Stroke in Hindi

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About This Presentation

क्या होता है स्ट्रोक या दौरा या ब्रेन अटेक?
मस्तिष्क और नाड़ियों को जीवित और सक्रिय रहने के लिए भरपूर ऑक्सीजन और प�...


Slide Content

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मिस्तष्क कदौरा या स्�ो
Dr. O.P.Verma
M.B.B.S.,M.R.S.H.(London)
President, Flax Awareness Society
7-B-43, Mahaveer Nagar III, Kota (Raj.)
Visit us at http://flaxindia.blogspot.com
09460816360
मिस्तष्- शरीर का सर�कट बोडर्

• मिस्तष्क क� औसत चौड़ा= 140 िम.िम./5.5 इंच,
लम्बा = 167 िम.िम./6.5 इंच, ऊंचाई = 93
िम.िम./3.6 इंच और भार 1300-1400 �ाम होता है।
• मिस्तष्क के आधे न्यूरोन्स सेरीबेलम म� होते ह� जब
आकार म� वह मिस्तष्क के दसव� िहस्से के बराबर हो
है।
• मिस्तष्क क85% िहस्सा सेरी�ल कॉट�क्स होता है
• ��ाण्ड म�100 िबिलयन िसतारे होते ह� और इतने ही
मिस्तष्क म� न्यूरोन होते ह
• से री�ल कॉट�क्स के िविभ� उपांग� का �ितशत-
�न्टल लोब41%, टे म्पोरल लो 22%, पेराइटल
लोब 19% और ओिसिप टल लोब 18% होता है।
• मिस्तष्क के बांये गोलाधर् 18.6 करोड़ न्यूरोन अिधक होते ह, इसे �मुख गोलाधर्(Dominant Hemisphere) कहते ह�।
• मिस्तष्क म750-1000 िम.ली. र� �ित िमनट �वािहत होता है, िजससे उसे 46 cm
3 ऑक्सीजन �ा� होती है। इस
ऑक्सीजन का 6% स फेद-�� (White Matter) को और शेष स्लेट-�� (Grey Matter) को िमलता है।
• मिस्तष्क ऑक्सीजन के िब4 से 6 िमनट जीिवत रह सकता है, उसके बाद इसक� कोिशकाय� मरने लगती ह�।
• न्यूरोन्स म� सूचना� के �वाह क� न्यूनतम ग416 �क.मी. �ित घन्टा है जो िव� क� सबसे तेज सुपर कार से भी अिधक है।
• मिस्तष्क को र� िमलना बंद हो जाये त10 सेकण्ड म� �ि� बेहोश हो जाता है।
• मिस्तष्क का भार शरीर का मा2% होता है ले �कन यह शरीर क� 20% ऊजार् �हण करता है। इस ऊजार् स25 वाट का बल्ब
जल सकता है।
• मिस्तष्क म70,000 िवचार �ित�दन आते ह�।
• तीस वषर् के बाद मिस्तष्क हर स0.25% िसकुड़ जाता है।
• मिस्तष्क म� िजतने िव�ुत संदेश एक �दन म� पैदा होते ह� उतने दुिनया भर के टेलीफोन भी नह� करते ह�

क्या होता है स्�ोक या दौ या �ेन अटेक?

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मिस्तष्क औनािड़य� को जीिवत और स��य रहने के िलए भरपूर
ऑक्सीजन और पौषक तत्व� क� िनरंतर आवश्यकता रहती है
र� �ारा �ा� होते ह�। मिस्तष्क औनाड़ी-तं� के सभी िहस्स� म�
िविभ� र�-वािहका� िनरंतर र� प�ँचाती है। जब भी इनम� से
कोई र�-वािहका क्षित�स्थ या अव�� हो जाती है तो मिस्तष्
कु छ िहस्से को र� िमलना बन्द हो जाता है। य�द मिस्तष्क के �
िहस्से को3-4 िमनट से ज्यादा र� क� आपू�त बन्हो जाये तो
मिस्तष्क का वह भाग ऑक्सीजन व पौषक तत्व� के अभाव म�
होने लगता है, इसे ही स्�ोकया दौरा कहते ह�।
सबसे अच्छी बात यह है �क िच�कत्-िवज्ञान ने इस रोग क
उपचार म� ब�त तर�� कर ली है और आज हमारे न्यूरोलोिजस्
पूरा ताम-झाम लेकर बैठे ह� और उनके िपटारे म� इस रोग के बचाव
और उपचार के िलए क्या कुछ नह� है। इसीिलए िपछले कई वष� म�
स्�ोक से मरने वाले रोिगय� का �ितशत ब�त कम �आ है। बस यह
ज�री है �क रोगी िबना �थर् समय गंवाये तुरन्त अच्छे िच�क-
क�न्� प�ँचे ता�क उसका उपचार िजतना जल्दी संभव हो सके शु
हो सके। समय पर उपचार शु� हो जाने से मिस्तष्क म� होने वाल
क्षित और दुष्�भाव� को काफ� हद तक रोका जा सकता है

स्�ोक क� �ापकता
• िव� म� हर 45 सेकन्ड म� �कसी न �कसी को स्�ोक हो जाता ह
(एक वषर् म�700,000)।
• िव� म� हर तीन िमनट म� स्�ोक का एक रोगी परलोक िसधार जाता है।
• स्�ोक �दयरोग और क�सर के बाद मृत्यु का तीसरसबसे बड़ा कारण है।
• हमारे देश म� 60 वषर्से ऊपर क� उ� के लोग� म� मौत का दूसरा सबसे बड़ा कारण स्�ोक है
• 15 से 59 आयुवगर् म� मृत्यु का पांचवां सबसे बड़ा कारण ह
• स्�ोकदीघर्कालीन िवकलागता का सबसे बड़ा कारण है।
• मधुमे ह के रोिगय� म� स्�ोक का जोिखम2-3 गुना अिधक रहता है।
• उच्-र�चाप के 30-50% रोिगय� को स्�ोक का जोिखमरहता है।
• हर छठे �ि� को जीवन म� कभी न कभी स्�ोकहोता है।
• हर साल 29 अक्टूबर को स्�ोक जाग�कता �दवस मनाया जाता ह
• ने शनल इंिस्ट�ूट ऑफ़ न्युरोलोिजकल िडसऑडर्सर् एंड सNINDS �ारा करवाए गए एक पांच सालाना अध्ययन से पता चला
है िजन लोग� को स्�ोक शु� होने के तीन घंटे के भीतरटीपीए दवा का इन्जेक्शन दे �द जाता है, उनम� स्�ोक से पैदा�ई खराबी
के ठीक होने क� संभावना 30% और बढ़ जाती है तथा तीन महीने बाद इनम� नाम मा� क� अक्षमता ही शेष रह जाती और
अक्सर लक्षण पूरी तरह समा� हो जाते ह
FAST यह फास्ट �कस बला का नाम ह?
FAST या एफ.ए.एस.टी. स्�ोक के �मुख लक्षण� को तुरन्त पहचानने और िबना समय गंवाये रोगी को अस्पताल ले और
जाग�कता लाने का स्मृितसू�(Mnemonic) है। ता�क रोगी का समय पर उपचार शु� हो सके और उसक� जान बचाई जा सके। इसे
इंगलैन्ड के स्�ोक िवशेषज्ञ�1998 म� िवकिसत �कया था। आप इसे याद रख� और दूसरे लोग� को भी बतलाय� ।

