प्रकृतिवाद एवम् प्रयोजनवाद

AKASHCHHOTUPRADEEP 1,831 views 15 slides Nov 17, 2022
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प्रकृतिवाद एवं प्रयोजनवाद


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जिला शिक्षा एवम् प्रशिक्षण संस्थान सुल्तानपुर डी एल एड 2021 बैच प्रोजेक्ट रिपोर्ट ( प्रकृतिवाद एवम् प्रयोजनवाद ) विषय : वर्तमान भारतीय समाज और प्रारंभिक शिक्षा

प्रकृतिवाद शिक्षा प्रकृतिवाद (Naturalism) :- Natural + ism Natural का अर्थ प्रकृति से संबंधित और ism का अर्थ सिद्धांत , प्रणाली , वाद है । इस प्रकार प्रकृति से संबंधित सिद्धांतो का अध्यन ही प्रकृतिवाद है । प्रकृतिवाद शिक्षा के क्षेत्र में प्रकृति शब्द का प्रयोग दो अर्थों में करते हैं (1) भौतिक प्रकृति और (2) बालक की प्रकृति । भौतिक प्रकृति - बाहरी प्रकृति बालक की प्रकृति - मूल प्रवृत्तियां , आवेग , क्षमताएं प्रकृतिवादी दार्शनिक विचारधारा जेम्स वार्ड के अनुसार - प्रकृतिवाद वह सिद्धांत है जो प्रकृति को ईश्वर से पृथक करता है । आत्मा को पदार्थ के अधीन करता है और अपरिवर्तनीय नियमों को सर्वोच्चता प्रदान करता है ।

शिक्षा का अर्थ प्रकृतिवादी दर्शन के अनुसार शिक्षा का साधन है जो मनुष्य को उसकी प्रकृति के अनुरूप विकास करने , जीवन व्यतीत करने योग्य बनाती है । प्रकृतिवादी शिक्षा को स्वाभाविक विकास की प्रक्रिया मानते हैं । प्रकृतिवादी शिक्षा दार्शनिक – बेकन , कमेनिस , स्पेन्सर , रूसो आदि हैं । रूसो के अनुसार “ सच्ची शिक्षा वह है , जो व्यक्ति के अंदर से प्रस्फुटित होती है । यह इसकी अंतर्निहित शक्तियों की अभिव्यक्ति है । प्रकृतिवाद तथा पाठ्यक्रम प्रकृतिवाद विद्यार्थी को पाठ्यक्रम का आधार मानते है । उनका कहना है कि पाठ्यक्रम की रूपरेखा विद्यार्थी की 1. रुचियो 2. योग्यताओं / क्षमताओं 3. मूल प्रवृत्तियों 4. स्वाभाविक क्रियाओं 5. व्यक्तिक भिन्नताओ को ध्यान में रखकर तैयार होनी चाहिए ।

प्रकृतिवाद व शिक्षा के उद्देश्य :- स्पेंसर के अनुसार जीवन का उद्देश्य इस जगत में सुखपूर्वक रहना है जिसे उसने समग्र जीवन कहा है । समग्र जीवन का विश्लेषण वह जीवन की 5 प्रमुख क्रियाओं के माध्यम से करता है जो स्पेंसर के अनुसार निम्नलिखित है आत्मरक्षा जीवन की मौलिक आवश्यकतओ की पूर्ति संततिपालन सामाजिक एवं राजनैतिक संबंधों का निर्वाहन अवकाश के समय का सदुपयोग । प्रकृतिवाद में शिक्षण विधि :- स्व अधिगम विधि करके सीखना / क्रिया विधि खेल विधि भ्रमण विधि

शिक्षार्थी प्रकृतिवाद के अंतर्गत पूरी शिक्षा प्रक्रिया का केंद्र बिंदु बालक / विद्यार्थी होता है । शिक्षा शिक्षार्थी को प्रकृति के अनुकूल ढालने का साधन होती है । प्रकृतिवादी विचारक विद्यार्थी को ईश्वर की श्रेष्ठ व पवित्र कृति मानते हैं किंतु सामाजिक कृत मत्ता में फंसकर बालक का स्वाभाविक विकास रूक जाता है । शिक्षक प्रकृतिवाद के अनुसार शिक्षक निरीक्षणकर्ता , पथप्रदर्शक , बाल प्रकृतिज्ञाता , भ्रमणकर्ता , मितवाकी तथा प्रायोगिक ज्ञान से भिज्ञ होता है । वह छात्रों पर किसी बात , किसी तत्व को जबरन नहीं थोपता बल्कि वह अपने छात्रों को स्वतः विकास करने हेतु प्रेरित करता है । प्रकृतिवाद विचारक प्रकृति को ही वास्तविक शिक्षक मानते हैं ।

