स्वरूप ……….. अंग्रेजी में सेल - बेचना , जेल , कोशिका ,कक्ष,कोठरी, बैटरी, कोष्ठिका, कोशाणु, खाना, खोह, मण्डप, रंध्र, गुट्ट, कोटर, बिल, गोदाम , तहखाना, छोटा कमरा, झोपड़ी, प्रकोष्ठ आदि शब्दोंका अर्थ निकलता है। कौनसे स्थान पर कौनसा अर्थ चुनना चाहिए इस किये भाषा के प्रयोजन को सीखना आवश्यक है। हम हिंदी का प्रयोग आम तौर पर साहित्य रचने के लिए करते है , लेकिन आज का युग सम्प्रेषण का मन जाता है। जब हम भाषा की बिना अधूरे हो जाते है। बेटा अपने परिवार के लिए जो भाव है वह शब्दों में व्यक्त करता है ,वैज्ञानिक अपनी अमिट खोज को शब्द बद्ध करता है , कवी साहित्य सागर के मोती अपनी रचना में लाते है। अपितु दफ्तरों , कारखानों , प्रशासन एवम व्यवसाय करते समय केवल साहित्यिक ही नहीं बल्कि तकनिकी भाषा का प्रयोग करना पड़ता है। इसी लिए बहुत से महाविद्यालयों एवम विश्वविद्यालयों में भाषा का कार्यात्मक (फंक्शनल) रूप पढ़ाया जाता है , ताकि पाठक एक और साहित्य से भावनाओंको समझे उसी के साथ व्यवहार में दक्ष बना रहे। इसी की शरुवात प्रथम अंग्रेजी में हुई और फिर धीरे धीरे वह हिंदी में प्रयोजन मूलक हिंदी के नाम से पढ़ाई जाने लगी।