SHIVNA SAHITYIKI OCTOBER DECEMBER 2025.pdf

shivnaprakashan 0 views 76 slides Oct 10, 2025
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About This Presentation

SHIVNA SAHITYIKI OCTOBER DECEMBER 2025


Slide Content

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 20251 72 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 2025
शोध, समीा तथा आलोचना क अंतरा ीय पिका
वष : 10, अंक : 39, ैमािसक : अटबर-िदसबर 2025
RNI NUMBER :- MPHIN/2016/67929
ISSN : 2455-9717
संरक एवं सलाहकार संपादक
सुधा ओम ढगरा
संपादक
पंकज सुबीर
कायकारी संपादक एवं क़ानूनी सलाहकार
शहरयार (एडवोकट)
सह संपादक
शैले शरण, आकाश माथुर
िडज़ायिनंग
सनी गोवामी, सुनील पेरवाल, िशवम गोवामी
संपादकय एवं काशकय कायालय
पी. सी. लैब, शॉप नं. 3-4-5-6, साट कॉ लैस बेसमट
बस टड क सामने, सीहोर, मय देश 466001
दूरभाष : +91-7562405545
मोबाइल : +91-9806162184 (शहरयार)
ईमेल- [email protected]
ऑनलाइन 'िशवना सािह यक'
http://www.vibhom.com/shivnasahityiki.html
फसबुक पर 'िशवना सािह यक’
https://www.facebook.com/shivnasahityiki
एक ित : 50 पये, (िवदेश हतु 5 डॉलर $5)
सदयता शुक
3000 पये (पाँच वष), 6000 पये (दस वष)
11000 पये (आजीवन सदयता)
बक खाते का िववरण-
Name: Shivna Sahityiki
Bank Name: Bank Of Baroda,
Branch: Sehore (M.P.)
Account Number: 30010200000313
IFSC Code: BARB0SEHORE
संपादन, काशन एवं संचालन पूणतः अवैतिनक, अयावसाियक।
पिका म कािशत सामी लेखक क िनजी िवचार ह। संपादक
तथा काशक का उनसे सहमत होना आवयक नह ह। पिका म
कािशत रचना म य िवचार का पूण उरदाियव लेखक पर
होगा। पिका जनवरी, अैल, जुलाई तथा अटबर माह म कािशत
होगी। समत िववाद का याय े सीहोर (मय देश) रहगा।
आवरण किवता
अेय
वविधकारी एवं काशक पंकज कमार पुरोिहत क िलए पी. सी. लैब, शॉप नं. 3-4-5-6, साट कॉ लैस बेसमट, बस टड क सामने, सीहोर, मय देश 466001 से कािशत
तथा मुक ?बैर शेख़ ारा शाइन िंटस, लॉट नं. 7, बी-2, ?ािलटी परमा, इिदरा ेस कॉ लैस, ज़ोन 1, एम पी नगर, भोपाल, मय देश 462011 से मुित।
आवरण िच
पंकज सुबीर

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 20253 2 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 2025
आवरण किवता
तुम और म / अेय
संपादकय / शहरयार / 3
यंय िच / काजल कमार / 4
शोध आलोचना
समय बोलता ह
समीक : डॉ. गोपाल शमा 'सहर'
संपादक : क़मर मेवाड़ी / 5
सािहय क गुमटी
समीक : आर पी तोमर
लेखक : धमपाल मह जैन / 9
कगार क आिख़री िसर पर
समीक : कसुम लता पांडय
संपादक : ताप दीित / 12
संिदध
समीक : डॉ. िदलबागिसंह िवक
लेखक : तेजे शमा / 15
डढ़ बूँद पानी
समीक : लाल देवे कमार ीवातव
लेखक : ेमा ीवातव / 18
क म पुतक
ख़ैबर दरा
समीक : अशोक ियदश, दीप कात,
जया जादवानी / लेखक : पंकज सुबीर / 21
नद और जाग
समीक : डॉ. मधु संधु, मनीषा कले /
लेखक : उजला लोिहया / 26
मन क चौह पर बोनसाई
समीक : दीपक िगरकर, डॉ. मधु संधु, डॉ.
सिवता मोहन / लेखक : सुधा जुगरान / 29
उमीद क तरह लौटना तुम
समीक : काश कांत, शैले शरण, मनीष
वै / लेखक : पंकज सुबीर / 36
पुतक समीा
ेम गिणत और अय कहािनयाँ
समीक : पूजा अ नहोी
लेखक : सदीप तोमर / 40
मेरी मदरबोड
समीक : सरोिजनी नौिटयाल
लेखक : अचना पैयूली / 42
गुलाबी इछाएँ
समीक : दीपक िगरकर
लेखक : मनीष वै / 44
अगम बह दरयाव
समीक : राजेश कमार िसहा
लेखक : िशवमूित / 46
मेरी तलब का सामान
समीक : दीपक िगरकर
लेखक : र म भाराज / 48
नया सवेरा
समीक : ताप सहगल
लेखक : अिनल गोयल / 50
किवता का अांश
समीक : दीपक िगरकर
लेखक : साधना अवाल / 52
धूप से गुज़रते ए
समीक : पूनम मनु
लेखक : राजेश कमार िसहा / 54
अधजले ठ
समीक : डॉटर िवजया सती
लेखक : हसा दीप / 56
घाघ और उनक कहावत
समीक : डॉ. राजकमार
लेखक : डॉ. सय िय पाडय / 58
थक यू यारा
समीक : शेफािलका ीवातव
लेखक : अिमता िवेदी / 60
आईना हसता ह
समीक : संजय वमा ' '
लेखक : डॉ. दीपा मनीष यास / 62
बाँसलोई म बहर ऋतु
समीक : राज नागदेव
लेखक : सुशील कमार / 63
शोध आलेख
सुधा ओम ढगरा क सािहय म भारतीय
जीवन s??
शािलनी / डॉ. सीमा शमा / 64
अमरकांत का कथा-सािहय : िनन
मयमवग क ी संवेदना का एक
महवपूण दतावेज़
दीपक िगरकर / 69
शहरयार
िशवना काशन, पी. सी. लैब,
साट कॉ लैस बेसमट
बस टड क सामने, सीहोर, म..
466001,
मोबाइल- 9806162184
ईमेल- [email protected]
संपादकय
िहदी सािहय म अब जो बात धीर-धीर बड़ी समया बनती िदखाई दे रही ह, वह ये ह िक
लेखक पहले क मुकाबले अिधक लापरवाह होता जा रहा ह। लापरवाह होता जा रहा ह भाषा को
लेकर भी और िवधागत िशप तथा अनुशासन को लेकर भी। पहले एक समय ऐसा होता था िक
लेखक अपनी भाषा को लेकर सबसे यादा सजग होता था। लेखक क रचना क भाषा को
मानक माना जाता था। वतनी क ग़लितय को ठीक करने भी लोग लेखक क रचना क पास
जाते थे। लेिकन अब थित यह हो गयी ह िक जो लेखक नह ह, वह कछ भी िलखते समय
अितर सावधानी बरतता ह िक उसक िलखे म कह कोई ग़लती नह चली जाये, लेिकन
लेखक यह सावधानी नह बरतता, इस कारण लेखक क तुलना म ग़ैर-लेखक क भाषा यादा
बेहतर होती ह। पिका से तथा काशन से जुड़ा होने क कारण िशवना क टीम क पास
लेखक ारा िलखी गयी रचना उसी प म आती ह, िजस प म िलखी गयी होती ह, उस रचना
क भाषा को यिद आप पढ़ ल तो आप भी मुझसे असहमत नह रहगे। अिधकांशत: ऐसी-ऐसी
भाषा तथा वतनी क ग़लितयाँ िमलती ह, जो अ य होती ह। आपक पास जो रचना प चती ह,
वह दो या तीन बार ूफ़ लगने क बाद प चती ह, इसिलए असिलयत से आप अनिभ रहते ह।
यह तो ई भाषा क बात अब यिद िवधागत अनुशासन क बात क जाये तो उसम भी लेखक
िकसी कार क अनुशासन को मानने को तैयार नह ह इन िदन। जैसे इस पिका म कािशत
होने वाली मुख िवधा समीा क ही बात क जाये तो इन िदन समीा लेखन का काय कवल
परपर उपक?त करने क िलए ही हो रहा ह। इसी अंक म एक समीा आयी, जो एक लेखक
ारा दूसर लेखक क िकताब पर क गयी थी। मने उस समीा को पढ़ना ारभ िकया तो अपना
िसर पीट िलया। समीा म बाक़ सब कछ था मगर समीा नह थी। सबसे पहले समीक ने
लेखक क साथ अपने पुराने संबंध क संमरण से समीा ारभ क। तीन-चार पैरााफ़ तक
संमरण ही चलते रह। संमरण समा? होने क बाद समीक ने िकताब क आवरण तथा
शीषक पर बात शु कर दी। आगे क चार-पाँच पैरााफ़ तक बात कवल आवरण तथा शीषक
पर ही चलती रही। बत िवतार क साथ शीषक क बार म उदाहरण दे-देकर ?ब चचा क
गयी। ज़ािहर-सी बात ह िक सबम कवल शंसा-भाव ही था। अभी भी िकताब क बार म कोई
समीा ारभ नह हो पाई थी। आवरण तथा शीषक क बात समा? ई तो उसक बाद अब
समीक ने िकताब क समपण पर बात ारभ कर दी। समीक क लेखक क परवार क साथ
संबंध ह, और चूँिक लेखक ने अपनी िकताब अपने िकसी परजन को ही समिपत क थी,
इसिलए समीक ने एक बार िफर उस य को लेकर अपने संमरण सुनाने ारभ कर िदये,
िजस परजन को िकताब समिपत क गयी थी। लंबे-लंबे संमरण उस परजन को लेकर िलखने
म क़रीब पाँच-छह पैरााफ़ और लगा िदये गये। अभी वह िकताब जो उपयास थी, उसक बार
म कोई चचा समीा म ारभ ही नह ई थी। समपण पर चचा समा? होते ही अब समीक ने
िकताब को लेकर िलखी गयी दो तीन भूिमका पर बात ारभ कर दी। तीन भूिमका म
लेखक ने जो कछ िकताब को लेकर िलखा था, उसम से दस-बीस पं याँ ले-लेकर उनक ही
याया कर दी गयी। साथ ही यह भी िक िजसने यह भूिमका िलखी ह उससे समीक क भी
या संबंध रह ह। पं य क बहाने एक-एक संमरण उन भूिमका लेखक पर भी िलख िदया
गया। हाँ यहाँ पर यह ज़र िकया गया िक जो कछ भूिमका लेखक ने उपयास को लेकर
िलखा था, उसम अपने भी वर जोड़ िदये गये। भूिमका क बार म बात पूरी ई और समीा
भी पूरी हो गयी। म ठगा सा बैठा था। सब कछ िलखा गया था मगर उस उपयास पर समीा क
िलए एक शद भी नह िलखा गया था। इसक अलावा भाषा तथा वतनी म जो ग़लितयाँ थ, वे तो
थ ही। अब िशकायत आयेगी िक आपने छापी नह समीा।
भाषा, िशप तथा
िवधागत अनुशासन
टटना िहदी क िलए
िचंता क बात ह
आपका ही
शहरयार
शोध, समीा तथा आलोचना
क अंतरा ीय पिका
वष : 10, अंक : 39,
ैमािसक : अटबर-िदसबर 2025
इस अंक म

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 20253 2 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 2025
आवरण किवता
तुम और म / अेय
संपादकय / शहरयार / 3
यंय िच / काजल कमार / 4
शोध आलोचना
समय बोलता ह
समीक : डॉ. गोपाल शमा 'सहर'
संपादक : क़मर मेवाड़ी / 5
सािहय क गुमटी
समीक : आर पी तोमर
लेखक : धमपाल मह जैन / 9
कगार क आिख़री िसर पर
समीक : कसुम लता पांडय
संपादक : ताप दीित / 12
संिदध
समीक : डॉ. िदलबागिसंह िवक
लेखक : तेजे शमा / 15
डढ़ बूँद पानी
समीक : लाल देवे कमार ीवातव
लेखक : ेमा ीवातव / 18
क म पुतक
ख़ैबर दरा
समीक : अशोक ियदश, दीप कात,
जया जादवानी / लेखक : पंकज सुबीर / 21
नद और जाग
समीक : डॉ. मधु संधु, मनीषा कले /
लेखक : उजला लोिहया / 26
मन क चौह पर बोनसाई
समीक : दीपक िगरकर, डॉ. मधु संधु, डॉ.
सिवता मोहन / लेखक : सुधा जुगरान / 29
उमीद क तरह लौटना तुम
समीक : काश कांत, शैले शरण, मनीष
वै / लेखक : पंकज सुबीर / 36
पुतक समीा
ेम गिणत और अय कहािनयाँ
समीक : पूजा अ नहोी
लेखक : सदीप तोमर / 40
मेरी मदरबोड
समीक : सरोिजनी नौिटयाल
लेखक : अचना पैयूली / 42
गुलाबी इछाएँ
समीक : दीपक िगरकर
लेखक : मनीष वै / 44
अगम बह दरयाव
समीक : राजेश कमार िसहा
लेखक : िशवमूित / 46
मेरी तलब का सामान
समीक : दीपक िगरकर
लेखक : र म भाराज / 48
नया सवेरा
समीक : ताप सहगल
लेखक : अिनल गोयल / 50
किवता का अांश
समीक : दीपक िगरकर
लेखक : साधना अवाल / 52
धूप से गुज़रते ए
समीक : पूनम मनु
लेखक : राजेश कमार िसहा / 54
अधजले ठ
समीक : डॉटर िवजया सती
लेखक : हसा दीप / 56
घाघ और उनक कहावत
समीक : डॉ. राजकमार
लेखक : डॉ. सय िय पाडय / 58
थक यू यारा
समीक : शेफािलका ीवातव
लेखक : अिमता िवेदी / 60
आईना हसता ह
समीक : संजय वमा ' '
लेखक : डॉ. दीपा मनीष यास / 62
बाँसलोई म बहर ऋतु
समीक : राज नागदेव
लेखक : सुशील कमार / 63
शोध आलेख
सुधा ओम ढगरा क सािहय म भारतीय
जीवन s??
शािलनी / डॉ. सीमा शमा / 64
अमरकांत का कथा-सािहय : िनन
मयमवग क ी संवेदना का एक
महवपूण दतावेज़
दीपक िगरकर / 69
शहरयार
िशवना काशन, पी. सी. लैब,
साट कॉ लैस बेसमट
बस टड क सामने, सीहोर, म..
466001,
मोबाइल- 9806162184
ईमेल- [email protected]
संपादकय
िहदी सािहय म अब जो बात धीर-धीर बड़ी समया बनती िदखाई दे रही ह, वह ये ह िक
लेखक पहले क मुकाबले अिधक लापरवाह होता जा रहा ह। लापरवाह होता जा रहा ह भाषा को
लेकर भी और िवधागत िशप तथा अनुशासन को लेकर भी। पहले एक समय ऐसा होता था िक
लेखक अपनी भाषा को लेकर सबसे यादा सजग होता था। लेखक क रचना क भाषा को
मानक माना जाता था। वतनी क ग़लितय को ठीक करने भी लोग लेखक क रचना क पास
जाते थे। लेिकन अब थित यह हो गयी ह िक जो लेखक नह ह, वह कछ भी िलखते समय
अितर सावधानी बरतता ह िक उसक िलखे म कह कोई ग़लती नह चली जाये, लेिकन
लेखक यह सावधानी नह बरतता, इस कारण लेखक क तुलना म ग़ैर-लेखक क भाषा यादा
बेहतर होती ह। पिका से तथा काशन से जुड़ा होने क कारण िशवना क टीम क पास
लेखक ारा िलखी गयी रचना उसी प म आती ह, िजस प म िलखी गयी होती ह, उस रचना
क भाषा को यिद आप पढ़ ल तो आप भी मुझसे असहमत नह रहगे। अिधकांशत: ऐसी-ऐसी
भाषा तथा वतनी क ग़लितयाँ िमलती ह, जो अ य होती ह। आपक पास जो रचना प चती ह,
वह दो या तीन बार ूफ़ लगने क बाद प चती ह, इसिलए असिलयत से आप अनिभ रहते ह।
यह तो ई भाषा क बात अब यिद िवधागत अनुशासन क बात क जाये तो उसम भी लेखक
िकसी कार क अनुशासन को मानने को तैयार नह ह इन िदन। जैसे इस पिका म कािशत
होने वाली मुख िवधा समीा क ही बात क जाये तो इन िदन समीा लेखन का काय कवल
परपर उपक?त करने क िलए ही हो रहा ह। इसी अंक म एक समीा आयी, जो एक लेखक
ारा दूसर लेखक क िकताब पर क गयी थी। मने उस समीा को पढ़ना ारभ िकया तो अपना
िसर पीट िलया। समीा म बाक़ सब कछ था मगर समीा नह थी। सबसे पहले समीक ने
लेखक क साथ अपने पुराने संबंध क संमरण से समीा ारभ क। तीन-चार पैरााफ़ तक
संमरण ही चलते रह। संमरण समा? होने क बाद समीक ने िकताब क आवरण तथा
शीषक पर बात शु कर दी। आगे क चार-पाँच पैरााफ़ तक बात कवल आवरण तथा शीषक
पर ही चलती रही। बत िवतार क साथ शीषक क बार म उदाहरण दे-देकर ?ब चचा क
गयी। ज़ािहर-सी बात ह िक सबम कवल शंसा-भाव ही था। अभी भी िकताब क बार म कोई
समीा ारभ नह हो पाई थी। आवरण तथा शीषक क बात समा? ई तो उसक बाद अब
समीक ने िकताब क समपण पर बात ारभ कर दी। समीक क लेखक क परवार क साथ
संबंध ह, और चूँिक लेखक ने अपनी िकताब अपने िकसी परजन को ही समिपत क थी,
इसिलए समीक ने एक बार िफर उस य को लेकर अपने संमरण सुनाने ारभ कर िदये,
िजस परजन को िकताब समिपत क गयी थी। लंबे-लंबे संमरण उस परजन को लेकर िलखने
म क़रीब पाँच-छह पैरााफ़ और लगा िदये गये। अभी वह िकताब जो उपयास थी, उसक बार
म कोई चचा समीा म ारभ ही नह ई थी। समपण पर चचा समा? होते ही अब समीक ने
िकताब को लेकर िलखी गयी दो तीन भूिमका पर बात ारभ कर दी। तीन भूिमका म
लेखक ने जो कछ िकताब को लेकर िलखा था, उसम से दस-बीस पं याँ ले-लेकर उनक ही
याया कर दी गयी। साथ ही यह भी िक िजसने यह भूिमका िलखी ह उससे समीक क भी
या संबंध रह ह। पं य क बहाने एक-एक संमरण उन भूिमका लेखक पर भी िलख िदया
गया। हाँ यहाँ पर यह ज़र िकया गया िक जो कछ भूिमका लेखक ने उपयास को लेकर
िलखा था, उसम अपने भी वर जोड़ िदये गये। भूिमका क बार म बात पूरी ई और समीा
भी पूरी हो गयी। म ठगा सा बैठा था। सब कछ िलखा गया था मगर उस उपयास पर समीा क
िलए एक शद भी नह िलखा गया था। इसक अलावा भाषा तथा वतनी म जो ग़लितयाँ थ, वे तो
थ ही। अब िशकायत आयेगी िक आपने छापी नह समीा।
भाषा, िशप तथा
िवधागत अनुशासन
टटना िहदी क िलए
िचंता क बात ह
आपका ही
शहरयार
शोध, समीा तथा आलोचना
क अंतरा ीय पिका
वष : 10, अंक : 39,
ैमािसक : अटबर-िदसबर 2025
इस अंक म

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 20255 4 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 2025
यंय िच-
काजल कमार
[email protected]
िव सािहय म प लेखन क सुदीघ परपरा रही ह। प संदेश भेजने का सश? एवं
गोपानीय मायम रहा ह। ाचीन संकत सािहय एवं लोक-परपरा म प िलखे जाते रह ह।
काका कालेलकर ने कहा ह िक प एवं डायरी म सच और िजतना आवयक हो उतना ही
िलखा जाता ह, अतः ये दोन ामािणक दतावेज़ होते ह। सािहय म लेखक, कलाकार क प
क अनेक कार हो सकते ह, परतु मुयतः तीन कार क प होते ह। पहले, वे प जो अयंत
िनजी और गु? होते ह, जो अपने िकसी अंतरग को िलखे जाते ह। दूसर, प वे जो सािहयकार
एक दूसर को परपर िलखते ह, िजनम कशल-ेम क समाचार सिहत प-पिका एव
समसामियक िवषय पर िचंता एवं िचंतन होता ह। तीसर, प-पिका क संपादक क नाम
िलखे जाते ह। कालांतर म ये प कािशत होने पर सावजिनक हो जाते ह। क़मर मेवाड़ी
संपािदत 'समय बोलता ह' शीषक से कािशत पुतक म िवयात लेखक क प किव,
कहानीकार, एवं 'संबोधन' क संपादक क़मर मेवाड़ी क नाम िलखे गए ह। समयाविध क s??
से ये प बीसव सदी क सातव दशक से लेकर इकसव सदी क दूसर दशक क पूण होने तक
क प ह, यानी लगभग पतालीस वषाविध म िलखे गए ह। पुतक म इन प का म तारीख़-
वष क अनुसार न होकर लेखक क अनुसार ह। यिद िकसी लेखक ने एकािधक प िलखे ह तो
उनको एक साथ संकिलत िकया गया ह। 'समय बोलता ह' पुतक म नबे लेखक क एकसौ
इकतालीस प ह। पुतक क आरभ म डॉ. नर िनमल क "यार क यार क़मर मेवाड़ी क नाम"
शीषक से िवतृत भूिमका और परिश म क़मर मेवाड़ी का संि परचय ह। वष 1975 से
लेकर 2019 तक क वष क अंतराल म िलखे गए इन प म जहाँ एक ओर लेखक क आपसी
संबंध, अतःराजनीित एवं खेम का पता चलता ह, वह उस समय क राजनैितक, सामीिजक
एवं आिथक थित क यौर सिहत बेहतर दुिनया क िलए लेखक क िचंता एवं िचतन का
उेख आ ह। इन प म काका कालेकलर क बात सही सािबत होती ई िदखाई देती ह।
अिधकांश प छोट ह, िसफ कछ प ह जो दो-तीन पृ म िलखे गए ह। इन प क िवषय-
वतु म राजथान क कांकरोली जैस छोट से शहर से पचास वष तक िनयिमत कािशत होती
रही पिका 'संबोधन' क सौव अंक तक क चचा ह और ह सश?, समिपत और िनडर
'संबोधन' क संपादक क़मर मेवाड़ी का लेखन एवं य व। ये प इस बात को रखांिकत
करते ह िक 'संबोधन' अपने समय क सच को अिभय करती िनिभक राीय पिका रही ह।
क़मर मेवाड़ी ने संपादकय एवं लेखकय ितबता क साथ आिथक संघष को झेलते ए
अयंत जीवट क साथ वष तक 'संबोधन' को कािशत िकया। लेखक से काशनाथ रचना
शोध-आलोचना
गोपाल सहर
28-29, योगीनगर सोसायटी-2
कपड़वंज (िजला-खेड़ा) गुजरात 387620
मोबाइल- 94278 54690
ईमेल- [email protected]
(प संकलन)
समय बोलता ह
समीक : डॉ. गोपाल शमा 'सहर'
संपादक : क़मर मेवाड़ी
काशक : ीसािहय काशन, नई
?·??

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 20255 4 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 2025
यंय िच-
काजल कमार
[email protected]
िव सािहय म प लेखन क सुदीघ परपरा रही ह। प संदेश भेजने का सश? एवं
गोपानीय मायम रहा ह। ाचीन संकत सािहय एवं लोक-परपरा म प िलखे जाते रह ह।
काका कालेलकर ने कहा ह िक प एवं डायरी म सच और िजतना आवयक हो उतना ही
िलखा जाता ह, अतः ये दोन ामािणक दतावेज़ होते ह। सािहय म लेखक, कलाकार क प
क अनेक कार हो सकते ह, परतु मुयतः तीन कार क प होते ह। पहले, वे प जो अयंत
िनजी और गु? होते ह, जो अपने िकसी अंतरग को िलखे जाते ह। दूसर, प वे जो सािहयकार
एक दूसर को परपर िलखते ह, िजनम कशल-ेम क समाचार सिहत प-पिका एव
समसामियक िवषय पर िचंता एवं िचंतन होता ह। तीसर, प-पिका क संपादक क नाम
िलखे जाते ह। कालांतर म ये प कािशत होने पर सावजिनक हो जाते ह। क़मर मेवाड़ी
संपािदत 'समय बोलता ह' शीषक से कािशत पुतक म िवयात लेखक क प किव,
कहानीकार, एवं 'संबोधन' क संपादक क़मर मेवाड़ी क नाम िलखे गए ह। समयाविध क s??
से ये प बीसव सदी क सातव दशक से लेकर इकसव सदी क दूसर दशक क पूण होने तक
क प ह, यानी लगभग पतालीस वषाविध म िलखे गए ह। पुतक म इन प का म तारीख़-
वष क अनुसार न होकर लेखक क अनुसार ह। यिद िकसी लेखक ने एकािधक प िलखे ह तो
उनको एक साथ संकिलत िकया गया ह। 'समय बोलता ह' पुतक म नबे लेखक क एकसौ
इकतालीस प ह। पुतक क आरभ म डॉ. नर िनमल क "यार क यार क़मर मेवाड़ी क नाम"
शीषक से िवतृत भूिमका और परिश म क़मर मेवाड़ी का संि परचय ह। वष 1975 से
लेकर 2019 तक क वष क अंतराल म िलखे गए इन प म जहाँ एक ओर लेखक क आपसी
संबंध, अतःराजनीित एवं खेम का पता चलता ह, वह उस समय क राजनैितक, सामीिजक
एवं आिथक थित क यौर सिहत बेहतर दुिनया क िलए लेखक क िचंता एवं िचतन का
उेख आ ह। इन प म काका कालेकलर क बात सही सािबत होती ई िदखाई देती ह।
अिधकांश प छोट ह, िसफ कछ प ह जो दो-तीन पृ म िलखे गए ह। इन प क िवषय-
वतु म राजथान क कांकरोली जैस छोट से शहर से पचास वष तक िनयिमत कािशत होती
रही पिका 'संबोधन' क सौव अंक तक क चचा ह और ह सश?, समिपत और िनडर
'संबोधन' क संपादक क़मर मेवाड़ी का लेखन एवं य व। ये प इस बात को रखांिकत
करते ह िक 'संबोधन' अपने समय क सच को अिभय करती िनिभक राीय पिका रही ह।
क़मर मेवाड़ी ने संपादकय एवं लेखकय ितबता क साथ आिथक संघष को झेलते ए
अयंत जीवट क साथ वष तक 'संबोधन' को कािशत िकया। लेखक से काशनाथ रचना
शोध-आलोचना
गोपाल सहर
28-29, योगीनगर सोसायटी-2
कपड़वंज (िजला-खेड़ा) गुजरात 387620
मोबाइल- 94278 54690
ईमेल- [email protected]
(प संकलन)
समय बोलता ह
समीक : डॉ. गोपाल शमा 'सहर'
संपादक : क़मर मेवाड़ी
काशक : ीसािहय काशन, नई
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çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 20257 6 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 2025
क सहयोग क अितर अजािमल क "बंधु
पूरा यास होना चािहए क यह किवता
िवशेषांक तमाम किवता िवशेषांक क भीड़
म खोने न पाएँ।" (पृ. 22) जैसे सुझाव भी
िमल जाते ह। यह भी सच ह िक कौन
सािहयकार होगा जो यह नह चाहगा िक
उसक रचनाएँ 'संबोधन' जैसी तरीय,
ित त एवं वैचारक ितब पिका म
कािशत न ह। पिका क काशन म जो
ख़च होता ह, उसक यवथा बत बड़ा
न होता ह। क़मर मेवाड़ी ने अपने ब क
रोटी क िनवाले म कटौती करक 'सबोधन'
को कािशत िकया जो उनक संपादकय
ितबता को रखांिकत करता ह। सािहय क
ित ऐसा समपण एवं ितबता आज दुलभ
ह। आज क बाज़ारवाद क चलते ककरमु
क तरह उग आई पिकाएँ धड़े से
कािशत हो रही ह और लेख िलखने से
लेकर, कािशत करने और पुरकार देने क
िलए लेखक से बड़ी रािश ऐंठ रही ह। यहाँ
तक िक किव, लेखक अपनी पुतक
कािशत करवाने क िलए काशक को पैसा
दे रह ह। आज तरीय, िव त एवं वैचारक
ितबता वाली पिकाएँ बत कम रह गई
ह।
पुतक म संिहत प म 'हस' जैसी
ित त पिका क संपादक राजे यादव
और कहानीकार कमलेर, आलमशाह
ख़ान क प क सिहत अनेक सुिस
लेखक क प ह, िजनम ओम थानवी, राजी
सेठ, मधर मृदुल, िवभूित नारायण राय,
िचा मुल, हबीब कफ़, सूरज काश,
हमे चंडािलया, रमेश उपायाय, वयं
काश, ानरजन, मिण मधुकर, दुगा साद
अवाल, असगर वज़ाहत, असद जैदी, नंद
चतुवदी, फाक आफ़रीदी, िबी, वेद
यास, पिसंह चंदेल, बलराम, हमीदुा,
िशवराम, हतु भाराज, यादवे शमा 'चं',
सुरश पंिडत, डॉ. जीवनिसंह, मुनवर राना,
सदािशव ोिय, हरपाल यागी, मह
भानावत, बाल किव बैरागी, माधव नागदा,
डॉ. राजे मोहन भनागर आिद क
महवपूण दतावेज़ी प ह। नैितक दाियव
का उेख करती राजी सेठ एक प म
िलखती ह, िजसम लेखकय अंत एवं
रचना-िया उजागर होते ह –" आप मानगे,
रचनाकार क िलए यह एक किठन इतहान ह
अपनी असंिदध आंतरकता और संपादकय
माँग क बीच तना आ। यहाँ प चकर तो
संपादक को िदए नैितक वादे भी हतभ हो
जाते ह। पीड़ा ई थी। लगा था कछ भी क
आप इसे वही रचनाकार वाले झूठ से
लटक झटक मानगे। रचना क ित असंतोष
क पीड़ा भीतर अकप काँप रही थी... सो
आपको प िलखने बैठी थी– मा याचना
का प... कछ भी हो, ऐसा मनाही भरा प म
आपको िलखना नह चाहती थी। अपने
आपको बतेरा ढकला, टटोला था, पर
कहानी क सामने पड़ ाट ने कोई
आासन नह िदया था। आपको प िलखने
बैठने क ? ?? म इस संलन कहानी का
शीषक 'वत' क एकाएक उपल ध ई।
मुझे सच म नह पता, िकस िनबाध ढग से यह
एक ही झटक म समा ई।" (पृ. 19-20)
िहदी पिका क पठनीय सामी क िवषय
म मधर मृदल िलखते ह- " समयाभाव क
अितर िहदी पिका म पढ़ने जैसा नह
होना भी इसका कारण ह- िहदी पिका से
मतलब उन पिका से ह जो इधर आसानी
से िमल जाती ह। (पृ. 21) देश क भयावह
थित और रचनाकार क दाियव को
रखांिकत करते ए कबेरद िलखते ह- "देश
क भयावह हालात से मन ख़राब रहता ह।
सांकितक संकट क इस दौर म हम
रचनाकार अपनी अपनी जगह कछ न कछ तो
करते ही रह सकते ह।" (पृ. 23) अपने
समकालीन लेखक क यथाथ एवं उनक
राजनैितक खेमेबाज़ी का शंभु गु क प म
प संकत पाया जा सकता ह- " कला क
इतने सार बाहरी उपादान क रहते ए भी
िशवमूित क कहािनयाँ िवचार एवं मूय क
तर पर कछ हम दे य नह पात।..... जहाँ
तक उनक जनवादी तेवर क बात ह उसे
ख़ारज करने क नौबत तो तब आए, जब वह
वहाँ कछ हो और जब वातव म वहाँ होता तो
कौन उसे ख़ारज करने क िहमत कर सकता
था। िशवमूित क पीछ इतना सपोट ह िक उन
पर हवा म कछ भी िलखना अपने िलए
मुसीबत पैदा करना होता ह।" (पृ. 27)
इन प का फ़लक अयत यापक ह,
िजसम लेखक और उससे जुड़ िविवध पहलु
सिहत समकालीन समाज क िविवध वग एवं
े क सामािजक, राजनैितक, आिथक और
सांकितक सवाल को लेकर िचताएँ और
समतामूलक समाज क रचना क िलए िचतन
सिहत स य िया वित तथा आंदोलन क
उेख ह। िवभूितनारायण राय अपने एक
प म क़मर मेवाड़ी को िलखते ह- "ी
रामानंद सरवती पुतकालय उर देश क
एक िपछड़ िज़ले आज़मगढ़ म थत ऐसी
संथा ह जो िपछले दस वष म पढ़ने क
संकित िवकिसत करने क साथ साथ
समतामूलक समाज िनिमत करने म सहायक
सांकितक आंदोलन का क बन गई ह।
...पुतकालय म लघु पिका क बनाना ह।
इस क म िहदी क महवपूण पिका
क फाईल सुरित रखी जाएँगी, जहाँ शोधाथ
एवं सािहय क गंभीर पाठक लघु पिका
म कािशत महवपूण सामी एक ही थान
पर ा कर सकगे। (पृ. 29)
इन प से गुज़रते ए कहा जा सकता ह
िक लेखक सामािजक सरोकार एवं
सकारामक परवतन क िलए िसफ़ िचतन
ही नह करते ह, ब क एकजुट होकर िमशन
क प म काम करने को कतसंकप िदखाई
देते ह- " िहदी देश म या िनररता क
पर य से कोई भी संवेदनशील सृजनकम
अपरचत नह ह। देश क लगभग आधे
िनरर चार बड़ िहदी भाषी राय म ह। ...
िवडबना यह ह िक उनम राजथान भी
शािमल ह। ऐसी साई हम सभी को झकझोर
देती ह, जो सामािजक जीवन को बेहतर बनाने
क िलए कतसंकप ह। (पृ. 30) ी संवेदना
क िवषय म िचा मुल एक प म िलखती
ह- " ी क संवेदना क आँख से महसूस
िकया गया सच- तलछट का वह ल होता ह
जो उससे उसक क़लम क याही क बिल
लेता ह। (पृ. 33) करवादी ताक़त हर
समय म कछ न कछ उपव करती रही ह।
उनक इस सय का उाटन भी यहाँ आ ह।
डॉ. हमे चंडािलया 'संबोधन' म कािशत
डॉ. आलमशाह ख़ान क रचना क ितिया
म िलखते ह- "ितमा क िवखंडन से
ितमा का िवनाश नह होता ह। न ख़म
होता ह िवास। ितमा िवास का तीक
मा ह। दुभा य यह ह िक दोन ओर से
करपंथी तीक क लड़ाई म उलझे ह।
एक म जद िगराता ह तो दूसरा मूित वत
करता ह। िकतु दोन समूह यह नह जानते िक
इससे नुकसान उह का आ ह।" (पृ. 37)
िकसान क दशा-दुदशा क पीड़ा एवं
िववशता क कणापूण अिभय करती
ानचंद मम क किवता क पं याँ
हरिजदर सेठी क प म पढ़ने को िमलती ह-
"िजन कपास को श हो उगाते ह ये / उनक
डोरी से फाँसी लगाते ह ये।" (पृ.39)
िनिभकता क साथ िवचार क अिभय क
िलए कमलेर एक प म क़मर मेवाड़ी को
िलखते ह- "म आपक संपादकय से सहमत
िक 'जो छोटा ह, वही बड़ा ह' िवचार और
िनिभकता क इसी परपरा को हम जारी
रखना ह। आप अकले नह ह...सब साथ ह।"
(पृ.50) लेखकय दोती क खी-मीठी
डाँट-डपट क सुवास भी यहाँ िबखरी ई ह।
वयं काश क़मर मेवाड़ी को िलखते ह-
"लगता ह बुरी तरह से नाराज हो गए हो ! थूक
दो सा ! माफ़ कर दो ! छोट भाई गुताख़ी
करते ही रहते ह। बड़ का बड़पन भी कोई शै
होती ह न ! तो बस यार अब कर लो मीठी
मीठी .... और सुनो ! थोबड़ा सुजाने से अछा
ह फौरन यहाँ धमक जाओ और मुझे पीट दो।"
(पृ.53)
इसी तरह डॉ. आलमशाह ख़ान एक प
म िलखते ह- "अपनी पुरानी बीमारी अब कसी
ह? दद ह या जाता रहा ? कसक क सूरत म
मेरा नाम लेना आराम पाओगे, नह?" (पृ.
87) बीमारी म िकस तरह दोती दवा से भी
यादा कारगर होती ह। क़मर मेवाड़ी और
आलमशाह ख़ान साहब क दोती क िकसे
ख़ान साहब क मुँह से सुने ह। ख़ान साहब
क़मर मेवाड़ी को याराना अंदाज़ म 'क़म'
कहकर बुलाते थे। सािहयकार क राजनैितक
दांव-पच क यहाँ चचा ह। राजनीित क दल-
बदल क वृि सािहयकार क खेम म भी
ब िदखाई देती ह। िवणु चं शमा एक प
म िलखते ह- "....िफर वह दौर भी देखा, जब
भैरव भाई उनक नंबर वन दुमन थे। म दिण
भरत से लौटा था, भैरवभाई से िमला। वह....
अक ....से लैस थे ... मने सुना था। अक
जी बीमार ह। म देखने गया। भैरवभाई भड़क
उठ। वह राकश, राजे क साथ खेल रहा
था। नई कहानी का पासा ...... था। अक जी
दो गिटयाँ थी। भैरवभाई भर बैठ थे, ऐसे ही
जब जनवादी लेखक संघ बना तो भैरवभाई
डॉटर राम िवलास शमा क िवरोधी थे। " (पृ.
59) लेखक क एक दूसर क टाँग खचने
क वृि का भी उेख आ ह। योगे
िकसलय प म िलखते ह –"शायद भारतीय
राजनीित क िढशुम ..... िढशुम उह खच
रही ह। अपनी जमात से ीकांत वमा कद पड़
थे। काफ नाम कमा रह ह। और सुना ह मिण
भी वही राता अ तयार कर रह ह .....मिण
कब फसता ह और कब िनकल जाता ह, यह
तो वही जाने या उसका दा। मगर वह शीष
पर रहने क कला जानता ह और यही लोग
क जलन का अहम कारण ह। िमी से
उठकर वह डनलप क ग पर प च गया
ह। अभी वह चुप ह, ग़ायब ह, तो अवय ही
िकसी िबसात पर बैठा होगा।" (पृ. 95)
लेखक, सािहयकार का आपसी मेल-
िमलाप पारवारक भी रहा ह। िकसी लेखक
क बीमार होने या न रहने क थित म पनी
या परवारजन ारा प क युर िलखे
जाते रह ह। मिण मधुकर क पनी रचना
मधुकर ने ऐसे प िलखे ह। अपनी माली
हालत क चलते सािहयकार क ितबता
और दोती बरकरार रही ह। धम गु का
प कहता ह- "आप सब िम से िमलने और
उदयपुर क याा क मोह म िसफ़ माग यय,
रल िकराया बाय हो रहा ह। िजस िदन हमारी
जेब म दोन ओर का िकराया आ, चले
आएँगे। या कह से बंध हो गया तो चल दगे।
बाक और तामझाम कछ नह। दो टाइम चाय
और दोन पहर क रोटी तो आपक घर म िमल
जाएगी। िफर और या चािहए।" (पृ. 82)
लेखकय ितबता और संकप को उजागर
करता िबी का एक प ह, िजसम वो
िलखते ह- "दीवाली क बाद िजस िदन
िनयिमत प से दस पृ नह िलखूँगा तो
खाना नह खाऊगा। यह संकप मेर िहतैिषय
ने ही िदलवाया ह। .....और य भी मेर सृजन
क ख़ाितर ही तुम मुझे यार करते हो। यिद
सृजन ही छट गया तो तुहार यार को रखने
क ठौर मेर पास कहाँ रहगी? रोज़ पढ़ना
िलखना ही मेरा सािहय ह और मेरी गित भी।
(पृ. 96)
इन प म इतना कछ ह िक जीवन का
कोई भी पहलू अछता नह रहा ह। जीवन क
हर प को लेकर लेखक क िचता और
िचतन यहाँ अिभय ह। रामकमार कषक
एक प म िशा क थित पर िलखते ह-
"शैिक बाज़ार और िशक क चुपी हमार
भिवय क िलए िनय ही अशुभ ह।
(पृ.151) यहाँ वैािनक कोण पर भी
बल िदया गया ह- "ज़री यह ह िक िवान
का उपयोग करते ए मनुय का कोण भी
वैािनक बने। ..... बंदर क हाथ म उतरा दे
िदया जाए तो वह बंधन काटने म काम नह आ
सकता ह। (पृ.134) क़दी क जीवन पर
सािहय का भाव एवं जेल क तानाशाह
अिधकारी को क़दी का सािहय-ेम रास न
आने पर उसक सािहय-शौक पर ितबंध
लगाने क बाद िवभूितनारायण राय का क़दी
क अिधकार क िलए लड़ाई लड़ना एवं
सािहय पढ़ने का अिधकार िदलाने का िज़
वयं क़दी सुधीर शमा क़मर मेवाड़ी को एक
प म िलखते ह- "जेल म मेर सािहय क
पाठक बनने क कहानी बड़ी लंबी और
हरतअंगेज़ ह, कई संयोग क चलते 'पहल'
िफर 'पहल' क जरये 'वतमान सािहय' क
संपादक आई.पी.एस. उ अिधकारी िवभूित
नारायण राय व अय मूयवान लेखक,
संपादक से मेरा संवाद बना। सहायक
अधीक क मूखता भरी तानाशाही को मेरा
यह सािहय ेम रास न आया और उसने मेर
शौक पर रोक लगा दी। जब िवभूित जी को
इस बात का पता चला तो उहने मीिडया और
कोट क जरये मेर अिधकार क लड़ाई लड़ी।

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 20257 6 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 2025
क सहयोग क अितर अजािमल क "बंधु
पूरा यास होना चािहए क यह किवता
िवशेषांक तमाम किवता िवशेषांक क भीड़
म खोने न पाएँ।" (पृ. 22) जैसे सुझाव भी
िमल जाते ह। यह भी सच ह िक कौन
सािहयकार होगा जो यह नह चाहगा िक
उसक रचनाएँ 'संबोधन' जैसी तरीय,
ित त एवं वैचारक ितब पिका म
कािशत न ह। पिका क काशन म जो
ख़च होता ह, उसक यवथा बत बड़ा
न होता ह। क़मर मेवाड़ी ने अपने ब क
रोटी क िनवाले म कटौती करक 'सबोधन'
को कािशत िकया जो उनक संपादकय
ितबता को रखांिकत करता ह। सािहय क
ित ऐसा समपण एवं ितबता आज दुलभ
ह। आज क बाज़ारवाद क चलते ककरमु
क तरह उग आई पिकाएँ धड़े से
कािशत हो रही ह और लेख िलखने से
लेकर, कािशत करने और पुरकार देने क
िलए लेखक से बड़ी रािश ऐंठ रही ह। यहाँ
तक िक किव, लेखक अपनी पुतक
कािशत करवाने क िलए काशक को पैसा
दे रह ह। आज तरीय, िव त एवं वैचारक
ितबता वाली पिकाएँ बत कम रह गई
ह।
पुतक म संिहत प म 'हस' जैसी
ित त पिका क संपादक राजे यादव
और कहानीकार कमलेर, आलमशाह
ख़ान क प क सिहत अनेक सुिस
लेखक क प ह, िजनम ओम थानवी, राजी
सेठ, मधर मृदुल, िवभूित नारायण राय,
िचा मुल, हबीब कफ़, सूरज काश,
हमे चंडािलया, रमेश उपायाय, वयं
काश, ानरजन, मिण मधुकर, दुगा साद
अवाल, असगर वज़ाहत, असद जैदी, नंद
चतुवदी, फाक आफ़रीदी, िबी, वेद
यास, पिसंह चंदेल, बलराम, हमीदुा,
िशवराम, हतु भाराज, यादवे शमा 'चं',
सुरश पंिडत, डॉ. जीवनिसंह, मुनवर राना,
सदािशव ोिय, हरपाल यागी, मह
भानावत, बाल किव बैरागी, माधव नागदा,
डॉ. राजे मोहन भनागर आिद क
महवपूण दतावेज़ी प ह। नैितक दाियव
का उेख करती राजी सेठ एक प म
िलखती ह, िजसम लेखकय अंत एवं
रचना-िया उजागर होते ह –" आप मानगे,
रचनाकार क िलए यह एक किठन इतहान ह
अपनी असंिदध आंतरकता और संपादकय
माँग क बीच तना आ। यहाँ प चकर तो
संपादक को िदए नैितक वादे भी हतभ हो
जाते ह। पीड़ा ई थी। लगा था कछ भी क
आप इसे वही रचनाकार वाले झूठ से
लटक झटक मानगे। रचना क ित असंतोष
क पीड़ा भीतर अकप काँप रही थी... सो
आपको प िलखने बैठी थी– मा याचना
का प... कछ भी हो, ऐसा मनाही भरा प म
आपको िलखना नह चाहती थी। अपने
आपको बतेरा ढकला, टटोला था, पर
कहानी क सामने पड़ ाट ने कोई
आासन नह िदया था। आपको प िलखने
बैठने क ? ?? म इस संलन कहानी का
शीषक 'वत' क एकाएक उपल ध ई।
मुझे सच म नह पता, िकस िनबाध ढग से यह
एक ही झटक म समा ई।" (पृ. 19-20)
िहदी पिका क पठनीय सामी क िवषय
म मधर मृदल िलखते ह- " समयाभाव क
अितर िहदी पिका म पढ़ने जैसा नह
होना भी इसका कारण ह- िहदी पिका से
मतलब उन पिका से ह जो इधर आसानी
से िमल जाती ह। (पृ. 21) देश क भयावह
थित और रचनाकार क दाियव को
रखांिकत करते ए कबेरद िलखते ह- "देश
क भयावह हालात से मन ख़राब रहता ह।
सांकितक संकट क इस दौर म हम
रचनाकार अपनी अपनी जगह कछ न कछ तो
करते ही रह सकते ह।" (पृ. 23) अपने
समकालीन लेखक क यथाथ एवं उनक
राजनैितक खेमेबाज़ी का शंभु गु क प म
प संकत पाया जा सकता ह- " कला क
इतने सार बाहरी उपादान क रहते ए भी
िशवमूित क कहािनयाँ िवचार एवं मूय क
तर पर कछ हम दे य नह पात।..... जहाँ
तक उनक जनवादी तेवर क बात ह उसे
ख़ारज करने क नौबत तो तब आए, जब वह
वहाँ कछ हो और जब वातव म वहाँ होता तो
कौन उसे ख़ारज करने क िहमत कर सकता
था। िशवमूित क पीछ इतना सपोट ह िक उन
पर हवा म कछ भी िलखना अपने िलए
मुसीबत पैदा करना होता ह।" (पृ. 27)
इन प का फ़लक अयत यापक ह,
िजसम लेखक और उससे जुड़ िविवध पहलु
सिहत समकालीन समाज क िविवध वग एवं
े क सामािजक, राजनैितक, आिथक और
सांकितक सवाल को लेकर िचताएँ और
समतामूलक समाज क रचना क िलए िचतन
सिहत स य िया वित तथा आंदोलन क
उेख ह। िवभूितनारायण राय अपने एक
प म क़मर मेवाड़ी को िलखते ह- "ी
रामानंद सरवती पुतकालय उर देश क
एक िपछड़ िज़ले आज़मगढ़ म थत ऐसी
संथा ह जो िपछले दस वष म पढ़ने क
संकित िवकिसत करने क साथ साथ
समतामूलक समाज िनिमत करने म सहायक
सांकितक आंदोलन का क बन गई ह।
...पुतकालय म लघु पिका क बनाना ह।
इस क म िहदी क महवपूण पिका
क फाईल सुरित रखी जाएँगी, जहाँ शोधाथ
एवं सािहय क गंभीर पाठक लघु पिका
म कािशत महवपूण सामी एक ही थान
पर ा कर सकगे। (पृ. 29)
इन प से गुज़रते ए कहा जा सकता ह
िक लेखक सामािजक सरोकार एवं
सकारामक परवतन क िलए िसफ़ िचतन
ही नह करते ह, ब क एकजुट होकर िमशन
क प म काम करने को कतसंकप िदखाई
देते ह- " िहदी देश म या िनररता क
पर य से कोई भी संवेदनशील सृजनकम
अपरचत नह ह। देश क लगभग आधे
िनरर चार बड़ िहदी भाषी राय म ह। ...
िवडबना यह ह िक उनम राजथान भी
शािमल ह। ऐसी साई हम सभी को झकझोर
देती ह, जो सामािजक जीवन को बेहतर बनाने
क िलए कतसंकप ह। (पृ. 30) ी संवेदना
क िवषय म िचा मुल एक प म िलखती
ह- " ी क संवेदना क आँख से महसूस
िकया गया सच- तलछट का वह ल होता ह
जो उससे उसक क़लम क याही क बिल
लेता ह। (पृ. 33) करवादी ताक़त हर
समय म कछ न कछ उपव करती रही ह।
उनक इस सय का उाटन भी यहाँ आ ह।
डॉ. हमे चंडािलया 'संबोधन' म कािशत
डॉ. आलमशाह ख़ान क रचना क ितिया
म िलखते ह- "ितमा क िवखंडन से
ितमा का िवनाश नह होता ह। न ख़म
होता ह िवास। ितमा िवास का तीक
मा ह। दुभा य यह ह िक दोन ओर से
करपंथी तीक क लड़ाई म उलझे ह।
एक म जद िगराता ह तो दूसरा मूित वत
करता ह। िकतु दोन समूह यह नह जानते िक
इससे नुकसान उह का आ ह।" (पृ. 37)
िकसान क दशा-दुदशा क पीड़ा एवं
िववशता क कणापूण अिभय करती
ानचंद मम क किवता क पं याँ
हरिजदर सेठी क प म पढ़ने को िमलती ह-
"िजन कपास को श हो उगाते ह ये / उनक
डोरी से फाँसी लगाते ह ये।" (पृ.39)
िनिभकता क साथ िवचार क अिभय क
िलए कमलेर एक प म क़मर मेवाड़ी को
िलखते ह- "म आपक संपादकय से सहमत
िक 'जो छोटा ह, वही बड़ा ह' िवचार और
िनिभकता क इसी परपरा को हम जारी
रखना ह। आप अकले नह ह...सब साथ ह।"
(पृ.50) लेखकय दोती क खी-मीठी
डाँट-डपट क सुवास भी यहाँ िबखरी ई ह।
वयं काश क़मर मेवाड़ी को िलखते ह-
"लगता ह बुरी तरह से नाराज हो गए हो ! थूक
दो सा ! माफ़ कर दो ! छोट भाई गुताख़ी
करते ही रहते ह। बड़ का बड़पन भी कोई शै
होती ह न ! तो बस यार अब कर लो मीठी
मीठी .... और सुनो ! थोबड़ा सुजाने से अछा
ह फौरन यहाँ धमक जाओ और मुझे पीट दो।"
(पृ.53)
इसी तरह डॉ. आलमशाह ख़ान एक प
म िलखते ह- "अपनी पुरानी बीमारी अब कसी
ह? दद ह या जाता रहा ? कसक क सूरत म
मेरा नाम लेना आराम पाओगे, नह?" (पृ.
87) बीमारी म िकस तरह दोती दवा से भी
यादा कारगर होती ह। क़मर मेवाड़ी और
आलमशाह ख़ान साहब क दोती क िकसे
ख़ान साहब क मुँह से सुने ह। ख़ान साहब
क़मर मेवाड़ी को याराना अंदाज़ म 'क़म'
कहकर बुलाते थे। सािहयकार क राजनैितक
दांव-पच क यहाँ चचा ह। राजनीित क दल-
बदल क वृि सािहयकार क खेम म भी
ब िदखाई देती ह। िवणु चं शमा एक प
म िलखते ह- "....िफर वह दौर भी देखा, जब
भैरव भाई उनक नंबर वन दुमन थे। म दिण
भरत से लौटा था, भैरवभाई से िमला। वह....
अक ....से लैस थे ... मने सुना था। अक
जी बीमार ह। म देखने गया। भैरवभाई भड़क
उठ। वह राकश, राजे क साथ खेल रहा
था। नई कहानी का पासा ...... था। अक जी
दो गिटयाँ थी। भैरवभाई भर बैठ थे, ऐसे ही
जब जनवादी लेखक संघ बना तो भैरवभाई
डॉटर राम िवलास शमा क िवरोधी थे। " (पृ.
59) लेखक क एक दूसर क टाँग खचने
क वृि का भी उेख आ ह। योगे
िकसलय प म िलखते ह –"शायद भारतीय
राजनीित क िढशुम ..... िढशुम उह खच
रही ह। अपनी जमात से ीकांत वमा कद पड़
थे। काफ नाम कमा रह ह। और सुना ह मिण
भी वही राता अ तयार कर रह ह .....मिण
कब फसता ह और कब िनकल जाता ह, यह
तो वही जाने या उसका दा। मगर वह शीष
पर रहने क कला जानता ह और यही लोग
क जलन का अहम कारण ह। िमी से
उठकर वह डनलप क ग पर प च गया
ह। अभी वह चुप ह, ग़ायब ह, तो अवय ही
िकसी िबसात पर बैठा होगा।" (पृ. 95)
लेखक, सािहयकार का आपसी मेल-
िमलाप पारवारक भी रहा ह। िकसी लेखक
क बीमार होने या न रहने क थित म पनी
या परवारजन ारा प क युर िलखे
जाते रह ह। मिण मधुकर क पनी रचना
मधुकर ने ऐसे प िलखे ह। अपनी माली
हालत क चलते सािहयकार क ितबता
और दोती बरकरार रही ह। धम गु का
प कहता ह- "आप सब िम से िमलने और
उदयपुर क याा क मोह म िसफ़ माग यय,
रल िकराया बाय हो रहा ह। िजस िदन हमारी
जेब म दोन ओर का िकराया आ, चले
आएँगे। या कह से बंध हो गया तो चल दगे।
बाक और तामझाम कछ नह। दो टाइम चाय
और दोन पहर क रोटी तो आपक घर म िमल
जाएगी। िफर और या चािहए।" (पृ. 82)
लेखकय ितबता और संकप को उजागर
करता िबी का एक प ह, िजसम वो
िलखते ह- "दीवाली क बाद िजस िदन
िनयिमत प से दस पृ नह िलखूँगा तो
खाना नह खाऊगा। यह संकप मेर िहतैिषय
ने ही िदलवाया ह। .....और य भी मेर सृजन
क ख़ाितर ही तुम मुझे यार करते हो। यिद
सृजन ही छट गया तो तुहार यार को रखने
क ठौर मेर पास कहाँ रहगी? रोज़ पढ़ना
िलखना ही मेरा सािहय ह और मेरी गित भी।
(पृ. 96)
इन प म इतना कछ ह िक जीवन का
कोई भी पहलू अछता नह रहा ह। जीवन क
हर प को लेकर लेखक क िचता और
िचतन यहाँ अिभय ह। रामकमार कषक
एक प म िशा क थित पर िलखते ह-
"शैिक बाज़ार और िशक क चुपी हमार
भिवय क िलए िनय ही अशुभ ह।
(पृ.151) यहाँ वैािनक कोण पर भी
बल िदया गया ह- "ज़री यह ह िक िवान
का उपयोग करते ए मनुय का कोण भी
वैािनक बने। ..... बंदर क हाथ म उतरा दे
िदया जाए तो वह बंधन काटने म काम नह आ
सकता ह। (पृ.134) क़दी क जीवन पर
सािहय का भाव एवं जेल क तानाशाह
अिधकारी को क़दी का सािहय-ेम रास न
आने पर उसक सािहय-शौक पर ितबंध
लगाने क बाद िवभूितनारायण राय का क़दी
क अिधकार क िलए लड़ाई लड़ना एवं
सािहय पढ़ने का अिधकार िदलाने का िज़
वयं क़दी सुधीर शमा क़मर मेवाड़ी को एक
प म िलखते ह- "जेल म मेर सािहय क
पाठक बनने क कहानी बड़ी लंबी और
हरतअंगेज़ ह, कई संयोग क चलते 'पहल'
िफर 'पहल' क जरये 'वतमान सािहय' क
संपादक आई.पी.एस. उ अिधकारी िवभूित
नारायण राय व अय मूयवान लेखक,
संपादक से मेरा संवाद बना। सहायक
अधीक क मूखता भरी तानाशाही को मेरा
यह सािहय ेम रास न आया और उसने मेर
शौक पर रोक लगा दी। जब िवभूित जी को
इस बात का पता चला तो उहने मीिडया और
कोट क जरये मेर अिधकार क लड़ाई लड़ी।

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 20259 8 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 2025
मुझे मेरा अिधकार िदलाया और 2000 म मुझे
य गत प से गोवा जेल िमलने आए।
2003 म क़द मु? होने क बाद म िवभूित जी
क गाँव क इस पुतकालय म जीवन जीने का
नया आधार पा गया।" (पृ. 127-128)
टी.वी. चेनल पर िकस तरह क लूट
चलती ह। टी.वी. क काय म क चमक-
दमक म साई दब जाती ह। इस दबी ई
साई को एक संवेदनशील लेखक ही देख
सकता ह। 'कौन बनेगा करोड़पित' काय म
क ारा कौन करोड़पित बन रहा ह ", क
वातिवकता को सुरश पंिडत एक प म
िलखते ह- "य नह कोई यह बताता ह िक
'कौन बनेगा करोड़पित' काय म से िकतने
भाग लेने वाले करोड़पित बने और उसक
ायोजक को िकतना लाभ आ? या
कोकाकोला हमारा ही पानी हम िपलाकर
मुनाफ़ा बाहर य ले जाता ह ? अब तो उह
आम आदमी को लूटकर असहाय बनाने
वाली ताक़त क िख़लाफ़ लोग को खड़ा
करने क िलए अपनी क़लम को गितशील
करना चािहए।" (पृ. 123-124) सािहय एवं
कला सफ़ आनंद क िलए नह, ब क
सकारामक सामािजक बदलाव क िलए
अयत ज़री ह। वेद यास एक प म
िलखते ह- "इस बार ऐसा यास और संगिठत
संवाद होना चािहए जो सािहय और समाज क
बीच एक साथक हतेप का आधार बन
सक। बदलती सामािजक, आिथक, और
राजनैितक थितय पर रचनाकार क चुपी,
तटथता और िबखराव टट सक तथा एक
वैचारक कायनीित बन सक।" (पृ.106)
'समय बोलता ह' पुतक हम सबक िलए
आईना ह। िकताब क प को पलटते ए
प से गुज़रते ह तो लगता ह हम आईने क
सामने बैठ ह और चलते ए चलिच म हम
?द को देख रह ह। इस 'हम' म समाज का हर
वग जा जाता ह चाह वे पाठक ह, रचनकार
हो, नेता, अिभनेता हो या हो सामाय जन।
िकताब का सफ़ा बदलते ही कोई और ही
य हमार सामने घूमने लगता ह। लेखक क
इन प म लेखक क खेमेबाज़ी, टाँग-खच,
राजनैितक अखाड़बाज़ी से हम ब होते ह,
तब लगता ह अपने आपको किव, लेखक,
सािहयकार कहने वाले और समाज म
गौरवा वत महसूस करने वाल म भी वे
तमाम दुबलताएँ िदखाई देती ह, िजह वे
समाज से िमटाने क िलए िलखते और कहते
ह। पिसंह चंदेल िलखते ह- "मिण क ती
गित कसे गले उतरती। ख़ासकर उन लोग
को जो िलखना कम चाहते ह और पाना
अिधक। कहना यह अिधक अिभेत होगा िक
वे अिधक िलख ही नह सकते ह। ऐसे ही
अप ितभा या मझोले ितभाशाली, िकतु
साधन संप रचनाकार िकसी भी ऐसे
रचनाकार को धराशायी करने क षडयं म
लगे रहते ह, जो अपनी ितभा का भरपूर
योग करने म लगे रहते ह। ......िकतु िजस
कार सुमित अयर का सािह यक बिहकार
िकया गया था कभी उससे भंयकर थित
मधुकर क साथ रही और अंत तक रही। एक
समय क हीरो को पटखनी देने म सफल रह थे
उनक ितंी।" उनक सूची म कई नाम ऐसे
ह, जो मठाित ह और कवल इसिलए दूसर
क हक पर क़ज़ा िकए ए ह। ख़ैर। .....देश
राजनीितक तर पर तो िबक रहा ह – या
सािह यक तर भी यही होगा। अतु ! इस
क वृि का िवरोध होना ही चािहए।"
इस पुतक म देश और दुिनया का जो
पर य िदखाई देता ह और आज क हालात
पर नज़र डालते ह तो लगता ह िक हमार
हालात और बदतर होते गए ह। हम और िनन
ए ह। हाँ, वैािनक िवकास और सुिवधाएँ
ज़र बढ़ी ह, परतु मानवीय मूय और
संवेदना का ास आ ह। िन त तौर पर यह
कहा जा सकता ह िक 'समय बोलता ह'
पुतक क प को पढते ए लगता ह िक हम
अतीत क गिलय म घूम रह ह अपने हाथ म
आईना पकड़ ए और ?द को देख रह ह।
मजे क बात यह भी ह िक ?द क आवाज़
?द क कान से टकरा रही ह। पुतक हम
सोचने को मजबूर करती ह िक हम सब
िमलकर एक बेहतर समाज कस बना सकते ह
और यह बेहतर समाज सािहय और कला क
आँख ही रच सकती ह, राजनीित नह।
000
फाम IV
समाचार प क अिधिनयम 1956 क धारा
19-डी क अंतगत वािमव व अय िववरण
(देख िनयम 8)।
पिका का नाम : िशवना सािह यक
1. काशन का थान : पी. सी. लैब, शॉप नं.
3-4-5-6, साट कॉ लैस बेसमट, बस
टड क सामने, सीहोर, म, 466001
2. काशन क अविध : ैमािसक
3. मुक का नाम : ?बैर शेख़s
पता : शाइन िंटस, लॉट नं. 7, बी-2,
?ािलटी परमा, इिदरा ेस कॉ लैस,
ज़ोन 1, एमपी नगर, भोपाल, म 462011
या भारत क नागरक ह : हाँ।
(यिद िवदेशी नागरक ह तो अपने देश का
नाम िलख) : लागू नह।
4. काशक का नाम : पंकज कमार पुरोिहत।
पता : पी. सी. लैब, शॉप नं. 3-4-5-6, साट
कॉ लैस बेसमट, बस टड क सामने,
सीहोर, म, 466001
या भारत क नागरक ह : हाँ।
(यिद िवदेशी नागरक ह तो अपने देश का
नाम िलख) : लागू नह।
5. संपादक का नाम : पंकज सुबीर।
पता : रघुवर िवला, सट एस कल क
सामने, चाणयपुरी, सीहोर, म 466001
या भारत क नागरक ह : हाँ।
(यिद िवदेशी नागरक ह तो अपने देश का
नाम िलख) : लागू नह।
4. उन य य क नाम / पते जो समाचार
प / पिका क वािमव म ह। वामी का
नाम : पंकज कमार पुरोिहत। पता : रघुवर
िवला, सट एस कल क सामने,
चाणयपुरी, सीहोर, म 466001
या भारत क नागरक ह : हाँ।
(यिद िवदेशी नागरक ह तो अपने देश का
नाम िलख) : लागू नह।
म, पंकज कमार पुरोिहत, घोषणा करता िक
यहाँ िदए गए तय मेरी संपूण जानकारी और
िवास क मुतािबक सय ह।
िदनांक 20 माच 2025
हतार पंकज कमार पुरोिहत
(काशक क हतार)
हाथ म आई 'सािहय क गुमटी' को देख मुझे लगा जैसे बड़ी-बड़ी कोिठय पर कटी िलखा
होता ह, उसी कार क यह सािहय क गुमटी ह। एक तरफ िजासा, दूसरी तरफ जाने माने
लेखक धमपाल मह जैन का नाम। मने पाया िक 'सािहय क गुमटी' धमपाल जी क अय
कितय से बीस नह ब क इकस ही ह जो हाय-यंय क आईने म समाज और मानव
वभाव तथा यवथा का गहन अवलोकन कराती ह। यह कटापूण िटपिणय, शहरी व
ामीण पृभूिम और सामािजक िवसंगितय का िवतृत ख़ाका एक साथ खचती ह। यह
पुतक भी उनक अय पुतक क तरह से यंय का ख़ज़ाना, अयवथा पर हथौड़ जैसी
चोट और पाठक क िलए अिवमरणीय ान, मनोरजन व बौिक उेजना का सागर ह। यह
आम से लेकर ख़ास और सािहय क अनुभवी पाठक क िलए शोध सामी दान करने वाली
क?ित ह। जैसे गुदड़ी म ही लाल पैदा होते ह और गुदड़ी म ही हीर िछपे होते ह, उसी तरह से
सािहय क इस गुमटी म अड़तालीस लाल िछपे ए ह, वह भी एक से बढ़कर एक।
'ज़हर क सौदागर' रचना म यंयकार धमपाल मह जैन आजकल क हालात पर यंय
कसते ए िलखते ह िक ज़हर भी असली-नकली और यापार बन गया ह। बाज़ार म ज़हर का
टॉक कम पड़ गया ह। िकसान को िबना ज़हर आमहया करनी पड़ रही ह। युवा पेपरलीक
और बेरोज़गारी म ही दम घोट रह ह। दरदे रप पीिड़ता को मारकाटकर फक देते ह। दुिनया क
ज़हर पर भी दबंग और दादागीरी करने वाल का एकािधकार ह। वे दुकानदार को कहते ह िक
ज़हर बेचोगे तो हम ही बेचोगे अयथा नह, बेचोगे तो बचोगे? रचना म कहा गया ह िक िजसक
लाठी उसक भस। 'िकनार का ताड़ वृ' म यंयामक तरीक़ से लेखक कहते ह- ताड़ वृ
यिद ताक़तवर का ह तो उसे सब अपना मानने लगगे। इसे महारा अपने समु िकनार का
बताएगा, करल वाले अपनी संकित का तीक बताएँगे, चेरापूँजी वाले उसे सौवी जाित
करार दगे, भले ही वह कबीर क इस दोह से मेल खा रहा हो 'बड़ा आ तो या आ जैसे पेड़
खजूर। पंथी को छाया नह, फल लागे अित दूर।' मोबाइल क अंधी दुिनया म खोए लोग क
आँख खोलती 'वासऐप नह भासऐप' नामक रचना म तीण यंय बाण चलाते ए धमपाल
जी िलखते ह- 'रात क बारह बज गए ह। िनशाचर क रचनामक लेखन का समय हो गया ह।
सारा देश जब सो रहा हो तब सािहयकार और उू को अपना क य िनबाहना होता ह।
वासऐप समूह म आया चवाती तूफ़ान शांत हो गया तो यह भासऐप कथा मने भी िलिपब
कर दी ह तािक सनद रह।'
राजनीित क ख़ाली घोषणा क पोल खोलती रचना 'बपर घोषणा क ज़माने म'
लेखक ने इस तरह से यंय को परोसा ह िक पाठक क न तो हसी ?कती ह और न ही पठन का
म। वे याली पुलाव वाली राजनीित पर हार करते ए िलखते ह िक आप अमेरका से लेकर
िजबावे तक क सरकार क घोषणा क पुिलंदा देख तो आपका िदमाग़ घूम जाएगा। सब
शोध-आलोचना
आर पी तोमर
नीलकठ अपाटमट, गली नं. 7
महावीर इ ेव, नई िदी- 110045
मोबाइल- 9457714100
ईमेल- [email protected]
(यंय संह)
सािहय क गुमटी
समीक : आर पी तोमर
लेखक : धमपाल मह जैन
काशक : िशवना काशन, साट
कॉ लैस बेसमट, सीहोर, म
466001, फ़ोन-07562405545
मोबाइल- +91-9806162184
ईमेल- [email protected]

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मुझे मेरा अिधकार िदलाया और 2000 म मुझे
य गत प से गोवा जेल िमलने आए।
2003 म क़द मु? होने क बाद म िवभूित जी
क गाँव क इस पुतकालय म जीवन जीने का
नया आधार पा गया।" (पृ. 127-128)
टी.वी. चेनल पर िकस तरह क लूट
चलती ह। टी.वी. क काय म क चमक-
दमक म साई दब जाती ह। इस दबी ई
साई को एक संवेदनशील लेखक ही देख
सकता ह। 'कौन बनेगा करोड़पित' काय म
क ारा कौन करोड़पित बन रहा ह ", क
वातिवकता को सुरश पंिडत एक प म
िलखते ह- "य नह कोई यह बताता ह िक
'कौन बनेगा करोड़पित' काय म से िकतने
भाग लेने वाले करोड़पित बने और उसक
ायोजक को िकतना लाभ आ? या
कोकाकोला हमारा ही पानी हम िपलाकर
मुनाफ़ा बाहर य ले जाता ह ? अब तो उह
आम आदमी को लूटकर असहाय बनाने
वाली ताक़त क िख़लाफ़ लोग को खड़ा
करने क िलए अपनी क़लम को गितशील
करना चािहए।" (पृ. 123-124) सािहय एवं
कला सफ़ आनंद क िलए नह, ब क
सकारामक सामािजक बदलाव क िलए
अयत ज़री ह। वेद यास एक प म
िलखते ह- "इस बार ऐसा यास और संगिठत
संवाद होना चािहए जो सािहय और समाज क
बीच एक साथक हतेप का आधार बन
सक। बदलती सामािजक, आिथक, और
राजनैितक थितय पर रचनाकार क चुपी,
तटथता और िबखराव टट सक तथा एक
वैचारक कायनीित बन सक।" (पृ.106)
'समय बोलता ह' पुतक हम सबक िलए
आईना ह। िकताब क प को पलटते ए
प से गुज़रते ह तो लगता ह हम आईने क
सामने बैठ ह और चलते ए चलिच म हम
?द को देख रह ह। इस 'हम' म समाज का हर
वग जा जाता ह चाह वे पाठक ह, रचनकार
हो, नेता, अिभनेता हो या हो सामाय जन।
िकताब का सफ़ा बदलते ही कोई और ही
य हमार सामने घूमने लगता ह। लेखक क
इन प म लेखक क खेमेबाज़ी, टाँग-खच,
राजनैितक अखाड़बाज़ी से हम ब होते ह,
तब लगता ह अपने आपको किव, लेखक,
सािहयकार कहने वाले और समाज म
गौरवा वत महसूस करने वाल म भी वे
तमाम दुबलताएँ िदखाई देती ह, िजह वे
समाज से िमटाने क िलए िलखते और कहते
ह। पिसंह चंदेल िलखते ह- "मिण क ती
गित कसे गले उतरती। ख़ासकर उन लोग
को जो िलखना कम चाहते ह और पाना
अिधक। कहना यह अिधक अिभेत होगा िक
वे अिधक िलख ही नह सकते ह। ऐसे ही
अप ितभा या मझोले ितभाशाली, िकतु
साधन संप रचनाकार िकसी भी ऐसे
रचनाकार को धराशायी करने क षडयं म
लगे रहते ह, जो अपनी ितभा का भरपूर
योग करने म लगे रहते ह। ......िकतु िजस
कार सुमित अयर का सािह यक बिहकार
िकया गया था कभी उससे भंयकर थित
मधुकर क साथ रही और अंत तक रही। एक
समय क हीरो को पटखनी देने म सफल रह थे
उनक ितंी।" उनक सूची म कई नाम ऐसे
ह, जो मठाित ह और कवल इसिलए दूसर
क हक पर क़ज़ा िकए ए ह। ख़ैर। .....देश
राजनीितक तर पर तो िबक रहा ह – या
सािह यक तर भी यही होगा। अतु ! इस
क वृि का िवरोध होना ही चािहए।"
इस पुतक म देश और दुिनया का जो
पर य िदखाई देता ह और आज क हालात
पर नज़र डालते ह तो लगता ह िक हमार
हालात और बदतर होते गए ह। हम और िनन
ए ह। हाँ, वैािनक िवकास और सुिवधाएँ
ज़र बढ़ी ह, परतु मानवीय मूय और
संवेदना का ास आ ह। िन त तौर पर यह
कहा जा सकता ह िक 'समय बोलता ह'
पुतक क प को पढते ए लगता ह िक हम
अतीत क गिलय म घूम रह ह अपने हाथ म
आईना पकड़ ए और ?द को देख रह ह।
मजे क बात यह भी ह िक ?द क आवाज़
?द क कान से टकरा रही ह। पुतक हम
सोचने को मजबूर करती ह िक हम सब
िमलकर एक बेहतर समाज कस बना सकते ह
और यह बेहतर समाज सािहय और कला क
आँख ही रच सकती ह, राजनीित नह।
000
फाम IV
समाचार प क अिधिनयम 1956 क धारा
19-डी क अंतगत वािमव व अय िववरण
(देख िनयम 8)।
पिका का नाम : िशवना सािह यक
1. काशन का थान : पी. सी. लैब, शॉप नं.
3-4-5-6, साट कॉ लैस बेसमट, बस
टड क सामने, सीहोर, म, 466001
2. काशन क अविध : ैमािसक
3. मुक का नाम : ?बैर शेख़s
पता : शाइन िंटस, लॉट नं. 7, बी-2,
?ािलटी परमा, इिदरा ेस कॉ लैस,
ज़ोन 1, एमपी नगर, भोपाल, म 462011
या भारत क नागरक ह : हाँ।
(यिद िवदेशी नागरक ह तो अपने देश का
नाम िलख) : लागू नह।
4. काशक का नाम : पंकज कमार पुरोिहत।
पता : पी. सी. लैब, शॉप नं. 3-4-5-6, साट
कॉ लैस बेसमट, बस टड क सामने,
सीहोर, म, 466001
या भारत क नागरक ह : हाँ।
(यिद िवदेशी नागरक ह तो अपने देश का
नाम िलख) : लागू नह।
5. संपादक का नाम : पंकज सुबीर।
पता : रघुवर िवला, सट एस कल क
सामने, चाणयपुरी, सीहोर, म 466001
या भारत क नागरक ह : हाँ।
(यिद िवदेशी नागरक ह तो अपने देश का
नाम िलख) : लागू नह।
4. उन य य क नाम / पते जो समाचार
प / पिका क वािमव म ह। वामी का
नाम : पंकज कमार पुरोिहत। पता : रघुवर
िवला, सट एस कल क सामने,
चाणयपुरी, सीहोर, म 466001
या भारत क नागरक ह : हाँ।
(यिद िवदेशी नागरक ह तो अपने देश का
नाम िलख) : लागू नह।
म, पंकज कमार पुरोिहत, घोषणा करता िक
यहाँ िदए गए तय मेरी संपूण जानकारी और
िवास क मुतािबक सय ह।
िदनांक 20 माच 2025
हतार पंकज कमार पुरोिहत
(काशक क हतार)
हाथ म आई 'सािहय क गुमटी' को देख मुझे लगा जैसे बड़ी-बड़ी कोिठय पर कटी िलखा
होता ह, उसी कार क यह सािहय क गुमटी ह। एक तरफ िजासा, दूसरी तरफ जाने माने
लेखक धमपाल मह जैन का नाम। मने पाया िक 'सािहय क गुमटी' धमपाल जी क अय
कितय से बीस नह ब क इकस ही ह जो हाय-यंय क आईने म समाज और मानव
वभाव तथा यवथा का गहन अवलोकन कराती ह। यह कटापूण िटपिणय, शहरी व
ामीण पृभूिम और सामािजक िवसंगितय का िवतृत ख़ाका एक साथ खचती ह। यह
पुतक भी उनक अय पुतक क तरह से यंय का ख़ज़ाना, अयवथा पर हथौड़ जैसी
चोट और पाठक क िलए अिवमरणीय ान, मनोरजन व बौिक उेजना का सागर ह। यह
आम से लेकर ख़ास और सािहय क अनुभवी पाठक क िलए शोध सामी दान करने वाली
क?ित ह। जैसे गुदड़ी म ही लाल पैदा होते ह और गुदड़ी म ही हीर िछपे होते ह, उसी तरह से
सािहय क इस गुमटी म अड़तालीस लाल िछपे ए ह, वह भी एक से बढ़कर एक।
'ज़हर क सौदागर' रचना म यंयकार धमपाल मह जैन आजकल क हालात पर यंय
कसते ए िलखते ह िक ज़हर भी असली-नकली और यापार बन गया ह। बाज़ार म ज़हर का
टॉक कम पड़ गया ह। िकसान को िबना ज़हर आमहया करनी पड़ रही ह। युवा पेपरलीक
और बेरोज़गारी म ही दम घोट रह ह। दरदे रप पीिड़ता को मारकाटकर फक देते ह। दुिनया क
ज़हर पर भी दबंग और दादागीरी करने वाल का एकािधकार ह। वे दुकानदार को कहते ह िक
ज़हर बेचोगे तो हम ही बेचोगे अयथा नह, बेचोगे तो बचोगे? रचना म कहा गया ह िक िजसक
लाठी उसक भस। 'िकनार का ताड़ वृ' म यंयामक तरीक़ से लेखक कहते ह- ताड़ वृ
यिद ताक़तवर का ह तो उसे सब अपना मानने लगगे। इसे महारा अपने समु िकनार का
बताएगा, करल वाले अपनी संकित का तीक बताएँगे, चेरापूँजी वाले उसे सौवी जाित
करार दगे, भले ही वह कबीर क इस दोह से मेल खा रहा हो 'बड़ा आ तो या आ जैसे पेड़
खजूर। पंथी को छाया नह, फल लागे अित दूर।' मोबाइल क अंधी दुिनया म खोए लोग क
आँख खोलती 'वासऐप नह भासऐप' नामक रचना म तीण यंय बाण चलाते ए धमपाल
जी िलखते ह- 'रात क बारह बज गए ह। िनशाचर क रचनामक लेखन का समय हो गया ह।
सारा देश जब सो रहा हो तब सािहयकार और उू को अपना क य िनबाहना होता ह।
वासऐप समूह म आया चवाती तूफ़ान शांत हो गया तो यह भासऐप कथा मने भी िलिपब
कर दी ह तािक सनद रह।'
राजनीित क ख़ाली घोषणा क पोल खोलती रचना 'बपर घोषणा क ज़माने म'
लेखक ने इस तरह से यंय को परोसा ह िक पाठक क न तो हसी ?कती ह और न ही पठन का
म। वे याली पुलाव वाली राजनीित पर हार करते ए िलखते ह िक आप अमेरका से लेकर
िजबावे तक क सरकार क घोषणा क पुिलंदा देख तो आपका िदमाग़ घूम जाएगा। सब
शोध-आलोचना
आर पी तोमर
नीलकठ अपाटमट, गली नं. 7
महावीर इ ेव, नई िदी- 110045
मोबाइल- 9457714100
ईमेल- [email protected]
(यंय संह)
सािहय क गुमटी
समीक : आर पी तोमर
लेखक : धमपाल मह जैन
काशक : िशवना काशन, साट
कॉ लैस बेसमट, सीहोर, म
466001, फ़ोन-07562405545
मोबाइल- +91-9806162184
ईमेल- [email protected]

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 202511 10 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 2025
एक ही थाली क च ब ह। हर देश म
ग़रीब ह। उनक िलए घोषणाएँ होती ह पर
िबचौिलये अमीर हो जाते ह। भारत को ही ले
ल। जेल म क़द मुयमंी समेत देश क
अ?ाइस-तीस मंी, सैकड़ छटभैये,
उपमुयमंी और किबनेट मंी ऐसे ही ह। वे
शौचालय म भी घोषणाएँ ही सोचते ह।
घोषणा क गित वे नह बताते, गित तो
बाबू बताते ह। वे काम िगनाते ह। धोबी का
गधा पाँच ंटल कपड़ लादकर ले जाता ह
तो बताता थोड़ ही ह िक उसने इतने कपड़
ढोये, लेिकन ढोने का ेय धोबी ही लेता ह।
नेता तो कवल घोषणाएँ करते ह। इह
घोषणा क बूते पर मिहला क िव
घोर अपराध करने वाले, िदल फक प
अमेरका क राजनीित म िफर से छा गए।
इज़रायल ने वरा अिधकार क घोषणा कर
चालीस हज़ार लोग मार डाले। स क 'नो
नाटो' घोषणा ने यू न को खंडहर बना िदया।
लेिकन दुिनया म भाईचार व शांित क घोषणा
नह होती।
'तानाशाह क मक़बर म' यंयकार ने
यंय क तीखी क हाड़ी से अंधभ व
भेड़चाल को काटने क कोिशश क ह, तो
अयवथा पर भारी हथौड़ से वार िकया ह।
'आज क भ काल म' चमचािगरी करने
वाल पर यंय का ख़ंजर चला ह तो सबक
भी िदया ह िक जो जैसा होगा वैसा ही सोचेगा।
अपने तरीक़ से कटा करने म मािहर
धमपाल जी ने 'िवदेशी िडबेट म बाबा' क
रचना क ह। िजसम टीआरपी का खेल
िदखाया गया ह। टीवी चैनल क गमागम
बहस म एंकर बोलता ह- "घबराइये नह। दो
सेकड का समय कहने का ह, आपम दम हो
तो दो िमनट िचाइए। ये कोई संसद तो ह
नह िक हम आपका माइक बंद कर दगे। भला
कोई िडबेट कभी ख़म होती ह या!" इसम
जहाँ भारतीय संसद पर कटा िकया गया ह
वह महाक भ पर यंय करते ए कहा ह िक
करोड लोग पानी म डबक लगाते ह पर पानी
पिव ही रहता ह! 'राजा और मेधावी क यूटर'
म सपन क दुिनया म खोए राजा क बिखया
उधेड़ी गई ह। पोल खोलती इस रचना म
सोलहव सदी म रह रही जनता को इकसव
सदी म प चे राजा क नद तोड़कर उसक
सामने सच खड़ा िकया गया ह।
वैसे तो शीषक 'भाषा क हाइवे पर ग
ही ग ' अपने आप म ?द बयाँ कर देता ह
िक लेखक पैनी तलवार लेकर यवथा पर
हार करने को तैयार बैठ ह। उससे भी आगे
जाकर धमपाल जी साफ़गोई से कहते ह िक
िबना सरगम साधे कवल गला फाड़कर
आलाप मारने और मुरिकय क पैबंद लगाने
से कोई गायक नह बन सकता। वे सीख देते ह
िक अब जब आलोचक बन ही रह ह तो मेरी
तरह से खुलकर आलोचना कर। आपक
आलोचना का डका अवय बजेगा। यह
रचना बत िवचिलत करती ह। यह िचंता पैदा
करती ह िक हमने यिद मंदबुि और चमचे
लेखक को सािहयकार मानना शु कर
िदया तो से क़लमकार अपनी कलम तोड़
दगे। अगला शीषक 'लाइक बटोरो और
कमाओ' ह। िजसम लाइक क कमाई पर
सटीक यंय िकया गया ह। लेखक कहते ह
िक िन य लोग को सिय करने क िलए
एक स?न दूसर को सुभात बोलते ह और
उनक आवाज़ सुनकर कहते ह िक ?शी ई
िक तुम िज़ंदा हो। सामने वाला कहता ह िक ये
या बात ई, म िपछले इकहर साल से
िज़ंदा । तब पहला बोलता ह िक िज़ंदा हो तो
फसबुक पर िदखा करो। मेरी टाइम लाइन पर
एक िमनट वीिडयो देखो और कम स करो तो
मुझे पता चलेगा िक मेरा बंदा िज़ंदा ह। रोज़
सुबह शाम ?द भी लाइक करो और भाभी व
ब से भी कराओ। लेखक दुिनया म िदन-
रात का अलग-अलग समय देते ए कहते ह
िक वैीकरण क इस दौर म लोग क पास
सोने का भी समय नही बचा ह। यिक दुिनया
क िकसी भी कोने से उनका कोई आभासी
परजन बितयाना चाह तो वे उपलध रह।
सािहय क गुमटी म 'सबसे बड़ा ोफ़सर
िहदी का' शीषक वातव म िहदी क पीड़ा
को य करता ह। यह ऐसी रचना ह, िजसम
तीण बाण चलाते ए रचनाकार ने िहदी क
दुदशा का आईना िदखाया ह। यंयकार
कहते ह िक अंेज़ क मुय बसावट वाले
देश म गे ए रग का कलीन िवदेशी भारतीय
िमल जाए तो आगतुक भारतीय स हो
जाता ह। बात होती ह तो कई बड़ वगवासी
लेखक-लेिखका क चर का पोटमॉटम
होता ह। उनक वहाँ से इतना बदबूदार िवसरा
िनकलता ह िक इन वगवािसय को
सािहयकार मानने म िघन आने लगती ह।
दया क पा िहदी को लेकर धमपाल जी
िलखते ह िक 'कछ बड़ पुतकालय खँगाल
लो। िहदी क कोई पापुतक िकसी
गाइडलाइस का पालन करते ए बनी हो तो
मुझे बताना। वह िहदी क पापुतक ह,
कोई दरोगे का रोज़नामचा नह जो िकह
िनयम का पालन कर।'
'सरकार बनेगी तो कचरा हटगा' रचना म
यंयकार ने जमकर राजनीित क बिखया
उधेड़ी ह और कहा ह िक राजनीित म िकस
तरह से कचरा भरा पड़ा ह, िजह कह ओर
काम नह िमलता वे राजनीित म आ जाते ह।
उहने अपने अंदाज़ म कहा ह िक- 'सार देश
का कचरा चुन-चुनकर िदी म आता ह
और लडिफल क बजाय राजनीित म पसर
जाता ह। जनता िदी म हमारी सरकार बना
दे तो हम भी िदी को कचर क राजधानी
बना द। ... हम िदी क चार ओर लडिफल
ही लडिफल बनवा दगे।'
पनी क नज़र म पित हमेशा उसी तरह से
पपू यानी िक छोटा होता ह जैसे िक देशवासी
राल गाँधी को पपू मानते ह। 'बड़ा आ तो
या आ' रचना म यंयकार क शद क
बाजीगरी कमाल क ह। मने आपको यहाँ
कछ िहट दे दी ह, बाक आपको ?द पढ़ना
पड़गा। 'र बीज का या मतलब' म लेखक
बड़ ही सलीक़ से िफ़म क मायम से र
बीज का मतलब ऐसे समझाते ह िक धीर का
झटका ज़ोर से लगता ह। अब हम आते ह
'होरी खेले यंयवीरा अवध म' पर। इसम
संपादक को पा बनाकर उसक धुलाई क
गई ह। उसक थोड़ी-सी झलक आपको
िदखाता , ग़रीब क जो और संपादक क
पनी सबक भाभी होती ह। यिक वे ही खोह
भरी गुिजया िखलाती ह, वे ही भाँग को ठडाई
कहकर परोसती ह। होली क गाल गाते लोग
संपादक जी को छड़ते ह। 'संपादक म अकल
को टोटो, काँसे िनकार ने माँजे लोटो।'
चुनरी म डार अबीर अवध म, गमछ को
रग म रग दे संपािदया। रग-िबरगी समियाँ
छापे, बड़ो ही रगीलो देखो संपािदया। ।
भारत म साप ने िकस तरह से ईडी को
ताकतवर व राजनीितक हिथयार बना िदया ह,
ईडी क बेज़ा इतेमाल क पोल खोलती 'ईडी
ह तो जातं थर ह' रचना म धमपाल जी ने
कलाकारी करते ए जमकर मारा भी और रोने
भी नह िदया। रचना क एक अंश क बानगी
देिखये- तो आपको बाबिलय से डर नह
लगता। कह उहने आपको ही िनपटवा िदया
या आपक नाम क सुपारी दे दी तो? इस पर
नेता जी बोले- "हम राजनीित ह, दोमुँह साँप
जैसे। हमार एक तरफ ईडी ह, दूसरी तरफ
सीबीआई। हमको काह का डर। सुसर
बाबली ने कभी ऊच-नीच क तो हम उसक
फाइल भर िदखाना ह। कोई िकतना भी बड़ा
य न हो, ईडी से अिधक पावरफल थोड़ ही
ह। ईडी ह तो जातं थर ह। सीबीआई
इशारा कर दे तो बाबली सार िवपिय को
हमार खेमे म ला सकता ह। जातं क चार
तंभ ईडी, बाबली, सीबीआई और
बुलडोजर ह।" लेखक ने कारपोरट घरान पर
भी क हाड़ी चलाई ह। यात सािहयकार
परसाई जी क आमा को पा बनाकर 'िवदेश
म परसाई से दो टक' रचना म धमपाल जी
िलखते ह- 'अछा ह आप आमा बनकर
आए, और िवदेशी धरती पर आए। भारत
प चे होते तो, अब तक आपक आमा क
रशे-रशे पर िवमश हो जाता और गंगा िकनार
क रत म आपको भी गाड़ िदया जाता। यिद
आप सशरीर भारत प चे होते तो या तो
आपको संकित रक क भीड़ िजंदा जला
देती या रावादी पुिलस घुसपैिठया समझकर
एनकाउटर कर देती।' "वणभम फाँककर
िलखने वाले" रचना म िबकाऊ मीिडया व
राजनीित क साँठगाँठ का का िच?ा
खोलकर लेखक ने िनडरता व साफ़गोई का
परचय िदया ह। लालच बुरी बलाय क
मुहावर को 'जातं क अँगूठी' रचना म
साा िकया गया ह तो ाकितक दुिनया क
सैर 'एलसली पाक क बच' म कराई गई ह।
शोहरत पाने क मौक़ िकस तरह से भुनाए जाते
ह इस पर सटीक यंय िकया गया ह 'साहब
को ?काम ह पर...' रचना म।
'संकित संामक बीमारी ह' रचना क
अंितम पाँच लाइन- ेत डकत और
मािफया-िगरोह ने राजनीित को अब अपनी
दासी बना िलया ह। हर कह पैसे म संकित
ह। ज़मीनी तर से जेब भरना शु कर,
िवदेशी सौद को वज़रलड म अमली
जामा पहनाने क संकित िहलोर मार रही ह।
सरकार, मज़बूत सरकार बन रही ह।
इकसव सदी म हरामखोरी संकित क प
म ित त हो रही ह। 'कस एक चाँदीलाल
अनेक' रचना म नेता क कारगुज़ारी पर
आमण करते ए यंयकार कहते ह- इन
िदन नेतागीरी संामक बीमारी क तरह फल
रही ह। अब नेतागीरी याग, तपया वाली नह
रही, जो समाज को कछ दे! यह समाज को
चूसने, रत बटोरने और श दशन क
िलए भीड़ ख़रीदने क िलए उपजी नेतािगरी ह।
िकसी को नेता बनना ह तो वह सैकड़
छटभैय को पाट का झंडा और डडा थमाकर
संिमत कर देता ह। इनम से कछ पॉिजिटव
होकर कालेज, यूिनविसटी, पंचायत और
नगरपािलका क जरये राजनेता बन जाते
ह। तब चाँदीलाल जैसा नेता ?द को
युगवतक मानने लगता ह। इसी तरह क
यंय बाण 'िचपको और जेब भरो' म करते
ए छल-छ? क राजनीित क पोल खोलते
ए धमपाल जी क कलम ने कोई रहम नह
िकया ह। 'धम रक सदाचारी' म भी किथत
धम रक को रगड़-रगड़ कर धोया गया ह।
मूख, मुझम हवा भरो, हर िज़ले म िवधानसभा
बनाएँगे, संकित ढककर रखने क चीज़ ह,
अफ़वाह को अफ़वाह रहने द, अतुय इिडया
म 'जी टी' आिद सभी रचनाएँ िदल व
िदमाग़ क पुज़ ढीले कर देने वाली ह। खेल
क दुिनया म पहलवान क साथ ई नाइसाफ़
का ख़ाका खचने म भी लेखक ने कोई कमी
नह छोड़ी ह। अंितम रचना रविड़य से नेताजी
को मालामाल करते ए रचनाकार धमपाल
जी ने अपना पूरा दमखम लगाकर यंय क
तीर को कसे िमसाइल बना िदया ह इसका
पता आपको तब लगेगा, जब आप ?द
'सािहय क गुमटी' का रसावादन करगे।
मने तो आपको इसका लर िदखाया ह, पूरी
िफम देखने क िलए आप इसे मँगवाएँ।
'सािहय क गुमटी' को मने इस उेय से
पढ़ना शु िकया था िक इसम
आलोचनामक ढ ढ़ना ह, समालोचना क
जगह समीा करनी ह लेिकन 'ज़हर क
सौदागर' से लेकर अंत तक क रचना 'रवड़ी
बाँटने वाले मालामाल' तक िग से
पढ़ने क बाद भी म नकारामक नह खोज
पाया। म यह सोचने पर भी िववश िक
हज़ार मील दूर िवदेश म बैठ धमपाल जी क
पास दूर और तीण दूरबीनपी बुि ह
जो कनाडा म रहते ए भी वे मानवीय
दुबलता क आधार पर भारत व उससे बाहर
क देश म अयवथा, कित, संकित,
मानवीय मूय क ित आथा व सजगता,
राजनीितक थितय, समाज व आमजन क
पीड़ा तथा वेदना, पारवारक ज़रत और
उलझन का पता लगा लेते ह और उह यंय
रचना क मायम से बड़ी सफाई से काग़ज़
पर उकरते ह। 'सािहय क गुमटी' म लेखक
धमपाल जी ने ईमानदारी को तराजू म तोला ह।
रचना क मायम से यंय क िवधान और
िविध का सहज आलंबन िलया ह तो यंजना
क परिध से कोस दूर जाकर पुतक क
रचना को नैसिगक वाह म ले जाते ए
हाय क अका? िमसाल क़ायम क ह।
यही नह ब क सभी रचना म िशप और
भािषक नवीनता ह। पाठक को रचना क
ित उसािहत व आंदोिलत करने का
यंयकार का उेय इस पुतक म सौ
ितशत पूरा आ ह। िन त ही पाठक को
लेखक क यंय बाण फ त करगे और
तुत लािलय मोिहत करगा। यंजना म
अिभय ये रचनाएँ रिसक क सािह यक
कसौटी पर खरी उतरती ई नज़र आती ह।
यंयकार धमपाल मह जैन क इस पुतक
'सािहय क गुमटी' ने भी पाठक क
अपेा को पूरा िकया ह।
000

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 202511 10 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 2025
एक ही थाली क च ब ह। हर देश म
ग़रीब ह। उनक िलए घोषणाएँ होती ह पर
िबचौिलये अमीर हो जाते ह। भारत को ही ले
ल। जेल म क़द मुयमंी समेत देश क
अ?ाइस-तीस मंी, सैकड़ छटभैये,
उपमुयमंी और किबनेट मंी ऐसे ही ह। वे
शौचालय म भी घोषणाएँ ही सोचते ह।
घोषणा क गित वे नह बताते, गित तो
बाबू बताते ह। वे काम िगनाते ह। धोबी का
गधा पाँच ंटल कपड़ लादकर ले जाता ह
तो बताता थोड़ ही ह िक उसने इतने कपड़
ढोये, लेिकन ढोने का ेय धोबी ही लेता ह।
नेता तो कवल घोषणाएँ करते ह। इह
घोषणा क बूते पर मिहला क िव
घोर अपराध करने वाले, िदल फक प
अमेरका क राजनीित म िफर से छा गए।
इज़रायल ने वरा अिधकार क घोषणा कर
चालीस हज़ार लोग मार डाले। स क 'नो
नाटो' घोषणा ने यू न को खंडहर बना िदया।
लेिकन दुिनया म भाईचार व शांित क घोषणा
नह होती।
'तानाशाह क मक़बर म' यंयकार ने
यंय क तीखी क हाड़ी से अंधभ व
भेड़चाल को काटने क कोिशश क ह, तो
अयवथा पर भारी हथौड़ से वार िकया ह।
'आज क भ काल म' चमचािगरी करने
वाल पर यंय का ख़ंजर चला ह तो सबक
भी िदया ह िक जो जैसा होगा वैसा ही सोचेगा।
अपने तरीक़ से कटा करने म मािहर
धमपाल जी ने 'िवदेशी िडबेट म बाबा' क
रचना क ह। िजसम टीआरपी का खेल
िदखाया गया ह। टीवी चैनल क गमागम
बहस म एंकर बोलता ह- "घबराइये नह। दो
सेकड का समय कहने का ह, आपम दम हो
तो दो िमनट िचाइए। ये कोई संसद तो ह
नह िक हम आपका माइक बंद कर दगे। भला
कोई िडबेट कभी ख़म होती ह या!" इसम
जहाँ भारतीय संसद पर कटा िकया गया ह
वह महाक भ पर यंय करते ए कहा ह िक
करोड लोग पानी म डबक लगाते ह पर पानी
पिव ही रहता ह! 'राजा और मेधावी क यूटर'
म सपन क दुिनया म खोए राजा क बिखया
उधेड़ी गई ह। पोल खोलती इस रचना म
सोलहव सदी म रह रही जनता को इकसव
सदी म प चे राजा क नद तोड़कर उसक
सामने सच खड़ा िकया गया ह।
वैसे तो शीषक 'भाषा क हाइवे पर ग
ही ग ' अपने आप म ?द बयाँ कर देता ह
िक लेखक पैनी तलवार लेकर यवथा पर
हार करने को तैयार बैठ ह। उससे भी आगे
जाकर धमपाल जी साफ़गोई से कहते ह िक
िबना सरगम साधे कवल गला फाड़कर
आलाप मारने और मुरिकय क पैबंद लगाने
से कोई गायक नह बन सकता। वे सीख देते ह
िक अब जब आलोचक बन ही रह ह तो मेरी
तरह से खुलकर आलोचना कर। आपक
आलोचना का डका अवय बजेगा। यह
रचना बत िवचिलत करती ह। यह िचंता पैदा
करती ह िक हमने यिद मंदबुि और चमचे
लेखक को सािहयकार मानना शु कर
िदया तो से क़लमकार अपनी कलम तोड़
दगे। अगला शीषक 'लाइक बटोरो और
कमाओ' ह। िजसम लाइक क कमाई पर
सटीक यंय िकया गया ह। लेखक कहते ह
िक िन य लोग को सिय करने क िलए
एक स?न दूसर को सुभात बोलते ह और
उनक आवाज़ सुनकर कहते ह िक ?शी ई
िक तुम िज़ंदा हो। सामने वाला कहता ह िक ये
या बात ई, म िपछले इकहर साल से
िज़ंदा । तब पहला बोलता ह िक िज़ंदा हो तो
फसबुक पर िदखा करो। मेरी टाइम लाइन पर
एक िमनट वीिडयो देखो और कम स करो तो
मुझे पता चलेगा िक मेरा बंदा िज़ंदा ह। रोज़
सुबह शाम ?द भी लाइक करो और भाभी व
ब से भी कराओ। लेखक दुिनया म िदन-
रात का अलग-अलग समय देते ए कहते ह
िक वैीकरण क इस दौर म लोग क पास
सोने का भी समय नही बचा ह। यिक दुिनया
क िकसी भी कोने से उनका कोई आभासी
परजन बितयाना चाह तो वे उपलध रह।
सािहय क गुमटी म 'सबसे बड़ा ोफ़सर
िहदी का' शीषक वातव म िहदी क पीड़ा
को य करता ह। यह ऐसी रचना ह, िजसम
तीण बाण चलाते ए रचनाकार ने िहदी क
दुदशा का आईना िदखाया ह। यंयकार
कहते ह िक अंेज़ क मुय बसावट वाले
देश म गे ए रग का कलीन िवदेशी भारतीय
िमल जाए तो आगतुक भारतीय स हो
जाता ह। बात होती ह तो कई बड़ वगवासी
लेखक-लेिखका क चर का पोटमॉटम
होता ह। उनक वहाँ से इतना बदबूदार िवसरा
िनकलता ह िक इन वगवािसय को
सािहयकार मानने म िघन आने लगती ह।
दया क पा िहदी को लेकर धमपाल जी
िलखते ह िक 'कछ बड़ पुतकालय खँगाल
लो। िहदी क कोई पापुतक िकसी
गाइडलाइस का पालन करते ए बनी हो तो
मुझे बताना। वह िहदी क पापुतक ह,
कोई दरोगे का रोज़नामचा नह जो िकह
िनयम का पालन कर।'
'सरकार बनेगी तो कचरा हटगा' रचना म
यंयकार ने जमकर राजनीित क बिखया
उधेड़ी ह और कहा ह िक राजनीित म िकस
तरह से कचरा भरा पड़ा ह, िजह कह ओर
काम नह िमलता वे राजनीित म आ जाते ह।
उहने अपने अंदाज़ म कहा ह िक- 'सार देश
का कचरा चुन-चुनकर िदी म आता ह
और लडिफल क बजाय राजनीित म पसर
जाता ह। जनता िदी म हमारी सरकार बना
दे तो हम भी िदी को कचर क राजधानी
बना द। ... हम िदी क चार ओर लडिफल
ही लडिफल बनवा दगे।'
पनी क नज़र म पित हमेशा उसी तरह से
पपू यानी िक छोटा होता ह जैसे िक देशवासी
राल गाँधी को पपू मानते ह। 'बड़ा आ तो
या आ' रचना म यंयकार क शद क
बाजीगरी कमाल क ह। मने आपको यहाँ
कछ िहट दे दी ह, बाक आपको ?द पढ़ना
पड़गा। 'र बीज का या मतलब' म लेखक
बड़ ही सलीक़ से िफ़म क मायम से र
बीज का मतलब ऐसे समझाते ह िक धीर का
झटका ज़ोर से लगता ह। अब हम आते ह
'होरी खेले यंयवीरा अवध म' पर। इसम
संपादक को पा बनाकर उसक धुलाई क
गई ह। उसक थोड़ी-सी झलक आपको
िदखाता , ग़रीब क जो और संपादक क
पनी सबक भाभी होती ह। यिक वे ही खोह
भरी गुिजया िखलाती ह, वे ही भाँग को ठडाई
कहकर परोसती ह। होली क गाल गाते लोग
संपादक जी को छड़ते ह। 'संपादक म अकल
को टोटो, काँसे िनकार ने माँजे लोटो।'
चुनरी म डार अबीर अवध म, गमछ को
रग म रग दे संपािदया। रग-िबरगी समियाँ
छापे, बड़ो ही रगीलो देखो संपािदया। ।
भारत म साप ने िकस तरह से ईडी को
ताकतवर व राजनीितक हिथयार बना िदया ह,
ईडी क बेज़ा इतेमाल क पोल खोलती 'ईडी
ह तो जातं थर ह' रचना म धमपाल जी ने
कलाकारी करते ए जमकर मारा भी और रोने
भी नह िदया। रचना क एक अंश क बानगी
देिखये- तो आपको बाबिलय से डर नह
लगता। कह उहने आपको ही िनपटवा िदया
या आपक नाम क सुपारी दे दी तो? इस पर
नेता जी बोले- "हम राजनीित ह, दोमुँह साँप
जैसे। हमार एक तरफ ईडी ह, दूसरी तरफ
सीबीआई। हमको काह का डर। सुसर
बाबली ने कभी ऊच-नीच क तो हम उसक
फाइल भर िदखाना ह। कोई िकतना भी बड़ा
य न हो, ईडी से अिधक पावरफल थोड़ ही
ह। ईडी ह तो जातं थर ह। सीबीआई
इशारा कर दे तो बाबली सार िवपिय को
हमार खेमे म ला सकता ह। जातं क चार
तंभ ईडी, बाबली, सीबीआई और
बुलडोजर ह।" लेखक ने कारपोरट घरान पर
भी क हाड़ी चलाई ह। यात सािहयकार
परसाई जी क आमा को पा बनाकर 'िवदेश
म परसाई से दो टक' रचना म धमपाल जी
िलखते ह- 'अछा ह आप आमा बनकर
आए, और िवदेशी धरती पर आए। भारत
प चे होते तो, अब तक आपक आमा क
रशे-रशे पर िवमश हो जाता और गंगा िकनार
क रत म आपको भी गाड़ िदया जाता। यिद
आप सशरीर भारत प चे होते तो या तो
आपको संकित रक क भीड़ िजंदा जला
देती या रावादी पुिलस घुसपैिठया समझकर
एनकाउटर कर देती।' "वणभम फाँककर
िलखने वाले" रचना म िबकाऊ मीिडया व
राजनीित क साँठगाँठ का का िच?ा
खोलकर लेखक ने िनडरता व साफ़गोई का
परचय िदया ह। लालच बुरी बलाय क
मुहावर को 'जातं क अँगूठी' रचना म
साा िकया गया ह तो ाकितक दुिनया क
सैर 'एलसली पाक क बच' म कराई गई ह।
शोहरत पाने क मौक़ िकस तरह से भुनाए जाते
ह इस पर सटीक यंय िकया गया ह 'साहब
को ?काम ह पर...' रचना म।
'संकित संामक बीमारी ह' रचना क
अंितम पाँच लाइन- ेत डकत और
मािफया-िगरोह ने राजनीित को अब अपनी
दासी बना िलया ह। हर कह पैसे म संकित
ह। ज़मीनी तर से जेब भरना शु कर,
िवदेशी सौद को वज़रलड म अमली
जामा पहनाने क संकित िहलोर मार रही ह।
सरकार, मज़बूत सरकार बन रही ह।
इकसव सदी म हरामखोरी संकित क प
म ित त हो रही ह। 'कस एक चाँदीलाल
अनेक' रचना म नेता क कारगुज़ारी पर
आमण करते ए यंयकार कहते ह- इन
िदन नेतागीरी संामक बीमारी क तरह फल
रही ह। अब नेतागीरी याग, तपया वाली नह
रही, जो समाज को कछ दे! यह समाज को
चूसने, रत बटोरने और श दशन क
िलए भीड़ ख़रीदने क िलए उपजी नेतािगरी ह।
िकसी को नेता बनना ह तो वह सैकड़
छटभैय को पाट का झंडा और डडा थमाकर
संिमत कर देता ह। इनम से कछ पॉिजिटव
होकर कालेज, यूिनविसटी, पंचायत और
नगरपािलका क जरये राजनेता बन जाते
ह। तब चाँदीलाल जैसा नेता ?द को
युगवतक मानने लगता ह। इसी तरह क
यंय बाण 'िचपको और जेब भरो' म करते
ए छल-छ? क राजनीित क पोल खोलते
ए धमपाल जी क कलम ने कोई रहम नह
िकया ह। 'धम रक सदाचारी' म भी किथत
धम रक को रगड़-रगड़ कर धोया गया ह।
मूख, मुझम हवा भरो, हर िज़ले म िवधानसभा
बनाएँगे, संकित ढककर रखने क चीज़ ह,
अफ़वाह को अफ़वाह रहने द, अतुय इिडया
म 'जी टी' आिद सभी रचनाएँ िदल व
िदमाग़ क पुज़ ढीले कर देने वाली ह। खेल
क दुिनया म पहलवान क साथ ई नाइसाफ़
का ख़ाका खचने म भी लेखक ने कोई कमी
नह छोड़ी ह। अंितम रचना रविड़य से नेताजी
को मालामाल करते ए रचनाकार धमपाल
जी ने अपना पूरा दमखम लगाकर यंय क
तीर को कसे िमसाइल बना िदया ह इसका
पता आपको तब लगेगा, जब आप ?द
'सािहय क गुमटी' का रसावादन करगे।
मने तो आपको इसका लर िदखाया ह, पूरी
िफम देखने क िलए आप इसे मँगवाएँ।
'सािहय क गुमटी' को मने इस उेय से
पढ़ना शु िकया था िक इसम
आलोचनामक ढ ढ़ना ह, समालोचना क
जगह समीा करनी ह लेिकन 'ज़हर क
सौदागर' से लेकर अंत तक क रचना 'रवड़ी
बाँटने वाले मालामाल' तक िग से
पढ़ने क बाद भी म नकारामक नह खोज
पाया। म यह सोचने पर भी िववश िक
हज़ार मील दूर िवदेश म बैठ धमपाल जी क
पास दूर और तीण दूरबीनपी बुि ह
जो कनाडा म रहते ए भी वे मानवीय
दुबलता क आधार पर भारत व उससे बाहर
क देश म अयवथा, कित, संकित,
मानवीय मूय क ित आथा व सजगता,
राजनीितक थितय, समाज व आमजन क
पीड़ा तथा वेदना, पारवारक ज़रत और
उलझन का पता लगा लेते ह और उह यंय
रचना क मायम से बड़ी सफाई से काग़ज़
पर उकरते ह। 'सािहय क गुमटी' म लेखक
धमपाल जी ने ईमानदारी को तराजू म तोला ह।
रचना क मायम से यंय क िवधान और
िविध का सहज आलंबन िलया ह तो यंजना
क परिध से कोस दूर जाकर पुतक क
रचना को नैसिगक वाह म ले जाते ए
हाय क अका? िमसाल क़ायम क ह।
यही नह ब क सभी रचना म िशप और
भािषक नवीनता ह। पाठक को रचना क
ित उसािहत व आंदोिलत करने का
यंयकार का उेय इस पुतक म सौ
ितशत पूरा आ ह। िन त ही पाठक को
लेखक क यंय बाण फ त करगे और
तुत लािलय मोिहत करगा। यंजना म
अिभय ये रचनाएँ रिसक क सािह यक
कसौटी पर खरी उतरती ई नज़र आती ह।
यंयकार धमपाल मह जैन क इस पुतक
'सािहय क गुमटी' ने भी पाठक क
अपेा को पूरा िकया ह।
000

