teaching prose, prose teaching in hindi, gadya shishan in hindi

praseethanarikkodan17 3,478 views 19 slides Mar 01, 2017
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About This Presentation

a small presentation about teaching prose.Explains the importance of prose teaching and also include the steps of teaching prose in hindi.


Slide Content

नमस्कार

विषय- गद्य शिक्षण

गद्य साहित्य का महत्वपूर्ण अंग है। 19वी. एवं 20वी. शताब्दी में गद्य साहित्य प्रगतिशील हुआ। गद्य साहित्य की प्रमुख विधाएँ हैं- कथा साहित्य, नाटक, जीवन चरित, संस्मरण, निबंध आदि।

गद्य शिक्षण के सामान्य उद्देश्य छात्रों के शब्द एवं सूक्ति भण्डार में वृद्धि करना। छात्रों के शब्दोच्चारण को शुद्ध करना। वाचन एवं पठन कला में निपुण बनाना।

लिपि का ज्ञान देना। मौन वाचन की कला में निपुण बनाना। तथ्यों को समझने तथा उन्हें जीवन में प्रयुक्त करने की क्षमता का विकास करना। भावाभिव्यक्ति की क्षमता का विकास करना।

अध्ययन के प्रति प्रेरणा देना तथा उसका आनंद प्राप्त करने की क्षमता उत्पन्न करना। गद्य की विभिन्न शैलियों का ज्ञान प्रदान करना। छात्रों की रचनात्मक एवं सृजनात्मक शक्ति का विकास करना।

भाषा एवं भावों का माधुर्य ग्रहण करना। छात्रों को भाषण कला का ज्ञान करा कर इस कला में निपुण करना। छात्रों की कल्पना शक्ति का विकास करना। व्यवहारिक ज्ञान की वृद्धि करना।

मुहावरों तथा कहावतों का ज्ञान प्रदान करना। छात्रों में निरीक्षण, विवेचना एवं आलोचना की शक्ति पैदा करना। छात्रों को विविध विषयों का ज्ञान कराना। उनके व्यक्तित्व का विकास करना।

उनमें साहित्य के प्रति प्रेम उत्पन्न करना। मानसिक, तार्किक एवं बौद्धिक शक्तियों का विकास करना। गद्य शिक्षण का विशिष्ट उद्देश्य– गद्य की विविध विधाओं का विविध उद्देश्य होता है। कहानी शिक्षण का, नाटक शिक्षण का रचना शिक्षण का, वाचन शिक्षण का अपना- अपना विशिष्ट उद्देश्य हैं।

गद्य शिक्षण की प्रक्रिया (सोपान) सामान्यतया हारवर्ट के पंचपदी का प्रयोग किया जाता है। जो निम्न हैं- प्रस्तावना विषय प्रवेश या प्रस्तुतीकरण आत्मीकरण या तुलना सिद्धांत- स्थापना या नियमीकरण प्रयोग या व्यवहारिक जीवन से संबध स्थापन।

प्रस्तावना प्रस्तावना का मूल उद्देश्य है, छात्रों में विषय के प्रति रूचि उत्पन्न करना, पढ़ने के लिए उत्साहित तथा प्रेरित करना। प्रस्तावना में प्रश्नों का क्रमिक श्रृंखला का उपयोग करते हैं। इसमें चित्रों, कथानकों आदि का भी सहायता ली जा सकती है। यह अनेक प्रकार से संपादित की जा सकती है- लेखक के परिचय द्वारा

पूर्वकथन के द्वारा प्रश्नोत्तर प्रणाली द्वारा शिक्षोपकरणों द्वारा इस स्थल पर 3 से 5 मिनट तक का समय व्यतित करना चाहिए। अंतिम प्रश्न पाठ के उद्देश्य कथन से ज़ुडा होना चाहिए। उद्देश्य कथन स्पष्ट, संक्षिप्त और रोचक होना चाहिए। इस स्थल पर छात्रों को पाठ का शीर्षक एवं पृष्ठा संख्या बता देना चाहिए।

विषय प्रवेश पाठ को एक साथ पढाना सार्थक नहीं है। पाठ को इकाईयों या अंवतियों में विभाजित करना चाहिए और एक- एक अंविति को छात्रों के सम्मुख श्रृंखलाबद्ध रूप से क्रमश : उपस्थित करना चाहिए। वाचन- वाचन क्रिया में पर्याप्त सावधानी की अपेक्षा की जाती है। वाचन

क्रिया के तीन सोपान हैं- आदर्श वाचन- यह वाचन स्वयं शिक्षक करता है। उचित हाव- भाव, आरोह- अवरोह के साथ उच्चारण का ध्यान रखते हुए आदर्श वाचन प्रस्तुत करना चाहिए। अनुकरण वाचन- छात्रों द्वारा किये जानेवाले वाचन को अनुकरण वाचन कहते है। इस श्धान पर उच्चारण तथा गति पर विशेष ध्यान देना चाहिए।

मौन वाचन- आदर्श वाचन के सफल संपादन के उपरांत छात्रों को मौन वाचन का अवसर प्रदान करना चाहिए। व्यख्या- वाचन के उपरांत शब्दों, वाक्याशों, वाक्यों आदि की व्यख्या की जाती है। इस स्थल पर सूक्ष्मातिसूक्ष्म अध्ययन की जाती है। इसका प्रमुख उद्देश्य है, पाठ को बालक भली प्रकार से समझ ले।

शब्दार्थों के लिए निम्न विधियँ प्रयुक्त की जानी चाहिए, दृश्य सामग्री का प्रदर्शन द्वारा अंग संचालन द्वारा वाक्य प्रयोग द्वारा पर्यायवाची शब्दों द्वारा विलोम शब्दों द्वारा व्यख्या के स्पष्टीकरण के लिए तीन विधियाँ भी हैं, उद्बोधन विधि- इसमें अध्यापक कठिन शब्दों का अर्थ स्वयं नहीं बताता है। इसके लिए विभिन्न प्रणालियों का उद्बोधन

करता है। जैसे- सहायक सामग्री, प्रत्यक्ष प्रदर्शन, श्यामपट्ट, चित्र, अंग संचालन। स्पष्टीकरण विधि- उद्बोधन से स्पष्ट न हो तो इस विधि अपनाया जा सकती है। जैसे, व्युत्पत्ति द्वारा, प्रत्यय द्वारा, उपसर्ग द्वारा, तुलना द्वारा। प्रवचन विधि- पर्यायवाची शब्दों, परिभाषा आदि की सहायता से शब्दों की व्यख्या की जाती है।

विचार विश्लेषण- वाचन एवं व्यख्या के बाद विचार विश्लेषण का स्थान आता है। वाचन एवं व्यख्या से छात्रों के भाषा ज्ञान में वृद्धि होती है, परंतु विचार ग्रहण करने की क्षमता विचार विश्लेषण की माध्यम से विकसित होती है। गद्य तथा साहित्य के अन्य विधाओं के शिक्षण से छात्रों को हिन्दी भाषा से अधिक परिचय पाने की अवसर मिलता है।

धन्यवाद