अनुशासन प्रकृतिवादी दमनात्मक अनुशासन का विरोध करता है तथा मुक्त्यात्मक अनुशासन की बात करता है । प्रकृतिवादी विचारको का मानना है कि गलत कार्यों के लिए प्रकृति स्वयं दंडित करेगी तथा अच्छे कार्य के लिए पुरस्कृत । विद्यालय विद्यालय के स्वरूप और व्यवस्था के संबंध में प्प्रकृतिवादियो का कहना है कि विद्यालय को प्रकृति के अनुकूल होना चाहिए वास्तविक विद्यालय तो स्वयं प्रकृति ही है फिर भी यदि औपचारिक शिक्षा देने वाले सामाजिक विद्यालय की कल्पना की जाए तो वह कृत्रिमत्ता और औपचारिकताओं से विहीन होना चाहिए । कक्षा , वर्ग , समय - सारणी , परीक्षा आदि का बंधन नहीं होना चाहिए ।

उतादेयता / प्रासंगिता इस विचारधारा के अनुसार शिक्षा को बाल केंद्रित दृष्टिकोण से पूरित किया इस विचारधारा के कारण ही आज शिक्षा में बालकों के स्वतंत्र चिंतन अनुभव शीलता क्रियाशीलता एवम् खेल विधि का मार्ग प्रशास्त हुआ । ज्ञानेंद्रिय प्रशिक्षण प्रशिक्षण को प्रमुखता देने का श्रेय प्रकृतिवाद को है प्रकृतिवाद ने शिक्षा में शब्दों के स्थान पर अनुभव को महत्वपूर्ण बताया ।

प् रयोजनवाद और शिक्षा प्रयोजनवाद से आशय यह है कि सभी विचारों , मूल्यों एवं निर्णयों का सत्य व्यवहारिक परिणामों से ही पाया जाता है । यदि इनके परिणाम संतोषजनक सत्य हैं तो वे हैं , अन्यथा नहीं । प्रयोजनवाद में प्रयोजनवाद दर्शन की वह शाखा है जो किसी पूर्व सिद्ध सत्य को स्वीकार नहीं करती है । इसके अनुसार सत्य का मूल व्यवहारिक है क्योंकि मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति तथा मानवीय समस्याओं के समाधान में सत्य की अवधारणा निहित होती है । जॉन डिवी इस दर्शन के महान प्रतिपादक हैं जॉन डिवी के अनुसार “ ज्ञान तथा मस्तिष्क स्वयं में साध्य नहीं है अपितु साधन है । इन्होंने मानवीय समस्याओं के हल के लिए वैज्ञानिक विधि को उपयुक्त माना है ।” नामकरण जॉन डिवी - साधनवाद , करणवाद , प्रयोगवाद किलपैड्रिक - प्रयोजनवाद

शिक्षा का अर्थ शिक्षा के क्षेत्र में प्रयोजनवाद परंपरागत और अनुदार ज्ञान के विरुद्ध क्रांति है । इसने शिक्षा की संकल्पना को कई रूपों में प्रस्तुत किया है जो निम्नलिखित है - शिक्षा अनुभव का पुनर्निर्माण करने वाली प्रक्रिया है । शिक्षा स्वयं जीवन है । शिक्षा सामाजिक जीवन का आधार है तथा सामाजिक कुशलता प्राप्त करने की प्रक्रिया है । शिक्षा एक लोकतंत्रीय की प्रक्रिया है ।

शिक्षा के उद्देश्य प्रयोजनवाद परिवर्तन में विश्वास व्यक्त करता है तथा अनुभव व उपयोगिता के आधार पर आदर्शों , सत्य व मूल्यों में आत्मसातीकरण पर बल देता है । प्रयोजनवाद के अनुसार शिक्षा के निम्नलिखित उद्देश्य होने चाहिए - नवीन आदर्शों , मूल्यों का सृजन करना । सामाजिक कार्य - कुशलता का विकास करना । वातावरण के साथ समायोजन की क्षमता का विकास करना । अनुभव का पुनर्निर्माण करना । सत्यान्वेषण की योग्यता विकसित करना । अलौकिक आनंद की प्राप्ति करना । शिक्षा का पाठ्यक्रम प्रयोजनवाद किसी पूर्व निश्चित पाठ्यक्रम को स्वीकृत न देते हुए प्रयोजनवादी विचारक - अनुभवकेंद्रित पाठ्यक्रम पर बल देते हैं । उन्होंने पाठ्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत ना करके पाठ्यक्रम निर्माण संबंधित सिद्धांतों पर अपने विचार व्यक्त किए हैं जो बहुत ही उपयोगी तथा मूल्यवान हैं पाठ्यक्रम निर्माण संबंधित सिद्धांत - उपयोगिता का सिद्धांत रुचि का सिद्धांत अनुभव केंद्रित सिद्धांत क्रिया केंद्रित सिद्धांत एकीकरण का सिद्धांत विविधता का सिद्धांत

