sundar kand pdf download in hindi, Sundarkand PDF Download
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Mar 21, 2024
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About This Presentation
In our SundarKand PDF you will find the special importance of Sundar Kand in various events described in Ramayana. The Ramayana, one of the most revered and ancient of the Indian epics, describes the life and adventures of Lord Rama, an incarnation of the Hindu god Vishnu, his wife Sita and his fait...
In our SundarKand PDF you will find the special importance of Sundar Kand in various events described in Ramayana. The Ramayana, one of the most revered and ancient of the Indian epics, describes the life and adventures of Lord Rama, an incarnation of the Hindu god Vishnu, his wife Sita and his faithful companion Hanuman.
What is Sundarkand (Sundarkand PDF)?
Sundar Kand is the fifth book of Ramayana written by the ancient sage Valmiki. It is considered the heart of the epic, focusing primarily on the heroic deeds of the powerful monkey god Hanuman.
।। चौपाई ।।
तब देिी मुनद्रका मनोहर । राम नाम अंनकत अनत सुंदर ।।
चनकत नचतर् मुदरी पनहचानी । हरष नबषाद हृदयुँ अकु लानी ।।
जीनत को सकइ अजय रघुराई । माया तें अनस रनच ननहं जाई ।।
सीता मन नबचार कर नाना । मधुर बचन बोलेउ हनुमाना ।।
रामचंद्र गुन बरनैं लागा । सुनतनहं सीता कर दुि भागा ।।
लागीं सुनैं श्रर्न मन लाई । आनद� तें सब कथा सुनाई ।।
श्रर्नामृत जेनहं कथा सुहाई । कनह सो प्रगट होनत नकन भाई ।।
तब हनुमंत ननकट चनल गयऊ । नफरर बैंठीं मन नबसमय भयऊ ।।
राम दूत मैं मातु जानकी । सत्य सपथ करनाननधान की ।।
यह मुनद्रका मातु मैं आनी । दीन्ति राम तुम्ह कहुँ सनहदानी ।।
नर बानरनह संग क� कै सें । कनह कथा भइ संगनत जैसें ।।
दोहा: कहप के िचन सप्रेम सुहन उपजा मन हिस्वास ।।
जाना मन क्रम िचन यह कृ पाहसंधु कर दास ।।
।। चौपाई ।।
मन संतोष सुनत कनप बानी । भगनत प्रताप तेज बल सानी ।।
आनसष दीन्ति रामनप्रय जाना । हो� तात बल सील ननधाना ।।
अजर अमर गुननननध सुत हो� । कर�ुँ ब�त रघुनायक छो� ।।
कर�ुँ कृ पा प्रभु अस सुनन काना । ननभार प्रेम मगन हनुमाना ।।
बार बार नाएनस पद सीसा । बोला बचन जोरर कर कीसा ।।
अब कृ तकृ त्य भयउुँ मैं माता । आनसष तर् अमोघ नबख्याता ।।
सुन� मातु मोनह अनतसय भूिा । लानग देन्ति सुंदर फल रूिा ।।
सुनु सुत करनहं नबनपन रिर्ारी । परम सुभट रजनीचर भारी ।।
नति कर भय माता मोनह नाहीं । ज ं तुम्ह सुि मान� मन माहीं ।।
दोहा: देद्धख िुद्धि िल हनपुन कहप कहेउ जानकीं जा� ।
रघुपहत चरन हृदयाँ धरर तात मधुर फल खा� ।।
देह नबसाल परम हरआई । मंनदर तें मंनदर चढ धाई ।।
जरइ नगर भा लोग नबहाला । झपट लपट ब� कोनट कराला ।।
तात मातु हा सुननअ पुकारा । एनह अर्सर को हमनह उबारा ।।
हम जो कहा यह कनप ननहं होई । बानर रूप धरें सुर कोई ।।
साधु अर्ग्या कर फलु ऐसा । जरइ नगर अनाथ कर जैसा ।।
जारा नगर नननमष एक माहीं । एक नबभीषन कर गृह नाहीं ।।
ता कर दूत अनल जेनहं नसररजा । जरा न सो तेनह कारन नगररजा ।।
उलनट पलनट लंका सब जारी । कू नद परा पुनन नसंधु मझारी ।।
दोहा: पूाँछ िुझाइ खोइ श्रम धरर लघु �प िहोरर ।
जनकसुता के आगें ठा़ि भयउ कर जोरर ।।
।। चौपाई ।।
मातु मोनह दीजे कछु चीिा । जैसें रघुनायक मोनह दीिा ।।
चूडामनन उतारर तब दयऊ । हरष समेत पर्नसुत लयऊ ।।
कहे� तात अस मोर प्रनामा । सब प्रकार प्रभु पूरनकामा ।।
दीन दयाल नबररदु संभारी । हर� नाथ मम संकट भारी ।।
तात सक्रसुत कथा सुनाए� । बान प्रताप प्रभुनह समुझाए� ।।
मास नदर्स म�ुँ नाथु न आर्ा । त पुनन मोनह नजअत ननहं पार्ा ।।
क� कनप के नह नबनध राि ं प्राना । तुम्ह� तात कहत अब जाना ।।
अस कनह करत दंिर्त देिा । तुरत उठे प्रभु हरष नबसेषा ।।
दीन बचन सुनन प्रभु मन भार्ा । भुज नबसाल गनह हृदयुँ लगार्ा ।।
अनुज सनहत नमनल नढग बैठारी । बोले बचन भगत भयहारी ।।
क� लंके स सनहत पररर्ारा । कु सल कु ठाहर बास तुम्हारा ।।
िल मंिलीं बस� नदनु राती । सिा धरम ननबहइ के नह भाुँती ।।
मैं जानउुँ तुम्हारर सब रीती । अनत नय ननपुन न भार् अनीती ।।
बर भल बास नरक कर ताता । दुि संग जनन देइ नबधाता ।।
अब पद देन्ति कु सल रघुराया । ज ं तुम्ह कीि जानन जन दाया ।।
दोहा: ति लहग कु सल न जीव क�ाँ सपने�ाँ मन हिश्राम ।
जि लहग भजत न राम क�ाँ सोक धाम तहज काम ।।
।। चौपाई ।।
तब लनग हृदयुँ बसत िल नाना । लोभ मोह म�र मद माना ।।
जब लनग उर न बसत रघुनाथा । धरें चाप सायक कनट भाथा ।।
ममता तरन तमी अुँनधआरी । राग द्वेष उलूक सुिकारी ।।
तब लनग बसनत जीर् मन माहीं । जब लनग प्रभु प्रताप रनब नाहीं ।।
अब मैं कु सल नमटे भय भारे । देन्ति राम पद कमल तुम्हारे ।।
तुम्ह कृ पाल जा पर अनुकू ला । तानह न ब्याप नत्रनबध भर् सूला ।।
मैं नननसचर अनत अधम सुभाऊ । सुभ आचरनु कीि ननहं काऊ ।।
जासु रूप मुनन ध्यान न आर्ा । तेनहं प्रभु हरनष हृदयुँ मोनह लार्ा ।।
दोहा: सकल सुमंगल दायक रघुनायक गुन गान ।
सादर सुनहहं ते तरहहं भव हसंधु हिना जलजान ।।
। इहत श्रीमिामचररतमानसे सकलकहलकलुषहवध्वंसने पञ्चमः सोपानः समाप्तः ।।
इहत श्री सुंदरकाण्ड समाप्त
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