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 202513 12 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 2025
कहानी "हािसल" म पुरानी परिचता
रजना अनस क मौत क ख़बर िमली। िपछली
मृितय से मन का याकल पंछी उन िदन
तक भटक आता ह। कहानी का सारा
"हािसल" पनी म िमलता ह। िजनसे बरस
बीत गए अलग कमर म रहते। कहानी एक
वाय क करघे पर बुनी गई ह। "यिथत तन
मन क पनाहगाह आ मक संबंध ह।" शादी
म रजना और मुय पा क बीच टोर म म
काम का य सुधा और चंदर क मृित
अनायास ही सामने लाकर खड़ी कर देता ह।
कहानी "ज़ाती मकान थोड़ी ह" म
आलोक से ब होते ह। उनको घर से थोड़ी
सी दूरी पर ही पुिलस आने क वजह से बेटी
रोक देती ह। आलोक ने सुना तो वह िचंितत हो
गए। जो अपने घर परवार म पहले नौकरी
पेशा थे। वह ेीय मुयालय म थे। उनम
एक अलहदा बात थी जो सबसे अलग करती।
आलोक को सपने याद रहते ह। उनक सपन
म घर शािमल रहते। अलग-अलग कार क
मकान, झोपड़-पी, अधबने से लेकर
साज-स?ा यु? आधुिनक और महगे हाई
सोसायटी वाले घर। ख़ैर नौकरी म दूसर शहर
ांफ़र आ तो दूरी क वजह से पैतृक घर से
नौकरी कर पाना सभव नह था। वे नौकरी
बावत अपने एक सप रतेदार क पास
कछ रोज़ रह। मकान क तलाश भी चलती
रही। िकराए पर मकान िमलना ही था।
आलोक चूँिक बककम थे। अतः िनयम क
अंतगत मकान का िकराएदार बक था। आर
टी ओ वाले िनगम साहब कछ समय बीतने क
बाद आलोक को घर ख़ाली करने को कहने
लगे। आलोक ने िनयम याद िदलाए। एक रोज़
िनगम साहब काफ तैश म बक प च गए।
िनगम क शद का चयन कछ ऐसा था िक
मामला काफ िबगड़ गया। मकान जैसे िमला
वैसे ख़ाली भी आ। िकतु िनगम ने घर क
आस-पड़ोस भी अपने ढग से बात रखकर
सबध का मृदुल गिणत ऊटपटाँग कर
िदया। आलोक क िख़लाफ़ कोई रपोट न थी।
शहर से लगे गँवई इलाक म बाढ़ आई थी। सो
पुिलस फोस भेजने क िलए क क इतज़ाम
क िलए िनगम क पास आए थे। आलोक क
उ बढ़ती गई। वह रटायर हो गए। िनजी घर
भी ठीक-ठाक बनवा िलया। नया मकान
अपने पुराने घर क याद िदलाता। िज़ंदगी क
नोटबुक क अब यादा प?े ख़ाली नह बचे
थे। वहाँ िपछला िकतना कछ दज था।
बुलडोज़र चलने क बाद उह ग़रीब झोपड़-
पी वाले घर वाले मलबे पर खड़ा पाते ह।
घर का मु?ा ही आलोक क जीवन म लगभग
क म था। दरअसल आलोक क ज़ेहन म
उ भर िवथापन क टीस सामानांतर मौजूद
थी। और घर क सपने इसी टीस क युपि
रही, ताउ।
समाज मटीलेयर होता ह। यह सरल
इसानी वृि होती ह उसका िजस वग क
लोग क बीच उठना बैठना होता ह। उनक
चध से मन ही मन भािवत होना वाभािवक
ह। संह "िवप" कहानी म सरोज िसहा
इह मन: थितय से इेफ़ाक़ रखती ह।
सम अतीत क िवथापन क बाद कहाँ
चमचमाती चमक भरी दुिनया नई नकोर
लगती ह। सरोज ने क़रीब से देखा ह। और
कहाँ थाई ऊब भरा परवेश, िजसम लबे
समय से या मजाल री भर बदलाव आ
हो। बस जीवन क िदन बीतते रह। िकटी-पाट
म अवल सरोज पर समूची िम-मंडली क
िनगाह ठहर जाती। सरोज क मुँह का ज़ायका
डायिनंग-टबल को देखकर िबगड़ जाता। मेज़
पुराने समय क थी और उसक ऊपरी सतह
िचटक चुक थी। िजसे मेज़पोश क मदद से
थोड़ा सुधार िदया गया। मेज़ क अदेखी
सतह, उह लगता लोग क िनगाह इसी गोपन
को उघाड़ देती ह। गृहथी शादी क शु?आती
िदन क थी। िकस जोड़-जुटान क साथ
गृहथी जुटाई। पुराने िदन रवाइड होते। वह
डाइिनंग टबल पित ले आए थे। परवार क
सदय क संग बैठकर खाने का सुख अलग
होता ह। छोट बजट वाले कछ बदलाव सरोज
ने अपने नए घर म िकए, जैसे फल क पौधे,
चादर, मेज़पोश आिद आिद। ईमानदार और
िसांतवादी आलोक क नज़र म ये बात कभी
आई नह। उह जीवन भर िकताब का शौक
काफ था। पनी ने सराइज़ क तौर पर शीशे
क टाप वाली चमकती डायिनंग टबल ली।
डायिनंग टबल क बदलाव पित म कछ उछाह
नह। उनक चुपी म अय पढ़ना किठन
नह ह।
अगली कहानी "दीमक" को संह क
एक और महवपूण कहानी कहगे। लेखकय
तिबयत क स?न नैरटर को अपना लेख बड़
उछाह से सुना रह थे। बेट क आने क आहट
से वह सब समेटने लगे। उमेश उन पर
िबगड़ने लगा। आँख क आपरशन क बाद
पढ़ते ए पकड़ जाना भाषा नरम क जगह
शद म तखी और अंदाज़ िशकायती उभर
आया। उ होने पर जैसी बेचारगी होनी चािहए
िपता क चेहर थी। वह इसिलए िक बेटा कह
रहा ह िक भुगतना तो हम ही पड़ता ह।
लेखकय वृि क िपता सफाई क मुा म
आ गए। नौकरी से रटायर हो चुक रमाकांत
जी क पास िलखने-पढ़ने क िलए इफ़रात
समय था। उनक पढ़ने-िलखने क िकसी को
कछ क़ न थी। महज इसी वजह से उनका
परचय बड़ और रसूखदार लोग से था। इससे
कछ काम भी सरलता से हो जाते। वह
लाइेरी जाते, रात देर तक पढ़ते- िलखते।
एक िम क अख़बार म कॉलम भी िलखना
होता। उ बढ़ती रही, परवार क अवहलना
तकलीफ़ देती। घर पर बढ़ते धािमक
आयोजन रात-रात भर नद म खलल डालते।
पढ़ना-िलखना दरिकनार। उहने कभी िकसी
से कछ न कहा। उ, िदमाग़, और परम
कछ न बचा था पास अब। ...और आिख़र
जाना था। सो एक िदन चले गए। अब पीछ
बची उनक िवरासत अथात िकताब, िलखा
आ जो छोड़ गए थे। उनक परिचत िम को
जब कथावाचक से मालूम पड़ा इस फ़ानी
दुिनया से रमाकांत जी क चले गए। कवीद
जी ने उनक फाइल म मौजूद लेख माँग, जो
दुलभ थे। बेट उमेश से और अपनी साली जो
िक उमेश क पनी रही इस बाबत कहा। बस
आासन ही िमला। समय बीतता गया। आ
कछ नह। कव जी ने लेख न भेजने क
िशकायत भी क। पनी ने उनसे पुराने लेख क
बार म पूछने पर एतराज़ जताया। शायद कछ
ऐसा हो िजसे वह न देना चाहते हो। उमेश ने
कछ समय अंतराल पर सपक ज़र िकया
अवचेतन क लाइेरी बेहद िवशाल होती ह। इसम ढर अधूर सपने, आकांाएँ, मृितयाँ,
घटनाएँ जीवन क ख -मीठ ओर-छोर समेत तमाम बेचैिनयाँ सब अलग-अलग फ़ाइल म
यव थत नह ग-म ढग से मौजूद रहते ह। जब बात लेखक नाम क जीव क आती ह।
तमाम अगले-िपछले, िनजी व इद-िगद क अनुभव लेखकय मन म लबे समय तक परमा
क बाद ही रचना का चेहरा आकार लेता ह। यह ?शी क बात ह ताप दीित क"िपछली
सदी क अंितम ेम कथा" से शु ई याा, अपने तीसर पड़ाव "कगार क आिख़री िसर पर"
तक आ प ची ह। वह यथाथ िसरजने म द रचनाकार ह। उनक इस नए कहानी-संह "कगार
क आिख़री िसर पर" म बारह कहािनयाँ मौजूद ह।
कहानी- संह म िजस पहली कहानी से पाठक क मुलाकात होती ह। वह "अगली सुबह
फ़लक पर आफ़ताब यादा रौशन था" ह। जो सामािजक- से काफ ठोस कहानी ह।
कहानी क मुय पा राम आधार को तलाशने िनकले कछ ख़ास मशक़त नह करनी पड़गी।
िकसी भी लड़क क िपता म राम आधार जी को सरलता से देख सकते ह । अब बारी आती ह
नािज़म अली क। लाख-हज़ार क भीड़ म अगर िचराग़ लेकर खोज तो िफलहाल िमलना
मु कल ह। अब बात आती ह समाज और परजन क, वह होते ही ह परपरा का ढोल पीटने
वाले। लगभग जड़ बुि क। उह अपने परवार और समाज क बेटी क "िववाह-िनमंण" म
"िवनीत" क जगह "नािज़म अली" िलखा जाना नाग़वार गुज़रता ह। समाज क वे लोग जो ?शी
और दुःख म साथ खड़ होते ह। शादी उनक ग़ैर मौजूदगी म होती ह। ऐसे नकली शुभिचंतक
क उप थित क बग़ैर िववाह से कहानी को बेहतर मुकाम िमला ह। या ही बात ह िक मददगार
नािज़म अली क संया यादा और परशान राम आधार घटते जाए। इन पर थितय क कचड़
से उगा शीषक"अगली सुबह फ़लक पर आफताब यादा रौशन था" कमल जान पड़ता ह।
"यवथा चालू आह" कहानी म पाएँगे, यह यवथा का सही मायने म पोटमाटम करती
ह। कहानी क क म पुषोम क गवाही का मामला, उ और बीमारी क मेलजोल से बनी
परथितयाँ ह। उन िदन िबना िकसी गारटी क य गत ज़मानत और हलफ़नामे पर एक लाख
तक का ऋण आसानी से िमलता था। िजसम यादातर ऋण क वापसी नह ई थी। उह अपने
तर पर जानकारी से पता चला यह गवाही ज़री ह । मुमिकन ह िक िवभाग आपक जगह
िकसी और को िडयूट कर दे। यवहारकता क धरातल पर देखने को िमला िक िनयम ताख पर
रखे जाने क िलए बने ह। उ और दुारय क बीच पुषोम जी इस ज़री काम क िलए
मैदान म उतर तो सहयोग नाम क िचिड़या दूर-दूर तक देखने को नह िमली। बक क उस
शाखा म, जहाँ थे िपछले मामल क सार महवपूण रकाड आलमारी से िनकाल कर गोदाम क
हवाले िमले। पुराने मुकदम को देखने क िलए िडयूट क मंशा धरी रह गई। याा-िबल भी
आपि क साथ वापस लौट आए। इस उ म परशानी क बाद हर ओर सुिवधा सहयोग ग़ायब।
अदालत म तारीख़ बढ़ने का अपना ही खेल ह। वह हलफ़नामे क कॉपी नह िमलने पर िनयम
क बात रखते ह। हलफ़नामा जो िक ज़री डायूमट ह इसक बग़ैर ऋण क वीकित
नामुमिकन ह। वह ऋण चुकता होने क रसीद माँगते ह। इस कहानी म यवथा कठघर म
खड़ी ह। अपने वसूल क पक पुषोम जी िवभागीय मुकदमे म हीरो बनकर उभर ह। उनक
िहसाब से हलफ़नामा िमलना उतना ज़री नह ह िजतनी ऋण वापसी क रसीद। यिक यहाँ
पर मामला ऋण वापसी का ही नह ह ग़लत हलफ़नामा देकर ाड का ह।
शोध-आलोचना
(कहानी संह)
कगार क आिख़री
िसर पर
समीक : कसुम लता पाडंय
संपादक : ताप दीित
काशक : लोकरजन काशन
कसुम लता पांडय
537 घ /413 ीनगर कालोनी
सीतापुर रोड, लखनऊ 226021, उ
मोबाइल- 6392769650
ईमेल- [email protected]

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 202513 12 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 2025
कहानी "हािसल" म पुरानी परिचता
रजना अनस क मौत क ख़बर िमली। िपछली
मृितय से मन का याकल पंछी उन िदन
तक भटक आता ह। कहानी का सारा
"हािसल" पनी म िमलता ह। िजनसे बरस
बीत गए अलग कमर म रहते। कहानी एक
वाय क करघे पर बुनी गई ह। "यिथत तन
मन क पनाहगाह आ मक संबंध ह।" शादी
म रजना और मुय पा क बीच टोर म म
काम का य सुधा और चंदर क मृित
अनायास ही सामने लाकर खड़ी कर देता ह।
कहानी "ज़ाती मकान थोड़ी ह" म
आलोक से ब होते ह। उनको घर से थोड़ी
सी दूरी पर ही पुिलस आने क वजह से बेटी
रोक देती ह। आलोक ने सुना तो वह िचंितत हो
गए। जो अपने घर परवार म पहले नौकरी
पेशा थे। वह ेीय मुयालय म थे। उनम
एक अलहदा बात थी जो सबसे अलग करती।
आलोक को सपने याद रहते ह। उनक सपन
म घर शािमल रहते। अलग-अलग कार क
मकान, झोपड़-पी, अधबने से लेकर
साज-स?ा यु? आधुिनक और महगे हाई
सोसायटी वाले घर। ख़ैर नौकरी म दूसर शहर
ांफ़र आ तो दूरी क वजह से पैतृक घर से
नौकरी कर पाना सभव नह था। वे नौकरी
बावत अपने एक सप रतेदार क पास
कछ रोज़ रह। मकान क तलाश भी चलती
रही। िकराए पर मकान िमलना ही था।
आलोक चूँिक बककम थे। अतः िनयम क
अंतगत मकान का िकराएदार बक था। आर
टी ओ वाले िनगम साहब कछ समय बीतने क
बाद आलोक को घर ख़ाली करने को कहने
लगे। आलोक ने िनयम याद िदलाए। एक रोज़
िनगम साहब काफ तैश म बक प च गए।
िनगम क शद का चयन कछ ऐसा था िक
मामला काफ िबगड़ गया। मकान जैसे िमला
वैसे ख़ाली भी आ। िकतु िनगम ने घर क
आस-पड़ोस भी अपने ढग से बात रखकर
सबध का मृदुल गिणत ऊटपटाँग कर
िदया। आलोक क िख़लाफ़ कोई रपोट न थी।
शहर से लगे गँवई इलाक म बाढ़ आई थी। सो
पुिलस फोस भेजने क िलए क क इतज़ाम
क िलए िनगम क पास आए थे। आलोक क
उ बढ़ती गई। वह रटायर हो गए। िनजी घर
भी ठीक-ठाक बनवा िलया। नया मकान
अपने पुराने घर क याद िदलाता। िज़ंदगी क
नोटबुक क अब यादा प?े ख़ाली नह बचे
थे। वहाँ िपछला िकतना कछ दज था।
बुलडोज़र चलने क बाद उह ग़रीब झोपड़-
पी वाले घर वाले मलबे पर खड़ा पाते ह।
घर का मु?ा ही आलोक क जीवन म लगभग
क म था। दरअसल आलोक क ज़ेहन म
उ भर िवथापन क टीस सामानांतर मौजूद
थी। और घर क सपने इसी टीस क युपि
रही, ताउ।
समाज मटीलेयर होता ह। यह सरल
इसानी वृि होती ह उसका िजस वग क
लोग क बीच उठना बैठना होता ह। उनक
चध से मन ही मन भािवत होना वाभािवक
ह। संह "िवप" कहानी म सरोज िसहा
इह मन: थितय से इेफ़ाक़ रखती ह।
सम अतीत क िवथापन क बाद कहाँ
चमचमाती चमक भरी दुिनया नई नकोर
लगती ह। सरोज ने क़रीब से देखा ह। और
कहाँ थाई ऊब भरा परवेश, िजसम लबे
समय से या मजाल री भर बदलाव आ
हो। बस जीवन क िदन बीतते रह। िकटी-पाट
म अवल सरोज पर समूची िम-मंडली क
िनगाह ठहर जाती। सरोज क मुँह का ज़ायका
डायिनंग-टबल को देखकर िबगड़ जाता। मेज़
पुराने समय क थी और उसक ऊपरी सतह
िचटक चुक थी। िजसे मेज़पोश क मदद से
थोड़ा सुधार िदया गया। मेज़ क अदेखी
सतह, उह लगता लोग क िनगाह इसी गोपन
को उघाड़ देती ह। गृहथी शादी क शु?आती
िदन क थी। िकस जोड़-जुटान क साथ
गृहथी जुटाई। पुराने िदन रवाइड होते। वह
डाइिनंग टबल पित ले आए थे। परवार क
सदय क संग बैठकर खाने का सुख अलग
होता ह। छोट बजट वाले कछ बदलाव सरोज
ने अपने नए घर म िकए, जैसे फल क पौधे,
चादर, मेज़पोश आिद आिद। ईमानदार और
िसांतवादी आलोक क नज़र म ये बात कभी
आई नह। उह जीवन भर िकताब का शौक
काफ था। पनी ने सराइज़ क तौर पर शीशे
क टाप वाली चमकती डायिनंग टबल ली।
डायिनंग टबल क बदलाव पित म कछ उछाह
नह। उनक चुपी म अय पढ़ना किठन
नह ह।
अगली कहानी "दीमक" को संह क
एक और महवपूण कहानी कहगे। लेखकय
तिबयत क स?न नैरटर को अपना लेख बड़
उछाह से सुना रह थे। बेट क आने क आहट
से वह सब समेटने लगे। उमेश उन पर
िबगड़ने लगा। आँख क आपरशन क बाद
पढ़ते ए पकड़ जाना भाषा नरम क जगह
शद म तखी और अंदाज़ िशकायती उभर
आया। उ होने पर जैसी बेचारगी होनी चािहए
िपता क चेहर थी। वह इसिलए िक बेटा कह
रहा ह िक भुगतना तो हम ही पड़ता ह।
लेखकय वृि क िपता सफाई क मुा म
आ गए। नौकरी से रटायर हो चुक रमाकांत
जी क पास िलखने-पढ़ने क िलए इफ़रात
समय था। उनक पढ़ने-िलखने क िकसी को
कछ क़ न थी। महज इसी वजह से उनका
परचय बड़ और रसूखदार लोग से था। इससे
कछ काम भी सरलता से हो जाते। वह
लाइेरी जाते, रात देर तक पढ़ते- िलखते।
एक िम क अख़बार म कॉलम भी िलखना
होता। उ बढ़ती रही, परवार क अवहलना
तकलीफ़ देती। घर पर बढ़ते धािमक
आयोजन रात-रात भर नद म खलल डालते।
पढ़ना-िलखना दरिकनार। उहने कभी िकसी
से कछ न कहा। उ, िदमाग़, और परम
कछ न बचा था पास अब। ...और आिख़र
जाना था। सो एक िदन चले गए। अब पीछ
बची उनक िवरासत अथात िकताब, िलखा
आ जो छोड़ गए थे। उनक परिचत िम को
जब कथावाचक से मालूम पड़ा इस फ़ानी
दुिनया से रमाकांत जी क चले गए। कवीद
जी ने उनक फाइल म मौजूद लेख माँग, जो
दुलभ थे। बेट उमेश से और अपनी साली जो
िक उमेश क पनी रही इस बाबत कहा। बस
आासन ही िमला। समय बीतता गया। आ
कछ नह। कव जी ने लेख न भेजने क
िशकायत भी क। पनी ने उनसे पुराने लेख क
बार म पूछने पर एतराज़ जताया। शायद कछ
ऐसा हो िजसे वह न देना चाहते हो। उमेश ने
कछ समय अंतराल पर सपक ज़र िकया
अवचेतन क लाइेरी बेहद िवशाल होती ह। इसम ढर अधूर सपने, आकांाएँ, मृितयाँ,
घटनाएँ जीवन क ख -मीठ ओर-छोर समेत तमाम बेचैिनयाँ सब अलग-अलग फ़ाइल म
यव थत नह ग-म ढग से मौजूद रहते ह। जब बात लेखक नाम क जीव क आती ह।
तमाम अगले-िपछले, िनजी व इद-िगद क अनुभव लेखकय मन म लबे समय तक परमा
क बाद ही रचना का चेहरा आकार लेता ह। यह ?शी क बात ह ताप दीित क"िपछली
सदी क अंितम ेम कथा" से शु ई याा, अपने तीसर पड़ाव "कगार क आिख़री िसर पर"
तक आ प ची ह। वह यथाथ िसरजने म द रचनाकार ह। उनक इस नए कहानी-संह "कगार
क आिख़री िसर पर" म बारह कहािनयाँ मौजूद ह।
कहानी- संह म िजस पहली कहानी से पाठक क मुलाकात होती ह। वह "अगली सुबह
फ़लक पर आफ़ताब यादा रौशन था" ह। जो सामािजक- से काफ ठोस कहानी ह।
कहानी क मुय पा राम आधार को तलाशने िनकले कछ ख़ास मशक़त नह करनी पड़गी।
िकसी भी लड़क क िपता म राम आधार जी को सरलता से देख सकते ह । अब बारी आती ह
नािज़म अली क। लाख-हज़ार क भीड़ म अगर िचराग़ लेकर खोज तो िफलहाल िमलना
मु कल ह। अब बात आती ह समाज और परजन क, वह होते ही ह परपरा का ढोल पीटने
वाले। लगभग जड़ बुि क। उह अपने परवार और समाज क बेटी क "िववाह-िनमंण" म
"िवनीत" क जगह "नािज़म अली" िलखा जाना नाग़वार गुज़रता ह। समाज क वे लोग जो ?शी
और दुःख म साथ खड़ होते ह। शादी उनक ग़ैर मौजूदगी म होती ह। ऐसे नकली शुभिचंतक
क उप थित क बग़ैर िववाह से कहानी को बेहतर मुकाम िमला ह। या ही बात ह िक मददगार
नािज़म अली क संया यादा और परशान राम आधार घटते जाए। इन पर थितय क कचड़
से उगा शीषक"अगली सुबह फ़लक पर आफताब यादा रौशन था" कमल जान पड़ता ह।
"यवथा चालू आह" कहानी म पाएँगे, यह यवथा का सही मायने म पोटमाटम करती
ह। कहानी क क म पुषोम क गवाही का मामला, उ और बीमारी क मेलजोल से बनी
परथितयाँ ह। उन िदन िबना िकसी गारटी क य गत ज़मानत और हलफ़नामे पर एक लाख
तक का ऋण आसानी से िमलता था। िजसम यादातर ऋण क वापसी नह ई थी। उह अपने
तर पर जानकारी से पता चला यह गवाही ज़री ह । मुमिकन ह िक िवभाग आपक जगह
िकसी और को िडयूट कर दे। यवहारकता क धरातल पर देखने को िमला िक िनयम ताख पर
रखे जाने क िलए बने ह। उ और दुारय क बीच पुषोम जी इस ज़री काम क िलए
मैदान म उतर तो सहयोग नाम क िचिड़या दूर-दूर तक देखने को नह िमली। बक क उस
शाखा म, जहाँ थे िपछले मामल क सार महवपूण रकाड आलमारी से िनकाल कर गोदाम क
हवाले िमले। पुराने मुकदम को देखने क िलए िडयूट क मंशा धरी रह गई। याा-िबल भी
आपि क साथ वापस लौट आए। इस उ म परशानी क बाद हर ओर सुिवधा सहयोग ग़ायब।
अदालत म तारीख़ बढ़ने का अपना ही खेल ह। वह हलफ़नामे क कॉपी नह िमलने पर िनयम
क बात रखते ह। हलफ़नामा जो िक ज़री डायूमट ह इसक बग़ैर ऋण क वीकित
नामुमिकन ह। वह ऋण चुकता होने क रसीद माँगते ह। इस कहानी म यवथा कठघर म
खड़ी ह। अपने वसूल क पक पुषोम जी िवभागीय मुकदमे म हीरो बनकर उभर ह। उनक
िहसाब से हलफ़नामा िमलना उतना ज़री नह ह िजतनी ऋण वापसी क रसीद। यिक यहाँ
पर मामला ऋण वापसी का ही नह ह ग़लत हलफ़नामा देकर ाड का ह।
शोध-आलोचना
(कहानी संह)
कगार क आिख़री
िसर पर
समीक : कसुम लता पाडंय
संपादक : ताप दीित
काशक : लोकरजन काशन
कसुम लता पांडय
537 घ /413 ीनगर कालोनी
सीतापुर रोड, लखनऊ 226021, उ
मोबाइल- 6392769650
ईमेल- [email protected]

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 202515 14 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 2025
शोध-आलोचना
वासी िहदी कहािनकार म तेज शमा एक िवशेष थान रखते ह। तेज शमा िटन म
बसने से पूव कहानीकार क प म िहदी सािहय म जगह बना चुक थे। वास क कारण उनक
कहािनय म िवषय क िविवधता आई और यही बात उह समकालीन वासी कहािनकार से
अलग करते ह। यादातर वासी कहािनकार क कहािनयाँ जहाँ उनक अतीत से अिधक
संबंिधत होती ह, वह तेज शमा क कहािनय म अिधकांश इ लड क पृभूिम म रची ई
होती ह। 2023 म िशवना काशन से कािशत कहानी-संह 'संिदध' भी उसी ंखला क
कड़ी ह। 184 पृीय इस संह म 15 कहािनयाँ ह। वास और कोरोना क आधार पर इन
कहािनय को िवभािजत िकया जा सकता ह। कोरोना काल का भाव सामायत: एक सा ह।
रोज़गार का ठप होना, आपसी संबंध पर भाव, ज़री चीज क लैक माकिटग, नेता क
िलए कोरोना भी राजनीित का िवषय होना, स िडजाइनर का फसबुक माक को यूटी परधान
म बदलना आिद मु को उठाया गया ह।
संिदध, अंितम संकार का खेल, बेपरदा िखड़क, म भी तो वैसा ही , र िजरटर म
डाका, टट गया नाता, रत क गरमाहट, शोक संदेश, वािहश क पैबंद कहािनय क
कथानक वासी देश से संबंिधत ह और इन 9 कहािनय म से 6 कहािनय बेपरदा िखड़क, म
भी तो वैसा ही , र िजरटर म डाका, टट गया नाता, रत क गरमाहट, शोक संदेश का
कथानक कोरोना क भाव को िदखाता ह। 'बेपरदा िखड़क' कोरोना काल म लंदन क हालात
को बयान करती ह। इस कहानी म ाई ?ीन क दुकान बंद होने क कारण नायक क िदल म
चलती ऊहापोह का िचण ह। नायक ?द नह समझ पाता िक उसे िचंता ाई ?ीन करवाने क
िलए िदए गए परद क ह या दुकान पर बैठने वाली दंपती क। कहानी का अंत बताता ह िक वह
परद क परवाह छोड़ देता ह। 'म भी तो वैसा ही ' कहानी म िनयम का पालन करने वाले
आदश य को िनयम तोड़ने वाले आम य क प म बदलते िदखाया ह और इसका
कारण कोरोना क कारण थायी नौकरी का चला जाना ह। 'र िजरटर म डाका' कहानी
िदखाती ह िक लंदन म टशन पर कमचारी िबना पूछ दूसर का खाना खा जाते ह और सभी इससे
(कहानी संह)
संिदध
समीक : डॉ. िदलबागिसंह िवक
लेखक : तेजे शमा
काशक : िशवना काशन, साट
कॉ लैस बेसमट, सीहोर, म
466001, फ़ोन-07562405545
मोबाइल- +91-9806162184
ईमेल- [email protected]
डॉ. िदलबागिसंह िवक
गाँव व डाक- मसीतां
डबवाली, िसरसा
हरयाणा 125104
मोबाइल- 9541521947
ईमेल- [email protected]
था लेिकन वह िडसीड अकाउट क बार म
था। जो उनक िपता और माँ का था। कछ
साल बाद गया-भोज का िनमंण आया।
कथावाचक इस भय समारोह म जाने क
इछक न थे। एक और अवसर िमला। बेट
को उसी शहर म लैट चािहए था। कई साल
बाद बाबूजी क बंद कमर को देखा तो मन
अवसाद से भर गया। अब उमेश ने कहा, जाने
कब से आपक इछा थी। जो आपक मतलब
का हो छाँट ले। कमर म बब क बाद भी कछ
ख़ास रौशनी नह। कमरा इतने समय बाद
खुला, काग़ज़ का एक टकड़ा भी साबुत नह
बचा। दीमक इस हद तक लग चुक थी। एक
पल को पाठक मन उनक िवरासत क ऐसी
दुदशा को देख कर कह पड़ता ह बेहतर रहता
िक उमेश गया-भोज न कराते उनका िलखा
और िकताब सहज लेते। पढ़ना-िलखना उनक
जीवन का िहसा था। उनक बौिक संपदा
का संतान ारा ऐसा अपमान। रमाकांत जी
जैसे पढ़ने-िलखने से मोह रखने वाले लोग
कहाँ िमलेगे। वह िकताब और काग़ज़ न
िबखर पंखा बंद कर या धीमा कर देते। और तो
और कबाड़ी वाले ने बोल िदया। आपको
पहले यान रखना था। दीमक क मायम से
कहानी म बड़ी बात कही गई ह। वैचारक
बदलाव और मतभेद िकताब ही नह एक िदन
सब चट जाएगी। मूय, संकार, इमारत और
िकताब म बंद सम ान। सब इस उपेा क
वजह से। िकताब क सुगंध िकसी िकताब
ेमी को ही परी क सुंगध लगेगी। अयथा
दीमक तो ह ही सब चट कर जाने को। हाँ
गाँधी, नेह और मास क तवीर को
दीमक ने नह छआ था। वह जस क तस बची
थी। िजनक अपने ही अथ खुलते ह। चार बेट
वाली माँ म मेहता साहब क देहावसान क
ख़बर उनका बड़ा बेटा देता ह। वह मेहता
साहब जो अपने िम से बात बात म अपने
चार बेट होने को िचंता मु? और बेिफ का
सबब मानते जबिक समय क साथ बेट
आिथक तर पर यादा सश? नह हो पाए।
और उनका फ़? एक रोज़ रज म बदल जाता
ह।
यह कहानी तुरत फरत म िनपटाई जान
पड़ती ह। बेिटय क शादी परपरा से जुड़ाव
और पधर होना अलग ही मसला ह।
िफलहाल इससे इेफ़ाक़ नह रखती । आज
लड़िकयाँ सश? और आिथक प से
आमिनभर हो रही ह। उनक िलए ढर
िवकप मौजूद ह। मेरी लेखक से िनजी माँग
ह िक कहानी भी आज क ह। अतः कम से
कम एकाध क शादी क साथ कछ और भी
जैसे नौकरी, या िकसी क टीशन क तैयारी
करते िदखाना था।
कहानी संह क नाम वाली कहानी
"कगार क आिख़री िसर पर" कहानी म
पारतोष क एक दुघटना म पैर क चोिटल
होने क बाद क तमाम दुारय से कहानी
क बुनावट बहाने "िवकलांग का जीवन
सामाय नह रह जाता ह।" कहा गया ह। वह
जहाँ कही भी मज़बूत मनोबल क साथ सहज
होकर खड़ होना चाहते ह। उह जैसे िपंच
िकया जाता ह। तुम सामाय नह हो। सामने
होने पर लोग ठीक-ठाक यवहार कर लगे।
नज़र से पूरी तरह ओझल ए बगैर उपहास से
परहज़ नह करगे। "तुम हम जैसे नह हो।"
कल िमलाकर देख तो जीवन क गाड़ी
सामाय रतार क िलए िकतनी भी सामय
झक दे। सामाय होने से रही। अपताल,
इटरयू, ऑिफ़स, सामािजक समारोह, िनजी
जीवन, ेम संबंध माने इसक िगरत से कछ
भी नह बचेगा। सामाय जीवन पहाड़ जैसा
किठन इद-िगद क लोग बना देते ह। एक
संवेदनशील िबंदु को कहानी म समूचे कौशल
क साथ लेखक ने िपरोया ह। रचनाकार ने
कहानी म मौिलक पूण तलाशा ह।
"कब जाओगे भु" यंयामक कहानी
ह। िजसम भु का कपना क आधार पर
अवतरण कराया गया ह। िबकल मंिदर म
थािपत मूित क भाँित मनोहारी छिव। भु क
दशन क अिभलाषा पूरी हो गई। बंसल साहब
ने उह अपने घर म समान पूवक थान
िदया। अब अपनी इछा पूरी होने क िलए
ाथना...। ईर क आने क बाद या इद-
िगद सब ईर क िनयम िसांत क अनुसार
चलना मं?र होगाs मंिदर क नाम पर सभी
दान कर सकगे। ग़रीब ब को भोजन कपड़
नह। जाित िवहीन समाज िकसक वािहश
होगी। िदखावटी भ -भाव अपनी अिभलाषा
पूरी करने को लोग रखते ह। सािहय परािजत
क प म खड़ा ह और इस िहसाब से देख
ईर क भी यही थित कहानी म देखने को
िमली ह। कहानी म बंसल साहब अंततः बोल
ही पड़। "भु कब जाओगे।" यह साथक और
गहर भाव बोध को समेट धारदार रचना ह।
कहानी क नाम से "अितिथ कब जाओगे"
िफम अनायास ही मरण हो आती ह।
अपने भूगोल म सरल "कगार क आिख़री
िसर पर" क कहािनय से गुज़रना उस
अनुभव संसार क याा ह िजससे हम रोज़
वाबता होकर देख नह पाते ह। इन कहािनय
म जीवन ह और साथ ही पा क सुख-दु:ख
साँस लेते ह। इन कहािनय को पढ़ना यथाथ
पढ़ने जैसा ह। जो लौट-लौट कर पढ़ी जाने
वाली ह। इनक िवशेषता सरलता ह। मानवीय
वेदना रचनामकता क िलए का माल
सािबत ई ह। इनसे अछी रचना क
िनिमित ई ह। यथा दीमक म जैसे लेखक ने
मािमक तय को कहानी म थान िदया ह।
पाठक उेिलत हो उठता ह। चुपक से उसक
नज़ पर हाथ रखा गया ह। पढ़ने का पीछ
छटता सुख। उदा िशप और शानदार लेखन
शैली म मािमकता को कहािनय म थान
िमला ह। अपनी धुन और आदश क पक
पा थितय से जूझते देखने को िमले ह।
लोग से नह। वह ख़ामोशी क साथ बदलाव
म जुट ह। शोर और हगामे म उनका भरोसा
नह ह। कहािनयाँ सामािजक यवथा म
अटक सड़ चुक िहस का वैचारक पाठ बन
पड़ी ह। बदलाव से िमसिफट पा म
छटपटाहट देख सकगे। जीवन िकतना
अकला खड़ा ह। समाज क घटते संवेदन तर
क लेबल को समझने क से कहािनयाँ
सराहनीय और पठनीय बन पड़ी ह। और
शीषक...। हर कहानी क प को सँभालने
क िलए िजद का काम कर गए ह।
मानीखेज शीषक वाली सुंदर कहािनयाँ पढ़ने
क िलए संह से पाठक से गुज़रना यक़नन
सुखद ही होगा।
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çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 202515 14 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 2025
शोध-आलोचना
वासी िहदी कहािनकार म तेज शमा एक िवशेष थान रखते ह। तेज शमा िटन म
बसने से पूव कहानीकार क प म िहदी सािहय म जगह बना चुक थे। वास क कारण उनक
कहािनय म िवषय क िविवधता आई और यही बात उह समकालीन वासी कहािनकार से
अलग करते ह। यादातर वासी कहािनकार क कहािनयाँ जहाँ उनक अतीत से अिधक
संबंिधत होती ह, वह तेज शमा क कहािनय म अिधकांश इ लड क पृभूिम म रची ई
होती ह। 2023 म िशवना काशन से कािशत कहानी-संह 'संिदध' भी उसी ंखला क
कड़ी ह। 184 पृीय इस संह म 15 कहािनयाँ ह। वास और कोरोना क आधार पर इन
कहािनय को िवभािजत िकया जा सकता ह। कोरोना काल का भाव सामायत: एक सा ह।
रोज़गार का ठप होना, आपसी संबंध पर भाव, ज़री चीज क लैक माकिटग, नेता क
िलए कोरोना भी राजनीित का िवषय होना, स िडजाइनर का फसबुक माक को यूटी परधान
म बदलना आिद मु को उठाया गया ह।
संिदध, अंितम संकार का खेल, बेपरदा िखड़क, म भी तो वैसा ही , र िजरटर म
डाका, टट गया नाता, रत क गरमाहट, शोक संदेश, वािहश क पैबंद कहािनय क
कथानक वासी देश से संबंिधत ह और इन 9 कहािनय म से 6 कहािनय बेपरदा िखड़क, म
भी तो वैसा ही , र िजरटर म डाका, टट गया नाता, रत क गरमाहट, शोक संदेश का
कथानक कोरोना क भाव को िदखाता ह। 'बेपरदा िखड़क' कोरोना काल म लंदन क हालात
को बयान करती ह। इस कहानी म ाई ?ीन क दुकान बंद होने क कारण नायक क िदल म
चलती ऊहापोह का िचण ह। नायक ?द नह समझ पाता िक उसे िचंता ाई ?ीन करवाने क
िलए िदए गए परद क ह या दुकान पर बैठने वाली दंपती क। कहानी का अंत बताता ह िक वह
परद क परवाह छोड़ देता ह। 'म भी तो वैसा ही ' कहानी म िनयम का पालन करने वाले
आदश य को िनयम तोड़ने वाले आम य क प म बदलते िदखाया ह और इसका
कारण कोरोना क कारण थायी नौकरी का चला जाना ह। 'र िजरटर म डाका' कहानी
िदखाती ह िक लंदन म टशन पर कमचारी िबना पूछ दूसर का खाना खा जाते ह और सभी इससे
(कहानी संह)
संिदध
समीक : डॉ. िदलबागिसंह िवक
लेखक : तेजे शमा
काशक : िशवना काशन, साट
कॉ लैस बेसमट, सीहोर, म
466001, फ़ोन-07562405545
मोबाइल- +91-9806162184
ईमेल- [email protected]
डॉ. िदलबागिसंह िवक
गाँव व डाक- मसीतां
डबवाली, िसरसा
हरयाणा 125104
मोबाइल- 9541521947
ईमेल- [email protected]
था लेिकन वह िडसीड अकाउट क बार म
था। जो उनक िपता और माँ का था। कछ
साल बाद गया-भोज का िनमंण आया।
कथावाचक इस भय समारोह म जाने क
इछक न थे। एक और अवसर िमला। बेट
को उसी शहर म लैट चािहए था। कई साल
बाद बाबूजी क बंद कमर को देखा तो मन
अवसाद से भर गया। अब उमेश ने कहा, जाने
कब से आपक इछा थी। जो आपक मतलब
का हो छाँट ले। कमर म बब क बाद भी कछ
ख़ास रौशनी नह। कमरा इतने समय बाद
खुला, काग़ज़ का एक टकड़ा भी साबुत नह
बचा। दीमक इस हद तक लग चुक थी। एक
पल को पाठक मन उनक िवरासत क ऐसी
दुदशा को देख कर कह पड़ता ह बेहतर रहता
िक उमेश गया-भोज न कराते उनका िलखा
और िकताब सहज लेते। पढ़ना-िलखना उनक
जीवन का िहसा था। उनक बौिक संपदा
का संतान ारा ऐसा अपमान। रमाकांत जी
जैसे पढ़ने-िलखने से मोह रखने वाले लोग
कहाँ िमलेगे। वह िकताब और काग़ज़ न
िबखर पंखा बंद कर या धीमा कर देते। और तो
और कबाड़ी वाले ने बोल िदया। आपको
पहले यान रखना था। दीमक क मायम से
कहानी म बड़ी बात कही गई ह। वैचारक
बदलाव और मतभेद िकताब ही नह एक िदन
सब चट जाएगी। मूय, संकार, इमारत और
िकताब म बंद सम ान। सब इस उपेा क
वजह से। िकताब क सुगंध िकसी िकताब
ेमी को ही परी क सुंगध लगेगी। अयथा
दीमक तो ह ही सब चट कर जाने को। हाँ
गाँधी, नेह और मास क तवीर को
दीमक ने नह छआ था। वह जस क तस बची
थी। िजनक अपने ही अथ खुलते ह। चार बेट
वाली माँ म मेहता साहब क देहावसान क
ख़बर उनका बड़ा बेटा देता ह। वह मेहता
साहब जो अपने िम से बात बात म अपने
चार बेट होने को िचंता मु? और बेिफ का
सबब मानते जबिक समय क साथ बेट
आिथक तर पर यादा सश? नह हो पाए।
और उनका फ़? एक रोज़ रज म बदल जाता
ह।
यह कहानी तुरत फरत म िनपटाई जान
पड़ती ह। बेिटय क शादी परपरा से जुड़ाव
और पधर होना अलग ही मसला ह।
िफलहाल इससे इेफ़ाक़ नह रखती । आज
लड़िकयाँ सश? और आिथक प से
आमिनभर हो रही ह। उनक िलए ढर
िवकप मौजूद ह। मेरी लेखक से िनजी माँग
ह िक कहानी भी आज क ह। अतः कम से
कम एकाध क शादी क साथ कछ और भी
जैसे नौकरी, या िकसी क टीशन क तैयारी
करते िदखाना था।
कहानी संह क नाम वाली कहानी
"कगार क आिख़री िसर पर" कहानी म
पारतोष क एक दुघटना म पैर क चोिटल
होने क बाद क तमाम दुारय से कहानी
क बुनावट बहाने "िवकलांग का जीवन
सामाय नह रह जाता ह।" कहा गया ह। वह
जहाँ कही भी मज़बूत मनोबल क साथ सहज
होकर खड़ होना चाहते ह। उह जैसे िपंच
िकया जाता ह। तुम सामाय नह हो। सामने
होने पर लोग ठीक-ठाक यवहार कर लगे।
नज़र से पूरी तरह ओझल ए बगैर उपहास से
परहज़ नह करगे। "तुम हम जैसे नह हो।"
कल िमलाकर देख तो जीवन क गाड़ी
सामाय रतार क िलए िकतनी भी सामय
झक दे। सामाय होने से रही। अपताल,
इटरयू, ऑिफ़स, सामािजक समारोह, िनजी
जीवन, ेम संबंध माने इसक िगरत से कछ
भी नह बचेगा। सामाय जीवन पहाड़ जैसा
किठन इद-िगद क लोग बना देते ह। एक
संवेदनशील िबंदु को कहानी म समूचे कौशल
क साथ लेखक ने िपरोया ह। रचनाकार ने
कहानी म मौिलक पूण तलाशा ह।
"कब जाओगे भु" यंयामक कहानी
ह। िजसम भु का कपना क आधार पर
अवतरण कराया गया ह। िबकल मंिदर म
थािपत मूित क भाँित मनोहारी छिव। भु क
दशन क अिभलाषा पूरी हो गई। बंसल साहब
ने उह अपने घर म समान पूवक थान
िदया। अब अपनी इछा पूरी होने क िलए
ाथना...। ईर क आने क बाद या इद-
िगद सब ईर क िनयम िसांत क अनुसार
चलना मं?र होगाs मंिदर क नाम पर सभी
दान कर सकगे। ग़रीब ब को भोजन कपड़
नह। जाित िवहीन समाज िकसक वािहश
होगी। िदखावटी भ -भाव अपनी अिभलाषा
पूरी करने को लोग रखते ह। सािहय परािजत
क प म खड़ा ह और इस िहसाब से देख
ईर क भी यही थित कहानी म देखने को
िमली ह। कहानी म बंसल साहब अंततः बोल
ही पड़। "भु कब जाओगे।" यह साथक और
गहर भाव बोध को समेट धारदार रचना ह।
कहानी क नाम से "अितिथ कब जाओगे"
िफम अनायास ही मरण हो आती ह।
अपने भूगोल म सरल "कगार क आिख़री
िसर पर" क कहािनय से गुज़रना उस
अनुभव संसार क याा ह िजससे हम रोज़
वाबता होकर देख नह पाते ह। इन कहािनय
म जीवन ह और साथ ही पा क सुख-दु:ख
साँस लेते ह। इन कहािनय को पढ़ना यथाथ
पढ़ने जैसा ह। जो लौट-लौट कर पढ़ी जाने
वाली ह। इनक िवशेषता सरलता ह। मानवीय
वेदना रचनामकता क िलए का माल
सािबत ई ह। इनसे अछी रचना क
िनिमित ई ह। यथा दीमक म जैसे लेखक ने
मािमक तय को कहानी म थान िदया ह।
पाठक उेिलत हो उठता ह। चुपक से उसक
नज़ पर हाथ रखा गया ह। पढ़ने का पीछ
छटता सुख। उदा िशप और शानदार लेखन
शैली म मािमकता को कहािनय म थान
िमला ह। अपनी धुन और आदश क पक
पा थितय से जूझते देखने को िमले ह।
लोग से नह। वह ख़ामोशी क साथ बदलाव
म जुट ह। शोर और हगामे म उनका भरोसा
नह ह। कहािनयाँ सामािजक यवथा म
अटक सड़ चुक िहस का वैचारक पाठ बन
पड़ी ह। बदलाव से िमसिफट पा म
छटपटाहट देख सकगे। जीवन िकतना
अकला खड़ा ह। समाज क घटते संवेदन तर
क लेबल को समझने क से कहािनयाँ
सराहनीय और पठनीय बन पड़ी ह। और
शीषक...। हर कहानी क प को सँभालने
क िलए िजद का काम कर गए ह।
मानीखेज शीषक वाली सुंदर कहािनयाँ पढ़ने
क िलए संह से पाठक से गुज़रना यक़नन
सुखद ही होगा।
000

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 202517 16 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 2025
चुनाव पर तंज कसते ए सोशल मीिडया पर
िस ई पं िक "कोरोना िसफ चुनाव
और िकसान से डरता ह।" (95) का योग
करता ह। सोनू सूद क कोरोना काल म िकए
गए काय का न िसफ वणन ह ब क इससे
भािवत होकर 'िदल बहलता य नह' का
नायक नरन एक अपाटमट क चालीस
परवार क खाने क यवथा करता ह।
'सहयाी' कथानक म वासी ब क
भारत म रह रह माँ बाप क एकांत को िदखाया
ह, कोरोना क कारण पर थितयाँ भयंकर
प धारण कर लेती ह। 'िदल बहलता य
नह' कहानी म भारत म कोरोना क िवकराल
प को िदखाते ए भगवा क अ तव पर
चचा क गई ह। 'सवाल क जवाब' कहानी म
कोरोना काल म मनेजमट क अपने
कमचारय क ित शुक रवैये को िदखाया
गया ह। यह कहानी िनजीकरण क समया
को भी उठाती ह।
भारत पर आधारत कथानक वाली
कहािनय म 'शुभांगी सुनना चाहती ह' कहानी
एक िदयांग क यथा और जीवट को
िदखाती ह। शुभांगी पहले भोपाल क गैस
ासदी और डॉटर क ग़लती और चोट क
कारण बहरपन और लकवे से त ह।
कहानी-संह क कहािनय म यहाँ
िवषयगत िविवधता ह, वह इनक
तुतीकरण म भी पया िविवधता ह।
'शुभांगी सुनना चाहती ह' कहानी पामक
शैली म ह। अय कहािनय म वणनामक
और संवादामक शैली क मुखता ह।
कथानक म मोड़ लाने क िलए लेखक ने पा
पर िफ़म का भाव िदखाने क यु संिदध
और सहयाी कहानी म अपनाई ह। 'नो वन
िकड जेिसका' क कहानी शािहद को
उकसाती ह तो 'मेरा साया' नीलम पर
मनोवैािनक भाव डालती ह। 'र िजरटर
म डाका' कहानी म गीत और ग़ज़ल क
शदावली क जरए संवाद बयान लेखक क
िफम और संगीत क ?िच को िदखाता ह।
'टट गया नाता' कहानी म नायक ग़ज़ल
िलखता ह, जो लेखक क किव प को
िदखाती ह।
'वस ए सोजर!' और 'िदल बहलता
य नह' कहािनय म लेखक क धम क ित
राय का पता चलता ह। 'वस ए सोजर!' का
कथानक मृयु क उपरांत का ह। मृयु क
उपरांत आमा बच जाती ह, यह धम ही कहता
ह, लेिकन लेखक आमा को मानता ह, इस
ठपे से बचने क िलए वह अपने पा क मुख
से कहलवाता ह, "सी बात तो यह ह िक म
उ भर न तो भगवा म िवास पैदा कर
पाया और न ही उसे नकार पाया।" (पृ. - 29)
'िदल बहलता नह' कहानी क नरन क
इस व य से लेखक क िवचारधारा प
होती ह - "नो िशवानी म ना तक नह । म
अिधक से अिधक संशयवादी हो सकता
एनॉ टक।" (पृ. - 94)
लेखक ने जो पा धािमक िदखाए ह उनम
यादातर म करता नह। 'टट गया नाता'
का नायक अपने बार म कहता ह - "वह एक
सनातन-धम ह। रोज़ाना काम से वािपस आते
समय सलमान क दुकान से गुज़रते ए श
थल मंिदर अवय जाता ह। िशविलंग पर
जल चढ़ाता ह। कम से कम दस पंह िमनट
िशव आराधना करता ह। मज़हब पर कभी
िकसी से बहस नह करता। इस बात को
मानता ह िक हर इसान को अपने मज़हब पर
चलने क वतंता ह।" (पृ. - 107)
इस संह क कहािनय म दो अलग-
अलग धम को मानने वाल पा म कह कोई
तकरार नह लेिकन 'बदलेगी रग िज़ंदगी'
कहानी िशया और सु?ी मुसलमान क बीच न
िसफ़ मतभेद को िदखाती ह, अिपतु उनक
बीच होने वाले दंग को भी िदखाती ह।
पा क बात कर तो इस संह क पा
धम क से िहदू, मुसलमान, िसख और
ईसाई ह तो नागरकता क िहसाब से भारतीय,
पिकतानी, आयरश, इ लश ह। लेखक ने न
िसफ़ उनक चर को बयान िकया ह, अिपतु
उनक मायम से अलग-अलग देश क लोग
क अलग - अलग सोच को भी िदखाया ह।
'वािहश क पैबंद' कहानी म सैली और
माइकल क मायम से लेखक ने न िसफ़
इ लश और आयरश लोग क सोच को
िदखाया ह, अिपतु इिडयन और पािकतानी
लोग क वृित को भी प िकया ह -
"सैली, म आयरश । हमारी सोच इ लश
सोच से अलग ह। ... इस िप पर तुम मेरी
मेहमान हो। इसिलये न तो तुम रहने का ख़च
शेयर करोगी और न ही खाने का। भिवय म
देखा जाएगा िक ऊट िकस करवट बैठता ह।"
मेर िलये यह भी एक नया अनुभव था।
जब मेरी इिडयन या पािकतानी सहिलयाँ
बताया करती थ िक उनक ेमी उह कभी
िबल नह अदा करने देते तो म हरान आ
करती थी। ... ऐसा कसे हो सकता ह। जब खा
दो लोग रह ह जो िक पित-पनी नह ह तो
दोन को अपने-अपने खाने का िबल अदा
करना चािहये।
आज म भी माला और िहना क तरह
महसूस कर रही । ... इस बार म भी उनक
सामने शान बघार पाऊगी िक मेर ेमी ने भी
मेरा पूरा िबल िदया।" (पृ. - 180)
कहािनय म यु शदावली
िवषयनुप और पाानुप ह। लेखक ने न
तो ज़बरदती अंेज़ी या उदू क शद को
ठ सा ह और न ही अंेज़ी क चिलत शद
का िहदीकरण िकया ह, जो कहािनय को
सहज बनाता ह। 'टट गया नाता' क नायक क
ज़रए वह िहदी और उदू को एक ही भाषा
मानता ह, "िजस भाषा को सलमान उदू कहता
ह, वह उसी को िहदी कहता ह।" (पृ. -
106)
भाषा क तरह ही संवाद और वणन का
योग भी कथानक क माँग क अनुसार ह।
लेखक ने आमकथामक शैली का भरपूर
योग िकया ह, िजससे लेखक एक पा क
प म इन कहािनय म मौजूद िदखता ह।
संेप म कह तो कहानी-संह 'संिदध'
क कहािनयाँ िहदी सािहय क पाठक को
भारत, पािकतान और इ लड क
पर थितय और लोग से परिचत कराती ह।
कोरोना काल क भाव को िदखाने क s??
से यह संह बेहद महवपूण ह। लेखक क
पास पाठक को बाँधे रखने का नर ह, जो हर
कहानी म झलका ह। यह संह िनसंदेह
िहदी कहानी म छाप छोड़ने म सफल रहगा।
000
हरान-परशान ह। कोरोना क कारण यह चोरी
?क जाती ह। 'टट गया नाता' कहानी भारत-
पािकतान क नागरक क एक साथ रहने,
उनक रत क गाढ़ता जो कोरोना क
शुआत म और बेहतर होती ह, लेिकन दूसर
लॉकडाउन क बाद रते भािवत होते ह।
'रत क गरमाहट' कहानी म कोरोना काल
म अकले रह रह अंेज़ी उपयासकार क
जीवन चया को िदखाया गया ह। इस कहानी
म एक लोमड़ी परवार क उसक घर मेहमान
बनने, अिधकारपूवक खाना माँगने और
िवलु? हो जाने क भाव को िदखाया गया ह।
'शोक संदेश' कहानी म एक बहन-भाई अपने
सौतेले भाई क नाम शोक संदेश िलखते ए
उनक माँ क क य को िलखकर राहत
महसूस करते ह। माँ क मृयु कोरोना काल म
ई ह।
वास पर आधारत अय कहािनय म
संह का शीषक बनी कहानी 'संिदध' मुख
ह। इस कहानी म लेखक ने अनेक समयाय
को उठाया ह, िजनम मुसलमान को
आंतकवादी समझा जाना, दोहरी नागरकता
क लाभ-हािन और वािसय को उनक मूल
देश वापस भेजे जाने का डर महवपूण ह।
कहानी का नायक शािहद पािकतानी ह और
उसक पनी दोहरी नागरकता रखती ह। पनी
का उसे अपने क़ज़े म रखने क िलए
िशकायत करक देश वापस िभजवा देने क
धमक उसे ऐसा क य करवाती ह, िजससे वह
अपनी पनी को संिदध बनाने क चकर म
ििटश सरकार क नज़र म ?द संिदध बन
जाता ह। कहानीकार ने बड़ी ?बसूरती से
भारत-पािकतान क तुलना करक
पािकतािनय क पीड़ा को िदखाया ह।
वािसय क बे अपने माँ-बाप क देश नह
जाना चाहते, यह एक कड़वा सच ह। ब
क िवदेशी संकित म रमने का दुख िसफ
शािहद का नह, अिपतु हर वासी का दुख ह।
कहानी पाठक को इस सोच क साथ छोड़ती ह
िक अब शािहद का या होगा? यह न इस
बात को सोचने क िलए भी ेरत करता ह िक
दूसर क िलए खाई खोदने वाला असर वयं
भी उसम िगर पड़ता ह। यह कहानी अनजाने
ही वैवािहक संबंध म वैवािहक संबंध म
आपसी समझ और िवास क महव को
ितपािदत करती ह यिक शािहद का शािहदा
को संिदध क सूची म डालने का कारण
शािहदा का उस पर शक करना और उसे
अपने िनयंण म रखने क कोिशश करना ह।
शािहद मौक़ा िमलते ही बग़ावत करता ह,
हालाँिक उसक चाल उटी पड़ जाती ह।
'अंितम संकार का खेल' कहानी म लेखक ने
उस मानिसक वृित को िदखाया ह, िजसक
चलते य अपने महव को दशाने क
चकर म यह भी भूल जाता ह िक अवसर
कसा ह। रोज़र क मृयु पर नरन और चाल
अपने आप को महवपूण दशाने क िलए लगे
ए ह। चाल क यास को नरन क मायम से
िदखाया गया ह और नरन का अंत क ारा
लेखक ने प िकया ह िक नरन वातव म
बुरा नह लेिकन चाल क हरकत उसे परशान
भी कर रही ह और कमीनापन करने पर उतार
भी रही ह। पुपा जैसे साथी का होना अिनवाय
ह। 'वािहश क पैबंद' एक ेम कहानी ह,
िजसम सैली पहली नज़र म ही माइकल क
ेम म पड़ जाती ह, लेिकन माइकल को
हामनल समया ह, उसक बढ़ी ई छाितयाँ
उसे परशान करती ह, लेिकन वह िबतर पर
ठीक ह, ऐसे म वह उसे छोड़ने और न छोड़ने
को को लेकर दुिवधा त ह, और उसक
िनणय पर कहानी समा? होती ह।
वास पर आधारत इन कहािनय से
वास म रह रह भारतीय और पािकतािनय
क समयाय और उनक आपसी यवहार
को समझा जा सकता ह। मूल नागरक क
साथ उनक संबंध को भी समझा जा सकता
ह। साथ ही 'र िजरटर म डाका' और 'म भी
तो वैसा ही ' जैसी कहािनयाँ दूर क ढोल
सुहावने क बात को सय िस करती ह।
'र िजरटर म डाका' सय कहलाए जाने
वाले लोग क पोल खोलती ह िक िकस
कार काय थल पर लोग दूसर क भोजन
क चोरी करते ह। 'म भी तो वैसा ही ' कहानी
िदखाती ह िक लंदन वासी भी िनयम को ताक
पर रखकर घर का बेकार सामान सड़क
िकनार छोड़ देते ह। कहानी 'अंितम संकार
का खेल क ारा िटन क समाज और
संकित को जानने म मदद िमलती ह। लेखक
ने इन कहािनय क मायम से वािसय क
उस मानिसकता को भी िदखाती ह, िजसम वह
नए वािसय को पसंद नह करते।
कहानी 'वस ए सोजर !' कहानी क
शु?आत वासी देश से होती ह, लेिकन
लेखक इसम भारत को िदखाने क िलए
कहानी म मृतामा का सहारा िलया ह और
उह क मायम से एक सैिनक क जीवन पर
काश डाला ह। कहानी शीषक म कही उ
को पूण करक समा? होती ह। कहानी क
जरए भारतीय फ़ौज क आधुिनककरण म
होने वाली देरी पर िचंता य क गई ह। यह
कहानी यह भी बताती ह िक िटन म
दुघटना त लोग से पुिलस का यवहार
ाघनीय ह और इस कहानी क जरए पता
चलता ह िक यूनरल क तारीख़ क िलए
इतज़ार करना होता ह और लोग इसक
यवथा क िलए पहले से बुिकग करवाते ह।
'बदलेगी रग िज़ंदगी' क कथानक क पूवा
पािकतान और उरा म इ लड को
िदखाया गया ह। यह कहानी लड़क क साथ
शादी करक िवदेश प चे लोग क दयनीय
थित को िदखाती ह, साथ ही यह िशया और
सु?ी मुसलमान क बीच क खाई को भी
बयान करती ह। इस कहानी म पािकतािनय
क िवदेश जाने क लालसा को भी िदखाया
ह।
संह क सहयाी, िदल बहलता य
नह, सवाल का जवाब, शुभांगी सुनना
चाहती ह कहािनय क कथानक का संबंध
भारत से ह। लेखक ने भारत क तमाम मु
और चिलत बात को कहािनय म यान
िकया ह, िजनम यूज़ चैनल म पकार क
बहस, पकार का प िवशेष क पैरवी
करना आिद भी कहािनय क िवषय बने ह।
सहयाी, िदल बहलता य नह, सवाल
क जवाब, का कथानक कोरोना क भाव को
िदखाता ह। भारत म कोरोना क दौरान िजन
बात ने सुिखयाँ बटोरी लेखक ने उनको
अपनी कहािनय म जगह दी ह। कोरोना क
दौरान एक तरफ लॉकडाउन तो दूसरी तरफ़

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 202517 16 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 2025
चुनाव पर तंज कसते ए सोशल मीिडया पर
िस ई पं िक "कोरोना िसफ चुनाव
और िकसान से डरता ह।" (95) का योग
करता ह। सोनू सूद क कोरोना काल म िकए
गए काय का न िसफ वणन ह ब क इससे
भािवत होकर 'िदल बहलता य नह' का
नायक नरन एक अपाटमट क चालीस
परवार क खाने क यवथा करता ह।
'सहयाी' कथानक म वासी ब क
भारत म रह रह माँ बाप क एकांत को िदखाया
ह, कोरोना क कारण पर थितयाँ भयंकर
प धारण कर लेती ह। 'िदल बहलता य
नह' कहानी म भारत म कोरोना क िवकराल
प को िदखाते ए भगवा क अ तव पर
चचा क गई ह। 'सवाल क जवाब' कहानी म
कोरोना काल म मनेजमट क अपने
कमचारय क ित शुक रवैये को िदखाया
गया ह। यह कहानी िनजीकरण क समया
को भी उठाती ह।
भारत पर आधारत कथानक वाली
कहािनय म 'शुभांगी सुनना चाहती ह' कहानी
एक िदयांग क यथा और जीवट को
िदखाती ह। शुभांगी पहले भोपाल क गैस
ासदी और डॉटर क ग़लती और चोट क
कारण बहरपन और लकवे से त ह।
कहानी-संह क कहािनय म यहाँ
िवषयगत िविवधता ह, वह इनक
तुतीकरण म भी पया िविवधता ह।
'शुभांगी सुनना चाहती ह' कहानी पामक
शैली म ह। अय कहािनय म वणनामक
और संवादामक शैली क मुखता ह।
कथानक म मोड़ लाने क िलए लेखक ने पा
पर िफ़म का भाव िदखाने क यु संिदध
और सहयाी कहानी म अपनाई ह। 'नो वन
िकड जेिसका' क कहानी शािहद को
उकसाती ह तो 'मेरा साया' नीलम पर
मनोवैािनक भाव डालती ह। 'र िजरटर
म डाका' कहानी म गीत और ग़ज़ल क
शदावली क जरए संवाद बयान लेखक क
िफम और संगीत क ?िच को िदखाता ह।
'टट गया नाता' कहानी म नायक ग़ज़ल
िलखता ह, जो लेखक क किव प को
िदखाती ह।
'वस ए सोजर!' और 'िदल बहलता
य नह' कहािनय म लेखक क धम क ित
राय का पता चलता ह। 'वस ए सोजर!' का
कथानक मृयु क उपरांत का ह। मृयु क
उपरांत आमा बच जाती ह, यह धम ही कहता
ह, लेिकन लेखक आमा को मानता ह, इस
ठपे से बचने क िलए वह अपने पा क मुख
से कहलवाता ह, "सी बात तो यह ह िक म
उ भर न तो भगवा म िवास पैदा कर
पाया और न ही उसे नकार पाया।" (पृ. - 29)
'िदल बहलता नह' कहानी क नरन क
इस व य से लेखक क िवचारधारा प
होती ह - "नो िशवानी म ना तक नह । म
अिधक से अिधक संशयवादी हो सकता
एनॉ टक।" (पृ. - 94)
लेखक ने जो पा धािमक िदखाए ह उनम
यादातर म करता नह। 'टट गया नाता'
का नायक अपने बार म कहता ह - "वह एक
सनातन-धम ह। रोज़ाना काम से वािपस आते
समय सलमान क दुकान से गुज़रते ए श
थल मंिदर अवय जाता ह। िशविलंग पर
जल चढ़ाता ह। कम से कम दस पंह िमनट
िशव आराधना करता ह। मज़हब पर कभी
िकसी से बहस नह करता। इस बात को
मानता ह िक हर इसान को अपने मज़हब पर
चलने क वतंता ह।" (पृ. - 107)
इस संह क कहािनय म दो अलग-
अलग धम को मानने वाल पा म कह कोई
तकरार नह लेिकन 'बदलेगी रग िज़ंदगी'
कहानी िशया और सु?ी मुसलमान क बीच न
िसफ़ मतभेद को िदखाती ह, अिपतु उनक
बीच होने वाले दंग को भी िदखाती ह।
पा क बात कर तो इस संह क पा
धम क से िहदू, मुसलमान, िसख और
ईसाई ह तो नागरकता क िहसाब से भारतीय,
पिकतानी, आयरश, इ लश ह। लेखक ने न
िसफ़ उनक चर को बयान िकया ह, अिपतु
उनक मायम से अलग-अलग देश क लोग
क अलग - अलग सोच को भी िदखाया ह।
'वािहश क पैबंद' कहानी म सैली और
माइकल क मायम से लेखक ने न िसफ़
इ लश और आयरश लोग क सोच को
िदखाया ह, अिपतु इिडयन और पािकतानी
लोग क वृित को भी प िकया ह -
"सैली, म आयरश । हमारी सोच इ लश
सोच से अलग ह। ... इस िप पर तुम मेरी
मेहमान हो। इसिलये न तो तुम रहने का ख़च
शेयर करोगी और न ही खाने का। भिवय म
देखा जाएगा िक ऊट िकस करवट बैठता ह।"
मेर िलये यह भी एक नया अनुभव था।
जब मेरी इिडयन या पािकतानी सहिलयाँ
बताया करती थ िक उनक ेमी उह कभी
िबल नह अदा करने देते तो म हरान आ
करती थी। ... ऐसा कसे हो सकता ह। जब खा
दो लोग रह ह जो िक पित-पनी नह ह तो
दोन को अपने-अपने खाने का िबल अदा
करना चािहये।
आज म भी माला और िहना क तरह
महसूस कर रही । ... इस बार म भी उनक
सामने शान बघार पाऊगी िक मेर ेमी ने भी
मेरा पूरा िबल िदया।" (पृ. - 180)
कहािनय म यु शदावली
िवषयनुप और पाानुप ह। लेखक ने न
तो ज़बरदती अंेज़ी या उदू क शद को
ठ सा ह और न ही अंेज़ी क चिलत शद
का िहदीकरण िकया ह, जो कहािनय को
सहज बनाता ह। 'टट गया नाता' क नायक क
ज़रए वह िहदी और उदू को एक ही भाषा
मानता ह, "िजस भाषा को सलमान उदू कहता
ह, वह उसी को िहदी कहता ह।" (पृ. -
106)
भाषा क तरह ही संवाद और वणन का
योग भी कथानक क माँग क अनुसार ह।
लेखक ने आमकथामक शैली का भरपूर
योग िकया ह, िजससे लेखक एक पा क
प म इन कहािनय म मौजूद िदखता ह।
संेप म कह तो कहानी-संह 'संिदध'
क कहािनयाँ िहदी सािहय क पाठक को
भारत, पािकतान और इ लड क
पर थितय और लोग से परिचत कराती ह।
कोरोना काल क भाव को िदखाने क s??
से यह संह बेहद महवपूण ह। लेखक क
पास पाठक को बाँधे रखने का नर ह, जो हर
कहानी म झलका ह। यह संह िनसंदेह
िहदी कहानी म छाप छोड़ने म सफल रहगा।
000
हरान-परशान ह। कोरोना क कारण यह चोरी
?क जाती ह। 'टट गया नाता' कहानी भारत-
पािकतान क नागरक क एक साथ रहने,
उनक रत क गाढ़ता जो कोरोना क
शुआत म और बेहतर होती ह, लेिकन दूसर
लॉकडाउन क बाद रते भािवत होते ह।
'रत क गरमाहट' कहानी म कोरोना काल
म अकले रह रह अंेज़ी उपयासकार क
जीवन चया को िदखाया गया ह। इस कहानी
म एक लोमड़ी परवार क उसक घर मेहमान
बनने, अिधकारपूवक खाना माँगने और
िवलु? हो जाने क भाव को िदखाया गया ह।
'शोक संदेश' कहानी म एक बहन-भाई अपने
सौतेले भाई क नाम शोक संदेश िलखते ए
उनक माँ क क य को िलखकर राहत
महसूस करते ह। माँ क मृयु कोरोना काल म
ई ह।
वास पर आधारत अय कहािनय म
संह का शीषक बनी कहानी 'संिदध' मुख
ह। इस कहानी म लेखक ने अनेक समयाय
को उठाया ह, िजनम मुसलमान को
आंतकवादी समझा जाना, दोहरी नागरकता
क लाभ-हािन और वािसय को उनक मूल
देश वापस भेजे जाने का डर महवपूण ह।
कहानी का नायक शािहद पािकतानी ह और
उसक पनी दोहरी नागरकता रखती ह। पनी
का उसे अपने क़ज़े म रखने क िलए
िशकायत करक देश वापस िभजवा देने क
धमक उसे ऐसा क य करवाती ह, िजससे वह
अपनी पनी को संिदध बनाने क चकर म
ििटश सरकार क नज़र म ?द संिदध बन
जाता ह। कहानीकार ने बड़ी ?बसूरती से
भारत-पािकतान क तुलना करक
पािकतािनय क पीड़ा को िदखाया ह।
वािसय क बे अपने माँ-बाप क देश नह
जाना चाहते, यह एक कड़वा सच ह। ब
क िवदेशी संकित म रमने का दुख िसफ
शािहद का नह, अिपतु हर वासी का दुख ह।
कहानी पाठक को इस सोच क साथ छोड़ती ह
िक अब शािहद का या होगा? यह न इस
बात को सोचने क िलए भी ेरत करता ह िक
दूसर क िलए खाई खोदने वाला असर वयं
भी उसम िगर पड़ता ह। यह कहानी अनजाने
ही वैवािहक संबंध म वैवािहक संबंध म
आपसी समझ और िवास क महव को
ितपािदत करती ह यिक शािहद का शािहदा
को संिदध क सूची म डालने का कारण
शािहदा का उस पर शक करना और उसे
अपने िनयंण म रखने क कोिशश करना ह।
शािहद मौक़ा िमलते ही बग़ावत करता ह,
हालाँिक उसक चाल उटी पड़ जाती ह।
'अंितम संकार का खेल' कहानी म लेखक ने
उस मानिसक वृित को िदखाया ह, िजसक
चलते य अपने महव को दशाने क
चकर म यह भी भूल जाता ह िक अवसर
कसा ह। रोज़र क मृयु पर नरन और चाल
अपने आप को महवपूण दशाने क िलए लगे
ए ह। चाल क यास को नरन क मायम से
िदखाया गया ह और नरन का अंत क ारा
लेखक ने प िकया ह िक नरन वातव म
बुरा नह लेिकन चाल क हरकत उसे परशान
भी कर रही ह और कमीनापन करने पर उतार
भी रही ह। पुपा जैसे साथी का होना अिनवाय
ह। 'वािहश क पैबंद' एक ेम कहानी ह,
िजसम सैली पहली नज़र म ही माइकल क
ेम म पड़ जाती ह, लेिकन माइकल को
हामनल समया ह, उसक बढ़ी ई छाितयाँ
उसे परशान करती ह, लेिकन वह िबतर पर
ठीक ह, ऐसे म वह उसे छोड़ने और न छोड़ने
को को लेकर दुिवधा त ह, और उसक
िनणय पर कहानी समा? होती ह।
वास पर आधारत इन कहािनय से
वास म रह रह भारतीय और पािकतािनय
क समयाय और उनक आपसी यवहार
को समझा जा सकता ह। मूल नागरक क
साथ उनक संबंध को भी समझा जा सकता
ह। साथ ही 'र िजरटर म डाका' और 'म भी
तो वैसा ही ' जैसी कहािनयाँ दूर क ढोल
सुहावने क बात को सय िस करती ह।
'र िजरटर म डाका' सय कहलाए जाने
वाले लोग क पोल खोलती ह िक िकस
कार काय थल पर लोग दूसर क भोजन
क चोरी करते ह। 'म भी तो वैसा ही ' कहानी
िदखाती ह िक लंदन वासी भी िनयम को ताक
पर रखकर घर का बेकार सामान सड़क
िकनार छोड़ देते ह। कहानी 'अंितम संकार
का खेल क ारा िटन क समाज और
संकित को जानने म मदद िमलती ह। लेखक
ने इन कहािनय क मायम से वािसय क
उस मानिसकता को भी िदखाती ह, िजसम वह
नए वािसय को पसंद नह करते।
कहानी 'वस ए सोजर !' कहानी क
शु?आत वासी देश से होती ह, लेिकन
लेखक इसम भारत को िदखाने क िलए
कहानी म मृतामा का सहारा िलया ह और
उह क मायम से एक सैिनक क जीवन पर
काश डाला ह। कहानी शीषक म कही उ
को पूण करक समा? होती ह। कहानी क
जरए भारतीय फ़ौज क आधुिनककरण म
होने वाली देरी पर िचंता य क गई ह। यह
कहानी यह भी बताती ह िक िटन म
दुघटना त लोग से पुिलस का यवहार
ाघनीय ह और इस कहानी क जरए पता
चलता ह िक यूनरल क तारीख़ क िलए
इतज़ार करना होता ह और लोग इसक
यवथा क िलए पहले से बुिकग करवाते ह।
'बदलेगी रग िज़ंदगी' क कथानक क पूवा
पािकतान और उरा म इ लड को
िदखाया गया ह। यह कहानी लड़क क साथ
शादी करक िवदेश प चे लोग क दयनीय
थित को िदखाती ह, साथ ही यह िशया और
सु?ी मुसलमान क बीच क खाई को भी
बयान करती ह। इस कहानी म पािकतािनय
क िवदेश जाने क लालसा को भी िदखाया
ह।
संह क सहयाी, िदल बहलता य
नह, सवाल का जवाब, शुभांगी सुनना
चाहती ह कहािनय क कथानक का संबंध
भारत से ह। लेखक ने भारत क तमाम मु
और चिलत बात को कहािनय म यान
िकया ह, िजनम यूज़ चैनल म पकार क
बहस, पकार का प िवशेष क पैरवी
करना आिद भी कहािनय क िवषय बने ह।
सहयाी, िदल बहलता य नह, सवाल
क जवाब, का कथानक कोरोना क भाव को
िदखाता ह। भारत म कोरोना क दौरान िजन
बात ने सुिखयाँ बटोरी लेखक ने उनको
अपनी कहािनय म जगह दी ह। कोरोना क
दौरान एक तरफ लॉकडाउन तो दूसरी तरफ़

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 202519 18 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 2025
चंक अभी आठ माह का ही आ था िक गभ
म एक और संतान क आने क जानकारी ई।
सुनीता दुबली-पतली तथा जम से ही कछ
कमज़ोर थी। ऐसे म एक और संतान क
परवरश िकस तरह सुनीता कर सकगी?
दूसरी संतान स?ी का जम आ। लेिकन
बड़ा बेटा चंक एक पल भी माँ सुनीता क
गोद नह छोड़ता था। चंक का अनवरत
दन सुनीता को अस? हो जाताs दो ब
का लालन-पालन सुनीता क िलए दुकर होता
जा रहा था। स?ी छोटा था और बड़ा चंक माँ
क िबना एक पल भी रहना नह चाहता था।
तब सुनीता ने स?ी क देखरख क िलए नैनी
को रख िलयाs स?ी नैनी से घुलिमल गयाs
स?ी क संग िनय खेलती ई नैनी उसक
हमजोली बनकर एक बार िफर अपना बचपन
जीिवत कर रही थी, स?ी क बाल सुलभ
ड़ा देख-देख नैनी गदगद हो ?द को
"यशोदा मइया और सी को गोपाल" से कम
नह समझती थी। स?ी को भी अपने िहसे
क ममता उसे नैनी से िमलने लग तो अपनी
माँ सुनीता से उसक दूरयाँ बढ़ी। और िफर
एक िदन ऐसा या घिटत आ िक नैनी को
सुनीता क घर से जाना पड़ा। स?ी, नैनी क
िलए तड़प उठा और िफर बीमार हो गया।
िकस तरह सुनीता ने स?ी को अपनी ममता
और वासय क छाँव दी? आप भी इस
यारी सी कहानी को पढ़ कर जान सकते ह।
'उमीद' एक बेहतरीन कहानी ह। हमार
मयमवगय भारतीय समाज को िचंतन-मनन
को मजबूर करती ई अछी कहानी ह। या
हमारी संतान ख़ासकर लड़िकयाँ जो पढ़ी-
िलखी और बािलग ह वह वेछा से अपनी
पसंद का जीवन साथी नह चुन सकत " या
उह कोई अिधकार नह ह " आिख़र कब तक
वह माता-िपता क इछा क समुख अपना
जीवन क बार म िनणय नह लगी? सुगंधा
पढ़ी-िलखी होनहार, एक ित त परवार
क सय चौबीस वषय युवती थी वह चार
वष से िवरज को जानती-समझती और उसे
पसंद करती थी, िवरज को सुगंधा ने मनोक?ल
पाया। वे दोन एक-दूसर क सुख-दुःख
बाँटते-बाँटते शनै:-शनै: नज़दीक आए थे।
लेिकन उनक ममी-पापा को यह रता मं?र
नह था। िवरज क िबना सुगंधा अधूरी ह यह
बात उसक िसवाय कोई समझ भी कसे सकता
ह " पर ममी-पापा उसक श ह। सुगंधा
गहन िचंतन म खोई थी। माँ-पापा क अतुिलत
लाड़-यार का ऐसा ितकार! कसे उनक
आशीष क िबना वह श रह पाएगी। िकतु
उसक ?शी िवरज ह इसे वे लोग समझ नह
पा रह थे। और अंत म सुगंधा और िवरज ने
एक साथ होने को हामी भर ली। सुगंधा ममी-
पापा क इछा क िव शादी क िलए वकट
हॉल आ गई थी। शरीर से तो वह वकट हॉल म
थी िकतु मन अब भी घर बैठ अपनी ममी-
पापा से गुहार कर रही था- "अपनी बेटी को
मा कर आशीष दो माँ-पापा। म नह चाहती
थी सबको दुःख देना। जो म चाहती थी वह
आप न पूरा करने का भीम िता िलए ह।
अब भी कछ उमीद शेष ह, आ जाइए न!"
और सुगंधा क आँख भर आत थ बार-बार।
कहानी 'तलाश' म लेिखका ने बताया ह
िक भले ही हम िवदेश म रह रह ह पर अपने
देश क माटी क सधी महक और अपनी
भाषा म ?ब अपनापन होता ह। मीनल
अमेरका म ब क संग रहती थी, हािनया क
ऑपरशन क िलए अपताल म जब भत थी
तो उसक मुलाकात नस करमा से ई।
मीनल का गला सूख रहा था, पास रखे रमोट
का बटन दबाया। ज़रा देर म तीस वषय नस
करमा अंदर आई। मीनल को देखकर
अपनी वाणी म करमा जैसे िमी घोल बोल
रही थी- "पानी अभी लाई माँ जी! आप जगी
य ह? सोना तो बत ज़री ह सेहत क
िलए।" इतने यार से वह बोली िक मीनल
आपाद मतक संवेदनशील हो गई। इतना
ेम! चार िदन क अंतराल म िकसी और ने तो
नह कट िकया था।
करमा क मुख से िहदी क बोल सुनकर
मीनल को बत अछा लगा। अपनी भाषा!
िकतनी कणिय, सुखदाियनी ददहारणी ह।
अपनेपन क गंध िलए शीतल बयार जैसी
शीतलता देने वाली िहदी को मन ही मन नमन
कर मीनल ने मुकराकर यार भरी नज़र से
देख, उसे अंदर आने को कहा। करमा ने
भरपूर ेम और सौहाद से मीनल क देखभाल
क। मीनल क अंतरामा समझौत से थक-
सी लगी थी। उसे कछ तलाश थी जो अकय
थी।
इस संह क कहानी 'गित पथ पर' दो
पीिढ़य क टकराव से उप समया को
सुलझाने को ेरत करती ह। रमण माँ सुनीला
और िपता ीधर क एकलौता बेटा था।
सुनीला ने किठनाइय का सामना कर रमण
को एक सफल क यूटर इजीिनयर बनाया।
रमण को अमेरका जाने का अवसर िमला पर
िपता ने अमेरका जाने क पूव "पहले शादी
तब िवदेश गमन" क शत रख दी थी। रमण ने
माता-िपता क सहमित से िववाह िकया और
अमेरका गया। जहाँ उसने वयं को थािपत
िकया। हर सुख-सुिवधा ?? क। रमण वही
सुख-समृि क कामना अपने माता-िपता क
िलए करता था। वह चाहता था िक उसक
माता-िपता अमेरका म उसक साथ रह। माँ
सुनीला तो अमेरका जाने को तैयार थी पर
िपता ीधर को भारत छोड़ना पसंद नह था।
और कभी न जाने का ण कब से ले बैठ थे।
जनक-जननी क ित क य परायण बेटा
िमत करता रहा। मेरी आँख क सामने रहो
ब?, ब क िसर बु?गK का हाथ रहगा िकतु
िपता ने एक न सुनी। िपता का वा य ढलने
लगा, रमण भारत और अमेरका क
आवाजाही करते पत हो गया, आिथक और
मानिसक प से टटता जा रहा था। और अंत
म िपता क मृयु हो गई। िविध-िवधान से
अंितम कम-िया समा? होते-होते रमण
बीमार पड़ गया। सुनीला क िजगर का वह
टकड़ा असहाय, सफ़र क थकान, अपराध
बोध क घुटन से त ना?क हाल म आई सी
यू म पड़ा था। क य िनभाते-िनभाते रमण
आज ?द ही जीवन-मृयु से संघष कर रहा
था। सच एक परवार साथ िमलजुलकर रह
तो िकतना सुख ह। इसक िलए हर ाणी क
मन म संवेदनशीलता और अिभय का
होना अयंत आवयक ह। दूसर क किठनाई
को समझना एक कार का दाियव सबका
बनता ह। अपनी सुिवधा और इछा पर डट
रहना िकसी भी कार से उिचत नह कहा जा
शोध-आलोचना
(कहानी संह)
डढ़ बूँद पानी
समीक : लाल देवे कमार
ीवातव
लेखक : ेमा ीवातव
काशक : पश काशन, पटना,
िबहार
वासी सािहयकार ेमा ीवातव (कलीफोिनया, यू एस ए) का कहानी संह "डढ़ बूँद
पानी" वष 2024 म पश काशन (पटना, िबहार) से कािशत आ ह। इस संह म कल 18
कहािनयाँ ह। इसक पूव लेिखका क थम कहानी संह "िकरच" कािशत हो चुक ह। थम
कहानी संह "िकरच" पढ़कर लेिखका क अंतरग िम लध ित त सािहयकार डॉ.
उषािकरण खान ने शंसा क और सतत सृजन क िलए ोसािहत िकया। उ? समीित पुतक
"डढ़ बूँद पानी" लेिखका क दूसरी कहानी क?ित ह। ेमा ीवातव जी वतमान म अमेरका म
िनवासरत ह। भारत म जमी और पली-बढ़ी होने क कारण भारत और भारतीय संकित से
उनका गहरा जुड़ाव ह। इस संह म रत का संजाल, भौितकता का मकड़जाल, हािशए क
िकरदार और उनक संघष क कहािनयाँ ह। मानव क अंतमन म उेिलत िविभ? मन थित से
उलझते, जूझते ए िकरदार क कहािनयाँ ह। भारत से लेकर कलीफोिनया तक क अनुभव से
?? िवचार को अपनी कहािनय म उतारने क कोिशश लेिखका ने क ह। सामािजक करीितय
को देखकर लेिखका को जो पीड़ा उसे महसूस कर लेिखका ने उसे कहािनय म दज िकया
ह।
संह क पहली कहानी 'इ धनुष' ह। आकाश म उभरते इ धनुष को देखकर भला कौन
मोिहत नह होता? इसी तरह कमकम भी वण को देखकर ीत क इ धनुषी रग म अपने
सपन को बुना था। व?ण और कमकम का परवार एक दूसर क पड़ोसी थे। दोन परवार क
आपसी पुरानी घिनता को सुढ़ करने क िलए दोन को एक रते म बाँधने का िनणय आ
और पा दोन क सगाई हो गई। दोन नए ज़माने क बे थे, िकतु नई सोच क साथ नह पले
थे। बा? खान-पान, वेषभूषा म बदलाव िदखता था लेिकन संकार एवं मानिसकता म पूणतः
नवीनता नह थी। बड़ क ित मान-समान, िशता, याग उनक घर म बना आ था। बड़ ने
जो िनणय िलया व?ण और कमकम ने िबना िकसी आपि क वीकार िकया। व?ण शहर
जाकर डॉटरी क पढ़ाई करने लगा और अंितम वष समा? होते-होते वह पूरी तरह शहरी बन
चुका था। नए रग म रग कर वह पहले वाला व?ण न घरवाल क िलए रहा, न ही कमकम क
िलए। कमकम वािभमानी सहनशील थी। व?ण क ठोकर से आहत थी िकतु दद क िपंजर से
िनकलकर खुले आसमान क शीतलता और ताजगी उसे बटोरनी थी। वह हार मानने वाल म से
नह थी। उसने महसूस िकया िक इ धनुष तो अपायु होता ह िजसक रग म डबकर उसने
अपने सपन क रग देखे थे। कमकम ने नए िसर से अपने जीवन को नई आक?ित देने का वछद
फ़सला िलया पर कसे वह सफल ? लोग क िलए वह कसे पथ-दशक बनी और िनराशा
क बदले िकस कार साहस से एक ांत बनी, आप इस ?बसूरत कहानी को पढ़कर जान
सकगे।
लेिखका ने आम जन जीवन, हमार भारतीय समाज म घिटत हो रही घटनाएँ, ी जीवन क
संघष को अपनी कहािनय का िवषय बनाया ह और पा का चयन भी इतने सधे तरीक़ से
िकया ह िक वे पा हम हमार आसपास मौजूद लगते ह। संह क दूसरी कहानी 'ओस' ी क
जीवन संघष क कहानी ह। गाजीपुर िजले क मूल िनवासी चंपा पित क एक सड़क दुघटना म
मृयु हो जाने पर अपनी कछ माह क बेटी हतल को लेकर िकस तरह जीवन संघष करती ह।
चंपा को अपने मायक म माता-िपता क पास शरण नह िमलती। गाजीपुर से कानपुर वह िकस
तरह प च जाती ह और अपनी बेटी और अपना िकस तरह पालन-पोषण करती ह, समाज िकस
तरह इन पर अँगुली उठाता ह, िकस तरह ये दोन मुकाबला करती ह, पर हार नह मानती।
मानवीय रत क जिटलता को उजागर करती और सामािजक मु का िवेषण करती
अछी कहानी ह।
संह क 'उसका आना' ममता, वासय एवं ?न क रत क कहानी ह। सुनीता का बेटा
लाल देवे कमार ीवातव
मोहा- बरगदवा (नई कॉलोनी),
िनकट गीता प लक कल
पोट- मड़वा नगर (पुरानी बती)
िजला- बती 272002 (उ. .)
मोबाइल- 7355309428
ईमेल- [email protected]

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चंक अभी आठ माह का ही आ था िक गभ
म एक और संतान क आने क जानकारी ई।
सुनीता दुबली-पतली तथा जम से ही कछ
कमज़ोर थी। ऐसे म एक और संतान क
परवरश िकस तरह सुनीता कर सकगी?
दूसरी संतान स?ी का जम आ। लेिकन
बड़ा बेटा चंक एक पल भी माँ सुनीता क
गोद नह छोड़ता था। चंक का अनवरत
दन सुनीता को अस? हो जाताs दो ब
का लालन-पालन सुनीता क िलए दुकर होता
जा रहा था। स?ी छोटा था और बड़ा चंक माँ
क िबना एक पल भी रहना नह चाहता था।
तब सुनीता ने स?ी क देखरख क िलए नैनी
को रख िलयाs स?ी नैनी से घुलिमल गयाs
स?ी क संग िनय खेलती ई नैनी उसक
हमजोली बनकर एक बार िफर अपना बचपन
जीिवत कर रही थी, स?ी क बाल सुलभ
ड़ा देख-देख नैनी गदगद हो ?द को
"यशोदा मइया और सी को गोपाल" से कम
नह समझती थी। स?ी को भी अपने िहसे
क ममता उसे नैनी से िमलने लग तो अपनी
माँ सुनीता से उसक दूरयाँ बढ़ी। और िफर
एक िदन ऐसा या घिटत आ िक नैनी को
सुनीता क घर से जाना पड़ा। स?ी, नैनी क
िलए तड़प उठा और िफर बीमार हो गया।
िकस तरह सुनीता ने स?ी को अपनी ममता
और वासय क छाँव दी? आप भी इस
यारी सी कहानी को पढ़ कर जान सकते ह।
'उमीद' एक बेहतरीन कहानी ह। हमार
मयमवगय भारतीय समाज को िचंतन-मनन
को मजबूर करती ई अछी कहानी ह। या
हमारी संतान ख़ासकर लड़िकयाँ जो पढ़ी-
िलखी और बािलग ह वह वेछा से अपनी
पसंद का जीवन साथी नह चुन सकत " या
उह कोई अिधकार नह ह " आिख़र कब तक
वह माता-िपता क इछा क समुख अपना
जीवन क बार म िनणय नह लगी? सुगंधा
पढ़ी-िलखी होनहार, एक ित त परवार
क सय चौबीस वषय युवती थी वह चार
वष से िवरज को जानती-समझती और उसे
पसंद करती थी, िवरज को सुगंधा ने मनोक?ल
पाया। वे दोन एक-दूसर क सुख-दुःख
बाँटते-बाँटते शनै:-शनै: नज़दीक आए थे।
लेिकन उनक ममी-पापा को यह रता मं?र
नह था। िवरज क िबना सुगंधा अधूरी ह यह
बात उसक िसवाय कोई समझ भी कसे सकता
ह " पर ममी-पापा उसक श ह। सुगंधा
गहन िचंतन म खोई थी। माँ-पापा क अतुिलत
लाड़-यार का ऐसा ितकार! कसे उनक
आशीष क िबना वह श रह पाएगी। िकतु
उसक ?शी िवरज ह इसे वे लोग समझ नह
पा रह थे। और अंत म सुगंधा और िवरज ने
एक साथ होने को हामी भर ली। सुगंधा ममी-
पापा क इछा क िव शादी क िलए वकट
हॉल आ गई थी। शरीर से तो वह वकट हॉल म
थी िकतु मन अब भी घर बैठ अपनी ममी-
पापा से गुहार कर रही था- "अपनी बेटी को
मा कर आशीष दो माँ-पापा। म नह चाहती
थी सबको दुःख देना। जो म चाहती थी वह
आप न पूरा करने का भीम िता िलए ह।
अब भी कछ उमीद शेष ह, आ जाइए न!"
और सुगंधा क आँख भर आत थ बार-बार।
कहानी 'तलाश' म लेिखका ने बताया ह
िक भले ही हम िवदेश म रह रह ह पर अपने
देश क माटी क सधी महक और अपनी
भाषा म ?ब अपनापन होता ह। मीनल
अमेरका म ब क संग रहती थी, हािनया क
ऑपरशन क िलए अपताल म जब भत थी
तो उसक मुलाकात नस करमा से ई।
मीनल का गला सूख रहा था, पास रखे रमोट
का बटन दबाया। ज़रा देर म तीस वषय नस
करमा अंदर आई। मीनल को देखकर
अपनी वाणी म करमा जैसे िमी घोल बोल
रही थी- "पानी अभी लाई माँ जी! आप जगी
य ह? सोना तो बत ज़री ह सेहत क
िलए।" इतने यार से वह बोली िक मीनल
आपाद मतक संवेदनशील हो गई। इतना
ेम! चार िदन क अंतराल म िकसी और ने तो
नह कट िकया था।
करमा क मुख से िहदी क बोल सुनकर
मीनल को बत अछा लगा। अपनी भाषा!
िकतनी कणिय, सुखदाियनी ददहारणी ह।
अपनेपन क गंध िलए शीतल बयार जैसी
शीतलता देने वाली िहदी को मन ही मन नमन
कर मीनल ने मुकराकर यार भरी नज़र से
देख, उसे अंदर आने को कहा। करमा ने
भरपूर ेम और सौहाद से मीनल क देखभाल
क। मीनल क अंतरामा समझौत से थक-
सी लगी थी। उसे कछ तलाश थी जो अकय
थी।
इस संह क कहानी 'गित पथ पर' दो
पीिढ़य क टकराव से उप समया को
सुलझाने को ेरत करती ह। रमण माँ सुनीला
और िपता ीधर क एकलौता बेटा था।
सुनीला ने किठनाइय का सामना कर रमण
को एक सफल क यूटर इजीिनयर बनाया।
रमण को अमेरका जाने का अवसर िमला पर
िपता ने अमेरका जाने क पूव "पहले शादी
तब िवदेश गमन" क शत रख दी थी। रमण ने
माता-िपता क सहमित से िववाह िकया और
अमेरका गया। जहाँ उसने वयं को थािपत
िकया। हर सुख-सुिवधा ?? क। रमण वही
सुख-समृि क कामना अपने माता-िपता क
िलए करता था। वह चाहता था िक उसक
माता-िपता अमेरका म उसक साथ रह। माँ
सुनीला तो अमेरका जाने को तैयार थी पर
िपता ीधर को भारत छोड़ना पसंद नह था।
और कभी न जाने का ण कब से ले बैठ थे।
जनक-जननी क ित क य परायण बेटा
िमत करता रहा। मेरी आँख क सामने रहो
ब?, ब क िसर बु?गK का हाथ रहगा िकतु
िपता ने एक न सुनी। िपता का वा य ढलने
लगा, रमण भारत और अमेरका क
आवाजाही करते पत हो गया, आिथक और
मानिसक प से टटता जा रहा था। और अंत
म िपता क मृयु हो गई। िविध-िवधान से
अंितम कम-िया समा? होते-होते रमण
बीमार पड़ गया। सुनीला क िजगर का वह
टकड़ा असहाय, सफ़र क थकान, अपराध
बोध क घुटन से त ना?क हाल म आई सी
यू म पड़ा था। क य िनभाते-िनभाते रमण
आज ?द ही जीवन-मृयु से संघष कर रहा
था। सच एक परवार साथ िमलजुलकर रह
तो िकतना सुख ह। इसक िलए हर ाणी क
मन म संवेदनशीलता और अिभय का
होना अयंत आवयक ह। दूसर क किठनाई
को समझना एक कार का दाियव सबका
बनता ह। अपनी सुिवधा और इछा पर डट
रहना िकसी भी कार से उिचत नह कहा जा
शोध-आलोचना
(कहानी संह)
डढ़ बूँद पानी
समीक : लाल देवे कमार
ीवातव
लेखक : ेमा ीवातव
काशक : पश काशन, पटना,
िबहार
वासी सािहयकार ेमा ीवातव (कलीफोिनया, यू एस ए) का कहानी संह "डढ़ बूँद
पानी" वष 2024 म पश काशन (पटना, िबहार) से कािशत आ ह। इस संह म कल 18
कहािनयाँ ह। इसक पूव लेिखका क थम कहानी संह "िकरच" कािशत हो चुक ह। थम
कहानी संह "िकरच" पढ़कर लेिखका क अंतरग िम लध ित त सािहयकार डॉ.
उषािकरण खान ने शंसा क और सतत सृजन क िलए ोसािहत िकया। उ? समीित पुतक
"डढ़ बूँद पानी" लेिखका क दूसरी कहानी क?ित ह। ेमा ीवातव जी वतमान म अमेरका म
िनवासरत ह। भारत म जमी और पली-बढ़ी होने क कारण भारत और भारतीय संकित से
उनका गहरा जुड़ाव ह। इस संह म रत का संजाल, भौितकता का मकड़जाल, हािशए क
िकरदार और उनक संघष क कहािनयाँ ह। मानव क अंतमन म उेिलत िविभ? मन थित से
उलझते, जूझते ए िकरदार क कहािनयाँ ह। भारत से लेकर कलीफोिनया तक क अनुभव से
?? िवचार को अपनी कहािनय म उतारने क कोिशश लेिखका ने क ह। सामािजक करीितय
को देखकर लेिखका को जो पीड़ा उसे महसूस कर लेिखका ने उसे कहािनय म दज िकया
ह।
संह क पहली कहानी 'इ धनुष' ह। आकाश म उभरते इ धनुष को देखकर भला कौन
मोिहत नह होता? इसी तरह कमकम भी वण को देखकर ीत क इ धनुषी रग म अपने
सपन को बुना था। व?ण और कमकम का परवार एक दूसर क पड़ोसी थे। दोन परवार क
आपसी पुरानी घिनता को सुढ़ करने क िलए दोन को एक रते म बाँधने का िनणय आ
और पा दोन क सगाई हो गई। दोन नए ज़माने क बे थे, िकतु नई सोच क साथ नह पले
थे। बा? खान-पान, वेषभूषा म बदलाव िदखता था लेिकन संकार एवं मानिसकता म पूणतः
नवीनता नह थी। बड़ क ित मान-समान, िशता, याग उनक घर म बना आ था। बड़ ने
जो िनणय िलया व?ण और कमकम ने िबना िकसी आपि क वीकार िकया। व?ण शहर
जाकर डॉटरी क पढ़ाई करने लगा और अंितम वष समा? होते-होते वह पूरी तरह शहरी बन
चुका था। नए रग म रग कर वह पहले वाला व?ण न घरवाल क िलए रहा, न ही कमकम क
िलए। कमकम वािभमानी सहनशील थी। व?ण क ठोकर से आहत थी िकतु दद क िपंजर से
िनकलकर खुले आसमान क शीतलता और ताजगी उसे बटोरनी थी। वह हार मानने वाल म से
नह थी। उसने महसूस िकया िक इ धनुष तो अपायु होता ह िजसक रग म डबकर उसने
अपने सपन क रग देखे थे। कमकम ने नए िसर से अपने जीवन को नई आक?ित देने का वछद
फ़सला िलया पर कसे वह सफल ? लोग क िलए वह कसे पथ-दशक बनी और िनराशा
क बदले िकस कार साहस से एक ांत बनी, आप इस ?बसूरत कहानी को पढ़कर जान
सकगे।
लेिखका ने आम जन जीवन, हमार भारतीय समाज म घिटत हो रही घटनाएँ, ी जीवन क
संघष को अपनी कहािनय का िवषय बनाया ह और पा का चयन भी इतने सधे तरीक़ से
िकया ह िक वे पा हम हमार आसपास मौजूद लगते ह। संह क दूसरी कहानी 'ओस' ी क
जीवन संघष क कहानी ह। गाजीपुर िजले क मूल िनवासी चंपा पित क एक सड़क दुघटना म
मृयु हो जाने पर अपनी कछ माह क बेटी हतल को लेकर िकस तरह जीवन संघष करती ह।
चंपा को अपने मायक म माता-िपता क पास शरण नह िमलती। गाजीपुर से कानपुर वह िकस
तरह प च जाती ह और अपनी बेटी और अपना िकस तरह पालन-पोषण करती ह, समाज िकस
तरह इन पर अँगुली उठाता ह, िकस तरह ये दोन मुकाबला करती ह, पर हार नह मानती।
मानवीय रत क जिटलता को उजागर करती और सामािजक मु का िवेषण करती
अछी कहानी ह।
संह क 'उसका आना' ममता, वासय एवं ?न क रत क कहानी ह। सुनीता का बेटा
लाल देवे कमार ीवातव
मोहा- बरगदवा (नई कॉलोनी),
िनकट गीता प लक कल
पोट- मड़वा नगर (पुरानी बती)
िजला- बती 272002 (उ. .)
मोबाइल- 7355309428
ईमेल- [email protected]

