Sri narayan stuti

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About This Presentation

श्रीमद्भागवत् महापुराण में विभिन्न पात्रों द्वारा श्रीभगवान की स्तुति का दुर्लभ संग्रह


Slide Content

अनुकर्म
शर्ीमद् भागवत महाप ुराणांतगर्त
शर्ी नारायण स्त ुित

िनवेदन
'शर्ीमद् भागवत 'के नवम स्कन्ध म ंे भगवान स्वय ं कहते हंै-
साध्वो हृदय ं मह्यं साधूनां हृदयं त्वहम ्।
मदन्यत ् ते न जानिन्त नाह ं तेभ्यो मनागिप।।
अथार्त्मेरेपर्ेमीभक्ततोमेराहृदयहंैऔरउनपर्ेमीभक्तोंकाहृदयस्वयंमंैहँू।वेमेरेअितिरक्तऔरकुछनहीं
जानते तथा म ंै उनक े अितिरक्त और क ुछ भी नही ं जानता।
पुराणिशरोमिण 'शर्ीमद्भागवत'बर्ह्माजी,देवताओ ं,शुकदेवजी, िशवजी,सनकािदमुिनयों,देविषर्नारद,वृतर्ासुर,
दैत्यराज बिल,भीष्मिपतामह,माताकुन्ती,भक्तपर्ह्लाद,धर्ुव,अकर्ूरआिदकईपर्भुपर्ेमीभक्तोंद्वाराशर्ीनारायण
भगवानकीकीगयीस्तुितयोंकामहानभण्डारहै।पर्स्तुतपुस्तक धर्ुव,पर्ह्लाद,अकर्ूरआिदकुछउत्तमपरम
भागवतो ंकीस्तुितयोंकासंकलन है,िजसक ेशर्वण,पठनएवंमननसेआप-हमहमाराहृदयपावनकरंे,िवषयरस
कानहींअिपतुभगवदरसकाआस्वादनकरे,भगवानकेिदव्यगुणोंकोअपनेजीवनमंेउतारकरअपनाजीवन
उन्नतबनायंे।भगवानकीअनुपममिहमाऔरपरमअनुगर्हकाध्यानकरकेइनभक्तोंकोजोआश्वासनिमलाहै,
सच्चामाधुयर्एवंसच्चीशांितिमलीहै,जीवनकासच्चामागर्िमलाहै,वहआपकोभीिमलेइसीसत्पर्ाथर्नाके
साथ इस प ुस्तक को करकमलो ं मंे पर्दान करत े हुए सिमित आन ंद का अन ुभव करती ह ै।
हे साधक ब ंधुओ!इस पर्काशन क े िवषय म ंे आपस े पर्ितिकर्याए ँ स्वीकायर् ह ंै।
शर्ी योग व ेदान्त स ेवा सिमित,
अमदावाद आशर्म।
अनुकर्म
व्यासजी द्वारा म ंगल स्त ुित।
कुन्ती द्वारा स्त ुित।
शुकदेव जी द्वारा स्त ुित।
बर्ह्माजी द्वारा स्त ुित।
देवताओ ं द्वारा स्त ुित।
धर्ुव द्वारा स्त ुित।
महाराज प ृथु द्वारा स्त ुित।
रूदर् द्वारा स्त ुित।
पर्ह्लाद द्वारा स्त ुित।
गजेन्दर् द्वारा स्त ुित।
अकर्ूरजी द्वारा स्त ुित।
नारदजी द्वारा स्त ुित।
दक्ष पर्जापित द्वारा स्त ुित।
देवताओ ं द्वारा गभर्-स्त ुित।
वेदों द्वारा स्त ुित।
चतुःश्लोकी भागवत।
पर्ाथर्ना का पर्भाव।
व्यासजी द्वारा म ंगल स्त ुित
भगवानसवर्ज्ञ,सवर्शिक्तमानएवंसिच्चदान ंदस्वरूप हंै।एकमातर्वेहीसमस्तपर्ािणयो ंकेहृदयमंेिवराजमानआत्मा
हंै।उनकीलीलाअमोघहै।उनकीशिक्तऔरपराकर्मअनन्नहै।महिषर्व्यासजीने'शर्ीमद्भागवत'केमाहात्म्य
तथापर्थमस्कंधकेपर्थमअध्यायकेपर्ारम्भमंेमंगलाचरण केरुपमंेभगवानशर्ीकृष्णकीस्तुितइसपर्कारसे
की हैः
सिच्चदान ंदरूपाय िवश्वोत्पत्यािदह ेतवे।
तापतर्यिवनाशाय शर्ीक ृष्णाय वय ं नुमः।।
'सिच्चदान ंदभगवानशर्ीकृष्णकोहमनमस्कारकरतेहंै,जोजगतकीउत्पित्त,िस्थितएवंपर्लयकेहेतुतथा
आध्याित्मक, आिधद ैिवक और आिधभौितक – इन तीनो ं पर्कार क े तापों का नाश करन े वाले हंै।'
(शर्ीमद ् भागवत मा. 1.1)
जन्माद्यस्य यतोऽन्वयािदतरतश्चाथर् ेष्विभज्ञः स्वराट ्
तेने बर्ह्म हृदा य आिदकवय े मुह्यिन्त यत्स ूरयः।
तेजोवािरम ृदां यथा िविनमयो यतर् ितर्सगोर्ऽम ृषा

धाम्ना स्व ेन सदा िनरस्तक ुहकं सत्यं परं धीमिह।।
'िजसस ेइसजगतकासजर्न,पोषणएवंिवसजर्नहोताहैक्योंिकवहसभीसत्रूपपदाथोर्ंमंेअनुगतहैऔर
असत्पदाथोर्ंसेपृथकहै;जड़नहीं,चेतनहै;परतंतर्नहीं,स्वयंपर्काशहै;जोबर्ह्माअथवािहरण्यगभर्नहीं,पर्त्युत
उन्हंेअपनेसंकल्प सेहीिजसन ेउसवेदज्ञान कादानिकयाहै;िजसक ेसम्बन्धमंेबड़े-बड़ेिवद्वानभीमोिहतहो
जातेहंै;जैसेतेजोमय सूयर्रिश्मयो ंमंेजलका,जलमंेस्थलकाऔरस्थलमंेजलकाभर्महोताहै,वैसेही
िजसम ंेयहितर्गुणमयी जागर्त-स्वप्न-स ुिषप्तरूपा सृिष्टिमथ्याहोनेपरभीअिधष्ठान-सत्तासेसत्यवत ्पर्तीतहोरहीहै,
उसअपनीस्वयंपर्काशज्योितसेसवर्दाऔरसवर्थामायाऔरमायाकायर्सेपूणर्तःमुक्तरहनेवालेसत्यरूप
परमात्मा का हम ध्यान करत े हंै।'
(शर्ीमद ् भागवतः 1.1.1)
अनुकर्म
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
कुन्ती द्वारा स्त ुित
अश्वत्थामानेपांडवोंकेवंशकोनष्टकरनेकेिलएबर्ह्मास्तर्कापर्योगिकयाथा।उत्तराउसअस्तर्कोअपनीओर
आतादेखदेवािधदेव,जगदीश्वरपर्भुशर्ीकृष्णसेपर्ाथर्नाकरनेलगीिक'हेपर्भो!आपसवर्शिक्तमानहंै।आपही
िनजशिक्तमायासेसंसारकीसृिष्ट,पालनएवंसंहारकरतेहंै।स्वािमन ्!यहबाणमुझेभलेहीजलाडाले,परंतु
मेरेगभर्कोनष्टनकरे–ऐसीकृपाकीिजय े।'भक्तवत्सलभगवानशर्ीकृष्णनेअपनेभक्तकीकरूणपुकारसुन
पाण्डवो ं की व ंश परम्परा चलान े के िलए उत्तरा क े गभर् को अपनी माया क े कवच स े ढक िदया।
यद्यिपबर्ह्मास्तर्अमोघहैऔरउसकेिनवारणकाकोईउपायभीनहींहै,िफरभीभगवानशर्ीकृष्णकेतेजकेसामने
आकरवहशांतहोगया।इसपर्कारअिभमन्य ुकीपत्नीउत्तरागेगभर्मंेपरीिक्षतकीरक्षाकरजबभगवानशर्ीकृष्ण
द्वािरकाजानेलगेषतबपाण्डुपत्नीकुन्तीनेअपनेपुतर्ोंतथादर्ौपदीकेसाथभगवानशर्ीकृष्णकीबड़ेमधुरशब्दों
मंे इस पर्कार स्त ुित कीः
'हेपर्भो!आपसभीजीवोंकेबाहरऔरभीतरएकरसिस्थतहंै,िफरभीइिन्दर्यो ंऔरवृित्तयोंसेदेखेनहींजाते
क्योंिकआपपर्कृितसेपरेआिदप ुरुषपरमेश्वरहंै।मंैआपकोबारम्बारनमस्कारकरतीहँू।इिन्दर्यो ंसेजोकुछजाना
जाताहै,उसकीतहमंेआपहीिवद्यमानरहतेहंैऔरअपनीहीमायाकेपदर्ेसेअपनेकोढकेरहतेहंै।मंैअबोध
नारी आप अिवनाशी प ुरुषोत्तम को भला, क ैसे जान सकती ह ँू?अनुकर्म
हेलीलाधर!जैसेमूढ़लोगदूसराभेषधारणिकयेहुएनटकोपर्त्यक्षदेखकर भीनहींपहचानसकते,वैसेहीआप
िदखतेहुएभीनहींिदखते।आपशुद्धहृदयवाले,िवचारशीलजीवन्म ुक्तपरमहंसोकेहृदयमंेअपनीपर्ेममयी भिक्त
कासृजनकरनेकेिलएअवतीणर्हुएहंै।िफरहमअल्पब ुिद्धिस्तर्याँआपकोकैसेपहचानसकतीहंै?आपशर्ीकृष्ण,
वासुदेव, देवकीनन्दन, नन्दगोप लाडल े लाल गोिवन्द को हमारा बारम्बार पर्णाम ह ै।
िजनकीनािभसेबर्ह्माकाजन्मस्थानकमलपर्कटहुआहै,जोसुन्दरकमलो ंकीमालाधारणकरतेहंै,िजनक ेनेतर्
कमलकेसमानिवशालऔरकोमलहंै,िजनक ेचरमकमलो ंमंेकमलकािचह्नहै,ऐसेशर्ीकृष्णकोमेराबार-बार
नमस्कारहै।हृिषकेष!जैसेआपनेदुष्टकंसकेद्वाराकैदकीहुईऔरिचरकालसेशोकगर्स्तदेवकीरक्षाकीथी,
वैसेहीआपनेमेरीभीपुतर्ोंकेसाथबार-बारिवपित्तयो ंसेरक्षाकीहै।आपहीहमारेस्वामीहंै।आपसवर्शिक्तमान
हंै।शर्ीकृष्ण!कहाँतकिगनाऊ ँ?िवषसे,लाक्षाग ृहकीभयानकआगसे,िहिडम्बआिदराक्षसो ंकीदृिष्टसे,दुष्टोंकी
द्यूत-सभा से,वनवासकीिवपित्तयो ंसेऔरअनेकबारकेयुद्धोंमंेअनेकमहारिथयो ंकेशस्तर्ास्तर्ो ंसेऔरअभी-अभी
इस अश्वत्थामा क े बर्ह्मास्तर् स े भी आपन े ही हमारी रक्षा की ह ै।
िवपदः सन्त ु न शश्वत्ततर् ततर् जगद ् गुरो।
भवतो दशर्न ं यत्स्यादप ुनभर्वदशर्नम ्।।
हेजगदग ुरो!हमारेजीवनमंेसवर्दापग-पगपरिवपित्तया ँआतीरहंे,क्योंिकिवपित्तयो ंमंेहीिनिश्चतरूपसेआपके
दशर्न ह ुआ करत े हंै और आपक े दशर्न हो जान े पर िफर जन्म-म ृत्यु के चक्कर म ंे नहीं आना पड़ता। अनुकर्म
(शर्ीमद ् भागवतः 1.8.25)
ऊँचेकुलमंेजन्म,ऐश्वयर्,िवद्याऔरसम्पित्तकेकारणिजसकाघमंडबढ़रहाहै,वहमनुष्यतोआपकानामभी
नहींलेसकता,क्योंिकआपतोउनलोगोंकोदशर्नदेतेहंै,जोअिकंचनहंै।आपिनधर्नो ंकेपरमधनहंै।माया
कापर्पंचआपकास्पशर्भीनहींकरसकता।आपअपने-आप मंेहीिवहारकरनेवालेएवंपरमशांतस्वरूप हंै।आप
हीकैवल्यमोक्षकेअिधपितहै।मंैआपकोअनािद,अनन्त,सवर्व्यापक,सबकेिनयन्ता,कालरूप,परमेश्वरसमझती
हँूऔरबारम्बारनमस्कारकरतीहँू।संसारकेसमस्तपदाथर्औरपर्ाणीआपस टकराकरिवषमताकेकारण
परस्परिवरूद्धहोरहेहंै,परंतुआपसबमंेसमानरूपसेिवचररहेहंै।भगवन ्!आपजबमनुष्योंजैसीलीलाकरते
हंै,तबआपक्याकरनाचाहतेहंैयहकोईनहींजानता।आपकाकभीकोईनिपर्यहैऔरनअिपर्य।आपके
सम्बन्धमंेलोगोंकीबुिद्धहीिवषमहुआकरतीहै।आपिवश्वकेआत्माहंै,िवश्वरूपहंै।नआपजन्मलेतेहंैऔर
नकमर्करतेहंै।िफरभीपशु-पक्षी, मनुष्य,ऋिष,जलचरआिदमंेआपजन्मलेतेहंैऔरउनयोिनयो ंकेअनुरूप
आपनेदूधकीमटकीफोड़करयशोदामैयाकोिखजािदयाथाऔरउन्होंनेआपकोबाँधनेकेिलएहाथमंेरस्सीली
थी,तबआपकीआँखोंमंेआँसूछलकआयेथे,काजलकपोलो ंपरबहचलाथा,नेतर्चंचलहोरहेथेऔरभयकी

भावनासेआपनेअपनेमुखकोनीचेकीओरझुकािलयाथा!आपकीउसदशाका,लीला-छिवकाध्यानकरके
मंै मोिहत हो जाती ह ँू। भला, िजसस े भय भी भय मानता ह ै, उसकी यह दशा !
आपनेअजन्माहोकरभीजन्मक्योंिलयाहै,इसकाकारणबतलात ेहुएकोई-कोईमहापुरुषयोंकहतेहंैिकजैसे
मलयाचलकीकीितर्कािवस्तारकरनेकेिलएउसमंेचंदनपर्कटहोता,वैसेहीअपनेिपर्यभक्तपुण्यश्लोक राजायदु
कीकीितर्कािवस्तारकरनेकेिलएहीआपनेउनकेवंशमंेअवतारगर्हणिकयाहै।दूसरेलोगयोंकहतेहंैिक
वासुदेवऔरदेवकीनेपूवर्जन्ममंे(सुतपाऔरपृिश्नकेरूपमंे)आपसेयहीवरदानपर्ाप्तिकयाथा,इसीिलएआप
अजन्माहोतेहुएभीजगतकेकल्याणऔरदैत्योंकेनाशकेिलएउनकेपुतर्बनेहंै।कुछऔरलोगयोंकहतेहंै
िकयहपृथ्वीदैत्योंकेअत्यंतभारसेसमुदर्मंेडूबतेहुएजहाजकीतरहडगमगारहीथी,पीिड़तहोरहीथी,तब
बर्ह्माकीपर्ाथर्नासेउसकाभारउतारन ेकेिलएहीआपपर्कटहुए।कोईमहापुरुषयोंकहतेहंैिकजोलोगइस
संसारमंेअज्ञान,कामनाऔरकमोर्ंकेबंधनमंेजकड़ेहुएपीिड़तहोरहेहंै,उनलोगोंकेिलएशर्वणऔरस्मरण
करनेयोग्यलीलाकरनेकेिवचारसेहीआपनेअवतारगर्हणिकयाहै।भक्तजनबार-बारआपकेचिरतर्काशर्वण,
गान,कीतर्नएवंस्मरणकरकेआनंिदतहोतेरहतेहंै,वेहीअिवलम्बआपकेउनचरणकमलो ंकेदशर्नकरपातेहंै,
जो जन्म-म ृत्यु के पर्वाह को सदा क े िलए रोक द ेते हंै।
भक्तवांछाहमलोगोंकोछोड़करजानाचाहतेहंै?आपजानतेहंैिकआपकेचरमकमलो ंकेअितिरक्तहमंेऔरिकसी
कासहारानहींहै।पृथ्वीकेराजाओ ंकेतोहमयोंहीिवरोधीहोगयेहंै।जैसेजीवकेिबनाइिन्दर्या ँशिक्तहीनहो
जातीहंै,वैसेहीआपकेदशर्निबनायदुवंिशयोंकेऔरहमारेपुतर्पाण्डवो ंकेनामतथारूपकाअिस्तत्वहीक्या
रहजाताहै।गदाधर!आपकेिवलक्षणचरणिचह्नो ंसेिचिह्नतयहकुरुजांगलदेशकीभूिमआजजैसीशोभायमान
होरहीहै,वैसीआपकेचलेजानेकेबादनरहेगी।आपकीदृिष्टकेपर्भावसेहीयहदेशपकीहुईफसलतथालता-
वृक्षोंसेसमृद्धहोरहाहै।येवन,पवर्त,नदीऔरसमुदर्भीआपकीदृिष्टसेहीवृिद्धकोपर्ाप्तहोरहेहंै।आपिवश्व
केस्वामीहंै,िवश्वकेआत्माहंैऔरिवश्वरूपहंै।यदुवंिशयोंऔरपाण्डवो ंमंेमेरीबड़ीममताहोगयीहै।आपकृपा
करकेस्वजनो ंकेसाथजोड़ेहुएइसस्नेहकीदृढ़फाँसीकोकाटदीिजय े।शर्ीकृष्ण!जैसेगंगाकीअखण्डधारा
समुदर् मंे िगरती रहती ह ै, वैसे ही म ेरी बुिद्ध िकसी द ूसरी ओर न जाकर आपस े ही िनर ंतर पर्ेम करती रह े।अनुकर्म
शर्ीकृष्ण!अजर्ुनकेप्यारेसखा,यदुवंशिशरोमण े!आपपृथ्वीकेभाररूपराजवेशधारी दैत्योंकोजलानेकेिलए
अिग्नरूपहै।आपकीशिक्तअनन्तहै।गोिवन्द!आपकायहअवतारगौ,बर्ाह्मणऔरदेवताओ ंकादुःखिमटान ेके
िलए ही ह ै। योग ेश्वर!चराचर क े गुरु भगवन ्!मंै आपको नमस्कार करती ह ँू।
(शर्ीमद ् भागवतः 1.8.18.43)
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
शुकदेवजी द्वारा स्त ुित
उत्तरानन्दनराजापरीिक्षतनेभगवत्स्वरूपमुिनवर शुकदेवजीसेसृिष्टिवषयक पर्श्नपूछािकअनन्तशिक्तपरमात्मा
कैसेसृिष्टकीउत्पित्त,रक्षाएवंसंहारकरतेहंैऔरवेिकन-िकनशिक्तयो ंकाआशर्यलेकरअपने-आपको हीिखलौन े
बनाकरखेलतेहंै?इसपर्कारपरीिक्षतद्वाराभगवानकीलीलाओ ंकोजाननेकीिजज्ञासापर्कटकरनेपरवेदऔर
बर्ह्मतत्त्वकेपूणर्ममर्ज्ञशुकदेवजीलीलाप ुरुषोत्तम भगवानशर्ीकृष्णकीमंगलाचरण केरूपमंेइसपर्कारसेस्तुित
करते हंै-
'उनपुरुषोत्तम भगवानकेचरणकमलो ंमंेमेरेकोिट-कोिटपर्णामहंै,जोसंसारकीउत्पित्त,िस्थितऔरपर्लयकी
लीलाकरनेकेिलएसत्त्व,रजतथातमोगुणरूपतीनशिक्तयो ंकोस्वीकारकरबर्ह्मा,िवष्णुऔरशंकरकारूप
धारणकरतेहंै।जोसमस्तचर-अचरपर्ािणयो ंकेहृदयमंेअंतयार्मीरूप सेिवराजमानहंै,िजनकास्वरूपऔरउसकी
उपलिब्धकामागर्बुिद्धकेिवषयनहींहंै,जोस्वयंअनन्तहंैतथािजनकीमिहमाभीअनन्तहै,हमपुनःबार-बार
उनकेचरणोंमंेनमस्कारकरतेहंै।जोसत्पुरुषोंकादुःखिमटाकरउन्हंेअपनेपर्ेमकादानकरतेहंै,दुष्टोंकी
सांसािरक बढ़तीरोककरउन्हंेमुिक्तदेतेहंैतथाजोलोगपरमहंसआशर्ममंेिस्थतहंै,उन्हंेउनकीभीअभीष्टवस्तु
कादानकरतेहंै।क्योंिकचर-अचरसमस्तपर्ाणीउन्हींकीमूितर्हंै,इसिलएिकसीसेभीउनकापक्षपातनहींहै।
जोबड़ेहीभक्तवत्सलहंैऔरहठपूवर्कभिक्तहीनसाधनकरनेवालेलोगिजनकीछायाभीनहींछूसकते;िजनक े
समानभीिकसीकाऐश्वयर्नहींहै,िफरउससेअिधकतोहोहीकैसेसकताहैतथाऐसेऐश्वयर्सेयुक्तहोकरजो
िनरन्तरबर्ह्मस्वरूपअपनेधाममंेिवहारकरतेरहतेहंै,उनभगवानशर्ीकृष्णकोमंैबार-बारनमस्कारकरताहँू।
िजनकाकीतर्न,स्मरण,दशर्न,वंदल,शर्वणऔरपूजनजीवोंकेपापोंकोतत्कालनष्टकरदेताहै,उनपुण्यकीितर्
भगवान शर्ीक ृष्ण को बार-बार नमस्कार ह ै।अनुकर्म
िवचक्षणा यच्चरणोपसादनात ् संगं व्युदस्योभयतोऽन्तरात्मनः।
िवन्दिन्त िह बर्ह्मगित ं गतक्लमास्तस्म ै सुभदर्शर्वस े नमो नमः।।
तपिस्वनो दानपरा यशिस्वनो मनिस्वनो मन्तर्िवदः स ुमंगलाः।
क्षेमं न िवन्दिन्त िवना यदपर्ण ं तस्मै सुभदर्शर्वस े नमो नमः।।
िववेकीपुरुषिजनक ेचरणकमलो ंकीशरणलेकरअपनेहृदयसेइसलोकऔरपरलोककीआसिक्तिनकालडालते
हंैऔरिबनािकसीपिरशर्मकेहीबर्ह्मपदकोपर्ाप्तकरलेतेहंै,उनमंगलमय कीितर्वाल ेभगवानशर्ीकृष्णकोअनेक

बारनमस्कारहै।बड़े-बड़ेतपस्वी,दानी,यशस्वी,मनस्वी,सदाचारीऔरमंतर्वेत्ताजबतकअपनीसाधनाओ ंको
तथाअपने-आपको उनकेचरणोंमंेसमिपर्तनहींकरदेते,तबतकउन्हंेकल्याणकीपर्ािप्तनहींहोती।िजनक ेपर्ित
आत्मसमपर्ण की ऐसी मिहमा ह ै, उन कल्याणमयी कीितर्वाल े भगवान को बार-बार नमस्कार ह ै।
(शर्ीमद ् भागवतः 2.4.16.17)
िकरात,हूण,आंधर्,पुिलन्द, पुल्कस, आभीर,कंक,यवनऔरखसआिदनीचजाितया ँतथादूसरेपापीिजनक े
शरणागत भक्तो ं की शरण गर्हण करन े से ही पिवतर् हो जात े हंै, उन सवर्शिक्तमान भगवान को बार-बार नमस्कार ह ै।
वेहीभगवानज्ञािनयो ंकेआत्माहंै,भक्तोंकेस्वामीहंै,कमर्कािण्डयो ंकेिलएवेदमूितर्हंै।बर्ह्मा,शंकरआिदबड़े-बड़े
देवताभीअपनेशुद्धहृदयसेउनकेस्वरूपकािचंतनकरतेऔरआश्चयर्चिकतहोकरदेखतेरहतेहंै।वेमुझपर
अपने अनुगर्ह की, पर्साद की वषार् कर ंे।
जोसमस्तसम्पित्तयो ंकीस्वािमनीलक्ष्मीद ेवीकेपितहंै,समस्तयज्ञोंकेभोक्ताएवंफलदाताहै,पर्जाकेरक्षकहंै,
सबकेअंतयार्मी औरसमस्तलोकोंकेपालनकतार्हंैतथापृथ्वीदेवीकेस्वामीहंै,िजन्होंनेयदुवंशमंेपर्कटहोकर
अंधक,वृिष्णएवंयदुवंशकेलोगोंकीरक्षाकीहैतथाजोउनलोगोंकेएकमातर्आशर्यरहेहंै–वेभक्तवत्सल,
संतजनोंकेसवर्स्वशर्ीकृष्णमुझपरपर्सन्नहों।िवद्वानपुरुषिजनक ेचरणकमलो ंकेिचंतनरूप समािधसेशुद्धहुई
बुिद्धकेद्वाराआत्मतत्त्वकासाक्षात्कारकरतेहंैतथाउनकेदशर्नकेअनन्तरअपनी-अपनीमितऔररूिचके
अनुसारिजनक ेस्वरूपकावणर्नकरतेरहतेहंै,वेपर्ेमऔरमुिक्तकोलुटानेवालेभगवानशर्ीकृष्णमुझपरपर्सन्न
हों।िजन्होंनेसृिष्टकेसमयबर्ह्माकेहृदयमंेपूवर्काल कीस्मृितजागर्तकरनेकेिलएज्ञानकीअिधष्ठातर्ीदेवीको
पर्ेिरतिकयाऔरवेअपनेअंगोंकेसिहतवेदकेरूपमंेउनकेमुखसेपर्कटहुई,वेज्ञानकेमूलकारणभगवान
मुझपरकृपाकरंे,मेरेहृदयमंेपर्कटहों।भगवानहीपंचमहाभ ूतोंसेइनशरीरोंकािनमार्णकरकेइनमंेजीवरूपसे
शयनकरतेहंैऔरपाँचज्ञानेिन्दर्यों,पाँचकमर्ेिन्दर्यों,पाँच,पर्ाणऔरएकमन–इनसोलहकलाओ ंसेयुक्तहोकर
इनकेद्वारासोलहिवषयोंकाभोगकरतेहंै।वेसवर्भूतमय भगवानमेरीवाणीकोअपनेगुणोंसेअलंकृतकरदंे।
संतपुरुषिजनक ेमुखकमल सेमकरन्दकेसमानझरतीहुईज्ञानमयीसुधाकापानकरतेरहतेहंै,उनवासुदेवावतार
सवर्ज्ञ भगवान व्यास क े चरणो ं मंे मेरा बार-बार नमस्कार ह ै।'अनुकर्म
(शर्ीमद ् भागवतः 2.4.12-24)
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
बर्ह्मा जी द्वारा स्त ुित
सृिष्टसेपूवर्यहसम्पूणर्िवश्वजलमंेडूबाहुआथा।उससमयएकमातर्शर्ीनारायणदेवशेषशय्या परलेटेहुएथे।
एकसहसर्चतुयर्ुगपयर्न्त जलमंेशयनकरनेकेअनन्तरउन्हींकेद्वारािनयुक्तउनकीकालशिक्तनेउन्हंेजीवोंके
कमोर्ंकीपर्वृित्तकेिलएपर्ेिरतिकया।िजससमयभगवानकीदृिष्टअपनेमंेिनिहतिलंगशरीरािदसूक्ष्मतत्त्वपर
पड़ी,तबवहसूक्ष्मतत्त्वकालािशर्तरजोगुणसेक्षुिभतहोकरसृिष्ट-रचना केिनिमत्तकमलकोशकेरूपमंेसहसा
ऊपरउठा।कमलपरबर्ह्माजीिवराजमानथे।वेसोचनेलगेः'इसकमलकीकिणर्कापरबैठाहुआमंैकौनहँू?यह
कमलभीिबनािकसीअन्यआधारकेजलमंेकहाँसेउत्पन्नहोगया?इसकेनीचेअवश्यकोईवस्तुहोनी
चािहए,िजसक ेआधारपरयहिस्थतहै।'अपनेउत्पित्त-स्थानकोखोजत े-खोजत ेबर्ह्माजीकोबहुतकालबीतगया।
अन्तमंेपर्ाणवाय ुकोधीरे-धीरेजीतकरिचत्तकोिनःसंकल्पिकयाऔरसमािधमंेिस्थतहोगये।तबउन्होंनेअपने
उसअिधष्ठानको,िजसेवेपहलेखोजन ेपरभीनहींदेखपायेथे,अपनेहीअंतःकरण मंेपर्कािशतहोतेदेखातथा
शर्ीहिर म ंे िचत्त लगाकर उन परम प ूजनीय पर्भ ु की स्त ुित करन े लगेः
'आपसवर्दाअपनेस्वरूपकेपर्काशसेहीपर्ािणयो ंकेभेदभर्मरूपअंधकार कानाशकरतेरहतेहंैतथाज्ञानके
अिधष्ठानसाक्षात ्परमपुरुषहंै,मंैआपकोनमस्कारकरताहँू।संसारकीउत्पित्त,िस्थितऔरसंहारकेिनिमत्तसे
जो माया की लीला होती ह ै, वह आपका ही ख ेल है, अतः आप परम ेश्वर को म ंै बार-बार नमस्कार करता ह ँू।
यस्यावतारग ुणकमर्िवडम्बनािन नामािन य ेऽसुिवगमे िववशा ग ृणिन्त।
ते नैकजन्मशमल ं सहस ैव िहत्वा स ंयान्त्यपाव ृतमृतं तमज ं पर्पद्ये।।
जोलोगपर्ाणत्यागकरतेसमयआपकेअवतार,गुणऔरकमोर्ंकोसूिचतकरनेवालेदेवकीनन्दन, जनादर्न,
कंसिनक ंदनआिदनामोंकािववशहोकरभीउच्चारणकरतेहंै,वेअनेकोंजन्मोंकेपापोंसेतत्कालछूटकरमायािद
आवरणो ं से रिहत बर्ह्मपद पर्ाप्त करत े हंै। आप िनत्य अजन्मा ह ंै, मंै आपकी शरण ल ेता हँू।अनुकर्म
(शर्ीमद ् भागवतः 3.9.15)
भगवन ्!इसिवश्ववृक्षकेरूपमंेआपहीिवराजमानहंै।आपहीअपनीमूलपर्कृितकोस्वीकारकरकेजगतकी
उत्पित्त,िस्थितऔरपर्लयकेिलएमेरे,अपनेऔरमहादेवजीकेरूपमंेतीनपर्धानशाखाओ ंमंेिवभक्तहुएहंैऔर
िफरपर्जापितएवंमनुआिदशाखा-पर्शाखाओ ंकेरूपमंेफैलकर बहुतिवस्तृतहोगयेहंै।मंैआपकोनमस्कार
करताहँू।भगवन ्!आपनेअपनीआराधनाकोहीलोकोंकेिलएकल्याणकारीस्वधमर्बतायाहै,िकंतुवेइसओर
सेउदासीनरहकरसवर्दािवपरीत(िनिषद्ध)कमोर्ंमंेलगेरहतेहंै।ऐसीपर्मादकीअवस्थामंेपड़ेहुएइनजीवोंकी
जीवन-आशाकोजोसदासावधानरहकरबड़ीशीघर्तासेकाटतारहताहै,वहबलवानकालभीआपकाहीरूपहै;
मंैउसेनमस्कारकरताहँू।यद्यिपमंैसत्यलोककाअिधष्ठाताहँू,जोपराद्धर्पयर्न्तरहनेवालाऔरसमस्तलोकोंका
वन्दनीयहैतोभीआपकेउसकालरूपसेडरतारहताहँू।उससेबचनेऔरआपकोपर्ाप्तकरनेकेिलएहीमंैनेबहुत
समयतकतपस्याकीहै।आपहीअिधयज्ञरूपसेमेरीइसतपस्याकेसाक्षीहंै,मंैआपकोनमस्कारकरताहँू।