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यहाँ FAST का मतलब है।

F = Facial weakness रोगी हँसे तो एक तरफ का चेहरा, ह�ठ या आँख लटक जांये,
A = Arm weakness
रोगी को दोन� हाथ उठा कर सामने फै लाने को कहा जाये तो एक हाथ ठीक से उठ न
पाये और अगर उठ भी जाये तो वापस नीचे झुक जाये,
S = Speech difficulty
रोगी क� आवाज लड़खड़ाये, वह छोटे-छोटे वाक्य भी न बोल पाये और समझ म�
नह� आये �क वह क्या कह रहा है।
T = Time to act
ऐसी िस्थित म� रोगी को तुरन्त अच्छे अस्पताल ले जाइये त3 घन्टे के भीतर उसे
�टश्यु प्लािज्मनोजन एिक्टवेटर का इन्जेक्शन लग जाये और उसक� जान बच
सके।

कारण
स्�ोकम� मिस्तष्क का कुछ िहस्सा-�वाह बािधत होने के कारण मृत होने लगता है। मुख्यतः स्�ोक दो �कार का होता है पहला है
अर�ता या इस्केिमक स्� जो सबसे आम है और �कसी धमनी के अव�� होने क� वजह से होता है। दूसरा है र��ाव दौरा या
हेमोरेिजक स्�ोकजो �कसी र�-वािहका के फटने या �रसाव होने पर होता है। एक तीसरे �कार का छोटा और अस्थाई दौरा भी होता है
िजसे क्षि-अर�ता दौरा या Transient Ischemic Attack (TIA) कहते ह�,
इसम� मिस्तष्क का -�वाह थोड़ी देर के िलए बािधत होता है।
1- अर�ता दौरा या इस्केिमक स्�ो–
80-85 �ितशत स्�ो इस्केिमक स्�ोक ही होते ह�। यह मिस्तष्क क� �कसी ध
के संक�णर् या अव�� होने के कारण होता है। यह स्�ोक भी दो िवकृितय� क
कारण होता है।
�ोम्बो�टक स्�ो– यह स्�ोक मिस्तष्क को र� प�ँचाने वाली कोई धमनी जैस
केरो�टड या मिस्तष्क क� कोई अन्य धम(से री�ल, व���ोबे सीलर या कोई छोटी धमनी) म� खू न जम जाने या थ�ा (Clot) बनने से
होता है। एथेरोिस्क्लरोिसस रोग म� धमिनय� क� भीतरी सतह पर फैट जमा हो जाता , िजसे प्लॉक कहते ह�। �ोम्बो�टक स्�ोक
प्लॉक पर खून का थ�ा बन जाने से धमनी म� आई �कावट के कारण होता है।
एम्बोिलक स्�ो– म� मिस्तष्क से दूर कह� �कसी -वािहका म� बना (अमूमन �दय म�) खू न का थ�ा या कोई कचरा र� के साथ बह
कर मिस्तष्क क� �कसी पतली धमनी म� आकर फंस जाता है और र� के �वाह म� �कावट पैदा करता है। इस तरह के थ�े को एम्बो
कहते ह�। यह एम्बोलस �ायः �दय के दोन� ऊपरी कक्(Atria या आिलन्) के असामान्य �प से धड़कने (Atrial Fibrillation) से
बनता है। आिलन्द� के असामान्य और अिनयिमत तरीके से धड़कन(या फड़फड़ाने ) से �दय खू न को ठीक से पंप नह� कर पाता है, �दय
म� एकि�त खू न के थ�े बन जाते ह� जो र� �वाह म� बह कर मिस्तष्क क� धमनी म� जाकर फंस जाते ह� ।
2- र��ाव दौरा या हेमोरेिजक स्�ो –
हेमोरेिजक स्�ोक मिस्तष्क क� �कसी-वािहका म� र��ाव या �रसाव होने के कारण होता है। यह इस्केिमक स्�ोक से ज्यादा गंभ
रोग है। यह मुख्यतः र�चाप के ब�त बढ़ जान, र�-वािहका म� कमजोरी से आये फु लाव (Aneurysms) या नस� क� �कसी जन्मजात
िवकृित जैसे Arteriovenous Malformation के फट जाने से होता है। हेमोरेिजक स्�ोक भी दो तरह के होते ह�।
इन्�ा�ेिनयल हेमोरेज- इस स्�ोक म� मिस्तष्क क� कोई नस फट जाती, र��ाव होता है जो आसपास फै ल जाता और मिस्तष्क क
ऊतक� को क्षित प�ँचाता है। -वािहका म� �रसाव हो जाने से आगे क� मिस्तष्क कोिशका� को र� क� आपू�त भी घट जाती ह

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िजसके फलस्व�प वह क्षे� भी क्षित�स्त हो जाता है। इस स्�ोक का �मुख -र�चाप है। कालान्तर म� उ-र�चाप के कारण
र�-वािहकाएँ कड़ी, कमजोर और भंगुर हो जाती ह�, जो र�चाप के बढ़ने से फट जाती ह�।
सबअरेकनोयड हेमोरेज – इस स्�ोक म� र��ाव मिस्तष्क क� सतह या सतह के समीप क� �कसी वािहका म� होता है और र� मिस्
और कपाल के बीच क� जगह (सबअरेकनोयड स्पे) म� एकि�त हो जाता है। इस र�-�ाव के होते समय रोगी को खोपड़ी म� िबजली
कड़कने जैसी आवाज के साथ अचानक �चण्ड ददर् होता है और उसे लगता है जैसे उसका िसर फट जायेगा। यह स्�ोक मुख्यत-
वािहका म� जन्मजात या बाद म� बने एन्यु�रज(वािहका का गुब्बारे क� तरह कमजोर होकर फूल जान) के फट जाने से होता है।
र��ाव के बाद मिस्तष्क क� वािहका� म� आकष(vasospasm) हो जाता ह� िजससे भी आसपास के मिस्तष्क ऊतक क्षित�स्त
ह�।
स्�ोक के जोिखम घट
• प�रवार म� �कसी को स्�ोक या �दल का दौरा पड़ा हो य स्वयं रोगी को �दल का दौरा याTIA �आ हो।
• उ� 55 वषर् सेज्यादा हो
• मधुमेह - य�द आपको मधुमे ह है तो िनि�त तौर पर आपको स्�ोक का खतरा भी काफ� बढ़ जाता है सामान्यतः जब मिस्तष्क
कोई धमनी म� �कावट आती है तो उसके आसपास क� धमिनयां उस अंग को र� प�ँचाने क� कौिशश करती ह�, ले �कन डायिबटीज
के रोगी म� आसपास क� ये धमिनयां भी एथेरोिस्क्लरोिस(धमिनय� का कड़ा होना) के कारण काफ� हद तक खराब हो चुक� होती
ह� और र� क� कमी से जूझते मिस्तष्क को कोई राहत देने म� असमथर् होती है। यानी डायिबटीज म� स्�ोक से मिस्तष्क क
अिधक होती है। र�चाप 115/75 mm Hg से ज्यादा होना स्�ोक का जािखम घटक माना गया है
• िसकल-से ल एनीिमया, माइ�े न और फाइ�ोमस्कुलर िडस्पेिप्स
• िनिष्�य जीवनशैल, स्थूलत, अित-म�दरापान , धू�पान या परोक्ष धू�पान औकॉले स्�ोल200 mg/dL से अिधक होना।
• गभर्िनरोधक गोिलया, हाम�न्स जैसे इस्�ो, नशीली दवाइयां जैसे कोक�न आ�द।
• �दयरोग - �दयपात (heart failure), सं�मण, केरो�टड िस्टनोिस, माइ�ल िस्टनोिसस औरअिनयिमत �दय अनु�म
(abnormal heart rhythm)।
क्षिणक अर�ता दौरा Transient ischemic attack (TIA)
इसम� रोगी को लक्षण तो स्�ोक जैसे ही होते, जो थोड़ी ही देर (�ायः 24 घन्टे से क) रहते ह� और उसके बाद रोगी एक दम ठीक
महसू स करता है। इस क्षिणक और अस्थाई िवकार को िमनी स्�ोक भी कहते ह�। इसका कारण छोटे से अंतराल के िलए मिस्तष ्
�कसी भाग म� र�-वािहका का अव�� हो जाना है। ले �कन इसम� मिस्तष्क म� स्थाई क्षित नह� होती है क्य��क वािहका म�
क्षिणक होती है
ले �कन इस अस्थाई दौरे के बाद रोगी िबलकुल ठीक हो जाये तो भी आप उसे तुरन्त �कसी अच्छे िच�कत्सा क�न्� ले जाकर ज�र �,
क्य��क यह अस्थाई दौरा �कसी बड़े खतर(सम्पूणर् दौरा या स्) क� चेतावनी भी हो सकता है। िसफर ् लक्षण� के आधार पर यह कह
मुिश्कल होता है �क रोगी को क्षिणक अर�ता दौ(TIA) �आ है या यह एक संपूणर् दौरे के �ारंिभक लक्षण, भले ही लक्षण थोड़ी स
देर ही रहे ह�। TIA होने का मतलब है �क मिस्तष्क क� वािहका म� आकष( Spasm) या आंिशक अवरोध तो है ही जो कभी भी बढ़ कर
स्�ोक का िवकराल �प ले सकता है।
टी.आई.ए. होने के पाँच साल के अन्दर35% लोग� को पूणर् स्�ोक होने क� संभावनरहती है, िजनम� से 50% को तो पहले महीने म� ही
स्�ोकहो जाता है। स�ाई यह है �क टी.आइ.ए. हमे चेतावनी देता है और कहता है – मानव अभी भी समय है सतकर ् हो जाइये। जाँच
करवा कर बचाव क� �दशा म� चिलये ।
�ारंिभक लक्
दौरा पड़ने का समय ध्यान रख� क्यो�क उपचार करते समय कई िनणर्य इसी पर िनभर्र कर�गे। स्�ोक या दौरे के िन� लक्षण हो