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 202521 20 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 2025
िक़सागोई क जादूगरी
अशोक ियदश
कल जमा नौ कहािनयाँ, और मान नवह को नाप िलया हो! हाल-िफलहाल िक़सागोई
का ऐसा ितिलम गढ़ने वाले दीगर कहानीकार का नाम मेर िदमाग़ म नह आता। संकलन क
पहली कहानी 'एक थे मट िमयाँ, एक थी रो' वनमाली कथा म कािशत होकर तमाम
कथा-ेिमय को ख़ासा उेिलत कर चुक ह। मट िमयाँ इतने ?बसूरत हगे, यह बात उनक
अनगढ़ संा क कारण ज़ेहन म उतरती नह। रजनी परहार उफ रो, कहने को दामोदर क
बीवी, बे उगल रही ह मट िमयाँ क सौजय से और 'छक' का दाग़ िमट रहा ह डी डी टी
का। और आिख़र म मट िमयाँ अाह क यार हो चुक ह। यह य भी कहानी क
कलामकता म कछ जोड़ जाता ह। ग़ज़ब!
ेम का ढाई अर पढ़कर पंिडत बन जाना वैसा आसान नह होता। पंकज सुबीर ेम क हर
रग को इतनी बारीक, इतनी तीनता से िचित करते ह िक चिकत रह जाना पड़ता ह। ेम का
हर रग, शरीरी, अशरीरी, िसफ 'नैन नैन िमिल पड़ी ठगोरी' क थित वाला ेम, जाने िकतने
रग! ेम क रग म डबकर ेमकथा क अ?ुत िसरजनहार ह पंकज सुबीर। म 'हर टीन क छत'
क बात कर रहा । पचमढ़ी म वे बीते लह जब चौकदार का बेटा, नचिनया अजुन, मीरा से
िमलने आया था और इसी अजुन ने मछली क आँख म िनशाना लगाया था। मीरा का मनोभाव -
'मुझे लो जैसे अँधेरा लेता ह जड़ को, जैसे पानी लेता ह चंमा को, जैसे अनंत लेता ह समय
को'! और यह कहानी लैशबैक म चलती ह।
एक िवरल कोण से िलखी गई सांदाियक स?ाव क कथा ह 'ख़ैबर दरा'। पुतक को
यही संा िमली ह और ट कवर पर पुतक क नाम क साथ बाइ-लाइन ह -'हर शहर हर क़बे
म चािहए ख़ैबर दरा '। ख़ैबर दरा कोई ख़ैबर दरा नह ह, यह नाम िदया गया ह संकर से नाले क
सूख जाने पर इसे पार करने को बना िदए गए पैदल राते को। इस नाले क एक ओर ह िहदू
बती और दूसरी ओर ह मु लम बती। शहर म सांदाियक दंगा फला आ ह। मु लम बती
म घनी आबादी से थोड़ा हटकर, िहदू बती क करीब इका-दुका घर ह मु लम क। इह म
से एक घर म एक मु लम वृ रहता ह, अपनी बला क ?बसूरत जवान बेटी क साथ। िहदू
बती म दो दोत क नज़र उस लड़क पर ह। उनका सोचना ह िक उस हसीना को भोग लेने
का यही मौक़ा ह। अपािहज बूढ़ा अपनी बेटी क रा भला कसे कर सकगा!दंगे क उसी माहौल
म दोन दोत लड़क क घर तक प चते ह। एक दोत दूसर क सहार मकान क बाहरी दीवार
पर चढ़ जाता ह, लेिकन दूसर दोत को वह ऊपर खचे तब तक दंगाइय क इस तरफ आने क
आहट पाकर यह युवा अपने िनवास क ओर लपकता ह। दीवार पर खड़ा युवा आँगन म क?द
पड़ता ह। आवाज़ सुनकर हील चेयर वाले पुकारते ह -कौन हो भाई?भीतर आ जाओ, और
िफर वातावरण क भयावहता क बात करते ह, युवक क िलए उसी बेटी से जलपान और िफर
खाना मँगवाते ह और बताते ह न म बथ क अकारण िववाद म उह और उनक बेट को चलती
गाड़ी से फक िदया गया था। बेटा तो न म ही दम तोड़ चुका था, वे अपंग होकर बच गए ह।
बेटी ह जो िनकाह क िलए तैयार नह होती यिक अबा अकले पड़ जाएँगे! इस बीच कछ
लोग दरवाज़स खुलवा कर पूछते ह िक कोई शस घर म छपा ह या, और इनकार पर लौट
जाते ह। उधर िम फ़ोन पर िक़ला फतह करने क याद िदलाता ह पर इधर यह युवा अपंग क
सुरा क याल से उह गोद म टाँग कर उस पार ले जा रहा ह। ज़ािहर ह, लड़क साथ आ रही
ह।
जैसा िक िनवेदन कर चुका , ेम क अनकह-अनछए पृ को खोलते ह पंकज सुबीर।
इमली क बड़-बड़ दरत क इस पार बंगले क बरामदे म एक युवती बैठी नज़र आती ह। एक
लड़का ह, जो पेड़ क बीच से िनकल कर रोज़ चाय-ेड लेकर आता ह और िफर उस युवती
को कछ ेड हर िदन यह कहकर देता ह िक दुकान उसी क ह। सच यह ह िक लड़का पैसे से
अशोक ियदश
एम आइ जी (एम एफ)-82, सहजानंद
चौक, हरमू हाउिसंग कॉलोनी, रांची -
834002 झारखड
मोबाइल- 8789800843
दीप कात
24, सयिम राजलमी नेचर
सूय मंिदर क पास, कट-राऊ रोड, इदौर,
453 331, म
मोबाइल- 9407423354
ईमेल- [email protected]
जया जादवानी
खुशी ए ेव, मकान नं. 14, अमलीडीह,
वीआईपी माना रोड, रिवाम, रायपुर,
छीसगढ़ -492007
मोबाइल- 9827947480
ईमेल- [email protected]
क म पुतक
(कहानी संह)
ख़ैबर दरा
समीक : अशोक ियदश, दीप
कात, जया जादवानी
लेखक : पंकज सुबीर
काशक : राजपाल एंड संस, नई
?·??
सकता ह।
'राधा का िितज' एक ेरणादायी कहानी
ह। वातव म यिद कोई संकप कर ले, मन म
ठान ले तो राह म आने वाली हर ?कावट से
मुकाबला करता आ भी अपनी मंिज़ल तक
प च ही जाता ह। राधा कम उ म शादीशुदा
थी। गोद म एक बी। उसक पड़ोस म रहने
वाली डॉटरी क वेश परीा क तैयारी कर
रही लड़क क िकताब को उसुकता वश
उलट-पुलट कर राधा देखने लगी तो उसने
राधा को हीन भावना से देखा और राधा से
कटा करती ई बोली- "ये सब तुहार वश
का नह। या देख रही हो इन पुतक को!
ितयोिगता परीा तुहार िलए नह।" पुनः
वह राधा से िठठोली करती बोली थी- "तुहार
हाथ म पुतक नह बेलन ही अछ लगते ह।"
अपमान क कड़वे घूँट पीकर अुपूरत ने
से अपनी मातृ-तुय सास क सामने राधा
िससक उठी थी। ब? का इतना अपमान सहन
नह कर सक थ राधा क सास। बहन जैसी
िजठानी बोली थी- "अब तुम अपनी पढ़ाई
ज़र करोगी, बेबी को म सहाल लूँगी।"
राधा मेिडकल क वेशाथ ितयोगी
परीा म जुट गई। खर बुि राधा अपने
मज़बूत इराद को अपनी िना-लगन-साहस
से वेश परीा उीण कर मेिडकल क चार
वष क सतत यन क पा राधा ने
मेिडकल िडी हािसल क और गोड मेडल
भी ा िकया और िफर एम. डी. भी िकया।
बाद म निसग होम खोल िलया। पर इस
उपल ध म राधा क िता और कड़ परम
क साथ ही ससुराल वाल पित, सास, जेठानी
सभी ने सहयोग िदया। मन म यिद ढ़ िन?य
हो और आपसी सहयोग अगर हर घर म
या हो जाए तो समत समाज, पूरी धरती
?शहाल हो सकती ह। हर घर म हर य
संतु होगा तभी सव शांित का अ?णोदय
होगा।
पुतक क शीषक कहानी 'डढ़ बूँद पानी'
ह। िजसम सास-ब? क रते क बीच
अंतरं, टकराहट और इस रते म िकस
तरह यार और अपनव पनप सकता ह को
रखांिकत करती कहानी ह। कहानी क साथ ही
िवमश चलता ह। सास-ब? क ित पहले से
ही ऐसी ा त बना दी गई ह िक दोन को
एक-दूसर क ित डर और असहजता क
थित बनी रहती ह। यह रता िकस कार
मज़बूत और सहज बने यही इस कहानी म
लेिखका ारा रची गई ह। सुभा क जब शादी
नह ई थी तो उसक समुख भी पूवा ह से
िचांिकत, िचतकबरी छिव क तुित ऐसी
क जाती रही, जैसे सास कोई सृ क
संवेदनशील ी नह वह साा कटता क
ितमा हो। 'माँ' शद क पहले एक शद
जोड़कर "सासू माँ" चिलत हो गया। शुभा
को ठीक इसक िवपरीत अनुभव आ। उसे
अपने सासू माँ क अंदर िनिहत एक कोमल
दया नारी िछपी िदखी थी। हर रोज़ शुभा
उनक अनेकानेक प देखती तो ा से
अिभभूत हो जाती। शुभा, सासू माँ क िनधन क
कछ िदन बाद िकटी पाट म जब देरी म
प ची तो िमसेज पांड ने कहा, "अब आज
य लेट हो गई शुभा, भाई अब तो तुम आज़ाद
पंछी हो, पूरी तरह अपने मन क। अब तो
रोक-टोक उड़ गया ऊपर।" एक ज़ोरदार
ठहाका लगा। तो शुभा को बत बुरा लगा।
और िफर सास-ब? क रते पर िवचार-
िवमश ारभ आ। सबने माना िक सास और
ब? दोन ही सबसे पहले एक ममतापूण,
िववेकशील, सहनशील, श संप? नारी ह।
हम जब तक उनम िनिहत नारीव को नह देख
पाएँगे तब तक यह रता जिटलता से मु?
नह हो पाएगा और सास-ब गृहथी क दो
तंभ क जगह सदा डढ़ बनकर ही रह
जाएँगी। एक-दूसर को जब तक पूणतः
अछाई-बुराई क साथ भावामक तर पर
वीकार नह करत तब तक इनका रता
ठोस नह, पानी क दो बूँद भी नह, कवल
"डढ़ बूँद पानी" बनकर रह जाएगा। वथ
परवार और समाज क िलए दोन महवपूण
ह। पारखी का सामय दय म रोपना
होगा अयथा यह न िचरकाल तक
अनु रत क साथ हायापद भी बना रहगा।
इस क?ित क अय कहािनयाँ- िब?ी,
अलगाव, िनःशद, परत, वय:संिध, िवटनेस
बॉस, ?िच-का सफ़र, अपराध बोझ,
पुनरावृि, खइछा आिद भी अछी ह। ेमा
ीवातव जी क कहािनय म पा सहज,
सरल और हमार आसपास क लोग ही ह। यही
कारण ह िक पाठक सीधे इन कहािनय से
अपने को जुड़ा महसूस करगे। वतमान म भले
ही लेिखका अमेरका म िनवासरत ह, िकतु
इनक कहािनय म भारतीय संकित और
भारतीय समाज क सधी महक ह। कछ
कहािनयाँ तो नए िवषय पर इहने िलखी ह
जो हम िचंतन को मजबूर करती ह। मानवीय
रत और सामािजकता क जिटल न को
ेमा जी ने इन कहािनय म उकरा ह और
उनका समाधान भी तुत िकया ह। कहानी
'डढ़ बूँद पानी' म सास-ब? क ?लंत
समया को िकतने ?बसूरती से हल िकया ह
इसे कहानी पढ़कर जाना जा सकता ह।
मनोरजन क साथ ही पाठक को इस क?ित
क कहािनय म नए कोण का अनुभव भी
होगा। समाज को नई िदशा देने म ये कहािनयाँ
सम ह। संह क कहािनय म कपना क
उड़ान तो ह पर यथाथवादी लगती ह। साथ ही
मानवीय संवेदना, रत का ताना-बाना,
भावनामक संघष, जीवन मूय आिद भी
कहािनय म परलित ह। कहािनय म संवाद
भी ह जो कहािनय को जीवंत बनाते ह। कछ
कहािनयाँ छोटी तो कछ बड़ी ह यानी
िवषयवतु क अनुसार ही कहािनयाँ ह,
बेमतलब कहािनय बड़ी करने क कोिशश
नह क गई ह। मुझे इस क?ित क अिधकतर
कहािनयाँ सश? एवं साथक लग। िकसी
कहानी को पढ़ने म ऊब महसूस नह होती
यानी कहािनयाँ हम अपने से जोड़ने म समथ
ह यही ेमा जी क लेखन क साथकता ह।
कहािनय क भाषा सहज, सरल और
वहमान ह।
दो-तीन जगह वाय िवयास म ुिट ह
िजस पर काशक को अगले संकरण म
यान देना अपेित ह। इस अनुपम एवं
साथक कहानी संह क िलए ेमा ीवातव
जी हािदक बधाई एवं शुभकामनाएँ देता ।
"डढ़ बूँद पानी" िन त तौर पर एक पठनीय
एवं संहणीय कहानी संह ह।
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çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 202521 20 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 2025
िक़सागोई क जादूगरी
अशोक ियदश
कल जमा नौ कहािनयाँ, और मान नवह को नाप िलया हो! हाल-िफलहाल िक़सागोई
का ऐसा ितिलम गढ़ने वाले दीगर कहानीकार का नाम मेर िदमाग़ म नह आता। संकलन क
पहली कहानी 'एक थे मट िमयाँ, एक थी रो' वनमाली कथा म कािशत होकर तमाम
कथा-ेिमय को ख़ासा उेिलत कर चुक ह। मट िमयाँ इतने ?बसूरत हगे, यह बात उनक
अनगढ़ संा क कारण ज़ेहन म उतरती नह। रजनी परहार उफ रो, कहने को दामोदर क
बीवी, बे उगल रही ह मट िमयाँ क सौजय से और 'छक' का दाग़ िमट रहा ह डी डी टी
का। और आिख़र म मट िमयाँ अाह क यार हो चुक ह। यह य भी कहानी क
कलामकता म कछ जोड़ जाता ह। ग़ज़ब!
ेम का ढाई अर पढ़कर पंिडत बन जाना वैसा आसान नह होता। पंकज सुबीर ेम क हर
रग को इतनी बारीक, इतनी तीनता से िचित करते ह िक चिकत रह जाना पड़ता ह। ेम का
हर रग, शरीरी, अशरीरी, िसफ 'नैन नैन िमिल पड़ी ठगोरी' क थित वाला ेम, जाने िकतने
रग! ेम क रग म डबकर ेमकथा क अ?ुत िसरजनहार ह पंकज सुबीर। म 'हर टीन क छत'
क बात कर रहा । पचमढ़ी म वे बीते लह जब चौकदार का बेटा, नचिनया अजुन, मीरा से
िमलने आया था और इसी अजुन ने मछली क आँख म िनशाना लगाया था। मीरा का मनोभाव -
'मुझे लो जैसे अँधेरा लेता ह जड़ को, जैसे पानी लेता ह चंमा को, जैसे अनंत लेता ह समय
को'! और यह कहानी लैशबैक म चलती ह।
एक िवरल कोण से िलखी गई सांदाियक स?ाव क कथा ह 'ख़ैबर दरा'। पुतक को
यही संा िमली ह और ट कवर पर पुतक क नाम क साथ बाइ-लाइन ह -'हर शहर हर क़बे
म चािहए ख़ैबर दरा '। ख़ैबर दरा कोई ख़ैबर दरा नह ह, यह नाम िदया गया ह संकर से नाले क
सूख जाने पर इसे पार करने को बना िदए गए पैदल राते को। इस नाले क एक ओर ह िहदू
बती और दूसरी ओर ह मु लम बती। शहर म सांदाियक दंगा फला आ ह। मु लम बती
म घनी आबादी से थोड़ा हटकर, िहदू बती क करीब इका-दुका घर ह मु लम क। इह म
से एक घर म एक मु लम वृ रहता ह, अपनी बला क ?बसूरत जवान बेटी क साथ। िहदू
बती म दो दोत क नज़र उस लड़क पर ह। उनका सोचना ह िक उस हसीना को भोग लेने
का यही मौक़ा ह। अपािहज बूढ़ा अपनी बेटी क रा भला कसे कर सकगा!दंगे क उसी माहौल
म दोन दोत लड़क क घर तक प चते ह। एक दोत दूसर क सहार मकान क बाहरी दीवार
पर चढ़ जाता ह, लेिकन दूसर दोत को वह ऊपर खचे तब तक दंगाइय क इस तरफ आने क
आहट पाकर यह युवा अपने िनवास क ओर लपकता ह। दीवार पर खड़ा युवा आँगन म क?द
पड़ता ह। आवाज़ सुनकर हील चेयर वाले पुकारते ह -कौन हो भाई?भीतर आ जाओ, और
िफर वातावरण क भयावहता क बात करते ह, युवक क िलए उसी बेटी से जलपान और िफर
खाना मँगवाते ह और बताते ह न म बथ क अकारण िववाद म उह और उनक बेट को चलती
गाड़ी से फक िदया गया था। बेटा तो न म ही दम तोड़ चुका था, वे अपंग होकर बच गए ह।
बेटी ह जो िनकाह क िलए तैयार नह होती यिक अबा अकले पड़ जाएँगे! इस बीच कछ
लोग दरवाज़स खुलवा कर पूछते ह िक कोई शस घर म छपा ह या, और इनकार पर लौट
जाते ह। उधर िम फ़ोन पर िक़ला फतह करने क याद िदलाता ह पर इधर यह युवा अपंग क
सुरा क याल से उह गोद म टाँग कर उस पार ले जा रहा ह। ज़ािहर ह, लड़क साथ आ रही
ह।
जैसा िक िनवेदन कर चुका , ेम क अनकह-अनछए पृ को खोलते ह पंकज सुबीर।
इमली क बड़-बड़ दरत क इस पार बंगले क बरामदे म एक युवती बैठी नज़र आती ह। एक
लड़का ह, जो पेड़ क बीच से िनकल कर रोज़ चाय-ेड लेकर आता ह और िफर उस युवती
को कछ ेड हर िदन यह कहकर देता ह िक दुकान उसी क ह। सच यह ह िक लड़का पैसे से
अशोक ियदश
एम आइ जी (एम एफ)-82, सहजानंद
चौक, हरमू हाउिसंग कॉलोनी, रांची -
834002 झारखड
मोबाइल- 8789800843
दीप कात
24, सयिम राजलमी नेचर
सूय मंिदर क पास, कट-राऊ रोड, इदौर,
453 331, म
मोबाइल- 9407423354
ईमेल- [email protected]
जया जादवानी
खुशी ए ेव, मकान नं. 14, अमलीडीह,
वीआईपी माना रोड, रिवाम, रायपुर,
छीसगढ़ -492007
मोबाइल- 9827947480
ईमेल- [email protected]
क म पुतक
(कहानी संह)
ख़ैबर दरा
समीक : अशोक ियदश, दीप
कात, जया जादवानी
लेखक : पंकज सुबीर
काशक : राजपाल एंड संस, नई
?·??
सकता ह।
'राधा का िितज' एक ेरणादायी कहानी
ह। वातव म यिद कोई संकप कर ले, मन म
ठान ले तो राह म आने वाली हर ?कावट से
मुकाबला करता आ भी अपनी मंिज़ल तक
प च ही जाता ह। राधा कम उ म शादीशुदा
थी। गोद म एक बी। उसक पड़ोस म रहने
वाली डॉटरी क वेश परीा क तैयारी कर
रही लड़क क िकताब को उसुकता वश
उलट-पुलट कर राधा देखने लगी तो उसने
राधा को हीन भावना से देखा और राधा से
कटा करती ई बोली- "ये सब तुहार वश
का नह। या देख रही हो इन पुतक को!
ितयोिगता परीा तुहार िलए नह।" पुनः
वह राधा से िठठोली करती बोली थी- "तुहार
हाथ म पुतक नह बेलन ही अछ लगते ह।"
अपमान क कड़वे घूँट पीकर अुपूरत ने
से अपनी मातृ-तुय सास क सामने राधा
िससक उठी थी। ब? का इतना अपमान सहन
नह कर सक थ राधा क सास। बहन जैसी
िजठानी बोली थी- "अब तुम अपनी पढ़ाई
ज़र करोगी, बेबी को म सहाल लूँगी।"
राधा मेिडकल क वेशाथ ितयोगी
परीा म जुट गई। खर बुि राधा अपने
मज़बूत इराद को अपनी िना-लगन-साहस
से वेश परीा उीण कर मेिडकल क चार
वष क सतत यन क पा राधा ने
मेिडकल िडी हािसल क और गोड मेडल
भी ा िकया और िफर एम. डी. भी िकया।
बाद म निसग होम खोल िलया। पर इस
उपल ध म राधा क िता और कड़ परम
क साथ ही ससुराल वाल पित, सास, जेठानी
सभी ने सहयोग िदया। मन म यिद ढ़ िन?य
हो और आपसी सहयोग अगर हर घर म
या हो जाए तो समत समाज, पूरी धरती
?शहाल हो सकती ह। हर घर म हर य
संतु होगा तभी सव शांित का अ?णोदय
होगा।
पुतक क शीषक कहानी 'डढ़ बूँद पानी'
ह। िजसम सास-ब? क रते क बीच
अंतरं, टकराहट और इस रते म िकस
तरह यार और अपनव पनप सकता ह को
रखांिकत करती कहानी ह। कहानी क साथ ही
िवमश चलता ह। सास-ब? क ित पहले से
ही ऐसी ा त बना दी गई ह िक दोन को
एक-दूसर क ित डर और असहजता क
थित बनी रहती ह। यह रता िकस कार
मज़बूत और सहज बने यही इस कहानी म
लेिखका ारा रची गई ह। सुभा क जब शादी
नह ई थी तो उसक समुख भी पूवा ह से
िचांिकत, िचतकबरी छिव क तुित ऐसी
क जाती रही, जैसे सास कोई सृ क
संवेदनशील ी नह वह साा कटता क
ितमा हो। 'माँ' शद क पहले एक शद
जोड़कर "सासू माँ" चिलत हो गया। शुभा
को ठीक इसक िवपरीत अनुभव आ। उसे
अपने सासू माँ क अंदर िनिहत एक कोमल
दया नारी िछपी िदखी थी। हर रोज़ शुभा
उनक अनेकानेक प देखती तो ा से
अिभभूत हो जाती। शुभा, सासू माँ क िनधन क
कछ िदन बाद िकटी पाट म जब देरी म
प ची तो िमसेज पांड ने कहा, "अब आज
य लेट हो गई शुभा, भाई अब तो तुम आज़ाद
पंछी हो, पूरी तरह अपने मन क। अब तो
रोक-टोक उड़ गया ऊपर।" एक ज़ोरदार
ठहाका लगा। तो शुभा को बत बुरा लगा।
और िफर सास-ब? क रते पर िवचार-
िवमश ारभ आ। सबने माना िक सास और
ब? दोन ही सबसे पहले एक ममतापूण,
िववेकशील, सहनशील, श संप? नारी ह।
हम जब तक उनम िनिहत नारीव को नह देख
पाएँगे तब तक यह रता जिटलता से मु?
नह हो पाएगा और सास-ब गृहथी क दो
तंभ क जगह सदा डढ़ बनकर ही रह
जाएँगी। एक-दूसर को जब तक पूणतः
अछाई-बुराई क साथ भावामक तर पर
वीकार नह करत तब तक इनका रता
ठोस नह, पानी क दो बूँद भी नह, कवल
"डढ़ बूँद पानी" बनकर रह जाएगा। वथ
परवार और समाज क िलए दोन महवपूण
ह। पारखी का सामय दय म रोपना
होगा अयथा यह न िचरकाल तक
अनु रत क साथ हायापद भी बना रहगा।
इस क?ित क अय कहािनयाँ- िब?ी,
अलगाव, िनःशद, परत, वय:संिध, िवटनेस
बॉस, ?िच-का सफ़र, अपराध बोझ,
पुनरावृि, खइछा आिद भी अछी ह। ेमा
ीवातव जी क कहािनय म पा सहज,
सरल और हमार आसपास क लोग ही ह। यही
कारण ह िक पाठक सीधे इन कहािनय से
अपने को जुड़ा महसूस करगे। वतमान म भले
ही लेिखका अमेरका म िनवासरत ह, िकतु
इनक कहािनय म भारतीय संकित और
भारतीय समाज क सधी महक ह। कछ
कहािनयाँ तो नए िवषय पर इहने िलखी ह
जो हम िचंतन को मजबूर करती ह। मानवीय
रत और सामािजकता क जिटल न को
ेमा जी ने इन कहािनय म उकरा ह और
उनका समाधान भी तुत िकया ह। कहानी
'डढ़ बूँद पानी' म सास-ब? क ?लंत
समया को िकतने ?बसूरती से हल िकया ह
इसे कहानी पढ़कर जाना जा सकता ह।
मनोरजन क साथ ही पाठक को इस क?ित
क कहािनय म नए कोण का अनुभव भी
होगा। समाज को नई िदशा देने म ये कहािनयाँ
सम ह। संह क कहािनय म कपना क
उड़ान तो ह पर यथाथवादी लगती ह। साथ ही
मानवीय संवेदना, रत का ताना-बाना,
भावनामक संघष, जीवन मूय आिद भी
कहािनय म परलित ह। कहािनय म संवाद
भी ह जो कहािनय को जीवंत बनाते ह। कछ
कहािनयाँ छोटी तो कछ बड़ी ह यानी
िवषयवतु क अनुसार ही कहािनयाँ ह,
बेमतलब कहािनय बड़ी करने क कोिशश
नह क गई ह। मुझे इस क?ित क अिधकतर
कहािनयाँ सश? एवं साथक लग। िकसी
कहानी को पढ़ने म ऊब महसूस नह होती
यानी कहािनयाँ हम अपने से जोड़ने म समथ
ह यही ेमा जी क लेखन क साथकता ह।
कहािनय क भाषा सहज, सरल और
वहमान ह।
दो-तीन जगह वाय िवयास म ुिट ह
िजस पर काशक को अगले संकरण म
यान देना अपेित ह। इस अनुपम एवं
साथक कहानी संह क िलए ेमा ीवातव
जी हािदक बधाई एवं शुभकामनाएँ देता ।
"डढ़ बूँद पानी" िन त तौर पर एक पठनीय
एवं संहणीय कहानी संह ह।
000

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 202523 22 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 2025
थी)। तो बाहर ख़बर फलती ह दामोदर और
रो क (हालाँिक दामोदर क बीवी बे
गाँव म ह) लेिकन दबे वर म नाम आता ह
डी डी टी का। तो डी डी टी का मकसद तो पूरा
हो गया। समय क साथ डी डी टी क मौत,
िफर रजनी का दामोदर क पकारता का सब
सामान लेकर और बड़ शहर म जाकर
इले ॉिनक मीिडया म जनिलट बन जाना
और दामोदर का गाँव चले जाना। अब मट
िमयाँ अकले ह, डी डी टी क उसी बंगले म जो
उसी किथत राजनीितक पाट का कायालय ह
जो िपछली सदी म सा म थी। ाइमेस म
मट िमयाँ क मौत और उनक मौत को
कवर करने वाली युवा तेज़तरार पकार जो
उही क जैसी सुदर ह यानी उनक और
रो क बेटी। दरअसल कहानी तो मट
िमयाँ क इद िगद ही घूमती ह यानी दाताने
मट िमयाँ लेिकन बीच-बीच म बदलते
समय म राजनीितक, सा ादाियक और
सामिजक मूय क बात करती ई चलती ह।
कहानी पढ़ने क बाद न उठता ह िक इसे
कहानी क प म य समेट िलया गया, इस
िवषय पर एक बेहतरीन उपयास बन सकता
था िजसक मता पंकज क पास ह भी।
अगली कहानी 'हर टीन क छत' म एक
परप मिहला चालीस बाद वापस पचमढ़ी
आई ह लेिकन घूमने नह। यह मीरा ह िजसे
अजुन नाम क उस लड़क क तलाश ह जो
उसक लड़कपन म उसे िमला था, िजस से
उसे लगाव हो गया था (शायद इसे यार
कहना मु कल हो)। यह कहानी बीच-बीच
म अतीत म जाती ह वैसे ही जैसे हम सब कभी
ना कभी अपने अपने अतीत म मण करने
िनकल जाते ह और अतीत असर अछा
लगता ह। दरअसल चालीस साल पहले अपने
िपता क शहर से पचमढ़ी म तबादले क कारण
मीरा का परवार यहाँ आता ह। लेिकन िपता
यहाँ रहना नह चाहते वे वापस जाना चाहते ह
यिक यहाँ शहर जैसे ऊपरी कमाई नह ह
(कहानी एक नौट जया क ह लेिकन
कहानीकार यहाँ भी सरकारी तं म या
ाचार क झलक िदखला देता ह)। िपछली
बार जब मीरा यहाँ आई थी वह 16-17 साल
क थी और तभी चौकदार का लड़का अजुन
उसने िकसी मंडली क साथ नाचते ए देखा
था िबकल वैसे ही जैसे एक ी नाचती ह।
चौकदार क कहने पर उसने उसे तरह-तरह
से समझने क कोिशश क थी िक यह काम ना
कर। मीरा कछ ही महीन म वापस अपने
पुराने शहर चली गई थी यिक िपता का
तबादला वापस वही हो गया ह। और शायद
यह लड़कपन का लगाव ही था िजसक कारण
वह अजुन को एक ेसलेट देकर चली गई।
अब िसफ अपने उस अतीत को एक बार
देखने आई ह। अंततः होटल क मैनेजर से
मीरा को अजुन का पता चल ही जाता ह िक
वह पचमढ़ी से उतरकर बसे मटकली गाँव म
र टोरट चलाता ह। लौटते समय मीरा वहाँ
जाती ह, वहाँ नाता करती ह और िमठाई भी
पैक करवाती ह िकतु आँख पर काला चमा
लगा कर िबल पे करती ह। उससे बात नह
करती, बाहर आकर िसफ एक प वेटर क
ारा िभजवाती ह िजसे पढ़कर अजुन बाहर
आता ह लेिकन मीरा जा चुक होती ह। या
मीरा िसफ अजुन को देखने पचमढ़ी आई थी
यह सवाल कहानीकार ने पाठक पर छोड़
िदया ह। इस कहानी म कछ अछी किवताएँ
बार-बार आती ह। कहानी क ाइमेस म
कार चल रही ह और म क वर नारायण क
किवता बज रही ह - घर रहगे हम उनम रह ना
पाएँगे समय होगा हम अचानक बीत जाएँगे।
इस कहानी म पंकज क कहानीकार का शद
क ित एक सटीक ीटमट भी नज़र आता ह
जहाँ वे आओ और आना को िभ? बताते ए
कहते ह िक आओ आमंण का शद ह
िजसम दोन हाथ उठ ए ह जबिक आना
िवछोह का शद ह िजसम िवदा क िलए एक
ही हाथ उठा आ ह।
अगली कहानी संह क शीषक कथा ह,
'ख़ैबर दरा' - दो धम का झगड़ा। ख़ैबर दरा
उस नाले म से होकर जाने वाले राते का नाम
ह जो शहर को भौगोिलक प से ही नह वरन
सांदाियक प से भी बाँटता ह। इस कहानी
म दो युवक ह पहला और दूसरा जो नाले क
इस पार रहते ह और एक धम क मानने वाले
ह। नाले क दूसरी पार एक परवार ह िजसमे
एक युवती और हील चेयर पर उसक िपता।
ये दूसर मज़हब का घर ह। कहानी शु होती
ह सा दाियक तनाव क वातावरण से। अब
अपने घर म बैठ ए इस तरफ का पहला
युवक दूसर युवक से उस तरफ क युवती क
बार म बात करते ए उसक सुंदरता का
बखान करता ह। िफर यह तय होता ह िक
सांदाियक तनाव क थित ह यिद उस तरफ
क युवती को थित म कछ हो जाए तो िजसे
फ़क पड़गा? और िफर दंग का िववरण और
उस युवती क घर म दोनो युवक का प च
जाना। और बाद ने कवल दूसर युवक का
उसी घर क भीतर शरण पा लेना। एक तरफ
दंगे का खौफ़ दूसरी तरफ युवक और युवती
क िपता ने बातचीत का मािमक वणन और
अंत होता ह – दो साए सधे ए क़दम से नाले
म बनी पगडडी क तरफ बढ़ रह ह। यह तीन
लोग ह, लेिकन सार कवल इसिलए दो बना
रह ह यिक आगे चल रह एक य ने
दूसर को अपनी गोद म उठाया आ ह। यानी
िक दूसर युवक का िघनौना िवचार स?ाव म
बदल गया ह। पूर िव क िलए सबसे ज़री
थित ऐसी ही होनी चािहए।
एक लड़क ह जो गाँव म आई ह। एक
लड़का ह जो रोज़ उसी तरफ से गुज़रता ह
िजस तरफ यह लड़क ह। रोज़ कोई आपक
सामने से गुज़र तो वाभािवक ह िक आपक
नज़र भी उस पर जाएगी। बातचीत भी होगी,
लगाव भी पनपेगा और संभवत: ेम भी। तो
यह ह कहानी 'वीरब?िटयाँ चली ग'। लड़का
एक डोलची लेकर आता ह और रोज़ उसमे
ेड या िब कट या अंड लेकर जाता ह।
लड़क से बातचीत शु होती ह (जो िक
वाभािवक ह)। लड़क ऐसे रहती ह जैसे वो
बीमार हो। लड़का उसे उसक पसंद क
िब कट या ेड दे देता ह और वह हमेशा
कहती ह िक अभी पैसे नह ह जब आएँगे तब
चुका देगी। बीच-बीच म यह कहानी लड़क
क िपता, माँ, दादी और नानी पर जाती ह।
लड़का लड़क क िलए िचरमी क बीज लाता
ह और कहता ह िक इनसे तुम ठीक हो
जाओगी (ऐसा उसक दादी बताती ह)। िफर
कहता ह िक वो उसक िलए वीरब?िटयाँ
ख़रीद कर अपने िलए ेड-चाय लाता था।
कछ िदन बाद युवती नह िदखती। वह लौट
गई ह। वीर ब?िटयाँ बरसात क कछ िदन म
ही िदखती ह। यह ह संकलन क कहानी 'वीर
ब?िटयाँ चली ग'। लड़का उदास ह।
'देह धर का दंड' शीषक कहानी एक
अलग तरह का ितिलम रचती ह। एक जोड़ा
ह िजसने आमदाह कर िलया ह। किथत
मिहला ने ही पहले ?द को जलायाs जल गए
जोड़ को लाचारी म एक पड़ोसी को पास वाले
मरयल से अपताल म ले जाना पड़ता ह।
किथत मिहला मर चुक ह। पु?ष अंितम साँस
िगन रहा ह। दोन म अटट ेम था। दंपित
िकसी से कोई संपक नह रखता था। एक
डॉटर आए ए ह, पुिलस वाले भी। पुिलस
क तशीश म राज़ खुलता ह िक मर गई ी
वातव म पु?ष ह और उसने इस डर से
आमदाह िकया ह िक यह राज़ कह खुल न
जाए। अगले जम म वह सचमुच ी हो और
उसे इसी पु?ष का यार िमले। यह कहानी
शायद इस ग़लीज समाज का घृिणत सय
उजागर करना चाहती ह िक यहाँ अलग होने
पर समान से जीना िकतना दुह ह! 'िनिलग'
कहानी भी जैसे इसी कहानी का परिश ह,
नए कोण से देखी गई, प-कथा क प म।
िवास-अिवास क बीच झूलती
दुिनया क कहानी ह 'आसमाँ कसे कसे'।
समय क धुर भौितकतावादी हो जाने क
बावजूद लोग ह जो अभी भी िलखा-पढ़ी
(एीमट) से यादा भरोसा ज़बान पर करते
ह। पुरानी पीढ़ी अपने िवास पर खड़ी ह, नई
पीढ़ी को िलखा-पढ़ी चािहए, ज़बान पर
उसका वैसा िवास नह रहा।
आज क ज़माने म मृत पु क अंये से
भी महवपूण ह फ ी से इस दुघटना क िलए
मुआवज़ा लेना, शायद। और माँ क बीमारी म
भी न प च पाने को िन त नीलामी क नाम
पर टाला जा सकता ह। यान म ह नीलामी म
कमीशन क प म िमलने वाली भूत
धनरािश, तक काम म दाियव-िनवाह का ह।
पर माँ क मृयु क बाद तो जाने क बायता
ह! अ?ण िसंह क आँख म आँसू, माँ क
मृयु क ख़बर सुनकर भी, नह आए थे।
लेिकन अब अपने जूिनयर शेखावत को
नीलामी क कायवाही का दाियव सपते
अ?ण बाबू क आँख म आँसू उमड़ आते ह।
हाय! यह सारा कमीशन यह शेखावत पा
लेगा! कबीर ने 'माया' को 'पापणी' य ही नह
कहा ह।
संकलन क नौव (आिख़री) कहानी ह
'इजाज़त@घोड़ाडगरी'। संयोग क बैसाखी
पर खड़ी कहानी, कौशल क से, बत
अछी नह मानी जाती। िकतु कहानीकार क
क़लम बत सधी ई हो तो वह कहानी को
ऐसे बुनती ह िक संयोग पर हमारा यान ही
नह जाता। 'उसने कहा था' म हवलदार और
सूबेदारनी का िमलना संयोग ही ह, लेिकन
लहना िसंह क कबानी हम इतना भाव-
िव?ल कर देती ह िक उस ओर हमारा यान
ही नह जाता। इस कहानी म भी गुमनाम से
रलवे टशन घोड़ाडगरी क थम ेणी
िवाम क म धरा क ुव से मुलाक़ात कछ
ऐसी ही ह। धरा का 'फट लव' ह ुव,
लेिकन अब धरा एक आिदवासी युवक रिव
िसंघार क साथ रहती ह। धरा का अनुभव
कहता ह िक सुंदर-सुप उ वगय पु?ष
एक अह से िसत होता ह। वह हमिबतर ी
पर एहसान कर रहा होता ह और रिव िसंघार
िकसी भी तरह क अह से मु? ह इसीिलए यह
ेम िटका ह यह संयोगाधारत कथा संवाद क
सहार ही आगे बढ़ती ह लेिकन मन को मथती
ह।
000
समय को परखती कहािनयाँ
दीप कांत
'ख़ैबर दरा', यह ह पंकज सुबीर क नए
कहानी संह का शीषक। ठीक वैसे ही जैसे
उनक पहले क कहानी संह या कहािनय क
शीषक आए ह। यही ख़ािसयत ह िक
कहािनय क शीषक अपने आप को पढ़ने क
िलए मजबूर करते ह। इस संह म नौ
कहािनयाँ ह िजनम य गत संवेदना से
लेकर सामािजक िवडबना तक बत कछ
शािमल ह।
पहली कहानी ह 'एक थे मट िमयाँ, एक
थी रो'। इसम चार मुय पा ह – मट
िमयाँ, दुगा दास िपाठी उफ़ डी डी टी
(श शाली पकार – उस समय पकार
श शाली आ करते थे), दामोदर और
रो। कहानी एक लबे कालखंड क
संि वणन क प म हमार सामने आती ह
िजसमे िपछली सदी से अब तक यानी 20 व
सदी क उराध से 21 व सदी क पूवाध क
एक याा ह। इसक चार पा इसी समाज क
चार चर का ितिनिधव करते ह – पहले
मट िमयाँ, िजनक शायद दुिनया को
ज़रत नह थी पर वे दुिनया म आ गए और
दुिनया से जैसे िमला वैसे जीते चले गए। दूसर
डी डी टी जो दुिनया को अपने िहसाब से
नचवाने म मािहर ह, अपने भ क बीच म
अपने बार म ?द ही मायताएँ फला सकते ह
और िफर उह ऐसे ही खंिडत भी करवा सकते
ह िक जैसे वो कभी सय थी ही नह। तीसर
दामोदर जो रोज़ी-रोटी क िलए उपयोग ए
चले जा रह ह और कोई ितरोध नह। और
चौथी रो उफ़ रजनी परहार नामक ी जो
इतनी महवाकांी ह िक कछ भी कर सकती
ह। डी डी टी सुदर ह और उसका चेहरा
मट िमयाँ जैसा गोरा और आँख भी उही क
जैसी हज़ल लेिकन क वारा ह। उसक बार म
शहर म यह धारणा भी ह िक वो नपुंसक ह
और उसे यह कचोटता भी ह। िक़मत से
अपनी इछा को पूरा करने क िलए रो
पित को छोड़ कर डी डी टी क पास चली
आती ह। और यहाँ से शु होता ह डी डी टी
का खेल, अपने बार म फ़ली नपुंसक होने क
धारणा को तोड़ने का। भले मट िमयाँ क
ज़रत दुिनया को नह थी लेिकन डी डी टी
को थी। वो अपनी नाटक मंडली और दामोदर
क साथ मट िमयाँ और रो को रात रात
भर अकला छोड़ा कर बाहर रहता ह। अब
आग और घी को साथ म रखा जाए तो होगा
या? भड़कगी ही। तो रो मट िमयाँ से
संतान ा करती ह (मट िमयाँ, ना डी डी
टी जैसी सुदर), लेिकन मट िमयाँ तो
मुसलमान ह, वही मुसलमान िजह बचपन म
सुदर और अंेज़ जैसे गोर होने क कारण
िहदू उसव म कभी राम तो कभी क ण बना
िदया जाता था (उस समय ऐसी करता नह

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थी)। तो बाहर ख़बर फलती ह दामोदर और
रो क (हालाँिक दामोदर क बीवी बे
गाँव म ह) लेिकन दबे वर म नाम आता ह
डी डी टी का। तो डी डी टी का मकसद तो पूरा
हो गया। समय क साथ डी डी टी क मौत,
िफर रजनी का दामोदर क पकारता का सब
सामान लेकर और बड़ शहर म जाकर
इले ॉिनक मीिडया म जनिलट बन जाना
और दामोदर का गाँव चले जाना। अब मट
िमयाँ अकले ह, डी डी टी क उसी बंगले म जो
उसी किथत राजनीितक पाट का कायालय ह
जो िपछली सदी म सा म थी। ाइमेस म
मट िमयाँ क मौत और उनक मौत को
कवर करने वाली युवा तेज़तरार पकार जो
उही क जैसी सुदर ह यानी उनक और
रो क बेटी। दरअसल कहानी तो मट
िमयाँ क इद िगद ही घूमती ह यानी दाताने
मट िमयाँ लेिकन बीच-बीच म बदलते
समय म राजनीितक, सा ादाियक और
सामिजक मूय क बात करती ई चलती ह।
कहानी पढ़ने क बाद न उठता ह िक इसे
कहानी क प म य समेट िलया गया, इस
िवषय पर एक बेहतरीन उपयास बन सकता
था िजसक मता पंकज क पास ह भी।
अगली कहानी 'हर टीन क छत' म एक
परप मिहला चालीस बाद वापस पचमढ़ी
आई ह लेिकन घूमने नह। यह मीरा ह िजसे
अजुन नाम क उस लड़क क तलाश ह जो
उसक लड़कपन म उसे िमला था, िजस से
उसे लगाव हो गया था (शायद इसे यार
कहना मु कल हो)। यह कहानी बीच-बीच
म अतीत म जाती ह वैसे ही जैसे हम सब कभी
ना कभी अपने अपने अतीत म मण करने
िनकल जाते ह और अतीत असर अछा
लगता ह। दरअसल चालीस साल पहले अपने
िपता क शहर से पचमढ़ी म तबादले क कारण
मीरा का परवार यहाँ आता ह। लेिकन िपता
यहाँ रहना नह चाहते वे वापस जाना चाहते ह
यिक यहाँ शहर जैसे ऊपरी कमाई नह ह
(कहानी एक नौट जया क ह लेिकन
कहानीकार यहाँ भी सरकारी तं म या
ाचार क झलक िदखला देता ह)। िपछली
बार जब मीरा यहाँ आई थी वह 16-17 साल
क थी और तभी चौकदार का लड़का अजुन
उसने िकसी मंडली क साथ नाचते ए देखा
था िबकल वैसे ही जैसे एक ी नाचती ह।
चौकदार क कहने पर उसने उसे तरह-तरह
से समझने क कोिशश क थी िक यह काम ना
कर। मीरा कछ ही महीन म वापस अपने
पुराने शहर चली गई थी यिक िपता का
तबादला वापस वही हो गया ह। और शायद
यह लड़कपन का लगाव ही था िजसक कारण
वह अजुन को एक ेसलेट देकर चली गई।
अब िसफ अपने उस अतीत को एक बार
देखने आई ह। अंततः होटल क मैनेजर से
मीरा को अजुन का पता चल ही जाता ह िक
वह पचमढ़ी से उतरकर बसे मटकली गाँव म
र टोरट चलाता ह। लौटते समय मीरा वहाँ
जाती ह, वहाँ नाता करती ह और िमठाई भी
पैक करवाती ह िकतु आँख पर काला चमा
लगा कर िबल पे करती ह। उससे बात नह
करती, बाहर आकर िसफ एक प वेटर क
ारा िभजवाती ह िजसे पढ़कर अजुन बाहर
आता ह लेिकन मीरा जा चुक होती ह। या
मीरा िसफ अजुन को देखने पचमढ़ी आई थी
यह सवाल कहानीकार ने पाठक पर छोड़
िदया ह। इस कहानी म कछ अछी किवताएँ
बार-बार आती ह। कहानी क ाइमेस म
कार चल रही ह और म क वर नारायण क
किवता बज रही ह - घर रहगे हम उनम रह ना
पाएँगे समय होगा हम अचानक बीत जाएँगे।
इस कहानी म पंकज क कहानीकार का शद
क ित एक सटीक ीटमट भी नज़र आता ह
जहाँ वे आओ और आना को िभ? बताते ए
कहते ह िक आओ आमंण का शद ह
िजसम दोन हाथ उठ ए ह जबिक आना
िवछोह का शद ह िजसम िवदा क िलए एक
ही हाथ उठा आ ह।
अगली कहानी संह क शीषक कथा ह,
'ख़ैबर दरा' - दो धम का झगड़ा। ख़ैबर दरा
उस नाले म से होकर जाने वाले राते का नाम
ह जो शहर को भौगोिलक प से ही नह वरन
सांदाियक प से भी बाँटता ह। इस कहानी
म दो युवक ह पहला और दूसरा जो नाले क
इस पार रहते ह और एक धम क मानने वाले
ह। नाले क दूसरी पार एक परवार ह िजसमे
एक युवती और हील चेयर पर उसक िपता।
ये दूसर मज़हब का घर ह। कहानी शु होती
ह सा दाियक तनाव क वातावरण से। अब
अपने घर म बैठ ए इस तरफ का पहला
युवक दूसर युवक से उस तरफ क युवती क
बार म बात करते ए उसक सुंदरता का
बखान करता ह। िफर यह तय होता ह िक
सांदाियक तनाव क थित ह यिद उस तरफ
क युवती को थित म कछ हो जाए तो िजसे
फ़क पड़गा? और िफर दंग का िववरण और
उस युवती क घर म दोनो युवक का प च
जाना। और बाद ने कवल दूसर युवक का
उसी घर क भीतर शरण पा लेना। एक तरफ
दंगे का खौफ़ दूसरी तरफ युवक और युवती
क िपता ने बातचीत का मािमक वणन और
अंत होता ह – दो साए सधे ए क़दम से नाले
म बनी पगडडी क तरफ बढ़ रह ह। यह तीन
लोग ह, लेिकन सार कवल इसिलए दो बना
रह ह यिक आगे चल रह एक य ने
दूसर को अपनी गोद म उठाया आ ह। यानी
िक दूसर युवक का िघनौना िवचार स?ाव म
बदल गया ह। पूर िव क िलए सबसे ज़री
थित ऐसी ही होनी चािहए।
एक लड़क ह जो गाँव म आई ह। एक
लड़का ह जो रोज़ उसी तरफ से गुज़रता ह
िजस तरफ यह लड़क ह। रोज़ कोई आपक
सामने से गुज़र तो वाभािवक ह िक आपक
नज़र भी उस पर जाएगी। बातचीत भी होगी,
लगाव भी पनपेगा और संभवत: ेम भी। तो
यह ह कहानी 'वीरब?िटयाँ चली ग'। लड़का
एक डोलची लेकर आता ह और रोज़ उसमे
ेड या िब कट या अंड लेकर जाता ह।
लड़क से बातचीत शु होती ह (जो िक
वाभािवक ह)। लड़क ऐसे रहती ह जैसे वो
बीमार हो। लड़का उसे उसक पसंद क
िब कट या ेड दे देता ह और वह हमेशा
कहती ह िक अभी पैसे नह ह जब आएँगे तब
चुका देगी। बीच-बीच म यह कहानी लड़क
क िपता, माँ, दादी और नानी पर जाती ह।
लड़का लड़क क िलए िचरमी क बीज लाता
ह और कहता ह िक इनसे तुम ठीक हो
जाओगी (ऐसा उसक दादी बताती ह)। िफर
कहता ह िक वो उसक िलए वीरब?िटयाँ
ख़रीद कर अपने िलए ेड-चाय लाता था।
कछ िदन बाद युवती नह िदखती। वह लौट
गई ह। वीर ब?िटयाँ बरसात क कछ िदन म
ही िदखती ह। यह ह संकलन क कहानी 'वीर
ब?िटयाँ चली ग'। लड़का उदास ह।
'देह धर का दंड' शीषक कहानी एक
अलग तरह का ितिलम रचती ह। एक जोड़ा
ह िजसने आमदाह कर िलया ह। किथत
मिहला ने ही पहले ?द को जलायाs जल गए
जोड़ को लाचारी म एक पड़ोसी को पास वाले
मरयल से अपताल म ले जाना पड़ता ह।
किथत मिहला मर चुक ह। पु?ष अंितम साँस
िगन रहा ह। दोन म अटट ेम था। दंपित
िकसी से कोई संपक नह रखता था। एक
डॉटर आए ए ह, पुिलस वाले भी। पुिलस
क तशीश म राज़ खुलता ह िक मर गई ी
वातव म पु?ष ह और उसने इस डर से
आमदाह िकया ह िक यह राज़ कह खुल न
जाए। अगले जम म वह सचमुच ी हो और
उसे इसी पु?ष का यार िमले। यह कहानी
शायद इस ग़लीज समाज का घृिणत सय
उजागर करना चाहती ह िक यहाँ अलग होने
पर समान से जीना िकतना दुह ह! 'िनिलग'
कहानी भी जैसे इसी कहानी का परिश ह,
नए कोण से देखी गई, प-कथा क प म।
िवास-अिवास क बीच झूलती
दुिनया क कहानी ह 'आसमाँ कसे कसे'।
समय क धुर भौितकतावादी हो जाने क
बावजूद लोग ह जो अभी भी िलखा-पढ़ी
(एीमट) से यादा भरोसा ज़बान पर करते
ह। पुरानी पीढ़ी अपने िवास पर खड़ी ह, नई
पीढ़ी को िलखा-पढ़ी चािहए, ज़बान पर
उसका वैसा िवास नह रहा।
आज क ज़माने म मृत पु क अंये से
भी महवपूण ह फ ी से इस दुघटना क िलए
मुआवज़ा लेना, शायद। और माँ क बीमारी म
भी न प च पाने को िन त नीलामी क नाम
पर टाला जा सकता ह। यान म ह नीलामी म
कमीशन क प म िमलने वाली भूत
धनरािश, तक काम म दाियव-िनवाह का ह।
पर माँ क मृयु क बाद तो जाने क बायता
ह! अ?ण िसंह क आँख म आँसू, माँ क
मृयु क ख़बर सुनकर भी, नह आए थे।
लेिकन अब अपने जूिनयर शेखावत को
नीलामी क कायवाही का दाियव सपते
अ?ण बाबू क आँख म आँसू उमड़ आते ह।
हाय! यह सारा कमीशन यह शेखावत पा
लेगा! कबीर ने 'माया' को 'पापणी' य ही नह
कहा ह।
संकलन क नौव (आिख़री) कहानी ह
'इजाज़त@घोड़ाडगरी'। संयोग क बैसाखी
पर खड़ी कहानी, कौशल क से, बत
अछी नह मानी जाती। िकतु कहानीकार क
क़लम बत सधी ई हो तो वह कहानी को
ऐसे बुनती ह िक संयोग पर हमारा यान ही
नह जाता। 'उसने कहा था' म हवलदार और
सूबेदारनी का िमलना संयोग ही ह, लेिकन
लहना िसंह क कबानी हम इतना भाव-
िव?ल कर देती ह िक उस ओर हमारा यान
ही नह जाता। इस कहानी म भी गुमनाम से
रलवे टशन घोड़ाडगरी क थम ेणी
िवाम क म धरा क ुव से मुलाक़ात कछ
ऐसी ही ह। धरा का 'फट लव' ह ुव,
लेिकन अब धरा एक आिदवासी युवक रिव
िसंघार क साथ रहती ह। धरा का अनुभव
कहता ह िक सुंदर-सुप उ वगय पु?ष
एक अह से िसत होता ह। वह हमिबतर ी
पर एहसान कर रहा होता ह और रिव िसंघार
िकसी भी तरह क अह से मु? ह इसीिलए यह
ेम िटका ह यह संयोगाधारत कथा संवाद क
सहार ही आगे बढ़ती ह लेिकन मन को मथती
ह।
000
समय को परखती कहािनयाँ
दीप कांत
'ख़ैबर दरा', यह ह पंकज सुबीर क नए
कहानी संह का शीषक। ठीक वैसे ही जैसे
उनक पहले क कहानी संह या कहािनय क
शीषक आए ह। यही ख़ािसयत ह िक
कहािनय क शीषक अपने आप को पढ़ने क
िलए मजबूर करते ह। इस संह म नौ
कहािनयाँ ह िजनम य गत संवेदना से
लेकर सामािजक िवडबना तक बत कछ
शािमल ह।
पहली कहानी ह 'एक थे मट िमयाँ, एक
थी रो'। इसम चार मुय पा ह – मट
िमयाँ, दुगा दास िपाठी उफ़ डी डी टी
(श शाली पकार – उस समय पकार
श शाली आ करते थे), दामोदर और
रो। कहानी एक लबे कालखंड क
संि वणन क प म हमार सामने आती ह
िजसमे िपछली सदी से अब तक यानी 20 व
सदी क उराध से 21 व सदी क पूवाध क
एक याा ह। इसक चार पा इसी समाज क
चार चर का ितिनिधव करते ह – पहले
मट िमयाँ, िजनक शायद दुिनया को
ज़रत नह थी पर वे दुिनया म आ गए और
दुिनया से जैसे िमला वैसे जीते चले गए। दूसर
डी डी टी जो दुिनया को अपने िहसाब से
नचवाने म मािहर ह, अपने भ क बीच म
अपने बार म ?द ही मायताएँ फला सकते ह
और िफर उह ऐसे ही खंिडत भी करवा सकते
ह िक जैसे वो कभी सय थी ही नह। तीसर
दामोदर जो रोज़ी-रोटी क िलए उपयोग ए
चले जा रह ह और कोई ितरोध नह। और
चौथी रो उफ़ रजनी परहार नामक ी जो
इतनी महवाकांी ह िक कछ भी कर सकती
ह। डी डी टी सुदर ह और उसका चेहरा
मट िमयाँ जैसा गोरा और आँख भी उही क
जैसी हज़ल लेिकन क वारा ह। उसक बार म
शहर म यह धारणा भी ह िक वो नपुंसक ह
और उसे यह कचोटता भी ह। िक़मत से
अपनी इछा को पूरा करने क िलए रो
पित को छोड़ कर डी डी टी क पास चली
आती ह। और यहाँ से शु होता ह डी डी टी
का खेल, अपने बार म फ़ली नपुंसक होने क
धारणा को तोड़ने का। भले मट िमयाँ क
ज़रत दुिनया को नह थी लेिकन डी डी टी
को थी। वो अपनी नाटक मंडली और दामोदर
क साथ मट िमयाँ और रो को रात रात
भर अकला छोड़ा कर बाहर रहता ह। अब
आग और घी को साथ म रखा जाए तो होगा
या? भड़कगी ही। तो रो मट िमयाँ से
संतान ा करती ह (मट िमयाँ, ना डी डी
टी जैसी सुदर), लेिकन मट िमयाँ तो
मुसलमान ह, वही मुसलमान िजह बचपन म
सुदर और अंेज़ जैसे गोर होने क कारण
िहदू उसव म कभी राम तो कभी क ण बना
िदया जाता था (उस समय ऐसी करता नह

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तीालय िमल जाते ह (िक़मत या
बदिक़मत?) और पित-पनी क रत को
लेकर इन दोन क तख़ संवाद होते ह। पाठक
उह अपने अपने िहसाब से िवेिषत करने
क िलए वतं ह।
इनक कछ कहािनय म पा क नाम भी
नह ह जैसे 'ख़ैबर दरा', 'वीरब?िटयाँ चली
ग' और 'िनिलग' म, ज़रत भी नह थी।
िवषय वतु को कहानी अपनी पूरी इटिसटी से
प कर देती ह।
इन कहािनय म कई जगह कछ योग क
तरह वाय ऐसे आते ह जो पंकज क हमार
समय और समाज क समया को इटिसटी
से य करने क मता को कट करते ह।
जैसे- 'कोई सात रग को खोकर एकदम
सफ़द हो चुक वतमान म बैठकर बीते हरपन
को देखता हो' (हर टीन क छत)।
ेम बनाम घृणा, िवास बनाम
अिवास, सय बनाम असय, वछ
बनाम तं, यह सब इसी समय और
समाज क अंग ह और यह सब सािहय म भी
नज़र आने चािहए। और पंकज क कहािनयाँ
इस बात का माण ह िक सािहय अभी भी इन
सब चीज को अलग अलग, प और
तीण से परखता ह।
000
मृित और ेम
जया जादवानी
पंकज सुबीर एक योगधम कथाकार ह।
उनक कहािनयाँ समाज क िविभ? वग और
िवषय को उठाती ह। ख़ासतौर पर इस संह
म ेम, सांदाियकता, सामािजक िवभाजन
और मानव चेतना पर दज ासदी जैसे िवषय
िलए गए ह। इनम से कछ कहािनय पर बात
करना चा गी। शीषक कहानी 'ख़ैबर दरा' म
दंगे का तीकामक िचण आ ह। ख़ैबर
दरा, एक नाला ह, जो िहदू-मु लम दो
दुिनया क बीच बना ह, जो दोन तरफ़ क
लोग को जोड़ता भी ह, तोड़ता भी ह। एक दंगे
क दौरान इसी को पार कर शु इस ओर आता
ह और िम बनकर उस पार ले जाता ह। यह
अनपेित ?बसूरत अंत ह, जो इसािनयत क
एक उदाहरण क तौर पर देखा जा सकता ह।
'हर टीन क छत' एक भावनामक और
यारी कहानी ह। मृितय और ेम क मज़बूत
कध पर िटक। समय िकतना भी र हो,
मृित और ेम को कभी नह मार सकता।
यही उसक हार ह। हर टीन क छत पर बारश
क बूँद किवता िलख रही ह - 'आओ, मुझे
पहनो, जैसे वृ पहनता ह छाल को, जैसे
पगडडी पहनती ह हरी घास को।' और 'मुझे
लो, जैसे अँधेरा लेता ह जड़ को, जैसे पानी
लेता ह चंमा को, जैसे अनंत लेता ह समय
को।' बत ?बसूरत पं याँ ह। अंत पर तो
मुझे यार ही आ गया। मीरा 'मीरा र टॉरट'
तक प च चुक ह और अजुन को देख रही ह।
इस देखने म िकतना कछ शािमल ह, बीता
सारा वत, सारा ेम, सारी मृितयाँ, वह सब,
जो आज तक तुमने सबसे िछपाकर, बचाकर
रखा ह। काउटर क पीछ दीवार पर लगे टड
पर कछ चीज़ रखी ह, एक तह क ई साड़ी,
एक पायज़ेब और एक ेसलेट, मीरा का
ेसलेट। उसक नाम और उसक ेसलेट को
अजुन ने चालीस साल से सँभाल कर रखा ह।
कभी-कभी समय को रोक लेने का जी करता
ह और कभी-कभी उसे बहता छोड़ देने को।
वह ण जीकर मीरा ने समय को अपनी
हथेिलय से सरक जाने िदया। मीरा एक प
छोड़कर चली जाती ह पर सचमुच जो छट
गया ह, वह िकह लज़ म कभी नह
समाएगा।
'वीर ब?िटयाँ चली ग' बत ही मािमक
और गहराई से िलखी, मेरी पसंदीदा और
पहले से ही शंिसत कहानी ह। वीर ब?िटयाँ
दरअसल जंगल क सुंदर और मोहक ाणी
ह, िजह गाँव वाले दंतकथा क प म जानते-
मानते ह। आधुिनकता, शहरीकरण और
लालच क वजह से जंगल कटते ह उनक
कटते ही उनम बसे कई ाणी अपने जीवन से
कट जाते ह। ब?िटयाँ जो कित क जीवंत
आमाएँ थ, जंगल क साथ-साथ िवलु? हो
जाती ह। अंततः कहानी एक वेदना क साथ
समा होती ह 'वीरबिटयाँ चली गई' यानी
हमार भीतर क मासूिमयत और कित से
रता भी चला गया। कहानी भीतरी और
बाहरी दोन तर पर एक साथ चलती ह। जैसे
– 'तुम हर चीज़ सूँघकर य देखती हो?',
'यिक सूँघने से हर चीज़ को पहचाना जा
सकता ह। सूँघने से अछ और बुर क
पहचान भी हो जाती ह।' 'सबक "' 'इसान
क नह... इसान क पास अब अपनी असल
गंध बची ही कहाँ ह "' बिटय को वापस
बुलाने क िलए भीतर और बाहर दोन तर पर
हम कित से पुनः जोड़ना होगा। कहानी का
िशप लोक कथा जैसा ह लेिकन उसका
असर आधुिनक पयावरणीय ासदी जैसा ह।
भाषा सरल ह लेिकन उसका असर लंबे समय
तक गूँजने वाला ह।
'िनिलग' िक?र समाज क ासिदय को
बयाँ करती कहानी ह, भीतर क भावो?ेलन
और पीड़ा को रखांिकत करती। कछ तय
और लाए जा सकते थे, पढ़ते ए मुझे ऐसा
लगा और यह भी िक मरना य ज़री ह "
तमाम पीड़ा क बाद भी, जो तुम हो, उसे
वीकारते ए आगे बढ़ना, यह यादा बेहतर
होता। ख़ैर, यह मेरी सोच भी हो सकती ह।
'इजाज़त@घोड़ा डगरी' भी एक अयंत
?बसूरत कहानी ह। राह म दो लोग िमलते ह
और कहानी उनक बीच घटती ह। धरा, धरा
क तरह मज़बूत ह। वह अपना फ़सला ले
चुक ह, िबना पछतावे, शम और िझझक क।
यही फ़सला इस कहानी को बड़ा बनाता ह।
उसक आिदवासी पित क चेतना क भी एक
छोटी सी झलक िमलती ह।
'देह धर को दंड' िक?र समाज क एक
और ासदी को हमार सामने रखती ह। हमार
तथाकिथत बाबा का सच, कई चेहर वाले
समाज का सच और य का सच, िजसे
वह िकसी से कह तक नह पाता और भीतर ही
भीतर मरता चला जाता ह। िजसे ेम करने का
हक़ नह ह, िजसे जीने का हक़ नह ह। हािशए
पर रहना ही िजसका नसीब ह, िजसे देह धारण
करने का दंड िमला आ ह। पंकज क भाषा
सादा और वाहशील ह। वातावरण वह सुंदर
रचते ह, कहािनय क संवाद भी गहराई िलए
ए ह, कहािनयाँ पाठक को बाँधकर रखती
ह। वे हमेशा सुंदर संसार रचते रह, इसी
कामना क साथ।
000
लेकर आएगा जो इस से भी यादा असरदार
ह। एक िदन लड़का नानी क घर जाता ह और
लबे समय तक वापस नह आता। जब
आता ह गाँव का य परवितत हो चुका ह –
लड़क का घर के से पका हो गया ह और
आसपास पका हो चुका ह, लड़क अधेड़
हो चुक ह (ज़ािहर ह लड़का भी)। अंत म
लड़क और लड़का यानी ी और पु?ष
अपनी उन बात को दोहरा रह ह तब पता
चलता ह िक लड़क बीमार नह थी। और
यहाँ भी पुष वापस चल देता ह, यह कहते
ए िक वह वीरब?िटयाँ लेकर आएगा, उसक
िलए कह तो जंगल हगे। और उसक आँख
से ओझल होते ही ी क आँख एकदम से
बुझ जाती ह, ठीक वैसा ही ाइमेस जैसा
हर टीन क छत म ह। िफर से पाठक क ऊपर
ह िक वह इसे कसे समझे और िडकोड कर "
'देह धर का दंड', शु होती ह पित पनी
क जल जाने से। क़बा ह, और सरकारी
अपताल, सरकारी अपताल जैसा। पनी
मर चुक होती ह और पित खताहाल
आईसीयू म ह। पड़ोसी को िसफ इतना पता ह
िक दोन म बत ेम ह। ततीश क िलए युवा
सब इ पेटर आया ह। धीर-धीर कहानी
खुलती ह िक ये दोन युवक ह, युवक और
युवती नह। कहानी हमार समाज म धम क
नाम क उस धांधली को खोलती ह िजसमे संत
िकस तरह से िकशोरावथा क लड़क को
अपने साथ सोने क िलए उपयोग करते ह
(यहाँ सोने का मतलब क कवल सोना नह
ह)। और ये लड़क बदलते जाते ह। वह से
दोन युवक आपस म पित पनी जैसा ेम
करने लगते ह और एक छोटी सी जगह पर
रहने लगते ह। और यह पूरी कहानी िज़दा
बचा आ युवक सब इ पेटर को सुनाता ह
और यह बात ज़ािहर ना होने देने क अनुनय
िवनय क साथ। और इसक बाद सब इ पेटर
कछ आासन देकर बाहर िनकल जाता ह।
पाठक सोच िक बात ज़ािहर कसे नह होगी?
कहानी का शीषक तो ख़ैर तभी समझ आ
जाता ह जब यह बात खुलती ह िक पित पनी
पु?ष और ी नह ब क ी और पु?ष ही
ह।
'िनिलग', ये ह अगली कहानी, यानी
समाज क उस वग क कथा यथा जो न ी
ह न पु?ष, िजसे या तो मार िदया जाता ह, या
कह छोड़ िदया जाता ह या उसी क जैसे लोग
क साथ छोड़ िदया जाता ह। लेिकन एक
िनिलग बे को िकसी तरह उसक माँ
बचाकर रखती ह, िपता तो शहर म मज़दूरी
करते ह। यहाँ तक िक उसी कल म छोट
ब को सहालने वाली बुआ क नौकरी कर
लेती ह और तरह तरह से कोिशश करती ह िक
इस बार म िकसी को पता न लगे, लेिकन पता
कब तक नह लगता? कल म उसक
समवयक लड़क को पता लग ही जाता ह
और िफर वे उसक साथ वैसा सब करते ह
जैसा इस उ क लड़क चाहते ह। कॉलेज म
एडिमशन होता ह तो यह सभी बात यहाँ तक
प च चुक होती ह और यहाँ भी वही सब।
बाद म कॉलेज क दूसर वष म िपता क मौत
और इस लड़क का अपनी फस भरने क िलए
देह यापार तक जाना (ज़ािहर ह देह यापार
म शोषण तो इसी का होना था)। िफर माँ का
वगवास और लड़क ारा आमहया का
िनणय। दरअसल यह एक िनिलग का प ह
जो उसने अपनी आमहया से पहले िलखा ह
और पंकज का कहानीकार उसे एक मािमक
कहानी क प म लेकर आता ह जो पाठक
को िन त ही कचोटनी चािहए।
ज़माने ने मार जवाँ कसे-कसे, ज़मी खा
गई आसमाँ कसे-कसे- यह एक बत िस
शेर ह िजसका उपयोग इस कहानी क
ाइमेस म िकया गया ह, िजसका शीषक
ह- 'आसमाँ कसे-कसे'। ये कहानी एीमट
और िवास क एक ं पर चलती ह जो
रामगोपाल एंड संस क मािलक राजेश अपने
पड़ोसी क दुकान को ख़रीदने क िलए करते
ह। उनका पु िवनय चाहता ह िक एीमट
अछ से पढ़ िलया जाए तािक बाद म िकसी
तरह का झंझट न हो। राजेश का मानना ह िक
िदलीप जी से इतनी पुरानी िमता ह िक वे
धोखा कर ही नह सकते। कहानी लेश बैक
म जाती ह जहाँ राजेश क साथ का ऐसा ही
घटनाम आता ह िजसमे िवशवास जीतता ह,
एीमट नह यिक बात ज़बान क थी। कल
िमलाकर यह िवास िक यह दुिनया अभी भी
पैसो से नह िवास से चल रही ह। दरअसल
एीमट क बरस िवास का जीत जाना इस
कहानी म दुिनया क क ित एक सकारामक
कोण को सािबत करता ह।
अगली कहानी ह- 'कबीर माया पापणी',
आसमाँ कसे-कसे क ठीक िवपरीत। कहानी
क शु?आत एक युवा मज़दूर िक मौत होने
पर िजला कलेटर अ?ण िसंह और उनक
मातहत क संवाद से ह। मज़दूर मर गया ह
और माँ बाप और परजन लाश लेकर बैठ ह
िक मुआवज़ा िमले। इस संवाद क बाद
कलेटर साहब अपनी पनी से कहते ह िक
माँ-बाप को अपने लड़क क अंितम संकार
क नह, पैस क िचंता ह। और यही कलेटर
साहब, िबलकल यही, अपनी बीमार माँ से
िमलने नह जाना चाहते यिक िजले म शराब
क दुकान क आबकारी ठक क नीलामी
होनी ह। यह नीलामी िजला कलेटर ही
कराता ह और एवज़ म करोड़ पाता ह। अब
आप ही बताइये माँ महवपूण या करोड़ क
ा ? तो नीलामी क पहले वाली रात आ गई
ह और कलेटर साहब क माँ क मृयु क
ख़बर भी – कलेटर साहब रोना चाहते ह
लेिकन शरीर बस िहलकर रह गया ह। लेिकन
िज़ले क दूसर नंबर क अिधकारी िदलीप
शेखावत क सांवना भरी आवाज़ सुनकर
कलेटर सचमुच रोने लगे ह -अब नीलामी
िदलीप शेखावत ारा संचािलत क जाएगी-
कबीर माया पापणी। दरअसल यह कहानी
हमार तं का एक बयान ह।
'इजाज़त @ घोड़ाडगरी', ये ह संह क
अंितम कहानी। अजीब से शीषक ह जैसे
िकसी जगह पर िकसी काय को करने क िलए
इजाज़त लेने क िलए कोई वेबसाइट। लेिकन
कहानी को पढ़ते जाइए तो समझ आएगा िक
इसम गुलज़ार क िफम इजाज़त क िवपरीत
एक ाइमेस ह, इसिलए यह शीषक ह तो
यहाँ ाइमेस का वातावरण एक शीषक
बन जाता ह। कहानी नाियका धरा से शु
होकर उसक पूव पित ुव क इद िगद घूमती
ह, बीच बीच म धरा का वतमान रिव भी आ
जाता ह। ये दोन रलवे टशन क थम ेणी

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 202525 24 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 2025
तीालय िमल जाते ह (िक़मत या
बदिक़मत?) और पित-पनी क रत को
लेकर इन दोन क तख़ संवाद होते ह। पाठक
उह अपने अपने िहसाब से िवेिषत करने
क िलए वतं ह।
इनक कछ कहािनय म पा क नाम भी
नह ह जैसे 'ख़ैबर दरा', 'वीरब?िटयाँ चली
ग' और 'िनिलग' म, ज़रत भी नह थी।
िवषय वतु को कहानी अपनी पूरी इटिसटी से
प कर देती ह।
इन कहािनय म कई जगह कछ योग क
तरह वाय ऐसे आते ह जो पंकज क हमार
समय और समाज क समया को इटिसटी
से य करने क मता को कट करते ह।
जैसे- 'कोई सात रग को खोकर एकदम
सफ़द हो चुक वतमान म बैठकर बीते हरपन
को देखता हो' (हर टीन क छत)।
ेम बनाम घृणा, िवास बनाम
अिवास, सय बनाम असय, वछ
बनाम तं, यह सब इसी समय और
समाज क अंग ह और यह सब सािहय म भी
नज़र आने चािहए। और पंकज क कहािनयाँ
इस बात का माण ह िक सािहय अभी भी इन
सब चीज को अलग अलग, प और
तीण से परखता ह।
000
मृित और ेम
जया जादवानी
पंकज सुबीर एक योगधम कथाकार ह।
उनक कहािनयाँ समाज क िविभ? वग और
िवषय को उठाती ह। ख़ासतौर पर इस संह
म ेम, सांदाियकता, सामािजक िवभाजन
और मानव चेतना पर दज ासदी जैसे िवषय
िलए गए ह। इनम से कछ कहािनय पर बात
करना चा गी। शीषक कहानी 'ख़ैबर दरा' म
दंगे का तीकामक िचण आ ह। ख़ैबर
दरा, एक नाला ह, जो िहदू-मु लम दो
दुिनया क बीच बना ह, जो दोन तरफ़ क
लोग को जोड़ता भी ह, तोड़ता भी ह। एक दंगे
क दौरान इसी को पार कर शु इस ओर आता
ह और िम बनकर उस पार ले जाता ह। यह
अनपेित ?बसूरत अंत ह, जो इसािनयत क
एक उदाहरण क तौर पर देखा जा सकता ह।
'हर टीन क छत' एक भावनामक और
यारी कहानी ह। मृितय और ेम क मज़बूत
कध पर िटक। समय िकतना भी र हो,
मृित और ेम को कभी नह मार सकता।
यही उसक हार ह। हर टीन क छत पर बारश
क बूँद किवता िलख रही ह - 'आओ, मुझे
पहनो, जैसे वृ पहनता ह छाल को, जैसे
पगडडी पहनती ह हरी घास को।' और 'मुझे
लो, जैसे अँधेरा लेता ह जड़ को, जैसे पानी
लेता ह चंमा को, जैसे अनंत लेता ह समय
को।' बत ?बसूरत पं याँ ह। अंत पर तो
मुझे यार ही आ गया। मीरा 'मीरा र टॉरट'
तक प च चुक ह और अजुन को देख रही ह।
इस देखने म िकतना कछ शािमल ह, बीता
सारा वत, सारा ेम, सारी मृितयाँ, वह सब,
जो आज तक तुमने सबसे िछपाकर, बचाकर
रखा ह। काउटर क पीछ दीवार पर लगे टड
पर कछ चीज़ रखी ह, एक तह क ई साड़ी,
एक पायज़ेब और एक ेसलेट, मीरा का
ेसलेट। उसक नाम और उसक ेसलेट को
अजुन ने चालीस साल से सँभाल कर रखा ह।
कभी-कभी समय को रोक लेने का जी करता
ह और कभी-कभी उसे बहता छोड़ देने को।
वह ण जीकर मीरा ने समय को अपनी
हथेिलय से सरक जाने िदया। मीरा एक प
छोड़कर चली जाती ह पर सचमुच जो छट
गया ह, वह िकह लज़ म कभी नह
समाएगा।
'वीर ब?िटयाँ चली ग' बत ही मािमक
और गहराई से िलखी, मेरी पसंदीदा और
पहले से ही शंिसत कहानी ह। वीर ब?िटयाँ
दरअसल जंगल क सुंदर और मोहक ाणी
ह, िजह गाँव वाले दंतकथा क प म जानते-
मानते ह। आधुिनकता, शहरीकरण और
लालच क वजह से जंगल कटते ह उनक
कटते ही उनम बसे कई ाणी अपने जीवन से
कट जाते ह। ब?िटयाँ जो कित क जीवंत
आमाएँ थ, जंगल क साथ-साथ िवलु? हो
जाती ह। अंततः कहानी एक वेदना क साथ
समा होती ह 'वीरबिटयाँ चली गई' यानी
हमार भीतर क मासूिमयत और कित से
रता भी चला गया। कहानी भीतरी और
बाहरी दोन तर पर एक साथ चलती ह। जैसे
– 'तुम हर चीज़ सूँघकर य देखती हो?',
'यिक सूँघने से हर चीज़ को पहचाना जा
सकता ह। सूँघने से अछ और बुर क
पहचान भी हो जाती ह।' 'सबक "' 'इसान
क नह... इसान क पास अब अपनी असल
गंध बची ही कहाँ ह "' बिटय को वापस
बुलाने क िलए भीतर और बाहर दोन तर पर
हम कित से पुनः जोड़ना होगा। कहानी का
िशप लोक कथा जैसा ह लेिकन उसका
असर आधुिनक पयावरणीय ासदी जैसा ह।
भाषा सरल ह लेिकन उसका असर लंबे समय
तक गूँजने वाला ह।
'िनिलग' िक?र समाज क ासिदय को
बयाँ करती कहानी ह, भीतर क भावो?ेलन
और पीड़ा को रखांिकत करती। कछ तय
और लाए जा सकते थे, पढ़ते ए मुझे ऐसा
लगा और यह भी िक मरना य ज़री ह "
तमाम पीड़ा क बाद भी, जो तुम हो, उसे
वीकारते ए आगे बढ़ना, यह यादा बेहतर
होता। ख़ैर, यह मेरी सोच भी हो सकती ह।
'इजाज़त@घोड़ा डगरी' भी एक अयंत
?बसूरत कहानी ह। राह म दो लोग िमलते ह
और कहानी उनक बीच घटती ह। धरा, धरा
क तरह मज़बूत ह। वह अपना फ़सला ले
चुक ह, िबना पछतावे, शम और िझझक क।
यही फ़सला इस कहानी को बड़ा बनाता ह।
उसक आिदवासी पित क चेतना क भी एक
छोटी सी झलक िमलती ह।
'देह धर को दंड' िक?र समाज क एक
और ासदी को हमार सामने रखती ह। हमार
तथाकिथत बाबा का सच, कई चेहर वाले
समाज का सच और य का सच, िजसे
वह िकसी से कह तक नह पाता और भीतर ही
भीतर मरता चला जाता ह। िजसे ेम करने का
हक़ नह ह, िजसे जीने का हक़ नह ह। हािशए
पर रहना ही िजसका नसीब ह, िजसे देह धारण
करने का दंड िमला आ ह। पंकज क भाषा
सादा और वाहशील ह। वातावरण वह सुंदर
रचते ह, कहािनय क संवाद भी गहराई िलए
ए ह, कहािनयाँ पाठक को बाँधकर रखती
ह। वे हमेशा सुंदर संसार रचते रह, इसी
कामना क साथ।
000
लेकर आएगा जो इस से भी यादा असरदार
ह। एक िदन लड़का नानी क घर जाता ह और
लबे समय तक वापस नह आता। जब
आता ह गाँव का य परवितत हो चुका ह –
लड़क का घर के से पका हो गया ह और
आसपास पका हो चुका ह, लड़क अधेड़
हो चुक ह (ज़ािहर ह लड़का भी)। अंत म
लड़क और लड़का यानी ी और पु?ष
अपनी उन बात को दोहरा रह ह तब पता
चलता ह िक लड़क बीमार नह थी। और
यहाँ भी पुष वापस चल देता ह, यह कहते
ए िक वह वीरब?िटयाँ लेकर आएगा, उसक
िलए कह तो जंगल हगे। और उसक आँख
से ओझल होते ही ी क आँख एकदम से
बुझ जाती ह, ठीक वैसा ही ाइमेस जैसा
हर टीन क छत म ह। िफर से पाठक क ऊपर
ह िक वह इसे कसे समझे और िडकोड कर "
'देह धर का दंड', शु होती ह पित पनी
क जल जाने से। क़बा ह, और सरकारी
अपताल, सरकारी अपताल जैसा। पनी
मर चुक होती ह और पित खताहाल
आईसीयू म ह। पड़ोसी को िसफ इतना पता ह
िक दोन म बत ेम ह। ततीश क िलए युवा
सब इ पेटर आया ह। धीर-धीर कहानी
खुलती ह िक ये दोन युवक ह, युवक और
युवती नह। कहानी हमार समाज म धम क
नाम क उस धांधली को खोलती ह िजसमे संत
िकस तरह से िकशोरावथा क लड़क को
अपने साथ सोने क िलए उपयोग करते ह
(यहाँ सोने का मतलब क कवल सोना नह
ह)। और ये लड़क बदलते जाते ह। वह से
दोन युवक आपस म पित पनी जैसा ेम
करने लगते ह और एक छोटी सी जगह पर
रहने लगते ह। और यह पूरी कहानी िज़दा
बचा आ युवक सब इ पेटर को सुनाता ह
और यह बात ज़ािहर ना होने देने क अनुनय
िवनय क साथ। और इसक बाद सब इ पेटर
कछ आासन देकर बाहर िनकल जाता ह।
पाठक सोच िक बात ज़ािहर कसे नह होगी?
कहानी का शीषक तो ख़ैर तभी समझ आ
जाता ह जब यह बात खुलती ह िक पित पनी
पु?ष और ी नह ब क ी और पु?ष ही
ह।
'िनिलग', ये ह अगली कहानी, यानी
समाज क उस वग क कथा यथा जो न ी
ह न पु?ष, िजसे या तो मार िदया जाता ह, या
कह छोड़ िदया जाता ह या उसी क जैसे लोग
क साथ छोड़ िदया जाता ह। लेिकन एक
िनिलग बे को िकसी तरह उसक माँ
बचाकर रखती ह, िपता तो शहर म मज़दूरी
करते ह। यहाँ तक िक उसी कल म छोट
ब को सहालने वाली बुआ क नौकरी कर
लेती ह और तरह तरह से कोिशश करती ह िक
इस बार म िकसी को पता न लगे, लेिकन पता
कब तक नह लगता? कल म उसक
समवयक लड़क को पता लग ही जाता ह
और िफर वे उसक साथ वैसा सब करते ह
जैसा इस उ क लड़क चाहते ह। कॉलेज म
एडिमशन होता ह तो यह सभी बात यहाँ तक
प च चुक होती ह और यहाँ भी वही सब।
बाद म कॉलेज क दूसर वष म िपता क मौत
और इस लड़क का अपनी फस भरने क िलए
देह यापार तक जाना (ज़ािहर ह देह यापार
म शोषण तो इसी का होना था)। िफर माँ का
वगवास और लड़क ारा आमहया का
िनणय। दरअसल यह एक िनिलग का प ह
जो उसने अपनी आमहया से पहले िलखा ह
और पंकज का कहानीकार उसे एक मािमक
कहानी क प म लेकर आता ह जो पाठक
को िन त ही कचोटनी चािहए।
ज़माने ने मार जवाँ कसे-कसे, ज़मी खा
गई आसमाँ कसे-कसे- यह एक बत िस
शेर ह िजसका उपयोग इस कहानी क
ाइमेस म िकया गया ह, िजसका शीषक
ह- 'आसमाँ कसे-कसे'। ये कहानी एीमट
और िवास क एक ं पर चलती ह जो
रामगोपाल एंड संस क मािलक राजेश अपने
पड़ोसी क दुकान को ख़रीदने क िलए करते
ह। उनका पु िवनय चाहता ह िक एीमट
अछ से पढ़ िलया जाए तािक बाद म िकसी
तरह का झंझट न हो। राजेश का मानना ह िक
िदलीप जी से इतनी पुरानी िमता ह िक वे
धोखा कर ही नह सकते। कहानी लेश बैक
म जाती ह जहाँ राजेश क साथ का ऐसा ही
घटनाम आता ह िजसमे िवशवास जीतता ह,
एीमट नह यिक बात ज़बान क थी। कल
िमलाकर यह िवास िक यह दुिनया अभी भी
पैसो से नह िवास से चल रही ह। दरअसल
एीमट क बरस िवास का जीत जाना इस
कहानी म दुिनया क क ित एक सकारामक
कोण को सािबत करता ह।
अगली कहानी ह- 'कबीर माया पापणी',
आसमाँ कसे-कसे क ठीक िवपरीत। कहानी
क शु?आत एक युवा मज़दूर िक मौत होने
पर िजला कलेटर अ?ण िसंह और उनक
मातहत क संवाद से ह। मज़दूर मर गया ह
और माँ बाप और परजन लाश लेकर बैठ ह
िक मुआवज़ा िमले। इस संवाद क बाद
कलेटर साहब अपनी पनी से कहते ह िक
माँ-बाप को अपने लड़क क अंितम संकार
क नह, पैस क िचंता ह। और यही कलेटर
साहब, िबलकल यही, अपनी बीमार माँ से
िमलने नह जाना चाहते यिक िजले म शराब
क दुकान क आबकारी ठक क नीलामी
होनी ह। यह नीलामी िजला कलेटर ही
कराता ह और एवज़ म करोड़ पाता ह। अब
आप ही बताइये माँ महवपूण या करोड़ क
ा ? तो नीलामी क पहले वाली रात आ गई
ह और कलेटर साहब क माँ क मृयु क
ख़बर भी – कलेटर साहब रोना चाहते ह
लेिकन शरीर बस िहलकर रह गया ह। लेिकन
िज़ले क दूसर नंबर क अिधकारी िदलीप
शेखावत क सांवना भरी आवाज़ सुनकर
कलेटर सचमुच रोने लगे ह -अब नीलामी
िदलीप शेखावत ारा संचािलत क जाएगी-
कबीर माया पापणी। दरअसल यह कहानी
हमार तं का एक बयान ह।
'इजाज़त @ घोड़ाडगरी', ये ह संह क
अंितम कहानी। अजीब से शीषक ह जैसे
िकसी जगह पर िकसी काय को करने क िलए
इजाज़त लेने क िलए कोई वेबसाइट। लेिकन
कहानी को पढ़ते जाइए तो समझ आएगा िक
इसम गुलज़ार क िफम इजाज़त क िवपरीत
एक ाइमेस ह, इसिलए यह शीषक ह तो
यहाँ ाइमेस का वातावरण एक शीषक
बन जाता ह। कहानी नाियका धरा से शु
होकर उसक पूव पित ुव क इद िगद घूमती
ह, बीच बीच म धरा का वतमान रिव भी आ
जाता ह। ये दोन रलवे टशन क थम ेणी

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 202527 26 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 2025
बताती ह िक लूिसड क अवधारणा उहने
बेट राघव से ली। भले ही डच सायकलॉिजट
डरक िविलयम वैन ईडन ने 1913 म
पहली बार इसक बात क हो, लेिकन इस क
जड़ वैिदक काल से भी जुड़ी ह और सुकरात,
लूटो, अरतू से भी। उपिनषद म इनका
वणन िमलता ह। ितबत क पहाड़ी े म
बारह हज़ार वष पहले बोनपो क जीववादी
परपरा म वन योग िमलते ह। 12व शती म
ये पेिनश सूफ इब-अल-अरबी ने भी माना
िक सपन म िवचार को िनयंित करना
रहयवािदय क िलए आवयक मता ह।
अंधकार क िबसात ह िक िसमटती ही नह।
लूसीड ीम योगा ह, मन क तहख़ान क
चािबयाँ ढ ढ़ने का िवान ह। इसका ल?य
अचेतन क रोड मैप क िबगड़ नशे को
सुधारना ह।
बाबा क िलए यह दुिनया अंधकार और
रोशनी क कहानी ह-
"जैसे हर क़दम पर हवा क, पानी क,
आग क मायने और नाम बदल जाते ह। इसी
तरह अंधकार और रोशनी क मायने और नाम
भी।".... "धीर धीर बढ़ता रोशनी का वाह...
दो दुिनया को िमलाकर एक कर देने वाला,
हर रहय को उजागर कर देने को आतुर, ....
तुहार सामने भी दो दुिनया ह, दोन को इस
तरह सँभालना ह जैसे धरती ने सूरज और चाँद
को। कएँ से िनकल समु म तैरना ह- उसक
थाह लेनी ह।"
यूरोसाइस ोफसर बाबा क मातृहीन
जुड़वाँ संतान- बेटा िनलय और बेटी नीिलमा
ह। नानी क यहाँ ही बे पले-बढ़ ह।
उपयास का आरभ पंहव वष क वेश ार
पर खड़ इन ब से होता ह। यह पंहवाँ
साल िवान और सपन क दुिनया म वेश
का साल ह। नानी का बेटा संगीत ेमी ह। नानी
क ितमंिज़ला हवेली का एक िहसा भूतहा,
मन?स ह। यहाँ नानी का बेटा रन और पोता
गुलशन कएँ म िगर अपने ाण खो चुक ह।
उपयास आभासी दुिनया से ही नह,
मेटावस यानी कापिनक िव से भी जुड़ा ह।
मेटावस यानी एक साँझी, 3डी, आभासी
दुिनया- जहाँ िडिजटल अवतार क मायम से
बातचीत क जा सकती ह। बाबा ने वन
थैरपी ारा िकशोर नील क अवचेतन को
दु त कर िदया था। यवसाय, िशा,
मनोरजन- सभी यहाँ सुलभ ह। िनलय और
नीिलमा मेटावस क आभासी दुिनया को
आिटिफ़िशयल इटिलजेस से जोड़ रह ह।
उहने गु ाम से यूरो साइस म एम. एस सी.
क ह। नीिलमा यह से पी. ऍचडी. करने
लगती ह और ोफ़सर हो जाती ह। ऋिषकश
म हॉ पटल खोलती ह और िफर वािशंगटन
माइोसॉट मुयालय प च जाती ह। िनलय
मै सको से क यूटर इजीिनयरग और िफर
िकसी ोजेट म जुट जाता ह। वह तरग क
भाषा िवकिसत कर ीम इहिसंग िडवाइस
' लपइन' बनाता ह, जादूगर हो जाता ह,
तंिका का खेल समझता ह। उसक यास
अँधेर म रोशनी भरने क ह, काले गिलयार
को चमचमाते हाइवेज़ म बदलने क ह-
"नैनोमनोलॉजी मन क परमाणु म फर-
बदल करने क मता ह। यानी मन क सघन
जाल को भेद उसक तरल तरग को अलग
राते देना, उनक बुनावट म फरबदल कर
देना।"
ीक माइथोलोजी क नद क देवी
िहपनोस और मृयु क देवता थानाटोस का
पक पूर उपयास म िलया गया ह। िहपनोस
और थानाटोस जुड़वाँ भाई- बहन ह। बाबा
मानते ह िक नद और मौत म दो क़दम का ही
फासला ह। टी. वी. सीरयल टार क,
क टन कक तथा काबलर और एलज का भी
िज़ ह। अपने योगबल से सीता माता भी
वामीक आम म होते ये भी अमेध से
पहले राम क महल म जा य क िलए सोने
क सीता क ितमा देख लौट आई थी। बानी
भी वष पहले क मृत पित क साथ वन म
नाहरगढ़, आंबेर, जलमहल घूमा करती ह।
ियदिशनी को वैवािहक जीवन क दुख ने
पथर कर िदया ह। नीलाघर का भी
तीकामक अंकन ह।
कनु ने िपता को कएँ म क?द कर मरते
देखा ह। शांतनु से ेक अप झेला ह। सोते
जागते उसे यही भयंकर मृितयाँ हाट करती
ह। ममेरी बहन क यह दशा देखकर ही
नाियका क मन म 'सुनो सुरीली धुन' थेर टक
इ टीूट का िवचार आता ह। मौसी
ियदिशनी को अवथ गृहथ ने, आर. क.
को यु क देन अपािहजपन ने, शारग को
बॉस क दादािगरी ने मन: िवसंगितयाँ और
नाइट मेयर िदये ह।
नील को घुड़सवारी क, पहाड़ पर चढ़ने
और समु पार करने क सपने आते ह और
नीलू को बत सारी चािबय वाली िचिड़या
नज़र आती ह। वह अपने को चािबय क पीछ
भागता पाती ह। या इन चािबय से उस
रहयमय संसार क कपाट खोल पाएगी।
उपयास सपने और सच क बीच जड़ ताले
को खोल देने वाली चाबी क बात करता ह।
पूर चाँद क रात का िज़ भी आता ह।
िनदा फाजली क ग़ज़ल सा ही जीवन ह-
'मन बैरागी, तन अनुरागी, क़दम-क़दम
दुारी ह। जीवन जीना सहज न जानो बत
बड़ी फ़नकारी ह।'
अनेक दाशिनक, लेखक का उेख
आता ह- शंकराचाय, िववेकानंद, वकस,
माइकल हारनार, िनकोला टसला, रचड
नैश, आइ टाइन, बजािमन बेयड, िनदा
फाजली, नामांगयल रनपोचे।
िचंतन सूामकता म आकार ले रहा ह-
1.धैय िकसी भी नई चीज़ को जानने,
समझने या सीखने क सबसे ज़री शत ह।
2.आज़रवट होना अछी बात ह, मगर
उससे भी यादा ज़री ह अपना इटरनल
िफटर िडवैलप करना।
3.िवान िजासा ख़म नह करता,
ब क उसम िदन-ब-िदन इज़ाफ़ा ही करता
ह।
4.मृितयाँ पीछा नह छोड़त... जब हम
सोचते ह िक वत ने थोड़ा मु? िकया, तब
िकसी पल वे दुगुनी गित से लौटती ह।
5.मन देह क उ नह पहचानता।
6.डायरयाँ ताले जड़ वे ख़ज़ाने ह, िजनम
िहफ़ाज़त से सँभालकर रखा असल क़मती
मन रहता ह।
7.वािहश जीवन का वह सच ह, जो
जीवन क बाद भी बना रहता ह।
8.अकलेपन को सुन लेना ही अकलेपन
मनोिवेषणामक उपयास
डॉ. मधु संधु
'नद और जाग' उजला लोिहया का 2025 म िशवना काशन से कािशत नैनोमनोलॉजी
पर िलखा उपयास ह। नैनोमनोलॉजी शद को उजला लोिहया 'सय क ार पर फतासी क
दतक' कहती ह। 21व शती नैन िवान क शती ह। िविभ? े म नैन तकनीक का िवकास
और शोध हो रह ह। नैनो अित सू?म मशीन बनाने का िवान ह। मशीन जो धमिनय म उतर वह
रोग का उपचार कर द। उपयास उन सभी ऋिषय और वैािनक क नाम ह-
'िजहने िवराट म धँसने क अपनी चाहत को पूरा करते ये भी दुिनया को उजड़ने से बचाए
रखा।'
डॉ. िववेक िम इसे 'ान क अनंत याा' मानते िलखते ह-
"उपयास य और अ य, य और परो दुिनया क बीच िखंचे महीन धागे पर
िनवात म काँपते समय क साथ यथाथ और कपना क धुँधलक म धीर- धीर आगे बढ़ता ह। यह
जीवन म वन कपना यथाथ म ितरता आ अलग ही ितिलम रचता ह। हम सभी एक ही
समय म एक जीवन जीते ये, कई- कई तर पर जीते ह।"
उपयासकार पाठक को एक अनजाने, अनछये, अनदेखे संसार क याा पर ले जाती ह।
ात- अात रहय क तह तक जा रह पा क अनुसंधान से जुड़ा ह। कहती ह-
" ाड क सार रहय और उह हल कर लेने का यास ऐसा तराजू तीत होते ह,
िजसक क ीय कल मानव िजासा ह, िजसक एक पलड़ म तक ह और दूजे म अनुभव। एक
म य, दूजे म अ य सा। वही अ य सा... िजसक िवतार और उसक मौन- मुखरता
को भेदने क यास आिदकाल से होते रह ह।"
अनेक पा ह- पहाड़ सी सीधी धरती क यह टढ़ लोग- बाबा, िनलय, नीिलमा, नाना, नानी,
बड़ी नानी/ बानी, बानी क बेटी ियदिशनी और बेटा दमन, देिवका, मामा रन, उनक
संगीतिया बेटी कनु दी, िनलय का िम एडवड, फ़ौजी आर. क., डॉ. अमन, शारग, सबरीना,
योम, िनशांत, रनी, िनशांत, जितन, िसंदूरी...।
बाबा, िनलय, नीिलमा- सुपर ए टव, सुपर सिसिटव पा ह। सब ने यूरो साइस का
चुनाव िकया ह। सभी िदमाग़ी गिलय म िवचरण करने वाले लोग ह। बस चले तो िदमाग़ को
ओज़ार से खोल उसका चपा-चपा छान मार, जैसे पेस शटल पेस का चपा-चपा छान
डालता ह।
बाबा यानी िपता यूरोसाइस ोफ़सर ह। ीम योगा उनका अभी िवषय ह। जुड़वाँ संतान-
बेट िनलय और बेटी नीिलमा को यूरोसाइस क चेतना और जीवन अपने बाबा से ही
िमली ह। िवान और दशन उनक नस म िपता क तरह ही दौड़ता ह। लूिसड यानी
अधचेतनावथा िजसम य जानता ह िक वह वन म ह और वह उस पर अंशत: िनयंण भी
कर सकता ह। मूलत: हम जो सोचते ह, उसी से सपने आकार लेते ह और कई बार सपन से हम
समया क समाधान भी िमल जाते ह। सपने ान और अनुभव क गोदाम ह। बाक़ तक और
अनुभव तो सबक अपने अपने ही रहते ह। सपने आँख से नह म तक से देखे जाते ह। गहरी
ड टा नद म तक क सफाई करती ह और रम ीिमंग म मन अिधक सिय रहता ह। चेतन
और अचेतन मन म बत कम दूरी रहती ह और मन तथा म तक म से िकसी एक को चुनना
ख़तरनाक होता ह। दैिनक भाकर क नवीन चौधरी को िदये एक सााकार म उजला लोिहया
डॉ. मधु संधु
13 ीत िवहार, आर. एस. िमल, जी. टी.
रोड, अमृतसर, 143104, पंजाब
मोबाइल- 8427004610
ईमेल- [email protected]
मनीषा कले
मकान नं. 10, गली नं. 18,
सड़क नं. 19, स ल पाक, नॉथ एवेयू बी,
वािटका इफोटक िसटी, जयपुर,
राजथान 302026
मोबाइल- 9911252907
ईमेल- [email protected]
क म पुतक
(उपयास)
नद और जाग
समीक : डॉ. मधु संधु, मनीषा
कले
लेखक : उजला लोिहया
काशक : िशवना काशन, साट
कॉ लैस बेसमट, सीहोर, म
466001, फ़ोन-07562405545
मोबाइल- +91-9806162184
ईमेल- [email protected]

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बताती ह िक लूिसड क अवधारणा उहने
बेट राघव से ली। भले ही डच सायकलॉिजट
डरक िविलयम वैन ईडन ने 1913 म
पहली बार इसक बात क हो, लेिकन इस क
जड़ वैिदक काल से भी जुड़ी ह और सुकरात,
लूटो, अरतू से भी। उपिनषद म इनका
वणन िमलता ह। ितबत क पहाड़ी े म
बारह हज़ार वष पहले बोनपो क जीववादी
परपरा म वन योग िमलते ह। 12व शती म
ये पेिनश सूफ इब-अल-अरबी ने भी माना
िक सपन म िवचार को िनयंित करना
रहयवािदय क िलए आवयक मता ह।
अंधकार क िबसात ह िक िसमटती ही नह।
लूसीड ीम योगा ह, मन क तहख़ान क
चािबयाँ ढ ढ़ने का िवान ह। इसका ल?य
अचेतन क रोड मैप क िबगड़ नशे को
सुधारना ह।
बाबा क िलए यह दुिनया अंधकार और
रोशनी क कहानी ह-
"जैसे हर क़दम पर हवा क, पानी क,
आग क मायने और नाम बदल जाते ह। इसी
तरह अंधकार और रोशनी क मायने और नाम
भी।".... "धीर धीर बढ़ता रोशनी का वाह...
दो दुिनया को िमलाकर एक कर देने वाला,
हर रहय को उजागर कर देने को आतुर, ....
तुहार सामने भी दो दुिनया ह, दोन को इस
तरह सँभालना ह जैसे धरती ने सूरज और चाँद
को। कएँ से िनकल समु म तैरना ह- उसक
थाह लेनी ह।"
यूरोसाइस ोफसर बाबा क मातृहीन
जुड़वाँ संतान- बेटा िनलय और बेटी नीिलमा
ह। नानी क यहाँ ही बे पले-बढ़ ह।
उपयास का आरभ पंहव वष क वेश ार
पर खड़ इन ब से होता ह। यह पंहवाँ
साल िवान और सपन क दुिनया म वेश
का साल ह। नानी का बेटा संगीत ेमी ह। नानी
क ितमंिज़ला हवेली का एक िहसा भूतहा,
मन?स ह। यहाँ नानी का बेटा रन और पोता
गुलशन कएँ म िगर अपने ाण खो चुक ह।
उपयास आभासी दुिनया से ही नह,
मेटावस यानी कापिनक िव से भी जुड़ा ह।
मेटावस यानी एक साँझी, 3डी, आभासी
दुिनया- जहाँ िडिजटल अवतार क मायम से
बातचीत क जा सकती ह। बाबा ने वन
थैरपी ारा िकशोर नील क अवचेतन को
दु त कर िदया था। यवसाय, िशा,
मनोरजन- सभी यहाँ सुलभ ह। िनलय और
नीिलमा मेटावस क आभासी दुिनया को
आिटिफ़िशयल इटिलजेस से जोड़ रह ह।
उहने गु ाम से यूरो साइस म एम. एस सी.
क ह। नीिलमा यह से पी. ऍचडी. करने
लगती ह और ोफ़सर हो जाती ह। ऋिषकश
म हॉ पटल खोलती ह और िफर वािशंगटन
माइोसॉट मुयालय प च जाती ह। िनलय
मै सको से क यूटर इजीिनयरग और िफर
िकसी ोजेट म जुट जाता ह। वह तरग क
भाषा िवकिसत कर ीम इहिसंग िडवाइस
' लपइन' बनाता ह, जादूगर हो जाता ह,
तंिका का खेल समझता ह। उसक यास
अँधेर म रोशनी भरने क ह, काले गिलयार
को चमचमाते हाइवेज़ म बदलने क ह-
"नैनोमनोलॉजी मन क परमाणु म फर-
बदल करने क मता ह। यानी मन क सघन
जाल को भेद उसक तरल तरग को अलग
राते देना, उनक बुनावट म फरबदल कर
देना।"
ीक माइथोलोजी क नद क देवी
िहपनोस और मृयु क देवता थानाटोस का
पक पूर उपयास म िलया गया ह। िहपनोस
और थानाटोस जुड़वाँ भाई- बहन ह। बाबा
मानते ह िक नद और मौत म दो क़दम का ही
फासला ह। टी. वी. सीरयल टार क,
क टन कक तथा काबलर और एलज का भी
िज़ ह। अपने योगबल से सीता माता भी
वामीक आम म होते ये भी अमेध से
पहले राम क महल म जा य क िलए सोने
क सीता क ितमा देख लौट आई थी। बानी
भी वष पहले क मृत पित क साथ वन म
नाहरगढ़, आंबेर, जलमहल घूमा करती ह।
ियदिशनी को वैवािहक जीवन क दुख ने
पथर कर िदया ह। नीलाघर का भी
तीकामक अंकन ह।
कनु ने िपता को कएँ म क?द कर मरते
देखा ह। शांतनु से ेक अप झेला ह। सोते
जागते उसे यही भयंकर मृितयाँ हाट करती
ह। ममेरी बहन क यह दशा देखकर ही
नाियका क मन म 'सुनो सुरीली धुन' थेर टक
इ टीूट का िवचार आता ह। मौसी
ियदिशनी को अवथ गृहथ ने, आर. क.
को यु क देन अपािहजपन ने, शारग को
बॉस क दादािगरी ने मन: िवसंगितयाँ और
नाइट मेयर िदये ह।
नील को घुड़सवारी क, पहाड़ पर चढ़ने
और समु पार करने क सपने आते ह और
नीलू को बत सारी चािबय वाली िचिड़या
नज़र आती ह। वह अपने को चािबय क पीछ
भागता पाती ह। या इन चािबय से उस
रहयमय संसार क कपाट खोल पाएगी।
उपयास सपने और सच क बीच जड़ ताले
को खोल देने वाली चाबी क बात करता ह।
पूर चाँद क रात का िज़ भी आता ह।
िनदा फाजली क ग़ज़ल सा ही जीवन ह-
'मन बैरागी, तन अनुरागी, क़दम-क़दम
दुारी ह। जीवन जीना सहज न जानो बत
बड़ी फ़नकारी ह।'
अनेक दाशिनक, लेखक का उेख
आता ह- शंकराचाय, िववेकानंद, वकस,
माइकल हारनार, िनकोला टसला, रचड
नैश, आइ टाइन, बजािमन बेयड, िनदा
फाजली, नामांगयल रनपोचे।
िचंतन सूामकता म आकार ले रहा ह-
1.धैय िकसी भी नई चीज़ को जानने,
समझने या सीखने क सबसे ज़री शत ह।
2.आज़रवट होना अछी बात ह, मगर
उससे भी यादा ज़री ह अपना इटरनल
िफटर िडवैलप करना।
3.िवान िजासा ख़म नह करता,
ब क उसम िदन-ब-िदन इज़ाफ़ा ही करता
ह।
4.मृितयाँ पीछा नह छोड़त... जब हम
सोचते ह िक वत ने थोड़ा मु? िकया, तब
िकसी पल वे दुगुनी गित से लौटती ह।
5.मन देह क उ नह पहचानता।
6.डायरयाँ ताले जड़ वे ख़ज़ाने ह, िजनम
िहफ़ाज़त से सँभालकर रखा असल क़मती
मन रहता ह।
7.वािहश जीवन का वह सच ह, जो
जीवन क बाद भी बना रहता ह।
8.अकलेपन को सुन लेना ही अकलेपन
मनोिवेषणामक उपयास
डॉ. मधु संधु
'नद और जाग' उजला लोिहया का 2025 म िशवना काशन से कािशत नैनोमनोलॉजी
पर िलखा उपयास ह। नैनोमनोलॉजी शद को उजला लोिहया 'सय क ार पर फतासी क
दतक' कहती ह। 21व शती नैन िवान क शती ह। िविभ? े म नैन तकनीक का िवकास
और शोध हो रह ह। नैनो अित सू?म मशीन बनाने का िवान ह। मशीन जो धमिनय म उतर वह
रोग का उपचार कर द। उपयास उन सभी ऋिषय और वैािनक क नाम ह-
'िजहने िवराट म धँसने क अपनी चाहत को पूरा करते ये भी दुिनया को उजड़ने से बचाए
रखा।'
डॉ. िववेक िम इसे 'ान क अनंत याा' मानते िलखते ह-
"उपयास य और अ य, य और परो दुिनया क बीच िखंचे महीन धागे पर
िनवात म काँपते समय क साथ यथाथ और कपना क धुँधलक म धीर- धीर आगे बढ़ता ह। यह
जीवन म वन कपना यथाथ म ितरता आ अलग ही ितिलम रचता ह। हम सभी एक ही
समय म एक जीवन जीते ये, कई- कई तर पर जीते ह।"
उपयासकार पाठक को एक अनजाने, अनछये, अनदेखे संसार क याा पर ले जाती ह।
ात- अात रहय क तह तक जा रह पा क अनुसंधान से जुड़ा ह। कहती ह-
" ाड क सार रहय और उह हल कर लेने का यास ऐसा तराजू तीत होते ह,
िजसक क ीय कल मानव िजासा ह, िजसक एक पलड़ म तक ह और दूजे म अनुभव। एक
म य, दूजे म अ य सा। वही अ य सा... िजसक िवतार और उसक मौन- मुखरता
को भेदने क यास आिदकाल से होते रह ह।"
अनेक पा ह- पहाड़ सी सीधी धरती क यह टढ़ लोग- बाबा, िनलय, नीिलमा, नाना, नानी,
बड़ी नानी/ बानी, बानी क बेटी ियदिशनी और बेटा दमन, देिवका, मामा रन, उनक
संगीतिया बेटी कनु दी, िनलय का िम एडवड, फ़ौजी आर. क., डॉ. अमन, शारग, सबरीना,
योम, िनशांत, रनी, िनशांत, जितन, िसंदूरी...।
बाबा, िनलय, नीिलमा- सुपर ए टव, सुपर सिसिटव पा ह। सब ने यूरो साइस का
चुनाव िकया ह। सभी िदमाग़ी गिलय म िवचरण करने वाले लोग ह। बस चले तो िदमाग़ को
ओज़ार से खोल उसका चपा-चपा छान मार, जैसे पेस शटल पेस का चपा-चपा छान
डालता ह।
बाबा यानी िपता यूरोसाइस ोफ़सर ह। ीम योगा उनका अभी िवषय ह। जुड़वाँ संतान-
बेट िनलय और बेटी नीिलमा को यूरोसाइस क चेतना और जीवन अपने बाबा से ही
िमली ह। िवान और दशन उनक नस म िपता क तरह ही दौड़ता ह। लूिसड यानी
अधचेतनावथा िजसम य जानता ह िक वह वन म ह और वह उस पर अंशत: िनयंण भी
कर सकता ह। मूलत: हम जो सोचते ह, उसी से सपने आकार लेते ह और कई बार सपन से हम
समया क समाधान भी िमल जाते ह। सपने ान और अनुभव क गोदाम ह। बाक़ तक और
अनुभव तो सबक अपने अपने ही रहते ह। सपने आँख से नह म तक से देखे जाते ह। गहरी
ड टा नद म तक क सफाई करती ह और रम ीिमंग म मन अिधक सिय रहता ह। चेतन
और अचेतन मन म बत कम दूरी रहती ह और मन तथा म तक म से िकसी एक को चुनना
ख़तरनाक होता ह। दैिनक भाकर क नवीन चौधरी को िदये एक सााकार म उजला लोिहया
डॉ. मधु संधु
13 ीत िवहार, आर. एस. िमल, जी. टी.
रोड, अमृतसर, 143104, पंजाब
मोबाइल- 8427004610
ईमेल- [email protected]
मनीषा कले
मकान नं. 10, गली नं. 18,
सड़क नं. 19, स ल पाक, नॉथ एवेयू बी,
वािटका इफोटक िसटी, जयपुर,
राजथान 302026
मोबाइल- 9911252907
ईमेल- [email protected]
क म पुतक
(उपयास)
नद और जाग
समीक : डॉ. मधु संधु, मनीषा
कले
लेखक : उजला लोिहया
काशक : िशवना काशन, साट
कॉ लैस बेसमट, सीहोर, म
466001, फ़ोन-07562405545
मोबाइल- +91-9806162184
ईमेल- [email protected]

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 202529 28 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 2025
का सबसे बेहतर इलाज ह।
9. बेचैिनय क गंध अगर गाढ़ी हो जाए
तो डर बन जाती ह और डर जब सपन म आ
जाए तो नद िछ? जाती ह।
10.कछ चीज़ न नई होती ह, न पुरानी...
बस साथ चलती ह जैसे अँधेरा और
उजाला...सही और ग़लत... सच और झूठ।
11.आमा तक प ची आवाज़ क गूँज
सबसे धीमी होकर भी सबसे तेज़ होती ह। और
उससे भी तेज़ होती ह अबोली तरग क गूँज।
रत क बात भी ह। म?ू भडारी क
'यही सच ह' क तरह नाियका का परशान मन
अमन को खोजता ह और एकांत मन आर.
क. संग टहलता ह। अंत आर. क. संग सुखद
गृहथ ह। ियू बौ िभुणी तो हो जाती ह,
पर सैम भी वह ह। भाई बहन क मन क हर
बात समझता ह। यार इतना िक लैपटाप का
पासवड हो या फ़ाइल- सब बहन क नाम से
ही खुलगे। बड़ी नानी तो ह ही ेमयोिगनी।
आपसी ं भी ह जैसे ियू सोचती ह िक नीलू
ने उससे माँ छीन ली ह और भाई को लगता ह
िक िपता बहन से अिधक ?ेह रखते ह।
यापारक घोटाले भी ह। कनु घोट लेिखका
ह और उसक िपता क आमहया का कारण
मुंबई क िफमी दुिनया ह। एडवड भी िनलय
क साथ घोटाला कर रहा ह। िनलय म एक
वैािनक क जीवन क झाँक ह। वह अपने
अनुसंधान म इतना खोया रहता ह िक िदन
तक उसका दरवाज़ा ही नह खुलता। खाने-
पीने से भी अनास? सा रहता ह। उसक
एकांत म हर वेश विजत ह।
नैनोमनोलॉजी का उेख इसे
मनोिवेषणामक उपयास बनाता ह,
अयाधुिनक ट ोलोजी क योग इसे
वैािनक उपयास क घेर म लाते ह,
अयाम, दशन और िचंतन इसे दाशिनक
उपयास बनाते ह और ीक माइथोलोजी का
तीक इसे फतासी बना रहा ह। इसे हम ी
लेखन क एक नवार पर दतक मान सकते
ह। कल िमलाकर उपयास िहदी सािहय म
एक नई का सूपात कर रहा ह। दशन
और िवान, मन और म तक क सामंजय
क अिनवायत: वथ जीवन क माँग ह।
उपयास का अंत पाठक को न िच म
छोड़ जाता ह।
संदभ
1 उजला लोिहया, नद और जाग, िशवना
काशन, सीहोर, 2025, पृ 9, 2 वही, पृ
3, 3 वही, पृ 4, 4 वही, पृ 6, 5 वही,
पृ 15, 6 वही, पृ 18, 7 वही, पृ 215,
8 वही, पृ 15, 9 वही, पृ 19, 10 वही,
पृ 20, 11 वही, पृ 22, 12 वही, पृ
33, 13 वही, पृ 35, 14 वही, पृ 36, 15
वही, पृ 55, 16 वही, पृ 67, 17 वही,
पृ 148, 18 वही, पृ 151
000
यामक उपयास
मनीषा कले
उजला लोिहया क पहले उपयास 'नद
और जाग' उपयास से अनवरत एक धागा
बँधा रहा, इसक सार ाट पढ़ और लब क
पं याँ भी िलख। लेिकन यक़न मानगे िक
जब िकताब सुंदर कवर क साथ मेर सरहाने
आई और िफर पढ़ी तो वह आनंद िवशु
पाठक का था। यह अनुभव गूँथकर कछ देर
ढककर रख िदए आट क बनी, धीमी आँच
पर पक रोटी का-सा था। सधा और मम तक
राता बनाने वाला। उजला लोिहया क
लेखनी म अनुभव ह, गहराई ह, लय ह और
िक़सागोई ह।
नीलू और नील दो मातृहीन एक
मनोवैािनक क जुड़वाँ संतान ह, जो एकदम
िवपरीत ह। जो पनी-िवयोग म ब को
उनक नानी क पास छोड़ पहाड़ म रमता ह
और योगिना पर योग करता ह। ब को
जब भी अपने पास बुलाता ह उह मनोजग
क रहय से परिचत करवाता ह। अब ये दोन
भी इसी े को चुनते ह और िपता क मृयु
क बाद उनसे िमली इस ान क िवरासत को
अलग अलग ढग से आगे बढ़ाते ह। नील
लोग क मन पढ़ने क मारक उसुकता म
नैनो-तकनीक और िकह घातक योग क
िदशा म िनकल पड़ता ह, वह नीिलमा वन-
िवान का सहारा लेती ह और लोग क
मनोंिथयाँ खोलती ह। नीलू का राता िपता
का सुझाया सीधा और धीमा राता ह, वह
नील समय से आगे चल आिटिफिशयल
इटिलजस और समोहन क ती और िवकट
राते को चुनता ह जो घातक भी ह और
नीितगत भी नह ह। िफर ऐसा या होता ह िक
दोन क राते काटते ह एक दूसर को और
कहानी म नीलू वयं को नील क छाया से
त पाती ह!
कहानी म आक मक मोड़ तब आता ह
जब नील ग़ायब हो जाता ह......नील और
नीिलमा दो ुव ह- एक वैािनक और
तकनीक क गहन गुँजल म मनोजग क
उलझाव का इलाज खोजता ह, तो दूसरी
िसफ मन, वन, म तक को संवाद और
योगिना से समझना चाहती ह। जबिक दोन
क बीच कोई योजक हो तो वह बत कारगर
हो।
इस कथा म बत अनूठ पा ह, िजनक
ख़ामोशी बत कछ कहती ह और हर परछाई
एक साई िछपाती ह। इन पा क बीच रहने
क िववशता ह नीलू क। कनदी, ियूमा,
बानी......नानी, मामा....जो सब साथ ह मगर
सबक अलग-अलग मनोजग। सबक
अपनी कहानी ह, मुझे बानी क कहानी बत
िय ह मगर म यहाँ कहानी नह क गी, मगर
इस उपयास को पढ़ने का आह ज़र
क गी िक यह फतासी कथा होकर भी एक
िवानजिनत तक क सीमा को छकर
गुज़रता ह।
उजला जयपुर क अंदनी इलाक क
य उकरने म भी िसहत ह। यह उपयास
परकोट क भीतर वाले जयपुर क पैनोरमा का
बेहद कलामक कोलाज ह। रोचक कथानक,
भाषा, यामकता, भाव और मनोजग क
बारीिकय से सप यह उपयास िहदी
कथा जग म एक नई दतक ह। उजला क
लेखनी म भले देर से जाग ई मगर उसक
वन म लेखन क बीज नह बड़-बड़ दरत
साँस ले रह थे, कथा क, कहन क अनूठ
अंदाज़ क, फतािसय क और उनम िछपे
जीवन क सय क। अब वे अपने पहले अनूठ
उपयास 'नद और जाग' क साथ पाठक क
सामने तुत ह।
000
साइय से ब करवाता उपयास
दीपक िगरकर
िशवना काशन से कािशत "मन क चौह पर बोनसाई" सुधा जुगरान का दूसरा
उपयास इन िदन चचा म ह। सुधा जुगरान क मुख रचना म "गली आगे मुड़ती ह",
"मुखरत मौन", "मेर िहसे का आकाश", "एक मन ऐसा भी", "थोड़ा दूर थोड़ा पास",
"काँध पर सलीब", "मु बोध", "नई इबारत" (कहानी संह), "मन वनी", "मन क
चौह पर बोनसाई" (उपयास), "21 व सदी क कहािनयाँ समीा क आईने म"
(समीा क पुतक) शािमल ह। इनक कहािनयाँ मुख सािह यक पिका म िनयिमत
प से कािशत हो रही ह।
हर युग म िवचार क दूरी रही ह, पर इस बार खाई कछ यादा गहरी हो गई ह। सोशल
मीिडया ने रत क गमाहट को न क रोशनी म बदल िदया, और वतंता क चाह ने
वछदता का प धर िलया। संयु? परवार तो कब क िबखर गए थे, अब एकल परवार भी
दरकने लगे ह। िववाह से िहचक, संतान से अिनछा और संबंध को िनभाने क ऊब, इन सबने
िलव-इन को नई वैधता दी ह। महानगर क चकाचध म मटीनेशनल कपिनय म काम करने
वाले युवा, घर-परवार क परपरागत जकड़न से मु? तो ए, पर इस आज़ादी ने उनक जीवन
म अकलापन, असुरा और िनणय क किठन िज़मेदारयाँ भी ला द। वतंता क सुख क
साथ संघष क यह अनकही कहानी, भीतर कह गहरी छाप छोड़ती ह। यह उपयास आज क
युवा पीढ़ी क इह उलझन, असंतुलन और बेचैिनय को उजागर करता ह। यह कवल न
उठाता ह, उर नह देता, यिक िनणय आिख़रकार उह पर छोड़ िदया गया ह, िजनक
कहानी यह ह। यह िकताब एक दपण ह, जो िदखाती ह िक बदलती दुिनया म हम या पीछ छोड़
आए ह और या सच म आगे बढ़ पाए ह।
"मन क चौह पर बोनसाई" मयम ेणी क परवार क लोग क जीवन क ताने-बाने को
बुनता आ एक सामािजक उपयास ह। यह हमार आसपास क दुिनया ह। इस उपयास म
िदखने वाले चेहर हमार बत क़रीबी परवेश क जीते-जागते चेहर ह। शु?आत से ही उपयास
पाठक को अपनी िगरत म लेने लगता ह। उपयास क क म सुनंदा, समर, सोमी, रोिमल,
रयाना, अनुपम, रजुल, मेल क मुय भूिमका ह। यह इन आठ िम क कथा ह। इनक
अलावा इस उपयास म रजनी, िकयान, काश, सतीश, उव, उिमला, गीता, शािलका भी
कछ चर ह, िजनक अलग-अलग गरमा ह। उपयास क पा गढ़ ए नह लगते ह, सभी
पा जीवंत लगते ह। कथाकार सुधा जुगरान ने कामकाजी युवा ी-पुष को लेकर ं का
उदा िचण िकया ह। सुनंदा और समर अपने दापय जीवन म सफल नह होते ह यिक उन
दोन क बीच म अहम क दीवार खड़ी होती ह। अपने अह और हठधिमता क कारण सुनंदा
अपना दापय जीवन दाँव पर लगा देती ह।
यह उपयास जीवन क यथाथ और साइय से ब करवाता ह। इस सदी क दूसर
दशक म सामािजक-पारवारक यथाथ और मूय म जो बदलाव घिटत आ ह, जो उर
आधुिनकता ह, उसको भी पकड़ने क कोिशश ह। िकस तरह मयम वग क नई पीढ़ी पर
पा?ात संकित का भाव पड़ रहा ह और शादी जैसा पिव बंधन क जगह नई पीढ़ी िलव इन
रलेशन कचर क िशकार होती जा रही ह। मिहलाएँ नौकरी करक आमिनभर तो हो रही ह
लेिकन आज़ादी क नाम पर अपनी पारवारक िज़मेदारय से दूर होती जा रही ह, दापय
जीवन म संवादहीनता बढती जा रही ह, इन सब चीज़ क बेहतर पड़ताल इस उपयास क
मायम से ई ह। सुधा जुगरान अपनी आसपास क दुिनया क लोग क मन को बत बारीक से
पढ़ती ह, समझती ह, इसिलए इनक पा वाभािवक प से हमार सामने उप थत होते ह।
पुतक म यहाँ-वहाँ िबखर सू वाय उपयास क िवचार सदय को पु करते ह। जैसे -
"सोमी क शादी क बहाने ये छ याँ बत ही अछी बीत। हमेशा याद रहगी। मुंबई जाकर तो
दीपक िगरकर
28-सी, वैभव नगर, कनािडया रोड,
इदौर- 452016 म
मोबाइल- 9425067036
ईमेल- [email protected]
डॉ. मधु संधु
13 ीत िवहार, आर. एस. िमल, जी. टी.
रोड, अमृतसर, 143104, पंजाब
मोबाइल- 8427004610
ईमेल- [email protected]
डॉ. सिवता मोहन
सी-257, पनाश वैली, सह धारा माग
देहरादून-248001, उराखंड
मोबाइल- 08937851562
क म पुतक
(उपयास)
मन क चौह पर बोनसाई
समीक : दीपक िगरकर, डॉ. मधु
संधु, डॉ. सिवता मोहन
लेखक : सुधा जुगरान
काशक : िशवना काशन, साट
कॉ लैस बेसमट, सीहोर, म
466001, फ़ोन-07562405545
मोबाइल- +91-9806162184
ईमेल- [email protected]

