भारतीय विदेश नीति के उद्देश्य एवं सिद्धांत
Indian Foreign Policy
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Added: Dec 12, 2021
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Slide Content
भारतीय विदेश नीति केउद्देश्य एवं सिद्धांत
द्वारा- डॉक्टर ममता उपाध्याय
एसोसिएट प्रोफेसर, राजनीति विज्ञान
कुमारी मायावती राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय
बादलपुर, गौतम बुद्ध नगर, उत्तर प्रदेश
उद्देश्य-
●भारतीय विदेश नीति के निर्माण की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का ज्ञान
●संविधान में वर्णित विदेश नीति संबंधी आदर्शों का ज्ञान
●भारतीय विदेश नीति के उद्देश्यों का ज्ञान
●भारतीय विदेश नीति के प्रमुख सिद्धांतों का ज्ञान
●समसामयिकअंतरराष्ट्रीयराजनीतिकेसंदर्भमेंभारतीयविदेशनीतिकेबदलते
आयामों का ज्ञान
किसीभीअन्यदेशकेनीतिनिर्धारकोंकेसमानभारतीयविदेशनीतिकेनिर्धारकोंनेभी
कुछउद्देश्योंकोसम्मुखरखकरनीतिकानिर्धारणकिया।भारतीयविदेशनीतिके
आदर्शोंकाउल्लेखसंविधानकेचौथेभागमेंवर्णितनीतिनिर्देशकतत्वोंकेअंतर्गतभी
कियागयाहै।कोईभीसरकारइनआदर्शोंकोनजरअंदाजकरविदेशनीतिकानिर्धारण
नहींकरसकती।वास्तवमेंभारतीयविदेशनीतिकेउद्देश्यनितांतमौलिकहैंऔरउन्हें
विभिन्नराजनीतिकदलोंतथाजनसाधारणकासमर्थनप्राप्तहैतथाउन्हेंराष्ट्रीय
नीतिकाआधारमानाजासकताहै।संक्षेपमें,भारतीयविदेशनीतिकेउद्देश्योंको
निम्नांकित शीर्षकों के अंतर्गत वर्णित किया जा सकता है -
1.राष्ट्रीय हित-
सभीदेशोंकीविदेशनीतिकाप्राथमिकउद्देश्यअपनेराष्ट्रीयहितोंकीपूर्तिकरनाहोता
है।भारतीयविदेशनीतिभीइसकाअपवादनहींहै।राष्ट्रकीअवधारणाअत्यंतव्यापक
है। भारत के राष्ट्रीय हितों में सम्मिलित है-
●सीमाओं की सुरक्षा एवं प्रादेशिक अखंडता की रक्षा
●सीमा पार आतंकवाद का मुकाबला
●ऊर्जा सुरक्षा
●खाद्य सुरक्षा
●साइबर सुरक्षा
●वैश्विक स्तर की आधारभूत संरचना का निर्माण
●समानतापरआधारितएवंभेदभावकाविरोधकरनेवालेवैश्विकव्यापारका
विकास
●सतत एवं समावेशी विकास
●पर्यावरण संरक्षण हेतु समानता पर आधारित वैश्विक दायित्व का निर्धारण
●समसामयिकअंतरराष्ट्रीयवास्तविकतापरआधारितवैश्विकसरकारएवं
संस्थाओं में सुधार के प्रयास
●निशस्त्रीकरण
●क्षेत्रीय स्थायित्व
●अंतर्राष्ट्रीय शांति
वास्तवमेंभारतकोविकासकेपहिएकोआगेबढ़ानेकेलिएविदेशीनिवेशकी
आवश्यकताहै।मेकइनइंडिया,कौशलभारत,स्मार्टसिटी,इंफ्रास्ट्रक्चरडेवलपमेंट,
