गुप्त कालीन अर्थव्यवस्था .pptx, Economy of Gupta Period

VIRAGSONTAKKE 2,106 views 35 slides Apr 22, 2024
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About This Presentation

This Presentation is prepared for Graduate Students. A presentation consisting of basic information regarding the topic. Students are advised to get more information from recommended books and articles. This presentation is only for students and purely for academic purposes. The pictures/Maps includ...


Slide Content

गुप्त कालीन अर्थव्यवस्था Virag Sontakke Assistant Professor Center for Advanced Studies Department of A.I.H.C. & Archaeology, Banaras Hindu University

प्रस्तावना गुप्त काल : राजनीतिक एकीकरण एवं सुव्यवस्था का काल भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग ? सुदृढ़ अर्थव्यवस्था : राज्य का आधार विविध क्षेत्रों पर आधारित अर्थव्यवस्था व्यवसायों का बाहुल्य शिल्प कलाओं में प्रगति

गुप्त अर्थव्यवस्था के आधार Animal D omestication

कृषि कालिदास : कृषि = राष्ट्रीय समृद्धि का महत्वपूर्ण साधन नारद : धन कमाने के 7 साधनों में कृषि भी अमरकोश : कई प्रकार की कृषि एवं कृषकों का उल्लेख गुप्त अभिलेख : कई प्रकार की भूमि- क्षेत्र = कृषि की गई भूमि खिल = भूमि जिस पर कृषि नहीं अप्रहित = जंगली भूमि वस्ती = रहने योग्य भूमि खिल भूमि को कृषि योग्य भूमि बनाने हेतु निरंतर प्रयास खेतों को खाली छोड़ना अनुचित एवं हानिकारक भूमि मापन हेतु विभिन्न मानदंड फसल की सुरक्षा की समुचित व्यवस्था करना उनके स्वामियों का उत्तरदायित्व अमरकोश : कई प्रकार के हलों के विवरण- हल, लांगल, सीर, गोदारण बृहस्पति : हल के आकार-प्रकार की चर्चा वराहमिहिर : सालाना दो फसल-पर्वसस्य(पतझड़ में तैयार=धान), अपरसस्य(ग्रीष्म में तैयार= गेंहू,जौ)

कृषि उत्पाद: साहित्यिक साक्ष्य अन्न : गेंहू, बाजरा, धान दलहन : उर्द, मूंग, मसूर, अरहर तिलहन : तिल , सरसों सब्ज़ियाँ : खीरा, प्याज़, लहसन, अदरक, लौकी, कद्दू, मटर फल : आम, नारियल, कटहल, अनार, अंगूर, केला नकदी फ़सले : कपास, गन्ना , सुपारी अन्य : चना , कुलथी , खजूर कालिदास : धान की खेती अधिक; भिन्न प्रकार के धान; मगध का धन सुगंधित

सिंचाई अमरकोश : कृषि हेतु सिंचाई आवश्यक राज्य में सिंचाई के पर्याप्त साधनों की व्यवस्था करना धर्मनिष्ठ राजा की विशेषता स्कंदगुप्त का जूनागढ़ अभिलेख : मौर्य काल में निर्मित सुदर्शन झील, अशोक के प्रांताधिकारी द्वारा नहरों का निर्माण, महाक्षत्रप रुद्रदामन के काल मे जीर्णोद्धार, गुप्त अधिकारी पर्णदत्त तथा उसके पुत्र चक्रपालित द्वारा पुनरुद्धार

सिंचाई के साधन मुख्यतः वर्षा पर आधारित अमरकोश : वर्षा के कृषि मे महत्व पर गहन चर्चा कुएं के माध्यम से वर्ष के जल को तालाबों, जलाशयों में संचित कर के बांधों के माध्यम से नारद : सिंचाई हेतु 1 तड़ाग, कुएं से सौ गुणा अधिक महत्वपूर्ण कात्यायन : तड़ाग के सीमा एवं प्रयोग विवादों की चर्चा