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 202529 28 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 2025
का सबसे बेहतर इलाज ह।
9. बेचैिनय क गंध अगर गाढ़ी हो जाए
तो डर बन जाती ह और डर जब सपन म आ
जाए तो नद िछ? जाती ह।
10.कछ चीज़ न नई होती ह, न पुरानी...
बस साथ चलती ह जैसे अँधेरा और
उजाला...सही और ग़लत... सच और झूठ।
11.आमा तक प ची आवाज़ क गूँज
सबसे धीमी होकर भी सबसे तेज़ होती ह। और
उससे भी तेज़ होती ह अबोली तरग क गूँज।
रत क बात भी ह। म?ू भडारी क
'यही सच ह' क तरह नाियका का परशान मन
अमन को खोजता ह और एकांत मन आर.
क. संग टहलता ह। अंत आर. क. संग सुखद
गृहथ ह। ियू बौ िभुणी तो हो जाती ह,
पर सैम भी वह ह। भाई बहन क मन क हर
बात समझता ह। यार इतना िक लैपटाप का
पासवड हो या फ़ाइल- सब बहन क नाम से
ही खुलगे। बड़ी नानी तो ह ही ेमयोिगनी।
आपसी ं भी ह जैसे ियू सोचती ह िक नीलू
ने उससे माँ छीन ली ह और भाई को लगता ह
िक िपता बहन से अिधक ?ेह रखते ह।
यापारक घोटाले भी ह। कनु घोट लेिखका
ह और उसक िपता क आमहया का कारण
मुंबई क िफमी दुिनया ह। एडवड भी िनलय
क साथ घोटाला कर रहा ह। िनलय म एक
वैािनक क जीवन क झाँक ह। वह अपने
अनुसंधान म इतना खोया रहता ह िक िदन
तक उसका दरवाज़ा ही नह खुलता। खाने-
पीने से भी अनास? सा रहता ह। उसक
एकांत म हर वेश विजत ह।
नैनोमनोलॉजी का उेख इसे
मनोिवेषणामक उपयास बनाता ह,
अयाधुिनक ट ोलोजी क योग इसे
वैािनक उपयास क घेर म लाते ह,
अयाम, दशन और िचंतन इसे दाशिनक
उपयास बनाते ह और ीक माइथोलोजी का
तीक इसे फतासी बना रहा ह। इसे हम ी
लेखन क एक नवार पर दतक मान सकते
ह। कल िमलाकर उपयास िहदी सािहय म
एक नई का सूपात कर रहा ह। दशन
और िवान, मन और म तक क सामंजय
क अिनवायत: वथ जीवन क माँग ह।
उपयास का अंत पाठक को न िच म
छोड़ जाता ह।
संदभ
1 उजला लोिहया, नद और जाग, िशवना
काशन, सीहोर, 2025, पृ 9, 2 वही, पृ
3, 3 वही, पृ 4, 4 वही, पृ 6, 5 वही,
पृ 15, 6 वही, पृ 18, 7 वही, पृ 215,
8 वही, पृ 15, 9 वही, पृ 19, 10 वही,
पृ 20, 11 वही, पृ 22, 12 वही, पृ
33, 13 वही, पृ 35, 14 वही, पृ 36, 15
वही, पृ 55, 16 वही, पृ 67, 17 वही,
पृ 148, 18 वही, पृ 151
000
यामक उपयास
मनीषा कले
उजला लोिहया क पहले उपयास 'नद
और जाग' उपयास से अनवरत एक धागा
बँधा रहा, इसक सार ाट पढ़ और लब क
पं याँ भी िलख। लेिकन यक़न मानगे िक
जब िकताब सुंदर कवर क साथ मेर सरहाने
आई और िफर पढ़ी तो वह आनंद िवशु
पाठक का था। यह अनुभव गूँथकर कछ देर
ढककर रख िदए आट क बनी, धीमी आँच
पर पक रोटी का-सा था। सधा और मम तक
राता बनाने वाला। उजला लोिहया क
लेखनी म अनुभव ह, गहराई ह, लय ह और
िक़सागोई ह।
नीलू और नील दो मातृहीन एक
मनोवैािनक क जुड़वाँ संतान ह, जो एकदम
िवपरीत ह। जो पनी-िवयोग म ब को
उनक नानी क पास छोड़ पहाड़ म रमता ह
और योगिना पर योग करता ह। ब को
जब भी अपने पास बुलाता ह उह मनोजग
क रहय से परिचत करवाता ह। अब ये दोन
भी इसी े को चुनते ह और िपता क मृयु
क बाद उनसे िमली इस ान क िवरासत को
अलग अलग ढग से आगे बढ़ाते ह। नील
लोग क मन पढ़ने क मारक उसुकता म
नैनो-तकनीक और िकह घातक योग क
िदशा म िनकल पड़ता ह, वह नीिलमा वन-
िवान का सहारा लेती ह और लोग क
मनोंिथयाँ खोलती ह। नीलू का राता िपता
का सुझाया सीधा और धीमा राता ह, वह
नील समय से आगे चल आिटिफिशयल
इटिलजस और समोहन क ती और िवकट
राते को चुनता ह जो घातक भी ह और
नीितगत भी नह ह। िफर ऐसा या होता ह िक
दोन क राते काटते ह एक दूसर को और
कहानी म नीलू वयं को नील क छाया से
त पाती ह!
कहानी म आक मक मोड़ तब आता ह
जब नील ग़ायब हो जाता ह......नील और
नीिलमा दो ुव ह- एक वैािनक और
तकनीक क गहन गुँजल म मनोजग क
उलझाव का इलाज खोजता ह, तो दूसरी
िसफ मन, वन, म तक को संवाद और
योगिना से समझना चाहती ह। जबिक दोन
क बीच कोई योजक हो तो वह बत कारगर
हो।
इस कथा म बत अनूठ पा ह, िजनक
ख़ामोशी बत कछ कहती ह और हर परछाई
एक साई िछपाती ह। इन पा क बीच रहने
क िववशता ह नीलू क। कनदी, ियूमा,
बानी......नानी, मामा....जो सब साथ ह मगर
सबक अलग-अलग मनोजग। सबक
अपनी कहानी ह, मुझे बानी क कहानी बत
िय ह मगर म यहाँ कहानी नह क गी, मगर
इस उपयास को पढ़ने का आह ज़र
क गी िक यह फतासी कथा होकर भी एक
िवानजिनत तक क सीमा को छकर
गुज़रता ह।
उजला जयपुर क अंदनी इलाक क
य उकरने म भी िसहत ह। यह उपयास
परकोट क भीतर वाले जयपुर क पैनोरमा का
बेहद कलामक कोलाज ह। रोचक कथानक,
भाषा, यामकता, भाव और मनोजग क
बारीिकय से सप यह उपयास िहदी
कथा जग म एक नई दतक ह। उजला क
लेखनी म भले देर से जाग ई मगर उसक
वन म लेखन क बीज नह बड़-बड़ दरत
साँस ले रह थे, कथा क, कहन क अनूठ
अंदाज़ क, फतािसय क और उनम िछपे
जीवन क सय क। अब वे अपने पहले अनूठ
उपयास 'नद और जाग' क साथ पाठक क
सामने तुत ह।
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साइय से ब करवाता उपयास
दीपक िगरकर
िशवना काशन से कािशत "मन क चौह पर बोनसाई" सुधा जुगरान का दूसरा
उपयास इन िदन चचा म ह। सुधा जुगरान क मुख रचना म "गली आगे मुड़ती ह",
"मुखरत मौन", "मेर िहसे का आकाश", "एक मन ऐसा भी", "थोड़ा दूर थोड़ा पास",
"काँध पर सलीब", "मु बोध", "नई इबारत" (कहानी संह), "मन वनी", "मन क
चौह पर बोनसाई" (उपयास), "21 व सदी क कहािनयाँ समीा क आईने म"
(समीा क पुतक) शािमल ह। इनक कहािनयाँ मुख सािह यक पिका म िनयिमत
प से कािशत हो रही ह।
हर युग म िवचार क दूरी रही ह, पर इस बार खाई कछ यादा गहरी हो गई ह। सोशल
मीिडया ने रत क गमाहट को न क रोशनी म बदल िदया, और वतंता क चाह ने
वछदता का प धर िलया। संयु? परवार तो कब क िबखर गए थे, अब एकल परवार भी
दरकने लगे ह। िववाह से िहचक, संतान से अिनछा और संबंध को िनभाने क ऊब, इन सबने
िलव-इन को नई वैधता दी ह। महानगर क चकाचध म मटीनेशनल कपिनय म काम करने
वाले युवा, घर-परवार क परपरागत जकड़न से मु? तो ए, पर इस आज़ादी ने उनक जीवन
म अकलापन, असुरा और िनणय क किठन िज़मेदारयाँ भी ला द। वतंता क सुख क
साथ संघष क यह अनकही कहानी, भीतर कह गहरी छाप छोड़ती ह। यह उपयास आज क
युवा पीढ़ी क इह उलझन, असंतुलन और बेचैिनय को उजागर करता ह। यह कवल न
उठाता ह, उर नह देता, यिक िनणय आिख़रकार उह पर छोड़ िदया गया ह, िजनक
कहानी यह ह। यह िकताब एक दपण ह, जो िदखाती ह िक बदलती दुिनया म हम या पीछ छोड़
आए ह और या सच म आगे बढ़ पाए ह।
"मन क चौह पर बोनसाई" मयम ेणी क परवार क लोग क जीवन क ताने-बाने को
बुनता आ एक सामािजक उपयास ह। यह हमार आसपास क दुिनया ह। इस उपयास म
िदखने वाले चेहर हमार बत क़रीबी परवेश क जीते-जागते चेहर ह। शु?आत से ही उपयास
पाठक को अपनी िगरत म लेने लगता ह। उपयास क क म सुनंदा, समर, सोमी, रोिमल,
रयाना, अनुपम, रजुल, मेल क मुय भूिमका ह। यह इन आठ िम क कथा ह। इनक
अलावा इस उपयास म रजनी, िकयान, काश, सतीश, उव, उिमला, गीता, शािलका भी
कछ चर ह, िजनक अलग-अलग गरमा ह। उपयास क पा गढ़ ए नह लगते ह, सभी
पा जीवंत लगते ह। कथाकार सुधा जुगरान ने कामकाजी युवा ी-पुष को लेकर ं का
उदा िचण िकया ह। सुनंदा और समर अपने दापय जीवन म सफल नह होते ह यिक उन
दोन क बीच म अहम क दीवार खड़ी होती ह। अपने अह और हठधिमता क कारण सुनंदा
अपना दापय जीवन दाँव पर लगा देती ह।
यह उपयास जीवन क यथाथ और साइय से ब करवाता ह। इस सदी क दूसर
दशक म सामािजक-पारवारक यथाथ और मूय म जो बदलाव घिटत आ ह, जो उर
आधुिनकता ह, उसको भी पकड़ने क कोिशश ह। िकस तरह मयम वग क नई पीढ़ी पर
पा?ात संकित का भाव पड़ रहा ह और शादी जैसा पिव बंधन क जगह नई पीढ़ी िलव इन
रलेशन कचर क िशकार होती जा रही ह। मिहलाएँ नौकरी करक आमिनभर तो हो रही ह
लेिकन आज़ादी क नाम पर अपनी पारवारक िज़मेदारय से दूर होती जा रही ह, दापय
जीवन म संवादहीनता बढती जा रही ह, इन सब चीज़ क बेहतर पड़ताल इस उपयास क
मायम से ई ह। सुधा जुगरान अपनी आसपास क दुिनया क लोग क मन को बत बारीक से
पढ़ती ह, समझती ह, इसिलए इनक पा वाभािवक प से हमार सामने उप थत होते ह।
पुतक म यहाँ-वहाँ िबखर सू वाय उपयास क िवचार सदय को पु करते ह। जैसे -
"सोमी क शादी क बहाने ये छ याँ बत ही अछी बीत। हमेशा याद रहगी। मुंबई जाकर तो
दीपक िगरकर
28-सी, वैभव नगर, कनािडया रोड,
इदौर- 452016 म
मोबाइल- 9425067036
ईमेल- [email protected]
डॉ. मधु संधु
13 ीत िवहार, आर. एस. िमल, जी. टी.
रोड, अमृतसर, 143104, पंजाब
मोबाइल- 8427004610
ईमेल- [email protected]
डॉ. सिवता मोहन
सी-257, पनाश वैली, सह धारा माग
देहरादून-248001, उराखंड
मोबाइल- 08937851562
क म पुतक
(उपयास)
मन क चौह पर बोनसाई
समीक : दीपक िगरकर, डॉ. मधु
संधु, डॉ. सिवता मोहन
लेखक : सुधा जुगरान
काशक : िशवना काशन, साट
कॉ लैस बेसमट, सीहोर, म
466001, फ़ोन-07562405545
मोबाइल- +91-9806162184
ईमेल- [email protected]

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 202531 30 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 2025
साथी, सामािजक नैितक आज़ादी और माता-
िपता क मज़बूत दीवार ह। सभी अपनी
नौकरी, िम , लैपटॉप और मोबाइल म उलझे
ए ह। सबका वतं य व, वतं बक
बैलेस, वतं कार, वतं लैट ह।
उपयास का कालखंड कोई एक दशक तक
फला आ ह।
कॉलेज ले?रार सोमी और टी. वी.
चैनल म मैनेजर रोिमल तो कोई अ?ाईस वष
क आयु म शादी कर लेते ह, वथ गृहथ
जीवन जीने लगते ह। दोन सरल वभाव ह।
हर िकतु-परतु से पर छोटी बात म भी बड़ी
?िशयाँ ढ ढ़ लेते ह। उनका शादी का िनणय
सभी िम को आंदोिलत कर देता ह। जदी
ही रजुल नौकरी छोड़ माँ-बाप क
इछानुसार समवय से शादी कर लेती ह।
दापय क, िववाह क साई यह ह िक पित
क मृयु क बाद भी वह अकली नह ह।
उसक पास िपता ह, जो बेटी अितिथ का
संरक भी ह। ससुराल क सब लोग उसक
आमीय ह, शुभिचंतक ह। मेल िदी
िशट हो रजनी से शादी कर सुखद गृहथ
जुटा लेता ह। जबिक िलव-इन म रहने वाले
समर का सुनंदा पर, अनुपम का रयाना पर
शादी क िलए दबाव बढ़ जाता ह। समर और
सुनदा शादी कर पूना आ जाते ह, लेिकन िनभ
नह पाती।
यानी घर-परवार से दूर कॉपरट जग म
िनम त युवा िवषम िलंगी मैी क बाद
िलव-इन क ओर मुड़ रह ह। कभी जान
पहचान क परवार म शादी क जाती थी, अब
जीवन साथी बनाने क िलए जान-पहचान क
सहकम/ सहभागी को वरीयता दी जाती ह।
रतेदार या माता-िपता अवांिछत ह। इन युवा
युगल कॉपरट क अवधारणा ह िक िववाह
संथा वैय क, आिथक, शारीरक वातंय
पर पहरा और वैचारक वाधीनता पर ितबंध
ह।
उपयास का आरभ और अंत रयाना और
अनुपम क पाँचवी वषगाँठ क पाट से होता
ह। हालाँिक िलव-इन क अपनी मजबूरयाँ
और सीमाएँ तो ह ही। रयाना हो या सुनंदा-
दुिवधा और दु ंता अनुपम या समर क
माता- िपता को वीकार न पाने क, िकसी क
साथ शेयर न करने क, सास- ससुर क
उरदाियव तथा पारवारक झंझट से दूर
रहने क ह, आम क ण क ह।
कोई डढ़ साल से समर से तलाक़ क िलए
यनरत चालीस वषय सुनंदा आठ वषय
बेट िकयान क साथ िपछले पाँच वष से रह
रही ह। यानी दूसरी बड़ी समया संबंध
िवछद क मुहाने पर खड़ दपितय क ब
क तहस-नहस हो रही मन: थितय क ह,
उह सामाय जीवन न िमल पाने क ह। एक
तीसरी समया िलव-इन क बे क
सामािजक थित क ह- समान-अपमान
क, वैध-अवैध क लेबल क ह। िजससे
रयाना जूझ रही ह। न यह ह िक अपने पाँव
पर खड़ी अथ वतं, वावलंबी ी कह
अपने ही पाँव पर क हाड़ी तो नह चला
रही?
ऐ छक जीवन और वैय क चुनाव क
बावजूद बत सी समयाएँ ह। उवगय
आई. ए. एस. िपता क बेटी रजुल, िभ?
पारवारक, सामािजक परवेश क दुिवधा
िलए ह। इसीिलए रजुल क शादी समवय से
और मेल क रजनी से होती ह। रोिमल और
सोमी संतान सुख से वंिचत ह। समर सुनंदा
बेट क बावजूद तलाक़ क तीा म ह। वष
िलव म रहने क बाद अनुपम और गभवती
रयाना िववाह तो करना चाहते ह, पर दोन क
अपनी-अपनी शत ह, अह िबंदु ह। सब क
अपने अपने क े ह। देखना ह िक कौन,
कौन सा राता चुनता ह।
यहाँ िलव-इन और तलाक़ क पेचीदिगयाँ
एक साथ विणत ह। एकला चलो र क भावना
बल ह। असंतुलन कछ ऐसा ह िक परवार,
संकार, संकित, समाज सब भरभरा कर
िगर रह ह।
उपयास आज क पीढ़ी क िदल और
िदमाग़ क बीच चल रह िववाह और िलव -
इन क धमासान को लेकर ह। पता ही नह चल
रहा िक कौन सा पलड़ा भारी ह। िलव-इन को
न समानीय से देखा जाता ह, न समाज
इसक वीकित देता ह। उ िशित,
आमिनभर, अिधकार सजग ी िववाह जैसी
सुरा तो चाहती ह, परतु उरदाियव नह।
न बे क थित का भी ह- वैध, अवैध ?
तलाक़ से पहले, तलाक़ क बाद ? िववाह
आया मक, भावनामक, पारवारक,
सामािजक उपादेयता और दबाव क कारण
ताउ िनभाया जाता ह- भयु िबना होय न ीत।
स?पदी क सात वचन म ब। जबिक िलव-
इन म रते का अथायीपन ह। नह बनती तो
अलग हो जाते ह-
"यार एक ?शनुमा बादल ह और िववाह
एक िज़मेवारी। शारीरक संबंध क िलए एक
?बसूरत िलबासs मन का बंधन पारदश नह
हो पाता।"
िकयान क मायम से लेिखका ने बाल
मनोिवान/ मन: थितय को रखांिकत
िकया ह। तलाक़ क इछक माँ ने उसक
बाल सुलभ चंचलता छीन उसे मूक बना िदया
ह।
समाज का एक और प भी ह। लेिखका
कहती ह िक पहाड़ी लड़िकयाँ सुंदर, मेहनती
और िहमत वाली होती ह। गीता हो, उिमला
हो, सुभा हो या रजनी। परवार क रीढ़ होती
ह।
कछ ऐितहािसक और आज क तय भी
आए ह, जैसे देहरादून का नाम पहले ोणनगर
था। बैजनाथ का पुराना नाम वैनाथ ह।
रानीखेत क खोज राजा सुखरदेव क पनी
रानी प नी ारा क गई थी। िटहरी बाँध क
िनमाण क फलवप पुरानी िटहरी जलमन
हो गई। वहाँ 40 िकलोमीटर लंबी एक किम
झील का िनमाण िकया गया। अलकनंदा व
भागीरथी निदयाँ िटहरी म देवयाग म
िमलकर गंगा का िनमाण करती ह। गंगा क
मुख सहयोगी नदी भगीरथी व दूसरी
िभलंगना ह। िटहरी बाँध िव क पाँच बड़
बाँध म शािमल ह।
अथ वतं ी अपने उरदाियव क
ित सजग ह। माँ बाप क नह होने पर
िववाहोपरांत भी छोटी बहन क पढ़ाई का भार
वहन करने का सोमी का िनणय सश? ी
क ओर संकत करता ह।
दांपय क दो िच ह- सुनंदा को शादी से
पहले हर जगह पेस देने वाला पु?ष पित क
िफर वही टीन, वही ऑिफस, वही सड़क,
वही भीड़-भाड़ और वही काम...। कभी-
कभी तो सब कछ बोरग लगने लगता ह।"
(पृ 77)
"अनुपम भी शादी नह करना चाह रहा ह
ममी...। दरअसल हम दोन ही िववाह म
िवशवास नह रखते। या िमलता ह िववाह
करक " आपस म यार और परवाह होगी तो
िबना िववाह क भी रह लगे।" रयाना ने अपना
तक पेश िकया। (पृ 145)
"तुम समझ सकते हो रोिमल यह िकतना
मु कल िडसीज़न ह। भले ही आज ब? और
पनी क तवीर बदल गई ह िकतु एक माँ
क तवीर नह बदली। जम भी उसे ही देना
ह, पालन-पोषण भी उसे ही करना ह। अपनी
नौकरी को ितलांजिल देनी पड़ती ह सो
अलग। अपनी आिथक आमिनभरता भी पित
क पास िगरवी रख दो। खच पर िनयंण
रखो। हर वत खच क िलए हाथ फलाना
मुझसे सहन नह होगा।" सोमी झुँझला कर
बोली। (पृ 158)
उराखंड क मुख यटन थल क
ाकितक छटा और सांकितक िवरासत ने
इस उपयास म चार चाँद लगा िदए ह।
देहरादून कभी िशा का उवल दीप था,
जहाँ देश-िवदेश से छा ान क योित लेने
आते थे। पर अब वही संथान धीर-धीर अपनी
चमक खोकर सफ़द हाथी बन चुक ह। न
युवा को पहाड़ पर वरोज़गार िसखा पा
रह, न उह ितपध दुिनया म थािपत कर
पा रह ह। रोज़गार क कमी से पहाड़ ख़ाली हो
रह ह; गाँव वीरान होते जा रह ह। पर इन
किठनाइय क बावजूद पहाड़ क लोग आज
भी अपनी िमठास, सरलता और
मेहमाननवाज़ी से िदल जीत लेते ह। उनक
वभाव क यही सुंदरता और पहाड़ क कठोर
पर थितय से जूझने क िजजीिवषा उपयास
क प पर जीवंत हो उठती ह।
"मन क चौह पर बोनसाई" उपयास म
ारभ से अंत तक कथाकार सुधा जुगरान क
मनोवैािनक समझ क झलक िदखती ह।
उपयास क कथानक म मौिलकता और
वाभािवकता ह। भाषा सरल और सहज ह।
उपयास का वाह इतना मोहक और सुगिठत
ह िक बीच म छोड़ पाना असंभव-सा लगता
ह। हर अयाय क बाद अगला अयाय ऐसे
खुलता ह मानो िकसी जीवंत िफम का
अगला य हो और पाठक उसक कथा-
धारा म इस क़दर बँध जाता ह िक आिख़री
प?ा पढ़ िबना चैन नह पाता। कथाकार ने
पा क मनोिवान को भली-भाँित िनिपत
िकया ह और साथ ही उनक वभाव को भी
पाियत िकया ह। लेिखका ने इस उपयास म
एक बड़ पारवारक-सामािजक फलक पर
िचंतन िकया ह। लेिखका ने नई पीढ़ी क बीच
आए वैचारक परवतन को रखांिकत िकया
ह। आज क समय म समाज और परवार म
कई तरह क भौितक सुख-सुिवधा क
??? क िलए युवा पीढ़ी िसफ़ मशीन बन
चुक ह, इससे परवार और समाज का ताना-
बाना िछ?-िभ? हो चुका ह। य ने घर से
बाहर िनकलकर आमिनभरता हािसल क ह
और परवार क आिथक थित को मज़बूत
िकया ह लेिकन इसक वजह से पारवारक
िज़मेदारय का बोझ सवाल खड़ कर रहा ह
और दापय जीवन म खटास बढ़ती जा रही
ह। येक पा अपने-अपने चर का िनमाण
वयं करता ह। उपयास म लेिखका क
मौिलकता क दशन होते ह। लेखन म िकसी
तरह क किमता नह ह। इस उपयास को
पढ़ते ए एक िज़मेदार लेिखका क
सामािजक सरोकार प होते ह। सुधा
जुगरान ने इस पुतक म अंेज़ी शद का
बत अिधक योग िकया ह। पुतक म टकण
क कछ ुिटयाँ भी ह। सुधा जुगरान क इस
उपयास का वागत तथा शुभकामनाएँ
भिवय म वे िन त प से इस िवधा म
अपनी िविश पहचान बनाने म कामयाब
हगी।
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पीिढ़य क अंतराल पर बात
डॉ. मधु संधु
सुधा जुगरान िवगत तीन दशक से कथा
सािहय को समृ कर रही ह। 'मन क
चौह पर बोनसाई' सुधा जुगरान का 2025
म 'िशवना काशन', मयदेश से कािशत
दूसरा उपयास ह। उनका थम उपयास
'मन वनी' 2022 म कािशत आ था। आठ
कहानी संह और एक समीा पुतक क
अितर अनेक साँझा संकलन म उनक
रचनाएँ संकिलत ह।
'मन क चौह पर बोनसाई' यानी
उपयास चौह सा वैिवय और बदलते
समय ारा हो रही रत क अयाधुिनक
बोनसाई सी काँट- छाँट क टीस, सीमाएँ और
सदय म िलए ह। 'दो शद' म सुधा जुगरान
पीिढ़य क अंतराल पर बात करती कहती ह,
"जो गैप अभी तक िवचार, िशा व
वेशभूषा तक सीिमत था वह अंतराल अब
पारवारक ढाँचे से लेकर, सामािजक चेतना,
ी- पु?ष समानता क बात करता आ ी-
पु?ष क रत को लेकर संतुिलत होता आ,
अब असंतुिलत आ जा रहा ह।"
संयु? परवार का टटना और पारवारक
स?ावना तो अतीत क बात ह, उपयास टट
और िबखर रह एकल परवार क समया
िलए ह। िववाह हो जाए तो िनभाने क इछा
समा हो रही ह, सब रग िबखर से जाते ह
और बा हो जाए तो उसे पालने- दुलारने का
चाव नह ह। यहाँ चार युवा युगल ह- सुनंदा
और समर, रोिमल और सोमी, मेल और
रजुल तथा अनुपम और रयाना। रयाना और
सुनंदा ने इजीिनयरग और एम. बी. ए. िकया
आ ह। रजुल भी एम. बी. ए. ह। मेल आई
आई टी कानपुर और आई आई एम
अहमदाबाद से पढ़ा आ ह। रोिमल क पास
मास कयूिनकशन क िडी ह। सोमी कॉलेज
ले?रार और रोिमल टी. वी. चैनल म मैनेजर
ह। रजुल मुंबई से ह, रयाना चंडीगढ़ से,
सुनंदा फरीदाबाद से, सोमी देहरादून से। मेल
गढ़वाल क िकसी गाँव का ह, समर पूने से,
अनुपम गुड़गाँव से, रोिमल जयपुर से। सभी
भारी भरकम पैकज क साथ भारत क
वािण यक क और अयाधुिनक नगर मुंबई
म रह रह ह।
यहाँ न कोई षोडसी या मुधा नाियका ह
और न धीर पु?षs सभी युवा अपने ही िवचार-
भाव क मािलक ह, सभी क पास अछी
नौकरी, सुरित उवल भिवय, मनचाह

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 202531 30 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 2025
साथी, सामािजक नैितक आज़ादी और माता-
िपता क मज़बूत दीवार ह। सभी अपनी
नौकरी, िम , लैपटॉप और मोबाइल म उलझे
ए ह। सबका वतं य व, वतं बक
बैलेस, वतं कार, वतं लैट ह।
उपयास का कालखंड कोई एक दशक तक
फला आ ह।
कॉलेज ले?रार सोमी और टी. वी.
चैनल म मैनेजर रोिमल तो कोई अ?ाईस वष
क आयु म शादी कर लेते ह, वथ गृहथ
जीवन जीने लगते ह। दोन सरल वभाव ह।
हर िकतु-परतु से पर छोटी बात म भी बड़ी
?िशयाँ ढ ढ़ लेते ह। उनका शादी का िनणय
सभी िम को आंदोिलत कर देता ह। जदी
ही रजुल नौकरी छोड़ माँ-बाप क
इछानुसार समवय से शादी कर लेती ह।
दापय क, िववाह क साई यह ह िक पित
क मृयु क बाद भी वह अकली नह ह।
उसक पास िपता ह, जो बेटी अितिथ का
संरक भी ह। ससुराल क सब लोग उसक
आमीय ह, शुभिचंतक ह। मेल िदी
िशट हो रजनी से शादी कर सुखद गृहथ
जुटा लेता ह। जबिक िलव-इन म रहने वाले
समर का सुनंदा पर, अनुपम का रयाना पर
शादी क िलए दबाव बढ़ जाता ह। समर और
सुनदा शादी कर पूना आ जाते ह, लेिकन िनभ
नह पाती।
यानी घर-परवार से दूर कॉपरट जग म
िनम त युवा िवषम िलंगी मैी क बाद
िलव-इन क ओर मुड़ रह ह। कभी जान
पहचान क परवार म शादी क जाती थी, अब
जीवन साथी बनाने क िलए जान-पहचान क
सहकम/ सहभागी को वरीयता दी जाती ह।
रतेदार या माता-िपता अवांिछत ह। इन युवा
युगल कॉपरट क अवधारणा ह िक िववाह
संथा वैय क, आिथक, शारीरक वातंय
पर पहरा और वैचारक वाधीनता पर ितबंध
ह।
उपयास का आरभ और अंत रयाना और
अनुपम क पाँचवी वषगाँठ क पाट से होता
ह। हालाँिक िलव-इन क अपनी मजबूरयाँ
और सीमाएँ तो ह ही। रयाना हो या सुनंदा-
दुिवधा और दु ंता अनुपम या समर क
माता- िपता को वीकार न पाने क, िकसी क
साथ शेयर न करने क, सास- ससुर क
उरदाियव तथा पारवारक झंझट से दूर
रहने क ह, आम क ण क ह।
कोई डढ़ साल से समर से तलाक़ क िलए
यनरत चालीस वषय सुनंदा आठ वषय
बेट िकयान क साथ िपछले पाँच वष से रह
रही ह। यानी दूसरी बड़ी समया संबंध
िवछद क मुहाने पर खड़ दपितय क ब
क तहस-नहस हो रही मन: थितय क ह,
उह सामाय जीवन न िमल पाने क ह। एक
तीसरी समया िलव-इन क बे क
सामािजक थित क ह- समान-अपमान
क, वैध-अवैध क लेबल क ह। िजससे
रयाना जूझ रही ह। न यह ह िक अपने पाँव
पर खड़ी अथ वतं, वावलंबी ी कह
अपने ही पाँव पर क हाड़ी तो नह चला
रही?
ऐ छक जीवन और वैय क चुनाव क
बावजूद बत सी समयाएँ ह। उवगय
आई. ए. एस. िपता क बेटी रजुल, िभ?
पारवारक, सामािजक परवेश क दुिवधा
िलए ह। इसीिलए रजुल क शादी समवय से
और मेल क रजनी से होती ह। रोिमल और
सोमी संतान सुख से वंिचत ह। समर सुनंदा
बेट क बावजूद तलाक़ क तीा म ह। वष
िलव म रहने क बाद अनुपम और गभवती
रयाना िववाह तो करना चाहते ह, पर दोन क
अपनी-अपनी शत ह, अह िबंदु ह। सब क
अपने अपने क े ह। देखना ह िक कौन,
कौन सा राता चुनता ह।
यहाँ िलव-इन और तलाक़ क पेचीदिगयाँ
एक साथ विणत ह। एकला चलो र क भावना
बल ह। असंतुलन कछ ऐसा ह िक परवार,
संकार, संकित, समाज सब भरभरा कर
िगर रह ह।
उपयास आज क पीढ़ी क िदल और
िदमाग़ क बीच चल रह िववाह और िलव -
इन क धमासान को लेकर ह। पता ही नह चल
रहा िक कौन सा पलड़ा भारी ह। िलव-इन को
न समानीय से देखा जाता ह, न समाज
इसक वीकित देता ह। उ िशित,
आमिनभर, अिधकार सजग ी िववाह जैसी
सुरा तो चाहती ह, परतु उरदाियव नह।
न बे क थित का भी ह- वैध, अवैध ?
तलाक़ से पहले, तलाक़ क बाद ? िववाह
आया मक, भावनामक, पारवारक,
सामािजक उपादेयता और दबाव क कारण
ताउ िनभाया जाता ह- भयु िबना होय न ीत।
स?पदी क सात वचन म ब। जबिक िलव-
इन म रते का अथायीपन ह। नह बनती तो
अलग हो जाते ह-
"यार एक ?शनुमा बादल ह और िववाह
एक िज़मेवारी। शारीरक संबंध क िलए एक
?बसूरत िलबासs मन का बंधन पारदश नह
हो पाता।"
िकयान क मायम से लेिखका ने बाल
मनोिवान/ मन: थितय को रखांिकत
िकया ह। तलाक़ क इछक माँ ने उसक
बाल सुलभ चंचलता छीन उसे मूक बना िदया
ह।
समाज का एक और प भी ह। लेिखका
कहती ह िक पहाड़ी लड़िकयाँ सुंदर, मेहनती
और िहमत वाली होती ह। गीता हो, उिमला
हो, सुभा हो या रजनी। परवार क रीढ़ होती
ह।
कछ ऐितहािसक और आज क तय भी
आए ह, जैसे देहरादून का नाम पहले ोणनगर
था। बैजनाथ का पुराना नाम वैनाथ ह।
रानीखेत क खोज राजा सुखरदेव क पनी
रानी प नी ारा क गई थी। िटहरी बाँध क
िनमाण क फलवप पुरानी िटहरी जलमन
हो गई। वहाँ 40 िकलोमीटर लंबी एक किम
झील का िनमाण िकया गया। अलकनंदा व
भागीरथी निदयाँ िटहरी म देवयाग म
िमलकर गंगा का िनमाण करती ह। गंगा क
मुख सहयोगी नदी भगीरथी व दूसरी
िभलंगना ह। िटहरी बाँध िव क पाँच बड़
बाँध म शािमल ह।
अथ वतं ी अपने उरदाियव क
ित सजग ह। माँ बाप क नह होने पर
िववाहोपरांत भी छोटी बहन क पढ़ाई का भार
वहन करने का सोमी का िनणय सश? ी
क ओर संकत करता ह।
दांपय क दो िच ह- सुनंदा को शादी से
पहले हर जगह पेस देने वाला पु?ष पित क
िफर वही टीन, वही ऑिफस, वही सड़क,
वही भीड़-भाड़ और वही काम...। कभी-
कभी तो सब कछ बोरग लगने लगता ह।"
(पृ 77)
"अनुपम भी शादी नह करना चाह रहा ह
ममी...। दरअसल हम दोन ही िववाह म
िवशवास नह रखते। या िमलता ह िववाह
करक " आपस म यार और परवाह होगी तो
िबना िववाह क भी रह लगे।" रयाना ने अपना
तक पेश िकया। (पृ 145)
"तुम समझ सकते हो रोिमल यह िकतना
मु कल िडसीज़न ह। भले ही आज ब? और
पनी क तवीर बदल गई ह िकतु एक माँ
क तवीर नह बदली। जम भी उसे ही देना
ह, पालन-पोषण भी उसे ही करना ह। अपनी
नौकरी को ितलांजिल देनी पड़ती ह सो
अलग। अपनी आिथक आमिनभरता भी पित
क पास िगरवी रख दो। खच पर िनयंण
रखो। हर वत खच क िलए हाथ फलाना
मुझसे सहन नह होगा।" सोमी झुँझला कर
बोली। (पृ 158)
उराखंड क मुख यटन थल क
ाकितक छटा और सांकितक िवरासत ने
इस उपयास म चार चाँद लगा िदए ह।
देहरादून कभी िशा का उवल दीप था,
जहाँ देश-िवदेश से छा ान क योित लेने
आते थे। पर अब वही संथान धीर-धीर अपनी
चमक खोकर सफ़द हाथी बन चुक ह। न
युवा को पहाड़ पर वरोज़गार िसखा पा
रह, न उह ितपध दुिनया म थािपत कर
पा रह ह। रोज़गार क कमी से पहाड़ ख़ाली हो
रह ह; गाँव वीरान होते जा रह ह। पर इन
किठनाइय क बावजूद पहाड़ क लोग आज
भी अपनी िमठास, सरलता और
मेहमाननवाज़ी से िदल जीत लेते ह। उनक
वभाव क यही सुंदरता और पहाड़ क कठोर
पर थितय से जूझने क िजजीिवषा उपयास
क प पर जीवंत हो उठती ह।
"मन क चौह पर बोनसाई" उपयास म
ारभ से अंत तक कथाकार सुधा जुगरान क
मनोवैािनक समझ क झलक िदखती ह।
उपयास क कथानक म मौिलकता और
वाभािवकता ह। भाषा सरल और सहज ह।
उपयास का वाह इतना मोहक और सुगिठत
ह िक बीच म छोड़ पाना असंभव-सा लगता
ह। हर अयाय क बाद अगला अयाय ऐसे
खुलता ह मानो िकसी जीवंत िफम का
अगला य हो और पाठक उसक कथा-
धारा म इस क़दर बँध जाता ह िक आिख़री
प?ा पढ़ िबना चैन नह पाता। कथाकार ने
पा क मनोिवान को भली-भाँित िनिपत
िकया ह और साथ ही उनक वभाव को भी
पाियत िकया ह। लेिखका ने इस उपयास म
एक बड़ पारवारक-सामािजक फलक पर
िचंतन िकया ह। लेिखका ने नई पीढ़ी क बीच
आए वैचारक परवतन को रखांिकत िकया
ह। आज क समय म समाज और परवार म
कई तरह क भौितक सुख-सुिवधा क
??? क िलए युवा पीढ़ी िसफ़ मशीन बन
चुक ह, इससे परवार और समाज का ताना-
बाना िछ?-िभ? हो चुका ह। य ने घर से
बाहर िनकलकर आमिनभरता हािसल क ह
और परवार क आिथक थित को मज़बूत
िकया ह लेिकन इसक वजह से पारवारक
िज़मेदारय का बोझ सवाल खड़ कर रहा ह
और दापय जीवन म खटास बढ़ती जा रही
ह। येक पा अपने-अपने चर का िनमाण
वयं करता ह। उपयास म लेिखका क
मौिलकता क दशन होते ह। लेखन म िकसी
तरह क किमता नह ह। इस उपयास को
पढ़ते ए एक िज़मेदार लेिखका क
सामािजक सरोकार प होते ह। सुधा
जुगरान ने इस पुतक म अंेज़ी शद का
बत अिधक योग िकया ह। पुतक म टकण
क कछ ुिटयाँ भी ह। सुधा जुगरान क इस
उपयास का वागत तथा शुभकामनाएँ
भिवय म वे िन त प से इस िवधा म
अपनी िविश पहचान बनाने म कामयाब
हगी।
000
पीिढ़य क अंतराल पर बात
डॉ. मधु संधु
सुधा जुगरान िवगत तीन दशक से कथा
सािहय को समृ कर रही ह। 'मन क
चौह पर बोनसाई' सुधा जुगरान का 2025
म 'िशवना काशन', मयदेश से कािशत
दूसरा उपयास ह। उनका थम उपयास
'मन वनी' 2022 म कािशत आ था। आठ
कहानी संह और एक समीा पुतक क
अितर अनेक साँझा संकलन म उनक
रचनाएँ संकिलत ह।
'मन क चौह पर बोनसाई' यानी
उपयास चौह सा वैिवय और बदलते
समय ारा हो रही रत क अयाधुिनक
बोनसाई सी काँट- छाँट क टीस, सीमाएँ और
सदय म िलए ह। 'दो शद' म सुधा जुगरान
पीिढ़य क अंतराल पर बात करती कहती ह,
"जो गैप अभी तक िवचार, िशा व
वेशभूषा तक सीिमत था वह अंतराल अब
पारवारक ढाँचे से लेकर, सामािजक चेतना,
ी- पु?ष समानता क बात करता आ ी-
पु?ष क रत को लेकर संतुिलत होता आ,
अब असंतुिलत आ जा रहा ह।"
संयु? परवार का टटना और पारवारक
स?ावना तो अतीत क बात ह, उपयास टट
और िबखर रह एकल परवार क समया
िलए ह। िववाह हो जाए तो िनभाने क इछा
समा हो रही ह, सब रग िबखर से जाते ह
और बा हो जाए तो उसे पालने- दुलारने का
चाव नह ह। यहाँ चार युवा युगल ह- सुनंदा
और समर, रोिमल और सोमी, मेल और
रजुल तथा अनुपम और रयाना। रयाना और
सुनंदा ने इजीिनयरग और एम. बी. ए. िकया
आ ह। रजुल भी एम. बी. ए. ह। मेल आई
आई टी कानपुर और आई आई एम
अहमदाबाद से पढ़ा आ ह। रोिमल क पास
मास कयूिनकशन क िडी ह। सोमी कॉलेज
ले?रार और रोिमल टी. वी. चैनल म मैनेजर
ह। रजुल मुंबई से ह, रयाना चंडीगढ़ से,
सुनंदा फरीदाबाद से, सोमी देहरादून से। मेल
गढ़वाल क िकसी गाँव का ह, समर पूने से,
अनुपम गुड़गाँव से, रोिमल जयपुर से। सभी
भारी भरकम पैकज क साथ भारत क
वािण यक क और अयाधुिनक नगर मुंबई
म रह रह ह।
यहाँ न कोई षोडसी या मुधा नाियका ह
और न धीर पु?षs सभी युवा अपने ही िवचार-
भाव क मािलक ह, सभी क पास अछी
नौकरी, सुरित उवल भिवय, मनचाह

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 202533 32 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 2025
चाहता था परतु दोन क मय क सामािजक-
आिथक थित का िवराट अंतर उसे रजुल क
िनकट आने से रोकता था'।
'सोमी एक कॉलेज म पढ़ाती थी और
मास-कयूिनकशन क िडी लेकर रोिमल
एक टीवी चैनल म अिसटट मैनेजर था। दोन
एक-दूसर से ेम करते थे और उहोन िववाह
भी कर िलया था'।
इन आठ सुढ कध पर ही ठहरा आ ह
हरा-भरा बोनसाई। "आठ युवा महगी कार म
बैठ या कार ाइव करते ए अपने-अपने
ख़याल म उलझे ए थे। नौकरी म सभी
संतोषजनक ओहद पर थे, भिवय उवल
था। िफर भी य लगता ह कभी-कभी िक
पानी क ठहरने क शु?आत हो गई या बह भी
रहा ह तो बस एक ही धारा म..।" पृ.16
रयाना और अनुपम का 'िववाह जैसी
संथा पर वतमान पीढ़ी क अिधकतर युवा
क तरह यकन नह था'। आज क युवा पीढ़ी
क एक समया और भी ह... वह इतनी
आमकित हो गई ह िक उनको अपने ही
माता-िपता का असमय फ़ोन आना और
कभी-कभी उनक पास आना, वीकार नह
ह। अपनी य गत िदनचया वे िकसी क
साथ भी साझा करने को तैयार नह ह। अनुपम
क माँ बीमार ई, िपता उनको लेकर मुंबई
आना चाहते ह परतु रयाना उनका आना
बदा त नह कर पा रही। िकक यिवमूढ़
अनुपम िनणय नह कर पा रहा ह िक िपता को
नाराज़ कर या रयाना को।
भारत म परवार का ढाँचा इसी कार बना
आ ह िक बे का बचपन िपता और माता
क संरण म बीतता ह और बड़ हो जाने पर
माता-िपता वाभािवक प से यह अपना
अिधकार समझते ह िक बे अब उनक
देखभाल कर। िलव-इन-रलेशन म रहने
वाली रयाना चालीस वष क उ म चौथी
बार गभवती होती ह। इस बार अबॉशन न
करवा कर वह बे को जम देना चाहती ह।
लेिकन अनुपम क नज़र म वह अवैध संतान
ह और वह उसे जम नह देना चाहता।
आई ए एस अफ़सर क इकलौती बेटी
रजुल 'मेल क िलए कोमल भाव होते ए भी
ेम को कभी वीकार नह कर पाई'। ट सी
ाइवर क बेट मेल को उसक माता-िपता भी
कभी वीकार नह कर पाते। रजुल का
िववाह अय माता-िपता क इछानुसार हो
जाता ह। चार सहिलयाँ यह जानते ए भी िक
रजुल मन ही मन मेल से ेम करती ह कछ
नह कर पाती ह।
लेिखका ने यहाँ पर िववाह-समाज और
ेम पर महवपूण िवचार य िकए ह। जो
िवचारणीय ह, "चार लड़िकयाँ थोड़ी देर क
िलए चुपचाप बैठी रह ग। चार क सोच
अपनी-अपनी जगह पर तक-िवतक क कई
परत खोल रही थी। ेम नैसिगक सय ह और
िववाह एक सामािजक व पारवारक बंधंन।
यार एक ?शनुमा बादल ह और िववाह एक
िज़मेदारी। शारीरक संबंध क िलए एक
?बसूरत िलबासs मन का बंधन पारदश नह
हो पाता। ेम क आइने म वही िदखता ह जो
हम देखना चाहते ह। उसक अपनी दुिनया ह
जो बेहद मायावी और ितलमी होती ह। सच
तो यह ह िक उसे िकसी बंधन क
आवयकता ही नह ह और न ही उसे कोई
बंधन बाँध सकता ह। ेम फ़कत ेम से बँधा
ह। यह अपने साथ ही रहता ह, जीता ह, साँस
लेता ह और अपनी मौत मर जाता ह।" पृ.46
"िववाह क साथ स?पदी का बंधन ह।
िजसम पूरी दुिनया बसी ह। उन सात बचन म
कछ भी नह छटता। इन सात ार को पार
करक यागना आसान नह ह, न पु?ष क
िलए और न ी क िलए। जो लाँघ भी जाते
ह, उनक सोच हर वत उह दरवाज क
देहरय क आसपास मँडरा कर अछा बुरा
ढ ढ़ा करती ह। जब तक ढ ढ़ना बंद करते ह
तक उ कई दशक पार छलाँग लगा जाती ह।
चार युवितयाँ अपनी-अपनी सोच म उलझी
थी"। पृ.47
उपयास क मय म यह वतय चकाता
भी ह और आ त भी करता ह िक उपयास
क कथा और चर एक ही िदशा म बढ़ रह
ह- 'य , वातंय और समाज' क देहरी।
जहाँ आकर सब ?क गएs
लेिखका वंय पहाड़ी पृभूिम क ह,
इसिलए मेल का चर उराखंड से िलया
गया ह। िजसका िववाह माता-िपता क पसंद
क पहाड़ी युवती रजनी से होती ह। उराखंड
क ाकितक वैभव का वणन उपयास क
एक अय िवशेषता ह। मेल का िववाह
पारवारक वीकित से आ। लेिखका ने
रजनी क य व का िचण दिच होकर
िकया ह मानो अपनी भी वीकित उसक ओर
भेज रही ह, "रजनी ने घर म वेश िकया, पूर
घर म एक चहल-पहल, िखलिखलाट,
सरसराहट सी छा गई। घर क िफ़ज़ा म
उसका मनोहर वजूद िबखर कर महक गया
था। इधर से उधर से उसका वर सुनाई दे रहा
था। कभी कक को कछ समझा रही थी, कभी
ैस जो ख़रीद कर लाई थी, उह उनक
सामने लगा रही थी....। पृ.122
अनुपम िव मत सा रजनी क उप थित
को महसूस कर रहा था....। रजनी क
य व म रयाना, सुनंदा व रजुल जैसा
अिभजाय नह था, उसम एक पृथक तरह क
िनछलता थी जो िबरली लड़िकय म पाई
जाती ह।" पृ.123
मेल और रजनी क ठीक िवपरीत
अनुपम और रयाना ऐसी युवा जोड़ी ह जो
संभवत: यार तो परपर करते ह परतु रयाना
िववाह नह करना चाहती ह। दोन क माता-
िपता को उनक संबंध का पता चल चुका था
और वे दोन क ेम को वीकार भी कर चुक
थे। परतु वे दोन िलव-इन म रहना चाहते थे
जो दोन क माता-िपता को वीकाय नह था।
माँ समझाती ह, "कछ बात म तक काम नह
करते रयाना! सामािजक मायताएँ ह ये,
हजार वष पूव वैिदक काल म असय व
िबखर समाज को सयता म बाँधने क िलए
िववाह व परवार संथा क नीव जब पड़ी
होगी, तब यह एक मनभावन कदम रहा होगा।
परतु आज तुहारी पीढ़ी िफर उसी राते पर
मुड़ रही ह " िफर असयता का वरण कर रही
ह... य?" पृ.148
सोमी-रोिमल क िववाह को लगभग छह
साल बीत चुक थे। वैवािहक जीवन व नौकरी
म सब कछ ठीक-ठाक था। सोमी-रोिमल को
दोन तरफ क परवारजन, परवार बढ़ाने क
िलए बोलते रह गए लेिकन सोमी यान ही नह
प म मािलक बन जाता ह। जबिक सुनंदा
सोचती ह- समझौते या सामंजय उसक
शदकोश म नह ह। जबिक सोमी और
रोिमल क अवधारनाएँ इसक िवपरीत ह और
गृहथ सुखद ह।
एक सूामकता उपयास क िवचार प
को पु कर रही ह। जैसे -
1.अंधकार भी या बला ह, सामने फला
हो तो सुक?न देता ह, ठडक देता ह और दय
म हो तो उदासी और नकारामक भाव से
सराबोर कर देता ह।
2.ेमािधकार कोई बोलकर लेने क वतु
नह। यह वह मनमोहक बादल ह जो एक
दय से उड़कर दूसर दय तक प च ही जाता
ह, अनेक ब दश क बावजूद।
3.वैवािहक जीवन क समीकरण का कभी
एक िन त सू नह होता।
4.रते न पैसे से बनते ह और न अपनी
मज से बनते ह। रते तो एक-दूसर क
िवास से बनते ह, अहसास से बनाते ह।
5.अधूरा ेम ही ेम को अमर रखता ह,
िमलन पर यह समा? हो जाता ह।
6.जहाँ पर भी मानव जाित क नैसिगक
आवयकता क पूित कित करती नज़र
आई, मानव वह बस गया। मानव का िवकास
आ और कित अपने िवनाश क ओर
असर ई।
7.इसान कभी िदल क हाथ मजबूर होता
ह, कभी िदमाग़ क। कभी परवार उसे मोहरा
बनाता ह और कभी समाज।
8.जीवन नह चुकता.... समय नह
बीतता.....। चुक तो मनुय जाता ह। बीत तो
जीवन जाता ह।
उपयास आज क महानागरीय भारत का
पर य िलए ह। जहाँ िभ?िलंगी मैी, ेम
और िलव-इन- सब मौज मती का पयाय न
होकर एक संाितकाल का उ?ोष कर रह
ह। सब क अपने अपने क े ह। देखना ह
िक कौन कौन सा राता चुनता ह। चार युगल
परफ शन क खोज म ह। उपयास खुला
अंत िलए ह। अनेक दोराह- चौराह ह। ढर
समयाएँ ह।
संदभ- 1 सुधा जुगरान, मन क चौह
पर बोनसाई, िशवना, एम. पी., 2025, दो
शद, पृ 4, 2 वही, पृ 47, 3 वही, पृ
58, 4 वही, पृ 77, 5 वही, पृ 87, 6
वही, पृ 100, 7 वही, पृ 215, 8 वही,
पृ 216, 9 वही, पृ 227, 10 वही, पृ
232
000
युवा मन क उलझन
डॉ. सिवता मोहन
वतमान म य पर आधारत वही
कलामक उपल धयाँ याद क जाएँगी िजनम
ी क भीतर अंतिनिहत िमथकय मता
को सबसे अिधक गहराई और सू?मता से
आमसा िकया गया हो। रचनामक उेग
वह ह जो रचनाकार क भीतर क उन श य
का िवतार करता ह जो उसे नायक बना देता
ह। वातव म िकसी कलाक?ित क सव म
ण म भावना का संवेग और ताप ही
'संवेदना' बन कर रचना को कालजयी बनाता
ह। गोदान म धिनया क 'गाय पाने क आस'
शेखर एक जीवनी क शिश का 'शेखर से
उलझा आ सा ेम' और उसने कहा था म
'तेरी कड़मायी हो गई' लहना िसंह क मृित
ही वे ण ह जब मनुय अपनी सीमा का
अितमण कर सय को पहचान लेता ह। ऐसे
ही िकसी ण म सुधा जुगरान ने अपने भीतर
वयं और सृ क बीच अ?ुत अैत
भावना का अनुभव िकया होगा िजससे 'मन क
चौह पर बोनसाई' उग आई। पारवारक
संकार क टटन और पीड़ा ही संबंध क
बोनसाई बन जाने क कहानी ह।
सुधा जुगरान का उपयास 'मन क
चौह पर बोनसाई' आज क समाज क
?ब? कथा ह। उपयास का शीषक ही सार
कथा क मम को घोिषत कर देता ह। एक
िवशाल वृ को बोनसाई बना देना... कित-
ेिमय क कलामक ? ?? ह। बड़ी जाित
क वृ को रोप कर, उसक समय-समय पर
काँट-छाँट करना, िनयमानुसार कम खाद कम
पानी देना, िजससे वह बढ़ न पाए। यिद बढ़
भी तो तकाल उसक शाखा को काट देना,
मुय जड़ को काट देना, नए आए प
कपल को नोच लेना, इस कार एक मन
चाहा आकार देना... बोनसाई पनपाने क
कला ह। समाज म रहने वाला येक
य व युग क वृि होती ह। य व का
िवकास इस तरह होता ह जैसे उपजाऊ ज़मीन
पर वृ का िवकास होता ह। िजस पर मौसम
क परवतन कभी पतझड़ तो कभी बसंत लाते
ह। कभी फ?ल और कभी फल लगते ह। यह
वृ का जीवन मानव जीवन क समानांतर ह।
परतु इसी गितमान जीवन को ही अव कर
िदया जाए। जड़ क काँट-छाँट करते रह तो !
उपयास क मूल कथा फ रहने क
योय लता क इतराते ए बढ़ने क ह,
िजह संबल देने को उदांत नायक तपर ह।
परतु परशानी या ह! इसी न क गुथी को
सुलझाने क िलये कथानक बुना गया।
रचना िवयास- वन नगरी मुंबई म देश
क पृथक-पृथक राय क शहर से समान
ितभावान चार युवक और चार युवितयाँ
मटीनेशनल कपिनय म उ पद पर काय
करते ह। सभी परपर अिभ? िम भी ह।
थोड़ा-बत कमती-बढ़ती क साथ सभी क
पारवारक थित समान ह। कोई थोड़ा
अिधक आधुिनक... कोई थोड़ा कम खुले
िवचार वाले परवार से ह। जीवन क ित सभी
का िखलंदड़ वभाव ह... ?ब परम, ?ब
म त! 'सुनंदा लगभग 28-29 वषया
आधुिनक ख़याल से लबरज़ एक बत ही
चुत, फतली, इटिलजट, माट व ?बसूरत
लड़क थी... ठीक वैसी ही जैसी लड़क का
सपना आज का हर युवा देखता ह। युवा और
आकषक य व का वामी, समर ने जब
सुनंदा को देखा तो उसे अपना वन साकार
होता आ लगा। जैसी ी िम क उसने
कपना क थी, सुनंदा िबकल उसी क
अनुसार थी, ?ेही और आकषक'।
'रयाना आधुिनक, युवा ख़याल व ी
आज़ादी क पधर थी। अनुपम उसका पु?ष
िम था। रयाना उसी क साथ िलव-इन-
रलेशन म रहती थी। दोन एक ही कपनी म
अलग-अलग िवभाग म नौकरी करते थे।
मेल और रजुल एक-दूसर से यार तो करते
थे पर य नह कर पाते थे। आई आई टी
कानपुर से िशित मेल गव मुखी रजुल को

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 202533 32 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 2025
चाहता था परतु दोन क मय क सामािजक-
आिथक थित का िवराट अंतर उसे रजुल क
िनकट आने से रोकता था'।
'सोमी एक कॉलेज म पढ़ाती थी और
मास-कयूिनकशन क िडी लेकर रोिमल
एक टीवी चैनल म अिसटट मैनेजर था। दोन
एक-दूसर से ेम करते थे और उहोन िववाह
भी कर िलया था'।
इन आठ सुढ कध पर ही ठहरा आ ह
हरा-भरा बोनसाई। "आठ युवा महगी कार म
बैठ या कार ाइव करते ए अपने-अपने
ख़याल म उलझे ए थे। नौकरी म सभी
संतोषजनक ओहद पर थे, भिवय उवल
था। िफर भी य लगता ह कभी-कभी िक
पानी क ठहरने क शु?आत हो गई या बह भी
रहा ह तो बस एक ही धारा म..।" पृ.16
रयाना और अनुपम का 'िववाह जैसी
संथा पर वतमान पीढ़ी क अिधकतर युवा
क तरह यकन नह था'। आज क युवा पीढ़ी
क एक समया और भी ह... वह इतनी
आमकित हो गई ह िक उनको अपने ही
माता-िपता का असमय फ़ोन आना और
कभी-कभी उनक पास आना, वीकार नह
ह। अपनी य गत िदनचया वे िकसी क
साथ भी साझा करने को तैयार नह ह। अनुपम
क माँ बीमार ई, िपता उनको लेकर मुंबई
आना चाहते ह परतु रयाना उनका आना
बदा त नह कर पा रही। िकक यिवमूढ़
अनुपम िनणय नह कर पा रहा ह िक िपता को
नाराज़ कर या रयाना को।
भारत म परवार का ढाँचा इसी कार बना
आ ह िक बे का बचपन िपता और माता
क संरण म बीतता ह और बड़ हो जाने पर
माता-िपता वाभािवक प से यह अपना
अिधकार समझते ह िक बे अब उनक
देखभाल कर। िलव-इन-रलेशन म रहने
वाली रयाना चालीस वष क उ म चौथी
बार गभवती होती ह। इस बार अबॉशन न
करवा कर वह बे को जम देना चाहती ह।
लेिकन अनुपम क नज़र म वह अवैध संतान
ह और वह उसे जम नह देना चाहता।
आई ए एस अफ़सर क इकलौती बेटी
रजुल 'मेल क िलए कोमल भाव होते ए भी
ेम को कभी वीकार नह कर पाई'। ट सी
ाइवर क बेट मेल को उसक माता-िपता भी
कभी वीकार नह कर पाते। रजुल का
िववाह अय माता-िपता क इछानुसार हो
जाता ह। चार सहिलयाँ यह जानते ए भी िक
रजुल मन ही मन मेल से ेम करती ह कछ
नह कर पाती ह।
लेिखका ने यहाँ पर िववाह-समाज और
ेम पर महवपूण िवचार य िकए ह। जो
िवचारणीय ह, "चार लड़िकयाँ थोड़ी देर क
िलए चुपचाप बैठी रह ग। चार क सोच
अपनी-अपनी जगह पर तक-िवतक क कई
परत खोल रही थी। ेम नैसिगक सय ह और
िववाह एक सामािजक व पारवारक बंधंन।
यार एक ?शनुमा बादल ह और िववाह एक
िज़मेदारी। शारीरक संबंध क िलए एक
?बसूरत िलबासs मन का बंधन पारदश नह
हो पाता। ेम क आइने म वही िदखता ह जो
हम देखना चाहते ह। उसक अपनी दुिनया ह
जो बेहद मायावी और ितलमी होती ह। सच
तो यह ह िक उसे िकसी बंधन क
आवयकता ही नह ह और न ही उसे कोई
बंधन बाँध सकता ह। ेम फ़कत ेम से बँधा
ह। यह अपने साथ ही रहता ह, जीता ह, साँस
लेता ह और अपनी मौत मर जाता ह।" पृ.46
"िववाह क साथ स?पदी का बंधन ह।
िजसम पूरी दुिनया बसी ह। उन सात बचन म
कछ भी नह छटता। इन सात ार को पार
करक यागना आसान नह ह, न पु?ष क
िलए और न ी क िलए। जो लाँघ भी जाते
ह, उनक सोच हर वत उह दरवाज क
देहरय क आसपास मँडरा कर अछा बुरा
ढ ढ़ा करती ह। जब तक ढ ढ़ना बंद करते ह
तक उ कई दशक पार छलाँग लगा जाती ह।
चार युवितयाँ अपनी-अपनी सोच म उलझी
थी"। पृ.47
उपयास क मय म यह वतय चकाता
भी ह और आ त भी करता ह िक उपयास
क कथा और चर एक ही िदशा म बढ़ रह
ह- 'य , वातंय और समाज' क देहरी।
जहाँ आकर सब ?क गएs
लेिखका वंय पहाड़ी पृभूिम क ह,
इसिलए मेल का चर उराखंड से िलया
गया ह। िजसका िववाह माता-िपता क पसंद
क पहाड़ी युवती रजनी से होती ह। उराखंड
क ाकितक वैभव का वणन उपयास क
एक अय िवशेषता ह। मेल का िववाह
पारवारक वीकित से आ। लेिखका ने
रजनी क य व का िचण दिच होकर
िकया ह मानो अपनी भी वीकित उसक ओर
भेज रही ह, "रजनी ने घर म वेश िकया, पूर
घर म एक चहल-पहल, िखलिखलाट,
सरसराहट सी छा गई। घर क िफ़ज़ा म
उसका मनोहर वजूद िबखर कर महक गया
था। इधर से उधर से उसका वर सुनाई दे रहा
था। कभी कक को कछ समझा रही थी, कभी
ैस जो ख़रीद कर लाई थी, उह उनक
सामने लगा रही थी....। पृ.122
अनुपम िव मत सा रजनी क उप थित
को महसूस कर रहा था....। रजनी क
य व म रयाना, सुनंदा व रजुल जैसा
अिभजाय नह था, उसम एक पृथक तरह क
िनछलता थी जो िबरली लड़िकय म पाई
जाती ह।" पृ.123
मेल और रजनी क ठीक िवपरीत
अनुपम और रयाना ऐसी युवा जोड़ी ह जो
संभवत: यार तो परपर करते ह परतु रयाना
िववाह नह करना चाहती ह। दोन क माता-
िपता को उनक संबंध का पता चल चुका था
और वे दोन क ेम को वीकार भी कर चुक
थे। परतु वे दोन िलव-इन म रहना चाहते थे
जो दोन क माता-िपता को वीकाय नह था।
माँ समझाती ह, "कछ बात म तक काम नह
करते रयाना! सामािजक मायताएँ ह ये,
हजार वष पूव वैिदक काल म असय व
िबखर समाज को सयता म बाँधने क िलए
िववाह व परवार संथा क नीव जब पड़ी
होगी, तब यह एक मनभावन कदम रहा होगा।
परतु आज तुहारी पीढ़ी िफर उसी राते पर
मुड़ रही ह " िफर असयता का वरण कर रही
ह... य?" पृ.148
सोमी-रोिमल क िववाह को लगभग छह
साल बीत चुक थे। वैवािहक जीवन व नौकरी
म सब कछ ठीक-ठाक था। सोमी-रोिमल को
दोन तरफ क परवारजन, परवार बढ़ाने क
िलए बोलते रह गए लेिकन सोमी यान ही नह
प म मािलक बन जाता ह। जबिक सुनंदा
सोचती ह- समझौते या सामंजय उसक
शदकोश म नह ह। जबिक सोमी और
रोिमल क अवधारनाएँ इसक िवपरीत ह और
गृहथ सुखद ह।
एक सूामकता उपयास क िवचार प
को पु कर रही ह। जैसे -
1.अंधकार भी या बला ह, सामने फला
हो तो सुक?न देता ह, ठडक देता ह और दय
म हो तो उदासी और नकारामक भाव से
सराबोर कर देता ह।
2.ेमािधकार कोई बोलकर लेने क वतु
नह। यह वह मनमोहक बादल ह जो एक
दय से उड़कर दूसर दय तक प च ही जाता
ह, अनेक ब दश क बावजूद।
3.वैवािहक जीवन क समीकरण का कभी
एक िन त सू नह होता।
4.रते न पैसे से बनते ह और न अपनी
मज से बनते ह। रते तो एक-दूसर क
िवास से बनते ह, अहसास से बनाते ह।
5.अधूरा ेम ही ेम को अमर रखता ह,
िमलन पर यह समा? हो जाता ह।
6.जहाँ पर भी मानव जाित क नैसिगक
आवयकता क पूित कित करती नज़र
आई, मानव वह बस गया। मानव का िवकास
आ और कित अपने िवनाश क ओर
असर ई।
7.इसान कभी िदल क हाथ मजबूर होता
ह, कभी िदमाग़ क। कभी परवार उसे मोहरा
बनाता ह और कभी समाज।
8.जीवन नह चुकता.... समय नह
बीतता.....। चुक तो मनुय जाता ह। बीत तो
जीवन जाता ह।
उपयास आज क महानागरीय भारत का
पर य िलए ह। जहाँ िभ?िलंगी मैी, ेम
और िलव-इन- सब मौज मती का पयाय न
होकर एक संाितकाल का उ?ोष कर रह
ह। सब क अपने अपने क े ह। देखना ह
िक कौन कौन सा राता चुनता ह। चार युगल
परफ शन क खोज म ह। उपयास खुला
अंत िलए ह। अनेक दोराह- चौराह ह। ढर
समयाएँ ह।
संदभ- 1 सुधा जुगरान, मन क चौह
पर बोनसाई, िशवना, एम. पी., 2025, दो
शद, पृ 4, 2 वही, पृ 47, 3 वही, पृ
58, 4 वही, पृ 77, 5 वही, पृ 87, 6
वही, पृ 100, 7 वही, पृ 215, 8 वही,
पृ 216, 9 वही, पृ 227, 10 वही, पृ
232
000
युवा मन क उलझन
डॉ. सिवता मोहन
वतमान म य पर आधारत वही
कलामक उपल धयाँ याद क जाएँगी िजनम
ी क भीतर अंतिनिहत िमथकय मता
को सबसे अिधक गहराई और सू?मता से
आमसा िकया गया हो। रचनामक उेग
वह ह जो रचनाकार क भीतर क उन श य
का िवतार करता ह जो उसे नायक बना देता
ह। वातव म िकसी कलाक?ित क सव म
ण म भावना का संवेग और ताप ही
'संवेदना' बन कर रचना को कालजयी बनाता
ह। गोदान म धिनया क 'गाय पाने क आस'
शेखर एक जीवनी क शिश का 'शेखर से
उलझा आ सा ेम' और उसने कहा था म
'तेरी कड़मायी हो गई' लहना िसंह क मृित
ही वे ण ह जब मनुय अपनी सीमा का
अितमण कर सय को पहचान लेता ह। ऐसे
ही िकसी ण म सुधा जुगरान ने अपने भीतर
वयं और सृ क बीच अ?ुत अैत
भावना का अनुभव िकया होगा िजससे 'मन क
चौह पर बोनसाई' उग आई। पारवारक
संकार क टटन और पीड़ा ही संबंध क
बोनसाई बन जाने क कहानी ह।
सुधा जुगरान का उपयास 'मन क
चौह पर बोनसाई' आज क समाज क
?ब? कथा ह। उपयास का शीषक ही सार
कथा क मम को घोिषत कर देता ह। एक
िवशाल वृ को बोनसाई बना देना... कित-
ेिमय क कलामक ? ?? ह। बड़ी जाित
क वृ को रोप कर, उसक समय-समय पर
काँट-छाँट करना, िनयमानुसार कम खाद कम
पानी देना, िजससे वह बढ़ न पाए। यिद बढ़
भी तो तकाल उसक शाखा को काट देना,
मुय जड़ को काट देना, नए आए प
कपल को नोच लेना, इस कार एक मन
चाहा आकार देना... बोनसाई पनपाने क
कला ह। समाज म रहने वाला येक
य व युग क वृि होती ह। य व का
िवकास इस तरह होता ह जैसे उपजाऊ ज़मीन
पर वृ का िवकास होता ह। िजस पर मौसम
क परवतन कभी पतझड़ तो कभी बसंत लाते
ह। कभी फ?ल और कभी फल लगते ह। यह
वृ का जीवन मानव जीवन क समानांतर ह।
परतु इसी गितमान जीवन को ही अव कर
िदया जाए। जड़ क काँट-छाँट करते रह तो !
उपयास क मूल कथा फ रहने क
योय लता क इतराते ए बढ़ने क ह,
िजह संबल देने को उदांत नायक तपर ह।
परतु परशानी या ह! इसी न क गुथी को
सुलझाने क िलये कथानक बुना गया।
रचना िवयास- वन नगरी मुंबई म देश
क पृथक-पृथक राय क शहर से समान
ितभावान चार युवक और चार युवितयाँ
मटीनेशनल कपिनय म उ पद पर काय
करते ह। सभी परपर अिभ? िम भी ह।
थोड़ा-बत कमती-बढ़ती क साथ सभी क
पारवारक थित समान ह। कोई थोड़ा
अिधक आधुिनक... कोई थोड़ा कम खुले
िवचार वाले परवार से ह। जीवन क ित सभी
का िखलंदड़ वभाव ह... ?ब परम, ?ब
म त! 'सुनंदा लगभग 28-29 वषया
आधुिनक ख़याल से लबरज़ एक बत ही
चुत, फतली, इटिलजट, माट व ?बसूरत
लड़क थी... ठीक वैसी ही जैसी लड़क का
सपना आज का हर युवा देखता ह। युवा और
आकषक य व का वामी, समर ने जब
सुनंदा को देखा तो उसे अपना वन साकार
होता आ लगा। जैसी ी िम क उसने
कपना क थी, सुनंदा िबकल उसी क
अनुसार थी, ?ेही और आकषक'।
'रयाना आधुिनक, युवा ख़याल व ी
आज़ादी क पधर थी। अनुपम उसका पु?ष
िम था। रयाना उसी क साथ िलव-इन-
रलेशन म रहती थी। दोन एक ही कपनी म
अलग-अलग िवभाग म नौकरी करते थे।
मेल और रजुल एक-दूसर से यार तो करते
थे पर य नह कर पाते थे। आई आई टी
कानपुर से िशित मेल गव मुखी रजुल को

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 202535 34 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 2025
जाते। उन चार कपस म से तीन ने जैसे भी
सही अंतत: िववाह का ही िनणय िलया।
िववाह क बार म अछा नज़रया न रखने क
बावजूद भी अपनी जड़ क संकार से तो
जुड़ ही थे। िपछली पीढ़ी क लड़िकयाँ,
प नयाँ, बएँ आिद सभी परपरागत रत से
बँधी रह। मिहला क िलए तब बत
अिधक िवकप मौजूद नह थे समाज म
जीवन-यापन करने क िलए....। िफर वे दोन
तो उस राह क राही बन रह ह जो अभी तक
समाज म वीकाय तो आ ह पर एक मजबूरी
क तहत..., अभी भी िलव-इन-रलेशन
अथवा सहजीवन क धारणा कॉलोनी क
अंितम टट-फट मकान जैसी ह" पृ.106
ख- "इतज़ार तो िकया जा सकता ह...
लेिकन य इतज़ार करना ह " तुहारा जॉब
करना भी मुझे पसंद नह ह तो िफर या
िमलेगा इस बे को एबोट करक...।
बे क िलए एक माँ का मन से तैयार
होना तुह ज़री नह लगता समवय? कम
से कम हम दो साल तो ?क ही सकते ह।
हमारी शादी को अभी मु कल से चार महीने
ही ए ह। अभी म बेबी लान करने क मूड म
नह ।
बेबी या िसफ़ तुहारा ही ह, जो तुहार
मूड क एकॉिडग होगा?" पृ.133
ग- " ी क आमिनभरता िववाह व
जनन क िव ढपली बजा रही ह तो या
ी आिथक आमिनभरता छोड़ दे? अबला
क खोल से बमु कल बाहर िनकली नारी
वापस उसी खोल म िसमट जाए। दरअसल
जनन मा, एक ी, परवार, समाज क ही
समया नह ह। आने वाले संकट को देखते
ए यह देश क व दुिनया क समया ह। इस
बात को तमाम मानव सयता को वीकार
करना ही पड़गा िक जनन यिक ी ही
कर इसिलए उसक लायक माहौल, ी-
पु?ष सामंजय, आिथक सहायता उसे
उपलध करवाई जानी चािहए। एक माँ को
नौकरी छोड़ कर बे को पालना सज़ा म नह
लगना चािहए।"159-160
घ- वतमान पर य म देख तो लगभग
युवावग सहायक व सहाियका क ऊपर
िनभर हो गए ह। एक तरह से गृहथी वही
चला रह ह। िकतु अगर वे कछ नह सँभाल
सकते ह तो वे ह रते..। सामािजक ढाँचा
चरमरा सा गया ह।" पृ.183
इह समया से ब कराने का
उपम ह यह उपयास। इस से
उपयास का िवेषण कर तो यह एक
समया धान, िवेषणामक उपयास ह।
कशा लेिखका ने समया को िवेिषत
करने क साथ-साथ अपरो प से समाधान
क राह सुझाने का भी सफल यास िकया ह।
आठ युगल अपने-अपने जीवन का माग पा
लेते ह। कभी मजबूरी म कभी यन करते
ए।
सुधा जी का यह सामािजक उपयास
आधुिनक उपयास जग म अपना महवपूण
थान िनधा रत कर चुका ह। सामािजक
उपयास क भाषा भी सामािजक ही होती ह।
प और सरल। लेिखका ने येक चर
क अनुप भाषा का योग िकया ह। यहाँ यह
प कर देना आवयक ह, इस उपयास क
ाय: सभी मुख पा एक समान िशा,
जीवन तर और मन: थित क ह। अत:
लेिखका को उनक भाषा क िलए अितर
परम क आवयकता नह पड़ी। लेिखका
का यान चर-िचण से अिधक समया
का िवेषण करना और तदनुप राह
िनधा रत करना था। अत: भाषायी िविवधता,
अलंकार, िबंब, चमकार अथवा आडबर
यु? बनावटी भाषा का योग लेश मा भी
नह आ ह। आम जीवन म जैसी भाषा का
योग होता ह, वही, वैसी ही बोधगय भाषा
का योग आ ह। ढ़ शद म कहा जा
सकता ह िक यही भाषाई पता उपयास
क महवपूण उपल ध ह और सफलता क
भूिम ह।
उपयास क लेिखका ने नाकलता क
शैली, संबोधन शैली और िवरोध क एंटी
थीिसस शैली का योग करक अपने भाषाई
ान, शद भंडार और कथन शैिलय क
चतुराई का भी परचय िदया ह। सुधा जी िहदी
सािहय क सफल लेिखका ह। इस उपयास
क सफलता इस कथन क मािणकता
घोिषत करती ह। जैसा िक पूव म भी िलख
चुक िक उपयास क घटनाएँ पूरी सघनता
क साथ पाठक क सामने आती ह तो पाठक
अिभभूत हो जाता ह। कथानक कपना सूत
नह समाज सापे ह। यह भी उपयास का
भाव व सफलता ह। अिभय कौशल,
उेय क पता, कथानक को
बआयामी बना रहा ह। पा 'ेम' क िविभ?
प को दशाते ह। आपसी असामंजय क
वातावरण म रहने वाले पा पर भी पाठक
क सहानुभूित घटती नह ह। लेिखका ने कथा
को वतं प से बढ़ने िदया ह। यह अवय
ह िक लेिखका ने लंबे-लंबे वतय भी
कथानक क मय म थान-थान पर िदए ह,
परतु इनसे कथाम उलझा नह ह, अिपतु
पाठक को समया और पा क सोच को
समझने म सहायता ही िमलती ह। उपयास क
कछ थान पर जैसे- नारी जागरण क संदभ म
रचनाकार का य व पा पर हावी हो
जाता ह िफर भी कथानक क िवकास म कोई
?कावट नह आती। सफलता ही िमलती ह।
उपयास क सभी उपकरण- कथानक,
चर, कथोपकथन, शैली, भाषा आिद
यथाथान सुषोिभत ह और उपयास को
सश? और उक होने म सहयोगी ह।
लेिखका सुधा जुगरान को भाषा क श य
से, शद क िनसीमता से लेखन आता ह।
शद से अथ और अथ से अनेक अथ बना
लेने का कौशल ह लेिखका क पास।
अपने लेखन म सुधा जी िनरतर अपने
िशप म उरोर बदलाव करती आ रही ह।
'ेम' एक ऐसा िवषय ह िजस पर िजतना भी
िलखा जाए कम ही होगा। ेम का अनुभव
येक का अपना-अपना होता ह। उसक
बखान क तरीक़ भी अलग-अलग होते ह।
लेिखका आथा, िवास को ही ेम मानती
ह। उसी ेम को जो दांपय जीवन क नव ह,
को परभािषत करने क िलए यह उपयास
िलखा गया ह। पा बोनसाई क तीक भले ही
ह परतु लेिखका ने उनक चर का अपनी
उदांत पिवता से 'वृ' प म परणत कर
िवशाल आकार दान िकया ह।
000
देती थी, "तुम समझ सकते हो रोिमल... यह
िकतना मु कल िडिसजन ह। भले ही आज
ब और प न क तवीर बदल गई ह िकतु
एक माँ क तवीर नह बदली। जम भी उसे
ही देना ह। पालन-पोषण भी उसे ही करना ह।
अपनी नौकरी को ितलांजली देनी पड़ती ह सो
अलग। अपनी आिथक आमिनभरता भी पित
क पास िगरवी रख दो। ख़च पर िनयंण
रखो। हर वत खच क हाथ फलाना मुझे
पंसद नह होगा। घर क ख़च भी कम करने
पड़गे। बे का ख़च भी बढ़गा और नौकरी
भी नह कर पाऊगी। सँभाल पाओगे यह सब?
सोमी झुँझला कर बोली।" पृ. 158
समर व सुनंदा क कहानी भी सरल नह
ह। समर ने सुनंदा से िववाह िकया और अपने
माता-िपता क पास पूना आ गया। सुनंदा को
ससुराल का वातावरण वीकाय नह था,
"एक लड़क िकस कार पूर परवार का
वातावरण िवषैला बना सकती ह, समर क
साथ पूरा परवार इस बात को महसूस कर रहा
था।" पृ. 162। तीन साल बाद सुनंदा ने
िकयान को जम िदया। 'अब घर का
वातावरण ठीक हो जाएगा' इस बात को
झुठलाती ई सुनंदा बे को लेकर पुन: मुंबई
आ गई। योय तो वह थी ही, उसे नौकरी
आसानी से िमल गई। समर क िलए िकयान
मज़बूती भी था और मजबूरी भी। वह उसक
िबना पूना म नह रह पाया और उसने भी मुंबई
म नौकरी क िलए यास िकया और ा भी
कर ली। मगर रयाना ने उसका वागत
सतापूवक नह िकया। परपर टकराहट
क वजह से वे अलग-अलग रहने लगे।
रजुल क कहानी क म डबी कहानी
ह। िववाह क बाद वह नौकरी छोड़ कर पित
समवय क साथ बगलु चली जाती ह। वह
अपने वैवािहक जीवन म सामंजय िबठाने क
िलए यासरत रहती ह लेिकन मेल क सूरत
जब-तब िदल क क़ से बाहर िनकल आती
ह। वह गभवती ई... इतनी जदी बे को
जम नह देना चाहती थी पर समवय का
आदेश मानने को मजबूर हो जाती ह। उसक
बेटी अितिथ तीन वष क ही ई थी िक एक
सड़क दुघटना म समवय क मृयु हो गई,
"उसक जीवन का कोई भी िनजी अवलंबन
िफलहाल मज़बूत नह था। बेटी छोटी थी और
िपता कमज़ोर...कहाँ से लाए वह काशपुंज
जो झूठ ही सही पर उसे जीवन जीने क ेरणा
दे दे।" पृ.140। वह मुंबई आ गई और नौकरी
ाइन कर ली। सभी िबछड़ पंछी वापस
अपने पुराने घोसल पर लौटने लगे थे। उन
आठ दोत म से मेल ही बस मुंबई से बाहर
था।
सभी पुराने दोत ने िमल कर अपने पुराने
र तराँ म रीयूिनयन पाट लान क। सभी
?शी-?शी तैयार थे, िवगत-समय क
खुिशय को पुन: दोहराने क िलए। "लहर तो
अभी भी वैसी ही हगी। सी-बीच पर बना
र तराँ अभी भी वैसा ही होगा पर या वे आठ
अब वैसे रह गए ह? िपछले 10-11 साल म
िकसक िज़ंदगी वत क िकस शाख़ पर
अटक ह? यही तो िदखेगा। अंतहीन बात का
वह बेबाक िसलिसला और मु? ठहाक...
अब िकसम शेष बचे रह गए हगे? पृ. 206
'मन क चौह पर बोनसाई' क संपूण
कथावतु को कई उदाहरण देते ए प
करने का यास मेर ारा िकया गया। आठ
युवा क पृथक-पृथक मन: थितयाँ,
पारवारक परवेश, िशा-दीा एवं जीवन
जीने क सोच थी। इन आठ कहािनय को
िवदुषी लेिखका ने बत सरलता और तपरता
से एक साथ मश: गूँथ िदया ह। सभी
कहािनयाँ िभ?-िभ? भी ह और एक दूसर से
सश? प से जुड़ी ई भी।
"िहदी का लेखक यथाथ से भले ही
कतरा कर िनकल जाए पर यथाथ क बात
करने से नह...। सािह यक प म उपयास
को सामायत: यथाथ का सबसे सश?
वाहक माना जाता ह। यथाथ चाह
मनोवैािनक हो या सामािजक, इितहास क
िवराट श य का हो या वैय क
संवेदना का, उपयास का प उसक िलए
दूर तक समथ मायम िस आ ह। कहना
तो यूँ चािहए िक िजस िबंदु पर वैय क
रागबोध एवं सामािजक इितहास िमलते ह,
वह से उपयास का जम होता ह। बग़ैर
सामािजक साई क िवराटता को अपनाए
वह वैय क ितिया का आमपरक
आयान रह जाता ह और बगैर िनजी
वैय क जीवन को वाणी िदए उसक िनयित
सामािजक इितहास क दतावेज़ क हो जाती
ह।"- देवीशंकर अवथी संकिलत िनबंध:
संपादन मुरली मनोहर साद िसंह, लेख-नई
पीढ़ी और उपयास- पृ. 178
'मन क चौह पर बोनसाई' उपयास
वतमान पीढ़ी क ?ब? तवीर ह। यह उनक
वतमान म घिटत समय का इितहास ह।
लेिखका चार लड़िकय से वतमान क
समया- ेम-िववाह, संबंध-िवछद,
मटीनेशनल कपिनय म नौकरी, माता-िपता
व संतान क मय अलगाव, आिथक-
सामािजक और मनोजग क यवधान को
सुलझाने का यास ह। चार कहािनय क
कारण उपयास भले ही िववरणामक हो गया
ह िफर भी कहािनयाँ अपनी वाभािवकता नह
खोत। सहज व सहज गित से जीवन क गित
क समानांतर ही कहािनय म वाह ह।
'मन क चौह पर बोनसाई'
ितभाशाली, यथाथवादी और मानवतावादी
कथाकार सुधा जुगरान क क?ित म वतमान
सांसारक जीवन क वातिवक वप को
उ?ािटत िकया गया ह, इतना ही नह ब क
आधुिनक दांपय जीवन क नई तवीर भी
उभरती ह। यह सय ह िक सािहय समाज का
िबंब ह, ितप ह। इस जिटल समय म
य वातिवक जीवन से दूर कपना-जग
म िवचरण नह कर सकता। इस उपयास म
लेिखका ने जीवन-जग म जो देखा, उसे ही
शद प यंिजत कर िदया ह। यह उपयास
पु?ष और ी क संपूण जीवन क यथाथ का
तीकामक प उप थत करते ए
साथकता देते ह। दांपय जीवन क ख -मीठ
िच भी उभर ह। आधुिनक युवा दंपिय क
जीवन क िच अपनी पूरी िवुपता क साथ
तुत िकए गए ह। सुधा जी ने इस उपयास म
भारतीय युवा-दंपिय क िवंखिलत जीवन
क िच को िवशेष प से थान िदया ह।
क-"रयाना और अनुपम अपनी-अपनी
ऊहापोह से तो गुज़र ही रह थे, साथ ही दोन
िकसी न िकसी िबंदु पर एक-दूसर से उलझ ही

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 202535 34 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 2025
जाते। उन चार कपस म से तीन ने जैसे भी
सही अंतत: िववाह का ही िनणय िलया।
िववाह क बार म अछा नज़रया न रखने क
बावजूद भी अपनी जड़ क संकार से तो
जुड़ ही थे। िपछली पीढ़ी क लड़िकयाँ,
प नयाँ, बएँ आिद सभी परपरागत रत से
बँधी रह। मिहला क िलए तब बत
अिधक िवकप मौजूद नह थे समाज म
जीवन-यापन करने क िलए....। िफर वे दोन
तो उस राह क राही बन रह ह जो अभी तक
समाज म वीकाय तो आ ह पर एक मजबूरी
क तहत..., अभी भी िलव-इन-रलेशन
अथवा सहजीवन क धारणा कॉलोनी क
अंितम टट-फट मकान जैसी ह" पृ.106
ख- "इतज़ार तो िकया जा सकता ह...
लेिकन य इतज़ार करना ह " तुहारा जॉब
करना भी मुझे पसंद नह ह तो िफर या
िमलेगा इस बे को एबोट करक...।
बे क िलए एक माँ का मन से तैयार
होना तुह ज़री नह लगता समवय? कम
से कम हम दो साल तो ?क ही सकते ह।
हमारी शादी को अभी मु कल से चार महीने
ही ए ह। अभी म बेबी लान करने क मूड म
नह ।
बेबी या िसफ़ तुहारा ही ह, जो तुहार
मूड क एकॉिडग होगा?" पृ.133
ग- " ी क आमिनभरता िववाह व
जनन क िव ढपली बजा रही ह तो या
ी आिथक आमिनभरता छोड़ दे? अबला
क खोल से बमु कल बाहर िनकली नारी
वापस उसी खोल म िसमट जाए। दरअसल
जनन मा, एक ी, परवार, समाज क ही
समया नह ह। आने वाले संकट को देखते
ए यह देश क व दुिनया क समया ह। इस
बात को तमाम मानव सयता को वीकार
करना ही पड़गा िक जनन यिक ी ही
कर इसिलए उसक लायक माहौल, ी-
पु?ष सामंजय, आिथक सहायता उसे
उपलध करवाई जानी चािहए। एक माँ को
नौकरी छोड़ कर बे को पालना सज़ा म नह
लगना चािहए।"159-160
घ- वतमान पर य म देख तो लगभग
युवावग सहायक व सहाियका क ऊपर
िनभर हो गए ह। एक तरह से गृहथी वही
चला रह ह। िकतु अगर वे कछ नह सँभाल
सकते ह तो वे ह रते..। सामािजक ढाँचा
चरमरा सा गया ह।" पृ.183
इह समया से ब कराने का
उपम ह यह उपयास। इस से
उपयास का िवेषण कर तो यह एक
समया धान, िवेषणामक उपयास ह।
कशा लेिखका ने समया को िवेिषत
करने क साथ-साथ अपरो प से समाधान
क राह सुझाने का भी सफल यास िकया ह।
आठ युगल अपने-अपने जीवन का माग पा
लेते ह। कभी मजबूरी म कभी यन करते
ए।
सुधा जी का यह सामािजक उपयास
आधुिनक उपयास जग म अपना महवपूण
थान िनधा रत कर चुका ह। सामािजक
उपयास क भाषा भी सामािजक ही होती ह।
प और सरल। लेिखका ने येक चर
क अनुप भाषा का योग िकया ह। यहाँ यह
प कर देना आवयक ह, इस उपयास क
ाय: सभी मुख पा एक समान िशा,
जीवन तर और मन: थित क ह। अत:
लेिखका को उनक भाषा क िलए अितर
परम क आवयकता नह पड़ी। लेिखका
का यान चर-िचण से अिधक समया
का िवेषण करना और तदनुप राह
िनधा रत करना था। अत: भाषायी िविवधता,
अलंकार, िबंब, चमकार अथवा आडबर
यु? बनावटी भाषा का योग लेश मा भी
नह आ ह। आम जीवन म जैसी भाषा का
योग होता ह, वही, वैसी ही बोधगय भाषा
का योग आ ह। ढ़ शद म कहा जा
सकता ह िक यही भाषाई पता उपयास
क महवपूण उपल ध ह और सफलता क
भूिम ह।
उपयास क लेिखका ने नाकलता क
शैली, संबोधन शैली और िवरोध क एंटी
थीिसस शैली का योग करक अपने भाषाई
ान, शद भंडार और कथन शैिलय क
चतुराई का भी परचय िदया ह। सुधा जी िहदी
सािहय क सफल लेिखका ह। इस उपयास
क सफलता इस कथन क मािणकता
घोिषत करती ह। जैसा िक पूव म भी िलख
चुक िक उपयास क घटनाएँ पूरी सघनता
क साथ पाठक क सामने आती ह तो पाठक
अिभभूत हो जाता ह। कथानक कपना सूत
नह समाज सापे ह। यह भी उपयास का
भाव व सफलता ह। अिभय कौशल,
उेय क पता, कथानक को
बआयामी बना रहा ह। पा 'ेम' क िविभ?
प को दशाते ह। आपसी असामंजय क
वातावरण म रहने वाले पा पर भी पाठक
क सहानुभूित घटती नह ह। लेिखका ने कथा
को वतं प से बढ़ने िदया ह। यह अवय
ह िक लेिखका ने लंबे-लंबे वतय भी
कथानक क मय म थान-थान पर िदए ह,
परतु इनसे कथाम उलझा नह ह, अिपतु
पाठक को समया और पा क सोच को
समझने म सहायता ही िमलती ह। उपयास क
कछ थान पर जैसे- नारी जागरण क संदभ म
रचनाकार का य व पा पर हावी हो
जाता ह िफर भी कथानक क िवकास म कोई
?कावट नह आती। सफलता ही िमलती ह।
उपयास क सभी उपकरण- कथानक,
चर, कथोपकथन, शैली, भाषा आिद
यथाथान सुषोिभत ह और उपयास को
सश? और उक होने म सहयोगी ह।
लेिखका सुधा जुगरान को भाषा क श य
से, शद क िनसीमता से लेखन आता ह।
शद से अथ और अथ से अनेक अथ बना
लेने का कौशल ह लेिखका क पास।
अपने लेखन म सुधा जी िनरतर अपने
िशप म उरोर बदलाव करती आ रही ह।
'ेम' एक ऐसा िवषय ह िजस पर िजतना भी
िलखा जाए कम ही होगा। ेम का अनुभव
येक का अपना-अपना होता ह। उसक
बखान क तरीक़ भी अलग-अलग होते ह।
लेिखका आथा, िवास को ही ेम मानती
ह। उसी ेम को जो दांपय जीवन क नव ह,
को परभािषत करने क िलए यह उपयास
िलखा गया ह। पा बोनसाई क तीक भले ही
ह परतु लेिखका ने उनक चर का अपनी
उदांत पिवता से 'वृ' प म परणत कर
िवशाल आकार दान िकया ह।
000
देती थी, "तुम समझ सकते हो रोिमल... यह
िकतना मु कल िडिसजन ह। भले ही आज
ब और प न क तवीर बदल गई ह िकतु
एक माँ क तवीर नह बदली। जम भी उसे
ही देना ह। पालन-पोषण भी उसे ही करना ह।
अपनी नौकरी को ितलांजली देनी पड़ती ह सो
अलग। अपनी आिथक आमिनभरता भी पित
क पास िगरवी रख दो। ख़च पर िनयंण
रखो। हर वत खच क हाथ फलाना मुझे
पंसद नह होगा। घर क ख़च भी कम करने
पड़गे। बे का ख़च भी बढ़गा और नौकरी
भी नह कर पाऊगी। सँभाल पाओगे यह सब?
सोमी झुँझला कर बोली।" पृ. 158
समर व सुनंदा क कहानी भी सरल नह
ह। समर ने सुनंदा से िववाह िकया और अपने
माता-िपता क पास पूना आ गया। सुनंदा को
ससुराल का वातावरण वीकाय नह था,
"एक लड़क िकस कार पूर परवार का
वातावरण िवषैला बना सकती ह, समर क
साथ पूरा परवार इस बात को महसूस कर रहा
था।" पृ. 162। तीन साल बाद सुनंदा ने
िकयान को जम िदया। 'अब घर का
वातावरण ठीक हो जाएगा' इस बात को
झुठलाती ई सुनंदा बे को लेकर पुन: मुंबई
आ गई। योय तो वह थी ही, उसे नौकरी
आसानी से िमल गई। समर क िलए िकयान
मज़बूती भी था और मजबूरी भी। वह उसक
िबना पूना म नह रह पाया और उसने भी मुंबई
म नौकरी क िलए यास िकया और ा भी
कर ली। मगर रयाना ने उसका वागत
सतापूवक नह िकया। परपर टकराहट
क वजह से वे अलग-अलग रहने लगे।
रजुल क कहानी क म डबी कहानी
ह। िववाह क बाद वह नौकरी छोड़ कर पित
समवय क साथ बगलु चली जाती ह। वह
अपने वैवािहक जीवन म सामंजय िबठाने क
िलए यासरत रहती ह लेिकन मेल क सूरत
जब-तब िदल क क़ से बाहर िनकल आती
ह। वह गभवती ई... इतनी जदी बे को
जम नह देना चाहती थी पर समवय का
आदेश मानने को मजबूर हो जाती ह। उसक
बेटी अितिथ तीन वष क ही ई थी िक एक
सड़क दुघटना म समवय क मृयु हो गई,
"उसक जीवन का कोई भी िनजी अवलंबन
िफलहाल मज़बूत नह था। बेटी छोटी थी और
िपता कमज़ोर...कहाँ से लाए वह काशपुंज
जो झूठ ही सही पर उसे जीवन जीने क ेरणा
दे दे।" पृ.140। वह मुंबई आ गई और नौकरी
ाइन कर ली। सभी िबछड़ पंछी वापस
अपने पुराने घोसल पर लौटने लगे थे। उन
आठ दोत म से मेल ही बस मुंबई से बाहर
था।
सभी पुराने दोत ने िमल कर अपने पुराने
र तराँ म रीयूिनयन पाट लान क। सभी
?शी-?शी तैयार थे, िवगत-समय क
खुिशय को पुन: दोहराने क िलए। "लहर तो
अभी भी वैसी ही हगी। सी-बीच पर बना
र तराँ अभी भी वैसा ही होगा पर या वे आठ
अब वैसे रह गए ह? िपछले 10-11 साल म
िकसक िज़ंदगी वत क िकस शाख़ पर
अटक ह? यही तो िदखेगा। अंतहीन बात का
वह बेबाक िसलिसला और मु? ठहाक...
अब िकसम शेष बचे रह गए हगे? पृ. 206
'मन क चौह पर बोनसाई' क संपूण
कथावतु को कई उदाहरण देते ए प
करने का यास मेर ारा िकया गया। आठ
युवा क पृथक-पृथक मन: थितयाँ,
पारवारक परवेश, िशा-दीा एवं जीवन
जीने क सोच थी। इन आठ कहािनय को
िवदुषी लेिखका ने बत सरलता और तपरता
से एक साथ मश: गूँथ िदया ह। सभी
कहािनयाँ िभ?-िभ? भी ह और एक दूसर से
सश? प से जुड़ी ई भी।
"िहदी का लेखक यथाथ से भले ही
कतरा कर िनकल जाए पर यथाथ क बात
करने से नह...। सािह यक प म उपयास
को सामायत: यथाथ का सबसे सश?
वाहक माना जाता ह। यथाथ चाह
मनोवैािनक हो या सामािजक, इितहास क
िवराट श य का हो या वैय क
संवेदना का, उपयास का प उसक िलए
दूर तक समथ मायम िस आ ह। कहना
तो यूँ चािहए िक िजस िबंदु पर वैय क
रागबोध एवं सामािजक इितहास िमलते ह,
वह से उपयास का जम होता ह। बग़ैर
सामािजक साई क िवराटता को अपनाए
वह वैय क ितिया का आमपरक
आयान रह जाता ह और बगैर िनजी
वैय क जीवन को वाणी िदए उसक िनयित
सामािजक इितहास क दतावेज़ क हो जाती
ह।"- देवीशंकर अवथी संकिलत िनबंध:
संपादन मुरली मनोहर साद िसंह, लेख-नई
पीढ़ी और उपयास- पृ. 178
'मन क चौह पर बोनसाई' उपयास
वतमान पीढ़ी क ?ब? तवीर ह। यह उनक
वतमान म घिटत समय का इितहास ह।
लेिखका चार लड़िकय से वतमान क
समया- ेम-िववाह, संबंध-िवछद,
मटीनेशनल कपिनय म नौकरी, माता-िपता
व संतान क मय अलगाव, आिथक-
सामािजक और मनोजग क यवधान को
सुलझाने का यास ह। चार कहािनय क
कारण उपयास भले ही िववरणामक हो गया
ह िफर भी कहािनयाँ अपनी वाभािवकता नह
खोत। सहज व सहज गित से जीवन क गित
क समानांतर ही कहािनय म वाह ह।
'मन क चौह पर बोनसाई'
ितभाशाली, यथाथवादी और मानवतावादी
कथाकार सुधा जुगरान क क?ित म वतमान
सांसारक जीवन क वातिवक वप को
उ?ािटत िकया गया ह, इतना ही नह ब क
आधुिनक दांपय जीवन क नई तवीर भी
उभरती ह। यह सय ह िक सािहय समाज का
िबंब ह, ितप ह। इस जिटल समय म
य वातिवक जीवन से दूर कपना-जग
म िवचरण नह कर सकता। इस उपयास म
लेिखका ने जीवन-जग म जो देखा, उसे ही
शद प यंिजत कर िदया ह। यह उपयास
पु?ष और ी क संपूण जीवन क यथाथ का
तीकामक प उप थत करते ए
साथकता देते ह। दांपय जीवन क ख -मीठ
िच भी उभर ह। आधुिनक युवा दंपिय क
जीवन क िच अपनी पूरी िवुपता क साथ
तुत िकए गए ह। सुधा जी ने इस उपयास म
भारतीय युवा-दंपिय क िवंखिलत जीवन
क िच को िवशेष प से थान िदया ह।
क-"रयाना और अनुपम अपनी-अपनी
ऊहापोह से तो गुज़र ही रह थे, साथ ही दोन
िकसी न िकसी िबंदु पर एक-दूसर से उलझ ही

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 202537 36 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 2025
होती फरवरी हो या ठड क शाम! किवता
क अनुभूित वहाँ कभी-कभी थोड़ा कम हो
जाती ह जब किवता थोड़ा-थोड़ा समझाने क
मुा म आ जाती ह, िकसी िसांत या
ाकितक िनयम क लगभग याया करने
लगती ह। मौसम और कित क ? ??-
कलाप क भी! किवता क याया हो
सकती ह। किवता म याया का होना
किवता को अपनी वातिवक भूिम से हटा देता
ह।
संह क किवता क क म चूँिक िपता
ह, इसिलए वे कई तरह से ह। अपनी आदत,
नसीहत, नाराज़िगय, असहमितय वग़ैरह
कई चीज़ म! उनक छोड़ी चीज़ म भी!
उनक उप थित, थायी अनुप थित, मृित,
उनक होने न होने क अथ और दुःख! सबसे
ख़ास बात, किवता म िपता का होना एक
किव क िपता का होना न हो कर एक सामाय
लेिकन वै क िपता क होने म बदल जाता
ह। वै क अगर नह तो भी एक भारतीय
िपता तो ज़र ही! िपता क जाने - बरस बरस
से जा रह होने से लेकर उनक जाने क बाद
और हयात रहने क दौर क कई पल म तो!
िनमल वमा क कहानी 'बीच बहस म'
अपताल म भरती िपता से एक असहमत बेट
क असहमितय क कहानी ह। वहाँ भी एक-
दूसर से िशकायत ह, असहमितयाँ ह,
नाराज़िगयाँ ह लेिकन, असली कहानी इन
सबक पार कही ह। जैसे, ानरजन क 'िपता'
कहानी म ह। कह-कह बत मुखर प म
ह! वहाँ सामाय िपता-पु भी नज़र आते ह।
एक समु जैसा शांत िपता और िबगड़ा आ
बेटा! माँ क िलए बेट कभी िबगड़ ए नह
होते - िपता क िलए होते ह। और बाज
वत िपता इसक िलए माँ को ही िज़मेदार
भी ठहराते ह। इसे सामाय चिलत सोच क
तहत िपतृसा से भी जोड़कर देखा जाता ह।
इन किवता म क ीय प बेट का ह।
किवताएँ बेट क ओर से ह और िपता क
अंितम िवदाई क बाद क ह। किवताएँ हमार
यहाँ िपता क ओर से भी कम ह। पारपरक
सामािजक ढाँचे म िजसम मययुगीन संयु?
परवार क संकार और सोच क धुँधली
परछाइयाँ मडराती रहती ह और कई बार
िपता अपने-आप को बुरी तरह फसा आ
पाता ह, वह सब सामने नह आ पाता! िवशेष
कर एक बेट क संदभ म! उसक िचता
का पता लगता रहता ह- उसक से,
िहदायत, िशकायत वग़ैरह से लेिकन, ?ेह का
नह लगता। जैसा सव र क किवता
'िबिटया' म होता ह। िजसम िपता सोयी ई
अपनी नही बेटी को उठाता ह। बेटी िजसक
सहली हवा जो उसी क साथ सो गई थी और
उसक जागने क पहले ही जाग कर जाने िकस
झरने म नहा कर भी आ गई ह और अपने गीले
हाथ से बेटी क तवीर क िकताब छ रही ह
और िजससे 'जाने िकतने-िकतने रग फल गए
ह।' एक िवराट िबब!
गुज़र ए िपता को लेकर िलखी ग इन
किवता म पु का गहरा प?ाताप ह!
िपता-पु क बीच क आम शीत यु को
लेकर प?ाताप! तनाव, असहमित,
नाराज़गी, िवरोध, िशकायत! पु क मृित म
बार-बार उभर आने वाली तमाम चीज़।
प?ाताप से िनकली िवदाई क साथ िनकली
अपेा भी, 'अगले जम म िमलना मुझे / िपता
बनकर ही / िवप बनकर, गुसैल, िज़?ी,
आामक, वाद-िववाद' करने वाले बनकर!
'िपता हो, िपता क तरह रहना।' इनम तीसर
िदन से ही िपता क आने और उनक पुकार
जाने का इतज़ार ह। वे एक छलावा लगते ह,
िजनक जाने का डर िपछले तीस साल से
लगता रहा ह। वे रगून पर क लतर लगते
ह। वे कपनी क बंद होने तक अपने बाल म
'जवा कसुम' का तेल लगाते रह और घर म
अपने होने का एहसास करवाते रह। वे
आ तक और दुिनयादार थे, और बेट से ऐसा
ही होने क अपेा रखते थे। वे बेट क िलए
थायी िवप थे। 'तुम चले गए / मेरा िवप
चला गया / यह दुिनया प से नह / िवप से
ही होती ह।' वे गुज़र िपता क सम वीकार
करते ह, अपना एक बुरा बेटा होना! जो बहस
करता था, उनक कही बात काटता था और
उह ग़लत िस करने क कोिशश म रहता
था। वही िपता से लौट आने का आह करता
ह तािक उनसे बहस और वाद-िववाद जारी
रह सक और उनक बात भी!
िपता घर म छटी ई घड़ी जैसी चीज़ म ह
जो िपता क जाने क साथ दस बजकर छः
िमनट पर क गई थी। उनक कोिशश अपनी
दुिनया को घर तक सीिमत रखने क थी। वे
अपने-आप म अपना खोया आ िपता
महसूस करते ह और वे शहरयार म अपना
बेटा होने को पाते ह।
िपता को यतः लेकर संह म 15
किवताएँ ह। हालाँिक, ऐसी और किवताएँ भी
ह िजनम भी िपता क छाया मौजूद महसूस
होती ह। लेिकन, सारी किवताएँ इसी तक
सीिमत नह ह। ितरोध को लेकर बीस से
अिधक किवताएँ ह। और ेम को लेकर भी!
ेम यूँ भी उनक कई कथा रचना म मौजूद
ह। उस पर बहस भी ह। यायाएँ ह! इन
किवता म ेम का दूर-पास का एहसास ह।
'मंगल पर होना' आमा से देह तक याा क
बात करती ह। ेम और अवसाद का एहसास,
ेम क अपने आस-पास मौजूदगी, ेम म ैत
का िमटना, चाँद तक प चने क िलए सीढ़ी
लगाना, िकसी का साथ होना, ेम म ?द का
हमेशा देर से प चना! ी-पु?ष को लेकर जो
किवताएँ ह उनम ी सार दमन क बावजूद
श शाली होकर उभरी ह। वह सार काम क
बीच अपने सार काम भी कर लेती ह। वह इन
किवता म माँ क प म भी आई ह, नानी
और बेटी क भी!
इन किवता क अगले िवतार म गु?
नानक क संगत म रवाब बजाता मताना ह,
इितहास म दज खलनायक क कारनामे ह।
कचहरय क गले न उतरने वाले फ़सले ह।
िजनक ताले खो गए उनक ज़ंग खायी
चािबयाँ गुछ म लगी ह। ताल क कभी न
कभी िमलने क ज़ंग खायी संभावना क साथ!
टिबल पर पुराने ख़राब पेन, टट िघस चुक
चमे, गित क साथकता-िनरथकता ह।
तानाशाह को िव शांित का पुरकार ह।
ितरोध ह। वैसे, किवता को लेकर िचंता
भी ह यह जानकर िक कोई भी किव कभी शेष
नह रहता, उसक किवता रहती ह। उसक
िलए जो कछ भी ह, सब किवता म ह। 'एक
िदन नह िलखी जा रही हगी किवताएँ / कसा
सभावना और उमीद क किवताएँ!
काश कात
यह सही ह िक िहदी म माँ, बेटी, ेयसी इयािद को लेकर िजतनी रचनाएँ ह, अपेाकत
उतनी िपता को लेकर नह ह। ेम और ेिमका को तो लेकर िहदी ही नह, िव का सािहय
भरा पड़ा ह। महाकाय तक ह। माँ को लेकर भी फटकर किवता से लेकर 'मदर' (मे ज़म
गोक) जैसे उपयास ह। बेिटय को लेकर अगर 'सरोज मृित' (िनराला) और 'उठ मेरी बेटी...'
(सव र दयाल ससेना) जैसी किवताएँ ह तो प नय को लेकर भी 'तुहार जाने क बाद'
(क णकात िनलोसे) ह। िपता रचना म आए ह ज़र लेिकन कम! वैसे, 'िपता को प'
(काका) जैसी िवयात रचना ई ह। ान रजन क 'िपता' कहानी भी इसी िसलिसले क
कहानी ह।
आम तौर पर िपता-पु संबंध हमार यहाँ एक तरह से तनावपूण माने जाते रह ह। जब िक
िपता क िलए अपना यौवन याग देने और िपता क वचन का मान रखने क िलए वन जाने वाले
पु भी ए ह। बहरहाल, इस संह क किवता का मूल उस िपता क अंितम प से िवदाई
ह। जैसा िक किव ने ारभ म ?द कहा ह। िपता क अ थयाँ नमदा म वािहत करने क तीसर
िदन अचानक इन किवता क शु?आत ई! लगभग सभी किवताएँ एक ही ांस म िलखी ई
ह िजनम से शु क िपता क जाने पर ह बाद क अय िवषय पर! संह क िसफ़ सात किवताएँ
पूविलिखत ह : 'रबाब - एक मुसलसल इक़', 'गौतम राजऋिष क िलए', 'िलफ़ाफ़ा', 'ताना-
बाना', 'तुम', 'पीली और उदास आँख' एवं 'िवास'; बाक़ सारी किवताएँ उसी तीन से चार
महीने क अविध क ह।
ये अनुभूित क गहर दबाव म िलखी गई किवताएँ ह। कभी वसवथ ने कहा था, 'किवता
श शाली भावना का उेक ह' (Poetry is the spontaneous overflow of
powerful feelings)। भवानी साद िम आपातकाल म जब जेल म थे तब रोज़ तीन
किवताएँ िलखते रह। जेल से छटने क बाद वे ही किवताएँ 'िकाल संया' संह म संकिलत
। बहरहाल, िवशेष बात यह िक पंकज ाथिमक प से कथाकार ह। उनक उपयास और
कहािनयाँ िवशेष चिचत रह ह। यूँ उहने ग़ज़ल भी िलखी (कही) ह। लेिकन, अचानक
किवताएँ िलखना उनक रचना कम का िवशेष पड़ाव ह। इसे िवधा-परवतन नह ब क सृजन
क िवतार क प म देखा जा सकता ह।
संह म 109 किवताएँ ह जो 5 उपशीषक म िवभ? ह। वेश, कित, ेम, ाप और
िवरोध! यूँ, किवता का यह बत कछ थूल िवभाजन ह। इनक िबना भी इन किवता को
देखा जा सकता ह। उनक पीछ क मूल संवेदना एक ही ह। िवभाजन मोट तौर पर उनक कटट
को लेकर! हालाँिक, किवता अपने किथत कटट क पार या बाहर भी होती ह। जैसा िक कहा भी
जाता ह, किवता िवषय पर नह होती, वह तो किवता क बाहरी चीज़ होता ह।
इन किवता म अपनी पचास पार क उ का एहसास ह। िपता का रोज़ आते-जाते एक
िदन अचानक अंितम प से चले जाना ह। जाने क उ पर भी बात ह। जंग लगी संभावनाएँ ह।
और गीली उदास आँख ह। हर किव क मौसम को लेकर अपने रलेसेस होते ह। किवता क
मौसम भी अपने होते ह। इन किवता म िवदा होती फरवरी ह, ठड क शाम ह, मौसम क
उदािसयाँ ह, उनका अवसर ह, माच-अैल म जो अछापन ह उसका बीतना ह। 'एक और
मौसम का बीत जाना / हमार िहसे म आए ए समय का कछ और कम हो जाना ह।'
'अगला मौसम कभी-कभी / आकर भी नह आता / वतुएँ रखी रहती ह / मौसम बना
रहता ह / िकतु इसान बीत चुका होता ह।' संह क किवता म इस बीतते चले जाने का भाव
ह। वातव म िपता क चले जाने क अवसाद क परछाई कई किवता म मौसम, महीने, रते
वग़ैरह क बीत जाने, ख़म हो जाने म ह। ये किवताएँ गहर अवसाद से िनकली ई किवताएँ ह।
अिधकतर किवता क मूल म इस अवसाद को अनुभव िकया जा सकता ह। चाह िफर िवदा
काश कात
155 एलआईजी, मुखज नगर,
देवास 455011, म
मोबाइल- 9407416269
ईमेल- [email protected]
शैले शरण
79, रलवे कॉलोनी, इिदरा पाक क पास,
आनंद नगर, खडवा (म..) 450001
मोबाइल- 8989423676
ईमेल- [email protected]
मनीष वै
11-ए, मुखज नगर,
पायोिनयर कल चौराहा,
देवास, म 455001
मोबाइल- 9826013806
क म पुतक
(किवता संह)
उमीद क तरह लौटना तुम
समीक : काश कांत, शैले
शरण, मनीष वै
लेखक : पंकज सुबीर
काशक : िशवना काशन, साट
कॉ लैस बेसमट, सीहोर, म
466001, फ़ोन-07562405545
मोबाइल- +91-9806162184
ईमेल- [email protected]