डिजिटलइंडिया,स्वस्थभारतजैसीचलरहीयोजनाओंकेलिएप्रत्यक्षविदेशीनिवेश
आकर्षितकरनेतथावित्तीयसहायताऔरतकनीकीहस्तांतरणकेलिएविदेशीभागीदारों
कीआवश्यकताहै।हालमेंभारतीयविदेशनीतिकेइसपक्षपरअत्यंतजोरदियागया
है,जिसकेपरिणामस्वरूपराजनीतिककूटनीतिकेसाथ-साथआर्थिककूटनीतिको
एकीकृत करते हुए विकास की कूटनीति का विकास हुआ है।
दुनियाकेविभिन्नभागोंमेंभारतीयबड़ीसंख्यामेंनिवासकररहेहैं।भारतीयविदेश
नीतिकाएकमहत्वपूर्णलक्ष्यउनकेहितोंकीरक्षाकेसाथ-साथउनकीविदेशोंमें
उपस्थिति का देश को अधिकाधिक लाभ पहुंचाना है।
2.राष्ट्रीय एकीकरण एवं बाह्य हस्तक्षेप से मुक्ति-
यद्यपिराष्ट्रीयएकताऔरअखंडताकाविषयराष्ट्रकीआंतरिकनीतिकाविषयहै,
किंतुभारतकीराष्ट्रीयएकताऔरअखंडताविदेशीहस्तक्षेपसेप्रभावितहोतीरहीहै,
अतःभारतीयविदेशनीतिकाएकप्रमुखलक्ष्यइसहस्तक्षेपकोदूरकरसमग्रभारतीय
भूभागकोभौगोलिकदृष्टिसेहीनहीं,बल्किभावनात्मकदृष्टिसेभीलोगोंकोएकजुट
करनारहाहै।भारतकीस्वतंत्रताविभाजनकापरिणामथीऔरपाकिस्तानकेस्थापना
नेभारतीयउपमहाद्वीपमेंघृणाकावातावरणउत्पन्नकियाथा।स्वतंत्रतासेपूर्वअखंड
भारतएकआर्थिकइकाईथा,जिसकेविभाजननेअनेकआर्थिकसमस्याओंकोजन्म
दिया।पाकिस्तानसेजबलाखोंहिंदूऔरसिखभारतमेंआएतोसमस्याऔरगंभीरहो
गई।इनविस्थापितोंकापुनर्वासकरनाबड़ीसमस्याथी।कश्मीरपरपाकिस्तानद्वारा
समर्थितकबायलियोकेआक्रमणसेभारतकोयुद्धकासामनाकरनापड़ा।वामपंथियों
द्वाराआह्वानकीगईहड़तालोंनेआर्थिकपरिस्थितिकोऔरगंभीरबनादिया।देशकी
विशालजनसंख्याकेलिएभोजन,वस्त्रऔरआवासकीपूर्तिकरपानासरकारकेलिए
एकबड़ीसमस्याबनगई।सेनाकीदृष्टिसेभीभारतबहुतसशक्तनहींथा।यद्यपि
इसमेंसंदेहनहींकिभारतकेपासप्राकृतिकसंसाधनोंकीकोईकमीनहींथीऔरदेशकी
विशालजनसंख्यादेशकोआर्थिकदृष्टिसेमजबूतराष्ट्रबनानेकीक्षमतारखतीथी।
यहीनहीं,1947मेंभारतसेअंग्रेजोंकेचलेजानेकेबादभीकुछफ्रांसीसीऔरपुर्तगाली
बस्तियांरहगईथी।लंबेसमयतकबातचीतकेबादफ्रांसनेपांडिचेरीऔरचंद्रनगर
जैसीबस्तियोंकोभारतकोवापसकरदिया,किंतुपुर्तगालनेगोवाआदिप्रदेशोंको
स्वतंत्रकरनेसेइंकारकरदिया,अतः1961मेंभारतकोसैन्यकार्यवाहीकरकेइन
बस्तियों का भारत में विलय करना पड़ा।
3.विश्व शांति की स्थापना-
विश्वशांतिनकेवलपारंपरिकरूपमेंभारतकाआदर्शरहाहै,बल्किभारतकायह
विश्वासभीहैकिविश्वशांतिसेभारतकीसुरक्षाहोसकेगी।पंडितनेहरूनेकहाथाकि’
शांतिकेवलएकउत्सुकआशानहींहै,यहतोएकआपातकालीनआवश्यकताभीहै।‘’
अंतरराष्ट्रीयसंबंधोंकेविशेषज्ञएम.एस.राजननेइससंबंधमेंलिखाहैकि‘’भारतजैसे
