महिला सशक्तिकरण महिला सशक्तिकरण के अंतर्गत महिलाओं से जुड़े सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक और कानूनी मुद्दों पर रूप से संवेदनशीलता और सरोकार व्यक्त किया जाता है।
eZnksa dks iq:’k , ao ukfj;ksa dks izdzfr ekuk tkrk gS महिला और पुरूष की शारीरिक संरचनाएं जिस तरह की हैं उनमें महिला हमेशा नाजुक और कमजोर रही है / kZe “ kkL = fdlh “ kq } vkRek dks “ osr ekurs gSa vkSj v”kz } vkRek dks “; ke महिला सशक्तिकरण
महिला सशक्तिकरण दुर्गा, शक्ति का रूप हैं। इतनी शक्तिमान कि भगवान राम ने भी लंका पर आक्रमण के समय, दुर्गा की आराधना की। दुर्गा, शक्तिमयी हैं लेकिन आज की महिला क्या शक्तिमयी है? क्या उसका सशक्तिकरण हो चुका है? क्या वह आज दुर्गा बन चुकी है? शायद नहीं, पर उसके पास कुछ अधिकार तो हैं यह अधिकार, यह शक्तियां उसे किसी ने दिये नहीं हैं। यह उसने खुद लड़ कर प्राप्त किये हैं ।
महिला सशक्तिकरण यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार ......... भारत में दुनिया के ४० परसेंट बाल विवाह होते है । ४९ परसेंट लड़कियों का विवाह १८ वर्ष से कम आयु में ही हो जाता है । लिंगभेद और अशिक्षा का ये सबसे बड़ा कारण है । राजस्थान ,बिहार ,मध्य प्रदेश ,उत्तर प्रदेश और प बंगाल में सबसे ख़राब स्थिति है । यूनिसेफ के अनुसार राजस्थान में ८२ परसेंट विवाह १८ साल से पहले ही हो जाते है । १९७८ में संसद द्बारा बाल विवाह निवारण कानून पारित किया गया । इसमे विवाह की आयु लड़कियों के लिए कम से कम १८ साल और लड़कों के लिए २१ साल निर्धारित किया गया । भारत सरकार ने नेशनल प्लान फॉर चिल्ड्रेन २००५ में २०१० तक बाल विवाह को पुरी तरह ख़त्म करने का लक्ष्य रखा है ।
महिला सशक्तिकरण निःसंदेह आज की नारी की भूमिका में तीव्रता से परिवर्तन हुआ है। नई सदी की नारी के पास कामयाबी के उच्चतम शिखर को छूने की अपार क्षमता है । उसके पास अनगिनत अवसर भी हैं। जिंदगी जीने का जज्बा उसमें पैदा हो चुका है। दृढ़ इच्छाशक्ति एवं शिक्षा ने नारी मन को उच्च आकांक्षाएँ, सपनों के सप्तरंग एवं अंतर्मन की परतों को खोलने की नई राह दी है। पहले वह घर की रानी थी, फिर उत्तम कार्यों में संलग्न होकर समाज कल्याण में प्रवृत्त हुई और आज वह राजनीतिज्ञों एवं प्रशासकों की सामाजिक भूमिका में उतरी है। तथापि हम इस तथ्य से भली-भाँति अवगत हैं कि नारी की पारंपरिक भूमिका का अतिक्रमण होना अभी शेष है और कि उसके विरुद्ध पूर्वाग्रह आज भी सदा की भाँति प्रबल हैं।
अनुच्छेद 14,15 और 16 में देश के प्रत्येक नागरिक को समानता का अधिकार दिया गया है। समानता का मतलब, इसमें किसी प्रकार का लिंग भेद नहीं है । समानता , स्वतन्त्रता और न्याय का अधिकार महिला-पुरुष दोनों को समान रूप से दिया गया है। शारीरिक और मानसिक तौर पर नर-नारी में किसी प्रकार का भेदभाव असंवैधानिक माना गया है । अनुच्छेद-15 में यह प्रावधान किया गया है कि स्वतंत्रता -समानता और न्याय के साथ -साथ के महिलाओं /लड़कियों की सुरक्षा और संरक्षण का काम भी सरकार का कर्तव्य है। जैसे बिहार में लड़कियों के लिए साइकिल और पोषक की योजना , मध्यप्रदेश में लड़कियों के लिए ‘ लाड़ली लक्ष्मी’ योजना , दिल्ली में मेट्रो में महिलाओं के लिए रिजर्व कोच की व्यवस्था आदि । समानता , स्वतन्त्रता और न्याय का अधिकार