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 202537 36 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 2025
होती फरवरी हो या ठड क शाम! किवता
क अनुभूित वहाँ कभी-कभी थोड़ा कम हो
जाती ह जब किवता थोड़ा-थोड़ा समझाने क
मुा म आ जाती ह, िकसी िसांत या
ाकितक िनयम क लगभग याया करने
लगती ह। मौसम और कित क ? ??-
कलाप क भी! किवता क याया हो
सकती ह। किवता म याया का होना
किवता को अपनी वातिवक भूिम से हटा देता
ह।
संह क किवता क क म चूँिक िपता
ह, इसिलए वे कई तरह से ह। अपनी आदत,
नसीहत, नाराज़िगय, असहमितय वग़ैरह
कई चीज़ म! उनक छोड़ी चीज़ म भी!
उनक उप थित, थायी अनुप थित, मृित,
उनक होने न होने क अथ और दुःख! सबसे
ख़ास बात, किवता म िपता का होना एक
किव क िपता का होना न हो कर एक सामाय
लेिकन वै क िपता क होने म बदल जाता
ह। वै क अगर नह तो भी एक भारतीय
िपता तो ज़र ही! िपता क जाने - बरस बरस
से जा रह होने से लेकर उनक जाने क बाद
और हयात रहने क दौर क कई पल म तो!
िनमल वमा क कहानी 'बीच बहस म'
अपताल म भरती िपता से एक असहमत बेट
क असहमितय क कहानी ह। वहाँ भी एक-
दूसर से िशकायत ह, असहमितयाँ ह,
नाराज़िगयाँ ह लेिकन, असली कहानी इन
सबक पार कही ह। जैसे, ानरजन क 'िपता'
कहानी म ह। कह-कह बत मुखर प म
ह! वहाँ सामाय िपता-पु भी नज़र आते ह।
एक समु जैसा शांत िपता और िबगड़ा आ
बेटा! माँ क िलए बेट कभी िबगड़ ए नह
होते - िपता क िलए होते ह। और बाज
वत िपता इसक िलए माँ को ही िज़मेदार
भी ठहराते ह। इसे सामाय चिलत सोच क
तहत िपतृसा से भी जोड़कर देखा जाता ह।
इन किवता म क ीय प बेट का ह।
किवताएँ बेट क ओर से ह और िपता क
अंितम िवदाई क बाद क ह। किवताएँ हमार
यहाँ िपता क ओर से भी कम ह। पारपरक
सामािजक ढाँचे म िजसम मययुगीन संयु?
परवार क संकार और सोच क धुँधली
परछाइयाँ मडराती रहती ह और कई बार
िपता अपने-आप को बुरी तरह फसा आ
पाता ह, वह सब सामने नह आ पाता! िवशेष
कर एक बेट क संदभ म! उसक िचता
का पता लगता रहता ह- उसक से,
िहदायत, िशकायत वग़ैरह से लेिकन, ?ेह का
नह लगता। जैसा सव र क किवता
'िबिटया' म होता ह। िजसम िपता सोयी ई
अपनी नही बेटी को उठाता ह। बेटी िजसक
सहली हवा जो उसी क साथ सो गई थी और
उसक जागने क पहले ही जाग कर जाने िकस
झरने म नहा कर भी आ गई ह और अपने गीले
हाथ से बेटी क तवीर क िकताब छ रही ह
और िजससे 'जाने िकतने-िकतने रग फल गए
ह।' एक िवराट िबब!
गुज़र ए िपता को लेकर िलखी ग इन
किवता म पु का गहरा प?ाताप ह!
िपता-पु क बीच क आम शीत यु को
लेकर प?ाताप! तनाव, असहमित,
नाराज़गी, िवरोध, िशकायत! पु क मृित म
बार-बार उभर आने वाली तमाम चीज़।
प?ाताप से िनकली िवदाई क साथ िनकली
अपेा भी, 'अगले जम म िमलना मुझे / िपता
बनकर ही / िवप बनकर, गुसैल, िज़?ी,
आामक, वाद-िववाद' करने वाले बनकर!
'िपता हो, िपता क तरह रहना।' इनम तीसर
िदन से ही िपता क आने और उनक पुकार
जाने का इतज़ार ह। वे एक छलावा लगते ह,
िजनक जाने का डर िपछले तीस साल से
लगता रहा ह। वे रगून पर क लतर लगते
ह। वे कपनी क बंद होने तक अपने बाल म
'जवा कसुम' का तेल लगाते रह और घर म
अपने होने का एहसास करवाते रह। वे
आ तक और दुिनयादार थे, और बेट से ऐसा
ही होने क अपेा रखते थे। वे बेट क िलए
थायी िवप थे। 'तुम चले गए / मेरा िवप
चला गया / यह दुिनया प से नह / िवप से
ही होती ह।' वे गुज़र िपता क सम वीकार
करते ह, अपना एक बुरा बेटा होना! जो बहस
करता था, उनक कही बात काटता था और
उह ग़लत िस करने क कोिशश म रहता
था। वही िपता से लौट आने का आह करता
ह तािक उनसे बहस और वाद-िववाद जारी
रह सक और उनक बात भी!
िपता घर म छटी ई घड़ी जैसी चीज़ म ह
जो िपता क जाने क साथ दस बजकर छः
िमनट पर क गई थी। उनक कोिशश अपनी
दुिनया को घर तक सीिमत रखने क थी। वे
अपने-आप म अपना खोया आ िपता
महसूस करते ह और वे शहरयार म अपना
बेटा होने को पाते ह।
िपता को यतः लेकर संह म 15
किवताएँ ह। हालाँिक, ऐसी और किवताएँ भी
ह िजनम भी िपता क छाया मौजूद महसूस
होती ह। लेिकन, सारी किवताएँ इसी तक
सीिमत नह ह। ितरोध को लेकर बीस से
अिधक किवताएँ ह। और ेम को लेकर भी!
ेम यूँ भी उनक कई कथा रचना म मौजूद
ह। उस पर बहस भी ह। यायाएँ ह! इन
किवता म ेम का दूर-पास का एहसास ह।
'मंगल पर होना' आमा से देह तक याा क
बात करती ह। ेम और अवसाद का एहसास,
ेम क अपने आस-पास मौजूदगी, ेम म ैत
का िमटना, चाँद तक प चने क िलए सीढ़ी
लगाना, िकसी का साथ होना, ेम म ?द का
हमेशा देर से प चना! ी-पु?ष को लेकर जो
किवताएँ ह उनम ी सार दमन क बावजूद
श शाली होकर उभरी ह। वह सार काम क
बीच अपने सार काम भी कर लेती ह। वह इन
किवता म माँ क प म भी आई ह, नानी
और बेटी क भी!
इन किवता क अगले िवतार म गु?
नानक क संगत म रवाब बजाता मताना ह,
इितहास म दज खलनायक क कारनामे ह।
कचहरय क गले न उतरने वाले फ़सले ह।
िजनक ताले खो गए उनक ज़ंग खायी
चािबयाँ गुछ म लगी ह। ताल क कभी न
कभी िमलने क ज़ंग खायी संभावना क साथ!
टिबल पर पुराने ख़राब पेन, टट िघस चुक
चमे, गित क साथकता-िनरथकता ह।
तानाशाह को िव शांित का पुरकार ह।
ितरोध ह। वैसे, किवता को लेकर िचंता
भी ह यह जानकर िक कोई भी किव कभी शेष
नह रहता, उसक किवता रहती ह। उसक
िलए जो कछ भी ह, सब किवता म ह। 'एक
िदन नह िलखी जा रही हगी किवताएँ / कसा
सभावना और उमीद क किवताएँ!
काश कात
यह सही ह िक िहदी म माँ, बेटी, ेयसी इयािद को लेकर िजतनी रचनाएँ ह, अपेाकत
उतनी िपता को लेकर नह ह। ेम और ेिमका को तो लेकर िहदी ही नह, िव का सािहय
भरा पड़ा ह। महाकाय तक ह। माँ को लेकर भी फटकर किवता से लेकर 'मदर' (मे ज़म
गोक) जैसे उपयास ह। बेिटय को लेकर अगर 'सरोज मृित' (िनराला) और 'उठ मेरी बेटी...'
(सव र दयाल ससेना) जैसी किवताएँ ह तो प नय को लेकर भी 'तुहार जाने क बाद'
(क णकात िनलोसे) ह। िपता रचना म आए ह ज़र लेिकन कम! वैसे, 'िपता को प'
(काका) जैसी िवयात रचना ई ह। ान रजन क 'िपता' कहानी भी इसी िसलिसले क
कहानी ह।
आम तौर पर िपता-पु संबंध हमार यहाँ एक तरह से तनावपूण माने जाते रह ह। जब िक
िपता क िलए अपना यौवन याग देने और िपता क वचन का मान रखने क िलए वन जाने वाले
पु भी ए ह। बहरहाल, इस संह क किवता का मूल उस िपता क अंितम प से िवदाई
ह। जैसा िक किव ने ारभ म ?द कहा ह। िपता क अ थयाँ नमदा म वािहत करने क तीसर
िदन अचानक इन किवता क शु?आत ई! लगभग सभी किवताएँ एक ही ांस म िलखी ई
ह िजनम से शु क िपता क जाने पर ह बाद क अय िवषय पर! संह क िसफ़ सात किवताएँ
पूविलिखत ह : 'रबाब - एक मुसलसल इक़', 'गौतम राजऋिष क िलए', 'िलफ़ाफ़ा', 'ताना-
बाना', 'तुम', 'पीली और उदास आँख' एवं 'िवास'; बाक़ सारी किवताएँ उसी तीन से चार
महीने क अविध क ह।
ये अनुभूित क गहर दबाव म िलखी गई किवताएँ ह। कभी वसवथ ने कहा था, 'किवता
श शाली भावना का उेक ह' (Poetry is the spontaneous overflow of
powerful feelings)। भवानी साद िम आपातकाल म जब जेल म थे तब रोज़ तीन
किवताएँ िलखते रह। जेल से छटने क बाद वे ही किवताएँ 'िकाल संया' संह म संकिलत
। बहरहाल, िवशेष बात यह िक पंकज ाथिमक प से कथाकार ह। उनक उपयास और
कहािनयाँ िवशेष चिचत रह ह। यूँ उहने ग़ज़ल भी िलखी (कही) ह। लेिकन, अचानक
किवताएँ िलखना उनक रचना कम का िवशेष पड़ाव ह। इसे िवधा-परवतन नह ब क सृजन
क िवतार क प म देखा जा सकता ह।
संह म 109 किवताएँ ह जो 5 उपशीषक म िवभ? ह। वेश, कित, ेम, ाप और
िवरोध! यूँ, किवता का यह बत कछ थूल िवभाजन ह। इनक िबना भी इन किवता को
देखा जा सकता ह। उनक पीछ क मूल संवेदना एक ही ह। िवभाजन मोट तौर पर उनक कटट
को लेकर! हालाँिक, किवता अपने किथत कटट क पार या बाहर भी होती ह। जैसा िक कहा भी
जाता ह, किवता िवषय पर नह होती, वह तो किवता क बाहरी चीज़ होता ह।
इन किवता म अपनी पचास पार क उ का एहसास ह। िपता का रोज़ आते-जाते एक
िदन अचानक अंितम प से चले जाना ह। जाने क उ पर भी बात ह। जंग लगी संभावनाएँ ह।
और गीली उदास आँख ह। हर किव क मौसम को लेकर अपने रलेसेस होते ह। किवता क
मौसम भी अपने होते ह। इन किवता म िवदा होती फरवरी ह, ठड क शाम ह, मौसम क
उदािसयाँ ह, उनका अवसर ह, माच-अैल म जो अछापन ह उसका बीतना ह। 'एक और
मौसम का बीत जाना / हमार िहसे म आए ए समय का कछ और कम हो जाना ह।'
'अगला मौसम कभी-कभी / आकर भी नह आता / वतुएँ रखी रहती ह / मौसम बना
रहता ह / िकतु इसान बीत चुका होता ह।' संह क किवता म इस बीतते चले जाने का भाव
ह। वातव म िपता क चले जाने क अवसाद क परछाई कई किवता म मौसम, महीने, रते
वग़ैरह क बीत जाने, ख़म हो जाने म ह। ये किवताएँ गहर अवसाद से िनकली ई किवताएँ ह।
अिधकतर किवता क मूल म इस अवसाद को अनुभव िकया जा सकता ह। चाह िफर िवदा
काश कात
155 एलआईजी, मुखज नगर,
देवास 455011, म
मोबाइल- 9407416269
ईमेल- [email protected]
शैले शरण
79, रलवे कॉलोनी, इिदरा पाक क पास,
आनंद नगर, खडवा (म..) 450001
मोबाइल- 8989423676
ईमेल- [email protected]
मनीष वै
11-ए, मुखज नगर,
पायोिनयर कल चौराहा,
देवास, म 455001
मोबाइल- 9826013806
क म पुतक
(किवता संह)
उमीद क तरह लौटना तुम
समीक : काश कांत, शैले
शरण, मनीष वै
लेखक : पंकज सुबीर
काशक : िशवना काशन, साट
कॉ लैस बेसमट, सीहोर, म
466001, फ़ोन-07562405545
मोबाइल- +91-9806162184
ईमेल- [email protected]

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 202539 38 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 2025
होगा वह समय / िबना किवता क' यह
आह भी ह िक य य को लेकर
किवता म आमीयता शेष रह, ?द को बड़
होने से बचाये, आँख म शरारत बची रह।
चूँिक, संह क अिधकतर किवताएँ िपता
क आस? मृयु को लेकर ह इसिलए ज़ािहर
ह उसम एक ख़ास तरह का िनजीपन ह।
आमकथामकता क आस-पास का!
किवताएँ िपता क (अचानक नह धीर-धीर)
जाने और उससे बने एक ख़ालीपन को लेकर
ह इसिलए उनम िनजी पीड़ा भी ह। ेम
किवता तक आकर यह पीड़ा कम ई ह
और कित, ाप, ितरोध तक आकर वे
सावजिनक भूिमका म िदखाई देने लगती ह।
'बेटी का ेम' िबकल अलग तरह क
किवता ह। यह 'अलगपन' उसे िवशेष बनाता
ह। य य को लेकर िलखी ग किवता
म य व क बारीक़ बुनावट और मासूम
आमीयता ह। कछ किवताएँ सैांितक
मसल पर बात कहने क कोिशश करती ह
तब थोड़ी सपाट ग होने लगती ह! हालाँिक,
बाक़ जगह वे किवता होने क बुिनयादी माँग
पूरी करती ह।
यह संह पंकज सुबीर क रचनाकार क
भीतरी रचनामक खलबली क सूचना देता
ह।
000
मानवीय संवेदना का दतावेज़
शैले शरण
पंकज सुबीर का किवता संह 'उमीद
क तरह लौटना तुम' एक ऐसे समय म आया
ह, जब सािहय और िवशेषकर किवता से
समाज क अपेाएँ लगातार बढ़ी ह।
उपभो?ावादी संकित, तकनीक शोर और
राजनीितक-सामािजक जिटलता क बीच
किवता अपने िलए न कवल एक थान
तलाश रही ह ब क मनुय क भीतर िछपी
संवेदना को जगाने का काय भी कर रही ह।
पंकज सुबीर का यह संह इह मानवीय
संवेदना, रत, पीड़ा और पुनजवन क
आकांा का दतावेज़ ह।
'उमीद क तरह लौटना तुम'- यह
शीषक भावनामक आह नह ह, ब क
जीवन का उ?ोष ह। यहाँ 'उमीद' का
तीक बआयामी ह। यह संह िवछोह और
संघष क बाद पुनः उठ खड़ होने और भिवय
क ित आथा का एक आयाम ह।
पंकज सुबीर क आमीय भाषा,
य गत संघष क बावजूद लोक-संवेदना से
संप? ह। वे किठन शदावली या जिटल
िबंब म किवता को उलझाते नह, ब क
सहज-सरल भाव क मायम से पाठक क
दय तक प चते ह। शैली संवादामक ह,
िजसम बातचीत करते ये वे सभी को अपने
साथ समेट लेते ह। उनक किवता म ग-
किवता का आभास वतमान आधुिनक िहदी
किवता क एक मुख वृि ह।
इस संह म कई तर पर िवषय का
िवतार प होता ह। आमीय रते और ेम
को वे िनजी अनुभव क प म नह, ब क
मानवीय अ तव क सार क प म देखते ह।
ेम क िबना जीवन अधूरा ह और उसक
वापसी ही 'उमीद क तरह लौटना' ह।
किवता म समकालीन समाज क
िवडबनाएँ, अयाय और िवषमताएँ भी
उप थत ह। लेिकन किव कवल िनराशा
य नह करता, वह समाधान क िदशा म
उमीद जगाता ह।
कित क मायम से जीवन और संवेदना
क गहराई को पकड़ना उनक साथ आमसात
होना इस िकताब क बदा किवता म
प परलित होता ह। कित किवता म
तीकामक ही नह, ब क आमीय साथी
क तरह आती ह। इन किवता म समय-
समय पर पंकज सुबीर आम से संवाद करते
ह, जो िपता क अचानक अनुप थित से
उपजे न क उर पा लेने क गहन
आकांा ह। यह संवाद जीवन क मूल न
जैसे मृयु, अ तव, समय, मृित तथा
भिवय क िलए िचंतन क ओर ले जाता ह।
पंकज सुबीर क किवता म एक मुख
गुण उनक संवेदनामक गहराई ह। वे
मामूली-सी घटना या भाव को इस तरह तुत
करते ह िक वह बड़ जीवन-दशन म बदल
जाता ह। उदाहरण क िलए, िबछोह क पीड़ा
को वे कवल आँसू और दद तक सीिमत नह
रखते, ब क उसे पुनः िमलन और लौटने क
आशा म ढाल देते ह। उनका भाव-संसार एक
तरलता िलए ए ह, जहाँ य गत दुख भी
उनक किवता म आकर सामूिहक अनुभव
बन जाता ह।
इस संह म संबंध क गरमा और उनक
संवेदना को िवशेष थान िमला ह। लेिकन
यह संवाद कवल य गत नह, ब क पूर
समाज म रत क उप थित और उसक
भूिमका का भी समान करता ह। किव इस
रते को 'उमीद' क प म देखता ह तथा
जीवन म उजास और कोमलता लाने वाली
श क प म भी।
पंकज सुबीर क किवताएँ अपेाकत
छोटी और गहन ह। कह-कह उनम सू य
जैसी संि ता ह, तो कह गामक
िवतार। यह िविवधता संह को एकपता से
मु? कर देती ह और पाठक को ताज़गी का
अनुभव कराती ह। किवता का िवचार और
भाव का वाह, बाँधे रखता ह। आज क समय
म जब समाज िहसा, अिवास और िवघटन
क ओर बढ़ रहा ह, तब किवता का दाियव ह
िक वह मनुय म मनुयता को बचाए रखे।
पंकज सुबीर क किवताएँ यही करती ह। वे
बार-बार कहती ह िक िनराशा क कोई अंितम
मंिज़ल नह ह, ब क आशा ही जीवन का
थायी सय ह। यही कारण ह िक उनका
काय-वर समकालीन पर य म साथक
और ासंिगक ह।
संह पढ़ते ए हम एक आमीय याा पर
िनकल जाते ह। अपने खोए ए रत को याद
करते ह, कभी वतमान समाज क जिटलता
से -ब- होते ह, अंततः एक उजाले क
ओर लौटते ह। संह क यह एक बड़ी
उपल ध ह िक वह भीतर तक छ लेता ह और
िवचार मंथन क िलए ेरत करता ह।
'उमीद क तरह लौटना तुम' कवल
किवता का संह नह, ब क एक
मानिसक-आया मक याा ह। यह जीवन
क अंधकार म एक मम लौ म जलते दीपक
क तरह ह, जो आ त करता ह िक चाह
िकतनी ही किठन घिड़याँ आएँ, मनुय अंततः
उमीद और ेम क ओर लौटगा। पंकज
सुबीर क किवताएँ पाठक क भीतर िछपी
आता को जात करती ह और एक बेहतर
मनुय बनने का आ?ान करती ह।
पंकज सुबीर का यह संह िहदी किवता
क परपरा म उमीद, ेम और मानवीय
संवेदना क वर को और खर करता ह। यह
संह आह करता ह येक किठनाई, हर
िवफलता और सवथा अँधेर क बाद 'उमीद
क तरह' हम लौटना ही होगा। यह संह
इसिलए भी साथक ह, िक यह किवता से
िसफ सदय नह, ब क जीवन का साहस
और िदशा पाने क िलए भी ेरत करता ह।
000
जीवन क धड़कन
मनीष वै
जब दुिनया म ताप बढ़ जाता ह, तो हम
धरती से नमी लेते ह। धरती क ताप को हरने क
िलए बारश आती ह लेिकन जब हमार भीतर
ताप बढ़ जाता ह। रत क नमी का कोई
हरहराता बरगद अपनी जड़ सिहत हमसे
अनायास दूर हो जाता ह तो संवेदना क नमी
हम किवता क नज़दीक ले जाती ह। अनूठ
कथाकार पंकज सुबीर जब अपने िपता क
चले जाने से ख़ालीपन और अवसाद म चुपी
साधे मौन होने लगते ह तो उनक भीतर का
संवेदनशील मन अचानक किवता क भाव-
भूिम गढ़ता ह।
?द पंकज कहते ह- "एक िदन पहले ही
िपता क अ थय को नमदा म िवसिजत
करक आया था। मेर सामने काग़ज़ और
क़लम रखे ए थे। मने क़लम को उठाया और
यूँ ही िलखना शु िकया, जो िलखा जा रहा
था वह एक किवता जैसा था- 'िपता, तीन िदन
बीत गये' अगले िदन जब िफर बैठा तो िफर
एक किवता िलखी... बस उसक बाद
िसलिसला चलता रहा... िदन नह ब क
अगले कछ महीन तक। ारभ म किवताएँ
िपता पर िलखी गय... िफर धीर-धीर और
िवषय जुड़ते चले गये। इस कार इन
किवता का जम आ।"
मेर िलए पंकज सुबीर क कहािनयाँ पढ़ना
शु से ही िय रहा। एक अनकह िक़म का
जुड़ाव रहा। वे अपने आसपास क िकरदार
को इतनी सुगढ़ता से खड़ा करते ह और उनम
संवेदना क नमी ऐसी होती ह िक पढ़ जाने क
बाद भी कई महीन-साल तक वे भीतर रची-
बसी रह जाती ह। ऐसे म उनक किवता का
यह ताज़ा संह 'उमीद क तरह लौटना तुम'
िमलते ही पढ़ गया। तो पाया िक ग िलखने म
जो छट गया ह, वह मुसलसल यहाँ चला
आया ह। किवता क श? म, उसी ताप,
तेवर, तरतीब। इनम संवेदना क वही घनेरी
छाँव ह, जो इस छीजते ए वत म हम दो
घड़ी ही सही सुक?न और नेह देती ह और एक
ख़ास तरह क ताक़त भी। जो बताती ह िक
कोई भी अँधेरा कभी इतना घना नह होता िक
उनम 'उमीद क तरह लौटने' क ाथनाएँ
अनसुनी रह जाएँ।
इस संह क कछ किवता म िपता क
जाने क बाद का ख़ालीपन ह, उस बरगद क
छाया क अनायास छीन जाने क मन थित ह,
जो मुझ जैसे िपतृिवहीन हर पाठक से भीतर
गहर तक जुड़ती ह। इनम सुकोमल ेम-
किवताएँ भी ह, जो कारांतर से दुिनयादारी क
िखलाफ़ ेम को मज़बूती से िवकप क तरह
रखती ह। ितरोध क किवताएँ ह और कित
क ेम म रची गई किवताएँ भी ह, जो बड़
सवाल से मुठभेड़ करती सी लगती ह। ख़ास
बात िक इनम जीवन क धड़कन ह। ये
किवताएँ हम एक अलग भावभूिम म ले जाती
ई जीवन क सुंदरता से ब कराती ह।
दरअसल जीवन को सुंदर बनाने म मानव
सयता और संकित क साथ उसक
बआयामी चेतना का िवतार ज़री ह।
संवेदना ही उसे समाज और कित से जोडती
ह। किवता हम संवेदना, ेम, सदभाव,
सिहणुता, अिहसा, समपण और परोपकार
जैसे ितमान क ज़रए चेतना संप? बनाकर
एक समरस समाज क िलए यनशील रहती
ह।
किव ेम को िलखता-रचता नह, उसे
जीता भी ह। तभी तो िकशोरवय क ेम क
आवाज़ तक वह जीवनभर भूल नह पाता।
किवता 'तुम' म बरस पुरानी वे ही महीन
आवाज़ पाठक क मन म भी गूँजती ह। अपने
लेखक िम यती िम क िलए ये पं याँ
िकतनी सटीक ह- "यती तुम अभी भी बे
ही हो/ और बने रहना बे ही,/ बड़ मत
होना,/ बत गुणी, बत ानी य / बत
अकला होता ह।" इसी तरह शहरयार क
िलए- "बेटा होता तो/ शायद तुहार जैसा ही
होता,/ इसी तरह रहता हमेशा/ मुझसे
असहमत,/ बात-बात पर/ इसी तरह परवाह
करता मेरी।" उन ?ेह बधन को पुता
करती ह, जो किव ने अपने िनजी जीवन म
बाँधे ह। जबिक कोई बंधन एकतरफ़ा नह हो
सकता। किव का ?ेह इसम अ य होकर भी
अनुभूत होता ह।
वे एक किवता म िलखते ह- "सुनो
कािलदास/ तुम अकले नह थे/ जो िजस
शाख पर बैठ थे/ उसे ही काट रह थे,/ हम
सब भी वही कर रह ह/ िनरतर कर रह ह।"
किवता एक बड़ा सवाल छोड़ती ह िक हम
सब उसी जीवनदाियनी कित क अनमोल
िवरासत को उसी तरह न करने पर आमादा
ह, जैसे कभी कािलदास ने िजस पर बैठ, उसी
शाखा को काटने का यन िकया होगा।
इस संह क शीषक किवता 'उमीद क
तरह लौटना तुम' क पं याँ- "इस बार जब
लौटो/ तो उमीद क तरह लौटना तुम,/पृवी
पर अंितम शेष हरितमा को/ िजस कार
उमीद होती ह/ हर एक बादल से,/
ाथना म डबी ई/ सैिनक क माँ को/
िजस कार उमीद होती ह/ यु िवराम क
हर घोषणा से।।" उस उमीद क िकरण को
बनाए रखना चाहती ह, बचाए रखना चाहती
ह। किव जानता ह िक जीवन क िलए सबसे
यादा ज़री ह उमीद रखना। पाश ने भी
कहा ह-"सबसे ख़तरनाक होता ह सपन का
मर जाना"
ये किवताएँ भी हमारी बदलती ई दुिनया
क आस? ख़तर से हम चेताती ह और अपने
तरह क दुिनया का ख़ाका खचती ह। इनम
बत-सा कहने से छटा आ ह और यही
अय हमारी अंतस क चेतना को
झकझोरता ह। सािहय का असल मक़सद
इसी पेस को पाठक क मन म रोप देने का ह।
इस मायने म ये किवताएँ बड़ा काम करती ह।
000

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 202539 38 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 2025
होगा वह समय / िबना किवता क' यह
आह भी ह िक य य को लेकर
किवता म आमीयता शेष रह, ?द को बड़
होने से बचाये, आँख म शरारत बची रह।
चूँिक, संह क अिधकतर किवताएँ िपता
क आस? मृयु को लेकर ह इसिलए ज़ािहर
ह उसम एक ख़ास तरह का िनजीपन ह।
आमकथामकता क आस-पास का!
किवताएँ िपता क (अचानक नह धीर-धीर)
जाने और उससे बने एक ख़ालीपन को लेकर
ह इसिलए उनम िनजी पीड़ा भी ह। ेम
किवता तक आकर यह पीड़ा कम ई ह
और कित, ाप, ितरोध तक आकर वे
सावजिनक भूिमका म िदखाई देने लगती ह।
'बेटी का ेम' िबकल अलग तरह क
किवता ह। यह 'अलगपन' उसे िवशेष बनाता
ह। य य को लेकर िलखी ग किवता
म य व क बारीक़ बुनावट और मासूम
आमीयता ह। कछ किवताएँ सैांितक
मसल पर बात कहने क कोिशश करती ह
तब थोड़ी सपाट ग होने लगती ह! हालाँिक,
बाक़ जगह वे किवता होने क बुिनयादी माँग
पूरी करती ह।
यह संह पंकज सुबीर क रचनाकार क
भीतरी रचनामक खलबली क सूचना देता
ह।
000
मानवीय संवेदना का दतावेज़
शैले शरण
पंकज सुबीर का किवता संह 'उमीद
क तरह लौटना तुम' एक ऐसे समय म आया
ह, जब सािहय और िवशेषकर किवता से
समाज क अपेाएँ लगातार बढ़ी ह।
उपभो?ावादी संकित, तकनीक शोर और
राजनीितक-सामािजक जिटलता क बीच
किवता अपने िलए न कवल एक थान
तलाश रही ह ब क मनुय क भीतर िछपी
संवेदना को जगाने का काय भी कर रही ह।
पंकज सुबीर का यह संह इह मानवीय
संवेदना, रत, पीड़ा और पुनजवन क
आकांा का दतावेज़ ह।
'उमीद क तरह लौटना तुम'- यह
शीषक भावनामक आह नह ह, ब क
जीवन का उ?ोष ह। यहाँ 'उमीद' का
तीक बआयामी ह। यह संह िवछोह और
संघष क बाद पुनः उठ खड़ होने और भिवय
क ित आथा का एक आयाम ह।
पंकज सुबीर क आमीय भाषा,
य गत संघष क बावजूद लोक-संवेदना से
संप? ह। वे किठन शदावली या जिटल
िबंब म किवता को उलझाते नह, ब क
सहज-सरल भाव क मायम से पाठक क
दय तक प चते ह। शैली संवादामक ह,
िजसम बातचीत करते ये वे सभी को अपने
साथ समेट लेते ह। उनक किवता म ग-
किवता का आभास वतमान आधुिनक िहदी
किवता क एक मुख वृि ह।
इस संह म कई तर पर िवषय का
िवतार प होता ह। आमीय रते और ेम
को वे िनजी अनुभव क प म नह, ब क
मानवीय अ तव क सार क प म देखते ह।
ेम क िबना जीवन अधूरा ह और उसक
वापसी ही 'उमीद क तरह लौटना' ह।
किवता म समकालीन समाज क
िवडबनाएँ, अयाय और िवषमताएँ भी
उप थत ह। लेिकन किव कवल िनराशा
य नह करता, वह समाधान क िदशा म
उमीद जगाता ह।
कित क मायम से जीवन और संवेदना
क गहराई को पकड़ना उनक साथ आमसात
होना इस िकताब क बदा किवता म
प परलित होता ह। कित किवता म
तीकामक ही नह, ब क आमीय साथी
क तरह आती ह। इन किवता म समय-
समय पर पंकज सुबीर आम से संवाद करते
ह, जो िपता क अचानक अनुप थित से
उपजे न क उर पा लेने क गहन
आकांा ह। यह संवाद जीवन क मूल न
जैसे मृयु, अ तव, समय, मृित तथा
भिवय क िलए िचंतन क ओर ले जाता ह।
पंकज सुबीर क किवता म एक मुख
गुण उनक संवेदनामक गहराई ह। वे
मामूली-सी घटना या भाव को इस तरह तुत
करते ह िक वह बड़ जीवन-दशन म बदल
जाता ह। उदाहरण क िलए, िबछोह क पीड़ा
को वे कवल आँसू और दद तक सीिमत नह
रखते, ब क उसे पुनः िमलन और लौटने क
आशा म ढाल देते ह। उनका भाव-संसार एक
तरलता िलए ए ह, जहाँ य गत दुख भी
उनक किवता म आकर सामूिहक अनुभव
बन जाता ह।
इस संह म संबंध क गरमा और उनक
संवेदना को िवशेष थान िमला ह। लेिकन
यह संवाद कवल य गत नह, ब क पूर
समाज म रत क उप थित और उसक
भूिमका का भी समान करता ह। किव इस
रते को 'उमीद' क प म देखता ह तथा
जीवन म उजास और कोमलता लाने वाली
श क प म भी।
पंकज सुबीर क किवताएँ अपेाकत
छोटी और गहन ह। कह-कह उनम सू य
जैसी संि ता ह, तो कह गामक
िवतार। यह िविवधता संह को एकपता से
मु? कर देती ह और पाठक को ताज़गी का
अनुभव कराती ह। किवता का िवचार और
भाव का वाह, बाँधे रखता ह। आज क समय
म जब समाज िहसा, अिवास और िवघटन
क ओर बढ़ रहा ह, तब किवता का दाियव ह
िक वह मनुय म मनुयता को बचाए रखे।
पंकज सुबीर क किवताएँ यही करती ह। वे
बार-बार कहती ह िक िनराशा क कोई अंितम
मंिज़ल नह ह, ब क आशा ही जीवन का
थायी सय ह। यही कारण ह िक उनका
काय-वर समकालीन पर य म साथक
और ासंिगक ह।
संह पढ़ते ए हम एक आमीय याा पर
िनकल जाते ह। अपने खोए ए रत को याद
करते ह, कभी वतमान समाज क जिटलता
से -ब- होते ह, अंततः एक उजाले क
ओर लौटते ह। संह क यह एक बड़ी
उपल ध ह िक वह भीतर तक छ लेता ह और
िवचार मंथन क िलए ेरत करता ह।
'उमीद क तरह लौटना तुम' कवल
किवता का संह नह, ब क एक
मानिसक-आया मक याा ह। यह जीवन
क अंधकार म एक मम लौ म जलते दीपक
क तरह ह, जो आ त करता ह िक चाह
िकतनी ही किठन घिड़याँ आएँ, मनुय अंततः
उमीद और ेम क ओर लौटगा। पंकज
सुबीर क किवताएँ पाठक क भीतर िछपी
आता को जात करती ह और एक बेहतर
मनुय बनने का आ?ान करती ह।
पंकज सुबीर का यह संह िहदी किवता
क परपरा म उमीद, ेम और मानवीय
संवेदना क वर को और खर करता ह। यह
संह आह करता ह येक किठनाई, हर
िवफलता और सवथा अँधेर क बाद 'उमीद
क तरह' हम लौटना ही होगा। यह संह
इसिलए भी साथक ह, िक यह किवता से
िसफ सदय नह, ब क जीवन का साहस
और िदशा पाने क िलए भी ेरत करता ह।
000
जीवन क धड़कन
मनीष वै
जब दुिनया म ताप बढ़ जाता ह, तो हम
धरती से नमी लेते ह। धरती क ताप को हरने क
िलए बारश आती ह लेिकन जब हमार भीतर
ताप बढ़ जाता ह। रत क नमी का कोई
हरहराता बरगद अपनी जड़ सिहत हमसे
अनायास दूर हो जाता ह तो संवेदना क नमी
हम किवता क नज़दीक ले जाती ह। अनूठ
कथाकार पंकज सुबीर जब अपने िपता क
चले जाने से ख़ालीपन और अवसाद म चुपी
साधे मौन होने लगते ह तो उनक भीतर का
संवेदनशील मन अचानक किवता क भाव-
भूिम गढ़ता ह।
?द पंकज कहते ह- "एक िदन पहले ही
िपता क अ थय को नमदा म िवसिजत
करक आया था। मेर सामने काग़ज़ और
क़लम रखे ए थे। मने क़लम को उठाया और
यूँ ही िलखना शु िकया, जो िलखा जा रहा
था वह एक किवता जैसा था- 'िपता, तीन िदन
बीत गये' अगले िदन जब िफर बैठा तो िफर
एक किवता िलखी... बस उसक बाद
िसलिसला चलता रहा... िदन नह ब क
अगले कछ महीन तक। ारभ म किवताएँ
िपता पर िलखी गय... िफर धीर-धीर और
िवषय जुड़ते चले गये। इस कार इन
किवता का जम आ।"
मेर िलए पंकज सुबीर क कहािनयाँ पढ़ना
शु से ही िय रहा। एक अनकह िक़म का
जुड़ाव रहा। वे अपने आसपास क िकरदार
को इतनी सुगढ़ता से खड़ा करते ह और उनम
संवेदना क नमी ऐसी होती ह िक पढ़ जाने क
बाद भी कई महीन-साल तक वे भीतर रची-
बसी रह जाती ह। ऐसे म उनक किवता का
यह ताज़ा संह 'उमीद क तरह लौटना तुम'
िमलते ही पढ़ गया। तो पाया िक ग िलखने म
जो छट गया ह, वह मुसलसल यहाँ चला
आया ह। किवता क श? म, उसी ताप,
तेवर, तरतीब। इनम संवेदना क वही घनेरी
छाँव ह, जो इस छीजते ए वत म हम दो
घड़ी ही सही सुक?न और नेह देती ह और एक
ख़ास तरह क ताक़त भी। जो बताती ह िक
कोई भी अँधेरा कभी इतना घना नह होता िक
उनम 'उमीद क तरह लौटने' क ाथनाएँ
अनसुनी रह जाएँ।
इस संह क कछ किवता म िपता क
जाने क बाद का ख़ालीपन ह, उस बरगद क
छाया क अनायास छीन जाने क मन थित ह,
जो मुझ जैसे िपतृिवहीन हर पाठक से भीतर
गहर तक जुड़ती ह। इनम सुकोमल ेम-
किवताएँ भी ह, जो कारांतर से दुिनयादारी क
िखलाफ़ ेम को मज़बूती से िवकप क तरह
रखती ह। ितरोध क किवताएँ ह और कित
क ेम म रची गई किवताएँ भी ह, जो बड़
सवाल से मुठभेड़ करती सी लगती ह। ख़ास
बात िक इनम जीवन क धड़कन ह। ये
किवताएँ हम एक अलग भावभूिम म ले जाती
ई जीवन क सुंदरता से ब कराती ह।
दरअसल जीवन को सुंदर बनाने म मानव
सयता और संकित क साथ उसक
बआयामी चेतना का िवतार ज़री ह।
संवेदना ही उसे समाज और कित से जोडती
ह। किवता हम संवेदना, ेम, सदभाव,
सिहणुता, अिहसा, समपण और परोपकार
जैसे ितमान क ज़रए चेतना संप? बनाकर
एक समरस समाज क िलए यनशील रहती
ह।
किव ेम को िलखता-रचता नह, उसे
जीता भी ह। तभी तो िकशोरवय क ेम क
आवाज़ तक वह जीवनभर भूल नह पाता।
किवता 'तुम' म बरस पुरानी वे ही महीन
आवाज़ पाठक क मन म भी गूँजती ह। अपने
लेखक िम यती िम क िलए ये पं याँ
िकतनी सटीक ह- "यती तुम अभी भी बे
ही हो/ और बने रहना बे ही,/ बड़ मत
होना,/ बत गुणी, बत ानी य / बत
अकला होता ह।" इसी तरह शहरयार क
िलए- "बेटा होता तो/ शायद तुहार जैसा ही
होता,/ इसी तरह रहता हमेशा/ मुझसे
असहमत,/ बात-बात पर/ इसी तरह परवाह
करता मेरी।" उन ?ेह बधन को पुता
करती ह, जो किव ने अपने िनजी जीवन म
बाँधे ह। जबिक कोई बंधन एकतरफ़ा नह हो
सकता। किव का ?ेह इसम अ य होकर भी
अनुभूत होता ह।
वे एक किवता म िलखते ह- "सुनो
कािलदास/ तुम अकले नह थे/ जो िजस
शाख पर बैठ थे/ उसे ही काट रह थे,/ हम
सब भी वही कर रह ह/ िनरतर कर रह ह।"
किवता एक बड़ा सवाल छोड़ती ह िक हम
सब उसी जीवनदाियनी कित क अनमोल
िवरासत को उसी तरह न करने पर आमादा
ह, जैसे कभी कािलदास ने िजस पर बैठ, उसी
शाखा को काटने का यन िकया होगा।
इस संह क शीषक किवता 'उमीद क
तरह लौटना तुम' क पं याँ- "इस बार जब
लौटो/ तो उमीद क तरह लौटना तुम,/पृवी
पर अंितम शेष हरितमा को/ िजस कार
उमीद होती ह/ हर एक बादल से,/
ाथना म डबी ई/ सैिनक क माँ को/
िजस कार उमीद होती ह/ यु िवराम क
हर घोषणा से।।" उस उमीद क िकरण को
बनाए रखना चाहती ह, बचाए रखना चाहती
ह। किव जानता ह िक जीवन क िलए सबसे
यादा ज़री ह उमीद रखना। पाश ने भी
कहा ह-"सबसे ख़तरनाक होता ह सपन का
मर जाना"
ये किवताएँ भी हमारी बदलती ई दुिनया
क आस? ख़तर से हम चेताती ह और अपने
तरह क दुिनया का ख़ाका खचती ह। इनम
बत-सा कहने से छटा आ ह और यही
अय हमारी अंतस क चेतना को
झकझोरता ह। सािहय का असल मक़सद
इसी पेस को पाठक क मन म रोप देने का ह।
इस मायने म ये किवताएँ बड़ा काम करती ह।
000

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 202541 40 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 2025
इस संह क कई कहािनयाँ ेम से आगे
बढ़कर सामािजक ं , पहचान क
जिटलता और रत क अनकही परत को
भी खोलती ह। 'ठडी चाय' कहानी ेम, दूरी
और उदासी क िकोण को छती ह- वहाँ
संवाद नह, एक उखड़ती लय ह, जो संबंध
क चुप हो जाने क कथा कहती ह। पा क
बीच जो बचा ह, वह ह- "बात क रवानी
कम हो रही थी"- यह वायांश सदीप क
भाषा का वह नया िबंब ह, जो टटते रत क
आवाज़ को मौन म ढाल देता ह। इसी तरह
'मेरी माँ का िज़ी ेम' एक बेहद आमीय
और मािमक आयान ह, जो मातृव और ी
अ मता क नई याया तुत करता ह-
यहाँ जीवन क साथकता कवल याग या
देखभाल नह, ब क मृित और वािभमान
क गहर बोध म िनिहत ह।
'आई िथंक, आई लाइक यू' जैसे शीषक
पहली s?? म िकसी युवा ेमकथा क झलक
देते ह, परतु भीतर उतरते ही वे आज क पीढ़ी
क अ थरता, आक मकता और गहराई क
बेचैनी को उजागर करते ह। यहाँ संवाद से
अिधक, बोलती आँख से सदेश पढ़ लेना
कहानी को आगे बढ़ाता ह।
'बदनुमा दाग़' जैसी कहानी िवधवा ी
क संवेदना, उसक वासय और ी क
चुप पीड़ा को मुखर करती ह- परतु िकसी
घोषणा या नार क मायम से नह, ब क
"पलक क सती" क ज़रए- जहाँ आँसू
रोक िलए जाते ह और मौन म वासय जम
लेता ह।
'राँग नंबर' म एक साहसी और अपने
जीवन क फ़सले वयं लेने वाली लड़क क
दतान ह तो 'ए दोत तुझे सलाम' म एक
बेहतरीन दोत क साथ क आमीयता पर
क़लम चलायी गई ह, और 'कॉटज ऑफ
इमोशंस' आधुिनक समय क वैयावृित क
बदलते वप, ताकािलकता से िघर संबंध
क जिटलता क साथ एक ी क ाहक
चयन क टार और मानक को दशाकर
लेखक ी पा को उ दजा देता ह, ी क
वप को सामने लाते ह।
ये कहािनयाँ यह सवाल उठाती ह िक या
आज का ेम कवल "लेन-देन तय कर िलया
जाए" वाली भावना बन गया ह " या या
आमीयता भी अब लेट सव करते ह लेखक
महोदय! जैसे यंयामक आदेश म बदल
गई ह " यहाँ लेखक संबंध क बाज़ारीकरण
और भंगुरता पर चुपचाप, लेिकन गहर यंय
से हार करता ह।
'मेरा थम पु?ष िम' िवकलांग िवमश
क बेहतरीन कहानी ह। 'िकतनी ख़ास ह वो'
जैसी कहािनयाँ सामािजक-सांकितक
िभता क बीच पलते ेम क िवडबना
को उठाती ह। यहाँ "नाम ज़ेहन म गूँजने
लगना" कवल एक मृित का लौट आना नह
ह, ब क िकसी ऐसे भाव क पुनरावृि ह जो
कभी कट नह हो पाया, लेिकन अब भीतर
क गूँज बन चुका ह।
यह भी उेखनीय ह िक इन कहािनय म
सदीप तोमर ी पा को िकसी भी तरह से
'यूज़ हडलाइन' या 'हािशए' म नह रखते,
ब क वे उनक भीतर क जिटलता को
उसी आमीयता से अिभय करते ह, जैसे
वे पु?ष पा क आमसंघष को िचित करते
ह। 'लैक यूटी' इस से एक महवपूण
कहानी ह, जो रगभेद, सदय-बोध और
पहचान क सामािजक संघष को बेहद िनजी
संदभ म रचती ह।
इस कार ेम गिणत और अय
कहािनयाँ एक ऐसा संह ह िजसम
समकालीन िहदी कहानी क न कवल
िचंता और िवमश को समेटा गया ह,
ब क भाषा, शैली और संरचना क तर पर
भी नवीनता का गंभीर यास िकया गया ह।
यह संह अपनी पूरी गरमा, गरमाहट और
गहराई क साथ समकालीन कथा-सािहय म
एक दीघकालीन भाव छोड़ने क मता
रखता ह- न कवल एक लेखक क प म
सदीप तोमर को थािपत करता ह, ब क
िहदी कहानी को एक नया कथामक वर
और मुहावरा भी देता ह।
सदीप तोमर क कहािनयाँ न कवल
कय और संवेदना म नई ज़मीन तोड़ती ह,
ब क भाषा क तर पर भी एक िविश
योगदान देती ह। उहने कई ऐसे नए मुहावर
गढ़ ह, जो न कवल आज क मानिसक
थितय को शद देते ह, ब क िहदी कथा-
भाषा को नया मुहावरदार मुहावरा भी दान
करते ह। ये मुहावर पारपरक मुहावर क
नकल नह ह, ब क एक भीतर से उपजा
आ भािषक आमबोध ह- जैसे "ेम का
गिणत हल नह होता, उलझता ह", "मृितय
क उजाले म बैठा आ अँधेरा", "भावना
क भीड़ म मौन सबसे मुखर ह", या "संवाद
क परछाई से बनी आमा" जैसे वायांश
िकसी ताकािलक भाव क िलए नह रचे गए
ह, ब क गहर आममंथन और अनुभव से
उपजे ह। इन तमाम कहािनय म मुहावर, िबंब
और तीक कवल सदय क उपकरण नह ह,
वे कहानी क भावप को ठोस और ामािणक
बनाते ह। जैसे "माटी क पुकार मूक होती ह",
या "परछाई मेरी परछाई म लु हो गई"- ये
कवल कह गए वाय नह, ब क वे
भावनामक अनुभव-संकत ह जो पाठक को
भीतरी पंदन तक प चाते ह।
इन कहािनय म भाषा कवल मायम नह
ह, वह वयं एक पा बन जाती ह- कभी न
करती ई, कभी चुप रहकर भी बत कछ
कहती ई। लेखक ने संवाद म ऐसे मुहावर
रचे ह जो आज क युवा मन क आंतरक
ज?ोजहद, वैचारक फाँक और ेम क
संशयामकता को अिभय करते ह।
उदाहरण क तौर पर, "तुम मेरी मृित म मृित
क तरह नह, िज़मेदारी क तरह रहती हो"-
ऐसा वाय न कवल नई संवेदना को
उ?ािटत करता ह, ब क भाषा को भी एक
किववमयी धार दान करता ह। इस तरह क
मुहावर आज क आम-संदेह त पीढ़ी क
िलए भािषक थेरपी जैसे बन जाते ह- जो उह
अपनी उलझन को पहचानने और अिभय
करने का जरया देते ह।
यह संह समकालीन िहदी कहानी-
सािहय क िितज पर एक ईमानदार और
सश? हतार क तरह अंिकत होता ह।
और यह भूिमका कवल एक समीक क
ितिया नह, ब क एक पाठक क गवाही
भी ह।
000
सदीप तोमर का कहानी-संह ेम गिणत और अय कहािनयाँ समकालीन िहदी कथा-
सािहय म एक ऐसी िविश उप थित ह जो कवल घटना का आयान नह रचती, ब क
संवेदना क परत को खोलते ए पाठक को उसक अपनी मृितय, िवडबना और उलझन
से सााकार कराती ह। यह संह आज क उस पीढ़ी का दतावेज़ ह जो ेम म तक खोजती
ह, रत म गणना करती ह, और िफर भी भीतर से बेहद टटन और तलाश म जीती ह।
संह क कहािनयाँ पहली s?? म सामाय जीवन क थितयाँ लग सकती ह- एक पाक म
बैठा जोड़ा, मृितय म उलझा य , चुपी साधे पा- लेिकन जैसे-जैसे कहानी भीतर उतरती
ह, पाठक को लगता ह िक यह तो उसका अपना ही कोई भाव, कोई अनुभव ह, िजसे शद म
बाँध िदया गया ह। सदीप तोमर का लेखन इस मायने म अितीय ह िक वह नाटकय नह ह,
लेिकन भाव अयंत गहरा छोड़ता ह। उनक भाषा सीधी, आमीय और पारदश ह। वह न
िकसी दाशिनकता का भार ओढ़ती ह, न िशप का दशन करती ह, िफर भी भीतर तक उतर
जाती ह। इन कहािनय क शैली आमवीकित और मृित क भूिम से उपजी ई ह। लेखक
अपने पा से कवल सहानुभूित नह करता, वह उनक भीतर उतरता ह, और उनक मौन को
भाषा देता ह। यही कारण ह िक 'दीप' या 'िनमल' जैसे पा पाठक को इतने अपने लगते ह िक
उनक िनणय से सहमत या असहमत होना मु कल हो जाता ह- उह कवल महसूस िकया जा
सकता ह।
'यंगस लव' कहानी का ेम, गिणतीय भाषा म उलझा आ एक ऐसा संवाद ह, जहाँ
भावनाएँ समीकरण बनती ह लेिकन हल नह होत। वह 'परछाई पीछा नह छोड़ती' मृित,
अकलेपन और आमलािन क यी को इस तरह रचती ह िक पाठक का मन चुपचाप भीगता
रहता ह। सदीप तोमर क कहािनय को पढ़ते ए बार-बार िनमल वमा क धीमी, लेिकन
गहराई से भरी भाषा क याद आती ह, वह मोहन राकश और कमलेर क नगरीय आधुिनकता
क गूँज भी सुनाई देती ह। परतु इन भाव क बावजूद सदीप क अपनी एक अलग पहचान ह-
एक ऐसा कहानीकार जो आमकय और सामािजक यथाथ को संतुिलत प म िपरोना जानता
ह। वह ेम को कवल भावनामक ? म नह देखता, ब क उसक सामािजक, मानिसक और
सांकितक संदभ को भी यान म रखता ह। इसी कारण संह क कई कहािनयाँ ी चेतना
और आधुिनक तकनीक जीवन क ं को छती ह- िबना िकसी चारामकता क, िबना नार
क।
इन कहािनय म जगह-जगह संवाद क मायम से एक ऐसा अंतरग संसार रचता ह जहाँ
मौन क भूिमका संवाद से अिधक भावी हो जाती ह। पा बोलते कम ह, महसूस अिधक करते
ह, और लेखक उस अनुभूित को पकड़ने म सफल रहता ह। यही िवशेषता इस संह को भीड़ म
अलग खड़ा करती ह। यह कहानी क उस परपरा म आता ह जहाँ आम-िवेषण और सू?म
पयवेण क कला ही लेखक क सबसे बड़ी ताकत होती ह।
सदीप तोमर न तो कवल शहर क लेखक ह, न ही कवल गाँव क। उनक अनुभव क
उन सीमांत को छती ह जहाँ मृित, संघष और संबंध- तीन एक साथ उप थत होते ह। उनक
कहािनय म बदलता समय, युवा क अ थर मानिसकता, सामािजक असमानता और ेम
क अिन तता सब एक साथ चलते ह। वे इन तव को जोड़ते नह, उह गूँथते ह। यही कारण
ह िक यह संह समकालीन िहदी कहानी क नई िदशा का ितिनिध बनकर उभरता ह।
ेम गिणत और अय कहािनयाँ उन कहािनय का संकलन ह जो पाठक से बाहर नह, भीतर
संवाद करती ह। यह संह उह भी आमंित करता ह जो ेम और संबंध क गहराइय म
उतरना चाहते ह, और उह भी जो आज क समाज क ं और िवसंगितय को समझना चाहते
ह। यह कवल कहानी नह, वह उजाला ह िजसे लेखक ने अपनी याद और संवेदना से
िसंिचत िकया ह- जैसा िक भूिमका म बशीर ब क पं य क मायम से संकत भी िदया गया
ह: "उजाले अपनी याद क हमार साथ रहने दो, न जाने िकस गली म िज़ंदगी क शाम हो जाए।"
पुतक समीा
(कहानी संह)
ेम गिणत और अय
कहािनयाँ
समीक : पूजा अ नहोी
लेखक : सदीप तोमर
काशक : अिक काशन
पूजा अ नहोी
ारा ी दीप अ नहोी
म नंबर- 1236
उजानगर 'सी' लॉक, िबजुरी
अनूपपुर (म. .) - 484440
मोबाइल- 7987219458
ईमेल- [email protected]

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 202541 40 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 2025
इस संह क कई कहािनयाँ ेम से आगे
बढ़कर सामािजक ं , पहचान क
जिटलता और रत क अनकही परत को
भी खोलती ह। 'ठडी चाय' कहानी ेम, दूरी
और उदासी क िकोण को छती ह- वहाँ
संवाद नह, एक उखड़ती लय ह, जो संबंध
क चुप हो जाने क कथा कहती ह। पा क
बीच जो बचा ह, वह ह- "बात क रवानी
कम हो रही थी"- यह वायांश सदीप क
भाषा का वह नया िबंब ह, जो टटते रत क
आवाज़ को मौन म ढाल देता ह। इसी तरह
'मेरी माँ का िज़ी ेम' एक बेहद आमीय
और मािमक आयान ह, जो मातृव और ी
अ मता क नई याया तुत करता ह-
यहाँ जीवन क साथकता कवल याग या
देखभाल नह, ब क मृित और वािभमान
क गहर बोध म िनिहत ह।
'आई िथंक, आई लाइक यू' जैसे शीषक
पहली s?? म िकसी युवा ेमकथा क झलक
देते ह, परतु भीतर उतरते ही वे आज क पीढ़ी
क अ थरता, आक मकता और गहराई क
बेचैनी को उजागर करते ह। यहाँ संवाद से
अिधक, बोलती आँख से सदेश पढ़ लेना
कहानी को आगे बढ़ाता ह।
'बदनुमा दाग़' जैसी कहानी िवधवा ी
क संवेदना, उसक वासय और ी क
चुप पीड़ा को मुखर करती ह- परतु िकसी
घोषणा या नार क मायम से नह, ब क
"पलक क सती" क ज़रए- जहाँ आँसू
रोक िलए जाते ह और मौन म वासय जम
लेता ह।
'राँग नंबर' म एक साहसी और अपने
जीवन क फ़सले वयं लेने वाली लड़क क
दतान ह तो 'ए दोत तुझे सलाम' म एक
बेहतरीन दोत क साथ क आमीयता पर
क़लम चलायी गई ह, और 'कॉटज ऑफ
इमोशंस' आधुिनक समय क वैयावृित क
बदलते वप, ताकािलकता से िघर संबंध
क जिटलता क साथ एक ी क ाहक
चयन क टार और मानक को दशाकर
लेखक ी पा को उ दजा देता ह, ी क
वप को सामने लाते ह।
ये कहािनयाँ यह सवाल उठाती ह िक या
आज का ेम कवल "लेन-देन तय कर िलया
जाए" वाली भावना बन गया ह " या या
आमीयता भी अब लेट सव करते ह लेखक
महोदय! जैसे यंयामक आदेश म बदल
गई ह " यहाँ लेखक संबंध क बाज़ारीकरण
और भंगुरता पर चुपचाप, लेिकन गहर यंय
से हार करता ह।
'मेरा थम पु?ष िम' िवकलांग िवमश
क बेहतरीन कहानी ह। 'िकतनी ख़ास ह वो'
जैसी कहािनयाँ सामािजक-सांकितक
िभता क बीच पलते ेम क िवडबना
को उठाती ह। यहाँ "नाम ज़ेहन म गूँजने
लगना" कवल एक मृित का लौट आना नह
ह, ब क िकसी ऐसे भाव क पुनरावृि ह जो
कभी कट नह हो पाया, लेिकन अब भीतर
क गूँज बन चुका ह।
यह भी उेखनीय ह िक इन कहािनय म
सदीप तोमर ी पा को िकसी भी तरह से
'यूज़ हडलाइन' या 'हािशए' म नह रखते,
ब क वे उनक भीतर क जिटलता को
उसी आमीयता से अिभय करते ह, जैसे
वे पु?ष पा क आमसंघष को िचित करते
ह। 'लैक यूटी' इस से एक महवपूण
कहानी ह, जो रगभेद, सदय-बोध और
पहचान क सामािजक संघष को बेहद िनजी
संदभ म रचती ह।
इस कार ेम गिणत और अय
कहािनयाँ एक ऐसा संह ह िजसम
समकालीन िहदी कहानी क न कवल
िचंता और िवमश को समेटा गया ह,
ब क भाषा, शैली और संरचना क तर पर
भी नवीनता का गंभीर यास िकया गया ह।
यह संह अपनी पूरी गरमा, गरमाहट और
गहराई क साथ समकालीन कथा-सािहय म
एक दीघकालीन भाव छोड़ने क मता
रखता ह- न कवल एक लेखक क प म
सदीप तोमर को थािपत करता ह, ब क
िहदी कहानी को एक नया कथामक वर
और मुहावरा भी देता ह।
सदीप तोमर क कहािनयाँ न कवल
कय और संवेदना म नई ज़मीन तोड़ती ह,
ब क भाषा क तर पर भी एक िविश
योगदान देती ह। उहने कई ऐसे नए मुहावर
गढ़ ह, जो न कवल आज क मानिसक
थितय को शद देते ह, ब क िहदी कथा-
भाषा को नया मुहावरदार मुहावरा भी दान
करते ह। ये मुहावर पारपरक मुहावर क
नकल नह ह, ब क एक भीतर से उपजा
आ भािषक आमबोध ह- जैसे "ेम का
गिणत हल नह होता, उलझता ह", "मृितय
क उजाले म बैठा आ अँधेरा", "भावना
क भीड़ म मौन सबसे मुखर ह", या "संवाद
क परछाई से बनी आमा" जैसे वायांश
िकसी ताकािलक भाव क िलए नह रचे गए
ह, ब क गहर आममंथन और अनुभव से
उपजे ह। इन तमाम कहािनय म मुहावर, िबंब
और तीक कवल सदय क उपकरण नह ह,
वे कहानी क भावप को ठोस और ामािणक
बनाते ह। जैसे "माटी क पुकार मूक होती ह",
या "परछाई मेरी परछाई म लु हो गई"- ये
कवल कह गए वाय नह, ब क वे
भावनामक अनुभव-संकत ह जो पाठक को
भीतरी पंदन तक प चाते ह।
इन कहािनय म भाषा कवल मायम नह
ह, वह वयं एक पा बन जाती ह- कभी न
करती ई, कभी चुप रहकर भी बत कछ
कहती ई। लेखक ने संवाद म ऐसे मुहावर
रचे ह जो आज क युवा मन क आंतरक
ज?ोजहद, वैचारक फाँक और ेम क
संशयामकता को अिभय करते ह।
उदाहरण क तौर पर, "तुम मेरी मृित म मृित
क तरह नह, िज़मेदारी क तरह रहती हो"-
ऐसा वाय न कवल नई संवेदना को
उ?ािटत करता ह, ब क भाषा को भी एक
किववमयी धार दान करता ह। इस तरह क
मुहावर आज क आम-संदेह त पीढ़ी क
िलए भािषक थेरपी जैसे बन जाते ह- जो उह
अपनी उलझन को पहचानने और अिभय
करने का जरया देते ह।
यह संह समकालीन िहदी कहानी-
सािहय क िितज पर एक ईमानदार और
सश? हतार क तरह अंिकत होता ह।
और यह भूिमका कवल एक समीक क
ितिया नह, ब क एक पाठक क गवाही
भी ह।
000
सदीप तोमर का कहानी-संह ेम गिणत और अय कहािनयाँ समकालीन िहदी कथा-
सािहय म एक ऐसी िविश उप थित ह जो कवल घटना का आयान नह रचती, ब क
संवेदना क परत को खोलते ए पाठक को उसक अपनी मृितय, िवडबना और उलझन
से सााकार कराती ह। यह संह आज क उस पीढ़ी का दतावेज़ ह जो ेम म तक खोजती
ह, रत म गणना करती ह, और िफर भी भीतर से बेहद टटन और तलाश म जीती ह।
संह क कहािनयाँ पहली s?? म सामाय जीवन क थितयाँ लग सकती ह- एक पाक म
बैठा जोड़ा, मृितय म उलझा य , चुपी साधे पा- लेिकन जैसे-जैसे कहानी भीतर उतरती
ह, पाठक को लगता ह िक यह तो उसका अपना ही कोई भाव, कोई अनुभव ह, िजसे शद म
बाँध िदया गया ह। सदीप तोमर का लेखन इस मायने म अितीय ह िक वह नाटकय नह ह,
लेिकन भाव अयंत गहरा छोड़ता ह। उनक भाषा सीधी, आमीय और पारदश ह। वह न
िकसी दाशिनकता का भार ओढ़ती ह, न िशप का दशन करती ह, िफर भी भीतर तक उतर
जाती ह। इन कहािनय क शैली आमवीकित और मृित क भूिम से उपजी ई ह। लेखक
अपने पा से कवल सहानुभूित नह करता, वह उनक भीतर उतरता ह, और उनक मौन को
भाषा देता ह। यही कारण ह िक 'दीप' या 'िनमल' जैसे पा पाठक को इतने अपने लगते ह िक
उनक िनणय से सहमत या असहमत होना मु कल हो जाता ह- उह कवल महसूस िकया जा
सकता ह।
'यंगस लव' कहानी का ेम, गिणतीय भाषा म उलझा आ एक ऐसा संवाद ह, जहाँ
भावनाएँ समीकरण बनती ह लेिकन हल नह होत। वह 'परछाई पीछा नह छोड़ती' मृित,
अकलेपन और आमलािन क यी को इस तरह रचती ह िक पाठक का मन चुपचाप भीगता
रहता ह। सदीप तोमर क कहािनय को पढ़ते ए बार-बार िनमल वमा क धीमी, लेिकन
गहराई से भरी भाषा क याद आती ह, वह मोहन राकश और कमलेर क नगरीय आधुिनकता
क गूँज भी सुनाई देती ह। परतु इन भाव क बावजूद सदीप क अपनी एक अलग पहचान ह-
एक ऐसा कहानीकार जो आमकय और सामािजक यथाथ को संतुिलत प म िपरोना जानता
ह। वह ेम को कवल भावनामक ? म नह देखता, ब क उसक सामािजक, मानिसक और
सांकितक संदभ को भी यान म रखता ह। इसी कारण संह क कई कहािनयाँ ी चेतना
और आधुिनक तकनीक जीवन क ं को छती ह- िबना िकसी चारामकता क, िबना नार
क।
इन कहािनय म जगह-जगह संवाद क मायम से एक ऐसा अंतरग संसार रचता ह जहाँ
मौन क भूिमका संवाद से अिधक भावी हो जाती ह। पा बोलते कम ह, महसूस अिधक करते
ह, और लेखक उस अनुभूित को पकड़ने म सफल रहता ह। यही िवशेषता इस संह को भीड़ म
अलग खड़ा करती ह। यह कहानी क उस परपरा म आता ह जहाँ आम-िवेषण और सू?म
पयवेण क कला ही लेखक क सबसे बड़ी ताकत होती ह।
सदीप तोमर न तो कवल शहर क लेखक ह, न ही कवल गाँव क। उनक अनुभव क
उन सीमांत को छती ह जहाँ मृित, संघष और संबंध- तीन एक साथ उप थत होते ह। उनक
कहािनय म बदलता समय, युवा क अ थर मानिसकता, सामािजक असमानता और ेम
क अिन तता सब एक साथ चलते ह। वे इन तव को जोड़ते नह, उह गूँथते ह। यही कारण
ह िक यह संह समकालीन िहदी कहानी क नई िदशा का ितिनिध बनकर उभरता ह।
ेम गिणत और अय कहािनयाँ उन कहािनय का संकलन ह जो पाठक से बाहर नह, भीतर
संवाद करती ह। यह संह उह भी आमंित करता ह जो ेम और संबंध क गहराइय म
उतरना चाहते ह, और उह भी जो आज क समाज क ं और िवसंगितय को समझना चाहते
ह। यह कवल कहानी नह, वह उजाला ह िजसे लेखक ने अपनी याद और संवेदना से
िसंिचत िकया ह- जैसा िक भूिमका म बशीर ब क पं य क मायम से संकत भी िदया गया
ह: "उजाले अपनी याद क हमार साथ रहने दो, न जाने िकस गली म िज़ंदगी क शाम हो जाए।"
पुतक समीा
(कहानी संह)
ेम गिणत और अय
कहािनयाँ
समीक : पूजा अ नहोी
लेखक : सदीप तोमर
काशक : अिक काशन
पूजा अ नहोी
ारा ी दीप अ नहोी
म नंबर- 1236
उजानगर 'सी' लॉक, िबजुरी
अनूपपुर (म. .) - 484440
मोबाइल- 7987219458
ईमेल- [email protected]

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 202543 42 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 2025
दुआ-सलाम भली, पुर' क माँ कनाडा से
पठानकोट घर आए अपने बावन वषय बेट
क िलए वही आलू क पराँठ बनाती ह जो उसे
बचपन म बत अछ लगते थे लेिकन बाक़
वह उसक टट परवार और िबखर कारोबार
को लेकर उसक अछी ख़बर लेती ह। वह
एक शहीद क पनी ह। उसने लंबा वैधय
झेला। ?ब संघष िकया। ब क िज़मेदारी
पूरी करक अपने जीवन क सांय बेला म
अपनी सधी िदनचया क साथ समाज सेवा क
काय म लग कर और अपनी िवमृत
अिभिचय को पुनजा त करक गहर संतोष
क िज़ंदगी जी रही ह। वह अपने हार ए बेट
को कमज़ोर नह होने देती। उसको अपने
ब क देखभाल करने और कारोबार को
सँभालने क िलए वापस कनाडा भेज कर ही
दम लेती ह। वह तलाक़शुदा बेट क िलए
लड़क क तलाश भी कर रही ह। या कर..
आिख़र माँ ह...।
ममता क साथ क?णा क संगित
अनायास बैठ जाती ह। अचना क 'माँ' का
िवतार मानव क परिध से बाहर िनकल कर
पशु-जग तक हो गया। मूक पशु म
मातृव क वेदना और क?णा दय को मथ
देती ह। संह क कहानी 'पा' म गोमाता
पा का गभाधान, सव, ाणात... क बीच
म बाज़ार क जो आहट ह, वह रगट खड़ कर
देती ह। गिभणी पा क ददनाक मृयु से घर
क ब क ममाहत होने का िचण बत
का?िणक ह। पा घर क ब क िलए
कवल गाय नह ह। पा ब क गोमाता ह।
वे दूध पीते ह पा का।
मातृव का अपना मनोिवान होता ह।
मातृव अपने म सध लगाने क इजाज़त िकसी
को नह देता। यह गु? बात िजस भाव और
?बसूरती से अचना क तुतीकरण से छन
कर िनकलती ह, वह उनक मानव-मन क
पड़ताल-मता को मािणत करता ह।
कहानी 'तेरी माँ कौन' क नैनी सुनेजा क खता
यह थी िक वह अपनी नौकरी यािन छोट आरव
क देखभाल म िदमाग़ क साथ िदल को भी
लगाने लगी थी। बे को उसम माँ िमल गई
और नैनी को िशशु म अपना वासय।
ी सश?ीकरण क इस दौर म ी का
सुबह घर से बाहर जाना और देर शाम घर
आना आज का सामाय य ह। ी ह और
वह माँ भी ह तो उसक संघष क कोई थाह
नह। ी कवल माँ बनना ही नह चाहती, वह
माँ लगना भी चाहती ह। वह अपने बे क
िलए थम य रहना चाहती ह। डॉ.
ियंका क परशानी यह ह िक उसक दुधमुँह
बे क िलए उसक नैनी थम बन गई ह। माँ
क उप थित म भी वह नैनी क पास जाने को
रोता-मचलता। जमिदन जैसे आयोजन म
मेहमान क सामने माँ क गोदी म रो-रो कर
हलकान होते बे से नैनी का 'म यह ...म
यह , आरव,' कहना माँ का दय चीर कर
रख देता ह। उसे ऐसा लगता ह िक नैनी ने
उससे उसका बा छीन िलया। वह फट
पड़ती ह- 'हम अपने बे क िलए नैनी
चािहए, माँ नह।'
नैनी क कई मजबूरयाँ ह। उसे हर हाल
नौकरी चािहए। िदन म बे को उसक माँ क
तवीर िदखा-िदखा कर माँ से उसका परचय
कराती रहती ह। असल म, जननी बनना एक
घटना ह और माँ बनना एक ? ??s ियंका
आरव क जननी ह और सुनैजा उसक माँ।
वह बे क हर अदा म, बे क हर खेल म,
हर ज़रत म, हर तकलीफ़ म, हर िज़द म
उसक साथ ह। तभी तो बा रात म भी उसी
क साथ सोने क िज़द करता ह। और, जब
वह पूछती ह िक तेरी माँ कौन, तब वह उसी
क ओर तजनी कर देता ह। कहानी म नैनी
और बे क बीच का यही सारय जहाँ
पाठक को मुध कर देता ह, वह माँ ियंका
को क िठत कर देता ह। मातृव का यह सय
भी समझ म आने लगता ह- कवल जम देना
भर माँ बनना नह ह। बे क साथ रह कर
और मातृव क िज़मेदारी का िनवहन करक
ही माँ बना जा सकता ह। इसीिलए तो कोई
जम देकर भी बे क माँ नह बन पाती और
कोई जम िदए िबना ही बे क माँ तुय हो
जाती ह।
मातृव क इसी मनोिवान क एक झाँक
कहानी 'सौतेले ब क चहती माँ' म ह।
वेिदका अपनी सदयता और ?ेह से पित क
पूव पनी क ब , नोहा और बेन, का िदल
जीत लेती ह। ब को अपनी माँ से अिधक
माँ अपनी सौतेली माँ म नज़र आती ह। कारण
सौतेली माँ म जो समझ और ठहराव ह, वह
उनक माँ म नह ह। ब को कवल यार क
नह, भरोसे और सुरा क भी ज़रत होती ह
जो नोहा और बेन अपनी सौतेली माँ क
सािनय म अनुभव करते ह। वतुतः माँ और
संतान जैसे सरल और वाभािवक रते क
भी अपनी जिटलताएँ ह। यह रता माँ क
याग-समपण और संतान क ा-समान-
सेवा भाव क दरकार रखता ह। जहाँ भी इसम
िवन पड़ता ह, ाकितक रते पर भी राख
पड़ जाती ह। और, जहाँ यह भाव थोड़ अंश
म भी मौजूद रहता ह, वहाँ मातृव सूत हो
जाता ह।
मातृव ी का थायी भाव ह। कोई
उ?ीपन होना चािहए और मातृव का यह
थायी भाव उी हो अनुभाव म बदल
जाता ह। मातृव का यह पहलू िदखा ह कहानी
'माँजी लाख म एक थ' म िजसम माँजी
अपनी कई मायता से ऊपर उठ कर अपनी
िवधम सेिवका को अपनी पहचान िछपाने पर
न कवल मा करती ह ब क उसे पूरी तरह
से अंगीकार भी कर लेती ह। मातृव क
उदारता िनसीम होती ह।
मेरी मदरबोड क सभी कहािनय म माँ
क गूँज ह। माँ अपनी अथपूण उप थित से
कथानक को पंिदत करती रहती ह।
मदरबोड क सभी माँ क मायम से अचना
पैयूली यह संदेश देने म सफल रही ह। रचना
कौशल क से भी मेरी मदरबोड ने नए
ितमान गढ़ ह। रत क टकराते समीकरण
म माँ क अ तव क अिडगता को िजस
कोमल लेिकन मज़बूत रशे क दरकार थी,
उसी से बुना ह लेिखका ने माँ का मनोजग।
कई संग दय को मथ देते ह। कय और
िशप- दोन य से कहानी संह मेरी
मदरबोड लेिखका अचना पैयूली क रचना
याा का एक नया मील का पथर ह। िन त
ही उहने अपने लेखन संभावना क नए
िवतार को िदखाया ह।
000
पुतकनामा काशन से कािशत 'मेरी मदरबोड' अचना पैयूली का माँ पर कित दूसरा
कहानी संह ह। अचना क 'माँ' कमज़ोर पर थितय म एक मज़बूत माँ ह। उनक 'माँ'
मातृश को चरताथ करती ह। 'जब एक बा पैदा होता ह तब एक माँ का भी जम होता ह'
– 'मेरी मदरबोड' क कहानी 'चीज़ हमेशा वैसी नह होत, जैसी लगती ह' क इस वाय को
बीज वाय मान कर अचना क 'माँ' को देख तो यह िनकल कर आता ह िक माँ और संतान क
रते क नैसिगकता म कोई शत नह होती। माँ क िलए दुिनया का सबसे सुंदर बा उसका
बा ह और बे क िलए दुिनया क सबसे सुंदर माँ उसक माँ ह। लेिकन यह अकला सच नह
ह, माँ-बे क रते का। समय और हालात से इस सच का वप बदलता रहता ह। अचना
क 'माँ' अपने अनेकानेक वप म हमार समुख आई ह।
'मेरी मदर बोड' क कहानी 'मेर घर आई एक नही परी' म अभाव त परवार म पाँचव
बेटी क जमने से उपजे पर य का आकलन कर स सूता माँ, सीता, अपनी नवजात कया
को सुसप, सुिशित और गोद लेने को बेताब आया को सप कर िन ंत हो जाती ह। माँ क
िलए जो बात सव थम होती ह, वह ह अपनी संतान को बचाना। चाह इसक िलए उसे अपने
वासय क बिल ही य न देनी पड़। कस से बचाने क िलए देवक ने भी अपने नवजात पु
को अपनी गोद से उठा कर यशोदा क गोद म डाल िदया था!
बे क िलए माँ या होती ह- इसका जो य कहानी 'चीज़ हमेशा वैसी नह होत जैसी
लगती ह' म उभर कर समुख आता ह, वह बत िवचिलत करता ह। िवचिलत इसिलए यिक
माँ का कोई थानाप नह ह। 'मेरी बस एक माँ ह जो मर चुक ह। एक माँ क कई बे हो
सकते ह मगर हर बे क बस एक माँ होती ह'- कहते ए मातृ शोक से िव?ल और िपता क
दूसर िववाह क कवायद से ममाहत बेटी नेहा का बुआ क सम फट पड़ना काफ ह यह जानने
क िलए िक िकसी बे क िलए माँ का असमय चले जाना कसी ित होती ह। िन त ही
इसक भरपाई नह क जा सकती। यह बे क अपूरणीय ित होती ह। और, कई दफ इस ित
को उसे अकले, िनतांत अकले वहन-सहन करना पड़ता ह। िपता का दूसरा िववाह करना नेहा
क िलए ज़बरदत आघात था। लेिकन नेहा ने जब यह देखा िक उसक सौतेली माँ म ऐसी कोई
बात नह ह िजस कारण उनसे नाराजगी रखी जाए तब शनैः-शनैः उसने अपनी ंिथय को
िशिथल िकया और अपनी सौतेली माँ क ित एक वीकाय भाव पैदा िकया। यह सच ह िक माँ
वंिचता संतान क िलए िपता क दूसरी पनी क ित एकाएक वीकाय भाव पैदा नह होता
लेिकन समय क साथ ऐसा हो जाना नामुमिकन भी नह ह। कहानी म नई माँ क समझदारी,
अपनव, धैय और सहनश से नेहा का उसक ित सहज होते रहना और अततः उसे पूरी
तरह वीकार कर लेना बत भावपूण बन पड़ा ह। बे क िलए नई माँ को िज़ंदगी म जगह
देना एक चुनौती ह तो नई माँ क िलए भी पित क पूव पनी से उप संतान का िदल जीतना
िकसी चुनौती से कम नह ह।
जम देना तो कित ह। कित को भी माँ- कित माँ - कहा गया ह। लेिकन, जो बे को
पोसती ह, उसको संकारत करती ह, ख़तर और अपमान से उसक रा करती ह, उसक हठ
का समाधान करती ह, उसक िलए सपने देखती ह, उन सपन को पूरा करने क िलए जी तोड़
मेहनत करती ह, वह माँ क अितर और या हो सकती ह। संह क शीषक कहानी 'मेरी
मदरबोड' क माँ ऐसी ही माँ ह िजसने अपनी ग़रीबी म भी अपने दक पु को धनवान बनाए
रखा, अपने गंदे परवेश म उसको संकारत िकया। दुकार जाने पर उसक समान क रा
क। उसक हर सपने को अपना सपना बनाया। अनाथालय से लाए उस बे बा य क िलए
उसक गोद-माँ िसधु क यूटर क सीपीयू क मदरबोड ह।
अचना ने माँ क िजस प को मुखता से िलया, वह ह एक सश? माँ जो संतान क िहत क
िलए िदल क ऊपर िदमाग़ को रखती ह। भले ही माँ क िलए उसका बा हमेशा बा रहता ह।
लेिकन वह उ क साथ अपने बे से परप आचार-िवचार क अपेा रखती ह। 'दूर से
पुतक समीा
(कहानी संह)
मेरी मदरबोड
समीक : सरोिजनी नौिटयाल
लेखक : अचना पैयूली
काशक : पुतकनामा काशन, नई
?·??
सरोिजनी नौिटयाल
176, आराघर,
देहरादून -248001, उराखंड
मोबाइल- 9410983596
ईमेल- [email protected]

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 202543 42 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 2025
दुआ-सलाम भली, पुर' क माँ कनाडा से
पठानकोट घर आए अपने बावन वषय बेट
क िलए वही आलू क पराँठ बनाती ह जो उसे
बचपन म बत अछ लगते थे लेिकन बाक़
वह उसक टट परवार और िबखर कारोबार
को लेकर उसक अछी ख़बर लेती ह। वह
एक शहीद क पनी ह। उसने लंबा वैधय
झेला। ?ब संघष िकया। ब क िज़मेदारी
पूरी करक अपने जीवन क सांय बेला म
अपनी सधी िदनचया क साथ समाज सेवा क
काय म लग कर और अपनी िवमृत
अिभिचय को पुनजा त करक गहर संतोष
क िज़ंदगी जी रही ह। वह अपने हार ए बेट
को कमज़ोर नह होने देती। उसको अपने
ब क देखभाल करने और कारोबार को
सँभालने क िलए वापस कनाडा भेज कर ही
दम लेती ह। वह तलाक़शुदा बेट क िलए
लड़क क तलाश भी कर रही ह। या कर..
आिख़र माँ ह...।
ममता क साथ क?णा क संगित
अनायास बैठ जाती ह। अचना क 'माँ' का
िवतार मानव क परिध से बाहर िनकल कर
पशु-जग तक हो गया। मूक पशु म
मातृव क वेदना और क?णा दय को मथ
देती ह। संह क कहानी 'पा' म गोमाता
पा का गभाधान, सव, ाणात... क बीच
म बाज़ार क जो आहट ह, वह रगट खड़ कर
देती ह। गिभणी पा क ददनाक मृयु से घर
क ब क ममाहत होने का िचण बत
का?िणक ह। पा घर क ब क िलए
कवल गाय नह ह। पा ब क गोमाता ह।
वे दूध पीते ह पा का।
मातृव का अपना मनोिवान होता ह।
मातृव अपने म सध लगाने क इजाज़त िकसी
को नह देता। यह गु? बात िजस भाव और
?बसूरती से अचना क तुतीकरण से छन
कर िनकलती ह, वह उनक मानव-मन क
पड़ताल-मता को मािणत करता ह।
कहानी 'तेरी माँ कौन' क नैनी सुनेजा क खता
यह थी िक वह अपनी नौकरी यािन छोट आरव
क देखभाल म िदमाग़ क साथ िदल को भी
लगाने लगी थी। बे को उसम माँ िमल गई
और नैनी को िशशु म अपना वासय।
ी सश?ीकरण क इस दौर म ी का
सुबह घर से बाहर जाना और देर शाम घर
आना आज का सामाय य ह। ी ह और
वह माँ भी ह तो उसक संघष क कोई थाह
नह। ी कवल माँ बनना ही नह चाहती, वह
माँ लगना भी चाहती ह। वह अपने बे क
िलए थम य रहना चाहती ह। डॉ.
ियंका क परशानी यह ह िक उसक दुधमुँह
बे क िलए उसक नैनी थम बन गई ह। माँ
क उप थित म भी वह नैनी क पास जाने को
रोता-मचलता। जमिदन जैसे आयोजन म
मेहमान क सामने माँ क गोदी म रो-रो कर
हलकान होते बे से नैनी का 'म यह ...म
यह , आरव,' कहना माँ का दय चीर कर
रख देता ह। उसे ऐसा लगता ह िक नैनी ने
उससे उसका बा छीन िलया। वह फट
पड़ती ह- 'हम अपने बे क िलए नैनी
चािहए, माँ नह।'
नैनी क कई मजबूरयाँ ह। उसे हर हाल
नौकरी चािहए। िदन म बे को उसक माँ क
तवीर िदखा-िदखा कर माँ से उसका परचय
कराती रहती ह। असल म, जननी बनना एक
घटना ह और माँ बनना एक ? ??s ियंका
आरव क जननी ह और सुनैजा उसक माँ।
वह बे क हर अदा म, बे क हर खेल म,
हर ज़रत म, हर तकलीफ़ म, हर िज़द म
उसक साथ ह। तभी तो बा रात म भी उसी
क साथ सोने क िज़द करता ह। और, जब
वह पूछती ह िक तेरी माँ कौन, तब वह उसी
क ओर तजनी कर देता ह। कहानी म नैनी
और बे क बीच का यही सारय जहाँ
पाठक को मुध कर देता ह, वह माँ ियंका
को क िठत कर देता ह। मातृव का यह सय
भी समझ म आने लगता ह- कवल जम देना
भर माँ बनना नह ह। बे क साथ रह कर
और मातृव क िज़मेदारी का िनवहन करक
ही माँ बना जा सकता ह। इसीिलए तो कोई
जम देकर भी बे क माँ नह बन पाती और
कोई जम िदए िबना ही बे क माँ तुय हो
जाती ह।
मातृव क इसी मनोिवान क एक झाँक
कहानी 'सौतेले ब क चहती माँ' म ह।
वेिदका अपनी सदयता और ?ेह से पित क
पूव पनी क ब , नोहा और बेन, का िदल
जीत लेती ह। ब को अपनी माँ से अिधक
माँ अपनी सौतेली माँ म नज़र आती ह। कारण
सौतेली माँ म जो समझ और ठहराव ह, वह
उनक माँ म नह ह। ब को कवल यार क
नह, भरोसे और सुरा क भी ज़रत होती ह
जो नोहा और बेन अपनी सौतेली माँ क
सािनय म अनुभव करते ह। वतुतः माँ और
संतान जैसे सरल और वाभािवक रते क
भी अपनी जिटलताएँ ह। यह रता माँ क
याग-समपण और संतान क ा-समान-
सेवा भाव क दरकार रखता ह। जहाँ भी इसम
िवन पड़ता ह, ाकितक रते पर भी राख
पड़ जाती ह। और, जहाँ यह भाव थोड़ अंश
म भी मौजूद रहता ह, वहाँ मातृव सूत हो
जाता ह।
मातृव ी का थायी भाव ह। कोई
उ?ीपन होना चािहए और मातृव का यह
थायी भाव उी हो अनुभाव म बदल
जाता ह। मातृव का यह पहलू िदखा ह कहानी
'माँजी लाख म एक थ' म िजसम माँजी
अपनी कई मायता से ऊपर उठ कर अपनी
िवधम सेिवका को अपनी पहचान िछपाने पर
न कवल मा करती ह ब क उसे पूरी तरह
से अंगीकार भी कर लेती ह। मातृव क
उदारता िनसीम होती ह।
मेरी मदरबोड क सभी कहािनय म माँ
क गूँज ह। माँ अपनी अथपूण उप थित से
कथानक को पंिदत करती रहती ह।
मदरबोड क सभी माँ क मायम से अचना
पैयूली यह संदेश देने म सफल रही ह। रचना
कौशल क से भी मेरी मदरबोड ने नए
ितमान गढ़ ह। रत क टकराते समीकरण
म माँ क अ तव क अिडगता को िजस
कोमल लेिकन मज़बूत रशे क दरकार थी,
उसी से बुना ह लेिखका ने माँ का मनोजग।
कई संग दय को मथ देते ह। कय और
िशप- दोन य से कहानी संह मेरी
मदरबोड लेिखका अचना पैयूली क रचना
याा का एक नया मील का पथर ह। िन त
ही उहने अपने लेखन संभावना क नए
िवतार को िदखाया ह।
000
पुतकनामा काशन से कािशत 'मेरी मदरबोड' अचना पैयूली का माँ पर कित दूसरा
कहानी संह ह। अचना क 'माँ' कमज़ोर पर थितय म एक मज़बूत माँ ह। उनक 'माँ'
मातृश को चरताथ करती ह। 'जब एक बा पैदा होता ह तब एक माँ का भी जम होता ह'
– 'मेरी मदरबोड' क कहानी 'चीज़ हमेशा वैसी नह होत, जैसी लगती ह' क इस वाय को
बीज वाय मान कर अचना क 'माँ' को देख तो यह िनकल कर आता ह िक माँ और संतान क
रते क नैसिगकता म कोई शत नह होती। माँ क िलए दुिनया का सबसे सुंदर बा उसका
बा ह और बे क िलए दुिनया क सबसे सुंदर माँ उसक माँ ह। लेिकन यह अकला सच नह
ह, माँ-बे क रते का। समय और हालात से इस सच का वप बदलता रहता ह। अचना
क 'माँ' अपने अनेकानेक वप म हमार समुख आई ह।
'मेरी मदर बोड' क कहानी 'मेर घर आई एक नही परी' म अभाव त परवार म पाँचव
बेटी क जमने से उपजे पर य का आकलन कर स सूता माँ, सीता, अपनी नवजात कया
को सुसप, सुिशित और गोद लेने को बेताब आया को सप कर िन ंत हो जाती ह। माँ क
िलए जो बात सव थम होती ह, वह ह अपनी संतान को बचाना। चाह इसक िलए उसे अपने
वासय क बिल ही य न देनी पड़। कस से बचाने क िलए देवक ने भी अपने नवजात पु
को अपनी गोद से उठा कर यशोदा क गोद म डाल िदया था!
बे क िलए माँ या होती ह- इसका जो य कहानी 'चीज़ हमेशा वैसी नह होत जैसी
लगती ह' म उभर कर समुख आता ह, वह बत िवचिलत करता ह। िवचिलत इसिलए यिक
माँ का कोई थानाप नह ह। 'मेरी बस एक माँ ह जो मर चुक ह। एक माँ क कई बे हो
सकते ह मगर हर बे क बस एक माँ होती ह'- कहते ए मातृ शोक से िव?ल और िपता क
दूसर िववाह क कवायद से ममाहत बेटी नेहा का बुआ क सम फट पड़ना काफ ह यह जानने
क िलए िक िकसी बे क िलए माँ का असमय चले जाना कसी ित होती ह। िन त ही
इसक भरपाई नह क जा सकती। यह बे क अपूरणीय ित होती ह। और, कई दफ इस ित
को उसे अकले, िनतांत अकले वहन-सहन करना पड़ता ह। िपता का दूसरा िववाह करना नेहा
क िलए ज़बरदत आघात था। लेिकन नेहा ने जब यह देखा िक उसक सौतेली माँ म ऐसी कोई
बात नह ह िजस कारण उनसे नाराजगी रखी जाए तब शनैः-शनैः उसने अपनी ंिथय को
िशिथल िकया और अपनी सौतेली माँ क ित एक वीकाय भाव पैदा िकया। यह सच ह िक माँ
वंिचता संतान क िलए िपता क दूसरी पनी क ित एकाएक वीकाय भाव पैदा नह होता
लेिकन समय क साथ ऐसा हो जाना नामुमिकन भी नह ह। कहानी म नई माँ क समझदारी,
अपनव, धैय और सहनश से नेहा का उसक ित सहज होते रहना और अततः उसे पूरी
तरह वीकार कर लेना बत भावपूण बन पड़ा ह। बे क िलए नई माँ को िज़ंदगी म जगह
देना एक चुनौती ह तो नई माँ क िलए भी पित क पूव पनी से उप संतान का िदल जीतना
िकसी चुनौती से कम नह ह।
जम देना तो कित ह। कित को भी माँ- कित माँ - कहा गया ह। लेिकन, जो बे को
पोसती ह, उसको संकारत करती ह, ख़तर और अपमान से उसक रा करती ह, उसक हठ
का समाधान करती ह, उसक िलए सपने देखती ह, उन सपन को पूरा करने क िलए जी तोड़
मेहनत करती ह, वह माँ क अितर और या हो सकती ह। संह क शीषक कहानी 'मेरी
मदरबोड' क माँ ऐसी ही माँ ह िजसने अपनी ग़रीबी म भी अपने दक पु को धनवान बनाए
रखा, अपने गंदे परवेश म उसको संकारत िकया। दुकार जाने पर उसक समान क रा
क। उसक हर सपने को अपना सपना बनाया। अनाथालय से लाए उस बे बा य क िलए
उसक गोद-माँ िसधु क यूटर क सीपीयू क मदरबोड ह।
अचना ने माँ क िजस प को मुखता से िलया, वह ह एक सश? माँ जो संतान क िहत क
िलए िदल क ऊपर िदमाग़ को रखती ह। भले ही माँ क िलए उसका बा हमेशा बा रहता ह।
लेिकन वह उ क साथ अपने बे से परप आचार-िवचार क अपेा रखती ह। 'दूर से
पुतक समीा
(कहानी संह)
मेरी मदरबोड
समीक : सरोिजनी नौिटयाल
लेखक : अचना पैयूली
काशक : पुतकनामा काशन, नई
?·??
सरोिजनी नौिटयाल
176, आराघर,
देहरादून -248001, उराखंड
मोबाइल- 9410983596
ईमेल- [email protected]

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 202545 44 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 2025
ी क सामािजक बीमारी का दतावेज़ ह।
यह कहानी हमारी यवथा, हमार रत और
हमारी संवेदनहीनता का आईना भी ह।
"गुलाबी इछाएँ" बचपन क मासूिमयत,
रोमांच और अधूरी इछा क भावनामक
कहानी ह। एक साहसी लड़क अपने डरपोक
दोत को अमद क बाग़ म ले जाती ह। यह
याा िसफ फल तोड़ने क नह, ब क
दोती, भरोसे और आम-खोज क याा ह।
अमद यहाँ अधूरी इछा का तीक ह,
जो जीवनभर याद रह जाती ह। बाड़, काँट
और दीवार हमार भीतर और समाज म मौजूद
सीमा का तीक ह। अंततः सब बदल
जाता ह, शेष रह जाती ह िसफ एक मीठी
मृित, जैसे गुलाबी अमद क वह फाँक,
जो जीवनभर वाद देती ह। कथाकार ने पा
क संवेदना, बचपन क मृितय और
िनछल ेम को वाभािवक प से िनिपत
िकया ह। "फिनस" कहानी को कथाकार ने
बत गहन प से िलखा ह। इसम ेम क
कपना फिनस पी क पक क मायम
से क गई ह, एक ऐसा पी जो अपनी ही
िचता म जलकर राख हो जाता ह और िफर
उसी राख से पुनज म लेता ह। यह तीक ेम
क अनरता, उसक न हो जाने क बाद
भी बार-बार लौट आने क मता और उसक
आम-उपि को दशाता ह। इस कहानी म
गहरा भाव यह ह िक ेम चाह िजतनी बार टट,
जले, या समा? हो, वह पूरी तरह कभी न
नह होता। वह अपनी ही पीड़ा, अपने ही अंत
से पुनः जम लेता ह। इस कहानी म कथाकार
ने कित क पर य को िसफ पृभूिम क
प म नह, ब क एक सजीव तीक क
तरह तुत िकया ह।
"कायलेब" इस संह क महवपूण
कहानी ह। चालीस साल पहले जब कायलेब
िगरा, तो लोग को लगने लगा था िक सब कछ
ख़म हो जाएगा, एक वै क िवनाश का
भय। उसी तरह आज भी, यु त े म
लोग िदन-रात इसी डर म जीते ह। दुिनया
बदलती ह, लेिकन डर क छाया बनी रहती
ह। इसी डर क माहौल म, कहानी म रज़वान
उफ रो और करीम क ेम कहानी सामने
आती ह। उनका ेम, मानो एक उमीद क
लौ ह, अँधेर म िटमिटमाती ई। जैसे
कायलेब क िगरने क डर क बीच भी जीवन
चलता रहा, वैसे ही यु, संकट और भय क
दौर म भी ेम जम लेता ह। "िचिड़हार"
कहानी ेम, छल और पतन क मािमक
दातान ह। इसम एक सेठानी नीली आँख
वाले युवक पर मोिहत हो जाती ह। युवक
उसक भावना का फायदा उठाकर गहने
ऐंठता ह और अंततः भाग जाता ह। इस धोखे
से टटकर सेठानी आमहया कर लेती ह।
उसका पित सेठ भी मानिसक प से टट जाता
ह, काम-धंधा छोड़ देता ह, क़ज़ म डब जाता
ह और अंततः साधु क साथ िनकल पड़ता
ह। उनक हवेली उजड़कर खंडहर बन जाती
ह।
"धरती पर इ धनुष" बचपन म अंक रत
िनछल ेम क अनुभूितय क कहानी ह।
"धरती पर इ धनुष" कहानी ेम, रग और
भावना क संवेदी िचण का अ?ुत
उदाहरण ह। कहानी म एक लड़क और एक
लड़क क बीच क पहली मुलाकात को रग
और कित क मायम से िचित िकया गया
ह। लड़क अपनी माँ क साथ रग से खेल रही
ह और उसक चार ओर रग का एक उजास
फल रहा ह। लड़का उसे देखता ह और उसे
ऐसा महसूस होता ह जैसे वह िकसी झरने से
नहाकर लौटी हो और उसक गीले बाल से रग
बह रह ह। यह य रग क बहती ई धारा
क तरह तीत होता ह, िजसम लड़क का
उजाला, उसक मासूिमयत और उसक
चमक, लड़क क जीवन म घुसी सुनहरी
उमीद और रगीन वािहश का तीक बन
जाती ह। लड़का उसक आँख म बेमेहदी रग
क खोज म खो जाता ह, जबिक उसक
अपनी उदास और बेरग िज़ंदगी म रग भरने
क तड़प िदखाई देती ह। कहानी का अंत
ाकितक ेम क सुंदरता और भावनामक
िमलन को दशाता ह। लड़का लड़क क गाल
पर अपनी गीली हथेिलयाँ रखता ह और जैसे
ेम क बारश उसक देह म नए रग भर देती
ह।
"िचिड़याघर म ेम" कहानी ेम को एक
कोमल, सजीव और तीकामक अनुभव क
प म तुत करती ह, जहाँ िचिड़याघर जैसे
थान म भी ेम एक जीवंत अनुभूित बन जाता
ह। एक लड़का और लड़क िचिड़याघर म
एक बच पर बैठ ह, लेिकन यही साधारणता
लेखक क संवेदनशीलता और तीक-चेतना
से असाधारण बन जाती ह। उनक बीच कोई
शोरगुल नह, कोई बोलचाल नह, कवल
स?ाटा, परद क आवाज और एक
भावनामक पश। लड़का लड़क क बड़ी-
बड़ी आँख म झाँकता ह, जहाँ उसे ेम क
झील िदखाई देती ह, एक ऐसी गहराई जहाँ
वह धीर-धीर डबता और तैरता जाता ह। यह
य बताता ह िक ेम कवल बाहरी घटना
म नह, ब क भीतर क और अनुभव म
होता ह।
"हरिसंगार-सी लड़क" कहानी म
थानेदार क बेटी भावना गाँव क एक सरकारी
कल म दािख़ला लेती ह। जैसे ही वह कल
म वेश करती ह, बे उसे देखकर तध रह
जाते ह। वह बाक़ लड़िकय से अलग िदखती
ह, उसका पहनावा, हावभाव, चाल-ढाल सब
कछ जैसे िकसी और ही दुिनया से आई हो।
भावना का वेश कवल कल म नह होता,
ब क वह वहाँ मौजूद एकांत, सपाट जीवन
म रग और हलचल ले आती ह। सागर, जो
उसी का का छा ह, धीर-धीर भावना को
चाहने लगता ह। यह चाहत िकसी ज़ोरदार
ेम-घोषणा जैसी नह, ब क धीमे, भीतर ही
भीतर बहते भाव क तरह ह, जैसे हरिसंगार
का फ?ल रात म िगरकर भी अपनी महक छोड़
जाता ह। बचपन का यह ेम िकशोर मन क
पहली मोहक अनुभूित, अंतर और आकषण
क किशश, और नवीनता क ित सहज
अनुराग।
ये कहािनयाँ सचमुच ेम को कहने और
खोजने क एक नई कोिशश ह, जहाँ
भावना क रग पुराने नह, लेिकन
अिभय याँ और तीक ज़र िबलकल
नए ह। इस संह क कहािनयाँ पढ़ते ए ेम
क िविभ आयाम िदलोिदमाग़ पर छा जाते
ह।
000
"गुलाबी इछाएँ" कहानी संह म 13 कहािनयाँ ह। ये कहािनयाँ वाथरिहत िनछल ेम
क सघनता, गहरी संवेदना और आमीय ेम क जीवंतता को उजागर करती ह। ये कहािनयाँ
पाठक को ेम क अनुभूित क सागर म गोते लगाने क िलए मजबूर करती ह। लेखक इन
कहािनय म मृित क प म प चकर वहाँ क य साकार कर देते ह। ेम क िविभ? रग म
िलपटी इन कहािनय म ेम क िनछल, सरल, सहज प क अिभय ह। इस संह क हर
कहानी अपने अनूठपन से पाठक क मन को छ लेती ह।
"िबौरी आँख वाली" कहानी तीा, ेम और आशा क बेहद मािमक अिभय ह।
फ़ौजी परवार क मिहला, िमसेज़ एका, अपने पित क लौटने क तीा कर रही ह और वह
तीा कवल समय नह ब क भावना का भार ह, िजसम िचंता, उमीद और कभी-कभी
हताशा भी शािमल होती ह। "चु पय क पीछ बीता आ बसत" कहानी नसीम और महश क
अधूर, लेिकन गहर ेम क कथा ह, जो मृित, िवरह, और बदलते समय क बीच कह चुपचाप
बहता ह। कहानी म ेम चु पय क बीच छपा आ, बीते ए समय क ?शबू क तरह ह, िजसे
शायद ेम करने वाले भी भूल चुक ह, लेिकन वह अब भी ज़ेहन म दज ह। इस कथा म ेम
िकसी नमी क तरह ह, जो वत क धूप म सूख चुका ह, लेिकन उसक गंध अब भी महसूस
होती ह। कहानी का िशप सादगीभरा ह, लेिकन भावनामक प से बेहद भावशाली।
"िखरनी" कहानी एक गहर भावनामक धरातल पर रची गई मृित और वतमान क बीच क
पुल जैसी ह, िजसम समय क दरार से रसती ई संवेदनाएँ अपना असर छोड़ती ह। यह एक
सुंदर और मािमक मृित-आधारत ेमकथा ह, िजसम एक पु?ष और एक ी क बीच तीस
वष क दूरी एक पुराने आँगन क तरह फली ई ह। यह कहानी तीस वष क अंतराल पर िमले
दो पुराने परिचत क ख़ामोश बातचीत और मृितय क नदी क सहार बहती ह। वह लड़का
अब एक शहरी, सुसंकत, आमसंतु पु?ष ह और वह लड़क अब एक सूनी आँख वाली,
थक और संयिमत माँ। उन दोन क बीच वही पुराना आँगन ह, जो भौगोिलक प से छोटा
लेिकन भावनामक प से अनंत ह। कहानी बार-बार अतीत और वतमान क बीच आती-जाती
ह, जहाँ िखरिनय क िमठास, नदी म तैराक क चपलता, िहरण क कढ़ाई और नीम क पिय
क मीठ-कड़वे तीक कहानी को एक भावनामक ऊचाई दान करते ह। यह िसफ ेमकथा
नह ह, यह गाँव क बदलते भूगोल, मृितय क अ य दबाव और मन क अधूर कोन म पलते
ेम क एक बत आमीय तुित ह। "बाँध" कहानी एक ऐसी युवती क ह, जो िकसी झरने-
सी हसी, नदी-सी धार और िततली-सी चपलता क साथ सामने आती ह। उसक बात और
मौजूदगी म ाकितक वाह और आ मक गहराई ह। वह कहती ह िक जैसे कठोर चान भी
नदी क धार से कट जाती ह, वैसे ही ेम और संवेदना कठोरता को भी बदल सकते ह। कहानी
का क ीय कय यह ह िक जैसे नदी को बाँधकर रोका नह जा सकता, वैसे ही िकसी ी क
आमा, उसक वतंता, उसक हसी और ेम को बाँधना भी असंभव ह। यह ी अ मता
और ेम क वतं चेतना क कहानी ह।
"भूली भिटयारन का कआँ" कहानी एक ी क ेम, याग और आमबल क मािमक
गाथा ह। भूली नाम क युवती ेम म धोखा खाने क बाद समाज से ितरकत हो जाती ह, लेिकन
वह हार नह मानती। अकलेपन और पीड़ा क बीच वह एक कआँ खुदाई करती ह, जो बाद म
पूर गाँव क यास बुझाता ह। कहानी यह संदेश देती ह िक ेम और क?णा जैसे कएँ सभी क
होते ह, वे िकसी एक क नह होते। भूली क माफ़ और उदारता, ी क मानवीयता,
आमसमान और सहनश को उजागर करती ह। "नीले पंख वाली िचिड़या" बेहद मािमक,
संवेदनशील और वातिवकता क तख अनुभव से भरी ई एक ी क कहानी ह। यह िसफ
सलमा आपा क कहानी नह ह, यह कई सलमा क सामूिहक आमकथा ह, जो सामािजक
यवथा, पारवारक उपेा और िपतृसा क बेिड़य म बंधी ई जीती और मरती ह।
कहानी टीबी से जूझती एक मिहला क शारीरक पीड़ा नह, ब क पूर जीवन से हार मान चुक
पुतक समीा
(कहानी संह)
गुलाबी इछाएँ
समीक : दीपक िगरकर
लेखक : मनीष वै
काशक : िशवना काशन, साट
कॉ लैस बेसमट, सीहोर, म
466001, फ़ोन-07562405545
मोबाइल- +91-9806162184
ईमेल- [email protected]
दीपक िगरकर
28-सी, वैभव नगर, कनािडया रोड,
इदौर- 452016 म
मोबाइल- 9425067036
ईमेल- [email protected]

