाय
क सहयोगी रह। इस तरह ना? लेखन क साथ उसक यावहारक प से भी रमेश जी का नाता
रहा। यही नह बाद म अनेक संथा क बुलावे पर नाटक क वतमान थित, उसम नई
संभावना क तलाश आिद पर रमेश जी िविवध मंच से अपनी बात कहते रह।
अपने य व म पूरी तौर पर जनवादी रचनाकार रमेश उपायाय क रचनाएँ भी उनक
य व का आईना रह। चाह कहानी हो या नाटक। रमेश उपायाय ने मंच नाटक भी िलखे
और समय क माँग क अनुप नुकड़ नाटक भी रचे। िदी क दो बड़ी नुकड़ नाटक
मंडिलय क पहले और बचिचत नाटक उह क िलखे थे। जहाँ जन ना? मंच, िदी ने
उनका िलखा नाटक 'भारत भाय िवधाता' पहली बार मंिचत िकया वह िनशांत ना मंच,
िदी ने उनक ारा एंटन चेखव क कहानी का 'िगरिगट' नाम से नुकड़ नाटक पांतरण देश
भर म खेला। 'िगरिगट' नाटक न िसफ देश भर म अनेक बार नुकड़ और मंच पर खेला गया
ब क इसी पांतरण को अनेक बोिलय म भी खेला गया। मंच और नुकड़ नाटक क साथ
रमेश उपायाय ने ना? पांतरण का काम ब?बी िकयाs आकाशवाणी क बेहद लोकिय
काय म 'हवामहल' क िलए देशी-िवदेशी अनेक िस कहािनय क ना-पांतर उहने
िकए िजनका सारण आज तक भी लगातार हो रहा ह। 'हवामहल' क िलए अनेक मौिलक और
पांतरत नाटक म उेखनीय ह- अपने-अपने दायर, लोकलाज, िगट ऑफ मैगी आिद ह।
शोध-आलेख
ो. ा
िकरोड़ीमल कॉलेज,
िदी िविवालय
मोबाइल- 9811585399
ईमेल- [email protected]
(शोध-आलेख)
नाटककार रमेश
उपायाय
ो. ा
रमेश उपायाय क नाटककार का जम
एक संयोग से आ। अपनी िकताब 'मेरा
मुझम कछ नह' क 'मेरी ना? याा' शीषक
क अंतगत उहने िलखा ह िक स 1965 म
िदी क एक सािह यक संथा म वे
कहानी-पाठ कर रह थे। गो?ी म मौजूद अय
लोग क साथ आकाशवाणी से जुड़ सय
शरत जी भी थे। कहानी सुनने क बाद उहने
रमेश जी से नाटक िलखने का आह िकया
और रमेश जी ने भी पूर उसाह से उस ताव
को वीकारा। जदी ही वे नाटक िलखकर
सय जी क पास ले गए िजसे उहने पसंद
करते ए िविवध भारती क 'हवामहल'
काय म क िलए पंह िमिनट क अविध क
नाटक िलखने क िलए कहा। तब रमेश
उपायाय ने संयोग को सचेत यास म
परवितत करने और एक नई िवधा म पहल
करने का बीड़ा उठाया। मौिलक नाटक भी
?ब िलखे जो हाथ से िलखकर सप िदए गए
और उनक ितिलिप भी लेखक क पास नह
रही। बाद म आकाशवाणी से जब लगातार
नाटक क माँग आई और हर बार मौिलक
नाटक िलखना संभव नह आ तो ओ. हनरी,
चेखव, मोपासाँ, तोलतॉय, माक ?ेन,
ेमचंद, साद, पसराई, भीम साहनी आिद
क कहािनय क ना पांतर भी िकए जो
आकाशवाणी और दूरदशन पर सारत ए।
नाटक ग िवधा होते ए भी य मायम
से जुड़ी होने क कारण अय िवधा से
िविश? ह। रमेश उपायाय का नाटककार
इस कला क अनुशासन क साथ इसक
या को भी परख रहा था। आकाशवाणी म
जहाँ य-प क धानता रही वह आगे
चलकर जब मंच नाटक से जुड़ने का समय
आया तो य- य दोन क आधार पर
नाटक को आकार देने क चुनौती का वहन
पूरी दाियव क साथ नाटककार रमेश
उपायाय ने िकया। उनका मंच नाटक
'पेपरवेट' अपने मंचन क साथ ही रगकिमय
क नज़र म आया। उसक मंचन ने नाटककार
रमेश उपायाय को ना? जग म याित
िदलाई और रग समीक ने 'पेपरवेट' क
खुलकर सराहना क। 'पेपरवेट' क साथ
उहने 'सफाई चालू ह' और 'भारत भाय
िवधाता' जैसे मंच नाटक भी रचे। इनम 'सफाई
चालू ह' आनंद काश क साथ िमलकर
िलखा गया जबिक 'भारत भाय िवधाता'
तेलगु भाषा क सािहयकार ईर क
'आदमी' कहानी पर आधारत था। बाद म
आठव दशक क दौरान जनांदोलन क
सियता और समय क ज़रत क अनुसार
कला क जनतांिक भूिमका और भागीदारी
क म?ेनज़र उपजे नुकड़ नाटक आंदोलन
म रमेश उपायाय ने अपने नाटककार को
पुनसृिजत िकया। उहने 'राजा क रसोई',
'हरजन दहन', 'िहसा परमोधमः' जैसे
मौिलक नुकड़ नाटक रचे तो 'िगरिगट',
' का वांग' और 'समर याा' जैसे
बमंिचत ना? पांतर भी िकए। रमेश
उपायाय ने ब क िलए 'तमाशा', 'ब
क अदालत' और 'हाथी डोले गाँव-गाँव' जैसे
नाटक भी िलखे। स 2009 म िलखा गया
'हाथी डोले गाँव-गाँव' रमेश उपायाय का
अंितम कािशत नाटक ह जो बाल-िवान
पिका 'चकमक' म कािशत आ था।
इस लेख म रमेश जी क सभी नाटक पर
िवचार करना तो संभव नह होगा। इसिलए
लेख 'पेपरवेट', 'भारत-भाय-िवधाता' और
'सफाई चालू ह' जैसे उनक मंचीय नाटक पर
कित रहगा।
पेपरवेट
'पेपरवेट' अपनी संरचना म अनेक
तीकाथ िलए ए अपने समय म एक साथक
हतेप करता ह। इस नाटक क मुंबई और
िदी क अनेक मंचन, दशक क उसाह,
ना ेिमय-रगसमीक से िमली
सकारामक ितिया ने न कवल ना?
जग म 'पेपरवेट' क िलए एक जगह बनाई
ब क नाटककार क प म रमेश जी को एक
नई ऊचाई भी दी। दो य म िवभ यह
नाटक स 1971 म िलखा गया। अैल,
1972 म ितिबंब ना? संथा ने िवेणी क
मुाकाशी मंच पर इसका मंचन िकया।
नाटक मंचीय तामझाम क अिनवायता न
रखते ए रचा गया था इसीिलए यह मंचीय
नाटक खुले मैदान म तत डालकर बनाए गए
मंच पर मंिचत आ। इसक मंचन क साथ
अनेक प-पिका म इसक चचा ई।
किव-नाटककार सव र दयाल ससेना ने
इसक िवषय म िलखा-''यह नाटक िनदशक
का नह,लेखक का था...पेपरवेट उस खुरदरी
पगडडी का नाटक ह जहाँ से एक नया राता
खुलता ह, एक बने-बनाए राजमाग से हटकर
वह एक नई लीक बनाता ह।'' (भूिमका,पृ 8-
9 पेपरवेट) ितिबंब ने इसक अनेक सफल
मंचन िकए और बाद म मुंबई इटा ने
आर.एम.िसंह क कशल िनदशन और
एम.एस.सयू, शमा जैदी जैसे रगकिमय क
सहयोग सिहत सुलभा आय, रमन कमार,
ए.क.हगल, िनितन सेठी, आिद क जीवंत
अिभनय ने इस नाटक अनेक लोग तक
प चाया। इटा ारा इस नाटक क मंचन का
दशक, रगेिमय ने बत वागत िकया।
पहले नाटक क अनेक मंचन और उसे िमला
दशक-समीक का यार िकसी भी नए
नाटककार का वन होता ह। इस से
देख तो कथाकार रमेश उपायाय क
नाटककार प को भी ना? जग म िविश?
थान िमला। नाटककार क प म उन पर
भरोसा बना जो उनक आगे क ना याा
का सबल रहा।
'पेपरवेट' एक तीकामक नाटक ह।
'पेपरवेट' क म ह पर उसका एक ही अथ
नाटककार ने नह रखा ह। अथ पा क
वैचारक समझ क आधार पर अनेक होते गए
ह। बत ठोस वैचारकता क साथ नाटककार
ने पेपरवेट को मािलक क िलए अलग अथ म
तािवत िकया ह, िशित बेरोज़गार
नौजवान बू क िलए अलग अथ म और
मृतक पागल किव ानचंद क िलए अलग
अथ म। दूसर, नाटक म यह 'पेपरवेट' कवल
एक वतु नह ह। सा क प से देखा जाए
तो यह वो वृि और नीित ह िजसका
इतेमाल साएँ आम जन क िवरोध म करती
ह। ान चाचा क मौत और पोटमाटम म
उनक िदमाग़ से िनकला पेपरवेट उस
य व का तीक ह जो ांित क इछा
करता ह पर सकमक नह ह। पर सा का
चर खुलने पर ान क बेकाबू होने पर सा

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उसे दबाने क िलए पेपरवेट का योग उसे
मारने क िलए करती ह। बू नाटक म युवा
ांितकारता का ितिनिध ह जो
सुिवधाजीिवता क िलए िसांत से समझौता
नह करना चाहता। वह जीवन क
िवडबना को देखते ए उसक ितकार म
पेपरवेट चुराता ज़र ह पर पूर नाटक म
उसका बार-बार कहना िक पेपरवेट िसफ
आोश य करने का हिथयार मा नह
ह-यह बत कछ कहता ह।
नाटक दो य म दशक क िलए सामने
आता ह। 'पेपरवेट' नाटक का पहला अंक
अपेाकत लंबा ह। यहाँ सभी पा, घटनाएँ,
समयाएँ दशक/पाठक क सम आती ह।
दूसर अंक म तीन नए िकरदार आते ह और
नाटक अपने अंत क ओर जाता ह। पहला
नाटक होते ए भी रमेश जी क भीतर का
सचेत नाटककार न िसफ रगसंकत म अपनी
ना का परचय देता ह ब क मंच-
सा य को िकस तरह भावशाली बना
पाएगी उस पर भी नाटककार क नज़र ह। दो
य को समानांतर िदखाते ए काश-
अंधकार क यु का योग, दो तल क मंच
का योग नाटक म िविश ह। वतमान से
अतीत म जाने क िलए भी यह यु अपनाई
गई ह जो चिकत करती ह। नाटक म एक लोरी
का योग भी ह जो बू क बचपन से जुड़ी
ह। यह लोरी एक फटसी ह। जो बे को
सुलाने क िलए िविभ पशु क कथा
कहती ह। बू क बहन मीरा यह लोरी
सुनाती ह पर बड़ा होकर बू इस फटसी को
यथाथ क तुला पर तौलकर कई सवाल खड़
करता ह। यह लोरी दोन क िवडबनामक
वतमान म अतीत क एक कोमल तंतु क तरह
ह।
'पेपरवेट' नाटक म शीषक ही तीकधम
नह ह ब क पहले ही अंक म ऑिफस म
टनो का काम करती मीरा क काय थल म
भयंकर अपद यानी ऑटोपस का िच भी
तीकाथ रखता ह। यह ऑटोपस कसे
ऑिफस क कमचारय को जकड़ ए ह वह
मीरा क पर थितयाँ बयान करती ह। यहाँ
आने का समय ह जाने का नह। हर समय
नौकरी चले जाने का खतरा िसर पर ह। मीरा
यहाँ मािलक-यवथापक/मैनेजर-सै टरी
क मातहत ह। मािलक-मैनेजर-सै टरी क
मीरा क ित सोच ही अपद को रचती ह।
घर चलाने क िलए नौकरी बचाने क हर
यास म मीरा िगरत ह। छोट भाई बू क
नौकरी लगवाने क िलए भी जूझ रही ह। पहले
य म बू क उप थित मीरा क ऑिफस
म एक िविच थित खड़ी कर देती ह। भाई-
बहन क बात म बचपन से उनका यान रखने
वाले ान चाचा क मृयु क रहय क बीच
भाई क नौकरी क िलए िचंितत मीरा उसे
'झुकना' िसखाती ह। नाटक आरभ से ही
नौजवान पीढ़ी क दो ितिनिध खड़ करते ए
दो परपर िवरोधी िचंतन-धारा को सामने
लाता ह। एक म मीरा ह जो नौकरी क िलए हर
समझौता करती ह, भगवा और िनयित म
आथा रखती ह, सा क सामने झुकने को
सही मानती ह तो दूसरी ओर बू ह िजसने न
झुकना सीखा ह न यथा थित बनाए रखने
वाली सा का मोहरा बनना। बू
िजंदािदल ह, बेबाक ह, तािकक ह पर
िफलहाल उसक पास न नौकरी ह और न ही
भिवय क कोई परखा। ऑिफस म एक
खेल क दौरान उसक मीरा को दंडवत करने
क समय सै टरी क एंी से िविच थित
खड़ी होती ह। वह बू पर मीरा क टांगे
देखने का अील आरोप लगाता ह। य म
एक बहस आकार लेती ह। झड़प क दौरान
बू पेपरवेट उठा लेता ह। सै टरी को
पेपरवेट से घायल करक वह पुिलस को
चकमा देकर भाग िनकलता ह।
पहले य म ान चाचा क मौत का
रहय भी नाटक क लय को इकहरा नह रहने
देता। उनक मौत आमहया थी या गोली
मारकर उनक हया क गई थी-यह रहय
बना ही रहता ह। बू ारा िशा क भूिमका
और बेराजगारी क थित पर यंय करना भी
मायने रखता ह। पेपरवेट क िवषय म सै टरी
का पुिलस को समझाना जहाँ हाय क
थितयाँ रचता ह वहाँ बू का आरभ म
अछ चाल-चलन का उसे सिटिफकट न देने
वाल को पेपरवेट से मारना क इछा और
पेपरवेट को उठाकर यह कहना भी अथपूण
ह-'' िकतना यारा ह िचकना िचकना इसम से
दुिनया रगीन िदखाई देती ह।'' (पृ.21,
पेपरवेट) जबिक पेपरवेट क दुिनया और
लड़क क दुिनया का एक अंतर भी संवाद क
साथ उजागर होता ह िक लड़क क दुिनया से
ेम ितरोिहत हो चला ह। उसक िज़ंदगी क
ज़मीन िचकनी नह बेहद खुरदरी ह और
दुिनया क रग, बेरग हो चले ह। संवाद म
पेपरवेट क किम चमक और मीरा-बू
क खुरदरी जीवन थितय क संघात से
नाटककार अपने दशक को िचंतन क िदशा म
सिय करता ह। पहले य म दो नए पा
क प म बॉस और यवथापक क एंी
ऑिफस म होती ह। दोन संवादरत मंच पर
उतरते ह। यवथापक अनुशासन क बात
करता ह और बॉस क िचंता ह िक फ टरी म
हड़ताल यूं हो रही ह? जुलूस य िनकल रह
ह और उनक ऑिफस क शीशे कौन तोड़ रहा
ह? यही नह दोन क बीच जनता को लेकर
भी बहस जारी ह। रमेश जी ने अपने नाटक म
जनता क वप को बार-बार एक लंत
मुे क भाँित उठाया ह। यहाँ जब आम
जनता क बात पर बॉस भी वयं को जनता म
िगनता ह तो दशक का चकना लाजमी ह।
दूसर, जनता क माला जपने वाला
यवथापक बॉस का परम िम कसे हो
सकता ह? जो जन का शु, िमकिवरोधी ह-
यह सवाल यवथापक क दोगलेपन को
सामने लाता ह। धम चारक को चंदा प चाना
भी इस कड़ी का एक अय िसरा ह। इसी तरह
ानचंद क मौत क बाद उससे लाभ उठाने क
िलए उसक शोक सभा करने पर बॉस का
ज़ोर और ानचंद क सा क सम झुकने
क कला क शंसा- सब बात बॉस और
यवथापक क चारिक पहलू उजागर
करती ह। ऑिफस म पुिलस को देखकर बॉस
हरत म पड़ जाता ह। बॉस, पुिलस को
धमकाता ह। पुिलस-बॉस संवाद म पुिलस का
बॉस क आदेश को वीकारो म दोहराना
हाय उप करता ह वहाँ यह सय भी सामने
आता ह िक पुिलस-शासन भी पूँजीपित से
नािभनालब ह।
'' बॉस: नह, वह पकड़ा नह जाएगा।
पुिलस: (अपने साथी से) वह पकड़ा नह
जाएगा।
बॉस : िसफ उस पर नज़र रखनी होगी।
पुिलस: (अपने साथी से) िसफ उस पर
नज़र रखनी होगी। '' (पृ.38)
इस तरह क नाटकय संवाद का रोचक
और िवतृत प हम नाटककार क नुकड़
नाटक 'िगरिगट' क आरभ म िमलता ह जब
बड़ा अफ़सर मोट को आदेश देता ह। वही
आदेश मोटा अफ़सर, छोट अफ़सर को देता
ह और छोटा अफ़सर जनता को वह आदेश
सुनाकर उनका जवाब सभी अफ़सर को देता
ह।
पहले य म तनाव का ण ह बू का
ऑिफ़स से पेपरवेट ले जाना। बॉस और
मैनेजर इसे चोरी मान रह ह पर भय क छाया
भी उनक चहर पर साफ िदखाई देती ह। बॉस
एक ओर यार क आवरण म मीरा को धमक
देता ह- ''टनो, तुहारा भाई शायद ग़लती से
