पल्लवन

ssmvjunwani 954 views 19 slides Oct 02, 2020
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About This Presentation

PPT for students of BSc/BA/BCom-I Year and also for those preparing for competitive exams.


Slide Content

आधार पाठ्यक्रम - हिंदी भाषा पल्लवन द्वारा डॉं.अर्चना झा विभागाध्यक्ष श्री शंकराचार्य महाविद्यालय जुनवानी भिलाई (छ.ग .)

विचार-विमर्श Discussion Points पल्लवन का अर्थ पल्लवन की परिभाषा पल्लवन का अन्य रचना रूपो में अंतर कुशल विस्तारक के गुण पल्लवन के कुछ सामान्य नियम पल्लवन के विभिन्न उदाहरण

https:// www.youtube.com/watch?v=w77zPAtVTuI पल्लव का अर्थ : नया एवं कोमल पत्ता

पल्लवन का अर्थ पल्लव का अर्थ : नया एवं कोमल पत्ता पल्लवन का अर्थ : विकास करना, बढ़ाना बीज से वृक्ष बनने की सहज प्रक्रिया है । पल्लवन का अर्थ है- 'किसी भाव का विस्तार करना'। पल्लवन एक ऐसी लघु रचना को कहा जाता है जिसमें किसी सूत्र , काव्य - पंक्ति , कहावत अथवा लोकोक्ति के मुख्य भाव को विस्तार रूप दिया जाता हैं।  

पल्लवन की परिभाषा डॉ वासुदेव नंदन प्रसाद किसी सुगठित एवं गुम्फित विचार अथवा भाव के विस्तार को 'पल्लवन' कहते है । प्रोफेसर राजेंद्र प्रसाद सिंह पल्लवन का अर्थ होता है - पल्लव उत्पन्न करना अर्थात विषय का विस्तार करना । किसी निर्धारित विषय जैसे सूत्र-वाक्य, उक्ति या विवेच्य-बिन्दु को उदाहरण, तर्क आदि से पुष्ट करते हुए प्रवाहमयी, सहज अभिव्यक्ति-शैली में मौलिक, सारगर्भित विस्तार देना  पल्लवन   कहलाता है। इसे विस्तारण, भाव-विस्तारण, भाव-पल्लवन आदि भी कहा जाता है।

व्याख्या   स्पष्टीकरण भावार्थ अनुच्छेद   लेखन   आश्य अन्य रचना रूप में अंतर

स्पष्टीकरण पल्लवन दोनों में विस्तार मूलाधार है स्पष्टीकरण मुख्य रूप से अवतरण में आई दुरूह पंक्तियों का या क्लिष्ट वाक्यों का किया जाता है । पल्लवन मे अर्थ की दुरुहता सुलझाने का उपक्रम मुख्य नहीं होता अपितु मुख्य होता है दिए गए संदर्भ के केंद्र बिंदु या भाव का प्रसार करना है । उनमें जो दुरूहता अग्मयता और दुर्बोधता है , उसे विश्लेषण , व्याख्या उपमान , दृष्टांत़ो द्वारा स्पष्ट किया जाता है । पल्लवन मे उसके सभी मार्मिक पहलुओं का उद्घाटन किया जाता है । अंतर

व्याख्या पल्लवन इन दोनों का भी मूलाधार विस्तार है व्याख्या में किसी गद्यांश और पद्यांश की पंक्तियों की सभी विशेषताओं को इस प्रकार उद्घाटित किया जाता है कि उस में अभिव्यक्त विचार स्पष्ट और प्रांजल रूप में पाठक के सामने उपस्थित हो जाते हैं । पल्लवन में हम किसी गद्यांश पद्यांश की विशेषताओं या सौष्ठव का उद्घाटन नहीं करते अपितु वाक्य के मूल भाव का ही पल्लवन उसका विषय क्षेत्र है । व्याख्या का कार्य किसी गद्यांश या पद्यांश का भाव पल्लवन करना है । पल्लवन का कार्य किसी गद्यांश या पद्यांश का भाव पल्लवन करना नहीं है । व्याख्या में प्रसंग निर्देश और विवेचित विषय की अनुकूल - प्रतिकूल समीक्षा भी हो सकती है । पर पल्लवन में इसका प्रश्न ही नहीं उठता । अंतर

भावार्थ पल्लवन इन दोनों के आकार - प्रकार के संबंध में कोई सीमा रेखा निश्चित नहीं की जा सकती भावार्थ के लिए किसी अवतरण या अपेक्षा बड़ी रचना की आवश्यकता है पल्लवन के लिए वाक्य मात्र यथेष्ट है भावार्थ में समस्त अवतरण के भाव को स्पष्ट करना उद्देश रहता है जबकि पल्लवन में मूल भाव का संयुक्तिक विस्तार अपेक्षित है । अंतर

आश्य पल्लवन आश्य में लेखक का ध्यान स्पष्टता पर रहता है । पल्लवन का उद्देश्य मूल भाव को स्पष्ट करना होता है । यदि मूल छोटा है तो आशय उस से बड़ा हो सकता है । यदि मूल बड़ा है तो आश्य छोटा हो सकता है आश्य की आधार सीमा निश्चित नहीं हो सकती । पल्लवन तो हर स्थिति में मूल से बड़ा ही होता है । अंतर अनुच्छेद लेखन पल्लवन अनुच्छेद किसी भी रचना का एक भाग होता है जबकि पल्लवन प्राय : प्रसिद्ध सूत्र,मुहावरे,लोकोक्ति , काव्य पंक्ति आदि का किया जाता है

