वार्ता

VIRAGSONTAKKE 1,246 views 15 slides Mar 16, 2022
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About This Presentation

This Presentation is prepared for the Graduate Students. A presentation consisting of basic information regarding the topic. Students are advised to get more information from recommended books and articles. This presentation is only for students and purely for academic purposes.


Slide Content

वार्ता : अर्थ एवं महत्व डॉ ॰ विराग सोनटक्के

अर्थ व्युत्पत्ति संबंधी मूल : from root वृत्त = वृत्ति समुदाय के भौतिक/आर्थिक हितों का व्यवस्थित अध्ययन।
उत्पाद, वितरण, वाणिज्य का अध्ययन Three fold meaning

वार्ता

वार्ता : जीवनयापन के साधन के रूप मे प्रारंभ में , वार्ता = कृषि, पशुपालन, वाणिज्य संबंधित जीवन यापन का साधन शिल्प /हस्त कौशल से विलग कालांतर में, वार्ता में शिल्प शामिल किया गया महाभारत : कारुकशिल्प = वार्ता का अंग अर्थशास्त्र : राज्य वार्ता के माध्यम से अन्न, पशु, धन तथा अन्य संसाधन की प्राप्ति करती है वार्ता = राजकोष भरने का एक साधन वार्ता = खजाना भरने के लिए

वार्ता ज्ञान की शाखा के रूप में ज्ञान की शाखा के रूप में वार्ता के मुख्य तरीके, उनकी तकनीक तथा वार्ता के मार्गों का अध्ययन ए.एन.बेनर्जी : वार्ता सीखने की वह शाखा थी जिसमें धन अर्जित का विषय था। कौटिल्य: ज्ञान की 4 शाखाएं = आंविशिकी (दर्शन), त्रयी (तीन वेद), वार्ता, दंडनीति (राजनीति)। शुक्रनीति : वार्ता लाभ और हानि का विज्ञान है। ब्रहस्पति : ज्ञान की 2 शाखाएँ = वार्ता और दंडनीति। देवी भागवत पुराण : देवी को 4 विद्याओं द्वारा जाना जाता है जिसमें वार्ता भी शामिल है भागवत पुराण : वार्ता = चतुर्विद्या = कृषि, वाणिज्य, गौ सुरक्षा, ब्याज लेना। गौतम धर्मसूत्र + मत्स्य पुराण + मनुस्मृति : ब्राह्मणों ने वार्ता को ज्ञान की शाखा के रूप में सिखाया। भागवत पुराण: कृष्ण ने वार्ता का अध्ययन किया।
कामन्दक नीतिसार + शुक्रनीति + याज्ञवल्क्य स्मृति : राजा को वार्ता का अध्ययन करना चाहिए।

वार्ता वर्ण व्यवसाय के रूप में वार्ता : प्रारंभ में वैश्य वर्ण के व्यवसाय का सूचक। महाभारत : त्रयी, दंड़नीति, वार्ता – ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य हेतु कौटिल्य : वैश्य के तीन प्रमुख व्यवसाय – कृषि, पशुपालन एवं वार्ता . कामन्दक नीतिसार + विष्णुपुराण : वार्ता = वैश्यों का व्यवसाय। कालांतर में वार्ता को शूद्रों के व्यवसाय के रूप में भी देखा गया

वार्ता की उत्पत्ति मत्स्य पुराण : वार्ता की उत्पत्ति हृदय, मस्तिष्क तथा कर्म द्वारा प्रतिपादित व्यवधानों के निवाकरण हेतु जैन कल्पसूत्र : तीर्थंकर रीक्षाभदेव ने 3 व्यवसायों की स्थापना की जो वार्ता के रूप में जाने गए प्रारंभ में वार्ता को शिल्प से विलग रखा गया संभवतः वार्ता का उद्गम कला एवं हस्तकला के विकास के पूर्व हुआ होगा।

