Adharbhut Siddhant with its five sub headings ppt

aryanvmsya 132 views 8 slides Sep 01, 2025
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Adharbhut Siddhant with its five sub headings ppt


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ADHARBHUT SIDDHANTA

Topics covered PARIBHASH Maan Panchkashaya Kalpana Ras , Gun, Virya , Vipaka , Prabhava Anukta / Visheshokta grahan

परिभाषा अव्यक्तानुक्तलेशोक्त सन्दिग्धार्थ प्रकाशकः । परिभाषा प्रकथ्यन्ते दीपीभूताः सुनिश्चितः ॥ ( वैद्यक परिभाषा प्रदीप ) परिभाषा - यह भैषज्य कल्पना का सर्वमान्य आधारभूत सिद्धान्त है। शास्त्र में अव्यक्त , अनुक्त , लेशोक्त तथा संदिग्ध प्रकरण का स्पष्ट रूप से ज्ञान कराने में परिभाषा सहायक होती है| ( अव्यक्त = अस्पष्ट , अप्रकट या अप्रत्यक्ष । अनुक्त बिना कहा हुआ या बिना बताया हुआ । लेशोक्त = थोड़ा सा अंश कहा गया हो । संदिग्ध जब दो के बीच संशय हो )

मान मान शब्द की निरूक्ति मीयतेऽनेनेति मानम् ( अमरकोश ) जिसके द्वारा तौला या मापा जाय , उसे मान कहते हैं । किसी द्रव्य की भार (Weight), आयतन (Volume) वा लम्बाई (length) को ज्ञात करने की प्रक्रिया को मापना (measurement) कहते हैं । मान के प्रकार पाय्यमान- हाथ के द्वारा मापे जाना वाला ( लम्बाई का मान) हृवयमान- कुड़व पात्र के द्वारा मापा जाने वाला ( द्रव के लिए ) पौतवमान- तुला के द्वारा मापा जाने वाला ( वजन / भार के लिए )

पंचकषाय कल्पना कल्पना आयुर्वेद में औषधियाँ बनाने की पाँच मूलभूत विधियाँ हैं स्वरस – किसी यन्त्र ( या मशीन ) के द्वारा द्रव्य को पीड़न कर जो रस प्राप्त होता है उसे स्वरस कहते हैं । कल्क - रस ( द्रव ) के साथ पीसे हुए पिण्ड रूप द्रव्य को कल्क कहरते हैं । क्वाथ - अग्नि पर औषध द्रव्य को जल के साथ क्वथित या उबालकर प्राप्त द्रव ही क्वाथ कहलाता है । शीत – द्रव्य को सारी रात द्रव में रखकर छान लेने के पश्चात् जो कषाय कल्पना प्राप्त होती है उसे शीत कहा जाता है। फाण्ट – उष्ण जल में औषधि को डालकर छान लेने के पश्चात् प्राप्त ( द्रव ) को फाण्ट कहते हैं ।

रस गुण वीर्य विपाक तथा प्रभाव द्रव्यों के रस पंचमहाभौतिक सिद्धान्त से निर्मित होते हैं । आचार्य भावमिश्र के अनुसार द्रव्यों में स्थित गुणों का निर्माण इन्हीं महाभूतों के आधार पर होता है अर्थात निहित के साहचर्य से रसों का निर्माण होता है। इन्हीं द्रव्यों से कल्पना का निर्माण किया जाता है।

अनुक्त/विशेषोक्त ग्रहण यदि काल न कहा गया हो तो प्रभात काल , किसी औषधि का प्रयोज्य अंग न कहा गया हो तो मूल , यदि किसी औषध योग में घटक द्रव्यों का मान न दिया गया हो तो सभी बराबर भाग में , पात्र न बताया गया हो तो मिट्टी का पात्र , द्रव का वर्णन न हो तो जल और यदि तैल का वर्णन न हो तो तिल तैल का ग्रहण करना चाहिए चूर्ण , स्नेह , आसव तथा लेह कल्पनाओं में श्वेत चन्दन का प्रयोग प्रायः करना चाहिए । कषाय तथा लेप में रक्तचन्दन का प्रयोग प्रायः करना चाहिए | जिस औषधि का मूल अति स्थूल हो उसका त्वचा ( वल्कल ), यथा वट , निम्ब , जिसका सूक्ष्म मूल हो उसे सम्पूर्ण यथा गोक्षुर , यग्रोध आदि की त्वचा , बीजक आदि का सार भाग , तालीस , कुमारी , नागवल्ली आदि के पत्र , त्रिफला का फल , धातकी , प्रियंगु का पुष्प तथा स्नुही का क्षीर ग्रहण करना चाहिए ।

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