कृषक अमरकोश : कृषक के 4 नाम- क्षेत्राजीव,कर्षक, कृषिक, कृषिवल अन्य कालों की अपेक्षा, कृषकों की स्थिति में गिरावट भूमि दान की प्रथा से कृषक प्रभावित करों की संख्या में वृद्धि वृष्टि = बेगार का प्रचालन

पशुपालन साहित्यिक साक्ष्य : चरवाहा = गोप, गोसंख्य, गोपालक, वल्लभ, आभीर पशु उत्पादों का उपभोग, यातायात-बोझा ढोने में प्रयोग,बाजी लगाकर पशुओं के युद्ध,शिकार कमंदक, कात्यायन : पशुपालन वैश्य वर्ण का प्रमुख व्यवसाय नारद : पशुपालन से अर्जित धन = श्वेत धन वराहमिहिर : गुप्त काल मे पशुओं की अच्छी स्थिति कात्यायन : पारिवारिक संपत्ति के विभाजन पर चरागाह का बंटवारा नहीं पशु चोरी पर दंड का विधान अमरकोश : 9 प्रकार के मवेशी, 13 प्रकार के घोड़े, 9 प्रकार के बैल, 15 प्रकार के हाथी विष्णुपुराण, सांची अभिलेख, एरण अभिलेख : गोवध = महापातक

कला एवं शिल्प नए शिल्प एवं उद्योगों मे उन्नति शिल्पियों को शूद्रों की श्रेणी मे रखा गया परंतु उनके प्रति उदार दृष्टिकोण रखने की बात शिल्पियों की स्थिति में सुधार अपराध करने पर उनके उपकरण लेने का वैधानिक अधिकार नहीं बृहस्पति : सोने, चांदी, धागे, लकड़ी, पत्थर, चर्म से भिन्न वस्तुएँ बनाने वाला = शिल्पी कात्यायन : 4 प्रकार के शिल्पी - अंतेवासी, कुछ प्रशिक्षिण प्राप्त शिल्पी, दक्ष शिल्पी, गुरु शिल्पी बृहस्पति : शिल्प की शिक्षा निश्चित कालावधी में आचार्य के पास रहकर प्राप्त

कलात्मक वस्तुओं के प्रकार

उद्योग- धंधे

वस्त्र उद्योग अमरकोश : चार प्रकार के वस्त्र वर्णित- छाल से बने, फल के रेशे से बने, रेशमी वस्त्र, पशमीना गुप्त कालीन साहित्य : वस्त्र निर्माण तकनीक , जुलाहे एवं करघे का उल्लेख नारद स्मृति : पहाड़ी बकरे के ऊन से निर्मित कंबल का उल्लेख अमरकोश : कंबल के प्रकार – भेड़ के बालों का, खरगोश के बालों का रेशम, कपास के कई प्रकार ज्ञात रेशमी वस्त्रों की मांग बढ़ी मंदसौर अभिलेख : तंतुवाय श्रेणी का उल्लेख कपास के लिए प्रसिद्ध : मथुरा, बंगाल, गुजरात तमिलनाडु रेशम के लिए प्रसिद्ध : बनारस

धातु-खनिज उद्योग धातु वस्तुओं का बहुतायत मे उत्पाद स्वर्ण, रजत, ताम्र, लौह, सीसा इत्यादि वात्स्यायन : 64 कलाओं में एक धातुकर्म कई धातुओं मे सिक्के प्राप्त मिश्रित धातु का ज्ञान : धातु कर्म का विशिष्ट ज्ञान पुरातात्विक उत्खनन : धातुकर्म से संबंधित गुप्त कालीन भट्टियाँ प्राप्त अमरकोश : स्वर्ण कारीगरी का उत्कृष्ट स्तर महरौली का स्तम्भ : लौह तकनीक का सर्वोच्च उदाहरण

