It is a ppt presentation about the topic Writing skills.Types of writing skills. It includes how to improve writing.Things you have to notice while writing.etc
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Language: none
Added: Mar 20, 2017
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नमस्कार
लेखन - शिषण “ लिखना ” किसे कहते है ? व्यक्ति अपने विचारों को दो प्रकार से प्रकट करता है – बोलकर और लिखकर | जब दूसरा व्यक्ति, अपने समीप होता है तो हम अपने विचार बोलकर प्रकट करते हैं | अगर साक्षर व्यक्ति है तो वह अपने भाव लिख कर प्रकट करता है | “ उच्चरित ध्वनियों को प्रतीकों के रूप में व्यक्त करना, लिखना है ” | इन प्रतीकों को अक्षर या वर्ण कहा जाता है |
हिन्दी लिपि के अक्षरों की बनावट को सीखने के क्रम में पहले कुछ रेखायें एवं आकृतियाँ सहायक हैं, इसलिए बच्चों को पहले उन रेखाओं एवं आकृतियों का ज्ञान कराना चाहिए | 1 खड़ी रेखा – जैसे | | | | | | | | लेखन सिखाने की विधि या लेखन कैसे सिखाया जायें ?
7. गोलारार – जैसे इस प्रकार हम देखते हैं कि इन आड़ी-तिरछी रेखाओं के आधार पर बालकों को लिखना सिखाया जा सकता है। बालक तीन वर्ष की आयु से ही टेढ़ी रेखायें खींचना प्रारंभ कर सकते हैं।
लिखने के पूर्व का उपक्रम व सावधानियाँ बालकों को लिखना सिखाने के पूर्व कुछ उपक्रम एवं सावधानियाँ आवश्यक है,अन्यथा सफलता देर से मिलेगी। 1 . बच्चों को बैठने का ढंग लिखना सिखाने के पहले बच्चों को सीधे बैठने का ढंग बताकर उसका अभ्यास करना चाहिए। नहीं तो आँखों पर अतिरिक्त बल पड़ेगा,बच्चे टेढ़ा मेढ़ा लिख सकते हैं आदि।
सावधानियाँ (क) बच्चे सीधे बैठें । (ख) स्लेट या कापी आँखों से 12 से 14 इंच की दूरी पर रखकर लिखवायें। (ग) लिखते समय टेबुल पर स्लेट या कापी सीधा रखे। 2 . कलम या पेंसिल पकड़ने का ढ़ग कलम या पेंसिल को अंगूठा, तर्जनी एवं मध्यमा ऊँगलियों से पकड़वाना चाहिए। कलम या पेंसिल की नोक काग़ज़ से एक दम सटाकर लिखना चाहिए।
3 . लिपि की अभ्यास पुस्तिकायें अक्षरों का सौंदर्य अक्षरों के अनुपात पर निर्भर है। चाहे खड़ी पाई हो, चाहे पड़ी पाई, गोला हो या अर्द्ध गोला या मात्रायें सभी अपने-अपने अनुपात में हो। इसलिए यह आवश्यक है कि अक्षरों के लिए विशेषज्ञों से लिपि की अभ्यास पुस्तिकायें तैयार करा कर बच्चों से पहले उस पर पेंसिल चला कर अभ्यास करायें फिर कलम से उनके नीचे दी गई पंक्तियों में लिखवायें। इस प्रकार से छात्र सुंदर आकर्षक एवम् सुडौल अक्षर लिखना सिख जाता है।