आपपूणर्काम हंै,आपकोिकसीिवषयस ुखकीइच्छानहींहैतोभीआपनेअपनीबनायीहुईधमर्मयार्दाकीरक्षाके
िलएपशु-पक्षी, मनुष्यऔरदेवताआिदजीवयोिनयो ंमंेअपनीहीइच्छासेशरीरधारणकरअनेकोंलीलाए ँकीहंै।
ऐसे आप प ुरुषोत्तम भगवान को म ेरा नमस्कार ह ै।
पर्भो!आपअिवद्या,अिस्मता,रागद्वेषऔरअिभिनव ेश–पाँचोंमंेसेिकसीकेभीअधीननहींहंै;तथािपइस
समयजोसारेसंसारकोअपनेउदरमंेलीनकरभयंकरतरंगमालाओ ंसेिवक्षुब्धपर्लयकालीनजलमंेअनन्तिवगर्ह
कीकोमलशय्यापरशयनकररहेहंै,वहपूवर्काल कीकमर्परम्परासेशर्िमतहुएजीवोंकोिवशर्ामदेनेकेिलए
हीहै।आपकेनािभकमलरूपभवनसेमेराजन्महुआहै।यहसम्पूणर्िवश्वआपकेउदरमंेसमायाहुआहै।आपकी
कृपासेहीमंैितर्लोकीकीरचनारूपउपकारमंेपर्वृत्तहुआहँू।इससमययोगिनदर्ाकाअंतहोजानेकेकारण
आपकेनेतर्कमल िवकिसतहोरहेहंैआपकोमेरानमस्कारहै।आपसम्पूणर्सुहृदऔरआत्माहंैतथाशरणागतो ंपर
कृपाकरनेवालेहंै।अतःअपनेिजसज्ञानऔरऐश्वयर्सेआपिवश्वकोआनिन्दतकरतेहंै,उसीसेमेरीबुिद्धको
भीयुक्तकरंे–िजसस ेमंैपूवर्कल्प केसमानइससमयभीजगतकीरचनाकरसकँू।आपभक्तवांछाकल्पतरु हंै।
अपनीशिक्तलक्ष्मीजीकेसिहतअनेकगुणावतार लेकरआपजो-जोअदभुतकमर्करंेगे,मेरायहजगतकीरचना
करनेकाउद्यमभीउन्हींमंेसेएकहै।अतःइसेरचतेसमयआपमेरेिचत्तकोपर्ेिरतकरंे,शिक्तपर्दानकरंे,
िजसस ेमंैसृिष्टरचनािवषयकअिभमानरूपमलसेदूररहसकँू।पर्भो!इसपर्लयकालीनजलमंेशयनकरतेहुए
आपअनन्तशिक्तपरमपुरुषकेनािभ-कमलसेमेरापर्ादुभार्वहुआहैऔरमंैहँूभीआपकीहीिवज्ञानशिक्तअतःइस
जगतकेिविचतर्रूपकािवस्तारकरतेसमयआपकीकृपासेमेरीवेदरूपवाणीकाउच्चारणलुप्तनहो।आप
अपारकरुणामयपुराणपुरुषहंै।आपपरमपर्ेममयी मुस्कान केसिहतअपनेनेतर्कमल खोिलय ेऔरशेषशय्या से
उठकर िवश्व क े उदभव क े िलए अपनी स ुमधुर वाणी स े मेरा िवषाद द ूर कीिजए। 'अनुकर्म
(शर्ीमद ् भागवतः 3.9.14-25)
भगवानकीमिहमाअसाधारणहै।वेस्वयंपर्काश, आनंदस्वरूप औरमायासेअतीतहै।उन्हींकीमायामंेतोसभी
मुग्धहोरहेहंैपरंतुकोईभीमाया-मोहभगवानकास्पशर्नहींकरसकता।बर्ह्मजीउन्हींभगवानशर्ीकृष्णको
ग्वाल-बालऔरबछड़ोंकाअपहरणकर,अपनीमायासेमोिहतकरनेचलेथे।िकन्तुउनकोमोिहतकरनातोदूर
रहा,वेअजन्माहोनेपरभीअपनीहीमायासेअपने-आप मोिहतहोगये।बर्ह्माजीसमस्तिवद्याओ ंकेअिधपितहंै
तथािपभगवानकेिदव्यस्वरूपकोवेतिनकभीनसमझसकेिकयहक्याहै।यहाँतकिकवेभगवानके
मिहमामयरूपोंकोदेखनेमंेभीअसमथर्होगये।उनकीआँखंेमँुदगयीं।भगवानशर्ीकृष्णनेबर्ह्माजीकामोहऔर
असमथर्ताकोजानकरअपनीमायाकापदार्हटािदया।इससेबर्ह्माजीकोबर्ह्मज्ञानहुआ।िफरबर्ह्माजीनेअपने
चारोंमुकुटोंकेअगर्भागसेभगवानकेचरणकमलो ंकास्पशर्करकेनमस्कारिकयाऔरआनंदकेआँसुओंकीधारा
सेउन्हंेनहलािदया।बहुतदेरतकवेभगवानकेचरणोंमंेहीपड़ेरहे।िफरधीरे-धीरेउठेऔरअपनेनेतर्ोंकेआँसू
पोंछे।पर्ेमऔरमुिक्तकेएकमातर्उदगमभगवानकोदेखकर उनकािसरझुकगया।अंजिलबाँधकर बड़ीनमर्ता
और एकागर्ता क े साथ गदगद वाणी स े वे भगवान की स्त ुित करन े लगेः
'पर्भो!एकमातर्आपहीस्तुितकरनेयोग्यहंै।मंैआपकेचरणोंमंेनमस्कारकरताहँू।आपकायहशरीर
वषार्कालीनमेघकेसमानश्यामलहै,इसपरपीताम्बरिस्थरिबजलीकेसमानिझलिमल-िझलिमलकरताहुआ
शोभापाताहै,आपकेगलेमंेघँुघचीकीमाला,कानोंमंेमकराक ृितकुण्डलतथािसरपरमोरपंखोंकामुकुटहै,इन
सबकीकांितसेआपकेमुखपरअनोखीछटािछटकरहीहै।वक्षःस्थलपरलटकतीहुईवनमालाऔरनन्हीं-सी
हथेलीपरदही-भातकाकौर,बगलमंेबंेतऔरिसंगीतथाकमरकीफंेटमंेआपकीपहचानबतानेवालीबाँसुरी
शोभापररहीहै।आपकेकमल-स ेसुकोमल परमसुकुमारचरणऔरयहगोपालबालककासुमधुरवेष।(मंैऔर
कुछनहींजानताबस,मंैतोइन्हींचरणोंपरन्योछावरहँू।)स्वयंपर्काश परमात्मन ्!आपकायहशर्ीिवगर्हभक्तजनो ं
कीलालसा-अिभलाषापूणर्करनेवालाहै।यहआपकीिचन्मयइच्छाकामूितर्मान स्वरूपमुझपरआपकासाक्षात
कृपापर्सादहै।मुझेअनुगृहीतकरनेकेिलएहीआपनेइसेपर्कटिकयाहै।कौनकहताहैिकयहपंचभूतोंकी
रचना ह ै?
पर्भो!यहतोअपर्ाकृतशुद्धसत्त्वमयहै।मंैयाऔरकोईसमािधलगाकरभीआपकेइससिच्चदान ंद-िवगर्ह की
मिहमानहींजानसकता।िफरआत्मानन्दान ुभवस्वरूप साक्षात ्आपकीहीमिहमाकोतोकोईएकागर्मनसेभी
कैसे जान सकता ह ै।
ज्ञाने पर्यासम ुदापास्य नमन्त एव जीविन्त सन्म ुखिरता ं भवदीयवातार्म ्।
स्थाने िस्थताः शर् ुितगता ं तनुवांगनोिभयर् े पर्ायशोऽिजत िजतोऽप्यिस त ैिस्तर्लोक्याम ्।।
पर्भो!जोलोगज्ञानकेिलएपर्यत्ननकरकेअपनेस्थानमंेहीिस्थतरहकरकेवलसत्संगकरतेहंै;यहाँतकिक
उसेहीअपनाजीवनबनालेतेहंै,उसकेिबनाजीनहींसकते।पर्भो!यद्यिपआपपरितर्लोकीमंेकोईकभीिवजय
नहीं पर्ाप्त कर सकता, िफर भी व े आप पर िवजय पर्ाप्त कर ल ेतेहंै, आप उनक े पर्ेम के अधीन हो जात े हंै।अनुकर्म
(शर्ीमद ् भागवतः10.15.3)
भगवन ्!आपकीभिक्तसबपर्कारकेकल्याणकामूलसर्ोत-उदगम है।जोलोगउसेछोड़करकेवलज्ञानकीपर्ािप्त
केिलएशर्मउठातेऔरदुःखभोगतेहंै,उनकोबसक्लेश-ही-क्ल ेशहाथलगताहैऔरकुछनहीं।जैसे,थोथीभूसी
कूटने वाले को क ेवल शर्म ही िमलता ह ै, चावल नही ं।

हेअच्युत!हेअनन्त!इसलोकमंेपहलेभीबहुत-सेयोगीहोगयेहंै।जबउन्हंेयोगािदकेद्वाराआपकीपर्ािप्तन
हुई,तबउन्होंनेअपनेलौिककऔरवैिदकसमस्तकमर्आपकेचरणोंमंेसमिपर्तकरिदये।उनसमिपर्तकमोर्ंसे
तथाआपकीलीला-कथासेउन्हंेआपकीभिक्तपर्ाप्तहुई।उसभिक्तसेहीआपकेस्वरूपकाज्ञानपर्ाप्तकरकेउन्होंने
बड़ीसुगमता सेआपकेपरमपदकीपर्ािप्तकरली।हेअनन्त!आपकेसगुण-िनगर्ुणदोनोंस्वरूपो ंकाज्ञानकिठन
होनेपरभीिनगर्ुणस्वरूपकीमिहमाइिन्दर्यो ंकापर्त्याहारकरकेशुद्धअंतःकरण सेजानीजासकतीहै।(जानन े
कीपर्िकर्यायहहैिक)िवशेषआकारकेपिरत्यागप ूवर्कआत्माकारअंतःकरण कासाक्षात्कारिकयाजाय।यह
आत्माकारताघट-पटािदरूपकेसमानज्ञेयनहींहै,पर्त्युतआवरणकाभंगमातर्है।यहसाक्षात्कार'यहबर्ह्महै','मंै
बर्ह्मकोजानताहँू'इसपर्कारनहींिकंतुस्वयंपर्काश रूपसेहीहोताहै।परंतुभगवन ्!िजनसमथर्पुरुषोंनेअनेक
जन्मोंतकपिरशर्मकरकेपृथ्वीकाएक-एकपरमाण ु,आकाशकेिहमकण(ओसकीबँूदंे)तथाउसमंेचमकन ेवाले
नक्षतर्एवंतारोंतकिगनडालाहै,उनमंेभीभला,ऐसाकौनहोसकताहैजोआपकेसगुणस्वरूपकेअनन्तगुणों
कोिगनसके?पर्भो!आपकेवलसंसारकेकल्याणकेिलएहीअवतीणर्हुएहंै।सोभगवन ्!आपकीमिहमाका
ज्ञानतोबड़ाहीकिठनहै।इसिलएजोपुरुषक्षण-क्षणपरबड़ीउत्सुकतासेआपकीकृपाकाहीभलीभा ँितअनुभव
करतारहताहैऔरपर्ारब्धकेअनुसारजोकुछसोखयादुःखपर्ाप्तहोताहै,उसेिनिवर्कारमनसेभोगलेताहैएवं
जोपर्ेमपूणर्हृदय,गदगदवाणीऔरपुलिकत शरीरसेअपनेकोआपकेचरणोंमंेसमिपर्तकरतारहताहै–इस
पर्कारजीवनव्यतीतकरनेवालापुरुषठीकवैसेहीआपकेपरमपदकाअिधकारीहोजाताहै,जैसेअपनेिपताकी
सम्पित्त का प ुतर्!अनुकर्म
पर्भो!मेरीकुिटलता तोदेिखये।आपअनन्तआिदप ुरुषपरमात्माहंैऔरमेरेजैसेबड़े-बड़ेमायावीभीआपकी
मायाकेचकर्मंेहंै।िफरभीमंैनेआपपरअपनीमायाफैलाकर अपनाऐश्वयर्देखनाचाहा।पर्भो!मंैआपके
सामनेहँूहीक्या।क्याआगकेसामनेिचनगारीकीभीकुछिगनतीहै?भगवन ्!मंैरजोगुणसेउत्पन्नहुआहँू,
आपकेस्वरूपकोमंैठीक-ठाकनहींजानता।इसीसेअपनेकोआपसेअलगसंसारकास्वामीमानेबैठाथा।मंै
अजन्माजगत्कतार्हँू–इसमायाक ृतमोहकेघनेअंधकार सेमंैअंधाहोरहाथा।इसिलएआपयहसमझकरिक
'यहमेरेहीअधीनहै,मेराभृत्यहै,इसपरकृपाकरनीचािहए',मेराअपराधक्षमाकीिजए।मेरेस्वामी!पर्कृित,
महत्तत्व,अहंकार,आकाश,वायु,अिग्न,जलऔरपृथ्वीरूप आवरणो ंसेिघराहुआयहबर्ह्माण्डहीमेराशरीरहैऔर
आपकेएक-एकरोमकेिछदर्मंेऐसे-ऐसेअगिणतबर्ह्माण्डउसीपर्कारउड़ते-पड़तेरहतेहंै,जैसेझरोखेकीजालीमंे
सेआनेवालीसूयर्कीिकरणो ंमंेरजकेछोटे-छोटेपरमाण ुउड़तेहुएिदखायीपड़तेहंै।कहाँअपनेपिरमाणसेसाढ़े
तीनहाथकेशरीरवालाअत्यंतक्षुदर्मंैऔरकहाँआपकीअनन्तमिहमा।वृित्तयोंकीपकड़मंेनआनेवाले
परमात्मन ्!जबबच्चामाताकेपेटमंेरहताहै,तबअज्ञानवशअपनेहाथपैरपीटताहै;परंतुक्यामाताउसे
अपराधसमझतीहैयाउसकेिलएवहकोईअपराधहोताहै?'है'और'नहींहै'–इनशब्दोंसेकहीजानेवाली
कोई भी वस्त ु ऐसी ह ै क्या, जो आपकी कोख क े भीतर न हो ?
शर्ुितयाँकहतीहंैिकिजससमयतीनोंलोकपर्लयकालीनजलमंेलीनथे,उससमयउसजलमंेिस्थतशर्ीनारायण
केनािभकमलसेबर्ह्मकाजन्महुआ।उनकायहकहनािकसीपर्कारअसत्यनहींहोसकता।तबआपही
बतलाइय े, पर्भो !क्या म ंै आपका प ुतर् नही ं हँू?
नारायणस्त्व ं न िह सवर्द ेिहनामात्मास्यधीशािखललोकसाक्षी।
नारायणोङ्ग ं नरभूजलायात्तच्चािप सत्य ं न तद ैव माया।।
पर्भो!आपसमस्तजीवोंकेआत्माहंै।इसिलएआपनारायण(नार-जीवऔरअयन-आशर्य)हंै।आपसमस्तजगत
केऔरजीवोंअधीश्वरहै,इसिलएआपनारायण(नार-जीवऔरअयन-पर्वतर्क)हंै।आपसमस्तलोकोंकेसाक्षीहंै,
इसिलएभीनारायण(नार-जीवऔरअयन-जानन ेवाला)है।नरसेउत्पन्नहोनेवालेजलमंेिनवासकरनेके
कारणिजन्हंेनारायण(नार-जलऔरअयन-िनवासस्थान)कहाजाताहै,वेभीआपकेएकअंशहीहंै।वहअंशरूप
से िदखना भी सत्य नही ं है, आपकी माया ही ह ै।
(शर्ीमद ् भागवतः 10.14.14)
भगवन ्!यिदआपकावहिवराटस्वरूपसचमुचउससमयकमलनालकेमागर्सेउसेसौवषर्तकजलमंेढँूढता
रहा?िफरमंैनेजबतपस्याकी,तबउसीसमयमेरेहृदयमंेउसकादशर्नकैसेहोगया?औरिफरकुछहीक्षणों
मंेवहपुनःक्योंनहींिदखा,अंतधार्न क्योंहोगया?मायाकानाशकरनेवालेपर्भो!दूरकीबातकौनकरे,अभी
इसीअवतारमंेआपनेइसबाहरिदखनेवालेजगतकोअपनेपेटमंेहीिदखलािदया,िजसेदेखकर मातायशोदा
चिकतहोगयीथी।इससेयहीतोिसद्धहोताहैिकयहसम्पूणर्िवश्वकेवलआपकीमाया-ही-मायाहै।जबआपके
सिहतयहसम्पूणर्िवश्वजैसाबाहरिदखताहैवैसाहीआपकेउदरमंेभीिदखा,तबक्यायहसबआपकीमायाके
िबनाहीआपमंेपर्तीतहुआ?अवश्यहीआपकीलीलाहै।उसिदनकीबातजानेदीिजए,आजकीहीलीिजए।क्या
आजआपनेमेरेसामनेअपनेअितिरक्तसम्पूणर्िवश्वकोअपनीमायकाखेलनहींिदखलायाहै?पहलेआपअकेले
थे।िफरसम्पूणर्ग्वाल-बाल,बछड़ेऔरछड़ी-छीक ेभीआपहीहोगये।उसकेबादमंैनेदेखािकआपकेवेसबरूप
चतुभर्ुजहंैऔरमेरेसिहतसब-के-सबतत्त्वउनकीसेवाकररहेहंै।आपनेअलग-अलगउतनेहीबर्ह्माण्डो ंकारूप
भी धारण कर िलया था, पर ंतु अब आप क ेवल अपिरिमत अिद्वितय बर्ह्मरूप स े ही श ेष रह गय े हंै।अनुकर्म

जोलोगअज्ञानवशआपकेस्वरूपकोनहींजानते,उन्हींकोआपपर्कृितमंेिस्थतजीवकेरूपसेपर्तीतहोतेहंै
औरउनपरअपनीमायाकापदार्डालकरसृिष्टकेसमयमेरे(बर्ह्मा)रूपसेपालनकेसमयअपने(िवष्ण ु)रूपसे
और स ंहार क े समय रूदर् क े रूप म ंे पर्तीत होत े हंै।
पर्भो!आपसारेजगतकेस्वामीऔरिवधाताहै।अजन्माहोनेपरभीआपकेदेवता,ऋिष,पशु-पक्षी औरजलचर
आिदयोिनयो ंमंेअवतारगर्हणकरतेहंै।इसिलएकीइनरूपोंकेद्वारादुष्टपुरुषोंकाघमण्डतोड़दंेऔरसत्पुरुषों
परअनुगर्हकरंे।भगवन ्!आपअनन्तपरमात्माऔरयोगेश्वरहंै?िजससमयआपअपनीमायाकािवस्तारकरके
लीलाकरनेलगतेहंै,उससमयितर्लोकीमंेऐसाकौनहै,जोयहजानसकेकीआपकीलीलाकहाँ,िकसिलए,कब
औरिकतनीहोती।इसिलएयहसम्पूणर्जगतस्वप्नकेसमानअसत्य,अज्ञानरूपऔरदुःख-पर दुःखदेनेवालाहै।
आपपरमान ंद,परमअज्ञानस्वरूपएवंअनन्तहंै।यहमायासेउत्पन्नएवंिवलीनहोनेपरभीआपमंेआपकीसत्ता
सेसत्यकेसमानपर्तीतहोताहै।पर्भो!आपहीएकमातर्सत्यहंैक्योंिकआपसबकेआत्माजोहंै।आप
पुराणपुरुषहोनेकेकारणसमस्तजन्मािदिवकारो ंसेरिहतहंै।आपस्वयंपर्काशहंै;इसिलएदेश,कालऔरवस्तु
जोपरपर्काशहंैिकसीपर्कारआपकोसीिमतनहींकरसकते।आपउनकेभीआिदपर्काशकहंै।आपअिवनाशीहोने
केकारणिनत्यहंै।आपकाआनंदअखिण्डतहै।आपमंेनतोिकसीपर्कारकामलहैऔरनअभाव।आपपूणर्
एकहंै।समस्तउपािधयो ंसेमुक्तहोनेकेकारणआपअमृतस्वरूप हंै।आपकायहऐसास्वरूपसमस्तजीवोंकाही
अपनास्वरूपहै।जोगुरुरूपसूयर्सेतत्त्वज्ञानरूपिदव्यदृिष्टपर्ाप्तकरकेउससेआपकोअपनेस्वरूपकेरूपमंे
साक्षात्कारकरलेतेहंै,वेइसझूठेसंसार-सागर कोमानोंपारकरजातेहंै।(संसार-सागर केझूठाहोनेकेकारण
इससेपारजानाभीअिवचार-दशाकीदृिष्टसेहीहै।)जोपुरुषपरमात्माकोआत्माकेरूपमंेनहींजानते,उन्हंे
उसअज्ञानकेकारणहीइसनामरूपात्मकअिखलपर्पंचकीउत्पित्तकाभर्महोजाताहै।िकंतुज्ञानहोतेहीइसका
आत्यंितकपर्लयहोजाताहै।जैसेरस्सीमंेभर्मकेकारणहीसाँपकीपर्तीितहोतीहैऔरभर्मकेिनवृत्तहोतेही
उसकीिनवृित्तहोजातीहै।संसारसम्बन्धीबंधनऔरउससेमोक्ष–येदोनोंहीनामअज्ञानसेकिल्पतहंै।
वास्तवमंेयेअज्ञानकेहीदोनामहंै।येसत्यऔरज्ञानस्वरूपपरमात्मासेिभन्नअिस्तत्वनहींरखते।जैसे
सूयर्मंेिदनऔररातकाभेदनहींहै,वैसेहीिवचारकरनेपरअखण्डिचत्स्वरूपकेवलशुद्धआत्मतत्त्वमंेनबंधन
हैऔरनतोमोक्ष।भगवन ्िकतनेआश्चयर्कीबातहैिकआपहंैअपनेआत्मा,परलोगआपकोपरायामानतेहंै
औरशरीरआिदहंैपराये,िकंतुउनकोआत्मामानबैठतेहंैऔरइसकेबादआपकोकहींअलगढँूढनेलगतेहंै।
भला,अज्ञानीजीवोंकायहिकतनाबड़ाअज्ञानहै।हेअनन्त!आपतोसबकेअंतःकरण मंेहीिवराजमानहंै।
इसिलएसंतलोगआपकेअितिरक्तजोअनुकर्मकुछपर्तीतहोरहाहै,उसकापिरत्यागकरतेहुएअपनेभीतर
आपकोढँूढतेहंै।क्योंिकयद्यिपरस्सीमंेसाँपनहींहै,िफरभीउसपर्तीयमानसाँपकोिमथ्यािनश्चयिकयेिबना
भला, कोई सत्प ुरुष सच्ची रस्सी को क ैसे जान सकता ह ै?
अपनेभक्तजनो ंकेहृदयमंेस्वयंस्फुिरतहोनेवालेभगवन ्!आपकेज्ञानकास्वरूपऔरमिहमाऐसीहीहै,उससे
अज्ञानकिल्पतजगतकानाशहोजाताहै।िफरभीजोपुरुषआपकेयुगलचरणकमलो ंकातिनकसाभीकृपा
पर्सादपर्ाप्तकरलेताहै,उससेअनुगृहीतहोजाताहै,वहीआपकीसिच्चदान ंदमयी मिहमाकातत्त्वजानसकताहै।
दूसराकोईभीज्ञानवैराग्यािद साधनरूपअपनेपर्यत्नसेबहुतकालतकिकतनाभीअनुसंधानकरतारहे,वह
आपकीमिहमाकायथाथर्ज्ञाननहींपर्ाप्तकरसकता।इसिलएभगवन ्!मुझेइसजन्ममंे,दूसरेजन्ममंेअथवा
िकसीपशु-पक्षी आिदकेजन्ममंेभीऐसासौभाग्यपर्ाप्तहोिकमंैआपकेदासोंमंेसेकोईएकदासहोजाऊँऔर
िफरआपकेचरणकमलो ंकीसेवाकरूँ।मेरेस्वामी!जगतकेबड़े-बड़ेयज्ञसृिष्टकेपर्ारम्भसेलेकरअबतक
आपकोपूणर्तःतृप्तनकरसके।परंतुआपनेवर्जकीगायोंऔरग्वािलनो ंकेबछड़ेएवंबालकबनकरउनकेस्तनों
काअमृत-सा दूधबड़ेउमंगसेिपयाहै।वास्तवमंेउन्हींकाजीवनसफलहै,वेहीअत्यंतधन्यहंै।अहो!नंद
आिदवर्जवासीगोपोंकेधन्यभाग्यहंैवास्तवमंेउनकाअहोभाग्यहै,क्योंिकपरमानन्दस्वरूपसनातनपिरपूणर्बर्ह्म
आपउनकेअपनेसगेसम्बन्धीऔरसृहृदहंै।हेअच्युत!इनवर्जवािसयो ंकेसौभाग्यकीमिहमातोअलगरही,
मनआिदग्यारहइिन्दर्यो ंकेअिधष्ठात ृदेवताकेरूपमंेरहनेवालेमहादेवआिदहमलोगबड़ेहीभाग्यवानहंै।
क्योंिकवर्जवािसयो ंकीमनआिदग्यारहइिन्दर्यो ंकोप्यालेबनाकरहमआपकेचरणकमलो ंकाअमृतसेभीमीठा,
मिदरासेभीमादकमधुरमकरंदकापानकरतेरहतेहंै।जबउसकाएक-एकइिन्दर्यसेपानकरकेहमधन्य-
धन्यहोरहेहंै,तबसमस्तइिन्दर्यो ंसेउसकासेवनकरनेवालेवर्जवािसयो ंकीतोबातहीक्याहै।पर्भो!इस
वर्जभूिमकेिकसीवनमंेऔरिवशेषकरकेगोकुलमंेिकसीभीयोिनमंेजन्महोजानेपरआपकेिकसी-न-िकसी
पर्ेमीकेचरणोंकीधूिलअपनेऊपरपड़हीजायेगी।पर्भो!आपकेपर्ेमीवर्जवािसयो ंकासम्पूणर्जीवनआपकाही
जीवनहै।आपहीउनकेजीवनकेएकमातर्सवर्स्वहंै।इसिलएउनकेचरणोंकीधूिलिमलनाआपकेहीचरणोंकी
धूिलिमलनाहैऔरआपकेचरणोंकीधूिलकोतोशर्ुितयाँभीअनािदकालसेअबतकढँूढहीरहीहंै।देवताओ ंके
भीआराध्यद ेवपर्भो!इनवर्जवािसयो ंकोइनकीसेवाकेबदलेमंेआपक्याफलदंेगे?सम्पूणर्फलोंकेफलस्वरूप
!आपसेबढ़करऔरकोईफलतोहैहीनहीं,यहसोचकरमेरािचत्तमोिहतहोरहाहै।आपउन्हंेअपनास्वरूपभी
देकरउऋणनहींहोसकते।क्योंिकआपकेस्वरूपकोतोउसपूतनानेभीअपनेसम्बिन्धयो ंअघासुर,बकासुर
आिदकेसाथपर्ाप्तकरिलया,िजसकाकेवलवेषहीसाध्वीस्तर्ीकाथा,परजोहृदयसेमहानकर्ूरथी।िफर
िजन्होंनेअपनेघर,धन,स्वजन,िपर्य,शरीर,पुतर्,पर्ाणऔरमन,सबकुछआपकेहीचरणोंमंेसमिपर्तकरिदया
है,अनुकर्मिजनकासबकुछआपकेहीिलएहै,उनवर्जवािसयो ंकोभीवहीफलदेकरआपकैसेउऋणहोसकते

