वाल्मीकि रामायण

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वाल्मीकि रामायण


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वाल्मीकि रामायण तस्यां पुर्यामयोध्यायां वेदवित्सर्वसंग्रहः। दीर्घदर्शी महातेजाः पौरजानपदप्रियः।। तस्यां अयोध्यासा पुर्यां = अयोध्या नगर में वेदवित = वेद पण्डित सर्वसंग्रहः = सर्वज्ञ दीर्घदर्शी = दीर्घदर्शी महातेजाः = तेजवान पौरजानपदप्रियः = इच्छुक नगरवासी और ग्रामीण लोग अयोध्या नगर में वेद पण्डित,सर्वज्ञ,दीर्घदर्शी,तेजवान और नगर एवं ग्रामीण वासी के इच्छुक राजा दशरथ राज्यपालन कर रहे है।

वाल्मीकि रामायण बलवान् निहतामित्रो मित्रवान् विजितेन्द्रियः। धनैश्च संचयैश्चान्यैः शक्रवैश्रवणोपमः।। बलवान् = बलवान निहतामित्रः = शत्रृओं को संहारनेवाला मित्रवान् = मित्रवान विजितेन्द्रियः =इंद्रियों पर विजयी धनैः = धनवान च = और अन्यैः = अन्य संचयैः च = संपत्तिवान शक्रवैश्रवणोपमः = इंद्र और कुबेर के समान राजा दशरथ बलवान, शत्रृओं को संहारनेवाला, मित्रवान, इंद्रियों पर विजयी, धनवान है। वह संपत्ति में इंद्र और कुबेर के समान है।

वाल्मीकि रामायण इक्ष्वाकूणामतिरथो यज्वा धर्मपरो वशी। महर्षिकल्पो राजर्षिस्त्रिषु लोकेषु विश्रुतः।। इक्ष्वाकूणाम = इक्ष्वाक वंश के राजाओं में अतिरथः = अतिपराक्रम यज्वा = यज्ञ करनेवाला धर्मपरः = धर्मकार्य करनेवाला वशी = इंद्रियज्ञान रहनेवाला महर्षिकल्पः = महर्षि जैसा राजर्षिः = राजर्षि स्त्रिषु लोकेषु = तीनलोकों में विश्रुतः = प्रसिद्ध इक्ष्वाक वंश के राजाओं में अतिपराक्रम, यज्ञकरनेवाला, धर्मकार्यकरनेवाला, इंद्रियज्ञान रहनेवाला, महर्षि जैसा राजर्षि दशरथ महाराज तीनलोकों में प्रसिद्ध है।

वाल्मीकि रामायण यथा मनुर्महातेजाः लोकस्य परिरक्षिता। तथा दशरथो राजा वसनजगदपालयत्।। महातेजाः = अतिपराक्रम मनुः = मनु यथा = जिस प्रकार लोकस्य = लोक को परिरक्षिता = रक्षा करेगा तथा = उसी प्रकार राजा = राजा दशरथः = दशरथ वसन् = निवास(अयोध्यानगर) जगत् = लोक अपालयत् = पालन किया। अतिपराक्रम मनु जिस प्रकार लोक की रक्षा करेगा उसी प्रकार राजा दशरथ निवास (अयोध्यानगर) लोक को पालन किया।

वाल्मीकि रामायण तेन सत्याभिसन्धेन त्रवर्गमनुतिष्ठता। पालिता सा पुरी श्रेष्ठा इन्द्रेणेवामररवती।। सत्याभिसन्धेन = सत्यनिष्ठ त्रवर्गम = धर्मार्थकाम मोक्ष अनुतिष्ठता = आचरण करनेवाला तेन = वह(दशरथ) इन्द्रेण = इंद्रु से अमरावती इव = अमरावती नगर श्रेष्ठा = श्रेष्ठ सा पुरी = यह अयोध्यानगर पालिता = पालन किया। सत्यवान, धर्मार्थकाममोक्ष आचरण करनेवाला दशरथ इंद्रु जैसा (अमरावती नगर) अयोध्यानगर का पालन किया।