वार्ता की प्राचीनता वायु और ब्रह्मंड पुराण : वार्ता का उद्गम त्रेता युग में हुआ महाभारत : नारद युधिष्ठीर से : क्या आप वार्ता पर ध्यान दे रहे है? रामायण : राम भरत से : क्या लोग वार्ता में सम्मिलित है? अर्थशास्त्र : वार्ता समाज के विकास के लिए महत्वपूर्ण है मनुस्मृति, मिलिंदपन्ह : वार्ता के उल्लेख अमरकोश : जीवन -यापन के संदर्भ में वार्ता का वर्णन पुराण : वार्ता आर्थिक जीवन का महत्वपूर्ण स्त्रोत

वार्ता का स्वरूप कौटिल्य + मनुस्मृति + मिलिंदपन्ह + कामंदक : वार्ता के अंतर्गत कृषि, पालतू जानवरों और वाणिज्य का विषय समाविष्ट है । अर्थशास्त्र: वार्ता के साधन दर्शन और पुरुषार्थ के बराबर हैं कालिदास: वार्ता में कृषि और पशुपालन शामिल था। शुक्रानीति: ब्याज रखने ( कूसिविद ) और वाणिज्य वार्ता के हिस्से हैं। देवीपुराण: वार्ता में उद्योग भी शामिल हैं। प्रारंभ में, शूद्रों द्वारा किए गए कार्यों को वार्ता में शामिल नहीं किया गया था।
विष्णुपुराण के आधार पर विल्सन : वार्ता में शिल्प, इंजीनियरिंग, मूर्तिकला कला, आयुर्वेद भी शामिल थे।
हेमचंद्र: वार्ता आजीविका के लिए महत्वपूर्ण है। अर्थशास्त्र: वार्ता = खजाना भरने के लिए रामायण : खुशी प्राप्त करने के लिए अर्थ के रूप में वार्ता ।

वार्ता के घटक तत्व

वार्ता संबंधी नियम ज्ञान की शाखा के रूप में वार्ता का अध्ययन . वार्ता के मुख्य नियमों की चर्चा व्यवसाय गत नियम, वार्ता व्यवहार के नियम इत्यादि महाभारत : जब तक वार्ता के नियमों का पालन होगा, समाज समृद्ध रहेगा . अर्थशास्त्र : राजा राज्य में स्वयं को वार्ता के नियमों से परिचित रखे तथा वार्ता में होने वाले परिवर्तनों पर भी दृष्टि रखे . अन्य ग्रंथों : वार्ता का पालन ना होने पर समाज का पतन सुनिश्चित .

वार्ता का महत्व मानुषीय जीवन यापन के साधनों की पहचान एवं गणना वार्ता के रूप में जीवन यापन के साधनों का महत्व = वार्ता का महत्व वार्ता पर बल के फलस्वरूप व्यापारों के विकास पर बल : बेहतर सुविधाएँ एवं अवसर प्रदान करने की व्यवस्था राज्य द्वारा प्राचीन भारतीय अध्ययन के विषयों मे वार्ता का समावेश = वैकल्पिक शिक्षा वार्ता के माध्यम से जीवन यापन एवं व्यापारिक गतिविधियाँ सुस्पष्ट एवं सुपरिभाषित वर्ग विशेष का वार्ता से संबंध : आर्थिक गतिविधियों के क्रियान्वयन में पारदर्शिता वार्ता और श्रेणी का उदय

वार्ता की महत्ता

चर्चा उपर्युक्त अवलोकन से हम समझते हैं कि अधिकांश प्रमुख ग्रंथों में वार्ता की अवधारणा को शामिल किया गया है।
प्राचीन भारतीय बुद्धिजीवियों ने वार्ता की भूमिका का पूरी तरह से अवलोकन किया था . कृषि, पशुपालन और व्यापार अर्थव्यवस्था के तीन मौलिक तत्व हैं जिन्हें वार्ता के रूप में पहचाना गया था। राजा को प्रभार सौंपा गया था कि उसकी प्रजा के पास आजीविका का उचित स्रोत रहे । वार्ता ने मानव के भौतिक कल्याण को सुनिश्चित किया और यह भी सुनिश्चित किया कि अर्थव्यवस्था का विकास हो