DrPiyushTrivedi
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Mar 15, 2019
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आयुर्वेद में वर्णित प्रमुख मानसरोग
मुख्य पांच प्रकार (१) वातज (२) पित्तज (३) सन्निपातज (४) आगंतुज
उन्माद की चिकित्सा
द...
आयुर्वेद में वर्णित प्रमुख मानसरोग
मुख्य पांच प्रकार (१) वातज (२) पित्तज (३) सन्निपातज (४) आगंतुज
उन्माद की चिकित्सा
दैव व्यापाश्रय चिकित्सा
युक्तिव्यापाश्रय चिकित्सा
सत्वावाजय
उन्माद के कारण एवं लक्षण
ताड़न, मारण, भय दर्शन
उन्माद में आहार-विहार
उन्माद में पंचकर्म की भूमिका
Size: 19.87 MB
Language: none
Added: Mar 15, 2019
Slides: 32 pages
Slide Content
उन्माद ( MANIA ) ` आयुर्वेद ग्रंथों में वर्णित मुख्य मानस रोग Diagnosis of Mental Health Problems and their management in Ayurveda (DCPIC Paper 4-Unit 4)
प्रकुपित दोष जब उन्मार्गगामी होकर मन में जब विक्षिप्तता उत्पन्न करते है तब उसे उन्माद कहते है|
मन, बुद्धि, संज्ञा(होश), स्मृति, भक्ति(रुचि), शील (स्वभाव), चेष्टा(गति) और आचार(व्यवहार) के विभ्रम (विक्षिप्तता) को उन्माद कहते है| उन्माद के पाँच प्रकार है| (वातज, पित्तज, कफज, सन्निपातज एवं आगंतुज)
मन जब जिसका चिंतन करना चाहिए उसका चिंतन नहीं करता और जिसका चिंतन नहीं करना चाहिए उसका चिंतन करता है उसे मनोविभ्रम कहते है|
बुद्धि जब सही को गलत और गलत को सही समझने लगती है तब उसे बुद्धिविभ्रम कहते है|
रोगी को जब अग्नि के दाह आदि का ज्ञान नहीं रहता या जब होश नहीं रहता तो उसे संज्ञाविभ्रम कहते है|
रोगी को जब किसी घटना का स्मरण नहीं रहता या उसे दिन, तिथि, वार आदि कुछ भी याद नहीं रहता तो उसे स्मृतिविभ्रम कहते है|
रोगी की रुचि जब बदल जाती है तो उसे भक्तिविभ्रम कहते है|
पहले जो शांत था वह क्रोधी हो जाए या उलटा हो जाए अर्थात स्वभाव बदल जाए तो उसे शीलविभ्रम कहते है|
जब व्यक्ति हाथ-पैर आदि की विचित्र गति करता है, उसकी चाल बदल जाती है तथा चेहरे के भाव बदल जाते है उसे चेष्टाविभ्रम कहते है|
आचरण में जब अपवित्रता आदि विकार आ जाते है तो उसे आचारविभ्रम कहते है|
विरुद्ध भोजन, दूषित भोजन एवं अपवित्र भोजन से, देव, गुरु और ब्राह्मणों (शिक्षकों) का अपमान करने से, अत्यंत भय या हर्ष के कारण मन को क्षति पहुंचने से तथा विषम चेष्टाओं से उन्माद रोग उत्पन्न होता है|
पूर्व से ही जिसका मन अल्प सत्वगुण वाला होता है ऐसे व्यक्ति का दोष (वात, पित्त या कफ) जब प्रकुपित होकर मस्तिष्क में पहुंचकर मनोवाही स्त्रोतों को दूषित करता है तब उन्माद होता है|
उन्माद के सामान्य लक्षणों में बुद्धि का विभ्रम , मन का विभ्रम , व्याकुलदृष्टि , अधीरता, असम्बद्ध भाषण, भाव शून्यता की प्रतीति का समावेश होता है|
वातज उन्माद का कारण रुखा-सुखा भोजन, शीत भोजन, अल्प भोजन, अत्यधिक वमन-विरेचन, अत्यधिक धातुक्षय, अत्यधिक उपवास, अत्यधिक चिन्ता से प्रकुपित वायु चिन्ता से ग्रसित मन में प्रवेश करके मन को दूषित करती है तथा बुद्धि तथा स्मृति को शीघ्र नष्ट करके उन्माद उत्पन्न करती है|