वाल्मीकि रामायण तस्मिन् पुरवरे हृष्टा धर्मात्मानो बहुश्रुताः। नारास्तुष्टा धनैः स्वैः अलुब्धाः सत्यवादिनः।। पुरवरे = पुर में श्रेष्ठ तस्मिन् = उसमें हृष्टा = संतोष से धर्मात्मान = धर्मात्मा बहुश्रुताः =अनेक शास्त्र स्वैः धनैः = अपने संप्पत्ति स्तुष्टा = आनंदित अलुब्धाः = निश्वार् सत्यवादिनः = सत्यवाक् राजा दशरथ के अयोध्या में लोग सत्यवान,धर्मनिष्ठ और अनेक शास्त्रज्ञान से संप्पन्न एवं संतुष्ठ थे।

वाल्मीकि रामायण नाल्पसन्निचयः कश्चिदासीत् तस्मिन् पुरोत्तमे। कुटुम्बी योहयसिध्दा र्थी S गवाश्वधनधान्यवान्।। तस्मिन् = इस तरह पुरोत्तमः = उत्तम अयोध्या अल्पसन्निचयः = अल्प संपत्ति असिध्दार्थीः = बिना इच्छकु अगवाश्व धन धान्यवान् = बिना हश्व गाय का कुटुम्बी = गृह यः कश्चित् = कोई भी न आसीत् = नहीं है। उत्तम अयोध्या नगर में अल्प संपत्तिवान,बिना हश्व गाय का गृह और बिना धनदान्य का घर कोई भी नहीं है।

वाल्मीकि रामायण कामी वा न कदर्यो वा नृशंसः पुरूषः क्वचित्। द्रष्टुं शक्यमयोध्यायां नाविद्धान्न च नास्तिकः।। अयोध्यायां = अयोध्या नगर में क्वचित् = कही भी कामी वा = कामी कदर्यः वा = लोभी नृशंसः पुरूषः = दुर्जन अविद्धान् = विद्य़ाविहीन लोग च = औ नास्तिकः = नास्तिक लोग दद्रष्टुं = देखने में न शक्यम् = न मिलेगा। अयोध्या नगर में कही भी कामी, लोभि, दुर्जन, अनपढ़ और नास्तिक लोग देखने में न मिलेंगे।

वाल्मीकि रामायण सर्वे नाराश्च नार्यश्च धर्मशीलाः सुसंयताः। मुदिताः शीलवृत्ताभ्यां महर्षय इवामलाः।। नाराश्च = नर नार्यश्च = नारी सर्वें = सब धर्मशीलाः = धर्मशील सुसंयताः = इन्द्रिय निग्रह शीलवृत्ताभ्यां = शील स्वभव उदिताः = प्रकाशित महर्षयः इव = महर्षि जैसे निर्मल स्वभाव से रहे अयोध्या नगर के नर-नारी सब धर्मशील, इन्द्रियनिग्रह, शीलस्वभव से प्रकाशित निर्मल स्वभाव के महर्षि थे।

वाल्मीकि रामायण नाकुण्डली नामकुटी नास्रग्वी नाल्पभोगवान्। नामृष्टो नानुलिप्ताङ्गो नासुगन्धश्च विद्यते।। अकुण्डली = कुण्डलविहीन न विद्यते = बिना विद्या के अमकुटी = बिना शिरोभूषण के न = नही अस्रग्वी = पुष्पधारण न = नही अल्पभोगवान् = अल्पभोगी न = नही अमृष्टः = अमृष् न = नही अनुलिप्ताङ्गः = सुगंन्ध शरीर न = नहीं असुगन्धः = दुर्गन्ध लोग न = नहीँ अयोध्या में दुर्जन एवं दुर्गन्ध लोग नही है।

वाल्मीकि रामायण नामृष्टभोजी नादाता नाप्यनङ्गदनिष्क धृक्। नाहस्ताभरणो वापि दृश्यते नाप्यनात्मवान्।। अमृष्टभोजी = स्वादिष्ट भोजन करनेवाला न दृश्यते = नही दिखेगा अदाता = धर्म करनेवाला अनङ्गदनिष्क धुक्= अलंकार पुरूष न = नही अहस्ताभरणः = कंकण धारणकरनेवाला न = नही अनात्मवान् = आत्मतत्व न जाननेवाला न = नही अयोध्या नगर में स्वादिष्ट भोजने न करनेवाला, दान न करनेवाला, आत्मतत्व न जाननेवाला और अलंकार न करनेवाला नहीं दिखेगा।