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चलने म� �द�त होने लगे – य�द रोगी अचानक लड़खड़ाने लगे या च�र आ जाये, शरीर का संतुलन और सामंजस्य
िबगड़ने लगे यो समझ लीिजये उसे दौरा पड़ा है।
बात करने और समझने म� परेशानी होने लगे – रोगी �िमत और अस्त�स्त लगता , वह धीरे,
अस्प� तथा लड़खाकर मुिश्कल से बोल पाता , अपनी तकलीफ बतलाने के िलए उसे सही शब्द याद नह� आ पाते ह�। हम समझ नह�
पाते ह� �क वह क्या कहना चाहता है।
चेहरे या शरीर म� एक तरफ पक्षाघा(लकवा) या सु�ता – रोगी के शरीर म� एक तरफ
अचानक कमजोरी, सु�ता या लकवा हो जाता है। य�द रोगी अपने दोन� हाथ सीधे फै लाने क� कौिशश करता है तो एक हाथ नीचे झुक
जाता है। मुँह क� मांस-पेिशया कमजोर होने से ह�ठ एक तरफ लटक जाते ह� और मुँह से लार टपकने लगती है।
एक या दोन� आँख� से दे खने म� क�ठनाई हो – रोगी को एक या दोन� आँख� से धुँधला �दखाई देने
लगे, हर चीज दो दो �दखाई दे या आँख� के आगे अंधेरा छा जाये ।

तेज िसर ददर्– रोगी को उलटी या च�र के साथ इतना तेज िसर ददर् हो �क उसे लगे जैसे उसका िसर फट जायेगा। रोगी कहे
�क उसे ऐसा िसर ददर् जीवन म� कभी नह� �आ।
स्�ोक के �कार
िमिडल सेरी�ल-आ�� स्�ोक या
MCA Stroke
MCA म� �कावट आने से मिस्तष्क म� िजस तरफ क्षित �ई है उ
िवपरीत या उलटी तरफ शरीर क� माँस-पेिशय� म� कमजोरी ,
लकवा और संवे दना िवकार होता है। तथा साथ ही िजस तरफ क्षि
�ई है उस तरफ अधर -दृि�दोष (Hemianopsia) आ जाता है अथार्त
उस तरफ अंधापन आ जाता है तथा रोगी क� िनगाह� उसी तरफ
रहती ह�। रोगी अपने िम��, �रश्तेदार� या चीज� को पहचान नह�
पाता है। य�द स्�ोक �मुख गोलाधर(dominant hemisphere) म�
�आ है तो रोगी को बोलने या समझने म� परेशानी होती है। ले �कन स्�ोक अ�मु-गोलाधर् ( Nondominant hemisphere) म�
�आ है तो बेपरवाही, बेखबरी और बेखुदी जैसे लक्षण होते ह�। चूँ�MCA मिस्तष्क म� बाह� और हाथ� िनयं�ण-क्षे� को र� क
आपू�त करती है इसिलए कमजोरी, लकवा या संवेदना-िवकार आ�द लक्षण पै क� अपेक्षा हाथ� म� ज्याहोते ह�।
ऐन्टी�रयर सेरी�ल आटर्री स्�ोक ACA स्�ो
ACA स्�ोक मुख्यतः �न्टल लोब के काय� को �भािवत करता है जैसे उ� �व, शब्द, जुमल� या मु�ा� को अकारण बार-बार
दोहराना, चैतन्यता िवकार(altered mental status), सही िनणर्य न ले पान, �े �स्पग व स�कग �रफ्लेक्स आ�दACA म� �कावट
आने से मिस्तष्क म� िजस तरफ क्षित �ई है उसके िवपरीतउलटी तरफ मांस-पेिशय� म� कमजोरी, अक्षमता तथा संवेद-दोष,
लड़खड़ा कर चलना और मू�-असंयमता (urinary incontinence) जैसे लक्षण होते ह�

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पोस्टी�रयर सेरी�-आ�� स्�ोक याPCA Stroke
PCA Stroke म� दृि� और िवचार संबन्धी िवकार होते ह� जैसे अध-दृि�दोष (hemianopsia) अथार्त एक तरफ अंधाप, मिस्तष-
जिनत अंधापन, घर वाल� व प�रजन� को न पहचान पाना (visual agnosia), चैतन्यता िवकार(altered mental status),
स्मृितदोष आ�द
वट��ोबे सीलर आटर्री स्�ो
वट��ोबे सीलर आ टर्री स्�ोक म� �ेिन-नािड़य�, से रीबे लम और �ेन-स्टेम से संबिन्धत िविवध और िवस्तृत लक्षण होने के कारण
पकड़ पाना ब�त मुिश्कल होता है। इसम� �ेिनय-नाड़ी िवकार स्�ोक क� तरफ और मोटर िवकार उलटी तरफ होते ह�। इसके �मुख
लक्षण ह� च�र आ, आँख का अकारण अिवरत िहलते रहना (Nystagmus), ि�दृि�ता (Diplopia), िनगलने म� �द�त
(Dysphagia), अटक-अटक कर बोलना (Dysarthria), चेहरे म� संवेदना-िवकार (Facial hypesthesia), मूछार्(Syncope), दृि�-
क्षे� दो( Visual field deficits), लड़खड़ा कर चलना (Ataxia) आ�द।
लेक्युनर स्�ो
लेक्युनर स्�ोक मिस्तष्क क� गहराई म� िस्थत-छोटी धमिनय� के अवरोध के कारण होता है, िजसका माप ब�त छोटा �ायः 2-20
िमिलमीटर होता है। इसम� या तो केवल चालक-िवकार (Motor Symptoms) ह�गे या �फर केवल संवे दना-िवकार ह�गे। कभी केवल
लड़खड़ा कर चलने क� तकलीफ हो सकती है। छोटा होने के कारण इसम� �ायः स्मृि, बोधन, वाणी और चैतन्यता संबन्धी लक्षण
होते ह�।
दुष्�भा
स्�ोक के कारण कई अस्थाई या स्थाई अक्षमता या अपंगता हो सकती है जो इस बात पर िनभर्र करती है �क र� का �वाह मिस्
�कस भाग म� और �कतनी देर बन्द रहा। स्�ोक म� िन� अक्षमता या अपंगता हो सकती
• पक्षाघा- माँस-पेिशय� म� दुबर्लता व गितहीनत– स्�ोक म� मां-पेिशयाँ दुबर्,
गितहीन, बेकार, िनिष्�य और िनज�व सी हो जाती ह�। स्�ोक के कारण मिस्तष्क म� िजस तरफ क्षित �ई है उसके िवपरीत या
तरफ शरीर क� माँस-पेिशय� म� कमजोरी और लकवा पड़ता है। अथार्त य�द मिस्तष्क म� खरा बी बांई तरफ �ई है तो शरीर
दायां भाग लकवा-�स्त होता है। य�द पक्षाघात या लकवा शरीर के आधे भाग को �भािवत करता है तो इसे हेमीप्लेि
(Hemiplegia) और आधे शरीर म� आई माँस-पेिशय� क� दुबर्लता या कमजोरी को हेमीपरेिसस(Hemiparesis) कहते ह�।
हेमीपरेिसस या हेमीप्लेिजया के कारण रोगी को चलन-�फरने या कोई चीज पकड़ने म� �द�त होती है।
कभी कु छ मांस-पेिशय� का एक समू ह बेकार हो जाता है जैसे �क बे ल्स पाल्सी म� आधे चहेरे क� पेिशयां लक-�स्त होती ह�। दौरा
पड़ने पर रोगी के मुँह और गले क� मांस-पेिशयाँ कमजोर और िनिष्�य हो जाती ह� और उन पर रोगी का िनयं�ण नह� रहता ह,
िजससे उसे िनगलने और बोलने म� �द�त (dysphagia औ र dysarthria) हो सकती है। रोगी शरीर म� संतुलन और सामंजस्य
बनाये रखने म� (ataxia) भी असमथर् महसूस करता है
• संवे दनात्मक(Sensor y) िवकार और ददर्– स्�ोक म� स्प, ददर, तापमान, गुंजन आ�द
संवे दना� को महसू स करने क� क्षमता कम हो जाती है। पक्षाघात से �स्त पैर या हाथ म, सु�ता, चुभन, जलन या झनझनाहड़
(paresthesia) हो सकती है। स्मृि, िवचार और सीखने क� योग्यता कमजोर पड़ जाती है। कुछ रोिगय� को अपने लकव-�स्त
हाथ या पैर क� अनुभू ित ही नह� होती है। कई रोगी हाथ या पैर के असहनीय ददर् से परेशान रहते ह�। यह ददर् कई बार गितही
जोड़� आई अकड़न क� वजह से भी होता है। माँस-पेिशय� म� अकड़न और जकड़न आ जाना सामान्य बात है। उसके हाथ म� ठंड के
�ित संवे दना ब�त बढ़ सकती है। यह दुष्�भाव आमतौर पर स्�ोक के कई हफ्त� के बाद होता है। संवेदनात्मक िवकार के क
मू�त्याग और मलिवसजर्न पर िनयं�ण भी कमजोर पड़ जाता ह

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• वाणी, भाषा और सं�ेक् िवकार (Speech, Language and
Communication disabilities)
स ् �ोक के25% रोिगय� को बोलने , पढ़ने , िलखने और समझने म� �द�त होती है। अपने िवचार� को भाषा और वाणी के माध्यम से
�� न कर पाने को वाचाघात या (aphasia) कहते ह�। स्मृि, िवचार और सीखने क� योग्यता कमजोर पड़ जाती है कभी रोगी
को उपयु� शब्द या वाक्य याद तो होता है पर वह बोल नह� पाता है इसे वाणीदो(dysarthria) कहते ह�।
• बोधन, िवचार और स्मृित िवकार(Cognitive, Thought and
Memory Problems)– स्�ोक रोगी क� सजगता औरअल्पकाली स्मृित का �ास होता है। याददाश्
कमजोर पड़ जाती है या रोगी �िमत, अस्त�स, बुि�हीन और िववेकहीन �दखाई देता है। रोगी कोई योजना बनाने, नया काम
सीखने, िनद�श� का पालन करने म� असमथर् महसूस करता है। कई रोिगय� को िनणर्य ले, तकर-िवतकर ् करने और चीज� को समझने
म� ब�त �द�त होती है। कई बार रोगी को अपने शरीर म� आई अयोग्यता और अपंगत का अनुमान और अनुभू ित भी नह� होती है।
• भावनात्मक िवकार(Emotional Disturbances) – स्�ोक से रोगी म� कई
भावनात्मक और�ि�त् सम्बंधी प�रवतर्न होते ह�। स्�ोक के रोगी अक्स, �चता, तना व, कु ं ठा, �ोध, उ�ता, संताप,
अकेलेपन और अवसाद का िशकार हो ही जाते ह�। रोगी अपनी भावना� पर िनयं�ण नह� रख पाता है और उसके िलए अकारण
चीखना, िचल्लान, हंसना या मुस्कुराना सामान्य बात हो जाती है। उन्हे अपने दैिनक कायर् करने म� भी क�ठनाई होती है
प�रवार के �कसी सदस्य या नौकर पर आि�त रहना पड़ता ह�
• ल�िगक िवकार – स्�ोक के बाद ल�िगक समस्याएं होना स्वाभािवक बात है। स्�ोक के कारण रोगी और उ
जीवनसाथी के आपसी �मानी संबन्ध� म� िशिथलता आ जाती है। कई बार स्�ोक के वष� बाद तक रोगी ल�िगक अयोग्यता
िशकार बना रहता है। स्�ोक के बाद दी जाने वाली िड�ेशन क� दवाइयाँ भी ल�िगक िवकार पैदा करती है। माँ-पेिशय� म� ददर,
एंठन, �खचाव, जोड़� म� आई जकड़न और शारी�रक िनष्चलता भी ल�िगक संसगर् को अ�िचकर और क�दायक बना देती है। स्�
के कारण जनने िन्�य� म� चेतना और संवेदना भी ब�त कम हो जाती ह, पु�ष� म� स्तंभनदोष होना सामान्य बात है और मिस्तष्क
कामे च्छा और ल�िगक हाम�न्स को िनयंि�त करने वाला उपांग हाइपोथेलेमस भी क्षित�स्त हो जात
परीक्षण और िनदा
स्�ोक का सही उपचार इस बात पर िनभर्र करता है �क रोगी कस्�ोक इस्केिमक है या हेमोरेिजक है और मिस्तष्क के �कस िहस्स
नुकसान �आ है। कई बार स्�ोक जैसे लक्षण मिस्तष्क म� अ(Tumor) तथा �कसी दवा के �भाव से भी हो सकते ह�। डॉक्टर इन सबक�
जाँच करेगा। वह स्�ोक के जोिखम का आंकलन करने के िलए भी कुछ परीक्षण करेग
शारी�रक परीक्ष– डॉक्टर रोगी और उसके प�रजन� से िवस्तार म� पूछताछ करेगा �क रोगी को क्या क्या तक
�ई, कब शु� �ई और तब वह क्या कर रहा था। �फर देखेगा �क क्या रोगी को अभी भी वह तकलीफ है। वह यह भी पूछेगा �क क्
रोगी को कभी िसर म� चोट लगी थी और वह कौन सी दवाइयाँ ले रहा है। वह पूछेगा �क रोगी को या प�रवार के �कसी सदस्य को कभी
�दयरोग, स्�ोक या टीआईए (TIA) तो नह� �आ था। इसके बाद वह रोगी का र�चाप नापेगा और स्टेथोस्कोप से �दय और गदर्न
केरो�टड धमनी क� जाँच करेगा और पता लगा लेगा �क केरो�टड धमनी म� एथेरोिस्क्लरोिसस तो नह� �आ है। वह ऑफ्थेल्मोस्कोप
आँख� के दृि�-पटल क� जाँच करके पता लगा लेगा �क दृि�-पटल पर र� के थ�े या कॉले स्�ोल के ��स्टल तो नह� बन� ह�।

