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This Presentation is prepared for Graduate Students. A presentation consisting of basic information regarding the topic. Students are advised to get more information from recommended books and articles. This presentation is only for students and purely for academic purposes. The pictures/Maps included in the presentation are taken/copied from the internet. The presenter is thankful to them and herewith courtesy is given to all. This presentation is only for academic purposes.
Size: 2.48 MB
Language: none
Added: Dec 14, 2023
Slides: 19 pages
Slide Content
यशोवर्मन डॉ . विराग सोनटक्के सहायक प्राध्यापक प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति और पुरातत्व विभाग बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी
यशोवर्मन
प्रस्तावना कन्नोज हर्षवर्धन के काल में उत्तर भारत का राजनीतिक केंद्र था । हर्षवर्धन के मृत्यु के बाद से यशोवर्मन के उद्भव का काल अनिश्चित है। इस काल की कोई जानकारी नही कन्नोज के राजा के रूप में यशोवर्मन का उदय ईसवी सातवी -आठवीं शती में भारत में शक्तिशाली शासक कालक्रम में मतभेद : H. C. Raichaudhary : c.700 to 740 CE. V. Pathak: c.724-752 CE
स्त्रोत साहित्यिक गउडवहो (गौडवहो): राजकवि वाक्पति द्वारा लिखित प्राकृत काव्य ग्रंथ वप्पभट्टसूरिचरित (१३-१४ शती) प्रबंधक़ोष : राजशेखर (१३-१४ शती) प्रभावकचरित : प्रभचंद्र (१३-१४ शती) तीर्थकल्प : जिनप्रभासूरि (१४ वी शती) राजतरंगिणी : कल्हन
स्त्रोत प्रवासी वर्णन / चीनी ग्रंथ हुइ-चाओं : कोरियायी बौद्ध भिक्षु (ईसवी ७२७) हैं - ल्यू-शी : के नेतृत्व में संकलित “शांगवंश का प्राचीन इतिहास” (ईसवी ९४५) वैंग-पू : द्वारा संकलित “शांगवंश के विधान” (९६१ ईसवी) वैंग-चीन-जो और यांग-यी : द्वारा संकलित “शाही राजपत्रालय के सर्वाधिक महत्वपूर्ण आलेख” (ईसवी १००५-१०१३) यू-यांग-श्यू एवं सुंग़-चि : द्वारा संकलित “शांगवंश का नवीन इतिहास” (ईसवी १०६०) यशोवर्मन (इ-श-फो-मो) ने बौद्ध भिक्षु फ़ु अथवा पो-त-सिन= बुद्धसेंन को ७३९ में चीनी सम्राट (हेन-शुंग) के दरबार में भेजा
यशोवर्मन के राजवंश उत्पत्ति निश्चित सामग्री का अभाव गउडवहो : चंद्रवंशी जैन ग्रंथ : चंद्रगुप्त मौर्य के वंश का बुद्धप्रकाश : मौखरीकुल से संबंधित उपलब्ध प्रमाणों के आधार पर कोई अंतिम मत नही।
गउडवहो वाक्पतिराज द्वारा लिखी गई कृति, प्राकृत भाषा में उपलब्ध है। वाक्पतिराज कन्नौज के राजा यशोवर्मन राजकवी यशोवर्मन ने गौड़ (बंगाल) के राजा को पराजित किया उसकी घटना पर यह ग्रंथ आधारित है। प्रसिद्ध जर्मन विद्वान हेर्मान याकोबी इन्होंने इस ग्रंथ का काल ईसवी ७३३ माना है। ग्रंथ में पूर्ववर्ती भवभूती, भास, कालिदास का उल्लेख है। वाक्पति ने यशोवर्मा की स्तुति करते हुए उसे विष्णु का अवतार माना है। काव्य में यशोवर्मा के युद्ध के वर्णन, युद्ध कथाए, प्रदेश, क्षेत्र, निसर्ग आदि वर्णन है।
यशोवर्मन की दिग्विजय गउडवहो (गौडवहो): के अनुसार विंध्याचल मगध वंग दक्षिणापथ पारसिक क्षेत्र मरुदेश हिमालय की तलहटी का क्षेत्र
यशोवर्मन का युद्ध अभियान अनु क़्र युद्ध क्षेत्र राजा वर्णन १ विंध्याचल युद्ध अभियान की शुरूवात वर्तमान मिर्ज़ापुर ज़िला २ मगध मगहनाह (मगध) का राजा मगध का राजा भाग गया किंतु मारा गया ३ वंग वंग राजा ने यशोवर्मन की अधीनता स्वीकार की ४ दक्षिणापथ मलय पर्वत को पर कर दक्षिण की ओर गया। दक्षिणापथ के राजाओं ने यशोवर्मन की अधिसत्ता स्वीकार की ५ पारसिक क्षेत्र घोर युद्ध में पारसिक देश को परास्त किया तथा पश्चिमी घाट के क्षेत्रों से कर वसूला सिंध क्षेत्र प्रदेश रहा होगा ६ मरुदेश नर्मदा एवं समुद्र किनारे से मरुदेश (मारवाड़) पहुँचा , जहाँ से श्रीकण्ठ (थानेश्वर) और कुरुक्षेत्र होता हुआ अयोध्या पहुँचा। ७ हिमालय की तलहटी अयोध्या से पुनः हिमालय की तलहटी के प्रदेशों को जीतते हुए कन्नोज लौट आया ।
