लेखक परिचय
नागार्जुन(जन्म:30 जून,1911; मृत्यु:5 नवींबि,1998) प्रगततवादीववचािधािा
के लेखक औिकववथे। नागाजुुन ने1945ई. के आसपाससाहित्यसेवा के क्षेत्र
में क़दम िखा।शून्यवादके �प में नागाजुुन का नाम ववशेष उल्लेखन य िै।
नागाजुुन का असली नाम 'वैद्यनाथ ममश्र' था।हिन्दी साहित्यमें उन्िोंने
'नागाजुुन' तथामैथथलीमें 'यात्र ' उपनाम से िचनाओीं का सृजन ककया।
कववता-सींग्रि-युगधािा -१९५३
सतिींगे पींखों वाली -१९५९
प्यास पथिाई आाँखें -१९६२
तालाब की मछमलयााँ-१९७४
तुमने किा था -१९८०
खखचड ववप्लव देखा िमने -१९८०
उपन्यास-िततनाथ की चाच -१९४८
बलचनमा-१९५२
नय पौध -१९५३
बाबा बिेसिनाथ -१९५४
व�ण के बेिे -१९५६-५७
दुखमोचन -१९५६-५७
कुींभ पाक-१९६० (१९७२ में 'चम्पा' नाम से भ प्रकामशत)
िीिक जयन्त -१९६२ (१९७९ में 'अमभनन्दन' नाम से भ प्रकामशत)
उग्रतािा -१९६३
जमतनया का बाबा -१९६८ (इस वषु 'इमिततया' नाम से भ प्रकामशत)
गिीबदास -१९९० (१९७९ में मलखखत)
ग�गा:-भाितकीसबसेमित्त्वपूणुनदीिै।यिभाितऔिबाींग्लादेशमेंकुल
ममलाकि 2525 ककलोम िि (कक॰म ॰)की दूिीतय कित
िुईउत्तिाखण्डमेंहिमालयसेलेकिबींगालकीखाड केसुन्दिवनतकववशालभू-
भागकोस ींचत िै।देशकीप्राकृततकसम्पदािीनिीीं,जन-जनकीभावनात्मक
आस्थाकाआधािभ िै।गींगानदीकीप्रधानशाखाभाग िथ िैजोगढ़वालमें
हिमालयकेगौमुखनामकस्थानपिगींगोत्र हिमनद(GURUKUL) सेतनकलत
िैंगींगाकेइसउद्गमस्थलकीऊाँ चाई३१४०म िििै।यिााँगींगाज को
समवपुतएकमींहदििै।
लस�धज निी :-एमशया की सबसे लींब नहदयों में से एक
िै।यिपाककस्तान,भाित(जम्मू औि कश्म ि) औिच न(पश्श्चम ततब्बत) के
माध्यम से बित िै। मसन्धु नदी का उद्गम स्थल,ततब्बतकेमानसिोविके
तनकि मसन-का-बाब नामक जलधािा माना जाता िै। इस नदी की लींबाई प्रायः
३१८०(२८८०) ककलोम िि िै। यिाीं से यि नदीततब्बतऔिकश्म िके ब च बित
िै।नींगा पवुतके उत्तिी भाग से घूम कि यि दक्षक्षण पश्श्चम मेंपाककस्तान के
ब च से गुजित िै औि किि जाकिअिब सागिमें ममलत िै।
ब्रह्मपजत्र:-एक बिुत लम्ब (2900 ककलोम िि) नदी िै।ब्रह्मपुत्र काउद्गम हिमालय के
उत्ति मेंततब्बतकेपुिींग श्जलेमें श्स्थतमानसिोवि झ लके तनकि िोता िै जिााँ
इसेयिलुींग त्सींगपोकिा जाता िै। ततब्बत में बिते िुए यि नदी भाित के अ�णाींचल प्रदेश
िाज्य में प्रवेश कित िै।आसामघािी में बिते िुए इसे ब्रह्मपुत्र औि कििबाींग्लादेशमें
प्रवेश किने पि इसे जमुना किा जाता िै। पद्मा (गींगा) से सींगम के बाद इनकी सींयुक्त
धािा को मेघना किा जाता िै, जो ककसुींदिबन डेल्िाका तनमाुण किते िुएबींगाल की
खाड में जाकि ममल जात िै
लेखक को यि किते िुए बबलकुल खझझक निीीं िोत कक ववशाल हिमालय औि
समुद्र में ससुि औि दामाद का सम्बन्ध िै कािण नहदयााँ अपने वपता हिमालय को
छोडकि समुद्र में जा ममलत िै |
काका कालेलकर ने नहियों को लोकमाता किा िै |
अलग अलग साहित्यकारों एवम् कववयों ने नहियों को माता केअनतरेक बेटी ,
प्रेयसी आहि के रूप में िेखा िै परन्तज लेखक निी से एक नया ररश्ता र्ोड़ते िै
र्ो की बिन का िै और इसी सन्िभु में वे एक कववता की रचना करते िै |
र्य िो सतलर् बिन तजम्िारी
लीला अचरर् बिन तजम्िारी
िजआ मजहित मन िटा खजमारी
र्ाउ� मैं तजम पर बललिारी
तजम बेटी यि बाप हिमालय
चचच्न्तत पर, चजपचाप हिमालय
प्रकृनत नटी के चचत्रत्रत पट पर
अनजपम अद्भजत छाप हिमालय
र्य िो सतलर् बिन तजम्िारी
प्रश्न -उत्ति
प्र १ हिमालय की बेहियााँ कौन िै ?
