SPPU BED course 211 Drama & Art in Education
Folk Art and folk dance of India
Using Drama, films & Art in Teaching & Learning
Size: 5.07 MB
Language: none
Added: Sep 26, 2023
Slides: 15 pages
Slide Content
लोक और जनजातीय कला महाराष्ट्र की वार्ली Prof. Nameeta S. Sahare નમિતા સહારે तिलक शिक्षण महाविद्यालय पुणे
भारतातील लोक व आदिवासी कला अतिशय पारंपारिक आणि साधी असूनही इतकी सजीव आणि प्रभावशाली आहेत की ते आपोआपच देशाच्या समृद्ध वारशाचे आकलन करतात. Warli painting is a style of tribal art mostly created by the tribal people from the North Sahyadri Range ( Palghar District) in India.
Warli painting Warli tribal art is created by the tribal people from the North Sahyadri Range which encompasses cities such as Dahanu , Talasari , Jawhar , Palghar , Mokhada , and Vikramgadh of Palghar district .
This tribal art was originated in Maharashtra, where it is still practiced today. वारली चित्रकला प्रामुख्याने महिला करतात. या चित्रांमध्ये पौराणिक पात्र किंवा देवतांचे स्वरुप दर्शविले जात नाही तर सामाजिक जीवनाचे चित्रण केले आहे. दैनंदिन जीवनाच्या घटनांबरोबरच, मानवाचे आणि प्राण्यांचे चित्र बनवले जातात जे कोणत्याही योजनेशिवाय, सरळ शैलीत रंगवले जातात.
लोककला हमेशा से ही भारत की कलाएं और हस्तशिल्प इसकी सांस्कृतिक और परम्परागत प्रभावशीलता को अभिव्यक्त करने का माध्यम बने रहे हैं। देश भर में फैले इसके 35 राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों की अपनी विशेष सांस्कृतिक और पारम्परिक पहचान है, जो वहां प्रचलित कला के भिन्न-भिन्न रूपों में दिखाई देती है। भारत के हर प्रदेश में कला की अपनी एक विशेष शैली और पद्धति है जिसे लोक कला के नाम से जाना जाता है। लोककला के अलावा भी परम्परागत कला का एक अन्य रूप है जो अलग-अलग जनजातियों और देहात के लोगों में प्रचलित है। इसे जनजातीय कला के रूप में वर्गीकृत किया गया है। भारत की लोक और जनजातीय कलाएं बहुत ही पारम्परिक और साधारण होने पर भी इतनी सजीव और प्रभावशाली हैं कि उनसे देश की समृद्ध विरासत का अनुमान स्वत: हो जाता है।
अपने परम्परागत सौंदर्य भाव और प्रामाणिकता के कारण भारतीय लोक कला की अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में संभावना बहुत प्रबल है। भारत की ग्रामीण लोक चित्रकारी के डिज़ाइन बहुत ही सुन्दर हैं जिसमें धार्मिक और आध्यात्मिक चित्रों को उभारा गया है। भारत की सर्वाधिक प्रसिद्ध लोक चित्रकलाएं है बिहार की मधुबनी चित्रकारी, ओडिशा राज्य की पताचित्र चित्रकारी, आन्ध्र प्रदेश की निर्मल चित्रकारी और इसी तरह लोक के अन्य रूप हैं। तथापि, लोक कला केवल चित्रकारी तक ही सीमित नहीं है। इसके अन्य रूप भी हैं जैसे कि मिट्टी के बर्तन, गृह सज्जा, जेवर, कपड़ा डिज़ाइन आदि। वास्तव में भारत के कुछ प्रदेशों में बने मिट्टी के बर्तन तो अपने विशिष्ट और परम्परागत सौंदर्य के कारण विदेशी पर्यटकों के बीच बहुत ही लोकप्रिय हैं।
पंजाब का भांगडा, गुजरात का डांडिया, असम को बिहु नृत्य इसके अलावा, भारत के आंचलिक नृत्य जैसे कि पंजाब का भांगडा, गुजरात का डांडिया, असम को बिहु नृत्य आदि भी, जो कि उन प्रदेशों की सांस्कृतिक विरासत को अभिव्यक्त करने हैं, भारतीय लोक कला के क्षेत्र के प्रमुख दावेदार हैं। इन लोक नृत्यों के माध्यम से लोग हर मौके जैसे कि नई ऋतु का स्वागत, बच्चे का जन्म, शादी, त्योहार आदि पर अपना उल्लास व्यक्त करते हैं। भारत सरकार और संस्थाओं ने कला के उन रूपों को बढ़ावा देने का हर प्रयास किया है, जो भारत की सांस्कृतिक पहचान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। कला के उत्थान के लिए किए गए भारत सरकार और अन्य संगठनों के सतत प्रयासों की वजह से ही लोक कला की भांति जनजातीय कला में पर्याप्त रूप से प्रगति हुई है। जनजातीय कला सामान्यत: ग्रामीण इलाकों में देखी गई उस सृजनात्मक ऊर्जा को प्रतिबिम्बित करती है जो जनजातीय लोगों को शिल्पकारिता के लिए प्रेरित करती है। जनजातीय कला कई रूपों में मौजूद है जैसे कि भित्ति चित्र, कबीला नृत्य, कबीला संगीत आदि
