सूर्यनमस्कार ppt for21 batch.pptxcdsfgjjnbv

drpriyankaswasthavri 141 views 15 slides Sep 07, 2024
Slide 1
Slide 1 of 15
Slide 1
1
Slide 2
2
Slide 3
3
Slide 4
4
Slide 5
5
Slide 6
6
Slide 7
7
Slide 8
8
Slide 9
9
Slide 10
10
Slide 11
11
Slide 12
12
Slide 13
13
Slide 14
14
Slide 15
15

About This Presentation

G


Slide Content

सूर्यनमस्कार : विधि एवं महत्व ( Sun salutation : Technique & Benefits )

सूर्य नमस्कार बारह विशिष्ट आसनों का समूह है, जिनका एक समान गति से लगातार अभ्यास किया जाता है। प्रत्येक आसन के साथ सूर्य के बारह नामो पर आधारित क्रमशः एक-एक मंत्र का मन में स्मरण अथवा उच्चारण किया जाता है। सूर्य नमस्कार सरल एवं सुसाध्य होने के साथ पूर्ण एवं सर्वोत्तम व्यायाम के समान लाभ प्रदान करता है। सूर्योदय की हल्की धूप में सूर्य को प्रणाम करते हुए अथवा विशेष स्थिति में (जैसे समयाभाव) सायंकाल सूर्यास्त के समय भी सूर्य नमस्कार का अभ्यास कर यथेष्ट लाभ प्राप्त किया जा सकता है। १२ आसनों के संयोग से सूर्य नमस्कार का एक चक्र पूरा होता है। प्रतिदिन ऐसे ९ चक्र (12 x9 आसन) का अभ्यास करने के पश्चात् शवासन की स्थिति में कुछ समय तक विश्राम अवश्य करना चाहिए |

सूर्य नमस्कार में दो विधियाँ प्रचलित है-एक विधि जिसमें 12 आसनों का समागम है और दूसरी विधि में 10 आसनों का समागम है। यह सूर्य शब्द सूर्य नक्षत्र का उल्लेख करता है। सूर्य आयु स्वास्थ्य और तेज का प्रतीक है। इस आसन का अभ्यास करने से सूर्य देवता की आराधना के साथ सर्व शरीर अङ्गों का विकास होता है। कुछ आधुनिक योग साधकों के अनुसार 12 अवस्थाओं जिसमें नमस्कारासन का उल्लेख नहीं किया है. इसके बदले में 5 वीं अवस्था एवं 9 वीं अवस्था पर शशंकासन को लिया गया है. इस तरह यह आसन 12 आसनों का समागम होता है। इसके साथ श्वास प्रश्वास का भी नियंत्रण करना चाहिए।

12 अवस्थायें- 1. प्रार्थना आसन 2. हस्तोत्थावासन 3. पादहस्तासन 4. अश्वसंचलनासन 5. पर्वतासन या अधोमुख श्वानासन 6. साष्टाङ्ग नमस्कार आसन 7. भुञ्जगासन 8. पर्वतासन या अधोमुख श्वानासन 9. अश्वसंचलनासन 10. पादहस्तासन 11. हस्तोत्थासन 12. प्रार्थना आसन (इसमें नमस्कार आसन नहीं गिने तो यह 10 रहेंगे।)

सूर्यनमस्कार करने से पहले यह मंत्र उच्चारण करना चाहिए- हिरण्मयेन प्रात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखं । तत् त्वं पूषन् अपावृणु सत्यधर्माय दृष्टये ।। (ई.वा.उ. १५) O sun you are like a lid covering the golden vessel containing truth. So kindly open the entrance, enlighten me & lead me towards truth & virtuous acts. सूर्यनमस्कार उपयोगी आसनों, प्राणायाम व मुद्राओ की एक मिश्रित पद्धति है इसके एक चक्र ( Cycle) में बारह बार मुद्रा का परिवर्तन क्रम से होता है तथा प्रत्येक मुद्रा में एक विशेष बीज मन्त्र द्वारा सूर्य की स्तुति होती है वह बीज मन्त्र निम्न है- …………………………..