देशकेलिए,जिसकाबहुमुखीविकासएकआवश्यकताथी,आंतरिकऔरविदेशीशांति
एकप्राथमिकउद्देश्यबनगयाथा।इसीकारणभारतनेविश्वशांतिकोअपनीनीतिका
प्रथम उद्देश्य माना। ‘’
उल्लेखनीयहैकिशांतिकाअर्थकेवलयुद्धनकरनाहीनहींहै,बल्किइसकाउद्देश्य
पारस्परिकतनावकोकमकरनाऔरउससमयचलरहेशीतयुद्धकोसमाप्तकरना
था।
4.सहयोग एवं समानता पर आधारित विश्व व्यवस्था का निर्माण-
सहयोगपरआधारितव्यवस्थाकेनिर्माणकेउद्देश्यसेप्रेरितहोकरभारतनेसंयुक्त
राष्ट्रसंघजैसीवैश्विकसंस्थाकेसदस्यताप्राप्तकीऔरसामूहिकसुरक्षाएवंविश्वशांति
केउसकेउद्देश्यमेंआस्थाव्यक्तकी।किंतुभारतसमयबीतनेकेसाथ-साथइस
संस्थाकेस्वरूपकोलोकतांत्रिकबनाएजानेकेलिएकृतसंकल्पहै।यहीकारणहैकिवह
संयुक्तराष्ट्रसंघकेपुनर्गठनपरजोरदेतारहाहै,क्योंकिपरिस्थितियोंकेबदलनेके
बावजूदसंयुक्तराष्ट्रसंघपरपारंपरिकरूपमेंदुनियाकेबड़ेराष्ट्रोंकावर्चस्वबनाहुआ
हैएवंजनसंख्यातथाआर्थिकदृष्टिसेसशक्तहोनेकेबावजूदभारत,ब्राजील,जर्मनी
जैसेदेशोंकोसुरक्षापरिषदकीस्थाईसदस्यताप्राप्तनहींहोसकीहै।अंतरराष्ट्रीय
संस्थामेंइनमहत्वपूर्णविकासशीलराष्ट्रोंकोसमुचितप्रतिनिधित्वप्राप्तहोसके,
भारतीयविदेशनीतिइसउद्देश्यकीप्राप्तिकीदिशामेंक्रियाशीलहै।सहयोगएवं
समानतापरआधारितविश्वव्यवस्थाकेनिर्माणकेउद्देश्यसेहीभारतनेस्वेच्छासे
ब्रिटिशराष्ट्रमंडलकासदस्यबनेरहनास्वीकारकियाहै।राष्ट्रमंडलमेंशामिलदेशपहले
ब्रिटिशउपनिवेशथे।भारतनेस्वयंकोगणतंत्रघोषितकरनेकेबादभीराष्ट्रमंडलमेंबने
रहनेकानिर्णयकिया।इसकाउद्देश्यवैश्विकसहयोगकेवातावरणकोप्रोत्साहित
करना है।
5.निरस्त्रीकरण-
यहपारंपरिकधारणारहीहैकिअस्त्र-शस्त्रयुद्धकोजन्मदेतेहैंएवंयुद्धसेविश्व
शांतिभंगहोतीहै।अतःयदियुद्धकोसमाप्तकरनाहैतोअस्त्र-शस्त्रकोसमाप्त
करनाहोगा।द्वितीयविश्वयुद्धकेबादपरमाण्विकशस्त्रोंकेविकासनेस्थितिको
औरगंभीरबनादियाहै,जिसकासंज्ञानलेतेहुएभारतनेपारंपरिकऔरपरमाणुअस्त्रों
केविनाशकोअपनीविदेशनीतिकालक्ष्यघोषितकियाहै।हालांकिइसक्षेत्रमेंभी
भारतसमानताकापक्षधरहैऔरयहीकारणहैकि1968मेंहुईपरमाणुअप्रसारसंधि
परहस्ताक्षरकरनेसेभारतमनाकरतारहाहै,क्योंकिवहइससंधिकोभेदभावपूर्ण
मानताहै।इससंधिकेअनुसारपरमाणुशक्तिसंपन्नराष्ट्रपरमाणुशक्तिकेविकास
कीतकनीककीजानकारीअन्यराष्ट्रोंकोनहींदेंगे।भारतकीमांगहैकिपरमाणु
तकनीकविकासशीलराष्ट्रोंकेविकासहेतुहस्तांतरितकीजाए,किंतुयहसुनिश्चित
कियाजाएकिवेइसकाप्रयोगपरमाणुशस्त्रोंकेविकासमेंनकरसके।साथहीपरमाणु