वातज उन्माद के लक्षण निरंतर परिभ्रमण, आँखों की चंचलता, व्यर्थ ही हाथ-पैर हिलाना, नाखून गहरे लाल रंग के हो जाना, भोजन का पाचन जब हो जाए अधिक वेग हो जाता है, सतत असम्बन्ध वाणी का उच्चारण, मुख से फेन निकलना आदि|
पित्तज उन्माद का कारण अजीर्ण, तीखे पदार्थों का अधिक सेवन, खट्टे पदार्थों का अधिक सेवन, विदाही (अत्यंत गरम) अन्न का अधिक सेवन, उष्ण प्रकृति के पदार्थों का अधिक सेवन से प्रकुपित पित्त मन में प्रवेश करके मन को दूषित करता है तथा बुद्धि तथा स्मृति को नष्ट करके उन्माद उत्पन्न करता है|
पित्तज उन्माद के लक्षण असहनशीलता, क्रोध, अस्थान में जोश, अस्थान में नग्न होना, शस्त्र आदि से खुद को या दूसरों को नुकसान पहुँचाना, दूसरों को डराना, धमकाना, दौड़ना, छाँव में निवास की इच्छा, शीत जल आदि की इच्छा, अधिक काल तक बुखार, आँखों का गहरा पिला या लाल हो जाना, आंखों में सुजन, नाखून पीले हो जाना आदि|
कफज उन्माद का कारण किसी भी प्रकार की चेष्टा न करने से (शारीरिक श्रम बिलकुल न करने से) तथा अधिक भोजन करने से प्रकुपित कफ पित्त के साथ मन में प्रवेश करके मन को दूषित करता है तथा बुद्धि तथा स्मृति को नष्ट करके उन्माद उत्पन्न करता है|
कफज उन्माद के लक्षण ऐसा रोगी बोलता कम है, घूमना-फिरना कम करता है, भोजन में अरुचि होती है, स्त्रियाँ और एकांत उसे अधिक प्रिय होता है, निद्रा अधिक होती है, वमन होता है, मुख से लार गिरती है, भोजन करने के बाद उन्माद का वेग बढ़ जाता है| नाखून, नेत्र, जीभ, शरीर सफ़ेद हो जाता है|
सन्निपातज उन्माद के कारण एवं लक्षण यह अत्यंत भयंकर और तीनों दोषों के दूषित होने से होता है| तीनों प्रकार के उन्माद के मिले-जुले लक्षण दिखते है| एक दोष की चिकित्सा करने पर दूसरा बढ़ जाता है अतः यह असाध्य है|
आगंतुज उन्माद के कारण एवं लक्षण देवता, ऋषि आदि का अपमान करने से, अनुचित रूप से पूजा, पाठ आदि करने से तथा पिछले देह के कर्मों से आगंतुज उन्माद होता है| उन्माद का समय निश्चित नहीं होता, रोगी के वचन, बल, चेष्टाएँ मनुष्य जैसी नहीं होती|
आगंतुज उन्माद के प्रकार महर्षि चरक ने आगंतुज उन्माद के ८ भेद बताये है| देवोन्माद शापोन्माद पितृग्रहोन्माद गंधर्वोंन्माद यक्षोन्माद राक्षशोन्माद ब्रह्मराक्षशोन्माद पिसाचोन्माद
कल्याणकघृत , महाकल्याणकघृत , लशुनाद्यघृत पुराना घी ( त्रिदोष नाशक है) सारस्वत चूर्ण उन्मादमंजन रस
उन्माद में पथ्य-अपथ्य धीरज, निद्रा कराना, पुराना घी, नया घी, ब्राह्मी का शाक, परवल की सब्जी, गधे तथा घोड़े का मूत्र, वर्षा का जल, हरड , स्वर्णभष्म , नारियेल पानी, किसमिस , मुनक्के , कटहल (फल) यह सब उन्माद में पथ्य है| दारु, विरुद्ध भोजन, अत्यंत उष्ण भोजन, निद्रा, भूख तथा प्यास के वेग को रोकना, मैथुन, करेला, कुन्दरू यह सब उन्माद में अपथ्य है|