1. ॐ मित्राय नमः। 2. ॐ रवए नमः। 3. ॐ सूर्याय नमः। 4. ॐ भानवे नमः। 5. ॐ खगाए नमः। 6. ॐ पूष्णे नमः । 7. ॐ हिरण्यगर्भाय नमः। 8. ॐ मरीचये नमः। 9. ॐ आदित्याय नमः। 10. ॐ सवित्रे नमः। 11. ॐ अर्काय नमः। 12. ॐ भास्कराय नमः।

विधि :- 1. (प्रणामासन) सर्वप्रथम खड़े होकर हाथों को नमस्कार की मुद्रा मे रखते हुए वक्ष के सामने स्थिर करें सामान्य श्वास लेते हुए नेत्र बन्द कर बीज मन्त्र का उच्चारण करें। 2. (हस्त उत्तानासन) हाथों को शिर से ऊपर ले जाये व सीधा रखे तथा कमर से पीछे की ओर झुके वायु को अन्दर (पूरण) ले तथा कुछ देर कुम्भक लगायें।

3. (पादहस्तासन) वायु का रेचन करते हुए सीधी अवस्था में आये तत्पश्चात् कमर से नीचे की ओर झुकते हुए दोनों हाथ पैरों के दोनों पंजो के दोनों तरफ भूमि पर रखें तथा घुटने से माथे का स्पर्श करें। 4. (अश्व संचालनासन) हाथों को जमीन से टिकाकर एक पैर (बायाँ या दायाँ) पीछे की तरफ ले जायें, पंजा खड़ा रहे घुटना भूमि से हल्का स्पर्श करता हुआ रहे, दूसरा पैर मुड़ा रहे तथा उसका पंजा दोनों हाथों के बीच रहे, गर्दन को ऊपर का तरफ उठाते हुए तथा कमर को पीछे की तरफ झुकाते हुए वायु का पूरण करे तथा कुम्भक करें।

5. (चतुरंग दण्डासन) वायु का रेचनकरते हुए दूसरे पैर को भी पीछे की तरफ ले जाये शरीर का पूरा भार पैर व हाथ के पंजों पर टिका लें। 6. (अष्टांग प्रणामासन) पंजों, घुटनों, उदर व वक्ष को आसन पर टिकातेहुए अधोमुख स्थिति में लेट जायें। हथेलियो को वक्ष के दोनों ओर रखें। इस अवस्था में बाह्य कुम्भक करें। 7. (भुजंगासन) हथेलियों पर बल डालकर शरीर को कमर से ऊपर उठायें वायु का पूरण करे फिर कुम्भक करें। यह स्थिति भुजंगासन के समान है।

8. (चतुरंग दण्डासन) पुनः पांचवी स्थिति में वापस लौटें। वायु का रेचन करें। 9. ( अश्व संचालनासन) अवस्था चार की स्थिति में लौटे जो पैर पहलेपीछे लेकर गये थे उसे पहले आगे लायें। वायु का पूरण करें। 10. (पादहस्तासन) अवस्था तीन में लौटे। वायु का रेचन करें। 11. (हस्त उत्तानासन) अवस्था दो की स्थिति में लौटे। इसमें वायु का पूरण करें। 12. (प्रणामासन) अवस्था एक नमस्कार की स्थिति में आ जायें।

सूर्य नमस्कार के लाभ: सूर्य नमस्कार का नियमित अभ्यास शारीरिक, मानसिक व अध्यात्मिक लाभ पहुंचाता है। सूर्य नमस्कार करने से आसन व प्राणायाम से मिलने वाले लाभ के साथ साथ सूर्य किरणों का स्नान भी हो जाता है जिससे उनसे मिलने वाले लाभ की भी अभ्यासी को होती है। सूर्य किरणों के प्रभाव से त्वचा में विटामिन डी का निर्माण होता है। शरीर में ऊजी का संचार होता है, कार्य करने की क्षमती बढ़ती है, बौद्धिक क्षमता का विकास होता है। बहुत से रोग जैसे स्थौल्य, संधिरोग, अनिद्रा ( Insomnia) आदि में सूर्य नमस्कार विशेष लाभप्रद है।

जो व्यक्ति नित्य सूर्य नमस्कार का अभ्यास करते है वह स्वस्थ व जरा ( Geriatric problems) को दूर कर दीर्घ जीवन को प्राप्त करते है। आदित्यस्य नमस्कारान् ये कुर्वन्ति दिने दिने। आयु प्रज्ञा बलं वीर्य तेजस्तेषां च जायते ।। जो लोग प्रतिदिन सूर्य नमस्कार करते हैं उनकी आयु ( Age) प्रज्ञा ( Intelligence) बल ( Strength) वीर्य ( Courage) और तेज ( lustre) बढ़ता है।
Tags