शक्तिसंपन्नराष्ट्रोंकोअपनेपरमाणुहथियारोंकोनष्टकरकेदुनियाकेसामनेउदाहरण
प्रस्तुत करना होगा, तभी वास्तविक निशस्त्रीकरण संभव हो सकेगा।
6.सैन्य गठबंधन से दूरी एवं क्षेत्रीय सहयोग -संबंधोंका विकास-
विश्वशांतिएवंनिरस्त्रीकरणकेउद्देश्यकोप्राप्तकरनेकेलिएभारतनेसैन्य
गठबंधनोंसेदूररहनाअपनीविदेशनीतिकाउद्देश्यनिर्धारितकिया।दुनियाके
विभिन्नराष्ट्रोंकेसाथमहत्वपूर्णसंबंधोंकाविकासउसकीविदेशनीतिकालक्ष्यहै।इस
उद्देश्यकीप्राप्तिकेनिमित्तहीउसने‘गुटनिरपेक्षता’एवं‘पंचशील’केसिद्धांतोंको
स्वीकारकिया।यद्यपिचीनऔरपाकिस्ताननेभारतकोयुद्धकेलिएविवशकिया,
फिरभीभारतसभीदेशोंकेसाथमहत्वपूर्णसंबंधोंकेविकासकेप्रतिप्रतिबद्धरहाहै।
‘आसियान’एवं‘सार्क’जैसेसंगठनोंकेसाथभारतकेसंबंधइसीउद्देश्यकेनिमित्त
विकसित किए गए हैं ।
संक्षेपमेंभारतीयविदेशनीति,जैसाकिभूतपूर्वराजदूतअजयमल्होत्रानेबताया,के4
मुख्य उद्देश्य बताये जा सकते हैं-
1. पारंपरिक और गैर पारंपरिक सुरक्षा धमकियों से भारत की रक्षा करना।
2.एकऐसाहीपरिवेशनिर्मितकरनाजोभारतमेंसमावेशीविकासकेअनुकूलहो
ताकि विकास का लाभ निर्धनतम व्यक्तियों को भी मिल सके।
3.यहसुनिश्चितकरनाकिभारतकीआवाजअंतरराष्ट्रीयमंचोंपरसुनीजासकेऔर
भारतविश्वजनमतकोअंतर्राष्ट्रीयमुद्दोंजैसे-आतंकवाद,जलवायुपरिवर्तन,
निरस्त्रीकरण, संयुक्त राष्ट्र के पुनर्गठन पर दुनिया के राष्ट्रों को प्रभावित कर सके।
4. भारतीय प्रवासियों के हितों की रक्षा एवं राष्ट्रहित में उनका प्रयोग।
भारतीय विदेश नीति के सिद्धांत
यद्यपिगतिशीलविश्वमेंभारतकीविदेशनीतिलचीलीएवंव्यावहारिकहै,जोबदलती
परिस्थितियोंकेअनुसारसामंजस्यकरनेकीक्षमतारखतीहै,किंतुविदेशनीतिकेकुछ
आधारभूतसिद्धांतऐसेहैंजिनकेसाथसमझौतानहींकियाजासकता।येसिद्धांत
निम्नवत है-
1. पंचशील-
पंचशीलअर्थात5गुणोंवालीनीतिकोपहलीबारभारतनेचीनकेतिब्बतक्षेत्रकेसाथ
व्यापारिकसमझौतेकेअंतर्गतअपनायाथा,जो29अप्रैल1954कोहुआथा।बादमें
यह नीति अंतरराष्ट्रीय संबंधों के संचालन का आधार बनी। पंचशील के पांच सिद्धांत है-
●पारस्परिक संप्रभुता और प्रादेशिक अखंडता का सम्मान
●अनाक्रमण
●अहस्तक्षेप
●समानता एवं पारस्परिक लाभ
●शांतिपूर्ण सह अस्तित्व
‘वसुधैवकुटुम्बकम’कीधारणाभारतकेपारंपरिकमूल्योंकाअंगरहीहैऔरशांतिपूर्ण
सहअस्तित्वकाभावभीइसीधारणासेप्रेरितहै,जिसकेअंतर्गतयहविश्वासकिया
जाताहैकिसंपूर्णदुनियाएकपरिवारकेसमानहैऔरदुनियाकेविभिन्नराष्ट्रइस
व्यापकपरिवारकेअंगकेरूपमेंशांतिऔरसद्भावनाकेसाथरहनेकेअधिकारीहैं।