हंै।सिच्चदान ंदस्वरूप श्यामस ुन्दर!तभीतकराग-द्वेषआिददोषचोरोंकेसमानसवर्स्वअपहरणकरतेरहतेहंै,
तभीतकघरऔरउसकेसम्बन्धीकैदकीतरहसम्बन्धकेबन्धनो ंमंेबाँधरखतेहंैऔरतभीतकमोहपैरकी
बेिड़योंकीतरहजकड़ेरखताहै,जबतकजीवआपकानहींहोजाता।पर्भो!आपिवश्वकेबखेड़ेसेसवर्थारिहत
है,िफरभीअपनेशरणागतभक्तजनो ंकोअनन्तआनंदिवतरणकरनेकेिलएपृथ्वीपरअवतारलेकरिवश्वके
समान ही लीला-िवलास का िवस्तार करत े हंै।
मेरेस्वामी!बहुतकहनेकीआवश्यकतानहीं।जोलोगआपकीमिहमाजानतेहंै,वेजानतेरहंे;मेरेमन,वाणी
औरशरीरतोआपकीमिहमाजाननेमंेसवर्थाअसमथर्हंै।सिच्चदान ंद–स्वरूपशर्ीकृष्ण!आपसबकेसाक्षीहंै।
इसिलएआपसबकुछजानतेहंै।आपसमस्तजगतकेस्वामीहै।यहसम्पूणर्पर्पंचआपमंेहीिस्थतहै।आपसे
मंैऔरक्याकहँू?अबआपमुझेस्वीकारकीिजय े।मुझेअपनेलोकमंेजानेकीआज्ञादीिजए।सबकेमन-पर्ाणको
अपनीरूप-माध ुरीसेआकिषर्तकरनेवालेश्यामस ुन्दर!आपयदुवंशरूपी कमलकोिवकिसतकरनेवालेसूयर्हंै।
पर्भो!पृथ्वी,देवता,बर्ाह्मणऔरपशुरूपसमुदर्कीअिभवृिद्धकरनेवालेचंदर्माभीआपहीहंै।आपपाखिण्डयो ंके
धमर्रूपराितर्काघोरअंधकार नष्टकरनेकेिलएसूयर्औरचंदर्मादोनोंकेहीसमानहंै।पृथ्वीपररहनेवालेराक्षसो ं
केनष्टकरनेवालेआपचंदर्मा, सूयर्आिदआिदसमस्तदेवताओ ंकेभीपरमपूजनीय हंै।भगवन ्!मंैअपने
जीवनभर, महाकल्पपयर्न्त आपको नमस्कार ही करता रह ँू।'
(शर्ीमद ् भागवतः 10.14.1-40)
अनुकर्म
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
देवताओ ं द्वारा स्त ुित
बर्ह्मािदकदेवताओ ंद्वारािवष्णुभगवानसेअसुरोंकािवनाशतथासंतोंकीरक्षाहेतुपर्ाथर्नािकयेजानेपर
सवर्शिक्तमानभगवानशर्ीकृष्णवसुदेव-देवकीकेघरपुतर्केरूपमंेअवतीणर्हुएथे।एकिदनसनकािदको ं,देवताओ ं
औरपर्जापितयो ंकेसाथबर्ह्माजी,भूतगणोंकेसाथसवर्ेश्वरमहादेवजी,मरुदगणो ंकेसाथदेवराज इन्दर्,आिदत्यगण,
आठोंवसु,अिश्वनीकुमार,ऋभु,अंिगराकेवंशजऋिष,ग्यारहरूदर्,िवश्वेदेव,साध्यगण,गन्धवर्,अप्सराए ँ,नाग,
िसद्ध,चारण,गुह्यक,ऋिष,िपतर,िवद्याधरऔरिकन्नरआिददेवतामनुष्यसामनोहरवेषधारणकरनेवालेऔर
अपनेश्यामस ुन्दरिवगर्हसेसभीलोगोंकामनअपनीओरखींचकररमालेनेवालेभगवानशर्ीकृष्णकेदशर्नकरने
द्वािरकाप ुरी मंे आते हंै तब व े पर्भु शर्ीकृष्ण की इस पर्कार स े स्तुित करत े हंै-
'स्वामी!कमोर्ंकेिवकटफंदोंसेछूटनेकीइच्छावाल ेमुमुक्षुजनभिक्तभावसेअपनेहृदयमंेिजनचरणकमलो ंका
िचंतनकरतेरहतेहंै।आपकेउन्हींचरणकमलो ंकोहमलोगोंनेअपनीबुिद्ध,इिन्दर्य,पर्ाण,मनऔरवाणीसे
साक्षात ्नमस्कारिकयाहै।अहो!आश्चयर्है!अिजत!आपमाियकरजआिदगुणोंमंेिस्थतहोकरइसअिचन्त्य
नाम-रूपात्मकपर्पंचकीितर्गुणमयी मायाकेद्वाराअपने-आपमंेहीरचनाकरतेहंै,पालनकरतेऔरसंहारकरतेहंै।
यहसबकरतेहुएभीइनकमोर्ंसेसेआपिलप्तनहींहोतेहंै;क्योंिकआपरागद्वेषािददोषोंसेसवर्थामुक्तहंैऔर
अपनेिनरावरणअखण्डस्वरूपभ ूतपरमानन्दमंेमग्नरहतेहंै।स्तुितकरनेयोग्यपरमात्मन ्!िजनमनुष्योंकी
िचत्तवृित्तराग-द्वेषािदसेकलुिषतहै,वेउपासना,वेदाध्यान, दान,तपस्याऔरयज्ञआिदकमर्भलेहीकरंे,परंतु
उनकीवैसीशुिद्धनहींहोसकती,जैसीशर्वणकेद्वारासंपुष्टशुद्धान्तःकरण सज्जनपुरुषोंकीआपकीलीलाकथा,
कीितर्केिवषयमंेिदनोंिदनबढ़करपिरपूणर्होनेवालीशर्द्धासेहोतीहै।मननशीलमुमुक्षुजनमोक्षपर्ािप्तकेिलए
अपनेपर्ेमसेिपघलेहुएहृदयकद्वारािजन्हंेिलये-िलयेिफरतेहंै,पांचरातर्िविधसेउपासनाकरनेवालेभक्तजन
समानऐश्वयर्कीपर्ािप्तकेिलएवासुदेव,संकषर्ण, पर्द्युम्नऔरअिनरुद्ध–इसचतुव्यर्ूहकेरूपमंेिजनकापूजनकरते
हंैऔरिजतेिन्दर्य औरधीरपुरुषस्वगर्लोककाअितकर्मणकरकेभगवद्धामकीपर्ािप्तकेिलएतीनोंवेदोंकेद्वारा
बतलायीहुईिविधसेअपनेसंयतहाथोंमंेहिवष्यलेकरयज्ञकुण्डमंेआहुितदेतेऔरउन्हींकािचंतनकरतेहंै।
आपकीआत्मस्वरूिपणीमायाकेिजज्ञास ुयोगीजनहृदयकेअन्तदर्ेशमंेदहरिवद्याआिदकेद्वाराआपकेचरणकमलो ं
काहीध्यानकरतेहंैऔरआपकेबड़े-बड़ेपर्ेमीभक्तजनउन्हींकोअपनीपरमइष्टआराध्यद ेवमानतेहंै।पर्भो!
आपकेवेहीचरणकमलहमारीसमस्तअशुभवासनाओ ं,िवषय-वासनाओ ंकोभस्मकरनेकेिलएअिग्नस्वरूपहों।
वेहमारेपाप-तापो ंकोअिग्नकेसमानभस्मकरदंे।पर्भो!यहभगवतीलक्ष्मीआपकेवक्षःस्थलपरमुरझायी हुई
बासीवनमालासेभीसौतकीतरहस्पधार्रखतीहंै।िफरभीआपउनकीपरवाहनकरभक्तोंकेद्वाराइसबासी
मालासेकीहुईपूजाभीपर्ेमसेस्वीकारकरतेहंै;ऐसेभक्तवत्सलपर्भुकेचरणकमलसवर्दाहमारीिवषय-वासनाओ ं
कोजलानेवालेअिग्नस्वरूपहों।अनन्त!वामनावतारमंेदैत्यराजबिलकीदीहुईपृथ्वीकोनापनेकेिलएजब
आपनेपगउठायाथाऔरवहसत्यलोकमंेपहँुचगयाथा,तबयहऐसाजानपड़ताथामानों,कोईबहुतबड़ा
िवजयध्वजहो।बर्ह्माजीद्वाराचरणपखारन ेकेबादउससेिगरतीहुईगंगाजी केजलकीतीनधाराएँऐसीजान
पड़तीथींमानों,ध्वजमंेलगीहुईतीनपताकाए ँफहरानहींहों।उन्हंेदेखकर असुरोंकीसेनाभयभीतहोगयीथी
औरदेवसेनािनभर्य।आपकायहचरणकमलसाधुस्वभाव केपुरुषोंकेिलएआपकेधामवैकुण्ठलोक कीपर्ािप्तका
औरदुष्टोंकेिलएअधोगितकाकारणहै।भगवन ्!आपकावहीपादपद्महमभजनकरनेवालोंकेसारेपाप-ताप
धो-बहादे।बर्ह्माआिदिजतनेभीशरीरधारीहंै,वेसत्व,रज,तम–इनतीनोंअनुकर्मगुणोंकेपरस्परिवरोधी
ितर्िवधभावोंकीटक्करसेजीते-मरतेरहतेहंै।वेसुख-दुःखकेथपेड़ोंसेबाहरनहींहंैऔरठीकवैसेहीआपकेवश
मंेहंै,जैसेनथेहुएबैलअपनेस्वामीकेवशमंेहोतेहंै।आपउनकेिलएभीकालस्वरूपहंै।उनकेजीवनका

आिद,मध्यऔरअंतआपकेहीअधीनहै।इतनाहीनहीं,आपपर्कृितऔरपुरुषसेभीपरेस्वयंपुरुषोत्तम हंै।
आपके चरणकमल हम लोगो ं का कल्याण कर ंे।
पर्भो!आपइसजगतकीउत्पित्त,िस्थितऔरपर्लयकेपरमकारणहंै;क्योंिकशास्तर्ोंनेऐसाकहाहैिकआप
पर्कृित,पुरुषऔरमहत्तत्वकेभीिनयंतर्णकरनेवालेकालहंै।शीत,गर्ीष्मऔरवषार्कालरूपतीननािभयो ंवाले
संवत्सर केरूपमंेसबकोक्षयकीओरलेजानेवालेकालआपहीहंै।आपकीगितअबाधऔरगम्भीरहै।आप
स्वयंपुरुषोत्तम हंै।यहपुरुषआपसेशिक्तपर्ाप्तकरकेअमोघवीयर्होजाताहैऔरिफरमायाकेसाथसंयुक्तहोकर
िवश्वकेमहत्तत्वरूपगभर्कास्थापनकरताहै।इसकेबादवहमहत्तत्वितर्गुणमयी मायाकाअनुसरण करकेपृथ्वी,
जल,तेज,वायु,आकाश,अहंकारऔरमनरूपसातआवरणो ं(परतों)वालेइससुवणर्वणर्बर्ह्माण्डकीरचनाकरता
है।इसिलएहृिषकेश!आपसमस्तचराचरजगतकेअधीश्वरहंै।यहीकारणहैिकमायाकीगुण-िवषमता के
कारणबननेवालेिविभन्नपदाथोर्ंकाउपभोगकरतेहुएभीआपउनमंेिलप्तनहींहोते।यहकेवलआपकीहीबात
है।आपकेअितिरक्तदूसरेतोस्वयंउनकात्यागकरकेभीउनिवषयोंसेडरतेरहतेहंै।सोलहहजारसेअिधक
रािनया ँआपकेसाथरहतीहंै।वेसबअपनीमंद-मंदमुस्कान औरितरछीिचतवनयुक्तमनोहरभौंहोंकेइशारेसे
औरसुर-ताल-आलापो ंसेपर्ौढ़सम्मोहककामबाणचलातीहंैऔरकामकलाकीिविवधरीितयो ंसेआपकामन
आकिषर्तकरनाचाहतीहंै;परंतुिफरभीवेअपनेपिरपुष्टकामबाणो ंसेआपकामनतिनकभीनिडगासकीं,वे
असफल ही रही ं।
िवभ्व्यस्तवाम ृतकथोदवहािस्तर्लोक्याः पादावन ेजसिरतः शमलािन हन्त ुम्।
आनुशर्वं शर्ुितिभरंिघर्जम ंगसंगैस्तीथर्द्वय ं शुिचषदस्त उपस्प ृशिन्त।।
आपनेितर्लोकीकीपापरािशकोधोबहानेकेिलएदोपर्कारकीपिवतर्निदया ँबहारखीहंै–एकतोआपकी
अमृतमयी लीलासेभरीकथा-नदीऔरदूसरीआपकेपाद-पर्क्षालनकेजलसेभरीगंगाजी। अतःसत्संगसेवी
िववेकीजन कानोंकेद्वाराआपकीकथा-नदीमंेऔरशरीरकेद्वारागंगाजी मंेगोतालगाकरदोनोंहीतीथोर्ंकासेवन
करते हंै और अपन े पाप िमटा द ेते हंै।'
(शर्ीमद ् भागवतः 11.6.7-11)
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
धर्ुव द्वारा स्त ुित
धर्ुवकोअपनेिपताउत्तानपादकीगोदमंेबैठनेकायत्नकरतेहुएदेखकर्ोिधतहुईसुरुिचनेजबधर्ुवसेयेवचन
कहे'यिदतुझेराजिस ंहासन कीइच्छाहैतोतपस्याकरकेपरम-प ुरुषअनुकर्मशर्ीनारायणकीआराधनाकरऔर
उनकीकृपासेमेरेगभर्मंेआकरजन्मले।'तबबालकधर्ुवमातासुनीितकेयहसमझान ेपरिक'जन्म-म ृत्युके
चकर्सेछूटनेकीइच्छाकरनेवालेमुमुक्षुलोगिनरंतरपर्भुकेचरणकमलो ंकेमागर्कीखोजिकयाकरतेहंै।तू
स्वधमर्पालनसेपिवतर्हुएअपनेिचत्तमंेशर्ीपुरुषोत्तम भगवानकोिबठालेतथाअन्यसबकािचन्तनछोड़करकेवल
उन्हींकाभजनकर।धर्ुवपर्भुपर्ािप्तकेिलएघरसेिनकलपड़तेहंै।रास्तेमंेदेविषर्नारदकेिमलनेपरवेउनसे
'पर्भुकीपर्ािप्तकैसेहो?','पर्भुकाध्यानकैसेकरूँ?'इसपर्कारकेपर्श्नपूछतेहंै।नारदजीपहलेतोउनकीपर्भुभिक्त
केपर्ितदृढ़ता,तत्परताएवंपिरपक्वताकीपरीक्षालेतेहंै।तदुपरान्त दयाकेसागर,सवार्धारभगवानशर्ीकृष्णके
सलोने,साँवलेस्वरूपकावणर्नकरद्वादशाक्षरमंतर्ॐनमोभगवत ेवासुदेवायकाजपकरनेकेिलएकहतेहंै।
बालकधर्ुवनारदजीकेउपदेशानुसारअपनीइिन्दर्यो ंकोिवषयोंसेहटाकरएवंपर्ाणोंकोरोककर,एकागर्िचत्तव
अनन्यबुिद्धसेिवश्वात्माशर्ीहिरकेध्यानमंेडूबजातेहंैपरंतुिजससमयउन्होंनेमहदािदसम्पूणर्तत्वोंकेआधार
तथापर्कृितऔरपुरुषकेभीअधीश्वरपरबर्ह्मकीधारणाकी,उससमयतीनोंलोकउनकेतेजकोनसहसकनेके
कारणकाँपउठे।तीवर्योगाभ्याससेएकागर्हुईबुिद्धकेद्वाराभगवानकीिबजलीकेसमानदेदीप्यमान िजसमूितर्
कावेअपनेहृदयकमलमंेध्यानकररहेथे,वहसहसािवलीनहोगयी।इससेघबराकरउन्होंनेज्योंहीनेतर्खोले
िक भगवान क े उसी रूप को बाहर अपन े सामन े खड़ा पाया।
पर्भुकेदशर्नपाकरबालकधर्ुवकोकुतूहलहुआ,वेपर्ेममंेअधीरहोगये।उन्होंनेपृथ्वीपरदण्डकेसमान
लोटकरउन्हंेपर्णामिकया।िफरवेइसपर्कारपर्ेमभरी दृिष्टसेउनकीओरदेखनेलगेमानों,नेतर्ोंसेउन्हंेपी
जायंेगे, मुख से चूम लंेगे और भ ुजाओं मंे कस ल ंेगे।
वेहाथजोड़ेपर्भुकेसामनेखड़ेथेऔरउनकीस्तुितकरनाचाहतेथे,परंतुस्तुितिकसपर्कारकरंेयहनहींजानते
थे।सवार्न्तयार्मीहिरउनकेमनकीबातजानगये।उन्होंनेकृपापूवर्कअपनेवेदमय शंखकोउनकेगालसेछुआ
िदया।शंखकास्पशर्होतेहीधर्ुवकोवेदमयी िदव्यवाणीपर्ाप्तहोगयीऔरजीवतथाबर्ह्माकेस्वरूपकाभी
िनश्चय हो गया। व े अत्यंत भिक्तभाव स े धैयर्पूवर्क िवश्विवख्यात कीितर्मान शर्ीहिर की स्त ुित करन े लगेः
'पर्भो!आपसवर्शिक्तसम्पन्नहंै।आपहीमेरेअंतःकरण मंेपर्वेशकरअपनेतेजसेमेरीइससोयीहुईवाणीको
सजीवकरतेहंैतथाहाथ,पैर,कानऔरत्वचाआिदअन्यान्यइिन्दर्यो ंएवंपर्ाणोंकोभीचेतनता देतेहंै।मंैआप
अंतयार्मी भगवान को पर्णाम करता ह ँू।
भगवन ्!आपएकहीहंै,परंतुअपनीअनंतगुणमयी मायाशिक्तसेइसमहदािदसम्पूणर्पर्पंचकोरचकर
अंतयार्मीरूप सेउसमंेपर्वेशकरजातेहंैऔरिफरइसकेइिन्दर्यािदअसत्गुणोंमंेउनकेअिधष्ठात ृ-देवताओ ंकेरूप
मंेिस्थतहोकरअनेकरूपभासतेहंै,ठीकवैसेहीजैसेतरह-तरहकीलकिड़यो ंमंेपर्कटहुईआगअपनीउपािधयो ं
केअनुसारिभन्न-िभन्नरूपोंमंेभासतीहै।अनुकर्म नाथ!सृिष्टकेआरम्भमंेबर्ह्माजीनेभीआपकीशरणलेकर

आपकेिदएहुएज्ञानकेपर्भावसेहीइसजगतकोसोकरउठेहुएपुरुषकेसमानदेखाथा।दीनबंधो!उन्हीं
आपके चरणतल का म ुक्त पुरुष भी आशर्य ल ेते हंै, कोई भी क ृतज्ञ प ुरुष उन्ह ंे कैसे भूल सकता ह ै?
पर्भो!इनशवतुल्यशरीरोंकेद्वाराभोगाजानेवाला,इिन्दर्यऔरिवषयोंकेसंसगर्सेउत्पन्नसुखतोमनुष्योंको
नरकमंेभीिमलसकताहै।जोलोगइसिवषयसुखकेिलएलालाियतरहतेहंैऔरजोजन्ममरणकेबंधनसे
छुड़ादेनेवालेकल्पतरूस्वरूपआपकीउपासनाभगवत्पर्ािप्तकेिसवायिकसीअन्यउद्देश्यसेकरतेहंै,उनकीवृिद्ध
अवश्यहीआपकीमायाकेद्वाराठगीगयीहै।नाथ!आपकेचरणकमलो ंकाध्यानकरनेसेऔरआपकेभक्तोंके
पिवतर्चिरतर्सुननेसेपर्ािणयो ंकोजोआनन्दपर्ाप्तहोताहै,वहिनजान ंदस्वरूप बर्ह्ममंेभीनहींिमलसकता।िफर
िजन्हंेकालकीतलवारकाटडालतीहै,उनस्वगीर्यिवमानो ंसेिगरनेवालेपुरुषोंकोतोवहसुखिमलहीकैसे
सकता ह ै।
भिक्तं मुहुः पर्वहता ं त्विय म े पर्संगो भूयादनन्त महताममलाशयानाम ्।
येनांजसोल्बणम ुरुव्यसन ं भवािब्ध ं नेष्ये भवद् गुणकथाम ृतपानमत्तः।।
अनन्तपरमात्मन ्!मुझेतोआपउनिवशुद्धहृदयमहात्माभक्तोंकासंगदीिजए,िजनकाआपमंेअिविच्छन्न
भिक्तभावहै,उनकेसंगमंेमंैआपकेगुणोंऔरलीलाओ ंकीकथा-स ुधाकोपी-पीकरउन्मत्तहोजाऊँगाऔरसहज
ही इस अन ेक पर्कार क े दुःखों से पूणर् भय ंकर संसार-सागर क े उस पार पह ँुच जाऊ ँगा।
(शर्ीमद ् भागवतः 4.9.11)
कमलनाथपर्भो!िजनकािचत्तआपकेचरणकमलकीसुगंधसेलुभाया हुआहै,उनमहानुभावोंकाजोलोगसंग
करतेहंैवेअपनेइसअत्यंतिपर्यशरीरऔरइसकेसम्बन्धीपुतर्,िमतर्,गृहऔरस्तर्ीआिदकीसुधभीनहींलेते।
अजन्मापरमेश्वर!मंैतोपशु,वृक्ष,पवर्त,पक्षी,सरीसृप(सपार्िदरंेगनेवालेजंतु),देवता,दैत्यऔरमनुष्यआिद
सेपिरपूणर्तथामहदािदअनेकोंकारणो ंसेसम्पािदतआपकेइससदसदात्मकस्थूलिवश्वरूपकोहीजानताहँू;
इससे परे जो आपका परम स्वरूप ह ै, िजसम ंे वाणी की गित नही ं है उसका म ुझे पता नही ं है।
भगवन ्!कल्पकाअंतहोनेपरयोगिनदर्ामंेिस्थतजोपरमपुरुषइससम्पूणर्िवश्वकोअपनेउदरमंेलीनकरके
शेषजीकेसाथउन्हींकीगोदमंेशयनकरतेहंैतथािजनक ेनािभ-सम ुदर्सेपर्कटहुएसवर्लोकमयसुवणर्वणर्कमल
से परम त ेजोमय बर्ह्माजी उत्पन्न ह ुए, वे भगवान आप ही ह ंै, मंै आपको पर्णाम करता ह ँू।
पर्भो!आपअपनीअखण्डिचन्मयीदृिष्टसेबुिद्धकीसभीअवस्थाओ ंकेसाक्षीहंैतथािनत्यम ुक्त,शुद्धसत्त्वमय,
सवर्ज्ञ,परमात्मस्वरूप,िनिवर्कार,आिदप ुरुष,षडैश्वयर्-सम्पन्न एवंतीनोंगुणोंकेअधीश्वरहंै।आपजीवसेसवर्था
िभन्न ह ंै तथा स ंसार की िस्थित क े िलए यज्ञािधष्ठाता िवष्ण ुरूप से िवराजमान ह ंै।अनुकर्म
आपसेहीिवद्या-अिवद्याआिदिवरुद्धगितयो ंवालीअनेकोंशिक्तया ँधारावािहकरूपसेिनरंतरपर्कटहोतीरहतीहंै।
आपजगतकेकारण,अखण्ड,अनािद,अनन्त,आनंदमय िनिवर्कारबर्ह्मस्वरूपहंै।मंैआपकीशरणहँू।भगवन ्!
आपपरमान ंदमूितर्हंै,जोलोगऐसासमझकरिनष्कामभावसेआपकािनरन्तरभजनकरतेहंै,उनकेिलएराज्यािद
भोगोंकीअपेक्षाआपकेचरणकमलो ंकीपर्ािप्तहीभजनकासच्चाफलहै।स्वािमन ्!यद्यिपबातऐसीहीहैतोभी
जैसेगौअपनेतुरंतकेजन्मेहुएबछड़ेकोदूधिपलातीहैऔरव्याघर्ािदसेबचातीरहतीहंै,उसीपर्कारआपभी
भक्तोंपरकृपाकरनेकेिलएिनरंतरिवकलरहनेकेकारणहमजैसेसकामजीवोंकीभीकामनापूणर्करकेउनकी
संसार-भय स े रक्षा करत े रहते हंै।'
(शर्ीमद ् भागवतः 4.9.6-17)
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
महाराज प ृथु द्वारा स्त ुित
जबराजापृथुसौवांअश्वमेधयज्ञकररहेथे,तबइन्दर्नेईष्यार्वशउनकेयज्ञकाघोड़ाहरिलया।इन्दर्कीइस
कुचालकापतालगनेपरमहाराजपृथुइन्दर्कावधकरनेकेिलएतैयारहोगयेपरंतुऋित्वजो ंनेउन्हंेरोकिदया
और इन्दर् को अिग्न म ंे हवन करन े का वचन िदया।
याजककर्ोधपूवर्कइन्दर्काआवाहनकरस्तर्ुवाद्वाराआहुितडालनाहीचाहतेथेिकबर्ह्माजीनेपर्कटहोकरउन्हंेरोक
िदयाऔरकहािकमहाराजपृथुकेिनन्यानव ंेहीयज्ञरहनेदो।पृथुकेिनन्यानव ंेयज्ञोंसेयज्ञभोक्तायज्ञेश्वर
भगवानिवष्णुजीसंतुष्टहुएऔरपर्कटहोकरराजासेइन्दर्कोक्षमाकरनेकेिलएकहा।इन्दर्अपनेकमर्से
लिज्जत होकर राजा प ृथु के चरणो ं मंे िगरना ही चाहत े थे िक राजा न े उन्हंे पर्ेमपूवर्क हृदय स े लगा िलया।
िफरमहाराजपृथुनेिवश्वात्मा,भक्तवत्सलभगवानकापूजनिकयाऔरक्षण-क्षणमंेउमड़त ेहुएभिक्तभावमंे
िनमग्नहोकरपर्भुकेचरणकमलपकड़िलए।शर्ीहिरवहाँसेजानाचाहतेथेिकंतुपृथुकेपर्ितजोउनका
वात्सल्यभावथाउसनेउन्हंेरोकिलया।महाराजपृथुबीनेतर्ोंमंेजलभरआनेकेकारणनतोभगवानकादशर्न
हीकरसकेऔरनकण्ठगदगदहोजानेकेकारणकुछबोलहीसके।उन्हंेहृदयसेआिलंगनकरपकड़ेरहेऔर
हाथजोड़ेज्यों-के-त्योंखड़ेरहगये।िफरमहाराजपृथुनेतर्ोंकेआँसूपोंछकर अतृप्तदृिष्टसेउनकीओरदेखतेहुए
इस पर्कार स्त ुित करन े लगेः
'मोक्षपितपर्भो!आपवरदेनेवालेबर्ह्मािददेवताओ ंकोभीवरदेनेमंेसमथर्हंै।कोईभीबुिद्धमान पुरुषआपसे
देहािभमािनयो ंकेभोगनेयोग्यिवषयोंकोकैसेमाँगसकताहै?वेतोनारकीयजीवोंकोभीिमलतेहंै।अतःमंैइन
तुच्छ िवषयो ं को आपस े नहीं माँगता। अनुकर्म
न कामय े नाथ तदप्यह ं क्विचन ् न यतर् य ुष्मच्चरणाम्ब ुजासवः।