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रोगी के �योगशाला-परीक्षण स्�ोक के कारण और अन्-िवकार� के बारे म� जानने के उ�ेश्य से �कये जाते ह�।
संम्पूणर् -परीक्ष(Complete Blood Cell Count) - यह र� क� �मुख जांच है
िजससे स्�ोक के कुछ अन्य कारण� पोलीसाइथीिम, �ोम्बोसाइटोिस, �ोम्बोसाइटोपीिनय, ल्युक�िमया आ�द क� जानकारी िमलती
है।
र� रसायन-परीक्ष(Blood Chemistry Panel) - इसम� र� शकर्र, यु�रया,
��ये �टनीन, कोएगुलेशन स्टडीज(BT, CT, PT, PTT, Fibrinogen etc.) आ�द परीक्षण �कये जाते ह�। य�द एन्टीकोएगुलेन्ट देने
तो कोएगुले शन स्टडीज ज�री होती है और इनसे कोएगुलोपैथी क� जानकारी भी िमलती है। �दय के एन्जाइम(�ांसएमाइनेज) और
बायोमाकर्सर् भी �कये जाते ह� क्य��क स्�ोक और �दयरोग का सम्बंध-दामन का होता है। ब्लड गैस एनेलीिसस भी कर िलया जाता
है ता�क र� म� ऑिक्सजन का स्तर और अ-क्षार संतुलन का अनुमान हो सक
इनके अलावा ज�रत पड़ने पर िलिपड �ोफाइल, �ेगनेन्सी टेस, �रयुमे टॉयड फेक्ट, ई .एस.आर., एन्टीन्युिक्लयर ब, होमोिसस्टीन
आ�द भी �कये जाते ह�। मे िनन्जाइ�टस और सबअरे�ॉयड हेमरेज को पहचानने के िलए लंब-पंक्चर �कया जाता है।

सी.टी.स्केन
स्�ोक म� स.टी.स्केन सबसे महत्वपूणर् और आवश्यक जांच है.टी.स्केन मिस्तष्क क� संरचका
सटीक और ि�आयामी िच�ण करता है। हालां�क एम.आर.आई. क� तस्वीर� ज्यादा अच्छी और साफ होती ह� परनस्�ोकके आरं ि भक
िनदान म� प्लेनसी.टी.स्केन कई कारण� से ए.आर.आई. से भी ब�ढ़या और सुिवधाजनक माना जाता है क्य��क यहहर जगह उप लब्ध
होता है और दस िमनट से कम म� हो जाता है । यह ब�त अहम बात है क्य��कयहाँ सुरिक्षसमय क� िखड़क� (Time Window) ब�त
छोटी होती है। दूसरा रोगी के शरीर म� पेसमेकर, एन्यु�रज्म िक्लप आ�द लगे होने के कारण .आर.आई. करना संभव न हो तो भी
सी.टी.स्केन �कया जा सकता है।िबना दवा के �कये गये सी.टी.स्के से मिस्तष्क क� संरचना और र��ाव क� जानकारी िमल जाती
िजससे इस्केिमक और हेमोरेिजक स्�ोक को पहचानना आसान हो जाता है। बाद म� जब भी फुरसत और मौका िमलता है या ज�री होत
है एम.आर.आई. करवाली जाती है।
सी.टी.एंिजयोए�ाफ� (CTA) एक िवशे ष तरह का सी.टी.स्केन होता है िजसम एक्सरे क� दृि� से अपारदश�
दवा या डाई नस म� छोड़ी जाती है और एक्सरे �ारा र� वािहका� के ि�आयामी िच� िलये जाते ह�। सी.टी.एंिजयोए�ाफ� से
एन्यू�रज, ए��योवीनस मालफोरमे शन्स या वािहका� म� �कावट का पता चलता है।
केरो�टड अल्�ासाउन्– से हमे केरो�टड धमनी म� बने र� के थ�� और उसके संकुचन क� जानकारी िमलती है।
इसम� एक �ान्सडूसर को केरो�ट-धमनी के ऊपर क� त्वचा पर घुमाया जाता ह, इससे उ� आवृ ि� क� ध्वि-तरंगे िनकल कर ऊतक� म�
जाती ह� और पराव�तत होकर पुनः �ान्सडूसर म� लौटती ह� और मशीन के पटल पर केरो�ट-धमनी का रेखा-िच� �द�शत करती है।
इकोका�डयो�ाफ� - एक िवशे ष तरह क� अल्�ासाउन्ड तकनीक है जो �दय क� संरचना क� जानकारी देती है। इसक
�ारा िच�कत्सक को मालूम हो जाता है �क कैसे �दय म� बना एम्बोलस -स�रता म� बहता �आ मिस्तष्क प�ँचा और स्�ोक का का
बना। आपका िच�कत्सक �ान्सइसोफेिजयल इकोका�डयो�ाफ(TEE) भी करना चाहेगा क्य��क इसम� �दय क� बेहद स्प� और िवस्त
तस्वीर� �खचती है। इसम� रोगी को एक लचीली रबर क� नली िनगलनी पड़ती ह, िजसम� एक छोटा सा �ान्सडूसर लगा होता है। क्य��
�ान्सडूसर भोजन नली म� िबलकुल �दय के समीप रहता है इसिलए यह �दय क� स्प� तस्वीर� ख�चता है