भारतीयविदेशनीतिकेनिर्धारकएवंसंचालकपारस्परिकलाभपरआधारितसाथ-साथ
कार्य करने और विकास करने की नीति में विश्वास रखते हैं।
2. विचारधारा के प्रसार का विरोध-
यद्यपिभारतस्वयंलोकतंत्रएवंधर्मनिरपेक्षताकीविचारधारामेंविश्वासरखताहै,
किंतुवहकिसीविचारधाराकोकिसीअन्यराष्ट्रकेलोगोंपरथोपनेकाविरोधीहै।जैसा
किशीतयुद्धकेदौरमेंअमेरिकाद्वाराइराक,लीबिया,सीरियामेंएवंसोवियतसंघके
द्वाराजॉर्जियाएवंयूक्रेनमेंहस्तक्षेपकरकेकियागया।भारतसभीतरहकी
विचारधाराओंपरआधारितसरकारोंकेसाथसंबंधस्थापितकरनेमेंसक्षमहै,चाहेवे
जनतांत्रिकहो,राष्ट्रीयहोयासैनिकतानाशाहीसेयुक्तहो।भारतकाविश्वासहैकि
किसीदेशकीसरकारकोचुननेऔरउसेहटानेकाअधिकारवहांकेलोगोंकोहोनाचाहिए
औरयहीकारणहैकिभारतनेकिसीदूसरेराष्ट्परभारतजैसीविचारधाराकोअपनाने
केलिएदबावनहींडाला।हालांकिइसकेसाथ-साथभारतनेनिसंकोचउनदेशोंमें
प्रजातंत्रकोप्रोत्साहितकियाजहांइसकीसंभाव्यतादिखाईदीएवंउनदेशोंमें
जनतांत्रिकसंस्थाओंकोमजबूतबनानेऔरक्षमता-निर्माणकेलिएवहांकीसरकारकी
सहमतिसेआगेबढ़करसहायताभीप्रदानकी।अफगानिस्तानइसकासबसेअच्छा
उदाहरण है।
3.संयुक्त राष्ट्र संघ की शांति स्थापना की कार्यवाहीमें सहयोग-
भारतसंयुक्तराष्ट्रसंघकामौलिकसदस्यरहाहैऔरकिसीराष्ट्रकेविरुद्धएकतरफा
प्रतिबंधयासैनिककार्यवाहीकेविरुद्धहोनेकेबावजूदअंतर्राष्ट्रीयशांतिकेपक्षमें
संयुक्तराष्ट्रसंघकीशांतिस्थापनाकीकार्यवाहियोंमेउसनेसदैवसेसहयोगदियाहै।
भारतनेसंयुक्तराष्ट्रसंघकीअंतरराष्ट्रीयसहमतिपरआधारितशांतिस्थापनाकी
कार्यवाहीमेंअबतककिसीराष्ट्रद्वारादियाजानेवालासबसेबड़ासैनिकसहयोग
195000सैनिकोंकेसाथदियाहै,49सेअधिककार्यवाहियोंमेंभागलियाहैएवं168
भारतीय शांति स्थापक संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन में शहादत दे चुके हैं।
4.हस्तक्षेप[Interference]केस्थानपरअतिक्रमण[Intervention]कीनीतिका
अनुसरण-
भारतकिसीराष्ट्रकेअंदरूनीमामलोंमेंहस्तक्षेपकरनेकीनीतिमेंविश्वासनहींरखता,
किंतुयदिकिसीराष्ट्रद्वाराजानबूझकरयाअनजानेमेंकियागयाकृत्यराष्ट्रीयहितों
कोप्रभावितकरताहै,तोभारतत्वरितएवंसमयबद्धअतिक्रमणसेपीछेनहींहटाहै।
अतिक्रमण,हस्तक्षेपसेइसदृष्टिसेभिन्नहैकियहकिसीराष्ट्रकीसरकारकीप्रार्थना
परकियाजाताहै,जबकिहस्तक्षेपकोईराष्ट्रस्वेच्छासेबिनासंबंधितराष्ट्रकीसरकार
कीअनुमतिकेकरताहै।भारतने1971मेंबांग्लादेशमें,1987-90श्रीलंकामेंऔर
1988 में मालदीव में राष्ट्रीय हितों की रक्षा के निमित्त अतिक्रमण किया।