महत्तमान्तहर् ृदयान्म ुखच्युतो िवधत्स्व कणार्य ुतमेष मे वरः।।
स उत्तमश्लोक महन्म ुखच्युतो भवत्पदाम्भोजस ुधाकणािनलः।
स्मृितं पुनिवर्स्म ृततत्त्वत्मर्ना ं कुयोिगना ं नो िवतरत्यल ं वरैः।।
मुझेतोउसमोक्षपदकीभीइच्छानहींहैिजसम ंेमहापुरुषोंकेहृदयसेउनकेमुखद्वारािनकलाहुआआपके
चरणकमलो ंकामकरन्दनहींहै,जहाँआपकीकीितर्-कथासुननेकासुखनहींिमलता।इसिलएमेरीतोयहीपर्ाथर्ना
हैिकआपमुझेदसहजारकानदेदीिजए,िजनस ेमंैआपकेलीलाग ुणोंकोसुनताहीरहँू।पुण्यकीितर् पर्भो!आपके
चरणकमल-मकरन्दरूपीअमृतकणो ंकोलेकरमहापुरुषोंकेमुखसेजोवायुिनकलतीहै,उसीमंेइतनीशिक्तहोतीहै
िकवहतत्त्वकोभूलेहुएहमकुयोिगयो ंकोपुनःतत्त्वज्ञानकरादेतीहै।अतएवहमंेदूसरेवरोंकीकोईआवश्यकता
नहीं है।
(शर्ीमद ् भागवतः 4.20.24.25)
उत्तमकीितर्वालेपर्भो!सत्संगमंेआपकेमंगलमय सुयशकोदैववशएकबारभीसुनलेनेपरकोईपशुबुिद्धपुरुष
भलेहीतृप्तहोजाये;गुणगर्ाही उसेकैसेछोड़सकताहै?सबपर्कारकेपुरुषाथोर्ंकीिसिद्धकेिलएस्वयंलक्ष्मीजी
भीआपकेसुयशकोसुननाचाहतीहँू।अबलक्ष्मीजीकेसमानमंैभीअत्यन्तउत्सुकतासेआपसवर्गुणधाम
पुरुषोत्तम कीसेवाहीकरनाचाहताहँू।िकंतुऐसानहोिकएकहीपितकीसेवापर्ाप्तकरनेकीहोड़होनेकेकारण
आपके चरणो ं मंे ही मन को एकागर् करन े वाले हम दोनो ं मंे कलह िछड़ जाय े।
जगदीश्वर!जगज्जननीलक्ष्मीजीकेहृदयमंेमेरेपर्ितिवरोधभावहोनेकीसंभावना तोहैही;क्योंिकआपकेिजस
सेवाकायर् मंेउनकाअनुरागहै,उसीकेिलएमंैभीलालाियतहँू।िकंतुआपदीनोंपरदयाकरतेहंै,उनकेतुच्छ
कमोर्ंकोभीबहुतकरकेमानतेहंै।इसिलएमुझेआशाहैिकहमारेझगड़ेमंेभीआपमेराहीपक्षलंेगे।आपतो
अपनेस्वरूपमंेहीरमणकरतेहंै,आपकोभलालक्ष्मीजीसेभीक्यालेनाहै।इसीसेिनष्काममहात्माज्ञानहो
जानेकेबादभीआपकाभजनकरतेहंै।आपमायाकेकायर्अहंकारािद कासवर्थाअभावहै।भगवन ्!मुझेतो
आपकेचरणकमलो ंकािनरंतरिचंतनकरनेसेिसवासत्पुरुषोंकाकोईऔरपर्योजनहीनहींजानपड़ता।मंैभी
िबनािकसीइच्छाकेआपकाभजनकरताहँू।आपनेजोमुझसेकहािक'वरमाँग'सोआपकीइसवाणीकोतोमंै
संसारकीमोहमंेडालनेवालीहीमानताहँू।यहीक्या,आपकीवेदरूपा वाणीनेभीतोजगतकोबाँधरखाहै।
यिदउसवेदवाणीरूप रस्सीसेलोगबँधेनहोतेतोवेमोहवशसकामकमर्क्योंकरते?पर्भो!आपकीमायासेही
मनुष्यअपनेवास्तिवकस्वरूपआपसेिवमुखहोकरअज्ञानवशअन्यस्तर्ी-पुतर्ािदकीइच्छाकरताहै।िफरभीिजस
पर्कारिपतापुतर्कीपर्ाथर्नाकीअपेक्षानरखकरअपने-आप हीपुतर्काकल्याणकरताहै,उसीपर्कारआपभी
हमारी इच्छा की अप ेक्षा न करक े हमार े िहत क े िलए स्वय ं ही पर्यत्न कर ंे।'अनुकर्म
(शर्ीमद ् भागवतः 4.20.23-31)
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
रूदर् द्वारा स्त ुित
राजापृथुकेपर्पौतर्पर्ाचीनबिहर्नेबर्ह्माजीकेकहनेसेसमुदर्कीकन्याशतदर्ुितसेिववाहिकयाथा।शतदर्ुितकेगभर्
सेपर्ाचीनबिहर्केपर्चेतानामकेदसपुतर्हुए।वेसबबड़ेहीधमर्ज्ञतथाएकसेनामऔरआचरणवाल ेथे।िपता
द्वारासन्तानोत्पित्तकाआदेशिदयेजानेपरवेसबतपस्याकरतेहुएशर्ीहिरकीआराधनाकी।घरसेतपस्याकरने
केिलएजातेसमयमागर्मंेशर्ीमहादेवजीनेउन्हंेदशर्नदेकरकृपापूवर्कउपदेशिदयाऔरस्तोतर्सुनाया। वह
नारायण-परायणकरूणादर्र्हृदयभगवानरूदर्द्वाराकीगयीशर्ीहिरकीपिवतर्,मंगलमयी एवंकल्याणकारीस्तुितइस
पर्कार स े हैः
'भगवन ्!आपकाउत्कषर्उच्चकोिटकेआत्मज्ञािनयो ंकेकल्याणकेिलए,िनजानन्दलाभकेिलएहै,उससेमेरा
भीकल्याणहो।आपसवर्दाअपनेिनरितशयपरमान ंद-स्वरूप मंेहीिस्थतरहतेहंै,ऐसेसवार्त्मकआत्मस्वरूप
आपकोनमस्कारहै।आपपद्मनाभ(समस्तलोकोंकेआिदकारण)हंै;भूतसूक्ष्म(तन्मातर्)औरइिन्दर्यो ंकेिनयंता,
शांत,एकरसऔरस्वयंपर्काश वासुदेव(िचत्तकेअिधष्ठाता)भीआपहीहंै;आपकोनमस्कारहै।आपहीसूक्ष्म
(अव्यक्त),अनन्तऔरमुखािग्न केद्वारासम्पूणर्लोकोंकासंहारकरनेवालेअहंकारकेअिधष्ठातासंकषर्ण तथा
जगतकेपर्वृष्टज्ञानकेउदगमस्थानबुिद्धकेअिधष्ठातापर्द्युम्नहंै,आपकोनमस्कारहै।आपहीइिन्दर्यो ंकेस्वामी,
मनस्तत्त्वकेअिधष्ठाताभगवानअिनरुद्धहंै;आपकोबार-बारनमस्कारहै।आपअपनेतेजसेजगतकोव्याप्तकरने
वालेसूयर्देवहंै,पूणर्होनेकेकारणआपमंेवृिद्धऔरक्षयनहींहोता;आपकोनमस्कारहै।आपस्वगर्औरमोक्षके
द्वारतथािनरंतरपिवतर्हृदयमंेरहनेवालेहंै,आपकोनमस्कारहै।आपहीसुवणर्रूप वीयर्सेयुक्तऔरचातुहोर्तर्
कमर्केसाधनतथािवस्तारकरनेवालेअिग्नद ेवहंै;आपकोनमस्कारहै।आपिपतरऔरदेवताओ ंकेपोषकसोम
हंैतथातीनोंवेदोंकेअिधष्ठाताहंै;हमआपकोनमस्कारकरतेहंै।आपहीसमस्तपर्ािणयो ंकोतृप्तकरनेवाले
सवर्रस(जल)रूपहंै;आपकोनमस्कारहै।आपसमस्तपर्ािणयो ंकेदेह,पृथ्वीऔरिवराटस्वरूपहंैतथाितर्लोकीकी
रक्षाकरनेवालेमानिसक,ऐंिदर्यऔरशारीिरकगुणशब्दकेद्वारासमस्तपदाथोर्ंकाज्ञानकरानेवालेतथाबाहर-
भीतरकाभेदकरनेवालेआकाशहंैतथाआपहीमहानपुण्योंसेपर्ाप्तहोनेवालेपरमतेजोमय स्वगर्-व ैकुण्ठािद
लोकहंै;आपकोपुनः-पुनःनमस्कारहै।आपिपतृलोककीपर्ािप्तकरानेवालेपर्वृित्त-कमर्रूप औरदेवलोक कीपर्ािप्तके

साधनिनवृित्त-कमर्रूप हंैतथाआपहीअधमर्केफलस्वरूपदुःखदायक अनुकर्ममृत्युहंै;आपकोनमस्कारहै।नाथ
!आपहीपुराणपुरुषतथासांख्यऔरयोगकेअधीश्वरभगवानशर्ीकृष्णहंै,आपसबपर्कारकीकामनाओ ंकीपूितर्
केकारण,साक्षात ्मंतर्मूितर्औरमहानधमर्स्वरूपहंै;आपकीज्ञानशिक्तिकसीभीपर्कारकुिण्ठत होनेवालीनहींहै,
आपकोनमस्कारहै,नमस्कारहै।आपहीकतार्,करणऔरकमर्इनतीनोंशिक्तयो ंकेएकमातर्आशर्यहंै;आपही
अहंकारकेअिधष्ठातारूदर्हंै;आपहीज्ञानऔरिकर्यास्वरूपहंैतथाआपसेहीपरा,पश्यन्ती,मध्यमाऔरवैखरी
इन चार पर्कार की वािणओ ं की अिभव्यिक्त होती ह ै;आपको नमस्कार ह ै।
पर्भो!हमंेआपकेदशर्नोंकीअिभलाषाहै,अतःआपकेभक्तजनिजसकापूजनकरतेहंैऔरजोआपकेिनजजनों
कोअत्यंतिपर्यहैअपनेउसअनूपरूपकीआपहमंेझाँकीकराइय े।आपकावहरूपअपनेगुणोंसेसमस्त
इिन्दर्यो ंकोतृप्तकरनेवालाहै।वहवषार्कालीनमेघकेसमानिस्नग्ध,श्यामऔरसम्पूणर्सौन्दयोर्ंकासार-सवर्स्व
है।सुन्दरचारिवशालभुजाएँमहामनोहरमुखारिवन्द, कमल-दलकेसमाननेतर्,सुन्दरभौंहेसुघड़नािसका,
मनमोिहनीदंतपंिक्त,अमोलकपोलय ुक्तमनोहरशोभाशालीसमानकणर्-य ुगलहंै।पर्ीितपूणर्उन्मुक्तहास्यितरछी
िचतवन,काली-कालीघँुघराली अलकंे,कमलक ुसुमकीसमानफहराताहुआपीताम्बर,िझलिमलात ेहुएकुण्डल,
चमचमात ेहुएमुकुट,कंगन(कंकण), हार,नूपुरऔरमेखलाआिदिविचतर्आभूषणतथाशंख,चकर्,गदा,पद्म,
वनमालाऔरकौस्तुभमिणकेकारणउसकीअपूवर्शोभाहै।उसकेिसंहकेसमानस्थूलकंधेहंै,िजनपरहार,
केयूरएवंकुण्डलािद कीकांितिझलिमलातीरहतीहै,तथाकौस्तुभमिणकीकांितसेसुशोिभत मनोहरगर्ीवाहै।
उसकाश्यामलवक्षःस्थलशर्ीवत्सिचह्नकेरूपमंेलक्ष्मीजीकािनत्यिनवासहोनेकेकारणकसौटीकीशोभाको
भीमातकरताहै।उसकाितर्वलीसेसुशोिभत पीपलकेपत्तेकेसमानसुडौलउदरश्वासकेआने-जानेसेिहलता
हुआबड़ाहीमनोहरजानपड़ताहै।उसमंेजोभँवरकेसमानचक्करदारनािभहै,वहइतनीगहरीहैिकउससे
उत्पन्नहुआयहिवश्वमानों,िफरउसीमंेलीनहोनाचाहताहै।श्यामवणर्किटभागमंेपीताम्बरऔरसुवणर्की
मेखलाशोभायमानहै।समानऔरसुन्दरचरण,िपंडली,जाँघऔरघुटनोंकेकारणआपकािदव्यिवगर्हबड़ाही
सुघड़जानपड़ताहै।आपकेचरणकमलो ंकीशोभाशरद्ऋतुकेकमलदलकीकांितकाभीितरस्कारकरतीहै।
उनकेनखोंसेजोपर्काशिनकलताहै,वहजीवोंकेहृदयान्धकारकोतत्कालनष्टकरदेताहै।हमंेआपकृपाकरके
भक्तोंकेभयहारीएवंआशर्यस्वरूपउसीरूपकादशर्नकराइय े।जगदग ुरो!हमअज्ञानाव ृतपर्ािणयो ंकोअपनीपर्ािप्त
का मागर् बतलान ेवाले आप ही हमार े गुरु हंै।अनुकर्म
एतदर्ूपमनुध्येयमात्म श ुिद्धमभीप्सताम ्।
यद् भिक्तयोगोऽभयदः स्वधमर्न ुितष्ठताम ्।।
भवान् भिक्तमता लभ्यो द ुलर्भः सवर्द ेिहनाम ्।
स्वाराज्यस्याप्यिभमत एकान्त ेनात्मिवदगितः।।
पर्भो!िचत्तशुिद्धकीअिभलाषारखनेवालेपुरुषकोआपकेइसरूपकािनरंतरध्यानकरनाचािहए,इसकीभिक्तही
स्वधमर्कापालनकरनेवालेपुरुषकोअभयकरनेवालीहै।स्वगर्काशासनकरनेवालाइन्दर्भीआपकोहीपाना
चाहताहैतथािवशुद्धआत्मज्ञािनयो ंकीगितभीआपहीहंै।इसपर्कारआपसभीदेहधािरयो ंकेिलएअत्यंतदुलर्भ
हंै;केवल भिक्तमान प ुरुष ही आपको पा सकत े हंै।
(शर्ीमद ् भागवतः 4.24.53.54)
सत्पुरुषोंकेिलएभीदुलर्भअनन्यभिक्तसेभगवानकोपर्सन्नकरके,िजनकीपर्सन्नतािकसीअन्यसाधनासे
दुःसाध्य है,ऐसाकौनहोगाजोउनकेचरणतलकेअितिरक्तऔरकुछचाहेगा।जोकालअपनेअदम्यउत्साहऔर
पराकर्मसेफड़कतीहुएभौंहकेइशारेसेसारेसंसारकासंहारकरडालताहै,वहभीआपकेचरणोंकीशरणमंे
गयेहुएपर्ाणीपरअपनाअिधकारनहींमानता।ऐसेभगवानकेपर्ेमीभक्तोंकायिदआधेक्षणकेिलएभीसमागम
होजायतोउसकेसामनेमंैस्वगर्औरमोक्षकोकुछनहींसमझता;िफरमत्यर्लोककेतुच्छभोगोंकीतोबातही
क्याहै।पर्भो!आपकेचरणसम्पूणर्पापरािशकोहरलेनेवालेहंै।हमतोकेवलयहीचाहतेहंैिकिजनलोगोंने
आपकीकीितर्औरतीथर्(गंगाजी) मंेआन्तिरकऔरबाह्यस्नानकरकेमानिसकऔरशारीिरकदोनोंपर्कारकेपापों
कोधोडालाहैतथाजोजीवोंकेपर्ितदया,राग-द्वेषरिहत िचत्ततथासरलताआिदगुणोंसेयुक्तहंै,उनआपके
भक्तजनो ंकासंगहमंेसदापर्ाप्तहोतारहे।यहीहमपरआपकीबड़ीकृपाहोगी।िजससाधककािचत्तभिक्तयोगसे
अनुगृहीतएवंिवशुद्धहोकरनतोबाह्यिवषयोंमंेभटकताहैऔरनअज्ञान-ग ुहारूप पर्कृितमंेहीलीनहोताहै,वह
अनायासहीआपकेस्वरूपकादशर्नपाजाताहै।िजसम ंेयहसाराजगतिदखायीदेताहैऔरजोस्वयंसम्पूणर्
जगत म ंे भास रहा ह ै, वह आकाश क े समान िवस्त ृत और परम पर्काशमय बर्ह्मतत्त्व आप ही ह ंै।
भगवान!आपकीमायाअनेकपर्कारकेरूपधारणकरतीहै।इसीकेद्वाराआपइसपर्कारजगतकीरचना,पालन
औरसंहारकरतेहंैजैसेयहकोईसदवस्तुहो।िकंतुइससेआपमंेिकसीपर्कारकािवकारनहींआता।मायाके
कारणदूसरेलोगोंमंेहीभेदबुिद्धउत्पन्नहोतीहै,आपपरमात्मापरवहअपनापर्भावडालनेमंेअसमथर्होतीहै।
आपकोतेहमपरमस्वतन्तर्हीसमझत ेहंै।आपकास्वरूपपंचभूत,इिन्दर्यऔरअंतःकरण केपर्ेरकरूपसे
उपलिक्षतहोताहै।जोकमर्योगीपुरुषिसिद्धपर्ाप्तकरनेकेिलएतरह-तरहकेकमोर्ंद्वाराआपकेइससगुण,
साकारस्वरूपकाशर्द्धापूवर्कभलीभा ँितपूजनकरतेहंै,वेहीवेदऔरशास्तर्ोंकेसच्चेममर्ज्ञहंै।पर्भो!आपही
अिद्वतीयआिदप ुरुषहंै।सृिष्टकेपूवर्आपकीमायाशिक्तसोयीरहतीहै।िफरउसीकेद्वारासत्त्व,रजऔरतमरूप

गुणोंकाभेदहोताहैऔरइसकेबादउन्हींगुणोंसेमहत्तत्त्व,अहंकार,आकाश,वायु,अिग्न,जल,पृथ्वी,देवता,
ऋिष और समस्त पर्ािणयो ं से युक्त इस जगत की उत्पित्त होती ह ै।अनुकर्म
िफरआपअपनीमायाशिक्तसेरचेहुएइनजरायुज,अण्डज,स्वेदजऔरउदिभज्जभेदसेचारपर्कारमधुमिक्खया ँ
अपनेहीउत्पन्निकयेहुएमधुकाआस्वादनकरतीहंै,उसीपर्कारवहआपकाअंशउनशरीरोंमंेरहकरइिन्दर्यो ं
के द्वारा इन त ुच्छ िवषयो ं को भोगता ह ै। आपक े उस अ ंश को ही प ुरुष या जीव कहत े हंै।
पर्भो!आपकातत्त्वज्ञानपर्त्यक्षसेनहीं,अनुमानसेहोताहै।पर्लयकालउपिस्थतहोनेपरकालस्वरूपआपही
अपनेपर्चण्डएवंअसह्यवेगसेपृथ्वीआिदभूतोंकोअन्यभूतोंसेिवचिलतकराकरसमस्तलोकोंकासंहारकर
देतेहंै।जैसेवायुअपनेअसहनीयएवंपर्चण्डझोंकोंसेमेघोंकेद्वाराहीमेघोंकोिततर-िबतरकरकेनष्टकरडालती
है।भगवन ्!यहमोहगर्स्तजीवपर्मादवशहरसमयइसीिचंतामंेरहताहैिक'अमुककायर्करनाहै।'इसकालोभ
बढ़गयाहैऔरइसेिवषयोंकीहीलालसाबनीरहतीहै।िकंतुआपसदाहीसजगरहतेहंै;भूखसेजीभ
लपलपाताहुआसपर्जैसेचूहेकोचटकरजाताहै,उसीपर्कारआपअपनेकालस्वरूपसेउसेसहसालीलजातेहंै।
आपकीअवहेलनाकरनेकेकारणअपनीआयुकोव्यथर्माननेवालाऐसाकौनिवद्वानहोगा,जोआपकेचरणकमलो ं
कोिबसारेगा?इनकीपूजातोकालकीआशंकासेहीहमारेिपताबर्ह्माजीऔरस्वायम्भ ुवआिदचौदहमनुओंनेभी
िबनाकोईिवचारिकयेकेवलशर्द्धासेहीकीथी।बर्ह्मन!इसपर्कारसाराजगतरूदर्रूपकालकेभयसेव्याकुल
है। अतः परमात्मन ्!इस तत्त्व को जानन े वाले हम लोगो ं के तो इस समय आप ही सवर्था भयश ून्य आशर्य ह ंै।'
(शर्ीमद ् भागवतः 4.24.33-68)
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
पर्ह्लाद द्वारा स्त ुित
परमभक्तपर्ह्लादकेकर्ूरिपतािहरण्यकिशप ुकोनृिसंहभगवाननेअपनेनखरूपीशस्तर्ोंद्वारािवदीणर्करडालापरंतु
िफरभीउनकाउगर्कोपशांतनहींहोरहाथा।देवताओ ंनेउन्हंेशांतकरनेकेिलएलक्ष्मीजीसेपर्ाथर्नाकीिकंतु
वेभीभगवानकेपासजानेसेडररहीथी,तत्पश्चात ्बर्ह्माजीनेभक्तराजपर्ह्लादकोभेजा।भक्तपर्ह्लाद
शरणागतवत्सलभगवानकेपासजाकरहाथजोड़पृथ्वीपरसाष्टांगलोटगये।नन्हंे-सेबालककोअपनेचरणोंमंे
नतमस्तकदेखकर पर्भुकाउगर्कोपशांतहोगया।उन्होंनेपर्ह्लादकोउठाकरजैसेहीअपनाकरकमलउनकेिसर
पररखा,भक्तपर्ह्लादकोपरमात्मतत्त्वकासाक्षात्कारहोगया।उनकेहृदयमंेपर्ेमकीधारापर्वािहतहोनेलगीऔर
नेतर्ोंसेआनंदाशर्ुझरनेलगे।वेपर्भुकेगुणोंकािचन्तनकरतेहुएगदगदवाणीसेभावपूवर्कशर्ीहिरकीइसपर्कार
से स्तुित करन े लगेःअनुकर्म
'बर्ह्माआिददेवता,ऋिष-म ुिनऔरिसद्धपुरुषोंकीबुिद्धिनरन्तरसत्त्वगुणमंेहीिस्थतरहतीहै।िफरभीवेअपनी
धारापर्वाहस्तुितऔरअपनेिविवधगुणोंसेआपकोअबतकभीसंतुष्टनहींकरसके,िफरमंैतोघोरअसुरजाित
मंे उत्पन्न ह ुआ हँू। क्या आप म ुझसे सन्तुष्ट हो सकत े हंै?
मंैसमझताहँूिकधन,कुलीनता, रूप,तपिवद्या,ओज,तेज,पर्भाव,बल,पौरूष,बुिद्धऔरयोगयेसभीगुणपरम
पुरुषभगवानकोसंतुष्टकरनेमंेसमथर्नहींहंै,परंतुभिक्तसेतोभगवानगजेन्दर्परभीसंतुष्टहोगयेथे।मेरी
समझसेइनबारहगुणोंसेयुक्तबर्ाह्मणभीयिदभगवानकमलनाभकेचरणकमलो ंसेिवमुखहोतोउससेवह
चाण्डालशर्ेष्ठहै,िजसन ेअपने,मन,वचन,कमर्,धनऔरपर्ाणभगवानकेचरणोंमंेसमिपर्तकररखेहंै,क्योंिक
वहचाण्डालतोअपनेकुलतककोपिवतर्करदेताऔरबड़प्पनकाअिभमानरखनेवालावहबर्ाह्मणअपनेकोभी
पिवतर्नहींकरसकता।सवर्शिक्तमानपर्भुअपनेस्वरूपकेसाक्षात्कारसेहीपिरपूणर्हंै।उन्हंेअपनेिलएक्षुदर्पुरुषों
सेपूजागर्हणकरनेकीआवश्यकतानहींहै।वेकरूणावशहीभोलेभक्तोंकेिहतकेिलएउनकेद्वाराकीहुईपूजा
स्वीकारकरलेतेहंै।जैसेअपनेमुखकासौन्दयर्दपर्णमंेिदखनेवालेपर्ितिबम्बकोभीसुन्दरबनादेताहै,वैसेही
भक्तभगवानकेपर्ितजो-जोसम्मानपर्कटकरताहै,वहउसेहीपर्ाप्तहोताहै।इसिलएसवर्थाअयोग्यऔर
अनिधकारीहोनेपरभीमंैिबनािकसीशंकाकेअपनीबुिद्धकेअनुसारसबपर्कारसेभगवानकीमिहमाकावणर्न
कररहाहँू।इसमिहमाकेगानकाहीऐसापर्भावहैिकअिवद्यावशसंसारचकर्मंेपड़ाहुआजीवतत्कालपिवतर्हो
जाता ह ै।
भगवन ्!आपसत्त्वगुणकेआशर्यहंै।येबर्ह्माआिदसभीदेवताआपकेआज्ञाकारीभक्तहंै।येहमदैत्योंकीतरह
आपसेद्वेषनहींकरते।पर्भो!आपबड़े-बड़ेसुन्दरअवतारलेकरइसजगतकेकल्याणएवंअभ्युदयकेिलएतथा
उसेआत्मान ंदकीपर्ािप्तकरानेकेिलएअनेकोंपर्कारकीलीलाए ँकरतेहंै।िजसअसुरकोमारनेकेिलएआपने
कर्ोधिकयाथा,वहमाराजाचुकाहै।अबआपअपनाकर्ोधशांतकीिजए।जैसेिबच्छूऔरसाँपकीमृत्युसे
सज्जनभीसुखीहीहोतेहंै,वैसेहीइसदैत्यसंहारसेसभीलोगोंकोबड़ासुखिमलाहै।अबसबआपकेशांत
स्वरूपकेदशर्नकीबाटजोहरहेहंै।नृिसंहदेव!भयसेमुक्तहोनेकेिलएभक्तजनआपकेइसरूपकास्मरण
करंेगे।
नाहं िबभेम्यिजत त ेऽितभयानकास्यिजह्वाकर्न ेतर्भर्ुकुटीरभसोगर् ंदष्टर्ात्।
आन्तर्सर्जः क्षतजक ेसरशंकुकणार्िग्नह्लार्भीतिदिगभादिरिभन्नखागर्ात ्।।
परमात्मन ्!आपकामुखबड़ाभयावनाहै।आपकीजीभलपलपारहीहै।आँखंेसूयर्केसमानहंै।भौहंेचढ़ीहुईहंै।
दढ़ंेबड़ीपैनीहंै।आँतोंकीमाला,गरदनकेबालखूनसेलथपथ,बछर्ेकीतरहसीधेखड़ेकानऔरिदग्गजो ंको