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 202545 44 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 2025
ी क सामािजक बीमारी का दतावेज़ ह।
यह कहानी हमारी यवथा, हमार रत और
हमारी संवेदनहीनता का आईना भी ह।
"गुलाबी इछाएँ" बचपन क मासूिमयत,
रोमांच और अधूरी इछा क भावनामक
कहानी ह। एक साहसी लड़क अपने डरपोक
दोत को अमद क बाग़ म ले जाती ह। यह
याा िसफ फल तोड़ने क नह, ब क
दोती, भरोसे और आम-खोज क याा ह।
अमद यहाँ अधूरी इछा का तीक ह,
जो जीवनभर याद रह जाती ह। बाड़, काँट
और दीवार हमार भीतर और समाज म मौजूद
सीमा का तीक ह। अंततः सब बदल
जाता ह, शेष रह जाती ह िसफ एक मीठी
मृित, जैसे गुलाबी अमद क वह फाँक,
जो जीवनभर वाद देती ह। कथाकार ने पा
क संवेदना, बचपन क मृितय और
िनछल ेम को वाभािवक प से िनिपत
िकया ह। "फिनस" कहानी को कथाकार ने
बत गहन प से िलखा ह। इसम ेम क
कपना फिनस पी क पक क मायम
से क गई ह, एक ऐसा पी जो अपनी ही
िचता म जलकर राख हो जाता ह और िफर
उसी राख से पुनज म लेता ह। यह तीक ेम
क अनरता, उसक न हो जाने क बाद
भी बार-बार लौट आने क मता और उसक
आम-उपि को दशाता ह। इस कहानी म
गहरा भाव यह ह िक ेम चाह िजतनी बार टट,
जले, या समा? हो, वह पूरी तरह कभी न
नह होता। वह अपनी ही पीड़ा, अपने ही अंत
से पुनः जम लेता ह। इस कहानी म कथाकार
ने कित क पर य को िसफ पृभूिम क
प म नह, ब क एक सजीव तीक क
तरह तुत िकया ह।
"कायलेब" इस संह क महवपूण
कहानी ह। चालीस साल पहले जब कायलेब
िगरा, तो लोग को लगने लगा था िक सब कछ
ख़म हो जाएगा, एक वै क िवनाश का
भय। उसी तरह आज भी, यु त े म
लोग िदन-रात इसी डर म जीते ह। दुिनया
बदलती ह, लेिकन डर क छाया बनी रहती
ह। इसी डर क माहौल म, कहानी म रज़वान
उफ रो और करीम क ेम कहानी सामने
आती ह। उनका ेम, मानो एक उमीद क
लौ ह, अँधेर म िटमिटमाती ई। जैसे
कायलेब क िगरने क डर क बीच भी जीवन
चलता रहा, वैसे ही यु, संकट और भय क
दौर म भी ेम जम लेता ह। "िचिड़हार"
कहानी ेम, छल और पतन क मािमक
दातान ह। इसम एक सेठानी नीली आँख
वाले युवक पर मोिहत हो जाती ह। युवक
उसक भावना का फायदा उठाकर गहने
ऐंठता ह और अंततः भाग जाता ह। इस धोखे
से टटकर सेठानी आमहया कर लेती ह।
उसका पित सेठ भी मानिसक प से टट जाता
ह, काम-धंधा छोड़ देता ह, क़ज़ म डब जाता
ह और अंततः साधु क साथ िनकल पड़ता
ह। उनक हवेली उजड़कर खंडहर बन जाती
ह।
"धरती पर इ धनुष" बचपन म अंक रत
िनछल ेम क अनुभूितय क कहानी ह।
"धरती पर इ धनुष" कहानी ेम, रग और
भावना क संवेदी िचण का अ?ुत
उदाहरण ह। कहानी म एक लड़क और एक
लड़क क बीच क पहली मुलाकात को रग
और कित क मायम से िचित िकया गया
ह। लड़क अपनी माँ क साथ रग से खेल रही
ह और उसक चार ओर रग का एक उजास
फल रहा ह। लड़का उसे देखता ह और उसे
ऐसा महसूस होता ह जैसे वह िकसी झरने से
नहाकर लौटी हो और उसक गीले बाल से रग
बह रह ह। यह य रग क बहती ई धारा
क तरह तीत होता ह, िजसम लड़क का
उजाला, उसक मासूिमयत और उसक
चमक, लड़क क जीवन म घुसी सुनहरी
उमीद और रगीन वािहश का तीक बन
जाती ह। लड़का उसक आँख म बेमेहदी रग
क खोज म खो जाता ह, जबिक उसक
अपनी उदास और बेरग िज़ंदगी म रग भरने
क तड़प िदखाई देती ह। कहानी का अंत
ाकितक ेम क सुंदरता और भावनामक
िमलन को दशाता ह। लड़का लड़क क गाल
पर अपनी गीली हथेिलयाँ रखता ह और जैसे
ेम क बारश उसक देह म नए रग भर देती
ह।
"िचिड़याघर म ेम" कहानी ेम को एक
कोमल, सजीव और तीकामक अनुभव क
प म तुत करती ह, जहाँ िचिड़याघर जैसे
थान म भी ेम एक जीवंत अनुभूित बन जाता
ह। एक लड़का और लड़क िचिड़याघर म
एक बच पर बैठ ह, लेिकन यही साधारणता
लेखक क संवेदनशीलता और तीक-चेतना
से असाधारण बन जाती ह। उनक बीच कोई
शोरगुल नह, कोई बोलचाल नह, कवल
स?ाटा, परद क आवाज और एक
भावनामक पश। लड़का लड़क क बड़ी-
बड़ी आँख म झाँकता ह, जहाँ उसे ेम क
झील िदखाई देती ह, एक ऐसी गहराई जहाँ
वह धीर-धीर डबता और तैरता जाता ह। यह
य बताता ह िक ेम कवल बाहरी घटना
म नह, ब क भीतर क और अनुभव म
होता ह।
"हरिसंगार-सी लड़क" कहानी म
थानेदार क बेटी भावना गाँव क एक सरकारी
कल म दािख़ला लेती ह। जैसे ही वह कल
म वेश करती ह, बे उसे देखकर तध रह
जाते ह। वह बाक़ लड़िकय से अलग िदखती
ह, उसका पहनावा, हावभाव, चाल-ढाल सब
कछ जैसे िकसी और ही दुिनया से आई हो।
भावना का वेश कवल कल म नह होता,
ब क वह वहाँ मौजूद एकांत, सपाट जीवन
म रग और हलचल ले आती ह। सागर, जो
उसी का का छा ह, धीर-धीर भावना को
चाहने लगता ह। यह चाहत िकसी ज़ोरदार
ेम-घोषणा जैसी नह, ब क धीमे, भीतर ही
भीतर बहते भाव क तरह ह, जैसे हरिसंगार
का फ?ल रात म िगरकर भी अपनी महक छोड़
जाता ह। बचपन का यह ेम िकशोर मन क
पहली मोहक अनुभूित, अंतर और आकषण
क किशश, और नवीनता क ित सहज
अनुराग।
ये कहािनयाँ सचमुच ेम को कहने और
खोजने क एक नई कोिशश ह, जहाँ
भावना क रग पुराने नह, लेिकन
अिभय याँ और तीक ज़र िबलकल
नए ह। इस संह क कहािनयाँ पढ़ते ए ेम
क िविभ आयाम िदलोिदमाग़ पर छा जाते
ह।
000
"गुलाबी इछाएँ" कहानी संह म 13 कहािनयाँ ह। ये कहािनयाँ वाथरिहत िनछल ेम
क सघनता, गहरी संवेदना और आमीय ेम क जीवंतता को उजागर करती ह। ये कहािनयाँ
पाठक को ेम क अनुभूित क सागर म गोते लगाने क िलए मजबूर करती ह। लेखक इन
कहािनय म मृित क प म प चकर वहाँ क य साकार कर देते ह। ेम क िविभ? रग म
िलपटी इन कहािनय म ेम क िनछल, सरल, सहज प क अिभय ह। इस संह क हर
कहानी अपने अनूठपन से पाठक क मन को छ लेती ह।
"िबौरी आँख वाली" कहानी तीा, ेम और आशा क बेहद मािमक अिभय ह।
फ़ौजी परवार क मिहला, िमसेज़ एका, अपने पित क लौटने क तीा कर रही ह और वह
तीा कवल समय नह ब क भावना का भार ह, िजसम िचंता, उमीद और कभी-कभी
हताशा भी शािमल होती ह। "चु पय क पीछ बीता आ बसत" कहानी नसीम और महश क
अधूर, लेिकन गहर ेम क कथा ह, जो मृित, िवरह, और बदलते समय क बीच कह चुपचाप
बहता ह। कहानी म ेम चु पय क बीच छपा आ, बीते ए समय क ?शबू क तरह ह, िजसे
शायद ेम करने वाले भी भूल चुक ह, लेिकन वह अब भी ज़ेहन म दज ह। इस कथा म ेम
िकसी नमी क तरह ह, जो वत क धूप म सूख चुका ह, लेिकन उसक गंध अब भी महसूस
होती ह। कहानी का िशप सादगीभरा ह, लेिकन भावनामक प से बेहद भावशाली।
"िखरनी" कहानी एक गहर भावनामक धरातल पर रची गई मृित और वतमान क बीच क
पुल जैसी ह, िजसम समय क दरार से रसती ई संवेदनाएँ अपना असर छोड़ती ह। यह एक
सुंदर और मािमक मृित-आधारत ेमकथा ह, िजसम एक पु?ष और एक ी क बीच तीस
वष क दूरी एक पुराने आँगन क तरह फली ई ह। यह कहानी तीस वष क अंतराल पर िमले
दो पुराने परिचत क ख़ामोश बातचीत और मृितय क नदी क सहार बहती ह। वह लड़का
अब एक शहरी, सुसंकत, आमसंतु पु?ष ह और वह लड़क अब एक सूनी आँख वाली,
थक और संयिमत माँ। उन दोन क बीच वही पुराना आँगन ह, जो भौगोिलक प से छोटा
लेिकन भावनामक प से अनंत ह। कहानी बार-बार अतीत और वतमान क बीच आती-जाती
ह, जहाँ िखरिनय क िमठास, नदी म तैराक क चपलता, िहरण क कढ़ाई और नीम क पिय
क मीठ-कड़वे तीक कहानी को एक भावनामक ऊचाई दान करते ह। यह िसफ ेमकथा
नह ह, यह गाँव क बदलते भूगोल, मृितय क अ य दबाव और मन क अधूर कोन म पलते
ेम क एक बत आमीय तुित ह। "बाँध" कहानी एक ऐसी युवती क ह, जो िकसी झरने-
सी हसी, नदी-सी धार और िततली-सी चपलता क साथ सामने आती ह। उसक बात और
मौजूदगी म ाकितक वाह और आ मक गहराई ह। वह कहती ह िक जैसे कठोर चान भी
नदी क धार से कट जाती ह, वैसे ही ेम और संवेदना कठोरता को भी बदल सकते ह। कहानी
का क ीय कय यह ह िक जैसे नदी को बाँधकर रोका नह जा सकता, वैसे ही िकसी ी क
आमा, उसक वतंता, उसक हसी और ेम को बाँधना भी असंभव ह। यह ी अ मता
और ेम क वतं चेतना क कहानी ह।
"भूली भिटयारन का कआँ" कहानी एक ी क ेम, याग और आमबल क मािमक
गाथा ह। भूली नाम क युवती ेम म धोखा खाने क बाद समाज से ितरकत हो जाती ह, लेिकन
वह हार नह मानती। अकलेपन और पीड़ा क बीच वह एक कआँ खुदाई करती ह, जो बाद म
पूर गाँव क यास बुझाता ह। कहानी यह संदेश देती ह िक ेम और क?णा जैसे कएँ सभी क
होते ह, वे िकसी एक क नह होते। भूली क माफ़ और उदारता, ी क मानवीयता,
आमसमान और सहनश को उजागर करती ह। "नीले पंख वाली िचिड़या" बेहद मािमक,
संवेदनशील और वातिवकता क तख अनुभव से भरी ई एक ी क कहानी ह। यह िसफ
सलमा आपा क कहानी नह ह, यह कई सलमा क सामूिहक आमकथा ह, जो सामािजक
यवथा, पारवारक उपेा और िपतृसा क बेिड़य म बंधी ई जीती और मरती ह।
कहानी टीबी से जूझती एक मिहला क शारीरक पीड़ा नह, ब क पूर जीवन से हार मान चुक
पुतक समीा
(कहानी संह)
गुलाबी इछाएँ
समीक : दीपक िगरकर
लेखक : मनीष वै
काशक : िशवना काशन, साट
कॉ लैस बेसमट, सीहोर, म
466001, फ़ोन-07562405545
मोबाइल- +91-9806162184
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दीपक िगरकर
28-सी, वैभव नगर, कनािडया रोड,
इदौर- 452016 म
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गया ह यिक यहाँ भी आज तक सुधार क
वैसी थित नह बनी ह जैसी िक अब तक हो
जानी चािहए थी। भूसी भगत क संतोखी क
मुकदमे म गवाही देने क िलए नायब क
इज़लास म जाने क संग क बहाने लेखक ने
याय यवथा क कलई खोल दी ह। भूसी क
समझ म यह नह आता िक इतने िदन बीत
जाने क बाद भी हािकम उनक िलए पाँच
िमनट क तारीख़ य नह िनकाल पा रह ह?
इतना ही तो पूछना ह िक या िक या तुहार
बेट क िववाह और संतोखी क बाप क मरने
क तारीख़ एक ही थी? म कह दूँगा जी र।
उपयास म मिहला क थित, उनक
संघष और उनक अिधकार क िलए िकए गए
यास को भी गहराई से दशाया गया ह।
लेखक ने यह प िकया ह िक ामीण
समाज म मिहला को दोहरी शोषण
यवथा का सामना करना पड़ता ह- एक,
पुषधान समाज क कारण, और दूसरा,
जाितगत भेदभाव क कारण। सा और सामंती
सोच उपयास का एक और महवपूण पहलू
ह। गाँव क उ जाित क ज़मदार अपनी सा
का उपयोग न कवल आिथक लाभ क िलए
करते ह, ब क अपनी सामािजक थित को
बनाए रखने क िलए भी करते ह। िशवमूित ने
इसे बड़ी सजीवता और सटीकता क साथ
तुत िकया ह। संतोखी तमाम मुसीबत क
बाद अपनी खेत क जुताई क िलए िमले
कचहरी क आदेश क बाद भी अपना खेत नह
जोत पाते ह।
उपयास का एक मुख प यह भी ह िक
इसम कवल शोषण और उपीड़न क तवीर
नह िदखाई गई ह, ब क बदलाव और संघष
क कहािनयाँ भी शािमल ह, मसलन बीस
साल बाद संतोखी का अपने खेत पर क़ज़ा
हो जाना िजसक िलए संतोखी ने या या नह
िकया। पर यवथा म दहशत इस कदर
शािमल ह िक संतोखी का मन घर जाने का
नह हो रहा ह। जैसे डर रह ह िक उधर वे घर
जाएँ और इधर छधारी क आदमी उनका
खेत ले कर ही भाग जाएँगे। ऐसे ितकल
माहौल क बावजूद गाँव क िनचले तबक क
लोग अपनी थित सुधारने क िलए एकजुट
होते ह और सामंती यवथा को चुनौती देने
क कोिशश करते ह। यह संघष उनक
आमिनभरता और वािभमान को दशाता ह
िशवमूित क शैली अयंत सरल,
वाहमय और भावशाली ह। उनक भाषा म
ामीण भारत क ?शबू और जीवन का
यथाथ झलकता ह। गाँव म ठाकर का भुव
िकतने गहर तक बैठा आ ह इसक एक
छोटी सी बानगी िनन पं य म देखी जा
सकती ह।
छधारी बचपन से दबंग रह ह। एक बार
ग?े क खेत म चोरी करते पकड़ गए तो
मािलक ने पकड़ िलया। जब पूछा गया तो
बताया िक शौच क िलए आया था िफर
मािलक ने कहा िक अपना शौच िदखाओ तो
उहने इधर उधर खोज कर पुराने शौच को
िदखा िदया और कहा यह रहा तो मािलक ने
कहा यह तो पुराना ह सूखा आ ह इस पर
छपित ने कहा "ठाकर चाह ओद हगूँ चाह
झूर" ज़ािहर ह संवाद वाभािवक ह और पा
क मानिसकता को पूरी तरह से अिभय
करते ह। उनका वणनामक कौशल कहानी
को जीवंत बना देता ह। उपयास क पा
अयंत जीवंत और यथाथवादी ह। हर चर
अपनी कहानी कहता ह और सामािजक
यवथा क िकसी न िकसी पहलू को उजागर
करता ह। िशवमूित ने अपने पा को इस तरह
गढ़ा ह िक वे पाठक क मन म गहरी छाप
छोड़ते ह। उपयास का ढाँचा हमेशा
बआयामी हो कर ही सफल माना जाता ह
और इस तरह कई समानांतर संग उसका
िवतार करते ह, उसम जीवन क िविवधता
को समािहत करते ह। िशवमूित ने भी इसका
यान रखा ह और ामीण यवथा तथा उस
तं को सामने लाने क भरपूर कोिशश क ह।
यहाँ सबकछ ह कोट कचेहरी, ठाकर, िनधन
लोग, जातीय समीकरण ाम पर धानी, हया
क राजनीित, वोट क राजनीित, िनबल ी
क बात क अनसुनी और उन पर अयाचार
यानी कल िमला यह कहा जा सकता ह
िक"अगम बह दरयाव" कवल एक कहानी
नह ह, ब क यह यथा थित तुित क
साथ साथ सामािजक बदलाव का आ?ान ह।
यह उपयास आज क समाज म भी उतना ही
ासंिगक ह िजतना िक इसक िलखे जाने क
समय से पहले था। जाितगत भेदभाव,
मिहला क ित अयाय, और सामािजक
असमानताएँ आज भी हमार समाज म मौजूद
ह। कथा संसार क िलए सबसे बड़ी चुनौती
यथाथ क वृहर आयाम क परेय म मूय
िवकिसत करने क साथ साथ उसक
िवसनीयता का िनवाह करना भी होता ह।
िशवमूित ने ामीण यथाथ को खुदबीन से
देखते ए अपना औपयािसक पाठ िनिमत
िकया ह और हािशए क जीवन को एक ऐसा
लेटफाम देने क कोिशश क ह िजसक सहार
उनक जीवन संघष को नए िसर से देखने क
? ?? शु क जा सक। "अगम बह
दरयाव" एक ऐसा उपयास ह, जो पाठक
को न कवल सोचने पर मजबूर करता ह,
ब क उह समाज क ित अपने दाियव को
समझने क िलए ेरत भी करता ह। िशवमूित
ने अपनी लेखनी से ामीण भारत क ज़मीनी
हक़क़त को उजागर िकया ह जहाँ इस बात
का एहसास होता ह िक सारा का सारा अमला
और तं एक ऐसे च यूह को िनिमत करता
ह िजसक िनशाने पर िकसान होता ह। पर
बेशक उस िकसान को ेरणा उसक जीवटपन
से िमलती ह, उसक मनुयता से िमलती ह जो
उसे यवथा से लड़ने का हौसला देती ह।
िशवमूित ने इस उपयास म िकसी तरह क
नाटकयता नह िदखाई ह। यह वणन इतना
जीवत और सजीव ह िक पाठक ?द को
उससे जुड़ा आ पाता ह और यही इस
उपयास क ताक़त ह। िशवमूित पर ाय
कथा कशल िचतेर ेमचंद और रणु जैसे
सािहयकार का भाव प िदखाई देता ह
पर इहने अपनी शैली िवकिसत क ह, कथा
कहन का अपना अलग अंदाज़ रखा ह जो न
िसफ पाठक को झकझोरता ह ब क उह
सोचने पर भी िववश करता ह। यह उपयास
सािहय क दुिनया म एक मील का पथर ह
और इसे पढ़ना हर उस य क िलए ज़री
ह, जो समाज को गहराई से समझना और
बदलना चाहता ह।
000
"अगम बह दरयाव" ामीण जीवन क समथ िकसागो िशवमूित का एक चिचत उपयास
ह जो गहन सामािजक यथाथ पर आधारत ह। इस उपयास म ामीण समाज क परपरागत
संरचना, उसम या शोषण, वग और जाित आधारत भेदभाव, और मानवीय संबंध क
जिटलता को भावशाली ढग से तुत िकया गया ह। यह उपयास न कवल ामीण भारत
क ज़मीनी हक़क़त को उजागर करता ह, ब क समाज क िविभ? पहलु को समझने और
उनक बदलाव क आवयकता पर भी काश डालता ह। एक सवाल असर उठाया जाता ह
िक वे कौन से सामािजक राजनीितक या आिथक कारण होते ह जो िकसी भी लेखक को िलखने
क िलए ेरत या ोसािहत करते ह? या अपने आस पास देखी गई घटनाएँ होती ह जो लेखक
क चेतना पर लगातार हावी रहती ह और जब उसे महसूस होता ह िक इस दबाव को लेकर अब
आगे बढ़ना मु कल होगा तो वह उह िक़से क प म परोसने को य हो जाता ह। बकौल
िशवमूित "मेरा यह उपयास ेम पीड़ा और ितरोध क एक दातान ह िजसम मने वही िलखा ह
िजसे मने देखा ह या महसूस िकया ह, जहाँ क समयाएँ मेरी समयाएँ ह, जहाँ क सार पा मुझे
जानते हाँ कछ पा अपने आस पास क गाँव से भी लेकर आया सच क तो ये सभी असली
ह उनसे मेरा आमीय रता रहा ह बस उनका नाम बदल िदया ह, िजह मने िलिपब करने क
कोिशश क ह।" बाइस अयाय म बाँट कर िलखे गए उपयास "अगम बह दरयाव" क
कहानी उर भारत क एक छोट से गाँव "बनकट" क पृभूिम पर आधारत ह जो कयाणी
नदी क िकनार बसा ह। यह गाँव पारपरक यवथा, सामंती सोच, और सामािजक िवषमता
का तीक ह। उपयास का शीषक "अगम बह दरयाव" गहर अथ को समेट ए ह। 'अगम'
का अथ ह गहरा और रहयमय, और 'दरयाव' यानी नदी, जो जीवन क वाह और उसक
अिन तता को दशाती ह। इस उपयास का कय और कथानक गाँव क िविभ? चर क
मायम से सामािजक संरचना और उसम मौजूद शोषण को उजागर करता ह। लेखक ने बड़ी
कशलता से जाित, वग, धम, और िलंग आधारत भेदभाव को कथा क मायम से तुत िकया
ह िजसम वे यक़नन सफल रह ह।
ामीण समाज म जाितगत भेदभाव और ऊच-नीच क मानिसकता उपयास का क ीय
िवषय ह। िशवमूित ने दिलत समाज क संघष को बड़ी सजीवता से िचित िकया ह। उ जाित
क लोग अपने िवशेषािधकार का उपयोग दिलत को दबाने क िलए करते ह। यह िदखाया गया
ह िक कसे जाित यवथा का उपयोग एक उपकरण क प म िकया जाता ह, िजससे िनन वग
क लोग पीढ़ी दर पीढ़ी शोषण का िशकार होते रहते ह। उपयास का ारभ छधारी िसंह क
हलवाह ारा संतोखी क खेत को जोतने से शु होता ह। िकसी क खेत जोतने का अथ आ
खेत पर क़ज़ा करना जबिक छधारी िसंह से उनका कोई झगड़ा या िबगाड़ तो था नह और
जब पूछा जाता ह तो यह बताया जाता ह िक संतोखी क बाप ने लमरदार अथात छपित िसंह
को बैनामा िलखवा िदया था। इस तरह गाँव क यथा थित को उपयास क ारभ म ही
रखांिकत कर िदया गया ह। वैसे तो इस उपयास म कई पा ह पर संतोखी, छपित िसंह, बोधा
भाई, भूसी, रामनाथ कशवाहा, माठा बाबा, बैताली, तूफानी िसंह अबेडकर, रामलाल,
रामनेवाज, तीरथ, पहलवान, िदवाकर, खेलावन और िसंगार आिद मुख ह। इन सबक साथ
साथ चलते ए पाठक इन सबसे जुड़ ए संग क समूचे िवयास म इस आधारभूत थापना
का ितफल खोजता आ चलता ह और उसे हािसल होता एक ऐसा सच जो आज़ादी क इतने
साल बाद भी जाित, संदाय और ऊच नीच क बीच ?क-?क कर साँस लेते ए िदखता ह।
आज एक आम नागरक क िदल म यह सवाल बार बार उठता ह िक िक आिख़र आज़ादी
क इतने साल क बावजूद हमार समाज क थित ऐसी य ह " या हमार नेता ने इस देश
को चलाने क परकपना ऐसे ही प म क थी? इस उपयास म एक भारतीय गाँव क
तथाकिथत गितशील होने क परकपना क प म िदखाई देती ह जहाँ जाितपरक भेद भाव
अपने चरमोकष पर ह। इस उपयास म देश क क़ानूनी यवथा पर भी ज़बद त तंज़ िकया
पुतक समीा
(उपयास)
अगम बह दरयाव
समीक : राजेश कमार िसहा
लेखक : िशवमूित
काशक : राजकमल काशन, नई
?·??
राजेश कमार िसहा
लैट नंबर 5, सुखदाई सी एच एस,
एच डी एफ सी बक क िनकट, एस वी
रोड, खार (वेट), मुंबई 52
मोबाइल- 7506345031
ईमेल- [email protected]

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 202547 46 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 2025
गया ह यिक यहाँ भी आज तक सुधार क
वैसी थित नह बनी ह जैसी िक अब तक हो
जानी चािहए थी। भूसी भगत क संतोखी क
मुकदमे म गवाही देने क िलए नायब क
इज़लास म जाने क संग क बहाने लेखक ने
याय यवथा क कलई खोल दी ह। भूसी क
समझ म यह नह आता िक इतने िदन बीत
जाने क बाद भी हािकम उनक िलए पाँच
िमनट क तारीख़ य नह िनकाल पा रह ह?
इतना ही तो पूछना ह िक या िक या तुहार
बेट क िववाह और संतोखी क बाप क मरने
क तारीख़ एक ही थी? म कह दूँगा जी र।
उपयास म मिहला क थित, उनक
संघष और उनक अिधकार क िलए िकए गए
यास को भी गहराई से दशाया गया ह।
लेखक ने यह प िकया ह िक ामीण
समाज म मिहला को दोहरी शोषण
यवथा का सामना करना पड़ता ह- एक,
पुषधान समाज क कारण, और दूसरा,
जाितगत भेदभाव क कारण। सा और सामंती
सोच उपयास का एक और महवपूण पहलू
ह। गाँव क उ जाित क ज़मदार अपनी सा
का उपयोग न कवल आिथक लाभ क िलए
करते ह, ब क अपनी सामािजक थित को
बनाए रखने क िलए भी करते ह। िशवमूित ने
इसे बड़ी सजीवता और सटीकता क साथ
तुत िकया ह। संतोखी तमाम मुसीबत क
बाद अपनी खेत क जुताई क िलए िमले
कचहरी क आदेश क बाद भी अपना खेत नह
जोत पाते ह।
उपयास का एक मुख प यह भी ह िक
इसम कवल शोषण और उपीड़न क तवीर
नह िदखाई गई ह, ब क बदलाव और संघष
क कहािनयाँ भी शािमल ह, मसलन बीस
साल बाद संतोखी का अपने खेत पर क़ज़ा
हो जाना िजसक िलए संतोखी ने या या नह
िकया। पर यवथा म दहशत इस कदर
शािमल ह िक संतोखी का मन घर जाने का
नह हो रहा ह। जैसे डर रह ह िक उधर वे घर
जाएँ और इधर छधारी क आदमी उनका
खेत ले कर ही भाग जाएँगे। ऐसे ितकल
माहौल क बावजूद गाँव क िनचले तबक क
लोग अपनी थित सुधारने क िलए एकजुट
होते ह और सामंती यवथा को चुनौती देने
क कोिशश करते ह। यह संघष उनक
आमिनभरता और वािभमान को दशाता ह
िशवमूित क शैली अयंत सरल,
वाहमय और भावशाली ह। उनक भाषा म
ामीण भारत क ?शबू और जीवन का
यथाथ झलकता ह। गाँव म ठाकर का भुव
िकतने गहर तक बैठा आ ह इसक एक
छोटी सी बानगी िनन पं य म देखी जा
सकती ह।
छधारी बचपन से दबंग रह ह। एक बार
ग?े क खेत म चोरी करते पकड़ गए तो
मािलक ने पकड़ िलया। जब पूछा गया तो
बताया िक शौच क िलए आया था िफर
मािलक ने कहा िक अपना शौच िदखाओ तो
उहने इधर उधर खोज कर पुराने शौच को
िदखा िदया और कहा यह रहा तो मािलक ने
कहा यह तो पुराना ह सूखा आ ह इस पर
छपित ने कहा "ठाकर चाह ओद हगूँ चाह
झूर" ज़ािहर ह संवाद वाभािवक ह और पा
क मानिसकता को पूरी तरह से अिभय
करते ह। उनका वणनामक कौशल कहानी
को जीवंत बना देता ह। उपयास क पा
अयंत जीवंत और यथाथवादी ह। हर चर
अपनी कहानी कहता ह और सामािजक
यवथा क िकसी न िकसी पहलू को उजागर
करता ह। िशवमूित ने अपने पा को इस तरह
गढ़ा ह िक वे पाठक क मन म गहरी छाप
छोड़ते ह। उपयास का ढाँचा हमेशा
बआयामी हो कर ही सफल माना जाता ह
और इस तरह कई समानांतर संग उसका
िवतार करते ह, उसम जीवन क िविवधता
को समािहत करते ह। िशवमूित ने भी इसका
यान रखा ह और ामीण यवथा तथा उस
तं को सामने लाने क भरपूर कोिशश क ह।
यहाँ सबकछ ह कोट कचेहरी, ठाकर, िनधन
लोग, जातीय समीकरण ाम पर धानी, हया
क राजनीित, वोट क राजनीित, िनबल ी
क बात क अनसुनी और उन पर अयाचार
यानी कल िमला यह कहा जा सकता ह
िक"अगम बह दरयाव" कवल एक कहानी
नह ह, ब क यह यथा थित तुित क
साथ साथ सामािजक बदलाव का आ?ान ह।
यह उपयास आज क समाज म भी उतना ही
ासंिगक ह िजतना िक इसक िलखे जाने क
समय से पहले था। जाितगत भेदभाव,
मिहला क ित अयाय, और सामािजक
असमानताएँ आज भी हमार समाज म मौजूद
ह। कथा संसार क िलए सबसे बड़ी चुनौती
यथाथ क वृहर आयाम क परेय म मूय
िवकिसत करने क साथ साथ उसक
िवसनीयता का िनवाह करना भी होता ह।
िशवमूित ने ामीण यथाथ को खुदबीन से
देखते ए अपना औपयािसक पाठ िनिमत
िकया ह और हािशए क जीवन को एक ऐसा
लेटफाम देने क कोिशश क ह िजसक सहार
उनक जीवन संघष को नए िसर से देखने क
? ?? शु क जा सक। "अगम बह
दरयाव" एक ऐसा उपयास ह, जो पाठक
को न कवल सोचने पर मजबूर करता ह,
ब क उह समाज क ित अपने दाियव को
समझने क िलए ेरत भी करता ह। िशवमूित
ने अपनी लेखनी से ामीण भारत क ज़मीनी
हक़क़त को उजागर िकया ह जहाँ इस बात
का एहसास होता ह िक सारा का सारा अमला
और तं एक ऐसे च यूह को िनिमत करता
ह िजसक िनशाने पर िकसान होता ह। पर
बेशक उस िकसान को ेरणा उसक जीवटपन
से िमलती ह, उसक मनुयता से िमलती ह जो
उसे यवथा से लड़ने का हौसला देती ह।
िशवमूित ने इस उपयास म िकसी तरह क
नाटकयता नह िदखाई ह। यह वणन इतना
जीवत और सजीव ह िक पाठक ?द को
उससे जुड़ा आ पाता ह और यही इस
उपयास क ताक़त ह। िशवमूित पर ाय
कथा कशल िचतेर ेमचंद और रणु जैसे
सािहयकार का भाव प िदखाई देता ह
पर इहने अपनी शैली िवकिसत क ह, कथा
कहन का अपना अलग अंदाज़ रखा ह जो न
िसफ पाठक को झकझोरता ह ब क उह
सोचने पर भी िववश करता ह। यह उपयास
सािहय क दुिनया म एक मील का पथर ह
और इसे पढ़ना हर उस य क िलए ज़री
ह, जो समाज को गहराई से समझना और
बदलना चाहता ह।
000
"अगम बह दरयाव" ामीण जीवन क समथ िकसागो िशवमूित का एक चिचत उपयास
ह जो गहन सामािजक यथाथ पर आधारत ह। इस उपयास म ामीण समाज क परपरागत
संरचना, उसम या शोषण, वग और जाित आधारत भेदभाव, और मानवीय संबंध क
जिटलता को भावशाली ढग से तुत िकया गया ह। यह उपयास न कवल ामीण भारत
क ज़मीनी हक़क़त को उजागर करता ह, ब क समाज क िविभ? पहलु को समझने और
उनक बदलाव क आवयकता पर भी काश डालता ह। एक सवाल असर उठाया जाता ह
िक वे कौन से सामािजक राजनीितक या आिथक कारण होते ह जो िकसी भी लेखक को िलखने
क िलए ेरत या ोसािहत करते ह? या अपने आस पास देखी गई घटनाएँ होती ह जो लेखक
क चेतना पर लगातार हावी रहती ह और जब उसे महसूस होता ह िक इस दबाव को लेकर अब
आगे बढ़ना मु कल होगा तो वह उह िक़से क प म परोसने को य हो जाता ह। बकौल
िशवमूित "मेरा यह उपयास ेम पीड़ा और ितरोध क एक दातान ह िजसम मने वही िलखा ह
िजसे मने देखा ह या महसूस िकया ह, जहाँ क समयाएँ मेरी समयाएँ ह, जहाँ क सार पा मुझे
जानते हाँ कछ पा अपने आस पास क गाँव से भी लेकर आया सच क तो ये सभी असली
ह उनसे मेरा आमीय रता रहा ह बस उनका नाम बदल िदया ह, िजह मने िलिपब करने क
कोिशश क ह।" बाइस अयाय म बाँट कर िलखे गए उपयास "अगम बह दरयाव" क
कहानी उर भारत क एक छोट से गाँव "बनकट" क पृभूिम पर आधारत ह जो कयाणी
नदी क िकनार बसा ह। यह गाँव पारपरक यवथा, सामंती सोच, और सामािजक िवषमता
का तीक ह। उपयास का शीषक "अगम बह दरयाव" गहर अथ को समेट ए ह। 'अगम'
का अथ ह गहरा और रहयमय, और 'दरयाव' यानी नदी, जो जीवन क वाह और उसक
अिन तता को दशाती ह। इस उपयास का कय और कथानक गाँव क िविभ? चर क
मायम से सामािजक संरचना और उसम मौजूद शोषण को उजागर करता ह। लेखक ने बड़ी
कशलता से जाित, वग, धम, और िलंग आधारत भेदभाव को कथा क मायम से तुत िकया
ह िजसम वे यक़नन सफल रह ह।
ामीण समाज म जाितगत भेदभाव और ऊच-नीच क मानिसकता उपयास का क ीय
िवषय ह। िशवमूित ने दिलत समाज क संघष को बड़ी सजीवता से िचित िकया ह। उ जाित
क लोग अपने िवशेषािधकार का उपयोग दिलत को दबाने क िलए करते ह। यह िदखाया गया
ह िक कसे जाित यवथा का उपयोग एक उपकरण क प म िकया जाता ह, िजससे िनन वग
क लोग पीढ़ी दर पीढ़ी शोषण का िशकार होते रहते ह। उपयास का ारभ छधारी िसंह क
हलवाह ारा संतोखी क खेत को जोतने से शु होता ह। िकसी क खेत जोतने का अथ आ
खेत पर क़ज़ा करना जबिक छधारी िसंह से उनका कोई झगड़ा या िबगाड़ तो था नह और
जब पूछा जाता ह तो यह बताया जाता ह िक संतोखी क बाप ने लमरदार अथात छपित िसंह
को बैनामा िलखवा िदया था। इस तरह गाँव क यथा थित को उपयास क ारभ म ही
रखांिकत कर िदया गया ह। वैसे तो इस उपयास म कई पा ह पर संतोखी, छपित िसंह, बोधा
भाई, भूसी, रामनाथ कशवाहा, माठा बाबा, बैताली, तूफानी िसंह अबेडकर, रामलाल,
रामनेवाज, तीरथ, पहलवान, िदवाकर, खेलावन और िसंगार आिद मुख ह। इन सबक साथ
साथ चलते ए पाठक इन सबसे जुड़ ए संग क समूचे िवयास म इस आधारभूत थापना
का ितफल खोजता आ चलता ह और उसे हािसल होता एक ऐसा सच जो आज़ादी क इतने
साल बाद भी जाित, संदाय और ऊच नीच क बीच ?क-?क कर साँस लेते ए िदखता ह।
आज एक आम नागरक क िदल म यह सवाल बार बार उठता ह िक िक आिख़र आज़ादी
क इतने साल क बावजूद हमार समाज क थित ऐसी य ह " या हमार नेता ने इस देश
को चलाने क परकपना ऐसे ही प म क थी? इस उपयास म एक भारतीय गाँव क
तथाकिथत गितशील होने क परकपना क प म िदखाई देती ह जहाँ जाितपरक भेद भाव
अपने चरमोकष पर ह। इस उपयास म देश क क़ानूनी यवथा पर भी ज़बद त तंज़ िकया
पुतक समीा
(उपयास)
अगम बह दरयाव
समीक : राजेश कमार िसहा
लेखक : िशवमूित
काशक : राजकमल काशन, नई
?·??
राजेश कमार िसहा
लैट नंबर 5, सुखदाई सी एच एस,
एच डी एफ सी बक क िनकट, एस वी
रोड, खार (वेट), मुंबई 52
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उठती रहगी। किवता कोई शौक नह ह, न ही
कोई उपादकता का औज़ार। हमम से कछ
लोग इसे उसक उपयोिगता से नह, उस
अ य क से जानते ह, जो सीधे आमा से
जुड़ती ह। किवताएँ जैसे कोई दरवेश, कोई
पीर जो चुपचाप हमार िलए दुआ करती रहती
ह। कभी िकसी पुराने घाव पर फाहा रखती ह,
कभी िकसी बुझे कोने म रोशनी भर देती ह।
और कभी-कभी तो बस इसिलए साथ देती ह
िक कोई तो ह जो समझता ह, िबना कह, िबना
माँगे।
"िलखना सबसे बड़ी यातना ह, और
उससे मु भी िसफ़ और िसफ़ िलखना ही
ह।" र म भाराज जब यह िलखती ह, तब वे
कवल एक िवचार नह रख रह; वे एक
लेखक क भीतरी उथल-पुथल, उसक
रचनामक पीड़ा और गहराई से महसूस िकए
गए अ तव-संकट को शद दे रही होती ह।
यह डायरी बार-बार हम बताती ह िक लेखन
कोई सुखद वाह नह, ब क एक सतत
झंझावात ह। रचना क ? ?? म लेखक को
वयं को अनिगनत बार तोड़ना पड़ता ह,
िगराना पड़ता ह, और िफर उसी मलबे से कछ
नया उठाना होता ह। इसीिलए वे िलखती ह -
"एक लेखक क मृयु कोई और तय नह कर
सकता। रचने क यंणा से गुज़रता आ वह
?द कई बार अपनी िणक मृयु से गुज़रता
ह।" यह िणक मृयु- एक कार का
रचनामक िवरचन ह, जहाँ हर बार एक नया
'व' जम लेता ह। यहाँ लेखन एक अनंत
आम-संधान ह, जहाँ मु क राह भी वही
ह, िजसने बंधन क पीड़ा दी - िलखना।
र म भाराज क डायरी कवल अनुभूित
क परत नह खोलती, ब क समकालीन
लेखन क उस अंतिवरोध को भी उजागर
करती ह िजसम लेखक से यह अपेा क
जाती ह िक वह हर पर थित को उमीद,
ेरणा और सकारामकता क चमे से देखे। वे
तीखेपन से िलखती ह-
"िलखते ए जो चीज़ सबसे यादा
क़लम को रोकने आती ह, वह ह हर तरफ़
सकारामक देखने और उसे उसी प म
लौटाने का आह।"
यह पं उस मानिसक थकावट क ओर
इशारा करती ह, जो तब होती ह जब रचनाकार
को बार-बार उमीद का ठकदार बना िदया
जाता ह। जबिक यथाथ असर उमीद क
िवपरीत होता ह - क प, िबखरा आ, अधूरा
और तकलीफ़देह। र म इस डायरी म साफ़
करती ह िक लेखन कवल आनंद का ोत
नह, ब क सय क खोज भी ह। और यह
सय हर बार सुंदर नह होता। उसे वैसा ही
वीकारना और तुत करना लेखकय
नैितकता का िहसा ह। इसिलए उनक डायरी
िसफ़ सकारामक सोच का तुितगान नह ह,
वह न करती ह, टकराती ह, कभी ?द से
भी। वह किवता को आशा का गीत नह,
ब क चुपी म फ?टती एक विन क तरह
देखती ह।
र म भाराज जब िलखती ह िक
"किवता मेर िलए एक िनरतर याा ह िजसका
कोई िनिद गंतय नह ह," तो वे किवता को
एक मुकाम या उपल ध नह, ब क एक
जीवंत ? ?? क प म देखती ह। यह याा
उह भीतर क एकांत तक भी ले जाती ह और
बाहर क कोलाहल से भी जोड़ती ह। यही
किवता क ैतपूण कित ह, वह अंतमुखी भी
ह और बिहमुखी भी। इस डायरी म र म क
किवता-याा एक ऐसी साधना ह जहाँ न कोई
मंिज़ल िन त ह, न कोई समा -रखा। वह
आमा क मौन गिलयार से भी गुज़रती ह और
दुिनया क शोरगुल, िवडबना, िवरोध और
बेचैिनय से भी टकराती ह। यह कथन एक
और तर पर यह भी प करता ह िक
किवता कवल भावना क पूित नह ह, वह
संतुलन का मायम भी ह। एक ओर एकांत म
उतरने का राता ह, जहाँ रचनाकार वयं से
संवाद करता ह, वह दूसरी ओर वह
कोलाहल से टकराता ह, िजसम समाज,
समय और सा क ितविनयाँ ह। यहाँ
किवता एक पुल ह - य और िव क
बीच, आमा और अ तव क बीच।
वे िलखती ह - "कभी-कभी इस शहर क
साट म भी एक सांकितक गूँज सुनाई देती
ह, जैसे कह दूर भारत भवन क गिलय से
कोई किवता धीमे-धीमे साँस ले रही हो, जैसे
िकसी मोड़ से कमार गंधव क सुरलहरयाँ
उठती ह और हवा म घुलकर मेरी आमा को
छ जाती ह। और िफर, कह भीतर, बत
भीतर रवी नाथ टगोर क कोई अनुगूँज गूँज
उठती ह, जो मुझे ?द से, शद से, और
सृजन से जोड़ देती ह।"
इस डायरी को पढ़कर सिदानंद हीरानंद
वा यायन 'अेय' ारा िलिखत "अेय क
डायरी अंश" और िनमल वमा क "रचना क
आयाम" पुतक क याद आती ह। र म
भाराज ने इस डायरी को कवल िलखा नह
ह, ब क इसे िजया ह। हर पं म उनका
आमसंवाद, भीतर क किव क पड़ताल और
उसक कसौटी पर खरा उतरने क बेचैनी
झलकती ह। यह मा एक रोज़नामचा नह ह,
ब क आमबोध क िया का ग
पांतरण ह। यह डायरी पाठक को भीतर तक
समृ करती ह, उसे एक गहरी मानवीयता
और संवेदना से भर देती ह। र म भाराज क
यह कित एक आ मक दतावेज़ ह, िजसम
जीवन क आहट ह, किवता क गूँज ह और
लेखन क तिपश ह। लेिखका ने किवता,
लेखक क पीड़ा, समाज क आह और
आम-अवलोकन को िजस तरह िपरोया ह,
वह िकसी गहर आलोचक क कलम का
माण ह। यह डायरी नह, आमा क उकरी
ई परछाई ह। र म भाराज ने एक लेखक
क रचनामक पीड़ा, कायामक चेतना और
आमबोध क याा को मेरी तलब का सामान
(डायरी) क मायम से अयंत भावशाली
ढग से तुत िकया ह। "मेरी तलब का
सामान" (डायरी) उन िवरल पुतक म से ह
जो किवता, दशन और आमा क यी म
सृजन करती ह। यह कोई नई िवधा नह,
लेिकन िन त प से एक नई ऊचाई ह। इस
तरह क िकताब कम ह और आज क समय म
तो और भी दुलभ ह, जब रचना असर
ताकािलकता और उपादकता म फसी होती
ह। डायरी क भाषा और वाह पाठक को
सतत जोड़ रखने म पूरी तरह सम ह। "मेरी
तलब का सामान" (डायरी) बेहद रोचक,
पठनीय और ?बसूरत ह।
000
"मेरी तलब का सामान" सघन संवेदना क साथ सुपरिचत सािहयकार र म भाराज ारा
िलिखत एक डायरी ह। र म भाराज क मुख रचना म "एक अितर अ", "मने अपनी
माँ को जम िदया ह", "घो घो रानी िकतना पानी", "समुख" (किवता संह), "वह साल
बयालीस था" (उपयास), "ेम क पहले बसंत म", "मेरी यातना क अंत म एक दरवाज़ा था",
"21 व सदी क िव ी किवता" (संपादन), "21 व सदी क िव ी किवता",
"आिदवासी नह नाचगे", "र कन बॉड क अँधेर म चेहरा", एक घुमतु लड़क क डायरी"
(अनुवाद) शािमल ह। िज़दगी क दाशिनक प उजागर करते ए र म भाराज अपनी डायरी
मेरी तलब का सामान िलखती ह। र म भाराज क लेखनी म सहजता, जीवन का पंदन,
आ मक संवेदनशीलता ितिबंिबत होती ह। यह डायरी गहर आमबोध, सािह यक सूझ-बूझ
और संवेदना का सुंदर संगम ह। र म भाराज ने किवता को िजस गहराई से समझा और तुत
िकया ह, वह वयं एक सािह यक लेखनी का उदाहरण ह। वे इस डायरी म अपनी किव s??
से आमा क थाह लेती ह।
इस डायरी म र म का किवव पूरी तरह सिय ह, कभी विन क तरह, कभी िवराम क
तरह। िकसी किव का ग पढ़ना अपने आप म एक अलग अनुभव होता ह, तरल, तरिगत, पश
करता आ। यह डायरी भी वैसा ही अनुभव ह जो पाठक को भीतर तक समृ करती ह, उसे
एक गहरी मानवीयता और संवेदना से भर देती ह। "मेरी तलब का सामान" एक आ मक
दतावेज़ ह, ऐसा ग जो किवता क लय म बहता ह। यह डायरी नह, एक याा ह; आमा क
गहराते अनुभव क याा।
र म भाराज ने इस डायरी म िलखा ह- किव से एक िवशेष कार क संवेदनशीलता, एक
अितर मानवीय कोण क अपेा हम वाभािवक प से करते ह। यह अपेा यूँ ही नह
ह यिक किवता दरअसल मनुयता का ही आलाप ह। वह समय और समाज म उप थत हर
अयाय, असमानता और अमानवीयता क िव एक मूक, पर सश? ितरोध ह। जहाँ जीवन
म सब कछ पूण हो, परम संतोष हो, वहाँ किवता का जम नह होता। किवता हमेशा उस रता
से फ?टती ह िजसे संवेदना पहचानती ह, िजसे िववेक झेलता ह। लेिकन यिद िकसी किव का
अपना जीवन उसी किवता क िवपरीत िदशा म चलता आ िदखे, जहाँ शद कछ और कह और
कम कछ और ह, तो या वह किवता पाठक क दय म वही ेम और वही समान जगा
पाएगी? शायद नह। यिक किवता कवल िशप नह ह, वह जीवन क एक ितबता ह।
र म भाराज ने िलखा ह- किवता िलखना, मुझे लगता ह, अपने दय को धीर-धीर खोल
देना ह। एक ऐसा आम-वेश जहाँ शद क मायम से किव अनजाने ही अपने भीतर क सबसे
िनजी िहसे को सामने रख देता ह। और भले ही किव वयं पदा डाले, एक िजासु पाठक उस
किवता म उसक आमा का अंश ज़र खोजेगा। यिक किवता िबना आमा को झक, िबना
दय को समिपत िकए िलखी ही कहाँ जा सकती ह " लेिकन यह एक िवडबना भी ह, कभी-
कभी पाठक क उसुक िनगाह आमा से भी आगे बढ़ जाती ह। वह किवता म किव क देह को
भी पढ़ने लगती ह। उस देह क चार ओर कपना क धागे लपेटकर चटपटी कहािनयाँ गढ़ी जाती
ह। तब किवता िसफ आमा का नह, एक हद तक देह का भी अनावरण करती ह, चाह किव ने
ऐसा चाहा हो या नह। यह किवता क ासदी भी ह और उसका साहस भी।
वे इस डायरी म िलखती ह - आज िफर वही आ। थोड़ी ही देर म एक तेज़ तलब उठी, ऐसी
तलब िजसे शद म बाँधना मु कल ह। न भूख थी, न यास, न कोई ठोस इछा... बस कछ
भीतर से िखंचने लगा। आँख अचानक बेचैन हो उठ, जैसे कोई खोई ई चीज़ तलाश रही ह। म
इधर-उधर देखने लगी, टबल पर रखी िकताब क ढर म, वक लैपटॉप क न पर, कमर क
कोन म, पर कह सुक?न न िमलाs िफर उगिलयाँ अपने आप मोबाइल न पर प च और
टाइप िकया - "Poetry"। पता नह य, पर जब-जब यह बेचैनी होती ह, जवाब किवता क
पास ही िमलता ह। शु ह, यह तलब मुझ जैसे और भी कई लोग क भीतर उठती रही ह...
पुतक समीा
(डायरी)
मेरी तलब का सामान
समीक : दीपक िगरकर
लेखक : र म भाराज
काशक : िशवना काशन, साट
कॉ लैस बेसमट, सीहोर, म
466001, फ़ोन-07562405545
मोबाइल- +91-9806162184
ईमेल- [email protected]
दीपक िगरकर
28-सी, वैभव नगर, कनािडया रोड,
इदौर- 452016 म
मोबाइल- 9425067036
ईमेल- [email protected]

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 202549 48 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 2025
उठती रहगी। किवता कोई शौक नह ह, न ही
कोई उपादकता का औज़ार। हमम से कछ
लोग इसे उसक उपयोिगता से नह, उस
अ य क से जानते ह, जो सीधे आमा से
जुड़ती ह। किवताएँ जैसे कोई दरवेश, कोई
पीर जो चुपचाप हमार िलए दुआ करती रहती
ह। कभी िकसी पुराने घाव पर फाहा रखती ह,
कभी िकसी बुझे कोने म रोशनी भर देती ह।
और कभी-कभी तो बस इसिलए साथ देती ह
िक कोई तो ह जो समझता ह, िबना कह, िबना
माँगे।
"िलखना सबसे बड़ी यातना ह, और
उससे मु भी िसफ़ और िसफ़ िलखना ही
ह।" र म भाराज जब यह िलखती ह, तब वे
कवल एक िवचार नह रख रह; वे एक
लेखक क भीतरी उथल-पुथल, उसक
रचनामक पीड़ा और गहराई से महसूस िकए
गए अ तव-संकट को शद दे रही होती ह।
यह डायरी बार-बार हम बताती ह िक लेखन
कोई सुखद वाह नह, ब क एक सतत
झंझावात ह। रचना क ? ?? म लेखक को
वयं को अनिगनत बार तोड़ना पड़ता ह,
िगराना पड़ता ह, और िफर उसी मलबे से कछ
नया उठाना होता ह। इसीिलए वे िलखती ह -
"एक लेखक क मृयु कोई और तय नह कर
सकता। रचने क यंणा से गुज़रता आ वह
?द कई बार अपनी िणक मृयु से गुज़रता
ह।" यह िणक मृयु- एक कार का
रचनामक िवरचन ह, जहाँ हर बार एक नया
'व' जम लेता ह। यहाँ लेखन एक अनंत
आम-संधान ह, जहाँ मु क राह भी वही
ह, िजसने बंधन क पीड़ा दी - िलखना।
र म भाराज क डायरी कवल अनुभूित
क परत नह खोलती, ब क समकालीन
लेखन क उस अंतिवरोध को भी उजागर
करती ह िजसम लेखक से यह अपेा क
जाती ह िक वह हर पर थित को उमीद,
ेरणा और सकारामकता क चमे से देखे। वे
तीखेपन से िलखती ह-
"िलखते ए जो चीज़ सबसे यादा
क़लम को रोकने आती ह, वह ह हर तरफ़
सकारामक देखने और उसे उसी प म
लौटाने का आह।"
यह पं उस मानिसक थकावट क ओर
इशारा करती ह, जो तब होती ह जब रचनाकार
को बार-बार उमीद का ठकदार बना िदया
जाता ह। जबिक यथाथ असर उमीद क
िवपरीत होता ह - क प, िबखरा आ, अधूरा
और तकलीफ़देह। र म इस डायरी म साफ़
करती ह िक लेखन कवल आनंद का ोत
नह, ब क सय क खोज भी ह। और यह
सय हर बार सुंदर नह होता। उसे वैसा ही
वीकारना और तुत करना लेखकय
नैितकता का िहसा ह। इसिलए उनक डायरी
िसफ़ सकारामक सोच का तुितगान नह ह,
वह न करती ह, टकराती ह, कभी ?द से
भी। वह किवता को आशा का गीत नह,
ब क चुपी म फ?टती एक विन क तरह
देखती ह।
र म भाराज जब िलखती ह िक
"किवता मेर िलए एक िनरतर याा ह िजसका
कोई िनिद गंतय नह ह," तो वे किवता को
एक मुकाम या उपल ध नह, ब क एक
जीवंत ? ?? क प म देखती ह। यह याा
उह भीतर क एकांत तक भी ले जाती ह और
बाहर क कोलाहल से भी जोड़ती ह। यही
किवता क ैतपूण कित ह, वह अंतमुखी भी
ह और बिहमुखी भी। इस डायरी म र म क
किवता-याा एक ऐसी साधना ह जहाँ न कोई
मंिज़ल िन त ह, न कोई समा -रखा। वह
आमा क मौन गिलयार से भी गुज़रती ह और
दुिनया क शोरगुल, िवडबना, िवरोध और
बेचैिनय से भी टकराती ह। यह कथन एक
और तर पर यह भी प करता ह िक
किवता कवल भावना क पूित नह ह, वह
संतुलन का मायम भी ह। एक ओर एकांत म
उतरने का राता ह, जहाँ रचनाकार वयं से
संवाद करता ह, वह दूसरी ओर वह
कोलाहल से टकराता ह, िजसम समाज,
समय और सा क ितविनयाँ ह। यहाँ
किवता एक पुल ह - य और िव क
बीच, आमा और अ तव क बीच।
वे िलखती ह - "कभी-कभी इस शहर क
साट म भी एक सांकितक गूँज सुनाई देती
ह, जैसे कह दूर भारत भवन क गिलय से
कोई किवता धीमे-धीमे साँस ले रही हो, जैसे
िकसी मोड़ से कमार गंधव क सुरलहरयाँ
उठती ह और हवा म घुलकर मेरी आमा को
छ जाती ह। और िफर, कह भीतर, बत
भीतर रवी नाथ टगोर क कोई अनुगूँज गूँज
उठती ह, जो मुझे ?द से, शद से, और
सृजन से जोड़ देती ह।"
इस डायरी को पढ़कर सिदानंद हीरानंद
वा यायन 'अेय' ारा िलिखत "अेय क
डायरी अंश" और िनमल वमा क "रचना क
आयाम" पुतक क याद आती ह। र म
भाराज ने इस डायरी को कवल िलखा नह
ह, ब क इसे िजया ह। हर पं म उनका
आमसंवाद, भीतर क किव क पड़ताल और
उसक कसौटी पर खरा उतरने क बेचैनी
झलकती ह। यह मा एक रोज़नामचा नह ह,
ब क आमबोध क िया का ग
पांतरण ह। यह डायरी पाठक को भीतर तक
समृ करती ह, उसे एक गहरी मानवीयता
और संवेदना से भर देती ह। र म भाराज क
यह कित एक आ मक दतावेज़ ह, िजसम
जीवन क आहट ह, किवता क गूँज ह और
लेखन क तिपश ह। लेिखका ने किवता,
लेखक क पीड़ा, समाज क आह और
आम-अवलोकन को िजस तरह िपरोया ह,
वह िकसी गहर आलोचक क कलम का
माण ह। यह डायरी नह, आमा क उकरी
ई परछाई ह। र म भाराज ने एक लेखक
क रचनामक पीड़ा, कायामक चेतना और
आमबोध क याा को मेरी तलब का सामान
(डायरी) क मायम से अयंत भावशाली
ढग से तुत िकया ह। "मेरी तलब का
सामान" (डायरी) उन िवरल पुतक म से ह
जो किवता, दशन और आमा क यी म
सृजन करती ह। यह कोई नई िवधा नह,
लेिकन िन त प से एक नई ऊचाई ह। इस
तरह क िकताब कम ह और आज क समय म
तो और भी दुलभ ह, जब रचना असर
ताकािलकता और उपादकता म फसी होती
ह। डायरी क भाषा और वाह पाठक को
सतत जोड़ रखने म पूरी तरह सम ह। "मेरी
तलब का सामान" (डायरी) बेहद रोचक,
पठनीय और ?बसूरत ह।
000
"मेरी तलब का सामान" सघन संवेदना क साथ सुपरिचत सािहयकार र म भाराज ारा
िलिखत एक डायरी ह। र म भाराज क मुख रचना म "एक अितर अ", "मने अपनी
माँ को जम िदया ह", "घो घो रानी िकतना पानी", "समुख" (किवता संह), "वह साल
बयालीस था" (उपयास), "ेम क पहले बसंत म", "मेरी यातना क अंत म एक दरवाज़ा था",
"21 व सदी क िव ी किवता" (संपादन), "21 व सदी क िव ी किवता",
"आिदवासी नह नाचगे", "र कन बॉड क अँधेर म चेहरा", एक घुमतु लड़क क डायरी"
(अनुवाद) शािमल ह। िज़दगी क दाशिनक प उजागर करते ए र म भाराज अपनी डायरी
मेरी तलब का सामान िलखती ह। र म भाराज क लेखनी म सहजता, जीवन का पंदन,
आ मक संवेदनशीलता ितिबंिबत होती ह। यह डायरी गहर आमबोध, सािह यक सूझ-बूझ
और संवेदना का सुंदर संगम ह। र म भाराज ने किवता को िजस गहराई से समझा और तुत
िकया ह, वह वयं एक सािह यक लेखनी का उदाहरण ह। वे इस डायरी म अपनी किव s??
से आमा क थाह लेती ह।
इस डायरी म र म का किवव पूरी तरह सिय ह, कभी विन क तरह, कभी िवराम क
तरह। िकसी किव का ग पढ़ना अपने आप म एक अलग अनुभव होता ह, तरल, तरिगत, पश
करता आ। यह डायरी भी वैसा ही अनुभव ह जो पाठक को भीतर तक समृ करती ह, उसे
एक गहरी मानवीयता और संवेदना से भर देती ह। "मेरी तलब का सामान" एक आ मक
दतावेज़ ह, ऐसा ग जो किवता क लय म बहता ह। यह डायरी नह, एक याा ह; आमा क
गहराते अनुभव क याा।
र म भाराज ने इस डायरी म िलखा ह- किव से एक िवशेष कार क संवेदनशीलता, एक
अितर मानवीय कोण क अपेा हम वाभािवक प से करते ह। यह अपेा यूँ ही नह
ह यिक किवता दरअसल मनुयता का ही आलाप ह। वह समय और समाज म उप थत हर
अयाय, असमानता और अमानवीयता क िव एक मूक, पर सश? ितरोध ह। जहाँ जीवन
म सब कछ पूण हो, परम संतोष हो, वहाँ किवता का जम नह होता। किवता हमेशा उस रता
से फ?टती ह िजसे संवेदना पहचानती ह, िजसे िववेक झेलता ह। लेिकन यिद िकसी किव का
अपना जीवन उसी किवता क िवपरीत िदशा म चलता आ िदखे, जहाँ शद कछ और कह और
कम कछ और ह, तो या वह किवता पाठक क दय म वही ेम और वही समान जगा
पाएगी? शायद नह। यिक किवता कवल िशप नह ह, वह जीवन क एक ितबता ह।
र म भाराज ने िलखा ह- किवता िलखना, मुझे लगता ह, अपने दय को धीर-धीर खोल
देना ह। एक ऐसा आम-वेश जहाँ शद क मायम से किव अनजाने ही अपने भीतर क सबसे
िनजी िहसे को सामने रख देता ह। और भले ही किव वयं पदा डाले, एक िजासु पाठक उस
किवता म उसक आमा का अंश ज़र खोजेगा। यिक किवता िबना आमा को झक, िबना
दय को समिपत िकए िलखी ही कहाँ जा सकती ह " लेिकन यह एक िवडबना भी ह, कभी-
कभी पाठक क उसुक िनगाह आमा से भी आगे बढ़ जाती ह। वह किवता म किव क देह को
भी पढ़ने लगती ह। उस देह क चार ओर कपना क धागे लपेटकर चटपटी कहािनयाँ गढ़ी जाती
ह। तब किवता िसफ आमा का नह, एक हद तक देह का भी अनावरण करती ह, चाह किव ने
ऐसा चाहा हो या नह। यह किवता क ासदी भी ह और उसका साहस भी।
वे इस डायरी म िलखती ह - आज िफर वही आ। थोड़ी ही देर म एक तेज़ तलब उठी, ऐसी
तलब िजसे शद म बाँधना मु कल ह। न भूख थी, न यास, न कोई ठोस इछा... बस कछ
भीतर से िखंचने लगा। आँख अचानक बेचैन हो उठ, जैसे कोई खोई ई चीज़ तलाश रही ह। म
इधर-उधर देखने लगी, टबल पर रखी िकताब क ढर म, वक लैपटॉप क न पर, कमर क
कोन म, पर कह सुक?न न िमलाs िफर उगिलयाँ अपने आप मोबाइल न पर प च और
टाइप िकया - "Poetry"। पता नह य, पर जब-जब यह बेचैनी होती ह, जवाब किवता क
पास ही िमलता ह। शु ह, यह तलब मुझ जैसे और भी कई लोग क भीतर उठती रही ह...
पुतक समीा
(डायरी)
मेरी तलब का सामान
समीक : दीपक िगरकर
लेखक : र म भाराज
काशक : िशवना काशन, साट
कॉ लैस बेसमट, सीहोर, म
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मोबाइल- +91-9806162184
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दीपक िगरकर
28-सी, वैभव नगर, कनािडया रोड,
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çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 202551 50 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 2025
अय तमाम बात आपको एक कथाम म
िसलिसलेवार इस उपयास म पढ़ने को
िमलगी। अिनल गोयल क लेखकय साहस
क शंसा करनी चािहए िक उहने इन जन-
िवरोधी और मनुय-िवरोधी क य को
वातिवक नाम क साथ ही अपने इस
उपयास म िपरोया ह। इसम संजय गाँधी
संजय गाँधी और जगमोहन जगमोहन ही ह।
टटा टटा ही ह, और ?ख़साना सुताना भी
अपने ही नाम से इस उपयास म उप थत ह।
इसी तरह से और अनेक नाम क िलए उहने
छ? नाम क कपना नह क ह। इस तरह
से यह उपयास िफ़शन क साथ वातिवक
इितहास भी ह।
नया सवेरा म मुय प से चार पा ह।
िवम, िदनेश, मंजू और रामरतन जी। िवम
और मंजू क बत ही मैयोर ेम कथा इस
उपयास का आधार ह। िदनेश और िवम
िम ह। आप इस उपयास म कह-कह युवा
और िवोही अिनल गोयल क छिवयाँ भी ढ ढ़
सकते ह। अिनल गोयल आपातकाल क
भु?-भोगी रह ह। लगभग दो महीना जेल म
रह और कोट क आदेश पर ज़मानत पर रहा
िकए गए। इस तरह से यह उपयास कछ
अिजत एवं कछ भोगे ए यथाथ का परणाम
ह। इसीिलए म इसे एक ामािणक सािह यक
दतावेज़ क प म देखता । बाज़ार
सीताराम क बाज़ार, और वहाँ रहने वाले
वकल और पकार और सभी आिथक और
सामािजक वग क अय सामाय नागरक भी
अपने-अपने अनुभव क साथ उप थत होते
रहते ह। धीर-धीर सभी िवपी दल कांेस क
िनरक श शासन क िवरोध म लामबद होने
लगे थे। इन िवरोधी िवचारधारा क
राजनीितक दल को एकजुट करने का ेय
जयकाश नारायण को जाता ह। आम चुनाव
घोिषत ए और ीमती इिदरा गाँधी सिहत
कांेस बुरी तरह से हार गई। यह उस पुराने
राजनीितक दल का पतन काल था।
आपातकाल ने इिदरा गाँधी ारा हािसल क
गई सभी राजनीितक उपल धय को धूिमल
कर िदया था।
चुनाव क बाद जनता पाट शासन म आई
और बत उथल-पुथल क बाद ी मोरारजी
देसाई नए धानम ी बने। यह तो रही
इितहास क बात।
उपयास भी अपनी कथा क साथ आगे
बढ़ता ह। मंजू िवम क यार म बुरी तरह से
पागल हो चुक ह लेिकन माता-िपता क
िवरोध म भी नह जा सकती।
उपयास का अ तम िहसा बत ही
मािमक ह। मंजू क िवम क साथ िमल जाने
क साध जैसे साध ही रह गई। वह बीमार हो
कर अपताल म भत थी। यह िवम और
मंजू अ तम बार िमलते ह। मंजू क संवाद
और िवम का सताप िमलकर एक मािमक
य का िनमाण करते ह, जहाँ मंजू और
िवम का वन वत हो जाता ह।
एक ओर राजनीितक उथल-पुथल, और
दूसरी ओर एक मािमक ेम-कथा- दोन
िमलकर मनुयता से भरी दुिनया का िनमाण
करता ह यह उपयास।
इस उपयास क एक िवशेषता और भी
ह। वह ह िहदी क कछ किवय क उन
किवता का इतेमाल जो उहने
आपातकाल क िवरोध म जन-प म िलखी
थ। यहाँ नागाजुन क किवताएँ ह तो दुयत
कमार क ग़ज़ल क कछ अश'आर भी; और
इनक साथ ही अिनल गोयल ने पाश, काका
हाथरसी, भवानी साद िम, गोपाल िसंह
नेपाली, िवनाथ शु?, सुरजीत पातर
इयािद क किवताएँ भी इस पुतक म शािमल
क ह, जो इसक िवसनीयता को असंिदध
बना देता ह।
अटल िबहारी वाजपेयी क कछ
किवता और भगवादास वधवा क
यंयामक किवता 'धका ांपोट
कारपोरशन' पुतक को पाठक क िदल क
बत समीप ले आती ह। कहा जा सकता ह
िक िजहने वह समय देखा ह, वे इसे पढ़गे तो
उस समय क पुनया ा पर िनकल जाएँगे,
और नई पीढ़ी पढ़गी, तो वह इितहास क इस
काले अयाय से वािकफ़ होगी। उपयास क
अत तक रोचकता बनी रहती ह। इसे अवय
पढ़ा जाना चािहए।
000
अिनल गोयल एक बिवध रचनाकार ह। किवता, कहानी, नाटक और उपयास क प म
उनक लेखकय ितभा सामने आ चुक ह। अंेज़ी और िहदी दोन भाषा म उह महारत
हािसल ह। िदी म जब कोई उेखनीय नाटक मंिचत होता ह तो उसक रगमंचीय समीा
तुरत सामने आती ह। कछ साल पहले तो वे अख़बार एवं पिका म रग-समीा िलखते थे,
लेिकन धीर-धीर अख़बार और पिका से रग-समीा आिद अनुप थत कर िदए गए ह।
अब उनक रग-समीाएँ फसबुक एवं सोशल मीिडया क कितपय मंच पर ही पढ़ने को िमलती
ह। सोशल मीिडया क प च बत दूर तक ह। उनक रग-समीाएँ न कवल चाव से पढ़ी जाती
ह, वे नाटक देखने क सलािहयत भी पैदा करती ह।
इधर वे कथा-सािहय क ओर मुड़ ह। उनक पहली कहानी छापने का सुख शदायतन को
िमला ह, जहाँ उनक कछ किवताएँ भी छपी ह।
'नया सवेरा' उनका नया उपयास ह। इससे पहले उनका एक उपयास 'कह खुलता कोई
झरोखा' कािशत हो चुका ह। इस उपयास का िवषय एक मद-बुि बा ह। इस बे क
बहाने उहने मद-बुि ब क समया को कथामक संवेदना क साथ उकरा ह। लेिकन
दुभा यवश यह उपयास एक ऐसे काशक से छपा, िजसने इस उपयास क चार-सार म
यान नह िदया और नाही उसक िब ई। परणामत: एक संवेदनशील सामािजक मु?े पर
िलखा आ यह उपयास पढ़ जाने और चचा म आने से पूव ही सािहय क दुिनया से ग़ायब हो
गया।
अिनल अभी भी उस उपयास क परविधत आलेख पर काम कर रह ह, और आशा क
जानी चािहए िक वह िनकट भिवय म जदी ही नए िसर से कािशत होकर वृह तर पर पढ़ा
जाएगा। इसी बीच उहने राीय ना? िवालय क पिका 'रग संग' का एक अंक अितिथ
संपादक क प म, िवकलांग क साथ रगमंच क ही िवषय पर क त करते ए िनकाला, जो
काफ चचा म रहा ह, जो इस िवषय पर अपनी तरह का एकमा अंक ह। उसक चचा अलग से
कह और क गा। िफ़लहाल हम उनक डायमंड बुस से कािशत नए उपयास नया सवेरा पर
बात करते ह।
नया सवेरा क पृभूिम 1975 म लगाया गया आपातकाल ह। 1970 क आसपास पैदा ई
पीढ़ी अब बड़ी हो चुक ह और उसक बाद भी दो-तीन पीिढ़याँ आ चुक ह। लेिकन आपातकाल
हमारा देखा आ ह और वहाँ से उपजे अनुभव भोगे ए यथाथ का ही परणाम ह। अिनल गोयल
आपातकाल क समय कवल सह वष क थे। चढ़ती ई जवानी का उसाह उह आपातकाल
क िख़लाफ़ लड़ाई लड़ने क िलए उकसा रहा था। उस समय वे अिखल भारतीय िवाथ परषद
से भी जुड़ ए थे। मेरी उ भी उस समय तीस साल थी।
आपातकाल 25-26 जून 1975 क रात को घोिषत आ था, और 21 माच 1977 को
आपातकाल िविधव हटा िलया गया। भारत क जात म 21 महीन का यह एक ऐसा काला
अयाय ह, िजसक साथ अनेक ासद कहािनयाँ जुड़ी ई ह। म मानता िक इसी दौर म
भारतीय समाज म दो करीितयाँ मुखता से उभर। पहली राजनीितक, िजसक अतगत ीमती
इिदरा गाँधी ने अपने छोट पु संजय गाँधी को असीिमत श याँ दे द। और दूसरी, उसी काल म
धािमक आचाय और बाबा का उदय होना शु आ। संजय गाँधी क पास कोई संवैधािनक
पद नह था, लेिकन उनक मरज़ी क िबना सरकार का कोई काम भी नह होता था। भारत क
नागरक क मौिलक अिधकार थिगत कर िदए गए थे। कांेस क राजनेता और नौकरशाही
क मनमानी चल रही थी। िबना िकसी वारट क ही लोग को िगरतार कर िलया जाता था।
जबरन नसबदी, सकड़ वष पुरानी हवेिलय से लेकर झुगी-झोपिड़य तक को भी ज़बरन
उठा देना आिद अनेक ऐसे कई जन-िवरोधी काम होने लगे थे। अदालत ख़ामोश कर दी गई थ।
ितब यायपािलका क ज़रत पर बल िदया जाने लगा था। पकार पर िनयंण गहरा हो
गया था। अखबार और प-पिका पर पूरी तरह से ससरिशप लगा दी गई थी। यह सब एवं
पुतक समीा
(उपयास)
नया सवेरा
समीक : ताप सहगल
लेखक : अिनल गोयल
काशक : डायमंड बुस, िदी
ताप सहगल
एफ़-101, राजौरी गाडन,
नई िदी-110027
मोबाइल- 9810638563
ईमेल- [email protected]
लेखक से अनुरोध
‘िशवना सािह यक' म सभी लेखक का
वागत ह। अपनी मौिलक, अकािशत
रचनाएँ ही भेज। पिका म राजनैितक तथा
िववादापद िवषय पर रचनाएँ कािशत नह
क जाएँगी। रचना को वीकार या अवीकार
करने का पूण अिधकार संपादक मंडल का
होगा। कािशत रचना पर कोई पारिमक
नह िदया जाएगा। बत अिधक लबे प
तथा लबे आलेख न भेज। अपनी सामी
यूिनकोड अथवा चाणय फॉट म वडपेड
क ट ट फ़ाइल अथवा वड क फ़ाइल क
ारा ही भेज। पीडीऍफ़ या कन क ई
जेपीजी फ़ाइल म नह भेज, इस कार क
रचनाएँ िवचार म नह ली जाएँगी। रचना
क साट कॉपी ही ईमेल क ारा भेज, डाक
ारा हाड कॉपी नह भेज, उसे कािशत
करना अथवा आपको वापस कर पाना हमार
िलए संभव नह होगा। रचना क साथ पूरा नाम
व पता, ईमेल आिद िलखा होना ज़री ह।
आलेख, कहानी क साथ अपना िच तथा
संि सा परचय भी भेज। पुतक
समीा का वागत ह, समीाएँ अिधक
लबी नह ह, सारगिभत ह। समीा क
साथ पुतक क कवर का िच, लेखक का
िच तथा काशन संबंधी आवयक
जानकारयाँ भी अवय भेज। एक अंक म
आपक िकसी भी िवधा क रचना (समीा क
अलावा) यिद कािशत हो चुक ह तो अगली
रचना क िलए तीन अंक क तीा कर। एक
बार म अपनी एक ही िवधा क रचना भेज,
एक साथ कई िवधा म अपनी रचनाएँ न
भेज। रचनाएँ भेजने से पूव एक बार पिका म
कािशत हो रही रचना को अवय देख।
रचना भेजने क बाद वीकित हतु तीा कर,
बार-बार ईमेल नह कर, चूँिक पिका
ैमािसक ह अतः कई बार िकसी रचना को
वीकत करने तथा उसे िकसी अंक म
कािशत करने क बीच कछ अंतराल हो
सकता ह।
धयवाद
संपादक
[email protected]

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अय तमाम बात आपको एक कथाम म
िसलिसलेवार इस उपयास म पढ़ने को
िमलगी। अिनल गोयल क लेखकय साहस
क शंसा करनी चािहए िक उहने इन जन-
िवरोधी और मनुय-िवरोधी क य को
वातिवक नाम क साथ ही अपने इस
उपयास म िपरोया ह। इसम संजय गाँधी
संजय गाँधी और जगमोहन जगमोहन ही ह।
टटा टटा ही ह, और ?ख़साना सुताना भी
अपने ही नाम से इस उपयास म उप थत ह।
इसी तरह से और अनेक नाम क िलए उहने
छ? नाम क कपना नह क ह। इस तरह
से यह उपयास िफ़शन क साथ वातिवक
इितहास भी ह।
नया सवेरा म मुय प से चार पा ह।
िवम, िदनेश, मंजू और रामरतन जी। िवम
और मंजू क बत ही मैयोर ेम कथा इस
उपयास का आधार ह। िदनेश और िवम
िम ह। आप इस उपयास म कह-कह युवा
और िवोही अिनल गोयल क छिवयाँ भी ढ ढ़
सकते ह। अिनल गोयल आपातकाल क
भु?-भोगी रह ह। लगभग दो महीना जेल म
रह और कोट क आदेश पर ज़मानत पर रहा
िकए गए। इस तरह से यह उपयास कछ
अिजत एवं कछ भोगे ए यथाथ का परणाम
ह। इसीिलए म इसे एक ामािणक सािह यक
दतावेज़ क प म देखता । बाज़ार
सीताराम क बाज़ार, और वहाँ रहने वाले
वकल और पकार और सभी आिथक और
सामािजक वग क अय सामाय नागरक भी
अपने-अपने अनुभव क साथ उप थत होते
रहते ह। धीर-धीर सभी िवपी दल कांेस क
िनरक श शासन क िवरोध म लामबद होने
लगे थे। इन िवरोधी िवचारधारा क
राजनीितक दल को एकजुट करने का ेय
जयकाश नारायण को जाता ह। आम चुनाव
घोिषत ए और ीमती इिदरा गाँधी सिहत
कांेस बुरी तरह से हार गई। यह उस पुराने
राजनीितक दल का पतन काल था।
आपातकाल ने इिदरा गाँधी ारा हािसल क
गई सभी राजनीितक उपल धय को धूिमल
कर िदया था।
चुनाव क बाद जनता पाट शासन म आई
और बत उथल-पुथल क बाद ी मोरारजी
देसाई नए धानम ी बने। यह तो रही
इितहास क बात।
उपयास भी अपनी कथा क साथ आगे
बढ़ता ह। मंजू िवम क यार म बुरी तरह से
पागल हो चुक ह लेिकन माता-िपता क
िवरोध म भी नह जा सकती।
उपयास का अ तम िहसा बत ही
मािमक ह। मंजू क िवम क साथ िमल जाने
क साध जैसे साध ही रह गई। वह बीमार हो
कर अपताल म भत थी। यह िवम और
मंजू अ तम बार िमलते ह। मंजू क संवाद
और िवम का सताप िमलकर एक मािमक
य का िनमाण करते ह, जहाँ मंजू और
िवम का वन वत हो जाता ह।
एक ओर राजनीितक उथल-पुथल, और
दूसरी ओर एक मािमक ेम-कथा- दोन
िमलकर मनुयता से भरी दुिनया का िनमाण
करता ह यह उपयास।
इस उपयास क एक िवशेषता और भी
ह। वह ह िहदी क कछ किवय क उन
किवता का इतेमाल जो उहने
आपातकाल क िवरोध म जन-प म िलखी
थ। यहाँ नागाजुन क किवताएँ ह तो दुयत
कमार क ग़ज़ल क कछ अश'आर भी; और
इनक साथ ही अिनल गोयल ने पाश, काका
हाथरसी, भवानी साद िम, गोपाल िसंह
नेपाली, िवनाथ शु?, सुरजीत पातर
इयािद क किवताएँ भी इस पुतक म शािमल
क ह, जो इसक िवसनीयता को असंिदध
बना देता ह।
अटल िबहारी वाजपेयी क कछ
किवता और भगवादास वधवा क
यंयामक किवता 'धका ांपोट
कारपोरशन' पुतक को पाठक क िदल क
बत समीप ले आती ह। कहा जा सकता ह
िक िजहने वह समय देखा ह, वे इसे पढ़गे तो
उस समय क पुनया ा पर िनकल जाएँगे,
और नई पीढ़ी पढ़गी, तो वह इितहास क इस
काले अयाय से वािकफ़ होगी। उपयास क
अत तक रोचकता बनी रहती ह। इसे अवय
पढ़ा जाना चािहए।
000
अिनल गोयल एक बिवध रचनाकार ह। किवता, कहानी, नाटक और उपयास क प म
उनक लेखकय ितभा सामने आ चुक ह। अंेज़ी और िहदी दोन भाषा म उह महारत
हािसल ह। िदी म जब कोई उेखनीय नाटक मंिचत होता ह तो उसक रगमंचीय समीा
तुरत सामने आती ह। कछ साल पहले तो वे अख़बार एवं पिका म रग-समीा िलखते थे,
लेिकन धीर-धीर अख़बार और पिका से रग-समीा आिद अनुप थत कर िदए गए ह।
अब उनक रग-समीाएँ फसबुक एवं सोशल मीिडया क कितपय मंच पर ही पढ़ने को िमलती
ह। सोशल मीिडया क प च बत दूर तक ह। उनक रग-समीाएँ न कवल चाव से पढ़ी जाती
ह, वे नाटक देखने क सलािहयत भी पैदा करती ह।
इधर वे कथा-सािहय क ओर मुड़ ह। उनक पहली कहानी छापने का सुख शदायतन को
िमला ह, जहाँ उनक कछ किवताएँ भी छपी ह।
'नया सवेरा' उनका नया उपयास ह। इससे पहले उनका एक उपयास 'कह खुलता कोई
झरोखा' कािशत हो चुका ह। इस उपयास का िवषय एक मद-बुि बा ह। इस बे क
बहाने उहने मद-बुि ब क समया को कथामक संवेदना क साथ उकरा ह। लेिकन
दुभा यवश यह उपयास एक ऐसे काशक से छपा, िजसने इस उपयास क चार-सार म
यान नह िदया और नाही उसक िब ई। परणामत: एक संवेदनशील सामािजक मु?े पर
िलखा आ यह उपयास पढ़ जाने और चचा म आने से पूव ही सािहय क दुिनया से ग़ायब हो
गया।
अिनल अभी भी उस उपयास क परविधत आलेख पर काम कर रह ह, और आशा क
जानी चािहए िक वह िनकट भिवय म जदी ही नए िसर से कािशत होकर वृह तर पर पढ़ा
जाएगा। इसी बीच उहने राीय ना? िवालय क पिका 'रग संग' का एक अंक अितिथ
संपादक क प म, िवकलांग क साथ रगमंच क ही िवषय पर क त करते ए िनकाला, जो
काफ चचा म रहा ह, जो इस िवषय पर अपनी तरह का एकमा अंक ह। उसक चचा अलग से
कह और क गा। िफ़लहाल हम उनक डायमंड बुस से कािशत नए उपयास नया सवेरा पर
बात करते ह।
नया सवेरा क पृभूिम 1975 म लगाया गया आपातकाल ह। 1970 क आसपास पैदा ई
पीढ़ी अब बड़ी हो चुक ह और उसक बाद भी दो-तीन पीिढ़याँ आ चुक ह। लेिकन आपातकाल
हमारा देखा आ ह और वहाँ से उपजे अनुभव भोगे ए यथाथ का ही परणाम ह। अिनल गोयल
आपातकाल क समय कवल सह वष क थे। चढ़ती ई जवानी का उसाह उह आपातकाल
क िख़लाफ़ लड़ाई लड़ने क िलए उकसा रहा था। उस समय वे अिखल भारतीय िवाथ परषद
से भी जुड़ ए थे। मेरी उ भी उस समय तीस साल थी।
आपातकाल 25-26 जून 1975 क रात को घोिषत आ था, और 21 माच 1977 को
आपातकाल िविधव हटा िलया गया। भारत क जात म 21 महीन का यह एक ऐसा काला
अयाय ह, िजसक साथ अनेक ासद कहािनयाँ जुड़ी ई ह। म मानता िक इसी दौर म
भारतीय समाज म दो करीितयाँ मुखता से उभर। पहली राजनीितक, िजसक अतगत ीमती
इिदरा गाँधी ने अपने छोट पु संजय गाँधी को असीिमत श याँ दे द। और दूसरी, उसी काल म
धािमक आचाय और बाबा का उदय होना शु आ। संजय गाँधी क पास कोई संवैधािनक
पद नह था, लेिकन उनक मरज़ी क िबना सरकार का कोई काम भी नह होता था। भारत क
नागरक क मौिलक अिधकार थिगत कर िदए गए थे। कांेस क राजनेता और नौकरशाही
क मनमानी चल रही थी। िबना िकसी वारट क ही लोग को िगरतार कर िलया जाता था।
जबरन नसबदी, सकड़ वष पुरानी हवेिलय से लेकर झुगी-झोपिड़य तक को भी ज़बरन
उठा देना आिद अनेक ऐसे कई जन-िवरोधी काम होने लगे थे। अदालत ख़ामोश कर दी गई थ।
ितब यायपािलका क ज़रत पर बल िदया जाने लगा था। पकार पर िनयंण गहरा हो
गया था। अखबार और प-पिका पर पूरी तरह से ससरिशप लगा दी गई थी। यह सब एवं
पुतक समीा
(उपयास)
नया सवेरा
समीक : ताप सहगल
लेखक : अिनल गोयल
काशक : डायमंड बुस, िदी
ताप सहगल
एफ़-101, राजौरी गाडन,
नई िदी-110027
मोबाइल- 9810638563
ईमेल- [email protected]
लेखक से अनुरोध
‘िशवना सािह यक' म सभी लेखक का
वागत ह। अपनी मौिलक, अकािशत
रचनाएँ ही भेज। पिका म राजनैितक तथा
िववादापद िवषय पर रचनाएँ कािशत नह
क जाएँगी। रचना को वीकार या अवीकार
करने का पूण अिधकार संपादक मंडल का
होगा। कािशत रचना पर कोई पारिमक
नह िदया जाएगा। बत अिधक लबे प
तथा लबे आलेख न भेज। अपनी सामी
यूिनकोड अथवा चाणय फॉट म वडपेड
क ट ट फ़ाइल अथवा वड क फ़ाइल क
ारा ही भेज। पीडीऍफ़ या कन क ई
जेपीजी फ़ाइल म नह भेज, इस कार क
रचनाएँ िवचार म नह ली जाएँगी। रचना
क साट कॉपी ही ईमेल क ारा भेज, डाक
ारा हाड कॉपी नह भेज, उसे कािशत
करना अथवा आपको वापस कर पाना हमार
िलए संभव नह होगा। रचना क साथ पूरा नाम
व पता, ईमेल आिद िलखा होना ज़री ह।
आलेख, कहानी क साथ अपना िच तथा
संि सा परचय भी भेज। पुतक
समीा का वागत ह, समीाएँ अिधक
लबी नह ह, सारगिभत ह। समीा क
साथ पुतक क कवर का िच, लेखक का
िच तथा काशन संबंधी आवयक
जानकारयाँ भी अवय भेज। एक अंक म
आपक िकसी भी िवधा क रचना (समीा क
अलावा) यिद कािशत हो चुक ह तो अगली
रचना क िलए तीन अंक क तीा कर। एक
बार म अपनी एक ही िवधा क रचना भेज,
एक साथ कई िवधा म अपनी रचनाएँ न
भेज। रचनाएँ भेजने से पूव एक बार पिका म
कािशत हो रही रचना को अवय देख।
रचना भेजने क बाद वीकित हतु तीा कर,
बार-बार ईमेल नह कर, चूँिक पिका
ैमािसक ह अतः कई बार िकसी रचना को
वीकत करने तथा उसे िकसी अंक म
कािशत करने क बीच कछ अंतराल हो
सकता ह।
धयवाद
संपादक
[email protected]

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खोज करते ह, न िक कवल सदय क। यही
कारण ह िक उनक किवताएँ आमीय और
सय क िनकट तीत होती ह- जैसी उनक
जीवन , वैसी ही उनक किवता।
थम वा, जुलाई थम, 2005 म
कािशत आलेख "रोमांस से अयाम तक
क काय-याा" क अनुसार कलाश
वाजपेयी क किवता रिखक न होकर एक
बपरतीय अंतया ा ह, जो कभी समकालीन
यथाथ से टकराती ह, कभी िमथकय और
दाशिनक िबंब म िलपटी 'महावन' क
रहयपूण दुिनया से गुज़रती ह, और कभी
'सूफ़नामा' क मायम से आया मक मु
क तलाश करती ह। उनक किवता का
थायी भाव संशय और ं ह, जो जीवन,
ईर, यवथा और वयं से िनरतर न
करता ह। वाजपेयी क किवता म बौिकता
और क?णा, रहय और यथाथ का ं
उप थत ह। वे न तो नार लगाते ह, न ही सीधा
उपदेश देते ह, ब क तीक और गूढ़ भाषा
क मायम से संवाद करते ह। उनक किवताएँ
जिटल होते ए भी मानवीय संवेदना से पूण ह,
जो पाठक को कवल पढ़ने नह, सोचने क
िलए भी ेरत करती ह।
पूव ह, अैल-जून, 2013 म कािशत
आलेख "किवता क दरवाज़े पर दतक" क
अनुसार अशोक वाजपेयी क किवताएँ
संवेदना क ज़मीन पर खड़ी ह, िजनम देश-
िवदेश क अनुभव से िमला यापक कोण
झलकता ह। उनक किवता म आंतरक
अनुभव क गहराई और वैचारक समृता
ह। संवेदनशीलता ही उनक किवता का मूल
ह, जो उह पाठक क बीच लोकिय बनाती
ह।
"िजजीिवषा क किवता" आलेख म
िलखा ह - मलय क किवताएँ जीवन क ित
गहरी आथा से भरपूर ह। वे सुख-दुख क
धारा म बहती ई अनुभव से टकराकर आगे
बढ़ती ह। सतह पर ये किवताएँ सरल िदखती
ह, पर भीतर गहर और गंभीर अथ समेट रहती
ह। सीिनयर इिडया 15 मई 2007 म कािशत
आलेख "िच क कमटरी" क अनुसार
िवज किवता से उतने ही ितब ह िजतने
जीवन से। उनक किवता म िचमयता
इसिलए भी गहराई से िदखाई देती ह यिक वे
िचकला से भी जुड़ ह। उनक काय-नाटक
" च वध" और संह "पहले तुहारा
िखलाना" म शद क मायम से सुदर िबब
का ऐसा संयोजन िदखता ह जो किवता को
एक य अनुभव म बदल देता ह। िवज क
किवता म संवेदना, यता और कला का
सुंदर समवय ह। थम वा, फरवरी
थम, 2005 म कािशत आलेख "शद क
पार किवता क नई दुिनया" क अनुसार डॉ.
गंगासाद िवमल क किवता क ज़मीन
कवल कित- जंगल, पहाड़, नदी या समु
तक सीिमत नह ह, ब क उसक क म
मनुय क संवेदनशीलता को बचाने का सतत
यास ह। उनक किवताएँ भावािभय म
सहज और सरल होते ए भी गहरी मानवीय
िचंता को वर देती ह।
िहदुतान, 18 फरवरी, 2009 म
कािशत आलेख "किवता क आकाश म" क
अनुसार नंदिकशोर आचाय "चौथे सक"
क किव ह, यानी स?क परपरा क अंितम
कड़ी क ितिनिध। उनक किवता क क
म कित क िविवध प ह- राजथान का
रिगतान, झील, बारश, बसंत और ेम।
सभी िमलकर एक संवेदनशील, गहराई से
जुड़ी ई अनुभूित रचते ह। उनक किवता म
कित कवल य नह, भाव का मायम ह।
थम वा, नवबर ितीय, 2005 म
कािशत आलेख "कह ख़म नह होती
किवता" क अनुसार िदनेश कमार शु? क
किवता म यथाथ को भावावेश म पकड़ने क
मता ह, लेिकन वे उसक गहरी परत को
अनावृत नह कर पाते। उनम संवेदनशीलता
तो ह, पर वे समय क काय-िढ़य को
अितिमत करने म सफल नह होते। थम
वा, िसतबर थम, 2004 म कािशत
आलेख "कित, ेम और सदय का अितम
किव : बूिनन" क अनुसार सी किव इवान
बूिनन क किवताएँ पारदश, सहज और सरल
भाषा म रची गई ह। उनम कित, मानव
जीवन और आसपास क दुिनया क गूँजती
ई आह िवलण प म अिभय होती ह।
उनक रचनाएँ कवल िचामक नह, ब क
वन-सश िबंब से भी सप ह।
वागथ, िसतबर, 2013 म कािशत
आलेख "भर गया जल से यमुना का पाट" क
अनुसार याम कयप क किवताएँ िवषय-
वतु क िविवधता क साथ-साथ कित और
ेम क नए, अछते िबंब से समृ ह। ये
किवताएँ आकार म छोटी, पर भाव म
नुकली और धारदार ह। नया ानोदय, जून
2017 म कािशत आलेख "यह याद का
गिलयारा नह िहमालय ह" क अनुसार
ियदश ठाकर "ख़याल" िसफ संवेदनशील
शायर ही नह, एक सूमदश किव भी ह। बाई
जूई क मायम से वे चीनी और भारतीय
सांकितक आयान म उतरते ह और याँगजी
व गंगा दोन म समान भाव से डबक लगाते
ह। साधना अवाल ने "िमथक, लोक और
वन का एक भय वातायन" आलेख म
िलखा ह - वर कवियी सुमन कशरी का
संह "िपरािमड क तह म" कित, ी,
मनुयता और अिभय क वतंता क
संकट जैसे िवषय को समेट ए ह। इसम
िमथक, वन, पीड़ा, संघष और जिटल
समय क िवडबना क बीच उमीद क
रोशनी भी झलकती ह। वे अपने समय क
हलचल को िचित करते ए मनुयता क
बचे-खुचे िच को बचाने का यास करती
ह।
डॉ. साधना अवाल ने इस पुतक म
ियदशन, राजेश जोशी, ान पित, मदन
कयप, लीलाधर मंडलोई, पंकज राग, आर
चेतनांित, योराज िसंह बेचैन, हरशचं
पाड इयािद किवय क किवता संह क
समीा को भी शािमल िकया ह। यह
पुतक सािहयकार, समीक, आलोचक,
शोधािथय, पाठक क िववेक को समृ करने
वाली पुतक ह। साधना अवाल ने वर
और नए किवय क किवता संह पर अपनी
समीामक डालकर वैचारक,
िवेषणामक और आलोचनामक अंदाज़
म लेख िलखे ह। पुतक क भाषा सहज और
सरल ह।
000
हाल ही म साधना अवाल क आलोचना क सः कािशत पुतक "किवता का अांश"
िशवना काशन, सीहोर से कािशत होकर आई ह। इस पुतक म किवता संह पुतक क
समीाएँ ह। साधना अवाल ने इस पुतक म अेय, िगरजा कमार माथुर से लेकर युवा
किवय तक क काय सािहय पर अपनी क़लम चलाई ह। यह एक िववेचनामक एवं
िवचारोेजक दतावेज़ ह। यह पुतक कािशत होते ही काफ चिचत हो गई ह यिक
किवता क समीा पर पर इतना यथाथ, सटीक और गंभीर िवेषण िकसी भी पुतक म
पढ़ने को नह िमला। इस पुतक म 33 समालोचनामक मानीखेज़ आलेख शािमल ह, जो
वर और नवोिदत किवय क रचना-संसार क गहराइय म उतरते ह।
गगनांचल, िसतबर - िदसंबर 2020 क आलेख "वतंता ??? क बाद क किवता और
िगरजा कमार माथुर" क अनुसार िगरजाकमार माथुर को सामायतः एक रोमानी किव क प
म देखा गया ह, िकतु उनक किवता कवल ेम और भावुकता तक सीिमत नह ह। उनम
इितहास-बोध, सामािजक यथाथ और वैािनक कोण क सश? उप थित भी िमलती ह।
राीय सहारा 30 माच, 2008 म कािशत आलेख "सूयदयी सनातनी किवता क नीरवता" क
अनुसार वीर कमार जैन िहदी किवता म सनातन सूयदयी कायधारा क वतक क प म
िवशेष प से मरणीय ह। उहने िवपुल माा म कथा सािहय भी िलखा, िकतु उनक पहचान
एक दाशिनक चेतना संप? किव क प म ही थािपत होती ह। उनक किवताएँ कवल भाव-
दशन नह, ब क आमा और अ तव से संवाद करती ह। मरणोपरांत कािशत संह "कह
और" क तीन खंड - "विनमा", "अंतरमा" और "संबोधन" - उनक दाशिनक और
आया मक संवेदना क माण ह। इनम जीवन, मृयु, चेतना और संबंध को लेकर जो
वैचारक ऊचाई और भावनामक गहराई िमलती ह, वह उह कवल किव नह, एक दाशिनक
सजक क प म ित त करती ह। वे किवता को जागरण और सनातन सय क खोज का
मायम बनाते ह।
समकालीन भारतीय सािहय पिका िसतबर-अटबर, 2022 म कािशत आलेख
"पयावरण और ेम को बचाने क कोिशश : किव कदारनाथ िसंह" क अनुसार कदारनाथ िसंह
िहदी किवता क उन िवरल किवय म ह िजनक रचना म गितशील चेतना, कित क ित
गहरी क?णा, और मनुय क आंतरक संवेदना साथ-साथ चलते ह। उनक किवताएँ कवल
िवचार नह, अनुभव का िवतार ह। कदारनाथ िसंह क किवता म कित और ेम का
अ?ुत संगम िदखाई देता ह। वे कवल पहाड़, पेड़ या निदय का वणन नह करते, ब क
उनक भीतर मानवीय पंदन ढ ढ़ते ह। कदारनाथ िसंह क किवताएँ कवल भावुकता नह,
ब क संघष, सामािजक चेतना और िजजीिवषा से परपूण ह। वे ाय जीवन, िमक क पीड़ा
और आम जन क आकांा को आमीयता से वर देते ह। उनक भाषा सहज होते ए भी
तीक और िबंब से समृ ह - जैसे "पानी", "बाघ", "पेड़", "घास" आिद तीक साधारण
नह रह जाते, ब क गहर सामािजक और मनोवैािनक अथ धारण कर लेते ह। उनक चिचत
किवता 'बाघ' यवथा क रता और समय क अराजकता का तीक ह, जो भय और संघष
दोन का ितिनिधव करती ह। पं "हम जीना होगा - बाघ क साथ और बाघ क िबना भी"
उनक आशावािदता और जुझापन क घोषणा ह। कदार जी क किवता म ेम, पयावरण और
मानवीय गरमा को बचाए रखने क गहरी ललक ह। वे अपने तीक क मायम से समय क
साी ही नह, ब क उसक चुनौती क उरदाता भी बनते ह। इसिलए उनक किवता
समकालीन होते ए भी कालातीत और सावभौिमक बन जाती ह।
थम वा, जुलाई ितीय, 2005 म कािशत आलेख "मृित क पहचान" क अनुसार
रामदरश िम क किवताएँ जीवन, गाँव और कित क सजीव मृितय से उपजी ह। उनम
बनावटीपन नह, ब क दय क सहज अनुभूित ह जो सीधे पाठक क मन को छती ह। उनक
भाषा सरल, जनभाषा क क़रीब और भावनामक गहराई से यु? ह। वे 'किवता म जीवन' क
पुतक समीा
दीपक िगरकर
28-सी, वैभव नगर, कनािडया रोड,
इदौर- 452016 म
मोबाइल- 9425067036
ईमेल- [email protected]
(आलोचना)
किवता का अांश
समीक : दीपक िगरकर
लेखक : साधना अवाल
काशक : िशवना काशन, साट
कॉ लैस बेसमट, सीहोर, म
466001, फ़ोन-07562405545
मोबाइल- +91-9806162184
ईमेल- [email protected]

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 202553 52 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 2025
खोज करते ह, न िक कवल सदय क। यही
कारण ह िक उनक किवताएँ आमीय और
सय क िनकट तीत होती ह- जैसी उनक
जीवन , वैसी ही उनक किवता।
थम वा, जुलाई थम, 2005 म
कािशत आलेख "रोमांस से अयाम तक
क काय-याा" क अनुसार कलाश
वाजपेयी क किवता रिखक न होकर एक
बपरतीय अंतया ा ह, जो कभी समकालीन
यथाथ से टकराती ह, कभी िमथकय और
दाशिनक िबंब म िलपटी 'महावन' क
रहयपूण दुिनया से गुज़रती ह, और कभी
'सूफ़नामा' क मायम से आया मक मु
क तलाश करती ह। उनक किवता का
थायी भाव संशय और ं ह, जो जीवन,
ईर, यवथा और वयं से िनरतर न
करता ह। वाजपेयी क किवता म बौिकता
और क?णा, रहय और यथाथ का ं
उप थत ह। वे न तो नार लगाते ह, न ही सीधा
उपदेश देते ह, ब क तीक और गूढ़ भाषा
क मायम से संवाद करते ह। उनक किवताएँ
जिटल होते ए भी मानवीय संवेदना से पूण ह,
जो पाठक को कवल पढ़ने नह, सोचने क
िलए भी ेरत करती ह।
पूव ह, अैल-जून, 2013 म कािशत
आलेख "किवता क दरवाज़े पर दतक" क
अनुसार अशोक वाजपेयी क किवताएँ
संवेदना क ज़मीन पर खड़ी ह, िजनम देश-
िवदेश क अनुभव से िमला यापक कोण
झलकता ह। उनक किवता म आंतरक
अनुभव क गहराई और वैचारक समृता
ह। संवेदनशीलता ही उनक किवता का मूल
ह, जो उह पाठक क बीच लोकिय बनाती
ह।
"िजजीिवषा क किवता" आलेख म
िलखा ह - मलय क किवताएँ जीवन क ित
गहरी आथा से भरपूर ह। वे सुख-दुख क
धारा म बहती ई अनुभव से टकराकर आगे
बढ़ती ह। सतह पर ये किवताएँ सरल िदखती
ह, पर भीतर गहर और गंभीर अथ समेट रहती
ह। सीिनयर इिडया 15 मई 2007 म कािशत
आलेख "िच क कमटरी" क अनुसार
िवज किवता से उतने ही ितब ह िजतने
जीवन से। उनक किवता म िचमयता
इसिलए भी गहराई से िदखाई देती ह यिक वे
िचकला से भी जुड़ ह। उनक काय-नाटक
" च वध" और संह "पहले तुहारा
िखलाना" म शद क मायम से सुदर िबब
का ऐसा संयोजन िदखता ह जो किवता को
एक य अनुभव म बदल देता ह। िवज क
किवता म संवेदना, यता और कला का
सुंदर समवय ह। थम वा, फरवरी
थम, 2005 म कािशत आलेख "शद क
पार किवता क नई दुिनया" क अनुसार डॉ.
गंगासाद िवमल क किवता क ज़मीन
कवल कित- जंगल, पहाड़, नदी या समु
तक सीिमत नह ह, ब क उसक क म
मनुय क संवेदनशीलता को बचाने का सतत
यास ह। उनक किवताएँ भावािभय म
सहज और सरल होते ए भी गहरी मानवीय
िचंता को वर देती ह।
िहदुतान, 18 फरवरी, 2009 म
कािशत आलेख "किवता क आकाश म" क
अनुसार नंदिकशोर आचाय "चौथे सक"
क किव ह, यानी स?क परपरा क अंितम
कड़ी क ितिनिध। उनक किवता क क
म कित क िविवध प ह- राजथान का
रिगतान, झील, बारश, बसंत और ेम।
सभी िमलकर एक संवेदनशील, गहराई से
जुड़ी ई अनुभूित रचते ह। उनक किवता म
कित कवल य नह, भाव का मायम ह।
थम वा, नवबर ितीय, 2005 म
कािशत आलेख "कह ख़म नह होती
किवता" क अनुसार िदनेश कमार शु? क
किवता म यथाथ को भावावेश म पकड़ने क
मता ह, लेिकन वे उसक गहरी परत को
अनावृत नह कर पाते। उनम संवेदनशीलता
तो ह, पर वे समय क काय-िढ़य को
अितिमत करने म सफल नह होते। थम
वा, िसतबर थम, 2004 म कािशत
आलेख "कित, ेम और सदय का अितम
किव : बूिनन" क अनुसार सी किव इवान
बूिनन क किवताएँ पारदश, सहज और सरल
भाषा म रची गई ह। उनम कित, मानव
जीवन और आसपास क दुिनया क गूँजती
ई आह िवलण प म अिभय होती ह।
उनक रचनाएँ कवल िचामक नह, ब क
वन-सश िबंब से भी सप ह।
वागथ, िसतबर, 2013 म कािशत
आलेख "भर गया जल से यमुना का पाट" क
अनुसार याम कयप क किवताएँ िवषय-
वतु क िविवधता क साथ-साथ कित और
ेम क नए, अछते िबंब से समृ ह। ये
किवताएँ आकार म छोटी, पर भाव म
नुकली और धारदार ह। नया ानोदय, जून
2017 म कािशत आलेख "यह याद का
गिलयारा नह िहमालय ह" क अनुसार
ियदश ठाकर "ख़याल" िसफ संवेदनशील
शायर ही नह, एक सूमदश किव भी ह। बाई
जूई क मायम से वे चीनी और भारतीय
सांकितक आयान म उतरते ह और याँगजी
व गंगा दोन म समान भाव से डबक लगाते
ह। साधना अवाल ने "िमथक, लोक और
वन का एक भय वातायन" आलेख म
िलखा ह - वर कवियी सुमन कशरी का
संह "िपरािमड क तह म" कित, ी,
मनुयता और अिभय क वतंता क
संकट जैसे िवषय को समेट ए ह। इसम
िमथक, वन, पीड़ा, संघष और जिटल
समय क िवडबना क बीच उमीद क
रोशनी भी झलकती ह। वे अपने समय क
हलचल को िचित करते ए मनुयता क
बचे-खुचे िच को बचाने का यास करती
ह।
डॉ. साधना अवाल ने इस पुतक म
ियदशन, राजेश जोशी, ान पित, मदन
कयप, लीलाधर मंडलोई, पंकज राग, आर
चेतनांित, योराज िसंह बेचैन, हरशचं
पाड इयािद किवय क किवता संह क
समीा को भी शािमल िकया ह। यह
पुतक सािहयकार, समीक, आलोचक,
शोधािथय, पाठक क िववेक को समृ करने
वाली पुतक ह। साधना अवाल ने वर
और नए किवय क किवता संह पर अपनी
समीामक डालकर वैचारक,
िवेषणामक और आलोचनामक अंदाज़
म लेख िलखे ह। पुतक क भाषा सहज और
सरल ह।
000
हाल ही म साधना अवाल क आलोचना क सः कािशत पुतक "किवता का अांश"
िशवना काशन, सीहोर से कािशत होकर आई ह। इस पुतक म किवता संह पुतक क
समीाएँ ह। साधना अवाल ने इस पुतक म अेय, िगरजा कमार माथुर से लेकर युवा
किवय तक क काय सािहय पर अपनी क़लम चलाई ह। यह एक िववेचनामक एवं
िवचारोेजक दतावेज़ ह। यह पुतक कािशत होते ही काफ चिचत हो गई ह यिक
किवता क समीा पर पर इतना यथाथ, सटीक और गंभीर िवेषण िकसी भी पुतक म
पढ़ने को नह िमला। इस पुतक म 33 समालोचनामक मानीखेज़ आलेख शािमल ह, जो
वर और नवोिदत किवय क रचना-संसार क गहराइय म उतरते ह।
गगनांचल, िसतबर - िदसंबर 2020 क आलेख "वतंता ??? क बाद क किवता और
िगरजा कमार माथुर" क अनुसार िगरजाकमार माथुर को सामायतः एक रोमानी किव क प
म देखा गया ह, िकतु उनक किवता कवल ेम और भावुकता तक सीिमत नह ह। उनम
इितहास-बोध, सामािजक यथाथ और वैािनक कोण क सश? उप थित भी िमलती ह।
राीय सहारा 30 माच, 2008 म कािशत आलेख "सूयदयी सनातनी किवता क नीरवता" क
अनुसार वीर कमार जैन िहदी किवता म सनातन सूयदयी कायधारा क वतक क प म
िवशेष प से मरणीय ह। उहने िवपुल माा म कथा सािहय भी िलखा, िकतु उनक पहचान
एक दाशिनक चेतना संप? किव क प म ही थािपत होती ह। उनक किवताएँ कवल भाव-
दशन नह, ब क आमा और अ तव से संवाद करती ह। मरणोपरांत कािशत संह "कह
और" क तीन खंड - "विनमा", "अंतरमा" और "संबोधन" - उनक दाशिनक और
आया मक संवेदना क माण ह। इनम जीवन, मृयु, चेतना और संबंध को लेकर जो
वैचारक ऊचाई और भावनामक गहराई िमलती ह, वह उह कवल किव नह, एक दाशिनक
सजक क प म ित त करती ह। वे किवता को जागरण और सनातन सय क खोज का
मायम बनाते ह।
समकालीन भारतीय सािहय पिका िसतबर-अटबर, 2022 म कािशत आलेख
"पयावरण और ेम को बचाने क कोिशश : किव कदारनाथ िसंह" क अनुसार कदारनाथ िसंह
िहदी किवता क उन िवरल किवय म ह िजनक रचना म गितशील चेतना, कित क ित
गहरी क?णा, और मनुय क आंतरक संवेदना साथ-साथ चलते ह। उनक किवताएँ कवल
िवचार नह, अनुभव का िवतार ह। कदारनाथ िसंह क किवता म कित और ेम का
अ?ुत संगम िदखाई देता ह। वे कवल पहाड़, पेड़ या निदय का वणन नह करते, ब क
उनक भीतर मानवीय पंदन ढ ढ़ते ह। कदारनाथ िसंह क किवताएँ कवल भावुकता नह,
ब क संघष, सामािजक चेतना और िजजीिवषा से परपूण ह। वे ाय जीवन, िमक क पीड़ा
और आम जन क आकांा को आमीयता से वर देते ह। उनक भाषा सहज होते ए भी
तीक और िबंब से समृ ह - जैसे "पानी", "बाघ", "पेड़", "घास" आिद तीक साधारण
नह रह जाते, ब क गहर सामािजक और मनोवैािनक अथ धारण कर लेते ह। उनक चिचत
किवता 'बाघ' यवथा क रता और समय क अराजकता का तीक ह, जो भय और संघष
दोन का ितिनिधव करती ह। पं "हम जीना होगा - बाघ क साथ और बाघ क िबना भी"
उनक आशावािदता और जुझापन क घोषणा ह। कदार जी क किवता म ेम, पयावरण और
मानवीय गरमा को बचाए रखने क गहरी ललक ह। वे अपने तीक क मायम से समय क
साी ही नह, ब क उसक चुनौती क उरदाता भी बनते ह। इसिलए उनक किवता
समकालीन होते ए भी कालातीत और सावभौिमक बन जाती ह।
थम वा, जुलाई ितीय, 2005 म कािशत आलेख "मृित क पहचान" क अनुसार
रामदरश िम क किवताएँ जीवन, गाँव और कित क सजीव मृितय से उपजी ह। उनम
बनावटीपन नह, ब क दय क सहज अनुभूित ह जो सीधे पाठक क मन को छती ह। उनक
भाषा सरल, जनभाषा क क़रीब और भावनामक गहराई से यु? ह। वे 'किवता म जीवन' क
पुतक समीा
दीपक िगरकर
28-सी, वैभव नगर, कनािडया रोड,
इदौर- 452016 म
मोबाइल- 9425067036
ईमेल- [email protected]
(आलोचना)
किवता का अांश
समीक : दीपक िगरकर
लेखक : साधना अवाल
काशक : िशवना काशन, साट
कॉ लैस बेसमट, सीहोर, म
466001, फ़ोन-07562405545
मोबाइल- +91-9806162184
ईमेल- [email protected]