एक पेपरवेट उठाकर ले गया ह। म चा तो
उसे अर ट करा सकता लेिकन म इतना
पथरिदल नह । ब से मुझे यार ह।
...मेरी कपनी, मेरा कारखाना, मेरा दतर
आिख़र िकसक िलए। तुह लोग क िलए।
तुहारा पुराना सेठ तुह या देता था? िसफ
खाना-कपड़ा और सोने क जगह। और
क़मत या वसूल करता था तुमसे? म तुहारी
फाइल देखकर बता सकता िक तुम उसक
साथ िकतनी बार सोयी हो।...रोटी-कपड़ा-
मकान सब कछ देता । और बदले म लेता
या ? िसफ आठ घंट काम।...अपने भाई से
कहना िक पेपरवेट िखलौना नह होता। और
काम म वह उसे ला नह सकता। यिक
पेपरवेट को काम म लाने क िलए और बत
सी चीज क ज़रत होती ह मसलन टबल,
टबल पर रखने क िलए काग़ज़, काग़ज़ को
उड़ाने क िलए हवा। उसक पास ये सब चीज़
कहाँ ह?...शायद तुहार भाई को नौकरी क
ज़ररत ह। उससे कहना िकसी समय आकर
सै टरी से िमले।'' (पृ.42-43-44) नाटक
बॉस क काइयाँ चर को पत दर पत उघाड़ता
ह। वह न िसफ लड़क क बलाकारी सेठ क
तुलना म द को मसीहा िस करता ह
ब क पेपरवेट क एवज़ म उसक भाई क
नौकरी लगवाने क सौदेबाज़ी करता भी तीत
होता ह। यहाँ मीरा क भाई बू से बॉस को
ख़तरा ह। बू को झुकने क कला नह
आती और दूसर ऑिफ़स क शीश को बू
से ख़तरा भी हो सकता ह। पेपरवेट को लेकर
भी नाटक म एक लंबी बहस चलती जाती ह।
बहस का एक दरवाज़ा बॉस और उसक जैसे
लोग क ओर से खोला जाता ह तो दूसरा
बू क ओर से। कहना चािहए ये पूरा नाटक
आज़ादी क बाद क भारतीय समाज पर
पेपरवेट क बहाने एक लंबी िजरह ही ह।
पहले य म लड़का िफर ऑिफ़स
लौटता ह तब पेपरवेट क बहाने बू का प
सामने आता ह िजसका मानना ह िक
राजनीित, क़ानून क िकताब यहाँ तक िक
संिवधान आज हवा म उड़कर गंदी ब तय,
मज़दूर ब तय, गाँव म प चता ह। ऐसा न
हो इसीिलए लोग उन पर पेपरवेट रख देते ह।
लड़का साफ कहता ह िक उसने इसीिलए
अख़बार पर से पेपरवेट उठाया ह तािक वह
उह ब तय-गाँव म प च जाए। सै टरी,
बू क ख़तरनाक इरादे भाँप जाता ह। बू
हवा का तीकाथ समझाता ह जो बाहर चल
रही ह जो बॉस और उस जैसे लोग क िवरोध
म चल रही ह। इसक बाद का य ानचंद
क ांजिल सभा का ह जहाँ पंिडत जनता
को सब सहने वाले संतोषी गुण क मिहमा
बखानता ह, त क मिहमा गाता ह और
उसक जरए पूँजीपित बॉस जैस क प म
मज़दूर क अिधकार क माँग को ग़लत बताता
ह। बू ितकार करक पंिडत को झूठा
कहता ह। एक बार िफर ान चाचा क मौत
का रहय एक नए ढग से खुलता ह जब बू
कहता ह िक ान चाचा को गोली नह मारी
गई वह वयं मर। आमहया क। नाटक म
बू िजस ितकार क आवाज़ ह वह
पर थितय क पड़ताल क बाद ठोस िनकष
पर प चता ह- ''मने उह अपना आदश माना
था। मने सोचा था, एक िदन वे तूफ़ान उठा दगे
और उह चौराह पर गोली मार दी जाएगी।
और तब म तुह बताने आऊगा िक म...म
उनक जगह लेने जा रहा । लेिकन वे सारी
उ बकवास करते रह और आिख़र म पागल
हो गए। मर गए।''(पृ. 60-61)
बू क जाने क बाद सै टरी, मीरा का
अतीत जानकर सेठ क तरह ही उसक
मजबूरी का फ़ायदा उसका दैिहक शोषण
करक उठाता ह। ऑिफ़स म ऑटोपस का
भयानक िच जैसे सभी घटनाम म अपनी
उप थित को साकार करता ह। बॉस,
यवथापक, सै टरी और बाहरी पुिलस तक
सब जैसे अपने िशकजे म लोग को कस रह
ह। मीरा और बू क चर का बुिनयादी
फ़क़ नाटक को गित भी देता ह और युवा पीढ़ी
क ंामक प को भी सामने लाता ह। मीरा
नौकरी बचाए-बनाए रखने और सुिवधा से
जीने क िलए बू क नौकरी क भीख
माँगती ह। हर तरह का समझौता करती ह यहाँ
तक िक वह बू को झुकाने और माफ़
माँगने का वायदा भी अपनी ओर से कर देती ह
जबिक बू क पास जीवन को देखने-
समझने का अपना एक तािकक नज़रया ह।
वह नज़रया उसे उमु भी रखता ह और
ितकार का साहस भी देता ह। नाटक क यह
बी दो जीवन य को घटना क
ितिया म कह संवाद और काय-यापार
से सामने लाती ह। मंचन क से एक और
वैिश य संरचना को लेकर यहाँ िदखाई
देता ह। वह ह एक ही समय पर दो य मंच
पर साकार करने क नाटककार क यु ।
इससे नाटककार क िनदशकय मता को भी
जाना जा सकता ह। लड़क का दैिहक शोषण
करने क िलए जब सै टरी उसे खचता ह तो
मंच क िनचले तल पर अंधकार छा जाता ह
और ऊपरी तल पर यवथापक का भाषण
चलता ह। वहाँ धम रा, गौ रा, देश क
महाता क, ानचंद और भगवा क महाता
का धुँआधार चार होता ह। लगता ही नह यह
नाटक पचास वष पूव िलखा गया था। ऐसा
लगता ह िक यह नाटक समकाल क मुे
उठाते ए उस धािमक संकणता को िदखा
रहा ह जो कट प म महानता का चार
करती ह और परोतः मनुय िवरोधी
गितिविधय को अंजाम देती ह। इस नाटक म

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उसे दबाने क िलए पेपरवेट का योग उसे
मारने क िलए करती ह। बू नाटक म युवा
ांितकारता का ितिनिध ह जो
सुिवधाजीिवता क िलए िसांत से समझौता
नह करना चाहता। वह जीवन क
िवडबना को देखते ए उसक ितकार म
पेपरवेट चुराता ज़र ह पर पूर नाटक म
उसका बार-बार कहना िक पेपरवेट िसफ
आोश य करने का हिथयार मा नह
ह-यह बत कछ कहता ह।
नाटक दो य म दशक क िलए सामने
आता ह। 'पेपरवेट' नाटक का पहला अंक
अपेाकत लंबा ह। यहाँ सभी पा, घटनाएँ,
समयाएँ दशक/पाठक क सम आती ह।
दूसर अंक म तीन नए िकरदार आते ह और
नाटक अपने अंत क ओर जाता ह। पहला
नाटक होते ए भी रमेश जी क भीतर का
सचेत नाटककार न िसफ रगसंकत म अपनी
ना का परचय देता ह ब क मंच-
सा य को िकस तरह भावशाली बना
पाएगी उस पर भी नाटककार क नज़र ह। दो
य को समानांतर िदखाते ए काश-
अंधकार क यु का योग, दो तल क मंच
का योग नाटक म िविश ह। वतमान से
अतीत म जाने क िलए भी यह यु अपनाई
गई ह जो चिकत करती ह। नाटक म एक लोरी
का योग भी ह जो बू क बचपन से जुड़ी
ह। यह लोरी एक फटसी ह। जो बे को
सुलाने क िलए िविभ पशु क कथा
कहती ह। बू क बहन मीरा यह लोरी
सुनाती ह पर बड़ा होकर बू इस फटसी को
यथाथ क तुला पर तौलकर कई सवाल खड़
करता ह। यह लोरी दोन क िवडबनामक
वतमान म अतीत क एक कोमल तंतु क तरह
ह।
'पेपरवेट' नाटक म शीषक ही तीकधम
नह ह ब क पहले ही अंक म ऑिफस म
टनो का काम करती मीरा क काय थल म
भयंकर अपद यानी ऑटोपस का िच भी
तीकाथ रखता ह। यह ऑटोपस कसे
ऑिफस क कमचारय को जकड़ ए ह वह
मीरा क पर थितयाँ बयान करती ह। यहाँ
आने का समय ह जाने का नह। हर समय
नौकरी चले जाने का खतरा िसर पर ह। मीरा
यहाँ मािलक-यवथापक/मैनेजर-सै टरी
क मातहत ह। मािलक-मैनेजर-सै टरी क
मीरा क ित सोच ही अपद को रचती ह।
घर चलाने क िलए नौकरी बचाने क हर
यास म मीरा िगरत ह। छोट भाई बू क
नौकरी लगवाने क िलए भी जूझ रही ह। पहले
य म बू क उप थित मीरा क ऑिफस
म एक िविच थित खड़ी कर देती ह। भाई-
बहन क बात म बचपन से उनका यान रखने
वाले ान चाचा क मृयु क रहय क बीच
भाई क नौकरी क िलए िचंितत मीरा उसे
'झुकना' िसखाती ह। नाटक आरभ से ही
नौजवान पीढ़ी क दो ितिनिध खड़ करते ए
दो परपर िवरोधी िचंतन-धारा को सामने
लाता ह। एक म मीरा ह जो नौकरी क िलए हर
समझौता करती ह, भगवा और िनयित म
आथा रखती ह, सा क सामने झुकने को
सही मानती ह तो दूसरी ओर बू ह िजसने न
झुकना सीखा ह न यथा थित बनाए रखने
वाली सा का मोहरा बनना। बू
िजंदािदल ह, बेबाक ह, तािकक ह पर
िफलहाल उसक पास न नौकरी ह और न ही
भिवय क कोई परखा। ऑिफस म एक
खेल क दौरान उसक मीरा को दंडवत करने
क समय सै टरी क एंी से िविच थित
खड़ी होती ह। वह बू पर मीरा क टांगे
देखने का अील आरोप लगाता ह। य म
एक बहस आकार लेती ह। झड़प क दौरान
बू पेपरवेट उठा लेता ह। सै टरी को
पेपरवेट से घायल करक वह पुिलस को
चकमा देकर भाग िनकलता ह।
पहले य म ान चाचा क मौत का
रहय भी नाटक क लय को इकहरा नह रहने
देता। उनक मौत आमहया थी या गोली
मारकर उनक हया क गई थी-यह रहय
बना ही रहता ह। बू ारा िशा क भूिमका
और बेराजगारी क थित पर यंय करना भी
मायने रखता ह। पेपरवेट क िवषय म सै टरी
का पुिलस को समझाना जहाँ हाय क
थितयाँ रचता ह वहाँ बू का आरभ म
अछ चाल-चलन का उसे सिटिफकट न देने
वाल को पेपरवेट से मारना क इछा और
पेपरवेट को उठाकर यह कहना भी अथपूण
ह-'' िकतना यारा ह िचकना िचकना इसम से
दुिनया रगीन िदखाई देती ह।'' (पृ.21,
पेपरवेट) जबिक पेपरवेट क दुिनया और
लड़क क दुिनया का एक अंतर भी संवाद क
साथ उजागर होता ह िक लड़क क दुिनया से
ेम ितरोिहत हो चला ह। उसक िज़ंदगी क
ज़मीन िचकनी नह बेहद खुरदरी ह और
दुिनया क रग, बेरग हो चले ह। संवाद म
पेपरवेट क किम चमक और मीरा-बू
क खुरदरी जीवन थितय क संघात से
नाटककार अपने दशक को िचंतन क िदशा म
सिय करता ह। पहले य म दो नए पा
क प म बॉस और यवथापक क एंी
ऑिफस म होती ह। दोन संवादरत मंच पर
उतरते ह। यवथापक अनुशासन क बात
करता ह और बॉस क िचंता ह िक फ टरी म
हड़ताल यूं हो रही ह? जुलूस य िनकल रह
ह और उनक ऑिफस क शीशे कौन तोड़ रहा
ह? यही नह दोन क बीच जनता को लेकर
भी बहस जारी ह। रमेश जी ने अपने नाटक म
जनता क वप को बार-बार एक लंत
मुे क भाँित उठाया ह। यहाँ जब आम
जनता क बात पर बॉस भी वयं को जनता म
िगनता ह तो दशक का चकना लाजमी ह।
दूसर, जनता क माला जपने वाला
यवथापक बॉस का परम िम कसे हो
सकता ह? जो जन का शु, िमकिवरोधी ह-
यह सवाल यवथापक क दोगलेपन को
सामने लाता ह। धम चारक को चंदा प चाना
भी इस कड़ी का एक अय िसरा ह। इसी तरह
ानचंद क मौत क बाद उससे लाभ उठाने क
िलए उसक शोक सभा करने पर बॉस का
ज़ोर और ानचंद क सा क सम झुकने
क कला क शंसा- सब बात बॉस और
यवथापक क चारिक पहलू उजागर
करती ह। ऑिफस म पुिलस को देखकर बॉस
हरत म पड़ जाता ह। बॉस, पुिलस को
धमकाता ह। पुिलस-बॉस संवाद म पुिलस का
बॉस क आदेश को वीकारो म दोहराना
हाय उप करता ह वहाँ यह सय भी सामने
आता ह िक पुिलस-शासन भी पूँजीपित से
नािभनालब ह।
'' बॉस: नह, वह पकड़ा नह जाएगा।
पुिलस: (अपने साथी से) वह पकड़ा नह
जाएगा।
बॉस : िसफ उस पर नज़र रखनी होगी।
पुिलस: (अपने साथी से) िसफ उस पर
नज़र रखनी होगी। '' (पृ.38)
इस तरह क नाटकय संवाद का रोचक
और िवतृत प हम नाटककार क नुकड़
नाटक 'िगरिगट' क आरभ म िमलता ह जब
बड़ा अफ़सर मोट को आदेश देता ह। वही
आदेश मोटा अफ़सर, छोट अफ़सर को देता
ह और छोटा अफ़सर जनता को वह आदेश
सुनाकर उनका जवाब सभी अफ़सर को देता
ह।
पहले य म तनाव का ण ह बू का
ऑिफ़स से पेपरवेट ले जाना। बॉस और
मैनेजर इसे चोरी मान रह ह पर भय क छाया
भी उनक चहर पर साफ िदखाई देती ह। बॉस
एक ओर यार क आवरण म मीरा को धमक
देता ह- ''टनो, तुहारा भाई शायद ग़लती से
एक पेपरवेट उठाकर ले गया ह। म चा तो
उसे अर ट करा सकता लेिकन म इतना
पथरिदल नह । ब से मुझे यार ह।
...मेरी कपनी, मेरा कारखाना, मेरा दतर
आिख़र िकसक िलए। तुह लोग क िलए।
तुहारा पुराना सेठ तुह या देता था? िसफ
खाना-कपड़ा और सोने क जगह। और
क़मत या वसूल करता था तुमसे? म तुहारी
फाइल देखकर बता सकता िक तुम उसक
साथ िकतनी बार सोयी हो।...रोटी-कपड़ा-
मकान सब कछ देता । और बदले म लेता
या ? िसफ आठ घंट काम।...अपने भाई से
कहना िक पेपरवेट िखलौना नह होता। और
काम म वह उसे ला नह सकता। यिक
पेपरवेट को काम म लाने क िलए और बत
सी चीज क ज़रत होती ह मसलन टबल,
टबल पर रखने क िलए काग़ज़, काग़ज़ को
उड़ाने क िलए हवा। उसक पास ये सब चीज़
कहाँ ह?...शायद तुहार भाई को नौकरी क
ज़ररत ह। उससे कहना िकसी समय आकर
सै टरी से िमले।'' (पृ.42-43-44) नाटक
बॉस क काइयाँ चर को पत दर पत उघाड़ता
ह। वह न िसफ लड़क क बलाकारी सेठ क
तुलना म द को मसीहा िस करता ह
ब क पेपरवेट क एवज़ म उसक भाई क
नौकरी लगवाने क सौदेबाज़ी करता भी तीत
होता ह। यहाँ मीरा क भाई बू से बॉस को
ख़तरा ह। बू को झुकने क कला नह
आती और दूसर ऑिफ़स क शीश को बू
से ख़तरा भी हो सकता ह। पेपरवेट को लेकर
भी नाटक म एक लंबी बहस चलती जाती ह।
बहस का एक दरवाज़ा बॉस और उसक जैसे
लोग क ओर से खोला जाता ह तो दूसरा
बू क ओर से। कहना चािहए ये पूरा नाटक
आज़ादी क बाद क भारतीय समाज पर
पेपरवेट क बहाने एक लंबी िजरह ही ह।
पहले य म लड़का िफर ऑिफ़स
लौटता ह तब पेपरवेट क बहाने बू का प
सामने आता ह िजसका मानना ह िक
राजनीित, क़ानून क िकताब यहाँ तक िक
संिवधान आज हवा म उड़कर गंदी ब तय,
मज़दूर ब तय, गाँव म प चता ह। ऐसा न
हो इसीिलए लोग उन पर पेपरवेट रख देते ह।
लड़का साफ कहता ह िक उसने इसीिलए
अख़बार पर से पेपरवेट उठाया ह तािक वह
उह ब तय-गाँव म प च जाए। सै टरी,
बू क ख़तरनाक इरादे भाँप जाता ह। बू