वाल्मीकि रामायण नानाहिताग्निः नायज्वा न क्षुद्रो वा न तस्करः। कश्चिदासीदयोध्यायां न च निर्वृत्तसंकरः।। अयोध्यायां = अयोध्यानगर में कश्चित् = कोई भी अनाहिताग्निः = नित्य अग्निहोत्र न आसीत् = नही दिखेगा अयज्वा = यज्ञकरनेवाला न = नही क्षुद्रः = अल्पज्ञानी वा = या तस्करः = चोर न = नही च = और निर्वृत्तसंकरः = वर्णसंकर न = नही अयोध्या नगर में यज्ञकार्य नही करनेवाला, न अल्पज्ञानी, न चोर और न वर्णसंकर कोई भी नही दिखेंगे।

वाल्मीकि रामायण स्वकर्मनिरता नित्यं ब्राह्मणा विजितेन्द्रियाः। दानाध्ययनशीलाश्च संयताश्च प्रतिग्रहे।। ब्राह्मणा = ब्राह्मण नित्यं = प्रतिदिन स्वकर्मनिरताः = स्व कार्य कर्मता विजितेन्द्रियाः = इंद्रियविजयी च = और दानाध्ययनशीलाः = दान, दयागुणों से प्रतिग्रहे = स्वीकार संयताः = निग्रह अयोध्यानगर में ब्रह्मण अपने कार्य पर तत्पर है और दान धर्मों में शीलशक्ति में परिपूर्ण थे।

वाल्मीकि रामायण न नास्तिको नानृतको न कश्चिदबहुश्रुतः। नासूयकों न चाशक्तो नाविद्वान् विद्यते तदा।। तदा = उस समय नास्तिकः = नास्तिक कश्चित् = कोई भी न विद्यते = नही रहे अनृतकः = असत्य बोलनेवाल न = नही अबहुश्रुतः = न शास्त्रज्ञानवाला असूयकः = द्वेष्यकरनेवाला न = नही अविद्वान् = विद्याज्ञानी न = नहीं अयोध्यानगर में नास्तिक,असत्यवादी,अनपढ, द्वेष्यी, असमर्थ कोई भी नहीं है।

वाल्मीकि रामायण नाषङ्गविदत्रासीन्नाव्रतो नासहस्रदः। न दीनः क्षिप्तचित्तो वा व्यथितो वा...पि कश्चन।। अत्र = उस नगर में अषङ्गवित् = षड् वेदांग न ज्ञाननेवाला कश्चन अपि = एक भी न आसीत् = बिना न = नहीं असहस्रदः = अधिक दान न करनेवाला न = नही दीनः वा = दीनव्यक्ति क्षिप्त चित्तः = मनोवाक् न = नही व्यथितः = व्यक्त न = नहीं अयोध्यानगर में षड विदांग ज्ञाननेवाले, अधिक दान करनेवालो और मनोवाक् जाननेवाले अधिक है।

वाल्मीकि रामायण कश्चिन्नरो वा नारी नाश्रीमान् नाप्यरूपवान्। द्रष्टुं शक्यमयोध्यायां नापि राजन्यभक्तिमान्।। अयोध्यायां = अयोध्या नगर में अश्रीमान् = बिना ऐर्वर्य के अरूपवान् = बिना सौंदर्य के राजनि = राजा के अभक्तिमान् = बिना भक्ति के नारः वा = नर नारी वा = नारी कश्चित् अपि = कोई भी द्रष्टुं = देखने को अशक्यम = साध्य नहीं है। अयोध्या नगर में बिना ऐर्वर्य के बिना सौंदर्य के बिना भक्ति के नर-नारी कोई भी देखने को साध्य नहीं है।

वाल्मीकि रामायण वर्णेष्वग्र्यचतुर्थेषु देवतातिथिपूजकाः। कृतज्ञाश्च वदान्याश्य शूरा विक्रमसेयुताः।। अग्र्यचतुर्थेषु = चतुवर्ण वर्णेष = वर्णों में देवतातिथिपूजकाः= देवता एवं अतिथों की पूजा च = और कृतज्ञा = कृतज्ञता वदान्याः = दानगुण शूराः = वीर विक्रमसंयुताः = पराक्रम से अयोध्यानगर में चतुरवर्ण देवतों को अतिथों को पूजा करेगा। ये सब कृतज्ञ,दानगुण और वीर हैं।