उत्ति हिमालय की बेहियााँ नहदयााँ िै
•प्र.२हिमालयसेतनकलनेवालीनहदयोका
•तनमाुणककससेिोतािैं?
उत्तिहिमालयसेतनकलनेवालीनहदयााँबर्फु
औिग्लेमशयिोंकेवपघलनेसेबन िैं|
प्र ३.नहियों को मा� मानने की पर�परा िमारे यिा� काफी पजरानी िै।
लेककन लेखक नागार्जुन उन्िें और ककन रूपों में िेखते िैं ?
उत्तर लेखक नहियों को मा� मानने की परप�रा से पिले इन नहियों को
स्त्री के सभी रूपों में िेखता िै च्र्समें वो उसे बेटी के समान प्रतीत
िोती िै। इसललए तो लेखक नहियों को हिमालय की बेटीकिता िै।
कभी वि इन्िें प्रेयसी की भा�नत प्रेममयी किता िै, च्र्स तरि से एक
प्रेयसी अपने वप्रयतम से लमलने के ललए आतजर िै उसी तरि ये नहिया�
सागर से लमलने को आतजर िोती िैं, तो कभी लेखक को उसमें ममता
के स्वरूप में बिन के समान प्रतीत िोती िै च्र्सके सम्मान में वो
िमेशा िार् र्ोड़े शीश झजकाए खड़ा रिता िै।
प्र.४ लस�धज और ब्रह्मपजत्र की क्या ववशेषताए� बताई गई िैं ?
उत्तर इनकी ववशेषताए� इस प्रकार िै:-
(i) लस�धज और ब्रह्मपजत्र ये िोनों िी मिानिी िैं।
(ii) इन िोनों मिानहियों में सारी नहियों का स�गम िोता िै।
(iii) ये भौगोललक व प्राकृनतक दृच्टट से बिजत मित्वपूर्ु नहिया� िैं। ये
डेल्टाफामु करने के ललए, मत्सय पालन, चावल की फसल वर्ल स्रोत
का उत्तम साधन िै।
iv)
प्र ५ काका कालेलकर ने नहियों को लोकमाता क्यों किा िै ?
उत्तरनहियोंकोलोकमाताकिनेकेपीछेकाकाकालेलकरका
नहियोंकेप्रनतसम्मानिै।क्योंककयेनहिया�िमाराआरच्म्भक
कालसेिीमा�कीभा�नतभरर्-पोषर्करतीआरिीिै।येिमें
पीनेकेललएपानीिेतीिैतोिूसरीतरफइसकेद्वारालाईगई
ऊपर्ाऊलमट्टीखेतीकेललएबिजतउपयोगीिोतीिै।येमछली
पालनमेंभीबिजतउपयोगीिैअर्ाुत् येनहिया�सहियोंसेिमारी
र्ीववकाकासाधनरिीिै।हिन्िूधमुमेंतोयेनहिया�पौराखर्क
आधारपरभीववशेषपूर्नीयिै।हिन्िजधमुमेंतोर्ीवनकी
अच्न्तमयात्राभीइन्िी�सेलमलकरसमाप्तिोर्ातीिै।इसललए
येिमारेललएमाताकेसमानिैर्ोसबकाकल्यार्िीकरतीिै।
प्र. ६ हिमालय की यात्रा में लेखक ने ककन-ककन कीप्रश�सा की िै
?
उत्तर लेखक ने हिमालय यात्रा में ननम्नललखखत कीप्रश�सा की िै –
(i) हिमालय की अनजपम छटा� की।
(ii) हिमालय से ननकले वाली नहियों की अठखेललयों की।
(iii) उसकी बरफ से ढकी पिाड़ड़यों की सजि�रता की।
शब्िार्ु
ग�भीर –शा�त प्रवाहित –बिना
स�भ्ा�त –लशटट प्रनतिान –लोटाना
उल्लास –ख़जशी खजमारी –आलस्य
कोतजिल -च्र्ज्ञासा बन्धजर –गिरी
ववस्मय –आश्चयु अनजपम –अनोखा
अचधत्यकाए� –पिाड़ी के ऊपर का समतल भाग
गृि कायु
प्र.१ नहियों से िोने वाले लाभों के ववषय मेंचचाु कीच्र्ये
और इस ववषय पर १५० शब्िों में एक ननब�ध ललखखए|
प्र२बाढ़केप्रकोपसेधरतीकैसेप्रभाववतिोतीिै–इस
ववषयस�बच्न्धतचचत्रएकत्रत्रतकरउसकेबारेमेंललखना|
प्र३भारतकेमानचचत्रमेंहिमालयतर्ाउससेननकलने
वालीववलभन्ननहियोंकोिशाुनातर्ा
कॉपीमेंचचपकाना|
धन्यवाि
के मीनाक्षी शमाु
प्रलशक्षक्षत स्नातक लशक्षक्षका, हि�िी
केंद्रीय ववद्यालय क्र ५ ग्वाललयर