5. उपनिवेशवाद एवं साम्राज्यवाद का विरोध-
भारतस्वयंलंबेसमयतकउपनिवेशवादकाशिकाररहाहै।स्वतंत्रताकेबादउसने
उपनिवेशवादऔरसाम्राज्यवादकेप्रत्येकरूपकाविरोधकरनेकानिर्णयलिया।
भारतीयविदेशनीतिनिर्माताओंनेएशियाऔरअफ्रीकाकेपराधीनप्रदेशोंकेस्वतंत्रता
संग्राममेंउनकापूरासमर्थनकिया।इंडोनेशियानीदरलैंडकाउपनिवेशथाजिसपर
द्वितीयविश्वयुद्धकेदौरानजापाननेकब्जाकरलियाथा।जापानकीपराजयकेबाद
नीदरलैंडनेपुनःउसपरअपनीसत्तास्थापितकरनाचाहाजिसकाभारतनेकड़ाविरोध
कियाऔरसंयुक्तराष्ट्रसंघकेमंचपरभीउसकीस्वतंत्रताकेलिएअपीलकी।हिंद
चीन,मलाया,लीबिया,अल्जीरिया,ट्यूनीशिया,घानाआदिदेशोंकेस्वतंत्रतासंग्रामका
भारत ने नैतिक समर्थन किया।
वर्तमानमेंउपनिवेशवादऔरसाम्राज्यवादअपनेपारंपरिकरूपमेंसमाप्तहोचुकेहैं,
किन्तुबड़ेराष्ट्रोंद्वाराविकासशीलराष्ट्रोंकाआर्थिकशोषणउपनिवेशवादकानया
चेहराहै,जिसेनवउपनिवेशवादकहाजाताहै।भारतहरप्रकारकेउपनिवेशवादका
विरोधकरताहैऔरउसकायहविश्वासहैकिआर्थिकदासतासेमुक्तिउतनीही
आवश्यक है, जितनी राजनीतिक दासता से।
6.आक्रामकता के स्थान पर रचनात्मकता में संलग्नता-
भारतआक्रमणकेस्थानपररचनात्मकरूपसेसंलग्नहोनेकीनीतिकापक्षधरहै,
उसकाविश्वासहैकिआक्रामकताएवंभिड़ंतकीनीतिमामलोंकोउलझातीहै।किसी
भीयुद्धकेबादअंतमेंयुद्धरतराष्ट्रशांतिवार्ताकेलिएराजीहोतेहैं,किंतुतबतक
बहुतज्यादानुकसानहोचुकाहोताहै।भारत-पाकिस्तानसंबंधोंकोदृष्टिगतरखतेहुए
यहनीतिकारगरसाबितहोसकतीहै।भारतकेसंविधाननिर्माताभीइसबातकेलिए
उत्सुकथेकिभविष्यमेदेशकीसभीसरकारोंकेद्वाराविवादोंकेशांतिपूर्णसमाधान
कीचेष्टाकीजाएऔरइसीलिएअनुच्छेद51मेंयहनिर्देशदियागयाकिसरकार
अंतरराष्ट्रीयविवादोंकोशांतिपूर्णढंगसेनिपटानेकाप्रयासकरेगी।स्वयंनेहरूनेभी
कहाथाकिदुनियाआजजिसस्थितिमेंपहुंचगईहै,उसमेंचाहेएकपक्षदूसरेसेकाफी
कमजोरहीक्योंनहो,प्रभावदोनोंपरलगभगएकजैसाहीहोगा।इसकाकारणयहहै
किविनाशकेअस्त्रअत्यधिकभयंकरहोगएहैंकिवेछोटेऔरबड़ेसभीदेशोंकोएक
जैसेसंकटमेंडालसकतेहैं।किंतुरचनात्मकसंलग्नताकीनीतिकोभारतकी
कमजोरीनहींसमझाजानाचाहिए।कईअवसरोंपरभारतकेधैर्यकीपरीक्षालीगईहै।
फरवरी2019मेंबालाकोटकेआतंकवादीकैंपपरहवाईहमलाकरकेभारतनेपुलवामा
आतंकीहमलेकासशस्त्रविरोधकरयहसंदेशदियाकिभारतकीशान्तिप्रियताउसकी
कमजोरी नहीं है ।
7.वैश्विक मुद्दों पर वैश्विक सहमति में विश्वास-
भारतकीविदेशनीतिसंपूर्णविश्वसेसंबंधितमुद्दोंएवंसमस्याओंकासमाधान
व्यापकविचारविमर्शएवंदुनियाकेसभीराष्ट्रोंकीसहमतिकेआधारपरकिएजानेकी