हवा का तीकाथ समझाता ह जो बाहर चल
रही ह जो बॉस और उस जैसे लोग क िवरोध
म चल रही ह। इसक बाद का य ानचंद
क ांजिल सभा का ह जहाँ पंिडत जनता
को सब सहने वाले संतोषी गुण क मिहमा
बखानता ह, त क मिहमा गाता ह और
उसक जरए पूँजीपित बॉस जैस क प म
मज़दूर क अिधकार क माँग को ग़लत बताता
ह। बू ितकार करक पंिडत को झूठा
कहता ह। एक बार िफर ान चाचा क मौत
का रहय एक नए ढग से खुलता ह जब बू
कहता ह िक ान चाचा को गोली नह मारी
गई वह वयं मर। आमहया क। नाटक म
बू िजस ितकार क आवाज़ ह वह
पर थितय क पड़ताल क बाद ठोस िनकष
पर प चता ह- ''मने उह अपना आदश माना
था। मने सोचा था, एक िदन वे तूफ़ान उठा दगे
और उह चौराह पर गोली मार दी जाएगी।
और तब म तुह बताने आऊगा िक म...म
उनक जगह लेने जा रहा । लेिकन वे सारी
उ बकवास करते रह और आिख़र म पागल
हो गए। मर गए।''(पृ. 60-61)
बू क जाने क बाद सै टरी, मीरा का
अतीत जानकर सेठ क तरह ही उसक
मजबूरी का फ़ायदा उसका दैिहक शोषण
करक उठाता ह। ऑिफ़स म ऑटोपस का
भयानक िच जैसे सभी घटनाम म अपनी
उप थित को साकार करता ह। बॉस,
यवथापक, सै टरी और बाहरी पुिलस तक
सब जैसे अपने िशकजे म लोग को कस रह
ह। मीरा और बू क चर का बुिनयादी
फ़क़ नाटक को गित भी देता ह और युवा पीढ़ी
क ंामक प को भी सामने लाता ह। मीरा
नौकरी बचाए-बनाए रखने और सुिवधा से
जीने क िलए बू क नौकरी क भीख
माँगती ह। हर तरह का समझौता करती ह यहाँ
तक िक वह बू को झुकाने और माफ़
माँगने का वायदा भी अपनी ओर से कर देती ह
जबिक बू क पास जीवन को देखने-
समझने का अपना एक तािकक नज़रया ह।
वह नज़रया उसे उमु भी रखता ह और
ितकार का साहस भी देता ह। नाटक क यह
बी दो जीवन य को घटना क
ितिया म कह संवाद और काय-यापार
से सामने लाती ह। मंचन क से एक और
वैिश य संरचना को लेकर यहाँ िदखाई
देता ह। वह ह एक ही समय पर दो य मंच
पर साकार करने क नाटककार क यु ।
इससे नाटककार क िनदशकय मता को भी
जाना जा सकता ह। लड़क का दैिहक शोषण
करने क िलए जब सै टरी उसे खचता ह तो
मंच क िनचले तल पर अंधकार छा जाता ह
और ऊपरी तल पर यवथापक का भाषण
चलता ह। वहाँ धम रा, गौ रा, देश क
महाता क, ानचंद और भगवा क महाता
का धुँआधार चार होता ह। लगता ही नह यह
नाटक पचास वष पूव िलखा गया था। ऐसा
लगता ह िक यह नाटक समकाल क मुे
उठाते ए उस धािमक संकणता को िदखा
रहा ह जो कट प म महानता का चार
करती ह और परोतः मनुय िवरोधी
गितिविधय को अंजाम देती ह। इस नाटक म

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भाषण समा होते ही मंच क िनचले तर पर
काश होता ह और ऊपरी तल पर अंधकार।
तीकाथ यही ह िक देश-धम-य -ईर
क महानता क आड़ म िकस तरह एक
लड़क का यौन शोषण हो रहा ह। गहन अथ
ह आम लोग शोषण को शोषण न मानकर
महानता क बोध म ड?बे रह।
नाटक क दूसर य म मंच पर ऑिफस
क जगह मीरा-बू का घर िदखाई देता ह।
दोन क वैचारक प और खुलकर कट
होते ह। लड़का ैस म इकमैन क पचास
पये महावार क नौकरी पाने क बात करता
ह िजसे मीरा आिथक और सामािजक प से
समानजनक नह मानती। यह एक नए पा
का आगमन होता ह। मरिघा उफ काश
जो मीरा क ित आस ह। िजसे बत
मु कल से क क नौकरी िमली ह। नौकरी
क िलए झुकना उसे आता ह पर पुिलस, बू
क पीछ पड़ी ह इस सय को जानकर वह मीरा
से पा छ?ड़ा लेता ह। यानी युवा क
अनेक चेहर नाटक िदखाता ह। एक तरफ
मीरा और काश ह तो दूसरी तरफ बू और
नाटक क दूसर य म गाँव से आए जनादन
और ामीण। बू, जनादन और ामीण क
संवाद एक नए परवतन क वन को साकार
करने क योजना बनाते ह। यहाँ नाटककार ने
मीरा को सीधे अपराधी भी िस नह िकया।
बत सहानुभूित क साथ मीरा क चर को
रचा गया ह। ी क मजबूरी और बाद म
कछ ग़लितय का वीकार मीरा-बू क
आमीय संवाद से कट होता ह। बचपन क
लोरी का यहाँ साथक इतेमाल आ ह। इसी
य म ान चाचा क मौत क रहय क
गुथी भी सुलझती ह। अतीत क एक घटना
को पहले य क तरह दो तल और
अंधकार-काश क यवथा करते ए
िदखाया ह। पागल क प म ान चाचा का
मीरा क दैिहक शोषण क कहानी जानकर
चीखना। बॉस से ान चाचा क झड़प, और
बॉस का पेपरवेट से उसक हया करने क
कहानी से रहय खुलता ह। हया क बाद
उसक शोकसभा आयोिजत करने क हयारी
संकित क अपराध से बरी होने क घाघ
तरीक को य समाने लाता ह। वह जनादन
ारा ान चाचा क जीवन क ग तय से
सीखकर सकमक संघष का राता अपनाने
क पहल न िसफ नाटक को एक ठोस
समाधान क ओर ले जाती ह ब क बू
जैसे परवतनकामी मनुय क िलए भी एक
िदशा सुझाती ह। तीसर जनादन क बात से
एक समय क ऐितहािसक मौजूदगी और
य क दाियव भी परभािषत होते ह। वह
ान चाचा से बू क नफ़रत को सही नह
मानता। उसका कहना ह-''वे समाजवाद से
पहले क चेतना क आदमी थे जो समाज को
बदलने क ज़रत तो समझते ह, लेिकन
भौितक समया क कापिनक समाधान
सोचा करते थे। वे सफल नह ए...हम
उनक ग़लितय से भी बत कछ सीख सकते
ह।'' (पृ.131)
नाटक अपने अंत म एक चरम सीमा पर
प चता ह। यहाँ मीरा को अभी भी बॉस से
कछ आशाएँ ह। सै टरी से उमीद ह िक वह
ेमवश उसक पास आएगा। सै टरी लौटता
ह। नाटक अपने अंत क ओर जाता ह। एक
प मीरा को सपा जाता ह। मीरा क साथ
दशक भी िजासा से भर जाता ह िक यह प
कह बू क नौकरी का अपॉइटमट लेटर तो
नह। प मीरा को नौकरी से िनकालने से
संबंिधत होता ह। मीरा नौकरी क िलए
िगड़िगड़ाती ह। बू उसे रोकता ह मीरा
िवनती करती जाती ह और बू सै टरी को
पेपरवेट मारने क िलए हाथ उठाता ह िफर
ठहरकर पेपरवेट क आर-पार दुिनया को
देखने लगता ह। यह नाटक समा होता ह।
नाटक पेपरवेट क अनेक तीकाथ सामने
लाता आ वरत घटनाम क बीच से एक
ओर पूँजीवाद क िनमम साइय को सामने
रखता ह तो दूसरी ओर ान चाचा क प म
उस िवचार को कट करता ह जो पूँजीवाद
क साइय को जानते ह पर उनसे
सांगठिनक प से संघषरत नह होते। जबिक
जनादन-ामीण और बू ान चाचा क
मृयु से कारण क सही पड़ताल करक एक
नई राह का संधान करते ह। अंत म पेपरवेट क
पार दुिनया को देखना संभवतः जनता क
अिधकार और उनक राह क बाधा को
देखकर समाधान तक प चने का एक राता
भी ह। मीरा जैसे लोग िजहने झुकना सीखा
उनक िहसे म खोने क अितर कछ नह ह
जबिक साहस से ग़लत का िवरोध करने वाली
चेतना से जुड़ लोग क पास बेहतर िवकप
होने क अपार संभावनाएँ ह। अंत म बू का
पेपरवेट क पार देखना शायद उसी दुिनया को
देखना ह। बू साफ़ देख पाता ह िक
मशील जनता को लंबे समय तक िद िमत
नह िकया जा सकता। एक िदन वह सचेत
होकर संकपब होगी।
भारत-भाय-िवधाता
'पेपरवेट' क बाद रमेश जी का दूसरा
नाटक 'भारत-भाय-िवधाता' था। यह नाटक
स 1973 म िलखा गया। कहा जा सकता ह
िक आरभ से ही आकाशवाणी क िलए नाटक
िलखने क अलावा रमेश जी क नाटककार का
सवािधक ऊजा का समय आठवाँ दशक रहा।
'भारत-भाय-िवधाता' नाटक से जुड़ी दो बत
महवपूण बात यहाँ जानना ज़री ह। एक तो
यह नाटक ईर क तेलगु कहानी 'आदमी'
पर आधारत ह िजसका अनुवाद रमेश जी क
अिभ? िम कहानीकार इािहम शरीफ़ ने
िकया। इस तरह 'आदमी' कहानी अनुवाद क
बाद रमेश जी क हाथ आई। इस संदभ म यह
प िकया जाना बेहद ज़री ह िक यह
नाटक कहानी का ना पांतर नह ह। यह
कहानी से ेरत ह और इसीिलए 'भारत-
भाय-िवधाता' कछ नई घटना, क पत
पा और थितय को भी नाटक म रचता ह।
यही नह इस नाटक म गितशील किव
नागाजुन क किवता 'अब तो बंद करो ह देवी
यह चुनाव का हसन' क अंश का योग भी
िकया गया ह। नागाजुन ने यह किवता भले ही
स 1972 क प म बंगाल चुनाव क
िवसंगितय क फलवप िलखी थी। ईर
ने भी अपनी कहानी क क म उस चुनाव को
रखा और बाद म रमेश जी ने भी उस पर
नाटक तैयार िकया लेिकन आज का पाठक
जब 'भारत-भाय-िवधाता' को पढ़गा या
नाटक देखेगा उसे महसूस होगा िक यह नाटक
इितहास क िकसी एक ख़ास चुनाव पर
आधारत नह ह। यह नाटक उस पूँजीवादी
जनतं क िवसंगितय पर आधारत तीत
होगा जो अपने रचना-समय क िलए तो
?लंत िवषय था ही वतमान म भी ासंिगक
बना आ ह। दूसर, नाटक को सामूिहक िवधा
अकारण नह कहा जाता। इस से देख तो
रमेश उपायाय का यह नाटक कई मायन म
िविश? ह। इसक पूवा यास क दौरान किव-
नाटककार सव र दयाल ससेना क
उप थित और नागाजुन क किवता क थान
पर वेछा से इस नाटक क गीत िलखने का
उनक ारा ताव रखना और सहष सहमित
क बाद इस नाटक क नौ गीत िलखना उसी
सामूिहकता का परचायक ह। यही नह मोहन
उेती जैसे गीतकार-संगीतकार ने इन गीत को
संगीत िदया। इस तरह ये नाटक अपनी
सामूिहकता म िविश? रहाs दूसरी बात यह ह
िक कोई भी नाटक अपनी पूणता पर तब
प चता ह जब वह मंिचत हो जाता ह। इस
से भी 'भारत-भाय-िवधाता' महवपूण
रहा। नाटक पूरा होने क साथ ही िदी क
उभरती ना संथा 'जन ना मंच' ने इसे
खेला। संथा ारा मंिचत यह पहला नाटक
ह। ना? जग क चिचत कलाकार िवनोद
नागपाल और किवता नागपाल ने इसम
अिभनय िकया और जनम ने इसक पचास
मंचन देश क अनेक िहस म िकए। नाटक
क सफल तुितय पर िवतार से सफ़दर
हाशमी ने िलखा भी ह िजसका कछ िहसा
रमेश जी ने अपनी िकताब 'मेरा मुझम कछ
नह' म उृत भी िकया ह।
'भारत-भाय-िवधाता' नाटक चुनाव क
? ?? म धन और बल क सा, श का
मद, वच व क अंहकार, जन क उपीड़न
और भयानक मनुय िवरोधी कचाल से वोट
क राजनीित क क पता को जग-जािहर
करता ह। जािहर ह िवचारधारामक तर पर
रमेश जी अपनी रचना म यह प लगातार
रखते आए थे। अपने नुकड़ और मंच
नाटक म वे जनिवरोधी सा क दमनकारी
तं को भी बेनकाब करते रह पर इसका
आशय यह नह िक लोकतं क िलए लंबी
लड़ाई क बाद मतािधकार का जो अिधकार
जनता को ?? आ ह रमेश जी उसे इस
नाटक क मायम से ख़ारज करते ह। रमेश
जी जैसा सचेत सािहयकार यह नह कर
सकता। वह लोकतांिक ? ?? क बल
हिथयार चुनाव का नह ब क चुनावी पित
क तमाम िवसंगितय और ाचार को
नाटक क मायम से सामने लाता ह। उनका
उेय उस जन क वकालत करना रहा ह
जो इस चुनावी तं क िहसा का सीधा िशकार
बनता ह। 'आदमी' कहानी म कथाकार ईर
एक गाँव क सूदखोर चैधरी और राजा दोन क
चुनाव लड़ने और गोपू को एक-दूसर क
हया क िलए उकसाते ह। बाद म दोन क
ब क ेम क कारण िवरोधी, समधी बनने
क राह खोजकर गोपू क िनमम हया करवा
देते ह। उह डर ह िक गोपू ही उस घृिणत सच
को जानता ह िक दोन एक-दूसर क जान क
दुमन बने ह। कहानी गोपू क कहानी भी
कहती ह। गोपू क ज़मीन हड़पने क अतीत,
बहन क शादी और आिथक तंगी क वतमान
से यह कहानी जुड़ी ह। इसीिलए गोपू क मन
क असमंजस क थाह भी कहानीकार लेता ह।
'भारत-भाय-िवधाता' नाटक कहानी का
ना? पांतर नह ह। यह कहानी से ेरत ह।
इसम गोपू, राजा साहब और चैधरी क कथा
जस क तस ह पर यह नाटक, कहानी से कई
प म िभ? ह।
'भारत-भाय-िवधाता' नाटक क
शुआत ही रोचक ह। इस नाटक क भीतर
एक नाटक घिटत होने जा रहा ह। सूधार
और नटी क मंच पर आने और उनक संवाद
से दशक क सम यह सय उ?ािटत होता
ह। जो नाटक मंिचत होना ह वह चुनाव पर
आधारत ह। नाटक क शुआत ही बेहद
चुत ह। मंच पर एक गाँव का य िदखता ह
वहाँ दो पोटर िदखाई देते ह। एक पर गाँव
धान क चुनाव म चैधरी चतुरिसंह को चुनने
क बात ह तो दूसर पर राजा साहब को ही
चुिनए का आदेश। नाटक क आरभ म ही एक
भारी समया पैदा हो जाती ह जो तनाव रचती
ह। यह तनाव ह मंच पर सारी ॉपट, पा
आिद होने पर भी देश, देश क जनता, उसक
नेता, उनक चार तं का अभाव िजसक
बात सूधार उठाता ह। नाटक म सूधार कथा
को आगे बढ़ाने क कड़ी क अपेा
तानाशाही तं, यथा थितवाद और अवसर
क ताक म रहने वाला वह सू ह जो पा को
अपने सू क कठपुतली बनाना चाहता ह।
नाटक म तनाव क िबंदु क साथ ही आरभ से
ंामक िवधान भी प होता चलता ह।
यहाँ सूधार एक प ह तो गायक उसका
ितप। यानी एक ही मंडली म दो िभ?
वर क उप थित से नाटककार नाटक क
ं को साधता ह। िवचार क ित िन?ावान
रचनाकार क इस नाटक म वैचारकता का
प बेहद साफ और ठोस ह।
सूधार से टकराता गायक आरभ म ही
यंय क मायम से ितप रचता ह। मंच पर
ॉपट आिद क अभाव क बात उठाते सूधार
क बात को बढ़ाते ए वह कहता ह-''बेचारी
पुिलस, बेचारी फ़ौज,बेचारी लािठयाँ, बेचारी
बंदूक...'' (पृ. 14) उसक बात को नटी
बोरयत से भरा बताती ह तो सूधार तुरत
कपना का सहारा लेकर दशक को पोटर
देखकर बताता ह िक यह गाँव रामपुर ह।
इसक राजा भानुताप िसंह ह जो जा क
भलाई क िलए चुनाव लड़ रह ह और
खानदानी जापालक-जािहतैषी राजा साहब
का गुणगान करते ए वह राजा क
जनकयाणकारी काम क फहरत िगनाने
लगता ह। गायक तुरत ितवाद करते ए
कहता ह-'' गाँव को ग़रीब िकसने बनाया?