भीभयभीतदेनेवालािसंहनाद एवंशतर्ुओंकोफाड़डालनेवालेआपकेइननखोंकोदेखकर मंैतिनखभीभयभीत
नहीं हुआ हँू।अनुकर्म
(शर्ीमद ् भागवतः 7.9.15)
दीनबन्धो!मंैभयभीतहँूतोकेवलइसअसह्यऔरउगर्संसारचकर्मंेिपसनेसे।मंैअपनेकमर्पाशो ंसेबँधकरइन
भयंकरजंतुओंकेबीचमंेडालिदयागयाहँू।मेरेस्वामी!आपपर्सन्नहोकरमुझेकबअपनेउनचरणकमलो ंमंे
बुलायंेगे,जोसमस्तजीवोंकीएकमातर्शरणऔरमोक्षस्वरूपहंै।अनन्त!मंैिजन-िजनयोिनयो ंमंेगया,उनसभी
योिनयो ंमंेिपर्यकेिवयोगऔरअिपर्यकसंयोगसेहोनेवालेशोककीआगमंेझुलसता रहा।उनदुःखोंको
िमटान ेकीजोदवाहै,वहभीदुःखरूप हीहै।मंैनजानेकबसेअपनेसेअितिरक्तवस्तुओंकोआत्मासमझकर
इधर-उधरभटकरहाहँू।अबआपऐसासाधनबतलाइय ेिजसस ेिकआपकीसेवा-भिक्त पर्ाप्तकरसकँू।पर्भो!आप
हमारेिपर्यहंै,अहेतुकिहतैषीसुहृदहंै।आपरीवास्तवमंेसबकेपरमाराध्यहंै।मंैबर्ह्माजीकेद्वारागायीहुईआपकी
लीला-कथाओ ंकागानकरताहुआबड़ीसुगमता सेरागािदपर्ाकृतगुणोंसेमुक्तहोकरइससंसारकीकिठनाइयो ंको
पारकरजाऊँगा,क्योंिकआपकेचरणय ुगलोंमंेरहनेवालेभक्तपरमहंसमहात्माओ ंकासंगतोमुझेिमलताही
रहेगा।भगवाननृिसंह!इसलोकमंेदुःखीजीवोंकादुःखिमटान ेकेिलएजोउपायमानाजाताहै,वहआपके
उपेक्षाकरनेपरएकक्षणकेिलएहीहोताहै।यहाँतकिकमाँ-बापबालककीरक्षानहींकरसकते,औषिधरोग
नहीं िमटा सकती और सम ुदर् मंे डूबते हुए को नौका नही ं बचा सकती।
यिस्मन्यतो यिहर् य ेन च यस्य यस्माद ् यस्मै यथा यद ुत यस्त्वपरः परो वा।
भावः करोित िवकरोित प ृथक्स्वभावः संचोिदतस्तदिखल ं भवतः स्वरूपम ्।।
सत्त्वािदगुणोंकेकारणिभन्न-िभन्नस्वभावकेिजतनेभीबर्ह्मािदशर्ेष्ठऔरकालािदकिनष्ठकतार्हंै,उनकोपर्ेिरत
करनेवालेआपहीहंै।वेआपकीपर्ेरणासेिजसआधारमंेिस्थतहोकर,िजसिनिमत्तसे,िजनिमट्टीआिद
उपकरणो ंसे,िजससमय,िजनसाधनो ंकेद्वारा,िजसअदृष्टआिदकीसहायतासे,िजसपर्योजनकेउद्देश्यसे,
िजस िविध स े, जो क ुछ उत्पन्न करत े हंै या रूपान्तिरत करत े हंै, वे सब और वह सब आपका ही स्वरूप ह ै।
(शर्ीमद ् भागवतः 7.9.20)
पुरुषकीअनुमितसेकालकेद्वारागुणोंमंेक्षोभहोनेपरमायामनःपर्धानिलंगशरीर कािनमार्णकरतीहंै।यह
िलंगशरीरबलवान,कमर्मयएवंअनेकनाम-रूपो ंमंेआसक्तछंदोमय है।यहीअिवद्याकेद्वाराकिल्पतमन,दस
इिन्दर्यऔरपाँचतन्मातर्ा–इनसोलहिवकाररूपअरोंसेयुक्तसंसारचकर्मंेडालकरईखकेसमानमुझेपेररही
है।आपअपनीचैतन्यशिक्त सेबुिद्धकेसमस्तगुणोंकोसवर्दापरािजतरखतेहंैऔरकालरूपसेसम्पूणर्साध्य
औरसाधनो ंकोअपनेअधीनरखतेहंै।मंैआपकीशरणमंेआयाहँू,आपमुझेइनसेबचाकरअपनीसिन्निधमंे
खींचलीिजए।भगवन ्!िजनक ेिलएसंसारीलोगबड़ेलालाियतरहतेहंै,स्वगर्मंेिमलनेवालीसमस्तलोकपालो ंकी
वहआयु,लक्ष्मीऔरऐश्वयर्मंैनेखूबदेखिलए।िजससमयमेरेिपताअनुकर्मतिनककर्ोधकरकेहँसतेथेऔर
उससेउनकीभौंहंेथोड़ीटेढ़ीहोजातीथीं,तबउनस्वगर्कीसम्पित्तयो ंकेिलएकहींिठकानानहींरहजाताथा।वे
लुटतीिफरतीथींिकंतुआपनेमेरेउनिपताकोभीमारडाला।इसिलएमंैबर्ह्मलोकतककीआयु,लक्ष्मी,ऐश्वयर्
औरवेइिन्दर्यभोग,िजन्हंेसंसारकेपर्ाणीचाहाकरतेहंै,नहींचाहता,क्योंिकमंैजानताहँूिकअत्यंतशिक्तशाली
कालकारूपधारणकरकेआपनेउन्हंेगर्सरखाहै।इसिलएमुझेआपअपनेदासोंकीसिन्निधमंेलेचिलए।
िवषयभोगकीबातंेसुननेमंेहीअच्छीलगतीहंै,वास्तवमंेवेमृगतृष्णाकेजलकेसमानिनतान्तअसत्यहंैऔर
यहशरीरभी,िजसस ेवेभोगभोगेजातेहंैअगिणतरोगोंकाउदगमस्थानहै।कहाँवेिमथ्यािवषयभोगऔरकहाँ
यहरोगयुक्तशरीर!इनदोनोंकीक्षणभंगुरताऔरअसारताजानकरभीमनुष्यइनसेिवरक्तनहींहोता।वह
किठनाईसेपर्ाप्तहोनेवालेभोगकेनन्हंे-नन्हेमधुिबंदुओंसेअपनीकामनाकीआगबुझानेकीचेष्टाकरताहै।पर्भो
!कहाँतोइसतमोगुणीअसुरवंशमंेरजोगुणसेउत्पन्नहुआमंैऔरकहाँआपकीअनन्तकृपा!धन्यहै!आपने
अपनापरमपर्सादस्वरूपऔरसकलसन्तापहारीवहकरकमलमेरेिसरपररखाहै,िजसेआपनेबर्ह्मा,शंकरऔर
लक्ष्मीजीकेिसरपरभीकभीनहींरखा।दूसरेसंसारीजीवोंकेसमानआपमंेछोटे-बड़ेकाभेदभाव नहींहैक्योंिक
आपसबकेआत्माऔरअकारणपर्ेमीहंै।िफरभीकल्पव ृक्षकेसमानआपकाकृपा-पर्साद भीसेवन-भजन सेही
पर्ाप्तहोताहै।सेवाकेअनुसारहीजीवोंपरआपकीकृपाकाउदयहोताहै,उसमंेजाितगतउच्चतायानीचता
कारणनहींहै।भगवन ्!यहसंसारएकऐसाअँधेराकुआँहै,िजसम ंेकालरूपीसपर्डँसनेकेिलएसदातैयाररहता
है।िवषयभोगो ंकीइच्छावाल ेपुरुषउसीमंेिगरेहुएहंै।मंैभीसंगवश उनकेपीछेउसीमंेिगरनेजारहाथापरंतु
भगवन ्!देविषर्नारदनेमुझेअपनाकरबचािलया।तबभला,मंैआपकेभक्तजनो ंकीसेवाकैसेछोड़ासकताहँू।
अनन्त!िजससमयमेरेिपतानेअन्यायकरनेकेिलएकमरकसकरहाथमंेखड्गलेिलयाऔरकहनेलगेिक
'यिदमेरेिसवाकोईऔरईश्वरहैतोतुझेबचाले,मंैतेरािसरकाटताहँू'उससमयआपनेमेरेपर्ाणोंकीरक्षाकी
औरमेरेिपताकावधिकया।मंैतोसमझताहँूिकआपने-अपनेपर्ेमीभक्तसनकािदऋिषयो ंकावचनसत्यकरने
के िलए ही व ैसा िकया था।
भगवन ्!यहसम्पूणर्जगतएकमातर्आपहीहंैक्योंिकइसकेआिदमंेआपहीकारणरूपसेथे,अंतमंेआपही
अविधकेरूपमंेरहंेगेऔरबीचमंेइसकीपर्तीितकेरूपमंेभीकेवलआपहीहंै।आपअपनीमायासेगुणोंके
पिरणामस्वरूपइसजगतकीसृिष्टकरकेइसमंेपहलेसेिवद्यमानरहनेपरभीपर्वेशकीलीलाकरतेहंैऔरउन
गुणोंसेयुक्तहोकरअनेकमालूमपड़रहेहंै।भगवान!यहजोकुछकायर्-कारणकेरूपमंेपर्तीतहोरहाहै,वह

सबआपहीहंैऔरइससेिभन्नभीआपहीहंै।अपने-परायेकाभेदभाव तोअथर्हीनशब्दोंकीमायाहै,क्योंिक
िजसस ेिजसकाजन्म,िस्थित,लयऔरपर्काशहोताहै,वहउसकास्वरूपहीहोताहै।जैसे,बीजऔरवृक्षकारण
और कायर् की दृिष्ट स े िभन्न-िभन्न ह ंै, तो भी ग ंध-तन्मातर् की दृिष्ट स े दोनों एक ही ह ंै।अनुकर्म
भगवन ्!आपइससम्पूणर्िवश्वकोस्वयंहीअपनेमंेसमेटकरआत्मस ुखकाअनुभवकरतेहुएिनिष्कर्यहोकर
पर्लयकालीनजलमंेशयनकरतेहंै।उससमयअपनेस्वयंिसद्धयोगकेद्वाराबाह्यदृिष्टकोबंदकरआपअपने
स्वरूपकेपर्काशमंेिनदर्ाकोिवलीनकरलेतेहंैऔरतुरीयबर्ह्मपदमंेिस्थतरहतेहंै।उससमयआपनतो
तमोगुणसेहीयुक्तहोतेऔरनतोिवषयोंकोहीस्वीकारकरतेहंै।आपअपनीकालशिक्तसेपर्कृितकेगुणोंको
पर्ेिरतकरतेहंै,इसिलएयहबर्ह्माण्डआपकाहीशरीरहै।पहलेयहआपमंेहीलीनथा।जबपर्लयकालीनजलके
भीतरशेषशय्या परशयनकरनेवालेआपनेयोगिनदर्ाकीसमािधत्यागदी,तबवटकेबीजिवशालवृक्षकेसमान
आपकीनािभसेबर्ह्माण्डकमलउत्पन्नहुआ।उसपरसूक्ष्मदशीर्बर्ह्माजीपर्कटहुए।जबउन्हंेकमलकेिसवाऔर
कुछभीिदखायीनपड़ा,तबवहअपनेबीजरूपसेव्याप्तआपकोवेनजानसकेऔरआपकोअपनेसेबाहर
समझकरजलकेभीतरघुसकर सौवषर्तकढँूढतेरहे।परंतुवहाँउन्हंेकुछनहींिमला।यहठीकहीहै,क्योंिक
अंकुरउगआनेपरउसमंेव्याप्तबीजकोकोईबाहरअलगकैसेदेखसकताहै।बर्ह्माजीकोबड़ाआश्चयर्हुआ।वे
हारकरकमलपरबैठगये।बहुतसमयबीतनेपरजबउनकाहृदयशुद्धहोगया,तबउन्हंेभूत,इिन्दर्यऔर
अंतःकरण रूपअपनेशरीरमंेहीओतपर्ोतरूपसेिस्थतआपकेसूक्ष्मरूप कासाक्षात्कारहुआ।ठीकवैसेहीजैसे
पृथ्वी म ंे व्याप्त उसकी स ूक्ष्म तन्मातर्ा गन्ध का होता ह ै।
िवराटपुरुषसहसर्ोंमुख,चरण,िसर,हाथ,जंघा,नािसका,मुख,कान,नेतर्,आभूषणऔरआयुधोंसेसम्पन्नथा।
चौदहलोकउनकेिविभन्नअंगोंकेरूपमंेशोभायमानथे।वहभगवानकीएकलीलामयीमूितर्थी।उसेदेखकर
बर्ह्माजीकोबड़ाआनंदहुआ।रजोगुणऔरतमोगुणरूपमधुऔरकैटभनामकेदोबड़ेबलवानदैत्यथे।जबवे
वेदोंकोचुराकर लेगये,तबआपनेहयगर्ीवअवतारगर्हणिकयाऔरउनदोनोंकोमारकरसत्त्वगुणरूप शर्ुितयाँ
बर्ह्माजीकोलौटादीं।वहसत्त्वगुणहीआपकाअत्यंतिपर्यशरीरहै–महात्मालोगइसपर्कारवणर्नकरतेहंै।
पुरुषोत्तम !इसपर्कारआपमनुष्य,पशु-पक्षी, ऋिष,देवताऔरमत्स्यआिदअवतारलेकरलोकोंकापालनिकया
तथािवश्वकेदर्ोिहयो ंकासंहारकरतेहंै।इनअवतारो ंकेद्वाराआपपर्त्येकयुगमंेउसकेधमोर्ंकीरक्षाकरतेहंै।
किलय ुग मंे आप िछपकर ग ुप्त रूप स े ही रहत े हंै, इसीिलए आपका एक नाम 'ितर्युग'भी है।
वैकुण्ठनाथ !मेरेमनकीबड़ीदुदर्शाहै।वहपाप-वासनाओ ंसेतोकलुिषतहैही,स्वयंभीअत्यंतदुष्टहै।वहपर्ायः
हीकामनाओ ंकेकारणआतुररहताहैऔरहषर्-शोक,भय,लोक-परलोक,धन,पत्नी,पुतर्आिदकीिचंताओंसे
व्याकुलरहताहै।इसेआपकीलीला-कथाओ ंमंेतोरसहीनहींिमलता।इसकेमारेमंैदीनहोरहाहँू।ऐसेमनसे
मंैआपकेस्वरूपकािचंतनकैसेकरूँ?अच्युत!यहकभीनअघानेवालीजीभमुझेस्वािदष्टरसोंकीओरखींचती
रहतीहै।जननेिन्दर्य सुन्दरस्तर्ीकीओर,त्वचासुकोमल, स्पशर्कीओर,पेटभोजनकी,कानमधुरअनुकर्म
संगीतकीओर,नािसकाभीनी-भीनीसुगंधकीओर,औरयेचपलनेतर्सौन्दयर्कीओरमुझेखींचतेरहतेहंै।इनके
िसवाकमर्ेिन्दर्याँभीअपने-अपनेिवषयोंकीओरलेजानेकेिलएजोरलगातीहीरहतीहंै।मेरीतोवहदशाहोरही
है,जैसेिकसीपुरुषकीबहुतसीपित्नया ँउसेअपने-अपनेशयनग ृहमंेलेजानेसेिलएचारोंओरसेघसीटरहीहों।
इसपर्कारयहजीवअपनेकमोर्ंकेबंधनमंेपड़करइससंसाररूपवैतरणी नदीमंेिगराहुआहै।जन्मसेमृत्यु,
मृत्युसेजन्मऔरदोनोंकेद्वाराकमर्भोगकरते-करतेयहभयभीतगयाहै।यहअपनाहै,यहपरायाहै–इस
पर्कारकेभेदभाव सेयुक्तहोकरिकसीसेिमतर्ताकरताहैतोिकसीसेशतर्ुता।आपइसमूढ़जीव-जाितकीयह
दुदर्शादेखकर करूणासेदर्िवतहोजाइये।इसभवनदीसेसवर्दापाररहनेवालेभगवन ्!इनपर्ािणयो ंकोभीअब
पारलगादीिजय े।जगदग ुरो!आपइससृिष्टकीउत्पित्त,िस्थिततथापालनकरनेवालेहंै।ऐसीअवस्थामंेइन
जीवोंकोइसभवनदीसेपारउतारदेनेमंेआपकोक्यापिरशर्महै?दीनजनो ंकेपरमिहतैषीपर्भो!भूले-भटकेमूढ़
हीमहानपुरुषोंकेिवशेषअनुगर्हपातर्होतेहंै।हमंेउसकीकोईआवश्यकतानहींहैक्योंिकहमआपकेिपर्यजनो ंकी
सेवामंेलगेरहतेहंै,इसिलएपारजानेकीहमंेकभीिचंताहीनहींहोती।परमात्मन ्!इसभव-वैतरणी सेपार
उतरनादूसरेलोगोंकेिलएअवश्यहीकिठनहै,परंतुमुझेतोइससेतिनकभीभयनहींहै।क्योंिकमेरािचत्तइस
वैतरणी मंेनहीं,आपकीउनलीलाओ ंकेगानमंेमग्नरहताहै,जोस्वगीर्यअमृतकोभीितरस्क ृतकरनेवाली,
परमअमृतस्वरूप हंै।मंैउनमूढ़पर्ािणयो ंकेिलएशोककररहाहँू,जोआपकेगुणगान सेिवमुखरहकरइिन्दर्यो ं
केिवषयोंकामायामयझूठासुखपर्ाप्तकरनेकेिलएअपनेिसरपरसारेसंसारकाभारढोतेरहतेहंै।मेरेस्वामी!
बड़े-बड़ेऋिष-म ुिनतोपर्ायःअपनीमुिक्तकेिलएिनजर्नवनमंेजाकरमौनवर्तधारणकरलेतेहंै।वेदूसरोंकी
भलाईकेिलएकोईिवशेषपर्यत्ननहींकरतेपरंतुमेरीदशातोदूसरीहीहोरहीहै।मंैइनभूलेहुएअसहायगरीबों
कोछोड़करअकेलामुक्तहोनानहींचाहताऔरइनभटकत ेहुएपर्ािणयो ंकेिलएआपकेिसवाऔरकोईसहाराभी
नहीं िदखाया पड़ता।
घरमंेफँसेहुएलोगोंकोजोमैथुनआिदकासुखिमलताहै,वहअत्यंततुच्छएवंदुःखरूप हीहै।जैसे,कोईदोनों
हाथोंसेखुजलारहाहोतोउसखुजलीमंेपहलेउसेकुछथोड़ा-सासुखमालूमपड़ताहै,परंतुपीछेदुःख-ही-द ुःख
होताहै।िकंतुयेभूलेहुएअज्ञानीमनुष्यबहुतदुःखभोगनेपरभीइनिवषयोंसेअघातेनहीं।इसकेिवपरीतधीर
पुरुषजैसेखुजलाहट कोसहलेतेहंै,वैसेहीकामािदवेगोंकोभीसहलेतेहंै।सहनेसेहीउनकानाशहोताहै।
पुरुषोत्तम !मोक्षकेदससाधनपर्िसद्धहंै–मौन,बर्ह्मचयर्,शास्तर्-शर्वण,तपस्या,स्वाध्याय,स्वधमर्पालन,युिक्तयोंसे

शास्तर्ोंकीव्याख्या,एकांतसेवन,जपऔरसमािध।परंतुिजनकीइिन्दर्या ँवशमंेनहींहंै,उनकेिलएयेसब
जीिवकाकेसाधनव्यापारमातर्रहजातेहंैऔरदिम्भयो ंकेिलएतोजबतकउनकीपोलखुलतीनहीं,तभीतक
येजीवन-िनवार्हकेसाधनरहतेहंैऔरभंडाफोड़ होजानेपरवहभीनहीं।वेदोंनेबीजऔरअंकुरकेसमान
आपकेदोअनुकर्मरूपबतायेहंै–कायर्औरकारण।वास्तवमंेआपपर्ाकृतरूपसेरिहतहंैपरंतुइनकायर्और
कारणरूपो ंकोछोड़करआपकेज्ञानकाकोईऔरसाधनभीनहींहै,उसीपर्कारयोिगजनभिक्तयोगकीसाधनासे
आपकोकायर्औरकारणदोनोंमंेहीढँूढिनकालत ेहंै।क्योंिकवास्तवमंेयेदोनोंआपसेपृथकनहींहंै,आपके
स्वरूपहीहंै।अनन्तपर्भो!वायु,अिग्न,पृथ्वी,आकाश,जल,पंचतन्मातर्ाए ँ,पर्ाण,इिन्दर्य,मन,िचत्त,अहंकार,
सम्पूणर्जगतएवंसगुणऔरिनगर्ुण,सबकुछकेवलआपहीहंैऔरतोक्या,मनऔरवाणीकेद्वाराजोकुछ
िनरूपणिकयागयाहै,वहसबआपसेपृथकनहींहै।समगर्कीितर्केआशर्यभगवन ्!येसत्त्वािदगुणऔरइन
गुणोंकेपिरणाममहत्तत्वािद,देवता,मनुष्यएवंमनआिदकोईभीआपकास्वरूपजाननेमंेसमथर्नहींहैक्योंिक
येसबआिद-अ ंतवालेहंैऔरआपअनािदएवंअनन्तहंै।ऐसािवचारकरकेज्ञानीजनशब्दोंकीमायासेउपरतहो
जातेहंै।परमपूज्य!आपकीसेवाकेछःअंगहंै–नमस्कार,स्तुित,समस्तकमोर्ंकासमपर्ण,सेवा–पूजा,
चरणकमलो ंकािचंतनऔरलीला-कथाकाशर्वण।इसषडंग-सेवाकेिबनाआपकेचरणकमलो ंकीभिक्तकैसेपर्ाप्त
होसकतीहै?औरभिक्तकेिबनाआपकीपर्ािप्तकैसेहोगी?पर्भो!आपतोअपनेपरमिपर्यभक्तजनो ंके,
परमहंसों के ही सवर्स्व ह ंै।'अनुकर्म
(शर्ीमद ् भागवतः 7.9.8-50)
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
गजेन्दर् द्वारा स्त ुित
क्षीरसागरकेमध्यमंेमरकतमिणयो ंसेसुशोिभत 'ितर्कूट'पवर्तथा।उसपरवरुणदेवका'ऋतुमान'नामकाएक
संुदरउद्यानथा,िजसम ंेदेवांगनाएँकर्ीड़ाकरतीरहतीथीं।उद्यानमंेसुनहलेकमलो ंवाला एकसरोवरथा।उसमंे
गर्ीष्म-स ंतप्तगजराजअपनीिपर्याओ ंकेसाथजलकर्ीड़ाकररहाथा।अचानकएकबलवानगर्ाहनेउसकापैरपकड़
िलयाऔरवहजलमंेउसेखींचनेलगा।गजराजऔरउसकीिपर्याहिथिनयो ंकारक्षा-पर्यत्नजबसवर्थािवफलहो
गया तो गज ेन्दर् ने असहाय भाव स े सम्पूणर् िवश्व क े एकमातर् आशर्य भगवान की इस पर्कार स े स्तुित कीः
'जोजगतकेमूलकारणहंैऔरसबकेहृदयमंेपुरुषकेरूपमंेिवराजमानहंैएवंसमस्तजगतकेएकमातर्स्वामी
हंै,िजनक ेकारणइससंसारमंेचेतनता कािवस्तारहोताहै,उनभगवानकोमंैनमस्कारकरताहँू,पर्ेमसेउनका
ध्यानकरताहँू।यहसंसारउन्हींमंेिस्थतहै,उन्हींकीसत्तासेपर्तीतहोरहाहै,वेहीइसमंेव्याप्तहोरहेहंैऔर
स्वयंवेइसकेरूपमंेपर्कटहोरहेहंै।यहसबहोनेपरभीवेइससंसारऔरइसकेकारणपर्कृितसेसवर्थापरेहंै।
उनस्वयंपर्काश, स्वयंिसद्धसत्तात्मकभगवानकीमंैशरणगर्हणकरताहँू।यहिवश्वपर्पंचउन्हींकीमायासेउनमंे
अध्यस्तहै।यहउनमंेकभीपर्तीतहोताहैतोकभीनहीं।परंतुउनकीदृिष्टज्यों-की-त्यो ंएक-सीरहतीहंै।वेइसके
साक्षीहंैऔरउनदोनोंकोहीदेखतेरहतेहंै।वेसबकेमूलहंैऔरअपनेमूलभीवहीहंै।कोईदूसराउनकाकोई
कारणनहींहै।वेहीसमस्तकायर्औरकारणो ंसेअतीतपर्भुमेरीरक्षाकरंे।पर्लयकेसमयलोक,लोकपालऔर
इनसबकेकारणसम्पूणर्रूपसेनष्टहोजातेहंै।उससमयकेवलअत्यंतघनाऔरगहराअंधकार-ही-अ ंधकार रहता
है।परंतुअनन्तपरमात्माउससेसवर्थापरेिवराजमानरहतेहंै।वेहीपर्भुमेरीरक्षाकरंे।उनकीलीलाओ ंकारहस्य
जाननाबहुतहीकिठनहै।वेनटकीभाँितअनेकोंवेषधारणकरतेहंै।उनकेवास्तिवकस्वरूपकोनतोदेवता
जानतेहंैऔरनऋिषही,िफरदूसराऐसाकौनपर्ाणीहै,जोवहाँतकजासकेऔरउसकावणर्नकरसके?वे
पर्भुमेरीरक्षाकरंे।िजनक ेपरममंगलमय स्वरूपकादशर्नकरनेकेिलएमहात्मागणसंसारकीसमस्तआसिक्तयो ं
कापिरत्यागकरदेतेहंैऔरवनमंेजाकरअखण्डभावसेबर्ह्मचयर्आिदअलौिककवर्तोंकापालनकरतेहंैतथा
अपनेआत्माकोसबकेहृदयमंेिवराजमानदेखकर स्वाभािवकहीसबकीभलाईकरतेहंै।वेहीमुिनयोंकेसवर्स्व
भगवान म ेरे सहायक ह ंै, वे ही म ेरी गित ह ंै।
नउनकेजन्म-कमर्हंैऔरननाम-रूप,िफरउनकेसम्बन्धमंेगुणऔरदोषकीतोकल्पनाहीकैसेकीजा
सकतीहै?िफरभीिवश्वकीसृिष्टऔरसंहारकरनेकेिलएसमय-समयपरवेउन्हंेअपनीमायासेस्वीकारकरते
हंै।उन्हींअनन्त,शिक्तमानसवर्ैश्वयर्मय परबर्ह्मपरमात्माकोमंैनमस्कारकरताहँू।वेअरूपहोनेपरभीबहुरूपहंै।
उनके कमर् अत्य ंत आश्चयर्मय ह ंै। मंै उनक े चरणो ं मंे नमस्कार करता ह ँू।
स्वयंपर्काश, सबकेसाक्षीपरमात्माकोमंैनमस्कारकरताहँू।जोमन,वाणीऔरिचत्तसेअत्यंतदूरहंै–उन
परमात्मा को म ंै नमस्कार करता ह ँू।
िववेकीपुरुषकमर्-स ंन्यास अथवाकमर्-समपर्णकेद्वाराअपनाअंतःकरण शुद्धकरकेिजन्हंेपर्ाप्तकरतेहंैतथाजो
स्वयंतोिनत्यम ुक्त,परमानन्दएवंज्ञानस्वरूपहंैही,दूसरोंकोकैवल्य-म ुिक्तदेनेकासामथ्यर्भीकेवलउन्हींमंेहै
उनपर्भुकोमंैनमस्कारकरताहँू।जोसत्त्व,रजऔरतमइनतीनगुणोंकाधमर्स्वीकारकरकेकर्मशःशांत,घोर
औरमूढ़अवस्थाभीधारणकरतेहंै,उनभेदरिहत समभावसेिस्थतएवंज्ञानघनपर्भुकोमंैबार-बारनमस्कार
करताहँू।आपसबकेस्वामी,समस्तक्षेतर्ोंकेएकमातर्ज्ञाताएवंसवर्साक्षीहंै,आपकोमंैनमस्कारकरताहँू।आप
स्वयंहीअपनेकारणहंै।पुरुषऔरमूलपर्कृितकेरूपमंेभीआपहीहंै।आपकोमेराबार-बारनमस्कार।आप
समस्तइिन्दर्यऔरउनकेिवषयोंकेदर्ष्टाहंै,समस्तपर्तीितयो ंकेआधारहंै।अहंकारआिदछायारूपअसत्वस्तुओं
केद्वाराआपकाहीअिस्तत्वपर्कटहोताहै।समस्तवस्तुओंकीसत्ताकेरूपमंेभीकेवलआपहीभासरहेहंै।मंै

