सबआपहीहंैऔरइससेिभन्नभीआपहीहंै।अपने-परायेकाभेदभाव तोअथर्हीनशब्दोंकीमायाहै,क्योंिक
िजसस ेिजसकाजन्म,िस्थित,लयऔरपर्काशहोताहै,वहउसकास्वरूपहीहोताहै।जैसे,बीजऔरवृक्षकारण
और कायर् की दृिष्ट स े िभन्न-िभन्न ह ंै, तो भी ग ंध-तन्मातर् की दृिष्ट स े दोनों एक ही ह ंै।अनुकर्म
भगवन ्!आपइससम्पूणर्िवश्वकोस्वयंहीअपनेमंेसमेटकरआत्मस ुखकाअनुभवकरतेहुएिनिष्कर्यहोकर
पर्लयकालीनजलमंेशयनकरतेहंै।उससमयअपनेस्वयंिसद्धयोगकेद्वाराबाह्यदृिष्टकोबंदकरआपअपने
स्वरूपकेपर्काशमंेिनदर्ाकोिवलीनकरलेतेहंैऔरतुरीयबर्ह्मपदमंेिस्थतरहतेहंै।उससमयआपनतो
तमोगुणसेहीयुक्तहोतेऔरनतोिवषयोंकोहीस्वीकारकरतेहंै।आपअपनीकालशिक्तसेपर्कृितकेगुणोंको
पर्ेिरतकरतेहंै,इसिलएयहबर्ह्माण्डआपकाहीशरीरहै।पहलेयहआपमंेहीलीनथा।जबपर्लयकालीनजलके
भीतरशेषशय्या परशयनकरनेवालेआपनेयोगिनदर्ाकीसमािधत्यागदी,तबवटकेबीजिवशालवृक्षकेसमान
आपकीनािभसेबर्ह्माण्डकमलउत्पन्नहुआ।उसपरसूक्ष्मदशीर्बर्ह्माजीपर्कटहुए।जबउन्हंेकमलकेिसवाऔर
कुछभीिदखायीनपड़ा,तबवहअपनेबीजरूपसेव्याप्तआपकोवेनजानसकेऔरआपकोअपनेसेबाहर
समझकरजलकेभीतरघुसकर सौवषर्तकढँूढतेरहे।परंतुवहाँउन्हंेकुछनहींिमला।यहठीकहीहै,क्योंिक
अंकुरउगआनेपरउसमंेव्याप्तबीजकोकोईबाहरअलगकैसेदेखसकताहै।बर्ह्माजीकोबड़ाआश्चयर्हुआ।वे
हारकरकमलपरबैठगये।बहुतसमयबीतनेपरजबउनकाहृदयशुद्धहोगया,तबउन्हंेभूत,इिन्दर्यऔर
अंतःकरण रूपअपनेशरीरमंेहीओतपर्ोतरूपसेिस्थतआपकेसूक्ष्मरूप कासाक्षात्कारहुआ।ठीकवैसेहीजैसे
पृथ्वी म ंे व्याप्त उसकी स ूक्ष्म तन्मातर्ा गन्ध का होता ह ै।
िवराटपुरुषसहसर्ोंमुख,चरण,िसर,हाथ,जंघा,नािसका,मुख,कान,नेतर्,आभूषणऔरआयुधोंसेसम्पन्नथा।
चौदहलोकउनकेिविभन्नअंगोंकेरूपमंेशोभायमानथे।वहभगवानकीएकलीलामयीमूितर्थी।उसेदेखकर
बर्ह्माजीकोबड़ाआनंदहुआ।रजोगुणऔरतमोगुणरूपमधुऔरकैटभनामकेदोबड़ेबलवानदैत्यथे।जबवे
वेदोंकोचुराकर लेगये,तबआपनेहयगर्ीवअवतारगर्हणिकयाऔरउनदोनोंकोमारकरसत्त्वगुणरूप शर्ुितयाँ
बर्ह्माजीकोलौटादीं।वहसत्त्वगुणहीआपकाअत्यंतिपर्यशरीरहै–महात्मालोगइसपर्कारवणर्नकरतेहंै।
पुरुषोत्तम !इसपर्कारआपमनुष्य,पशु-पक्षी, ऋिष,देवताऔरमत्स्यआिदअवतारलेकरलोकोंकापालनिकया
तथािवश्वकेदर्ोिहयो ंकासंहारकरतेहंै।इनअवतारो ंकेद्वाराआपपर्त्येकयुगमंेउसकेधमोर्ंकीरक्षाकरतेहंै।
किलय ुग मंे आप िछपकर ग ुप्त रूप स े ही रहत े हंै, इसीिलए आपका एक नाम 'ितर्युग'भी है।
वैकुण्ठनाथ !मेरेमनकीबड़ीदुदर्शाहै।वहपाप-वासनाओ ंसेतोकलुिषतहैही,स्वयंभीअत्यंतदुष्टहै।वहपर्ायः
हीकामनाओ ंकेकारणआतुररहताहैऔरहषर्-शोक,भय,लोक-परलोक,धन,पत्नी,पुतर्आिदकीिचंताओंसे
व्याकुलरहताहै।इसेआपकीलीला-कथाओ ंमंेतोरसहीनहींिमलता।इसकेमारेमंैदीनहोरहाहँू।ऐसेमनसे