गाँव म गंदगी िकसने फलायी? गाँव म हयाएँ
िकसने करवा?''-(पृ. 16, भारत भाय
िवधाता) इस तरह गायक मंच पर अपने ही हर
बार मंिचत होने वाले नाटक क आलोचना
करते ए एक नए नाटक क माँग उठाता ह।
नाटककार ने इस नाटक म एक लंबी भूिमका
क बाद नाटक म उतरने का काम िकया ह।
दरअसल सूधार, नटी और गायक क संवाद
से नए नाटक क माँग तक क बात से
नाटककार अपने पाठक-दशक को एक
वैचारक थित क िलए तैयार करता चलता
ह। इसी भूिमका म नाटककार उस मूल कारण
को भी य करता ह िजसक चलते नया
नाटक जरी ह। वह वजह चुनाव नह ब क

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भाषण समा होते ही मंच क िनचले तर पर
काश होता ह और ऊपरी तल पर अंधकार।
तीकाथ यही ह िक देश-धम-य -ईर
क महानता क आड़ म िकस तरह एक
लड़क का यौन शोषण हो रहा ह। गहन अथ
ह आम लोग शोषण को शोषण न मानकर
महानता क बोध म ड?बे रह।
नाटक क दूसर य म मंच पर ऑिफस
क जगह मीरा-बू का घर िदखाई देता ह।
दोन क वैचारक प और खुलकर कट
होते ह। लड़का ैस म इकमैन क पचास
पये महावार क नौकरी पाने क बात करता
ह िजसे मीरा आिथक और सामािजक प से
समानजनक नह मानती। यह एक नए पा
का आगमन होता ह। मरिघा उफ काश
जो मीरा क ित आस ह। िजसे बत
मु कल से क क नौकरी िमली ह। नौकरी
क िलए झुकना उसे आता ह पर पुिलस, बू
क पीछ पड़ी ह इस सय को जानकर वह मीरा
से पा छ?ड़ा लेता ह। यानी युवा क
अनेक चेहर नाटक िदखाता ह। एक तरफ
मीरा और काश ह तो दूसरी तरफ बू और
नाटक क दूसर य म गाँव से आए जनादन
और ामीण। बू, जनादन और ामीण क
संवाद एक नए परवतन क वन को साकार
करने क योजना बनाते ह। यहाँ नाटककार ने
मीरा को सीधे अपराधी भी िस नह िकया।
बत सहानुभूित क साथ मीरा क चर को
रचा गया ह। ी क मजबूरी और बाद म
कछ ग़लितय का वीकार मीरा-बू क
आमीय संवाद से कट होता ह। बचपन क
लोरी का यहाँ साथक इतेमाल आ ह। इसी
य म ान चाचा क मौत क रहय क
गुथी भी सुलझती ह। अतीत क एक घटना
को पहले य क तरह दो तल और
अंधकार-काश क यवथा करते ए
िदखाया ह। पागल क प म ान चाचा का
मीरा क दैिहक शोषण क कहानी जानकर
चीखना। बॉस से ान चाचा क झड़प, और
बॉस का पेपरवेट से उसक हया करने क
कहानी से रहय खुलता ह। हया क बाद
उसक शोकसभा आयोिजत करने क हयारी
संकित क अपराध से बरी होने क घाघ
तरीक को य समाने लाता ह। वह जनादन
ारा ान चाचा क जीवन क ग तय से
सीखकर सकमक संघष का राता अपनाने
क पहल न िसफ नाटक को एक ठोस
समाधान क ओर ले जाती ह ब क बू
जैसे परवतनकामी मनुय क िलए भी एक
िदशा सुझाती ह। तीसर जनादन क बात से
एक समय क ऐितहािसक मौजूदगी और
य क दाियव भी परभािषत होते ह। वह
ान चाचा से बू क नफ़रत को सही नह
मानता। उसका कहना ह-''वे समाजवाद से
पहले क चेतना क आदमी थे जो समाज को
बदलने क ज़रत तो समझते ह, लेिकन
भौितक समया क कापिनक समाधान
सोचा करते थे। वे सफल नह ए...हम
उनक ग़लितय से भी बत कछ सीख सकते
ह।'' (पृ.131)
नाटक अपने अंत म एक चरम सीमा पर
प चता ह। यहाँ मीरा को अभी भी बॉस से
कछ आशाएँ ह। सै टरी से उमीद ह िक वह
ेमवश उसक पास आएगा। सै टरी लौटता
ह। नाटक अपने अंत क ओर जाता ह। एक
प मीरा को सपा जाता ह। मीरा क साथ
दशक भी िजासा से भर जाता ह िक यह प
कह बू क नौकरी का अपॉइटमट लेटर तो
नह। प मीरा को नौकरी से िनकालने से
संबंिधत होता ह। मीरा नौकरी क िलए
िगड़िगड़ाती ह। बू उसे रोकता ह मीरा
िवनती करती जाती ह और बू सै टरी को
पेपरवेट मारने क िलए हाथ उठाता ह िफर
ठहरकर पेपरवेट क आर-पार दुिनया को
देखने लगता ह। यह नाटक समा होता ह।
नाटक पेपरवेट क अनेक तीकाथ सामने
लाता आ वरत घटनाम क बीच से एक
ओर पूँजीवाद क िनमम साइय को सामने
रखता ह तो दूसरी ओर ान चाचा क प म
उस िवचार को कट करता ह जो पूँजीवाद
क साइय को जानते ह पर उनसे
सांगठिनक प से संघषरत नह होते। जबिक
जनादन-ामीण और बू ान चाचा क
मृयु से कारण क सही पड़ताल करक एक
नई राह का संधान करते ह। अंत म पेपरवेट क
पार दुिनया को देखना संभवतः जनता क
अिधकार और उनक राह क बाधा को
देखकर समाधान तक प चने का एक राता
भी ह। मीरा जैसे लोग िजहने झुकना सीखा
उनक िहसे म खोने क अितर कछ नह ह
जबिक साहस से ग़लत का िवरोध करने वाली
चेतना से जुड़ लोग क पास बेहतर िवकप
होने क अपार संभावनाएँ ह। अंत म बू का
पेपरवेट क पार देखना शायद उसी दुिनया को
देखना ह। बू साफ़ देख पाता ह िक
मशील जनता को लंबे समय तक िद िमत
नह िकया जा सकता। एक िदन वह सचेत
होकर संकपब होगी।
भारत-भाय-िवधाता
'पेपरवेट' क बाद रमेश जी का दूसरा
नाटक 'भारत-भाय-िवधाता' था। यह नाटक
स 1973 म िलखा गया। कहा जा सकता ह
िक आरभ से ही आकाशवाणी क िलए नाटक
िलखने क अलावा रमेश जी क नाटककार का
सवािधक ऊजा का समय आठवाँ दशक रहा।
'भारत-भाय-िवधाता' नाटक से जुड़ी दो बत
महवपूण बात यहाँ जानना ज़री ह। एक तो
यह नाटक ईर क तेलगु कहानी 'आदमी'
पर आधारत ह िजसका अनुवाद रमेश जी क
अिभ? िम कहानीकार इािहम शरीफ़ ने
िकया। इस तरह 'आदमी' कहानी अनुवाद क
बाद रमेश जी क हाथ आई। इस संदभ म यह
प िकया जाना बेहद ज़री ह िक यह
नाटक कहानी का ना पांतर नह ह। यह
कहानी से ेरत ह और इसीिलए 'भारत-
भाय-िवधाता' कछ नई घटना, क पत
पा और थितय को भी नाटक म रचता ह।
यही नह इस नाटक म गितशील किव
नागाजुन क किवता 'अब तो बंद करो ह देवी
यह चुनाव का हसन' क अंश का योग भी
िकया गया ह। नागाजुन ने यह किवता भले ही
स 1972 क प म बंगाल चुनाव क
िवसंगितय क फलवप िलखी थी। ईर
ने भी अपनी कहानी क क म उस चुनाव को
रखा और बाद म रमेश जी ने भी उस पर
नाटक तैयार िकया लेिकन आज का पाठक
जब 'भारत-भाय-िवधाता' को पढ़गा या
नाटक देखेगा उसे महसूस होगा िक यह नाटक
इितहास क िकसी एक ख़ास चुनाव पर
आधारत नह ह। यह नाटक उस पूँजीवादी
जनतं क िवसंगितय पर आधारत तीत
होगा जो अपने रचना-समय क िलए तो
?लंत िवषय था ही वतमान म भी ासंिगक
बना आ ह। दूसर, नाटक को सामूिहक िवधा
अकारण नह कहा जाता। इस से देख तो
रमेश उपायाय का यह नाटक कई मायन म
िविश? ह। इसक पूवा यास क दौरान किव-
नाटककार सव र दयाल ससेना क
उप थित और नागाजुन क किवता क थान
पर वेछा से इस नाटक क गीत िलखने का
उनक ारा ताव रखना और सहष सहमित
क बाद इस नाटक क नौ गीत िलखना उसी
सामूिहकता का परचायक ह। यही नह मोहन
उेती जैसे गीतकार-संगीतकार ने इन गीत को
संगीत िदया। इस तरह ये नाटक अपनी
सामूिहकता म िविश? रहाs दूसरी बात यह ह
िक कोई भी नाटक अपनी पूणता पर तब
प चता ह जब वह मंिचत हो जाता ह। इस
से भी 'भारत-भाय-िवधाता' महवपूण
रहा। नाटक पूरा होने क साथ ही िदी क
उभरती ना संथा 'जन ना मंच' ने इसे
खेला। संथा ारा मंिचत यह पहला नाटक
ह। ना? जग क चिचत कलाकार िवनोद
नागपाल और किवता नागपाल ने इसम
अिभनय िकया और जनम ने इसक पचास
मंचन देश क अनेक िहस म िकए। नाटक
क सफल तुितय पर िवतार से सफ़दर
हाशमी ने िलखा भी ह िजसका कछ िहसा
रमेश जी ने अपनी िकताब 'मेरा मुझम कछ
नह' म उृत भी िकया ह।
'भारत-भाय-िवधाता' नाटक चुनाव क
? ?? म धन और बल क सा, श का
मद, वच व क अंहकार, जन क उपीड़न
और भयानक मनुय िवरोधी कचाल से वोट
क राजनीित क क पता को जग-जािहर
करता ह। जािहर ह िवचारधारामक तर पर
रमेश जी अपनी रचना म यह प लगातार
रखते आए थे। अपने नुकड़ और मंच
नाटक म वे जनिवरोधी सा क दमनकारी
तं को भी बेनकाब करते रह पर इसका
आशय यह नह िक लोकतं क िलए लंबी
लड़ाई क बाद मतािधकार का जो अिधकार
जनता को ?? आ ह रमेश जी उसे इस
नाटक क मायम से ख़ारज करते ह। रमेश
जी जैसा सचेत सािहयकार यह नह कर
सकता। वह लोकतांिक ? ?? क बल
हिथयार चुनाव का नह ब क चुनावी पित
क तमाम िवसंगितय और ाचार को
नाटक क मायम से सामने लाता ह। उनका
उेय उस जन क वकालत करना रहा ह
जो इस चुनावी तं क िहसा का सीधा िशकार
बनता ह। 'आदमी' कहानी म कथाकार ईर
एक गाँव क सूदखोर चैधरी और राजा दोन क
चुनाव लड़ने और गोपू को एक-दूसर क
हया क िलए उकसाते ह। बाद म दोन क
ब क ेम क कारण िवरोधी, समधी बनने
क राह खोजकर गोपू क िनमम हया करवा
देते ह। उह डर ह िक गोपू ही उस घृिणत सच
को जानता ह िक दोन एक-दूसर क जान क
दुमन बने ह। कहानी गोपू क कहानी भी
कहती ह। गोपू क ज़मीन हड़पने क अतीत,
बहन क शादी और आिथक तंगी क वतमान
से यह कहानी जुड़ी ह। इसीिलए गोपू क मन
क असमंजस क थाह भी कहानीकार लेता ह।
'भारत-भाय-िवधाता' नाटक कहानी का
ना? पांतर नह ह। यह कहानी से ेरत ह।
इसम गोपू, राजा साहब और चैधरी क कथा
जस क तस ह पर यह नाटक, कहानी से कई
प म िभ? ह।
'भारत-भाय-िवधाता' नाटक क
शुआत ही रोचक ह। इस नाटक क भीतर
एक नाटक घिटत होने जा रहा ह। सूधार
और नटी क मंच पर आने और उनक संवाद
से दशक क सम यह सय उ?ािटत होता
ह। जो नाटक मंिचत होना ह वह चुनाव पर
आधारत ह। नाटक क शुआत ही बेहद
चुत ह। मंच पर एक गाँव का य िदखता ह
वहाँ दो पोटर िदखाई देते ह। एक पर गाँव
धान क चुनाव म चैधरी चतुरिसंह को चुनने
क बात ह तो दूसर पर राजा साहब को ही
चुिनए का आदेश। नाटक क आरभ म ही एक
भारी समया पैदा हो जाती ह जो तनाव रचती
ह। यह तनाव ह मंच पर सारी ॉपट, पा
आिद होने पर भी देश, देश क जनता, उसक
नेता, उनक चार तं का अभाव िजसक
बात सूधार उठाता ह। नाटक म सूधार कथा
को आगे बढ़ाने क कड़ी क अपेा
तानाशाही तं, यथा थितवाद और अवसर
क ताक म रहने वाला वह सू ह जो पा को
अपने सू क कठपुतली बनाना चाहता ह।
नाटक म तनाव क िबंदु क साथ ही आरभ से
ंामक िवधान भी प होता चलता ह।
यहाँ सूधार एक प ह तो गायक उसका
ितप। यानी एक ही मंडली म दो िभ?
वर क उप थित से नाटककार नाटक क
ं को साधता ह। िवचार क ित िन?ावान
रचनाकार क इस नाटक म वैचारकता का
प बेहद साफ और ठोस ह।
सूधार से टकराता गायक आरभ म ही
यंय क मायम से ितप रचता ह। मंच पर
ॉपट आिद क अभाव क बात उठाते सूधार
क बात को बढ़ाते ए वह कहता ह-''बेचारी
पुिलस, बेचारी फ़ौज,बेचारी लािठयाँ, बेचारी
बंदूक...'' (पृ. 14) उसक बात को नटी
बोरयत से भरा बताती ह तो सूधार तुरत
कपना का सहारा लेकर दशक को पोटर
देखकर बताता ह िक यह गाँव रामपुर ह।
इसक राजा भानुताप िसंह ह जो जा क
भलाई क िलए चुनाव लड़ रह ह और
खानदानी जापालक-जािहतैषी राजा साहब
का गुणगान करते ए वह राजा क
जनकयाणकारी काम क फहरत िगनाने
लगता ह। गायक तुरत ितवाद करते ए
कहता ह-'' गाँव को ग़रीब िकसने बनाया?
गाँव म गंदगी िकसने फलायी? गाँव म हयाएँ
िकसने करवा?''-(पृ. 16, भारत भाय
िवधाता) इस तरह गायक मंच पर अपने ही हर
बार मंिचत होने वाले नाटक क आलोचना
करते ए एक नए नाटक क माँग उठाता ह।
नाटककार ने इस नाटक म एक लंबी भूिमका
क बाद नाटक म उतरने का काम िकया ह।
दरअसल सूधार, नटी और गायक क संवाद
से नए नाटक क माँग तक क बात से
नाटककार अपने पाठक-दशक को एक
वैचारक थित क िलए तैयार करता चलता
ह। इसी भूिमका म नाटककार उस मूल कारण
को भी य करता ह िजसक चलते नया
नाटक जरी ह। वह वजह चुनाव नह ब क

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एक ख़ास िकम का चुनाव ह। आरभ म ही
गायक-सूधार क बहस इस तय से पदा
उठाती ह िक आजादी क बाद चुनाव से नह
ब क िवदूपता क चादर ओढ़ चुनाव से
नाटककार को घृणा ह। यहाँ नाटककार जनता
का ितिनिधव करते ए एक तरह से उसक
बात को सामने लाता ह। गायक पूँजीवादी
जनतं क आलोचना करते ए कारांतर से
वातिवक जनतं क ज़रत पर बल देता ह।
वह गाता ह-
'' बाज आया म ऐसे नाटक से/साँप भी
िजसम फन िहलाता हो/उस िपटार से कसे
नाता हो/ऐसा हसन तुह मुबारक हो/
देखकर िजससे तबीयत झक हो/बंद करो...''