आपकोनमस्कारकरताहँू।आपसबकेमूलकारणहंै,आपकाकोईकारणनहींहैतथाकारणहोनेपरभीआपमंे
िवकारयापिरणामनहींहोता,इसिलएआपअनोख ेकारणहंै।आपकोमेराबार-बारनमस्कार!जैसेसमस्तनदी-
झरनेआिदकापरमआशर्यसमृद्धहै,वैसेहीआपसमस्तवेदऔरशास्तर्ोंकेपरमतात्पयर्हंै।आपमोक्षस्वरूपहंै
औरसमस्तसंतआपकीहीशरणगर्हणकरतेहंै,अतःआपकोअनुकर्ममंैनमस्कारकरताहँू।जैसेयज्ञकेकाष्ठ
अरिणमंेअिग्नगुप्तरहतीहै,वैसेहीआपनेअपनेज्ञानकोगुणोंकीमायासेढकरखाहै।गुणोंमंेक्षोभहोनेपर
उनकेद्वारािविवधपर्कारकीसृिष्ट-रचना काआपसंकल्प करतेहंै।जोलोगकमर्-स ंन्यास अथवाकमर्-समपर्णके
द्वाराआत्मतत्त्वकीभावनाकरकेवेद-शास्तर्ो ंसेऊपरउठजातेहंै,उनकेआत्माकेरूपमंेआपस्वयंहीपर्कािशतहो
जाते हंै। आपको म ंै नमस्कार करता ह ँू।
जैसेकोईदयालुपुरुषफंदेमंेपड़ेहुएपशुकाबंधनकाटदे,वैसेहीआपमेरेजैसेशरणागतो ंकीफाँसीकाटदेते
हंै।आपिनत्यम ुक्तहंै,परमकरूणामयहंैऔरभक्तोंकाकल्याणकरनेमंेआपकभीआलस्यनहींकरते।आपके
चरणोंमंेमेरानमस्कारहै।समस्तपर्ािणयो ंकेहृदयमंेअपनेअंशकेद्वाराअंतरात्मा केरूपमंेआपउपलब्धहोते
रहतेहंै।आपसवर्ैश्वयर्पूणर्एवंअनन्तहंै।आपकोमंैनमस्कारकरताहँू।जोलोगशरीर,पुतर्,गुरुजन, गृह,सम्पित्त
औरस्वजनो ंमंेआसक्तहंैउन्हंेआपकीपर्ािप्तअत्यंतकिठनहै।क्योंिकआपस्वयंगुणोंकीआसिक्तसेरिहतहंै।
जीवनम ुक्तपुरुषअपनेहृदयमंेआपकािनरन्तरिचन्तनकरतेरहतेहंै।उनसवर्ैश्वयर्पूणर्,ज्ञानस्वरूपभगवानकोमंै
नमस्कारकरताहँू।धमर्,अथर्,कामऔरमोक्षकीकामनासेमनुष्यउन्हींकाभजनकरकेअपनीअभीष्टवस्तु
पर्ाप्तकरलेतेहंै।इतनाहीनहीं,वेउनकोसभीपर्कारकासुखदेतेहंैऔरअपनेहीजैसाअिवनाशीपाषर्दशरीरभी
देतेहंै।वेहीपरमदयालुपर्भुमेराउद्धारकरंे।िजनक ेअनन्यपर्ेमीभक्तजनउन्हींकीशरणमंेरहतेहुएउनसे
िकसीभीवस्तुकीयहाँतकिकमोक्षकीभीअिभलाषानहींकरते,केवलउनकीपरमिदव्यमंगलमयी लीलाओ ंका
गान करत े हुए आन ंद के समुदर् मंे िनमग्न रहत े हंै।
तमक्षर ं बर्ह्म पर ं परेशमव्यक्तमाध्याित्मकयोगगम्यम ्।
अतीिन्दर्य ं सूक्ष्मिमवाितद ूरमनन्तमाद्य ं पिरपूणर्मीडे।।
जोअिवनाशी,सवर्शिक्तमान,अव्यक्त,इिन्दर्यातीतऔरअत्यंतसूक्ष्महंै,जोअत्यंतिनकटरहनेपरभीबहुतदूर
जानपड़तेहंै,जोआध्याित्मकयोगअथार्त्ज्ञानयोगयाभिक्तयोगकेद्वारापर्ाप्तहोतेहंै,उन्हींआिदप ुरुष,अनन्त
ज्ञानयोगयाभिक्तयोगकेद्वारापर्ाप्तहोतेहंै,उन्हींआिदप ुरुष,अनन्तएवंपिरपूणर्परबर्ह्मपरमात्माकीमंैस्तुित
करता ह ँू।
(शर्ीमद ् भागवतः 8.3.21)
िजनकीअत्यंतछोटीकलासेअनेकोंनाम-रूपकेभेदभाव सेयुक्तबर्ह्माआिददेवता,वेदऔरचराचरलोकोंकी
सृिष्टहुईहै,जैसेधधकतीहुईआगसेलपटंेऔरपर्काशमानसूयर्सेउनकीिकरणंेबार-बारिनकलतीऔरलीन
होतीरहतीहंै,वैसेउनकीिकरणंेबार-बारिनकलतीऔरलीनहोतीरहतीहंै,वैसेहीिजनस्वयंपर्काश परमात्मासे
बुिद्ध,मन,इिन्दर्यऔरशरीर,जोगुणोंकेपर्वाहरूपहंै,बार-बारपर्कटहोतेतथालीनहोजातेहंै,वेभगवानन
देवताहंैऔरनअसुर।वेमनुष्यऔरपशु-पक्षीभीनहींहंै।नवेस्तर्ीहंै,नपुरुषऔरननपंुसक।वेकोईसाधारण
याअसाधारणपर्ाणीभीनहींहंै।नवेगुणहंैऔरनकमर्,नकायर्हंैऔरनतोअनुकर्मकारणही।सबकािनषेध
होजानेपरजोकुछबचतारहताहै,वहीउनकास्वरूपहैतथावेहीसबकुछहंै।वेहीपरमात्मामेरेउद्धारके
िलएपर्कटहों।मंैजीनानहींचाहता।यहहाथीकीयोिनबाहरऔरभीतरसबओरसेअज्ञानरूपआवरणकेद्वारा
ढकीहुईहै,इसकोरखकरकरनाहीक्याहै?मंैतोआत्मपर्काशकोढकनेवालेउसअज्ञानरूपआवरणसेछूटना
चाहताहँू,जोकालकर्मसेअपने-आप नहींछूटसकता,जोकेवलभगवत्क ृपाअथवातत्त्वज्ञानकेद्वाराहीनष्टहोता
है।इसिलएमंैउनपरबर्ह्मपरमात्माकीशरणमंेहँूजोिवश्वरिहतहोनेपरभीिवश्वकेरचियताऔरिवश्वस्वरूपहंै,
साथहीजोिवश्वकीअतंरात्मा केरूपमंेिवश्वरूपसामगर्ीसेकर्ीड़ाभीकरतेरहतेहंै,उनअजन्मापरमपदस्वरूप
बर्ह्मकोमंैनमस्कारकरताहँू।योगीलोगयोगकेद्वाराकमर्,कमर्-वासनाऔरकमर्फलकोभस्मकरकेअपने
योगशुद्ध हृदय म ंे िजन योग ेश्वर भगवान का साक्षात्कार करत े हंै, उन पर्भ ु को म ंै नमस्कार करता ह ँू।
पर्भो!आपकीतीनशिक्तयो ंसत्त्व,रजऔरतमकेरागािदवेगअसह्यहंै।समस्तइिन्दर्यो ंऔरमनकेिवषयोंके
रूपमंेभीआपहीपर्तीतहोरहेहो।इसिलएिजनकीइिन्दर्या ँवशमंेनहींहंै,वेतोआपकीपर्ािप्तकामागर्भीनहीं
पासकते।आपकीशिक्तअनन्तहंै।आपशरणागतवत्सलहंै।आपकोमंैबार-बारनमस्कारकरताहँू।आपकीमाया
अहंबुिद्धसेआत्माकास्वरूपढकगयाहै,इसीसेयहजीवअपनेस्वरूपकोनहींजानपाता।आपकीमिहमा
अपार ह ै। उन सवर्शिक्तमान एव ं माधुयर्िनिध भगवान की म ंै शरण म ंे हँू।
(शर्ीमद ् भागवतः 8.3.2-21)
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
अकर्ूर जी द्वारा स्त ुित
अकर्ूरजीनेशर्ीकृष्णतथाबलरामजीकेसाथवर्जसेमथुरानगरीलौटतेसमययमुनाजी स्नानकेपश्चात्गायतर्ी
मंतर्काजपकरतेहुएजबजलमंेडुबकीलगायी,तबउन्होंनेशेषजीकीगोदमंेिवराजमानशंख,चकर्,गदा,
पद्मधारीभगवानशर्ीकृष्णकेसाक्षात ्दशर्निकयेथे।भगवानकीअदभुतझाँकीदेखकर उनकाहृदयपरमान ंदसे
लबालबभरगयाऔरपर्ेमभाव काउदर्ेकचरणोंमंेनतमस्तकहोकरगदगदस्वरमंेपर्भुकीइसपर्कारसेस्तुित
करने लगेः

'पर्भो!आपपर्कृितआिदसमस्तकारणो ंकेपरमकारणहंै।आपहीअिवनाशीपुरुषोत्तम नारायणहंैतथाआपके
हीनािभकमलसेउनबर्ह्माजीकाआिवभार्वहुआहै,िजन्होंनेइसचराचरजगतकीसृिष्टकीहै।मंैआपकेचरणोंमंे
नमस्कारकरताहँू।पृथ्वी,जल,अिग्न,वायु,आकाश,अहंकार, महत्तत्त्व,पर्कृित,पुरुष,मन,इिन्दर्य,सम्पूणर्
इिन्दर्यो ंकेिवषयऔरउनकेअिधष्ठात ृदेवता–यहीसबचराचरजगततथाउसकेव्यवहारकेकारणहंैऔरये
सब-के-सबआपकेहीअंगस्वरूप हंै।पर्कृितऔरपर्कृितसेउत्पन्नहोनेवालेसमस्तपदाथर्'इंदवृित्त'केद्वारागर्हण
िकयेजातेहंै,इसिलएयेसबअनात्माहंै।अनात्माहोनेकेकारणजड़हंैऔरइसिलएअनुकर्म आपकास्वरूप
नहींजानसकतेक्योंिकआपतोस्वयंआत्माहीठहरे।बर्ह्माजीअवश्यहीआपकेस्वरूपहंै।परंतुवेपर्कृितकेगुण
रजससेयुक्तहंै,इसिलएवेभीआपकीपर्कृितकाऔरउसकेगुणोंसेपरेकास्वरूपनहींजानते।साधुयोगीस्वयं
अपनेअंतःकरण मंेिस्थत'अन्तयार्मी'केरूपमंेसमस्तभूत-भौितक पदाथोर्ंमंेव्याप्त'परमात्माकेरूपमंेऔर
सूयर्,चन्दर्,अिग्नआिददेवमण्डल मंेिस्थत'इष्टदेवता'केरूपमंेतथाउनकेसाक्षीमहापुरुषएवंिनयन्ताईश्वरके
रूपमंेसाक्षात ्आपकीहीउपासनाकरतेहंै।बहुत-सेकमर्काण्डीबर्ाह्मणकमर्मागर्काउपदेशकरनेवालीतर्यीिवद्याके
द्वारा,जोआपकेइन्दर्,अिग्नआिदअनेकदेववाचक नामतथावजर्हस्त,सप्तािचर्आिदअनेकरूपबतलातीहंै,बड़े-
बड़ेयज्ञकरतेहंैऔरउनसेआपकीहीउपासनाकरतेहंै।बहुत-सेज्ञानीअपनेसमस्तकमोर्ंकासंन्यास करदेतेहंै
और शा ंतभाव म ंे िस्थत हो जात े हंै। वे इस पर्कार ज्ञानयज्ञ क े द्वारा ज्ञानस्वरूप आपकी ही आराधना करत े हंै।
औरभीबहुत-सेसंस्कार-सम्पन्न अथवाशुद्धिचत्तवैष्णवजन आपकीबतलायीहुईपांचरातर्आिदिविधयो ंसेतन्मय
होकरआपकेचतुव्यर्ूहआिदअनेकऔरनारायणरूपएकस्वरूपकीपूजाकरतेहंै।भगवन ्!दूसरेलोगिशवजीके
द्वाराबतलाय ेहुएमागर्से,िजसक ेआचायर्-भ ेदसेअनेकअवान्तर-भ ेदभीहंै,िशवस्वरूपआपकीहीपूजाकरतेहंै।
स्वािमन ्!जोलोगदूसरेदेवताओ ंकीभिक्तकरतेहंैऔरउन्हंेआपसेिभन्नसमझत ेहंै,वेसबभीवास्तवमंे
आपकीहीआराधनाकरतेहंै,क्योंिकआपहीसमस्तदेवताओ ंकेरूपमंेहंैऔरसवर्ेश्वरभीहंै।पर्भो!जैसेपवर्तों
सेसबओरबहुत-सी निदया ँिनकलतीहंैऔरवषार्केजलसेभरकरघूमती-घामती समुदर्मंेपर्वेशकरजातीहंै,
वैसे ही सभी पर्कार क े उपासना-मागर् घ ूम-घामकर द ेर-सवेर आपक े ही पास पह ँुच जात े हंै।
पर्भो!आपकीपर्कृितकेतीनगुणहंै–सत्त्व,रजऔरतम।बर्ह्मासेलेकरस्थावरपयर्न्तसम्पूणर्चराचरजीव
पर्ाकृतहंैऔरजैसेवस्तर्सूतर्ोंसेओतपर्ोतरहतेहंै,वैसेहीयेसबपर्कृितकेउनगुणोंसेहीओतपर्ोतहंै।परंतुआप
सवर्स्वरूपहोनेपरभीउनकेसाथिलप्तनहींहंै।आपकीदृिष्टिनिलर्प्तहै,क्योंिकआपसमस्तवृित्तयोंकेसाक्षीहंै।
यहगुणोंकेपर्वाहसेहोनेवालीसृिष्टअज्ञानम ूलकहैऔरवहदेवता,मनुष्य,पशु-पक्षी आिदसमस्तयोिनयो ंमंे
व्याप्तहै,परंतुउससेसवर्थाअलगहंै।इसिलएमंैआपकोनमस्कारकरताहँू।अिग्नआपकामुखहै।पृथ्वीचरण
है।सूयर्औरचन्दर्मानेतर्हंै।आकाशनािभहै।िदशाएँकानहंै।स्वगर्िसरहै।देवेन्दर्गण भुजाएँहंै।समुदर्कोखहै
यह वाय ु ही आपकी पर्ाणशिक्त क े रूप म े उपासना क े िलए किल्पत ह ुई है।
वृक्षऔरऔषिधया ँरोमहंै।मेघिसरकेकेशहंै।पवर्तआपकेअिस्थसम ूहऔरनखहंै।िदनऔररातपलकोंका
खोलनाऔरमीचनाहै।पर्जापितजननेिन्दर्य हंैऔरवृिष्टहीआपकावीयर्है।अिवनाशीभगवन ्!जैसेजलमंे
बहुत-सेजलचरजीवऔरगूलरकेफलोंमंेनन्हंे-नन्हंेकीटरहतेहंै,उसीपर्कारउपासनाकेिलएस्वीकृतआपके
मनोमयपुरुषरूपमंेअनेकपर्कारकेजीव-जन्त ुओंसेभरेहुएलोकऔरउनकेलोकपालकिल्पतिकयेगयेहंै।
पर्भो!आपकर्ीडाअनुकर्मकरनेकेिलएपृथ्वीपरजो-जोरूपधारणकरतेहंै,वेसबअवतारलोगोंकेशोक-मोह
कोधोबहादेतेहंैऔरिफरसबलोगबड़ेआनन्दसेआपकेिनमर्लयशकागानकरतेहंै।पर्भो!आपनेवेदों,
ऋिषयो ं,औषिधयो ंऔरसत्यवर्तआिदकीरक्षा-दीक्षाकेिलएमत्स्यरूपधारणिकयाथाऔरपर्लयकेसमुदर्मंे
स्वच्छन्दिवहारिकयाथा।आपकेमत्स्यरूपकोमंैनमस्कारकरताहँू।आपनेहीमधुऔरकैटभनामकेअसुरों
का संहार करन े के िलए हयगर्ीव अवतार गर्हण िकया था। म ंै आपक े उस रूप को भी नमस्कार करता ह ँू।
आपनेहीवहिवशालकच्छपरूपगर्हणकरकेमन्दराचलकोधारणिकयाथा,आपकोमंैनमस्कारकरताहँू।आपने
हीपृथ्वीकेउद्धारकीलीलाकरनेकेिलएवराहरूपस्वीकारिकयाथा,आपकोमेरेबार-बारनमस्कार।पर्ह्लादजैसे
साधुजनोंकाभेदभय िमटान ेवालेपर्भो!आपकेउसअलौिककनृिसंहरूप कोमंैनमस्कारकरताहँू।आपने
वामनरूपगर्हणकरकेअपनेपगोंसेतीनोंलोकनापिलयेथे,आपकोमंैनमस्कारकरताहँू।धमर्काउल्लंघन
करनेवालेघमंडीक्षितर्यो ंकेवनकाछेदनकरदेनेकेिलएआपनेभृगुपितपरशुरामरूपगर्हणिकयाथा।मंैआपके
उसरूपकोनमस्कारकरताहँू।रावणकानाशकरनेकेिलएआपनेरघुवंशमंेभगवानरामकेरूपमंेअवतार
गर्हणिकयाथा।मंैआपकोनमस्कारकरताहँू।वैष्णवजनो ंतथायदुवंिशयोंकापालन-पोषणकरनेकेिलएआपने
हीअपनेकोवासुदेव,संकषर्ण, पर्द्युम्नऔरअिनरुद्ध–इसचतुव्यर्ूहकेरूपमंेपर्कटिकयाहै।मंैआपकोबार-बार
नमस्कारकरताहँू।दैत्यऔरदानवोंकोमोिहतकरनेकेिलएआपशुद्धअिहंसामागर्केपर्वत्तर्कबुद्धकारूपगर्हण
करंेगे।मंैआपकोनमस्कारकरताहँूऔरपृथ्वीकेक्षितर्यजबम्लेच्छपर्ाय होजायंेगे,तबउनकानाशकरनेके
िलए आप ही किल्क क े रूप म ंे अवतीणर् हो ंगे। मंै आपको नमस्कार करता ह ँू।
भगवन ्!येसब-के-सबजीवआपकीमायासेमोिहतहोरहेहंैऔरइसमोहकेकारणही'यहमंैहँूऔरयहमेरा
है'इसझूठेदुरागर्हमंेफँसकरकमर्केमागोर्ंमंेभटकरहेहंै।मेरेस्वामी!इसीपर्कारमंैभीस्वप्नमंेिदखनेवाले
पदाथोर्ंकेसमानझूठेदेह-गेह,पत्नी-प ुतर्औरधन-स्वजनआिदकोसत्यसमझकरउन्हींकेमोहमंेफँसरहाहँूऔर
भटक रहा ह ँू।

मेरीमूखर्तातोदेिखये,पर्भो!मंैनेअिनत्यवस्तुओंकोिनत्यअनात्माकोआत्माऔरदुःखकोसुखसमझिलया।
भला,इसउलटीबुिद्धकीभीकोईसीमाहै!इसपर्कारअज्ञानवशसांसािरक सुख-दुःखआिदद्वन्द्वोंमंेहीरमगया
औरयहबातिबल्कुलभूलगयािकआपहीहमारेसच्चेप्यारेहंै।जैसेकोईअनजानमनुष्यजलकेिलएतालाब
परजायऔरउसेउसीसेपैदाहुएिसवारआिदघासोंसेढकादेखकर ऐसासमझलेिकयहाँजलनहींहंैतथा
सूयर्कीिकरणो ंमंेझूठ-मूठपर्तीतहोनेवालेजलकेिलएमृगतृष्णाकीओरदौड़पड़े,वैसेहीमंैअपनीहीमाया
से िछपे रहने के कारण आपको छोड़कर िवषयो ं मंे सुख की आशा स े भटक रहा ह ँू।
मंैअिवनाशीअक्षरवस्तुकेज्ञानसेरिहतहँू।इसीसेमेरेमनमंेअनेकवस्तुओंकीकामनाऔरउनकेिलएकमर्
करनेकेसंकल्पउठतेहीरहतेहंै।इसकेअितिरक्तयेइिन्दर्या ँभीअनुकर्मजोबड़ीपर्बलएवंदुदर्मनीय हंै,मनको
मथ-मथकरबलपूवर्कइधर-उधरघसीटलेजातीहंै।इसीिलएइसमनकोमंैरोकनहींपाता।इसपर्कारभटकता
हुआमंैआपकेउनचरणकमलो ंकीछतर्छायामंेआपहँुचाहँू,जोदुष्टोंकेिलएदुलर्भहै।मेरेस्वामी!इसेभीमंै
आपकाकृपापर्साद हीमानताहँूक्योंिकपद्मनाभ!जबजीवकेसंसारसेमुक्तहोनेकासमयआताहै,तबसत्पुरुषों
की उपासना स े िचत्तव ृित्त आपम ंे लगती ह ै।
नमो िवज्ञानमातर्ाय सवर्पर्त्ययह ेतवे।
पुरुषेशपर्धानाय बर्ह्मण ेऽनन्तशक्तय े।।
नमस्त े वासुदेवाय सवर्भ ूतक्षयाय च।
हृषीकेश नमस्त ुभ्यं पर्पन्न ं पािह मा ं पर्भो।
पर्भो!आपकेवलिवज्ञानस्वरूपहंै,िवज्ञानघनहंै।िजतनीभीपर्तीितया ँहोतीहंै,िजतनीभीवृित्तयाँहंै,उनसबके
आपहीकारणऔरअिधष्ठानहंै।जीवकेरूपमंेएवंजीवोंकेसुख-दुःखआिदकेिनिमत्तकाल,कमर्,स्वभावतथा
पर्कृितकेरूपमंेभीआपहीहंैतथाआपहीउनसबकेिनयन्ताभीहंै।आपकीशिक्तया ँअनन्तहंै।आपस्वयंबर्ह्म
हंै। मंै आपको नमस्कार करता ह ँू।
पर्भो!आपहीवासुदेव,आपहीसमस्तजीवोंकेआशर्य(संकषर्ण) हंैतथाआपहीबुिद्धऔरमनकेअिधष्ठात ृ
देवताहृिषकेश(पर्द्युम्नऔरअिनरुद्ध)हंै।मंैआपकोबार-बारनमस्कारकरताहँू।पर्भो!आपमुझशरणागतकी
रक्षा कीिजए।'
(शर्ीमद ् भागवतः 10.40.1-30)
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नारदजी द्वारा स्त ुित
देविषर्नारदभगवानकेपरमपर्ेमीऔरसमस्तजीवोंकेसच्चेिहतैषीहंैभगवानशर्ीकृष्णद्वाराकेशीअसुरकावध
िकयेजानेपरनारदजीकंसकेयहाँसेलौटकरअनायासहीअदभुतकमर्करनेवालेभगवानशर्ीकृष्णकेपास
आये और एकान्त म ंे उनकी इस पर्कार स े स्तुित करन े लगेः
'सिच्चदान ंदस्वरूप शर्ीकृष्ण!आपकास्वरूपमनऔरवाणीकािवषयनहींहै।आपयोगेश्वरहंै।सारेजगतका
िनयंतर्णआपहीकरतेहंै।आपसबकेहृदयमंेिनवासकरतेहंैऔरसब-के-सबआपकेहृदयमंेिनवासकरतेहंै।
आपभक्तोंकेएकमातर्वांछनीय, यदुवंशिशरोमिणऔरहमारेस्वामीहंै।जैसेएकहीअिग्नसभीलकिड़यो ंमंेव्याप्त
रहतीहै,वैसेएकहीआपसमस्तपर्ािणयो ंकेआत्माहंै।आत्माकेरूपमंेहोनेपरभीआपअपनेकोिछपाय े
रखतेहंैक्योंिकआपपंचकोशरूप गुफाओंकेभीतररहतेहंै।िफरभीपुरुषोत्तम केरूपमंे,सबकेिनयन्ताकेरूपमंे
औरसबकेसाक्षीकेरूपमंेआपकाअनुभवहोताहीहै।पर्भो!आपसबकेअिधष्ठानअनुकर्मऔरस्वयं
अिधष्ठानरिहतहंै।आपनेसृिष्टकेपर्ारम्भमंेअपनीमायासेहीगुणोंकीसृिष्टकीऔरउनगुणोंकोहीस्वीकार
करकेआपजगतकीउत्पित्त,िस्थितऔरपर्लयकरतेरहतेहंै।यहसबकरनेकेिलएआपकोअपनेसेअितिरक्त
औरिकसीभीवस्तुकीआवश्यकतानहीहै।क्योंिकआपसवर्शिक्तमानऔरसत्यस ंकल्पहंै।वहीआपदैत्य,पर्मथ
औरराक्षसो ंका,िजन्होंनेआजकल राजाओ ंकावेषधारणकररखाहै,िवनाशकरनेकेिलएतथाधमर्की
मयार्दाओ ंकीरक्षाकरनेकेिलएयदुवंशमंेअवतीणर्हुएहंै।यहबड़ेआनंदकीबातहैिकआपनेखेल-ही-ख ेलमंे
घोड़ेकेरूपमंेरहनेवालेइसकेशीदैत्यकोमारडाला।इसकीिहनिहनाहटसेडरकरदेवतालोगअपनास्वगर्
छोड़कर भाग जाया करत े थे।
पर्भो!अबपरसोंमंैआपकेहाथोंचाणूर,मुिष्टक, दूसरेपहलवान,कुवलयापीड हाथीऔरस्वयंकंसकोमरतेहुए
देखँूगा।उसकेबादशंखासुर,कालयवन,मुरऔरनरकास ुरकावधदेखँूगा।आपस्वगर्सेकल्पव ृक्षउखाड़लायंेगे
औरइन्दर्केचीं-चपड़करनेपरउनकोउसकामजाचखायंेगे।आपअपनीकृपा,वीरता,सौन्दयर्आिदकाशुल्क
देकरवीर-कन्याओ ंसेिववाहकरंेगेऔरजगदीश्वर!आपद्वािरकामंेरहतेहुएनृगकोपापसेछुड़ायंेगे।आप
जाम्बवती क े साथ स्यमन्तक मिण को जाम्बवान स े ले आयंेगे और अपन े धाम स े बर्ाह्मण क े मरे पुतर्ों को ला द ंेगे।
इसकेपश्चात्आपपौण्डर्क-िमथ्यावासुदेवकावधकरंेगे।काशीप ुरीकोजलादंेगे।युिधिष्ठर केराजसूययज्ञमंे
चेिदराज िशशुपालको,वहाँसेलौटतेसमयउसकेमौसेरेभाईदन्तवक्तर्कोनष्टकरंेगे।पर्भो!द्वािरकामंेिनवास
करतेसमयआपऔरभीबहुत-सेपराकर्मपर्कटकरंेगे,िजन्हंेआगेचलकरपृथ्वीकेबड़े-बड़ेज्ञानीऔरपर्ितभाशाली
पुरुषगायंेगे।मंैवहसबदेखँूगा।इसकेबादआपपृथ्वीकाभारउतारन ेकेिलएकालरूपसेअजर्ुनकेसारिथ
बनंेगे और अन ेक अक्षौिहणी स ेना का स ंहार कर ंेगे। यह सब म ंै अपनी आ ँखों से देखँूगा।
िवशुद्धिवज्ञानघन ं स्वसंस्थया समाप्तसवार्थर्ममोघवा ंिछतम्।

स्वतेजसा िनत्यिनव ृत्तमायाग ुणपर्वाह ं भगवन्तमीमिह ं।।
पर्भो!आपिवशुद्धिवज्ञानघनहंै।आपकेस्वरूपमंेऔरिकसीकाअिस्तत्वहैहीनहीं।आपिनत्य-िनरन्तरअपने
परमानन्दस्वरूपमंेिस्थतरहतेहंै।इसिलएयेसारेपदाथर्आपकोिनत्यपर्ाप्तहीहंै।आपकासंकल्प अमोघहै।
आपकीिचन्मयीशिक्तकेसामनेमायाऔरमायासेहोनेवालावहितर्गुणमय संसारचकर्िनत्यिनव ृत्तहै,कभीहुआ
हीनहीं।ऐसेआपअखण्ड,एकरस,सिच्चदान ंदस्वरूप, िनरितशयऐश्वयर्सम्पन्नभगवानकीमंैशरणगर्हणकरता
हँू।
(शर्ीमद ् भागवतः 10.37.23)
आपसबकेअंतयार्मी औरिनयन्ताहंै।अपने-आप मंेिस्थत,परमस्वतन्तर्है।जगतरउसकेअशेष-िवश ेष,भाव-
अभावरूपसारेभेद-िवभ ेदोंकीकल्पनाकेवलआपकीमायासेहीहुईअनुकर्महै।इससमयआपनेअपनीलीला
पर्कटकरनेकेिलएमनुष्यकासाशर्ीिवगर्हपर्कटिकयाहैऔरआपयदु,वृिष्णतथासात्वतव ंिशयोंकेिशरोमिण
बने हंै। पर्भो !मंै आपको नमस्कार करता ह ँू।'
(शर्ीमद ् भागवतः 10.37,11-24)
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दक्ष पर्जापित द्वारा स्त ुित
दक्षपर्जापितनेजल,थलऔरआकाशमंेरहनेवालेदेवता,असुरएवंमनुष्यआिदपर्जाकीसृिष्टअपनेसंकल्पसे
कीथी।परंतुजबउन्होंनेदेखािकवहसृिष्टबढ़नहींरहीहै,तबउन्होंनेिवन्ध्याचलकेिनकटवतीर्पवर्तोंपरजाकर
'अघमषर्ण'नामकशर्ेष्ठतीथर्मंेघोरतपस्याकीतथापर्जावृिद्धकीकामनासेइिन्दर्यातीतभगवानकी'हंसगुह्य'
नामक स्तोतर् स े स्तुित की, जो इस पर्कार ह ैः
'भगवन ्!आपकीअनुभूित,आपकीिचत्-शिक्तअमोघहै।आपजीवऔरपर्कृितसेपरे,उनकेिनयन्ताऔरउन्हंे
सत्ता-स्फ ूितर्देनेवालेहंै।िजनजीवोंनेितर्गुणमयी सृिष्टकोहीवास्तिवकसत्यसमझरखाहै,वेआपकेस्वरूपका
साक्षात्कारनहींकरसकेहंै,क्योंिकआपतकिकसीभीपर्माणकीपहँुचनहींहै।आपकीकोईअविध,कोईसीमा
नहीं है।
आपस्वयंपर्काशऔरपरात्परहंै।मंैआपकोनमस्कारकरताहँू।योंतोजीवऔरईश्वरएक-दूसरेसेसखाहंैतथा
इसीशरीरमंेइकट्ठेहीिनवासकरतेहंै,परंतुजीवसवर्शिक्तमानआपकेसख्यभावकोनहींजानता।ठीकवैसेही,
जैसे–रूप,रस,गंधआिदिवषयअपनेपर्कािशतकरनेवालीनेतर्,घर्ाणआिदइिन्दर्यव ृित्तयोंकोनहींजानते।
क्योंिकआपजीवऔरजगतकेदर्ष्टाहंै,दृश्यनहीं।महेश्वर!मंैआपकेशर्ीचरणो ंमंेनमस्कारकरताहँू।देह,पर्ाण,
इिन्दर्य,अंतःकरण कीवृित्तयाँ,पंचमहाभ ूतऔरइनकीतन्मातर्ाए ँ–येसबजड़होनेकेकारणअपनेकोऔरअपने
सेअितिरक्तकोभीनहींजानते।परंतुजीवइनसबकोऔरइनकेकारणसत्त्व,रजऔरतम–इनतीनगुणोंको
भीजानताहै।परंतुवहभीदृश्यअथवाज्ञेयरूप सेआपकोनहींजानसकताक्योंिकआपहीसबकेज्ञाताऔर
अनन्तहंै।इसिलएपर्भो!मंैतोकेवलआपकीस्तुितकरताहँू।जबसमािधकालमंेपर्माण,िवकल्पऔरिवपयर्रूप
िविवधज्ञानऔरस्मरणशिक्तकालोपहोजानेसेइसनाम-रूपात्मकजगतकािनरूपणकरनेवालामनउपरतहो
जाताहै,उससमयिबनामनकेभीकेवलसिच्चदान ंदमयी अपनीस्वरूपिस्थितकेद्वाराआपपर्कािशतहोतेरहते
हंै।पर्भो!आपशुद्धहंैऔरशुद्धहृदय-मिन्दरहीआपकािनवासस्थानहै।आपकोमेरानमस्कारहै।जैसेयािज्ञक
लोगकाष्ठमंेिछपीहुईअिग्नको'सािमध ेनी'नामकेपन्दर्हमन्तर्ोंकेद्वारापर्कटकरतेहंै,वैसेहीज्ञानीपुरुष
अपनीसत्ताइसशिक्तयो ंकेभीतरगूढ़भावसेिछपेहुएआपकोअपनीशुद्धबुिद्धकेद्वाराहृदयमंेहीढँूढिनकालत े
हंै।जगतअनुकर्ममंेिजतनीिभन्नताए ँदीखपड़तीहंैवेसबमायाकीहीहंै।मायाकािनषेधकरदेनेपरकेवल
परमसुखकेसाक्षात्कारस्वरूपआपहीअवशेषरहतेहंै।परंतुजबिवचारकरनेलगतेहंै,तबआपकेस्वरूपमंे
मायाकीउपलिब्ध-िनवर्चननहींहोसकताअथार्त्मायाभीआपहीहंै।अतःसारेनामऔरसारेरूपआपकेहीहंै।
पर्भो!आपमुझपरपर्सन्नहोइये।मुझेआत्मपर्सादसेपूणर्करदीिजय े।पर्भो!जोकुछवाणीसेकहाजाताहै
अथवाजोकुछमन,बुिद्धऔरइिन्दर्यो ंसेगर्हणिकयाजाताहैवहआपकास्वरूपनहींहै,क्योंिकवहतोगुणरूप
हैऔरआपगुणोंकीउत्पित्तऔरपर्लयकेअिधष्ठानहंै।आपमंेकेवलउनकीपर्तीितमातर्है।भगवन ्!आपमंेही
यहसाराजगतिस्थतहै,आपसेहीिनकलाहैऔरआपनेऔरिकसीकेसहारेनहींअपने-आप सेहीइसका
िनमार्णिकयाहै।यहआपकाहीहैऔरआपकेिलएहीहै।इसकेरूपमंेबननेवालेभीआपहंैऔरबनानेवालेभी
आपहीहंै।बनने-बनान ेकीिविधभीआपहीहंै।आपहीसबसेकामलेनेवालेभीहंै।जबकायर्औरकारणका
भेदनहींथा,तबभीआपस्वयंिसद्धस्वरूपसेिस्थतथे।इसीसेआपसबकेकारणभीहंै।सच्चीबाततोयहहै
िकआपजीवजगतकेभेदऔरस्वगतभ ेदसेसवर्थारिहतएक,अिद्वितयहंै।आपस्वयंबर्ह्महंै।आपमुझपर
पर्सन्न हो ं।
पर्भो!आपकीहीशिक्तया ँवादी-पर्ितवािदयो ंकेिववादऔरसंवाद(एकमत्य)कािवषयहोतीहंैऔरउन्हंेबार-बार
मोहमंेडालिदयाकरतीहंै।आपअनन्तअपर्ाकृतकल्याण-ग ुणगणो ंसेयुक्तएवंस्वयंअनन्तहंै।मंैआपको
नमस्कारकरताहँू।भगवन ्!उपासकलोगकहतेहंैिकहमारेपर्भुहस्त-पादािदसेयुक्तसाकार-िवगर्हहंैऔर
सांख्यवादी कहतेहंैकीभगवानहस्त-पादािदिवगर्हसेरिहतिनराकारहंै।यद्यिपइसपर्कारवेएकहीवस्तुकेदो
नहींहै।क्योंिकदोनोंएकहीपरमवस्तुमंेिस्थतहंै।िबनाआधारकेहाथ-पैरआिदकाहोनासम्भवनहींऔर