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आरटी�रयो�ाफ� - यह तकनीक र�-वािहका� के अपेक्षाकृत ज्यादा स्प� ि�आयामी िच� ख�चती है। इसम� जांघ
ऊपरी िहस्से म� एक छोटा सा चीरा लगा कर रबर का एक महीन केथेटर जांघ क� धमनी म� घुसा कर मिस्तष्क क� मुख्य धमि
केरो�टड या वट��ल म� प�ँचाया जाता है। �फर डाई धमनी म� छोड़ दी जाती है और मशीन एक्सरे �ारा िच� ख�च लेती है।
चुम्बक�य गुन्जन िचकरण या मे �े �टक �रजोनेन्स इमे�जग(MRI) – स ् �ोक के
िनदान और उपचार म� एम.आर.आई. एक महान तकनीक सािबत �ई है। इस तकनीक म� ती� चुम्बक�य क्षे� और रेिडयो तरंग�
मदद से मिस्तष्क क� स्प�तम और िवस्तृत ि�आयामी तस्वीर� ख�ची जाती ह.आर.आई. इस्केिमक स्�ोक से क्षित�स्त �ए मि
के ऊतक� को �ारंिभक अवस्था म� ही पहचान लेती है। ए.आर.आई. मिस्तष्क के ऊतक� म� चयापचय के कारण आई िवकृितय� को भ
पहचान लेती है। मे �े �टक �रजोनेन् एिन्जयो�ाफ�(MRA) म� नस� म� डाई छोड़ कर मिस्तष्क और �ीवा क� धमिनय� के िच� िलय
जाते ह�।
उपचार
स्�ोक एक आपातकालीन रोग है और यहाँ हर पल क�मती है। यहाँ समय ही जीवन रेखा है। स्�ोक म� मिस्तष्क क� कोिशकाय� मृत ह
लगती ह�। ज्य� ही लगे �क रोगी को स्�ोक �आ , तुरन्त आपातकालीन एम्बुलेन्स से रोगी को पास के अच्छे िच�कत्सा क�न्� लेकर ज
िन� िबन्दु� को हमेशा ध्यान म� रिखये
• स्�ोक क� संजीवनी बूंटी- �टश्य प्लािज्मनोजन एिक्टव rTPA - रोगी को य�द स्�ोक होने के तीन
घन्टे के भीतर�टश्यु प्लािज्मनोजन एिक्ट दे �दया जाता है तो यह धमिनय� म� जमे खू न के थ�े को घोल कर इनका
पुननर्लीकरणदेता है और मिस्तष्क क� -आपू�त को पुनस्थार्िपत कर देता ह कोई कहता है यह रोगी के जीवन क� कुंजी है तो
कोई इसे स्�ो-उपचार का इंजन कहता है। हम� िसफर ् तीन घन्टे का मुबारक व� िमलता है। इसी िवन्डो ऑफ अपोचुर्िनटी�टश्य
प्लािज्मनोजन एिक्टव देकर रोगी का जीवन बचाना होता है और यह तभी संभव है जब दौरा पड़ने के एक घन्टे के अन्दर रोग
अस्पताल प�ँचा �दया जाये यह rTPA स्�ोक के रोगी के िलए मू�छत ल�मण का जीवन बचाने के िलए वीर हनुमान �ारा
�ोणिग�र पवर्त से लाई गई संजीवनी बूटी के समान है।
TIME LOST = BRAIN LOST
TIME = BRAIN
• रोगी को दौरा �कस समय पड़ा या वह कब तक पूणर्तः स्वस्थ था या उसे दौरे के लक्षण कब पता चले यह याद रखना ब�त
है। इस समय को ठीक से याद रख� । इसके िबना टीपीए देने का िनणर्य करना मुिश्कल होगा
• कई बार स्�ोक रात म� होता है जब रोगी सो रहा होता है और उसे जगने पर ही पता चलता है �क उसे स्�ोक �आ है। दौरा पड़ने क
बाद राि� म� कई बार रोगी मदद के िलए प�रजन� को आवाज भी नह� लगा पाता है। ऐसी िस्थितय� म� उपचार म� िवलम्ब होन
स्वाभािवक है।
• रोगी म� स्�ोक के लक्षण होने पर यह कभी मत सोिचये �क शायद रोगी थोड़ी देर म� ठीक हो जायेगा और तकलीफ बढ़ेगी तो बाद
अस्पताल ले चल�गे।
• डॉक्टर को घर पर मत बुलाइय, घर पर वह कु छ नह� कर पायेगा।
• रोगी को कोई घरेलू उपचार या एिस्प�रन मत दीिजये। डॉक्टर अपने िहसाब से ज�रत होगी तो दे देगा।
• रोगी अपने वाहन से िच�कत्सा क�न्� जाने क� कभी न सोचे
कमाले –बुज�दली है पस्त होना अपनी नजर� म�,
अगर थोड़ी-सी िहम्मत हो तो �फर क्या हो नह� सकत
�ारंिभक उपचार
स्�ोक का उपचार इस बात पर िनभर्र करता है �क रोगी कस्�ोक इस्केिमक है या हेमोरेिजक है। �ारंिभक उपचार म� िन� पहलु� क
ध्यान म� रखा जाता है।

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• स्�ोक के उपचार म� यह आवश्यक है �क रोगी से पूछत, र� आ�द क� जाँच, सी.टी.स्के, अन्य आपातकालीन उपचा,
सी.टी.स्केन का िव�ेष, स्�ोक का िनदान और आगे के उपचार क� �परेखा बनाना आ�द सभी कायर् एक घन्टे म� पूरे कर ले
चािहये ।
• स्�ोक के उपचार क� मुख्य धुरी मिस्तष्कअर�ता क्षेPenumbra ( मिस्तष्क का वह भाग जो अर�ता के कारण पूरी तर
क्षित�स्त नह� �आ) म� र��वाह को पुनस्थार्िपत करना है। इसके िलए मिस्तष्क पर �ए अ-आघात क� गंभीरता और
अविध को न्यूनतम �कया जाता है। इसके पहले �क मिस्तष्क के ऊतक स्थाई �प मरने टीपीए के इंजेक्शन से अव�� धमनी का
पुननर्लीकरण कर �दया जाता है।
• दोन� हाथ� क� अच्छी िशरा� म�18 गॉज का केन्युला लगा कर िशर-पथ त ैयार �कये जाते ह�, िजसके �ारा आवश्यकतानुसार
इन्जेक्शन और तरल �� चढ़ाये जाय�गे।
• ऑक्सीजन दी जाती है य�दSPO 2 92% से कम हो ता�क मिस्तष्क को पयार्� ऑक्सीजन िमलती र
• रोगी को य�द �सन ले ने म� �द�त हो तो समुिचत उपचार �कया जाता है।
• हाटर् अटेक के िवपरीत स्�ोक म� तुरन्त एिस्प�रन नह� दी जाती
• स्�ोक के सा-साथ उसके सह-िवकार� का उपचार भी आवश्यक है। ब्-शुगर पर नजर रखना और उसे सामान्य रखना ज�री है।
स्�ोक म� रोगी को बुखार हो सकता है। ऐसी अवस्था म� मुँह या मल�ार से पेरासीटामोल दी जाती है

स्�ोक के उपचार म� सुरिक्षत समय क� िखड़क� छोटी होने के कारण िवशेषज्ञ� ने िन� �ोटोकोल को ध्यान म� रखने क� सलाह द
• �ार से डाक्टर क� अविध 10 िमनट
• �ार से सीटी स्केन क� अविध 25 िमनट
• �ार से सीटी स्केन क� �ाख्या क� अविध45 िमनट
• �ार से दवा क� अविध 60 िमनट
• �ार से आइ.सी.यू. बे ड तक क� अविध 3 घन्टे
�ोम्बोलाइ�टक उपचार-
�ोम्बोलाइ�टक दवा(खू न के थ�� को घोलने वाली दवा) इस्केिमक स्�ोक म� मिस्तष्क का र��वाह पुनरस्थािपत करती है और
को लक्-मु� करने म� ब�त सहायता करती है। ले �कन दुभार्ग्य से यह कुछ रोिगय� के मिस्तष्क म� र��ाव कर सकती है। इस
िच�कत्सक सारे पहलु� को ध्यान म� रख कर ब�त सूझबूझ और िववेक से िनणर्य लेता है �क रोगी को �ोम्बोलाइ�टक दवा देनी चाि
या नह�।