1917: एनी बेसेंट भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली अध्यक्ष महिला बनीं. 1925: सरोजिनी नायडू भारतीय मूल की पहली महिला थीं जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष बनीं. 1951: डेक्कन एयरवेज की प्रेम माथुर प्रथम भारतीय महिला व्यावसायिक पायलट बनीं. 1966: इंदिरा गाँधी भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं. 1972: किरण बेदी भारतीय पुलिस सेवा (इंडियन पुलिस सर्विस) में भर्ती होने वाली पहली महिला थीं. [ 1997: कल्पना चावला , भारत में जन्मी ऐसी प्रथम महिला थीं जो अंतरिक्ष में गयीं 2000: कर्णम मल्लेश्वरी ओलिंपिक में पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनीं 2007: प्रतिभा पाटिल भारत की प्रथम भारतीय महिला राष्ट्रपति बनीं. महिलाओं द्वारा हासिल उपलब्धिय i
महिला सशक्तिकरण सामाजिक तौर पर महिलाओं को त्याग, सहनशीलता व शर्मीलेपन का ताज पहनाया गया है, जिसके भार से दबी महिला कई बार जानकारी होते हुए भी इन कानूनों का उपयोग नहीं कर पातीं तो बहुत केसों में महिलाओं को पता ही नहीं होता कि उनके साथ हो रही घटनाएं हिंसा हैं और इससे बचाव के लिए कोई कानून भी है। आमतौर पर शारीरिक प्रताड़ना यानी मारपीट, जान से मारना आदि को ही हिंसा माना जाता है और इसके लिए रिपोर्ट भी दर्ज कराई जाती है। इसके लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 498 के तहत ससुराल पक्ष के लोगों द्वारा की गई क्रूरता, जिसके अंर्तगत मारपीट से लेकर कैद में रखना, खाना न देना व दहेज के लिए प्रताड़ित करना आदि आता है, के तहत अपराधियों को 3 वर्ष तक की सजा दी जा सकती है, पर शारीरिक प्रताड़ना की तुलना में महिलाओं के साथ मानसिक प्रताड़ना के केस ज्यादा होते हैं।
महिला के खिलाफ हिंसा एक आंकड़े के मुताबिक भारत में हर तीन मिनट पर महिला के खिलाफ हिंसा से संबंधित एक मामला दर्ज होता है. हर दिन दहेज से संबंधित 50 मामले सामने आते हैं तथा हर 29 वें मिनट पर एक महिला के साथ बलात्कार होता है. वैश्विक स्तर पर हर 10 महिलाओं में एक महिला अपने जीवन में कभी न कभी शारीरिक या यौन हिंसा का शिकार होती है. महिला जहां घर में बालिका भ्रूण हत्या से लेकर ऑनर किलिंग, दहेज हिंसा, पति और परिवार के अन्य सदस्यों के बुरे बर्ताव तथा अन्य घरेलू हिंसा का शिकार होती है. वहीं घर की दहलीज के बाहर भी उन्हें युवक द्वारा उनपर अम्ल फेंके जाने, साइबर अपराध, एमएमएस, दफ्तर में छेडछाड़ जैसी कई तरह की हिंसा से दो चार होना पड़ता है .