नीतिपरआधारितहै।वर्तमानमेंमहत्वपूर्णवैश्विकमुद्देहैं-वैश्विकव्यापार,जलवायु
परिवर्तन,आतंकवाद,बौद्धिकसंपदाअधिकारएवंवैश्विकसरकार।इनसभीमुद्दोंपर
कोईएकतरफासमाधाननानिकालाजाए,बल्किविभिन्नअंतरराष्ट्रीयमंचोंपरआपसी
विचारविमर्शकेद्वाराराष्ट्रोंकीसहमतिकेआधारपरसंभावितसमाधानढूंढेजाने
चाहिए,भारतऐसाविश्वासरखताहै।यहीकारणहैकिभारतवैश्विकव्यापारया
संयुक्तराष्ट्रसंघजैसेमंचोंपरबड़ेराष्ट्रोंकेवर्चस्वकाविरोधीरहाहैऔरसततविकास
हेतु न्याय पूर्ण आर्थिक एवं तकनीकी हस्तांतरण पर जोर देता रहा है।
8.गुजराल सिद्धांत-
देवगौड़ासरकारमेंविदेशमंत्रीरहेश्रीइंद्रकुमारगुजरालनेइससिद्धांतकाआरंभ
कियाथा।1996मेंप्रतिपादितइससिद्धांतकासारांशयहहैकिदक्षिणएशियामें
सबसेबड़ादेशभारतउपमहाद्वीपकेपड़ोसीदेशोंकोअपनीइच्छासेकुछरियायतेंदे
औरभारतअन्यदेशोंकेलोगोंकेमध्यसंबंधस्थापितकिएजाए।भारतऔर
पाकिस्तानकीजनतामेंसीधेसंबंधस्थापितहोनेपरएकऐसावातावरणबनेगाजिसमें
आपसीमतभेदोंकोआसानीसेसुलझायाजासकेगा।इसीसिद्धांतकेअंतर्गत1996के
अंतमेंभारतनेबांग्लादेशकेसाथगंगाजलकेबंटवारेकेप्रश्नपरमहत्वपूर्णसमझौता
कियाजिसकेअनुसारअबबांग्लादेशपानीकीकमीवालेमौसममें1977केसमझौतेकी
तुलनामेंअधिकपानीलेसकेगा।इससमयभारतऔरचीनकेमध्यहुआभीएक
समझौताहुआजिसकाउद्देश्यदोनोंदेशोंकेद्वारापारस्परिकविश्वासकीस्थापनाके
उपाय करना था।
मुख्य शब्द-
विदेश नीति, साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद, शीत युद्ध, पंचशील, गुजराल सिद्धांत
REFERENCES AND SUGGESTED READINGS
1.Achal Malhotra, India’s Foreign
Policy;2014-2019,Landmarks,AchievementsandChallenges
ahead,distinguished lecture,CentralUniversity of
Rajasthan,July 22,2019,mea.gov.in
2.India”sForeignPolicy;2014-19;Landmarks,MinistryofExternal
Affairs,http;//www.mea.gov.in
3.Five Principles/Indian History/
Britannica,http//www.britannica.com
4.Mischa Hansel-Raph,http//www.routledge.com
5.S.Jaishankar,TheIndiaWay;StrategiesforanUncertainWorld
Ebook,2020
6.ShivshankarMenon,Choices;IncidetheMakingofIndia’s
Foreign Policy,2016
प्रश्न-
निबंधात्मक-
1.किनउद्देश्योंकीप्राप्तिकेलिएभारतीयविदेशनीतिकानिर्माणकियागया,
विवेचना कीजिए।
2. भारतीय विदेश नीति के प्रमुख सिद्धांतों की विवेचना कीजिए।
वस्तुनिष्ठ_
1.प्राथमिकता के आधार पर भारत का सबसे बड़ा राष्ट्रीयहित क्या है?
