Administrative system under the rashtrakutas

VIRAGSONTAKKE 753 views 20 slides Apr 13, 2020
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About This Presentation

This Presentation is prepared for Graduate Students. A presentation consisting of basic information regarding the topic. Students are advised to get more information from recommended books and articles. This presentation is only for students and purely for academic purposes. The pictures/Maps includ...


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ancient Indian polity and administration 1

राष्ट्रकूट शासन व्यवस्था Administrative system under the Rashtrakutas Dr. Virag Sontakke 2

प्रस्तावना चालुक्यों के पतन के पश्चात् ८ वी सदी ईसवी में दक्षिण भारत में राष्ट्रकूटों का उदय हुआ। राष्ट्रकूटों ने मान्यखेड से राज्य किया कालांतर में राष्ट्रकूट एक प्रबल राजवंश के रूप में राजनीतिक पटल पे स्थापित हुए। दकन, दक्षिण एवं उत्तर भारत में अनेक विजयी आक्रमण के फलस्वरूप राष्ट्रकूटों ने एक बृहद साम्राज्य की । 3

राष्ट्रकूटों का प्रशासनिक विभाजन साम्राज्य प्रांत मंडल विषय भुक्ति पुर/नगर ग्राम 4

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प्रांत / राष्ट्र 6

केंद्रीय प्रशासन राष्ट्रकूटों का प्रशासन राजतंत्रिक था राजा केंद्रीय प्रशासन का प्रमुख था राजा राज्य का प्रधान होता था उसका पद आनुवंशिक होता था प्रायः जेष्ठ पुत्र राजगद्दी का उत्तराधिकारी होता था तथापि महत्वकांशाओ के करण उत्तराधिकार के लिये युद्ध होते थे। राजा जीवित रहते अपना उत्तराधिकारी चुनते थे चुने हुए उत्तराधिकारी को युवराज का पद देके राजधानी में रखते थे शक्तिशाली राजा विविध पदवी लगते थे महाराजाधिराज,राजाधिराज,परमभट्टरक,परमेश्वर इत्यादि 7

राष्ट्रकूटों के प्रशासन में मंत्रिमंडल की जानकारी नहीं है। मंत्रिमंडल के मंत्री का उल्लेख अभिलेखों में कम प्राप्त हुआ है राष्ट्रकूटों के सामंत शिलाहार राजाओं के अभिलेखों में ५ मंत्री की संख्या का विवरण मिलता है चूँकि शिलाहार राष्ट्रकूटों के सामंत थे, तो शायद राष्ट्रकूटों के प्रशासन में भी मंत्री रहे होंगे इन मंत्रियो के नाम महाप्रधान सर्वाधिकारिन सर्वदर्शिप्रधान प्रधान पुराणमात्य/महामात्य 8

राष्ट्रकूटों के केंद्रीय अधिकारी महासंधिविग्रहिक ↓ के अधीन संधिविग्रहिक इन्हें पंचमहाशब्द की उपाधि प्राप्त थी ये साम्राज्य के प्रांतो , सामंती राज्यों के लिए उत्तरदायी / ज़िम्मेदार होते थे प्रांतो की आंतर्राज्य नितियो और निर्णय को देखते थे राजा और महासंधिविग्रहिक के बीच पारस्परिक विस्वास होता था महासंधिविग्रहिक को राजा का दाहिना हाथ कहा गया है 9

धर्माधिकारिन प्रधान न्यायाधीश महासंधिविग्रहिक का समकक्ष नीचे की अदालतों की अपील सुनता निर्णय सुनाना राजा के ताम्रपत्रों के लेखों को तयार करता था 10

महाप्रचण्डदंडनायक़ सेनापति राष्ट्रकूटों का साम्राज्य विस्तार देखते हुए लगता है कि सेनापति कि संख्या कई होगी सेनापतियों को दंडनायक़ तथा महादंडनायक़ की उपाधियाँ प्राप्त थी। सेनापति युद्ध में सेना का संचालन करता था 11

पुरोहित पुरोहित को धर्मांकुश कहा गया है यह राज्य के तथा राजपरिवार के धार्मिक कार्य करता था यह राजा को धार्मिक उपदेश भी देता था 12

