मानव विकास के सिद्धांत (Principles of human development in Hindi)
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Added: Dec 15, 2018
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मानव विकास के सिद्धांत डॉ राजेश वर्मा असिस्टेंट प्रोफेसर ( मनोविज्ञान ) राजकीय महाविद्यालय आदमपुर, हिसार, हरियाणा
परिचय विकास , प्रत्येक इंसान में अभिव्यक्ति के आधार पर एक अद्वितीय मनो-जैविक घटना होती है जिसमे इस की प्रक्रिया एक समान होती है। यह प्रक्रिया व्यवस्थित , अनुक्रमिक और तार्किक होती है जो एक अंतर्निहित स्वरूप पर आधारित होती है । इन अंतर्निहित स्वरूपों को ‘ मानव विकास के सिद्धांत ’ कहा जाता है। ये सिद्धांत हमें विकास की प्रक्रिया की एक निश्चित डिग्री तक भविष्यवाणी करने में मदद करते हैं ।
विकास तीन सार्वभौमिक जैविक और 9 सामान्य सिद्धांतों का पालन करता है । जैविक सिद्धांत : 1. शिर : पदाभिमुख 2. समीप - दूराभिमुख एवं 3. ऑर्थोजैनेटिक
सामान्य सिद्धांत : 1. निरंतरता का सिद्धांत, 2. विकास की दर में समानता की कमी का सिद्धांत, 3. व्यक्तिगत भिन्नताओं का सिद्धांत, 4. स्वरूप की एकरूपता का सिद्धांत, 5. सामान्य से विशिष्ट प्रतिक्रियाओं की और बढ़ने का सिद्धांत, 6. एकीकरण का सिद्धांत, 7. पारस्परिक संबंधों का सिद्धांत, 8. अंतःक्रिया का सिद्धांत, और 9. पूर्वानुमान का सिद्धांत।
जैविक सिद्धांत
1 . शिर: पदाभिमुख ( सिफैलोकौडल ) – इसका अर्थ है 'सिर से पैर तक'। सेफलिक का अर्थ है ‘ सिर क्षेत्र ’ जबकि कौडल का अर्थ है ‘ पूंछ क्षेत्र ’ । सिर ( मुख्य तंत्रिका तंत्र का क्षेत्र ) के पास के क्षेत्र का विकास शरीर के दूसरे क्षेत्रों के विकास से पहले होना शिर: पदाभिमुख विकास कहलाता है। शिशु का सिर उसके शरीर के अनुपात में बड़ा होता है जिसके कारण वह पैरों से पहले हाथों का इस्तेमाल करना सीखता है । शिर: पदाभिमुख विकास यह इंगित करता है कि प्रसवपूर्व अवधि (गर्भधारण से ५ महीने तक) के दौरान सिर बाकि शरीर से पहले विकसित होता है। Courtesy: www.nursingdaddy.com /
2. समीप-दूराभिमुख ( प्रॉक्सीमोडिस्टल ) – प्रॉक्सीमो का अर्थ है 'समीप या पास' और डिस्टल का 'दूर'। जन्मपूर्व 5 महीने से लेकर जन्म - तक भ्रूण के शरीर का विकास 'अंदर ' से ‘ बाहर ’ की और होने की प्रक्रिया को ‘ समीप-दूराभिमुख ’ वि का स कहते हैं। यह उस विकास को संदर्भित करता है जो शरीर के केंद्र से निकलकर बाहरी सीमाओं की तरफ अग्रसर होता है ।
3. ऑर्थोजैनेटिक – इसे प्रगतिशील क्रमविकास के रूप में भी जाना जाता है। कार्य करने के सभी पहलुओं का विकास (ज्ञान, प्रत्यक्षण , धारणा इत्यादि ) जैसे विशेषज्ञता प्राप्त करने की कमी से विशेषज्ञता प्राप्त करने , पदानुक्रमिक एकीकरण तथा स्पष्ट उच्चारण में वृद्धि को ऑर्थो जेनेटिक विकास कहा जाता है (हेनज़ वर्नर, 1975 ) । जटिल कौशल से पहले सरल कौशल का विकास ऑर्थोजेनेटिक विकास का एक प्रकार होता है।
सामान्य सिद्धांत