[ अ ] पड़ोसी देशों से मधुर संबंध
[ ब ] सतत विकास
[ स ] अंतर्राष्ट्रीय शांति
[ द ] सीमाओं की सुरक्षा एवं प्रादेशिक अखंडता
2.पड़ोसीराज्योंकेसाथसंबंधोंकेविषयमेंभारतीयविदेशनीतिकाकौनसासिद्धांत
प्रतिपादित किया गया?
[अ]वाजपेयीसिद्धांत[अभिलाषब]नेहरूसिद्धांत[स]गुजरालसिद्धांत[द]
देवगौड़ा सिद्धांत
3. निम्नांकित में से क्या ‘पंचशील’ का अंग नहीं है?
[अ]अनाक्रमण[ब]अहस्तक्षेप[स]राष्ट्रीयसंप्रभुताकासम्मान[द]
निरस्त्रीकरण
4.भारतनेगुटनिरपेक्षताकीनीतिकोअपनीविदेशनीतिकाप्रमुखसिद्धांतक्यों
बनाया?
[ अ ] राष्ट्रीय विकास हेतु दोनों गुटों से आर्थिक सहायता प्राप्त करने के उद्देश्य से
[ ब ] विश्व शांति के आदर्श में विश्वास रखने के कारण
[ स ] विकासशील राष्ट्रों का नेतृत्व प्राप्त करने के लिए
[ द ] क्षेत्रीय विकास को ध्यान में रखकर
5.भारतकीविदेशनीतिवैश्विकसमस्याओंकोकिसआधारपरसुलझानेकीपक्षधर
रही है?
[ अ ] महाशक्तियों की पहल
[ ब ] संयुक्त राष्ट्र संघ की मध्यस्थता
[ स ] वैश्विक सहमति
[ द ] दक्षिण के राष्ट्रों की पहल
6अंतरराष्ट्रीयविवादोंकोशांतिपूर्णढंगसेनिपटानेसंबंधीनिर्देशसंविधानकेकिस
अनुच्छेद में दिए गए हैं-
[अ ] अनुच्छेद 52 [ ब ] अनुच्छेद 51 [ स ] अनुच्छेद 31 [ द ] अनुच्छेद 30
7.समसामयिकदौरमेंभारतीयविदेशनीतिकेप्रमुखउद्देश्योंमेंक्यासम्मिलितनहीं
है?
[अ]प्रवासियोंकेहितोंकीरक्षा[ब]सततविकासकेअनुकूलअंतर्राष्ट्रीयवातावरण
कानिर्माण[स]यहसुनिश्चितकरनाकिभारतकीआवाजअंतरराष्ट्रीयमंचोंपरसुनी
जा सके [ द ] परमाणु शक्ति का विस्तार
8.हस्तक्षेपकीनीतिकाविरोधीहोनेकेबावजूदभारतनेकिनदेशोंमेंवहांकीसरकारों
के आग्रह पर हस्तक्षेप[ Intervene] किया है?
[ अ ] श्रीलंका [ ब ] बांग्लादेश [ स ] मालदीव [ द ] उपर्युक्त सभी
9.गुटनिरपेक्षताकीनीतिकासमर्थकहोनेकेबावजूदभारतकीविदेशनीतिकाझुकाव
अतीत में किसकी तरफ रहा है?
[ अ ] अमेरिकी गुट [ ब ] सोवियत गुट [स ] चीनीगुट [ द ] उपर्युक्त में से कोई नहीं
10.पड़ोसीराष्ट्रोंमेंसेकौनसादेशहालियावर्षोंमेंभारतकेसबसेबड़ेप्रतिद्वंद्वीकेरूप
में उभरा है ?
[ अ ] पाकिस्तान [ ब ] चीन [ स ] बांग्लादेश [ द ] अफगानिस्तान
11.निरस्त्रीकरणकीनीतिकासमर्थकहोनेकेबावजूदभारतनेकिससंधिपरहस्ताक्षर
नहीं किए हैं?
[अ]परमाणुपरीक्षणसंधि[ब]परमाणुप्रसारनिषेधसंधि[स]परमाणुतकनीक
हस्तांतरण संधि [ द ] उपर्युक्त सभी
उत्तर- 1. द 2. स 3. द 4.अ 5.स 6. ब 7. द 8. द 9. ब 10. ब 11. ब