(पृ. 17) सूधार क देशभ क अपील,
पुराने नाटक को िदखाने क रट और एक
थोथी आदशवािदता क प पर भी गायक
अपना िवरोध कट करता ह। वह आज़ादी पर
सवाल उठाता ह। दरअसल गायक समय क
आग से तैयार एक गंभीर वैचारक पा ह। यह
वैचारकता नाकलता िलए ह जो अपने
समय और राजनीित क सही सवाल, सही
परेय म उठाती ह। गायक झूठी देशभ
क गीत गाने से इकार करता ह। संकित क
आड़ म िकए जा रह खेल पर उगली उठाता
ह। यह दोन ही प न कवल नाटक रचने क
समय म ब क आज क समय क भी सच
बनकर सामने आते ह। नए नाटक और जनता
क एकरसता का भंग होकर नए रस क संचार
म सूधार फ़ायदा देखता ह और नए नाटक
क मंरी देता ह।
नाटक उस गाँव क चुनाव क कहानी क
ओर बढ़ता ह जहाँ राजा और चौधरी दो
चुनावी याी ह। नयापन ह इस नाटक म
गंगू, कशो, राधे, मुकदी, जुमन क प म
जनता क मंच पर आने क यु । यानी यह
पूरा िहसा ईर क कहानी 'आदमी' से
िकसी भी प से संब नह ह। यह
नाटककार क मौिलक सोच का िहसा ह।
यही नह जनता को मंच क ज़रत समझने
वाला सूधार जनता को अनपढ़-मूख और
कठपुतली भर मानता ह। यहाँ भी नाटककार
सूधार का ितप जनता क हवाले से रचता
ह। जनता को 'पूअर पीपल' से सबोिधत
करने वाले सूधार को जनता साफ कहती ह-
'' कशो: हगे, लेिकन हम आपक सू म बंधी
ई कठपुतली नह ह।... गंगू: इस बार हम
अपने िकसी आदमी को अपना धान
बनाएँगे।'' (22) एक प घोषणा क तहत
जनता विववेक से राजा और चौधरी दोन
उमीदवार क अपेा जन क से ितिनिध
अपने नए उमीदवार क बात उठाती ह। यहाँ
यह देखना भी ज़री ह िक यह जनता कौनसी
ह? इसम कशो कामरड ह जो मज़दूर यूिनयन
का नेता ह। गंगू मज़दूर ह जो राजा साहब क
कारखाने म काम करता ह। राधे राजा साहब
क खेत म काम करता ह। मुकदी दिलत ह
और जुमन मुसलमान िजसक माता-िपता
दंग म मार गए। यानी मशील जन क
ितिनिध यहाँ धन-बल क राजनीित करने
वाले शोषक उमीदवार को ख़ारज करते ह।
संवाद म इन पा का परचय और
जीवनकथा भी चले आते ह। यह नह वे नटी
से अनुरोध करते ह िक जनता म वह मिहला
ितिनिधव क िलए वह नटी क अितर भी
एक भूिमका िनभाए। सूधार क एक ही शत
ह िक नाटक िहट हो। 'आदमी' कहानी से अब
तक नाटक का िसरा नह जुड़ता। सूधार
जनता से धान क नए िवकप क बाबत
पूछता ह। एक बार िफर सा का प और
ितप संवाद म उािटत होता ह। सूधार
चुनाव को फयर इलेशन कहकर ीन िचट
िदलवाता ह तो मंच पर उतरी जनता का दूसरा
प ह। वह चुनाव म वोट ख़रीदने क ताकत
को नत करती ह- ''कशो: ताक़त माने
पैसा। / गंगू: ताकत माने लाठी। / जुमन:
ताक़त माने बंदूक। / मुकदी: ताकत माने
गुंड। / कशो: ताक़त माने पुिलस। / गंगू:
ताक़त माने फ़ौज। / जुमन: ताक़त माने दंगे।
/ मुकदी: ताक़त माने न।'' (पृ.28)
यह संवाद चुनावी हथकड क क प
कहानी कहते ह और इसक िव सही-
उजली जनतांिक िया का समथन करते
ह। नाटक म जगह-जगह गीत का योग ह।
इस नाटक क गीत सव र जी ने िलखे ह।
नाटक म गायक एक अथपूण हतेप गीत
क ज़रए करता ह- ''बंद करो, बंद करो/यह
चुनाव का हसन/ठाकर-बामन मूंछ ताव
द/िजंदा बाल हरजन / नून से सता ह
कानून/जेब काटते अफलातून/मेल-िमलावट
वाला तेल/सबक िसर पर चढ़ा पटल /
बेइसाफ देख-देख क/आग लगे ह तन-
मन/बंद करो, बंद करो/यह चुनाव का
हसन''(पृ. 29)
नाटक म जनता क उपयोग क समता उस
वोटर जनता से क जाती ह िजसका याशी
और दल मनमािफक दोहन करते ह, आम
जन का उपीड़न करते ह। जनता चुनाव क
दोन यािशय का का-िचा खोलती ह।
यहाँ संवाद जैसे नाटक म घिटत ाइमैस
क एक पूवसूचना देते चलते ह िक चुनाव का
प और िवकत होने वाला ह। जनता िफर से
छली जाने वाली ह। गांधीवादी मूय क
िमसाल, सय-अिहसा क देश क जय
गाथा को जनता ामक करार देती ह। वह
उस िवरोधाभास को िच त करती ह जो
सतह क नीचे ह। जनता ज़ािलम शासक क
बरस उस गोपू पहलवान को अपना याशी
चुनती ह िजसक ज़मीन चैधरी ने सूदखोरी म
हड़प ली और राजा साहब ने उसे अपना लठत
बनाकर गुंडागद करने पर मजबूर िकया। गोपू
को अपना उमीदवार चुनने वाली जनता
िववेक से अनेक प पर िवचार करती ह-
''मुकदी: य समझो िक हमारी ब-बेिटय क
इत आब तो उसी क दम पर बची ई ह।
िजस िदन हरजन को िज़ंदा जलाया गया था,
गोपू पहलवान गाँव म नह थे। अगर होते तो
उन लोग को बाद म जलाया जाता पहले गोपू
पहलवान क लाश उठती।
कशो: पंच यह भी िवचार करने क बात
ह िक गोपू जैसे बिढ़या इसान गुंडागद से
अपना पेट पालने को मजबूर य हो जाता
ह।'' (पृ.32) इसी संवाद क िवतार म नाटक
वग क बात सामने लाता ह और गाँव म
उपीड़न क िशकार लोग को एक तरफ
मानता ह और दूसरी तरफ उपीड़क श य
को। संवाद मे सबक एकमत होने पर गायक
आता ह और गाता ह- ''हमार ही ह पंच-
धान/ हमार ही ह याय-िवधान/न हो
आजादी का अपमान/यही अब जनता का
अरमान/ बने िचनगारी आग समान/जलाकर
खाक कर अान/शोषक को हो मृयु
िवधान/यही अब जनता का अरमान''
इस नाटक क योगधिमता न िसफ
कहानी क ेरणा से एक नएपन को नाटक म
लाने म ह ब क नई थितय से जुड़कर
कय और गीत क संयोजन म ह। नाटककार
और गीत रचियता थितय क अनुप अपनी
भूिमका िनभाते ह और पाठक/दशक इस
संयोजन और कय-गीत क एकाम से
भािवत होता ह। योगधिमता का एक तर
यह भी ह िक नाटक म ेत क शैली अपनाते
ए गीत योजना क गई ह तो वह ेत क
एिलयेनेशन िसांत क अनुप दशक को
सिय और सचेत रखा गया ह न िक
साधारणीकरण क िसांत म उह रसमन
िकया गया ह। नाटककार-गीतकार लगातार
दशक क चेतना को झकझोरते ह और उसे
आनंिदत करने क अपेा वतमान क ित
सचेत करते ह। यह ज़र ह िक यह नाटक
अपने कलेवर म रसहीन नह ह। घटना का
ताना-बाना और पा क आवाजाही का ?
उसे एक ओर कलामक बनाता ह तो दूसरी
ओर यह नाटक कला क जनपधर सरोकार
क साथ वयं को जोड़ता ह।
ईर क कहानी 'आदमी' से जुड़ने से
पहले का यह पूरा घटना-च नाटककार क
पूरी वैचारकता क साथ घिटत होता ह। नटी
खीजकर कहती भी ह िक असली नाटक कब
शु होगा? पर गायक उससे कहता ह यह जो
घिटत हो रहा ह वह असली से भी अिधक
असली ह। आगे चलकर नाटक क कथा का
िकोण साकार होता ह और नाटक का वह
िहसा सामने आता ह जो कहानी से पूरी तरह
ेरत ह। जहाँ एक ओर राजा साहब का
चारिक प खुलता ह दूसरी ओर चैधरी का
और तीसरा गोपू का। गोपू िजसक ऊपर
जवान बहन क शादी का दाियव ह। गोपू
िजसक िपता क ज़मीन क़ज़ क सूद म चैधरी
ने हड़प ली। राजा और चैधरी दोन उसे
लोभन देते ह। पर थितय ने जैसा गोपू को
बनाया ह वह उसका िशकार होकर दोन क
बात को सही मानता ह। राजा और चैधरी जानी
दुमन क तरह एक-दूसर क िलए गोपू को
हयार क तौर पर खड़ा करते ह। दोन उससे
अपराध करवाने क िलए उसे खरीदने क
कोिशश करते ह। अपने तरीक़ से उसे एक-
दूसर क िव भड़काते ह और पुिलस-
शासन क अपनी मुी म होने का
आासन भी देते ह। थितयाँ नाटक क
चरम सीमा क ओर बढ़ ही रही होती ह िक
अचानक एक एंटी ाईमैस घिटत होता ह।
राजा क बेट और चौधरी क बेटी का ेमसंग
नई थितय को रचता ह। बेटी क ाणघात
क धमक से घबराकर चैधरी उसक िववाह
का ताव राजा क पास ले जाता ह और राजा
एक पंथ दो काज करता ह। उसक चुनाव का
काँटा भी िनकल जाता ह और चैधरी से
दुमनी का संग भी समा हो जाता ह। दोन
दुमन एक हो जाते ह। दरअसल दोन का
वगय चर एक ह इसिलए दोन का एकमत
होकर गोपू क जान का दुमन बनना भी उसी
चर का िहसा बनता ह। एक तरफ जब
गाँव एक नए धान क प म बेहतर जीवन
पर थितय क आस लगाए ह। जब गोपू,
राजा और चौधरी क धन से अपनी बहन क
िववाह क िदक़त दूर करने पर िवचार कर
रहा ह तब ही राजा-चौधरी गठबंधन से
थितय उलट जाती ह। एक तरफ आम जन
गोपू क प म धान होने क संभावना देख
रहा ह तो दूसरी तरफ उसे दंड देने क चाल
खोजी जा रही ह। जनता क जनतं क अपेा
तानाशाही राजतं क जड़ मज़बूत क जाती
ह। राजा, चौधरी और सूधार क िलए आम
आदमी क ित वे पूवा ह सामने आते ह जो
उह 'नीच-कमीन' मानते ह। वे गोपू क हयार
बनते ह। आम जनता ारा धान पद का
याशी चुनाव लड़ने और जीतने से पूव ही
षं करक मार डाला जाता ह। नटी को
िमली दूसरी भूिमका-गोपू क बहन बाली क
इज़त लूटी जाती ह। जनाोश भी य
होता ह।
''कशो: (गंभीर वर म) यह रोने का वत
नह ह भाइयो। गोपू को उहने मार डाला ह
और बाली क दुदशा तुम देख ही रह हो। यह
ह तुहारी आज़ादी। यह तुहारा चुनाव का
अिधकार। यह ह तुहारा लोकतं।''
जन का ितरकार होता ह। तानाशाही
श याँ संगिठत होकर दमन का च तेज़
करती ह। राजा साहब अनैितक हथकड से
चुनाव जीतते ह। गायक ितवाद करता आ
िनराशा म उमीद क बीज बोता ह। '' हम न
अपना आग बना करक रहगे / सैलाब
इकलाब का ला करक रहगे / सोई ई ताकत
को जगा करक रहगे / अिधकार अपना छीन
िदखा करक रहगे / अयाय को हम याय बना
करक रहगे।'' (पृ.68)
यह गीत गोपू क नृशंस हया, बाली क
बलाकार, राजा क िवजयी होने क बाद
जनसंघष छा क वर और परवतन क िलए
जनता क संगठनामक कायवाही का चेहरा
बनकर आता ह।
नाटक का अंितम य दो िवपरीत
पर थितय और मनः थितय क संघात से
रचा गया ह। एक तरफ सूधार जनिवरोधी-
जातं िवरोधी श य का समथक बनकर
जनता को धमकाता ह- ''और िनकालो
जुलूस! और करो दशन। हमारी पुिलस और
सेना ने अशांित फलाने वाले समाज-िवरोधी
तव को ब अछा सबक िसखा िदया ह।
हम अपनी सरकार और यवथा पर गव ह।
अब म आप लोग को एक शख़बरी सुनाता
। राजा साहब हमेशा क तरह िनिवरोध धान
चुन िलए गए ह। सुिनए उनक जै-जैकार हो
रही ह।''(पृ.69) नेपय से जय-जयकार क
विन होती ह। मंच पर सूधार राजा साहब क
शंसा करता ह और तभी उसक िनिवरोध
जीतने क बात का जवाब जनता क जुलूस से
दशक को िमलता ह जो संगिठत होकर 'हम
खून अपना आग बना करक रहगे' गीत गाते
ए िनकलता ह। इस तरह 'भारत-भाय-
िवधाता' यानी भारत क भाय क िवधाता
उसक जनता क वातिवक तवीर
नाटककार िदखाता ह। नाटक का शीषक
यंय क ताने-बाने से रचा ह। यंय भी दोहरा
ह। कहने को जो चुनावी िया को अंजाम
देने वाली जनता ह जो भारत क भाय िवधाता
कहलाती ह धन-बल क तं म उसे िकतनी

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एक ख़ास िकम का चुनाव ह। आरभ म ही
गायक-सूधार क बहस इस तय से पदा
उठाती ह िक आजादी क बाद चुनाव से नह
ब क िवदूपता क चादर ओढ़ चुनाव से
नाटककार को घृणा ह। यहाँ नाटककार जनता
का ितिनिधव करते ए एक तरह से उसक
बात को सामने लाता ह। गायक पूँजीवादी
जनतं क आलोचना करते ए कारांतर से
वातिवक जनतं क ज़रत पर बल देता ह।
वह गाता ह-
'' बाज आया म ऐसे नाटक से/साँप भी
िजसम फन िहलाता हो/उस िपटार से कसे
नाता हो/ऐसा हसन तुह मुबारक हो/
देखकर िजससे तबीयत झक हो/बंद करो...''
(पृ. 17) सूधार क देशभ क अपील,
पुराने नाटक को िदखाने क रट और एक
थोथी आदशवािदता क प पर भी गायक
अपना िवरोध कट करता ह। वह आज़ादी पर
सवाल उठाता ह। दरअसल गायक समय क
आग से तैयार एक गंभीर वैचारक पा ह। यह
वैचारकता नाकलता िलए ह जो अपने
समय और राजनीित क सही सवाल, सही
परेय म उठाती ह। गायक झूठी देशभ
क गीत गाने से इकार करता ह। संकित क
आड़ म िकए जा रह खेल पर उगली उठाता
ह। यह दोन ही प न कवल नाटक रचने क
समय म ब क आज क समय क भी सच
बनकर सामने आते ह। नए नाटक और जनता
क एकरसता का भंग होकर नए रस क संचार
म सूधार फ़ायदा देखता ह और नए नाटक
क मंरी देता ह।
नाटक उस गाँव क चुनाव क कहानी क
ओर बढ़ता ह जहाँ राजा और चौधरी दो
चुनावी याी ह। नयापन ह इस नाटक म
गंगू, कशो, राधे, मुकदी, जुमन क प म
जनता क मंच पर आने क यु । यानी यह
पूरा िहसा ईर क कहानी 'आदमी' से
िकसी भी प से संब नह ह। यह
नाटककार क मौिलक सोच का िहसा ह।
यही नह जनता को मंच क ज़रत समझने
वाला सूधार जनता को अनपढ़-मूख और
कठपुतली भर मानता ह। यहाँ भी नाटककार
सूधार का ितप जनता क हवाले से रचता
ह। जनता को 'पूअर पीपल' से सबोिधत
करने वाले सूधार को जनता साफ कहती ह-
'' कशो: हगे, लेिकन हम आपक सू म बंधी
ई कठपुतली नह ह।... गंगू: इस बार हम
अपने िकसी आदमी को अपना धान
बनाएँगे।'' (22) एक प घोषणा क तहत
जनता विववेक से राजा और चौधरी दोन
उमीदवार क अपेा जन क से ितिनिध
अपने नए उमीदवार क बात उठाती ह। यहाँ
यह देखना भी ज़री ह िक यह जनता कौनसी
ह? इसम कशो कामरड ह जो मज़दूर यूिनयन
का नेता ह। गंगू मज़दूर ह जो राजा साहब क
कारखाने म काम करता ह। राधे राजा साहब
क खेत म काम करता ह। मुकदी दिलत ह
और जुमन मुसलमान िजसक माता-िपता
दंग म मार गए। यानी मशील जन क
ितिनिध यहाँ धन-बल क राजनीित करने
वाले शोषक उमीदवार को ख़ारज करते ह।
संवाद म इन पा का परचय और
जीवनकथा भी चले आते ह। यह नह वे नटी
से अनुरोध करते ह िक जनता म वह मिहला
ितिनिधव क िलए वह नटी क अितर भी
एक भूिमका िनभाए। सूधार क एक ही शत
ह िक नाटक िहट हो। 'आदमी' कहानी से अब
तक नाटक का िसरा नह जुड़ता। सूधार
जनता से धान क नए िवकप क बाबत
पूछता ह। एक बार िफर सा का प और
ितप संवाद म उािटत होता ह। सूधार
चुनाव को फयर इलेशन कहकर ीन िचट
िदलवाता ह तो मंच पर उतरी जनता का दूसरा
प ह। वह चुनाव म वोट ख़रीदने क ताकत
को नत करती ह- ''कशो: ताक़त माने
पैसा। / गंगू: ताकत माने लाठी। / जुमन:
ताक़त माने बंदूक। / मुकदी: ताकत माने
गुंड। / कशो: ताक़त माने पुिलस। / गंगू:
ताक़त माने फ़ौज। / जुमन: ताक़त माने दंगे।
/ मुकदी: ताक़त माने न।'' (पृ.28)
यह संवाद चुनावी हथकड क क प
कहानी कहते ह और इसक िव सही-
उजली जनतांिक िया का समथन करते
ह। नाटक म जगह-जगह गीत का योग ह।
इस नाटक क गीत सव र जी ने िलखे ह।
नाटक म गायक एक अथपूण हतेप गीत
क ज़रए करता ह- ''बंद करो, बंद करो/यह
चुनाव का हसन/ठाकर-बामन मूंछ ताव
द/िजंदा बाल हरजन / नून से सता ह
कानून/जेब काटते अफलातून/मेल-िमलावट
वाला तेल/सबक िसर पर चढ़ा पटल /
बेइसाफ देख-देख क/आग लगे ह तन-
मन/बंद करो, बंद करो/यह चुनाव का
हसन''(पृ. 29)
नाटक म जनता क उपयोग क समता उस
वोटर जनता से क जाती ह िजसका याशी
और दल मनमािफक दोहन करते ह, आम
जन का उपीड़न करते ह। जनता चुनाव क
दोन यािशय का का-िचा खोलती ह।
यहाँ संवाद जैसे नाटक म घिटत ाइमैस
क एक पूवसूचना देते चलते ह िक चुनाव का
प और िवकत होने वाला ह। जनता िफर से
छली जाने वाली ह। गांधीवादी मूय क
िमसाल, सय-अिहसा क देश क जय
गाथा को जनता ामक करार देती ह। वह
उस िवरोधाभास को िच त करती ह जो
सतह क नीचे ह। जनता ज़ािलम शासक क
बरस उस गोपू पहलवान को अपना याशी
चुनती ह िजसक ज़मीन चैधरी ने सूदखोरी म
हड़प ली और राजा साहब ने उसे अपना लठत
बनाकर गुंडागद करने पर मजबूर िकया। गोपू
को अपना उमीदवार चुनने वाली जनता
िववेक से अनेक प पर िवचार करती ह-
''मुकदी: य समझो िक हमारी ब-बेिटय क
इत आब तो उसी क दम पर बची ई ह।
िजस िदन हरजन को िज़ंदा जलाया गया था,
गोपू पहलवान गाँव म नह थे। अगर होते तो
उन लोग को बाद म जलाया जाता पहले गोपू
पहलवान क लाश उठती।
कशो: पंच यह भी िवचार करने क बात
ह िक गोपू जैसे बिढ़या इसान गुंडागद से
अपना पेट पालने को मजबूर य हो जाता
ह।'' (पृ.32) इसी संवाद क िवतार म नाटक
वग क बात सामने लाता ह और गाँव म
उपीड़न क िशकार लोग को एक तरफ
मानता ह और दूसरी तरफ उपीड़क श य
को। संवाद मे सबक एकमत होने पर गायक
आता ह और गाता ह- ''हमार ही ह पंच-
धान/ हमार ही ह याय-िवधान/न हो
आजादी का अपमान/यही अब जनता का
अरमान/ बने िचनगारी आग समान/जलाकर
खाक कर अान/शोषक को हो मृयु
िवधान/यही अब जनता का अरमान''
इस नाटक क योगधिमता न िसफ
कहानी क ेरणा से एक नएपन को नाटक म
लाने म ह ब क नई थितय से जुड़कर
कय और गीत क संयोजन म ह। नाटककार
और गीत रचियता थितय क अनुप अपनी
भूिमका िनभाते ह और पाठक/दशक इस
संयोजन और कय-गीत क एकाम से
भािवत होता ह। योगधिमता का एक तर
यह भी ह िक नाटक म ेत क शैली अपनाते
ए गीत योजना क गई ह तो वह ेत क
एिलयेनेशन िसांत क अनुप दशक को
सिय और सचेत रखा गया ह न िक
साधारणीकरण क िसांत म उह रसमन
िकया गया ह। नाटककार-गीतकार लगातार
दशक क चेतना को झकझोरते ह और उसे
आनंिदत करने क अपेा वतमान क ित
सचेत करते ह। यह ज़र ह िक यह नाटक
अपने कलेवर म रसहीन नह ह। घटना का
ताना-बाना और पा क आवाजाही का ?