िनषेधकीभीकोई-न-कोईअविधहोनीहीचािहए।आपवहीआधारऔरिनषेधकीअविधहंै।इसिलएआपसाकार,
िनराकार दोनो ं से ही अिवरुद्ध सम परबर्ह्म ह ंै।
योऽनुगर्हाथर्ं भजता ं पादम ूलमनामरूपो भगवाननन्तः।
नामािन रूपािण च जन्मकमर्िभभर् ेजे स मह्यं परमः पर्सीदत ु।।
पर्भो!आपअनन्तहंै।आपकानतोकोईपर्ाकृतनामहैऔरनकोईपर्ाकृतरूप,िफरभीजोआपकेचरणकमलो ं
काभजनकरतेहंै,उनपरअनुगर्हकरनेकेिलएआपअनेकरूपोंमंेपर्कटहोकरअनेकोंलीलाए ँकरतेहंैतथाउन-
उन रूपो ं एवं लीलाओ ं के अनुसार अन ेकों नाम धारण कर ल ेते हंै। परमात्मन ्!आप म ुझ पर क ृपा-पर्साद कीिजए।
(शर्ीमद ् भागवतः 6.4.33)
लोगोंकीउपासनाए ँपर्ायःसाधारणकोिटकीहोतीहंै।अतःआपसबकेहृदयमंेरहकरउनकीभावनाकेअनुसार
िभन्न-िभन्नदेवताओ ंकेरूपमंेपर्तीतहोतेरहतेहंै,ठीकवैसेहीजैसेहवागन्धकाआशर्यलेकरसुगिन्धत पर्तीत
होतीहै,परंतुवास्तवमंेसुगिन्धत नहींहोती।ऐसेसबकीभावनाओ ंकाअनुसरण करनेवालीपर्भुमेरीअिभलाषा
पूणर् कर ंे।'अनुकर्म
(शर्ीमद ् भागवतः 6.4.23-34)
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देवताओ ं द्वारा गभर्-स्त ुित
जब-जबपृथ्वीपरधमर्कीहािनतथाअधमर्कीवृिद्धहोतीहैभगवानपृथ्वीपरअवतारलेतेहंै।मथुरानगरीमंे
कंसकेअत्याचारपर्जाजनपरिदन-पर्ितिदनबढ़तेजारहेथेऔरवहयदुवंिशयोंकोभीनष्टकरताजारहाथा।
भक्तवत्सलभगवानशर्ीकृष्णनेअसुरोंकेिवनाशहेतुपृथ्वीपरअवतारलेनेकेिलएवसुदेव-पत्नी देवकीगभर्मंे
पर्वेशिकयाऔरतभीदेवकीकेशरीरकीकांितसेकंसकाबंदीगृहजगमगान ेलगा।भगवानशंकर,बर्ह्माजी,देविषर्
नारदतथाअन्यदेवताकंसकेकारागारमंेआकरसबकीअिभलाषापूणर्करनेवालेपर्भुशर्ीहिरकीसुमधुरवचनों
से इस पर्कार स्त ुित करत े हंै-
'पर्भो!आपसत्यस ंकल्पहै।सत्यहीआपकीपर्ािप्तकाशर्ेष्ठसाधनहै।सृिष्टकेपूवर्,पर्लयकेपश्चात्औरसंसारकी
िस्थितकेसमय–इनअसत्यअवस्थाओ ंमंेभीआपसत्यहंै।पृथ्वी,जल,तेज,वायुऔरआकाश–इनपाँच
दृश्यमानसत्योंकेआपहीकारणहंैऔरउनमंेअन्तयार्मीरूपसेिवराजमानभीहंै।आपइसदृश्यमानजगतके
परमाथर्रूपहंै।आपहीमधुरवाणीऔरसमदशर्नकेपर्वत्तर्कहंै।भगवन ्!आपतोबस,सत्यस्वरूपहीहंै।हमसब
आपकीशरणमंेआयेहंै।यहसंसारक्याहै,एकसनातनवृक्ष।इसवृक्षकाआशर्यहैएकपर्कृित।इसकेदोफल
हंै–सुखऔरदुःख,तीनजड़ेहंैसत्त्व,रजऔरतम,चाररसहंै–धमर्,अथर्,कामऔरमोक्ष।इसकेजाननेके
पाँचपर्कारहंै–शर्ोतर्,त्वचा,नेतर्,रसनाऔरनािसका।इसकेछःस्वभावहंै–पैदाहोना,रहना,बढ़ना,बदलना,
घटनाऔरनष्टहोजाना।इसवृक्षकीछालहैसातधातुएँ–रस,रूिधर,मांस,मेद,अिस्थ,मज्जाऔरशुकर्।आठ
शाखाए ँहंै–पाँचमहाभूत,मन,बुिद्धऔरअहंकार।इसमंेमुखआिदनवोंद्वारखोडरहंै।पर्ाण,अपान,व्यान,उदान,
समान,नाग,कूमर्,कृकल,देवदत्तऔरधनंजय–येदसपर्ाणहीइसकेदसपत्तेहंै।इससंसाररूपवृक्षकीउत्पित्त
केआधारएकमातर्आपहीहंै।आपमंेहीइसकापर्लयहोताहैऔरआपकेहीअनुगर्हसेइसकीरक्षाभीहोतीहै।
िजनकािचत्तआपकीमायासेआवृत्तहोरहाहै,इससत्यकोसमझन ेकीशिक्तखोबैठाहै–वेहीउत्पित्त,िस्थित
औरपर्लयकरनेवालेबर्ह्मािददेवताओ ंकोअनेकदीखतेहंै।तत्त्वज्ञानीपुरुषतोसबकेरूपमंेकेवलआपकेहीदशर्न
करते हंै।
आपज्ञानस्वरूपआत्माहंै।चराचरजगतकेकल्याणकेिलएहीअनेकोंरूपधारणकरतेहंै।आपकेवेरूपिवशुद्ध,
अपर्ाकृत,सत्त्वमयहोतेहंैऔरसंतपुरुषोंकोबहुतसुखदेतेहंै।साथहीदुष्टोंकोउनकीदुष्टताकादण्डभीदेतेहंै।
उनके िलए अम ंगलमय भी होत े हंै।अनुकर्म
त्वय्यब ुजाक्षािखलसत्त्वधािम्न समािधनाऽऽव ेिशतचेतसैके।
त्वत्पादपोत ेन महत्क ृतेन कुवर्िन्त गोवत्सपद ं भवािब्धम ्।।
स्वयं समुत्तीयर् स ुदुस्तरं द्युमन् भवाणर्व ं भीममदभर्सौहृदाः।
भवत्पदाम्भोरुहनावमतर् त े िनधाय याताः सदन ुगर्हो भवान ्।।
कमलकेसमानकोमलअनुगर्ह-भर ेनेतर्ोंवालेपर्भो!कुछिवरलेलोगहीआपकेसमस्तपदाथोर्ंऔरपर्ािणयो ंके
आशर्यस्वरूपरूपमंेपूणर्एकागर्तासेअपनािचत्तलगापातेहंैऔरआपकेचरणकमलरूपीजहाजकाआशर्यलेकर
इससंसारसागर कोबछड़ेकेखुरकेगढ़ेकेसमानअनायासहीपारकरजातेहंै।क्योंनहो,अबतककेसंतोंने
इसी जहाज स े संसारसागर को पार जो िकया ह ै।
परमपर्काशस्वरूपपरमात्मन ्!आपकेभक्तजनसारेजगतकेिनष्कपटपर्ेमी,सच्चेिहतैषीहोतेहंै।वेस्वयंतोइस
भयंकरऔरकष्टसेपारकरनेयोग्यसंसारसागर कोपारकरहीजातेहंै,िकंतुऔरोंकेकल्याणकेिलएभीवे
यहाँआपकेचरणकमलो ंकीनौकास्थािपतकरजातेहंै।वास्तवमंेसत्पुरुषोंपरआपकीमहानकृपाहै।उनकेिलए
आप अन ुगर्हस्वरूप ही ह ंै।
(शर्ीमद ् भागवतः 10.2.30.31)

कमलनयन!जोलोगआपकेचरणकमलो ंकीशरणनहींलेतेतथाआपकेपर्ितभिक्तभावसेरिहतहोनेकेकारण
िजनकीबुिद्धभीशुद्धनहींहै,वेअपनेकोझूठ-मूठमुक्तमानतेहंै।वास्तवमंेतोवेबद्धहीहंै।वेयिदबड़ीतपस्या
और साधना का कष्ट उठाकर िकसी पर्कार ऊ ँचे-से-ऊँचे पद पर भी पह ँुच जाय ंे तो भी वहा ँ से नीचे िगर जात े हंै।
परंतुभगवन ्!जोआपकेिनजजनहै,िजन्होंनेआपकेचरणोंमंेअपनीसच्चीपर्ीितजोड़रखीहै,वेकभीउन
ज्ञानािभमािनयो ंकीभाँितअपनेसाधनमागर्सेिगरतेनहीं।पर्भो!वेबड़े-बड़ेिवघ्नडालनेवालोंकीसेनाके
सरदारो ंकेिसरपरपैररखकरिनभर्यिवचरत ेहंै,कोईभीिवघ्नउनकेमागर्मंेरुकावटनहींडालसकता;क्योंिक
उनके रक्षक आप जो ह ंै।
आपसंसारकीिस्थितकेिलएसमस्तदेहधािरयो ंकोपरमकल्याणपर्दानकरनेवालेिवशुद्धसत्त्वमय,
सिच्चदान ंदमय परमिदव्यमंगल-िवगर्ह पर्कटकरतेहंै।उसरूपकेपर्कटहोनेसेहीआपकेभक्तवेद,कमर्काण्ड,
अष्टाँग-योग, तपस्याऔरसमािधकेद्वाराआपकीआराधनाकरतेहंै।िबनािकसीआशर्यकेवेिकसकीआराधना
करंेगे?पर्भो!आपसबकेिवधाताहंै।यिदआपकायहिवशुद्धसत्त्वमयिनजस्वरूपनहोतोअज्ञानऔरउसके
द्वाराहोनेवालेभेदभाव कोनष्टकरनेवालाअपरोक्षज्ञानहीिकसीकोनहो।जगतमंेिदखनेवालेतीनोंगुण
आपकेहंैऔरआपकेद्वाराहीपर्कािशतहोतेहंै,यहसत्यहै।परंतुइनगुणोंकीपर्काशकवृित्तयोंसेआपकेस्वरूप
काकेवलअनुमानहीहोताहै,वास्तिवकस्वरूपकासाक्षात्कारनहींहोता।(आपक ेस्वरूपकासाक्षात्कारतोआपके
इसिवशुद्धसत्त्वमयस्वरूपकीसेवाकरनेपरआपकीकृपासेहीहोताहै।)भगवन ्!मनऔरवेद-वाणी केद्वारा
केवलआपकेस्वरूपकाअनुमानमातर् होताहैक्योंिकआपउनकेद्वारादृश्यनहीं;उनकेसाक्षीहंै।इसिलएआपके
गुण,जन्मऔरकमर्अनुकर्म आिदकेद्वाराआपकेनामऔररूपकािनरूपणनहींिकयाजासकता।िपरभी
पर्भो!आपकेभक्तजनउपासनाआिदिकर्यायोगो ंकेद्वाराआपकासाक्षात्कारतोकरतेहीहंै।जोपुरुषआपके
मंगलमय नामोंऔररूपोंकाशर्वण,कीतर्न,स्मरणऔरध्यानकरताहैऔरआपकेचरणकमलो ंकीसेवामंेही
अपनािचत्तलगायेरहताहै,उसेिफरजन्म-म ृत्युरूपसंसारकेचकर्मंेनहींआनापड़ता।सम्पूणर्दुःखोंकेहरने
वालेभगवन ्!आपसवर्ेश्वरहै।यहपृथ्वीतोआपकाचरणकमलहीहै।आपकेअवतारसेइसकाभारदूरहोगया।
धन्यहै!पर्भो!हमारेिलएयहबड़ेसौभाग्यकीबातहैिकहमलोगआपकेसुन्दर-स ुन्दरिचह्नोंसेयुक्त
चरणकमलो ंकेद्वारािवभूिषतपृथ्वीकोदेखंेगेऔरस्वगर्लोककोभीआपकीकृपासेकृताथर्देखंेगे।पर्भों!आप
अजन्माहंै।यिदआपकेजन्मकेकारणकेसम्बन्धमंेहमकोईतकर्नकरंेतोयहीकहसकतेहैिकयहआपका
एकलीला-िवनोदहै।ऐसाकरनेकाकारणयहहैिकआपद्वैतकेलेशसेरिहतसवार्िधष्ठानस्वरूपहंैऔरइसजगत
की उत्पित्त, िस्थित तथा पर्लय अज्ञान क े द्वारा आप म ंे आरोिपत ह ंै।
पर्भो!आपनेजैसेअनेकोंबारमत्स्य,हयगर्ीव,कच्छप,नृिसंह,वाराह,हंस,राम,परशुरामऔरवामनअवतार
धारणकरकेहमलोगोंकीऔरतीनोंलोकोंकीरक्षाकीहै,वैसेहीआपइसबारभीपृथ्वीकाभारहरण
कीिजय े। यजुनन्दन !हम आपक े चरणो ं मंे वन्दना करत े हंै।
(शर्ीमद ् भागवतः 10.2.26-40)
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वेदों द्वारा स्त ुित
िजसपर्कारपर्ातःकालहोनेपरसोतेहुएसमर्ाटकोजगानेहेतुअनुजीवीबंदीजन समर्ाटकेपराकर्मऔरसुयशका
गानकरकेउसेजगातेहंै,वैसेहीजबपरमात्माअपनेबनायेहुएसम्पूणर्जगतकोअपनेमंेलीनकरके
आत्मारमणकेहेतुयोगिनदर्ास्वीकारकरतेहंै।तबपर्लयकेअंतमंेशर्ुितयाँउनकाइसपर्कारसेयशोगानकर
जगातीहंै।वेदोंकेतात्पयर्-दृिष्टसे28भेदहंै,अतःयहाँ28शर्ुितयोंने28श्लोकोंसेपर्भुकीइसपर्कारसेस्तुित
की हैः
'अिजत!आपहीसवर्शर्ेष्ठहंै,आपपरकोईिवजयनहींपर्ाप्तकरसकता।आपकीजयहो,जयहो।पर्भो!आप
स्वभावसेहीसमस्तऐश्वयोर्ंसेपूणर्हंै,इसिलएचराचरपर्ािणयो ंकोफँसानेवालीमायाकानाशकरदीिजय े।पर्भो
!इसगुणमयी मायानेदोषकेिलएजीवोंकेआनंदािदमय सहजस्वरूपकाआच्छादनकरकेउन्हंेबंधनमंेडालने
केिलएहीसत्त्वािदगुणोंकोगर्हणिकयाहै।जगतमंेिजतनीसाधना,ज्ञान,िकर्याआिदशिक्तया ँहंै,उनसबको
जगानेवालेआपहीहंै।इसिलएआपकोिमटाएिबनायहमायािमटनहीसकती।(इसिवषयमंेयिदपर्माणपूछा
जायेतोआपकीश्वासभ ूताशर्ुितयाँही–हमपर्माणहंै।)यद्यिपहमआपकाअनुकर्म स्वरूपतःवणर्नकरनेमंे
असमथर्हंै,परंतुजबकभीआपमायाकेद्वाराजगतकीसृिष्टकरकेसगुणहोजातेहंैयाउसकोिनषेधकरके
स्वरूपिस्थितकीलीलाकरतेहंैअथवाअपनासिच्चदान ंदस्वरूप शर्ीिवगर्हपर्कटकरकेकर्ीड़ाकरतेहंै,तभीहम
यित्कंिचत्आपकावणर्नकरनेमंेसमथर्होतीहंै।इसमंेसन्देहनहींिकहमारेद्वाराइन्दर्,वरूणआिददेवताओ ंका
भीवणर्निकयाजाताहै,परंतुहमारे(शर्ुितयोंके)सारेमंतर्अथवासभीमंतर्दर्ष्टा ऋिष,पर्तीतहोनेवालेइससम्पूणर्
जगतकोबर्ह्मस्वरूपहीअनुभवकरतेहंै।क्योंिकिजससमययहसाराजगतनहींरहता,उससमयभीआपबच
रहतेहंै।जैसेघट,शराब(िमट्टीकाप्याला,कसोरा)आिदसभीिवकारिमट्टीसेहीउत्पन्नऔरपर्लयआपमंेही
होतीहै,तबक्याआपपृथ्वीकेसमानिवकारीहंै?नहीं-नहीं,आपतोएकरस-िनिवर्कारहंै।इसीसेतोयहजगत
आपमंेउत्पन्ननहीं,पर्तीतहै।इसिलएजैसेघट,शराबआिदकावणर्नभीिमट्टीकाहीवणर्नहै।यहीकारणहै
िकिवचारशीलऋिष,मनसेजोकुछसोचाजाताहैऔरवाणीसेजोकुछकहाजाताहै,उसेआपमंेहीिस्थत,
आपकाहीस्वरूपदेखतेहंै।मनुष्यअपनापैरचाहेकहींभीरखे,ईँट,पत्थरयाकाठपरहोगावहपृथ्वीपरही,

क्योंिकवेसबपृथ्वीस्वरूप हीहंै।इसिलएहमचाहेिजसनामयािजसरूपकावणर्नकरंे,वहआपकाहीनाम,
आपका ही रूप ह ै।
भगवन ्!लोगसत्त्व,रज,तम–इनतीनगुणोंकीमायासेबनेहुएअच्छे-बुरेभावोंयाअच्छी-ब ुरीिकर्याओ ंमंे
उलझजायाकरतेहंै,परंतुआपतोउसमायानटीकेस्वामी,उसकोनचानेवालेहंै।इसीलएिवचारशीलपुरुष
आपकीलीलाकथाकेअमृतसागर मंेगोतेलगातेरहतेहंैऔरइसकोअपनेसारेपाप-तापकोधो-बहादेतेहंै।क्यों
नहो,आपकीलीला-कथासभीजीवोंकेमायामलकोनष्टकरनेवालीजोहै।पुरुषोत्तम !िजनमहापुरुषोंने
आत्मज्ञानकेद्वाराअंतःकरण केराग-द्वेषआिदऔरशरीरकेकालक ृतजरा-मरणआिददोषिमटािदयेहंैऔर
िनरन्तरआपकेउसस्वरूपकीअनुमितमंेमग्नरहतेहंै,जोअखण्डआनंदस्वरूप है,उन्होंनेअपनेपाप-तापो ंको
सदा क े िलए शा ंत, भस्म कर िदया ह ै, इसक े िवषय म ंे तो कहना ही क्या ह ै!।
भगवन ्!पर्ाणधािरयो ंकेजीवनकीसफलताइसीमंेहैिकवेआपकाभजन-स ेवाकरंे,आपकीआज्ञाकापालनकरंे;
यिदवेऐसानहींकरतेतोउनकाजीवनव्यथर्हैऔरउनकेशरीरमंेश्वासकाचलनाठीकवैसाहीहै,जैसालुहार
कीधौंकनीमेहवाकाआना-जाना।महत्तत्त्व,अहंकारआिदनेआपकेअनुगर्हसे–आपकेउनमंेपर्वेशकरनेपरही
इसबर्ह्माण्डकीसृिष्टकीहै।अन्नमय,पर्ाणमय,मनोमय,िवज्ञानमयऔरआनंदमय –इनपाँचोंकोशोंमंेपुरुषरूप
सेरहनेवाले,उनमंे'मंै-मंै'कीस्फूितर्करनेवालेभीआपहीहंै?आपकेहीअिस्तत्वसेउनकोशोंकेअिस्तत्वका
अनुभवहोताहैऔरउनकेनरहनेपरभीअिन्तमअविधरूपसेआपिवराजमानरहतेहंै।इसपर्कारसबमंेअिन्वत
औरसबकीअविधहोनेपरभीअसंगहीहंै।क्योंिकवास्तवमेजोकुछवृित्तयोंकेद्वाराअिस्तअथवानािस्तके
रूपमंेअनुभवहोताहै,उनअनुकर्म समस्तकायर्-कारणो ंसेआपपरेहंै।'नेित-नेित'केद्वाराइनसबकािनषेधहो
जानेपरभीआपहीशेषरहतेहंै,क्योंिकआपउसिनषेधकेभीसाक्षीहंैऔरवास्तवमंेआपहीएकमातर्सत्य
हंै। (इसिलए आपक े भजन क े िबना जीव का जीवन व्यथर् ही ह ै;क्योंिक वह इस महान सत्य स े वंिचत ह ै)।
ऋिषयो ंनेआपकीपर्ािप्तकेिलएअनेकोंमागर्मानेहंै।उनमंेजोस्थूलदृिष्टवाल ेहंै,वेमिणपुरचकर्मंेअिग्नरूपसे
आपकीउपासनाकरतेहंै।अरुणवंशकेऋिषसमस्तनािड़यो ंकेिनकलन ेकेस्थानहृदयमंेआपकेपरमसूक्ष्म
स्वरूपदहरबर्ह्मकीउपासनाकरतेहंै।पर्भो!हृदयसेहीआपकोपर्ाप्तकरनेकाशर्ेष्ठमागर्सुषुम्नानाड़ीबर्ह्मरन्धर्
तकगयीहुईहै।जोपुरुषउसज्योितमर्यमागर्कोपर्ाप्तकरलेताहैऔरउससेऊपरकीओरबढ़ताहै,वहिफर
जन्म-म ृत्युकेचक्करमंेनहींपड़ता।भगवन ्!आपनेहीदेवता,मनुष्यऔरपशु-पक्षी आिदयोिनया ँबनायीहंै।
सदा-सवर्तर्सबरूपोंमंेआपहंैही,इसिलएकारणरूपसेपर्वेशनकरनेपरभीआपऐसेजानपड़तेहंैमानों,उसमंे
पर्िवष्टहुएहों।साथहीिविभन्नआकृितयोंकाअनुकरण करकेकहींउत्तमतोकहींअधमरूपसेपर्तीतहोतेहै,जैसे
आगछोटी-बड़ीलकिड़यो ंऔरकमोर्ंकेअनुसारपर्चुरअथवाअल्पपिरमाणमंेयाउत्तम-अधमरूपमंेपर्तीतहोतीहै।
इसिलएसंतपुरुषलौिकक-पारलौिकककमोर्ंकीदुकानदारी से,उनकेफलोंसेिवरक्तहोजातेहंैऔरअपनीिनमर्ल
बुिद्धसेसत्य-असत्य,आत्मा-अनात्माकोपहचानकरजगतकेझूठेरूपोंमंेनहींफँसते;आपकेसवर्तर्एकरस,
समभाव स े िस्थत सत्यस्वरूप का साक्षात्कार करत े हंै।
पर्भो!जीविजनशरीरोंमंेरहताहै,वेउसकेकमर्केद्वारािनिमर्तहोतेहंैऔरवास्तवमंेउनशरीरोंकेकायर्-
कारणरूपआवरणो ंसेवहरिहतहै,क्योंिकवस्तुतःउनआवरणो ंकीसत्ताहीनहींहै।तत्त्वज्ञानीपुरुषऐसाकहतेहंै
िकसमस्तशिक्तयो ंकोधारणकरनेवालेआपकाहीवहस्वरूपहै।स्वरूपहोनेकेकारणअंशनहोनेपरभीउसे
अंशकहतेहंैऔरिनिमर्तनहोनेपरभीिनिमर्तकहतेहंै।इसीसेबुिद्धमान पुरुषजीवकेवास्तिवकस्वरूपपर
िवचारकरकेपरमिवश्वासकेसाथआपकेचरणकमलो ंकीउपासनाकरतेहंै।क्योंिकआपकेचरणहीसमस्तवैिदक
कमोर्ं के समपर्णस्थान और मोक्षस्वरूप ह ंै।
दुरवगमात्मतत्त्विनगमाय तवात्ततनोश्चिरतमहाम ृतािब्धपिरवतर्पिरशर्मणाः।
न पिरलषिन्त क ेिचदपवगर्मपीश्वर त े चरणसरोजह ंसकुलसंगिवसृष्टगृहाः।।
भगवन ्!परमात्मतत्त्वकाज्ञानपर्ाप्तकरनाअत्यंतकिठनहै।उसीकाज्ञानकरानेकेिलएआपिविवधपर्कारके
अवतारगर्हणकरतेहंैऔरउनकेद्वाराऐसीलीलाकरतेहंै,जोअमृतकेमहासागरसेभीमधुरऔरमादकहोती
है।जोलोगउसकासेवनकरतेहंै,उनकीसारीथकावटदूरहोजातीहै,वेपरमानन्दसेमग्नहोजातेहंै।कुछ
पर्ेमीभक्ततोऐसेहोतेहंै,जोआपकीलीला-कथाओ ंकोछोड़करमोक्षकीभीअिभलाषानहींकरतेस्वगर्आिदकी
तोबातअनुकर्म हीक्याहै।वेआपकेचरणकमलो ंकेपर्ेमीपरमहंसोंकेसत्संगमंे,जहाँआपकीकथाहोतीहै,
इतना स ुख मानत े हंै िक उसक े िलए इस जीवन म ंे पर्ाप्त अपनी घर-ग ृहस्थी का भी पिरत्याग कर द ेते हंै।
(शर्ीमद ् भागवतः 10.87.21)
पर्भो!यहशरीरआपकीसेवाकासाधनहोकरजबआपकेपथकाअनुरागीहोजाताहै,तबआत्मा,िहतैषी,सुहृद
औरिपर्यव्यिक्तकेसमानआचरणकरताहै।आपजीवकेिहतैषी,िपर्यतमऔरआत्माहीहंैऔरसदा-सवर्दाजीव
कोअपनान ेकेिलएतैयारभीरहतेहंै।इतनीसुगमता होनेपरतथाअनुकूलमानवशरीरपाकरभीलोगसख्यभाव
आिदकेद्वाराआपकीउपासनानहींकरते,आपमंेनहींरमते,बिल्कइसिवनाशीऔरअसत्शरीरतथाउसके
सम्बिन्धयो ंमंेहीरमजातेहंै,उन्हींकीउपासनाकरनेलगतेहंैऔरइसपर्कारअपनेआत्माकाहननकरतेहंै,
उसेअधोगितमंेपहँुचातेहंै।भला,यहिकतनेकष्टकीबातहै!इसकाफलशुद्धहोताहैिकउनकीसारीवृित्तयाँ,
सारीवासनाए ँशरीरआिदमंेहीलगजातीहंैऔरिफरउनकेअनुसारउनकोपशु-पक्षी आिदकेनजानेिकतने
बुरे-बुरे शरीर गर्हण करन े पड़ते हंै और इस पर्कार अत्य ंत भयावह जन्म-म ृत्युरूप संसार म ंे भटकना पड़ता ह ै।