स्�ोक के िलए �रकोिम्बनेन्ट डीएनए तकनीक से बनी ि एल्टीप्ले ((rrTTPPAA)) ही अनुमो�दत क� गई है। इसे स्�ोक होने के तीन घन्ट
(ताजा शोध के नतीज� के अनुसार साढ़े चार घन्टे तक दी जा सकती ह) के भीतर ही स्�ोक से होने वाली क्षित को �भावशून्य करने
अपंगता को रोकने के िलए �दया जाता है। यह खू न के थ�� को घोल देती है। इसे िजतना जल्दी �दया जायेग, स्वास्-लाभ उतनी
जल्दी और अच्छा होगा। यह ब�त महँगी दवा , 50 िमली�ाम क� शीशी क� क�मत 40,000 �पये है। इसे हेमोरेिजक या र��ावी-
स्�ोक म� कभी नह� �दया जाता है क्य��क इससे मिस्तष्क म� -�ाव हो सकता है और ले ने के देने पड़ सकते ह�। इसे बाँह क� िशरा म�

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छोड़ा जाता है। इसे देने के बाद रोगी को कम से कम 24 घन्टे आ.सी.यू. म� रखा जाता है और एहितयात रखी जाती है �क र��ाव न
हो। इसका सबसे घातक दुष्�भाव र��ाव है। इसे िन� िस्थितय� म� नह� �दया जाता है
• रोगी क� उ� 18 वषर् से कम हो।
• इन्�ा�ेिनयल हेमोरेज।
• हाल म� ही �दल का दौरा पड़ा हो।
• गभार्वस्था व स्तनप
• िपछले तीन महीने म� िसर म� गहरी चोट लगी हो।
• र��ाव िवकार।
• िपछले 14 �दन म� रोगी क� कोई शल्य��या �ई हो।
• मू� या मल म� हाल के �दन� म� र� आया हो।
• रोगी एन्टीकोएगुलेन्ट दवाय� �योग कर रहा हो
• मू छार् या कोमा।
आर.टी.पी.ए. या एल्टीप्ल क� मा�ा क� गणना िन� सू� से क� जाती है।
एल्टीप्ल कु ल मा�ा = 0.9 िमली�ाम/ �कलो शारी�रक भार के िहसाब से
(अिधकतम मा�ा 90 िमली�ाम)
इस मा�ा का 10% न्युरोलोिजस्ट �ारा िशरा म60 सेकण्ड म� धीर-धीरे छोड़ा जाता है। शे ष 90% मा�ा ि�प �ारा एक घन्टे क� अविध
म� पूरी दे दी जाती है।
एिस्प�रन–
इस्केिमक स्�ोक के बाद दूसरे दौरे को रोकने और खून को पतला रखने के िल
एिस्प�रन सवर्�े� और स्थािपत दवा है। अमूमन इस325 िमली�ाम क� गोली
आपातकालीन कक्ष म� दे दी जाती है। य�द रोगी पहले से एिस्प�रन ले रहा है
इसक� मा�ा कम कर दी जाती है। र� को पतला रखने वाली अन्य दवाय� जैसे
डायिपरीडेमोल, कोमािडन, िहपे�रन, �टक्लोिपडी, क्लोिपडो�ेल आ�द भी �योग
क� जाती ह�, परन्तु एिस्प�रन ही सबसे ज्यादा �चिलत है
इडारावोन (Aravon)
यह एक नया और उमदा �ित-ऑक्सीकारक है जो2001 से जापान म� स्�ोक क� �ारंिभक अवस्था म� सफलतापूवर्क �योग म� िलया
रहा है। यह पहली से री�ल न्यूरो�ोटेिक्टव दवा है जो स्�ोक क� �ाथिमक अवस्था म� चमत्कारी असर �दखाती है। यह �रये
ऑक्सीजन िस्पसी(ROS) को सफाया कर मिस्तष्क म� अर�ता से जन्मे �दाह Inflamation (िजसके कारण मिस्तष्क म� सूज
और कोिशक�य क्षित क� वजह से इनफाक्शर्न हो जात) को शांत करता है और शरीर के अन्य अ ंग� म� भी ऑक्सीकारक तत्व� को -
चुन कर मारता है। यह एथेरोिस्क्लरोिसस क� �गित को भी रोकता है। आर.पीए. के िवपरीत इसे स्�ोक होने के24 घन्टे के भीतर30
िमिल �ाम सुबह शाम से लाइन म� िमला कर �दया जाता है। इसक� सुरक्षा िखड़क� आर.पीए. से बड़ी होती है। इसे 14 �दन तक भी
�दया जा सकता है। इसे इस्केिमक और हेमोरेिजक दोन� तरह के स्�ोक म� �दया जा सकता है।
िस�टकोलीन
यह एक सुरिक्षत और स्मृितवधर्क रसायन है िजसे स्�ोक के उपचार म� �योग म� िलया जाता है। यह मिस्तष्क म� फोस्फेटाइि
का स्तर बढ़ाता है। फोस्फेटाइिडलकोलीन मिस्तष्क क� कोिशका� के िलए ब�त ज�री यौिगक माना गया है। साथ म� यह मिस्तष
एक उपांग िहपोकेम्प, जो स्मृित का कैन्� माना जाता , म� एिसटाइलकोलीन का स्तर बढ़ाता है। एसीटाइलकोलीन एक नाड़ी
संदेशवाहक है जो िविभ� नाड़ी कोिशका� म� संपकर ् और समन्वय बढ़ाता है। इसिलए िस�टकोलीन स्मृित और संज्ञानात
(Cognition) म� वृ ि� करता है। य�द स्�ोक होने के24 घन्टे के भीतर िस�टकोलीन दे �दया जाता है तो यह मिस्तष्क को क्षि
होने से बचाता है। इसक� मौिखक मा�ा 1000-2000 िमिल�ाम �ित�दन है, िजसे दो खुराक म� िवभािजत करके �दया जाता है। इसे
िशरा म� भी �दया जाता है। अिन�ा, िसरददर, दस्, उ� (या िन�) र�चाप, छाती म� ददर, धुँधली दृि� आ�द इसके पाष्वर्�भाव ह�
गभार्वस्था और स्तनपान म� यह व�जत है