कन्या भ्रूण हत्या लडक़ा-लडक़ी में भेदभाव हमारे जीवनमूल्य में आई खामिया को दर्शाता है। जनगणना-2001 के अनुसार एक हजार बालकाे में बालिकाओं की संख्या पंजाब में 798, हरियाणा में 819 और गुजरात में 883 है, जो एक चिंता का विषय है। भारत में पिछले चार दशकों से सात साल से कम आयु के बच्चों के लिंग अनुपात में लगातार गिरावट आ रही है। वर्ष 1981 में एक हजार बालकों पर ९६२ बालिकाएँ थी। वर्ष २००१ में यह अनुपात घटकर ९२७ हो गया। यह इस बात का संकेत है कि हमारी आर्थिक समृध्दि और शिक्षा के बढते स्तर का इस समस्या पर कोई प्रभाव नहीं पड रहा है। भारत के सबसे समृध्द राज्यों पंजाब , हरियाणा , दिल्ली और गुजरात में लिंगानुपात सबसे कम है। २००१ की जनगणना के अनुसार एक हजार बालकों पर बालिकाओं की संख्या पंजाब में 798, हरियाणा में 819 और गुजरात में 883 है। 1000 / 972 (प्रति एक हजार (१०००) पुरुषों पर स्त्रियों की संख्या)- जनगणना, १९०१ 1000 / 933 (प्रति एक हजार (१०००) पुरुषों पर स्त्रियों की संख्या)- जनगणना, २००१
जीने दो मुझे, मैं भी जिंदा हूँ क्या दोष मेरा ? हूँ मैं अंश तेरा ऐसे समाज पर, मैं बहुत शर्मिंदा हूँ !! कहलाती पराई सदा ही रही जन्म मिला तो, मृत्यु सी पीर सही हैवानो मुझ पर दया करो ना कुक्ष में कुचलो हया करो !! जीने दो मुझे
बालविवाह बालविवाह एक अपराध है, इसकी रोकथाम के लिए समाज के प्रत्येक वर्ग को आगे आना चाहिए । तमाम प्रयासों के बाबजूद हमारे देश में बाल विवाह जैसी कुप्रथा का अंत नही हो पा रहा है । बाल विवाह का सबसे बड़ा कारण लिंगभेद और अशिक्षा है साथ ही लड़कियों को कम रुतबा दिया जाना एवं उन्हें आर्थिक बोझ समझना । क्या इसके पीछे आज भी अज्ञानता ही जिमेदार है या फिर धार्मिक, सामाजिक मान्यताएँ और रीति-रिवाज ही इसका मुख्य कारण है, कारण चाहे कोई भी हो इसका खामियाजा तो बच्चों को ही भुगतना पड़ता है ! राजस्थान , बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और प. बंगाल में सबसे ख़राब स्थिति है । अभी हाल ही में आई यूनिसेफ की एक रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया है । रिपोर्ट के अनुसार देश में 47 फीसदी बालिकाओं की शादी 18 वर्ष से कम उम्र में कर दी जाती है । रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि 22 फीसदी बालिकाएं 18 वर्ष से पहले ही माँ बन जाती हैं ।
प्राय : देखा जा रहा है कि घरेलू हिंसा के मामले दिनों-दिन बढ्ते जा रहे हैं। परिवार तथा समाज के संबंधों में व्याप्त ईर्ष्या, द्वेष, अहंकार, अपमान तथा विद्रोह घरेलू हिंसा के मुख्य कारण हैं । घरेलू हिंसा की परिभाषा पुलिस - महिला, वृद्ध अथवा बच्चों के साथ होने वाली किसी भी तरह की हिंसा अपराध की श्रेणी में आती है। महिलाओं के प्रति घलेलू हिंसा के अधिकांश मामलों में दहेज प्रताड़ना तथा अकारण मारपीट प्रमुख हैं। राज्य महिला आयोग - कोई भी महिला यदि परिवार के पुरूष द्वारा की गई मारपीट अथवा अन्य प्रताड्ना से त्रस्त है तो वह घरेलू हिंसा की शिकार कहलाएगी । घरेलू हिंसा / ऑनर किलिंग
शिक्षा के महत्व शिक्षा एक ऐसी चीज है जो हर इंसान के लिए इस तरह महत्वपूर्ण है जिस तरह ऑक्सीजन जीवन के लिए जरूरी है. शिक्षा के बिना मनुष्य बिल्कुल जानवर की तरह है यही शिक्षा है जो इंसान को बुद्धि और चेतना के धन से मालामाल करती है और जीवन की हकीक़तों से अवगत कराती है कई लोग अपने जीवन को ज्ञान की प्राप्ति के लिए निछावर कर देते हैं और यही वजह है की सभी धर्मों में ज्ञान प्राप्त करने पर काफी ज़ोर दिया गया है.
शिक्षा के महत्व गांधीजी ने महिलाओं की शिक्षा को पर्याप्त महत्त्व दिया, किन्तु वे जानते थे कि अकेले शिक्षा से ही राष्ट्र निर्धारित लक्ष्य प्राप्त नहीं किये जा सकते। वे सिर्फ महिलाओं की ही नहीं, पुरुषों की भी मुक्ति के लिए समुचित कार्यवाही के पक्षधर थे। उन्होंने लिखा था ‘जरूरी यह है कि शिक्षा प्रणाली को दुरुस्त किया जाये और उसे व्यापक जनसमुदाय को ध्यान में रखकर तय किया जाये। उनके अनुसार शिक्षा प्रणाली में बच्चों के साथ प्रौढ़ शिक्षा पर ही बल नहीं दिया जा सके।“