लौह ताम्र स्वर्ण रजत

Sultanganj bronze image

मनका कार बढ़ई कुम्हार चर्मकार

Terracotta Art

Ceramics of Gupta period

स्थापत्य एवं मूर्ति निर्माण उद्योग गुप्त मूर्ति कला : श्रेष्ठ, परिष्कृत, सुंदर, समृद्ध विभिन्न माध्यम : पाषाण, धातु गुप्त कालीन कई मूर्तियाँ प्राप्त सारनाथ कला केंद्र : पाषाण मूर्ति निर्माण धातु की ढली मूर्तियाँ Faxian : 25 मी. ऊंची बुद्ध की ताम्र मूर्ति का उल्लेख गुप्त काल : मंदिर निर्माण का प्रारंभ सांची का मंदिर संख्या 17, नाचना कुठार, देवगढ़ मंदिर, मनियार मठ, भीतरगॉव मंदिर इत्यादि

चित्रकला विलक्षण चित्रकला प्रशिक्षित –दक्ष चित्रकार चित्रकला की उन्नत तकनीक = फ्रेस्को प्राकृतिक रंगों का प्रयोग बाघ गुहाएँ अजंता की कला पर प्रभाव?

अन्य व्यवसाय

कर व्यवस्था 29 Tax was major source of Revenue collection Tax was lesser than Mauryan period Inscriptions: 1/6 % of agricultural tax Bhag , Bhog and Kar = main taxes भाग : Agricultural tax 1/6 भोग : Periodic taxes in from of fruits, flowers, milk and dairy products कर : Not clearly identified. हिरण्य : Either cash or collected from cash crop शुल्क : Bihar pillar inscription mentions “ Shoulkik ” an officer who collect this tax. उपरिकर व उद्रन्ग : new taxes started from this period.

श्रेणी संगठन के प्रमाण Raghuvansh : Architect Shreni ( vastukar ) Mudrarakshas : Gold Smiths Varahmihir : Carpenter, Weavers, Leather worker, painter, Indore copper plate of Skandgupta period: Guild of oil-men endowment for maintenance of oil lamp in sun temple. Mandsore inscription Seals-sealing Bhita : Kulik nigam Vaishali : Shreshthi nigam Basadh (Vaishali): Shershthi -Kulik nigam . Basadh (Vaishali): Shreshthi-Sarthvaha-kulik nigam (joint organization)

व्यापार एवं वाणिज्य स्थल एवं जल मार्गों का प्रयोग पूर्वी एवं पश्चिमी देशों से व्यापार पश्चिम : Sri Lanka, Persia, Arabia, Byzantine Empire, Africa, and even further west. पूर्व : China, Burma, and South East Asia and Sri l anka . प्रमुख वस्तुएँ : रेशम, मसाले, वस्त्र, धातु, हाथीदांत, समुद्रीय वस्तुएँ

व्यापार की वस्तुएँ निर्यात Ivory Spices Medicines Semi-precious stones Silk Cloths Cotton Cloths Animals: Rhino Birds saffron आयात Gold Silver Copper Lead Horses Maids Dry fruits Conch

आंतरिक व्यापार Vaishyas were associated in trade Weekly markets Market known as “Vidani”, where traders assembled Amarkosh : Roads had shops at both sides Excavations at Bhita : Remains of Market area South India: Spices Himalaya: Saffron Elephants: Kalinga, Assam Horse: Kamboj Salt: Sea, Mines Silk: Bengal Wool: Himalayas, Maharashtra

विदेशी व्यापार Western coast: Egypt, central Asia, Europe & Africa Gupta Gold coin found in Madagaskar Eastern coast: South-east Asia, China, Java etc पत्तन : Deval, Bhadoch , Shurparak (west) and Kalyan , Tamralipti , Kangod , Brighukachchha (east) Well connected through inland routes from all parts of India. India , a part of an international trade network which included other great classical empires of the day, the Han Dynasty ( China ) in the east and the Rom an empire in the west. 

निष्कर्ष Gupta period: a sophisticated culture with innovative advances in literature, arts, and sciences.  The rulers sponsored advances in science, painting, textiles, architecture, and literature. Economy prosperous. Agriculture = main source of revenue. Beginning of Feudalism. Increase in Art & craft faction of economy. Slight decline of International trade.