सामान्य सिद्धांत: 1. निरंतरता का सिद्धांत – इसका अर्थ है कि विकास जीवन चक्र के माध्यम से निरंतर होता रहता है । यह मानव के दोनों अनुक्षेत्रों (मनोवैज्ञानिक और शारीरिक) में क्रमिक और निरंतर परिवर्तन की प्रक्रिया होती है। 2. विकास की दर में समानता की कमी का सिद्धांत – हालांकि विकास निरंतर चलने वाली प्रक्रिया होती है लेकिन संज्ञानात्मक, शारीरिक और जीवन कि अवस्थाओं में इसकी दर में समानता नहीं होती। उदाहरण के लिए दो बच्चों की लम्बाई अलग-अलग दर से बढ़ सकती है, संवेगों के मामले में भी यही हाल होता है। 3. व्यक्तिगत भिन्नताओं का सिद्धांत – प्रत्येक इंसान की अनुवांशिक संरचना अद्वितीय और अनन्य होती है , इसलिए विकास सभी आयामों में तदनुसार विशिष्ट होता है ।
4. स्वरूप की एकरूपता का सिद्धांत – विकास का स्वरूप समरूप और सार्वभौमिक होता है। संज्ञानात्मक क्षमताओं का विकास, भाषा विकास, चलना सीखना आदि विशिष्ट दर और अभिव्यक्ति के साथ एक निश्चित और समान स्वरूप में विकसित होता है । 5 . सामान्य से विशिष्ट प्रतिक्रियाओं की और बढ़ने का सिद्धांत – इस सिद्धांत के अनुसार शुरुआत में बच्चा सामान्य प्रतिक्रिया देता है और फिर धीरे-धीरे विशिष्ट प्रतिक्रियाओं को करना सीखता है। उदाहरण के लिए, बाय - बाय करते वक्त शुरुआत में बच्चा पूरे हाथ को हिलाता है और फिर केवल हथेली को लहराना सीख जाता है, भाषा के सन्दर्भ में भी ऐसा ही होता है जहां वह सभी व्यक्तियों को माँ और पिताजी आदि से संबोधित करता है।
6. एकीकरण का सिद्धांत – विकास संपूर्ण ता से विशिष्ट ता और विशिष्टता से सम्पूर्ण ता ( कुप्पुस्वामी, 1963 ) में होता है जिसका अर्थ है कि यह शरीर के सभी हिस्सों और अंगों का एक एकीकृत प्रयास होता है। 7 . पारस्परिक संबंधों का सिद्धांत – एक प्रसिद्ध कहावत है की " स्वस्थ मन स्वस्थ शरीर में रहता है ", जो यह इंगित करती है कि एक अंग का विकास प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से शरीर के अन्य अंगों के विकास से संबंधित होता है । उदाहरण के लिए कम विकसित मस्तिष्क के कारण भावनात्मक और बौद्धिक प्रतिक्रियाओं में भी कमी पाई जाती है। 8 . अंतःक्रिया का सिद्धांत – आंतरिक और बाहरी प्रभावों की सक्रिय अंतःक्रिया के परिणामस्वरूप विकास सकारात्मक रूप से प्रभावित होता है। उदाहरण के लिए " प्रकृति बनाम पोषण " संप्रत्यय विकास में जीन और मनो-सामाजिक वातावरण की महत्वपूर्ण भूमिका को दर्शाता है।
9. पूर्वानुमान का सिद्धांत – जैसे कि हमने चर्चा की है कि विकास स्वरूप और निरंतरता के समानता के सिद्धांत का पालन करता है जो यह दर्शाता है कि इसके अनुक्रम की भविष्यवाणी की जा सकती है। उदाहरण के लिए 'बाबीन्सकी ' नवजात शिशुओं में पाये जाने वाली एक अनैच्छिक क्रिया होती है जो 8 से 12 महीने की उम्र में स्वतः ही समाप्त हो जाती है।
References: (i) NCERT , XI Psychology Text Book. (ii) Mangal , S. K. (2017). Advanced Educational Psychology, 2 nd ed. Delhi: PHI Learning. ( iii) http:// www.psychologydiscussion.net/educational-psychology/principles-of-human-growth-and-development/1813 ( iv) https:// study.com/academy/lesson/principles-of-growth-and-development.html. (v) http:// www.shareyouressays.com/knowledge/12-main-principles-of-growth-and-development-of-children/116600. (vi) https://dictionary.apa.org/orthogenetic-principle