उसे एक ओर कलामक बनाता ह तो दूसरी
ओर यह नाटक कला क जनपधर सरोकार
क साथ वयं को जोड़ता ह।
ईर क कहानी 'आदमी' से जुड़ने से
पहले का यह पूरा घटना-च नाटककार क
पूरी वैचारकता क साथ घिटत होता ह। नटी
खीजकर कहती भी ह िक असली नाटक कब
शु होगा? पर गायक उससे कहता ह यह जो
घिटत हो रहा ह वह असली से भी अिधक
असली ह। आगे चलकर नाटक क कथा का
िकोण साकार होता ह और नाटक का वह
िहसा सामने आता ह जो कहानी से पूरी तरह
ेरत ह। जहाँ एक ओर राजा साहब का
चारिक प खुलता ह दूसरी ओर चैधरी का
और तीसरा गोपू का। गोपू िजसक ऊपर
जवान बहन क शादी का दाियव ह। गोपू
िजसक िपता क ज़मीन क़ज़ क सूद म चैधरी
ने हड़प ली। राजा और चैधरी दोन उसे
लोभन देते ह। पर थितय ने जैसा गोपू को
बनाया ह वह उसका िशकार होकर दोन क
बात को सही मानता ह। राजा और चैधरी जानी
दुमन क तरह एक-दूसर क िलए गोपू को
हयार क तौर पर खड़ा करते ह। दोन उससे
अपराध करवाने क िलए उसे खरीदने क
कोिशश करते ह। अपने तरीक़ से उसे एक-
दूसर क िव भड़काते ह और पुिलस-
शासन क अपनी मुी म होने का
आासन भी देते ह। थितयाँ नाटक क
चरम सीमा क ओर बढ़ ही रही होती ह िक
अचानक एक एंटी ाईमैस घिटत होता ह।
राजा क बेट और चौधरी क बेटी का ेमसंग
नई थितय को रचता ह। बेटी क ाणघात
क धमक से घबराकर चैधरी उसक िववाह
का ताव राजा क पास ले जाता ह और राजा
एक पंथ दो काज करता ह। उसक चुनाव का
काँटा भी िनकल जाता ह और चैधरी से
दुमनी का संग भी समा हो जाता ह। दोन
दुमन एक हो जाते ह। दरअसल दोन का
वगय चर एक ह इसिलए दोन का एकमत
होकर गोपू क जान का दुमन बनना भी उसी
चर का िहसा बनता ह। एक तरफ जब
गाँव एक नए धान क प म बेहतर जीवन
पर थितय क आस लगाए ह। जब गोपू,
राजा और चौधरी क धन से अपनी बहन क
िववाह क िदक़त दूर करने पर िवचार कर
रहा ह तब ही राजा-चौधरी गठबंधन से
थितय उलट जाती ह। एक तरफ आम जन
गोपू क प म धान होने क संभावना देख
रहा ह तो दूसरी तरफ उसे दंड देने क चाल
खोजी जा रही ह। जनता क जनतं क अपेा
तानाशाही राजतं क जड़ मज़बूत क जाती
ह। राजा, चौधरी और सूधार क िलए आम
आदमी क ित वे पूवा ह सामने आते ह जो
उह 'नीच-कमीन' मानते ह। वे गोपू क हयार
बनते ह। आम जनता ारा धान पद का
याशी चुनाव लड़ने और जीतने से पूव ही
षं करक मार डाला जाता ह। नटी को
िमली दूसरी भूिमका-गोपू क बहन बाली क
इज़त लूटी जाती ह। जनाोश भी य
होता ह।
''कशो: (गंभीर वर म) यह रोने का वत
नह ह भाइयो। गोपू को उहने मार डाला ह
और बाली क दुदशा तुम देख ही रह हो। यह
ह तुहारी आज़ादी। यह तुहारा चुनाव का
अिधकार। यह ह तुहारा लोकतं।''
जन का ितरकार होता ह। तानाशाही
श याँ संगिठत होकर दमन का च तेज़
करती ह। राजा साहब अनैितक हथकड से
चुनाव जीतते ह। गायक ितवाद करता आ
िनराशा म उमीद क बीज बोता ह। '' हम न
अपना आग बना करक रहगे / सैलाब
इकलाब का ला करक रहगे / सोई ई ताकत
को जगा करक रहगे / अिधकार अपना छीन
िदखा करक रहगे / अयाय को हम याय बना
करक रहगे।'' (पृ.68)
यह गीत गोपू क नृशंस हया, बाली क
बलाकार, राजा क िवजयी होने क बाद
जनसंघष छा क वर और परवतन क िलए
जनता क संगठनामक कायवाही का चेहरा
बनकर आता ह।
नाटक का अंितम य दो िवपरीत
पर थितय और मनः थितय क संघात से
रचा गया ह। एक तरफ सूधार जनिवरोधी-
जातं िवरोधी श य का समथक बनकर
जनता को धमकाता ह- ''और िनकालो
जुलूस! और करो दशन। हमारी पुिलस और
सेना ने अशांित फलाने वाले समाज-िवरोधी
तव को ब अछा सबक िसखा िदया ह।
हम अपनी सरकार और यवथा पर गव ह।
अब म आप लोग को एक शख़बरी सुनाता
। राजा साहब हमेशा क तरह िनिवरोध धान
चुन िलए गए ह। सुिनए उनक जै-जैकार हो
रही ह।''(पृ.69) नेपय से जय-जयकार क
विन होती ह। मंच पर सूधार राजा साहब क
शंसा करता ह और तभी उसक िनिवरोध
जीतने क बात का जवाब जनता क जुलूस से
दशक को िमलता ह जो संगिठत होकर 'हम
खून अपना आग बना करक रहगे' गीत गाते
ए िनकलता ह। इस तरह 'भारत-भाय-
िवधाता' यानी भारत क भाय क िवधाता
उसक जनता क वातिवक तवीर
नाटककार िदखाता ह। नाटक का शीषक
यंय क ताने-बाने से रचा ह। यंय भी दोहरा
ह। कहने को जो चुनावी िया को अंजाम
देने वाली जनता ह जो भारत क भाय िवधाता
कहलाती ह धन-बल क तं म उसे िकतनी

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अयायी थितय से गुज़रना पड़ता ह। दूसर
भारत क चुनावी यवथा जो सबको िनणय
का अिधकार देती ह उसका वतमान प
िकतना लचर ह िजसम आम जन हर बार छला
जाता ह। यह नाटक इसी छले जाने क िव
जनता क सचेत कायवाही ह।
सफाई चालू ह
दो अंक म िवभ मंचीय नाटक 'सफाई
चालू ह' रमेश उपायाय और आनंद काश
ारा संयु प से िलखा गया ह। यह नाटक
स 1974 म िलखा गया। उस समय जब
सामूिहक प से नाटक नह िलखे जाते थे
हालाँिक बाद म कई नुकड़ नाटक मंडिलय
क नाटक सामूिहक लेखन से िनकले। संयु
प से िलखा गया यह नाटक िकह कारण
से मंिचत नह हो पाया। इसिलए यह अपने
उस उकष पर नह प चा िजस पर 'पेपरवेट',
भारत भाय िवधाता' या रमेश जी क अय
नाटक ब?बी प च पाए।
'सफाई चालू ह' नाटक आज़ाद भारत क
अनेक िवूपता का िवरोध करते ए एक
जरी सफाई पर बल देता ह। सफाई का अथ
यहाँ बआयामी ह। नाटककार ने बत
सोच-समझकर थितय क संघात और
संवादधिमता क वैिश से आज़ाद भारत म
सफाई क ज़रत पर बल िदया ह। भारतीय
समाज क सामािजक-धािमक जड़ता,
जाितवाद, गांधीवाद क अवमूयन से
िद िमत समाज यवथा और अयाय का
िवरोध न करक उसे सह जाने क िवन
सहनशीलता को नाटक क भीतर नत
िकया गया ह।
रमेश उपायाय और आनंद काश क
इस सहयोगी नाटक म रमेश उपायाय क
अय नाटक क भाँित िचंतन और वैचारक
प क धारा बत सश ह पर वह उनक
अय नाटक क अपेा इस नाटक म गीत
नह ह। कथा का वाहक सूधार नह ह ब क
घिटत हो रही घटना क एक ंखला ह जो
पूर नाटक म चलती ह। दोन अंक म एक-
एक य क योजना ह। िविश? ह इस नाटक
का पा परचय जो कवल पा क िवषय म
सूचना ही नह देता, उस सूचना क साथ क
वाय पा का पूरा ख़ाका रचते ह। मसलन-
चक उफ चवत साद: उ 28 क
आसपास। अपना परचय ?द ही दे सकते ह।
या राधे बाबू: क। उ 45 क आसपास।
कम से कम चार लड़िकय क बाप तो हगे
ही। हमेशा हर बात को साध कर बोलते ह। या
िफर माटर हसराज: अयापक। उ
रटायरमट क आसपास। आज क सुधारवाद
क जीते-जागते नमूने। सुधारवादी कम, नमूने
यादा आिद। इस तरह नाटक क सात
अिभनेता का परचय देते ए उनक
चारिक िबय का संि वणन भी नाटक
क आरभ म ही पाठक को िमल जाता ह।
पहले अंक म ही क ीय पा चक उफ
चवत साद का अजीबोग़रीब िलया
पाठक को चिकत करता ह। मंच पर उतर
चक क पट क बेट म एक नीम क हर
प क बंधी डाल से मंच क अय पा
चिकत होते ह। कोई चक को पागल समझता
ह तो कोई उसक श? का िमलान िकसी
गुमशुदा से करते ए उसे घर लौट जाने क
सलाह देता ह। चक क इद-िगद दोन ही
अंक म चार लड़िकय क शादी का बोझ
िलए राधेबाबू ह, सुधारवादी-गांधीवादी माटर
हसराज ह,कतिनया पंिडत परमानंद ह, चक
क ित सहानुभूित रखने वाली गीता भैनजी
और टाइिपट जौली ह। हरया नाम का दिलत
पा दूसर अंक म आता ह।
अपनी उप थित से ही मंच पर हलचल
रच देने वाला चक सबक हरकत पर
चीखता ह। धीर-धीर सब उसक डाल का
अपनी तौर पर मुआयना करते ह। चकने,
परशान होने क साथ हायजनक थित भी
उभरती ह जब चक को कॉरपोरशन का
आदमी समझ िलया जाता ह जो झाड? क
अभाव म डाल से सफाई को अंजाम दे रहा ह।
चक सबक बात का जवाब देता ह-''
देिखए, बात ये ह िक अपने यहाँ गंदगी बत
बढ़ गई ह। उसक सफाई भी होनी चािहए।
लेिकन सवाल ह िक कर कौन? सफाई करने
वाल ने छ ी ले ली ह। आिख़र कोई न कोई
तो सफाई करने वाला होना ही चािहए।''
(सफाई चालू ह,पृ.14) इस तरह चक
भारतीय समाज यवथा क तमाम
िवूपता को तीकामक तरीक़ से सामने
लाता ह। इस पर रोधे बाबू, गीता भैनजी,
माटर हसराज, परमानंद सब उससे तीखे
सवाल करते ह। मंच पर तनाव उतर आता ह।
पा क लंबे संवाद एक-दूसर पर छटाकशी
क साथ देश क अतीत और वतमान पर
सवाल उठाते ह। माटर हसराज चक जैसे
नौजवान को आवारा, फालतू, उचका और
पागल मानकर ान देना आरभ करता ह। वह
भूख, ग़रीबी, बेकारी, बीमारी, ाचार,
अयाचार, अिशा, अान जैसी गंदगी को
देश से हटाने क बात करते ए बापू क माग
पर चलकर जनांदोलन क बात उठाता ह।
बत सचेत तरीक से नाटककार ने इस पा
क अंतिवरोध को उजागर िकया ह और
उसक छ? गांधीवादी िवचारधारा को भी
उभारा ह। थितय और संवाद से िसांत
और यवहार का ैत उजागर हो जाता ह।
नाटक क आरभ म ही चक नाम का पा
मंच क अय पा और दशक क िलए एक
रहय क श? म उभरता ह। धीर-धीर ये
चक मंच पर अनेक पा क बीच िघर जाता
ह। सब उस पर छटाकशी करने को मु ह।
दो ी िकरदार को अितर िकसी को
उससे सहानुभूित भी नह। चक और सफाई
क बहाने जनता क सवाल पर माटर
पूँजीवादी तक देता ह िक 'य को सुधारए
समाज अपने आप सुधर जाएगा। ह सफाई
करने चले ह। करगे सफाई।''(पृ.15) एक
तरह से माटर जनता क समूचे अ तव को
नकारता ह। उसक अनुसार जनता कभी
समाज नह बदल सकती यिक वह ?द
सामािजक बुराइय से दूिषत ह। इस तरह
इितहास क एक ग़लत याया देते ए
माटर जनता को हय से देखता ह। यह
उसका वैचारक अंतिवरोध खुलकर सामने
आ जाता ह। इस पा क गढ़न नाटक म
चक क वैचारक प से खुलकर टकराती
ह। चक, माटर क नज़र म आवारा-
उचका ह पर चक बदलाव क ित समिपत
जनता क ितिनिध क प म सामने आता ह।
जनता ारा सामािजक सफाई पर मुँह
िबचकाने वाले माटर क िलए चक का
संवाद नाटक म बत महवपूण ह- ''डाल
नह ह। यह एक आँधी ह। तूफ़ान ह। और ये
आँधी, ये तूफ़ान तुहारी उस तमाम गंदगी को
उड़ाने क िलए ह जो तुमने ?द पैदा कर रखी
ह। और म " म भी इसी गंदगी क पैदावार ।
मुझम और तुमम फ़क़ िसफ़ इतना ह िक तुम
िज़ंदगी भर गंदगी फलाते हो और आिख़र म
उसी म िमल जाते हो। लेिकन म इस गंदगी म
पैदा होकर भी इसम खप जाना नह चाहता।
इससे बाहर आना चाहता और अपने जैसे
उन तमाम लोग को बाहर िनकालना चाहता
जो इस गंदगी को पहचानते ह और िजनका
दम इसक बदबू म घुटता ह। म क गा
नह...और िफर एक िदन यह दुिनया देखेगी
िक दुिनया से तमाम गंदगी िमट चुक ह...
साफ़ और आज़ाद हवाएँ आएँग... दुिनया
िबकल बदल जाएगी... सबको रोटी-
कपड़ा-मकान िमलेगा। हर इसान को इसाफ
िमलेगा।...हरामखोर तुम याद करोगे िक
तुहारा मु दाता तुहार बीच खड़ा था और
तुमने उससे पानी तक को नह पूछा।'' (पृ.