वाल्मीकि रामायण दीर्घायुषो नराः सर्वे धर्म सत्यं च संश्रिताः। सहिताः पुत्रपौत्रेश्व नित्यं स्त्रीभिः पुरोत्तमे।। पुरोत्तमे = उत्तम अयोध्यानगर में सर्वे नराः = सब मानव दीर्घायुषः = दीर्घ आयुष से धर्म = धर्म च = और सत्यं = सत्य संश्रिताः = आश्रित नित्यं = हमेशा स्त्रीभिः = स्त्री पुत्रपौत्रेश्व = पुत्रपौत्र से सहिताः = निवास उत्तम अयोध्या नगर में सब लोग दीर्घायुष,धर्मपरक,सत्यवत और हमेशा पुत्रपौत्रों से खुशी रहे।

वाल्मीकि रामायण क्षत्रं ब्रह्ममुखं चासीद्वैशयाः क्षत्रमनुव्रताः। शूद्राः स्वधर्मनिरताः त्रीन् वर्णानुपचारिणः।। क्षत्रं = क्षत्रिय ब्रह्मामुखं = ब्राह्मण वचन आचरण करनेवाला आसीत् = रहे वैश्याः = वैश्या क्षत्रं = क्षत्रिय अनुव्रताः = अनुकरण शूद्राः = शूद्र त्रीन् वर्णान् = तीन वर्णों का उपचारिणः = सेवा कर स्वधर्मनिरताः = अपना धर्म आचरणकर क्षत्रिय ब्राह्मण वचन का आचरण करनेवाले, वैश्या क्षत्रिय अनुकरण, शूद्र तीन वर्णों का सेवा कर अपना धर्म का आचरण कर रहे है।

वाल्मीकि रामायण सा तेनेक्ष्वाकुनाथेन पुरी सुपरिरक्षिता। यथा पुरस्तान्मनुना मानवेन्द्रेण धीमता।। पुरस्तात् = पूर्व सा पुरी = अयोध्यानगर में मानवेन्द्रेण = जनता के प्रभु धीमता = बुद्धिशाली मनुना = मनु से यथा = जिस प्रकार सुपरिरक्षिता = पालन की इक्ष्वाकुनाथेन = इक्ष्वाकुनाथ दशरथ जिसप्रकार मनु अपनी बुद्धिशाली से जनता को पालन की उसी प्रकार इक्ष्वाकुनाथ दशरथ भी राज्य का पालन की।

वाल्मीकि रामायण योधानामग्निकल्पनां पेशलाना ममर्षिणाम्। संपूर्णा कृतविद्यानां गुहा केसरिणामिव।। अग्निकल्पानां = अग्नि के समान पेशलानां = कोमल स्वभाव अमर्षिणाम् = हार न सहे कृतविद्यानां = विद्यवान योधानां = योद्धा संपूर्णा = संपन्न केसरिणां = सिंह जैसे गुहा इव = गुहाओं अयोध्यानगर में सिंह जैसे बलवान, अतिपराक्रम, शौर्य योद्धाओं से भरा सिंहगुह जैसा है।

वाल्मीकि रामायण काम्भोजविषये जातैर्बाह्लीकैश्च हयोत्तमैः। वनायुजैर्नदीजैश्च पुर्णा हरिहयोत्तमैः।। काम्भोजविषये = काम्भोज देश जातैः = जन्म र्बाह्लीकैः = बार्हक देश वनायुजै = वनायु देश र्नदीजैः = सिंधु नदी तट पर जनम हरिहयोत्तमैः = हरियों मे उत्तम हयोत्तमैः = हस्व से पुर्णा = भरे काम्भोज देश, बार्हक देश, वनायु देश, सिंधु देश नदी तट पर जनम हरियों में उत्तम हस्वों से भरे है।

वाल्मीकि रामायण विन्ध्यपर्वतजैर्मत्तै पूर्णा हैमवतैरपि। मदान्वितैरतिबलैर्मातङ्गैः पर्वतोपमैः।। विन्ध्यपर्वतजै = विन्ध्यपर्वत पर हैमवतैरपि = हिमालय में अतिबलैः = अतिबल पर्वतोपमैः = पर्वतों जैसे मदान्वितै = मदान्वित मत्तैः = बलरूप मातङ्गैः = गजराज पूर्णा = रहे विन्ध्यपर्वत पर, हिमालय में जनम अतिबल, पर्वतों जैसे मदान्वित बलरूपी गजराज अयोध्यानगर में रहे।