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से हो जाते थे/ पैस क तंगी से हो जाते थे.../
पर वे िकसी से कछ कहते नह थे/ ... मुझे
बत िदन बाद इसका एहसास आ िक वे
शायद अपेा को महवाकांा समझा
करते थे/जबिक वे री भर भी नह थे
वाथ... (पृ संया 15) ये पं याँ उस
यथाथ को उजागर करती ह जहाँ िपता अपनी
आकांाएँ ब म जीते ह। किवता कवल
मृित नह, एक पीढ़ी िवशेष क भावुक
इितहास क पुनरचना ह।
'ह रािपता!' किवता महामा गाँधी क
आज क ासंिगकता पर गंभीर न उठाती
ह। 'तुम हमेशा िववाद म रह हो / आलोचक
क िनशाने पर रह हो/ .... हर साल उठता ह
एक सवाल/ आज तुहारी ासंिगकता का !'
कवल गाँधी क मृित नह, ब क उनक
िवचार क समकालीन याया ह। किवता
न करती ह िक या हमार आज क रा क
िदशा उस दशन से मेल खाती ह िजसे हमने
आमसात करने का दावा िकया था? 'कित
हम संतु कर सकती ह / पर हमार लालच
को बेशक नह' यह गाँधी दशन का अयंत
सारगिभत वाय ह जो आधुिनक
उपभो?ावादी वृि पर तीखा कटा ह।
मेर िलए इस संह क किवता 'मने कह
पढ़ा था' िवशेष प से उेखनीय ह। यह
किवता अपेा क पूरा न हो पाने से उपजी
गहरी हताशा का िच तुत करती ह, लेिकन
यही हताशा कह न कह जाकर एक छोटी
आशा म परणत होती ह। किवता एक परिचत
मनो थित से जम लेती ह, हमने 'कह पढ़ा
था' िक जीवन ऐसा होता ह, िक ेम ऐसा होता
ह, िक संबंध म एक िन त थाियव होता
ह, िक मेहनत रग लाती ह। लेिकन जब जीवन
हम इनसे िभ? अनुभव कराता ह, तब भीतर
एक टकराव पैदा होता ह। यही टकराव इस
किवता क मम पश ऊमा ह। अंितम
पं याँ जहाँ एक हक-सी उमीद क
रोशनी झलकती ह, वहाँ किव पाठक को
िनराशा म डबने से रोक लेता ह। यह आशा
कोई आदशवादी वाय नह, ब क जीवन
क कड़ी ज़मीन से उगी ई घास क तरह ह,
छोटी, लेिकन जीिवत।
इस संह क एक लंबी किवता "रत
का टट जाना" इस बात का उदाहरण ह िक
किव सबंध क जिटलता को िकतनी
सघनता से समझता ह। यह किवता टटते
रत क ासदी को कवल दुःख क तौर पर
नह, ब क मनुय क अ तवगत संकट क
प म देखती ह। इस रचना म रत का टटना
कोई आक मक घटना नह ह, यह धीर-धीर,
अय ढग से होता ह। किवता पाठक को
उस ण म नह ले जाती जब कछ 'टटता' ह,
ब क उस िया को पकड़ती ह, जो धीर-
धीर मन और यवहार को खोखला करती ह।
शद क बजाय, चु पय क मायम से जो
कहा गया ह, वह यादा ती और
भावशाली ह।
जाने य मेरी सारी समझ बूझ इस िबदु
पर आकर चार खाने िच हो जाती ह...
कभी-कभी मानिसक अवसाद का भी िशकार
हो जाता ... आज इनक िसयासत को
समझने क िलए भावना क बैरोमीटर क
नह ब क राजनीित क बैरोमीटर क ज़रत
होती ह/ िजससे तुम वंिचत हो/ तभी तो आज
तक रत क तुरपाई करने क अलावा और
तुमने िकया ही या ह... यह किवता एक
मािमक य क तरह ह जैसे हम िकसी घर
को ढहते ए न देखकर, उसम दीवार क
दरार बढ़ते देख रह ह। यही उसक
कायामक ताक़त ह।
संह म कछ किवताएँ सामािजक /
राजनीितक िवषय पर भी ह- िवशेषकर
सांदाियकता, संकण सोच, और िसयासत
पर। ये किवताएँ शोर मचाती ई नह ह,
ब क मंथर आलोचना करती ह। इनम
आोश ह, लेिकन वह आोश नार म नह,
ब क अनुभवजय पीड़ा म अिभय होता
ह। किव समाज को बाहर से नह देखता,
ब क भीतर से अनुभव करता ह, वह बताता
ह िक कसे संकणताएँ हमार संबंध,
भावना और सोच तक को स रही ह। यह
आज क समय म िवशेष ासंिगक ह जब
सामािजक ुवीकरण और मानिसक करता
सािह यक अिभय को लगातार चुनौती दे
रही ह।
कहते ह जंग का मारा एक बार / िफर से
खड़ा हो सकता ह/ पर िसयासत क मार
घातक होती ह/ (पृ संया 26-27) एक
बड़ा और संजीदा सवाल/ असर म ?द से
पूछा करता / सवाल बड़ा प ह/ बु
और महावीर क देश म 'कौमी एकता पर
बहस क या ज़रत ह " बत िचंतन मनन
क बाद एक उर मुझे िमला ह/अहकार और
?द को सव े मनवाने क ज?ोजहद और
/ िसयासी दाँव-पच ने इस मु?े को हवा दी ह
जो अब/ चरमोकष पर ह....
राजेश कमार िसहा उन किवय म ह जो
किवता क भीतर किवता क िशनात करते
ह। किवता म किव किवता एक
आमालोचनामक िवमश ह: 'किवता म किव
कहाँ होता ह?/ उसक मूल म ! / उसक
उसक भाव म! /शद संयोजन म! / या पूरी
किवता म उसक उप थित होती ह!... यह
न सािहयशा क महवपूण िवमश से
टकराता ह और किवता को आमिचंतन का
अ बना देता ह।
राजेश कमार िसहा क भाषा सरल,
पारदश और आमीय ह। वे जिटलता क पीछ
िछपने वाले किवय म नह ह। उनक भाषा म
एक घुली ई गरमा ह, वह बोलचाल क
तरह सहज ह, पर कह भी हक या सतही
नह। िबंब सजीव ह, तीक क बोझ तले दबे
नह ह जैसे - िजसका काटा पानी नह माँगता,
ज़म नासूर बन जाते ह, रते ने किटल
मुकान छोड़ते ए कहा, रत का बग़ैर
आँच क ितल-ितलकर जलना आिद
"धूप से गुज़रते ए" पढ़ना, दरअसल,
अपने भीतर से गुज़रना ह। इस संह क
किवताएँ हम उस जगह तक ले जाती ह जहाँ
धूप िसफ बाहर नह, भीतर भी होती ह। और
जब हम उस धूप से गुज़रते ह, तो कछ छटता
ह, कछ जलता ह, और कछ नया उगता ह,
यही शायद किवता का असली उेय भी ह।
"धूप से गुज़रते ए" एक ऐसा संह ह जो
जीवन क असहज साइय से मुँह नह
मोड़ता, ब क उह सहता ह, समझता ह और
शद म बदल देता ह।
000
राजेश कमार िसहा का काय संह "धूप से गुज़रते ए" समकालीन िहदी किवता क
पर य म एक ऐसा हतेप ह जो िनजता और सावजिनक जीवन, यथाथ और मृित, तथा
संवेदना और संरचना क बीच एक संतुिलत और मािमक संवाद रचता ह। यह संह अपने
शीषक क तरह ही पाठक को उस धूप से गुज़रने को कहता ह जो िसफ ताप नह, ब क जीवन
क य-अ य परछाइय को समझने का तीक भी ह। किव क s?? अंतमुखी ह, लेिकन
वह कवल आमकित नह; वह अपने अनुभव को इस तरह बाँटता ह िक वे सामूिहक अनुभूित
बन जाते ह। किवताऐं जीवन क परछाइयाँ पकड़ती ह।
इस संह क पहली किवता, 'जुझा िकरदार' एक िननवगय िकरदार सुखलाल को
समिपत ह। राजेश कमार िसहा अपनी पूरी एक किवता एक ऐसे िकरदार को समिपत करते ह,
जो जीवन क हर मोच पर संघष करता ह, और जो समाज क s?? म अछा आदमी भी नह ह।
मगर उसक िवचार क ांित उसे उस आग म तपाती ह िक वह समाज से लेने क बजाय उसे
देना पसंद करता ह। समाज क किथत सय तबक से ना?श होने क बावजूद।
इस किवता क दो पं याँ पूरी किवता कहती ह और एक किव दय क िवकलता भी िक
उसक s?? म भावनाएँ िकतनी महवपूण ह - ंदामक भौितकवाद ने उसे िलखाया पढ़ाया ह/
दरता क अरय म वह ?ब घूमा ह/ जोिखम उठाना उसक िफतरत ह/ अपनी मजबूरय को
उसने कभी कश नह िकया ह/ समाज से उसने कछ िलया नह ब क िदया ह। (पृ संया
11) 'जुझा िकरदार' किवता म समाज क उस संवेदनहीनता क आलोचना ह, जहाँ ग़रीबी
को हसी म उड़ाया जाता ह। यह किवता 'हािशये क पा' को क म रखकर काय का
लोकतंीकरण करती ह।
किवता, यिद सही अथ म जीवन क अंतविनय को पकड़ पाए, तो वह महज़ शद क
कलाबाज़ी नह, ब क एक जीवंत अनुभव बन जाती ह। राजेश कमार िसहा का काय संह
'धूप से गुज़रते ए' इसी अनुभव क सश? तुित ह, एक ऐसा संह जो िनजी और
सावजिनक, मृित और वतमान, तथा संवेदना और िवचार क बीच एक अनवरत संवाद रचता
ह। इस संह क किवताएँ िविवध िवषय को पश करती ह- आमकथामक झरोखे, िपता क
मृितय म पगी क?णा, सामािजक िवडबना क पड़ताल, और किवता क रचना िया का
िचंतन। इनम कह हताशा ह, कह िवमय, कह पीड़ा, तो कह तीा म िपघलती ई आशा।
राजेश कमार िसहा क उन किवता म जहाँ िपता क म ह, वहाँ एक अनोखा भाव-
संसार खुलता ह। ये किवताएँ न तो िसफ ांजिल ह और न ही कवल आमदया। इनम मौन
क वह ताक़त ह जो िपता जैसे पा को किव क अंतमन म एक तीक बना देती ह, वह तीक
जो मागदशक भी ह, आलोचक भी, और सबसे यादा, अनकह भाव का वाहक। इन रचना
म िपता क साथ क संबंध एकतरफ़ा संवाद क तरह ह, जैसे किव ने जीवन म कभी कछ नह
कहा, और अब शद क मायम से कह रहा ह। यह संवाद किवता को और अिधक गहन और
िनजी बनाता ह, और पढ़ते समय हर पाठक को उसक अपने िपता क मृित क ओर ले जाता
ह। िहदी किवता म िपता क उप थित सदैव एक चुनौती रही ह, उसे कसे य िकया जाए,
जो कठोर भी था, लेिकन गहराई म ेिमल भी। िसहा क किवताएँ इस ं को भावुकता से नह,
ब क ईमानदारी से िनभाती ह।
'महवाकांी िपता', 'रटायड िपताजी', 'जब जागो तभी सवेरा', 'एक िपता जब',
'िपतृदोष', 'अपना घर', 'िपता', िपता क दुिनया', 'िपछले एक दशक से', 'मेर िपताजी', जैसी
किवताएँ न कवल ह ब क पीिढ़य क बीच क संवाद का मायम भी ह। 'महवाकांी िपता'
एक लंबी किवता ह जो एक साधारण य क असाधारण याग और आकांा को समिपत
ह– िपता महवाकांी थे/ वे महवाकांा को रामनामी क तरह/ ओढ़ा करते थे /रामायण क
चौपाइय क तरह गुनगुनाया भी करते थे..../ दरअसल वे परशान मेरी पढ़ाई म आने वाली
बाधा से हो जाते थे/ बहन क शादी म होने वाली देरी से/ हो जाते थे/ घर म िकसी क बीमारी
पुतक समीा
पूनम मनु
बी-285, ा पुरी, फज़ 2
सरधाना रोड, काँकर खेरा
मेरठ कट 250001, उ
मोबाइल- 9012339148
ईमेल- [email protected]
(किवता संह)
धूप से गुज़रते ए
समीक : पूनम मनु
लेखक : राजेश कमार िसहा
काशक : आर. क. प लकशन,
मुबई

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से हो जाते थे/ पैस क तंगी से हो जाते थे.../
पर वे िकसी से कछ कहते नह थे/ ... मुझे
बत िदन बाद इसका एहसास आ िक वे
शायद अपेा को महवाकांा समझा
करते थे/जबिक वे री भर भी नह थे
वाथ... (पृ संया 15) ये पं याँ उस
यथाथ को उजागर करती ह जहाँ िपता अपनी
आकांाएँ ब म जीते ह। किवता कवल
मृित नह, एक पीढ़ी िवशेष क भावुक
इितहास क पुनरचना ह।
'ह रािपता!' किवता महामा गाँधी क
आज क ासंिगकता पर गंभीर न उठाती
ह। 'तुम हमेशा िववाद म रह हो / आलोचक
क िनशाने पर रह हो/ .... हर साल उठता ह
एक सवाल/ आज तुहारी ासंिगकता का !'
कवल गाँधी क मृित नह, ब क उनक
िवचार क समकालीन याया ह। किवता
न करती ह िक या हमार आज क रा क
िदशा उस दशन से मेल खाती ह िजसे हमने
आमसात करने का दावा िकया था? 'कित
हम संतु कर सकती ह / पर हमार लालच
को बेशक नह' यह गाँधी दशन का अयंत
सारगिभत वाय ह जो आधुिनक
उपभो?ावादी वृि पर तीखा कटा ह।
मेर िलए इस संह क किवता 'मने कह
पढ़ा था' िवशेष प से उेखनीय ह। यह
किवता अपेा क पूरा न हो पाने से उपजी
गहरी हताशा का िच तुत करती ह, लेिकन
यही हताशा कह न कह जाकर एक छोटी
आशा म परणत होती ह। किवता एक परिचत
मनो थित से जम लेती ह, हमने 'कह पढ़ा
था' िक जीवन ऐसा होता ह, िक ेम ऐसा होता
ह, िक संबंध म एक िन त थाियव होता
ह, िक मेहनत रग लाती ह। लेिकन जब जीवन
हम इनसे िभ? अनुभव कराता ह, तब भीतर
एक टकराव पैदा होता ह। यही टकराव इस
किवता क मम पश ऊमा ह। अंितम
पं याँ जहाँ एक हक-सी उमीद क
रोशनी झलकती ह, वहाँ किव पाठक को
िनराशा म डबने से रोक लेता ह। यह आशा
कोई आदशवादी वाय नह, ब क जीवन
क कड़ी ज़मीन से उगी ई घास क तरह ह,
छोटी, लेिकन जीिवत।
इस संह क एक लंबी किवता "रत
का टट जाना" इस बात का उदाहरण ह िक
किव सबंध क जिटलता को िकतनी
सघनता से समझता ह। यह किवता टटते
रत क ासदी को कवल दुःख क तौर पर
नह, ब क मनुय क अ तवगत संकट क
प म देखती ह। इस रचना म रत का टटना
कोई आक मक घटना नह ह, यह धीर-धीर,
अय ढग से होता ह। किवता पाठक को
उस ण म नह ले जाती जब कछ 'टटता' ह,
ब क उस िया को पकड़ती ह, जो धीर-
धीर मन और यवहार को खोखला करती ह।
शद क बजाय, चु पय क मायम से जो
कहा गया ह, वह यादा ती और
भावशाली ह।
जाने य मेरी सारी समझ बूझ इस िबदु
पर आकर चार खाने िच हो जाती ह...
कभी-कभी मानिसक अवसाद का भी िशकार
हो जाता ... आज इनक िसयासत को
समझने क िलए भावना क बैरोमीटर क
नह ब क राजनीित क बैरोमीटर क ज़रत
होती ह/ िजससे तुम वंिचत हो/ तभी तो आज
तक रत क तुरपाई करने क अलावा और
तुमने िकया ही या ह... यह किवता एक
मािमक य क तरह ह जैसे हम िकसी घर
को ढहते ए न देखकर, उसम दीवार क
दरार बढ़ते देख रह ह। यही उसक
कायामक ताक़त ह।
संह म कछ किवताएँ सामािजक /
राजनीितक िवषय पर भी ह- िवशेषकर
सांदाियकता, संकण सोच, और िसयासत
पर। ये किवताएँ शोर मचाती ई नह ह,
ब क मंथर आलोचना करती ह। इनम
आोश ह, लेिकन वह आोश नार म नह,
ब क अनुभवजय पीड़ा म अिभय होता
ह। किव समाज को बाहर से नह देखता,
ब क भीतर से अनुभव करता ह, वह बताता
ह िक कसे संकणताएँ हमार संबंध,
भावना और सोच तक को स रही ह। यह
आज क समय म िवशेष ासंिगक ह जब
सामािजक ुवीकरण और मानिसक करता
सािह यक अिभय को लगातार चुनौती दे
रही ह।
कहते ह जंग का मारा एक बार / िफर से
खड़ा हो सकता ह/ पर िसयासत क मार
घातक होती ह/ (पृ संया 26-27) एक
बड़ा और संजीदा सवाल/ असर म ?द से
पूछा करता / सवाल बड़ा प ह/ बु
और महावीर क देश म 'कौमी एकता पर
बहस क या ज़रत ह " बत िचंतन मनन
क बाद एक उर मुझे िमला ह/अहकार और
?द को सव े मनवाने क ज?ोजहद और
/ िसयासी दाँव-पच ने इस मु?े को हवा दी ह
जो अब/ चरमोकष पर ह....
राजेश कमार िसहा उन किवय म ह जो
किवता क भीतर किवता क िशनात करते
ह। किवता म किव किवता एक
आमालोचनामक िवमश ह: 'किवता म किव
कहाँ होता ह?/ उसक मूल म ! / उसक
उसक भाव म! /शद संयोजन म! / या पूरी
किवता म उसक उप थित होती ह!... यह
न सािहयशा क महवपूण िवमश से
टकराता ह और किवता को आमिचंतन का
अ बना देता ह।
राजेश कमार िसहा क भाषा सरल,
पारदश और आमीय ह। वे जिटलता क पीछ
िछपने वाले किवय म नह ह। उनक भाषा म
एक घुली ई गरमा ह, वह बोलचाल क
तरह सहज ह, पर कह भी हक या सतही
नह। िबंब सजीव ह, तीक क बोझ तले दबे
नह ह जैसे - िजसका काटा पानी नह माँगता,
ज़म नासूर बन जाते ह, रते ने किटल
मुकान छोड़ते ए कहा, रत का बग़ैर
आँच क ितल-ितलकर जलना आिद
"धूप से गुज़रते ए" पढ़ना, दरअसल,
अपने भीतर से गुज़रना ह। इस संह क
किवताएँ हम उस जगह तक ले जाती ह जहाँ
धूप िसफ बाहर नह, भीतर भी होती ह। और
जब हम उस धूप से गुज़रते ह, तो कछ छटता
ह, कछ जलता ह, और कछ नया उगता ह,
यही शायद किवता का असली उेय भी ह।
"धूप से गुज़रते ए" एक ऐसा संह ह जो
जीवन क असहज साइय से मुँह नह
मोड़ता, ब क उह सहता ह, समझता ह और
शद म बदल देता ह।
000
राजेश कमार िसहा का काय संह "धूप से गुज़रते ए" समकालीन िहदी किवता क
पर य म एक ऐसा हतेप ह जो िनजता और सावजिनक जीवन, यथाथ और मृित, तथा
संवेदना और संरचना क बीच एक संतुिलत और मािमक संवाद रचता ह। यह संह अपने
शीषक क तरह ही पाठक को उस धूप से गुज़रने को कहता ह जो िसफ ताप नह, ब क जीवन
क य-अ य परछाइय को समझने का तीक भी ह। किव क s?? अंतमुखी ह, लेिकन
वह कवल आमकित नह; वह अपने अनुभव को इस तरह बाँटता ह िक वे सामूिहक अनुभूित
बन जाते ह। किवताऐं जीवन क परछाइयाँ पकड़ती ह।
इस संह क पहली किवता, 'जुझा िकरदार' एक िननवगय िकरदार सुखलाल को
समिपत ह। राजेश कमार िसहा अपनी पूरी एक किवता एक ऐसे िकरदार को समिपत करते ह,
जो जीवन क हर मोच पर संघष करता ह, और जो समाज क s?? म अछा आदमी भी नह ह।
मगर उसक िवचार क ांित उसे उस आग म तपाती ह िक वह समाज से लेने क बजाय उसे
देना पसंद करता ह। समाज क किथत सय तबक से ना?श होने क बावजूद।
इस किवता क दो पं याँ पूरी किवता कहती ह और एक किव दय क िवकलता भी िक
उसक s?? म भावनाएँ िकतनी महवपूण ह - ंदामक भौितकवाद ने उसे िलखाया पढ़ाया ह/
दरता क अरय म वह ?ब घूमा ह/ जोिखम उठाना उसक िफतरत ह/ अपनी मजबूरय को
उसने कभी कश नह िकया ह/ समाज से उसने कछ िलया नह ब क िदया ह। (पृ संया
11) 'जुझा िकरदार' किवता म समाज क उस संवेदनहीनता क आलोचना ह, जहाँ ग़रीबी
को हसी म उड़ाया जाता ह। यह किवता 'हािशये क पा' को क म रखकर काय का
लोकतंीकरण करती ह।
किवता, यिद सही अथ म जीवन क अंतविनय को पकड़ पाए, तो वह महज़ शद क
कलाबाज़ी नह, ब क एक जीवंत अनुभव बन जाती ह। राजेश कमार िसहा का काय संह
'धूप से गुज़रते ए' इसी अनुभव क सश? तुित ह, एक ऐसा संह जो िनजी और
सावजिनक, मृित और वतमान, तथा संवेदना और िवचार क बीच एक अनवरत संवाद रचता
ह। इस संह क किवताएँ िविवध िवषय को पश करती ह- आमकथामक झरोखे, िपता क
मृितय म पगी क?णा, सामािजक िवडबना क पड़ताल, और किवता क रचना िया का
िचंतन। इनम कह हताशा ह, कह िवमय, कह पीड़ा, तो कह तीा म िपघलती ई आशा।
राजेश कमार िसहा क उन किवता म जहाँ िपता क म ह, वहाँ एक अनोखा भाव-
संसार खुलता ह। ये किवताएँ न तो िसफ ांजिल ह और न ही कवल आमदया। इनम मौन
क वह ताक़त ह जो िपता जैसे पा को किव क अंतमन म एक तीक बना देती ह, वह तीक
जो मागदशक भी ह, आलोचक भी, और सबसे यादा, अनकह भाव का वाहक। इन रचना
म िपता क साथ क संबंध एकतरफ़ा संवाद क तरह ह, जैसे किव ने जीवन म कभी कछ नह
कहा, और अब शद क मायम से कह रहा ह। यह संवाद किवता को और अिधक गहन और
िनजी बनाता ह, और पढ़ते समय हर पाठक को उसक अपने िपता क मृित क ओर ले जाता
ह। िहदी किवता म िपता क उप थित सदैव एक चुनौती रही ह, उसे कसे य िकया जाए,
जो कठोर भी था, लेिकन गहराई म ेिमल भी। िसहा क किवताएँ इस ं को भावुकता से नह,
ब क ईमानदारी से िनभाती ह।
'महवाकांी िपता', 'रटायड िपताजी', 'जब जागो तभी सवेरा', 'एक िपता जब',
'िपतृदोष', 'अपना घर', 'िपता', िपता क दुिनया', 'िपछले एक दशक से', 'मेर िपताजी', जैसी
किवताएँ न कवल ह ब क पीिढ़य क बीच क संवाद का मायम भी ह। 'महवाकांी िपता'
एक लंबी किवता ह जो एक साधारण य क असाधारण याग और आकांा को समिपत
ह– िपता महवाकांी थे/ वे महवाकांा को रामनामी क तरह/ ओढ़ा करते थे /रामायण क
चौपाइय क तरह गुनगुनाया भी करते थे..../ दरअसल वे परशान मेरी पढ़ाई म आने वाली
बाधा से हो जाते थे/ बहन क शादी म होने वाली देरी से/ हो जाते थे/ घर म िकसी क बीमारी
पुतक समीा
पूनम मनु
बी-285, ा पुरी, फज़ 2
सरधाना रोड, काँकर खेरा
मेरठ कट 250001, उ
मोबाइल- 9012339148
ईमेल- [email protected]
(किवता संह)
धूप से गुज़रते ए
समीक : पूनम मनु
लेखक : राजेश कमार िसहा
काशक : आर. क. प लकशन,
मुबई

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 202557 56 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 2025
करता, िकतु परवार क अखड़पन से
िजतना टकराता चोट ही लगती। कड़वी बात
ज़ेहन म गूँजती। माँ िकसी को जवाब न दे
पाई, बँटवारा उसक यार का भी होता था,
जब छोट ताने मारते थे। संपि क बँटवार म
जब बड़ का िहसा नह रखा गया, तब
परदेशी बेट क समझ से माँ क मुकान चौड़ी
हो गई। बरस माँ से उसे जो िमला, वह उसक
पास सुरित था।
एक ऐसी सकारामक तो दूसरी ओर
कहािनयाँ दशाती ह िक सुख क तलाश म
भटकते पारपरक संबंध- उपेा और
ताड़णा जैसे भावनामक उेग म उलझ कर
रह जाते ह। घर िचड़िचड़ाहट से भरा रह तो
अह का टकराव शांित क िलए ख़तरा
बनकर मँडराता ह, िकत-दर-िकत सा
जमा होता रहता ह और यह घुटन धबे क
तरह लग कर, रत का असली चेहरा धूिमल
कर देती ह।
िवडबना यही ह िक वतमान पर य म
आमीय रत का असली चेहरा खो गया ह,
घर सािज़श और नफ़रत का अा बन गया
ह।
टॉलटॉय अपने िस उपयास 'अ?ा
करिनना' क पहली पं िलखते ह - सार
सुखी परवार एक जैसे होते ह, हर दुखी
परवार अपने तरीक़ से दुखी होता ह।
समझदारी क अभाव म दम तोड़ते रते
घर-घर म इसी कथा को जम देते ह।
देश और िवदेश म िमले अनुभव को
लेिखका क पैनी ऐसा बेधती ह िक
क रयर क दौड़ म, पलभर उकािपंड क
तरह रोशनी देकर अ तव ख़म कर लेने
वाले रते का छोर भी पकड़ पाती ह और
मानव मन क उस सचाई का बयान भी कर
पाती ह िक मनुय चाह तो नफरत और
िवासघात क भी म भरपूर आमीयता
को झक दे या िफर वही टटने क कगार पर
प चे रत को मन क उजले बोध से रग
डाले।
मानवीय संबंध का संसार ही य, कित
क आँगन म िवचरते पशु-पिय क साथ
सहजीवन भी रत का एक नया संसार बसा
देता ह - कोमल, मधुर और संतु दायक !
जीवन क अभाव को पूरत करने क िलए
या-या जुगत नह करता मनुय, िकतु
कित क खुले िवतार म जो वैभव या ह
उसक ओर से आँख मूँद लेता ह। कहािनयाँ
तािवत करती ह िक मन क मकड़जाल म
उलझ कर पछताने क अपेा नई दुिनया का
िनवाथ सृजन ेयकर ह।
कहािनयाँ देश और परदेश क भूिम पर
िवचरण करते ए नई धरती पर नए माहौल म
अजनिबय से िघरी दो अनजान लड़िकयाँ, दो
अपमािनत इसान का एक दूसर क िलए
समान बनना मम पश प से अंिकत करती
ह। लाहौर और झाबुआ क लड़िकयाँ -
तहरीम और तृिपत नए देश म अपनी जड़
ज़माने क जुगत म लगे उस परवार का
िहसा ह जो 'पहले रोज़ी-रोटी, िफर कोई बात
दूजी' क लीक पर चल रहा ह। अंेज़ी से
िनपटना दोन क िलए एक नई मुसीबत थी ही
िक तभी उह दादी क उस नफ़रत का सामना
करना पड़ा जो तहरीम को अपने बेट क हयार
देश क लड़क क प म देखने लगी। िकतु
देश और देश क सीमाएँ दोन लड़िकय क
बीच न थी। ेम था। वे दो देश क िमली-
जुली संकितय क वाहक थी। अमेरका
एक तीसरा देश था, जो िकसी का नह था, पर
सार देश का था। ऐसे अलगाववादी िवचार
लेकर अमेरका म कसे रहगे दादी? उनका
वैमनय दबाना ज़री था, लेिकन दोन
सरहद पर बाद का धुँआ गहराता रहा,
मानवीयता झुलसती रही।
तृिपत और तहरीम क बीच कोई मसला
नह था, इसका भी िक उसक अमी थी और
इसक ममी ! िफर एक िदन उनक कल म
गोलीबारी क घटना ने वातव म सब भेद
िमटा िदए। देश और सरहद से पर, गोलीबारी
क अफ़रा-तफ़री क बीच, दोन बिय को
सँभाले कल से बाहर आती अमी कवल
एक माँ थी। इस य को देख दादी क आँख
म भी आँसू आ गए, नफ़रत धुल गई।
रत पर रची ये कहािनयाँ प करती ह
िक इस छोट से जीवन म हर रता िवास
पर िटका होता ह। वतमान क सं त काल म
एक पनी क िलए िवासघाती पित का जाना
भी दुःख ह, यिक िजस पित ने अनैितक
क य करक पनी का नाम बदनाम िकया, उसे
भी तो कमत चुकानी थी- पनी क नफ़रत
झेलने क िलए िज़ंदा रहना था।
खोए ए सुख क खोज करती ये
कहािनयाँ चारदीवारी से ठ ए सुख का
कारण टटोलती ह। अपने भीतर छपा सुख न
खोज पाने क असमथता को इस प म
देखती ह िक अब सब अपना अलग-अलग
सुख खोजते ह, अहम क जीत का सुख झेलते
ह और नए सुख क तलाश म जुट रह कर
ा सुख का ितरकार और अनदेखी करते
ह। ासदी यही ह। यह ासद याा टटने क
क़गार पर लाकर छोड़ देती ह।
कहािनयाँ िवतार से एक-एक बात को
खोलती ह। पा क मन म चले उेलन-
िवचलन को मापती ह। कछ कहािनयाँ जीवन
क िवषाद को मूितमान करती ह और कछ
सामंजय क सुख क बात करती ह। 'काठ
क हाँडी' कहानी क रोज़ा का िनवाथ याग
ऐसा िक दूसर क जीवन क िलए वयं मृयु
का वरण कर ले, इसािनयत क बहते पानी से
जुड़ जाती इव और बॉब क दोती, लीवी का
भाव परवतन समरसता क ??? क कथाएँ
ह तो घुसपैठ, भर दोपहर जैसी कहािनयाँ
असामंजय से उपजे िवलव को मूितमान
करती ह।
आक मक प से कछ घिटत होना
कहािनय क िशप संरचना का िहसा ह।
बत ामािणक प से वातावरण िनिमित भी
कहािनय क िवशेषता ह। कहािनय क
शीषक छोट और सांकितक ह- बैटरी,
घुसपैठ, िभडत, क?चs बैटरी म कई संकत
िनिहत ह- जैसे मदद क बैटरी।
भािषक संरचना म ऐसी खािमयाँ उि न
करती ह- ताउ क िलए एक सुखद ऊजामयी
अहसास छोड़ गया था
समत: देश-िवदेश क जीवन क िविवध
पहलु का पश करती ये कहािनयाँ जीवन
क िवषमता और समरसता को साधने क
कोिशश करती कहािनयाँ ह।
000
हसादीप िहदी कथा जग म एक सुपरिचत नाम ह। इधर इनक कहािनयाँ और कहािनय
क अनुवाद, अनवरत कािशत हो रह ह। ित त वाणी काशन से आए उनक नवीनतम
संह - 'अधजले ठ ' - म, 134 पृ पर सह कहािनयाँ ह। ज़ािहर ह िक ये आकार म बत
लबी कहािनयाँ नह ह, कछ तो तीन प म समा? !
लगभग सभी कहािनयाँ िहदी क िविश पिका म कािशत होने क साथ-साथ
पुरकत भी ई ह। 'काठ क हाँडी' कहानी को 'कमलेर मृित कथा समान' िमला, 'शूय क
भीतर' कहानी 'पुरवाई कथा समान' क िलए चयिनत ई।
भारतीय परवेश से दूर, िवशाल देश कनेडा क टोरटो शहर म िहदी पढ़ाने क ? म
कथाकार ने बत कछ देखा, समझा, परखा और िफर उसे अपने कथा-सािहय म गूँथ िदया।
इस संह क क म रते ह - अपनेपन क रते, बेगाने होते जाते रते, नए जुड़ते और पुराने
ख़म होते रते। रत क ऊब और हलचल, संवेदनशीलता और ?खाई, अतरग गहराई और
िछछलापन, दूरी और िनकटता जैसे संग को उधेड़ती-बुनती ये कहािनयाँ वातिवकता का
उजला और धूसर िवतान एक साथ रचती ह।
पटर लीवी का मकान मालिकन क साथ पनपा रता उजली िकरन से भी उजला हो उठता
ह। कसे? यह तीकामक अथ खोलती पहली कहानी 'अधजले ठ ' म पाियत आ ह।
िसगरट क अधजले टकड़ को अपने पैर तले कचलने म 'दुिनया को रदने का सुक?न' पाने
वाला लीवी रगभेद और नलवाद क वै क संताप को झेले ए ह, लैक चेहर पर शक करती
िनगाह ने उसक अंतमन को ोध से भरा ह। संत लीवी इतना आोिशत ह िक वह उस
आोश क अिभय िसगरट क अधजले ठ को मसल कर करता ह। कहानी क कय
का मूल रगभेद से भरा यह संसार ह। एक परदेशी अनुभव क इस कहानी क कठोर िकतु
सटीक शद 'डट लुक एट मी, लुक एट माय वक'- लीवी क ईमानदार तखी को य करते
ह। बाहरी रग-प क कारण हम िकसी क भीतरी अछाइय को नकार नह सकते।
अपनी चमड़ी का रग तय करना लीवी क हाथ म नह था। अपने 'ाउन' रग क कारण
िवदेशी धरती पर मकान मालिकन भी कभी रग क सािज़श का िहसा ई थी। इसिलए काम
क िना क कारण वह लीवी क तेवर बदा त करती ह। अंतत: लीवी और उसक साथी पटर
क काले चेहर क दूध-सी उजली हसी से उनका आपसी रता सहज हो जाता ह। लीवी भी अब
हताश नह रहा, उसने िसगरट का टकड़ा बुझ जाने तक उगिलय क बीच थामे रखा। एक सहज
रता बनने म वत लगा, अंतत: रगभेद क आड़ आई दीवार वत ई।
मानवीय रत क उतार-चढ़ाव को अंिकत करती इन कहािनय म, पित-पनी का वह
रता भी आकार पाता ह जो जीना दुार िकए दे रही िदन रात क नक-झक क बीच पुआल
क आग-सा जलाता ह।
एक छत क नीचे दो अलग-अलग दुिनया म जीता माँ-बेटी का रता सहजता को लाँघ
गया ह। दूरय ने िजसे लील िलया, माँ-बेट-भाइय क बीच का ?न का रता, तमाम
किठनाइयाँ-ताने-ईया-ेष क दुिनया म साँस लेता ह। रत को झुठलाना पीड़ादायक ह।
िवथापन क पीड़ा झेलता एक बेटा जब दूर जा बसा, अपनी ज़मीन से कट गया। तब भी वह
सोचता ह - वह तो परदेस आने पर भी अपनी जड़ साथ लाया था ! अपन क मन का परायापन
उसक दय को सालता ह, रत का ऐसा यू टन आहत करता ह। माँ क आशीवाद क झड़ी
अपने माथे पर बरसते देख, वही एक बेटा ह जो अपनी िज़ंदगी म खोया होकर भी माँ का दुःख
देख पाता ह - वह तो जैसे समय को वीकार करने क िलए ही बनी थी, सबक अपने-अपने
सपने थे, माँ क आदत सब सुनने क थी। माँ क हसरत को ऊचाई देने वाला यह बेटा यास
पुतक समीा
(कहानी संह)
अधजले ठ
समीक : डॉटर िवजया सती
लेखक : हसा दीप
काशक : वाणी काशन, नई
?·??
डॉटर िवजया सती
'अिभराम', 22, हीरा नगर, ह ानी,
नैनीताल 263139 उराखंड
ईमेल- [email protected]

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 202557 56 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 2025
करता, िकतु परवार क अखड़पन से
िजतना टकराता चोट ही लगती। कड़वी बात
ज़ेहन म गूँजती। माँ िकसी को जवाब न दे
पाई, बँटवारा उसक यार का भी होता था,
जब छोट ताने मारते थे। संपि क बँटवार म
जब बड़ का िहसा नह रखा गया, तब
परदेशी बेट क समझ से माँ क मुकान चौड़ी
हो गई। बरस माँ से उसे जो िमला, वह उसक
पास सुरित था।
एक ऐसी सकारामक तो दूसरी ओर
कहािनयाँ दशाती ह िक सुख क तलाश म
भटकते पारपरक संबंध- उपेा और
ताड़णा जैसे भावनामक उेग म उलझ कर
रह जाते ह। घर िचड़िचड़ाहट से भरा रह तो
अह का टकराव शांित क िलए ख़तरा
बनकर मँडराता ह, िकत-दर-िकत सा
जमा होता रहता ह और यह घुटन धबे क
तरह लग कर, रत का असली चेहरा धूिमल
कर देती ह।
िवडबना यही ह िक वतमान पर य म
आमीय रत का असली चेहरा खो गया ह,
घर सािज़श और नफ़रत का अा बन गया
ह।
टॉलटॉय अपने िस उपयास 'अ?ा
करिनना' क पहली पं िलखते ह - सार
सुखी परवार एक जैसे होते ह, हर दुखी
परवार अपने तरीक़ से दुखी होता ह।
समझदारी क अभाव म दम तोड़ते रते
घर-घर म इसी कथा को जम देते ह।
देश और िवदेश म िमले अनुभव को
लेिखका क पैनी ऐसा बेधती ह िक
क रयर क दौड़ म, पलभर उकािपंड क
तरह रोशनी देकर अ तव ख़म कर लेने
वाले रते का छोर भी पकड़ पाती ह और
मानव मन क उस सचाई का बयान भी कर
पाती ह िक मनुय चाह तो नफरत और
िवासघात क भी म भरपूर आमीयता
को झक दे या िफर वही टटने क कगार पर
प चे रत को मन क उजले बोध से रग
डाले।
मानवीय संबंध का संसार ही य, कित
क आँगन म िवचरते पशु-पिय क साथ
सहजीवन भी रत का एक नया संसार बसा
देता ह - कोमल, मधुर और संतु दायक !
जीवन क अभाव को पूरत करने क िलए
या-या जुगत नह करता मनुय, िकतु
कित क खुले िवतार म जो वैभव या ह
उसक ओर से आँख मूँद लेता ह। कहािनयाँ
तािवत करती ह िक मन क मकड़जाल म
उलझ कर पछताने क अपेा नई दुिनया का
िनवाथ सृजन ेयकर ह।
कहािनयाँ देश और परदेश क भूिम पर
िवचरण करते ए नई धरती पर नए माहौल म
अजनिबय से िघरी दो अनजान लड़िकयाँ, दो
अपमािनत इसान का एक दूसर क िलए
समान बनना मम पश प से अंिकत करती
ह। लाहौर और झाबुआ क लड़िकयाँ -
तहरीम और तृिपत नए देश म अपनी जड़
ज़माने क जुगत म लगे उस परवार का
िहसा ह जो 'पहले रोज़ी-रोटी, िफर कोई बात
दूजी' क लीक पर चल रहा ह। अंेज़ी से
िनपटना दोन क िलए एक नई मुसीबत थी ही
िक तभी उह दादी क उस नफ़रत का सामना
करना पड़ा जो तहरीम को अपने बेट क हयार
देश क लड़क क प म देखने लगी। िकतु
देश और देश क सीमाएँ दोन लड़िकय क
बीच न थी। ेम था। वे दो देश क िमली-
जुली संकितय क वाहक थी। अमेरका
एक तीसरा देश था, जो िकसी का नह था, पर
सार देश का था। ऐसे अलगाववादी िवचार
लेकर अमेरका म कसे रहगे दादी? उनका
वैमनय दबाना ज़री था, लेिकन दोन
सरहद पर बाद का धुँआ गहराता रहा,
मानवीयता झुलसती रही।
तृिपत और तहरीम क बीच कोई मसला
नह था, इसका भी िक उसक अमी थी और
इसक ममी ! िफर एक िदन उनक कल म
गोलीबारी क घटना ने वातव म सब भेद
िमटा िदए। देश और सरहद से पर, गोलीबारी
क अफ़रा-तफ़री क बीच, दोन बिय को
सँभाले कल से बाहर आती अमी कवल
एक माँ थी। इस य को देख दादी क आँख
म भी आँसू आ गए, नफ़रत धुल गई।
रत पर रची ये कहािनयाँ प करती ह
िक इस छोट से जीवन म हर रता िवास
पर िटका होता ह। वतमान क सं त काल म
एक पनी क िलए िवासघाती पित का जाना
भी दुःख ह, यिक िजस पित ने अनैितक
क य करक पनी का नाम बदनाम िकया, उसे
भी तो कमत चुकानी थी- पनी क नफ़रत
झेलने क िलए िज़ंदा रहना था।
खोए ए सुख क खोज करती ये
कहािनयाँ चारदीवारी से ठ ए सुख का
कारण टटोलती ह। अपने भीतर छपा सुख न
खोज पाने क असमथता को इस प म
देखती ह िक अब सब अपना अलग-अलग
सुख खोजते ह, अहम क जीत का सुख झेलते
ह और नए सुख क तलाश म जुट रह कर
ा सुख का ितरकार और अनदेखी करते
ह। ासदी यही ह। यह ासद याा टटने क
क़गार पर लाकर छोड़ देती ह।
कहािनयाँ िवतार से एक-एक बात को
खोलती ह। पा क मन म चले उेलन-
िवचलन को मापती ह। कछ कहािनयाँ जीवन
क िवषाद को मूितमान करती ह और कछ
सामंजय क सुख क बात करती ह। 'काठ
क हाँडी' कहानी क रोज़ा का िनवाथ याग
ऐसा िक दूसर क जीवन क िलए वयं मृयु
का वरण कर ले, इसािनयत क बहते पानी से
जुड़ जाती इव और बॉब क दोती, लीवी का
भाव परवतन समरसता क ??? क कथाएँ
ह तो घुसपैठ, भर दोपहर जैसी कहािनयाँ
असामंजय से उपजे िवलव को मूितमान
करती ह।
आक मक प से कछ घिटत होना
कहािनय क िशप संरचना का िहसा ह।
बत ामािणक प से वातावरण िनिमित भी
कहािनय क िवशेषता ह। कहािनय क
शीषक छोट और सांकितक ह- बैटरी,
घुसपैठ, िभडत, क?चs बैटरी म कई संकत
िनिहत ह- जैसे मदद क बैटरी।
भािषक संरचना म ऐसी खािमयाँ उि न
करती ह- ताउ क िलए एक सुखद ऊजामयी
अहसास छोड़ गया था
समत: देश-िवदेश क जीवन क िविवध
पहलु का पश करती ये कहािनयाँ जीवन
क िवषमता और समरसता को साधने क
कोिशश करती कहािनयाँ ह।
000
हसादीप िहदी कथा जग म एक सुपरिचत नाम ह। इधर इनक कहािनयाँ और कहािनय
क अनुवाद, अनवरत कािशत हो रह ह। ित त वाणी काशन से आए उनक नवीनतम
संह - 'अधजले ठ ' - म, 134 पृ पर सह कहािनयाँ ह। ज़ािहर ह िक ये आकार म बत
लबी कहािनयाँ नह ह, कछ तो तीन प म समा? !
लगभग सभी कहािनयाँ िहदी क िविश पिका म कािशत होने क साथ-साथ
पुरकत भी ई ह। 'काठ क हाँडी' कहानी को 'कमलेर मृित कथा समान' िमला, 'शूय क
भीतर' कहानी 'पुरवाई कथा समान' क िलए चयिनत ई।
भारतीय परवेश से दूर, िवशाल देश कनेडा क टोरटो शहर म िहदी पढ़ाने क ? म
कथाकार ने बत कछ देखा, समझा, परखा और िफर उसे अपने कथा-सािहय म गूँथ िदया।
इस संह क क म रते ह - अपनेपन क रते, बेगाने होते जाते रते, नए जुड़ते और पुराने
ख़म होते रते। रत क ऊब और हलचल, संवेदनशीलता और ?खाई, अतरग गहराई और
िछछलापन, दूरी और िनकटता जैसे संग को उधेड़ती-बुनती ये कहािनयाँ वातिवकता का
उजला और धूसर िवतान एक साथ रचती ह।
पटर लीवी का मकान मालिकन क साथ पनपा रता उजली िकरन से भी उजला हो उठता
ह। कसे? यह तीकामक अथ खोलती पहली कहानी 'अधजले ठ ' म पाियत आ ह।
िसगरट क अधजले टकड़ को अपने पैर तले कचलने म 'दुिनया को रदने का सुक?न' पाने
वाला लीवी रगभेद और नलवाद क वै क संताप को झेले ए ह, लैक चेहर पर शक करती
िनगाह ने उसक अंतमन को ोध से भरा ह। संत लीवी इतना आोिशत ह िक वह उस
आोश क अिभय िसगरट क अधजले ठ को मसल कर करता ह। कहानी क कय
का मूल रगभेद से भरा यह संसार ह। एक परदेशी अनुभव क इस कहानी क कठोर िकतु
सटीक शद 'डट लुक एट मी, लुक एट माय वक'- लीवी क ईमानदार तखी को य करते
ह। बाहरी रग-प क कारण हम िकसी क भीतरी अछाइय को नकार नह सकते।
अपनी चमड़ी का रग तय करना लीवी क हाथ म नह था। अपने 'ाउन' रग क कारण
िवदेशी धरती पर मकान मालिकन भी कभी रग क सािज़श का िहसा ई थी। इसिलए काम
क िना क कारण वह लीवी क तेवर बदा त करती ह। अंतत: लीवी और उसक साथी पटर
क काले चेहर क दूध-सी उजली हसी से उनका आपसी रता सहज हो जाता ह। लीवी भी अब
हताश नह रहा, उसने िसगरट का टकड़ा बुझ जाने तक उगिलय क बीच थामे रखा। एक सहज
रता बनने म वत लगा, अंतत: रगभेद क आड़ आई दीवार वत ई।
मानवीय रत क उतार-चढ़ाव को अंिकत करती इन कहािनय म, पित-पनी का वह
रता भी आकार पाता ह जो जीना दुार िकए दे रही िदन रात क नक-झक क बीच पुआल
क आग-सा जलाता ह।
एक छत क नीचे दो अलग-अलग दुिनया म जीता माँ-बेटी का रता सहजता को लाँघ
गया ह। दूरय ने िजसे लील िलया, माँ-बेट-भाइय क बीच का ?न का रता, तमाम
किठनाइयाँ-ताने-ईया-ेष क दुिनया म साँस लेता ह। रत को झुठलाना पीड़ादायक ह।
िवथापन क पीड़ा झेलता एक बेटा जब दूर जा बसा, अपनी ज़मीन से कट गया। तब भी वह
सोचता ह - वह तो परदेस आने पर भी अपनी जड़ साथ लाया था ! अपन क मन का परायापन
उसक दय को सालता ह, रत का ऐसा यू टन आहत करता ह। माँ क आशीवाद क झड़ी
अपने माथे पर बरसते देख, वही एक बेटा ह जो अपनी िज़ंदगी म खोया होकर भी माँ का दुःख
देख पाता ह - वह तो जैसे समय को वीकार करने क िलए ही बनी थी, सबक अपने-अपने
सपने थे, माँ क आदत सब सुनने क थी। माँ क हसरत को ऊचाई देने वाला यह बेटा यास
पुतक समीा
(कहानी संह)
अधजले ठ
समीक : डॉटर िवजया सती
लेखक : हसा दीप
काशक : वाणी काशन, नई
?·??
डॉटर िवजया सती
'अिभराम', 22, हीरा नगर, ह ानी,
नैनीताल 263139 उराखंड
ईमेल- [email protected]

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 202559 58 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 2025
म ही न िसफ घोर आपदा क थित कट
करते ह ब क उन िवडबना क तरफ भी
इशारा करते ह जो इन पर छाई ह – पूत न माने
आपन डाँट, भाई लड़ चह िनत बाँट। । /
ितरया कलही करकस होइ, / िनयरा बसल
दुट सब कोइ। / मािलक नािहन कर िवचार।
/ घाघ कह ई िवपित अपार। िशप क s??
से देख तो घाघ क कहावत बेहद सरल,
रोचक, चुटीली और संि ता िलये ए ह।
लेिकन इनक भावशीलता इतनी गहरी होती
ह िक यह पीढ़ी दर पीढ़ी लोकमानस म याा
करती रहती ह।
घाघ क कहावत म किष-संकित क
बड़ा योगदान ह। क?िष और क?षक जीवन क
िता उनक कहावत म ह। वे खेितहर
समाज से जुड़ किव ह। यह उनक काय म
मुखता से थान पाता ह। अंेज़ी राज
थािपत होने क पूव क?िष और िकसानी
संकित क ही िता हमार समाज म थी।
अंेज़ी ढग क िशा यवथा पनपने एवं
औोिगककरण क पूव तक िकसानी को
उम और नौकरी को अधम काम माना गया
था- उम खेती मयम बािन / अधम चाकरी
भीख िनदान। घाघ ने इसी क?िष एवं क?षक
परपरा का िनवाह अपनी कहावत म मुखता
से िकया ह। इससे इतर भी घाघ ने अयाय
िवषय पर भी िलखा ह। पांडय िलखते ह-
खेती िकसानी से लेकर मौसम िवान, पशु
िवान, समाजशा , जाितय का वभाव,
शकन-अपशकन, याा-िवचार, योितष,
वषा क लण, बादल क रग जैसे िविभ?
महवपूण िवषय पर कहावत कही ह। चूँिक
िकसान कित और पयावरण क बीच अपना
जीवन-यापन करता ह और उसक साथ एक
साहचयपूण जीवन जीता ह इसिलए वह
मौसम और पयावरण का अंदाजा वत: लगा
लेता ह। हवा, पानी, धूप, बादल, खेत, पेड़
आिद क हर आहट, रग और विनयाँ उह
सुनाई और िदखाई पड़ती ह। इसिलए उसी क
अनुप अपने जीवन को संचािलत करते ह।
लेखक क अनुसार- क?िष मौसम क
अनुक?लता पर ही िनभर रही ह और मौसम क
अिन तता, अितवृ , अनावृ जैसी
थितयाँ सदैव रही ह िकतु इनसे कसे
सावधान रहा जाय, इसका पूवानुमान कसे
िकया जाय, इसका संकत इन कहावत म
मौजूद ह, तब जबिक मौसम िवान क यं
का अिवकार भी नह आ था, तभी घाघ जैसे
मनीिषय ने अपनी कहावत क
भिवयवािणय म मौसम क अचूक
भिवयवािणयाँ क ह जो आज तक कही सुनी
और देखी जा रही ह, वे आज भी लगभग खरी
ही उतरती ह। यह माना जाता ह िक अगर अा
न लगते ही और हिथया न क समा
पर वषा न हो तो फसल क संभावना ख़म हो
जाती ह और िकसान दोन न क बीच िपस
जाता ह- आिद न बरसे आदरा, हत न बरस
िनदान। / कह घाघ सुन भरी, भये िकसान
िपसान।। बादल क रग-ढग, हवा क ?ख़
आिद क मायम से पहले िकसान कित का
अनुमान लगाते थे। असर उनक अनुमान
सटीक बैठते थे। मसलन उर िदशा म
िबजली चमक और पुरवैया बह तो वषा होने
क पूरी संभावना होती ह- बाउ चलेगी
दिखना, माँड़ कहाँ से चखना- अथात द खन
क हवा चलेगी तो फ़सल न होगी। चावल
तो छोिड़ये, माँड़ भी चखने को नह िमलेगा।
िकसान क इस अनुभवजिनत सय का
उदघाटन घाघ अपनी कहावत म करते ह।
पशु-पिय एवं कित म िवचरण करने वाले
छोट-बड़ जीव क लण से भी िकसान
मौसम का अंदाज़ा लगाते थे िजसका िज़
किव ने अपनी कहावत म िकया ह।
फ़सल क देखभाल कसी होनी चािहए –
इस पर भी किव ने क़लम चलाई ह। कब कौन
सी फ़सल काटने लायक़ ह, यह भी उनक
काय का िवषय ह- चना अधपका जौ पका
काट / गे बाली लटका काट। यानी चने को
अधपक म काट लेना चािहए और जौ को
पकने क बाद। गे को तब काटना चािहए
जब उसक बाली लटक कर झुक जाए।
फ़सल को तब ओसाना चािहए जब पछआ
हवा चले इससे फ़सल म घुन नह लगती ह।
पिछवां हवा ओसावै जोई, घाघ कह घुन
कब न होई। यह बेहद सू?म बात ह।
िकसान क जीवन म इन कहावत का बड़ा
महव ह। िकसान भली भाँित जानता ह िक
पछआ हवा गम और शुक होती ह। उस हवा
म नमी का अभाव होता ह। ऐसे समय म
ओसाने से फसल म आता ख़म हो जाती ह
और घुन नह लगता ह। घाघ ने अनाज क
कित, वाद और उसक पैदावार आिद क
संकित पर भी िलखा ह। बाजरा श व क
अनाज ह। यह देह को ताक़त दान करती ह।
इस तरह क पं याँ भी घाघ क यहाँ िमलती
ह- बजर बाजरा मेरा भाई, / नौ मूसल से कर
लड़ाई / इसक खीचड़ लाला खाए, / म
अखाड़ा लड़ने जाए।
लोक-जीवन, लोक-संकित और
िकसान पर िवचार करते ए घाघ ने य क
जीवन और वभाव पर भी िलखा ह। सामंती
समाज और परवेश म य क थित िनन
तर क रही ह। उनक कहावत म यादातर
याँ उपहास क िशकार िदखती ह। चंचल
या चपल होना या अिधक खाना- ये सब घोड़ी
आिद क िलए गुण ह लेिकन य क िलए
अवगुण। कलह करने वाली य क घर म
हमेशा अभाव और दारय रहता ह। पनी क
सलाह लेने वाले पु?ष को भीख माँगना पड़ता
ह। उहने दु र य क भी लण
िगनाये ह। सुंदर ी को भी दुख का कारण
माना ह। जब इस तरह क कहावत क
पं य से गुज़रते ह तो प होता ह िक घाघ
उह परपरा का िनवाह करते नज़र आते ह
जो सामंती और िपतृसामक यवथा ने
य क िलए िनधा रत कर रखी थी।
डॉ. पांडय घाघ क रचना का
िववेचन-िवेषण, अथ-िनतारण इतने
िवतार और सू?म तरीक़ से करते ह िक आप
इससे गुज़रते ए महसूस करते ह िक ामीण
संकित का वाह आपम से होकर गुज़र रहा
ह। तकनीक और सोशल मीिडया क राते
लगातार शोर क साथ वै क संसार म पसरते
ए, घाघ और उसक बहाने थानीय
लोकजीवन से संपृ? होना, उसक संगीतमय
आवाज़ सुनना, सुक?नदायक ह। सय िय
पांडय इस सुक?न को घाघ और उनक
कहावत क मायम से उपलध कराते ह।
000
सय िय पाडय लोक सािहय क मम पाठक ह। अवल तो उनक अययन का ?
भ सािहय से लेकर समकालीन किवता तक पसरा आ ह लेिकन िपछले कछ वष से
उनक अिभ?िच लोक सािहय म ह। उनक स: कािशत पुतक 'घाघ और उनक कहावत'
उनक उसी अनुसंधान एवं लोक अिभ?िच का माण ह।
घाघ सहव सदी क किव ह। उनक जीवन ? क बार म बत यव थत जानकारयाँ
नह िमलती ह। वे मौिखक परपरा किव कह जाते ह। उनक याित का बड़ा आधार जनुित क
प म चिलत उनक लोक मुहावर एवं कहावत ह िजसका सार जन-जन तक फला आ ह।
अलग-अलग े और भाषा-भाषी लोग अपनी ?बान म घाघ क कहावत का उपयोग करते
ह। यह उनक अपार लोकियता को दशाता ह। उनक रचना क कई उेखनीय
िवशेषताएँ रही ह िजसम; क?िष धान रचनाएँ, अनुभव आधारत ान, नीितपरकता, कित और
पयावरण महवपूण ह। वे लोकभाषा क किव ह। उसे समृ करने म उेखनीय भूिमका
िनभाते ह। घाघ काय छद क प म चिलत दोह का उपयोग करते ह। इसम उनक
िसहतता ह।
अपनी इस अनुसंधनामक पुतक म सय िय पांडय घाघ क रचना को पाँच अयाय
म िवभािजत करते ह। िजसम कहावत क वप और महव क साथ घाघ क जम और उससे
संबंिधत िकवदंितय क संदभ म फले जाले को साफ करते ह। अय अयाय म वे घाघ क
कहावत का िववेचन िवेषण करते ह िजसम मुखता क?िष एवं खेती-बाड़ी आिद से जुड़
संग क ह। कछ कहावत वा य से भी जुड़ी ह, उसका भी उेख िकया गया ह। इस
पुतक क ख़ािसयत यह ह िक लेखक ने घाघ क कहावत का सामािजक-सांकितक-
मनोवैािनक िवेषण भी तुत िकया ह।
घाघ क कहावत हमार लोक-जीवन क संकित से उपजी ह और उसी लोक-जीवन क
पुन तुित उनक रचना म ह। वे लोकजीवन को और अिधक समृ करते ह। लोकजीवन
का मनोिवान वहाँ क संकित, परपरा और सयता क देन होती ह। क?िष धान संकित म
लोकजीवन का मनोिवान भी बत कछ उसी तज पर बना ह िजसक झलक घाघ क कहावत
म ह। िजसे परत दर परत िववेिचत-िवेिषत करने का काम सय िय पाँडय करते ह।
कहावत क वप पर िवचार करते ए डॉ. पांडय ने इस बात क तरफ इशारा िकया ह िक
इसका वप सावभौिमक होता ह। हालाँिक इस बात म िवरोधाभास तब सामने आता ह जब
इस का उेख होता ह िक जाित, वण या समुदाय िवशेष से जुड़ी कहावत उनक सामािजक
यवहार से जुड़ी होती ह।
कहावत क एक अय वप पर िवचार करते ए डॉ. पांडय िलखते ह िक इसम कथा क
िविशता शािमल होती ह। कहावत लोकजीवन से गहर संपृ? होती ह, ऐसे म वह लोकजीवन
क कथा को अपने भीतर समेट लेती ह। अलग-अलग े , बोिलय एवं ज़बान म यह
अलग प बदलकर अिभय तो होती ह लेिकन मूल कय जस का तस बना रहता ह। अथात
कथन म बदलाव या परवितत प िमलने क बाद भी अथ म बदलाव नह आता ह। उहने ?
चंद जैन ारा उ िखत एक मालवी कहावत- 'अपने मठ को कोई पतला नह कहता' क
हवाले से िदखाया ह िक इसी कहावत क िविभ? प अवधी, बुदेली, िनमाड़ी, िहदुतानी,
गुजराती आिद अनेक भाषा-बोिलय म चिलत ह।
कहावत पर िवचार करते ए इस बात पर भी यान जाना चािहए िक इसम िनजी व
सावजिनक मूय शािमल होते ह साथ ही िवडबनाएँ भी। ये नैितक मूय हमार सामािजक-
सांकितक-धािमक-नैितक संरचना से जुड़ होते ह। असर कहावत तीकामक या पक
प म अिभय होती ह। मसलन पु अवा करता हो और डाँटने पर भी न मानता हो, भाई
बँटवार क िलए रोज़ झगड़ता हो, पनी घर म कलह करती हो, पड़ोसी दु ह, राजा याय का
िवचार न करता हो तो समझना चािहए िक य , समाज और रा संकट म ह। घाघ एक पद
पुतक समीा
डॉ. राजकमार
एसोिसएट ोफसर
िहदी िवभाग, यामलाल कॉलेज,
िदी िविवालय िदी- 110032
मोबाइल- 9868326848
ईमेल- [email protected]
(आलोचना)
घाघ और उनक
कहावत
समीक : डॉ. राजकमार
लेखक : डॉ. सय िय पांडय
काशक : िबब-ितिबब
काशन, फगवाड़ा, पंजाब

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 202559 58 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 2025
म ही न िसफ घोर आपदा क थित कट
करते ह ब क उन िवडबना क तरफ भी
इशारा करते ह जो इन पर छाई ह – पूत न माने
आपन डाँट, भाई लड़ चह िनत बाँट। । /
ितरया कलही करकस होइ, / िनयरा बसल
दुट सब कोइ। / मािलक नािहन कर िवचार।
/ घाघ कह ई िवपित अपार। िशप क s??
से देख तो घाघ क कहावत बेहद सरल,
रोचक, चुटीली और संि ता िलये ए ह।
लेिकन इनक भावशीलता इतनी गहरी होती
ह िक यह पीढ़ी दर पीढ़ी लोकमानस म याा
करती रहती ह।
घाघ क कहावत म किष-संकित क
बड़ा योगदान ह। क?िष और क?षक जीवन क
िता उनक कहावत म ह। वे खेितहर
समाज से जुड़ किव ह। यह उनक काय म
मुखता से थान पाता ह। अंेज़ी राज
थािपत होने क पूव क?िष और िकसानी
संकित क ही िता हमार समाज म थी।
अंेज़ी ढग क िशा यवथा पनपने एवं
औोिगककरण क पूव तक िकसानी को
उम और नौकरी को अधम काम माना गया
था- उम खेती मयम बािन / अधम चाकरी
भीख िनदान। घाघ ने इसी क?िष एवं क?षक
परपरा का िनवाह अपनी कहावत म मुखता
से िकया ह। इससे इतर भी घाघ ने अयाय
िवषय पर भी िलखा ह। पांडय िलखते ह-
खेती िकसानी से लेकर मौसम िवान, पशु
िवान, समाजशा , जाितय का वभाव,
शकन-अपशकन, याा-िवचार, योितष,
वषा क लण, बादल क रग जैसे िविभ?
महवपूण िवषय पर कहावत कही ह। चूँिक
िकसान कित और पयावरण क बीच अपना
जीवन-यापन करता ह और उसक साथ एक
साहचयपूण जीवन जीता ह इसिलए वह
मौसम और पयावरण का अंदाजा वत: लगा
लेता ह। हवा, पानी, धूप, बादल, खेत, पेड़
आिद क हर आहट, रग और विनयाँ उह
सुनाई और िदखाई पड़ती ह। इसिलए उसी क
अनुप अपने जीवन को संचािलत करते ह।
लेखक क अनुसार- क?िष मौसम क
अनुक?लता पर ही िनभर रही ह और मौसम क
अिन तता, अितवृ , अनावृ जैसी
थितयाँ सदैव रही ह िकतु इनसे कसे
सावधान रहा जाय, इसका पूवानुमान कसे
िकया जाय, इसका संकत इन कहावत म
मौजूद ह, तब जबिक मौसम िवान क यं
का अिवकार भी नह आ था, तभी घाघ जैसे
मनीिषय ने अपनी कहावत क
भिवयवािणय म मौसम क अचूक
भिवयवािणयाँ क ह जो आज तक कही सुनी
और देखी जा रही ह, वे आज भी लगभग खरी
ही उतरती ह। यह माना जाता ह िक अगर अा
न लगते ही और हिथया न क समा
पर वषा न हो तो फसल क संभावना ख़म हो
जाती ह और िकसान दोन न क बीच िपस
जाता ह- आिद न बरसे आदरा, हत न बरस
िनदान। / कह घाघ सुन भरी, भये िकसान
िपसान।। बादल क रग-ढग, हवा क ?ख़
आिद क मायम से पहले िकसान कित का
अनुमान लगाते थे। असर उनक अनुमान
सटीक बैठते थे। मसलन उर िदशा म
िबजली चमक और पुरवैया बह तो वषा होने
क पूरी संभावना होती ह- बाउ चलेगी
दिखना, माँड़ कहाँ से चखना- अथात द खन
क हवा चलेगी तो फ़सल न होगी। चावल
तो छोिड़ये, माँड़ भी चखने को नह िमलेगा।
िकसान क इस अनुभवजिनत सय का
उदघाटन घाघ अपनी कहावत म करते ह।
पशु-पिय एवं कित म िवचरण करने वाले
छोट-बड़ जीव क लण से भी िकसान
मौसम का अंदाज़ा लगाते थे िजसका िज़
किव ने अपनी कहावत म िकया ह।
फ़सल क देखभाल कसी होनी चािहए –
इस पर भी किव ने क़लम चलाई ह। कब कौन
सी फ़सल काटने लायक़ ह, यह भी उनक
काय का िवषय ह- चना अधपका जौ पका
काट / गे बाली लटका काट। यानी चने को
अधपक म काट लेना चािहए और जौ को
पकने क बाद। गे को तब काटना चािहए
जब उसक बाली लटक कर झुक जाए।
फ़सल को तब ओसाना चािहए जब पछआ
हवा चले इससे फ़सल म घुन नह लगती ह।
पिछवां हवा ओसावै जोई, घाघ कह घुन
कब न होई। यह बेहद सू?म बात ह।
िकसान क जीवन म इन कहावत का बड़ा
महव ह। िकसान भली भाँित जानता ह िक
पछआ हवा गम और शुक होती ह। उस हवा
म नमी का अभाव होता ह। ऐसे समय म
ओसाने से फसल म आता ख़म हो जाती ह
और घुन नह लगता ह। घाघ ने अनाज क
कित, वाद और उसक पैदावार आिद क
संकित पर भी िलखा ह। बाजरा श व क
अनाज ह। यह देह को ताक़त दान करती ह।
इस तरह क पं याँ भी घाघ क यहाँ िमलती
ह- बजर बाजरा मेरा भाई, / नौ मूसल से कर
लड़ाई / इसक खीचड़ लाला खाए, / म
अखाड़ा लड़ने जाए।
लोक-जीवन, लोक-संकित और
िकसान पर िवचार करते ए घाघ ने य क
जीवन और वभाव पर भी िलखा ह। सामंती
समाज और परवेश म य क थित िनन
तर क रही ह। उनक कहावत म यादातर
याँ उपहास क िशकार िदखती ह। चंचल
या चपल होना या अिधक खाना- ये सब घोड़ी
आिद क िलए गुण ह लेिकन य क िलए
अवगुण। कलह करने वाली य क घर म
हमेशा अभाव और दारय रहता ह। पनी क
सलाह लेने वाले पु?ष को भीख माँगना पड़ता
ह। उहने दु र य क भी लण
िगनाये ह। सुंदर ी को भी दुख का कारण
माना ह। जब इस तरह क कहावत क
पं य से गुज़रते ह तो प होता ह िक घाघ
उह परपरा का िनवाह करते नज़र आते ह
जो सामंती और िपतृसामक यवथा ने
य क िलए िनधा रत कर रखी थी।
डॉ. पांडय घाघ क रचना का
िववेचन-िवेषण, अथ-िनतारण इतने
िवतार और सू?म तरीक़ से करते ह िक आप
इससे गुज़रते ए महसूस करते ह िक ामीण
संकित का वाह आपम से होकर गुज़र रहा
ह। तकनीक और सोशल मीिडया क राते
लगातार शोर क साथ वै क संसार म पसरते
ए, घाघ और उसक बहाने थानीय
लोकजीवन से संपृ? होना, उसक संगीतमय
आवाज़ सुनना, सुक?नदायक ह। सय िय
पांडय इस सुक?न को घाघ और उनक
कहावत क मायम से उपलध कराते ह।
000
सय िय पाडय लोक सािहय क मम पाठक ह। अवल तो उनक अययन का ?
भ सािहय से लेकर समकालीन किवता तक पसरा आ ह लेिकन िपछले कछ वष से
उनक अिभ?िच लोक सािहय म ह। उनक स: कािशत पुतक 'घाघ और उनक कहावत'
उनक उसी अनुसंधान एवं लोक अिभ?िच का माण ह।
घाघ सहव सदी क किव ह। उनक जीवन ? क बार म बत यव थत जानकारयाँ
नह िमलती ह। वे मौिखक परपरा किव कह जाते ह। उनक याित का बड़ा आधार जनुित क
प म चिलत उनक लोक मुहावर एवं कहावत ह िजसका सार जन-जन तक फला आ ह।
अलग-अलग े और भाषा-भाषी लोग अपनी ?बान म घाघ क कहावत का उपयोग करते
ह। यह उनक अपार लोकियता को दशाता ह। उनक रचना क कई उेखनीय
िवशेषताएँ रही ह िजसम; क?िष धान रचनाएँ, अनुभव आधारत ान, नीितपरकता, कित और
पयावरण महवपूण ह। वे लोकभाषा क किव ह। उसे समृ करने म उेखनीय भूिमका
िनभाते ह। घाघ काय छद क प म चिलत दोह का उपयोग करते ह। इसम उनक
िसहतता ह।
अपनी इस अनुसंधनामक पुतक म सय िय पांडय घाघ क रचना को पाँच अयाय
म िवभािजत करते ह। िजसम कहावत क वप और महव क साथ घाघ क जम और उससे
संबंिधत िकवदंितय क संदभ म फले जाले को साफ करते ह। अय अयाय म वे घाघ क
कहावत का िववेचन िवेषण करते ह िजसम मुखता क?िष एवं खेती-बाड़ी आिद से जुड़
संग क ह। कछ कहावत वा य से भी जुड़ी ह, उसका भी उेख िकया गया ह। इस
पुतक क ख़ािसयत यह ह िक लेखक ने घाघ क कहावत का सामािजक-सांकितक-
मनोवैािनक िवेषण भी तुत िकया ह।
घाघ क कहावत हमार लोक-जीवन क संकित से उपजी ह और उसी लोक-जीवन क
पुन तुित उनक रचना म ह। वे लोकजीवन को और अिधक समृ करते ह। लोकजीवन
का मनोिवान वहाँ क संकित, परपरा और सयता क देन होती ह। क?िष धान संकित म
लोकजीवन का मनोिवान भी बत कछ उसी तज पर बना ह िजसक झलक घाघ क कहावत
म ह। िजसे परत दर परत िववेिचत-िवेिषत करने का काम सय िय पाँडय करते ह।
कहावत क वप पर िवचार करते ए डॉ. पांडय ने इस बात क तरफ इशारा िकया ह िक
इसका वप सावभौिमक होता ह। हालाँिक इस बात म िवरोधाभास तब सामने आता ह जब
इस का उेख होता ह िक जाित, वण या समुदाय िवशेष से जुड़ी कहावत उनक सामािजक
यवहार से जुड़ी होती ह।
कहावत क एक अय वप पर िवचार करते ए डॉ. पांडय िलखते ह िक इसम कथा क
िविशता शािमल होती ह। कहावत लोकजीवन से गहर संपृ? होती ह, ऐसे म वह लोकजीवन
क कथा को अपने भीतर समेट लेती ह। अलग-अलग े , बोिलय एवं ज़बान म यह
अलग प बदलकर अिभय तो होती ह लेिकन मूल कय जस का तस बना रहता ह। अथात
कथन म बदलाव या परवितत प िमलने क बाद भी अथ म बदलाव नह आता ह। उहने ?
चंद जैन ारा उ िखत एक मालवी कहावत- 'अपने मठ को कोई पतला नह कहता' क
हवाले से िदखाया ह िक इसी कहावत क िविभ? प अवधी, बुदेली, िनमाड़ी, िहदुतानी,
गुजराती आिद अनेक भाषा-बोिलय म चिलत ह।
कहावत पर िवचार करते ए इस बात पर भी यान जाना चािहए िक इसम िनजी व
सावजिनक मूय शािमल होते ह साथ ही िवडबनाएँ भी। ये नैितक मूय हमार सामािजक-
सांकितक-धािमक-नैितक संरचना से जुड़ होते ह। असर कहावत तीकामक या पक
प म अिभय होती ह। मसलन पु अवा करता हो और डाँटने पर भी न मानता हो, भाई
बँटवार क िलए रोज़ झगड़ता हो, पनी घर म कलह करती हो, पड़ोसी दु ह, राजा याय का
िवचार न करता हो तो समझना चािहए िक य , समाज और रा संकट म ह। घाघ एक पद
पुतक समीा
डॉ. राजकमार
एसोिसएट ोफसर
िहदी िवभाग, यामलाल कॉलेज,
िदी िविवालय िदी- 110032
मोबाइल- 9868326848
ईमेल- [email protected]
(आलोचना)
घाघ और उनक
कहावत
समीक : डॉ. राजकमार
लेखक : डॉ. सय िय पांडय
काशक : िबब-ितिबब
काशन, फगवाड़ा, पंजाब

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 202561 60 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 2025
आकषण, सभी कछ बत अपना सा,
वातिवकता क क़रीब ह। लेिखका ने
वेलटाइन ड पर लड़िकय क मानिसक ं
को ब?बी उकरा ह। लाल सुख़ गुलाब, ेम
का तीक ह, मन म मचलती भावनाएँ ह,
लेिकन संकार ऐसे ह िक भावना को
य नह कर सकते। पुरानी पीढ़ी क यही
संकार थे।
'गोडन गल' पढ़ कर िदल धक से रह
गया। छोटी बी ने िशिका को ?श करने
क िलये सुंदर बाल कटवा िदये ..! सच म
ब क िलए िशक इतने ही िय व
आइिडयल होते ह। उनक गुड-बुक म रहने
क िलए वे कछ सभी करने को तैयार रहते ह।
कहानी म तीक का व उपमा का भी
बेहतरीन योग ह। जैसे- चोटी पीछ करना
यानी, सभा का िवसजन करना।
'परमा' कहानी हमार िदल क क़रीब
ह। इस कहानी म लेिखका ने जो देखा ह,
अनुभव िकया ह वो हमने भी देखा ह। गुना
शहर क कहानी ह जहाँ हम भी 20 साल रह
ह। वहाँ क लाख क चूड़ी क बात करना,
चूिड़य को बाबा का बनाते ए िदखाना, जैसे
हमारी मृितय को खँगालना हो गया। हमने
वयं बाबा जैसे कारीगर को चूड़ी बनाते देखा
ह व छोटी चूिड़य क दुकान को बड़ी
कॉमेिटक शॉप म बदलते देखा ह। बाबा का
दुखी होना पाठक को भी दुखी कर देता ह।
पूरी कहानी हमार रीित रवाज व संकार क
इद िगद घूमती ह।
'?ेह बंधन' कहानी म परवार मे
राबंधन योहार का महव दशाया ह। संयु?
परवार, रत तथा भारतीय संकित क
महव को बत ?बसूरती से दशाया ह।
'मावठा' कहानी क आरभ म ऐसी ौढ़
मिहला क चचा करना जो कित क
वछद वातावरण म वयं से वयं क पहचान
कराती, बारश क बूँद क संग मती करती,
घर क बोिझल वातावरण से दूर खुले
वातावरण म साँस लेते ए, गिपयाते, उमु
प से हसते-िखलिखलाते ए जीवन म ?शी
पा रही ह, वयं को अिभय कर पा रही ह,
पढ़ कर मन को सुक?न देता ह। ये माहौल
वतमान म आम ह लेिकन पहले देखने म कम
आता था। लेिखका ने बात ही बात म
भारतीय रीित रवाज, मायका, ससुराल,
िववाह म चिलत रम, पहरावनी इयािद
सभी कछ समेट िलया ह।
िवशेषता यह िक कहानी क मायम से
यास िकया गया ह िक पुरानी करीितय व
िववाह म देन लेन क था को तोड़ा जाए।
लेिखका ने ऐसी मिहलाएँ जो आज भी
मायक से उमीद रखती ह, उन पर कटा
िकया ह- "मायक क सौग़ात से सीढ़ी चढ़
कर ससुराल म ऊचा थान पाती मिहला
क समाज म कमी नह ह।"
इसी कहानी म, मान-दान क नाम पर
मंडप क नीचे साड़ी लेकर आना िपता को
पसंद नह, इस बात पर यु तक हो जाता ह।
हमार िवचार से यह ग़लत ह। यह हमारी
संकित ह, रीित रवाज ह। िपता, बेटी-दामाद
को िवशेष अवसर पर समान वप कछ
देते ह, जो वे दे सकते ह, इससे वे आम
संतु का अनुभव करते ह। हमेशा वे इसे भार
नह मानते ह। वैसे एक तरह से बात ठीक भी
ह िक ऐसी परपरा क थान कम ही देना
चािहये जो भार लगने लगे, रत को खोखला
कर द। सािहय का काम ही समाज क
करीितय को उजागर कर उनक िव
आवाज़ उठाना ह। इसम कोई शक नह िक
आधुिनक समाज वथ परपरा को बढ़ावा
िदया ह। अिमता जी क कहािनयाँ इस िदशा म
साथक यास ह।
'ाथना' कहानी म बेटी क पसंद-नापसंद
का यान न रखते ए िववाह कर देना व बाद
म बेटी का यवहार बदल जाना, िपता क
िव हो जाना, सामाय-सी बात ह, लेिकन
ताई का ईर से ाथना करना िक बेटी िनधी
जहाँ भी रह ?श रह, परवार म एकता व
आपसी सौहा क भावना दशाता ह।
सभी कहािनय क भाषा सहज व सरल
ह। भाषा का योग नह ह। कहािनय
म रोचकता भरपूर ह, इसिलए पाठक एक ही
बैठक म पुतक क सभी कहािनय को पढ़
कर आनंिदत हो जाते ह। आपक कहािनय म
भाव प मज़बूत ह। कहानी म तुत िवषय
वतु व घटना से पाठक अपने को जोड़
लेता ह। पुतक क शैली कह कापिनक
तीत होती ह तो कह वातिवक धरातल से
जुड़ी ह।
"थक यू यारा" कहानी, कह-कह
??? ह, व कहानी क उेय को एक दम
से समझने म किठनाई तीत होती ह।
सामाय प से सभी कहािनय म पा
क य व, उनक भूिमका व संबंध का
िवतृत व उिचत वणन िकया ह।
आपक कहािनय म रत क गाढ़ता
भी ह तो दोती का िवास भी झलकता ह।
कल िमलाकर अिमता जी क पुतक म वह
सब ह जो एक आम पाठक पढ़ना चाहता ह।
आपक कहािनय म सामािजक समया
को उकरा ह तो समाधान भी ह। आपसी रत
को सराहा ह तो संयु? परवार म िमलने वाला
सहयोग भी दशाया ह। गु-िशय क संबंध
पर भी ज़ोर िदया ह। कल िमलाकर थ यू यारा
एक पठनीय व संहणीय पुतक ह। संदेश
धान, थम कहानी संह क काशन पर
अिमता िवेदी को बत-बत बधाई व
शुभकामनाएँ।
000
अिमता िवेदी जी क पुतक 'थ यू यारा' एक कहानी संह ह। यिद देखा जाए िक कहानी
या ह, तो हमार आसपास घिटत घटनाएँ हमार म तक म घर करती जाती ह, अपना एक
भाव डालती ह। वही बीज प म हमार अंदर रहता ह जो िवशेष पर थित म कहानी प म
िलखा जाता ह। कहानी क परभाषा क अनुसार "कहानी ग क ऐसी िवधा ह िजसम म कछ
घटना का म होता ह। यह सच या कापिनक हो सकती ह। इसम परवेश, ं और कथा
का िमक िवकास होता ह।"
अिमता िवेदी जी क कहािनय म भी उहने उनक जीवन म, परवेश म घिटत घटना
को सँजोया ह, बुना ह, गुना ह, व मंथन िकया ह। तपात अपने िवचार को सुगिठत तरीक़ से
कहानी प म तुत िकया ह। ये कह कापिनक लगती ह तो कह वातिवकता क क़रीब।
पाठक को कह भावुक कर देती ह तो कह ?शी क अनुभूित करवाती ह।
"थ यू यारा" पुतक क िवशेषता यह ह िक इसम यिद ाइमरी का क ब क कहानी
ह, तो युवा होते बे, नौकरी पेशा युवक-युवती, घर क बुग, ताई- चाची, दोत तक सभी
कहािनय क पा ह। सभी पा क मनोभाव को ?बसूरती से उकरा गया ह। यिद आपने रत
पर कहानी िलखी ह तो समाज क करीितय पर भी क़लम चलायी ह।
'कटघरा' कहानी बाल मनोिवान पर आधारत ह तो मावठा कहानी समाज क करीितय व
संकित पर आधारत ह।
सुख़ गुलाब कहानी म युवितय क मन म िछपे ेम क चाहत या भावना का बड़ ही
?बसूरती से यांकन िकया ह व इन भावना को दशाने का मायम वैलटाइन ड चुना ह।
'दूवा' कहानी म आपने यह बताने का यास िकया ह िक ी म चाह िकतनी भी
क़ािबिलयत हो लेिकन घर-परवार पहले ह। चाह वो िकतनी भी पढ़ी िलखी हो, लेिकन अपने
मनोभाव को दरिकनार कर क वह पर थितय से सामंजय बैठाती ह। कहानी क अंत म
ोफ़सर का ?िचरा से कहना- "शद शात ह आप जो बोलते ह और सोचते ह वो ाड म
जाता ह और पूरा होकर वापस आता ह। शद म श ह लेिकन जब आप ऐसा कछ कहते ह
जो पूरा नह करते ह तो शद अपनी श खो देते ह। ाड भी आप पर िवास नह करता
ह। लेिकन जब आप वयं क अनुसार काय करते ह तो शद श बढ़ाते ह। इस हद तक िक
हांड वयं शद क अनुप बदलता ह।" ऐसे वाय, ?िचका जैसी कई य को
आमिवास से भर देते ह। यह समाज को एक नई िदशा दान करते ह, एक सुंदर संदेश देते
ह।
इसी कहानी म आपने सूय अत होने व उदय होने क समय क बत सुंदर तुलना क ह।
दोन म समानता बतायी ह, दोन समय रग भी एक ही होते ह व संदेश भी एक सा होता ह। "सूय
अपनी खरता व ताप को समेट अत होता ह अगली सुबह लािलमा फलाता ह उसी तेज़ी से
उगता ह।"
इन शद क समावेश से यह कहानी े व आमिवास से भरी ई तीत होती ह। अथात
जीवन म िनराशा क कोई जगह नह होनी चािहये। साथ ही अपनी संकित व धम म िवास
जगाती, युवती म आमिवास को दोबारा जीवंत करती, परवार व वयं क शौक म सामंजय
थािपत करने का सुंदर संदेश देती ई कहानी ह।
'सुख गुलाब' कहानी म युवा होती लड़िकय क मती, भावनाएँ, िवपरीत िलंग क ित
पुतक समीा
शेफािलका ीवातव
एच आई जी- 657,
अरिवंद िवहार
बागमुगिलया, भोपाल 462043 म
मोबाइल - 8085479090
ईमेल- [email protected]
(कहानी संह)
थक यू यारा
समीक : शेफािलका ीवातव
लेखक : अिमता िवेदी
काशक : िशवना काशन, साट
कॉ लैस बेसमट, सीहोर, म
466001, फ़ोन-07562405545
मोबाइल- +91-9806162184
ईमेल- [email protected]
लेखक से अनुरोध
सभी समाननीय लेखक से संपादक मंडल
का िवन अनुरोध ह िक पिका म काशन
हतु कवल अपनी मौिलक एवं अकािशत
रचनाएँ ही भेज। वह रचनाएँ जो सोशल
मीिडया क िकसी मंच जैसे फ़सबुक,
हासएप आिद पर कािशत हो चुक ह,
उह पिका म काशन हतु नह भेज। इस
कार क रचना को हम कािशत नह
करगे। साथ ही यह भी देखा गया ह िक कछ
रचनाकार अपनी पूव म अय िकसी पिका म
कािशत रचनाएँ भी िवभोम-वर म काशन
क िलए भेज रह ह, इस कार क रचनाएँ न
भेज। अपनी मौिलक तथा अकािशत रचनाएँ
ही पिका म काशन क िलए भेज। आपका
सहयोग हम पिका को और बेहतर बनाने म
मदद करगा, धयवाद।
-सादर संपादक मंडल

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 202561 60 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 2025
आकषण, सभी कछ बत अपना सा,
वातिवकता क क़रीब ह। लेिखका ने
वेलटाइन ड पर लड़िकय क मानिसक ं
को ब?बी उकरा ह। लाल सुख़ गुलाब, ेम
का तीक ह, मन म मचलती भावनाएँ ह,
लेिकन संकार ऐसे ह िक भावना को
य नह कर सकते। पुरानी पीढ़ी क यही
संकार थे।
'गोडन गल' पढ़ कर िदल धक से रह
गया। छोटी बी ने िशिका को ?श करने
क िलये सुंदर बाल कटवा िदये ..! सच म
ब क िलए िशक इतने ही िय व
आइिडयल होते ह। उनक गुड-बुक म रहने
क िलए वे कछ सभी करने को तैयार रहते ह।
कहानी म तीक का व उपमा का भी
बेहतरीन योग ह। जैसे- चोटी पीछ करना
यानी, सभा का िवसजन करना।
'परमा' कहानी हमार िदल क क़रीब
ह। इस कहानी म लेिखका ने जो देखा ह,
अनुभव िकया ह वो हमने भी देखा ह। गुना
शहर क कहानी ह जहाँ हम भी 20 साल रह
ह। वहाँ क लाख क चूड़ी क बात करना,
चूिड़य को बाबा का बनाते ए िदखाना, जैसे
हमारी मृितय को खँगालना हो गया। हमने
वयं बाबा जैसे कारीगर को चूड़ी बनाते देखा
ह व छोटी चूिड़य क दुकान को बड़ी
कॉमेिटक शॉप म बदलते देखा ह। बाबा का
दुखी होना पाठक को भी दुखी कर देता ह।
पूरी कहानी हमार रीित रवाज व संकार क
इद िगद घूमती ह।
'?ेह बंधन' कहानी म परवार मे
राबंधन योहार का महव दशाया ह। संयु?
परवार, रत तथा भारतीय संकित क
महव को बत ?बसूरती से दशाया ह।
'मावठा' कहानी क आरभ म ऐसी ौढ़
मिहला क चचा करना जो कित क
वछद वातावरण म वयं से वयं क पहचान
कराती, बारश क बूँद क संग मती करती,
घर क बोिझल वातावरण से दूर खुले
वातावरण म साँस लेते ए, गिपयाते, उमु
प से हसते-िखलिखलाते ए जीवन म ?शी
पा रही ह, वयं को अिभय कर पा रही ह,
पढ़ कर मन को सुक?न देता ह। ये माहौल
वतमान म आम ह लेिकन पहले देखने म कम
आता था। लेिखका ने बात ही बात म
भारतीय रीित रवाज, मायका, ससुराल,
िववाह म चिलत रम, पहरावनी इयािद
सभी कछ समेट िलया ह।
िवशेषता यह िक कहानी क मायम से
यास िकया गया ह िक पुरानी करीितय व
िववाह म देन लेन क था को तोड़ा जाए।
लेिखका ने ऐसी मिहलाएँ जो आज भी
मायक से उमीद रखती ह, उन पर कटा
िकया ह- "मायक क सौग़ात से सीढ़ी चढ़
कर ससुराल म ऊचा थान पाती मिहला
क समाज म कमी नह ह।"
इसी कहानी म, मान-दान क नाम पर
मंडप क नीचे साड़ी लेकर आना िपता को
पसंद नह, इस बात पर यु तक हो जाता ह।
हमार िवचार से यह ग़लत ह। यह हमारी
संकित ह, रीित रवाज ह। िपता, बेटी-दामाद
को िवशेष अवसर पर समान वप कछ
देते ह, जो वे दे सकते ह, इससे वे आम
संतु का अनुभव करते ह। हमेशा वे इसे भार
नह मानते ह। वैसे एक तरह से बात ठीक भी
ह िक ऐसी परपरा क थान कम ही देना
चािहये जो भार लगने लगे, रत को खोखला
कर द। सािहय का काम ही समाज क
करीितय को उजागर कर उनक िव
आवाज़ उठाना ह। इसम कोई शक नह िक
आधुिनक समाज वथ परपरा को बढ़ावा
िदया ह। अिमता जी क कहािनयाँ इस िदशा म
साथक यास ह।
'ाथना' कहानी म बेटी क पसंद-नापसंद
का यान न रखते ए िववाह कर देना व बाद
म बेटी का यवहार बदल जाना, िपता क
िव हो जाना, सामाय-सी बात ह, लेिकन
ताई का ईर से ाथना करना िक बेटी िनधी
जहाँ भी रह ?श रह, परवार म एकता व
आपसी सौहा क भावना दशाता ह।
सभी कहािनय क भाषा सहज व सरल
ह। भाषा का योग नह ह। कहािनय
म रोचकता भरपूर ह, इसिलए पाठक एक ही
बैठक म पुतक क सभी कहािनय को पढ़
कर आनंिदत हो जाते ह। आपक कहािनय म
भाव प मज़बूत ह। कहानी म तुत िवषय
वतु व घटना से पाठक अपने को जोड़
लेता ह। पुतक क शैली कह कापिनक
तीत होती ह तो कह वातिवक धरातल से
जुड़ी ह।
"थक यू यारा" कहानी, कह-कह
??? ह, व कहानी क उेय को एक दम
से समझने म किठनाई तीत होती ह।
सामाय प से सभी कहािनय म पा
क य व, उनक भूिमका व संबंध का
िवतृत व उिचत वणन िकया ह।
आपक कहािनय म रत क गाढ़ता
भी ह तो दोती का िवास भी झलकता ह।
कल िमलाकर अिमता जी क पुतक म वह
सब ह जो एक आम पाठक पढ़ना चाहता ह।
आपक कहािनय म सामािजक समया
को उकरा ह तो समाधान भी ह। आपसी रत
को सराहा ह तो संयु? परवार म िमलने वाला
सहयोग भी दशाया ह। गु-िशय क संबंध
पर भी ज़ोर िदया ह। कल िमलाकर थ यू यारा
एक पठनीय व संहणीय पुतक ह। संदेश
धान, थम कहानी संह क काशन पर
अिमता िवेदी को बत-बत बधाई व
शुभकामनाएँ।
000
अिमता िवेदी जी क पुतक 'थ यू यारा' एक कहानी संह ह। यिद देखा जाए िक कहानी
या ह, तो हमार आसपास घिटत घटनाएँ हमार म तक म घर करती जाती ह, अपना एक
भाव डालती ह। वही बीज प म हमार अंदर रहता ह जो िवशेष पर थित म कहानी प म
िलखा जाता ह। कहानी क परभाषा क अनुसार "कहानी ग क ऐसी िवधा ह िजसम म कछ
घटना का म होता ह। यह सच या कापिनक हो सकती ह। इसम परवेश, ं और कथा
का िमक िवकास होता ह।"
अिमता िवेदी जी क कहािनय म भी उहने उनक जीवन म, परवेश म घिटत घटना
को सँजोया ह, बुना ह, गुना ह, व मंथन िकया ह। तपात अपने िवचार को सुगिठत तरीक़ से
कहानी प म तुत िकया ह। ये कह कापिनक लगती ह तो कह वातिवकता क क़रीब।
पाठक को कह भावुक कर देती ह तो कह ?शी क अनुभूित करवाती ह।
"थ यू यारा" पुतक क िवशेषता यह ह िक इसम यिद ाइमरी का क ब क कहानी
ह, तो युवा होते बे, नौकरी पेशा युवक-युवती, घर क बुग, ताई- चाची, दोत तक सभी
कहािनय क पा ह। सभी पा क मनोभाव को ?बसूरती से उकरा गया ह। यिद आपने रत
पर कहानी िलखी ह तो समाज क करीितय पर भी क़लम चलायी ह।
'कटघरा' कहानी बाल मनोिवान पर आधारत ह तो मावठा कहानी समाज क करीितय व
संकित पर आधारत ह।
सुख़ गुलाब कहानी म युवितय क मन म िछपे ेम क चाहत या भावना का बड़ ही
?बसूरती से यांकन िकया ह व इन भावना को दशाने का मायम वैलटाइन ड चुना ह।
'दूवा' कहानी म आपने यह बताने का यास िकया ह िक ी म चाह िकतनी भी
क़ािबिलयत हो लेिकन घर-परवार पहले ह। चाह वो िकतनी भी पढ़ी िलखी हो, लेिकन अपने
मनोभाव को दरिकनार कर क वह पर थितय से सामंजय बैठाती ह। कहानी क अंत म
ोफ़सर का ?िचरा से कहना- "शद शात ह आप जो बोलते ह और सोचते ह वो ाड म
जाता ह और पूरा होकर वापस आता ह। शद म श ह लेिकन जब आप ऐसा कछ कहते ह
जो पूरा नह करते ह तो शद अपनी श खो देते ह। ाड भी आप पर िवास नह करता
ह। लेिकन जब आप वयं क अनुसार काय करते ह तो शद श बढ़ाते ह। इस हद तक िक
हांड वयं शद क अनुप बदलता ह।" ऐसे वाय, ?िचका जैसी कई य को
आमिवास से भर देते ह। यह समाज को एक नई िदशा दान करते ह, एक सुंदर संदेश देते
ह।
इसी कहानी म आपने सूय अत होने व उदय होने क समय क बत सुंदर तुलना क ह।
दोन म समानता बतायी ह, दोन समय रग भी एक ही होते ह व संदेश भी एक सा होता ह। "सूय
अपनी खरता व ताप को समेट अत होता ह अगली सुबह लािलमा फलाता ह उसी तेज़ी से
उगता ह।"
इन शद क समावेश से यह कहानी े व आमिवास से भरी ई तीत होती ह। अथात
जीवन म िनराशा क कोई जगह नह होनी चािहये। साथ ही अपनी संकित व धम म िवास
जगाती, युवती म आमिवास को दोबारा जीवंत करती, परवार व वयं क शौक म सामंजय
थािपत करने का सुंदर संदेश देती ई कहानी ह।
'सुख गुलाब' कहानी म युवा होती लड़िकय क मती, भावनाएँ, िवपरीत िलंग क ित
पुतक समीा
शेफािलका ीवातव
एच आई जी- 657,
अरिवंद िवहार
बागमुगिलया, भोपाल 462043 म
मोबाइल - 8085479090
ईमेल- [email protected]
(कहानी संह)
थक यू यारा
समीक : शेफािलका ीवातव
लेखक : अिमता िवेदी
काशक : िशवना काशन, साट
कॉ लैस बेसमट, सीहोर, म
466001, फ़ोन-07562405545
मोबाइल- +91-9806162184
ईमेल- [email protected]
लेखक से अनुरोध
सभी समाननीय लेखक से संपादक मंडल
का िवन अनुरोध ह िक पिका म काशन
हतु कवल अपनी मौिलक एवं अकािशत
रचनाएँ ही भेज। वह रचनाएँ जो सोशल
मीिडया क िकसी मंच जैसे फ़सबुक,
हासएप आिद पर कािशत हो चुक ह,
उह पिका म काशन हतु नह भेज। इस
कार क रचना को हम कािशत नह
करगे। साथ ही यह भी देखा गया ह िक कछ
रचनाकार अपनी पूव म अय िकसी पिका म
कािशत रचनाएँ भी िवभोम-वर म काशन
क िलए भेज रह ह, इस कार क रचनाएँ न
भेज। अपनी मौिलक तथा अकािशत रचनाएँ
ही पिका म काशन क िलए भेज। आपका
सहयोग हम पिका को और बेहतर बनाने म
मदद करगा, धयवाद।
-सादर संपादक मंडल

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 202563 62 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 2025
"बाँसलोई म बहर ऋतु" सुशील कमार ारा संपािदत, िहदी किवता म पयावरण िवषय
पर क त पुतक ह। इसमे िहदी किवय क पयावरणीय किवता का िवश िवेषण ह
तथा इसी िवषय पर सपादक क किवताएँ भी ह।पयावरण संबंधी काय पर सािहय फटकर
प म तो य-त उपलध ह िकतु, पुतक प म 'बाँसलोई म बहर ऋतु' म वह संभवत:
पहली बार आया ह। उनसठ किवय क किवता का गहन अययन कर उनमे अिभय
मनोभाव का िवेषण करना मसाय काय ह जो संपादक ने कशलता पूवक िकया। उहने
न कवल किवता म पयावरणीय िचंता को रखांिकत िकया ह अिपतु, येक किव क
काय- सृजन म उसक य गत िविशता को पहचान कर उनका भी उेख िकया ह।
थम खड 'समकालीन किवता म पयावरण संचेतना' म मा समकालीन किवता नह ह।
यह मश: आिदकाल, भ काल, रीितकाल म पयावरण संबंधी सािहय क याा ह जो
अंतत: व मान काल म आकर समा? होती ह। व मान काल म लेखक ने क वरनारायण,
मंगलेश डबराल, नरश ससेना, शभु बादल, राज नागदेव, नर पुंडरीक, व नल
ीवातव, किवता वाच?वी, िदिवक रमेश, शैल चौहान, भाकर चौधरी, अशोक िसंह,
िनमला पुतुल, भरत साद जैसे वर किवय क साथ अय किवय क किवता का भी गहन
अययन िकया ह। इस खड म पयावरण दूिषत होने पर मानव जाित को िकन-िकन
समया से जूझना पड़ सकता ह इसे िहू िचंतक युवाल नोहा हरारी क मायम से लेखक
िवतार क साथ बताते ह। यहाँ जलवायु परव न और 'होमोसेिपयंस' ारा िवकास क अंधी
दौड़ म पयावरण िवन करने और वयं क अलावा अय ािणय क अिधकार को नकार देने
आिद का उेख ह। संपादक ने अपने पयावरणीय िचंतन को िहदी किवता तक ही सीिमत नह
रखा। वे िहदी ग़ज़ल क संसार म भी गए। यहाँ उहने रामकमार 'क?षक' और डी एम िम क
पयावरण संबंधी ग़ज़ल पर िवतार से िलखा ह। इसक अितर संेप म राहत इदौरी, बशीर
ब, कफ़ आजमी, परवीन कमार 'अक', वषा िसंह, कतील िशफई, अिन िसहा,
क णकमार जापित आिद अनेक ग़जलकार क पं य को उृत िकया ह।
उर खड म संपादक क पयावरण संबंधी किवताएँ चार सग म समायोिजत ह। 'पहाड़ म
सुरग', 'लौट िफर हरयाली बन', 'दरया का मिसया', 'हरया गा रहा तराई म' सग क इन
शीषक म ही पयावरण क िविभ? आयाम समािहत ह। ये किवताएँ सहज शद म अयंत गहरी
भावनाएँ सहजे ए ह। पहाड़ क बेटी क आ पुकार देख – "ह वनदेवी! पुकार मेरी सुनना/
महाजन से मेरी देह बचाना/ पहाड़ क बेटी / मेरी आ िवनती/ सुन माँ/ओ. . . सुन ना . . (पृ
141) । यहाँ पहाड़ का दुख देख – "पहाड़ क नन काया पर / पतझड़ का संगीत / बज रहा ह/
पहाड़ी लड़िकयाँ/ कोई िवरह गीत गुनगुना रही ह/ गीत म पहाड़ का दुख/ समा रहा ह (पृ
152)। सुशील कमार क किवता म पहाड़, जंगल और उनम रहने वाले आिदवािसय का
दद पूरी िश?त से उभरता ह- "लेिकन जब पेड़ िगरते ह/ तो िसफ़ लकड़ी नह िगरती/ िगरता ह
एक भरी पूरी आिदम संकित का वजूद/ िगरता ह आिदवािसय का वािभमान/ िगरत ह उनक
उमीद/ उसका लय और वर टटता ह (पृ 164) । इन किवता म आिदवािसय का असहाय
िवलाप मा नह ह, उनक उपीड़न क िव सुगबुगाती िवोह क िचंगारयाँ भी ह। सुशील
कमार इन किवता म अपेित अिभय क िलए उदू शद क योग से भी परहज़ नह
करते। तृतीय सग म पानी क िविभ प ह। चतुथ सग म 'लोबल िवलेज' बनती जा रह
आिदवािसय क ब तय क बािशंद का वत होता जीवन धड़क रहा ह।
गहन भावना और अिभय कौशल यु? इन किवता से गुज़रते ए उनक िवतृत
समीा क ज़रत महसूस होती ह। इन किवता म सादगी, लय, संवेदना और भी बत कछ
ह। यह पुतक सािहय म पयावरण पर शोध कर रह शोधािथय क िलए उपयोगी होगी। एक
पठनीय और संहनीय पुतक।
000
पुतक समीा
(किवता संकलन)
बाँसलोई म बहर
ऋतु
समीक : राज नागदेव
लेखक : सुशील कमार
काशक : िहद युम, नई िदी
राज नागदेव
डी क 2, 166/18,
दािनशक ज
कोलार रोड, भोपाल 462042 म
मोबाइल- 8989569036
ईमेल- [email protected]
सािहय अकादमी, मयदेश संकित परषद संकित िवभाग, भोपाल क सहयोग से
कािशत डॉ. दीपा मनीष यास का लघुकथा संह - "आईना हसता ह " म कल 82 लघुकथाएँ
िविभ? िवषय पर िलखी गई ह। लघुकथा सािहय क एक ऐसी िवधा ह जो सािहय उपासक
को नई ऊजा दान करती ह।
िविभ? िवषय िचंतन, िवचार और रचनाशील भाव को जमीनी तर पर तलाश कर उनमे
गहराई से डालकर 'आईना हसता ह' संह सँजोया ह सेवा ही धम क ेरणादायक भर एवं
कई लघुकथा क संग से आईना हसता ह क साथकता िस होती ह। कहते ह िक आईना कभी
झूठ नह बोलता वह सय का दपण होता ह।
आईना हसता क ज़रए वैचारक मंथन को सुखद चेतना क ा होती ह। नेतृव मता,
वयं क ेरणा से काय कर, िमलनसारता, िवनता, आशावादी, शंसा सबक सामने,
आलोचना अकले म, वयं िनयम पालन म वयं कठोर व और क िलए थोड़ा नरम, कमठ
होना, अपना िवकप तैयार करना क िबंदु पर आईना हसता ह क ज़रए लघुकथा क
मायम से िवतार से काश डालकर साहस और आमिनभर जैसे गुण से मन म िवास क
िवचार क योत विलत क ह।
डॉ. दीपा मनीष यास क बुआ सास पुपलता पाठक का इतज़ार करने का कथन काफ
भािवत करता ह। मालवी मीठी बोली क यही तो िवशेषता ह - थारी िकताब कदे आएगी ?हार
थारी िलिखयो अछो लगे। बुआ सास क इछा पूण ई उनक आशीवाद का ही ये फल ह।
भूिमका क अंतगत डॉ. योग नाथ शु? (पूव ाचाय एवं सािहयकार) ने बड़ी अछी बात
िलखी- यिद हम जीवन, समाज, रा क िवशाल परवेश से अलग होकर लेखन कर रह, तो हम
सािहय का अभी नह ा कर पाएँगे। सािहय मनुय क िलए अलौिकक आनंद क सृ
करता ह। वह आशीवचन क तहत डॉ. पुषोम दुबे ने -एक अथसप शीषक भी लघुकथा
को लघुकथा कहलाने क परभाषा म रग पैदा करता ह। यही सब आईना हसता म पढ़ने को
िमला।
ायः आज का हर लघुकथाकार सामािजक िवसंगितय को परखने म दॄ संप? हो चुका
ह। यही वजह िक आधुिनक लघुकथाएँ आलोचनामक सहमित क हक़दार भी होती जा रही ह।
बत ही गहराई क बात कही ह। डॉ. दीपा मनीष यास क लघुकथा म तिनक झाँक तो
िज?ी पा क कई लघुकथा म पा क भूिमका ह।
आईना हसता ह क बानगी देिखये - िजी ने देखा टट-फट सामान क बीच एक टटा
आईना रखा ह उसने झपट कर उसे उठाया और दौड़कर झपड़ी म प ची। रानू क सामने नाता
रखा, और ?द को आईने म देख इतराने लगी। आईने म नाता करती ई रानू को भी देख रही
थी। आज उसे आईने म ?द क और छटक रानू क िशयाँ िदख रही थी। वह रानू से बोली,
'हो र, ये आईना तो हसता भी ह र"। इस कार क भावना से ओतोत कई लघुकथाएँ संह
म समािहत ह।
मरणोपरांत, नया बता, वापसी, साँवली सलोनी कठपुतली, मजबूरी आिद कई लघुकथाएँ
एक से बढ़कर एक ह। िशा दान करने वाली लघुकथाएँ संदेश परक रह। डॉ. दीपा मनीष
यास क कपनाशीलता, शद क गहराई से जीवन क कट सय का िचण, अय लघु
कथा म भी ब?बी से िकया ह और समानजनक जीने क ेरणा ी प को दी ह।
आईना हसता ह लघुकथा संह सािहय जग म अपनी पहचान अवय थािपत करगा व
सािहय उपासक, िफम जग, टी वी सीरयल म िवषय वतु क माँग क शौकन क िलए ये
लघुकथाएँ मददगार सािबत हगी।
82 लघुकथा का संह सािहय उपासक क िदल म अपनी पैठ अवय जमाएगा।
हािदक बधाई।
000
पुतक समीा
(लघुकथा संह)
आईना हसता ह
समीक : संजय वमा ' '
लेखक : डॉ. दीपा मनीष यास
काशक : िशवना काशन, साट
कॉ लैस बेसमट, सीहोर, म
466001, फ़ोन-07562405545
मोबाइल- +91-9806162184
ईमेल- [email protected]
संजय वमा ' '
125, बिलदानी भगत िसंह माग
मनावर िजला धार (म ) 454446

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 202563 62 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 2025
"बाँसलोई म बहर ऋतु" सुशील कमार ारा संपािदत, िहदी किवता म पयावरण िवषय
पर क त पुतक ह। इसमे िहदी किवय क पयावरणीय किवता का िवश िवेषण ह
तथा इसी िवषय पर सपादक क किवताएँ भी ह।पयावरण संबंधी काय पर सािहय फटकर
प म तो य-त उपलध ह िकतु, पुतक प म 'बाँसलोई म बहर ऋतु' म वह संभवत:
पहली बार आया ह। उनसठ किवय क किवता का गहन अययन कर उनमे अिभय
मनोभाव का िवेषण करना मसाय काय ह जो संपादक ने कशलता पूवक िकया। उहने
न कवल किवता म पयावरणीय िचंता को रखांिकत िकया ह अिपतु, येक किव क
काय- सृजन म उसक य गत िविशता को पहचान कर उनका भी उेख िकया ह।
थम खड 'समकालीन किवता म पयावरण संचेतना' म मा समकालीन किवता नह ह।
यह मश: आिदकाल, भ काल, रीितकाल म पयावरण संबंधी सािहय क याा ह जो
अंतत: व मान काल म आकर समा? होती ह। व मान काल म लेखक ने क वरनारायण,
मंगलेश डबराल, नरश ससेना, शभु बादल, राज नागदेव, नर पुंडरीक, व नल
ीवातव, किवता वाच?वी, िदिवक रमेश, शैल चौहान, भाकर चौधरी, अशोक िसंह,
िनमला पुतुल, भरत साद जैसे वर किवय क साथ अय किवय क किवता का भी गहन
अययन िकया ह। इस खड म पयावरण दूिषत होने पर मानव जाित को िकन-िकन
समया से जूझना पड़ सकता ह इसे िहू िचंतक युवाल नोहा हरारी क मायम से लेखक
िवतार क साथ बताते ह। यहाँ जलवायु परव न और 'होमोसेिपयंस' ारा िवकास क अंधी
दौड़ म पयावरण िवन करने और वयं क अलावा अय ािणय क अिधकार को नकार देने
आिद का उेख ह। संपादक ने अपने पयावरणीय िचंतन को िहदी किवता तक ही सीिमत नह
रखा। वे िहदी ग़ज़ल क संसार म भी गए। यहाँ उहने रामकमार 'क?षक' और डी एम िम क
पयावरण संबंधी ग़ज़ल पर िवतार से िलखा ह। इसक अितर संेप म राहत इदौरी, बशीर
ब, कफ़ आजमी, परवीन कमार 'अक', वषा िसंह, कतील िशफई, अिन िसहा,
क णकमार जापित आिद अनेक ग़जलकार क पं य को उृत िकया ह।
उर खड म संपादक क पयावरण संबंधी किवताएँ चार सग म समायोिजत ह। 'पहाड़ म
सुरग', 'लौट िफर हरयाली बन', 'दरया का मिसया', 'हरया गा रहा तराई म' सग क इन
शीषक म ही पयावरण क िविभ? आयाम समािहत ह। ये किवताएँ सहज शद म अयंत गहरी
भावनाएँ सहजे ए ह। पहाड़ क बेटी क आ पुकार देख – "ह वनदेवी! पुकार मेरी सुनना/
महाजन से मेरी देह बचाना/ पहाड़ क बेटी / मेरी आ िवनती/ सुन माँ/ओ. . . सुन ना . . (पृ
141) । यहाँ पहाड़ का दुख देख – "पहाड़ क नन काया पर / पतझड़ का संगीत / बज रहा ह/
पहाड़ी लड़िकयाँ/ कोई िवरह गीत गुनगुना रही ह/ गीत म पहाड़ का दुख/ समा रहा ह (पृ
152)। सुशील कमार क किवता म पहाड़, जंगल और उनम रहने वाले आिदवािसय का
दद पूरी िश?त से उभरता ह- "लेिकन जब पेड़ िगरते ह/ तो िसफ़ लकड़ी नह िगरती/ िगरता ह
एक भरी पूरी आिदम संकित का वजूद/ िगरता ह आिदवािसय का वािभमान/ िगरत ह उनक
उमीद/ उसका लय और वर टटता ह (पृ 164) । इन किवता म आिदवािसय का असहाय
िवलाप मा नह ह, उनक उपीड़न क िव सुगबुगाती िवोह क िचंगारयाँ भी ह। सुशील
कमार इन किवता म अपेित अिभय क िलए उदू शद क योग से भी परहज़ नह
करते। तृतीय सग म पानी क िविभ प ह। चतुथ सग म 'लोबल िवलेज' बनती जा रह
आिदवािसय क ब तय क बािशंद का वत होता जीवन धड़क रहा ह।
गहन भावना और अिभय कौशल यु? इन किवता से गुज़रते ए उनक िवतृत
समीा क ज़रत महसूस होती ह। इन किवता म सादगी, लय, संवेदना और भी बत कछ
ह। यह पुतक सािहय म पयावरण पर शोध कर रह शोधािथय क िलए उपयोगी होगी। एक
पठनीय और संहनीय पुतक।
000
पुतक समीा
(किवता संकलन)
बाँसलोई म बहर
ऋतु
समीक : राज नागदेव
लेखक : सुशील कमार
काशक : िहद युम, नई िदी
राज नागदेव
डी क 2, 166/18,
दािनशक ज
कोलार रोड, भोपाल 462042 म
मोबाइल- 8989569036
ईमेल- [email protected]
सािहय अकादमी, मयदेश संकित परषद संकित िवभाग, भोपाल क सहयोग से
कािशत डॉ. दीपा मनीष यास का लघुकथा संह - "आईना हसता ह " म कल 82 लघुकथाएँ
िविभ? िवषय पर िलखी गई ह। लघुकथा सािहय क एक ऐसी िवधा ह जो सािहय उपासक
को नई ऊजा दान करती ह।
िविभ? िवषय िचंतन, िवचार और रचनाशील भाव को जमीनी तर पर तलाश कर उनमे
गहराई से डालकर 'आईना हसता ह' संह सँजोया ह सेवा ही धम क ेरणादायक भर एवं
कई लघुकथा क संग से आईना हसता ह क साथकता िस होती ह। कहते ह िक आईना कभी
झूठ नह बोलता वह सय का दपण होता ह।
आईना हसता क ज़रए वैचारक मंथन को सुखद चेतना क ा होती ह। नेतृव मता,
वयं क ेरणा से काय कर, िमलनसारता, िवनता, आशावादी, शंसा सबक सामने,
आलोचना अकले म, वयं िनयम पालन म वयं कठोर व और क िलए थोड़ा नरम, कमठ
होना, अपना िवकप तैयार करना क िबंदु पर आईना हसता ह क ज़रए लघुकथा क
मायम से िवतार से काश डालकर साहस और आमिनभर जैसे गुण से मन म िवास क
िवचार क योत विलत क ह।
डॉ. दीपा मनीष यास क बुआ सास पुपलता पाठक का इतज़ार करने का कथन काफ
भािवत करता ह। मालवी मीठी बोली क यही तो िवशेषता ह - थारी िकताब कदे आएगी ?हार
थारी िलिखयो अछो लगे। बुआ सास क इछा पूण ई उनक आशीवाद का ही ये फल ह।
भूिमका क अंतगत डॉ. योग नाथ शु? (पूव ाचाय एवं सािहयकार) ने बड़ी अछी बात
िलखी- यिद हम जीवन, समाज, रा क िवशाल परवेश से अलग होकर लेखन कर रह, तो हम
सािहय का अभी नह ा कर पाएँगे। सािहय मनुय क िलए अलौिकक आनंद क सृ
करता ह। वह आशीवचन क तहत डॉ. पुषोम दुबे ने -एक अथसप शीषक भी लघुकथा
को लघुकथा कहलाने क परभाषा म रग पैदा करता ह। यही सब आईना हसता म पढ़ने को
िमला।
ायः आज का हर लघुकथाकार सामािजक िवसंगितय को परखने म दॄ संप? हो चुका
ह। यही वजह िक आधुिनक लघुकथाएँ आलोचनामक सहमित क हक़दार भी होती जा रही ह।
बत ही गहराई क बात कही ह। डॉ. दीपा मनीष यास क लघुकथा म तिनक झाँक तो
िज?ी पा क कई लघुकथा म पा क भूिमका ह।
आईना हसता ह क बानगी देिखये - िजी ने देखा टट-फट सामान क बीच एक टटा
आईना रखा ह उसने झपट कर उसे उठाया और दौड़कर झपड़ी म प ची। रानू क सामने नाता
रखा, और ?द को आईने म देख इतराने लगी। आईने म नाता करती ई रानू को भी देख रही
थी। आज उसे आईने म ?द क और छटक रानू क िशयाँ िदख रही थी। वह रानू से बोली,
'हो र, ये आईना तो हसता भी ह र"। इस कार क भावना से ओतोत कई लघुकथाएँ संह
म समािहत ह।
मरणोपरांत, नया बता, वापसी, साँवली सलोनी कठपुतली, मजबूरी आिद कई लघुकथाएँ
एक से बढ़कर एक ह। िशा दान करने वाली लघुकथाएँ संदेश परक रह। डॉ. दीपा मनीष
यास क कपनाशीलता, शद क गहराई से जीवन क कट सय का िचण, अय लघु
कथा म भी ब?बी से िकया ह और समानजनक जीने क ेरणा ी प को दी ह।
आईना हसता ह लघुकथा संह सािहय जग म अपनी पहचान अवय थािपत करगा व
सािहय उपासक, िफम जग, टी वी सीरयल म िवषय वतु क माँग क शौकन क िलए ये
लघुकथाएँ मददगार सािबत हगी।
82 लघुकथा का संह सािहय उपासक क िदल म अपनी पैठ अवय जमाएगा।
हािदक बधाई।
000
पुतक समीा
(लघुकथा संह)
आईना हसता ह
समीक : संजय वमा ' '
लेखक : डॉ. दीपा मनीष यास
काशक : िशवना काशन, साट
कॉ लैस बेसमट, सीहोर, म
466001, फ़ोन-07562405545
मोबाइल- +91-9806162184
ईमेल- [email protected]
संजय वमा ' '
125, बिलदानी भगत िसंह माग
मनावर िजला धार (म ) 454446