15)
माटर क लंबे संवाद क बरस चक
का यह लंबा संवाद जहाँ एक ओर जनता क
दो अवधारणाएँ पेश करक उसक ऐितहािसक
भूिमका सामने लाते ए बेहतर दुिनया का
सपना िदखाता ह वह वह िन य और
यथा थितवादी जनता क आलोचना करता
ह। मंच क अय पा अपमान क ?ाला म
जलते ए उसे पीटते ह। पुिलस क धमक देते
ह। ऐसे म गीता भैनजी उसे समझाते ए
उसका प लेती ह। इसी बीच माटर का ी
िवरोधी चेहरा भी सामने आता ह-'' माटर
हसराज: साफ पता ह लफगे लोग मुहे म
आने लगे ह, शरीफ़ और इज़तदार लोग को
गािलयाँ देते ह। और ये औरत...पता नह
इनको कब अकल आएगी।'' (पृ.17) तेज़ी से
घिटत घटनाम वाले इस नाटक म िकरदार
क संवाद पर बत म िकया गया ह। आम
जीवन म लोग क वैचारक प ही नह
पूवा ह को जानने का बेहतर मायम वह
बातचीत ह जो आम जीवन का िहसा हो।
उसीम लोग क सोच खुलकर सामने आ
जाती ह। माटर जो लोग को आदश और
उपदेश क पाठ पढ़ाता ह दरअसल भीतर से
चारिक खोखलापन िलए ए ह और
परमानंद-राधेबाबू उसक हाँ म हाँ िमलाने
वाले लोग ह। अचानक मंच का माहौल गीता
भैनजी और चक क िलए खाना लाने वाली
जौली क हतेप से बदलता ह। चक क
उसािहत मुा हाय और िवट क साथ उसक
संवाद म उभरती ह। चक का समूचा
य व अभी भी एक रहय बना रहता ह।
वह कौन ह " कहाँ से आया ह " या करता
ह "
नाटक क पहले घटनाधान अंक म एक
ही य ह पर इसम घिटत घटनाएँ और
संवाद का म बेहद चुत ह। पहले अंक क
अंत म एक और घटना चक क िवषय म
अब तक क नकारामक िवचार का अंत
करती ह। जैसे ही खुलासा होता ह िक चक
एम.ए. पास बेरोज़गार ह, गीता भैनजी क
खाना िखलाने पर उसका िवत होते ए
कहना िक उसका कोई नह ह। वह राजनीित
िवान म एम.ए. ह इस पर लोग नाक-भ
िसकोड़ते ह पर उसक िवता जनता क
ऐितहािसक कायवाही म बंधी-बंधायी
महाता क लीक छोड़कर एक नई राह
बनाने क बात से सामने आती ह। अचानक
यह अंक ाईमेस क ओर जाता ह जहाँ
चक को दूर भेजा जाता ह और उसका
भिवय तय करने क िलए बाक लोग कां स
करते ह। राधे बाबू नौजवान पीढ़ी को
िद िमत-िदशाहीन समझते ह। चक क
बहाने नौजवान पीढ़ी क िवषय म इस सोच से
वह अपना िनजी वाथ साधना चाहते ह।
चक को ढर पर लाकर वह अपनी बेिटय का
बोझ, एक बेटी का िववाह चक क साथ
करक हका करना चाहते ह। राधे बाबू और
माटर इसे मामले को िनजी नह मुहे और
भारतीय समाज क समया मानकर हल
िनकालते ह िक चक को ठीक से बसाया
जाए, रोज़गार का बंध िकया जाए और यिद
उसका आचरण शु रह तो उसका िववाह भी
करवाया जाएगा। यानी चक को संवाद क
घेर से बाहर रखकर सब चक क भिवय क
िनमाता बन जाते ह। पहला अंक चक जैसे
पढ़-िलखे और बेहतर का सपना देखने वाले
नौजवान को िदशाहीन मानने वाल क अपने
िनयम-क़ायद से अनुकिलत-िनयंित करने
क िनणय पर ख़म होता ह। पाठक को हरान
करता चक इस िनणय को जीवन क एक नए
मजेदार मोड़ क प म देखता ह।
नाटक क दूसर अंक क आरभ म ही
जौली-चक क संवाद से ही प हो जाता ह
राधे बाबू अपनी एक बेटी को चक क गले
मढ़कर अपना बोझ हका करना चाहते ह।
चक सचेत हो जाता ह और जौली से साफ
इकार कर देता ह। गीता भैनजी क न पूछने
पर िक वो शांता को चाहता ह चक तुरत
सामने से आते माटर को देखकर कहता ह
िक उसे माटर पसंद ह। चक का सस ऑफ
ूमर और बुि चातुय उसे पूर नाटक क क
म रखता ह। वह या बोलेगा, या ितिया
करगा, या िनणय लेगा-सबक िजासा क
सू इस िकरदार से जुड़ रहते ह और वह
कवल इसीिलए िक नाटककार ने चक क
िवषय म कोई ख़ास पीकरण देना उिचत
नह समझा। आरभ से चले उसक जीवन क
रहय को भी उजागर करने का उेय नह
रखा। इस अंक म चक क भाय िनमाता
उसक जाित आिद क पड़ताल करने लगते
ह। राधेबाबू ?द को गितशील बताते ए
दहजथा क िख़लाफ़ जाकर चक से अपनी
बेटी क िववाह का ताव रखते ह। इस अंक
म समाज क तथाकिथत रक को चक दो
ट?क जवाब देता ह-''मगर सुिनए, या ऐसा
नह हो सकता िक ब को आप सुखी ही
देख और उनक शादी न कर।''(पृ. 30)
माटर जैसे लोग चक को तुरत आड़ हाथ
लेकर समाज क तयशुदा खाँच म क़द करने
को तपर ह और चक उन खाँच को तोड़कर
एक लंबी छलाँग लगाने को तैयार ह।
इस अंक क मुय घटना ह युिनिसपैटी
म हड़ताल और मंिदर क आगे से िनकलता
मेहतर का जुलूस। इस जुलूस म हरया का
परमानंद पंिडत को गरयाना। परमानंद इस
पूरी घटना क धमसंगत याया करते ए

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 202569 68 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2025
अयायी थितय से गुज़रना पड़ता ह। दूसर
भारत क चुनावी यवथा जो सबको िनणय
का अिधकार देती ह उसका वतमान प
िकतना लचर ह िजसम आम जन हर बार छला
जाता ह। यह नाटक इसी छले जाने क िव
जनता क सचेत कायवाही ह।
सफाई चालू ह
दो अंक म िवभ मंचीय नाटक 'सफाई
चालू ह' रमेश उपायाय और आनंद काश
ारा संयु प से िलखा गया ह। यह नाटक
स 1974 म िलखा गया। उस समय जब
सामूिहक प से नाटक नह िलखे जाते थे
हालाँिक बाद म कई नुकड़ नाटक मंडिलय
क नाटक सामूिहक लेखन से िनकले। संयु
प से िलखा गया यह नाटक िकह कारण
से मंिचत नह हो पाया। इसिलए यह अपने
उस उकष पर नह प चा िजस पर 'पेपरवेट',
भारत भाय िवधाता' या रमेश जी क अय
नाटक ब?बी प च पाए।
'सफाई चालू ह' नाटक आज़ाद भारत क
अनेक िवूपता का िवरोध करते ए एक
जरी सफाई पर बल देता ह। सफाई का अथ
यहाँ बआयामी ह। नाटककार ने बत
सोच-समझकर थितय क संघात और
संवादधिमता क वैिश से आज़ाद भारत म
सफाई क ज़रत पर बल िदया ह। भारतीय
समाज क सामािजक-धािमक जड़ता,
जाितवाद, गांधीवाद क अवमूयन से
िद िमत समाज यवथा और अयाय का
िवरोध न करक उसे सह जाने क िवन
सहनशीलता को नाटक क भीतर नत
िकया गया ह।
रमेश उपायाय और आनंद काश क
इस सहयोगी नाटक म रमेश उपायाय क
अय नाटक क भाँित िचंतन और वैचारक
प क धारा बत सश ह पर वह उनक
अय नाटक क अपेा इस नाटक म गीत
नह ह। कथा का वाहक सूधार नह ह ब क
घिटत हो रही घटना क एक ंखला ह जो
पूर नाटक म चलती ह। दोन अंक म एक-
एक य क योजना ह। िविश? ह इस नाटक
का पा परचय जो कवल पा क िवषय म
सूचना ही नह देता, उस सूचना क साथ क
वाय पा का पूरा ख़ाका रचते ह। मसलन-
चक उफ चवत साद: उ 28 क
आसपास। अपना परचय ?द ही दे सकते ह।
या राधे बाबू: क। उ 45 क आसपास।
कम से कम चार लड़िकय क बाप तो हगे
ही। हमेशा हर बात को साध कर बोलते ह। या
िफर माटर हसराज: अयापक। उ
रटायरमट क आसपास। आज क सुधारवाद
क जीते-जागते नमूने। सुधारवादी कम, नमूने
यादा आिद। इस तरह नाटक क सात
अिभनेता का परचय देते ए उनक
चारिक िबय का संि वणन भी नाटक
क आरभ म ही पाठक को िमल जाता ह।
पहले अंक म ही क ीय पा चक उफ
चवत साद का अजीबोग़रीब िलया
पाठक को चिकत करता ह। मंच पर उतर
चक क पट क बेट म एक नीम क हर
प क बंधी डाल से मंच क अय पा
चिकत होते ह। कोई चक को पागल समझता
ह तो कोई उसक श? का िमलान िकसी
गुमशुदा से करते ए उसे घर लौट जाने क
सलाह देता ह। चक क इद-िगद दोन ही
अंक म चार लड़िकय क शादी का बोझ
िलए राधेबाबू ह, सुधारवादी-गांधीवादी माटर
हसराज ह,कतिनया पंिडत परमानंद ह, चक
क ित सहानुभूित रखने वाली गीता भैनजी
और टाइिपट जौली ह। हरया नाम का दिलत
पा दूसर अंक म आता ह।
अपनी उप थित से ही मंच पर हलचल
रच देने वाला चक सबक हरकत पर
चीखता ह। धीर-धीर सब उसक डाल का
अपनी तौर पर मुआयना करते ह। चकने,
परशान होने क साथ हायजनक थित भी
उभरती ह जब चक को कॉरपोरशन का
आदमी समझ िलया जाता ह जो झाड? क
अभाव म डाल से सफाई को अंजाम दे रहा ह।
चक सबक बात का जवाब देता ह-''
देिखए, बात ये ह िक अपने यहाँ गंदगी बत
बढ़ गई ह। उसक सफाई भी होनी चािहए।
लेिकन सवाल ह िक कर कौन? सफाई करने
वाल ने छ ी ले ली ह। आिख़र कोई न कोई
तो सफाई करने वाला होना ही चािहए।''
(सफाई चालू ह,पृ.14) इस तरह चक
भारतीय समाज यवथा क तमाम
िवूपता को तीकामक तरीक़ से सामने
लाता ह। इस पर रोधे बाबू, गीता भैनजी,
माटर हसराज, परमानंद सब उससे तीखे
सवाल करते ह। मंच पर तनाव उतर आता ह।
पा क लंबे संवाद एक-दूसर पर छटाकशी
क साथ देश क अतीत और वतमान पर
सवाल उठाते ह। माटर हसराज चक जैसे
नौजवान को आवारा, फालतू, उचका और
पागल मानकर ान देना आरभ करता ह। वह
भूख, ग़रीबी, बेकारी, बीमारी, ाचार,
अयाचार, अिशा, अान जैसी गंदगी को
देश से हटाने क बात करते ए बापू क माग
पर चलकर जनांदोलन क बात उठाता ह।
बत सचेत तरीक से नाटककार ने इस पा
क अंतिवरोध को उजागर िकया ह और
उसक छ? गांधीवादी िवचारधारा को भी
उभारा ह। थितय और संवाद से िसांत
और यवहार का ैत उजागर हो जाता ह।
नाटक क आरभ म ही चक नाम का पा
मंच क अय पा और दशक क िलए एक
रहय क श? म उभरता ह। धीर-धीर ये
चक मंच पर अनेक पा क बीच िघर जाता
ह। सब उस पर छटाकशी करने को मु ह।
दो ी िकरदार को अितर िकसी को
उससे सहानुभूित भी नह। चक और सफाई
क बहाने जनता क सवाल पर माटर
पूँजीवादी तक देता ह िक 'य को सुधारए
समाज अपने आप सुधर जाएगा। ह सफाई
करने चले ह। करगे सफाई।''(पृ.15) एक
तरह से माटर जनता क समूचे अ तव को
नकारता ह। उसक अनुसार जनता कभी
समाज नह बदल सकती यिक वह ?द
सामािजक बुराइय से दूिषत ह। इस तरह
इितहास क एक ग़लत याया देते ए
माटर जनता को हय से देखता ह। यह
उसका वैचारक अंतिवरोध खुलकर सामने
आ जाता ह। इस पा क गढ़न नाटक म
चक क वैचारक प से खुलकर टकराती
ह। चक, माटर क नज़र म आवारा-
उचका ह पर चक बदलाव क ित समिपत
जनता क ितिनिध क प म सामने आता ह।
जनता ारा सामािजक सफाई पर मुँह
िबचकाने वाले माटर क िलए चक का
संवाद नाटक म बत महवपूण ह- ''डाल
नह ह। यह एक आँधी ह। तूफ़ान ह। और ये
आँधी, ये तूफ़ान तुहारी उस तमाम गंदगी को
उड़ाने क िलए ह जो तुमने ?द पैदा कर रखी
ह। और म " म भी इसी गंदगी क पैदावार ।
मुझम और तुमम फ़क़ िसफ़ इतना ह िक तुम
िज़ंदगी भर गंदगी फलाते हो और आिख़र म
उसी म िमल जाते हो। लेिकन म इस गंदगी म
पैदा होकर भी इसम खप जाना नह चाहता।
इससे बाहर आना चाहता और अपने जैसे
उन तमाम लोग को बाहर िनकालना चाहता
जो इस गंदगी को पहचानते ह और िजनका
दम इसक बदबू म घुटता ह। म क गा
नह...और िफर एक िदन यह दुिनया देखेगी
िक दुिनया से तमाम गंदगी िमट चुक ह...
साफ़ और आज़ाद हवाएँ आएँग... दुिनया
िबकल बदल जाएगी... सबको रोटी-
कपड़ा-मकान िमलेगा। हर इसान को इसाफ
िमलेगा।...हरामखोर तुम याद करोगे िक
तुहारा मु दाता तुहार बीच खड़ा था और
तुमने उससे पानी तक को नह पूछा।'' (पृ.
15)
माटर क लंबे संवाद क बरस चक
का यह लंबा संवाद जहाँ एक ओर जनता क
दो अवधारणाएँ पेश करक उसक ऐितहािसक
भूिमका सामने लाते ए बेहतर दुिनया का
सपना िदखाता ह वह वह िन य और
यथा थितवादी जनता क आलोचना करता
ह। मंच क अय पा अपमान क ?ाला म
जलते ए उसे पीटते ह। पुिलस क धमक देते
ह। ऐसे म गीता भैनजी उसे समझाते ए
उसका प लेती ह। इसी बीच माटर का ी
िवरोधी चेहरा भी सामने आता ह-'' माटर
हसराज: साफ पता ह लफगे लोग मुहे म
आने लगे ह, शरीफ़ और इज़तदार लोग को
गािलयाँ देते ह। और ये औरत...पता नह
इनको कब अकल आएगी।'' (पृ.17) तेज़ी से
घिटत घटनाम वाले इस नाटक म िकरदार
क संवाद पर बत म िकया गया ह। आम
जीवन म लोग क वैचारक प ही नह
पूवा ह को जानने का बेहतर मायम वह
बातचीत ह जो आम जीवन का िहसा हो।
उसीम लोग क सोच खुलकर सामने आ
जाती ह। माटर जो लोग को आदश और
उपदेश क पाठ पढ़ाता ह दरअसल भीतर से
चारिक खोखलापन िलए ए ह और
परमानंद-राधेबाबू उसक हाँ म हाँ िमलाने
वाले लोग ह। अचानक मंच का माहौल गीता
भैनजी और चक क िलए खाना लाने वाली
जौली क हतेप से बदलता ह। चक क
उसािहत मुा हाय और िवट क साथ उसक
संवाद म उभरती ह। चक का समूचा
य व अभी भी एक रहय बना रहता ह।
वह कौन ह " कहाँ से आया ह " या करता
ह "
नाटक क पहले घटनाधान अंक म एक
ही य ह पर इसम घिटत घटनाएँ और
संवाद का म बेहद चुत ह। पहले अंक क
अंत म एक और घटना चक क िवषय म
अब तक क नकारामक िवचार का अंत
करती ह। जैसे ही खुलासा होता ह िक चक
एम.ए. पास बेरोज़गार ह, गीता भैनजी क
खाना िखलाने पर उसका िवत होते ए
कहना िक उसका कोई नह ह। वह राजनीित
िवान म एम.ए. ह इस पर लोग नाक-भ
िसकोड़ते ह पर उसक िवता जनता क
ऐितहािसक कायवाही म बंधी-बंधायी
महाता क लीक छोड़कर एक नई राह
बनाने क बात से सामने आती ह। अचानक
यह अंक ाईमेस क ओर जाता ह जहाँ
चक को दूर भेजा जाता ह और उसका
भिवय तय करने क िलए बाक लोग कां स
करते ह। राधे बाबू नौजवान पीढ़ी को
िद िमत-िदशाहीन समझते ह। चक क
बहाने नौजवान पीढ़ी क िवषय म इस सोच से
वह अपना िनजी वाथ साधना चाहते ह।
चक को ढर पर लाकर वह अपनी बेिटय का
बोझ, एक बेटी का िववाह चक क साथ
करक हका करना चाहते ह। राधे बाबू और
माटर इसे मामले को िनजी नह मुहे और
भारतीय समाज क समया मानकर हल
िनकालते ह िक चक को ठीक से बसाया
जाए, रोज़गार का बंध िकया जाए और यिद
उसका आचरण शु रह तो उसका िववाह भी
करवाया जाएगा। यानी चक को संवाद क
घेर से बाहर रखकर सब चक क भिवय क
िनमाता बन जाते ह। पहला अंक चक जैसे
पढ़-िलखे और बेहतर का सपना देखने वाले
नौजवान को िदशाहीन मानने वाल क अपने
िनयम-क़ायद से अनुकिलत-िनयंित करने
क िनणय पर ख़म होता ह। पाठक को हरान
करता चक इस िनणय को जीवन क एक नए
मजेदार मोड़ क प म देखता ह।
नाटक क दूसर अंक क आरभ म ही
जौली-चक क संवाद से ही प हो जाता ह
राधे बाबू अपनी एक बेटी को चक क गले
मढ़कर अपना बोझ हका करना चाहते ह।
चक सचेत हो जाता ह और जौली से साफ
इकार कर देता ह। गीता भैनजी क न पूछने
पर िक वो शांता को चाहता ह चक तुरत
सामने से आते माटर को देखकर कहता ह
िक उसे माटर पसंद ह। चक का सस ऑफ
ूमर और बुि चातुय उसे पूर नाटक क क
म रखता ह। वह या बोलेगा, या ितिया
करगा, या िनणय लेगा-सबक िजासा क
सू इस िकरदार से जुड़ रहते ह और वह
कवल इसीिलए िक नाटककार ने चक क
िवषय म कोई ख़ास पीकरण देना उिचत
नह समझा। आरभ से चले उसक जीवन क
रहय को भी उजागर करने का उेय नह
रखा। इस अंक म चक क भाय िनमाता
उसक जाित आिद क पड़ताल करने लगते
ह। राधेबाबू ?द को गितशील बताते ए
दहजथा क िख़लाफ़ जाकर चक से अपनी
बेटी क िववाह का ताव रखते ह। इस अंक
म समाज क तथाकिथत रक को चक दो
ट?क जवाब देता ह-''मगर सुिनए, या ऐसा
नह हो सकता िक ब को आप सुखी ही
देख और उनक शादी न कर।''(पृ. 30)
माटर जैसे लोग चक को तुरत आड़ हाथ
लेकर समाज क तयशुदा खाँच म क़द करने
को तपर ह और चक उन खाँच को तोड़कर
एक लंबी छलाँग लगाने को तैयार ह।
इस अंक क मुय घटना ह युिनिसपैटी
म हड़ताल और मंिदर क आगे से िनकलता
मेहतर का जुलूस। इस जुलूस म हरया का
परमानंद पंिडत को गरयाना। परमानंद इस
पूरी घटना क धमसंगत याया करते ए

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गऊ और ा?ण क अपमान को सबसे बड़ा
अपमान घोिषत करता ह। दिलत क?