अमात्य यह राजस्व मंत्री था यह राज्य का राजस्व , भूस्वामीत्व , कृषि का काम देखता था राजस्व , भूस्वामीत्व , कृषि के काग़ज़ात इसके पास रहते थे इसके अधीन बहुत से करनिक (क्लर्क) रहते थे। 13

प्रांतीय प्रशासन राष्ट्रकूट साम्राज्य विभिन्न प्रांतो में विभक्त था प्रांतो को राष्ट्र कहते थे यह राष्ट्र का क्षेत्र ५-६ ज़िले के बराबर रहता होगा राष्ट्र कू ट साम्राज्य में संभवतः १८-२० राष्ट्र रहे होंगे राष्ट्र के प्रधान को राष्ट्रपति कहते थे इन्हें दंडनायक़ तथा महादंडनायक़ की उपाधियाँ प्राप्त थी। राष्ट्रपति का पद राजकुमार, राजा के रिश्तेदारों, राजपरिवार के सदस्यों को दिया जाता था अमोघवर्ष प्रथम की पुत्री चंद्रवेलब्बा रायचूर दोआब की शासनधिकारिनी थी। या युद्ध में हारे हुए सामंत भी राष्ट्रपति पद पर रहते थे जिन्हें आंतरिक स्वतंत्रता थी अमोघवर्ष प्रथम ने सेनापति बांकेय को वनवासी का राष्ट्रपति नियुक्त किया था जिसमें १२००० ग्राम थे। 14

राष्ट्रपति यह पद बहुतांश आनवंशिक होता था राष्ट्रपति उपाधियाँ लगाते थे उदा . राजपरमेश्वर इनके पास अपनी सेनायें होती थी, यदि कोई सामंत विद्रोह करता तो यह युद्ध करते राष्ट्रपति प्रांतीय प्रशासन के प्रमुख होने के नाते राजस्व प्रमुख भी होते थे कर संग्रह करना इनका महत्वपूर्ण कार्य था राष्ट्रपति को प्रांतीय प्रशासन में सलाह देने के लिया राष्ट्रमहत्तर लोगों की समिति होती थी 15

मंडल प्रशासन ये आधुनिक कमशनरिस के जैसे काम करते थे ५-६ ज़िले का प्रमुख मंडल होता था इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है 16

विषय प्रशासन विषय आजकल के ज़िले के आकार के थे जो अनेक भुक्ति से मिलकर बनते थे। विषय के प्रधान को विषयपती कहते थे बहुत से सामंत भी विषयपती होते थे ये राजस्व प्रमुख होते थे विषयपती को प्रांतीय प्रशासन में सलाह देने के लिया राष्ट्रमहत्तर लोगों की समिति होती थी पुनक (पूना) विषय में १००० और कर्हतक विषय में ४००० ग्राम थे। 17

भुक्ति प्रशासन अनेक ग्रामों से बनकर भुक्ति बनती थी हर भुक्ति में १०० से लेके ५०० ग्राम होते थे भुक्ति के प्रमुख को भोगिक या भोगपति कहते थे भोगपति को प्रांतीय प्रशासन में सलाह देने के लिया राष्ट्रमहत्तर लोगों की समिति होती थी 18

ग्राम प्रशासन ग्राम प्रमुख को ग्रामकूट , ग्रामपती कहते थे यह पद प्रायः अनुवंशिक होता था गाव में शांति बनाए रखना , राजस्व व्यवस्था करना , न्यायिक अधिकार इत्यादि काम ग्रामपती के होते थे अभिलेखों में ग्रामपती को सहायता करनेवाले युक्त, आयुक्त, नियुक्त, और ग्राममह्हतर के उल्लेख प्राप्त होते है। 19

निष्कर्ष इस प्रकार हम देखते है कि राष्ट्रकूटो का शासन के २२५ वर्ष तक चलने में उनकी शासन व्यवस्था और प्रणाली का महत्वपूर्ण योगदान था। राष्ट्रकूटों के बड़े साम्राज्य के अंतर्गत आने वाले विभिन्न क्षेत्रों की समुचित देखरेख और प्रशासन हेतु एक निश्चित व्यवस्था विद्यमान थी। बृहद साम्राज्य के सुशासन हेतु अनेक भागों में विभक्त करना एक बद्धिमत्तापूर्ण निर्णय था। सम्भवतः इसी समुचित शासन व्यवस्था ने राष्ट्रकूट शासको को एक लम्बे समय तक राज्य करने में मदद की होगी। 20