शैली की दृष्टि से देखें तो उनकी पहचान यही है कि ये साधारण सी मिट्टी के बेस पर मात्र सफेद रंग से की गई चित्रकारी है जिसमें यदा-कदा लाल और पीले बिन्दु बना दिए जाते हैं। यह सफेद रंग चावल को बारीक पीस कर बनाया गया सफेद चूर्ण होता है। रंग की इस सादगी की कमी इसके विषय की प्रबलता से ढक जाती है। इसके विषय बहुत ही आवृत्ति और प्रतीकात्मक होते हैं। वार्ली के पालघाट, शादी-विवाह के भगवान को दर्शाने वाले बहुत से चित्रों में प्राय: घोड़े को भी दिखाया जाता है जिस पर दूल्हा-दुल्हन सवार होते हैं। यह चित्र बहुत पवित्र माना जाता है और इसके बाद विवाह सम्पन्न नहीं हो सकता है। ये चित्र स्थानीय लोगों की सामाजिक और धार्मिक अभिलाषाओं को भी पूरा करते हैं। ऐसा माना जाता है कि ये चित्र भगवान की शक्तियों का आह्वान करते हैं।
Warli Paintings
वार्ली लोक चित्रकला महाराष्ट्र अपनी वार्ली लोक चित्रकला के लिए प्रसिद्ध है। वार्ली एक बहुत बड़ी जनजाति है जो पश्चिमी भारत के मुम्बई शहर के उत्तरी बाह्मंचल में बसी है। भारत के इतने बड़े महानगर के इतने निकट बसे होने के बावजूद वार्ली के आदिवासियों पर आधुनिक शहरीकरण कोई प्रभाव नहीं पड़ा है। 1970 के प्रारम्भ में पहली बार वार्ली कला के बारे में पता चला। हालांकि इसका कोई लिखित प्रमाण तो नहीं मिलता कि इस कला का प्रारम्भ कब हुआ लेकिन दसवीं सदी ई.पू. के आरम्भिक काल में इसके होने के संकेत मिलते हैं। वार्ली, महाराष्ट्र की वार्ली जनजाति की रोजमर्रा की जिंदगी और सामाजिक जीवन का सजीव चित्रण है।
वार्ली चित्रकला वार्ली, महाराष्ट्र की वार्ली जनजाति की रोजमर्रा की जिंदगी और सामाजिक जीवन का सजीव चित्रण है। यह चित्रकारी वे मिट्टी से बने अपने कच्चे घरों की दीवारों को सजाने के लिए करते थे। लिपि का ज्ञान नहीं होने के कारण लोक वार्ताओं , लोक साहित्यके l आम लोगों तक पहुंचाने को यही एकमात्र साधन था। मधुबनी की चटकीली चित्रकारी के मुकाबले यह चित्रकला बहुत साधारण है।
फसल की बुवाई, फसल की कटाई करते हुए व्यक्ति की आकृतियां चित्रकारी का काम मुख्य रूप से महिलाएं करती है। इन चित्रों में पौराणिक पात्रों, अथवा देवी-देवताओं के रूपों को नहीं दर्शाया जाता बल्कि सामाजिक जीवन के विषयों का चित्रण किया जाता है। रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़ी घटनाओं के साथ-साथ मनुष्यों और पशुओं के चित्र भी बनाए जाते हैं जो बिना किसी योजना के, सीधी-सादी शैली में चित्रित किए जाते हैं। महाराष्ट्र की जनजातीय (आदिवासी) चित्रकारी का यह कार्य परम्परागत रूप से वार्ली के घरों में किया जाता है। मिट्टी की कच्ची दीवारों पर बने सफेद रंग के ये चित्र प्रागैतिहासिक गुफा चित्रों की तरह दिखते हैं और सामान्यत: इनमें शिकार, नृत्य फसल की बुवाई, फसल की कटाई करते हुए व्यक्ति की आकृतियां दर्शाई जाती हैं।
वार्ली : एक विशाल संसार वार्ली के चित्रों में सीधी लाइन शायद ही देखने को मिलती है। कई बिन्दुओं और छोटी-छोटी रेखाओं (डेश) को मिलाकर एक बड़ी रेखा बनाई जाती है। हाल ही में शिल्पकारों ने अपने चित्रों में सीधी रेखाएं खींचनी शुरू कर दी है। इन दिनों तो पुरुषों ने भी चित्रकारी शुरू कर दी है और वे यह चित्रकारी प्राय: कागज़ पर करते हैं जिनमें वार्ली की सुन्दर परम्परागत तस्वीरें और आधुनिक उपकरण जैसे कि साइकिल आदि बनाए जाते हैं। कागज़ पर की गई वार्ली चित्रकार काफी लोकप्रिय हो गई है और अब पूरे भारत में इसकी बिक्री होती है। आज, कागज़ और कपड़े पर छोटी-छोटी चित्रकारी की जाती है पर दीवार पर चित्र अथवा बड़े-बड़े भित्ति चित्र ही देखने में सबसे सुन्दर लगते हैं जो वार्लियों के एक विशाल और जादुई संसार की छवि को प्रस्तुत करते हैं। वार्ली आज भी परम्परा से जुड़े हैं लेकिन साथ ही वे नए विचारों को भी ग्रहण कर रहे हैं जो बाज़ार की नई चुनौतियों का सामना करने में उनकी मदद करते हैं।
Some Questions ?? Where are Madhubani and Warli art practiced? पंजाब का ----------- , गुजरात का ---------- , असम का ---------- नृत्य References: file:///C:/Users/c_nam/Downloads/warli%20bird%20and%20tree.html https://in.pinterest.com/pin/645211084104924170/visual-search/?cropSource=6&h=562&w=544&x=10&y=10 https://www.shutterstock.com/image-vector/indian-tribal-painting-warli-house-143534134 medium.com › the-history-and-origin-of- warli -painting