लिखना सिखाने के कुछ अन्य नियम : 1 . बालकों से पहले उनका नाम लिखवायें फिर उनके माँ-बाप एवं परिवार के अन्य सदस्यों का, इससे बालक बड़ी दिलचस्पी से लिखेंगे। 2. पहले बड़े आकार वाले अक्षर लिखवाये जाय, फिर छोटे-छोटे आकार के अक्षर लिखवाये जाँय। 3. लिखना सिखाने का एक क्रम होना चाहिए। 4. लिखते समय बच्चों की व्यक्तिगत विभिन्नता का ध्यान रखना चाहिए। 5. प्रारंभ में वही अक्षर चुनना चाहिए, जिन्हें बच्चे आसानी से लिख लें। क्रमश : उन्हें सरल से कठिन अक्षरों की ओर ले जाना चाहिए।
6. जो भी तथ्य लिखने के लिए दें, वह बहुत लंबा न हो। 7. लिखित कार्य का निरीक्षण करना चाहिए, तथा बच्चों को इस संदर्भ में आवश्यक सुझाव देना चाहिए।
लिखते समय ध्यान रखने की बातें बच्चों का जब लिखने का मुड हो तभी लिखाया जाय। लिखाने में सरल से कठिन की ओर जाने का सूत्र प्रयुक्त किया जाय। लिखने-लिखाने के क्रम में बच्चों की वैयक्तिक विभिन्नता का ध्यान रखा जाय। बच्चों की अभिरुचि का ध्यान रखा जाय। लिखित कार्य का सुधार व अभ्यास कराया जाय। बालकों से वही अक्षर, वाक्य या वाक्यांश लिखवाया जाये, जिन्हें वह जानता हो।
सुलेख / अनुलेख / श्रुतिलेख सुलेख सुलेख का शाब्दिक अर्थ है सु+लेख, अर्थात् सुंदर लेख। सुंदर लेख का अर्थ है अच्छी लिखावट, अच्छी लिखावट का अर्थ अच्छे ढ़ग से, आकर्षक तरीके से सुंदर लिखे शब्द जो आँखों को आकृष्ट करें। अक्षरों की सुंदरता में शब्दों के संयोजन का भी महत्वपूर्ण स्थान है।
सुलेख के उदेश्य बालक आकर्षक अक्षर लिखने को प्रवृत्त हो। बालक के हाथ, मस्तिष्क और हृदय में समन्वय हो। छात्रों को इन्द्रिय शिक्षण मिले। बालकों में सौंदर्यनुभूति की भावना का विकास हो। छात्रों के जीवन में सुव्यवस्था आये। विद्यार्थी व्यावहारिक जीवन के लिए तैयार हो।
सुलेख का महत्व छात्रों का लिए सुलेख का विशिष्ट महत्व है, क्योंकि परीक्षा में सुलेख अच्छे अंक प्रदान कराते हैं । हस्तलेख का सौंदर्य परीक्षक को प्रभावित करता है । सुलेख सुवाच्य होते है । मुद्रण हेतु भी सुलेख वरदान है। कुछ लोग सुलेख से अपनी जीविका भी चलाते हैं। इस प्रकार सुलेख से छात्र-छात्राओं को प्रेरित भी किया जाना चाहिए।
अनुलेख लिपि-पुस्तक के अभाव में शिक्षक, मोटे-मोटे गत्तों पर लिखकर कक्षा में टाँग देना चाहिए और बच्चों को उसे देखकर वैसा ही लिखने के लिए कहना चाहिए। इसका अभ्यास निरंतर कराने से छात्रों में सुंदर लेखन की क्षमता का विकास होता है। अनुलेख पाठ्यपुस्तक से ही लिखवाना चाहिए। पाठ्यपुस्तक से अनुलेख लिखाने से पाठ की आवृत्ति हो जाती है। इससे छात्रों की शब्द वर्तनी का भी याद हो जाती है।फिर धीरे-धीरे अर्थ भी समझते है।
श्रुतलेख श्रुतलेख का प्रचलन अंग्रेज़ी की शिक्षा के साथ आया है। श्रुतलेख में अध्यापक बोलता जाता है और बालक सुनकर लिखते जाते है। कहीं-कहीं पर श्रुतलेख के लिए ग्रामोफोन या टेप-रिकार्डर का भी प्रयोग होता है । सुनकर लिखे जाने के कारण, श्रुतलेख कहा जाता हे। विदेशी भाषा होने के कारण अंग्रेज़ी में श्रुतलेख आवश्यक था। हिंदी भाषा ध्वन्यात्मक है।