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अस्पमाररोधी या एन्टीसीज्योर दवा– हालां�क स्�ोक म� सीज्योर या िमग� के जैसे दौरे ब�त क
पड़ते ह�। परन्तु य�द बा-बार पड़� तो खतरनाक िस्थित बन जाती है। इनके िलए डायजेपाम और लोरेजेपाम पहले उपचार माने जाते ह�।
एन्टीहाइपरटेिन्सव दवाए– ले बे टालोल, एनाले ि�ल, िनका�डपीन, सोिडयम नाइ�ो�ुसाइड आ�द �योग म� ली
जाती है। स्�ोक म� र�चाप िनयं�ण ब�त बुि�मानी से �कया जाता है। आ. टी.पी.ए. देने के दौरान तो 24 घन्टे तक और ज्याद
सतकर ्ता रखी जाती है। र�चाप के बढ़ने से र��ाव क� संभावना बढ़ती है और ज्यादा कम हो जाये तो अर�ता बढ़ सकती है।
य�द िसस्टोिलक र�चापSBP 185 से अिधक या डायस्टोिलक र�चापDBP 110-139 बना रहे तो 10 िम.�ा. लेबेटालोल िशरा म�
1-2 िमनट म� दे �दया जाता है और र�चाप हर 5-10 िमनट के अन्तराल म� नापा जाताहै। य�द र�चाप कम न हो तो हर 10-20
िमनट म� 10 या 20 िम.�ा. लेबेटोल �दया जा सकता है। ले बे टालोल क� कु ल मा�ा 150 िम.�ा. से अिधक न दी जाये । ध्यान रख� �क
र�चाप कम भी न हो पाये ।
य�द �फर भी डायस्टोिलक र�चाप140 से अिधक बना रहे तो सोिडयम नाइ�ो�ुसाइड
0.5-10 mg/kg/minute के
िहसाब से िशरा म� ि�प �ारा छोड़�। पूरी सतकर्ता बरत�।
आपातकालीन शल्य उपचार–
िपछले वष� म� स्�ोक के उपचार म� ब�त �गित �ई है और कई नई तकनीक� और शल-��याएं िवकिसत �ई है, िजन्हे िच�कत्सक आ
धड़ल्ले से �योग कर रहे ह� और रोिगय� को जीवन दान दे रहे है।
• आल्टीप्ले (rTPA) सीधा मिस्तष्क के अर�-�स्त क्षे� म� छोड़न िच�कत्सक जांघ के ऊपरी
िहस्से म� चीरा लगा कर जांघ क� धमनी म� केथेटर डाल कर मिस्तष्क तक प�ँचा कर सीधा उस जगह छोड़ता है जहाँ धमनी
�कावट आई है। इस तकनीक म� सुरिक्षत समय का झरोखा थोड़ा बड़ा होता है
• िच�कत्सक धमनी म� जमा खून का थ�ा एक िवशेष केथेटर के �ारा पकड़ कर िनकाल देते ह� और धमनी का अवरोध तुरन्त ठीक ह
जाता है।
• केरो�टड एन्डआरटेक्टॉम- स्�ोक के बाद दूसरे स्�ो
या टी.आई.ए. के जोिखम को कम करने के �योजन से बुरी तरह अव��
केरो�टड या अन्य धमनी को साफ करने के िलए शल्य��या भी क� जाती है
इस ��या म� शल्-िच�कत्सक गदर्न म� िस्थत केरो�टड धमनी के ऊपर
नीचे के दोन� िसर� को बाँध देता है, �फर केरो�टड धमनी म� चीरा लगा कर
धमनी के अन्दर जमा सारे प्लॉक को िनकाल कर धमनी को पुनः िसल देता ह
और धमनी के िसर� को खोल देता है। इस ��या से इस्केिमक स्�ोक क
जोिखम कम हो जाता है। हालां�क कभी-कभी धमनी के घाव� पर बने थ�े
टूट कर �दय या मिस्तष्क क� धमिनय� म� फँस सकते ह� और रोगी को हाट
अटेक या स्�ोक हो सकता है।
• एिन्जयोप्लास्टी और स्ट- कोरोनरी बे लू न
एिन्जयोप्लास्टी क� भांित मिस्तष्क क� प्लॉक से अव�� धमिन
बे लू न से फु ला कर चौड़ा कर �दया जाता है। इस ��या म� एक बे लू न
केथेटर के िसरे पर िविश� धातु का बना स्टेन्ट िपचक� �ई अवस्था
चढ़ाकर अव�� धमनी म� घुसाया जाता है। जब केथेटर का अिन्तम छौर
अवरोध तक प�ँच जाये तो बे लू न को फु लाया जाता है, िजससे स्टेन्ट फै
कर लोक हो जाता है और धमनी को भी फै ला देता है। इसके बाद बे लू न
को िपचका कर केथेटर को वापस ख�च िलया जाता है।

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हेमोरेिजक स्�ोकका उपचार
हेमोरेिजक स्�ोकके उपचार का मुख्य उ�ेश्य र��ाव को रोकना और मिस्तष्क म� र��ाव के कारण बढ़ते दबाव को कम करना
भिवष्य म� जोिखम कम करने हेतु शल्य��या भी एक िवकल्प है। य�द रोगी पहले से कोमािडन या �बबाणुरोधी दवा क्लोिपडो�ेल
रहा है तो उनके �भाव को िनिष्�य करने के िलए उिचत दवा या र� �दया जाता है। र�चाप को कम करने के िल, सीज्योर को रोकने
के िलए और मिस्तष्क म� वेजोस्पाज्म रोकने के िलए दवाएँ दी जाती हेमोरेिजक स्�ो म� टीपीए, एन्टीकोएगुलेन्ट्स और �बबाणुरो
(खू न को पतला करने क� दवाइयाँ) एिस्प�रन आ�द कभी भी नह� दी जाती ह�। क्य��क ये र��ाव को बढ़ा सकती ह
ज्य� ही मिस्तष्क म� र��ाव �क जाये रोगी को पूणर् आराम और सपो�टव उपचार �दया जाता है। ता�क इस बीच मिस्तष्क
र��ाव घुलने लगे। य�द र��ाव ज्यादा �आ हो तो मिस्तष्क से र� को िनकालने और दबाव कम करने हेतु शल्य��या क� जाती
हेमोरेिजक स्�ोकम� र�-वािहका� के िवकार� और असामान्यता� को ठीक करने के िलए भी शल्य��या क� जाती है। स्�ोक के बाद
एन्यु�रज्म या ए��योवीनस मालफोरमेशन(AVM) के फटने का जोिखम हो तो िन� शल्य ��याएँ क� जाती ह�।
• एन्यु�रज्म िक्ल�– एन्यु�रज्म के आधार पर एक छोटा सा धातु का िक्लप लगा �दया जाता है और उसे मु
र�-�वाह से अलग कर �दया जाता है, िजससे एन्यु�रज्म से र��ाव होने क� संभावना खत्म हो जाती है। िक्लप हमेशा लगा
�दया जाता है।
• एवीएम (ए��योवीनस मालफोरमे शन्) को शल्य��या �ारा िनकाल द ना
- हालां�क बड़े और मिस्तष्क म� गहराई पर िस ्थत एवीएम को िनकाल पाना हमेशा संभव नह� होता है। ले�कन छोटे एवीएम
आसानी से िनकाल �दया जाता है और एवीएम के फटने क� संभावना तो समा� हो जाती है �फर भी र��ाव का जोिखम तो रहता
ही है।
स्�ोक से बचने के उपा
य�द आपको डायिबटीज है और आपके िच�कत्सक को लगता है �क आपको एथेरोिस्क्लरोि(धमिनय� का कड़ा होना) भी है तो वह
आपको आहार एवं जीवनशैली म� सुधार करने के िलए कहेगा तथा र� को पतला रखने के िलए कु छ दवाइयां भी देगा। स्�ोक के जोिखम
को कम करने के िलए आपको िन� �बदु� का सख्ती से पालन करने क� सलाह देगा
• धू�पान तुरंत बंद कर�।
• िनयिमत िलिपड �ोफाइल चेक करवाते रह� और य�द र� म� LDL कोले स्�ोल क� मा�ा 100 mg/dl से ज्यादा है तो उसे
कम करने हेतु दवाइयां ल�।
• फल, सिब्जयाँ और रेशायु� भोजन खूब खाय�।
• कॉफ�, सं�� वसा, चीनी, �रफाइन्ड ते, वनस्पित घ, एनीमल फै ट, फास्ट फू, और प�रष्कृत फूड आ�द का सेवन न कर�।
• म�दरापान एक पैग �ित�दन से ज्यादा कभी ना ल�।
• अपना वजन संतुिलत रख� ।
• र�-चाप िनयिमत नपवाते रह� और ज्यादा रहे तो दवा ल�।
• िच�कत्सक �ारा बतलाए गये आहार िनद�श� का पालन कर�।
• रोज तेज �मण करे और �ायाम कर�।