गौड़ राजा का वध यशोवर्मन ने मगध के राजा को परास्त किया इसकी पहचान परवर्ती गुप्त राजा जीवितगुप्त द्वितीय से की जाती है इस युद्ध के पश्च्यात यशोवर्मन का कानपुर, फ़तेहपुर एवं प्रयाग क्षेत्र पर पूर्ण अधिकार हो गया। कन्नौज क्षेत्र
यशोवर्मन के युद्ध वर्णन पर विद्वानो का मत स्मिथ : यशोवर्मन की युद्ध विजय को ऐतिहासिक कहा है। त्रिपाठी : गउडवहो के उल्लेख को केवल काव्यात्मक अनुभव मानते है। चीनी यात्री हुई-चाओं : “उस मध्य भारतीय राजा के शासित क्षेत्र अत्यंत विशाल थे, प्रायः राजा युद्धों में सेनाओं का नेतृत्व करता था, एवं प्रायः युद्दो में विजयी रहता था। नालंदा से यशोवर्मन के एक मंत्री के पुत्र मालद का बौद्ध भिक्षुओं के दान का अभिलेख (बिहार क्षेत्र कन्नोज के अधीन होने के प्रमाण) बिहार का यशोवर्मपुर (वर्तमान घोसरवा) यशोवर्मन ने युद्ध के पश्च्यात बसाया। दक्षिणापथ के अभियान के साक्ष्य में चालुक्य नरेश पुलकेशि के पपोत्र विजयादित्य के बदामी अभिलेख में किसी “ सकलोत्तरापथनाथ ” को युद्ध में हराने का प्रमाण है। नालंदा से यशोवर्मन के एक मंत्री के अभिलेख में मंत्री को उदीचीपति (उत्तर दिशा का रक्षक), मार्गपति (सीमाओं का रक्षक) कहा गया है। चीनी यात्री हुई-चाओं : पंजाब के कुछ क्षेत्रों पर विजय
यशोवर्मन एवं ललितादित्य समकालीन शासक यशोवर्मन : कन्नोज का राजा ललितादित्य : कश्मीर का राजा दोनो शक्तिशाली एवं महत्वकांक्षी चीनी सम्राट से अच्छे सम्बन्ध दूतों का आदान-प्रदान तिब्बतीयों को रोकने के लिए मित्रता तिब्बतीयों का दबाव कम होने पर राज्य की सीमाओं का टकराव
ललितादित्य से युद्ध युद्ध के संभवित कारण: चीनी वृत्त : जालंधर (पंजाब) के प्रदेश को राज्य में मिलाने की होड़ यशोवर्मन वयोवृद्ध होने के कारण ललितादित्य की साम्राज्य विस्तार की योजना ललितादित्य एवं यशोवर्मन में युद्ध का लम्बा दौर चला कोई भी हल ना-निकलने से संधि-वार्ताओं प्रारम्भ हुई राजतरंगिणी: किसका नाम पहले आए पर विवाद संधि-वार्ता भी असफल रही। पुनः युद्ध आरम्भ यशोवर्मन की युद्ध में हार हुई तथा उसने ललितादित्य की अधीनता स्वीकार की। कान्यकुब्ज़ राज्य क्षेत्र ललितादित्य के महल का आँगन हुआ एवं यशोवर्मन ललितादित्य की प्रसंशा करने में बाध्य हुआ। पंजाब, जालंधर, काँगड़ा और पूँच कश्मीर का क्षेत्र ललितादित्य ने अपने अधिनस्त राजाओं को दिया। कन्नौज एवं मध्य भारत के अनेक विद्वान कश्मीर में जा बसे
यशोवर्मा का साम्राज्य विस्तार Smith : हिमालय से नर्मदा एवं बंगाल R.S. Tripathi : स्तुतिपूर्ण विवेचन लेकिन मगध एवं बंगाल Hui-Chao : पंजाब, श्रावस्ती, कपिलवस्तु, वैशाली
कूटनीतिक संबंध चीन साथ अच्छे संबंध चीनी स्त्रोत : यशोवर्मन ने बौद्ध भिक्षु बुद्धसेंन को ईसवी ७३१ में चीन भेजा कश्मीर नरेश ललितादित्य के साथ शूरुवात में अच्छे संबंध चीनी स्त्रोत : ईसवी ७३६ में ललितादित्य द्वारा चीन में भेजा गया दूत दोनो के मैत्रिपूर्ण संबंध बताता है। अरबों एवं तिब्बतियों के विरुद्ध संगठित
यशोवर्मन का तिथिक्रम कल्हन : ईसवी ७२४-७६० चालुक्य नरेश विजयदित्य ने सकलोत्तरापथनाथ को ईसवी ६९६ में पराजित करने का वर्णन है। ईसवी ७३६ में ललितादित्य ने चीन में राजदूत भेजा था। स्मिथ: यशोवर्मन x ललितादित्य युद्ध तिथि संभवतः ७४० ईसवी पाठक : संभवतः यशोवर्मन की मृत्यु ईसवी ७५२ में हुई होगी।
यशोवर्मन की उपलब्धियाँ जिस तेज़ी से उत्थान , उतनी ही तीव्रता से पतन कन्नोज का गरिमामयी काल यशोवर्मन ने मगध में अपने नाम से नगर बसाया, विहार बनवाए। राजकवि वाक्पति: गउडवहो , भवभूति : महावीरचरित म, उत्तररामचरितम, मालतीमाधव (नाटक) साहित्य प्रेमी एवं कवि यशोवर्मन को सुभाषित ग्रथों के कुछ पद्यों और रामाभ्युदय नाटक का रचयिता कहा जाता है चीन से सम्पर्क कन्नोज का अंतिम स्थिर शासक