सांगठिनक चेतना उसक िदमाग़ म ख़लल
डालती ह। उस पर हरया क? िनभक
अिभय उसे परपरा क िव आचरण
लगती ह। इसीिलए वह चाहता ह िक यिद यह
इह नह दबाया तो कल दिलत िसर पर सवार
हो जाएँगे। नाटक म ट पैदा िकया गया
ह। एक ओर परमानंद का डाल मँगाकर ?द
सफाई का िजमा लेना तो दूसरी ओर चक
क िववाह का मु?ा-दोनI का उलझा प
सामने आता ह। चक शादी क प? म िदए
गए सभी तक, परपरागत िवधान, परपरा
को ढोते लोग को कतक और अिववेक?
बताते ए शादी से साफ इकार करता ह। यह
इकार िनजी इकार नह ह। नाटक क पहले
अंक म िजन लोग ने चक क शादी क
िनहायती िनजी मसले को भारतीय समाज का
मसला बना िदया था उह चक जवाब देते
?ए िनजी मसले को यापक बनाते ?ए
नौजवान पीढ़ी पर जबरन थोपे गए आदेश से
मु क? बात कहता ह। धीर-धीर घहराते जा
रह तनाव म चक और हरया को तक क?
एक ही छड़ी से पीटा जाने लगता ह। चक क
इकार पर परमानंद उसे समाज का दुमन
मानता ह जो समाज क? दी ?ई रोिटय क
एवज म कत होने क? अपे?ा उसक?
बेइज़ती करते ह तो दूसरी ओर हरया जैसे
नौजवान िजह दबकर सब जुम सहने थे वे
न िसफ सचेत हो रह ह ब क ख़ामोशी
तोड़कर संगिठत हो रह ह।
मंच पर तनाव लगातार गहराता जाता ह
और जौली यह सय उािटत करती ह िक
पंिडत परमानंद ने हरया को पीटा और उनक
जुलूस पर पथरबाज़ी क?। चक उसािहत
होकर गांधीवादी माटर जी को उकसाता ह
िक अिहसक देश म ऐसी िहसा उिचत नह।
यंय क? धार से खर उसका संवाद अयाय
को परभािषत करता ह- ''ये अयाचार नह
ह। ये तो पंिडत परमानंद जी ह। सनातन
िहदुव क तीक। पंिडतजी अयाचारी नह
ह। पंिडतजी तो धम ह, क?णा ह। साा
यार। वो पथर भी इहने यार से ही मारा
होगा। और िसर फटने क? बात। वो एकदम
ग़लत ह। भला ऐसे धमा मा क हाथ से फका
गया पथर। उससे िकसी का िसर फट सकता
ह "''(पृ. 41) ल?लुहान हरया क मंच पर
आने क साथ थितयाँ और तनाव त होती
ह। हरया उस सच को कट करता ह जो
आज़ाद देश म समानता को धता बताता ए
जाितवादी म क? नई िमसाल पेश करता
ह- ''पहले तो हमार जुलूस पर पथर फक,
िफर हमारी बती म लािठयाँ ले क प च गए।
औरत और ब तक को बाहर खच-
खचकर मारा। और अब आग लगा दी। जाक
देखो हमारी झु गयाँ कसे जल रही ह।''
(पृ.44) ा?णवादी मानिसकता से त
माटर क खोखले गांधीवाद क? यायाएँ
लचर जान पड़ती ह। जौली, हरया क? मरहम
प?ी करती ह पर माटर अपनी शा दक
िहसा से उन ज़म को करदता ह। चक,
माटर और हर उस य से िजरह करता ह
जो अयाय को धम क? तुला पर याय िस
करता ह। वह यु पूण ढग से भिवय क?
बात उठाता ह। इस सबक बीच चक क
िववाह का संग िफर िछड़ जाता ह। अंक
अपने ाईमेस पर प चता ह। चक क
िववाह से साफ इकार और हरया क साथ
जुलूस म शािमल होने क? बात पर िववाह
संथा क? रा क िलए माटर िचढ़कर उसे
मारने दौड़ता ह। माटर य और दिलत
को ताड़ना का अिधकारी मानता ह। चक
ितकार करते ए डाल को उठाकर घुमाता ह
और अंत म जौली क साथ हरया जैसे सताए
गए लोग क जुलूस म शािमल होने क िलए
िनकल जाता ह।
घटना क वरत आवेग, चर क
रहयपन, वाधीनता क बाद गांधीवादी
िवचारधारा क आमकित दोहन-अवमूयन
और िलंग-जाित आधारत अयाय क साथ नई
पीढ़ी को िदशाहीन मानने वाल क िलए चक
और डाल तीकामक थित म कट होते
ह। चक उस िवचार का नाम ह जो
सामािजक परपरा क नाम पर हर अयाय
का ितकार करता ह और डाल उसक
ितकार क? िदशा म उस सामािजक सफाई
का तीक ह जो सफाई ऐितहािसक प से
उपेित और लंिबत ह। रमेश उपायाय और
आनंद काश का यह संयु नाटक उस
सफाई को सामने लाता ह जो सफाई क?
बुिनयादी ज़रत ह िजसक बाद एक बेहतर
दुिनया बन सकने का सपना साकार होगा। इस
सफाई का दाियव जनता क उस सांगठिनक
चेतना पर होगा जो जाितगत और लिगक
िवभेद क पर संघषरत भूिमका िनभाएगी। इस
नाटक म रमेश उपायाय क? गीत क?
िचरपरिचत शैली का अभाव ह। आनंद
काश ने परकथा क जुलाई-अगत अंक क
रमेश उपायाय पर कित मृित लेख म साफ
िलखा ह िक ये नाटक हमारा संयु यास
रहा पर रमेश उपायाय क अनथक म और
अथाह उसाह से ही यह नाटक पूण ?आ।
रमेश उपायाय क तीन मंच नाटक
आजादी और जनतं पर सवाल खड़ करते
?ए जनता क? सचेत-सकमक भूिमका को
क म रखते ह। ये नाटक सा प? क?
अयायी कचाल को तो सामने लाते ही ह
उपीिड़त य क अंतिवरोध को भी
उजागर करते ?ए प करते ह िक मशील
जनता को ब?त िदन तक म म नह रखा जा
सकता। युवा संगिठत चेतना क चेहर-बू-
जनादन ह, गोपू-कशो-जुमन-बाली आिद
ह या िफर चक, जौली, हरया जैसे वर ह,
सभी परवतनकामी चेतना से लैस ह। ये जनता
क? मु क वर ह। जन क मु दाता ह।
नाटककार का अट?ट िव?ास ह िक इह क
सामूिहक यास क? वैचारक आग एक िदन
सामािजक-राजनीितक परवतन क? मशाल
बनेगी।
000
संदभ- 1पेपरवेट: रमेश उपायाय, पराग
काशन,िदी, थम संकरण 1981
2भारत भाय िवधाता: रमेश उपायाय,िलिप
काशन, िद?ी, 1990
3 सफाई चालू ह: रमेश उपायाय-आंनद
काश, शहीद काशन ेस, नरना, िद?ी,
1974
4 परकथा: संपा. शंकर, जुलाई-अगत
2021
सुधा ओम ढगरा का सािहय -
महव एवं मूयांकन, शोध
ो. नवीन च लोहानी, डॉ. योगे िसंह
मूय- 500 पये, वष- 2024
काली धार
उपयास
लेखक - महश कटार
मूय- 450 पये, वष- 2025
ेम क देश म
कहानी संह
लेखक - डॉ. परिध शमा
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कही-अनकही
संमरण
लेखक - डॉ. अनया िम
मूय- 200 पये, वष- 2025
कशव िम क ंथ म ओरछा का
इितहास (आलोचना)
लेखक - डॉ. रामवप ढगुला
मूय- 800 पये, वष- 2025
हाजरा का बुक़ा ढीला ह
कहानी संह
लेखक - डॉ. तबसुम जहां
मूय- 175 पये, वष- 2025
दस नुमाइदा कहािनयाँ - ेमचंद
कहानी संकलन
चयन एवं संकलन - शहरयार
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का क काठी धरा
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लेखक - नंद भाराज
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गुलाबी इछाएँ
कहानी संह
लेखक- मनीष वै
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गोदान
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लेखक - ेमचंद
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महाभारत अनवरत
किवता संह
लेखक - रास िबहारी गौड़
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पथर पर बुवाई
लघुकथा संह
लेखक - िवजय िसंह चौहान
मूय- 175 पये, वष- 2025
िशवना काशन ारा कािशत नए सेट म शािमल पुतक
िशवना काशन, शॉप नं. 2-8, साट कॉ लैस बसमट, बस टड क सामने, सीहोर, मय देश 466001
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çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 202571 70 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जनवरी-माच 2025
गऊ और ा?ण क अपमान को सबसे बड़ा
अपमान घोिषत करता ह। दिलत क?
सांगठिनक चेतना उसक िदमाग़ म ख़लल
डालती ह। उस पर हरया क? िनभक
अिभय उसे परपरा क िव आचरण
लगती ह। इसीिलए वह चाहता ह िक यिद यह
इह नह दबाया तो कल दिलत िसर पर सवार
हो जाएँगे। नाटक म ट पैदा िकया गया
ह। एक ओर परमानंद का डाल मँगाकर ?द
सफाई का िजमा लेना तो दूसरी ओर चक
क िववाह का मु?ा-दोनI का उलझा प
सामने आता ह। चक शादी क प? म िदए
गए सभी तक, परपरागत िवधान, परपरा
को ढोते लोग को कतक और अिववेक?
बताते ए शादी से साफ इकार करता ह। यह
इकार िनजी इकार नह ह। नाटक क पहले
अंक म िजन लोग ने चक क शादी क
िनहायती िनजी मसले को भारतीय समाज का
मसला बना िदया था उह चक जवाब देते
?ए िनजी मसले को यापक बनाते ?ए
नौजवान पीढ़ी पर जबरन थोपे गए आदेश से
मु क? बात कहता ह। धीर-धीर घहराते जा
रह तनाव म चक और हरया को तक क?
एक ही छड़ी से पीटा जाने लगता ह। चक क
इकार पर परमानंद उसे समाज का दुमन
मानता ह जो समाज क? दी ?ई रोिटय क
एवज म कत होने क? अपे?ा उसक?
बेइज़ती करते ह तो दूसरी ओर हरया जैसे
नौजवान िजह दबकर सब जुम सहने थे वे
न िसफ सचेत हो रह ह ब क ख़ामोशी
तोड़कर संगिठत हो रह ह।
मंच पर तनाव लगातार गहराता जाता ह
और जौली यह सय उािटत करती ह िक
पंिडत परमानंद ने हरया को पीटा और उनक
जुलूस पर पथरबाज़ी क?। चक उसािहत
होकर गांधीवादी माटर जी को उकसाता ह
िक अिहसक देश म ऐसी िहसा उिचत नह।
यंय क? धार से खर उसका संवाद अयाय
को परभािषत करता ह- ''ये अयाचार नह
ह। ये तो पंिडत परमानंद जी ह। सनातन
िहदुव क तीक। पंिडतजी अयाचारी नह
ह। पंिडतजी तो धम ह, क?णा ह। साा
यार। वो पथर भी इहने यार से ही मारा
होगा। और िसर फटने क? बात। वो एकदम
ग़लत ह। भला ऐसे धमा मा क हाथ से फका
गया पथर। उससे िकसी का िसर फट सकता
ह "''(पृ. 41) ल?लुहान हरया क मंच पर
आने क साथ थितयाँ और तनाव त होती
ह। हरया उस सच को कट करता ह जो
आज़ाद देश म समानता को धता बताता ए
जाितवादी म क? नई िमसाल पेश करता
ह- ''पहले तो हमार जुलूस पर पथर फक,
िफर हमारी बती म लािठयाँ ले क प च गए।
औरत और ब तक को बाहर खच-
खचकर मारा। और अब आग लगा दी। जाक
देखो हमारी झु गयाँ कसे जल रही ह।''
(पृ.44) ा?णवादी मानिसकता से त
माटर क खोखले गांधीवाद क? यायाएँ
लचर जान पड़ती ह। जौली, हरया क? मरहम
प?ी करती ह पर माटर अपनी शा दक
िहसा से उन ज़म को करदता ह। चक,
माटर और हर उस य से िजरह करता ह
जो अयाय को धम क? तुला पर याय िस
करता ह। वह यु पूण ढग से भिवय क?
बात उठाता ह। इस सबक बीच चक क
िववाह का संग िफर िछड़ जाता ह। अंक
अपने ाईमेस पर प चता ह। चक क
िववाह से साफ इकार और हरया क साथ
जुलूस म शािमल होने क? बात पर िववाह
संथा क? रा क िलए माटर िचढ़कर उसे
मारने दौड़ता ह। माटर य और दिलत
को ताड़ना का अिधकारी मानता ह। चक
ितकार करते ए डाल को उठाकर घुमाता ह
और अंत म जौली क साथ हरया जैसे सताए
गए लोग क जुलूस म शािमल होने क िलए
िनकल जाता ह।
घटना क वरत आवेग, चर क
रहयपन, वाधीनता क बाद गांधीवादी
िवचारधारा क आमकित दोहन-अवमूयन
और िलंग-जाित आधारत अयाय क साथ नई
पीढ़ी को िदशाहीन मानने वाल क िलए चक
और डाल तीकामक थित म कट होते
ह। चक उस िवचार का नाम ह जो
सामािजक परपरा क नाम पर हर अयाय
का ितकार करता ह और डाल उसक
ितकार क? िदशा म उस सामािजक सफाई
का तीक ह जो सफाई ऐितहािसक प से
उपेित और लंिबत ह। रमेश उपायाय और
आनंद काश का यह संयु नाटक उस
सफाई को सामने लाता ह जो सफाई क?
बुिनयादी ज़रत ह िजसक बाद एक बेहतर
दुिनया बन सकने का सपना साकार होगा। इस
सफाई का दाियव जनता क उस सांगठिनक
चेतना पर होगा जो जाितगत और लिगक
िवभेद क पर संघषरत भूिमका िनभाएगी। इस
नाटक म रमेश उपायाय क? गीत क?
िचरपरिचत शैली का अभाव ह। आनंद
काश ने परकथा क जुलाई-अगत अंक क
रमेश उपायाय पर कित मृित लेख म साफ
िलखा ह िक ये नाटक हमारा संयु यास
रहा पर रमेश उपायाय क अनथक म और
अथाह उसाह से ही यह नाटक पूण ?आ।
रमेश उपायाय क तीन मंच नाटक
आजादी और जनतं पर सवाल खड़ करते
?ए जनता क? सचेत-सकमक भूिमका को
क म रखते ह। ये नाटक सा प? क?
अयायी कचाल को तो सामने लाते ही ह
उपीिड़त य क अंतिवरोध को भी
उजागर करते ?ए प करते ह िक मशील
जनता को ब?त िदन तक म म नह रखा जा
सकता। युवा संगिठत चेतना क चेहर-बू-
जनादन ह, गोपू-कशो-जुमन-बाली आिद
ह या िफर चक, जौली, हरया जैसे वर ह,
सभी परवतनकामी चेतना से लैस ह। ये जनता
क? मु क वर ह। जन क मु दाता ह।
नाटककार का अट?ट िव?ास ह िक इह क
सामूिहक यास क? वैचारक आग एक िदन
सामािजक-राजनीितक परवतन क? मशाल
बनेगी।
000
संदभ- 1पेपरवेट: रमेश उपायाय, पराग
काशन,िदी, थम संकरण 1981
2भारत भाय िवधाता: रमेश उपायाय,िलिप
काशन, िद?ी, 1990
3 सफाई चालू ह: रमेश उपायाय-आंनद
काश, शहीद काशन ेस, नरना, िद?ी,
1974
4 परकथा: संपा. शंकर, जुलाई-अगत
2021
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