वाल्मीकि रामायण ऐरावतकुलीनैश्च महापद्मकुलैस्तथा। अञ्जनादपि निष्पन्नैर्वामनादपि च द्विपैः।। ऐरावतकुलीनैः = ऐरावत जाति के महापद्मकुलैः = महापद्म जाति के तथा = तथा अञ्जनात् अपि = अञ्जनात जाति के अपि च = और वामनात् = वामनात जाति के निष्पन्नैः = जन्म द्विपृः = हाथी अयोध्यानगर में ऐरावत,महापद्म,अञ्जनात और वामनात जाति के जनम हाथियों से भरे है।

वाल्मीकि रामायण भद्रमन्द्रै र्भद्रमृगै र्मृगमन्द्रैश्च सा पुरी। नित्यमत्तैः सदा पूर्णा नागैरचल सन्निभैः।। नित्यमत्तैः = हमेशा मदगज अचल सन्निभैः = पर्वत जैसा भद्रैः = भद्र जाति मन्द्रैः = मंद जाति मृगैः = मृग जाति भद्रमन्द्रैमृगैः = भद्रमन्दैमृगै नागैः = हाथियों सा पुरी = उस नगर में सदा = हमेशा पूर्णा = रहे दशरथ राज्य अयोध्यानगर में भद्रमन्दैमृग जाति के हाथियाँ रहे है।

वाल्मीकि रामायण सा योजने च द्वे भूयः सत्यनामा प्रकाशते। यस्यां दशरथो राजा वसन् जगदपालयत्।। यस्यां = जिस नगर में दशरथो राजा = राजा दशरथ वसन् = निवास जगत् = जगत अपालयत् = पालन किया सा = उस भूयः = फिर द्वे योजने = दो योजने दूर तक सत्यनामा = सत्यनामा प्रकाशते = प्रकाशित जिस नगर में राजा दशरथ निवास करते है, वहाँ दो योजनाओं के दूर तक शत्रृ न पहुँचने जैसे सार्थक नगर अयोध्यापुर है।

वाल्मीकि रामायण तां पुरीं स महातेजाः राजा दशरथो महान्। शशास शमितामित्रो नक्षत्राणीव चन्द्रमाः।। महातेजाः = तेजोवान महान् = महान राजा दशरथो = राजा दशरथ शमितामित्रो = शत्रृओं का दमन चन्द्रमाः = चाँद नक्षत्राणीव = नक्षत्र जैसे तां पुरीं = उस अयोध्या शशास = पालन किया। तेजोवान महाराजा दशरथ शत्रृओं का दमनकर चाँद नक्षत्र जैसे अयोध्या को पालन किया।

वाल्मीकि रामायण तां सत्यनांमां दृढतोरणार्गलां। गृहैर्विचित्रैरूपशोभितां शिवाम्। पुरीमयोध्यां नृसहस्रसंकुला। शशास वै शक्रसमो महीपतिः।। शक्रसमः = इंद्र के समान महीपतिः = दशरथ सत्यनांमां = सार्थक नामक दृढतोरणार्गलां = दृढ संकल्प र्विचित्रैः = विचित्र गृहैः = गृहम उपशोभिताम = प्रकाशित शिवाम् = सुभप्रथा नृसहस्र संकुलां = सहस्र नरनारी समूह पुरीं = अयोध्या शशास = पालन किया। इंद्र के समान दशरथ सार्थक नाम रखकर दृढ संकल्प से विचित्र गृह में प्रकाशित अनेक जनसमूह को मंगलदायक पालन की।

वाल्मीकि रामायण रामायण महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित महाकाव्य है। महर्षि वाल्मीकि ने इस महकाव्य में प्राचीन भारत की सामाजिक व्यवस्था का काव्यात्मक वर्णन किया है और रामकथा के माध्यम से राम और सीता के जीवन का चित्रण अत्यन्त मर्मस्पर्शी एवं ललित शैली में किया है। महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण महाकाव्य में सात काण्ड, 500 सर्ग तथा 24,000 श्लोक है। रामायण महाकाव्य में सात कण्ड निम्नलिखित हैं – 1. बालकाण्ड 2. अयोध्याकाण्ड 3. अरण्यकाण्ड 4. किष्किन्धाकाण्ड 5. सुंदरकाण्ड 6. युद्धकाण्ड 7. उत्तरकाण्ड