िनभृतमरून्मनोऽक्षदृढ़योगय ुजो हृिद यन्म ुनय उपासत े तदरयोऽिप यय ुः स्मरणात ्।
िस्तर्य उरग ेन्दर्भोगभ ुजदण्डिवषक्तिधयो वयमिप त े समाः समादृशोऽिङघर्सरोजस ुधाः।।
पर्भो!बड़े-बड़ेिवचारशीलयोगी-यितअपनेपर्ाण,मनऔरइिन्दर्यो ंकेवशमंेकरकेदृढ़योगाभ्यासकेद्वाराहृदय
मंेआपकीउपासनाकरतेहंै।परंतुआश्चयर्कीबाततोयहहैिकउन्हंेिजसपदकीपर्ािप्तहोतीहै,उसीकीपर्ािप्त
उनशतर्ुओंकोभीहोजातीहै,जोआपसेवैर-भाव रखतेहंै।क्योंिकस्मरणतोवेभीकरतेहीहंै।कहाँतककहंे,
भगवन ्!वेिस्तर्याँ.जोअज्ञानवशआपकोपिरिच्छन्नमानतीहंैऔरआपकीशेषनाग केसमानमोटी,लंबीतथा
सुकुमारभुजाओंकेपर्ितकामभावसेआसक्तरहतीहंै,िजसपरमपदकोपर्ाप्तकरतीहंै,वहीपदहमशर्ुितयोंको
भीपर्ाप्तहोताहै।यद्यिपहमआपकोसदा-सवर्दाएकरसअनुभवकरतीहंैऔरआपकेचरणारिवन्दकामकरन्दरस
पानकरतीरहतीहंै।क्योंनहो,आपसमदशीर्जोहंै।आपकीदृिष्टमंेउपासककेपिरिच्छन्नयाअपिरिच्छन्नभाव
मंे कोई अन्तर नही ं है।
(शर्ीमद ् भागवतः 10.87.23)
भगवन ्!आपअनािदऔरअनन्तहंै।िजसकाजन्मऔरमृत्युकालसेसीिमतहै,वहभला,आपकोकैसेजान
सकताहै।स्वयंबर्ह्माजी,िनवृित्तपरायण सनकािदतथापर्वृित्तपरायण मरीिचआिदभीबहुतपीछेआपसेहीउत्पन्न
हुएहंै।िजससमयआपसबकोसमेटकरसोजातेहंै,उससमयऐसाकोईसाधननहींरहजाता,िजसस ेउनके
साथहीसोयाहुआजीवआपकोजानसके,क्योंिकउससमयनतोआकाशािदस्थूलजगतरहताहैनतो
महत्तत्त्वािदसूक्ष्मजगत।इनदोनोंसेबनेहुएशरीरऔरउनकेिनिमत्तक्षण-म ुहूतर्आिदकालकेअंगभीअनुकर्म
नहींरहते।उससमयकुछभीनहींरहता।यहाँतककीशास्तर्भीआपमंेहीसमाजातेहंै।(ऐसीअवस्थामंेआपको
जाननेकीचेष्टानकरकेआपकाभजनकरनाहीसवोर्त्तममागर्है।)पर्भो!कुछलोगमानतेहंैिकअसत्जगतकी
उत्पित्तहोतीहैऔरकुछकहतेहंैिकसत्-रूपदुःखोंकानाशहोनेपरमुिक्तिमलतीहै।दूसरेलोगआत्माको
अनेकमानतेहंैतोकईलोगकमर्केद्वारापर्ाप्तहोनेवालेलोकऔरपरलोकरूपव्यवहारकोसत्यमानतेहंै।इसमंे
सन्देहनहींिकयेसभीबातंेभर्ममूलकहंैऔरवेआरोपकरकेहीऐसाउपदेशकरतेहंै।पुरुषितर्गुणमय है।इस
पर्कारकाभेदभाव केवलअज्ञानसेहीहोताहैऔरआपअज्ञानसेसवर्थापरेहंै।इसिलएज्ञानस्वरूपआपमंेिकसी
पर्कार का भ ेदभाव नही ं है।
यहितर्गुणात्मक जगतमनकीकल्पनामातर्है।केवलयहीनहीं,परमात्माऔरजगतसेपृथक्पर्तीतहोनेवाला
पुरुषभीकल्पनामातर्हीहै।इसपर्कारवास्तवमंेअसत्होनेपरभीअपनेसत्यअिधष्ठानआपकीसत्ताकेकारण
यहसत्य-सापर्तीतहोरहाहै।इसिलएभोक्ता,भोग्यऔरदोनोंकेसम्बन्धकोिसद्धकरनेवालीइिन्दर्या ँआिद
िजतनाभीजगतहै,सबकोआत्मज्ञानीपुरुषआत्मरूपसेसत्यहीमानतेहंै।सोनेसेबनेहुएकड़े,कुण्डलआिद
स्वणर्रूपहीतोहंै;इसिलएउनकोइसरूपमंेजाननेवालापुरुषउन्हंेछोड़तानहीं,वहसमझताहैिकयहभी
सोनाहै।इसीपर्कारयहजगतआत्मामंेहीकिल्पत,आत्मासेहीव्याप्तहै,इसिलएआत्मज्ञानीपुरुषतोइसे
आत्मरूप ही मानत े हंै।
भगवन ्!जोलोगयहसमझत ेहंैिकआपसमस्तपर्ािणयो ंऔरपदाथोर्ंकेअिधष्ठानहंै,सबकेआधारहंैऔर
सवार्त्मभावसेआपकाभजन-स ेवनकरतेहंै,वेमृत्युकोतुच्छसमझकरउसकेिसरपरलातमारतेहंैअथार्त्उस
परिवजयपर्ाप्तकरलेतेहंै।जोलोगआपसेिवमुखहंै,वेचाहेिजतनेबड़ेिवद्वानहों,उन्हंेआपकमोर्ंकापर्ितपादन
करनेवालीशर्ुितयोंसेपशुओंकेसमानबाँधलेतेहंै।इसकेिवपरीतिजन्होंनेआपकेसाथपर्ेमकासम्बन्धजोड़
रखाहै,वेनकेवलअपनेकोबिल्कदूसरोंकोभीपिवतर्करदेतेहंै,जगतकेबंधनसेछुड़ादेतेहंै।ऐसासौभाग्य
भला, आपस े िवमुख लोगो ं को क ैसे पर्ाप्त हो सकता ह ै।
पर्भो!आपमन,बुिद्धऔरइिन्दर्यआिदकरणोंसे,िचन्तन,कमर्आिदसाधनो ंसेसवर्थारिहतहंै।िफरभीआप
समस्तअंतःकरण औरबाह्यकरणोंकीशिक्तयो ंसेसदा-सवर्दासम्पन्नहंै।आपस्वतःिसद्धज्ञानवान,स्वयंपर्काश हंै;
अतःकोईकामकरनेकेिलएआपकोइिन्दर्यो ंकीआवश्यकतानहींहै।जैसेछोटे-छोटेराजाअपनीपर्जासेकर
लेकरस्वयंअपनेसमर्ाटकोकरदेतेहंै,वैसेहीमनुष्योंकेपूज्यदेवताऔरदेवताओ ंकेपूज्यबर्ह्माआिदभी
अपनेअिधक ृतपर्ािणयो ंसेपूजास्वीकारकरतेहंैऔरमायाकेअधीनहोकरआपकीपूजाकरतेरहतेहंै।वेइस
पर्कारआपकीपूजाकरतेहंैिकआपनेजहाँजोकमर्करनेकेिलएउन्हंेिनयुक्तकरिदयाहै,वेआपसेभयभीत
रहकरवहींवहकामकरतेरहतेहंै।िनत्यम ुक्त!आपमायातीतहंै;िफरभीजबअपनेईक्षणमातर्से,संकल्पमातर् के
मायाकेसाथकर्ीड़ाकरतेहंै,तबआपकाअनुकर्म संकेतपातेहीजीवोंकेसूक्ष्मशरीरऔरउनकेसुप्तकमर्-स ंस्कार
जगजातेहंैऔरचराचरपर्ािणयो ंकीउत्पित्तहोतीहंै।पर्भो!आपपरमदयालुहंै।आकाशकेसमानसबमंेसम
होनेकेकारणनतोकोईआपकाअपनाहैऔरनतोपराया।वास्तवमंेतोआपकेस्वरूपमंेमनऔरवाणीकी
गितहीनहींहै।आपमंेकायर्-कारणरूपपर्पंचकाअभावहोनेसेबाह्यदृिष्टसेआपशून्यकेसमानहीजानपड़तेहंै,
परंतु उस दृिष्ट क े भी अिधष्ठान होन े के कारण आप परम सत्य ह ंै।
भगवन ्!आपिनत्यएकरसहंै।यिदजीवअसंख्यहोंऔरसब-के-सबिनत्यएवंसवर्व्यापकहों,तबतोवेआपके
समानहीहोजायंेगे;उसहालतमंेवेशािसतहंैऔरआपशासक,यहबातबनहीनहींसकतीऔरतबआप
उनकािनयंतर्णकरहीनहींसकते।उनकािनयंतर्णआपतभीकरसकतेहंै,जबवेआपसेउत्पन्नएवंआपकी
अपेक्षान्यूनहों।इसमंेसन्देहनहींिकयेसब-के-सबजीवतथाइनकीएकतायािविभन्नताआपसेहीउत्पन्नहुई
है।इसिलएआपउनमंेकारणरूपसेरहतेहुएभीउनकेिनयामकहंै।वास्तवमंेआपउनमंेसमरूपसेस्वरूपकैसा

है।क्योंिकजोलोगऐसासमझत ेहंैिकहमनेजानिलया,उन्होंनेवास्तवमंेआपकोनहींजाना,उन्होंनेतोकेवल
अपनीबुिद्धकेिवषयकोजानाहै,िजसस ेआपपरेहंै।औरसाथहीमितकेद्वारािजतनीवस्तुएँजानीजातीहंै,वे
मितयो ंकीिभन्नताकेकारणिभन्न-िभन्नहोतीहंै;इसिलएउनकीदुष्टता,एकमतकेसाथदूसरेमतकािवरोध
पर्त्यक्षहीहै।अतएवआपकास्वरूपसमस्तमतोंकेपरेहै।स्वािमन ्!जीवआपसेउत्पन्नहोताहै,यहकहनेका
ऐसाअथर्नहींहैिकआपपिरणामकेद्वाराजीवबनतेहंै।िसद्धान्ततोयहहैिकपर्कृितऔरपुरुषदोनोंही
अजन्माहंैअथार्त्उनकावास्तिवकस्वरूप,जोआपहंै,कभीवृित्तयोंकेअंदरउतरतानहीं,जन्मनहींलेता।तब
पर्ािणयो ंकाजन्मकैसेहोताहै?अज्ञानकेकारणपर्कृितकोपुरुषऔरपुरुषकोपर्कृितसमझलेनेसे,एकका
दूसरेकेसाथसंयोगहोजानेसेजैसे'बुलबुला'नामकीकोईस्वतन्तर्वस्तुनहींहै,परन्तुउपादन-कारणजलऔर
िनिमत्त-कारणवायुकेसंयोगसेउसकीसृिष्टहोजातीहै।पर्कृितमंेपुरुषऔरपुरुषमंेपर्कृितकाअध्यास(एकमंे
दूसरेकीकल्पना)होजानेकेकारणहीजीवोंकेिविवधनामऔरगुणरखिलयेजातेहंै।अंतमंेजैसेसमुदर्मंे
निदया ँऔरमधुमंेसमस्तपुष्पोंकेरससमाजातेहंै,वैसेहीवेसब-के-सबउपािधरिहतआपमंेसमाजातेहंै।
(इसिलएजीवोंकीिभन्नताऔरउनकापृथक्अिस्तत्वआपकेद्वारािनयंितर्तहै।उनकीपृथकस्वतंतर्ताऔर
सवर्व्यापकता आिद वास्तिवक सत्य को न जानन े के कारण ही मानी जाती ह ै।)
भगवन ्!सभीजीवआपकीमायासेभर्ममंेभटकरहेहंै,अपनेकोआपसेपृथकमानकरजन्म-म ृत्युकाचक्कर
काटरहेहंै।परंतुबुिद्धमान पुरुषइसभर्मकोसमझलेतेहंैऔरसम्पूणर्भिक्तभावसेआपकीशरणगर्हणकरतेहंै,
क्योंिकआपजन्म-म ृत्युकेचक्करसेछुड़ानेवालेहंै।यद्यिपशीत,गर्ीष्मऔरवषार्इनतीनभागोंवालाकालचकर्
आपकाभूिवलासमातर् है,अनुकर्म वहसभीकोभयभीतकरताहै,परंतुवहउन्हींकोबार-बारभयभीतकरताहै,
जोआपकीशरणनहींलेते।जोआपकेशरणागतभक्तहंै,उन्हंेभलाजन्म-म ृत्युरूपसंसारकाभयकैसेहोसकता
है?
िविजतहृिषकवाय ुिभदान्तमनस्तरग ं य इह यतिन्त यन्त ुमितलोलम ुपायिखदः।
व्यसनशतािन्वताः समवहाय ग ुरोश्चरण ं विणज इवाज सन्त्यक ृतकणर्धरा जलधौ।।
अजन्मापर्भो!िजनयोिगयो ंनेअपनीइिन्दर्यो ंऔरपर्ाणोंकोवशमंेकरिलयाहै,वेभीजबगुरुदेवकेचरणोंकी
शरणनलेकरउच्छर्ंखलएवंअत्यंतचंचलमन-तुरंगकोअपनेवशमंेकरनेकायत्नकरतेहंै,तबअपनेसाधनो ंमंे
सफलनहींहोते।उन्हंेबार-बारखेदऔरसंैकड़ोंिवपित्तयो ंकासामनाकरनापड़ताहै,केवलशर्मऔरदुःखही
उनकेहाथलगताहै।उनकीठीकवहीदशाहोतीहै,जैसीसमुदर्मंेिबनाकणर्धारकीनावपरयातर्ाकरनेवाले
व्यापािरयो ंकीहोतीहै।(तात्पयर्यहिकजोमनकोवशमंेकरनाचाहतेहंै,उनकेिलएकणर्धार,गुरुकीअिनवायर्
आवश्यकता ह ै।)
(शर्ीमद ् भागवतः 10.87.33)
भगवन ्!आपअखण्डआनंदस्वरूप औरशरणागतो ंकेआत्माहंै।आपकेरहतेस्वजन,पुतर्,देहस्तर्ी,धन,महल,
पृथ्वी,पर्ाणऔररथआिदसेक्यापर्योजनहै?जोलोगइससत्यिसद्धान्तकोनजानकरस्तर्ी-पुरुषकेसम्बन्धसे
होनेवालेसुखोंमंेहीरमरहेहंै,उन्हंेसंसारमंेभला,ऐसीकौनसीवस्तुहै,जोसुखीकरसके।क्योंिकसंसारकी
सभीवस्तुएँस्वभावसेहीिवनाशीहंै,एक-न-एकिदनमिटयाम ेटहोजानेवालीहंैऔरतोक्या,वेस्वरूपसेही
सारहीन और सत्ताहीन ह ंै;वे भला, क्या स ुख दे सकती ह ंै।
भगवन ्!जोऐश्वयर्,लक्ष्मी,िवद्या,जाित,तपस्याआिदकेघमंडसेरिहतहंै,वेसंतपुरुषइसपृथ्वीतल परपरम
पिवतर्औरसबकोपिवतर्करनेवालेपुण्यमय सच्चेतीथर्स्थानहंै।क्योंिकउनकेहृदयमंेआपकेचरणारिवन्दसवर्दा
िवराजमानरहतेहंैऔरयहीकारणहैिकउनसंतपुरुषोंकाचरणाम ृतसमस्तपापोंऔरतापोंकोसदाकेिलए
नष्टकरदेनेवालाहै।भगवन ्!आपिनत्य-आन ंदस्वरूप आत्माहीहै।जोएकबारभीआपकोअपनामनसमिपर्त
करदेतेहंै,आपमंेमनलगादेतेहंै–वेउनदेह–गेहोंमंेकभीनहींफँसतेजोजीवकेिववेक,वैराग्य, धैयर्,क्षमा
और शा ंित आिद ग ुणों का नाश करन े वाले हंै। वे तो बस, आपम ंे ही रम जात े हंै।
भगवन ्!जैसेिमट्टीसेबनाहुआघड़ािमट्टीरूपहीहोताहै,वैसेहीसत्सेबनाहुआजगतभीसत्हीहै;यहबात
युिक्तसंगतनहींहै,क्योंिककारणऔरकायर्कािनदर्ेशहीउनकेभेदकाद्योतकहै।यिदकेवलभेदकािनषेधकरने
केिलएहीऐसाकहाजारहाहोतोिपताऔरपुतर्मंेतथादण्डऔरघटनाशमंेकायर्-कारणकीएकतासवर्तर्एक
सीनहींदेखीजाती।यिदकारणशब्दसेिनिमत्त-कारणनलेकरकेवलउपादान-कारणिलयाजाय।जैसेकुण्डलका
सोनातोभीकहीं-कहींकायर्कीअसत्यतापर्मािणतहोतीहै;जैसेरस्सीमंेसाँप।यहाँउपादान-कारणअनुकर्म के
सत्यहोनेपरभीउसकाकायर्सपर्अवस्थाअसत्यहै।यिदयहकहाजायिकपर्तीतहोनेवालेसपर्काउपादान-
कारणकेवलरस्सीनहींहै,उसकेसाथअिवद्याका,भर्मकामेलभीहैतोयहसमझनाचािहएिकअिवद्याऔर
सत्वस्तुकेसंयोगसेहीइसजगतकीउत्पित्तहुईहै।इसिलएजैसेरस्सीमंेपर्तीतहोनेवालासपर्िमथ्याहै,वैसे
हीसत्वस्तुमंेअिवद्याकेसंयोगसेपर्तीतहोनेवालानाम-रूपात्मकजगतभीिमथ्याहै।यिदकेवलव्यवहारकी
िसिद्धकेिलएहीजगतकीसत्ताअभीष्टहोतोउसमंेकोईआपित्तनहीं;क्योंिकवहपारमािथर्कसत्यनहोकरकेवल
व्यावहािरकसत्यहै।यहभर्मअज्ञानीजनिबनािवचारिकयेपूवर्-पूवर्केभयसेपर्ेिरतहोकरअंधपरम्परा सेइसे
मानतेचलेआरहेहंै।ऐसीिस्थितमंेकमर्फलकीसत्यबतलान ेवालीशर्ुितयाँकेवलउन्हीलोगोंकोभर्ममंेडालती
हंै,जोकमर्मंेजड़होरहेहंैऔरयहनहींसमझत ेिकइनकातात्पयर्उनकमोर्ंमंेलगानेमंेहै।भगवन ्!
वास्तिवकबाततोयहहैिकयहजगतउत्पित्तकेपहलेनहींथाऔरपर्लयकेबादनहींरहेगा,इससेयहिसद्ध

होताहैिकयहबीचमंेभीएकरसपरमात्मामंेिमथ्याहीपर्तीतहोरहाहै।इसीसेहमशर्ुितयाँइसजगतका
वणर्नऐसीउपमादेकरकरतीहंैिकजैसेिमट्टीमंेघड़ा,लोहेमंेशस्तर्औरसोनेमंेकुण्डलआिदनाममातर्हंै,
वास्तवमंेिमट्टी,लोहाऔरसोनाहीहंै।वैसेहीपरमात्मामंेविणर्तजगतनाममातर्है,सत्यसवर्थािमथ्याऔर
मन की कल्पना ह ै। इसे नासमझ म ूखर् ही सत्य मानत े हंै।
भगवन ्!जबजीवमायासेमोिहतहोकरअिवद्याकोअपनालेताहै,उससमयउसकेस्वरूपभ ूतआनंदािदगुण
ढकजातेहंै;वहगुणजन्य वृित्तयों,इिन्दर्यो ंऔरदेहोंमंेफँसजाताहैतथाउन्हींकोअपना-आपामानकरउनकी
सेवाकरनेलगताहै।अबउनकीजन्म-म ृत्युमंेअपनीजन्म-म ृत्युमानकरउनकेचक्करमंेपड़जाताहै।परंतुपर्भो
!जैसेसाँपअपनेकंेचुलसेकोईसम्बन्धनहींरखता,उसेछोड़देताहै,वैसेहीआपमाया-अिवद्यासेकोईसम्बन्ध
नहींरखते,उसेसदा-सवर्दाछोड़ेरहतेहंै।इसीसेआपकेसम्पूणर्ऐश्वयर्सदा-सवर्दाआपकेसाथरहतेहंै।अिणमा
आिदअष्टिसिद्धयो ंसेयुक्तपरमैश्वयर्मंेआपकीिस्थितहै।इसीसेआपकाऐश्वयर्,धमर्,यश,शर्ी,ज्ञानऔरसीमासे
आबद्धनहींहै।भगवन ्!यिदमनुष्ययित-योगीहोकरभीअपनेहृदयकीिवषयवासनाओ ंकोउखाड़नहींफंेकते
तोउनअसाध्यो ंकेिलएआपहृदयमंेरहनेपरभीवैसेहीदुलर्भहंै,जैसेकोईअपनेगलेमंेमिणपहनेहुएहो,
परंतुउसकीयादनरहनेपरउसेढँूढतािफरेइधर-उधर।जोसाधकअपनीइिन्दर्यो ंकोतृप्तकरनेमंेहीलगेरहते
हंै,िवषयोंसेिवरक्तनहींहोते,उन्हंेजीवनभरऔरजीवनकेबादभीदुःख-ही-द ुःखभोगनापड़ताहै।क्योंिकवे
साधकनहीं,दम्भीहंै।एकतोअभीउन्हंेमृत्युसेछुटकारा नहींिमलाहै,लोगोंकोिरझान े,धनकमानेआिदके
क्लेशउठानेपड़रहेहंैऔरदूसरेआपकास्वरूपनजाननेकेकारणअपनेधमर्-कमर्काउल्लंघनकरनेसेपरलोक
मंे नरक आिद पर्ाप्त होन े का भय भी बना ही रहता ह ै।अनुकर्म
भगवन ्!आपकेवास्तिवकस्वरूपकोजाननेवालापुरुषआपकेिदयेहुएपुण्यऔरपापकमोर्ंकेफलसुखएवं
दुःखोंकोनहींजानता,नहींभोगता,वहभोग्यऔरभोक्तापनकेभावसेऊपरउठजाताहै।उससमयिविधिनष ेध
केपर्ितपादकशास्तर्भीउससेिनवृत्तहोजातेहंै;क्योंिकवेदेहािभमािनयो ंकेिलएहंै।उनकीओरतोउसकाध्यान
हीनहींजाता।िजसेआपकेस्वरूपकाज्ञाननहींहुआहै,वहभीपर्ितिदनआपकीपर्त्येकयुगमंेकीहुईलीलाओ ं,
गुणोंकागानसुन-सुनकरउनकेद्वाराआपकोअपनेहृदयमंेिबठालेताहैतोअनन्त,अिचन्तय,िदव्यगुणगणो ंके
िनवासस्थानपर्भो!आपकावहपर्ेमीभक्तभीपाप-पुण्योंकेफलसुख-दुःखोऔरिविध-िनष ेधोंसेअतीतहोजाता
है,क्योंिकआपहीउनकीमोक्षस्वरूपगितहंै।(परंतुइनज्ञानीऔरपर्ेिमयोंकोछोड़करऔरसभीशास्तर्बंधनमंेहंै
तथा व े उसका उल्ल ंघन करन े पर द ुगर्ित को पर्ाप्त होत े हंै।)
भगवन ्!स्वगार्िदलोकोंकेअिधपितइन्दर्,बर्ह्मापर्भृित्तभीआपकीथाह-आपकापारनपासकेऔरआश्चयर्की
बाततोयहहैिकआपभीउसेनहींजानते।क्योंिकजबअंतहैहीनहींतबकोईजानेगाकैसे?पर्भो!जैसे
आकाशमंेहवासेधूलकेनन्हंे-नन्हंेकणउड़तेरहतेहंै,वैसेहीआपमंेकालकेवेगसेअपनेसेउत्तरोत्तरदसगुने
सात आवरणो ं के सिहत अस ंख्य बर्ह्माण्ड एक साथ ही घ ूमते रहते हंै। तब भला, आपकी सीमा क ैसे िमले।
हमशर्ुितयाँभीआपकेस्वरूपकासाक्षात ्वणर्ननहींकरसकतीं,आपकेअितिरक्तवस्तुओंकािनषेधकरते-करते
अंत मंे अपना भी िनष ेध कर द ेती हंै और आप म ंे अपनी सत्ता खोकर सफल हो जाती ह ंै।'
(शर्ीमद ् भागवतः 10.87.14-41)
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चतुःश्लोकी भागवत
बर्ह्माजीद्वाराभगवाननारायणकीस्तुितिकयेजानेपरपर्भुनेउन्हंेसम्पूणर्भागवत-तत्त्वकाउपदेशकेवलचार
श्लोकों मे िदया था। वही म ूल चत ुःश्लोकी भागवत ह ै।अनुकर्म
अहमेवासमेवागर्े नान्यद ् यत् सदसत ् परम।
पश्चादह ं यदेतच्च योऽविशष्य ेत सोऽरम्यहम ्।।1।।
ऋतेऽथर्ं यत् पर्तीय ेत न पर्तीय ेत चात्मिन।
तिद्वद्यादात्मनो मया यथाऽऽभासो यथा तमः।।2।।
यथा महािन्त भ ूतािन भ ूतेषूच्चावच ेष्वनु।
पर्िवष्टान्यपर्िवष्टािन तथा त ेषु न तेष्वहम्।।3।।
एतावद ेव िजज्ञास्य ं तत्त्विजज्ञास ुनाऽऽत्मनः।
अन्वयव्यितर ेकाभ्या ं यत् स्यात ् सवर्तर् सवर्दा।।4।।
सृिष्टसेपूवर्केवलमंैहीथा।सत्,असत्याउससेपरेमुझसेिभन्नकुछनहींथा।सृिष्टनरहनेपर(पर्लयकालमंे)
भीमंैहीरहताहँू।यहसबसृिष्टरूप भीमंैहीहँूऔरजोकुछइससृिष्ट,िस्थिततथापर्लयसेबचारहताहै,वह
भी मै ही हँू।(1)
जोमुझमूलतत्त्वकोछोड़करपर्तीतहोताहैऔरआत्मामंेपर्तीतनहींहोता,उसेआत्माकीमायासमझो।जैसे
(वस्तु का) पर्ितिबम्ब अथवा अ ंधकार (छाया) होता ह ै।(2)
जैसेपंचमहाभ ूत(पृथ्वी,जल,अिग्न,वायुऔरआकाश)संसारकेछोटे-बड़ेसभीपदाथोर्ंमंेपर्िवष्टहोतेहुएभीउनमंे
पर्िवष्ट नही ं हंै, वैसे ही म ंै भी िवश्व म ंे व्यापक होन े पर भी उसस े सम्पृक्त हँू।(3)
आत्मतत्त्वकोजाननेकीइच्छारखनेवालेकेिलएइतनाहीजाननेयोग्यहैिकअन्वय(सृिष्ट)अथवाव्यितर ेक
(पर्लय) कर्म म ंे जो तत्त्व सवर्तर् एव ं सवर्दा रहता ह ै, वही आत्मतत्त्व ह ै।(4)

इसचतुःश्लोकी भागवतकेपठनएवंशर्वणसेमनुष्यकेअज्ञानजिनतमोहऔरमदरूपअंधकार कानाशहो
वास्तिवक ज्ञानरूपी स ूयर् का उदय होता ह ै।अनुकर्म
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पर्ाथर्ना का पर्भाव
सन्1956मंेमदर्ासइलाकेमंेअकालपड़ा।पीनेकापानीिमलनाभीदुलर्भहोगया।वहाँकातालाब'रेड
स्टोनलेक'भीसूखगया।लोगतर्ािहमाम ्पुकारउठे।उससमयकेमुख्यमंतर्ीशर्ीराजगोपालाचारीनेधािमर्क
जनतासेअपीलकीिक'सभीलोगदिरयाकेिकनार ेएकितर्तहोकरपर्ाथर्नाकरंे।'सभीसमुदर्तटपरएकितर्त
हुए।िकसीनेजपिकयातोिकसीनेगीताकापाठ,िकसीनेरामायणकीचौपाइया ँगंुजायीतोिकसीनेअपनी
भावनाकेअनुसारअपनेइष्टदेवकीपर्ाथर्नाकी।मुख्यमंतर्ीनेसच्चेहृदयसे,गदगदकंठसेवरुणद ेव,इन्दर्देव
औरसबमंेबसेहुएआिदनारायणिवष्णुदेवकीपर्ाथर्नाकी।लोगपर्ाथर्नाकरकेशामकोघरपहँुचे।वषार्का
मौसमतोकबकाबीतचुकाथा।बािरशकाकोईनामोिनशाननहींिदखाईदेरहाथा।'आकाशमेबादलतो
रोजआतेऔरचलेजातेहंै।'–ऐसासोचते-सोचत ेसबलोगसोगये।रातकोदोबजेमूसलाधार बरसातऐसी
बरसी,ऐसीबरसीिक'रेडस्टोनलेक'पानीसेछलकउठा।बािरशतोचलतीहीरही।यहाँतकिकमदर्ास
सरकारकोशहरकीसड़कोंपरनावंेचलानीपड़ीं।दृढ़िवश्वास,शुद्धभाव,भगवन्नाम,भगवत्पर्ाथर्नाछोटे-से-छोटे
व्यिक्तकोभीउन्नतकरनेमंेसक्षमहै।महात्मागाँधीभीगीताकेपाठ,पर्ाथर्नाऔररामनामकेस्मरणसे
िवघ्न-बाधाओ ंकोचीरतेहुएअपनेमहानउद्देश्यमंेसफलहुए,यहदुिनयाजानतीहै।पर्ाथर्नाकरो....जपकरो...
ध्यान करो... ऊ ँचा संग करो... सफल बनो, अपन े आत्मा-परमात्मा को पहचान कर जीवनम ुक्त बनो।
अनुकर्म
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