कुशल विस्तारक के गुण मेधावी होना व्याख्या शक्तिसंपन्न होना भाषाधिकार गहन अध्ययनशीलता सूक्ष्म निरीक्षण दृष्टि तार्किकता तटस्थता

पल्लवन के कुछ सामान्य नियम पल्लवन के लिए मूल अवतरण के वाक्य, सूक्ति, लोकोक्ति अथवा कहावत को ध्यानपूर्वक पढ़िए, ताकि मूल के सम्पूर्ण भाव अच्छी तरह समझ में आ जायँ । ( 2) मूल विचार अथवा भाव के नीचे दबे अन्य सहायक विचारों को समझने की चेष्टा कीजिए। 3) मूल और गौण विचारों को समझ लेने के बाद एक-एक कर सभी निहित विचारों को एक-एक अनुच्छेद में लिखना आरम्भ कीजिए, ताकि कोई भी भाव अथवा विचार छूटने न पाय। ( 4) अर्थ अथवा विचार का विस्तार करते समय उसकी पुष्टि में जहाँ-तहाँ ऊपर से कुछ उदाहरण और तथ्य भी दिये जा सकते हैं।

5 ) भाव और भाषा की अभिव्यक्ति में पूरी स्पष्टता , मौलिकता और सरलता होनी चाहिए । वाक्य छोटे-छोटे और भाषा अत्यन्त सरल होनी चाहिए । अलंकृत भाषा लिखने की चेष्टा न करना ही श्रेयस्कर है । (6) पल्लवन के लेखन में अप्रासंगिक बातों का अनावश्यक विस्तार या उल्लेख बिलकुल नहीं होना चाहिए । (7) पल्लवन में लेखक को मूल तथा गौण भाव या विचार की टीका-टिप्पणी और आलोचना नहीं करनी चाहिए । इसमें मूल लेखक के मनोभावों का ही विस्तार और विश्लेषण होना चाहिए । (8) पल्लवन की रचना हर हालत में अन्यपुरुष में होनी चाहिए । (9) पल्लवन व्यासशैली की होनी चाहिए , समासशैली की नहीं । अतः इसमें बातों को विस्तार से लिखने का अभ्यास किया जाना चाहिए ।

पल्लवन का शब्दिक अर्थ है-विस्तार , फैलावा पल्लवन वाक्यों के उस समूह को कहते हैं , जिसमें किसी एक विषय के मुख्य विचार या सिद्धांत को तर्क एंव उदाहरण द्वारा विस्तृत रूप दिया जाता है और तर्को का प्रयोग करते हुए कथ्य को स्पष्ट किया जाता है।    पल्लवन प्रायः किसी सूत्र , मुहावरे , लोकोक्ति , काव्य पंक्ति आदि का ही किया जाता हैं। किसी विचार को भाव को अपनी बौद्धिक क्षमता और ज्ञान से पल्लवित किया जाना ही पल्लवन हैं।      निष्कर्ष

पल्लवन के विभिन्न उदाहरण 1 प्रकृति परिवर्तनशील है / सबै दिन होत न एक समान 2 साहित्य समाज का दर्पण है / कवि अपने युग का प्रतिनिधि होता है 3 एक एक दो ग्यारह / संगठन ही शक्ति है 4 पर उपदेश कुशल बहुतेरे 5 आत्मनिर्भरता ही देश की सच्ची स्वाधीनता है 6 आत्मविश्वास सफलता का पहला रहस्य है 7 मन के हारे हार है मन के जीते जीत 8 किसान देश की रीढ़ 9 विपत्तियां मनुष्य की सर्वश्रेष्ठ गुरु है 10 अधजल गगरी छलकत जाए

11 का वर्षा जब कृषि सुखानी 12 तेते पांव पसारिए जेती लांबी सौर 13 चंदन विष व्यापत नहीं लिपटे रहत भुजंग 14 निंदक नियरे राखिए आंगन कुटी छवाय 15 जहां सुमति तहां संपत्ति नाना 16 जैसी बहै बयार पीठ तब तैसी दीजे 17 तरुण भविष्य को वर्तमान में लाना चाहते हैं और वृद्ध अतीत को खींचकर वर्तमान में देखना चाहते हैं 18 स्वावलंबन की झलक पर न्योछावर कुबेर का कोष 19 वृद्ध मनुष्य के अनुभव जीवन की खुली पुस्तक के समान है 20 पुरुषार्थ ही जीवन है

21 बैर क्रोध का अचार या मुरब्बा है / क्रोध एक तरह का पागलपन है 22 तुच्छ मनुष्य केवल अतीत का स्वामी है 23 अज्ञान चाहे अपना हो, चाहे पराया सब दिन रक्षा नहीं कर सकता / अज्ञान अंधकार स्वरूप है 24 वीर ह्रदय युद्ध का नाम सुनकर नाच उठता है 25 गांधी टोपी की उमंग और है, गांधीत्व की गंध और।

संदर्भ ग्रंथ 1 भारतीयता के अमर स्वर - प्रोफेसर धनंजय वर्मा 2 हिंदी व्याकरण: कामता प्रसाद गुरु 3 आधुनिक हिन्दी व्याकरण और रचना:डॉ वासुदेव नंदन प्रसाद 4 सामान्य हिंदी: डॉ हरदेव बाहरी 5 http ://hindigrammar.in/pllvan.html 6 http ://mpexamsprep.blogspot.com/2018/05/blog-post.html