सस्वर वाचन अध्यापक के आदर्श वाचन के उपरांत छात्रों से सस्वर वाचन कराना आवश्यक है । सस्वर वचन में बड़ी कुशलता की आवश्यकता पड़ती है । छात्रों से उच्चारण सम्बन्धी भूल नहीं होनी चाहिए ,उन्हें विराम तथा बालघाताओं का पूर्ण ध्यान रखना चाहिए।
सस्वर वाचन में ध्यान रखने की बातें : सस्वर वाचन भावानुकूल करना चाहिए। २ . सस्वर वाचन करते समय विरामादि चिह्नों का ध्यान रखना चाहिए। ३ . वाचन आरोह-अवरोह एवं बल के साथ सम्पादित करना चाहिए। ४ . उच्चारण एवं स्थानीय बोलियों का पुट यथासंभव नहीं आना चाहिए। ५ . उच्चारण करते समय शुद्धता एवं स्पष्टता होना चाहिए। ६ . श्रोता एवं कक्षा के बालकों की संख्या का ध्यान होना चाहिए। ७ . आत्मविश्वास का रहना आवश्यक है।
सस्वर वाचन में गति लाने के उपाय : छात्रों को प्रोत्साहन देना। वाचन सम्बन्धी प्रतियोगिता कराना। छात्रों के शब्द भंडार में वृद्धि करना। आयु के अनुसार छपी किताबें एवं पत्रिकाओं को प्रस्तुत करना। पढ़ने के लिए रुचिकर सामग्री प्रदान करना। कार्ड ,श्यामपट आदि के सहायता से खेल खेल के माध्यम से गति बढ़ाना
सस्वर वाचन की विशेषताएँ शब्दों की ध्वनियों का सम्यक ज्ञान - जिसका ध्वनियों का विधिवत ज्ञान होगा ,उसका सस्वर वाचन आकर्षक एवं प्रभावकारी होगा। शब्दों के ध्वनियों के आधार पर बालकों के सस्वर वाचन का मूल्यांकन किया जाता है । वाचन का ढंग - सस्वर वाचन पढ़ने का ढंग उसको आकर्षक बनाता है। उतार -चढ़ाव , मनोरंजन एवं प्रसंगानुसार विविधता का ध्यान रखना आवश्यक है।
शब्दार्थों का ज्ञान - प्रभावशाली सस्वर वाचन के लिए शब्दों का अर्थ जानना आवश्यक है। इससे वाचन स्वाभाविक एवं रुचिकर प्रतीत होगा विराम चिह्नों का सम्यक ध्यान - विराम चिह्नों को ध्यान में रख कर वाचन करने से पाठ सरल एवं सहजग्राह्य बन जाता है। वाचन स्पष्ट हो - स्पष्ट स्वर, स्पष्ट उच्चारण एवं स्पष्ट भावावृत्ति पाठ को रोचक और प्रभावकारी बनाते हैं।
सस्वर वाचन की विधियाँ स्वरोच्चारण विधि - इस विधि का सम्बन्ध अक्षर एवं शब्द की ध्वनि से सम्बंधित है। यह विधि भारत की सबसे पुरानी शिक्षण विधि है। इसमें शुद्ध उच्चारण पर ध्यान दिया जाता है। हिंदी में 13 स्वर है। इस पद्धति में छात्रों को बारह -खड़ी [क से ज्ञ ] रटवा दी जाती है। इससे छात्रों को पता चल जाता है कि व्यंजन में किन स्वरों के संपर्क से कैसी ध्वनि पैदा होती है।
2. देखो और कहो विधि - इस विधि में पहले बच्चों को शब्दों का परिचय कराया है फिर उन्हें चित्रों के साथ जोड़ कर प्रभावशाली बनाया जाता है। यह विधि आकर्षक एवं रुचिकर है। चित्र और शब्द देखने से बालक के मन -मस्तिष्क पर उन शब्दों का स्थायी बोध हो जाता है।
3. अक्षर - बोध विधि - यह विधि दुनिया की सर्वाधिक पुरानी विधि है। इसमें क्रमानुसार वर्णमाला के अक्षर बताये जाते है। इसके उपरांत छोटे -छोटे शब्द बनाना सिखाया जाता है । 4 . अनुकरण विधि - इस विधि में शिक्षक बच्चों के समक्ष एक -एक शब्द बोलता है और बच्चे उसका अनुकरण करते हैं।
5 . ध्वनि साम्य विधि - इसमें प्रारंभ में बालकों को सरल ध्वनि साम्य वाले शब्द रखे जाते है, जैसे आम ,काम नाम। धीरे -धीरे कठिन शब्दों की ओर बालको का ध्यान उन्मुख किया जाता है । 6. यंत्र विधि द्वारा वाचन की शिक्षा - विविध यंत्रों के रिकार्ड को बालक सुनते है और अध्यापक के निर्देशन में अनुकरण के माध्यम से वाचन सीखते हैं। वाचन की यह नवीन एवं उपयोगी विधि है।
7 . कहानी वाचन विधि - बालक कहानी प्रिय होता हैं। नानी की कहानी ,दादी की कहानी आदि सुनने में उसकी विशेष रूचि होती है। कहानी सुनने के उपरांत उन्हें कहानी में प्रयुक्त वाक्य के शब्दों से परिचित करा कर धीरे -धीरे वाचन की शिक्षा देना श्रेयकर है।
मौन वाचन यह सदारणतः उच्च कक्षाओं के लिए उपयोगी है । मौन वाचन में हम बोलते नहीं ,मात्र सोचते हुए बाँचते हैं।
मौन वाचन की उपयोगिता : मौन वाचन से अर्थग्रहण शीघ्रपूर्वक होता है। क्योंकि सस्वर वाचन में अनेक इन्द्रियों के सहायता लेनी पड़ती है , इसलिए उसमे समय लगते हैं। यह सार्वजनिक पुस्तकालयों में प्यायुक्त प्रयुक्त करता हैं यात्राओं में मौन वाचन सहायक है। सस्वर वाचन में मस्तिष्क शीघ्र थक जाता है। थके मस्तिष्क को विश्राम देने का कार्य मौन वाचन करता है। अवकाश के क्षणों में मौन वाचन साथी का कार्य करता है। मन को एकाग्र करने ,सांसारिक चिंताओं से मुक्ति पाने केलिए मौन वाचन बड़ा उपयोगी है।
मौन वाचन में ध्यान रखने की बातें : वातावरण शांत हो। चित्त एकाग्रचित्त होना चाहिए। अध्यापक इस बात का ध्यान रखे कि छात्र न गुनगुनाये ,न फुसफुसाए और न शोर मचाएं। मौन वाचन के पूर्व छात्रों को विषय -वास्तु से परिचित करा देना देना चाहिए। मौन वाचन केलिए नेत्रों की गति का अभ्यास करना चाहिए। छात्रों के मौन वाचन की गति की परीक्षा व् जाँच की जानी चाहिए। मौन वाचन के उपरांत बोधात्मक प्रशन पूछे जाए।
मौन वाचन के मूल उद्देश्य : पाठ्यांश या पाठ के केंद्रित भाव या विचार को समझना। अनावश्यक बातों को छाँटकर मूल तथ्यों का चयन करना। पठित सामग्री का निष्कर्ष निकालना। तथ्यों ,भावों ,एवं विचारों का क्रमबद्ध विकास करना। पाठ का उचित शीर्षक देना। पठित अंश के बारे में पूछे गए बोधात्मक प्रशनों का उत्तर देना। साहित्यिक प्रसंगों ,व्यंग्यों ,लाक्षार्थों को समझने की क्षमता लाना।