मंैआपकेस्वरूपकािचंतनकैसेकरूँ?अच्युत!यहकभीनअघानेवालीजीभमुझेस्वािदष्टरसोंकीओरखींचती
रहतीहै।जननेिन्दर्य सुन्दरस्तर्ीकीओर,त्वचासुकोमल, स्पशर्कीओर,पेटभोजनकी,कानमधुरअनुकर्म
संगीतकीओर,नािसकाभीनी-भीनीसुगंधकीओर,औरयेचपलनेतर्सौन्दयर्कीओरमुझेखींचतेरहतेहंै।इनके
िसवाकमर्ेिन्दर्याँभीअपने-अपनेिवषयोंकीओरलेजानेकेिलएजोरलगातीहीरहतीहंै।मेरीतोवहदशाहोरही
है,जैसेिकसीपुरुषकीबहुतसीपित्नया ँउसेअपने-अपनेशयनग ृहमंेलेजानेसेिलएचारोंओरसेघसीटरहीहों।
इसपर्कारयहजीवअपनेकमोर्ंकेबंधनमंेपड़करइससंसाररूपवैतरणी नदीमंेिगराहुआहै।जन्मसेमृत्यु,
मृत्युसेजन्मऔरदोनोंकेद्वाराकमर्भोगकरते-करतेयहभयभीतगयाहै।यहअपनाहै,यहपरायाहै–इस
पर्कारकेभेदभाव सेयुक्तहोकरिकसीसेिमतर्ताकरताहैतोिकसीसेशतर्ुता।आपइसमूढ़जीव-जाितकीयह
दुदर्शादेखकर करूणासेदर्िवतहोजाइये।इसभवनदीसेसवर्दापाररहनेवालेभगवन ्!इनपर्ािणयो ंकोभीअब
पारलगादीिजय े।जगदग ुरो!आपइससृिष्टकीउत्पित्त,िस्थिततथापालनकरनेवालेहंै।ऐसीअवस्थामंेइन
जीवोंकोइसभवनदीसेपारउतारदेनेमंेआपकोक्यापिरशर्महै?दीनजनो ंकेपरमिहतैषीपर्भो!भूले-भटकेमूढ़
हीमहानपुरुषोंकेिवशेषअनुगर्हपातर्होतेहंै।हमंेउसकीकोईआवश्यकतानहींहैक्योंिकहमआपकेिपर्यजनो ंकी
सेवामंेलगेरहतेहंै,इसिलएपारजानेकीहमंेकभीिचंताहीनहींहोती।परमात्मन ्!इसभव-वैतरणी सेपार
उतरनादूसरेलोगोंकेिलएअवश्यहीकिठनहै,परंतुमुझेतोइससेतिनकभीभयनहींहै।क्योंिकमेरािचत्तइस
वैतरणी मंेनहीं,आपकीउनलीलाओ ंकेगानमंेमग्नरहताहै,जोस्वगीर्यअमृतकोभीितरस्क ृतकरनेवाली,
परमअमृतस्वरूप हंै।मंैउनमूढ़पर्ािणयो ंकेिलएशोककररहाहँू,जोआपकेगुणगान सेिवमुखरहकरइिन्दर्यो ं
केिवषयोंकामायामयझूठासुखपर्ाप्तकरनेकेिलएअपनेिसरपरसारेसंसारकाभारढोतेरहतेहंै।मेरेस्वामी!
बड़े-बड़ेऋिष-म ुिनतोपर्ायःअपनीमुिक्तकेिलएिनजर्नवनमंेजाकरमौनवर्तधारणकरलेतेहंै।वेदूसरोंकी
भलाईकेिलएकोईिवशेषपर्यत्ननहींकरतेपरंतुमेरीदशातोदूसरीहीहोरहीहै।मंैइनभूलेहुएअसहायगरीबों
कोछोड़करअकेलामुक्तहोनानहींचाहताऔरइनभटकत ेहुएपर्ािणयो ंकेिलएआपकेिसवाऔरकोईसहाराभी
नहीं िदखाया पड़ता।
घरमंेफँसेहुएलोगोंकोजोमैथुनआिदकासुखिमलताहै,वहअत्यंततुच्छएवंदुःखरूप हीहै।जैसे,कोईदोनों
हाथोंसेखुजलारहाहोतोउसखुजलीमंेपहलेउसेकुछथोड़ा-सासुखमालूमपड़ताहै,परंतुपीछेदुःख-ही-द ुःख
होताहै।िकंतुयेभूलेहुएअज्ञानीमनुष्यबहुतदुःखभोगनेपरभीइनिवषयोंसेअघातेनहीं।इसकेिवपरीतधीर
पुरुषजैसेखुजलाहट कोसहलेतेहंै,वैसेहीकामािदवेगोंकोभीसहलेतेहंै।सहनेसेहीउनकानाशहोताहै।
पुरुषोत्तम !मोक्षकेदससाधनपर्िसद्धहंै–मौन,बर्ह्मचयर्,शास्तर्-शर्वण,तपस्या,स्वाध्याय,स्वधमर्पालन,युिक्तयोंसे