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 202565 64 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 2025
करोिलना) म िनवास कर रही ह, उनका
सािहय न कवल वासी अनुभव को वर
देता ह, ब क भारतीय जीवन s??,
िवशेषकर नारी को वै क संदभ म
तुत करता ह। (2) उनक रचनाएँ हम यह
सोचने पर िववश करती ह िक " ी का घर
कहाँ ह?", "अपनी भाषा और पहचान या
ह?" और "एक ी को अपने अ तव क
िलए िकतना संघष करना पड़ता ह?" उनक
रचना म एक गंभीर सामािजक चेतना,
नारीवादी कोण (िकतु यह बत
सकारामक ह िकसी अितवादी छोर पर नह
जाता) तथा भारतीय सांकितक मूय क
गूँज भी सुनाई देती ह। "वे कवल लेिखका
नह, एक सामािजक कायकता और िहदी
भाषा क सिय चारक भी ह।" (3) डॉ.
कमल िकशोर गोयनका का मत ह िक
"वासी िहदी लेखन म सुधा ओम ढगरा
जैसी रचनाकार ने भारतीय िचंतनधारा को
िव मंच पर प चाया ह। उनक सािहय म
यह कोण िवशेष प से उजागर होता ह
िक भारतीयता कवल भूगोल नह, ब क
िवचार और भावना क वह भूिम ह जो
लेिखका क चेतना म गहराई से रची-बसी ह।
उनक रचनाएँ भारतीय जीवन दशन को
आधुिनक वासी संदभ म तुत करती ह
और यह दशाती ह िक भारतीय मूय िकतने
सावकािलक और सावभौिमक हो सकते
ह।"(4)
सुधा ओम ढगरा का लेखन वासी
जीवन क िविभ? पहलु को समिपत ह।
उनक पा भारतीय और पााय दोन ही
पृभूिम से आते ह लेिकन जो भारतीय चर
ह वे िवदेश म अपने परवार और सांकितक
पहचान को बनाए रखने क िलए संघष करते
िदखाई देते ह। उनक कहािनय म वासी
भारतीय क आम-खोज, पहचान,
परवारक रते और भारतीय संकित क
रा करने क िचंता मुख प से िदखाई देती
ह। इसक साथ-साथ वे यह भी िदखाती ह िक
िकस तरह आधुिनकता और प मी
जीवनशैली भारतीय परवार और समाज क
परपरागत ढाँचे को चुनौती दे रही ह। उनक
कहानी 'वसूली' क सुलभा भी भारतीय
संकार क ित आथा रखती ह। वह परवार
क साथ िमलकर दूसर क ित ेम और
क?णा का भाव रखती ह, तभी वह िवदेश म
रह रह हर क परशानी समझकर उसको हल
करने म सहायता देती ह। िवदेश म पैदा होने
क बाद भी भारतीय संकार म कोई कमी नह
ह। हर का यह कथन इसक पु करता ह
"वह यह ज़र जान गया, सुलभा का जम
यहाँ का ह पर भारतीय लड़िकय से भी
अिधक भारतीय ह वह।" (5)
ाचीन भारतीय सािहय म जीवन-
मूलतः धम-कम, संकार, सह-अ तव
और आमबोध पर आधारत रही ह और सुधा
ओम ढगरा इस जीवन-दशन को समकालीन
संदभ म पुनप रभािषत करती ह। उनक
रचना म प प से िदखाई देता ह िक
शा ीय ंथ म िनिहत नैितक मूय,
सामािजक संतुलन और मानवतावादी
कोण आज भी आधुिनक समाज क िलए
ासंिगक ह। उनक िलए शा ीय ंथ म
विणत जीवन-िसांत कवल धािमक
आयान नह, ब क गहन सामािजक और
सांकितक िशाएँ ह, िजह नए युग क भाषा
म समझकर अपनाया जाना चािहए।
सुधा ओम ढगरा क रचना म भारतीय
जीवन- क गूँज वासी संदभ म भी
सुनाई देती ह, जहाँ वे यह िदखाती ह िक
आधुिनक जीवन क भाग-दौड़,
उपभो?ावाद और सांकितक संघष क बीच
जीवन मूय क ज़मीन पर खड़ रहना ही
संतुिलत जीवन का माग ह। इस तरह वे
भारतीय परपरा और आधुिनकता क बीच एक
सेतु का िनमाण करती ह, जो पाठक को अपने
मूल से जुड़ने और वै क सोच क साथ आगे
बढ़ने क ेरणा देता ह। वे अपनी रचना म
कवल भारतीय ही नह ब क अमेरक
संकित का भी बार-बार उेख करती ह
लेिकन वे वहाँ या खोजती ह? रॉबट और
डनीस क यवहार से अिभभूत सोनल क शद
देिखए- "उस रात मने भारतीय दशन को
साकार होते देखा। ईर वयं इसान क मदद
करने नह आता; ब क अपने बंदे भेजता ह।
उसी ने भेजे थे। फ़रत क तरह मेर जीवन म
आए। इस देश म मेरा जीवन सँवारने म उनका
बत बड़ा योगदान ह। उह क वजह से म
वयं को तलाश पाई। एक बात मने महसूस
क, अमेरकस म सेवाभाव क?ट-क?ट कर भरा
होता ह।"(6)
मनुय का जम, िवकास, समाजीकरण
एवं संकितकरण परवार म ही होता ह।
परवार क िवतार से ही समाज और रा का
िनमाण होता ह। "परवार साधारणतः
पित–पनी और ब क समूह को कहते ह,
िकतु दुिनया क अिधकांश भाग म वह
स मिलत वास वाले र–संबंध का समूह
ह, िजसम िववाह और दक-था ारा
वीकत य भी स मिलत होते ह। सभी
समाज म ब का जम और पालन-पोषण
परवार म ही होता ह।"(7) बे क जम और
परवरश क साथ उसे संकार और
आचार–िवचार दान करने म परवार का ही
योगदान रहता ह। इसक मायम से ही समाज
क सांकितक िवरासत एक पीढ़ी से दूसरी
पीढ़ी तक प चती ह। य को सामािजक
मयादा बत कछ परवार से ही ा होती ह।
िकतु परवार क टटने क कारण भी परवार क
भीतर ही पैदा होते ह।
भारतीय संकित म परवार का अयंत
महव ह। यह कवल सामािजक इकाई नह,
ब क बालक क सवागीण िवकास क पहली
पाठशाला ह। परवार से ही बालक को
संकार, अनुशासन, सेवा और परपरा का
ान िमलता ह। माता-िपता उसका पालन-
पोषण करते ह और दादा-दादी, नाना-नानी
अपने अनुभव व लोककथा से उसे जीवन
क मूय िसखाते ह। संयु? परवार णाली म
बालक सुरा, ?ेह और सहयोग का अनुभव
करता ह। इसक िवपरीत पााय देश क
थित िभ? ह। वहाँ परवार क संथा
लगभग टट चुक ह और येक य
वतं इकाई क प म जीवन जीता ह।
नौकरीपेशा माता-िपता अपनी िनजी जीवन-
शैली और मनोरजन म इतने यत रहते ह िक
ब क िलए उनक पास समय नह होता।
अंजली भारती िलखती ह- "यूरोपीय देश म
सािहय कवल कपना या मनोरजन का मायम नह ह, ब क यह मानव जीवन क
गहराइय म उतरकर उसक समया, संवेदना और मूय का दपण तुत करता ह और
इस ? ?? म लेखक क अपनी जीवन िनिहत रहती ह। जीवन से आशय ह जीवन
को देखने, समझने और यायाियत करने का कोण। सािहयकार अपनी जीवन s?? क
मायम से समाज, संकित, धम, राजनीित, नैितकता और मानवीय संबंध क याया करता
ह। ाचीन काल से लेकर आधुिनक युग तक सािहयकार ने अपने-अपने युग क समया,
संभावना, आशा, संघष, सपन, िवडबना और परवतन क आकांा को अपनी-
अपनी से अिभय िकया ह। तुलसीदास क रामचरतमानस म आदश जीवन और धम
क िमलती ह, तो कबीर क दोह म सामािजक करीितय क िव िवोही कोण
िदखाई देता ह। ेमचंद ने अपने सािहय म िकसान, मज़दूर और िनन वग क समया को
उकरते ए यथाथवादी जीवन s?? तुत क। आधुिनक सािहय म जीवन और भी
अिधक यापक और जिटल हो गई ह। मानव अ तव, आमिचंतन, अकलापन, संघष, िवोह
और अ तवहीनता जैसे िवषय पर सािहयकार ने अपनी डाली ह।
जीवन का प कवल लेखक क वैचारक समझ पर ही नह, उसक अनुभव,
सामािजक परवेश, िशा और संवेदनशीलता पर भी िनभर करता ह। सािहयकार क
िजतनी गहन और यापक होती ह, उसका सािहय उतना ही भावशाली और कालजयी बनता
ह। सािहय म जीवन s?? कवल िवषयवतु क तुित नह ब क जीवन क ित एक गहरी
समझ, अनुभव और कोण ह, जो पाठक को न कवल िवचारशील बनाता ह, ब क उसे
अपने जीवन को नए िसर से देखने क ेरणा भी देता ह। यही सािहय क साथकता और उसक
सामािजक िज़मेदारी ह।
भारतीय सािहय म जीवन- को िविवध और गहन प म अिभय िकया गया ह।
चाह वह धम और संकित हो, परवार और समाज हो अथवा अयाम और नैितक मूय क
थायी धारा। यह जीवन- कवल भारतीय भूगोल तक सीिमत नह ब क वासी भारतीय
सािहयकार क लेखन म भी उतनी ही जीवंतता और ितबता क साथ परलित होती ह।
उनक अनुभव म भारत क जड़ और िव क यापकता दोन का अ?ुत समवय िदखाई
देता ह। सुधा ओम ढगरा इसका एक जीवंत उदाहरण ह; उनक सािहय म भारतीय परपरा
क गूँज और नए परवेश म सांकितक पहचान को बनाए रखने क िजजीिवषा प प से
झलकती ह। इस सदभ म डॉ. नीरजा शमा का कथन उेखनीय ह- "सुधा ओम ढगरा वासी
लेखक म एक महवपूण थान रखती ह यिक वे अपने सािहय म भारतीयता को बत
सश? तरीक़ से तुत करती ह। उनका लेखन दो संकितय क बीच संतुलन बनाने का यास
करता ह। वे वासी जीवन क जिटलता को बड़ी गहराई से और मानवीय कोण से
तुत करती ह।" (1)
सुधा ओम ढगरा का लेखन वासी जीवन क अनुभव, भारतीय समाज क पारपरक मूय
और आधुिनकता क बीच क संघष पर आधारत ह। वह एक ित त वासी िहदी लेिखका
ही नह ब क उनक सािहय म भारतीय जीवन दशन क गूँज प सुनाई देती ह। सुधा ओम
ढगरा एक िवचारशील लेखक, संवेदनशील कवियी और गितशील सोच रखने वाली
आलोचक भी ह; िजनका जीवन अनुभव, िवशेषकर अमेरका म वास क दौरान, उनक
सािहय म गहराई से समािहत ह। वे मूलतः पंजाब से ह लेिकन लंबे समय से अमेरका (उरी
शोध आलेख
(शोध प)
सुधा ओम ढगरा क
सािहय म भारतीय
जीवन
1.शािलनी, शोधाथ, भाषा िवभाग,
वामी िववेकानंद सुभारती
िविवालय, मेरठ
2. डॉ. सीमा शमा, सह आचाय
(िहदी) एवं अय भाषा िवभाग,
वामी िववेकानंद सुभारती
िविवालय, मेरठ
शािलनी
शोधाथ, भाषा िवभाग, वामी िववेकानंद
सुभारती िविवालय, मेरठ
मोबाइल- 8375878793
ईमेल- [email protected]
डॉ. सीमा शमा
सह आचाय (िहदी) एवं अय भाषा
िवभाग, वामी िववेकानंद सुभारती
िविवालय, मेरठ
मोबाइल- 9457034271
ईमेल- [email protected]

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 202565 64 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 2025
करोिलना) म िनवास कर रही ह, उनका
सािहय न कवल वासी अनुभव को वर
देता ह, ब क भारतीय जीवन s??,
िवशेषकर नारी को वै क संदभ म
तुत करता ह। (2) उनक रचनाएँ हम यह
सोचने पर िववश करती ह िक " ी का घर
कहाँ ह?", "अपनी भाषा और पहचान या
ह?" और "एक ी को अपने अ तव क
िलए िकतना संघष करना पड़ता ह?" उनक
रचना म एक गंभीर सामािजक चेतना,
नारीवादी कोण (िकतु यह बत
सकारामक ह िकसी अितवादी छोर पर नह
जाता) तथा भारतीय सांकितक मूय क
गूँज भी सुनाई देती ह। "वे कवल लेिखका
नह, एक सामािजक कायकता और िहदी
भाषा क सिय चारक भी ह।" (3) डॉ.
कमल िकशोर गोयनका का मत ह िक
"वासी िहदी लेखन म सुधा ओम ढगरा
जैसी रचनाकार ने भारतीय िचंतनधारा को
िव मंच पर प चाया ह। उनक सािहय म
यह कोण िवशेष प से उजागर होता ह
िक भारतीयता कवल भूगोल नह, ब क
िवचार और भावना क वह भूिम ह जो
लेिखका क चेतना म गहराई से रची-बसी ह।
उनक रचनाएँ भारतीय जीवन दशन को
आधुिनक वासी संदभ म तुत करती ह
और यह दशाती ह िक भारतीय मूय िकतने
सावकािलक और सावभौिमक हो सकते
ह।"(4)
सुधा ओम ढगरा का लेखन वासी
जीवन क िविभ? पहलु को समिपत ह।
उनक पा भारतीय और पााय दोन ही
पृभूिम से आते ह लेिकन जो भारतीय चर
ह वे िवदेश म अपने परवार और सांकितक
पहचान को बनाए रखने क िलए संघष करते
िदखाई देते ह। उनक कहािनय म वासी
भारतीय क आम-खोज, पहचान,
परवारक रते और भारतीय संकित क
रा करने क िचंता मुख प से िदखाई देती
ह। इसक साथ-साथ वे यह भी िदखाती ह िक
िकस तरह आधुिनकता और प मी
जीवनशैली भारतीय परवार और समाज क
परपरागत ढाँचे को चुनौती दे रही ह। उनक
कहानी 'वसूली' क सुलभा भी भारतीय
संकार क ित आथा रखती ह। वह परवार
क साथ िमलकर दूसर क ित ेम और
क?णा का भाव रखती ह, तभी वह िवदेश म
रह रह हर क परशानी समझकर उसको हल
करने म सहायता देती ह। िवदेश म पैदा होने
क बाद भी भारतीय संकार म कोई कमी नह
ह। हर का यह कथन इसक पु करता ह
"वह यह ज़र जान गया, सुलभा का जम
यहाँ का ह पर भारतीय लड़िकय से भी
अिधक भारतीय ह वह।" (5)
ाचीन भारतीय सािहय म जीवन-
मूलतः धम-कम, संकार, सह-अ तव
और आमबोध पर आधारत रही ह और सुधा
ओम ढगरा इस जीवन-दशन को समकालीन
संदभ म पुनप रभािषत करती ह। उनक
रचना म प प से िदखाई देता ह िक
शा ीय ंथ म िनिहत नैितक मूय,
सामािजक संतुलन और मानवतावादी
कोण आज भी आधुिनक समाज क िलए
ासंिगक ह। उनक िलए शा ीय ंथ म
विणत जीवन-िसांत कवल धािमक
आयान नह, ब क गहन सामािजक और
सांकितक िशाएँ ह, िजह नए युग क भाषा
म समझकर अपनाया जाना चािहए।
सुधा ओम ढगरा क रचना म भारतीय
जीवन- क गूँज वासी संदभ म भी
सुनाई देती ह, जहाँ वे यह िदखाती ह िक
आधुिनक जीवन क भाग-दौड़,
उपभो?ावाद और सांकितक संघष क बीच
जीवन मूय क ज़मीन पर खड़ रहना ही
संतुिलत जीवन का माग ह। इस तरह वे
भारतीय परपरा और आधुिनकता क बीच एक
सेतु का िनमाण करती ह, जो पाठक को अपने
मूल से जुड़ने और वै क सोच क साथ आगे
बढ़ने क ेरणा देता ह। वे अपनी रचना म
कवल भारतीय ही नह ब क अमेरक
संकित का भी बार-बार उेख करती ह
लेिकन वे वहाँ या खोजती ह? रॉबट और
डनीस क यवहार से अिभभूत सोनल क शद
देिखए- "उस रात मने भारतीय दशन को
साकार होते देखा। ईर वयं इसान क मदद
करने नह आता; ब क अपने बंदे भेजता ह।
उसी ने भेजे थे। फ़रत क तरह मेर जीवन म
आए। इस देश म मेरा जीवन सँवारने म उनका
बत बड़ा योगदान ह। उह क वजह से म
वयं को तलाश पाई। एक बात मने महसूस
क, अमेरकस म सेवाभाव क?ट-क?ट कर भरा
होता ह।"(6)
मनुय का जम, िवकास, समाजीकरण
एवं संकितकरण परवार म ही होता ह।
परवार क िवतार से ही समाज और रा का
िनमाण होता ह। "परवार साधारणतः
पित–पनी और ब क समूह को कहते ह,
िकतु दुिनया क अिधकांश भाग म वह
स मिलत वास वाले र–संबंध का समूह
ह, िजसम िववाह और दक-था ारा
वीकत य भी स मिलत होते ह। सभी
समाज म ब का जम और पालन-पोषण
परवार म ही होता ह।"(7) बे क जम और
परवरश क साथ उसे संकार और
आचार–िवचार दान करने म परवार का ही
योगदान रहता ह। इसक मायम से ही समाज
क सांकितक िवरासत एक पीढ़ी से दूसरी
पीढ़ी तक प चती ह। य को सामािजक
मयादा बत कछ परवार से ही ा होती ह।
िकतु परवार क टटने क कारण भी परवार क
भीतर ही पैदा होते ह।
भारतीय संकित म परवार का अयंत
महव ह। यह कवल सामािजक इकाई नह,
ब क बालक क सवागीण िवकास क पहली
पाठशाला ह। परवार से ही बालक को
संकार, अनुशासन, सेवा और परपरा का
ान िमलता ह। माता-िपता उसका पालन-
पोषण करते ह और दादा-दादी, नाना-नानी
अपने अनुभव व लोककथा से उसे जीवन
क मूय िसखाते ह। संयु? परवार णाली म
बालक सुरा, ?ेह और सहयोग का अनुभव
करता ह। इसक िवपरीत पााय देश क
थित िभ? ह। वहाँ परवार क संथा
लगभग टट चुक ह और येक य
वतं इकाई क प म जीवन जीता ह।
नौकरीपेशा माता-िपता अपनी िनजी जीवन-
शैली और मनोरजन म इतने यत रहते ह िक
ब क िलए उनक पास समय नह होता।
अंजली भारती िलखती ह- "यूरोपीय देश म
सािहय कवल कपना या मनोरजन का मायम नह ह, ब क यह मानव जीवन क
गहराइय म उतरकर उसक समया, संवेदना और मूय का दपण तुत करता ह और
इस ? ?? म लेखक क अपनी जीवन िनिहत रहती ह। जीवन से आशय ह जीवन
को देखने, समझने और यायाियत करने का कोण। सािहयकार अपनी जीवन s?? क
मायम से समाज, संकित, धम, राजनीित, नैितकता और मानवीय संबंध क याया करता
ह। ाचीन काल से लेकर आधुिनक युग तक सािहयकार ने अपने-अपने युग क समया,
संभावना, आशा, संघष, सपन, िवडबना और परवतन क आकांा को अपनी-
अपनी से अिभय िकया ह। तुलसीदास क रामचरतमानस म आदश जीवन और धम
क िमलती ह, तो कबीर क दोह म सामािजक करीितय क िव िवोही कोण
िदखाई देता ह। ेमचंद ने अपने सािहय म िकसान, मज़दूर और िनन वग क समया को
उकरते ए यथाथवादी जीवन s?? तुत क। आधुिनक सािहय म जीवन और भी
अिधक यापक और जिटल हो गई ह। मानव अ तव, आमिचंतन, अकलापन, संघष, िवोह
और अ तवहीनता जैसे िवषय पर सािहयकार ने अपनी डाली ह।
जीवन का प कवल लेखक क वैचारक समझ पर ही नह, उसक अनुभव,
सामािजक परवेश, िशा और संवेदनशीलता पर भी िनभर करता ह। सािहयकार क
िजतनी गहन और यापक होती ह, उसका सािहय उतना ही भावशाली और कालजयी बनता
ह। सािहय म जीवन s?? कवल िवषयवतु क तुित नह ब क जीवन क ित एक गहरी
समझ, अनुभव और कोण ह, जो पाठक को न कवल िवचारशील बनाता ह, ब क उसे
अपने जीवन को नए िसर से देखने क ेरणा भी देता ह। यही सािहय क साथकता और उसक
सामािजक िज़मेदारी ह।
भारतीय सािहय म जीवन- को िविवध और गहन प म अिभय िकया गया ह।
चाह वह धम और संकित हो, परवार और समाज हो अथवा अयाम और नैितक मूय क
थायी धारा। यह जीवन- कवल भारतीय भूगोल तक सीिमत नह ब क वासी भारतीय
सािहयकार क लेखन म भी उतनी ही जीवंतता और ितबता क साथ परलित होती ह।
उनक अनुभव म भारत क जड़ और िव क यापकता दोन का अ?ुत समवय िदखाई
देता ह। सुधा ओम ढगरा इसका एक जीवंत उदाहरण ह; उनक सािहय म भारतीय परपरा
क गूँज और नए परवेश म सांकितक पहचान को बनाए रखने क िजजीिवषा प प से
झलकती ह। इस सदभ म डॉ. नीरजा शमा का कथन उेखनीय ह- "सुधा ओम ढगरा वासी
लेखक म एक महवपूण थान रखती ह यिक वे अपने सािहय म भारतीयता को बत
सश? तरीक़ से तुत करती ह। उनका लेखन दो संकितय क बीच संतुलन बनाने का यास
करता ह। वे वासी जीवन क जिटलता को बड़ी गहराई से और मानवीय कोण से
तुत करती ह।" (1)
सुधा ओम ढगरा का लेखन वासी जीवन क अनुभव, भारतीय समाज क पारपरक मूय
और आधुिनकता क बीच क संघष पर आधारत ह। वह एक ित त वासी िहदी लेिखका
ही नह ब क उनक सािहय म भारतीय जीवन दशन क गूँज प सुनाई देती ह। सुधा ओम
ढगरा एक िवचारशील लेखक, संवेदनशील कवियी और गितशील सोच रखने वाली
आलोचक भी ह; िजनका जीवन अनुभव, िवशेषकर अमेरका म वास क दौरान, उनक
सािहय म गहराई से समािहत ह। वे मूलतः पंजाब से ह लेिकन लंबे समय से अमेरका (उरी
शोध आलेख
(शोध प)
सुधा ओम ढगरा क
सािहय म भारतीय
जीवन
1.शािलनी, शोधाथ, भाषा िवभाग,
वामी िववेकानंद सुभारती
िविवालय, मेरठ
2. डॉ. सीमा शमा, सह आचाय
(िहदी) एवं अय भाषा िवभाग,
वामी िववेकानंद सुभारती
िविवालय, मेरठ
शािलनी
शोधाथ, भाषा िवभाग, वामी िववेकानंद
सुभारती िविवालय, मेरठ
मोबाइल- 8375878793
ईमेल- [email protected]
डॉ. सीमा शमा
सह आचाय (िहदी) एवं अय भाषा
िवभाग, वामी िववेकानंद सुभारती
िविवालय, मेरठ
मोबाइल- 9457034271
ईमेल- [email protected]

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 202567 66 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 2025
िमलते ह। वह कह शोिषत िदखाई देती ह तो
कह आमिनभर प म भी सामने आती ह।
कभी-कभी वह शोषक क भूिमका म भी िदख
जाती ह और अनेक बार समाज क
अयवथा एवं अयाचार क िव
अपनी सश आवाज़ भी उठाती ह। भारतीय
परपरा म ी को देवी क प म मायता ??
ह। "य नाय तु पूयते रमते त देवताः"
क आधार पर ी को पूजनीय माना गया ह।
घर, परवार और समाज क संरचना म नारी
का महवपूण थान ह।
भारतीय सािहय और संकित म ी को
कभी ा, कभी यशोधरा, कभी सती,
सािवी, सीता से लेकर ककयी और ौपदी
तक क प म िचित िकया गया ह। इन प
क मायम से ी को परपरागत बेिड़य को
तोड़ने और समाज क िलए नए मानदंड
थािपत करने क ेरणा दी जाती रही ह।
िनसंदेह, ी क थित म समय-समय पर
परवतन और िवकास भी िदखाई देता ह, िकतु
दूसरी ओर परवार और समाज ने हर युग म
उसे बंधन म जकड़ रखा। वह वतं प से
न तो अपने िलए िनणय ले सकती थी और न
ही अपनी इछानुसार जीवन जी सकती थी।
मनुमृित का िस ोक- "िपता रित
कौमार, भता रित यौवने, र त थिवरो
पुा, न ी वात यमहित" आज तक ी
क थित पर लागू होता तीत होता ह।
आज भी भारत म िलंगभेद क समया
गहरी ह। समाज म बेटा पाने क ती आकांा
ह यिक यह माना जाता ह िक बेटा ही वंश
को आगे बढ़ाता ह। यिद बेटी का जम हो जाए
तो कई बार उसक साथ दुयवहार तक िकया
जाता ह। सुधा ओम ढगरा ने 'ऐसा भी होता ह'
कहानी म एक ऐसे िवषय को उठाया ह िजस
पर हम या तो यान नह देते या देना नह
चाहते। समाज म दहज़ क समया पर ब
बात होती ह लेिकन लेिखका ने समीय
कहानी म इससे ठीक िवपरीत एक िवषय को
उठाया ह। कहानी पामक शैली म िलखी
गई ह। इसक मुय पा दलजीत कौर क
मायम से लेखका ने उन सभी य क
पीड़ा को शद िदये ह, जो अपना 'मायका'
(एक ऐसा घर जो सामायतया उनका होता ही
नह) बचाने क िलए अपनी सामय से
अिधक यास करती ह लेिकन अंततः उह
िनराशा ही हाथ लगती ह। कहानी भले िवदेश
म बसी बेटी को लेकर बुनी गई ह लेिकन यह
समया सावदेिशक कही जा सकती ह।
कहानी म उस मानिसकता पर हार ह, जहाँ
सारा यार-दुलार तो बेट क िहसे आता ह
लेिकन सारी अपेाएँ बेिटय से। कथा
नाियका 'दलजीत कौर' क मायम से
लेिखका ने न िकया ह- "आप सबक िदल
म मेरा िसफ इतना ही थान ह िक म आपक
अपेाएँ पूरी करने क िलए बनी । आप
लोग क जीवन और िदल म मेरा और कोई
महव नह।"(13) कहानी म एक सहज न
ह िक ब क जमने क एक जैसी ? ??
क बाद; धरती पर आते ही भेदभाव कसे शु
हो सकता ह? उससे भी बड़ा न िक एक माँ
कसे भेदभाव कर सकती ह? "बीजी, जैसे
आप वीर को सीने से लगाती ह, कभी आपने
अपनी धीय (बेिटय) को भी सीने से लगाया।
य नह लगाया? हम तो आपक ही ह,
आपक जात क। बाउजी और चाचाजी ऐसा
कर तो म मान सकती , वे पुष ह, वीर
उनक जात क ह, पुष वृि ऐसी ही होती
ह। अफ़सोस तो इसी बात का ह, ी ही
अपनी जात क साथ गारी करती ह।"(14)
'दलजीत असर महसूस करती थी, हमार घर
म किड़याँ आँगन क फल नह बस ऐंवई पैदा
ई खरपतवार ह। सारा यार, दुलार और सारी
सुख-सुिवधाएँ तो व वीर जी और छोट वीर
क िलए ह।"
'सुधा ओम ढगरा' क एक अय कहानी
'लड़क थी वह' भी इसी थित का मािमक
िचण ह। िजससे िदसंबर क कड़ाक क
सद क कपड़ म िलपटी नवजात िशशु को
कड़ क ढर पर फक िदया जाता ह। इस नह
बािलका का परयाग करने वाली भी एक ी
ही ह "डॉटर साहब इसे दखे, ठीक ह न
यह?" उसक मधुर पर उदास वाणी ने मेरी
सोच क सागर क तरग को िवराम िदया..
अपने शाल म लपेटकर नवजात िशशु उसने
पापा क आगे बढ़ाया.. पापा ने गठरी क तरह
िलपटा बा खोला, लड़क थी वह।"(15)
ी का जम होने से पहले ही ूण हया करने
क यास और जम क बाद कई तरह क
अयाय सामाय बात ह यहाँ तक उसे मरने क
िलए फक भी िदया जाता ह।
वतमान समय म िजतनी चचा य क
शोषण पर होती ह, उतनी ही आवयकता
पुष क थित को समझने क भी ह। समाज
म यह धारणा गहराई से बैठी ई ह िक पुष
का शोषण नह हो सकता, िकतु अययन और
रपोट बताती ह िक पुष भी मानिसक,
शारीरक और सामािजक उपीड़न क िशकार
होते ह। िचंतन का िवषय यह ह िक पुष
अपनी पीड़ा को य नह कर पाता, यिक
परपरागत सोच और मानिसकता क कारण
हमार मन म यह धारणा गहराई से बैठी ई ह
िक पुष का शोषण कसे हो सकता ह? िकतु
यह भी सय ह िक कमज़ोर पुष का शोषण
श शाली पुष और य—दोन क ारा
ही िकया जाता रहा ह। उनसे गुलामी करवाई
गई, मानिसक और शारीरक शोषण भी कई
अलग-अलग प म देखा जाता रहा ह।
मातृसामक यवथा म पुष क यौन
शोषण होने क उदाहरण भी िमलते ह।
महानगर म पुष वेयावृि का बढ़ना भी
इसी समया का ोतक ह।
य क सुरा क िलए बनाए गए कई
कानून का दुपयोग भी पुष क शोषण का
कारण बनता ह। वतमान कई ऐसी घटनाएँ
घिटत ई ह िजनक ब चचा ई कह िचंता
क प म तो कह मज़ाक क प म। कह
आकड़ क बात क गई िक पुष शोषण तो
य क अनुपात म नगय ह। यह बात सही
हो सकती ह िक इस तरह क घटनाएँ बत
कम ह तब भी इह उिचत नही कहा जा
सकता। आदश थित तो यह ह िक न ी पर
अयाचार हो न ही पुष क साथ। यही कारण
ह िक सुधा ओम ढगरा अपनी रचन म इस
िवषय को खरता क साथ उठती रही ह।
उनक कहािनयाँ 'पासवड' और 'वह
कोई और थी' इसका सश उदाहरण ह।
अिभनंदन और सपना तथा साकत और तवी
क मायम से उहने िदखाया ह िक िकस
परवार क संथा समा ाय ह। वहाँ माता-
िपता बे को जम देने क बाद च, बालगृह
या हॉटल म भेज देते ह, यिक ब क
उप थित उनक वतंता और आनंद म
बाधक होती ह।"(8) इस थित म ब को
उिचत मागदशन और संरण नह िमल पाता
तथा वे िदशाहीन हो जाते ह।
सुधा ओम ढगरा क कहानी 'सूरज य
िनकलता ह' म इसी वातिवकता को उजागर
िकया गया ह। कहानी क नाियका टरी हर वष
सरकार से वेफयर सहायता पाने क िलए
एक बा जम देती ह। उसक यारह बे ह,
िकतु उसे न तो उनक भिवय क िचंता ह, न
ही उनक आचरण क। सुधा ओम ढगरा
िलखती ह- "टरी नामक मिहला को माँ कहना
उिचत नह। वह कवल बे पैदा करने वाली
मशीन थी। उसे ममता का अथ नह पता था,
ब क ित उरदाियव का बोध नह था।
बस वह सरकारी सहायता पाने क िलए बार-
बार ब को जम देती रही।"(9)
प ह िक जहाँ भारतीय परवार ब
को ेम, संरण और जीवन-मूय दान
करते ह, वह पााय देश म पारवारक
िवघटन और अिभभावकय लापरवाही ब
को अछ-बुर क समझ से दूर कर देती ह।
'उषा ियंवदा' क कहानी 'वापसी' म
पारवारक िवघटन क थित िचित ई ह,
जो सुधा जी क कहानी 'कौन-सी ज़मीन
अपनी' म भी परलित होती ह। 'वापसी'
कहानी म परवार क टटने और संबंध म
खापन िदखाई देता ह। गजाधर बाबू रटायर
होकर अपने घर आराम और आनंद क
िज़ंदगी िबताने आते ह, तो उह घर म सबक
उपेा का सामना करना पड़ता ह। वे अपने ही
परवार म अजनबी बन जाते ह और अंततः
परवार को छोड़कर चले जाते ह। गजाधर
बाबू महसूस करते ह िक "उनक उप थित
उस घर म ऐसी असंगत लगने लगी थी, जैसी
सजी ई बैठक म उनक चारपाई।"(10) यह
ऐसा िवचार ह जो उनक समूची सता को
एक गहरी उदासीनता म परवितत कर देता ह।
गजाधर बाबू क मायम से य क
अकलेपन, एक पीढ़ी क बदलती मानिसकता
तथा सामािजक परवतन क साथ य क
बदलते संबंध और टटते परवार का यथाथ
िचण देखने को िमलता ह।
इसी ? म सुधा ओम ढगरा क कहानी
'एक ग़लत कदम' को भी देख सकते ह जो
वृाम और परचायाह क एक य क
साथ शु होती ह जहाँ दयानंद शुा एवं
शक तला शुा को उनक दो पु और पु
वधु ने यहाँ तक प चाया ह। यह 'एडट
िलिवंग एंड निसग होम' िलिखत प म तो
सबक िलए ह लेिकन अघोिषत प से यह
कवल भारतीय क िलए और इसम सूम
भारत क झलक िमलती ह। "सार डाटर,
नस, सेवक-सेिवकाएँ और कमचारी भारतीय
ह। हर गृह म एक मंिदर भी होता ह। हर देश
का भारतीय भोजन यहाँ िदया जाता ह और
भारतीय माहौल उप िकया जाता ह।"
अवासी भारतीय क अंदर जो भारत बसता
ह, वृाम उसी का ितिबब ह। यह उन
लोग का आय थल बन जाता ह जो िकह
कारण से भारत नह जा पाते और अपने
परवार क साथ भी नह रह पाते। सभी सुख-
सुिवधा से सप यह वृ आम भारतीय
बुग म बत लोकिय ह। यह एक ऐसा
थल ह जहाँ उह अहसास हो िक वे भारत म
ही रह रह ह। इस अहसास से उह सुख क
अनुभूित होती ह। "चार ओर भारतीय! शोर-
शराबा, संयु परवार-सा खान-पान, सुबह-
शाम घंिटय क आवाज़, शंख का नाद,
भारतीय संगीत, धूमधाम से मनाये जाते
भारतीय उसव। ढलती उ म जमभूिम बत
याद आती ह, बस ऐसे गृह म उसे ही मुहया
करवाने क कोिशश क जाती ह।"(11)
िवशेष बात यह ह िक इसका िनमाण भी एक
भारतीय 'डॉ. सुमंत हीरादास पटल' ने कराया
था।
इस कहानी का बत बड़ा भाग पूवदी
शैली (लेशबैक) म आगे बढ़ाता ह। यह
कहानी एक ओर सजातीय और िवजातीय होने
क म को तोड़ती ह और इस तय को
थािपत करती ह िक अछ-बुर लोग देश-
िवदेश सब जगह होते ह और अपवाद कह भी
हो सकते ह। डॉ. शरद शुा और डॉ. जैनेट
शुा जैसे पा क मायम से लेिखका ने
कई पूवा ह को तोड़ने का काय िकया ह।
इसम उहने इस धारणा को भी वत िकया ह
िक यूरोपीय देश म संयु परवार नह होते
या उनक बीच वैसी परवाह, ेह और
सामंजय और नह होता जैसा िक भारत म।
भारतीय नैितक जीवन- और मूय
जो भारतीय संकित और दशन को आचार-
यवहार क िदशा दान करते ह। भारतीय
िचंतन म नैितकता का आधार कवल बाहरी
आचरण नह, ब क आंतरक शुि और
आमिनयंण ह। यहाँ धम और नैितकता दोन
का संबंध आमा क उित तथा समाज क
कयाण से जोड़ा गया ह। भारतीय नैितक
जीवन- म सय, अिहसा, दया, मा,
कणा, दान, शील और संयम जैसे गुण को
सव थान िदया गया ह। वेद और
उपिनषद म "सयं वद, धम चर" का उपदेश
िमलता ह। महाभारत म कहा गया ह-
"अिहसा परमो धमः।" वह गीता कमयोग क
मायम से िनकाम कम और क यपालन
को नैितक जीवन का सबसे मुख आधार
मानती ह।
इस का मुख लय कवल
य गत कयाण नह, ब क सवभूत-िहत
और लोकमंगल ह। "वसुधैव कट बक" क
भावना सभी ािणय क ित नैितक
संवेदनशीलता और समान का संदेश
देती ह। भारतीय नैितकता भौितक और
आया मक जीवन क संतुलन पर आधारत
ह, जहाँ धम क पालन और आमसंयम क
ारा य वयं को भी ऊचा उठाता ह और
समाज क िलए भी उपयोगी बनता ह। अतः
कह सकते ह िक भारतीय नैितक जीवन-
आमशुि, क यिना और लोककयाण
पर आधारत ह, जो जीवन को उ, साथक
और समाजोपयोगी बनाने का माग शत
करती ह। इस पर 'रवी नाथ टगोर' िलखते
ह-"सव िशा वह ह जो हम कवल
जानकारी ही नह देती, ब क हमार जीवन
को समत अ तव क साथ सामंजय म
लाती ह।"(12)
भारत म ी क िविभ प देखने को

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 202567 66 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 2025
िमलते ह। वह कह शोिषत िदखाई देती ह तो
कह आमिनभर प म भी सामने आती ह।
कभी-कभी वह शोषक क भूिमका म भी िदख
जाती ह और अनेक बार समाज क
अयवथा एवं अयाचार क िव
अपनी सश आवाज़ भी उठाती ह। भारतीय
परपरा म ी को देवी क प म मायता ??
ह। "य नाय तु पूयते रमते त देवताः"
क आधार पर ी को पूजनीय माना गया ह।
घर, परवार और समाज क संरचना म नारी
का महवपूण थान ह।
भारतीय सािहय और संकित म ी को
कभी ा, कभी यशोधरा, कभी सती,
सािवी, सीता से लेकर ककयी और ौपदी
तक क प म िचित िकया गया ह। इन प
क मायम से ी को परपरागत बेिड़य को
तोड़ने और समाज क िलए नए मानदंड
थािपत करने क ेरणा दी जाती रही ह।
िनसंदेह, ी क थित म समय-समय पर
परवतन और िवकास भी िदखाई देता ह, िकतु
दूसरी ओर परवार और समाज ने हर युग म
उसे बंधन म जकड़ रखा। वह वतं प से
न तो अपने िलए िनणय ले सकती थी और न
ही अपनी इछानुसार जीवन जी सकती थी।
मनुमृित का िस ोक- "िपता रित
कौमार, भता रित यौवने, र त थिवरो
पुा, न ी वात यमहित" आज तक ी
क थित पर लागू होता तीत होता ह।
आज भी भारत म िलंगभेद क समया
गहरी ह। समाज म बेटा पाने क ती आकांा
ह यिक यह माना जाता ह िक बेटा ही वंश
को आगे बढ़ाता ह। यिद बेटी का जम हो जाए
तो कई बार उसक साथ दुयवहार तक िकया
जाता ह। सुधा ओम ढगरा ने 'ऐसा भी होता ह'
कहानी म एक ऐसे िवषय को उठाया ह िजस
पर हम या तो यान नह देते या देना नह
चाहते। समाज म दहज़ क समया पर ब
बात होती ह लेिकन लेिखका ने समीय
कहानी म इससे ठीक िवपरीत एक िवषय को
उठाया ह। कहानी पामक शैली म िलखी
गई ह। इसक मुय पा दलजीत कौर क
मायम से लेखका ने उन सभी य क
पीड़ा को शद िदये ह, जो अपना 'मायका'
(एक ऐसा घर जो सामायतया उनका होता ही
नह) बचाने क िलए अपनी सामय से
अिधक यास करती ह लेिकन अंततः उह
िनराशा ही हाथ लगती ह। कहानी भले िवदेश
म बसी बेटी को लेकर बुनी गई ह लेिकन यह
समया सावदेिशक कही जा सकती ह।
कहानी म उस मानिसकता पर हार ह, जहाँ
सारा यार-दुलार तो बेट क िहसे आता ह
लेिकन सारी अपेाएँ बेिटय से। कथा
नाियका 'दलजीत कौर' क मायम से
लेिखका ने न िकया ह- "आप सबक िदल
म मेरा िसफ इतना ही थान ह िक म आपक
अपेाएँ पूरी करने क िलए बनी । आप
लोग क जीवन और िदल म मेरा और कोई
महव नह।"(13) कहानी म एक सहज न
ह िक ब क जमने क एक जैसी ? ??
क बाद; धरती पर आते ही भेदभाव कसे शु
हो सकता ह? उससे भी बड़ा न िक एक माँ
कसे भेदभाव कर सकती ह? "बीजी, जैसे
आप वीर को सीने से लगाती ह, कभी आपने
अपनी धीय (बेिटय) को भी सीने से लगाया।
य नह लगाया? हम तो आपक ही ह,
आपक जात क। बाउजी और चाचाजी ऐसा
कर तो म मान सकती , वे पुष ह, वीर
उनक जात क ह, पुष वृि ऐसी ही होती
ह। अफ़सोस तो इसी बात का ह, ी ही
अपनी जात क साथ गारी करती ह।"(14)
'दलजीत असर महसूस करती थी, हमार घर
म किड़याँ आँगन क फल नह बस ऐंवई पैदा
ई खरपतवार ह। सारा यार, दुलार और सारी
सुख-सुिवधाएँ तो व वीर जी और छोट वीर
क िलए ह।"
'सुधा ओम ढगरा' क एक अय कहानी
'लड़क थी वह' भी इसी थित का मािमक
िचण ह। िजससे िदसंबर क कड़ाक क
सद क कपड़ म िलपटी नवजात िशशु को
कड़ क ढर पर फक िदया जाता ह। इस नह
बािलका का परयाग करने वाली भी एक ी
ही ह "डॉटर साहब इसे दखे, ठीक ह न
यह?" उसक मधुर पर उदास वाणी ने मेरी
सोच क सागर क तरग को िवराम िदया..
अपने शाल म लपेटकर नवजात िशशु उसने
पापा क आगे बढ़ाया.. पापा ने गठरी क तरह
िलपटा बा खोला, लड़क थी वह।"(15)
ी का जम होने से पहले ही ूण हया करने
क यास और जम क बाद कई तरह क
अयाय सामाय बात ह यहाँ तक उसे मरने क
िलए फक भी िदया जाता ह।
वतमान समय म िजतनी चचा य क
शोषण पर होती ह, उतनी ही आवयकता
पुष क थित को समझने क भी ह। समाज
म यह धारणा गहराई से बैठी ई ह िक पुष
का शोषण नह हो सकता, िकतु अययन और
रपोट बताती ह िक पुष भी मानिसक,
शारीरक और सामािजक उपीड़न क िशकार
होते ह। िचंतन का िवषय यह ह िक पुष
अपनी पीड़ा को य नह कर पाता, यिक
परपरागत सोच और मानिसकता क कारण
हमार मन म यह धारणा गहराई से बैठी ई ह
िक पुष का शोषण कसे हो सकता ह? िकतु
यह भी सय ह िक कमज़ोर पुष का शोषण
श शाली पुष और य—दोन क ारा
ही िकया जाता रहा ह। उनसे गुलामी करवाई
गई, मानिसक और शारीरक शोषण भी कई
अलग-अलग प म देखा जाता रहा ह।
मातृसामक यवथा म पुष क यौन
शोषण होने क उदाहरण भी िमलते ह।
महानगर म पुष वेयावृि का बढ़ना भी
इसी समया का ोतक ह।
य क सुरा क िलए बनाए गए कई
कानून का दुपयोग भी पुष क शोषण का
कारण बनता ह। वतमान कई ऐसी घटनाएँ
घिटत ई ह िजनक ब चचा ई कह िचंता
क प म तो कह मज़ाक क प म। कह
आकड़ क बात क गई िक पुष शोषण तो
य क अनुपात म नगय ह। यह बात सही
हो सकती ह िक इस तरह क घटनाएँ बत
कम ह तब भी इह उिचत नही कहा जा
सकता। आदश थित तो यह ह िक न ी पर
अयाचार हो न ही पुष क साथ। यही कारण
ह िक सुधा ओम ढगरा अपनी रचन म इस
िवषय को खरता क साथ उठती रही ह।
उनक कहािनयाँ 'पासवड' और 'वह
कोई और थी' इसका सश उदाहरण ह।
अिभनंदन और सपना तथा साकत और तवी
क मायम से उहने िदखाया ह िक िकस
परवार क संथा समा ाय ह। वहाँ माता-
िपता बे को जम देने क बाद च, बालगृह
या हॉटल म भेज देते ह, यिक ब क
उप थित उनक वतंता और आनंद म
बाधक होती ह।"(8) इस थित म ब को
उिचत मागदशन और संरण नह िमल पाता
तथा वे िदशाहीन हो जाते ह।
सुधा ओम ढगरा क कहानी 'सूरज य
िनकलता ह' म इसी वातिवकता को उजागर
िकया गया ह। कहानी क नाियका टरी हर वष
सरकार से वेफयर सहायता पाने क िलए
एक बा जम देती ह। उसक यारह बे ह,
िकतु उसे न तो उनक भिवय क िचंता ह, न
ही उनक आचरण क। सुधा ओम ढगरा
िलखती ह- "टरी नामक मिहला को माँ कहना
उिचत नह। वह कवल बे पैदा करने वाली
मशीन थी। उसे ममता का अथ नह पता था,
ब क ित उरदाियव का बोध नह था।
बस वह सरकारी सहायता पाने क िलए बार-
बार ब को जम देती रही।"(9)
प ह िक जहाँ भारतीय परवार ब
को ेम, संरण और जीवन-मूय दान
करते ह, वह पााय देश म पारवारक
िवघटन और अिभभावकय लापरवाही ब
को अछ-बुर क समझ से दूर कर देती ह।
'उषा ियंवदा' क कहानी 'वापसी' म
पारवारक िवघटन क थित िचित ई ह,
जो सुधा जी क कहानी 'कौन-सी ज़मीन
अपनी' म भी परलित होती ह। 'वापसी'
कहानी म परवार क टटने और संबंध म
खापन िदखाई देता ह। गजाधर बाबू रटायर
होकर अपने घर आराम और आनंद क
िज़ंदगी िबताने आते ह, तो उह घर म सबक
उपेा का सामना करना पड़ता ह। वे अपने ही
परवार म अजनबी बन जाते ह और अंततः
परवार को छोड़कर चले जाते ह। गजाधर
बाबू महसूस करते ह िक "उनक उप थित
उस घर म ऐसी असंगत लगने लगी थी, जैसी
सजी ई बैठक म उनक चारपाई।"(10) यह
ऐसा िवचार ह जो उनक समूची सता को
एक गहरी उदासीनता म परवितत कर देता ह।
गजाधर बाबू क मायम से य क
अकलेपन, एक पीढ़ी क बदलती मानिसकता
तथा सामािजक परवतन क साथ य क
बदलते संबंध और टटते परवार का यथाथ
िचण देखने को िमलता ह।
इसी ? म सुधा ओम ढगरा क कहानी
'एक ग़लत कदम' को भी देख सकते ह जो
वृाम और परचायाह क एक य क
साथ शु होती ह जहाँ दयानंद शुा एवं
शक तला शुा को उनक दो पु और पु
वधु ने यहाँ तक प चाया ह। यह 'एडट
िलिवंग एंड निसग होम' िलिखत प म तो
सबक िलए ह लेिकन अघोिषत प से यह
कवल भारतीय क िलए और इसम सूम
भारत क झलक िमलती ह। "सार डाटर,
नस, सेवक-सेिवकाएँ और कमचारी भारतीय
ह। हर गृह म एक मंिदर भी होता ह। हर देश
का भारतीय भोजन यहाँ िदया जाता ह और
भारतीय माहौल उप िकया जाता ह।"
अवासी भारतीय क अंदर जो भारत बसता
ह, वृाम उसी का ितिबब ह। यह उन
लोग का आय थल बन जाता ह जो िकह
कारण से भारत नह जा पाते और अपने
परवार क साथ भी नह रह पाते। सभी सुख-
सुिवधा से सप यह वृ आम भारतीय
बुग म बत लोकिय ह। यह एक ऐसा
थल ह जहाँ उह अहसास हो िक वे भारत म
ही रह रह ह। इस अहसास से उह सुख क
अनुभूित होती ह। "चार ओर भारतीय! शोर-
शराबा, संयु परवार-सा खान-पान, सुबह-
शाम घंिटय क आवाज़, शंख का नाद,
भारतीय संगीत, धूमधाम से मनाये जाते
भारतीय उसव। ढलती उ म जमभूिम बत
याद आती ह, बस ऐसे गृह म उसे ही मुहया
करवाने क कोिशश क जाती ह।"(11)
िवशेष बात यह ह िक इसका िनमाण भी एक
भारतीय 'डॉ. सुमंत हीरादास पटल' ने कराया
था।
इस कहानी का बत बड़ा भाग पूवदी
शैली (लेशबैक) म आगे बढ़ाता ह। यह
कहानी एक ओर सजातीय और िवजातीय होने
क म को तोड़ती ह और इस तय को
थािपत करती ह िक अछ-बुर लोग देश-
िवदेश सब जगह होते ह और अपवाद कह भी
हो सकते ह। डॉ. शरद शुा और डॉ. जैनेट
शुा जैसे पा क मायम से लेिखका ने
कई पूवा ह को तोड़ने का काय िकया ह।
इसम उहने इस धारणा को भी वत िकया ह
िक यूरोपीय देश म संयु परवार नह होते
या उनक बीच वैसी परवाह, ेह और
सामंजय और नह होता जैसा िक भारत म।
भारतीय नैितक जीवन- और मूय
जो भारतीय संकित और दशन को आचार-
यवहार क िदशा दान करते ह। भारतीय
िचंतन म नैितकता का आधार कवल बाहरी
आचरण नह, ब क आंतरक शुि और
आमिनयंण ह। यहाँ धम और नैितकता दोन
का संबंध आमा क उित तथा समाज क
कयाण से जोड़ा गया ह। भारतीय नैितक
जीवन- म सय, अिहसा, दया, मा,
कणा, दान, शील और संयम जैसे गुण को
सव थान िदया गया ह। वेद और
उपिनषद म "सयं वद, धम चर" का उपदेश
िमलता ह। महाभारत म कहा गया ह-
"अिहसा परमो धमः।" वह गीता कमयोग क
मायम से िनकाम कम और क यपालन
को नैितक जीवन का सबसे मुख आधार
मानती ह।
इस का मुख लय कवल
य गत कयाण नह, ब क सवभूत-िहत
और लोकमंगल ह। "वसुधैव कट बक" क
भावना सभी ािणय क ित नैितक
संवेदनशीलता और समान का संदेश
देती ह। भारतीय नैितकता भौितक और
आया मक जीवन क संतुलन पर आधारत
ह, जहाँ धम क पालन और आमसंयम क
ारा य वयं को भी ऊचा उठाता ह और
समाज क िलए भी उपयोगी बनता ह। अतः
कह सकते ह िक भारतीय नैितक जीवन-
आमशुि, क यिना और लोककयाण
पर आधारत ह, जो जीवन को उ, साथक
और समाजोपयोगी बनाने का माग शत
करती ह। इस पर 'रवी नाथ टगोर' िलखते
ह-"सव िशा वह ह जो हम कवल
जानकारी ही नह देती, ब क हमार जीवन
को समत अ तव क साथ सामंजय म
लाती ह।"(12)
भारत म ी क िविभ प देखने को

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 202569 68 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 2025
कार आिथक प से सप याँ भोले-
भाले पुष का शोषण कर िववाह संथा का
उपहास करती ह। सपना अपनी आिथक
सुढ़ता क बल पर सीधे-साधे अिभनंदन को
अपने जाल म फसाकर िववाह कर लेती ह।
उसका मानना ह- "अपने पु?ष को पपी
(छोटा क ा) बनाकर रखो, तलवे
चाटगा।"(16) इसी कारण उसने भारत म
अिभनंदन को िनशाना बनाया, यिक वह
जानती थी िक आिथक प से कमज़ोर पु?ष
को फसाना आसान ह। सपना क शद- "डड
िहदुतान क लोग भावनामक बेव?फ़ होते
ह...हर समय संकार क दुहाई देते ह..."
(17) उसक मानिसकता को प कर देते
ह। सय समाज का िश पु?ष, नारी-
अितमण से ुध होकर या तो क ठा और
तनाव का िशकार होता ह अथवा अपनी यथा
सह न पाने क थित म टटकर िबखर जाता
ह।
वृावथा जीवन का वाभािवक और
अपरहाय अंग ह, जो धीर-धीर आकर येक
य को पश करती ह। यह अवथा
य क िलए अयंत किठन होती ह यिक
इसम उसे अपन क सहार और ?ेह क
आवयकता होती ह। वृ अपने ब म ही
इस सहार क अपेा रखते ह। िकतु आज क
पर थितय म ब क पास अपने माता-
िपता क िलए न तो पया समय ह और न ही
वे इसे आवयक कारण मानते ह। बदलते
सामािजक परवेश और िवघिटत होती
पारवारक संरचना ने वृ का जीवन और भी
दुकर बना िदया ह। 'कमरा नं. 103' कहानी
म िमसेज़ वमा और िमसेज़ भसीन जैसे पा
क मायम से वृावथा क दयनीय थित
उभरकर सामने आती ह।
वृावथा क किठनाइय पर डॉ. मधु
संधु िलखती ह- "जीवन-संया म य क
अ तव का संघष कह ती हो जाता ह। यह
वह अवथा ह जहाँ य शारीरक एवं
आिथक प से परावलंबी हो जाता ह। िजस
परवार को उसने ताउ संरण िदया था,
उसी से संरण पाने क इछा करता ह।"
(18)
िनकषतः कहा जा सकता ह िक भारतीय
जीवन- जीवन को भोग नह, ब क
क य, आमानुशासन और साधना का माग
मानती ह। इसम य परवार, समाज और
कित से गहराई से जुड़ा ह। सय, क?णा,
याग और आमसंयम जैसे मूय समाज म
संतुलन लाते ह। िकतु आधुिनक जीवन क
आपाधापी म यह संतुलन िबगड़ रहा ह। ी-
पु?ष दोन शोषण का अनुभव कर रह ह, वृ
अकलेपन से जूझ रह ह और बे संकार से
वंिचत हो रह ह।
सुधा ओम ढगरा क भारतीय सामािजक
जीवन s?? बआयामी ह। वे सािहय क
मायम से न कवल अतीत और वतमान क
बीच सेतु बनाती ह, ब क भारतीयता क उस
गूढ़ अनुभूित को भी संेिषत करती ह जो
समय और थान क सीमा को लाँघती ह।
उनका लेखन यह िस करता ह िक भारतीय
जीवन s?? कवल एक िवचार नह, ब क
जीने क एक शैली ह, जो हर कालखंड म नए
प म अिभय होती रही ह। सुधा ओम
ढगरा का सािहय यह िस करता ह िक
भारतीय जीवन s?? कवल भारत क सीमा म
नह बँधी, वह एक वै क चेतना बन गई ह।
ाचीन आदश, मयकालीन आमिचंतन,
आधुिनक यथाथ और वासी संघष; इन सभी
का संगम उनक लेखन म िमलता ह। भारतीय
संकित क आमा कभी समा? नह होती,
वह बस अलग-अलग प म वयं को
अिभय करती रहती ह।
सुधा ओम ढगरा का सािहय ी-
से भारतीय समाज को एक नई पहचान देता
ह। उनक रचना म परपरा और
आधुिनकता का अ?ुत संतुलन िदखाई देता
ह। वे यह दशाती ह िक आधुिनक जीवन क
आपाधापी म भी भारतीय संकित क जड़
गहरी और सश? ह। उनका लेखन समाज
को इस ओर ेरत करता ह िक परपरागत
मूय को बनाए रखते ए भी समय क माँग
क अनुसार आगे बढ़ा जा सकता ह।
संदभ ंथ सूची- 1.शमा, नीरजा.
(2005) "वासी सािहय: एक सांकितक
अययन" िदी: सािहय िनकतन।
2.डॉ.यादव रनू, सााकार क आईने
म(सुधा ओम ढगरा क सााकार) िशवना
काशन, सीहोर, मय देश। 3.डॉ.मधु संधू,
(2013), "िहदी का भारतीय एवं वासी
मिहला कथा लेखन" नमन काशन, नई
िदी। 4.गोयनका, कमल िकशोर, (2017)
: "िहदी का वासी सािहय" यश
प लकशस नई दीी थम संकरण, पृ.
3। 5.सुधा ओम ढगरा (2019) "िखड़िकय
से झाँकती आँख" भावना काशन, िदी,
पृ. 23। 6.सुधा ओम ढगरा, (2016)
'नक़ाशीदार किबनेट', िशवना काशन,
सीहोर, म..। 7.डॉ. ानवती अरोड़ा,
(1989), समसामियक िहदी कहानी म
बदलते पारवारक संबंध, थम संकरण,
सूय काशन, नई सड़क, िदी-6 पृ. 77।
8.अंजली भारती, (2006), घर, परवार और
रते, थम सं, सािवी काशन, िदी, पृ.
13। 9.डॉ. सुधा ओम ढगरा, (2010), 'कौन
सी ज़मीन अपनी' (कहानी संह), थम
संकरण, भावना काशन, िदी, पृ. 43।
10.उषा ियंवदा, (1974), मेरी िय
कहािनय, (वापसी), राजकमल एड संस,
कमीरी गेट, िदी, पृ. 80। 11.सुधा ओम
ढगरा, 'िखड़िकय से झाँकती आँख', िशवना
काशन, सीहोर (म..) पृ-45
12.रवी नाथ टगोर, (1913), साधना जीवन
का बोध, िनयोगी बुस काशन। 13.सुधा
ओम ढगरा, 'िखड़िकय से झाँकती आँख',
िशवना काशन, सीहोर (म..) पृ-63
14.सुधा ओम ढगरा, 'िखड़िकय से झाँकती
आँख', िशवना काशन, सीहोर (म..)
पृ-63 15.डॉ सुधा ओम ढगरा, कौन सी
ज़मीन अपनी, (कहानी संह), थम
संकरण - 2010 भावना काशन, 109 ए
पड़पड़गंज िदी - पृ 53। 16.ढगरा, सुधा
ओम. (2013). "कमरा नं. 103". िदी:
िबजनौर स. थम िहदी सािहय िनकतन
पृ.44। 17.पृ संया 51। 18.डॉ. मधु संधु,
(2013), िहदी का भारतीय एवं वासी
मिहला कथा लेखन, थम संकरण, नमन
काशन, िदी, पृ. 118।
000
अमरकांत िहदी सािहय क उन चुिनंदा यथाथवादी कथाकार म ह िजहने िनन और
मयमवगय समाज क जिटलता को अयंत सू?मता और संवेदनशीलता क साथ िचित
िकया ह। उनक कथा-सािहय म ी जीवन क िविवध प का वणन- संघष, शोषण,
आमसमान और वावलंबन- अयंत भावशाली प म तुत आ ह। अमरकांत ने न
कवल य क सामािजक थित को उकरा ह, ब क पुष क मानिसकता म िनिहत
दोगलेपन, शोषण क वृिय और आधुिनकता क मुखौट क नीचे िछपे िपतृसा क वप
को भी बेनकाब िकया ह। अमरकांत का कथा-सािहय कवल सामािजक यथाथ का दतावेज़
नह, ब क सामािजक चेतना और परवतन का मायम भी ह। उनक पु?ष पा जहाँ ी क
ित समाज क दोगली मानिसकता को उजागर करते ह, वह उनक याँ िशा,
आमिनभरता और संघष क मायम से एक नई सामािजक िदशा का संकत देती ह।
बीज शद : समाज का यथाथवादी िच, ी जीवन, संघष, शोषण, सामािजक ितबंध,
िपतृसा, उपकार, आिथक िववशता, शंका, ईया, आवारा, बेशम, धम-नािशनी, नैितकता,
मयादा, सामािजक चेतना, सामािजक भागीदारी, ी िशा, आमिनभर, वावलंबन,
आमसमान, यवहारक, प और तकसंगत
मूल आलेख :
अमरकांत का उपयास "ाम सेिवका" ामीण भारत म ी क थित, उसक
आकांा और उस पर थोपे गए सामािजक ितबंध का यथाथवादी िच तुत करता ह।
इस उपयास क नाियका दमयंती कवल एक पा नह, ब क उस समय क बदलते सामािजक
िवमश क ितिनिध बनकर उभरती ह। दमयंती का "ाम सेिवका" बनना कोई आक मक
िनणय नह, ब क आिथक िववशता और आमिनभर बनने क आकांा का परणाम ह। वह
गाँव क पहली मिहला ह जो सावजिनक ? म कायरत होती ह, लेिकन ामीण समाज
िवशेषकर याँ उसक इस िनणय को शंका, ईया और नैितकता क चमे से देखती ह। गाँव क
धान का यवहार िपतृसामक सोच का नन प ह। बाहर से वे दमयंती को 'बेटी' कहकर
समान का आभास देते ह, परतु भीतर से उनक इरादे घृिणत ह। उनका कथन - " ी क िदल म
कामना वयं नह जगती ह, ब क वह जगायी जाती ह।" "िजसको घोड़ को वश म करने क
कला आती ह वही ी को वश म कर सकता ह।" यह मानिसकता यह दशाती ह िक ी को
एक भोया वतु और वश म रखने योय जीव क प म देखा जाता ह, िजसक वतंता और
इछा का कोई मूय नह।
"ाम सेिवका" उपयास म धान जी जैसे पा समाज क उस वग का ितिनिधव करते ह,
जो बाहर से नैितकता और मयादा क बात करता ह, लेिकन भीतर से ी को एक भोया मानता
ह। दमयंती जैसी वावलंबी ी को बेटी कहकर संबोिधत करना और िफर उस पर मानिसक
शोध आलेख
(शोध प)
अमरकांत का कथा-
सािहय : िनन
मयमवग क ी
संवेदना का एक
महवपूण दतावेज़
दीपक िगरकर
दीपक िगरकर
28-सी, वैभव नगर, कनािडया रोड,
इदौर- 452016 म
मोबाइल- 9425067036
ईमेल- [email protected]

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 202569 68 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 2025
कार आिथक प से सप याँ भोले-
भाले पुष का शोषण कर िववाह संथा का
उपहास करती ह। सपना अपनी आिथक
सुढ़ता क बल पर सीधे-साधे अिभनंदन को
अपने जाल म फसाकर िववाह कर लेती ह।
उसका मानना ह- "अपने पु?ष को पपी
(छोटा क ा) बनाकर रखो, तलवे
चाटगा।"(16) इसी कारण उसने भारत म
अिभनंदन को िनशाना बनाया, यिक वह
जानती थी िक आिथक प से कमज़ोर पु?ष
को फसाना आसान ह। सपना क शद- "डड
िहदुतान क लोग भावनामक बेव?फ़ होते
ह...हर समय संकार क दुहाई देते ह..."
(17) उसक मानिसकता को प कर देते
ह। सय समाज का िश पु?ष, नारी-
अितमण से ुध होकर या तो क ठा और
तनाव का िशकार होता ह अथवा अपनी यथा
सह न पाने क थित म टटकर िबखर जाता
ह।
वृावथा जीवन का वाभािवक और
अपरहाय अंग ह, जो धीर-धीर आकर येक
य को पश करती ह। यह अवथा
य क िलए अयंत किठन होती ह यिक
इसम उसे अपन क सहार और ?ेह क
आवयकता होती ह। वृ अपने ब म ही
इस सहार क अपेा रखते ह। िकतु आज क
पर थितय म ब क पास अपने माता-
िपता क िलए न तो पया समय ह और न ही
वे इसे आवयक कारण मानते ह। बदलते
सामािजक परवेश और िवघिटत होती
पारवारक संरचना ने वृ का जीवन और भी
दुकर बना िदया ह। 'कमरा नं. 103' कहानी
म िमसेज़ वमा और िमसेज़ भसीन जैसे पा
क मायम से वृावथा क दयनीय थित
उभरकर सामने आती ह।
वृावथा क किठनाइय पर डॉ. मधु
संधु िलखती ह- "जीवन-संया म य क
अ तव का संघष कह ती हो जाता ह। यह
वह अवथा ह जहाँ य शारीरक एवं
आिथक प से परावलंबी हो जाता ह। िजस
परवार को उसने ताउ संरण िदया था,
उसी से संरण पाने क इछा करता ह।"
(18)
िनकषतः कहा जा सकता ह िक भारतीय
जीवन- जीवन को भोग नह, ब क
क य, आमानुशासन और साधना का माग
मानती ह। इसम य परवार, समाज और
कित से गहराई से जुड़ा ह। सय, क?णा,
याग और आमसंयम जैसे मूय समाज म
संतुलन लाते ह। िकतु आधुिनक जीवन क
आपाधापी म यह संतुलन िबगड़ रहा ह। ी-
पु?ष दोन शोषण का अनुभव कर रह ह, वृ
अकलेपन से जूझ रह ह और बे संकार से
वंिचत हो रह ह।
सुधा ओम ढगरा क भारतीय सामािजक
जीवन s?? बआयामी ह। वे सािहय क
मायम से न कवल अतीत और वतमान क
बीच सेतु बनाती ह, ब क भारतीयता क उस
गूढ़ अनुभूित को भी संेिषत करती ह जो
समय और थान क सीमा को लाँघती ह।
उनका लेखन यह िस करता ह िक भारतीय
जीवन s?? कवल एक िवचार नह, ब क
जीने क एक शैली ह, जो हर कालखंड म नए
प म अिभय होती रही ह। सुधा ओम
ढगरा का सािहय यह िस करता ह िक
भारतीय जीवन s?? कवल भारत क सीमा म
नह बँधी, वह एक वै क चेतना बन गई ह।
ाचीन आदश, मयकालीन आमिचंतन,
आधुिनक यथाथ और वासी संघष; इन सभी
का संगम उनक लेखन म िमलता ह। भारतीय
संकित क आमा कभी समा? नह होती,
वह बस अलग-अलग प म वयं को
अिभय करती रहती ह।
सुधा ओम ढगरा का सािहय ी-
से भारतीय समाज को एक नई पहचान देता
ह। उनक रचना म परपरा और
आधुिनकता का अ?ुत संतुलन िदखाई देता
ह। वे यह दशाती ह िक आधुिनक जीवन क
आपाधापी म भी भारतीय संकित क जड़
गहरी और सश? ह। उनका लेखन समाज
को इस ओर ेरत करता ह िक परपरागत
मूय को बनाए रखते ए भी समय क माँग
क अनुसार आगे बढ़ा जा सकता ह।
संदभ ंथ सूची- 1.शमा, नीरजा.
(2005) "वासी सािहय: एक सांकितक
अययन" िदी: सािहय िनकतन।
2.डॉ.यादव रनू, सााकार क आईने
म(सुधा ओम ढगरा क सााकार) िशवना
काशन, सीहोर, मय देश। 3.डॉ.मधु संधू,
(2013), "िहदी का भारतीय एवं वासी
मिहला कथा लेखन" नमन काशन, नई
िदी। 4.गोयनका, कमल िकशोर, (2017)
: "िहदी का वासी सािहय" यश
प लकशस नई दीी थम संकरण, पृ.
3। 5.सुधा ओम ढगरा (2019) "िखड़िकय
से झाँकती आँख" भावना काशन, िदी,
पृ. 23। 6.सुधा ओम ढगरा, (2016)
'नक़ाशीदार किबनेट', िशवना काशन,
सीहोर, म..। 7.डॉ. ानवती अरोड़ा,
(1989), समसामियक िहदी कहानी म
बदलते पारवारक संबंध, थम संकरण,
सूय काशन, नई सड़क, िदी-6 पृ. 77।
8.अंजली भारती, (2006), घर, परवार और
रते, थम सं, सािवी काशन, िदी, पृ.
13। 9.डॉ. सुधा ओम ढगरा, (2010), 'कौन
सी ज़मीन अपनी' (कहानी संह), थम
संकरण, भावना काशन, िदी, पृ. 43।
10.उषा ियंवदा, (1974), मेरी िय
कहािनय, (वापसी), राजकमल एड संस,
कमीरी गेट, िदी, पृ. 80। 11.सुधा ओम
ढगरा, 'िखड़िकय से झाँकती आँख', िशवना
काशन, सीहोर (म..) पृ-45
12.रवी नाथ टगोर, (1913), साधना जीवन
का बोध, िनयोगी बुस काशन। 13.सुधा
ओम ढगरा, 'िखड़िकय से झाँकती आँख',
िशवना काशन, सीहोर (म..) पृ-63
14.सुधा ओम ढगरा, 'िखड़िकय से झाँकती
आँख', िशवना काशन, सीहोर (म..)
पृ-63 15.डॉ सुधा ओम ढगरा, कौन सी
ज़मीन अपनी, (कहानी संह), थम
संकरण - 2010 भावना काशन, 109 ए
पड़पड़गंज िदी - पृ 53। 16.ढगरा, सुधा
ओम. (2013). "कमरा नं. 103". िदी:
िबजनौर स. थम िहदी सािहय िनकतन
पृ.44। 17.पृ संया 51। 18.डॉ. मधु संधु,
(2013), िहदी का भारतीय एवं वासी
मिहला कथा लेखन, थम संकरण, नमन
काशन, िदी, पृ. 118।
000
अमरकांत िहदी सािहय क उन चुिनंदा यथाथवादी कथाकार म ह िजहने िनन और
मयमवगय समाज क जिटलता को अयंत सू?मता और संवेदनशीलता क साथ िचित
िकया ह। उनक कथा-सािहय म ी जीवन क िविवध प का वणन- संघष, शोषण,
आमसमान और वावलंबन- अयंत भावशाली प म तुत आ ह। अमरकांत ने न
कवल य क सामािजक थित को उकरा ह, ब क पुष क मानिसकता म िनिहत
दोगलेपन, शोषण क वृिय और आधुिनकता क मुखौट क नीचे िछपे िपतृसा क वप
को भी बेनकाब िकया ह। अमरकांत का कथा-सािहय कवल सामािजक यथाथ का दतावेज़
नह, ब क सामािजक चेतना और परवतन का मायम भी ह। उनक पु?ष पा जहाँ ी क
ित समाज क दोगली मानिसकता को उजागर करते ह, वह उनक याँ िशा,
आमिनभरता और संघष क मायम से एक नई सामािजक िदशा का संकत देती ह।
बीज शद : समाज का यथाथवादी िच, ी जीवन, संघष, शोषण, सामािजक ितबंध,
िपतृसा, उपकार, आिथक िववशता, शंका, ईया, आवारा, बेशम, धम-नािशनी, नैितकता,
मयादा, सामािजक चेतना, सामािजक भागीदारी, ी िशा, आमिनभर, वावलंबन,
आमसमान, यवहारक, प और तकसंगत
मूल आलेख :
अमरकांत का उपयास "ाम सेिवका" ामीण भारत म ी क थित, उसक
आकांा और उस पर थोपे गए सामािजक ितबंध का यथाथवादी िच तुत करता ह।
इस उपयास क नाियका दमयंती कवल एक पा नह, ब क उस समय क बदलते सामािजक
िवमश क ितिनिध बनकर उभरती ह। दमयंती का "ाम सेिवका" बनना कोई आक मक
िनणय नह, ब क आिथक िववशता और आमिनभर बनने क आकांा का परणाम ह। वह
गाँव क पहली मिहला ह जो सावजिनक ? म कायरत होती ह, लेिकन ामीण समाज
िवशेषकर याँ उसक इस िनणय को शंका, ईया और नैितकता क चमे से देखती ह। गाँव क
धान का यवहार िपतृसामक सोच का नन प ह। बाहर से वे दमयंती को 'बेटी' कहकर
समान का आभास देते ह, परतु भीतर से उनक इरादे घृिणत ह। उनका कथन - " ी क िदल म
कामना वयं नह जगती ह, ब क वह जगायी जाती ह।" "िजसको घोड़ को वश म करने क
कला आती ह वही ी को वश म कर सकता ह।" यह मानिसकता यह दशाती ह िक ी को
एक भोया वतु और वश म रखने योय जीव क प म देखा जाता ह, िजसक वतंता और
इछा का कोई मूय नह।
"ाम सेिवका" उपयास म धान जी जैसे पा समाज क उस वग का ितिनिधव करते ह,
जो बाहर से नैितकता और मयादा क बात करता ह, लेिकन भीतर से ी को एक भोया मानता
ह। दमयंती जैसी वावलंबी ी को बेटी कहकर संबोिधत करना और िफर उस पर मानिसक
शोध आलेख
(शोध प)
अमरकांत का कथा-
सािहय : िनन
मयमवग क ी
संवेदना का एक
महवपूण दतावेज़
दीपक िगरकर
दीपक िगरकर
28-सी, वैभव नगर, कनािडया रोड,
इदौर- 452016 म
मोबाइल- 9425067036
ईमेल- [email protected]

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अिधकार ज़माने क कोिशश करना पाखंड
का लंत उदाहरण ह। सरवती क मामले म
उपकार जैसे औज़ार का योग इस बात को
दशाता ह िक पुष िकस कार ी क
िववशता का लाभ उठाकर उसे मानिसक व
शारीरक प से परािजत करता ह।
सरवती क कथा और भी भयावह ह।
धान जी ने उसक पित को िपटवाया, िफर
उसका इलाज करवा कर उपकार क बदले
उसक शारीरक गरमा पर हमला िकया।
अमरकांत यहाँ यह दशाते ह िक उपकार िकस
कार एक हिथयार बन जाता ह, िजससे
ग़रीब, िनरीह और िववश य को मानिसक
और शारीरक प से झुका िदया जाता ह।
"संकट म उपकार का अ अचूक होता ह।"
यह पं अमरकांत क लेखनी क गहराई
और उनक सामािजक यथाथबोध क सश
िमसाल ह।
इस उपयास म गाँव क याँ दमयंती
को हय से इसिलए देखती ह यिक वे
द िशा, आमिनभरता और वतंता क
महव को नह समझत। वे परपरा म जकड़ी
ह और िकसी भी 'नई चाल' को अवीकार
कर देती ह। यही कारण ह िक दमयंती को
उनक बीच आवारा, बेशम और धम-नािशनी
कहा जाता ह। "ाम सेिवका" क मायम से
अमरकांत ने समाज क उस कठोर साई को
उजागर िकया ह, िजसम ी यिद आमिनभर
बनने क कोिशश कर, तो समाज उसे
कचलने को तपर हो जाता ह- चाह वह पुष
हो या ी। दमयंती जैसे पा ी
जागकता, संघष और साहस का तीक ह,
जबिक धान जैसे चर िपतृसा क गहरी
सािजश को उजागर करते ह। अमरकांत क
यह रचना नारी िवमश, ामीण समाज और
सा क भीतर िछपी रता पर एक तीखा और
बेधक हार करती ह।
"आकाश पी" क रिव जैसे पा ी
िशा, समानता और वतंता क पधर ह।
रिव का यह कथन- "औरत-मद म कोई
ऊचा-नीचा थोड़ ह? जो काम मद कर सकते
ह, वही औरत भी कर सकती ह।" अमरकांत
क अपने ी-संबंधी कोण को ही
ितिबंिबत करता ह। रिव जैसे पा यह मानते
ह िक िशा कवल ान का मायम नह,
ब क समाज को बदलने का औजार ह —
िवशेषकर य क िलए।
अमरकांत क ी पा महज़ पीिड़त या
शोिषत नह, ब क समय क साथ जागक,
संघषशील और आमिनभर भी बनती ह।
"सुरग" उपयास क बी देवी इसका
लंत उदाहरण ह जो िशा और मोहे क
अय य क मदद से अपने अिधकार क
लड़ाई लड़ती ह। वह सामािजक दबाव से
घबराती नह, ब क संगिठत होकर अयाय
क िख़लाफ़ आवाज़ उठाती ह।
"सुर पाँड क पतोह" ऐसा ही एक
उपयास ह जो एक परय ी राजलमी
क गाथा क मायम से नारी अ मता, संघष
और आमिनभरता क मािमक और ेरक
कहानी कहता ह। राजलमी का वाभािवक
नाम, उसक पहचान, उसका "म" ससुराल म
कदम रखते ही ख़म हो जाता ह। उसे नया
नाम िदया जाता ह- "सुर पाँड क पतोह",
यानी पित क पहचान म गुम एक ी। यह
कवल नाम बदलना नह, ब क ी क
िनजता, पहचान और अ तव पर पहली चोट
ह। "एक ी क इससे बड़ी ासदी या होगी
िक िववाह क बाद उसक िनजता छीन ली
जाती ह..." राजलमी का पित झूलन पांड
उसे एक िदन िबना कछ कह छोड़कर चला
जाता ह। वह तीा करती ह- पित क,
उसक लौट आने क, अपने दांपय क पूणता
क। वह िसंदूर क सहार अपने िववाह क डोर
थामे रहती ह, यह सोचते ए िक वह "िकसी
क पनी ह, अकली नह ह"। लेिकन जब वह
अपने सास-ससुर क बातचीत सुनती ह-
िजसम वे अपने बेट क चले जाने क साई
और ब क ित उपेा कट करते ह- तो
उसक जीवन का म टट जाता ह। "पाँव तले
ज़मीन िखसक गई... और वह गाँव, घर,
देवता-िपर, नदी-पोखर को णाम कर
िनकल पड़ी..." यह ण ी क आम-
जागृित का ण ह, जब वह इतज़ार करना
छोड़कर अपने िलए जीने क राह चुनती ह।
ी क िलए सबसे असुरित जगह यिद कोई
ह, तो वह ह उसका अपना घर। जब घर ही
सुरित नह, तो समाज से या अपेा?
राजलमी भी इस असुरा का सामना करती
ह- पुष क वासनामय , अिधकार
जताने वाले संबंध, और नैितकता क ठकदार
क फ तयाँ। लेिकन वह इन सबसे झुकती
नह, लड़ती ह। राजलमी समाज क उस
"नरभी मानिसकता" से टकराती ह, जो एक
अकली ी को आसान िशकार समझती ह
और अंततः अपनी इज़त ही नह ब क
वािभमान क भी रा करती ह। राजलमी
िसफ एक परय ी नह, ब क एक
जीिवत ितरोध ह उस सोच क िव जो ी
को कमज़ोर, आित और बोझ मानती ह। वह
य क िलए एक ेरणाोत बनती ह
यिक: वह घर छोड़ती ह, पर परपराएँ नह
अपनाती। वह समाज म रहती ह, पर समाज
क चालबािज़य से समझौता नह करती। वह
शोषण सहती नह, उसे चुनौती देती ह।
अमरकांत ने राजलमी क मायम से यह
िदखाया ह िक नारी कवल दया क पा नह,
ब क ितकार और परवतन क श भी
ह। उनक लेखनी म नारी क ित गहरा
समान, उसक संघष क संवेदनशील
तुित और समाज क दोगली मानिसकता
क सश आलोचना िमलती ह।
राजलमी क कहानी क मायम से वह
यह उोष करते ह िक- " ी को पहचान
दो, नाम दो, अ तव दो- और सबसे बढ़कर
उसे जीने क आज़ादी दो।" 'सुर पांड क
पतोह' कवल एक परय ी क कहानी
नह, ब क यह उन लाख य क
सामूिहक यथा और चेतना का ितिनिधव
करती ह, िजनक पहचान िववाह, परवार
और रत म खो जाती ह, परतु जो जब भी
चाह, अपने 'म' क खोज कर सकती ह।
अमरकांत ने इस उपयास क मायम से नारी
क आमबल, संघषशीलता और सामािजक
जागकता का एक ऐसा प तुत िकया ह,
जो आज भी उतना ही ासंिगक ह।
अमरकांत क उपयास "काले उजले
िदन" म रजनी नामक ी पा क मायम से
अमरकांत ने नारी जीवन क जिटलता,
उसक ममता, ेम, याग, और पीड़ा को
अयंत मािमक प म िचित िकया ह। इस
उपयास को एक ी िवमश, समाज क
नैितक-चारिक बदलाव, और य गत
संघष को िचित िकया ह।
'काले उजले िदन' अमरकांत क उन
कितय म से ह जो मनुय क भीतर और बाहर
दोन संसार को टटोलती ह। इस उपयास म
जहाँ एक ओर सामािजक यवथा क बदलते
मूय ह, वह दूसरी ओर एक ी क
आंतरक संघष, याग और ेम क आ ता भी
ह। रजनी इस उपयास क मुख ी पा ह,
िजसक मायम से लेखक ने नारी क पीड़ा
और उससे उपजने वाले आमबल को सामने
रखा ह। रजनी का जीवन सुख-दुःख, ेम
और याग क कण गाथा ह। उसक जीवन
का हर रग, हर मोड़, आँसु और समझौत
से भरा आ ह। वह ी ह, इसिलए उसक
िहसे म यादा दद, यादा िज़मेदारी और
कम अिधकार आते ह। "उसका याग उसक
जीवन का सुख-दुःख ममता और ेम भावना
आँसु से ही भगी ह।" यह वाय रजनी क
आंतरक संसार का वणन ह- िजसम
आमदया नह, ब क एक कार क शांत
सहनशीलता और कणा ह।
"काले उजले िदन" कवल एक
पारवारक या भावनामक कथा नह ह। यह
उपयास समाज म ी क भूिमका, उसक
वतंता, पहचान और अ तव क सवाल
को भी उठाता ह। रजनी जैसे पा सामािजक
मायता क बीच िपसती ह, पर वे पूरी तरह
टटती नह। यह रचना यह भी दशाती ह िक
ी क वतंता का अथ कवल सामािजक
वीकित नह, ब क आ मक वतंता और
अपने िनणय का अिधकार भी ह। इस
उपयास क पा समाज क उन थितय से
गुज़र रह ह जहाँ पर थितयाँ उनक िनयंण
म नह होत। आिथक संकट, पारवारक
िवघटन, ेम म असफलता, सामािजक
ितरकार- ये सभी थितयाँ पा को
"अिभश" बनाती ह। लेिकन इन अिभशाप
क बीच रजनी का धैय, ेम और भावुक संघष
पाठक क मन म गहरी संवेदना और समान
जगाता ह। अमरकांत क लेखनी का िवशेष
गुण ह- संयिमत कणा। वे नारी पा को
िसफ दुःख सहने वाली नह बनाते, ब क
उनक भीतर िछपी अ य श को भी
उजागर करते ह। रजनी उसी परपरा क पा
ह- एक ऐसी ी जो आँसु से भीगी होने क
बावजूद कमज़ोर नह ह। "काले उजले िदन"
एक तीकामक शीषक ह, जो दशाता ह िक
जीवन कभी िसफ अँधेरा नह होता और कभी
िसफ उजाला भी नह होता। रजनी का जीवन
भी ऐसे ही िमित रग से भरा ह- कभी
सामािजक लांछन का अंधकार, कभी ेम क
उजास, कभी याग क तिपश और कभी
आमसमान का उजास। "काले उजले िदन"
कवल रजनी क कहानी नह, वह उन
अनिगनत य क कहानी ह जो अपने
अिधकार, अपनी पहचान और आमसमान
क िलए जूझ रही ह। अमरकांत ने इस
उपयास म ी को न कवल एक
संवेदनशील मनुय क प म देखा ह, ब क
एक सश, िववेकशील और जागक
इकाई क प म भी थािपत िकया ह। यह
उपयास नारी िवमश, सामािजक यथाथ और
आमबोध का संगम ह, जहाँ हर पाठक रजनी
क आँसु म कवल कणा नह, ब क
संघष और चेतना क श भी देख सकता
ह।
"िवदा क रात" उपयास म मु लम
समाज क य क थित पर अमरकांत
बत गहरी और सजग से काश डालते
ह। िवशेषतः जहाँगीर बेगम का चर इस
कोण से अयंत महवपूण ह। वह कवल
एक बुग मिहला नह, ब क अनुभव और
आमसमान क तीक ह। नईमा को जो
सलाह वे देती ह, वह मु लम य क भीतर
उपज रही सामािजक चेतना, आमबोध और
अिधकार-चेतना का माण ह।
उनका यह कथन- "तुम मु लम ख़ातून
हो, भेड़-बकरी नह..."- नारी अ मता का
सश उोष ह। वे परपरा और धम का
आदर करते ए भी ी क िलए गरमा,
वतंता और इसानी हक क बात करती ह।
"िवदा क रात" जैसी रचनाएँ अमरकांत क
कथा-सािहय को नारीवादी कोण से
मूयवान बनाती ह। उनक नाियकाएँ
सामािजक बंिदश क बावजूद वािभमानी,
तकसंगत और जागक ह।
अमरकांत का उपयास "लहर" िववाह
संथा क भीतर ी क अ तव, उसक
पहचान और उसक आकांा क िवघटन
क गहन पड़ताल करता ह। इस उपयास क
तीन मुख ी पा- बी देवी, िवमला और
सुिमा- िविभ सामािजक-सांकितक
संदभ म एक ही न से टकराती ह- "या
िववाह क बाद ी का अपना कछ शेष रह
जाता ह?" "लहर" कवल एक उपयास नह,
एक दपण ह िजसम भारतीय समाज म िववाह
क बाद ी क थित झलकती ह।
अमरकांत ने बत सहज, मगर ती
संवेदनशीलता क साथ यह न उठाया ह िक
या िववाह क बाद ी कवल संबंध क
इकाई बनकर रह जाती ह? या उसक वतं
चेतना, पहचान और आकांाएँ िववाह क
'गृहथी' म िवसिजत हो जाती ह? यह
उपयास उन आवाज़ को शद देता ह जो
असर संकोच, मयादा और परपरा क शोर म
दबा दी जाती ह।
अमरकांत क सािहय म ऐसे अनेक पुष
पा ह जो सतही तौर पर आधुिनक और
उदारवादी तीत होते ह, लेिकन भीतर से वे
ी को कवल सुख-सुिवधा का साधन मानते
ह। जैसे- "मु " का मोहन मधु क साथ वष
संबंध रखता ह, पर जब िववाह क िलए ज़मीन
और धन का ताव िमलता ह, तो वह मधु को
"पथ औरत" कहकर छोड़ देता ह।
"मआ" का अिनलेश य को जाल म
फसाने क िलए जानबूझकर कमज़ोर और
शोिषत मिहला को िनशाना बनाता ह। वह
कहता ह- "भवसागर म याँ मछिलयाँ ह
और वह मछआ।" ये पा िदखाते ह िक पुष
मानिसकता म आधुिनकता कवल वाथ
िसि का मुखौटा ह। "सुर पाँड क पतोह"
और "मूस" जैसी कहािनयाँ सामािजक
जड़ता और ी क शोषण क जिटल
परत को भी उजागर करती ह, जहाँ याँ
वयं िपतृसा क संवािहका बन जाती ह।

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 202571 70 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 2025
अिधकार ज़माने क कोिशश करना पाखंड
का लंत उदाहरण ह। सरवती क मामले म
उपकार जैसे औज़ार का योग इस बात को
दशाता ह िक पुष िकस कार ी क
िववशता का लाभ उठाकर उसे मानिसक व
शारीरक प से परािजत करता ह।
सरवती क कथा और भी भयावह ह।
धान जी ने उसक पित को िपटवाया, िफर
उसका इलाज करवा कर उपकार क बदले
उसक शारीरक गरमा पर हमला िकया।
अमरकांत यहाँ यह दशाते ह िक उपकार िकस
कार एक हिथयार बन जाता ह, िजससे
ग़रीब, िनरीह और िववश य को मानिसक
और शारीरक प से झुका िदया जाता ह।
"संकट म उपकार का अ अचूक होता ह।"
यह पं अमरकांत क लेखनी क गहराई
और उनक सामािजक यथाथबोध क सश
िमसाल ह।
इस उपयास म गाँव क याँ दमयंती
को हय से इसिलए देखती ह यिक वे
द िशा, आमिनभरता और वतंता क
महव को नह समझत। वे परपरा म जकड़ी
ह और िकसी भी 'नई चाल' को अवीकार
कर देती ह। यही कारण ह िक दमयंती को
उनक बीच आवारा, बेशम और धम-नािशनी
कहा जाता ह। "ाम सेिवका" क मायम से
अमरकांत ने समाज क उस कठोर साई को
उजागर िकया ह, िजसम ी यिद आमिनभर
बनने क कोिशश कर, तो समाज उसे
कचलने को तपर हो जाता ह- चाह वह पुष
हो या ी। दमयंती जैसे पा ी
जागकता, संघष और साहस का तीक ह,
जबिक धान जैसे चर िपतृसा क गहरी
सािजश को उजागर करते ह। अमरकांत क
यह रचना नारी िवमश, ामीण समाज और
सा क भीतर िछपी रता पर एक तीखा और
बेधक हार करती ह।
"आकाश पी" क रिव जैसे पा ी
िशा, समानता और वतंता क पधर ह।
रिव का यह कथन- "औरत-मद म कोई
ऊचा-नीचा थोड़ ह? जो काम मद कर सकते
ह, वही औरत भी कर सकती ह।" अमरकांत
क अपने ी-संबंधी कोण को ही
ितिबंिबत करता ह। रिव जैसे पा यह मानते
ह िक िशा कवल ान का मायम नह,
ब क समाज को बदलने का औजार ह —
िवशेषकर य क िलए।
अमरकांत क ी पा महज़ पीिड़त या
शोिषत नह, ब क समय क साथ जागक,
संघषशील और आमिनभर भी बनती ह।
"सुरग" उपयास क बी देवी इसका
लंत उदाहरण ह जो िशा और मोहे क
अय य क मदद से अपने अिधकार क
लड़ाई लड़ती ह। वह सामािजक दबाव से
घबराती नह, ब क संगिठत होकर अयाय
क िख़लाफ़ आवाज़ उठाती ह।
"सुर पाँड क पतोह" ऐसा ही एक
उपयास ह जो एक परय ी राजलमी
क गाथा क मायम से नारी अ मता, संघष
और आमिनभरता क मािमक और ेरक
कहानी कहता ह। राजलमी का वाभािवक
नाम, उसक पहचान, उसका "म" ससुराल म
कदम रखते ही ख़म हो जाता ह। उसे नया
नाम िदया जाता ह- "सुर पाँड क पतोह",
यानी पित क पहचान म गुम एक ी। यह
कवल नाम बदलना नह, ब क ी क
िनजता, पहचान और अ तव पर पहली चोट
ह। "एक ी क इससे बड़ी ासदी या होगी
िक िववाह क बाद उसक िनजता छीन ली
जाती ह..." राजलमी का पित झूलन पांड
उसे एक िदन िबना कछ कह छोड़कर चला
जाता ह। वह तीा करती ह- पित क,
उसक लौट आने क, अपने दांपय क पूणता
क। वह िसंदूर क सहार अपने िववाह क डोर
थामे रहती ह, यह सोचते ए िक वह "िकसी
क पनी ह, अकली नह ह"। लेिकन जब वह
अपने सास-ससुर क बातचीत सुनती ह-
िजसम वे अपने बेट क चले जाने क साई
और ब क ित उपेा कट करते ह- तो
उसक जीवन का म टट जाता ह। "पाँव तले
ज़मीन िखसक गई... और वह गाँव, घर,
देवता-िपर, नदी-पोखर को णाम कर
िनकल पड़ी..." यह ण ी क आम-
जागृित का ण ह, जब वह इतज़ार करना
छोड़कर अपने िलए जीने क राह चुनती ह।
ी क िलए सबसे असुरित जगह यिद कोई
ह, तो वह ह उसका अपना घर। जब घर ही
सुरित नह, तो समाज से या अपेा?
राजलमी भी इस असुरा का सामना करती
ह- पुष क वासनामय , अिधकार
जताने वाले संबंध, और नैितकता क ठकदार
क फ तयाँ। लेिकन वह इन सबसे झुकती
नह, लड़ती ह। राजलमी समाज क उस
"नरभी मानिसकता" से टकराती ह, जो एक
अकली ी को आसान िशकार समझती ह
और अंततः अपनी इज़त ही नह ब क
वािभमान क भी रा करती ह। राजलमी
िसफ एक परय ी नह, ब क एक
जीिवत ितरोध ह उस सोच क िव जो ी
को कमज़ोर, आित और बोझ मानती ह। वह
य क िलए एक ेरणाोत बनती ह
यिक: वह घर छोड़ती ह, पर परपराएँ नह
अपनाती। वह समाज म रहती ह, पर समाज
क चालबािज़य से समझौता नह करती। वह
शोषण सहती नह, उसे चुनौती देती ह।
अमरकांत ने राजलमी क मायम से यह
िदखाया ह िक नारी कवल दया क पा नह,
ब क ितकार और परवतन क श भी
ह। उनक लेखनी म नारी क ित गहरा
समान, उसक संघष क संवेदनशील
तुित और समाज क दोगली मानिसकता
क सश आलोचना िमलती ह।
राजलमी क कहानी क मायम से वह
यह उोष करते ह िक- " ी को पहचान
दो, नाम दो, अ तव दो- और सबसे बढ़कर
उसे जीने क आज़ादी दो।" 'सुर पांड क
पतोह' कवल एक परय ी क कहानी
नह, ब क यह उन लाख य क
सामूिहक यथा और चेतना का ितिनिधव
करती ह, िजनक पहचान िववाह, परवार
और रत म खो जाती ह, परतु जो जब भी
चाह, अपने 'म' क खोज कर सकती ह।
अमरकांत ने इस उपयास क मायम से नारी
क आमबल, संघषशीलता और सामािजक
जागकता का एक ऐसा प तुत िकया ह,
जो आज भी उतना ही ासंिगक ह।
अमरकांत क उपयास "काले उजले
िदन" म रजनी नामक ी पा क मायम से
अमरकांत ने नारी जीवन क जिटलता,
उसक ममता, ेम, याग, और पीड़ा को
अयंत मािमक प म िचित िकया ह। इस
उपयास को एक ी िवमश, समाज क
नैितक-चारिक बदलाव, और य गत
संघष को िचित िकया ह।
'काले उजले िदन' अमरकांत क उन
कितय म से ह जो मनुय क भीतर और बाहर
दोन संसार को टटोलती ह। इस उपयास म
जहाँ एक ओर सामािजक यवथा क बदलते
मूय ह, वह दूसरी ओर एक ी क
आंतरक संघष, याग और ेम क आ ता भी
ह। रजनी इस उपयास क मुख ी पा ह,
िजसक मायम से लेखक ने नारी क पीड़ा
और उससे उपजने वाले आमबल को सामने
रखा ह। रजनी का जीवन सुख-दुःख, ेम
और याग क कण गाथा ह। उसक जीवन
का हर रग, हर मोड़, आँसु और समझौत
से भरा आ ह। वह ी ह, इसिलए उसक
िहसे म यादा दद, यादा िज़मेदारी और
कम अिधकार आते ह। "उसका याग उसक
जीवन का सुख-दुःख ममता और ेम भावना
आँसु से ही भगी ह।" यह वाय रजनी क
आंतरक संसार का वणन ह- िजसम
आमदया नह, ब क एक कार क शांत
सहनशीलता और कणा ह।
"काले उजले िदन" कवल एक
पारवारक या भावनामक कथा नह ह। यह
उपयास समाज म ी क भूिमका, उसक
वतंता, पहचान और अ तव क सवाल
को भी उठाता ह। रजनी जैसे पा सामािजक
मायता क बीच िपसती ह, पर वे पूरी तरह
टटती नह। यह रचना यह भी दशाती ह िक
ी क वतंता का अथ कवल सामािजक
वीकित नह, ब क आ मक वतंता और
अपने िनणय का अिधकार भी ह। इस
उपयास क पा समाज क उन थितय से
गुज़र रह ह जहाँ पर थितयाँ उनक िनयंण
म नह होत। आिथक संकट, पारवारक
िवघटन, ेम म असफलता, सामािजक
ितरकार- ये सभी थितयाँ पा को
"अिभश" बनाती ह। लेिकन इन अिभशाप
क बीच रजनी का धैय, ेम और भावुक संघष
पाठक क मन म गहरी संवेदना और समान
जगाता ह। अमरकांत क लेखनी का िवशेष
गुण ह- संयिमत कणा। वे नारी पा को
िसफ दुःख सहने वाली नह बनाते, ब क
उनक भीतर िछपी अ य श को भी
उजागर करते ह। रजनी उसी परपरा क पा
ह- एक ऐसी ी जो आँसु से भीगी होने क
बावजूद कमज़ोर नह ह। "काले उजले िदन"
एक तीकामक शीषक ह, जो दशाता ह िक
जीवन कभी िसफ अँधेरा नह होता और कभी
िसफ उजाला भी नह होता। रजनी का जीवन
भी ऐसे ही िमित रग से भरा ह- कभी
सामािजक लांछन का अंधकार, कभी ेम क
उजास, कभी याग क तिपश और कभी
आमसमान का उजास। "काले उजले िदन"
कवल रजनी क कहानी नह, वह उन
अनिगनत य क कहानी ह जो अपने
अिधकार, अपनी पहचान और आमसमान
क िलए जूझ रही ह। अमरकांत ने इस
उपयास म ी को न कवल एक
संवेदनशील मनुय क प म देखा ह, ब क
एक सश, िववेकशील और जागक
इकाई क प म भी थािपत िकया ह। यह
उपयास नारी िवमश, सामािजक यथाथ और
आमबोध का संगम ह, जहाँ हर पाठक रजनी
क आँसु म कवल कणा नह, ब क
संघष और चेतना क श भी देख सकता
ह।
"िवदा क रात" उपयास म मु लम
समाज क य क थित पर अमरकांत
बत गहरी और सजग से काश डालते
ह। िवशेषतः जहाँगीर बेगम का चर इस
कोण से अयंत महवपूण ह। वह कवल
एक बुग मिहला नह, ब क अनुभव और
आमसमान क तीक ह। नईमा को जो
सलाह वे देती ह, वह मु लम य क भीतर
उपज रही सामािजक चेतना, आमबोध और
अिधकार-चेतना का माण ह।
उनका यह कथन- "तुम मु लम ख़ातून
हो, भेड़-बकरी नह..."- नारी अ मता का
सश उोष ह। वे परपरा और धम का
आदर करते ए भी ी क िलए गरमा,
वतंता और इसानी हक क बात करती ह।
"िवदा क रात" जैसी रचनाएँ अमरकांत क
कथा-सािहय को नारीवादी कोण से
मूयवान बनाती ह। उनक नाियकाएँ
सामािजक बंिदश क बावजूद वािभमानी,
तकसंगत और जागक ह।
अमरकांत का उपयास "लहर" िववाह
संथा क भीतर ी क अ तव, उसक
पहचान और उसक आकांा क िवघटन
क गहन पड़ताल करता ह। इस उपयास क
तीन मुख ी पा- बी देवी, िवमला और
सुिमा- िविभ सामािजक-सांकितक
संदभ म एक ही न से टकराती ह- "या
िववाह क बाद ी का अपना कछ शेष रह
जाता ह?" "लहर" कवल एक उपयास नह,
एक दपण ह िजसम भारतीय समाज म िववाह
क बाद ी क थित झलकती ह।
अमरकांत ने बत सहज, मगर ती
संवेदनशीलता क साथ यह न उठाया ह िक
या िववाह क बाद ी कवल संबंध क
इकाई बनकर रह जाती ह? या उसक वतं
चेतना, पहचान और आकांाएँ िववाह क
'गृहथी' म िवसिजत हो जाती ह? यह
उपयास उन आवाज़ को शद देता ह जो
असर संकोच, मयादा और परपरा क शोर म
दबा दी जाती ह।
अमरकांत क सािहय म ऐसे अनेक पुष
पा ह जो सतही तौर पर आधुिनक और
उदारवादी तीत होते ह, लेिकन भीतर से वे
ी को कवल सुख-सुिवधा का साधन मानते
ह। जैसे- "मु " का मोहन मधु क साथ वष
संबंध रखता ह, पर जब िववाह क िलए ज़मीन
और धन का ताव िमलता ह, तो वह मधु को
"पथ औरत" कहकर छोड़ देता ह।
"मआ" का अिनलेश य को जाल म
फसाने क िलए जानबूझकर कमज़ोर और
शोिषत मिहला को िनशाना बनाता ह। वह
कहता ह- "भवसागर म याँ मछिलयाँ ह
और वह मछआ।" ये पा िदखाते ह िक पुष
मानिसकता म आधुिनकता कवल वाथ
िसि का मुखौटा ह। "सुर पाँड क पतोह"
और "मूस" जैसी कहािनयाँ सामािजक
जड़ता और ी क शोषण क जिटल
परत को भी उजागर करती ह, जहाँ याँ
वयं िपतृसा क संवािहका बन जाती ह।

çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 202571 72 çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è अटबर-िदसबर 2025
"पलाश क फल" अमरकांत क एक
सश? सामािजक कहानी ह, जो ेम, ी-
पु?ष संबंध और सामािजक ढकोसल क
गहरी आलोचना तुत करती ह। यह कहानी
ख़ासकर ी शोषण, पु?ष सा क ढग और
सामािजक नैितकता क दोहर मापदंड को
उजागर करती ह। अजोरया- एक सीधी-सादी
ामीण ी, जो रायसाहब क रखैल बनती
ह। रायसाहब- गाँव क ित त ज़मदार, जो
सा और पु?ष वच व क तीक ह।
अजोरया एक सुंदर, युवा और िनछल ी
ह, जो रायसाहब क आकषण और ेम क झूठ
वाद म फसकर उनक साथ शारीरक संबंध
बनाती ह। धीर-धीर जब अजोरया उनसे
सामािजक मायता क माँग करती ह- यानी
उसे कवल भोया नह, जीवन संिगनी क प
म वीकार करने क बात करती ह- तो
रायसाहब क अंदर का सामंती पु?ष जाग
उठता ह। रायसाहब उसे "माया", "शैतान",
और "नरक का ार" कहकर उसक
नैितकता पर न उठाते ह। वे यह नह
वीकार कर पाते िक एक िननवगय ी भी
समान, अिधकार और ेम क हकदार हो
सकती ह। ी का शोषण- रायसाहब जैसे
पु?ष कवल अपने वाथ और कामुकता क
पूित क िलए य का इतेमाल करते ह,
और जब वे अिधकार माँगती ह, तो उह
"पितता" कहकर अपमािनत करते ह। कहानी
यह दशाती ह िक ऊची जाित और समाज म
ित त लोग भी भीतर से कसे नैितक प से
खोखले होते ह। ी क अ मता और
अिधकार- अजोरया जैसे पा क मायम से
अमरकांत यह िदखाते ह िक ी कवल "देह"
नह, वह भी एक इसान ह- उसक भी
भावनाएँ, आकांाएँ और अिधकार ह।
"पलाश क फल" एक करारी चोट ह उस
समाज पर, जो पुष क पाखंड को िछपाता ह
और य को चरहीन करार देता ह।
अमरकांत ने इस कहानी क मायम से ी
अ मता, सामािजक याय और िपतृसामक
सोच पर तीखा हार िकया ह। यह कहानी
आज क संदभ म भी उतनी ही ासंिगक ह
िजतनी अपने समय म थी।
कहानी "मु " म मुय पा मोहन
अपनी पनी को छोड़कर मधु नाम क ी क
साथ संबंध बनाये रखता ह। "मु " कहानी
यह दशाती ह िक संबंध से भागना मु नह
ह, और नैितक ं से जूझता य कभी
सहज जीवन नह जी पाता। यह कहानी
आधुिनक समाज म बढ़ते असंतोष, वतंता
क ग़लत परभाषा, और ी-पु?ष संबंध क
जिटलता को बेनकाब करती ह।
"दोपहर का भोजन" कवल भूख क
कहानी नह ह- यह ी क मौन संघष, पु?ष
क आमकिकता और ग़रीबी क नन यथाथ
क गूँज ह। अमरकांत यहाँ भी नारी को सश?
िदखाते ह, लेिकन वह श किम ांित म
नह, धैय और याग म ह। यह कहानी
अमरकांत क उस िवशेष शैली का
ितिनिधव करती ह िजसम वे साधारण जीवन
क असाधारण पीड़ा को बेहद सादगी और
गहराई से उकरते ह।
"िडटी कलटरी" कहानी म नाियका
काशी क पनी एक िननवगय ी ह जो
अपने पित क संघष को समझती ह और
परवार क आवयकता क ित सजग ह।
वह िकसी भी कार क आडबर या भावुकता
म नह उलझती।
"हयार" म चंपा का चर साहसी और
यावहारक ह। पित क मौत क बाद भी वह
आमिवलाप नह करती, ब क जीवन क
साई को वीकार कर आगे बढ़ने क
कोिशश करती ह।
िनकष : अमरकांत क कहािनय म
िननवगय याँ जीवन क कट यथाथ से
सीधे-सीधे टकराती ह। वे जीवन क मूलभूत
आवयकता क पूित क िलए संघषरत
रहती ह और इसी कारण वे अिधक
यवहारक, प और तकसंगत िदखाई देती
ह। अमरकांत क सािहय म य क छिव न
तो पूणतः देवीव से िवभूिषत ह, न ही िसफ़
शोिषत और परािजत। वे उह मांस-म?ा से
बनी जिटल, भावनामक, बौिक और
संघषशील इकाइयाँ मानते ह। वे मिहला
को िशा, अिधकार, वतंता, आिथक
वावलंबन और सामािजक भागीदारी म
बराबरी िदलाने क पधरता िदखाते ह।
इसिलए वे िहदी कथा-सािहय म ी िवमश
क एक सश? और सजग आवाज़ ह।
अमरकांत अपने समय क सीमा म रहकर
भी ी िवमश क ? म गितशील सोच और
मानवीय कोण क साथ संवाद करते ह
और यही उह िविश बनाता ह। अमरकांत
का सािहय सामािजक यथाथ का जीवंत
दतावेज ह, िवशेषकर उस समाज का, जहाँ
ी होना वयं म एक चुनौती ह। अमरकांत
का कथा-सािहय ी संवेदना का एक
महवपूण दतावेज ह। उहने अपनी
कहािनय म ी को एक "दया क पा"
नह, ब क एक जुझा, भावनाशील और
िववेकशील मानव क प म तुत िकया ह।
उनक ी पा क मायम से िनन-
मयमवगय समाज क साइयाँ, ी क
दोहरी गुलामी (सामािजक व आिथक),
उसक छटपटाहट और आम-संधान क
पीड़ा बत गहराई से उभरती ह। ी को
कवल सहानुभूित नह, समझ और समान क
ज़रत ह। अमरकांत का कथा सािहय हम
इसी िदशा म सोचने क िलए ेरत करता ह।
सदभ सूची-
1. "ामसेिवका", राजकमल काशन,
नई िदी(उपयास)
2. "लहर" अमर कितव काशन,
इलाहाबाद (उपयास)
3. "काले-उजले िदन", राजकमल
काशन, नई िदी (उपयास)
4. "िवदा क रात", अमर कितव
काशन, इलाहाबाद (उपयास)
5. "सुर पाँड क पतोह", राजकमल
काशन, नई िदी (उपयास)
6. "सुरग" राजकमल काशन, िदी
(उपयास)
7. "आकाश पी", राजकमल काशन,
नई िदी (उपयास)
8. अमरकांत क सपूण कहािनयाँ
खड एक - अमर कितव काशन
9. अमरकांत क सपूण कहािनयाँ
खड दो - अमर कितव काशन
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