शिक्षण विधि शिक्षण सिद्धांतों तथा शिक्षण विधियों के क्षेत्र में प्रयोजनवाद की महत्वपूर्ण दिन है प्रयोजनवाद किसी रूढ़िवादी परंपरागत निष्क्रिय शिक्षण पद्धति का समर्थन नहीं करता अपितु नवीनतम मनोवैज्ञानिक शिक्षण विधियों के सृजन एवं उपयोग को महत्व देता है सीखने की उद्देश्य पूर्ण प्रक्रिया का सिद्धांत क्रिया या अनुभव द्वारा सीखने का सिद्धांत एकीकरण का सिद्धांत बाल केंद्रित सिद्धांत सामूहिक क्रिया का सिद्धांत प्रयोजनवाद की एक महत्वपूर्ण शिक्षण विधि प्रोजेक्ट / योजना विधि है इसे समस्या समाधान विधि भी कहते हैं ।

शिक्षक :- प्रयोजनवाद शिक्षक को नवीन आदर्श अमूल्य शक्तियों का निर्माण करने वाला आदतन ज्ञान विज्ञान से यज्ञ अनुभव शील क्रियाशील और परिसर में होने पर बल देता है प्रयोजनवाद का मानना है कि शिक्षक को सदैव प्रयोग करते रहना चाहिए और उसी के अनुरूप अपने शिक्षण विधि व पाठ्यक्रम में सुधार करते रहना चाहिए । शिक्षार्थी :- प्रयोजनवाद शिक्षार्थी को नए मूल्यों का निर्माणकर्ता , क्रिया करने वाला , दूरदर्शी सृजनात्मकता एवं प्रयोगवादी होने पर बल देता है । इस विचारधारा में भी विद्यार्थी को केंद्रीय स्थान दिया गया है । प्रयोजनवाद में विद्यार्थी की प्रकृति सामाजिक प्राणी मानते हैं प्रयोजनवाद में छात्रों को कक्षा में निष्क्रिय होकर नहीं बैठना चाहिए बल्कि सक्रिय रूप से ज्ञान प्राप्ति के लिए सजग रहना चाहिए ।

विद्यालय :- प्रयोजनवादी शिक्षा को सामाजिक प्रक्रिया मानते हैं । उनका स्पष्ट मत है कि शिक्षा ही समाज को नया रूप देती है । अतः ये शिक्षा संस्था को सामाजिक संस्था मानते हैं । विद्यालय समाज का लघु रूप है । विद्यालय समाज का सच्चा प्रतिनिधि है । विद्यालय समाज की प्रयोगशाला है । विद्यालय समुदाय का केंद्र है । विद्यालय कार्यशील नागरिकों के जीवन का स्थल है । अनुशासन :- प्रयोजनवादी विचारक बाहरी अनुशासन , शिक्षक के श्रेष्ठ अधिकार और शारीरिक दंड की निंदा करते हैं । वह कठोर दमनात्मक अनुशासन व प्रभावात्मक अनुशासन की अवधारणा को स्वीकार नहीं करते हैं । इन सबसे वे हटकर सामाजिक अनुशासन का समर्थन करते हैं जो सामाजिक समझदारी पर आधारित होना चाहिए ।

उपादेयता :- आधुनिक शिक्षा के स्वरूप निर्धारण में प्रयोजनवाद की महत्वपूर्ण भूमिका और योगदान है जो निम्नलिखित हैं - कक्षा गत परिस्थितियों में छात्रों की सक्रिय भागीदारी पर बल देना । करके सीखना ( क्रिया विधि ) को महत्वपूर्ण विधि के रूप में अपनाने पर बल देना । व्यवसायिक शिक्षा और विज्ञान शिक्षा को प्रोत्साहित करना । योजना विधि का शिक्षा में अनुप्रयोग । समाजोपयोगी शिक्षा की अवधारणा का विकास ।

धन्यवाद मार्गदर्शन मे :- प्रियंका मैंम ( प्रवक्ता ) जिला शिक्षा एवम् प्रशिक्षण संस्थान विवेकनगर सुल्तानपुर उत्तर प्रदेश प्रस्तुतकर्ता :- छोटू ( प्रशिक्षु ) डी एल एड (2021) सेमेस्टर – द्वितीय सेक्शन - डी रोल नंबर - 47 पंजीकरण संख्या - 2186049205